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बिग बॉस 14: राखी सावंत ने किया शादी का झूठा नाटक! जानें क्या है सच

बॉलीवुड अभिनेत्री और अपने बेबाक अंदाज के लिए मशहूर अदाकारा राखी सावंत को हर कोई पसंद करता है. राखी इन दिनों बिग बॉस 14 के घर में हैं जहां पर वह अपने टॉस्क को लेकर काफी ज्यादा पॉपुलर होती नजर आ रही हैं.

राखी सावंत अपने पति को लेकर पिछले कुछ महीनों से चर्चा में बनी हुई हैं. ऐसे में जब राखी सावंत से उनके पति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने हमेशा एक रितेश नाम के शख्स का नाम लिया लेकिन वह आज तक मीडिया के सामने खुलकर आया नहीं . राखी ने हमेशा अपने पति के बारे में एक बात कह कि वह बहुत ज्यादा निजी हैं इसलिए कैमरा फेस नहीं करना चाहतें.

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हालांकि अभी एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि जिस होटल का नाम राखी सावंत लेती थी वहां उनकी शादी रितेश नाम के एक व्यक्ति से हुई है . जब उस होटल का रिकॉर्ड चेक किया गया तो वहां ऐसी कोई शादी नहीं हुई थी. जिसके बाद राखी सावंत का झूठ एक बार फिर से सभी के सामने आ गया है कि राखी सावंत ने किसी से शादी नहीं रचाई है. वह अपने फैंस को झूठ बोलती हैं.

 

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अब लोगों का ये कहना है कि राखी सावंत एक ऐसी अभिनेत्री है जो अपने शादी कि तस्वीर अपने पति के साथ इंटरनेट पर जरुर शेयर करती.

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तो अब आपको भी लगा होगा राखी सावंत के इस बात से झटका तो परेशान न हो यहीं सच्चाई है. अब सभी फैंस और बिग बॉस देखने वाले दर्शकों को लगने लगा है कि राखी सावंत एक नाटक कर रही थी. राखी की कोई शादी नहीं हुई है. यह सब दिखावा है. सिर्फ अपनी तरफ लोगों का ध्यान केंद्रित करने के लिए. तो इसी के साथ राखी सावंत ने एक बार फिर अपने चाहने वालों का दिल तोड़ दिया है.

‘पवित्र रिश्ता’ एक्टर करणवीर मेहरा जल्द करेंगे शादी , फैंस को दी जानकारी

टीवी एक्टर करण वीर मेहरा की जिंदगी में एक ऐसा समय आया था जब उन्हें लगता था कि वह अपने फेल्ड मैरेज से बाहर नहीं आ पाएंगे. लेकिन समय बदला और उनकी जिंदगी में एक बार फिर खुशियों ने दस्तक दिया है.

जी हां करणवीर मेहरा अपने पुराने जख्मों को भूलकर अपने जीवन में आगे बढ़ने के बारे में सोचा है. वह अपनी गर्लफ्रेंड के साथ शादी करने वाले हैं. करण वीर मेहरा अपनी को स्टार निधि सेठ को दिल दे बैठे हैं.

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अब ये दोनों 24 जनवरी को शादी करने जा रहे हैं. दिल्ली के गुरु द्वारे में शादी के सात फेरे लेंगे. जहां उनके परिवार के साथ- साथ उनके करीबी दोस्त भी मौजूद होंगे.

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एक रिपोर्ट से बातचीत के दौरान करणवीर मेहरा ने बताया कि इनकी शादी में सिर्फ 30 लोग शामिल होंगे. वहीं कुछ खास दोस्तों के लिए मुंबई में रिसेप्शन रखा जाएगा. आगे उन्होंने बातचीत के दौरान बताया कि हम दोनों अपने जिंदगी में 2020 नहीं लाना चाहते थे इसलिए हमने शादी करने का फैसला साल 2021 में किया.

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करण ने कहा कि हम दोनों की पहली मुलाकात साल 2008 में हुई थी जहां हम सिर्फ काम के लिए मिले उसके बाद कभी भी टच में नहीं रहें. फिर तीन साल पहले हमदोनों एक जिम में मिले जिसके बाद हमारे बीच बात चीत करने का सिलसिला आगे बढ़ा उसके बाद हम एक अच्छे दोस्त बन गए , ये दोस्ती हमारी हमदोनों के लिए कब इतनी ज्यादा क्लोज हो गई हमें पता नहीं चला और हमारा रिश्ता प्यार में बदल गया . अब हमदोनों अपने रिश्ते को एक नाम देने के बारे में सोचा है. इसलिए हम दोनों अपने परिवार वालों की मर्जी से शादी करने का यह अहम फैसला लिया है.

मेरी जीवनसाथी -भाग 3 : क्यों पुराने दिनों को याद कर रहा था नवीन

मैं क्या कहती. मेरा तो अंगअंग उस के प्रेम में आकंठ डूबा जा रहा था. चंदन मुझे मिल जाए, इस की तो सिर्फ कल्पना की थी, सपना देखा था. मगर वह सपना हकीकत में तबदील हो जाएगा, नहीं जानती थी.

तभी जोरों से बिजली कड़की और पानी बरसना शुरू हो गया. मां के आने की संभावना जाती रही. चंदन ने उस पल मेरी कमजोरी और अवसर का फायदा उठाया. मेरे प्रथम एवं अछूते प्रेम को उस ने अपनी मादक सांसों से उभारा. मेरा पूरा शरीर पत्ते सा कांपने लगा. उस अल्हड़ उम्र में प्रथम बार किसी पुरुष ने, वह भी जो मेरे सपनों का बादशाह था, मेरे शरीर को सहलाया. मैं लता की तरह लिपटती चली गई.

मैं भूल गई कि वह सबकुछ क्षणिक सुख विनाश का रास्ता है, सुखद भविष्य का उजाला नहीं. उस समय तो चंदन की प्यारीप्यारी मीठी बातें ही मुझे बस याद थीं…उस के वादे, कसमें और बांहों का कसता घेरा.

2 दिन सबकुछ सामान्य रहा लेकिन चंदन नहीं आया. मेरा अंगअंग टूटा जा रहा था. चंदन के आने की आस और शरीर का टूटना मुझे चिंतित कर रहा था. तीसरे दिन नवीन हमारे घर आए. बाबूजी भी जल्दी ही आ गए थे.

नवीन आए तो मैं सिर नीचा किए रसोई में चली गई. उसी प्यार से उन्होंने मु झे देखा. फिर थोड़ी देर बाद मां की आवाज आई थी, ‘आप यह क्या कह रहे हैं? कहां आप, कहां हम?’

‘मैं छोटेबड़े की बात नहीं, रिश्ते की बात करने आया हूं. मोहित के सिवा मेरा कोई नहीं. वह भी बाहर रहता है. चाहता हूं, मेरा घर फिर से बस जाए.’

‘पर इतनी जल्दी? चंदन भैया भी तो कल चले गए?’ यह बाबूजी का स्वर था.

‘चंदन मेरा सगा भाई नहीं है. बचपन में पिताजी ने उसे पाला था, पढ़ायालिखाया. उन के बाद उस की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई थी. उसे डाक्टर बनाना मेरा लक्ष्य था, वह पूरा हो गया.

‘मंत्री की बेटी से उस का ब्याह हो चुका है जिस का पूरा परिवार अमेरिका में है. लड़की तो वहां की नागरिकता भी ले चुकी है. पढ़ाई के कारण चंदन यहां रुका था, सो वह भी कल चला गया.’

ब्याह…पत्नी…मेरे सिर पर मानो किसी ने हथौड़े बरसाए हों. चंदन और शादीशुदा? इतना बड़ा  झूठ? इतना बड़ा फरेब? मेरे शरीर से अपनी हवस प्यार के  झूठे बोल बोल कर बु झाने वाला व्यक्ति विवाहित? नहींनहीं. मैं बेहोश हो कर वहीं गिर पड़ी.

होश आया तो पूरा घर खुशी में डूबा था. अम्माबाबूजी ने तो सोचा भी न था कि अचानक उन की बेटी को इतना बड़ा घरवर मिल जाएगा. थोड़ी ज्यादा उम्र और एक बेटे का बाप हुआ तो क्या. 11वीं तक पढ़ी शरणार्थी परिवार की गरीब कन्या को कौन ब्याहता. फिर नवीन के हम पर इतने सारे एहसान जो थे.

लेकिन मैं एक भले और आदर्श व्यक्ति को धोखा नहीं देना चाहती थी. चंदन की बेवफाई ने एक ही पल में मु झे परिपक्व बना दिया था. इसलिए मैं नवीन से मिल कर उन्हें सबकुछ बता देना चाहती थी. नवीन की पत्नी बन कर मैं उन के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहती थी.

अस्पताल में नवीन उस समय किसी आपरेशन में व्यस्त थे. मुझे वहां लोग जानते थे. मैं उन के कक्ष में बैठी प्रतीक्षा करने लगी. कुछ देर बाद कक्ष का दरवाजा खुला और नवीन ने प्रवेश किया. मु झे वहां बैठा देख कर एक पल वे रुके, फिर हंसते हुए अपनी कुरसी पर बैठ गए.

‘चाय लोगी?’

‘नहीं,’ मैं ने साहस बटोर कर कहा, ‘मैं आप से कुछ कहना चाहती हूं.’

‘बोलो… हां, शाम को खाली हो तो चलो, थोड़ी खरीदारी कर ली जाए. भई, मेरेतुम्हारे बीच उम्र में बहुत अंतर है. फिर लड़कियों की खरीदारी मुझे आती नहीं,’ नवीन बड़े हलके मूड में थे.

‘मैं आप से…’ मेरे शब्द गले में ही अटक कर बाहर आने से इनकार करते रहे.

‘देखो,’ नवीन उठ कर मेरे पास आए और मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर बोले, ‘यदि तुम मेरी ज्यादा उम्र या एक बच्चे के कारण परेशान हो तो चिंता मत करो. मोहित छात्रावास में रहता है, वहीं रह कर पढ़ता रहेगा. मैं तुम्हारा हमउम्र दोस्त बनने का पूरा प्रयास करूंगा.’

उस वक्त मैं नवीन की हथेली में मुंह छिपा कर रो पड़ी. नवीन का इतना विश्वास और प्यार मेरी आंखों से छिपा क्यों रहा? चंदन की  झूठी खुशबू में मैं नवीन के सच्चे प्यार को क्यों न देख सकी? जो व्यक्ति पलपल मार्गदर्शन करता रहा, सहारा देता रहा, उस की उपेक्षा कर क्षणभर के एक कथित प्रेमी के प्रेम में मैं कैसे फिसल गई?

