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जाह्नवी कपूर ने 23 साल की उम्र में खरीदी करोड़ों की प्रॉपट्री, जानें क्या है कीमत

बॉलीवुड एक्ट्रेस  जाह्नवी कपूर ने हाल ही में मुंबई में अपना एक ना घर खरीदा है. इस खबर के आते ही फैंस जाह्नवी कपूर को बधाई देने शुरू कर दिए है. रिपोर्ट्स के मुताबिक इस घर की कीमत 39 करोड़ रुपय है. जाह्नवी का नया घर मुंबई के जुहू इलाके में स्थित है.

जो एक बिल्डिंग के 3 फ्लोर तक फैला हुआ है. इस घर की डील  जाह्नवी ने 7 दिसंबर को फाइनल की थी. रिपोर्ट्स की माने तो  जाह्नवी ने इस घर के लिए 78 लाख रुपये की स्टाम्प ड्यूटी भी चुकाई है. मौजूदा समय में जाह्नवी अपनी बहन खुशी कपूर और पिता बोनी कपूर के साथ लोखंडवाला में रहती हैं

 

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वह बोनी कपूर और श्री देवी की बेटी हैं. उन्होंने फिल्म धड़क से साल 2018 में डेब्यू किया था. इसके साथ कि जाह्नवी अभी कई नए प्रोजेक्ट्स पर भी काम कर रही हैं. बता दें कि  जाह्नवीकपूर अभr सिर्फ 23 साल की हैं. जाह्वी कपूर ने इतने कम समय में इतना बड़ा  मकाम  हासिल कर लिया है. यह उनके फैंस और फैमिली के लिए बड़ी बात है.

जल्द ही  जाह्नवी कपूर  फिल्म ‘दोस्ताना’ 2 और ‘रूही अफ्जाना’ में नजर आने वाली हैं. जाह्नवी कपूर के अपकमिंग फिल्म को देखने के लिए फैंस अभी से बेताब नजर आ रहे हैं.

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फिलहाल जाह्नवी अपनी फैमली और बहन के साथ ज्यादा वक्त गुजारते नजर आती हैं. वैसे जाह्नवी से पहले आलिया भट्ट और ऋतिक रौशन प्रॉपर्टी खरीदने को लेकर चर्चा में आएं थें. वहीं आलिया भट्ट ने रणबीर कपूर के घर के पास ही अपना नया घर लिया है जिससे वह रणबीर कपूर की पड़ोसन बन गई है.

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खबर है कि आलिया भट्ट और रणबीर कपूर जल्द शादी के बंधन में बंधने वाले हैं कुछ वक्त पहले आलिया रणबीर की फैमली के साथ होली डे मनाते नजर आई थी.

कोरोना गाइडलाइंस तोड़ने पर अरबाज खान, सोहेल खान और निर्वान खान के खिलाफ FIR दर्ज

सोमवार के दिन बॉलीवुड के भाईजान सलमान खान के घर में कुछ ऐसा देखने को मिला जिसे देखकर और जानकर सभी फैंस हैरान है. एक्टर अरबाज खान, सोहेल खान और उनके बेटे निर्वान खान के खिलाफ कोरोना के गाइड लाइन को तोड़ने को लेकर मुंबई पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया था.

दरअसल, न्यू ईयर के सेलिब्रेशऩ के बाद अरबाज खान, सोहेल खान औऱ उनके बेटे निर्वान खान दुंबई से सीधे घर आ गए जबकी उन्हें कुछ दिनों तक परिवार वालों से दूर रहकर खुद को कोरेंटाइन रखऩा था. जिसकी जानकारी मिलते ही बीएमसी ने सख्त करवाई करते हुए उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज किया है.

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अब खबर आ रही है कि सोहेल, अरबाज और उनके बेटे निर्वान ताज होटल में खुद को कोरेंटाइन कर लिया है. यह होटल बांद्रा पाली हिल के पास स्थित है. यह उनके घर से पास में ही है. उन्हें करीब 7 दिनों तक कोरेंटाइन रखा जाएगा आगे का डेट को बढ़ाया भी जा सकता है . फैसला परिस्थितियों को देखकर लिया जाएगा.

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मालूम हो कि महाराष्ट्र सरकार के गाइड लाइन थी कि कोई भी व्यक्ति अगर बाहर से आ रहा है तो वह सीधे अपने परिवार से नहीं मिलेग पहले वह खुद को कोरेंटाइन करेगा. फिर कुछ दिनों बाद वह किसी से मुलाकात करेगा.

 

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लेकिन इन दिनों ने मुंबई सरकार के नियमों का पालन नहीं किया था. एयरपोर्ट से सीधे घर चले गए. तीनों के खिलाफ धारा 188, 269 के तहत केस दर्ज किया गया था. क्योंकि अरबाज, सोहेल और निर्वान झूठ बोलकर सीधे घर चले गए थें.

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जिससे मुंबई सरकार उनसे गुस्सा होकर उनके घर पर नोटिस भेजवाकर उन्हें कोरेंटाइन करने का आदेश दिया है. वहीं इस विषय पर भाईजान यानि सलमान खान ने अभी तक कोई प्रतिक्रया नहीं दी है.

कर्तव्य पालन-भाग 3 : श्वेता को अवैध संतान क्यों समझते थे रामेंद्र

‘‘नहीं बताऊंगा.’’श्वेता आश्वस्त हो कर घर चली गई और अगले दिन से नियमित काम पर आने लगी. पर रामेंद्र के मन में श्वेता व राजेश को ले कर उधेड़बुन शुरू हो चुकी थी. आखिर राजेश की श्वेता से किस प्रकार की जानपहचान है. श्वेता उस की सिफारिश ले कर नौकरी पाने क्यों आई? उन्होंने श्वेता के घर का संपूर्ण पता व उस की योग्यता के प्रमाणपत्रों की फोटोस्टेट की प्रतियां अपने पास संभाल कर रख लीं. राजेश पूरे दिन फैक्टरी में नहीं आया. शाम को रामेंद्र ने घर पहुंचते ही अलका से उस के बारे में पूछा तो पता लगा कि वह बुखार के कारण पूरे दिन घर में ही पड़ा रहा. वे दनदनाते हुए राजेश के कमरे में दाखिल हो गए, ‘‘कैसी है तबीयत?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘जी,’’ अचकचा कर राजेश ने उठते हुए कहा.

‘‘लेटे रहो, स्वास्थ्य का खयाल न रखोगे तो यही होगा. क्या आवश्यकता है देर तक घूमनेफिरने की?’’

‘‘कल एक मित्र के यहां पार्टी थी,’’ राजेश सफाई पेश करने लगा.

‘‘फैक्टरी का काम देखना अधिक आवश्यक है. तुम अपनी इंजीनियरिंग व एमबीए की पढ़ाई पूरी कर चुके

हो. अब तुम्हें अपनी जिम्मेदारियां समझनी चाहिए.’’

‘‘जी, जी.’’

‘‘श्वेता को कब से जानते हो?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘जी, काफी अरसे से. वह एक दुखी व निराश्रित लड़की है, इसलिए मैं ने उसे फैक्टरी में नौकरी पाने के लिए भेजा था, पर आप को इस बारे में बताना याद नहीं रहा.’’

‘‘मैं ने उसे नौकरी दे दी है. लड़की परिश्रमी मालूम पड़ती है, पर तुम्हें इस प्रकार के छोटे स्तर के लोगों से मित्रता नहीं रखनी चाहिए.’’

‘‘जी, खयाल रखूंगा.’’

रामेंद्र के उपदेश चालू रहे. कई दिनों बाद आज उन्हें बेटे से बात करने का अवसर मिला था. सो, देर तक उसे जमाने की ऊंचनीच समझाते रहे.तभी त्रिशाला ने पुकारा, ‘‘पिताजी, चाय ठंडी हुई जा रही है. मैं ने नाश्ते में पनीर के पकौड़े बनाए हैं, आप खा कर बताइए कैसे बने हैं?’’ रामेंद्र आ कर चायनाश्ता करने लगे. त्रिशाला बताती रही कि आजकल वह बेकरी का कोर्स कर रही है, फिर दूसरा कोई कोर्स करेगी.

वे पकौड़ों की प्रशंसा करते रहे. अलका काफी देर से खामोश बैठी थी. अवसर मिलते ही उबल पड़ी, ‘‘तुम्हें बीमार बेटे से इस प्रकार के प्रश्न नहीं पूछने चाहिए. श्वेता को सिर्फ वही अकेला नहीं, बल्कि हम सभी जानते हैं. वह त्रिशाला की सखी है, इस नाते घर में आनाजाना होता रहता है. राजेश ने दयावश ही उसे अपनी फैक्टरी में नौकरी पाने हेतु आप के पास भेज दिया होगा.’’

‘‘पर मैं ने भी तो बुरा नहीं कहा. बस, यही कहा कि बच्चों को अपने स्तर के लोगों से ही मित्रता रखनी चाहिए.’’

‘‘बच्चों के मन में, छोटेबड़े का भेदभाव बैठाना उचित नहीं है.’’

