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बढ़ता वायु प्रदूषण: समस्या और समाधान

भारत के छोटेबड़े सभी शहर वायु प्रदूषण की चपेट में हैं, किंतु राजधानी दिल्ली की दशा बहुत ज्यादा बदहाल है. हाल ही में दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर सब से अधिक आंका गया है. विशेषज्ञों का मत है कि कोई भी ऐसा कारक, जो कि अंग विकास में बाधक होता है, उस का सर्वाधिक दुष्प्रभाव गर्भस्थ शिशु व नवजात शिशुओं पर निश्चित रूप से होता है. पिछले दिनों ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की बैठक के दौरान वायु प्रदूषण और नवजात शिशुओं की गड़बडि़यों के पारस्परिक संबंध के विषय पर गहन चर्चा की गई थी. ‘ग्लोबल बर्डेन औफ डिजीज’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण के चलते समय से पहले मरने वाले लोगों की संख्या भार में 6 लाख, 20 हजार प्रतिवर्ष तक पहुंच चुकी है.

दिल्ली की वायु में सूक्ष्म कणिकीय पदार्थों की मात्रा बहुत ज्यादा होने के कारण ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ और अन्य वैश्विक संस्थाओं द्वारा दिल्ली की गणना विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में की गई है. चिकित्सा विज्ञान में हो रही प्रगति के बाद भी वर्तमान समय में पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण द्वारा मरने वालों की संख्या 8 मिलियन प्रतिवर्ष तक पहुंच चुकी है. यदि समय रहते वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उचित उपाय न किए गए, तो हालत कितनी भयावह हो सकती है, उस की आज हम मात्र कल्पना ही कर सकते हैं. इस सिलसिले में यदि हम केवल दिल्ली की ही बात करें तो एक बड़ा कड़वा सच सामने आता है. वायु प्रदूषण की समस्या कोई ऐसी समस्या नहीं है, जो कि कोशिश करने के बाद भी खत्म न की जा सके. दुनिया के अनेक शहरों ने दिखा दिया है कि किस प्रकार वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है. यदि हम वायु प्रदूषण के प्रति वास्तव में गंभीर हैं, तो हमें कुछ कड़े कदम उठाने होंगे.

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ये कदम लगभग इंगलैंड, सिंगापुर व चीन द्वारा उठाए गए कदमों के जैसे ही होंगे. वास्तव में ‘राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण’ (नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) की आज्ञानुसार 15 साल पुरानी गाडि़यों को सड़क पर चलाने पर प्रतिबंध की व्यवस्था है, किंतु गाड़ी के मालिक और परिवहन एजेंसियां इस प्रतिबंध को लागू करने में अवरोध व इस को खत्म कराने की कोशिश कर रहे हैं. सिंगापुर दुनिया का सब से पहला ऐसा शहर है, जिस ने ‘इन प्राइसिंग’ की नीति लागू की है. इस के तहत हर गाड़ी में एक ‘स्मार्ट कार्ड’ लगा दिया जाता है, जिस के बाद यदि गाड़ी किसी ऐसे क्षेत्र में पहुंच जाती है, जहां बहुत ज्यादा भीड़ के कारण गाडि़यों की गति बहुत धीमी हो जाती है तो उस गाड़ी की पहचान हो जाती है. इस के नतीजे में उस गाड़ी को भीड़ में ‘जैम’ या अवरोध बढ़ाने वाला मान लिया जाता है और ऐसी हालत में गाड़ी पर लगे ‘स्मार्ट कार्ड’ से जुर्माने के तौर पर रकम काट ली जाती है. हकीकत यह है कि यहां कार रखना बहुत ज्यादा खर्चीला है. पिछले कुछ सालों में जब चीन में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच गया, तो चीन की सरकार ने भी इस संबंध में कुछ कठोर फैसले लिए. इस तरह हम देखते हैं कि लंदन, जरमनी, सिंगापुर व चीन में वायु प्रदूषण के संबंध में कुछ कठोर फैसलों की वजह से शानदार कामयाबी हासिल हुई है.

यदि दुनिया के कुछ देश ऐसा कर सकते हैं, तो हम भारत में भी इस दिशा में कदम क्यों नहीं बढ़ा सकते? कुछ भारतीय विशेषज्ञों का कहना है कि भारत (निम्न उत्सर्जन जोन) अंकित कर पाना संभव ही नहीं है, क्योंकि हम टैक्स भी नहीं देना चाहते हैं और नियंत्रण संबंधी ऐसी हर नीति के खिलाफ आंदोलन करने के लिए तैयार रहते हैं. फिर भी आशावादियों का मानना है कि कम से कम एक शुरुआत तो की ही जा सकती है. यह तो तय है कि वायु प्रदूषण को कम करने का कोई आसान, सुविधाजनक और लोकप्रिय तरीका नहीं हो सकता है. कुछ कड़े नियमकानून ही थोड़ेबहुत मनचाहे नतीजे दे सकते हैं. ठ्ठ सेहत के लिए जरूरी सोयाबीन ] डा. आरएस सेंगर प्रोटीन के अलावा सोयाबीन में तकरीबन 18 फीसदी तेल होता है, लेकिन इस तेल में कोलैस्ट्रौल नहीं होता है और इस में 85 फीसदी अनसैचुरेटेड फैटी एसिड होते हैं, जो सेहत के लिए सही होते हैं. सोयाबीन के तेल में लीनो लिक और लीनो लेइक फैटी एसिड भी काफी मात्रा में होते हैं. ये दोनों ही अनसैचुरेटेड फैटी एसिड हमारी सेहत के लिए बहुत जरूरी होते हैं, क्योंकि ये हम में कोलैस्ट्रौल की मात्रा को कम करते हैं और इस में होने वाली दिल की बीमारियों को रोकते हैं.

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सोयाबीन प्रोटीन को खाने का सब से बड़ा फायदा है कि यह एलडीएल कोलैस्ट्रौल को कम करती है. जिन लोगों के खून में कोलैस्ट्रौल बढ़ा हुआ होता है, उन के खाने में अगर 25 से 50 ग्राम तक सोयाबीन प्रोटीन मिला दें, तो शरीर में कोलैस्ट्रौल से होने वाले हानिकारक असर को दूर किया जा सकता है. सोयाबीन प्रोटीन को भोजन में मिलाने से भोजन का अमीनो एसिड संतुलन ठीक हो जाता है और उस का फायदा शरीर को मिलता है. अगर हम सोयाबीन की तुलना दूसरी दलहनी फसलों जैसे मटर, मसूर और सिम से करें, तो देखेंगे कि सोयाबीन में कार्बोहाइड्रेट कम होता है. इस में डाइटरी फाइबर होते हैं जो कि पूरी तरह से पच नहीं पाते, लेकिन पाचन क्रिया को बढ़ाते हैं. सोयाबीन का फाइबर शरीर में होने वाले क्लोनल कैंसर को रोकता है. प्रतिदिन सोयाबीन खाने से शरीर की बहुत सी पाचन संबंधी बीमारियां रोकी जा सकती हैं. मधुमेह के रोगियों के लिए सोयाबीन बहुत ही उपयोगी होता है. सोयाबीन में विटामिन ए, बी, डी, भी होते हैं. इस में प्रोटीन सी की भी मात्रा काफी अधिक होती है. अगर सोयाबीन को हम अंकुरित कर के खाएं, तो विटामिन सी की मात्रा और भी बढ़ जाती है और इस का काफी लाभ मिलता है. अब देखा गया है कि ज्यादातर लोग अपनी डाइट में मल्टीग्रेन आटा ले रहे हैं.

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इस मल्टीग्रेन आटे में यदि सोयाबीन की मात्रा बढ़ा दी जाए, तो इस का फायदा और ज्यादा मिल सकता है. यदि आप प्रोटीन से भरपूर शाकाहारी भोजन खाना चाहते हैं, तो आप सोयाबीन को अपना आहार बनाइए. निश्चित रूप से आप के शरीर की इम्यूनिटी में इजाफा होगा और रोगों से लड़ने में सहायता मिलेगी. जैसा कि हम भी लोग जानते हैं कि इन दिनों कोरोना महामारी के चलते सब से अधिक जरूरत शरीर की इम्यूनिटी को बनाए रखना है, इसलिए जरूरी है कि अपने आहार में हम ऐसी दालों, सब्जियों व फलों को शामिल करें, जिस से हमारे शरीर की इम्यूनिटी बढ़ सके. इस में सोयाबीन एक बहुत अच्छा स्रोत हो सकता है. जहां तक प्रोटीन की मांग व गुणों का सवाल है, वहां सोयाबीन एक ऐसा आहार है, जिस में संपूर्ण प्रोटीन होता है. सोयाबीन में 41 से 43 फीसदी तक प्रोटीन होता है, जो गुणों में मांस, अंडा और मछली के प्रोटीन के समान ही होता है. सोयाबीन प्रोटीन में 8 अमीनो एसिड होते हैं, जो कि मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी?हैं. मांस की प्रोटीन में कभीकभी वसा और यूरिक एसिड होते हैं व हानिकारक कीटाणु भी होते हैं, लेकिन सोयाबीन के प्रोटीन में इस तरह की कोई भी समस्या नहीं होती है. सोयाबीन प्रोटीन की एक विशेषता यह भी होती है कि इस में लाइसिन नामक अनिवार्य अमीनो एसिड काफी मात्रा में होता है, जो दूसरे अनाजों में नहीं मिलता है.