उस क्षण नवीन ने मु झे कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया. घर पर बाबूजी की बीमारी और मां की आंखों की चमक ने मुझे होंठ सी लेने पर मजबूर कर दिया था.

हमारी शादी सादगी से हो गई. नवीन मुझे ले कर कुछ दिनों के लिए नैनीताल जाना चाहते थे, लेकिन मैं ने उन्हें शिमला चलने की राय दी. मोहित के साथ कुछ पल गुजार कर मैं उसे अपना ममत्व देना चाहती थी. हरीभरी वादियों में मैं अपने सीने पर रखे बो झ को हलका करना चाहती थी.

नवीन की मीठी बातें और मोहित की प्यारी बातें भी मेरा मन न बहला सकीं. नवीन का सारा प्रयास व्यर्थ गया और मोहित भी मुझे उदासीन पा कर अपने में सिमट गया. मैं ने अनेक प्रयास किए कि मोहित को अपने वक्ष से लगा कर दिल का बोझ हलका कर लूं, पर सफल न हो सकी.

तभी अपनी कोख में पलते अंश का मु झे एहसास हुआ. मैं समझ गई कि यह अंश उस बेवफा चंदन का है. लेकिन भोलेभाले नवीन को मैं कैसे बताती कि शादी से पहले ही मैं गर्भवती हो चुकी हूं.

कभीकभी जी होता, आत्महत्या कर लूं या कहीं चली जाऊं पर नवीन का निश्छल प्यार, मातापिता की इज्जत, सबकुछ सामने आ कर मेरे पांव जकड़ लेते.

फिर धीरेधीरे सबकुछ सामान्य होता गया. मोहित बीच में जब भी छात्रावास से घर आता, मु झ से खिंचा रहता. मैं लाख प्रयास करती कि वह मेरे पास आए, तब भी शांत स्वभाव का मोहित मेरे पास ज्यादा देर न टिकता.

तेज प्रसवपीड़ा के बीच एक रात मैं ने एक स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया. नवीन फूले न समाए. अम्माबाबूजी को तो मानो बरसों की संजोई दौलत हाथ लग गई हो. पर मेरा मन खुश नहीं था. चंदन के बेटे को जन्म देने के बाद मैं स्वयं की नजरों से गिर गई थी.

शीलू के होने के बाद मोहित कुछकुछ मु झ से खुलने लगा था. दोनों में 7 वर्ष का अंतर था. मोहित एवं शीलू की खूब पटती थी. मेरे ही कहने पर नवीन ने उसे भी छात्रावास में डाल दिया था.

समय धीरेधीरे सरकता गया. मैं और नवीन पूरे घर में 2 प्राणी रह गए. 2 वर्ष पूर्व अम्मा का देहांत हो गया. बाबूजी तो पहले ही गुजर चुके थे. लाख कहने पर भी अम्मा हमारे साथ रहने नहीं आईं.

अब नवीन के सिवा मेरा कोई नहीं था. नवीन की सेवा कर के मु झे आत्मिक संतोष मिलता था. लेकिन एक सच था कि नवीन और अपने बीच मैं ने हमेशा एक फासला महसूस किया. अपने अंदर इतना बड़ा  झूठ रख कर मैं हमेशा स्वयं को हेय सम झती रही.

‘टिकटिक…’ घड़ी की तेज आवाज ने मु झे अतीत से खींच कर वर्तमान में ला खड़ा किया…

सुबह होने को थी. नवीन को 8 बजे ओटी में जाना था. उन के लिए नाश्ता भी तैयार करना था. नवीन जाग चुके थे. मु झे काम करता देख वे सम झ गए कि फिर पूरी रात मैं जगी हूं.

मेरा हाथ पकड़ उन्होंने मु झे पलंग पर लिटा दिया और कहा, ‘‘एक गोली देता हूं. खा कर आराम से सो जाओ. बाई आ कर सब कर देगी. भोलू से कह जाऊंगा कि बाहर से कोई आए या फोन आए तो वह देख ले. तुम बस आराम करो.’’

‘‘लेकिन आप?’’

‘‘मेरी चिंता छोड़ो संगीता. तुम अपने लिए भी तो जीना सीखो. तुम्हारा नवीन तुम्हारे बगैर अधूरा रह जाएगा,’’ कहतेकहते नवीन की आवाज रुंध गई. आज पहली बार मैं ने उन्हें अतिशय भावुक होते देखा था.

ऐसा अकसर हुआ था जब मैं पूरीपूरी रात जगी थी और दूसरे दिन नवीन ने मु झे दवा दे कर सुला दिया था.

दोनों बेटे बाहर ही शिक्षा पा रहे थे. बीचबीच में आते भी तो मेरे और उन के बीच हमेशा एक दूरी बनी रहती. मोहित तो मुझ से कतराता था और शीलू से मैं. लेकिन नवीन का ढेर सारा प्यार बच्चों को मेरी कमी महसूस ही न होने देता. पढ़ने में दोनों ही होशियार थे. शीलू अभी पढ़ ही रहा था. मोहित का नेवी में चयन हो गया था.

पूरे 5 वर्ष और बीत गए हैं. आज नवीन भी इस दुनिया में नहीं हैं. बड़ा बेटा मोहित अकसर विदेश में ही रहता है, जहाजों पर. दूसरा शीलू भी पायलट बन चुका है. वह दिल्ली में रहता है. मैं घर में अकेली हूं, बाई के साथ.

बेटों ने औपचारिकतावश पूछा था. शीलू ने तो साथ ले जाना भी चाहा, पर मैं ने इनकार कर दिया. मोहित ने विवाह भी कर लिया है. बहू को ले कर आशीर्वाद लेने आया था. जी चाहा था, पूछूं कि क्या यह शादी मु झ से बता कर करता तो मैं मना कर देती. नवीन होते तब भी यही करते. पर पूछ न सकी.

अचानक बैंक से एक दिन नवीन द्वारा करवाया हुआ फिक्स्ड डिपौजिट का कागज आया जिस में रकम की मियाद पूरी होने की बात थी. इस विषय में मु झे कुछ भी मालूम नहीं था. उस पत्रक में अनुरोध था कि या तो ज कर पैसे ले आऊं या पुन: जमा करवा दूं.

अब वह फिक्स्ड डिपौजिट का कागज मुझे ढूंढ़ना था. मैं ने पूरा घर छान मारा पर वह कहीं नहीं मिला. शायद मेरे विवाह के पूर्व का किया हो या नवीन बताना भूल गए हों.

तभी मुझे ध्यान आया कि नवीन की एक खास अलमारी थी जिसे खोलने की मैं ने कभी जरूरत महसूस नहीं की. वह नवीन ही खोलते थे. शायद पूर्व पत्नी की यादें उस में संजोई हों, यही सोच कर मैं ने कभी पूछा भी नहीं. फिर जिस के अंदर खुद चोर हो वह दूसरे की छानबीन क्या करता.

कागज ढूंढ़ने की गरज से मैं ने अलमारी खोल दी, मेरी दृष्टि एक डायरी पर पड़ी जो अधखुली अवस्था में जाने कब से पड़ी थी. बीच में खुला पैन भी था. सर्वत्र धूल जमी हुई थी. उत्सुकतावश मैं ने उसे उठा लिया. डायरी, वह भी नवीन की लिखावट में. किस पल वे डायरी लिखते रहे, मैं जान भी न सकी.

उजाले में आंखों पर चश्मा चढ़ा कर पढ़ने लगी. उस वक्त वह कागज ढूंढ़ना भी भूल गई. शुरू में नवीन ने अपनी पूर्व पत्नी का जिक्र किया था. फिर उस की मृत्यु एवं मोहित के छात्रावास में जाने के बाद घर के एकाकीपन का, फिर हमारे परिवार के मिलने की घटना का वर्णन था.

एक जगह लिखा था, ‘अच्छी बच्ची है, संगीता. सोचता हूं इस का कालेज में दाखिला करवा दूं. फिर कोई अच्छा लड़का देख कर इस की शादी कर दूं. अभी अल्हड़ और नादान है. कैसा टूट गया है यह परिवार. सांप्रदायिकता की भयंकर आग ने कितने ही ऐसे परिवारों को उजाड़ दिया है, तबाह कर दिया है.’

आगे जिक्र था… ‘इस भोली लड़की ने यह क्या किया? चंदन के प्रेमजाल में कैसे फंस गई? कितनों को बरबाद किया है चंदन ने? काश, मैं कुछ देर पहले पहुंचा होता तो चंदन घर से निकलता नहीं, जाते देखता और जो हुआ, उसे रोक लेता. अब कौन करेगा उस से शादी? कहीं कुछ उलटासीधा कदम न उठा ले यह अल्हड़ लड़की. मुझे ही इस से शादी करनी होगी.’

आगे लिखा था… ‘इस लड़की के अंदर पलते अंश को मेरी नजरें अनदेखा नहीं कर सकतीं. यह शादी शीघ्र होनी चाहिए. लेकिन भविष्य में मु झे इस से कुछ नहीं पूछना या बताना है वरना यह जीवित नहीं रहेगी.’

आगे बहुत कुछ था, पर मेरी पढ़ने की सामर्थ्य समाप्त हो चुकी थी.

मैं सोचने लगी, ‘ओह नवीन, तुम मुझे सजा देते, मुझे एहसास कराते कि मुझे अपनाकर तुम ने मुझ पर एहसान किया है. शीलू को पाल कर मुझे मेरी गलती का एहसास कराते. सहारा देने की सजा दे कर तो तुम ने मुझे बिलकुल ही अपनी नजरों से गिरा दिया.

‘काश, आज तुम होते और मैं पूछ सकती कि मैं ने तुम्हें न बता कर ठीक किया या तुम ने मुझे बिना बताए क्षमा कर के. लेकिन तुम तो मुझे पछतावे की आग में जलता छोड़ इतनी दूर जा चुके हो, जहां से वापस नहीं आ सकते.’

घड़ी की टिकटिक हर पल अपने अस्तित्व का, इस सन्नाटे में मुझे मेरे अकेलेपन का आभास करा रही थी.

 

आपके पशुओं के लिए डाक्टरी सलाह

लेखक-डा. नागेंद्र कुमार त्रिपाठी व डा. संजय सिंह 

अगर आप का पशु बीमार पड़ जाए, तो आप लोग परेशान हो जाते हैं और पशु डाक्टर से संपर्क करने लगते हैं. कुछ झोलाछाप आप को इलाज के नाम पर उलटीसीधी दवा दे कर पैसे का नुकसान तो पहुंचाते ही हैं, बल्कि पशु की जिंदगी से खिलवाड़ भी करते हैं. इन सब बातों को ध्यान में रख कर आप लोगों के लिए पशुओं के प्राथमिक उपचार पर जानकारी दी जा रही है, जिस का आप लोग जरूर ही फायदा उठाएंगे.