‘‘ये दोनों अब बच्चे नहीं रहे, तभी तो कह रहा हूं,’’ रामेंद्र हार मानने को तैयार नहीं थे,  ‘‘देखो अलका, छोटी सी चिनगारी से आग का दरिया उमड़ पड़ता है. युवा बच्चों के कदम फिसलते देर नहीं लगती. तुम राजेश पर नजर रखा करो, उस का श्वेता जैसी लड़कियों के साथ उठनाबैठना उचित नहीं.’’ अलका पति रामेंद्र व इरा की प्रेम कहानी से भली प्रकार वाकिफ थी, इसलिए उस के मन में आया कि कह दे कि राजेश तुम्हारे जैसा नहीं है कि मछुआरिन जैसी लड़की के प्रेमपाश में बंध जाएगा. उस के लिए एक से एक बड़े घरों के रिश्ते आ रहे हैं. तुम्हें तो सिर्फ श्वेता से दोस्ती ही दिखाई दे रही है, उस के बड़े घरों के मित्र क्यों नहीं दिखाई देते? पर वह शांत बनी रही. इरा का नाम लेने से घर में फालतू का क्लेश ही उत्पन्न होता. श्वेता ने जिस खूबी से फैक्टरी का कार्य संभाला, उसे देख रामेंद्र दंग रह गए. श्वेता उन्हें राजेश व त्रिशाला से अधिक समझदार मालूम पड़ने लगी. काम पर आते वक्त अधिकतर महिला श्रमिक अपने साथ बच्चों को ले आती थीं जो इधरउधर घूम कर गंदगी फैलाते व लोगों की डांट खाते रहते थे. इस बाबत श्वेता ने सुझाव दिया, ‘‘क्यों न फैक्टरी के पीछे की खाली पड़ी जमीन पर एक टिनशेड डाल कर इन बच्चों के रहने, सोने, खेलने एवं थोड़ाबहुत पढ़नेलिखने की व्यवस्था कर दी जाए?’’ सुझाव सभी को पसंद आया. तत्काल टिनशेड की व्यवस्था कर दी गई. साथ ही, बच्चों की देखरेख के लिए एक आया व अक्षरज्ञान के लिए एक सेवानिवृत्त वृद्ध अध्यापिका की व्यवस्था कर दी गई. अपने बच्चों को प्रसन्न व साफसुथरा देख कर महिला श्रमिक दोगुने उत्साह से काम करने लगीं व सभी के मन में श्वेता के प्रति सम्मान के भाव उत्पन्न हो गए.

रामेंद्र ने श्वेता के कार्य से संतुष्ट हो कर उस का वेतन बढ़ा दिया, पर हृदय से वे उस को नापसंद ही करते रहे. उन के मन से यह कभी नहीं निकल पाया कि वह एक अवैध संतान है, जिस के पिता का कोई अतापता नहीं है. उन के मन में उस की मां के प्रति भी नफरत के भाव पनपते रहते, जिस ने अपने कुंआरे दामन पर कलंक लगा कर श्वेता को जन्म दिया था. श्वेता ने कई बार उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण दिया पर रामेंद्र ने उन लोगों के प्रति पनपी वितृष्णा के कारण वहां जाना स्वीकार नहीं किया. वे श्वेता के मुंह से यह भी सुन चुके थे कि उस का सौतेला शराबी बाप उस की मां को मारतापीटता है, पर फिर भी उन्होंने उस के घर जाना उचित नहीं समझा.

बलात्कार-सिपाही रमेश का कोर्टमार्शल क्यों करवाना चाहती थी सकती थी

मेरी सोच में कर्नल साहब की पत्नी के चरित्र को कलंकित करना ठीक नहीं था लेकिन वहीं सिपाही रमेश का फेवर न कर मैं उस के साथ नाइंसाफी करता. मैं अजीब स्थिति में था.

मैं जब पीटी के लिए ग्राउंड पर पहुंचा तो वहां पीटी न हो कर सभी जवान और अधिकारी एक स्थान पर इकट्ठे खड़े थे. मैं ने सोचा, पीटी के लिए अभी समय है, इसलिए ऐसा है. मैं अपना स्कूटर पार्क कर के हटा ही था कि स्टोरकीपर प्लाटून का प्लाटून हवलदार, सतनाम सिंह मेरे पास भागाभागा आया और बोला, ‘‘सर, गजब हो गया.’’

मैं स्टोरकीपर प्लाटून का प्लाटून कमांडर था, इसलिए उस का इस तरह भाग कर आना मुझे आश्चर्यजनक नहीं लगा. किसी नई घटना की मुझे सूचना देना उस की ड्यूटी में था. मैं ने उस की बात को बड़े हलके से लिया और पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘सर, जो नया सिपाही रमेश पोस्ंिटग पर आया है न, उस की रात को अफसर मैस में ड्यूटी थी, उस ने कर्नल साहब की वाइफ का बलात्कार कर दिया.’’

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‘‘क्या…क्या बकते हो? वह ऐसा कैसे कर सकता है? इस समय वह कहां है?’’ मैं एकाएक सतनाम सिंह की बात पर विश्वास नहीं कर पाया, इसलिए उस पर प्रश्नों की बौछार कर दी.

‘‘सर, वह क्वार्टरगार्ड (फौजी जेल) में बंद है. प्रशासनिक अफसर, कंपनी कमांडर और दूसरे अधिकारी वहीं पर हैं.’’

प्रेम संबंध

‘‘ठीक है, तुम यहीं रुको, मैं देखता हूं,’’ मैं ने सतनाम सिंह से कहा और सीधा क्वार्टरगार्ड की ओर बढ़ा. मुझे अपनी ओर आते देख कर कंपनी कमांडर साहब मेरी ओर बढ़े. ‘‘साहब, आप की प्लाटून के सिपाही रमेश ने तो गजब कर दिया. कर्नल साहब की वाइफ का रेप कर दिया.’’

‘‘सर, वह ऐसा कैसे कर सकता है. उस की यह हिम्मत? सर, आप ने उस से बात की?’’

‘‘बात करने की कोशिश की थी लेकिन वह कुछ नहीं बता रहा. केवल रोए जा रहा है.’’

‘‘ठीक है, सर. यह किस ने बताया कि उस ने रेप किया है? और कर्नल साहब उस समय कहां थे?’’

‘‘कर्नल साहब की वाइफ ने फोन कर के खुद बताया. ड्यूटी पर खड़े दूसरे गार्ड ने उसे ऐसा करते देखा. कर्नल साहब तो पीटी के लिए आ गए थे.’’

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‘‘हूं, ठीक है, सर मैं देखता हूं, वह क्या कहता है.’’ मैं क्वार्टरगार्ड के पास पहुंचा तो कर्नल साहब दिखाई दिए. उन्होंने मेरी ओर निराशा से देखा, परंतु कहा कुछ नहीं. वे सकते में थे. ऐसी स्थिति में कोई कह भी क्या सकता है.

क्वार्टरगार्ड के जिस कमरे में रमेश बंद था, उस के बाहर प्रशासनिक अफसर, सूबेदार, मेजर और हवलदारमेजर खड़े थे. मुझे देखते ही मेरी ओर लपके. सभी ने एकसाथ कहा, ‘‘देखा साहब, इस लड़के ने क्या किया? ऊपर से रोए जा रहा है. कुछ बता भी नहीं रहा.’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं देखता हूं. आप कृपया जरा बाहर चलें. मैं उस से अकेले में बात करना चाहता हूं. मैं समझता हूं, वह इस समय घबराया हुआ है और दबाव में है इसलिए रोए जा रहा है. मैं उस से प्यार से बात करूंगा तो वह अवश्य बताएगा कि वास्तव में हुआ क्या था.’’

‘‘ठीक है साहब, आप देख लें और जो कुछ बताए, हमें बताएं, तब तक मैं कंपनी कमांडर से बोल कर कोर्ट औफ इन्क्वायरी का और्डर करता हूं,’’ यह कह कर प्रशासनिक अफसर बाहर चले गए. उन के पीछे दूसरे अधिकारी भी चले गए. केवल क्वार्टरगार्ड का गार्ड कमांडर खड़ा रहा. मैं ने उसे घूरा, तो वह भी खिसक लिया.

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हाय रे पर्यटन

मैं सिपाही रमेश के पास गया. वहां रखे जग में से एक गिलास पानी ले कर उसे दिया, ‘‘लो, पानी पियो.’’ उस ने मेरे हाथ से पानी ले कर थोड़ा पिया और थोड़े से अपना मुंह धो लिया. मुंह पोंछने के लिए मैं ने उसे अपना रूमाल दिया. उस ने मेरी ओर देखा. मैं ने अनुभव किया, वह पहले से कहीं अधिक स्वस्थ लग रहा था. यही समय है उस से बात करने का. मैं ने कहा, ‘‘देखो रमेश, मैं तुम्हारा प्लाटून कमांडर हूं. तुम मुझे पहचानते हो न?’’ मेरे स्वर में बड़ी आत्मीयता थी. उस ने हां में सिर हिलाया. ‘‘गुड, देखो, जो हुआ सो हुआ. अगर तुम मुझे सच बता दोगे तो मैं वचन देता हूं कि मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा.’’

रमेश की आंखें छलछला आई थीं, ‘‘सर, मैं गरीब आदमी हूं. मेरे वेतन पर पूरे घर का खर्चा चलता है. मुझ से गलती हुई. मुझे बचा लीजिएगा. मेरा पूरा कैरियर बरबाद हो जाएगा, सर. प्लीज, सर.’’ वह फिर रोने लगा.

‘‘तुम चिंता मत करो. तुम मुझे सचसच बताओगे, तभी मैं तुम्हारी मदद कर पाऊंगा.’’