किसान आंदोलन में युवाओं की एनर्जी का केंद्र: सांझी सत्थ

लेखक- रोहित और शाहनवाज

दिल्ली के सिंघु बौर्डर पर पिछले 1 महीने से सरकार द्वारा कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसान डटे हुए हैं. उन का संघर्ष पहले की तुलना में और भी अधिक बड़ा हुआ है. पंजाब के कुछ घरों की छतों से शुरू होने वाले इस आन्दोलन ने अब इतिहास में अपनी जगह बना ली है. इसी के साथसाथ किसानों का यह आन्दोलन देश और दुनिया के लोगों के लिए लम्बे आन्दोलन का बेहतर नमूना बन कर उभरा है, जहां हर कोई कुछ न कुछ काम करता दिखाई देता है. सिंघु बौर्डर पर मौजूद ‘सांझी सत्थ’ उसी बेहतर नमूने का एक उत्तम उदाहरण है.

सिंघु बौर्डर पर आन्दोलन का जायजा लेने के दौरान हम ने ‘सांझी सत्थ’ का टेंट देखा. जहां पर ठीक ठाक संख्या में लोगों की भीड़ मौजूद थी. बच्चे पढ़ते हुए दिखाई दिए. 24-26 आयु के युवा उन्ही बच्चों को पढ़ाते हुए दिखाई दिए. लोग छोटे छोटे गोल घेरों में बातें करते दिखाई दिए. एक कोने में कुछ युवा प्रदर्शन के लिए प्लेकार्ड बनाते हुए दिखाई दिए. और भी बहुत तरीके का काम वहां चल रहा था. यह सब देख कर ‘सांझी सत्थ’ को जानने के लिए हमारी उत्सुकता बढ़ी और हम ने वहां मौजूद लोगों से बात की.

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आखिर क्या और क्यों बनाया गया ‘सांझी सत्थ’?

सांझी सत्थ के टेंट में मौजूद विशाल कुमार ने हमें सांझी सत्थ का मतलब समझाते हुए कहा, “जिस तरह से लोगों के मिलने और सामाजिकता बढ़ाने वाली जगह को हिंदी में चौपाल कहा जाता है, ठीक उसी तरह से पंजाब में उसे सांझी सत्थ कहा जाता है. यहां पर हम लोग हर दिन कोई एक विषय डिसाइड कर उस पर हर शाम 6 बजे से 8 बजे तक डिस्कशन करते हैं और इस आंदोलन में होने वाले कामों को डिस्ट्रीब्यूट किया जाता है.”

“हम जिस दिन यहां इस प्रदर्शन में शामिल होने के लिए आए तो हमें स्टेज के सामने बैठने की जगह नहीं मिली. लोगों का हुजूम इतना ज्यादा था कि हमें मेन स्टेज दिखाई तक नहीं दे रहा था. इसीलिए यही सोचा गया कि हमारे गांव में जिस तरह से सांझी सत्थ बनाई जाती है उन की बात पहुंचाने के लिए उसी तरह से हम भी छोटे छोटे मंच का निर्माण करें ताकि हर इंसान को बोलने का मौका मिल सके और इस आन्दोलन में हर किसी का सुझाव लिया जा सके.”

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इस के साथ साथ विशाल ने बताया कि सांझी सत्थ इस आन्दोलन में शरीक होने वाले युवाओं की एनेर्जी का सही इस्तेमाल हो सके इस के लिए एक इनिशिएटिव भी है. “सांझी सत्थ किसी तरह की कोई संस्था, कोई एनजीओ या कोई संगठन नहीं है. यह तो जरुरत के समय काम आने वाला इनिशिएटिव है जिस में कोई खामी नहीं है. सांझी सत्थ के होने से मेन स्टेज पर पड़ने वाला काम का बोझ कम हो जाता है. इस के साथ ही हम मेन स्टेज पर होने वाली सारी गतिविधियों पर नजर रखते है ताकि किसी को यदि न पता हो कि चल क्या रहा है तो उसे हम बता सके.”

किन चीजो की है व्यवस्था?

युवाओं और बच्चों के लिए किताबें: सांझी सत्थ के इस टेंट में शुरुआत में ही किताबों का स्टाल लगाया गया है जिस में कई तरह की किताबे रखी गई है. भगत सिंह की मैं नास्तिक क्यों हूं और जेल नोटबुक, रबिन्द्रनाथ टैगोर की गीतांजलि, लेनिन की ‘वट इस टू बी डन’, आरएस शर्मा की भारत का प्राचीन इतिहास, आर चंद्रा की आधुनिक भारत में दलित आन्दोलन जैसी कई गंभीर विषयों पर किताबों के साथ साथ बच्चों के लिए कहानियों वाली किताबों कि भी व्यवस्था की गई है. ये सभी किताबों की व्यवस्था लोगों ने आपस में अपने दोस्तों से बात कर के की है. यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे युवाओं ने सांझी सत्थ में अपनी किताबों का कौन्ट्रिब्यूशन किया है.

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चर्चा का केंद्र: हर शाम को 6 बजे से 8 बजे तक सांझी सत्थ में तय विषय पर चर्चा होती है. विशाल ने बताया की हर शाम की “चर्चा में इतने लोगों की संख्या हो जाती है की कभी कभार तो रात के 10-11 बजे तक चर्चा चलती ही रहती है. चर्चा का मेन फोकस बिंदु इसी बात पर होता है कि इस आन्दोलन को किस तरह से आगे बढ़ाया जा सके. और जब चीजे तय होती है तो लोग खुद से ही जिम्मेदारी लेते हुए काम का बंटवारा कर लेते हैं. इस चर्चा में मुख्य रूप से अधिकतर युवाओं की संख्या होती है.”

पठन-पाठन का हो रहा काम: सांझी सत्थ के इस टेंट में इलाके के स्थानीय इलाके के बच्चे पढ़ने के लिए भी आ रहे हैं. जिन्हें पढ़ाने के लिए आन्दोलन में आए यही के प्रदर्शनकारी युवा हैं. इस से यह बात भी साफ हो जाती है की स्थानीय लोग अपने बच्चों को भेज कर इस प्रदर्शन में अप्रत्यक्ष रूप से भागीदार बन ही रहे हैं.

आन्दोलन के लिए बन रही है सामग्री: “आन्दोलन को चलाए रखने के लिए कई तरह की चीजो का सहारा लिया जाता है. लम्बे चलने वाले आंदोलन सिर्फ नेताओं के भाषण से नहीं चलाए जा सकते हैं. यहां लोग मिल कर नए नारे, गाने, या फिर मीडिया पर नजर रखने का काम करते हैं.” हम ने भी एक किनारे 5-6 युवाओं को नारों का पोस्टर बनाते हुए देखा. कुछ प्लेकार्ड बनाने में व्यस्त थे. कुछ लैपटोप पर सोशल मीडिया संभाल रहे थे.

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सांझी सत्थ में युवाओं की एनेर्जी का हो रहा सही इस्तेमाल

सिंघु बौर्डर पर किसानों के हो रहे आन्दोलन में सांझी सत्थ जैसे इनिशिएटिव ने इस प्रदर्शन में मौजूद युवाओं के उत्साह को, उन के जोश को, उन की एनेर्जी को सही राह दिखाने का काम कर रहा है. यह आंदोलन बाकि आन्दोलनों से इस तरह से अलग है कि यहां लोग खुद से काम लेना सीख रहे हैं. उदाहरण के लिए सांझी सत्थ में जो युवा वालंटियर के तौर पर काम कर रहे हैं, उन्हें किसी ने भी आदेश नहीं दिए, और न ही किसी ने मजबूर किया है कोई काम करने के लिए. वें खुद से आगे बढ़ कर काम ले रहे हैं.

हम ने वहां मौजूद युवाओं को पढ़ाते हुए देखा, पढ़ते हुए देखा, प्लेकार्ड बनाते हुए देखा, पोस्टर बनाते हुए देखा, नारे लिखते हुए देखा, आन्दोलन के गाने गा कर प्रैक्टिस करते हुए देखा, लैपटोप पर सोशल मीडिया हैंडल करते हुए देखा, सड़क पर मौजूद गन्दगी साफ करते हुए देखा, ट्रैफिक कंट्रोल करते हुए देखा, व्यवस्था को मैनेज करते हुए देखा.

विशाल ने बताया कि, “पंजाब में किसान आंदोलन की लहर आज इतनी है कि जो लोग खुद को इस आंदोलन में शामिल नहीं कर पा रहे हैं वह खुद को दोषी मान रहे हैं.” इस जज्बे को सुन हमारे भी चेहरे पर मुस्कान फूट पड़ी.

“घर का भेदी” जब ‘लंका’ ढाने लगे 

हम जब किसी व्यक्ति को अपना विश्वासपात्र बनाते हैं, और हमारे राज,भेद जान जाता है. यही व्यक्ति हमारे लिए कब विभीषण, जयचंद बन जाएगा हम सोच समझ ही नहीं पाते. और एक दिन लंका को ढहाने का काम भी यही करता है. और हम सर पीट कर रह जाते हैं.

इस महत्वपूर्ण विषय पर आज हम आपको इस आलेख में यह बताने का प्रयास करेंगे कि किस तरह समाज में ऐसे ताने बाने की घटनाएं घटित होती हैं जिनके परि पार्श्व में हमें सजग और जागरूक रहने की दरकार है.

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पहली घटना-

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के कटोरा तालाब कॉलोनी में एक घटना घटित हुई दस वर्षों तक काम करने वाले एक नौकर ने अपने ही मालिक के घर लूट की घटना घटित करवा दी और अंततः पर्दाफाश हुआ.

दूसरी घटना- 

जिला राजनांदगांव के लालबाग क्षेत्र में एक वकील साहब के वर्षों पुरानी टाइपिस्ट ने वकील साहब के यहां लाखों रुपए की चोरी करवा दी.