प्राथमिक चिकित्सा आकस्मिक दुर्घटना या बीमारी के चलते पशु चिकित्सक के आने तक कम से कम आप इतना इंतजाम करें कि चोटग्रस्त पशु को सही इलाज कराने की हालत में लाने में लगने वाले समय में कम से कम नुकसान हो, इसलिए प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षित या अप्रशिक्षित लोगों द्वारा कम से कम साधनों में किया गया सरल उपचार है. कभीकभी यह पशु की जिंदगी बचाने में भी मददगार साबित होता है. टिंचर आयोडीन इस दवा को घाव साफ करने के बाद लगाया जाता है.

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कीटाणुओं को खत्म कर घाव ठीक हो जाता है. जरूरत के मुताबिक गहरे घाव में दवा की पट्टी बना कर चिमटी से रख देते हैं, ऊपर से पट्टी बांधनी चाहिए. यह जीवाणुनाशक व उत्तेजक होने से खून का संचालन भी बढ़ाती है, जिस से घाव जल्दी ठीक हो जाता है. टिंचर बेंजोइन इस दवा को ताजा घाव से बहते हुए खून को बंद करने के लिए लगाया जाता है. यदि पशु का किसी वजह से सींग टूट जाए, तो सींग को साफ करने के बाद पट्टी बांधें और उस पर इस दवा को डाल कर भिगो दें. कुछ देर में पट्टी चिपक जाएगी व खून का रिसाव एकदम बंद हो जाएगा.

निमोनिया से बचाव अगर पशुपालकों के पशुओं को ठंड लग जाए या निमोनिया हो जाए, तो आधा बालटी गरम पानी में 1 से 2 चम्मच टिंचर बेंजोइन दवा डालें और इस की भाप पशु को सुंघाएं. यह प्रयोग सर्दियों के लिए बहुत ही फायदेमंद और कारगर होता है. बोरिक एसिड पाउडर यह गंधहीन, एंटीसैप्टिक, सफेद पाउडर होता है. इस पाउडर को सीधे घाव पर लगाया जाता है. बोरिक पाउडर व ग्लिसरीन को बराबर मात्रा में मिला कर पशु के होंठ, जीभ के छालों पर लगाने से आराम मिलता है. घाव थनों पर हो, तो 1:2 के अनुपात में बोरिक पाउडर और वैसलीन लगाएं.

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अगर पशु की आंख से पानी निकलता है, तो पानी में 1 फीसदी का घोल बना कर आंख धोएं, तुरंत ही फायदा होगा. मैग्नीशियम सल्फेट यह सफेद, गंधहीन, कड़वा, रवा के रूप में होता है. कब्ज होने पर छोटे पशु को 20 ग्राम, बडे़ पशु को 50 ग्राम पानी में घोल कर व हिमालयन बत्तीसा 100 ग्राम मिला कर नाल द्वारा आराम से पिलाएं. जरूरत के मुताबिक 8-10 घंटे बाद दोबारा एक खुराक और दी जा सकती है. बुखार में 200-300 ग्राम कल्मी सोडा मिला कर देना चाहिए. अगर पशु को चोट लग गई है और घाव सड़ गया है, तो सड़े घाव में दवा के गाड़े घोल में कपड़ा गीला कर रख दिया जाता है. 1-2 दिन में सड़ा भाग गल जाता है व घाव ठीक होने लगता है. पशु के अंग पर चोट, सूजन, मोच हो, तो 2 लिटर पानी में 100 ग्राम दवा डाल कर सेंक करें. जिंक औक्साइड यह स्वादहीन, गंधहीन और सफेद रंग का पाउडर होता है. इसे पशुओं की गीली खाजखुजली में लगाया जाता है.

साथ ही, जिंक औक्साइड को मलहम के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. लाल दवा (पोटेशियम परमैंगनेट) यह दवा गंधहीन, काले रंग के बारीक दानों के रूप में होती है. इस के पानी में मिलने से पानी का रंग गुलाबी हो जाता है. यह घोल एंटीसैप्टिक का काम करता है. दवा का 1 फीसदी घोल घावों, थन, पूंछ आदि को धोने और साफ करने के लिए काम आता है. खुरपका और मुंहपका रोग में इस के घोल से पशुओं के खुर, मुंह साफ किए जाते हैं. सांप के काटने के ताजा घाव पर दवा का पाउडर लगाने से लाभ मिलता है. धूनी (फ्यूमिगेशन) देने के लिए फार्मेल्डिहाइड घोल के साथ मिला कर इस्तेमाल करते हैं.

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जीवाणुनाशक की यह उत्तम दवा है. तारपीन का तेल यह रंगहीन व तीखा होता है और अलग तरह की गंध होती है. यदि पशु के घाव में कीडे़ (मेगेट्स) पड़ जाएं, तो इस तेल को क्लोरोफार्म के साथ बराबर मात्रा में मिला कर लगाने से कीड़े मर जाते हैं और घाव पर मक्खियां भी नहीं बैठतीं. पशु को अफरा (पेट फूलना) में 30 मिलीलिटर तारपिन का तेल और 250 ग्राम मीठा तेल (अलसी, मूंगफली, तिली) मिला कर पिलाएं. जरूरत के मुताबिक एक खुराक और दें, पशु का अफरा खत्म हो जाएगा. आधी बालटी गरम पानी में 20 मिलीलिटर तारपिन का तेल डालें और निमोनिया/ठंड से पीडि़त पशु को भाप देने से फायदा मिलता है. कैरन तेल चूने का पानी और अलसी का तेल बराबर मात्रा में मिलाने पर कैरन तेल बन जाता है.

इस में थोड़ा सा कपूर मिलाएं. इस तेल को जले हुए भाग पर लगाने से बहुत ही जल्द आराम मिल जाता है. अरंडी का तेल यह एक हलके पीले रंग का वनस्पति तेल है. इस की कुछ बूंदें आंख में डालने से कचरा आसानी से निकल जाता है. यह परगेटिव और हलका एस्ट्रिनजैंट होता है. कब्ज होने पर छोटे पशु को 30 मिलीलिटर और बडे़ पशु को आधा से 1 लिटर अरंडी का तेल पिलाएं. पशु को तुरंत ही आराम मिलता है. एक्रीफ्लेविन यह एक नारंगी रंग पाउडर है. यह जीवाणुनाशक है. दवा का 1 भाग और 1000 भाग पानी मिला कर घोल तैयार किया जाता है. इस का उपयोग एंटीसैप्टिक के रूप में किया जाता है. गंधक का मलहम गंधक एक पीले रंग का ठोस पदार्थ होता है.

यह मलहम गंधक पाउडर और वैसलीन के 1:8 के अनुपात में मिला कर बनाया जाता है. पशु के खाजखुजली के अंग को साफ कर इस मलहम को लगाया जाता है. गंधक से गोल्डन लोशन तैयार किया जाता है. इस का प्रयोग दाद, खाज व खुजली में होता है. नीला थोथा यह कणदार, नीले रंग का होता है. यह कृमिनाशक, परजीवीनाशक और कास्टिक के रूप में उपयोग होता है. इस का प्रयोग पशु को हीट में लाने के लिए भी होता है. गैमेक्सीन यह एक सफेद पाउडर होता है.

इस का प्रयोग कीटनाशक या परजीवीनाशक के रूप में किया जाता है. पशु के शरीर पर जूं, चीचड़, किलनी पड़ने पर कंडे की राख में बराबर मात्रा में मिला कर लगाने से जूं, किलनी वगैरह मर जाते हैं. दवा लगाने के पहले पशु के मुंह पर मास्क जरूर लगा देना चाहिए. अधिक जानकारी के लिए वरिष्ठ वैज्ञानिकों और अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केंद्र, लखीमपुर खीरी अथवा केंद्र के वैज्ञानिकों के संपर्क में रहें और समयसमय पर सरकार द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का पालन भी करें.

घर की आर्थिक जिम्मेदारियों में बेटियां भी हाथ बंटाए

अपने एक अहम् और दिलचस्प फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बीती 6 जनबरी को गृहिणी को आर्थिक रूप से पारिभाषित करते हुए कहा है कि महिलाओं का घरेलू कार्यों में समर्पित समय और प्रयास पुरुषों की तुलना में ज्यादा होता है . गृहिणी भोजन बनाती है , किराना और जरुरी सामान खरीदती है , ग्रामीण क्षेत्रों में तो महिलाएं खेतों में बुवाई , कटाई , फसलों की रोपाई और मवेशियों की देखभाल भी करती हैं . उनके काम को कम महत्वपूर्ण नहीं आँका जा सकता . इसलिए गृहिणी की काल्पनिक आय का निर्धारण महत्वपूर्ण मुद्दा है .

एक वाहन दुर्घटना में एक दंपत्ति की मौत पर मुआवजा राशि तय करते हुए जस्टिस एनवी रमना , एस अब्दुल नजीर और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच गृहणियों की आमदनी को लेकर काफी दार्शनिक , तार्किक गंभीर और संवेदनशील नजर आई जो एक लिहाज से जरुरी भी था क्योंकि महिलाओं के प्रति आम नजरिया धर्म से ज्यादा प्रभावित है जो उन्हें दासी , शूद्र और पशुओं के बराबर घोषित करता है . लेकिन महसूस यह भी हुआ कि सबसे बडी अदालत के जेहन में परिवारों की संरचना और महिलाओं की स्थिति की 70 से लेकर 90 तक के दशक की तस्वीर की गहरी छाप है नहीं तो नए दौर की अधिकतर युवतियां नौकरीपेशा हैं और अपनी माओं , नानियों और दादियों के मुकाबले घर के काम जो अदालत ने शिद्दत से गिनाये न के बराबर जानती और करती हैं .

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और यह बात किसी सबूत की मोहताज भी नहीं है कि जागरूकता , शिक्षा क्रांति और कई धार्मिक , पारिवारिक व सामाजिक दुश्वारियों से निजात पाने के लिए मध्यमवर्गीय युवतियों की अपने पाँव पर खड़े होने की मज़बूरी और जिद ने उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर तो बना दिया है , लेकिन एवज में उनसे गृहिणी होने का फख्र या पिछड़ेपन का तमगा कुछ भी कह लें छीन लिया है . लेकिन इसकी एक और वजह है , भोपाल की एक गृहिणी वीणा सक्सेना का कहना है , अब परिवार छोटे होने लगे हैं और अधिकतर दंपत्ति 2 से ज्यादा बच्चों की परवरिश अफोर्ड नहीं कर पाते . बकौल वीणा वह जमाना गया जब लोग एक लड़के की चाहत में 5-6 बेटियां पैदा करने में हिचकते नहीं थे और उन्हें नाम मात्र को पढ़ाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी हुई मानकर किसी भी ऐरे गैरे कामचलाऊ लड़के से उनकी शादी कर देते थे . लड़कियों की बदहाली और दुर्दशा की एक बडी वजह भी यह थी कि लड़के की चाहत की शर्त पर पैदा की जातीं थीं .