‘‘सर, मुझ से गलती हुई पर मेरा ऐसा करने का कोईर् इरादा नहीं था. कर्नल साहब पीटी के लिए निकले तो मैं रूटीन में उन के क्वार्टर का चक्कर लगाने गया. कमरे की खिड़की खुली हुई थी. अचानक अंदर नजर गईर् तो मेमसाहब को अर्धनग्न अवस्था में देखा. गोरीगोरी सुंदर टांगें आकर्षित करने लगीं. जैसे न्योता दे रही हों कि आ जाओ. और सच मानें, सर मैं रह नहीं पाया. मेमसाहब ने भी कुछ नहीं कहा. उन्होंने भी शोर तब मचाया जब दूसरे गार्ड ने उन्हें ऐसा करते देख लिया. बस इतना ही, साहब.’’ वह फिर सुबकने लगा.

मेरे मन के भीतर एकाएक विचार आया, कहीं मेमसाहब भी तो ऐसा नहीं चाहती थीं, तभी उन्होंने शोर नहीं मचाया. उन्होंने शोर तब मचाया जब दूसरे गार्ड ने उन्हें देख लिया. मुझे किसी भी सम्माननीय नारी के प्रति ऐसा सोचने का अधिकार नहीं था. मेमसाहब के प्रति तो बिलकुल नहीं. वे सब के प्रति स्नेहशील थीं.

‘‘रमेश, तुम्हें इतना भी खयाल नहीं रहा कि मेमसाहब कमांडैंट साहब की वाइफ हैं. सब के लिए सम्मानीय. वे जवानों से कितना स्नेह और प्यार करती हैं. तुम्हें उन के साथ ऐसा कृत करते हुए शर्म नहीं आई. तुम्हारा तो कोर्टमार्शल होना चाहिए. डिसमिस फ्रौम सर्विस.’’

वह कुछ नहीं बोला. सिर्फ पहले की तरह रोता रहा. मैं फिर विचारों में खोने लगा. मानव मतिष्क में कब शैतान घुस आए, कोई भरोसा नहीं. इस में उम्र की कोई सीमा नहीं होती. यह तो युवा और कुंआरा है. ऐसी स्थिति में किसी का मन भी भटक सकता था. इस का भटकना आश्चर्य का विषय नहीं है, चाहे, यह सरासर गलत था. गलत है.

इक जरा हाथ छूटा तेरा, रास्ते ही जुदा हो गये

मैं ने कुछ क्षण सोचा, फिर फैसला कर लिया, ‘‘तुम जानते हो रमेश, कोर्ट औफ इन्क्वायरी चलेगी. तरहतरह के प्रश्न पूछे जाएंगे. अलगअलग ढंग से तुम्हें लताड़ा जाएगा. तुम पर बहुत दबाव होगा. सब से अधिक दबाव मैं डालूंगा. परंतु तुम्हें मेरी बात पर कायम रहना होगा चाहे मैं तुम्हें बाहर ले जा कर थप्पड़ भी मारूं. अब मैं जो कह रहा हूं, उस से तुम मुकरना नहीं.

‘‘मेरी बात ध्यान से सुनो, कहना, कर्नल साहब पीटी पर गए तो मेमसाहब ने मुझे बुलाया और ऐसा करने को कहा. कोई जितना मरजी दबाव डाले, तुम्हें यही कहना है. कोई अधिक जोर दे तो केवल यह जोड़ना है कि मेरी क्या हिम्मत कि मैं एक  कर्नल साहब की वाइफ के साथ ऐसा करूं. बस, इतना ही. एक शब्द भी इधरउधर नहीं. तुम्हें कुछ नहीं होगा.’’

मैं उसे उसी स्थिति में छोड़ कर क्वार्टरगार्ड से बाहर आ गया. मुझे देखते ही प्रशासनिक अफसर और कंपनी कमांडर साहब मेरी ओर आए. दोनों ने एकसाथ पूछा, ‘‘कुछ बताया, साहब?’’

‘‘जी साहब, वह तो उलटापुलटा कह रहा है. कह रहा है, कर्नल साहब के जाने के बाद मेमसाहब ने उसे बुलाया और ऐसा करने को कहा.’’

‘‘क्या? बदमाश है, बकवास करता है. कर्नल साहब की वाइफ ऐसा कैसे कह सकती हैं? क्यों कहेंगी?’’ प्रशासनिक अफसर ने कहा.

‘‘हां सर, झूठ बोल रहा है. कर्नल साहब की वाइफ ऐसा कह ही नहीं सकतीं. उन को मैं ही नहीं, पूरी यूनिट अच्छी तरह जानती है,’’ कंपनी कमांडर ने कहा.

‘‘मैं ने भी उस से यही कहा था. मैं तो उसे थप्पड़ मारने को भी हुआ परंतु वह बारबार यही कहता रहा, भला, उस की क्या हिम्मत कर्नल साहब की वाइफ के साथ ऐसा करे या ऐसा करता.’’

‘‘हूं, कोर्ट औफ इन्क्वायरी में सब पता चल जाएगा,’’ प्रशासनिक अफसर ने कहा और चलने लगे.

‘‘सर, सिपाही रमेश और कर्नल साहब की वाइफ का मैडिकल करवाना आवश्यक है,’’ कंपनी कमांडर ने कहा.

‘‘कर्नल साहब से बात कर के मैं इस का प्रबंध करता हूं,’’ कह कर प्रशासनिक अफसर चले गए. उन के पीछेपीछे कंपनी कमांडर साहब भी. मैं भी वहां से लौट आया.

पिछले एक सप्ताह से सिपाही रमेश के विरुद्ध कोर्ट औफ इन्क्वायरी चल रही है. इस से पहले उस का और कर्नल साहब की वाइफ का मैडिकल हुआ था जिस में बलात्कार साबित हो गया था. इन्क्वायरी के अध्यक्ष मेजर विमल थे. कैप्टन सविता और सूबेदारमेजर विजय सिंह मैंबर थे. प्लाटून कमांडर होने के नाते आज मेरी स्टेटमैंट रिकौर्ड होनी थी. मैं मन ही मन इस के लिए खुद को तैयार करने लगा. मुझे इस बात की सूचना मिल गई थी कि सिपाही रमेश ने वही स्टेटमैंट दी थी जैसा मैं ने कहा था. अधिक जोर देने पर भी उस ने वही बात कही थी जिस के लिए मैं ने उसे हिदायत दी थी. मेरी स्टेटमैंट पर भी बहुतकुछ निर्भर था.

मैं जब कोर्ट औफ इन्क्वायरी के समक्ष पहुंचा तो सभी मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे. सुबह के 10 बज चुके थे. मेरे लिए इसी समय पहुंचने का आदेश था. मैं ने मेजर साहब को सैल्यूट किया और निश्चित कुरसी पर बैठ गया. कुछ समय चुप्पी छाई रही. फिर मेजर साहब ने प्रश्न करने शुरू किए.

‘‘आप कब से स्टोरकीपर प्लाटून के प्लाटून कमांडर हैं?’’

‘‘सर, पिछले वर्ष जनवरी से.’’

‘‘आप सिपाही रमेश को कब से जानते हैं?’’

‘‘एक सप्ताह पहले से, जब से वह पोस्ंिटग पर आया है.’’

‘‘आप को पता है, वह कहां से पोस्ंिटग पर आया है?’’

‘‘जी, मैटीरियल मैनजमैंट कालेज, जबलपुर से.’’

‘‘यानी, बिलकुल नया है. स्टोरकीपर की ट्रेनिंग के बाद वह सीधे यहीं आया है?’’

‘‘जी, सर.’’

‘‘आप जवानों के बीच से अफसर बने हैं. आप उन की मानसिकता को बड़ी अच्छी तरह समझते हैं, जानते हैं. क्या आप को लगता है, सिपाही रमेश बलात्कार जैसा अपराध कर सकता है?’’

‘‘मैं जानता हूं, सर सिपाही रमेश मेरे लिए नया है. मैं उसे अधिक नहीं जानता परंतु मैं यह अवश्य जानता हूं कि ट्रेनिंग सैंटरों से आए जवान अधिक अनुशासनप्रिय होते हैं, वे ऐसे अपराध कर ही नहीं सकते.’’

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं, रमेश आप की प्लाटून का जवान है, ऐसा कह कर आप उसे बचाना चाहते हैं?’’

‘‘नहीं, सर ऐसा नहीं है. मैं जवान से अफसर बना हूं. मैं 10 वर्षों तक उन के बीच रहा हूं. मैं उन की सोच, उन की मानसिकता को बड़े करीब से जानता हूं. वे बहुत ही गरीब परिवारों से आते हैं. जिन की दालरोटी उन के वेतनों से चलती है. वे ऐसा कैसे कर सकते हैं? उन के लिए तो एक सीनियर सिपाही और लांस नायक एक बहुत बड़ा अफसर है. उन के समक्ष वे सावधान हो कर बात करते हैं. वे ऐसे जवानों के प्रति कोई अपराध की बात नहीं सोचते तो कर्नल साहब के प्रति सोचना तो बहुत दूर की बात है.’’

आठवां फेरा

‘‘अपराध तो हुआ है. मैडिकल रिपोर्ट में बलात्कार साबित हो चुका है. क्या आप को लगता है, इस में कर्नल साहब की वाइफ भी कहीं दोषी हैं? सिपाही रमेश ने भी अपने बयान में कहा है कि उन्होंने उसे बुलाया और ऐसा करने को कहा. आप के ऊपर दिए बयान से भी कहीं न कहीं यह झलकता है कि इस में कर्नल साहब की वाइफ भी दोषी हैं?’’