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तीसरी घटना-

कोरबा नगर के बालको थाना अंतर्गत सेक्टर 5 में वर्षों पुरानी एक नौकरानी ने अपने ही मालिक के घर लूट के लिए दो लोगों को भेजा और अंततः पर्दाफाश हुआ.

यह सच है कि आमतौर पर माननीय कमजोरी के तहत आमतौर पर लोग अपने अधीनस्थ काम करने वाले कर्मचारियों पर आंखें मूंदकर भरोसा करते हैं. और जाने अनजाने सारी जानकारियां भेद पता चलता चला जाता है यही आगे जाकर विस्फोटकारी घटना का कारण बनता है.

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 “विवाद होता है” घटना का मूल कारण

छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर में विगत 15 दिसम्बर को ग्रीन पार्क जैसे पॉश कॉलोनी में हुए लूट की घटना को अंजाम देने वाले 2 आरोपी बिलासपुर पुलिस के हत्थे चढ़ गए . बिलासा गुड़ी में लूट का खुलासा करते हुए बिलासपुर पुलिस अधीक्षक प्रशांत कुमार अग्रवाल ने हमारे संवाददाता को बताया कि ग्रीन पार्क स्थित मनोहर आडवाणी के घर में घुसकर महिला को घायल कर लूट करने वाले आरोपी को पुलिस की 8 टीम ने लगातार 10 दिनों की मेहनत के बाद पकड़ने में सफलता मिली है. मगर आश्चर्य और चिंता की बात यह है कि लूट की घटना को अंजाम देने वाला कोई और नहीं बल्कि पुराना नौकर है.

दरअसल, आरोपी रवि भोसले पुराना हाईकोर्ट के पीछे अटल आवास में निवास करता है और कुछ समय पूर्व  आर आर कलेक्शन में कार्यरत था. इस दौरान मालिक द्वारा भेजे जाने पर आरोपी ग्रीन पार्क स्थित आवास पर आना जाना करता था जिससे घर सारी स्थिति का अवलोकन कर चुका था. जब विवाद की वजह से रवि ने काम छोड़ दिया तो  कुछ दिनों पहले अपने पुराने मित्र दीपक यादव के साथ मिलकर अपने  मालिक के घर की रेकी कर लूट की योजना बनाई. और 15 दिसंबर को शाम मनोहर आडवाणी के घर में घुसकर महिला को घायल कर लूट की घटना को अंजाम दिया. छत्तीसगढ़ में न्याय धानी के रूप में मशहूर बिलासपुर  में लगातार हो रहे अपराधों के बीच जैसे ही लूट की घटना लोगों को पता चली तो शहर में दहशत फैल गई . पुलिस ने भी इसे चुनौती के रूप में स्वीकार कर 8 टीमें बनाकर लगातार छानबीन कर रही थी. इस दौरान शहर भर के अपराधों में संलिप्त रहने वाले लोगों को उठाकर पूछताछ भी की गई लेकिन आरोपियों का कहीं पता नहीं चल पा रहा था. इस दौरान पुलिस ने आडवाणी के घर काम करने वाले पुराने नौकरों की सुचि तैयार की और गहनता से सभी से पूछताछ करना शुरू किया. इस दौरान रवि भोंसले से भी कड़ाई से पूछताछ की गई जिस पर रवि ने अपने दोस्त के साथ मिलकर अपराध करना कबूल कर लिया. लुटे हुए नगदी को दोनों आरोपियों ने आपस में बैठकर खर्च कर दिए थे लेकिन रुपए के अलावा सभी सामान को बरामद कर लिया गया है.

 आंखें- दिमाग खुला रखें

दरअसल, ऐसी घटनाएं हमारे मानवीय गुणों और कमजोरी के कारण हो जाती हैं. क्योंकि आमतौर पर लोग अपने आसपास काम करने वाले नौकर कामगारों पर भरोसा करने लगते हैं.

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ऐसे में समझदारी का तकाजा यही है कि अपनी प्रॉपर्टी, पैसे कहां रखे हैं नगद सोना, जेवरात कहां रखे गए हैं यह बताने से गुरेज करना चाहिए.

बिलासपुर उच्च न्यायालय के अधिवक्ता बीके शुक्ला के मुताबिक न्यायालय में ऐसे प्रकरण पुलिस लेकर आती है जिनमें स्पष्ट रूप से अपराधिक कृत्य करने वाले नौकर चाकर होते हैं और इन्हें अपने अपराध की सजा भी मिलती  है.

सामाजिक कार्यकर्ता, संगीत शिक्षक और मनोविज्ञान के जानकार घनश्याम तिवारी के मुताबिक ऐसे  घटनाक्रम के पीछे का  बड़ा कारण लोगों का आंख बंद करके विश्वास करना होता है और अक्सर जब विवाद के बाद काम पर  सर्वेंट नहीं आते तब बैर दुश्मनी भाव को लेकर घटना को अंजाम दिया जाता है.

जब लंबी चौड़ी सिक्योरिटी के साथ कंगना रनौत की हुई मुंबई वापसी तो फैंस ने ऐसे किया ट्रोल

बॉलीवुड अदाकारा कंगना रनौत अपने घर से वापस मुंबई वापस आ गई हैं. हाल ही में मुंबई एयरपोर्ट पर उन्हें लंबी चौड़ी सेक्योरेटी के साथ देखा गया है. कंगना रनौत रंगोली चंदेल और अपने भतीजे पृथ्वीराज के साथ वापस आई हैं.

कंगना की यह तस्वीर सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है. इन वीडियो में कंगना रनौत सवेग के साथ

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एयरपोर्ट से बाहर निकलती नजर आई . अदाकारा कंगना रनौत का यह वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. फैंस कंगना के इल लुक को काफी ज्यादा पसंद करते हैं. वहीं कुछ फैंस कंगना रनौच के वीडियो पर कमेंट कर रहे हैं. कमेंट पर फैंस कह रहे है कि पहले हम कंगना को खूब पसंद करते थे लेकिन अब उन्हें पसंद नहीं करते हैं. उनके लिए मेरे दिल में कोई इज्जत नहीं हैं.

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वहीं कुछ लोगों ने कहा है कि खुद को अच्छा दिखाने के लिए कंगना ने किसानों को भी भला बुरा कह दिया था. फैंस ने कहा कि टिकट लेने के लिए और क्या क्या करोगी. तो वहीं दूसरे ने कहा कि मुझे इस महिला से नफरत है यह खुद को अच्छा साबित करने के लिए कुछ भी कह सकती है.

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दर्शक कंगना रनौत को पसंद नहीं कर रहे हैं. वह उनकी फिल्म देखना भी नहीं पसंद करते हैं. दर्शक कंगना रनौत की हरकतों से परेशान हो गए हैं. अब देखना है कि कंगना की आने वाली फिल्म में फैंस उन्हें पहले जैसा प्यार दे पाते हैं या नहीं. देखना है कि आगे क्या होता है.

बिग बॉस 14: राहुल वैद्य और निक्की तम्बोली के दोस्ती में दरार लाने के लिए सोनाली फोगाट ने दिया ये रिएक्शन

बिग बॉस 14 के घर में कौन किसका दुश्मन और कौन किसका दोस्त है यह समझना बहुत ज्यादा मुश्किल है. ऐसा ही देखने को मिला इस बार भी बिग बॉस के घर में जिसे देखकर दर्शक खूब एंजॉय कर रहे हैं.

इस बार एली गोनी और निक्की तम्बोली के गलती के कारण सभी घरवाले नॉमिनेट हुए हैं. अब खुद को बचाएं रखने के लिए घर में तिगड़म बाजी देखी जा रही है. हर वक्त आपस में लड़ाई करने वाली  राखी सावंत और अर्शी खान मिलकर निक्की तम्बोली की बुराई करती नजर आ रही हैं.

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अर्शी खान और राखी सावंत की दोस्ती देखी नहीं जा रही है. दोनों के घर के बाकी सदस्यों को भी हाथ मिलाने के लिए कहा है. वहीं अर्शी खान ने सोनाली फोगाट से बात करते हुए कहा कि निक्की तम्बोली के कारण ही सभी घर वाले नॉमिनेट हुए है. इसके बाद सोनाली, अर्शी और राखी बात करते दिखी की सबसे अच्छा बनकर रहने के बाद भी वोट नहीं मिला.

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दूसरी तरफ राहुल अर्शी से लड़ाई करते दिखे कि उनकी दोस्ती होने के बाद भी अर्शी ने राखी का नाम नहीं लिया.  बाद में सोनाली राहुल वैद्या से गार्डन एरिया में बात करते नजर आई. वह राहुल को निक्की के खिलाफ उकसाती नजर आ रही हैं.

 

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राहुल ने जब कहा मेरे दिमाग में एली और निक्की का नाम था क्योंकि हमने उनके साथ ही अच्छा समय बिताया है. जिसके बाद सोनाली कहती है कि उसी से तू मार खाएगा.

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एक बार फिर राहुल की बातो को सुनने के बाद सोनाली राहुल को समझाती है कि खुद को सेफ कैसे रखना है. अब आगे यह देखऩा है कि क्या सच में राहुल वैद्या निक्की तम्बोली के  खिलाफ जाएंगे या दोनों कि दोस्ती बरकरार रहेगी.

कुछ ही दिनों में राहुल वैद्य कि गर्लफ्रेंड दिशा परमार की भी एंट्री होने वाली है.