यों बढ़ रहा आर्थिक मूल्य –

खुद वीणा जब ससुराल आईं थीं तो उन्हें अल सुबह से उठकर कोल्हू के बैल की तरह देर रात तक काम करना पड़ता था और उसका कोई मूल्याकंन नहीं करता था और यदा कदा करता भी था तो बस इतना कि बहू बहुत संस्कारी है और एमए बीएड पास होने के बाद भी सारे कामकाज कर लेती है .तब वे खुश कम होतीं थीं खीझती ज्यादा थीं कि जब रोटियां ही थोपना थीं तो बीएड क्यों किया यह काम तो अनपढ़ महिलाएं भी कर लेती हैं .

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जाहिर करने बाली वीणा की दोनों लड़कियां बीटेक करने के बाद जॉब कर रही हैं . बडी 27 वर्षीय अनन्या अहमदाबाद में एक साफ्टवेयर कम्पनी में 6 लाख रु के सालाना पैकेज पर कार्यरत है और उससे 2 साल छोटी सौम्या एक नेशनल बेंक में क्लर्क है उसे भी लगभग 6 लाख रु मिलते हैं .` दोनों अपनी मस्त और आजाद जिन्दगी जी रहीं हैं वीणा कहती हैं, लेकिन उन्हें घर के सारे कामकाज नहीं आते क्योंकि पढ़ाई के चलते न तो मैं उन्हें सिखा पाई और न ही उन्होंने कभी सीखने में दिलचस्पी दिखाई . उन्हें एहसास था कि वे इन कामों के लिए नहीं बनीं हैं` .

कोई 70 फ़ीसदी मध्यमवर्गीय परिवारों के पेरेंट्स को वीणा की तरह इस बात पर गर्व है कि उनकी बेटियां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं और इसके लिए उन्होंने उन्हें पढ़ने की सहूलियत बेटों के बराबर से दी है , परवरिश पर भी बेटों के बराबर खर्च किया है और मुकम्मल यानी आजकल के जमाने के मिजाज के हिसाब से आजादी भी दी है . इससे बेटियों का आत्मविश्वास बढ़ा है और पति और ससुराल बालों पर उनकी कोई खास मोहताजी नहीं रही है उलटे वे बहू की कमाई के मोहताज रहते हैं .

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इसमें कोई शक नहीं कि इन नौकरीपेशा युवतियों की रिस्क कम हुई है लेकिन नौकरी चाहे वह सरकारी हो या प्राइवेट में उन्हें हाड़तोड़ मेहनत करना पड़ती है .  इसका एक बड़ा फायदा उन्हें यह हुआ है कि घर के कामकाज यथा झाड़ू पोंछा बर्तन कपडे धोना और खाना नहीं बनाना पड़ता .  ये काम अब मशीनों और नौकरों के भरोसे होते हैं . आधी से ज्यादा युवतियां तो ये काम जानती भी नहीं क्योंकि मायके में उन्हें इनके लिए बाध्य करना तो दूर की बात है ट्रेनिंग भी नहीं दी गई इसीलए वे पढ़ पाई . यानी हुआ सिर्फ इतना है कि काम और मेहनत तो उन्हें करना पड़ रहे हैं लेकिन उसकी दिशा बदल गई है और पैसा सीधा उनके हाथ में आता है जिसके खर्च और इस्तेमाल का हक घर की व्यवस्था के हिसाब से उन्हें है .

कोई शक नहीं कि युवतियों का आर्थिक महत्त्व और मूल्याकन दोनों बढ़े हैं मुमकिन है आने बाले वक्त में कोई अदालत इनका भी आर्थिक विश्लेषण किसी मामले में करे लेकिन यह देखा जाना बेहद दिलचस्प बात है कि कमाऊ युवतियां शादी से पहले और बाद भी अभिभावकों की आर्थिक मदद करती हैं या नहीं और इस बारे में क्या सोचती हैं .

लेकिन पहले बात पेरेंट्स की –

जब कई नौकरीपेशा युवतियों से इस मुद्दे पर बात की गई तो लगभग सभी ने पेरेंट्स की आर्थिक मदद की इच्छा जताई लेकिन आधे से ज्यादा ने यह भी कहा कि माता पिता ने उन्हें काबिल तो बना दिया लेकिन वे उनसे पैसे नहीं लेते . वे इसे पाप तो नहीं पर गलत समझते हैं कि लड़की की कमाई से पैसा लिया जाए हालाँकि इस स्थिति को जनरेशन वार नहीं कहा जा सकता लेकिन इसे बेटियों के साथ नए तरीके का भेदभाव कहने से किसी तरह का गुरेज नहीं किया जा सकता . पहले जिस तरह लड़की के घर यानी ससुराल का पानी पीना भी अभिभावक पाप समझते थे अब यह बात पैसे लेने पर लागू होने लगी है .

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यह दलील सटीक भी है और जटिल भी कि जो पेरेंट्स लड़कियों की परवरिश और शिक्षा पर बराबरी से पैसा खर्च करते हैं, लाड़ दुलार में भी भेदभाव नहीं करते , आजादी भी देते हैं , उनकी  शादी में तो ज्यादा ही खर्च करते हैं और अब तो जायदाद में भी बेटियों का हक बेटों के बराबर हो गया है तो फिर उनसे बेटों की तरह आर्थिक मदद लेने में हिचकते क्यों हैं .  क्या वे बराबरी की बात महज दिखावे के लिए करते हैं और उनके मन में वे धार्मिक पूर्वाग्रह हैं जिनके तहत यह कहा जाता है कि तारेगा तो बेटा ही .

ये डायलोग हर घर में हर कभी सुनने मिल जाते हैं कि हमने तो कभी बेटे बेटी में भेदभाव किया ही नहीं , आजकल बेटियां बेटों से कम नहीं होतीं और दोनों में फर्क क्या है . अगर वाकई ऐसा है और इसे बेटियों पर एहसान वे नहीं समझते हैं तो फिर पैसे लेने पर भेदभाव क्यों बेटों से तो अधिकार पूर्वक पैसे ले लिए जाते हैं पर बेटी से नहीं .

भोपाल के शाहपुरा इलाके में रहने बाले एक सरकारी कर्मचारी नरेन्द्र शर्मा इस सवाल के जबाब में कहते हैं , बात सच है , न जाने क्यों जरूरत पड़ने पर बेटी से पैसे मांगने में हिचक होती है लेकिन बेटे से नहीं . खुद बेटी नेहा ने कई बार पैसे देने की पेशकश की लेकिन मैंने यह कहते मना कर दिया कि रखो अपने पास या फिर अपने लिए ज्वेलरी बगैरह ले लो . फिर कुछ सोचते वे कहते हैं इससे मुझे उसकी शादी के लिए गहने और कपडे लत्ते नहीं खरीदना पड़ेंगे यह खर्च 8 – 10 लाख रु से कम तो किसी भी सूरत में होता नहीं . एक तरह से मेरा ही एक बड़ा खर्च कम हो रहा है .

निश्चित रूप से यह एक टरकाऊ और मन बहलाऊ जबाब है क्योकि कोई माँ बाप अपने बेटे से यह नहीं कहते कि अपनी पत्नी के लिए गहने बगैरह खरीद लो उलटे इस और ऐसे कई कामों के लिए उनसे पैसे ले लेते हैं .  इसे बेटों और बेटियों दोनों के साथ भेदभाव नहीं तो क्या समझा जाए . यह दौहरा मापदंड लड़कियों को फिजूलखर्च भी बना सकता है और जमा या निवेश किया गया उनका पैसा दहेज़ की शक्ल में ससुराल चला जाता है जो कि सरासर गैर जरुरी है .

मुंबई के एक इंटरनेश्नल बेंक में नौकरी कर रही तृप्ति यादव का कहना है कि उसके पापा पेंशनर हैं .  मम्मी पापा दोनों अकेले रहते हैं लिहाजा पैसों की जरुरत आमतौर पर उन्हें नहीं पड़ती मुझसे तो वे कुछ लेते ही नहीं लेकिन यूएस में रहकर जॉब कर रहे भाई से कभी कभार ले लेते हैं . शिवानी चाहती है कि मम्मी पापा भोपाल छोडकर उसके पास रहें जिससे उसे उनकी चिंता न हो इस पर न तो उसके पति को एतराज है और न ही विधवा सास को उलटे वे तो यह कहती हैं कि समधी समधन भी आ जाएँ तो उन्हें सहूलियत रहेगी वक्त अच्छे से कटेगा नहीं तो हम दोनों के आफिस चले जाने के बाद वे मुश्किल से दिन काटती हैं . लेकिन शिवानी के रूढ़िवादी माँ बाप की जिद यह है कि न तो बेटी से पैसा लेंगे और न ही उसके घर जाकर रहेंगे .

अब बात युवतियों की –

मानसी , सोनिया और साक्षी जैसी नव युवतियों सहित विनीता कुमार और इंदिरा जैसी महिलाएं जिनकी गिनती दोनों पीढ़ियों में की जा सकती है इस बात की पुरजोर वकालत करती हैं कि बेटियों को भी घर की जिम्मेदारियों में हाथ बटाना चाहिए और पेरेंट्स की आर्थिक मदद भी करना चाहिए . इस बात के पीछे सभी के अपने भावुक तर्क हैं जो फेमिनिज्म की नई परिभाषा गढ़ते नजर आते हैं .  यानी बात जमीनी स्तर की है काल्पनिक साहित्य और तथाकथित स्त्री विमर्श से इसका कोई सम्बन्ध नहीं .

मध्यप्रदेश मध्यक्षेत्र विद्धुत वितरण कम्पनी की एक अधिकारी अर्चना श्रीवास्तव की मानें तो भोपाल के एक हजार से भी ज्यादा घरों बाले मीनाल रेसीडेंसी के जिस इलाके में वे रहती हैं वहां लगभग सभी घरों की बेटियां दूसरे शहरों में रहते नौकरी कर रही हैं जिससे पेरेंट्स उनके भविष्य को लेकर निश्चिन्त हैं . ये पेरेंट्स सीधे बेटियों से आर्थिक मदद नहीं लेते लेकिन इनके लिए कुछ करने का जज्बा लिए बेटियां अपने तरीके से इनकी मदद करती रहती हैं . मम्मी पापा के  जन्मदिन और शादी की वर्षगांठ सहित ये महंगे उपहार वे तीज त्योहारों के अलावा बेमौके भी ऑन लाइन शापिंग के जरिये भेजती रहती हैं .