प्रश्न का उत्तर देना बड़ा कठिन था. किसी को भी भ्रमित कर सकता था. मेजर साहब कहीं न कहीं मेरे मुख से इस के प्रति सुनना चाहते थे, परंतु मैं जानता था, मुझे क्या कहना है. मेरी थोड़ी सी गलती सिपाही रमेश का कोर्टमार्शल करवा सकती थी. मैं ने मन में ठान ली कि मुझे गोलमोल उत्तर देना है.

‘‘सर, मैं ने यह नहीं कहा कि कर्नल साहब की वाइफ दोषी हैं. मुझे नहीं पता, वास्तव में वहां हुआ क्या था. मैं ने तो आप के प्रश्न के उत्तर में जवानों की गरीबी, अनुशासनप्रियता और उन की मानसिकता को आप के समक्ष रखा है और यह कहने की कोशिश की है कि विकट परिस्थितियों में भी ऐसे अपराधों से जवान खुद को दूर रखने का प्रयत्न करते हैं. जम्मूकश्मीर में भी ऐसे कई केसेस आए जिन में जवान बेगुनाह साबित हुए. जहां तक कर्नल साहब की वाइफ का प्रश्न है, वे बहुत ही सम्मानीय नारी हैं. मैं उन को कलंकित होते नहीं देख सकता.’’

पर कहीं न कहीं मेरे मन के भीतर यह प्रश्न भी अपने विकराल रूप में रेंग रहा था कि कर्नल साहब खुद एक चरित्रहीन व्यक्ति हैं, कहीं उन के चरित्र से प्रभावित हो कर मेमसाहब ने ऐसा तो नहीं किया?

विडंबना देखिए, सेना में जहां औरतें पहले उपलब्ध नहीं हुआ करती थीं, अधिकारी अपने जूनियर या सीनियर अधिकारियों की पत्नियों से संबंध बनाने की कोशिश किया करते थे. खुद कई पत्नियां भी इस में पीछे नहीं रहती थीं, परंतु यह सब छिपछिप कर होता था. सेना में अब महिला अफसर आने से यह छिपाव खत्म हो गया है.

महिला अफसर सदा अपने सीनियर अफसरों के प्रभाव में रहती हैं और वे अधिकारी इस का पूरा फायदा उठाते हैं. मैं समझता हूं, शायद कर्नल साहब की चरित्रहीनता ने मेमसाहब को ऐसा करने को प्रेरित किया हो कि वे ऐसा कर सकते हैं तो वह क्यों नहीं. निश्चिय ही इसी का प्रभाव रहा होगा, परंतु मैं अपनी इस सोच को शाब्दिक प्रस्तुत नहीं कर पाया.

मैं चुप हो गया था. मेजर साहब भी सोच में डूब गए. उन को महत्त्वपूर्ण निर्णय करना था. एक तरफ जहां नारी का सम्मान दांव पर था, वहीं एक जवान का भविष्य भी जुड़ा था. थोड़ी सी गलती रमेश का कैरियर बरबाद कर सकती थी.

व्यावहारिक दीपाली

वे निर्णय नहीं कर पा रहे थे. फिर उन्होंने अपनी गरदन को झटका दिया, जैसे किसी निर्णय पर पहुंच गए हों, स्पष्ट कहा, ‘‘पिछले एक सप्ताह से, जब से कोर्ट औफ इनक्वायरी चली है, मैं इसी पर सोचता आ रहा हूं. अपराध तो हुआ है, मैं मानता हूं. मैं यह भी जानता हूं किसी नारी के चरित्र पर बिना देखे लांछन लगाना, उस से बड़ा अपराध है. मैं जवानों की मानसिकता को भी बड़े करीब से जानता हूं. चाहे मैं ने सेना में सीधे कमीशन लिया है. मैं ने दूसरे अफसरों से भी बात की है. वे भी यही कहते हैं. मैं नहीं समझता इस में सिपाही रमेश अधिक दोषी है. यह सहमति सैक्स का मामला बनता है. बनता ही नहीं, बल्कि है.’’

मेजर साहब ने कोर्ट औफ इन्क्वायरी के दूसरे सदस्यों की ओर गहरी नजरों से देखा. वे चुप थे, जिस का मतलब यह भी था कि वे उन की बात से सहमत हैं.

कोर्ट औफ इन्क्वायरी का कंक्ल्यूजन लिख लिया गया जो सिपाही रमेश के फेवर में था. कर्नल साहब को इस का आभास हो गया था कि इन्क्वायरी का कंक्ल्यूजन उन के फेवर में नहीं है.

एक सप्ताह के भीतर ही उन्होंने अपना ट्रांसफर करवा लिया और चले गए. वे बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहते थे. अगर आगे बढ़ाते तो जहां उन की बदनामी होती वहीं इंक्वायरी का कंक्ल्यूजन आड़े आता. मुझे सिपाही रमेश को बचा पाने की खुशी थी, वहीं कर्नल साहब की वाइफ के लिए हमदर्दी थी. मैं मन की गहराइयों से इस बात का फैसला नहीं कर पाया कि यह गलत हुआ या सही.

कर्तव्य पालन-भाग 2 : श्वेता को अवैध संतान क्यों समझते थे रामेंद्र

‘मुझे दुलहन बना कर अपने घर कब ले जाओगे?’ इरा पूछती.

‘बहुत जल्दी,’ वे इरा का मन रखने को कह देते, पर अपने घर वालों की कट्टरता भांप कर सोच में पड़ जाते. फिर बात बदल कर गंभीरता से कह उठते, ‘इरा, तुम मछली खाना बंद क्यों नहीं कर देतीं? क्या सब्जियों की कमी है जो इन मासूम प्राणियों का भक्षण करती रहती हो?’

यह सुन वह हंस पड़ती, ‘सभी बंगाली खाते हैं.’

‘पर हमारे घर में मांसाहार वर्जित है.’

‘पहले शादी तो करो. मैं मछली खाना बंद कर दूंगी.’ एक दिन ननिहाल वालों ने उन की चोरी पकड़ कर उन्हें खूब डांटाफटकारा. इरा को भी काफी जलील किया गया. घबरा कर वे प्यारव्यार भूल कर ननिहाल से भाग आए. मामामामी ने उन के मातापिता को पत्र लिख कर संपूर्ण वस्तुस्थिति से अवगत करा दिया. पत्र पढ़ते ही घर में तूफान जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई. मां ने रोरो कर आंखें लाल कर लीं. पिताजी क्रोध से भर कर दहाड़ उठे, ‘वह गंवई गांव की मछुआरिन क्या हमारे घर की बहू बनने के लायक है? आइंदा वहां गए तो तुम्हारी टांगें तोड़ कर रख दूंगा.’ उस के बाद पिताजी जबरदस्ती उन्हें अपनी फैक्टरी में ले जा कर काम में लगाने लगे. उधर, मां ने उन के रिश्ते की बात शुरू कर दी. एक दिन टूटीफूटी लिखावट में इरा का पत्र मिला. लिखा था, ‘मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं…आ कर ले जाओ.’ वे तड़प उठे व मातापिता की निगाहों से छिप कर नानी के गांव जा पहुंचे, पर उन के वहां पहुंचने से पूर्व ही इरा के घर वाले उसे ले कर कहीं लापता हो चुके थे. घर पर ताला लगा देख उन्होंने लोगों से पूछताछ की तो पता लगा कि अविवाहित बेटी के गर्भवती होने की बदनामी के डर से उन्होंने हमेशा के लिए गांव छोड़ दिया. वे पागलों की भांति इधरउधर भटक कर उस की तलाश करने लगे परंतु कहीं कुछ पता न चला. उधर, उन के मातापिता ने जबरदस्ती उन का विवाह बिरादरी की एक लड़की अलका के साथ संपन्न कर दिया. तभी अलका ने करवट बदली. बिस्तर हिलने से इरा की तसवीर फिसल कर फिर से नीचे जा गिरी. ‘‘सोए नहीं अभी तक?’’ अलका आंखें खोल कर असमंजस से पूछने लगी, ‘‘तुम अभी तक राजेश की चिंता में जाग रहे हो? क्या वह आया नहीं अभी तक?’’ अलका चिंतित हो उठ कर बैठ गई.

‘‘वह आ चुका है और कमरे में सो रहा है.’’‘‘तुम भी सो जाओ, नहीं तो बीमार पड़ जाओगे,’’ अलका ने कहा और फिर अलमारी खोल कर नींद की एक गोली ला कर उन्हें थमा दी.

पानी के साथ गोली निगल कर वे सोने की कोशिश करने लगे. अलका कहती रही, ‘‘जब बाप के पैर का जूता बेटे के पैरों में सही बैठने लगे तो बाप को बेटे के कार्यों में मीनमेख न निकाल कर, उसे मित्रवत समझाना चाहिए.’’ पर रामेंद्र का ध्यान कहीं और अटका हुआ था. सुबह बिस्तर से उठ कर वे स्नान, नाश्ते से निबट कर फैक्टरी जाने हेतु कार की तरफ बढ़े तो पाया कि राजेश अभी भी सो रहा है. अलका ने कहा कि वह राजेश को फैक्टरी भेज देगी, ताकि उस को जिम्मेदारी निभाने की आदत पड़ जाए. रामेंद्र जैसे ही फैक्टरी के दफ्तर में प्रविष्ट हुए तो वहां पहले से उपस्थित एक अनजान लड़की को बैठा देख कर चकित रह गए.

लड़की ने उठ कर उन्हें नमस्ते किया.

‘‘कौन हो तुम? क्या चाहती हो?’’ वे रूखेपन से बोले.