रैड लाइट- भाग 4 : सुमि के दिलोदिमाग पर हावी था कौन सा डर

मिल्ड्रेड की आयु के 75 वर्ष पूरे होने पर उन की प्लैटिनम ऐनिवर्सरी के सम्मानस्वरूप सब बेटों ने मिल कर उन के पुराने जर्जर घर का पुनरुद्धार किया. बड़ी बेटी वीरता पदक प्राप्त आर्मी मेजर की विधवा है और आर्मी हौस्पिटल में औपरेशन रूम नर्स. उसे इंटीरियर डैकोरेशन का शौक है और उस ने घरों की रंगाईपुताई का प्रोफैशनल कोर्स भी कर रखा है. अपने युवा बेटेबेटी सहित वह मां के घर की ऊपरी मंजिल में बाकायदा किराया दे कर रहती है. कौन्सर्ट पियानिस्ट सब से छोटी, अविवाहित बेटी और सब से छोटा बेटा भी मां के साथ रहते हैं. बड़ी और छोटी, दोनों बेटियों, छोटे बेटे और नातीनातिन ने दोमंजिले पूरे घर के रखरखाव की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है. बड़ी बेटी ने बहुत शौक से घर के अंदरबाहर की पूरी पेंटिंग खुद की. छोटे बेटे और नाती ने छत की खपरैलें बदलीं. गरमी में घर के आगेपीछे लौन की घास काटना, पतझड़ में आसपास से उड़ कर जमा पत्तों के ढेर उठाना और जाड़ों में बर्फ साफ करना, ये सब वे लोग ही करते हैं. बेटियों, बहुओं की लाख कोशिशों के बावजूद घर की रोजमर्रा सफाई और थोड़ीबहुत बागबानी मिल्डे्रड स्वयं करती हैं.

जो बेटे अपनेअपने बीवीबच्चों सहित अलग रहते हैं वे भी रविवार को मिल्डे्रड के घर पर इकट्ठे हो कर एकसाथ घूमने जाते हैं जिस के बाद पूरा परिवार साथ बैठ कर लंच करता है. सारी खरीदफ रोख्त खुद ही कर के पूरा खाना मिल्ड्रेड अकेले बनाती हैं और खाने की मेज भी बिलकुल फौर्मल तरीके से सुबहसुबह सजा कर तैयार करती हैं. सालों के अपने नियम में सिर्फ इतनी ढील देने लगी हैं कि बेटियां, बहुएं खाने के बाद मेज और खाना समेटें और कौफी सर्व करें.फार्मर्स मार्केट से ताजे फल, सब्जी खरीदते समय मिल्ड्रेड बखूबी याद रखती हैं कि परिवार में किस को क्या पसंद है. कभी कच्ची, कभी पका कर पहुंचा भी आती हैं. उन की पैनी निगाहें भांप लेती हैं कि अत्यधिक व्यस्तता के  कारण किस के यहां धुला ई के कपड़ों का ढेर हो गया है, किस का फ्रिज साफ कर के चीजें ला कर स्टौक करना है. लाख मना करने पर भी नखशिख से सब दुरुस्त कर के ही लौटती हैं.

‘‘हैल्प योरसैल्फ ऐंड ऐंजौय’’ लिखे गत्ते के टुकड़े के पीछे खड़ी मिल्ड्रेड पर कैमरा क्लिक कर के सुमि उन से विदा लेती है.

लगभग 2 सप्ताह बाद मुलाकात में गौर्डन सुमि को अपने महल्ले में उसी उत्साह से फिर घुमाते हैं जितने चाव से पहली भेंट में अपना रैल्फ मैन्शन दिखाया था. अपनी रनिंग कमैंट्री के साथ टहलते हुए वे इस बार उसे इलाके के उस हिस्से में ले जाते हैं जहां अधिकांश घर तालाबंद हैं और एकाध में मरम्मत चल रही है. मिल्ड्रेड के घर जैसे तो नहीं लेकिन रहने काबिल बनाए गए एकमंजिले घर के दरवाजे पर गौर्डन दस्तक देते हैं. गौरवर्ण एक वृद्धा द्वार खोलती हैं और गौर्डन को देख कर खिल उठती हैं.

‘‘मीट कौंस्टेंस स्टेहमायेर,’’ गौर्डन सुमि से कहते हैं और गृहस्वामिनी से मिलवाते हैं. वृद्धा बड़े प्रेम से स्वागत करती हैं.

कौंस्टेंस को सुमि के प्रोजैक्ट के बारे में समझा कर गौर्डन पूछते हैं, ‘‘हाउ इज माय पिं्रसैस?’’ वृद्धा घर के पीछे लौन में पेड़ पर बंधे हैमौक की तरफ इशारा करती हैं, ‘‘लौस्ट इन हर म्यूजिक, ऐज औलवेज बट शी विल बी डिलाइटेड टू सी यू, औल्सो ऐज औल्वेज.’’ हैमौक के निकट खड़ी उसे हलकेहलके झोटे देती एक युवती का चेहरा सुमि को जानापहचाना सा लगता है.

‘‘आय विल लीव यू लेडीज टु टौक व्हाइल आई जौइन माय यंग फ्रैंड,’’ कहते हुए गौर्डन पीछे की तरफ बढ़ जाते हैं. कौंस्टेंस तलाकशुदा हैं, वयस्क पुत्रों और पुत्री की मां. ‘पिं्रसैस’ कौंस्टेंस की 25 वर्षीया बेटी है, गे्रटा, जो मानसिक तौर पर बाधित है. पति रिचर्ड स्टेहमायेर एक औल अमेरिकन ट्रक कंपनी के सीनियर ड्राइवर हैं जिस कारण उन्हें दूरदराज शहरोें तक जाना पड़ता था. कौंस्टेंस एक छोटे बिजनैस के लिए अकाउंटिंग करती थीं. हर महीने 2-2, 3-3 हफ्तों की पति की लंबी गैरहाजिरियों की वजह से घर का सारा दायित्व भी उन्हें अकेले ही संभालना पड़ता था. पिता का अंकुश न होने के कारण बेटे उद्दंड हो गए थे.

दोनों के जन्म के वर्षों बाद शरीर से स्वस्थ और बेहद खूबसूरत बेटी के आगमन की खुशी पर तुषारापात हुआ जब डाक्टरों ने बताया कि वह आजन्म मंदबुद्धि ही रहेगी. सब से बड़ा सदमा तो तब लगा जब रिचर्ड ने साफ इल्जाम लगाया कि मंदबुद्धि बच्ची उन की संतान हो ही नहीं सकती बल्कि उन की लंबी गैरहाजिरी में किसी के साथ कौंस्टेंस के अफेयर का नतीजा है. उन्हें तलाक चाहिए. उस समय डीएनए जैसे प्रमाण की जानकारी नहीं थी. बेटों को सदमे से बचाने के लिए कौंस्टेंस ने तलाक की कार्यवाही को लंबा नहीं खींचा. मामूली से सैटलमैंट में उन्हें घर तो मिला लेकिन बाधित बच्ची की चौबीसों घंटे देखभाल के लिए कौंस्टेंस को नौकरी छोड़नी पड़ी. खर्चे की किल्लत की वजह से आखिरकार घर भी बेचना पड़ा और फूड स्टैंप्स पर गुजर की नौबत आ गई. वैलफेयर हाउसिंग कौंप्लैक्स के तंग अपार्टमैंट में शरण लेनी पड़ी. वैलफेयर हाउसिंग यानी सबस्टैंडर्ड लिविंग कंडीशंस. दीवारों से पपड़ी बन उतरता पेंट, नलों से लीक होता पानी, आए दिन चोक होती नालियां. बदबूदार गलियारों में चूहे, काक्रोच, गालीगलौज वाला पड़ोस. गंदी गुडि़या सी ग्रेटा बावली घूमती, दीवारों से उतरती पपडि़यां चाटती और जहांतहां गंदगी करती. दलदल में फंसी कौंस्टेंस डिप्रैशन में डूबती गई थीं और खैरात पर पलने वालों की मानसिकता उन पर हावी होती गई. बिना मेहनत सरकार से जो भी खींच सको, भला. डिप्रैशन के लिए गोलियां लेतेलेते नौबत नशे तक आ गई थी.

पोंगा पंथी माँ बाप की ना सुनें

पैंतालीस वर्षीया नंदिनी चिल्लापैय्या आज पूरी तरह अकेला और नास्तिक जीवन बिता रही है, लेकिन बेहद खुश है. वह उच्च शिक्षा प्राप्त महिला हैं. उनके माँ बाप हैदराबाद में रहते हैं और वो दिल्ली में अकेली रहती हैं. एक समाजसेवी संस्थान के लिए काम करती हैं. अच्छे पद पर हैं, अच्छा कमाती हैं और मनमाफिक खर्च करती हैं. उनकी जिंदगी पर अब किसी की रोकटोक नहीं चलती. कोई बंधन अब उनकी स्वतन्त्रता को नहीं बाँध सकता. आज़ाद पंछी की तरह वह जब चाहे जहाँ चाहे उड़ती फिरती हैं. वह कई देशों की यात्राएं कर चुकी हैं. उनके पास दोस्तों की लम्बी फेहरिस्त है. जिनके साथ अक्सर वीकेंड पर खाना-घूमना होता है. नंदिनी जीवन को एन्जॉय कर रही हैं. वह सुबह उठ कर जॉगिंग-एक्सरसाइज करती हैं. मनचाहा ब्रेकफास्ट बना कर खाती हैं. पांच साल पहले तक वो शाकाहारी थीं, लेकिन अब मांस, मछली, अंडा सब खाती हैं और सोचती हैं कि ये स्वादिष्ट चीज़ें उन्होंने बचपन से क्यों नहीं खाईं? दिन में ऑफिस का काम करती हैं और शाम को शॉपिंग, फिल्म, दोस्तों के साथ कॉफ़ी वगैरा में समय बिताती हैं. अंग्रेज़ी फ़िल्में देखने का शौक है तो अक्सर देर रात लैपटॉप पर मनपसंद फ़िल्में भी देखती हैं.