`जब मम्मी सीधे पैसे न लें तो यह एक बेहतर रास्ता है , 26 वर्षीय अदिति जैन बताती है , इससे उनकी वे जरूरतें पूरी हो जाती हैं जिन पर वे खर्च करने में कंजूसी बरतते हैं . गुरुग्राम की एक कम्पनी में नौकरी के रही अदिति जब भी घर भोपाल आती है तो मम्मी पापा को 40 – 50 हजार की खरीददारी जरुर कराती है महंगे स्मार्ट फोन के अलावा कई लक्झरी आइटम वह उन्हें दिला चुकी है .

अदिति की तरह ही कोंपल राय को भी नौकरी करते 7 साल हो चुके हैं . जब उसने पहली सेलरी पापा को दी तो उनकी आखों में आंसू आ गए थे लेकिन उन्होंने सिर्फ एक रुपया लिया . कोंपल घर की माली हालत से वाकिफ थी और पापा के इस सनातनी स्वभाव से भी कि वे उससे पैसे नहीं लेंगे तो उसने समझदारी दिखाते पापा से यह वादा ले लिया कि छोटे भाई की पढ़ाई का खर्च वह उठाएगी .  अब एमसीए की डिग्री लेने के बाद भाई का जॉब भी लग गया है और वह अक्सर कहता है दीदी तुम्हारा सारा कर्ज जल्द उतार दूंगा तुम्हारी जगह अगर बड़ा भाई होता तो शायद इतना कुछ नहीं करता .

उलट इसके कोंपल यह मानती है कि वह पापा के कर्ज से मुक्त हो गई जिन्होंने अपनी जरूरतों में कटोती कर उसकी पढ़ाई पर पैसा खर्चने में कोई हिचक कभी नहीं दिखाई अगर यह उनकी जिम्मेदारी थी तो एवज में उसका भी कोई फर्ज बनता था जो उसने पूरा किया और अगर यह निवेश था तो बहुत स्मार्ट था .

हैरत और दिलचस्पी  की बात यह भी है कि मध्यमवर्ग से नीचे निम्न आय वर्ग में स्थिति उलट है . बदलाब उसमें भी आये हैं लेकिन लड़कियों से आर्थिक मदद लेने में माँ बाप कतई नहीं हिचकते तय है प्रचिलित परम्पराओं और रिवाजों पर उनकी जरूरतें भारी पड़ती हैं . भोपाल के कारोबारी इलाके एमपी नगर में स्थित डीबी माल के एक शो रूम में कार्यरत मालती की मानें तो उसकी पूरी तनख्वाह घर खर्च में चली जाती है क्योंकि पापा की कमाई पूरी नहीं पड़ती . हाई स्कूल तक पढ़ी लिखी मालती शायद ज्यादा पढ़ी लिखी मध्यमवर्गीय युवतियों से ज्यादा मदद माँ बाप की कर रही है फर्क सिर्फ आमदनी , स्टेटस और शिक्षा का है . इस माल में काम कर रही कोई 40 महिलाओं और युवतियां नौकरी इसीलिए कर रहीं हैं कि घर चलाने में आर्थिक योगदान दे सकें .

यानी युवतियों का आर्थिक महत्व और उपयोगिता दोनों बढ़ रहे हैं लेकिन बकौल सुप्रीम कोर्ट उनका आर्थिक विश्लेषण किया जाना अहम है तो साफ़ दिख रहा है कि गृहणियों के मुकाबले युवतियां आगे हैं और पेरेंट्स को एक बडी चिंता से भी दूर रखे हुए हैं .

मदद करने से पहले –

बेटियां घर की जिम्मेदारी में माँ बाप का हाथ बंटाए यह स्वागत योग्य बात है लेकिन इसमें उन्हें कुछ सावधानियां भी रखनी चाहिए मसलन –

– जिस तरह पेरेंट्स बच्चों को पैसा देने से पहले यह सुनिश्चित करते हैं कि संतान पैसे का बेजा इस्तेमाल तो नहीं कर रही उसी तरह बेटियों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कहीं माँ बाप उनके पैसे को फिजूलखर्ची में तो नहीं उड़ा रहे .

– अगर पिता जुआरी या शराबी हो तो मदद सोच समझ कर करें और उसका तरीका बदलें नगद पैसे देने के बजाय जरूरत का सामान दिलाएं .

– माँ बाप अगर धार्मिक कार्यों में पैसा खर्च करते हों तो उनकी मदद का मतलब अपने पैसे को बर्बाद करना है .

– समाज और रिश्तेदारी में झूठी शान और दिखावे पर खर्च करने बाले पेरेंट्स को भी सोच समझकर पैसा देना चाहिए .

– शादी के बाद पति की सहमति और जानकारी में माँ बाप की आर्थिक सहायता करनी चाहिए .

– अगर ज्यादा बचत हो जाए तो उसे कहीं न कहीं इन्वेस्ट कर देना चाहिए .

– शादी के पहले नौकरी के दौरान अगर पेरेंट्स ने पैसा न लिया हो तो उन्हें कोई महंगी लेकिन जरुरत का आइटम गिफ्ट कर देना चाहिए . वर्तिका ने बेंक की 6 साल की नौकरी के दौरान कोई 10 लाख रु बचाए थे जैसे ही शादी तय हुई तो उसने पापा को 5 लाख की कार तोहफे में दी . यह पापा का सपना था , वह बताती है कि अपने घर भी कार हो लेकिन उनकी पूरी सेलरी हम तीनों भाई बहिनों की परवरिश और पढ़ाई पर खर्च हो जाती थी इसलिए मैंने यह ठीक समझा कि इतना नगदी बजाय ससुराल ले जाने के उन माँ बाप पर खर्च किया जाए जिन्होंने बडी उम्मीदों से हमें काबिल बनाया .

बिलाशक बेटियां आगे बढ़ रहीं हैं पेरेंट्स की आर्थिक सहायता भी कर रहीं हैं और परिवार व समाज की दीगर जिम्मेदारियों में भी हाथ बटा रहीं हैं लेकिन यह न कहने की कोई वजह नहीं कि बेटे और बेटी में भेदभाव अभी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ है जिसकी वजह धर्मिक मान्यताएं , सामाजिक रूढ़ियाँ और सड़ी गली परम्पराएँ हैं जिन्हें जड़ से उखाड़ा जाना जरुरी है . इस बाबत नए दौर की युवतियों को खासतौर से सजग रहना होगा और जिम्मेदारियां निभाने के एवज में उन्हें अपने हक मांगना नहीं बल्कि छीनना होंगे .

                             इनका कहना है

 पेरेंट्स हिचकिचाएं नहीं – मानसी केशरी – मध्यप्रदेश के खरगोन जिले की बडवाह तहसील की मानसी केशरी ने बीकाम ओनर्स करने के बाद एकच्युरियल साइंस से पोस्ट ग्रेज्युएट डिप्लोमा कोर्स किया है .मानसी के पिता एलआईसी में अधिकारी हैं और माँ शिक्षिका हैं . मानसी कहती हैं अभी तक मैंने कभी इस बारे में सोचा ही नहीं था कि मुझे भी पेरेंट्स की आर्थिक जिम्मेदारियों में हाथ बंटाना चाहिए मैं जो कुछ भी हूँ उन्हीं की बदौलत हूँ हालाँकि मुझे लगता नहीं कि कभी पेरेंट्स को मेरी आर्थिक सहायता की जरुरत पड़ेगी लेकिन बात सिर्फ मेरे अकेले की नहीं बल्कि तमाम बेटियों की है तो इस नाते मैं कहूँगी कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बेटियों को पेरेंट्स की मदद करना चाहिए .

पेरेंट्स को भी चाहिए कि वे बेटियों से उनकी कमाई के पैसे लेने में हिचकिचाएं नहीं और उनकी भावनाओं का सम्मान करें तभी बेटों से बराबरी का एहसास उन्हें होगा .और अकेले आर्थिक ही नहीं बल्कि दूसरी जिम्मेदारियों पर भी यह बात लागू होती है जिनसे बेटियों को अभी भी दूर रखा गया है .

 अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं लड़कियां – वैदेही व्यास – कम्पनी सेकेट्री का कोर्स कर रही भोपाल की वैदेही व्यास के पिता राज्य चुनाव आयोग में अधिकारी हैं जिनसे उसके सम्बन्ध दोस्ताना भी हैं . वैदेही इकलौती संतान है इसलिए खुद को बेटा ही मानती है . वह घर के अलावा बाहर के काम भी शिद्दत और पूरी जिम्मेदारी से करती है . वह भी सिर्फ आर्थिक ही नहीं बल्कि दूसरी सभी जिम्मेदारियों में हाथ बटाने की बात कहती है . बकौल वैदेही जब मम्मी पापा ने मुझे कभी लड़की होने का एहसास नहीं होने दिया तो मैं क्यों लड़की होने के पचड़े में पडू . मेरी कमाई उन्हीं की होगी और मेरी इच्छा है कि मम्मी पापा उसे उतने ही अधिकारपूर्वक लें जितना अधिकार से मैं उनसे लेती रही हूँ .

हालात तेजी से बदल रहे हैं , वह कहती है अब परिवार और समाज सिर्फ लड़कों के भरोसे नहीं हैं नए जमाने की लड़कियां देश की अर्थव्यवस्था की भी रीढ़ हैं इसका भी मूल्यांकन होना चाहिए . प्राइवेट कम्पनियों के साथ साथ युवतियां सरकारी नौकरियों में भी बराबरी से हैं और ज्यादा लगन और मेहनत से काम करती हैं इसके बाद भी उन्हें अपेक्षाकृत कम वेतन मिलता है इस विसंगति को दूर किया जाना चाहिए .

धर्म जिम्मेदार है – साक्षी सिंह – अजमेर एक कालेज से बीटेक कर चुकी साक्षी सिंह के पिता रेलबे में अशोकनगर में कार्यरत हैं . बकौल साक्षी वे घोर नास्तिक हैं और महिलाओं के साथ होने बाले भेदभावों का जिम्मेदार धर्म को ही ठहराते हैं जो गलत भी नहीं है . जल्द ही एक नामी साफ्टवेयर कम्पनी में नौकरी ज्वाइन करने जा रही साक्षी भी पापा की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहती है आज जो अधिकार महिलाओं के मिले हैं वे भीमराव अम्बेडकर और सावित्री फुले जैसी हस्तियों की कोशिशों और त्याग की देन हैं नहीं तो कट्टरवादी तो औरत को गुलाम और  पैर की जूती करार देते हैं .

साक्षी कहती है जब पेरेंट्स की आमदनी पर हम अपना पूरा हक समझते उसका उपयोग करते हैं तो वे भी संतानों चाहे वह बेटा हो या बेटी की कमाई के पूरे हकदार हैं . मेरे पापा ने कहा सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दो लेकिन अब कहते हैं समाज के बारे में भी सोचो और महत्वपूर्ण घटनाओं का विश्लेषण करती रहो . सुप्रीम कोर्ट को महिलाओं के धार्मिक शोषण पर भी टिप्पणियां करते रहना चाहिए जो भेदभाव की असल जड़ है .