‘‘मेरा नाम श्वेता है. नौकरी पाने की उम्मीद ले कर आई हूं.’’

‘‘हमारे यहां कोई रिक्त स्थान नहीं है. तुम जा सकती हो,’’ कह कर वे अंदर जा कर काम देखने लगे. कुछ देर बाद जब वे किसी कार्यवश बाहर निकले तो लड़की को उसी अवस्था में बैठी देख कर हतप्रभ रह गए, ‘‘तुम गईं नहीं?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘मुझे राजेश ने भेजा है.’’

‘‘तुम उसे कैसे जानती हो?’’

‘‘मैं आप की बेटी त्रिशाला की सहेली हूं,’’ कहतेकहते श्वेता का स्वर आर्द्र हो उठा, ‘‘मैं अपने सौतेले बाप व सौतेले भाइयों से बेहद परेशान हूं. आप मुझे नौकरी दे कर मुझ पर बहुत बड़ा एहसान करेंगे. मैं व मेरी मां दोनों भूखों मरने से बच जाएंगी.’’

‘‘सौतेला बाप,’’ उन के मन में जिज्ञासा पनपी.

श्वेता ने कुछ झिझक के साथ कहा, ‘‘मेरी मां ने प्रेमी से धोखा खाने के पश्चात 2 बेटों के बाप, विधुर डेविड से शादी की थी. मैं मां के प्रेमी की निशानी हूं.’’

छि:छि:…रामेंद्र का मन घिन से भर उठा. कहीं अवैध संतान भी किसी की सगी होती है. जी चाहा अभी इस लड़की को धक्के दे कर फैक्टरी से बाहर निकाल दें पर श्वेता के चेहरे की दयनीयता देख उन की कठोरता बर्फ की भांति पिघल गई. उस का सूखा चेहरा बता रहा था कि उस ने कई दिनों से पेटभर कर भोजन नहीं किया है. सहानुभूतिवश उन्होंने श्वेता को थोड़े वेतन पर महिला श्रमिकों की देखरेख पर रख लिया. श्वेता उन के समक्ष नतमस्तक हो उठी व कुछ संकोच के साथ बोली, ‘‘सर, अपने बारे में मैं ने जो कुछ आप को बताया है उसे अपने तक ही सीमित रखें. राजेश व त्रिशाला को भी न बताएं.’’

भाई जब पार्टी झंडा धारी बन जाये‘

आजकल जनसभाओं के लिये भीड़ इकट्ठी करने की होड़ के कारण अनेक युवाओं को पार्टी का झंडा उठा कर सक्रिय सदस्य बनना फायदे का सौदा प्रतीत हो रहा है . यही वजह है पार्टी का सदस्य बनने से समाज में लोगों के सामने उसकी हनक बढती है और पैसे के जुगाड़ का भी जरिया बन जाता है .

पैसे से इकट्ठा हुई भीड़ को न तो नेता से कोई सरोकार होता है और न ही भीड़ को नेता से …. शायद य़ही वजह है कि अब नेता मंच से कार्यकर्ताओं को संबोधित करने की जगह विपक्षी दलों पर हमलावर हो कर भाषा की मर्यादा भी भूल जाया करते हैं .

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गुंडे बदमाशों को नकारने वाला समाज आज इन्हें अपने सिर आंखों पर बिठा रहा है . पहले अपराधी को लोग हुक्का पानी बंद करके समाज से बहिष्कृत कर  उसे समाज से अलग कर देते थे . रिश्तेदार रिश्ता खत्म कर लेते थे परंतु अब उसका उलट हो गया है . घर वालों के साथ साथ जघन्य अपराधियो को संरक्षण देने के लिये राजनीति बाहें फैलाये स्वागत् करने को तैयार रहती है .

सच्चाई  तो यह है कि अपराधी राजनीति के संरक्षण में फलता फूलता है . छोटे मोटे जुर्म में कानून से बचने के लिये ऐसे लोगों को पहले नेताओं का संरक्षण प्राप्त होता है और देखते ही देखते वह जनप्रतिनिधि बन जाते हैं .

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35 वर्षीय  नकुल एक दिन दोस्ती निभाने के चक्कर में एक पार्टी के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुआ , वहां पर लाठी चली और वह पुलिस के हत्थे पड़ गया … वहां के सभासद के बीच बचाव करने की वजह से वह छूट गया  लेकिन लोगों ने उसे माला पहनाकर  अपने कंधे पर बिठा कर जुलूस निकाला …बस अब तो उसे नेता बनने का चस्का लग गया था.

गले में माला पहन कर  जब घर पहुंचा तो सबसे पहले  अपनेमां बाप और बीबी बच्चों को समझा दिया कि यदि भविष्य में मलाई खाना है और लाल बत्ती का सुख उठाना है तो थोड़ी तकलीफ तो उठानी ही पड़ेगी .घर खर्चे की कभी फिक्र रही नहीं क्योंकि पिता का बड़ा शो रूम था और काफी प्रापर्टी थी , जिसका किराया आया करता था . अब तो उसे अपनी नेतागिरी चमकानी थी . सबसे पहले लड़कों के खेलने के लिये पार्क में बॉलीवाल कोर्ट बनवा दिया . अब तो लड़के उसके आगे पीछे घूमते . मोहल्ले के  किसी लड़के के साथ कोई बात हो जाये या किसी लड़की या महिला के साथ कोई ऊंची आवाज में बात कर ले  या फिर किसी रेहड़ी वाले को कोई परेशान कर रहा है , बस अपने लड़कों की फौज के साथ पहुंच जाता .

पार्षद जसवंत सिंह  को उसके कामों की खबर लग गई बस उन्होंने सलाह दी कि यदि नेता बनना है तो  सबसे पहले अपनी नेटवर्किंग मजबूत करो ….  शर्मा अंकल ने गाड़ी खरीदी , उन्हें लाइसेंस बनवाना था . नकुल जी बड़े कॉन्फिडेंस से बोले  ,आप किसी को भेज दीजिये …. बड़े बाबू अपने आदमी हैं … आपका काम हो जायेगा ….एक मिठाई का डब्बा लेते जाइयेगा . मिठाई के डब्बे और सही कागजात के कारण काम हो गया लेकिन क्रेडिट नकुल जी को मिल गया .

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अब तो लोग उनके घर पर चक्कर काटने लगे थे . एक रात में वह गहरी नींद में थे तभी रात के दो बजे किसी को एम्बुलेंस की जरूरत थी …. वह तुरंत पैरों में चप्पल पहन कर चल दिये थे . बुखार में तपती हुई पत्नी को उसके हाल पर छोड़ वह एक दो तीन  हो चुके थे . घर वाले उनकी इन हरकतों से परेशान हो गये थे.अब  वह अपने को कुछ स्पेशल समझने लगा था .घर में घुसते ही वह वी. आई. पी. ट्रीटमेंट चाहता था . अपने को महाराजा से कम नहीं समझता … किसी घरेलू कामों  से कोई  मतलब नहीं रखता लेकिन चीखने चिल्लाने में जरा देर नहीं लगती . बातें लंबी लंबी करता ….. पत्नी के बोलते ही लड़ाई झगड़ा शुरू कर देता … कभी कभी तो हाथ भी उठाने को तैयार हो जाता …कान पर फोन चिपका रहता या फिर जुबान पर लफंगों वाली गालियां निकलने लगती . घर के कामों से लापरवाह… ऐसे शो करता मानो उसी के इशारे पर दुनिया चलती है . जब तब दो चार लड़कों को लेकर आता और सबको चाय नाश्ता तो कभी खाना खिलाने के लिये कहता . देर रात में आता लेकिन कभी फोन करने की जरूरत  नहीं समझता .

26 वर्षीय नरेश स्वभाव से मस्तमौला था . स्कूल के समय से डिबेट में अच्छा बोलता था . सत्तारूढ दल के पार्षद के साथ दोस्ती हो गई . पार्टी के लोगों से जान पहचान हो गई थी . उसके भाषण की कला के कारण पार्टी मे उसकी हैसियत हो गई थी.छोटे मोटे कामों के लिये पार्षद अश्विनी बाबू का नाम ही काफी होता था बड़े कामों के लिये अश्विनी बाबू थे ही , बस जल्दी ही वह उनका दाहिना हाथ बन गया था . उन्हें   कामकाज करवाने के तौर तरीके  की अच्छी तरह जानकारी  हो गई .. घर पर काम करवाने वालों की भीड़ इकट्ठी होने लगी थी .

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अब घर पर भी उनकी हनक बढ गई थी . जिस  नरेश की घर में कोई इज्जत नहीं थी  अब वह कमाऊ सपूत बन गया  . सभासद का चुनाव वह आसानी से जीत गया था और विधायक जी तक उनकी पहुंच हो गई थी .अब सब तरफ से उन पर लक्ष्मी बरसने लगी थी . कलफदार कुर्ते पायजामें के आवरण में  वह हर कानूनी गैर कानूनी धंधे में उनकी लालच बढती जा रही थी . जो पापा उन्हें चार बातें सुनाया करते थे अब वह उन्हें दस बातें सुना दिया करता . बात बात में डींगें हांकना  . गालियां उनकी जुबान से बेसाख्ता निकलने लगी थी . उंगलियों में रंग बिरंगी अंगूठियों की संख्या बढती जा रही थी . अब वह बड़े बड़े सपने देखने लगा था . घर में अब उसकी तूती बोलने लगी थी आखिर कार उसे अब विधायक जो बनना  था .