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लेकिन पांच साल पहले तक यही नंदिनी धर्म, रीतिरिवाजों, पूजा-व्रतों, दान-दक्षिणाओं, धार्मिक यात्राओं में अपनी ज़िन्दगी तबाह किये हुए थी. माँ बाप के दबाव में और ये सोच कर कि इन सब कर्म-कांडों से उन्हें अच्छा घर-वर मिलेगा और उनकी ज़िन्दगी सुख से बीतेगी. दक्षिण भारतीय तेलगू ब्राह्मण परिवार में जन्मी नंदिनी ने बचपन में संघ के स्कूल में शिक्षा पायी थी. फ़ालतू के कड़े अनुशासन में रही. माँ बाप दोनों घोर पूजापाठी थे लिहाज़ा नंदिनी घर में धार्मिक अनुष्ठान, व्रत, हवन आदि देखते हुए ही बड़ी हुई थी. उसकी माँ का हर दिन कोई ना कोई व्रत-अनुष्ठान चलता रहता था. ज़रूरत से ज़्यादा व्रत रखने के चक्कर में वह सूख के काँटा हो चुकी थी, मगर व्रत नहीं छूटते थे. मज़े की बात ये थी कि सारे व्रत उसकी माँ के हिस्से में ही थे, पिता को उसने कभी व्रत रखते नहीं देखा. कभी-कभी नंदिनी माँ से कहती कि इतने व्रत ना रखे मगर वह भगवान् और पिता का डर दिखाती. धार्मिक कार्य ना करने पर नरक में जाने का उसको बड़ा डर था. ये डर माँ के अंदर उनके माता-पिता, सास-ससुर, पति और मंदिर के महंत ने डाला था. माँ ने भी नंदिनी को भी वही सब सिखाया जो उसको उसके बड़ों ने सिखाया था. वह नंदिनी को बिलकुल अपने जैसा बनाना चाहती थी, ताकि कोई उसकी परवरिश पर उंगली ना उठाये. जाड़ा हो या गर्मी नंदिनी सुबह चार बजे उठ कर नहाती और पूजा घर से लेकर आँगन तक पानी से धोती थी. फिर दूर-दूर तक जाकर पूजा के लिए फूल इकट्ठे करती थी. सात बजे तक पिता के उठने से पहले ही वह माँ के साथ मिल कर पूजा की सारी तैयारियां कर लेती थी. पिता बस नहा-धो कर आते और पूजा करने बैठ जाते. घंटा भर उनकी पूजा चलती थी. धूपबत्ती के कारण पूरा घर धुएं से भर जाता था. इसी धुएं के कारण बाद में माँ को अस्थमा की तकलीफ भी हो गयी, लेकिन पिता धूपबत्ती जलाने से बाज़ ना आये.

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नंदिनी के माँ-बाप बेहद अंधविश्वासी और टोनों-टोटकों पर विश्वास करने वाले लोग थे. आज नंदिनी उन पुरानी बातों को सोचती है तो उसको दुःख भी होता है और हंसी भी आती है कि क्यों उस वक़्त वह माँ की कही बातों पर विश्वास करके वैसा ही करती थी, जैसा वह करवाना चाहती थी. बातें छोटी-छोटी थीं, लेकिन बेवकूफियों से भरी हुई थीं. जैसे रोटी बनाने के बाद गर्म तवे पर पानी मत डालो वरना सास से झगड़ा रहेगा. झाड़ू को घर में खड़ा करके मत रखों वरना लक्ष्मी घर से चली जाएगी. शनिवार को नाखून और बाल मत काटो. सोमवार और वीरवार का व्रत ज़रूर करो अच्छा पति मिलेगा. कभी रास्ते में हिजड़ा दिख जाए तो उसको कुछ पैसा दानस्वरूप अवश्य दो क्योंकि उसका आशीर्वाद हर मनोकामना पूरी कर जीवन को सुखी बना देता है. कोई पूछे कि रास्ते में भीख मांगने वाला हिजड़ा, जिसका खुद का जीवन बर्बाद है उसका आशीर्वाद भला किसी दूसरे के जीवन को क्या सुखी बनाएगा? लेकिन नंदिनी की माँ इन बातों और आस्थाओं पर कोई सवाल नहीं चाहती थी. तब तो नंदिनी का दिमाग भी कुंद था और वो कोई सवाल उठाये बिना वह सब करती थी जो उसके माँ पिता कहते थे.

ये तो अच्छा हुआ कि नंदिनी उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली आ गयी और यहाँ कई साल पढ़ने, दूसरे धर्म-सम्प्रदाय के लोगों के संपर्क में आने और फिर एक समाज सेवी संस्था में काम करने के दौरान उसके आचरण, व्यवहार, आस्था में काफी परिवर्तन हुए. ये परिवर्तन हालांकि बहुत धीमी गति से हुए. कोई ढाई दशक लंबा वक़्त लग गया नंदिनी को अंधकूप से बाहर आने में. और इन ढाई दशकों में उसके जीवन ने बहुत से उतार-चढ़ाव भी देखे. आस्थाओं को बिखरते देखा. विश्वासों को टूटते देखा.

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हालाँकि शुरू के कई सालों तक उसके माँ-बाप उससे मिलने दिल्ली आते रहे और उसके किराय के फ्लैट में उसके साथ रहे. जब वे आते तो नंदिनी का फ्लैट बिलकुल मंदिर का रूप बन जाता था. सुबह-शाम धूपबत्ती का गहरा धुंआ उसके फ्लैट की खिड़की से निकलता दिखता, घंटी का शोर देर तक सुनाई देता. वह नंदिनी पर इस बात का दबाव रखते कि वह नियम से व्रत-पूजा अवश्य करे. नंदिनी ने अपने घर के एक कमरे में छोटा सा मंदिर बना रखा था, जहाँ बैठ कर वह माँ के दिए धर्म ग्रन्थ भी कभी-कभी पढ़ती थी. व्रत आदि भी करती थी. रास्ते में हिजड़ा दिख जाए तो कुछ रुपयों का दान भी अवश्य देती थी, लेकिन दिल्ली में रहते हुए ये कार्य थोड़े कम हो गए थे.

इसी दौरान माँ बाप के दबाव में उसने एक तेलगू ब्राह्मण व्यक्ति से विवाह कर लिया, जबकि दिल्ली में रह रहे और उसके साथ काम करने वाले कई लोग उसको काफी पसंद करते थे. वह खुद अपने सहकर्मी अर्जुन रंधावा के प्रति काफी आकर्षित थी. मगर अर्जुन ना तो तेलगु ब्राह्मण था और ना ही पूजा-पाठ में विश्वास करता था. उसके बारे में नंदिनी ने अपने माँ बाप से जिक्र तक नहीं किया. क्योंकि उसको मालूम था कि गैर ब्राह्मण से उसकी शादी के लिए वह राजी ही नहीं होंगे. नंदिनी का पहला प्यार उसके अंदर ही मर गया. माँ बाप की पसंद के तेलगु ब्राह्मण लड़के से शादी करने के बाद उन्हें पता चला कि वह एक झूठा, बेरोज़गार और कपटी आदमी है. जिसने सिर्फ नंदिनी की हर महीने होने वाली अच्छी आय और दहेज़ की लालच में शादी की थी. नंदिनी और उसके परिवार पर वज्रपात हुआ. नंदिनी तीन दिन में ही ससुराल से मायके लौट आयी और कुछ ही दिन में वापस दिल्ली आकर अपने काम में व्यस्त हो गयी. यहाँ एक वकील से बात करके उसने जल्दी ही उस झूठे और बदमाश व्यक्ति से तलाक लेकर छुटकारा पा लिया.

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तलाक के बाद ही नंदिनी के जीवन में अचानक परिवर्तन हुआ और धर्म और धार्मिक अनुष्ठानों की जो भारी गठरी वह बचपन से अपने सिर पर ढोती आ रही थी, उसने एकाएक उतार कर फेंक दी. उसने माँ-बाप से सीधा सवाल किया – मेरे हर सोमवार को व्रत करने का क्या नतीजा निकला? बचपन से हिजड़े को दान दे रही हूँ, खूब आशीर्वाद मिला उनसे मगर मेरा जीवन स्वर्ग हुआ क्या? तुम लोगों के कहने पर तेलगू ब्राह्मण से शादी की, कितना धूर्त और धोखेबाज़ निकला वह…. इससे तो बेहतर था कि मैं किसी जानने वाले उत्तर भारतीय व्यक्ति से शादी कर लेती. कितने लड़के थे जो मुझसे शादी करना चाहते थे, जो अच्छे घरों के थे, अच्छी नौकरियां कर रहे थे, लेकिन मैं तुम लोगों के कहने पर धर्म के घेरे में बंधी रही. क्या मिला मुझे?

नंदिनी बागी हो गयी. सब रीतिरिवाज़, अनुष्ठान, परम्पराएं गटर में डाल कर नास्तिक बन गयी. अब वह खुश है. दुःख उसको सिर्फ इस बात का है कि उसकी ऑंखें काफी देर से खुलीं. अगर पहले ही वह अपने पोंगा-पंथी माँ-बाप की दी गयी नसीहतों को नकार देती और अच्छा लड़का देख कर अपनी पसंद से शादी कर लेती तो शायद अन्य सहेलियों की तरह उसका भी एक परिवार होता, बच्चे होते.