अशक्तता में साथ दें – डा विनीता कुमार –  पेशे से होम्यो चिकत्सक इन्दोर की विनीता कुमार कहती हैं जब माँ बाप ने बेटियों से कोई भेदभाव नहीं किया और सब कुछ बराबरी से दिया और किया तो बेटियों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे खासतौर से वृद्धावस्था में पेरेंट्स का सहारा बने . माँ बाप की जिम्मेदारी सिर्फ बेटों के सर न डाली जाए . विनीता कहती हैं कि उन्होंने कई मामले ऐसे देखे हैं जो रोज मीडिया की सुर्खियाँ भी बनते हैं कि समर्थ संतानों के रहते भी उन्हें जिन्दगी की शाम वृद्धाश्रमों में गुजारना पड़ रही है . अगर बेटी समर्थ है और बूढ़े माँ बाप के लिए कुछ नहीं कर रही है तो उसमें और बेटे में फर्क क्या .

विनीता मानती हैं कि बेटी की शादी के कई सालों बाद तक पेरेंट्स को पैसों और दूसरी मदद की जरुरत आमतौर पर नहीं पड़ती है लेकिन जब वे अशक्त होने लगते हैं तब बेटियों को बिना किसी का मुंह ताके या इंतजार किये खुद आगे आकर उनकी सेवा शुमार करना चाहिए इससे समाज एज्युकेट होगा और बेटियों को भी आत्मसंतोष रहेगा कि उन्होंने पेरेंट्स को एक बेहतर रिटर्न गिफ्ट दी .

क्रूर और लालची भी होती हैं बेटियां – इंदिरा शर्मा – विदिशा में श्री हरि वृद्धाश्रम सफलतापूर्वक संचालित कर रहीं इंदिरा शर्मा का अनुभव अलग है . बकौल इंदिरा बेटियां पेरेंट्स की जिम्मेदारियों में हाथ बंटाएं यह बड़े बदलाब का संकेत है लेकिन कुछ एहतियातों की भी जरूरत है . उनके आश्रम में कुछ दिन पहले एक ऐसी वृद्धा शहर के संभ्रांत लोग भर्ती करा गए थे जिनके पास कोई एक करोड़ की चल अचल संपत्ति थी लेकिन इकलौती बेटी ने उन्हें सार ( मवेशियों के रहने की जगह ) में धकेल दिया और खाने पीने तक मोहताज कर दिया .

यह वृद्धा बेटी के खिलाफ क़ानूनी काररवाई करने तैयार नही .  यह एक सबक है इंदिरा कहतीं हैं कि रिश्ते हमेशा अर्थप्रधान रहे हैं और बेटियां भी बेटों से कम क्रूर और लालची नही होतीं जो खुद की कमाई तो दूर की बात है खुद पेरेंट्स को उनकी जायदाद और कमाई से वंचित कर देती हैं हालाँकि अभी ऐसा आमतौर पर नहीं हो रहा है लेकिन पेरेंट्स को चाहिए कि वे अपनी जायदाद जीवित रहते बच्चों के नाम न करें नहीं तो बुढ़ापा किसी वृद्धाश्रम में भी काटना पड़ सकता है .

मेरी जीवनसाथी -भाग 2 : क्यों पुराने दिनों को याद कर रहा था नवीन

नौकर ने बताया था, ‘डाक्टर साहब स्टेशन गए हैं, अपने बेटे को लेने. वह शिमला में पढ़ता है. छुट्टियों में आ रहा है.’

डाक्टर साहब की पत्नी कहां हैं, पूछने से पूर्व मेरी दृष्टि फ्रेम में जड़ी एक तसवीर पर चली गई. सुहागन स्त्री की तसवीर जिस पर फूलों की माला पड़ी थी. बगल में ही डा. नवीन की भी फोटो रखी थी.

नौकर की खामोशी मुझे नवीन की उदासी समझा गई. उस दिन पहली बार नवीन के प्रति एक सहानुभूति की लहर ने मेरे अंदर जन्म लिया था.

2-4 दिनों के बाद ही बाबूजी घर आ गए. मैं ने 2 बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया. खुद 11वीं तक पढ़ी थी. कुछ पैसे आने लगे. मां ने अचार, बडि़यां, पापड़ और मसाले बनाने का काम शुरू किया.

बाबूजी दुकानदारी के साथ प्रैस के काम का भी अनुभव रखते थे. इसलिए नवीन ने उन्हें एक प्रैस में छपाई का काम दिलवा दिया. फिर तो डुगडुग करती हमारी गृहस्थी चल निकली.

एक दिन एक खूबसूरत युवक हमारे घर का पता पूछता आ गया. उसे बाबूजी से काम था, लेकिन मु झे देखते ही बोला, ‘आप संगीता हैं न?’

‘हां, पर आप?’

‘मैं चंदन हूं, नवीन भैया का छोटा भाई.’

‘ओह, नमस्ते,’ मैं ने नजरें नीची कर के कहा तो वह मुसकरा दिया. उस की वह मुसकराहट मुझे अंदर तक छू गई. नवीन के लिए एक बार मेरे मन में सहानुभूति की लहर उठी थी, पर दिल कभी नहीं धड़का था. किंतु आज चंदन की काली आंखों के आकर्षण से न केवल मेरा दिल धड़कने लगा, बल्कि मैं स्वयं मोम सी पिघलने लगी.

नवीन दूसरे दिन आ कर हमें निमंत्रणपत्र दे गए थे. चंदन ने डाक्टरी पूरी कर ली थी. उन के बेटे मोहित का जन्मदिन भी था. उन दोनों की खुशी में वे एक पार्टी दे रहे थे.

फरजाना का सितारों से जड़ा गुलाबी सूट, जो अच्छे लिबास के नाम पर एकमात्र पहनावा था, पहन कर और नकली मोतियों का सैट गले में डाल कर मैं तैयार हो गई थी. मां ने मु झे गर्व से ऊपर से नीचे तक निहारा था. मैं लजा गई थी. बाबूजी के साथ मैं नवीन के घर पहुंची.

दरवाजे पर ही चंदन अपने दोस्तों के बीच खड़ा दिख गया. मेरी तरफ उस की पीठ थी लेकिन मैं चाहती थी कि वह मेरी तरफ देखे. मेरी सुंदरता उस पर असर करे.

नवीन ने मुझे प्यार से देखा था. फिर बाबूजी को और मुझे लिवा कर अंदर आ गए थे. गुजरते हुए चंदन के मित्रों ने मु झे देखा तो चंदन की भी नजर घूम गई. अवाक् और हतप्रभ सा वह मु झे देखता ही रह गया.

जाने क्यों उस का या उस के दोस्तों का यों देखना मुझे बुरा नहीं लगा. आज पहली बार मेरे सौंदर्य ने लोगों को ही नहीं, मुझे भी अभिभूत किया हुआ था. फिर पूरी पार्टी के बीच किसी न किसी बहाने से चंदन मेरे आसपास मंडराता रहा. मु झे स्वयं उस का सामीप्य बहुत अच्छा लग रहा था.

वह उम्र थी भी तो ऐसी जो किसी के बस में नहीं होती. न कालेज, न स्कूल, न सखीसहेलियां. दिल का हाल सुनाती भी तो किसे? सबकुछ तो उस पुराने शहर में छूट गया था.

रातभर करवटें बदलते हुए मैं ने चंदन के ही सपने देखे. जागते हुए सपने, उस का नीला सूट, गोरा रंग, मुसकराहट और आंखों का चुंबकीय आकर्षण…बारबार मुझे विभोर कर देते.

नवीन के प्रति मेरे मन में श्रद्धा थी, जिसे देख कर मन में शीतलता उत्पन्न होती थी. मगर चंदन को देखते ही गले में कुछ फंसने लगता था. पूरा शरीर रोमांचित और गरम हो उठता. शायद यह प्रथम प्रेम का आकर्षण था.

उस दिन हलकी घटा छाई हुई थी. शाम का समय था. बच्चे भी पढ़ने नहीं आए थे. बाबूजी प्रैस गए हुए थे और मां अचारबडि़यों का हिसाब करने दुकानदार के पास.

मैं अकेली कमरे में लेटी चंदन के ही सपने में खोई थी. पता नहीं, मैं गलत थी या सही. पर चंदन को भुला पाना अब मेरे बस में नहीं था. इधर चंदन एकाध बार किसी न किसी बहाने घर आ चुका था. तब मां या बाबूजी होते.

तभी दरवाजा खटका. अम्मा जल्दी आ गईं, सोचते हुए मैं ने दरवाजा खोला तो सामने चंदन खड़ा था. उस के शरीर से खुशबू का एक  झोंका आया जो मेरे संपूर्ण अस्तित्व को भिगो गया.

‘अंदर आ सकता हूं?’ मुसकरा कर उस ने पूछा.

‘हां, आइए.’

मैं चाय बनाने के लिए उठी तो चंदन ने मुझे रोक लिया, ‘मैं तुम से मिलने आया हूं, चाय पीने नहीं. सोचा था, आज मां होंगी तो साफसाफ बात कर के भैया से कह कर तुम्हें मांग लूंगा.’

मैं आश्चर्य एवं लज्जा से लाल पड़ गई थी. मेरी मुराद इतनी शीघ्र पूरी हो जाएगी, ऐसा तो सोचा भी न था.

चंदन ने मेरी ठोड़ी उठा कर मेरी आंखों में  झांका, ‘भैया से तुम लोगों के विषय में सबकुछ जान चुका हूं. तुम बताओ, मैं तुम्हें पसंद हूं?’

Crime Story: कसरत के लिए मशक्कत

लेखक-रोहित सिंह

  सौजन्या-सत्यकथा

12नवंबर, 2020 की शाम देहरादून के विकास नगर कोतवाली थाने के प्रभारी निरीक्षक राजीव रौथान के मोबाइल फोन पर किसी महिला ने फोन किया. आवाज से लग रहा था कि महिला डरीसहमी घबराई हुई थी.

महिला ने रोते हुए कहा, ‘‘सर मेरा नाम रीमा है और मैं हरबर्टपुर वार्ड नंबर-2, आदर्श विहार में रहती हूं. मेरे पति राकेश ने आत्महत्या कर ली है. उन की लाश बाथरूम में पड़ी हुई है. प्लीज सर, आप आ जाइए.’’

सूचना मिलते ही प्रभारी निरीक्षक राजीव रौथान पुलिस टीम के साथ आदर्श विहार की तरफ रवाना हो गए. कुछ ही देर में वह रीमा द्वारा बताए पते पर पहुंच गए.