रेबा नीला की बचपन की सहेली थी . इन दिनों वह बहुत दुखी और परे शान सी रहती थी .“क्या बात है रेबा … परेशान दिख रही हो ?’’ “अब तुमसे क्या छिपाऊं…. जब से नेता बन गये हैं ….घर के कामों के लिये तमाम छुटभइये हैं . वह तो कभी यहां मीटिंग तो कभी वहां …. कभी दिल्ली तो कभी लखनऊ … चुनाव के दिनों में तो न दिन  का पता न रात का …. पहले कभी शराब को छूते नहीं थे …अब रोज रात को बोतल खाली करे बिना सोते नहीं .. बस पैसा.. पैसा…  न मेरे लिये न बच्चों के लिये  उनके पास समय ही नहीं होता  … कोई रागिनी मैडम हैं .. उनके यहां हाजिरी लगाना जरूरी है  … मुझे तो लगता है कि बात बात पर झूठ बोलने लगे हैं . सुबह सुबह ही लोगों की भीड़ जमा हो जाती है  …. घर में घुसे नहीं कि फोन की घंटी बजती रहती है  . अपने को जाने क्या समझने लगे हैं …. घमंड के मारे सीधे मुंह बात भी नहीं करते हैं ….

दो चार लोकल अखवार वालों को कुछ दे दा कर  यहां वहां फोटो खिंचवाकर अपने को बहुत बड़ा नेता समझने लगे हैं . आज यहां प्रदर्शन , कल वहां धरना … शुरू में तो कई बार लाठी डंडा खाकर चोट भी खाकर आये हैं लेकिन अब जब से जिला अध्यक्ष बन गये हैं पार्टी में हैसियत तो बढ गई है लेकिन साथ  भी तो लफंगों का रहता है , इसलिये गुंडों वाली बातें करते हैं .

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बाहर तो दूसरों के सामन सर जी … सर जी करते रहते हैं तभी तो छुटभइये जी हुजूरी करते रहते हैं . ऐसे डींगें हांकेंगें जैसे प्रधानमंत्री इन्हीं से पूछ कर हर काम करते हैं . मैं तो इनसे परेशान हो गई हूं . नीला को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे रेबा की परेशानी को सुलझाये ….

मध्यप्रदेश के भिंड में रहने वाला 23 वर्षीय राजन बेरोजगार युवक था . पिता की छोटी सी दुकान में उसका मन नहीं लगता . उसे यहां वहां बैठ कर गप्प गोष्ठी में बहुत आनंद आया करता  . उसके जैसे 2- 4 दोस्तों के साथ बैठ कर पान मसाला का पाउच मुंह में भर कर हवाई बातें करा करते …..

घर में भाई नाराज होता तो ,दुकान पर पिता  लंबा चौड़ा भाषण पिला देते … उसकी दोस्ती संजू से हो गई , वह पार्टी का छुटभइया नेता था  … बस वह भी उसके साथ पार्टी का झंडा उठा कर कार्यकर्ता बन गया . चुनाव के दिन थे … यहां वहां पार्टी के लिये लोगों की भीड़ जुटाना ….. पोस्टर बैनर लगाना , झंडियां लगाना … नेता जी के आगमन पर सारी व्यवस्थाएँ  बनाने के लिये उस जैसे ढेरों लड़कों की जरूरत होती , उसके एवज में खाना पीना , रुपया पैसा और दारू  … अब तो वह व्यस्त भी और मस्त भी ….

धीरे धीरे उसकी पहचान बढती गई और वह शहर में जाना माना नेता बन गया  ….. वह यहां वहां दौड़ धूप कर लोगों का काम करवा देता …. तेज दिमाग तो था ही …. सारे गुर सीख लिये थे …कमीशन फिक्स  हो जाता   … धीरे धीरे वह ठेकेदार बन गया .पिता को उसकी नेतागिरी बिल्कुल पसंद नही आ रही थी . मां परेशान रहती क्यों कि हर बात पर झूठ बोलता … कोई भी किसी काम के लिये आता तो ना कभी न करता और ऐसे दिखाता कि वह उसके काम के लिये जी जान से लगा हुआ है . शहर के नामी पैसे वाले रामेश्वर जी के परिवार  के यहां गणेश परिक्रमा  करता उनकी पत्नी को बहन बना कर  बच्चों के लिये कुछ छोटा मोटा उपहार लेकर पहुंच जाता .

रामेश्वर जी को सम्मानित करके मानपत्र दिलवा दिया , अस्पताल में फल बांटते हुये फोटो पेपर में प्रकाशित करवा के उनका खासमखास बन बैठा और  अब तो चंदे के नाम पर उसको लोग अपने आप ही हजार दो हजार दे देते . वह लच्छेदार बातों से लोगों को अपने विश्वास में ले लेता .

साथ में दादागिरी भी चालू हो गई थी क्योंकि अब वह समझने लगा था कि वह जो चाहे  सो कर सकता है क्योंकि सरकार उनकी है … लोगों की जमीन पर कब्जा करना , मकान पर कब्जा करके कागज में इधर उधर करवा लेना …. एक दिन एक जमीन पर रातों रात कब्जा करके वहां बाउंड्री बनवाने लगा  था … गाली गलौज के बाद के ईंट पत्थर चल गये …दंगा भड़क गया …. पुलिस आ गई , अब वह हाथ पैर जोड़ने लगा लेकिन पुलिस ने एक भी न सुनी . किसी तरह  से वह दो दिन बाद किसी बड़े नेता के बीच बचाव के बाद छूट पाया था  परंतु अब उसका नेतागिरी का नशा ठंडा पड़ चुका था .

सरकार बदल गई थी अब रोज रोज उसकी पुरानी फाइलें खोली जा रही थी .आजकल माननीयों ने देश में जिस तरह से जातिवाद , क्षेत्रवाद , धनबल, बाहुबल  की राजनीति को बढावा दिया है  , इसी कारण से राजनीति अपराधियों की शरणस्थली बन गई है . आजकल चुनावों में राजनीतिक दल क्षेत्रवाद और जातिवाद के आधार पर अपने प्रत्याशियों का चयन करते हैं … इसी आधार पर जनता उन्हें विजयी भी बना देती है .

हमारे माननीयों को विचार करने की आवश्यकता है कि धनबल और बाहुबल से जीत और सत्ता तो मिल सकती है , परंतु इतिहास में पहचान बनाने के लिये एक आदर्श स्थापित करना होगा .

 

आखिर क्यों तांत्रिकों और बाबाओं के चक्कर में फंसती हैं महिलाएं

सूचना और संचार क्रांति के आधुनिक युग में भी हमारी सोच में कोई बदलाव नहीं आया है. यही बजह है कि हमारे देश में लोग लोग अक्सर ही टोना  टोटका और चमत्कारों के पीछे भागते हैं. अंधविश्वास और चमत्कारों के चक्कर में सबसे ज्यादा महिलाएं आ जाती हैं. गांव, कस्बों से लेकर  शहरों तक की महिलाएं ढोंगी बाबाओं ,संत , महात्माओं की काली करतूतों का शिकार हो ही जाती हैं.जीवन में आने वाली समस्याओं को सही सोच और समझ से हल न कर पाने के कारण ही महिलाएं धर्म और उनके ठेकेदारों के फैलाए जाल में फंस जाती है.

एक ऐसा ही बाकया जबलपुर शहर की पढ़ी लिखी महिला के साथ घटित हुआ है.जबलपुर के गढ़ा पुरवा में भद्रकाली दरबार के  बाबा संजय उपाध्याय के परचे पूरे जबलपुर शहर में बांटे जाते थे.  परचे में छपे विज्ञापन में दावा किया गया था कि केवल दरबार में एक नारियल चढ़ाकर सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान किया जाता है.संजय बाबा के इसी गलत प्रचार प्रसार के झांसे में जबलपुर शहर की 52 साल की एक महिला अनीता( परिवर्तित नाम) भी आ जाती है. पीड़ित महिला का अपने पति से अलगाव चल रहा है ,जिसकी वजह से वह मानसिक रूप से परेशान रहती थी.बाबा द्वारा किए जा रहे प्रचार-प्रसार में आकर वह गत वर्ष नवंबर 2019 में भद्रकाली दरबार पहुंची थी. दरबार के पंडा संजय उपाध्याय ने उसे  बताया कि पूजा-पाठ एवं मंत्र जाप करने से तुम्हारा पति तुम्हारे वश में हो जाएगा और तुम्हारा दाम्पत्य जीवन फिर से सुखमय हो जाएगा. हैरान परेशान अनीता को तांत्रिक संजय बाबा ने अपने झांसे में ले लिया.

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संजय बाबा के द्वारा बताए गए दिन जब सुनीता मंदिर पहुंची तो पूजापाठ के बहाने संजय महाराज उसे दरबार के नीचे बने एक यैसे कमरे में ले गया, जो एकांत में होने के साथ आलीशान सुख सुविधाओं से सजा हुआ था. संजय बाबा ने पूजा पाठ के पहले उसे  जल पीने के लिए दिया. जल में कुछ नशीला पदार्थ मिला हुआ था, जिस कारण वह बेहोशी की हालत में चली गई.उसी दौरान संजय बाबा ने उसके साथ दुराचार कर  मोबाइल से वीडियो भी बना लिया.  इस घटना के बाद बाबा अनीता को वीडियो दिखाकर ब्लेक मेल करने लगा. इसके बाद तो बाबा का जब मन  होता वह अनीता को वीडियो वायरल करने की धमकी देते हुए उसे अपने पास बुला लेता . संजय बाबा द्वारा कई बार उसका शारीरिक शोषण किया गया.  बाबा के दुराचार से परेशान होकर वह गुमसुम रहने लगी . परिवार के लोगों ने जब उससे कारण पूछा तो अनीता ने रो धोकर अपने साथ हुए दुर्व्यवहार की पूरी कहानी  बता दी.