नंदिनी के विपरीत हुमैरा ज़्यादा मजबूत निकली. अलीगढ के एक नामी खान परिवार की बेटी हुमैरा दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत है. उच्च शिक्षा ने उसके दिल-दिमाग के बंद कपाट जल्दी ही खोल दिए थे. घर से बगावत करके वह घर के रीतिरिवाजों के विपरीत काम करने दिल्ली आई थी. इसमें उसकी माँ ने उसका काफी सहयोग किया था और वो शायद इसलिए कि वह नहीं चाहती थी कि जिस तरह पढ़ी लिखी होने के बाद भी वह परदे में सारी उम्र घुटती रही, उसकी बेटी भी वही सब सहे. हुमैरा नहीं चाहती थी कि अलीगढ में रहते हुए किसी मुल्लानुमा व्यक्ति से उसकी शादी हो जाए और उसकी सारी पढ़ाई लिखाई मिट्टी में मिल जाए. जीवन भर बुर्के में लिपटे रहना, रोज़ा-नमाज़ और बच्चों की परवरिश में अपनी पूरी जवानी बर्बाद कर देना उसको हरगिज़ मंजूर नहीं था. बाप और भाइयों से लड़ कर वह दिल्ली आयी थी. वह काबिल थी, मेहनती थी, जल्दी ही तरक्की पा कर अच्छी पोस्ट पर भी पहुंच गयी. धर्म की बंदिशों से ऊपर उठ कर उसने अपनी पसंद के हिन्दू लड़के से स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत कोर्टमैरिज  की. अब उनके दो प्यारे बच्चे हैं. दिल्ली में अपना घर है. हुमैरा खुश है कि वह अपने परिवार की बंदिशों को तोड़ कर अपनी ज़िन्दगी वैसी जी रही है जैसा वह चाहती थी.

आज की पीढ़ी हालांकि पहले की दो पीढ़ियों की अपेक्षा बहुत ज़्यादा मुखर है. अपनी पसंद को प्रमुखता देती है. शिक्षा का गाँव-गाँव तक प्रसार होने से और इंटरनेट के घर-घर पहुंचने से भी काफी बदलाव समाज में आया है, लेकिन वर्तमान में संघ और भाजपा द्वारा जिस तरह छद्म हिंदुत्व का भौकाल रचा जा रहा है और जिस तरह धर्म, पूजा पाठ, मंदिर, आरती, व्रत, आयुर्वेद आदि अवैज्ञानिक बातों का महिमामंडन किया जा रहा है, वह देश के युवाओं के विकास में बाधा, तर्क और विज्ञानं की राह में अवरोध पैदा कर उन्हें पुरानी परम्पराओं में बंधे रहने को मजबूर करने की सियासी साजिश है. ये लोग जनता को लकीर का फ़कीर बनाये रखना चाहते हैं. सदियों पुरानी सड़ी गली धार्मिक मान्यताओं और अतार्किक बातों में ही समाज को उलझाए रखना चाहते हैं. आज देश भर में ऐसे कानून समाज पर थोपने के षड्यंत्र हो रहे हैं ताकि युवा अपनी पसंद से अपना जीवनसाथी तक ना चुन सकें. लड़कियों को उनके ही धर्म में शादी करने के लिए मजबूर करने के लिए गिरफ्तारियों का डर दिखाया जा रहा है. हिन्दू राष्ट्र बनाने का अलाप चल रहा है ताकि पुजारियों-महंतों, मुल्लाओं की दुकानें चलती रहें. कर्मकांड चलते रहें. आडम्बर और चढ़ावों में किसी तरह की कमी ना आये. इन्ही आडम्बरों के नीचे अंधविश्वास, यंत्र-तंत्र और टोने-टोटके करने वालों के धंधे भी पनपते रहें. जनता इन धार्मिक क्रियाकलापों में ही उलझी रहे और बेरोज़गारी, तरक्की, शिक्षा, विकास की बातें कोई ना उठाये.

जो समझदार हैं वो इन सियासी चालों के भुलावे में नहीं हैं. वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला रहे हैं. वह लोन लेकर हायर एजुकेशन के लिए उन्हें विदेश भेज रहे हैं. मगर देश में लाखों ऐसे माँ बाप हैं जो अधिक फीस के कारण अपने बच्चों को स्कूल भले ना भेजें, मगर धर्म के नाम पर हज़ारों रूपए खर्च करने को तैयार हैं. ऐसे लोग अपने बच्चो के भविष्य के साथ धोखा करके उन्हें धर्मवीर बना रहे हैं. वे अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए सस्ता सा लैपटॉप खरीद कर नहीं देंगे मगर पंडित के कहने पर हवन-पूजन और ब्राहमण भोज में हज़ारों रूपए खर्च कर देंगे. वे अपनी बेटी के लिए गैरधर्मी मगर उच्च शिक्षा प्राप्त और अच्छी नौकरी वाला वर नहीं चाहेंगे, बल्कि धर्म की बेड़ियों में जकड़ कर उसे किसी सधर्मी बेरोज़गार, शराबी, नकारा के साथ बाँधने में गुरेज़ नहीं करेंगे. ऐसे में अब किशोरों और युवाओं को खुद तय करना होगा कि उन्हें कैसी ज़िंदगी चाहिए. उन्हें तय करना है कि अपने अच्छे भविष्य के लिए उन्हें कब अपने घर में बगावत करनी है. अन्याय के खिलाफ खड़े होने का हौसला अपने अंदर पैदा करना है. तरक्की में बाधा बन रही दीवारों को खुद ढहाना होगा. धार्मिक बंधनों और कर्म-कांडों के बोझ से कैसे मुक्ति मिले इसका रास्ता उन्हें खुद निकालना होगा.

 

रैड लाइट- भाग 3 : सुमि के दिलोदिमाग पर हावी था कौन सा डर

मिल्ड्रेड की निगाहें अनायास उन घरों की तरफ जाती हैं जिन के कारण महल्ले की छवि धूमिल है, ‘ओहओह’ कहते ही तुरंत संभल जाती हैं.

‘‘कम इन, कम इन,’’ कहते हुए मिल्ड्रेड गौर्डन और सुमि के स्वागत में अपने पोर्च से नीचे उतर आती हैं. उन के साथ भीतर जाते हुए सुमि देखती है कि पोर्च में एक बैंच पर सामान से भरे कागज के खाकी थैले सजे हैं और उन के आगे गत्ते के टुकड़े पर लिखा है, ‘‘हैल्प योरसैल्फ ऐंड ऐंजौय.’’

‘‘आह, सो यू फाउंड गुड डील्ज ऐट द फार्मर्स मार्केट.’’

सुमि की ओर मुड़ कर गौर्डन समझाते हैं कि घर के पीछे अपने छोटे से किचन गार्डन में सागसब्जी उगाना और फार्मर्स मार्केट जा कर खेत से आई ताजी सागसब्जी, फल खरीदना मिल्ड्रेड की हौबी है. खुद तो पकातीखाती हैं ही, बुजुर्ग पड़ोसियों को भी भिजवाने के अलावा कागज के खाकी थैलों में डाल कर पोर्च में रख देती हैं ताकि कोई भी जरूरतमंद ले जाए.मिल्ड्रेड हारपोल रिटायर्ड नर्स हैं. इराक के साथ औपरेशन डेजर्ट स्टौर्म में पति की शहादत के बाद 7 बेटों और 2 बेटियों के पालनपोषण की

जिम्मेदारी अकेले नर्सिंग के सहारे संभालना कठिन था. पति की मृत्यु के बाद मिली राशि और मामूली पैंशन में  भी गुजारा न होता, सो सिलाई, बुनाई, कपड़ों पर इस्तरी और छोटीमोटी कैंटरिंग का काम भी ढूंढ़ा. ड्राईक्लीनिंग की दुकान खोली.

राशनपानी, सागसब्जी की भरसक उम्दा खरीदारी के हुनर के साथ मिल्डे्रड ने गृहस्थी सुचारु रूप से चलाई. बड़ बच्चों ने पढ़ाई के साथसाथ बिजनैस संभालने में हाथ बंटाना सिखाया. 50 साल से महल्ले के बच्चों की क्रौसिंग गार्ड हैं. सुबहशाम स्कूल बसस्टौप तक जिन बच्चों को सावधानी से सड़क पार करवा पहुंचाने/लाने जाती हैं उन में से एक भी कम होता है तो उस की कुशलक्षेम पूछने उस के घर पहुंच जाती हैं. यदि बच्चे की गैरहाजिरी का कारण अभिभावक का देर रात तक नशे में धुत रहने के बाद सुबह समय से न उठ पाना या ऐसी ही कोई गफलत होती है तो अभिभावक की भी अच्छी खबर लेती हैं. आज 7 बेटों में से एक आर्मी के ट्रांसपोर्ट डिवीजन का हैड इंजीनियर है, एक फिजिकल मैडिसन का डाक्टर. शेष 5 में कोई डैंटिस्ट है, कोई कंप्यूटर स्पैशलिस्ट, कोई म्यूजिक सिम्फनी का डायरैक्टर और कोई फुटबौल टीम का हैड कोच. सब से छोटे अविवाहित बेटे ने इंजीनियरिंग में मास्टर्स करने के बाद किसी नामी मैन्युफैक्चरिंग कंपनी में नौकरी के बजाय हाईस्कूल में फिजिक्स और मैथ्स पढ़ाना और स्पोर्ट्स कोचिंग करना पसंद किया है. मिल्ड्रेड की बहुएं भी प्रोफैशनल्स हैं. 2 सीनियर नर्सेज हैं, एक पब्लिक स्कूल सिस्टम में सीनियर पिं्रसिपल, एक म्यूजियम में सीनियर क्यूरेटर, एक स्पोर्ट्स मैडिसिन में थैरेपिस्ट व पति के साथ हैल्थ फिटनैस क्लीनिक की मालिक है और एक पुलिस औफिसर है.