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रीमा घर पर ही मिली. वह पुलिस को बाथरूम में ले गई, जहां उस के पति राकेश नेगी की लाश पड़ी थी. रीमा ने बताया कि यह लाश उस के पति की है.

राकेश की लाश बाथरूम के बाथटब में पड़ी थी. उस के हाथ की नस कटी हुई थी, जिस कारण फर्श पर फैला खून गाढ़ा पड़ कर सूख चुका था और गले पर धारदार हथियार से गोदने के निशान भी साफ दिख रहे थे. उस का गला भी कटा हुआ था.

मृतक के हाथों पर मजबूती से दबोचे जाने के लाल निशान साफ दिखाई दे रहे थे. पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि मृतक फौजी था. वह गढ़वाल राइफल में हवलदार के पद पर  था और उस की पोस्टिंग जम्मू में थी. राकेश पिछले महीने अक्तूबर की 14 तारीख को छुट्टियों पर घर आया था.

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लाश देख कर लग रहा था कि उस की मौत हुए 12 घंटे से ज्यादा हो गए होंगे. पुलिस को राकेश के आत्महत्या के एंगल पर संदेह हुआ. उस के शरीर पर चोट के निशान और उस की पत्नी द्वारा पुलिस को आत्महत्या की सूचना देरी से देने की बात ने संदेह को और गहरा कर दिया.

राजीव रौािन को यह मामला आत्महत्या का कम और हत्या का अधिक लग रहा था. बल्कि शरीर के निशान देख कर उन्हें लगने लगा कि हत्या में एक से अधिक लोग शामिल रहे होंगे. उन्होंने इस बारे में वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दे दी.

इस केस को सुलझाने के लिए एसएसपी ने एक पुलिस टीम बनाई, जिस में सीओ धीरेंद्र सिंह रावत, थानाप्रभारी राजीव रौथान, थानाप्रभारी (कालसी) गिरीश नेगी, एसआई रामनरेश शर्मा, जितेंद्र कुमार आदि को शामिल किया गया.

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मौके की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने मृतक फौजी के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि राकेश नेगी ने खुदकुशी नहीं की थी, बल्कि उस की हत्या की गई थी. हत्या का मामला सामने आने पर पुलिस तहकीकात में जुट गई. पुलिस ने मृतक की पत्नी रीमा नेगी को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

सख्ती से की गई इस पूछताछ में रीमा ने पति की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. सख्ती से की गई पूछताछ में घटना से जुड़े हैरान करने वाले सच सामने आए, जिस ने सारी सच्चाई सामने  ला दी.

बीते साल की बात है, देहरादून के हरबर्टपुर में रहने वाली 27 वर्षीय रीमा अपनी बेस्वाद जिंदगी से काफी उकता चुकी थी. रीमा का पति राकेश नेगी फौज में था. दोनों की शादी साल 2015 में हुई थी. लेकिन शादी के बाद दोनों ज्यादातर एकदूसरे से दूर ही रहे थे.

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राकेश अपने अधिकतर समय में रीमा से दूर किसी दूसरे राज्य में ड्यूटी पर रहता था. बहुत कम मौका होता, जब वह घर पर आता. ऐसे में रीमा को लगता कि उस की शादी तो हुई है, लेकिन शादी के बाद पति से मिलने वाली खुशी के लिए वह कईकई महीनों तक तरसती रहती है.

राकेश घर आता भी था तो बहुत कम समय के लिए आता, फिर वापस चला जाता. जिस में रीमा की शारीरिक हसरतें पूरी नहीं हो पाती थीं.

सब कुछ था रीमा के पास, अच्छाखासा शहरी घर, खानेपीने की कोई कमी नहीं, फौजी की पत्नी होने का सम्मान, जहां चाहे घूमनाफिरना. लेकिन नहीं थी तो वह खुशी, जो शादी के बाद औरत अपने पति से चाहती है. रीमा अपनी जवानी की ऐसी दहलीज पर थी, जहां पर पहुंच कर पत्नी की खुशी पति के बाहों में होती है.

जवान रीमा की जवानी उसे अंदर से कचोटती थी, वह अपने अकेलेपन से खिन्न थी. नयननक्श से सुंदर रीमा खुद की सुंदरता को किसी पर न्यौछावर नहीं कर पा रही थी. वह अपने घर में खुद को अकेला महसूस करने लगी थी.

इस से बचने के लिए रीमा ने सोचा कि अपने अकेलेपन को दूर करने लिए वह अपना समय ऐसी जगह लगाए, जहां उसे यह सब याद ही न आए. इस के लिए उस ने गार्डनिंग, घूमनाफिरना, नई चीजें सीखना और जिम जाना शुरू कर दिया.

यह बात सही है, जब जिंदगी में व्यस्तता होती है तो ध्यान बंट जाता है. लेकिन रीमा ने जैसा सोचा था, ठीक उस से उलटा हो गया. जिस से बचने के लिए उस ने खुद को व्यस्त रखने की कोशिश की, वह उलटा उस के पल्ले बंध गया और ऐसा बंधा कि उस ने सारी हदें पार कर दीं.

पिछले साल रीमा ने विकास नगर के जिस ‘यूनिसेक्स जिम अकैडमी’ में जाना शुरू किया था, वहां उस की मुलाकात 25 वर्षीय शिवम मेहरा से हुई. शिवम उस जिम में ट्रेनर था. सुंदर चेहरा, सुडौल बदन, लंबी कदकाठी, आकर्षक शरीर. जवान मर्द की सारी खूबियां थीं उस में.

शिवम मेहरा विकास नगर में कल्यानपुरी का रहने वाला था. रीमा शिवम के डीलडौल और शरीर को देख कर पहली नजर में ही उस की ओर आकर्षित हो गई. लेकिन उस ने अपनी इच्छा जाहिर नहीं होने दी.

शिवम जिम का ट्रेनर था. उस का काम वहां आए लोगों को एक्सरसाइज के लिए ट्रेनिंग देना था. शिवम जब रीमा की हेल्प के लिए उस के करीब आता, तो तनबदन में मानो बिजली सी कौंध जाती. शिवम की हाथ या कमर पर हलकी सी छुअन भी शरीर में सिहरन पैदा कर देती. यह बात शिवम भी अच्छे से समझ रहा था कि उस के छूने भर से रीमा मदहोश हो जाती है.

लगभग 15 दिन बाद एक रात रीमा के वाट्सऐप पर एक अनजान नंबर से ‘हेलो’ का मैसेज आया. रीमा ने जानने के लिए फटाफट उस नंबर की प्रोफाइल फोटो देखी तो उस की आंखें चमक उठीं. चेहरे पर मुसकान खिल गई. शरीर झनझना गया, वह उस का जिम ट्रेनर शिवम था.

रीमा ने फटाफट रिप्लाई करते हुए ‘हाय’ लिख दिया. थोड़ी देर के लिए उस के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. मानो धड़कन, डर और खुशी दोनों का भाव साथ दे रही हों, जो उस के तनबदन में सिहरन पैदा कर रहे थे. शिवम ने रिप्लाई में लिखा, ‘‘सौरी, ज्यादा रात हो गई, आप को परेशान किया.’’

रीमा ने तुरंत जवाब देते हुए लिखा, ‘‘कोई बात नहीं, वैसे भी यहां मुझे रात में परेशान करने वाला कोई नहीं है.’’रीमा का मैसेज पढ़ते ही शिवम की धड़कनें तेज हो गईं. इस बार डर और खुशी के भावों की बारी शिवम की थी. वह रीमा की डबल मीनिंग बात को समझ गया था, उस ने बात आगे बढ़ाते हुए लिखा, ‘‘क्यों, क्या हुआ, आप के हसबैंड कहां हैं?’’

रीमा ने जवाब में लिखा, ‘‘क्यों, तुम्हें मेरे हसबैंड की बड़ी चिंता है, मेरी नहीं?’’‘‘हसबैंड की नहीं, आप की ज्यादा चिंता है. कल जिम बंद रहेगा, यही बताने के लिए मैं ने मैसेज किया है ताकि आप परेशान न हों.’’ शिवम ने जवाब दिया. रीमा ने ‘ओके’ लिखा तो शिवम ने तुरंत लिख दिया, ‘‘अगर आप आना चाहें तो मैं आप के लिए जिम स्पैशली खुलवा दूंगा.’’

दोनों की ये बातें वाट्सऐप पर देर रात तक चलती रहीं. जिम खुला तो शिवम अपना सारा ध्यान रीमा पर ही देने लगा. वह रीमा के करीब आने की कोशिश करता. रात में होने वाली बात से दोनों में एकदूसरे के करीब आने की हिम्मत बढ़ गई थी.

शिवम जानबूझ कर रीमा को छूने की कोशिश करता. ऐसीऐसी एक्सरसाइज कराता, जिस में उसे ज्यादा से ज्यादा छूने का मौका मिले. इस में रीमा को भी कोई ऐतराज नहीं था. वह अंदर से और अधिक बेचैन थी. रीमा के मन में शिवम की बाहों में सिमटने की हसरत जागने लगी थी.

एक दिन रीमा ने शिवम को अपने घर खाने पर बुलाया. रीमा का घर हमेशा की तरह खाली था. शिवम यह जानता था और एक मंशा बना कर तैयारी के साथ वहां गया था. रीमा उस दिन बहुत सजीधजी थी. जिसे देख कर शिवम खुश था.

रीमा जब से जिम जाने लगी थी, तब से काफी खुश थी. लेकिन शिवम के घर आने पर वह सातवें आसमान पर पहुंच गई थी, मानो उस की लंबे समय की हसरत पूरी हो जा रही थी. शिवम भी इसी इंतजार में था. दोनों खाने के लिए साथ में बैठे. शिवम ने खाना खाने के बाद बात छेड़ते हुए रीमा को कहा, ‘‘रीमाजी, वैसे आप जिम आना छोड़ दीजिए.’’

‘‘क्यों?’’ रीमा ने पूछा.  ‘‘वो क्या है न, आप का शरीर पहले ही इतना परफेक्ट है, आप को जिम की क्या जरूरत है?’’

रीमा यह सुन कर शरमा गई, उस के चेहरे पर लालिमा छा गई, उस ने जवाब में आंखें नीचे करते हुए कहा, ‘‘मैं तो वहां तुम्हारे लिए आती हूं.’’ फिर इस बात को मजाक का लहजा देते हुए वह जोर से हंसने लगी.

लेकिन शिवम समझ गया था रीमा की इस बात में हकीकत छिपी है. उस ने रीमा से कहा, ‘‘रीमाजी, अगर आप ने आज साड़ी नहीं पहनी होती तो आप को यहीं जिम की प्रैक्टिस करवा देता, वैसे भी आज नए टिप्स हैं मेरे पास आप के लिए.’’