अनीता के परिवार के लोगों ने  उसे हिम्मत बंधाते हुए   22 जुलाई 2020 की रात को जबलपुर के कोतवाली पुलिस थाने ले जाकर पूरी कहानी बताई और उसके साथ संजय  बाबा द्वारा किए गए दुराचार की रिपोर्ट दर्ज करा दी . पीड़ित महिला की  रिपोर्ट पर पुलिस ने सक्रियता से जब मामले की जांच की तो संजय उपाध्याय की काली करतूतें सामने आ गयीं.बाबाओं     एवं तांत्रिकों के चक्कर में फँसकर अपनी इज्जत एवं पैसे गँवाने की इस घटना में भद्रकाली दरबार के हाईप्रोफाइल तांत्रिक पर महिला के रेप व ब्लैकमेलिंग का मामला दर्ज कर लिया. शातिर बाबा को गिरफ्तार करने पुलिस ने  आरोपी संजय उपाध्याय को नाटकीय अंदाज में थाने का वास्तु दिखाने एवं शिकायत की जाँच के बहाने पुलिस थाने बुलाकर गिरफ्तार कर लिया  .

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बाबा लेता था हर माह 20 हजार रुपए

जबलपुर के कोतवाली थाना प्रभारी अनिल गुप्ता ने जानकारी दी है कि करीब 52 साल की महिला का अपने पति से अनबन होने से वह मायके में रह रही थी.परेशान महिला जब भद्रकाली मंदिर के संजय उपाध्याय के पास एक नारियल लेकर पहुँची तो बाबा ने तांत्रिक क्रिया के नाम पर उसे नशीला पदार्थ पिलाया और जब वह बेहोश हो गई तो उसकी बेहोशी का फायदा उठाकर उसके साथ रेप किया. इसके बाद महिला का वीडियो बनाकर ब्लैकमेल एवं उसका दैहिक शोषण करने लगा. पिछले काफी दिनों से ब्लेकमेलिंग का यह सिलसिला चल रहा था और तांत्रिक संजय उपाध्याय महिला से हर माह उसके पति को वीडियो भेजने की धमकी देकर 20 हजार रुपये रखवा लेता था . परेशान महिला को वह अपने दरबार में काम के लिए भी घंटों बैठाए रखता था.

विजय नगर क्षेत्र की रहने वाली महिला से जुड़ी एक और युवती से भी इसी तरह की घटना की शिकायत भी  तसदीक पुलिस कर रही है.तांत्रिक के खिलाफ पहले भी कई महिलाओं ने शिकायतें की थीं तथा वीडियो भी वायरल हुए थे. इसके बाद भी तांत्रिक अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था. एक युवती के माता-पिता ने तो संजय उपाध्याय पर लिखित में भी गंभीर आरोप लगाये थे. लेकिन हर बार वह अपने सम्पर्कों का सहारा लेकर बच जाता था.

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आखिर क्यों जाल में फंस जाती महिलाएं

ढोंगी बाबाओं और पंडे पुजारियों द्वारा लोगों के साथ ठगी और महिलाओं के साथ यौनाचार की आए दिन होने वाली ये घटनाएं बताती हैं कि महिलाएं इनसे कोई सबक नहीं ले‌ रहीं हैं. आखिर महिलाएं क्यों इनके झांसे में आ जाती हैं. आशाराम बापू,राम रहीम और संत रामपाल जैसे धर्म गुरुओं ने कितनी महिलाओं की इज्जत को तार तार किया है. समाज में आज भी यैसे बाबाओं,पीर, फकीरों की कमी नहीं है जो रोगों के इलाज के नाम पर तो कहीं महिलाओं की सूनी गोद भरने के नाम पर महिलाओं को बहला फुसलाकर अपनी हवस मिटाते हैं.

आखिर महिलाओं को यह बात समझ क्यों नहीं आती कि औलाद होने के लिए पति-पत्नी के बीच स्वस्थ सेक्स संबंधों का होना जरूरी है. औलाद न होने पर डाक्टरी सलाह लेकर पति-पत्नी अपनी जांच करवाकर अपनी यौन दुर्बलता को दूर कर संतान सुख प्राप्त कर सकते हैं. औलाद किसी बाबा,संत महात्माओं के चमत्कारी प्रभाव से उत्पन्न नहीं होती.

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महिलाओं को इस बात पर विचार करना चाहिए कि पति को प्यार और विश्वास से मनाकर उसके दिल पर राज किया जा सकता है. एक तरफ महिलाएं बाबाओं और तांत्रिकों को अपना सब कुछ समर्पित करने तैयार हो जाती है, परन्तु पति और उसके परिवार की खुशियों के लिए अपने अहम को सर्वोपरि मान कर पति की बात मानने तैयार नहीं होती . इसी तरह शारीरिक और मानसिक परेशानियों  का इलाज भी डाक्टरी सलाह और दबाइयों से किया जा सकता है. महिलाओं को सोच समझकर निर्णय लेकर ऐसे ढोंगी बाबाओं के चक्कर में फंसने से बचना होगा.

किसान जेपी सिंह ने विकसित की बीजों की सैकड़ों प्रजातियां

जज्बा होता है कुछ करगुजरने का, यों ही नहीं लोग मिसाल बनते हैं यह शेर एक ऐसे किसान पर सही बैठता है, जिस ने कृषि के क्षेत्र में मिसाल कायम की है. 10वीं क्लास तक पढ़े बनारस के किसान जय प्रकाश सिंह ने बीजों की सैकड़ों तरह की उन्नत किस्मों की प्रजातियां विकसित की हैं.

प्रगतिशील किसान जय प्रकाश सिंह के बेटे सुभाष सिंह ने बताया कि उन के पिता 10वीं क्लास में फेल हो गए, तो उन्हें लगा कि अब क्या किया जाए? तब उन्होंने फैसला किया कि किसान हूं तो क्यों न किसानी में हाथ आजमाऊं, कुछ नया करूं. यही सोच कर उन्होंने बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया और लग गए बीजों को विकसित करने के काम में. जय प्रकाश सिंह ने बताया कि उन्होंने अब तक गेहूं की 120 प्रजातियां, अरहर की 60 और धान की लगभग सैकड़ों प्रजातियां ढूंढ़ निकाली हैं.

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राष्ट्रपति के हाथों 2 बार सम्मानित किसान जय प्रकाश सिंह बनारसइलाहाबाद रोड पर स्थित राजा तालाब के पास टडियां गांव के रहने वाले हैं. उन के पास कोई कृषि डिगरी नहीं होते हुए भी वे एक तरह से किसान वैज्ञानिक बन गए हैं. उन्हें कई राज्य सरकारों ने भी सम्मानित किया है. उन्होंने बीज चुनने का काम पारंपरिक तरीके से किया. इस काम में उन के बुजुर्गों का तजरबा भी काम आया. इस समय किसानों की आय दोगुनी करने वाली सरकार द्वारा बनाई गई 37 सदस्यों की कमेटी के एक सदस्य जेपी सिंह ने बताया कि वे उत्तर प्रदेश के बीज प्रमाणीकरण बोर्ड में शोध सलाहकार के तौर पर भी काम कर चुके हैं. अरहर की किस्में अरहर की 60 किस्मों में से एमपी 09 किस्म अरहर बीज को एक बार बो देने से अगले 2-3 साल तक उस से अरहर और जानवरों के लिए चारा मिल सकता है. 1 एकड़ के लिए 2 किलोग्राम बीज लगता है और अधिक उत्पादन मिलता है.

15 फुट तक बढ़ने वाली इस बहुवर्षीय अरहर से किसानों को बहुत ही लाभ पहुंच रहा है. सूखाग्रस्त और कम बारिश वाले इलाकों में यह अरहर किसानों के लिए वरदान साबित हुई है. अरहर की यह किस्म 280 दिन में तैयार हो जाती है. इस की कच्ची फली बेच कर भी किसान अच्छा पैसा कमा सकते हैं. 65 दिन वाली मूंग जय प्रकाश सिंह ने 6 किलोग्राम बीज से 65 दिन में तैयार होने वाली मूंग की प्रजाति खोज निकाली है. यह बैसाखी मूंग गरमी के मौसम में किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित हुई है. इस से पैदावार भी अधिक मिल रही है. जिस किसान के पास गरमी के मौसम में एक या 2 सिंचाई देने की व्यवस्था है, उस के लिए मूंग का यह बीज बहुत ही कारगर सिद्ध हुआ है.

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गेहूं की प्रजातियां गेहूं की प्रजातियों में जेपी-168, जेपी-151, जेपी-161, जेपी-8661 बहुत ही कारगर सिद्ध हुई हैं. इन से किसानों की उपज और आमदनी भी बढ़ी है. धान की प्रजातियां किसान जय प्रकाश सिंह ने धान की तकरीबन 480 प्रजातियां खोज निकाली हैं, जिन पर संशोधन कर किसानों के लिए उन्नति का रास्ता मजबूत किया है. इस से लाखों किसान अपने खेतों में पैदावार बढ़ा रहे हैं. खेती को लाभदायक बनाने के लिए किस तरह से उन्नतशील बीजों का इस्तेमाल कर के पैदावार बढ़ाई जा सकती है, इस की उन से जानकारी ली जा सकती है. जय प्रकाश सिंह का कहना है कि उन के द्वारा संशोधित किए हुए गेहूं, धान, अरहर के बीज को लैब में टैस्ट कीजिए, खेत में लगाइए और नतीजा देखिए.