रैड लाइट- भाग 2 : सुमि के दिलोदिमाग पर हावी था कौन सा डर

वही खिड़की खूबसूरती और ऐंटीक वैल्यू की वजह से उन के घर की पहचान बन गई. रैल्फ मैन्शन यदि लेक के निकट और इलाके में होता तो हैरिटेज होम्ज में शुमार किया जाता जिन की सालाना नुमाइश यानी परैड औफ होम्ज की महंगी टिकटें समाज कल्याण के कई कार्यों के लिए हजारों डौलर जुटाती हैं. अपनी स्टोरी में लगाने के लिए सुमि रैल्फ मैन्शन और खिड़की की फोटो लेती है. खूबसूरती से तराशी झाडि़यों से घिरे लौन में टहलते हुए गौर्डन अगलबगल के  घरों की खस्ता हालत के बारे में पूछने पर बताते हैं कि उन के वृद्ध मालिक या तो नर्सिंग होम में हैं या कब्रगाह में. जो वारिस नौकरियों के सिलसिले में अन्य शहरों में हैं वे घरों को किराए पर चढ़ा गए. मैन्यूफैक्चरिंग का सारा काम चीन क्या गया कि डाउनटाउन का खुशहाल इलाका अब खस्ताहाल है. बढ़ती गुंडागर्दी के कारण किराएदार घर छोड़ कर जाने लगे हैं. खाली घर खुराफात के अड्डे बन रहे हैं. कितने घर तो सरकार ने तालाबंद करवा दिए हैं. नोट्स लेने के साथसाथ सुमि उन की भी फोटोज लेती चलती है.

तालाबंद घरों को फिर आबाद करने की एक स्कीम के तहत मेहनतकश लोग केवल एक डौलर में ऐसे घर खरीद सकते हैं, बशर्ते कि वे उन की मरम्मत कर के कम से कम 5 वर्ष तक अमनचैनपूर्वक उन में खुद रहने और नियम से प्रौपर्टी टैक्स भरने का कौंट्रैक्ट साइन करें. उद्यमी और साहसी नए प्रवासियों के लिए सुनहरा अवसर. ऐसे आबाद घरों से कानून और व्यवस्था में बेहतरी की भी उम्मीद है. संभ्रांत इलाकों में तो घरों को झाडि़यों वगैरा से घेरना लगभग अशिष्टता समझा जाता है लेकिन गौर्डन मजबूर हैं. नशाखोरों की टोलियां ऊंची आवाज में शोरशराबे के साथ किसी के भी घर के आगे हुल्लड़ मचाती मंडराती हैं. पुलिस बुलाओ, उन्हें भगाओ लेकिन अगली रात फिर वही तमाशा. झाडि़यों की सीमा खुराफातियों को कुछ हद तक थोड़ी दूर रखती है. गौर्डन अपने मैन्शन के आगे झाडि़यों की कतार का रोज सुबहसवेरे मुआयना करते हैं. चरसियों, नशाखोरों की रातभर की कारस्तानियों की निशानियां सिरिंजेज, सुइयां, कंडोम बीनते हैं वरना पड़ोस के छोटे बच्चे उन से डाक्टरडाक्टर खेलते हैं. कंडोम को नन्हे गुब्बारे समझ कर फुलाते हैं, उन में पानी भरभर कर एकदूसरे पर फेंकते हैं.

जर्जर हालत में कुछ घरों में सिंगल मदर्स अलगअलग बौयफ्रैंड्स से अपने बच्चों के साथ रह रही हैं. यह वह तबका है जो सरकार को दुधारी गाय मान कर उसे दुहे जाता है. ब्याह, शादी कर के तो आम गृहस्थी की तरह मेहनतमशक्कत से रोटी कमानी पड़ेगी. कोई बौयफ्रैंड अपनी संतान की परवरिश के लिए नियमित राशि दे तो भला, वरना अविवाहित मातापिता संतान को सरकार से मिलने वाले फूड स्टैंप्स और अन्य सहायता के सहारे पालते हैं. ऐसी मानसिकता वालों के कारण इलाके की छवि धूमिल होती है. गौर्डन अपनी दृष्टि घुमा कर सड़कपार कुछ दूरी पर उन घरों की ओर इशारा करते हैं जिन का हाल ही में पुनरुद्धार हुआ लगता है. एक घर के दोमंजिले पोर्च में स्विंगसोफे  या आरामकुरसी पर बैठी कुछ युवतियां मैगजीन पढ़ने या बातचीत करने में तल्लीन दिखती हैं. घर के मालिक अधेड़ आयु के निसंतान दंपती हैं, टायरोल और ऐग्नेस कार्सन. सोशल डैवलपमैंट कमीशन उन के घर की ऊपर मंजिल को किराए पर ले कर जरूरतमंदों के अस्थायी आवास के रूप में इस्तेमाल करता है. फिलहाल वहां रह रही युवतियां यूनिवर्सिटी के सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स की स्कौलरशिप स्टूडैंट्स हैं जो पार्टटाइम काम भी करती हैं, जिस की वजह से उन्हें वक्तबेवक्त जानाआना पड़ता है. यूनिवर्सिटी जानेआने के लिए वैन सर्विस है और काम के लिए वे बस से जातीआती हैं.

सुमि कुछ कहती नहीं, लेकिन उस ने अलग से यह भी सुना है कि उस इलाके में गाडि़यां दिन में कई चक्कर मारती हैं. उन में ‘जौन्ज’ यानी ग्राहक होते होंगे. इसी कारण इस इलाके के रैड लाइट एरिया होने की अफवाह धुएं से चिंगारी बनने लगी है. गौर्डन सुमि को महल्ले के दौरे पर ले चलते हैं. 100 गज ही आते हैं कि बस से उतर कर एक अधेड़ महिला थैलों से लदीफंदी सामने से आती दिखती है. गौर्डन आगे बढ़ कर कुछ थैले पकड़ लेते हैं और उन्हें उन के दरवाजे तक छोड़ आते हैं. बारबार थैंक्स कहतीकहती जब वे अंदर चली जाती हैं तब नीची आवाज में सुमि को उन के बारे में गौर्डन बताते हैं कि हो न हो, खून बेच कर आई हैं तभी खरीदारी के थैले अकेले पकड़े थीं. सरकारी फूड स्टैंप्स से ग्रोसरी खरीदने या फूड बैंक से मुफ्त सामान लाने के लिए वे बच्चों को साथ ले जाती हैं. ड्रग ऐडिक्ट बेटी डीटौक्स सैंटर में है. बेटी का बौयफ्रैंड फरार है. उस से और पिछले एकदो बौयफ्रैंड्स से बेटी के 5 बच्चे हैं जिन्हें ये पाल रही हैं. सब को नियम से स्कूल की बस पर चढ़ा कर आती हैं, तीसरे पहर बस स्टौप से लिवा कर लाती हैं और घर में अनुशासित रखती हैं ताकि अच्छी अभिभावक होने का सुबूत दे सकें और बच्चों को अलगअलग फौस्टर होम्ज में न भेजा जाए. इन का पति नशेबाज था, सो उस से तलाक लिया और घरों, दफ्तरों की सफाई के सहारे गुजारा किया. टूटीफूटी हालत में छोटा घर एक डौलर में मिल गया जिसे हैबिटैट वालों ने रहने लायक बना दिया.

बेटी इकलौती संतान है और उसी के बच्चों की वजह से इन्हें कई जगह काम छोड़ना पड़ा. सब से बड़ी नातिन 12 साल की हो जाए तब उस की निगरानी में उस के भाईबहन को कुछ समय के लिए छोड़ कर सफाई वगैरह का ज्यादा काम पकड़ लेंगी. फिलहाल तो स्टेट इमदाद पर गुजारा कर रही हैं लेकिन मजबूरीवश. वे जानती हैं कि इस तरह से पलने वाले बच्चे जीवनभर हीनभावना से ग्रस्त रहते हैं. जैसे और जितना बन पड़े बिन ब्याही मां के नाजायज बच्चों का भविष्य गर्त में जाने से बचाए रखना चाहती हैं गौर्डन और सुमि टहलतेटहलते आगे निकल आते हैं, तो एक पुराना दोमंजिला मकान दिखता है जिस का हाल ही में पुनरुद्धार हुआ लगता है. पोर्च में खड़ी एक अफ्रीकन अमेरिकी वृद्धा मुसकरा कर हाथ हिलाती हैं.

‘‘हाय,’’ गौर्डन गर्मजोशी से अभिवादन का उत्तर देतेदेते उन की तरफ बढ़ते हैं, ‘‘मीट माय न्यू फैं्रड,’’ कहते हुए सुमि का परिचय मिल्ड्रेड से करवाते हैं, ‘‘शी इज डूइंग अ स्टोरी औन अवर नेबरहुड.’’

रैड लाइट- भाग 1 : सुमि के दिलोदिमाग पर हावी था कौन सा डर

शाम की क्लासेज और शाम भी जाड़े की. बर्फ नहीं पड़ रही थी वरना और मुसीबत होती. अमेरिका के विस्कौन्सिन एवेन्यू और ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट का चौराहा पार करते ही दिल में धुकधुकी इतनी तेज हो जाती है कि ड्राइविंग पर ध्यान बनाए रखना दूभर हो जाता है. ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट का इलाका रैड लाइट एरिया कहलाया जाने लगा है. रैड लाइट एरिया का खौफ सुमि के मन में बालपन से ही बैठा हुआ है. सुमि के पापा के दूर के कुछ रिश्तेदार पुरानी दिल्ली में दशकों पुराने जमेजमाए कारोबार के चलते वहीं हवेलियों में रहते रहे हैं. मां बताती थीं कि वहां के बड़े चावड़ी बाजार के पास एक इलाका वेश्याओं और गुंडों की वजह से बदनाम ‘रैड लाइट’ एरिया हुआ करता था जिस के आसपास महल्लों में पलक झपकते लड़कियां गायब किए जाने की वारदातें सुनने में आया करती थीं. इस कारण वहां रहने वाले परिवारों की औरतें अपने घरों से बहुत कम निकलती थीं. मजबूरी में जब भी उन्हें बड़े चावड़ी बाजार के पास से गुजरना पड़ता तो उस ओर देखे बिना झट कन्नी काट कर बच्चों, विशेषकर बच्चियों को अपनी लंबी चादर के भीतर दबोचे ऐसे लंबे डग भरतीं मानो कोई चोरउचक्का पीछे पड़ा हो.

