हाईस्कूल तक पढ़े पश्चिम बंगाल की विष्णुपुर सीट से भाजपा सांसद 40 वर्षीय सौमित्र खान अपनी पत्नी सुजाता खान को महज इसलिए तलाक देने पर आमादा हो गए हैं कि वे भाजपा छोड़ टीएमसी में शामिल हो गई हैं. दिलचस्प बात यह है कि इस कपल ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत ममता बनर्जी की सरपरस्ती में टीएमसी से ही की थी. कुछकुछ सीता त्याग सरीखा यह मामला बड़ा दिलचस्प कानूनी लिहाज से हो चला है. लगता नहीं कि कोई अदालत सौमित्र की दलील से सहमत होगी जो पत्नी की वैचारिक स्वतंत्रता का हनन कर रहे हैं.

दलित समुदाय के सौमित्र पर भगवा रंग पूरी तरह चढ़ा दिख रहा है जिस का पहला ही उसूल यह है कि औरत पैर की जूती है. लोकतंत्र कितना अपाहिज किया जा रहा है, यह इस मामले से साबित हो रहा है. सुजाता, जो फिर से सुजाता मंडल हो गई हैं, का यह कहना सटीक लगता है कि सौमित्र की बुद्धि भाजपा में जा कर भ्रष्ट हो गई है.

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  साध्वी की ड्रामेबाजी

अपराधी और गवाह अदालत में पेश होने से बचने के लिए सब से ज्यादा बहाना बीमारी का लेते हैं. भोपाल से भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने भी वही किया. बीती 19 दिसंबर को वे मुंबई के स्पैशल एनआईए कोर्ट में हाजिर नहीं हुईं. 18 दिसंबर को उन का ब्लडप्रैशर हाई हो गया और पेशी के डर से सांस भी फूलने लगी तो उन्हें दिल्ली के एम्स में भरती कर दिया गया. मामले की गंभीरता को देखते हुए अस्पताल प्रबंधन ने प्रज्ञा को तुरंत प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया और इधर उन के वकील जे पी मिश्रा ने हाजिरी माफी ले ली.

गौरतलब है कि प्रज्ञा 2008 के मालेगांव बम बलास्ट की प्रमुख आरोपी हैं और एक महीने में दूसरी बार अदालत में पेश नहीं हुईं. अब 4 जनवरी की तारीख को वे कौन सा बहाना बना कर गैरहाजिर होंगी, यह देखना दिलचस्प होगा. ये वही प्रज्ञा हैं जो 4 दिनों पहले ही सीहोर में शूद्रों को सलाह दे रही थीं कि वे खुद के शूद्र कहलाने पर बुरा न माना करें.

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  किसान विरोधी नीतीश

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अब यह मजबूरी हो गई है कि वे भगवा धुन पर नाचें, वरना, संन्यास ले कर घर बैठ जाएं. किसान आंदोलन को गैरजरूरी बताने वाले नीतीश ने किसानों पर नया कहर डीजल अनुदान बंद कर बरपा दिया है, वह भी तब जब डीजल की कीमत सुरसा के मुंह की तरह बढ़ रही है.

60 रुपए प्रतिलिटर की यह सब्सिडी, हालांकि, 6.37 लाख किसानों को ही मिल रही थी जबकि आवेदक किसानों की संख्या इस से दोगुनी थी. इतना ही नहीं, सुशासन बाबू ने कई कृषि यंत्रों पर भी सब्सिडी बंद कर किसानों को उन्हें चुनने पर पछताने का मौका दे दिया है.

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बचकानी दलील सरकार ने यह दी है कि अब चूंकि गांवगांव में बिजली पहुंच गई है, इसलिए डीजल अनुदान के कोई माने नहीं रह गए थे. अब भला कौन हैलिकौप्टर में उड़ने वाले नीतीश बाबू को सम झाए कि हार्वेस्टर और ट्रैक्टर बिजली से नहीं चलते और बिजली भी उतनी नहीं मिल रही कि किसानों को डीजल पंप कबाड़े में बेचने पड़ें.

  रामकथा का प्रताप

अब वह जमाना गया जब कवि लगभग कंगाल और भांड हुआ करते थे. अब कवि हाईटैक होने लगे हैं. वे हवाई जहाज में उड़ते हैं और सितारा होटलों में ऐश करते हैं. दरअसल, कविता अब बड़ा धंधा हो गई है, इतना बड़ा कि कुमार विश्वास जैसे मंचीय कवि करोड़ों का मकान बना कर खुद सोशल मीडिया पर उस का प्रचार भी करते हैं.

ये वही कुमार विश्वास हैं जिन्हें आम आदमी पार्टी से अरविंद केजरीवाल ने बिना धक्का दिए ही बाहर का रास्ता दिखा दिया था.

इस मनुवादी कवि ने प्रचार लायक मकान असल में कविता से नहीं, बल्कि रामकथा गागा कर बनाया है जिस के वीडियो आएदिन सोशल मीडिया पर वायरल होते रहते हैं. यानी गलत नहीं कहा जाता कि रामकथा आर्थिकरूप से चमत्कारी तो है.

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