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उन के संशोधित गेहूं के बीज में सामान्य गेहूं से 12 फीसदी अधिक आयरन पाया गया है. सही माने में जय प्रकाश सिंह किसानों को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं. एक बार बीज लगा कर खुद के बीज का इस्तेमाल खुद ही कर के हर साल बीज के होने वाले बहुत बड़े खर्चे से किसान बच भी सकते हैं और बीजों के बारे में आत्मनिर्भर बन सकते हैं. अधिक जानकारी के लिए किसान जय प्रकाश सिंह से उन के मोबाइल फोन नंबर 9450047855, 6394451006 पर बात कर सकते हैं या उन के ईमेल पर संपर्क कर सकते हैं :

कर्तव्य पालन-भाग 1 : श्वेता को अवैध संतान क्यों समझते थे रामेंद्र

भोजन की मेज पर राजेश को न पा कर रामेंद्र विचलित हो उठे, बेमन से रोटी का कौर तोड़ कर बोले, ‘‘आज फिर राजेश ने आने में देरी कर दी.’’

‘‘मित्रों में देरी हो ही जाती है. आप चिंता मत कीजिए,’’ अलका ने सब्जी का डोंगा उन की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘राजेश का रात गए तक बाहर रुकना उचित नहीं है. 10 बज चुके हैं.’’

‘‘मैं क्या कर सकती हूं. मैं ने थोड़े ही उसे बाहर रुकने को कहा है,’’ अलका समझाने लगी.

‘‘तुम्हीं ने उस की हर मांग पूरी कर के उसे सिर चढ़ा रखा है. आवश्यकता से अधिक लाड़प्यार ठीक नहीं होता.’’

क्रोध से भर कर अलका कोई कड़वा उत्तर देने जा रही थी, पर तभी यह सोच कर चुप रही कि रामेंद्र से उलझना व उन पर क्रोध प्रकट करना बुद्धिमानी नहीं है. नाहक ही पतिपत्नी की मामूली सी तकरार बढ़ कर बतंगड़ बन जाएगी. फिर हफ्तेभर के लिए बोलचाल बंद हो जाना मामूली सी बात है. मन को संयत कर के वह पति को समझाने लगी, ‘‘राजेश बुरे रास्ते पर जाने वाला लड़का नहीं है, आप अकारण ही उसे संदेह की नजर से देखने लगे हैं.’’ रामेंद्र ने थोड़ा सा खा कर ही हाथ खींच लिया. अलका भी उठ कर खड़ी हो गई. त्रिशाला का मन क्षुब्ध हो उठा. आज उस ने अपने हाथों से सब्जियां बना कर सजाई थीं, सोचा था कि मातापिता दोनों की राय लेगी कि उस की बनाई सब्जियां नौकर से अधिक स्वादिष्ठ बनी हैं या नहीं. पर दोनों की नोकझोंक में खाने का स्वाद ही खराब हो गया. वह भी उठ कर खड़ी हो गई.

नौकर ने 3 प्याले कौफी बना कर तीनों के हाथों में थमा दी. परंतु रामेंद्र बगैर कौफी पिए ही अपने शयनकक्ष में चले गए और बिस्तर पर पड़ गए. बिस्तर पर पड़ेपड़े वे सोचने लगे कि अलका का व्यवहार दिनप्रतिदिन उन की तरफ से रूखा क्यों होता जा रहा है? वह पति के बजाय बेटे को अहमियत देती रहती है. रातरात भर घर से गायब रहने वाला बेटा उसे शरीफ लगता है. वह सोचती क्यों नहीं कि बड़े घर का इकलौता लड़का सभी की नजरों में खटकता है. लोग उसे बहका कर गलत रास्ते पर डाल सकते हैं. कुछ क्षण के उपरांत अलका भी शयनकक्ष में दाखिल हो गई. फिर गुसलखाने में जा कर रोज की तरह साड़ी बदल कर ढीलाढाला रेशमी गाउन पहन कर पलंग पर आ लेटी.

रामेंद्र ने निर्विकार भाव से करवट बदली. बच्चों के प्रति अलका की लापरवाही उन्हें कचोटती रहती थी कि ब्यूटीपार्लरों में 4-4 घंटे बिता कर अपने ढलते रूपयौवन के प्रति सजग रहने वाली अलका आखिर राजेश की तरफ ध्यान क्यों नहीं देती? अलका के शरीर से उठ रही इत्र की तेज खुशबू भी उन के मन की चिंता दूर नहीं कर पाई. वे दरवाजे की तरफ कान लगाए राजेश के आगमन की प्रतीक्षा करते हुए बारबार दीवारघड़ी की ओर देखने लगे. डेढ़ बज के आसपास बाहर लगी घंटी की टनटनाहट गूंजी तो रामेंद्र अलका को गहरी नींद सोई देख कर खुद ही दरवाजा खोलने के उद्देश्य से बाहर निकले, पर उन के पहुंचने के पूर्व ही त्रिशाला दरवाजा खोल चुकी थी. राजेश उन्हें देख कर पहले कुछ ठिठका, फिर सफाई पेश करता हुआ बोला, ‘‘माफ करना पिताजी, फिल्म देखने व मित्रों के साथ भोजन करने में समय का कुछ खयाल ही नहीं रहा.’’ बेटे को खूब जीभर कर खरीखोटी सुनाने की उन की इच्छा उन के मन में ही रह गई क्योंकि राजेश ने शीघ्रता से अपने कमरे में दाखिल हो कर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था.

उस के स्वर की हड़बड़ाहट से वे समझ चुके थे कि राजेश शराब पी कर घर लौटा है. सिर्फ शराब ही क्या, कल को वह जुआ भी खेल सकता है, कालगर्ल का उपयोग भी कर सकता है. मित्रों के इशारे पर पिता की कठिन परिश्रम की कमाई उड़ाने में भी उसे संकोच नहीं होगा. उद्विग्नतावश उन्हें नींद नहीं आ रही थी. बारबार करवटें बदल रहे थे. फिर मन बहलाने के खयाल से उन्होंने किताबों के रैक में से एक किताब निकाल कर तेज रोशनी का बल्ब जला कर उस के पृष्ठ पलटने शुरू कर दिए. तभी किताब में से निकल कर कुछ नीचे गिरा. उन्होंने झुक कर उठाया तो देखा, वह इरा की तसवीर थी, जो न मालूम कब उन्होंने पुस्तक में रख छोड़ी थी. तसवीर पर नजर पड़ते ही पुरानी स्मृतियां सजीव हो उठीं. वे एकटक उस को निहारते रह गए. ऐसा लगा जैसे व्यंग्य से वह हंस रही हो कि यही है तुम्हारी सुखद गृहस्थ पत्नी, बेटा. कोई भी तुम्हारे कहने में नहीं है. तुम किसी से संतुष्ट नहीं हो. क्या यही सब पाने के लिए तुम ने मेरा परित्याग किया था… लगा, इरा अपनी मनपसंद हरी साड़ी में लिपटी उन के सिरहाने आ कर बैठ गई हो व मुसकरा कर उन्हें निहार रही हो. कल्पनालोक में गोते लगाते हुए वे उस की घनी स्याह रेशमी केशराशि को सहलाते हुए भर्राए कंठ से कह उठे, ‘सबकुछ अपनी पसंद का तो नहीं होता, इरा. मैं तुम्हें हृदय की गहराइयों से चाहता था, पर…’

इरा अचानक हंस पड़ी, फिर रोने लगी, ‘तुम झूठे हो, तुम ने मुझे अपनाना ही कहां चाहा था.’ उन की आंखों की कोरों से भी अश्रु फूट पड़े, ‘इरा, तुम मेरी मजबूरी नहीं समझ पाओगी.’ दरअसल, रामेंद्र अपनी पढ़ाई समाप्त कर के छुट्टियां बिताने अपने ननिहाल कलकत्ता के नजदीक एक गांव में गए. एक दिन जब वे नहर में नहाने गए तो वहां कपड़े धोती हुई सांवली रंगत की बड़ीबड़ी आंखों वाली इरा को ठगे से घूरते रह गए. वह उन की नानी के घर के बराबर में ही रहती थी. दोनों घरों में आनाजाना होने के कारण रामेंद्र को उस से बात करने में कोई मुश्किल पेश नहीं आई. सभी गांव वालों का नहानाधोना नहर पर होने के कारण वहां मेले जैसा दृश्य उपस्थित रहता था. वे अपने हमउम्र साथियों के साथ वहीं मौजूद रहते थे, इधरउधर घूम कर प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लूटते रहते. इरा नहर में कपड़े धो कर जब उन्हें आसपास के झाड़झंकार पर सूखने के लिए डालने आती तो वहां पर पहले से मौजूद रामेंद्र चुपके से उस की तसवीरें खींच लेते. कैमरे की चमक से चकित इरा उन की तरफ घूरती तो वे मुंह फेर कर इधरउधर ताकने लगते. इरा के आकर्षण में डूबे वे जब बारबार नानी के गांव आने लगे तो सब के कान खड़े हो गए. लोग उन दोनों पर नजर रखने लगे, पर दुनिया वालों से अनजान वे दोनों प्रेमालाप में डूबे रहते.

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