अमेरिका के शहर मिडवैस्टर के बीचोंबीच डाउनटाउन इलाके में देश की प्रख्यात और महंगी यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म के तेज रफ्तार रिफ्रैशर इवनिंग कोर्स के लिए फुल स्कौलरशिप का मौका विरलों को मिलता है. सुमि इसे हर हाल में पूरा करने को कटिबद्ध है. रैग्युलर कोर्स की गुंजाइश  नहीं, दिन की नौकरी छोड़े तो गुजारा कैसे हो?

जितनी प्रख्यात यूनिवर्सिटी है डाउनटाउन का यह इलाका उतना ही बदनाम होता जा रहा है. वहां की समृद्ध फार्मर्स (किसान) पीढ़ी वृद्ध हो चुकी है और उन की संतानों को सीधा उत्तराधिकार प्राप्त नहीं. प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण उन के वृहद् फार्म्स खरीद कर डैवलपर्स वहां आलीशान घर, मौल और आधुनिक सुविधाओं से लैस उपनगर बनाते जा रहे हैं. नतीजतन, शहरी आबादी वहीं उमड़ी जा रही है. बीच शहर में बंद दुकानें, खाली घर ड्रग डीलर्स और बदनाम पेशों के अड्डे हो गए हैं जिस के चलते महंगी यूनिवर्सिटी में प्रवेशातुर रईस परिवारों की संतानों की सुरक्षा बड़ी चुनौती बन गई है. 5 मील के घेरे के भीतर रहने वाले सभी छात्रों के लिए सुबह 7 बजे से रात के 12 बजे तक निशुल्क वैन सर्विस है. इस के अलावा, यूनिवर्सिटी ने पूरे इलाके के पुनरुद्धार का बीड़ा उठाया है और इस के पुनर्वास के लिए नियत फैडरल सरकार भी भरपूर सहयोग कर रही है. जरूरतमंदों के लिए उदार छात्रवृत्तियां, डैंटिस्ट्री और नर्सिंग डिपार्टमैंट्स की ओर से फ्री क्लीनिक्स, लौ डिमार्टमैंट की ओर से मुफ्त कानूनी सलाह के सैशंस की सुविधाएं उपलब्ध हैं.

कोर्स के एक असाइनमैंट के लिए अन्य सहपाठियों ने सामयिक घटनाओं को चुना जिन के लिए तथ्य रेडियो, टीवी और पत्रपत्रिकाओं से जुटाना सहज होता है. भारत की प्रमुख पत्रिकाओं, पत्रों में प्रकाशित सुमि का शौकिया लेखन मुख्यतया मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण भोगा हुआ यथार्थ ही रहा था. ऐसी 2 प्रविष्टियों और प्रमाणित पूर्व प्रकाशनों के बल पर ही इस तेज रफ्तार कोर्स में उसे प्रवेश मिला जिस के पूर्ण होने पर स्थानीय अखबार के फीचर सैक्शन में उस की सह संपादक की नियुक्ति की संभावना बन सकती थी.

ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट के खस्ताहाल इलाके पर सुमि के ह्यूमन इंटै्रस्ट स्टोरी के चयन पर प्रोफैसर को आश्चर्य था पर मौन अनुमोदन दे दिया शायद इसलिए कि यह यूनिवर्सिटी की वर्तमान नीति के अनुरूप हो. बहरहाल, इलाके के गली, महल्ले छानने और इंटरव्यूज कर के तथ्य बटोरने के लिए वहां वीकेंड पर दिन का समय ही सुरक्षित होगा. यह उन्होंने पहले ही बता दिया. सिटी गजट अखबार की पुरानी प्रतियों में डाउनटाउन के इतिहास में ऐतिहासिक घरों, इमारतों का प्रचुर विवरण है. हैरत की बात यह कि ऐसे कुछ घर ठीक ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट पर हैं. हिस्टौरिकल सोसाइटी से संपर्क कर के सुमि ने गृहस्वामियों के नामपते लिए और फोन कर के इंटरव्यू का समय तय किया. नियत समयानुसार मिस्टर गौर्डन रैल्फ के पते पर ठिठक कर अपनी लिस्ट फिर पढ़नी पढ़ती है. गलीचे से लौन के आगे संतरी सरीखे खड़े ऊंचे दरख्तों और तराशी हुई झाडि़यों से घिरे छोटे मगर शानदार मैन्शन का इस इलाके में क्या काम? ईंटपत्थर के मकान पुराने स्थापत्य शिल्प के नामलेवा भर रह गए हैं. रैल्फ मैन्शन का एकएक पत्थर जैसे समय के बहाव को रोके अविचल खड़ा. सामने की दीवार पर खूबसूरत स्टैंड ग्लास की बड़ी गोल खिड़की जैसे उन्नत भाल पर टीका हो. हस्तनिर्मित ऐसी नायाब कृतियां तो यूरोप के पुरातन गिरजाघरों में ही मिलें.

पूर्वनियत इंटरव्यू की औपचारिकता परे रख गृहस्वामी गौर्डन चाव से सुमि को घर दिखाते हैं, अपने बारे में बताते हैं. पत्नी का देहांत हो चुका है, बेटेबेटियां सुदूर प्रांतों और देशों में हैं. दशकों पूर्व जरमनी से अमेरिका आए उद्यमियों को लेक मिशिगन के तट पर बसा शहर बियर उद्योग की स्थापना के लिए सर्वथा उपयुक्त लगा था. बे्रवरीज लगाई गईं, रिहाइश के लिए घर बनाए गए. शहरी इलाकों में भी तब सड़कें कच्ची हुआ करती थीं जिन पर घोड़े और बग्घियां चलती थीं. गैराज के बजाय घरों के आगे घोड़े या छोटीबड़ी बग्घी के लिए शेड होते थे.

जरमन बियर और इंजीनियरिंग का दुनिया में आज भी मुकाबला नहीं. उन  के घरों की पुख्ता नींवें बहुत गहरी हैं और सारी प्लंबिंग तांबे की. समयोपरांत ब्रेवरीज के रईस मालिक लेकड्राइव का रुख करते गए और बीच शहर में उन के घर ब्रेवरीज के इंजीनियर और ब्रियूमास्टर्ज खरीदते गए. मिशिगन लेक को छूती एकड़ों जमीन पर आज भी खड़े कुछ आलीशान मैन्शंज और उन के अपने गैस्टहाउस, केयरटेकर्ज कौटेजेज, ग्रीनहाउस, अस्तबल, बग्घीखाने उस युग के प्रतीक हैं. आज के युग में ऐसी इमारतों का रखरखाव लगभग असंभव है. जिन मैन्शंज के मालिक या वारिस नहीं रहे और जो नींवों में लेक का पानी रिसने से खंडहर हो चले, उन्हें डैवलपर्ज ने ढहा कर आधुनिक बंगले, बहुमंजिले मकान जिन्हें यहां कौन्डोज कहा जाता, बना डाले. गौर्डन के परनाना ब्रियूमास्टर थे और शहर के भीतर पुराने घर का विस्तार कर के उसे छोटे मैन्शन का रूप दिया था. उन्नत भाल पर टीके सी खूबसूरत खिड़की का अलग ही एक किस्सा सुनाते हैं.

गौर्डन के नाना इकलौती संतान थे और मैन्शन के उत्तराधिकारी. मैन्शन का विस्तार किया लेकिन उन के पुत्र यानी गौर्डन के मामा ने पादरी बनने का निर्णय ले लिया. मैन्शन पुत्री को मिला और उन के बाद नाती गौर्डन को. ईंटपत्थर की दोहरी दीवारों के बीच एअर स्पेस, लकड़ी के फर्श, मजबूत लकड़ी के डबल फ्रेम वाली खिड़कियां, दरवाजे और हर कमरे में फायर प्लेस व रेडिएटर हीटर्ज भीषण जाड़े में भी घर को आरामदेह रखते हैं. खुले, हवादार घर में एअरकंडीशनिंग की जरूरत भी नहीं पड़ती लेकिन बैठक की एक दीवार गरमी में बेहद गरम हो जाती थी. अधिक आराम के लिए गौर्डन ने एअरकंडीशनर भी लगाए. दीवार फिर भी गरम रहती. एअरकंडीशनर को कई बार जांचने पर भी कारण समझ नहीं आया तो प्लास्टर तोड़ा गया. नीचे दीवार में जड़ी मिली स्टैंडग्लास ही हस्तनिर्मित नायाब गोल खिड़की जिस से तेज धूप अंदर आती रही थी इसीलिए वहां पर प्लास्टर मढ़ दिया गया होगा. गौर्डन ने शीशे की वह खूबसूरत खिड़की निकाल कर घर में ऊपर के बैडरूम को जाती सीढि़यों में लैंडिंग की उस दीवार में फिर जड़वा दी जिस तरफ धूप का रुख नहीं रहता.

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