‘‘इस में कौन सी बड़ी बात है, कहो तो अभी उतार दूं.’’ रीमा ने तुरंत जवाब देते कहा’

यह सुनते ही शिवम समझ गया कि रीमा ने अपनी बात छेड़ दी है अब बारी शिवम की थी. शिवम ने भी चांस गंवाए बगैर कह दिया, ‘‘चलो फिर बैडरूम में, वहां वह सब होगा जो आप चाहती हैं और जो मैं चाहता हूं.’’

यह सुन कर रीमा मदहोश हो गई थी. उस ने शिवम को झट से गले लगा लिया. शिवम ने भी उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया. जिस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. रीमा भूल गई कि उस की शादी राकेश के साथ हो चुकी है. वे दोनों एकदूसरे की बाहों में गोते लगाते रहे.

इस के बाद यह सिलसिला यूं ही चलता रहा. आमतौर पर रीमा का घर खाली ही रहता था. जहां वे जब चाहे मिल लिया करते. कभीकभी शिवम रीमा को जिम में सुबहसुबह जल्दी बुला लिया करता था. जहां वे अनीति की गहराइयों में गोते लगाते.

कोई हकीकत लंबे समय तक दबी जरूर रह सकती है, लेकिन छिप नहीं सकती. और यही हुआ रीमा और शिवम के साथ. लौकडाउन के बाद रीमा का पति राकेश जम्मू से छुट्टी ले कर 14 अक्तूबर को अपने घर देहरादून आया.

घर आ कर उसे रीमा का व्यवहार अलग सा लगा. अब रीमा पहले जैसी रीमा नहीं थी. जहां पहले रीमा राकेश के इर्दगिर्द घूमती थी, उसे हर चीज पूछती थी, अब वह राकेश पर ध्यान नहीं दे रही थी.

वह फोन पर ज्यादा रहने लगी थी. देर रात तक वह फोन पर चैटिंग करती थी. राकेश जब रीमा से पूछता कि कौन है तो वह गुस्सा हो जाती.

रीमा के साथ सहवास में बनने वाले संबंध भी अब राकेश को फीके लगने लगे थे. रीमा में अब राकेश के प्रति दिलचस्पी नहीं थी.

राकेश को रीमा में आए इन बदलाओं को देख कर शक होने लगा. उस ने रीमा के फोन को चैक करने की कोशिश की तो उस में लौक लगा था, जिसे खोलने का प्रयास करने से पहले ही रीमा ने उस से छीन लिया. इस बात को ले कर दोनों में तूतूमैंमैं होने लगी.

यह तूतूमैंमैं बाद इतनी बढ़ गई कि रोज झगड़े शुरू हो गए. वहीं दूसरी तरफ राकेश के घर आ जाने से रीमा भी परेशान हो गई थी. वह शिवम से मिल नहीं पा रही थी. उसे राकेश के साथ समय बिताना चुभ रहा था. उसे शिवम की कमी बहुत खल रही थी.

इसलिए एक दिन उस ने अपने पति को रास्ते से हटाने के लिए अपने प्रेमी शिवम मेहरा के साथ मिल कर एक षडयंत्र रच डाला.रीमा ने सब से पहले अपने मोबाइल फोन का सिम अपने प्रेमी को दे दिया. उस के बाद रीमा व शिवम मोबाइल पर एकदूसरे को मैसेज कर हत्या की योजना बनाने में लगे रहे.

11 नवंबर, 2020 की रात रीमा और उस के प्रेमी शिवम ने फौजी राकेश की हत्या करने की योजना बनाई. जिस के लिए रीमा ने रात को घर का मुख्य गेट बंद नहीं किया, ताकि शिवम घर में आ सके.

फौजी राकेश अपने बिस्तर पर गहरी नींद में सो रहा था. रात करीब 10 बजे शिवम घर के अंदर घुस आया और किचन में जा कर छिप गया. रीमा राकेश के पास गई और योजनानुसार किसी बात पर उस से झगड़ा करने लगी.रीमा राकेश को झगड़े में उलझा कर बरामदे की लौबी तक ले आई, जहां शिवम पहले से ही किचन में मौजूद था. शिवम ने पीछे से राकेश के हाथों को मजबूती से जकड़ लिया. इस के बाद राकेश के सामने खड़ी रीमा ने अपने पति का गला चाकू से रेत दिया. जिस से राकेश की मौके पर ही मौत हो गई.

इस के बाद दोनों ने राकेश की हत्या को आत्महत्या का रूप देने के लिए उस के हाथ की नसें काट दीं और उस के शव को बाथरूम में डाल दिया.

यह सब करने के बाद दोनों ने लौबी व घर में जगहजगह पड़े खून के धब्बों को पूरी रात कंबल से साफ किया. रात भर दोनों एकदूसरे के साथ रहे.

सुबह होते ही शिवम 5 बजे वापस विकासपुरी स्थित अपने जिम की तरफ चल दिया. इस के ठीक अगले दिन रीमा ने राकेश की झूठी आत्महत्या की सूचना पहले अपने मायके लुधियाना (पंजाब) में रह रहे अपने पिता को दी. उस के बाद उस ने घटना के करीब 18 घंटे बाद 12 नवंबर को विकास नगर पुलिस थाने को सूचना दी.

इस पूरे प्रकरण में पुलिस को शक तभी हो गया था जब पुलिस घटनास्थल पहुंची थी. शव की हालत देख कर सब से पहला संदेह घर के भीतर के ही व्यक्ति पर हुआ और घर में रीमा के अलावा कोई नहीं था. इस से पुलिस के शक की सुई सब से पहले रीमा पर ही जा अटकी थी.

पुलिस द्वारा पूछताछ में रीमा ने अपना जुर्म कबूल लिया. पुलिस ने दोनों आरोपियों रीमा नेगी व शिवम मेहरा को 13 नवंबर, 2020 को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल 2 चाकू व ब्लेड, मोबाइल फोन, स्कूटी (यूके16 ए- 7059), मृतक व हत्यारोपी के खून से सने कपड़े व खून से सना कंबल भी बरामद कर लिया.

मेरी जीवनसाथी -भाग 1 : क्यों पुराने दिनों को याद कर रहा था नवीन

घड़ी ने टिकटिक कर के 2 का घंटा बजाया. आरामकुरसी पर पसरी मैं शून्य में देखती ही रहती यदि घड़ी की आवाज ने मुझे चौंकाया न होता. उठ कर नवीन के पास आई. बरसों पुराना वही तरीका, पुस्तक अधखुली सीने पर पड़ी हुई और चश्मा आंखों पर लगा हुआ.

चश्मा उतार कर सिरहाने रखा. पुस्तक बंद कर के रैक में लगाई और लैंप बुझा कर बाहर आ गई. अब तो यह प्रतिदिन की आदत सी हो गई है. जिस दिन बिना दवा खाए नींद आ जाती, वह चमत्कारिक दिन होता.

बालकनी में खड़ी मैं अपने बगीचे और लौन को देखती रही. अंदर आ कर फिर कुरसी पर पसर गई. घड़ी की टिकटिक हर बार मुझे एहसास करा रही थी कि इस पूरे घर में इस समय वही एकमात्र मेरी सहचरी और संगिनी है.

बड़ी सी कोठी, 2-2 गाडि़यां, भौतिक सुविधाओं से भरापूरा घर, समझदार पति और 2 खूबसूरत होनहार बेटे, एक नेवी में इंजीनियर, दूसरा पायलट. ऐसे में मु झे बेहद सुखी होना चाहिए लेकिन स्थिति इस के बिलकुल विपरीत है.

घड़ी की टिकटिक मेरी सहचरी है और मेरे अतीत की साक्षी भी. मेरा अतीत, जो समय की चादर से लिपटा था, आज फिर खुलता गया.

तब पूरा शहर ही नहीं, समूचा देश हिंसा की आग में जल रहा था. 2 संप्रदायों के लोग एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए थे. बहूबेटियों की इज्जत लूट कर उन्हें गाजरमूली की तरह काटा जा रहा था. चारों तरफ सांप्रदायिकता की आग नफरत और हिंसा की चिनगारियां उगल रही थी.

हमारा घर मुसलमानों के महल्ले के बीच अकेला था. सांप्रदायिक हिंसा की लपटें फैलते ही लोगों की आंखें हमारे घर की तरफ उठ गई थीं.

एक रात मैं, अम्मा और बाबूजी ठंडे चूल्हे के पास बैठे सांस रोके बाहर का शोरशराबा सुन रहे थे. अचानक पीछे का दरवाजा किसी ने खटखटाया. अम्मा ने मुझे अपने सीने से चिपटा कर बाबूजी से कहा था, ‘नहीं, मत खोलना. पहले मैं इसे जहर दे दूं.’

तभी बाहर से रहीम चाचा की आवाज आई थी, ‘संपत भैया, मैं हूं रहीम. दरवाजा खोलो.’ सांस रोके हम खड़े रहे. बाबूजी ने दरवाजा खोला तो रहीम चाचा ने  झटपट मेरा और अम्मा का हाथ थामा, ‘चलो भाभी, मेरे घर. अब यहां रहना खतरे से खाली नहीं है. इंसानियत पर हैवानियत का कब्जा हो गया है. चलो.’

जेवर, पैसा, कपड़े सब छोड़ कर हम रहीम चाचा के घर आ गए. पूरा दिन हम वहां एक कमरे में छिप कर बैठे रहे. लोग पूछपूछ कर लौट गए पर रहीम चाचाजी और फरजाना ने जबान नहीं खोली.

तीसरे दिन रहीम चाचा ने बाबूजी को 3 टिकट दिल्ली के पकड़ाए थे, ‘सुबह 4 बजे टे्रन जाती है. बाहर गाड़ी खड़ी है. तुम लोग चले जाओ, रात का सन्नाटा है. बड़ी मुश्किल से टिकट और गाड़ी का इंतजाम हो सका है.’

एक अटैची पकड़ाते हुए चाची ने कहा था, ‘इस में थोड़े पैसे और कपड़े हैं. माहौल ठंडा पड़ते ही तुम वापस आ जाना. हम हैं न.’

उस समय मैं फरजाना से, अम्मा चाची से और बाबूजी रहीम चाचा से मिल कर कितना रोए थे. होली, ईद संगसंग मनाने वाला महल्ला कितना बेगाना हो गया था हमारे लिए.

टे्रन में बैठने के बाद अम्मा ने राहत की सांस ली थी. बाबूजी ने बेबसी से शहर को निहारा था.

टे्रन अभी जालंधर ही पहुंची थी कि अचानक बाबूजी को दिल का दौरा पड़ा. खामोशी से सबकुछ सहते बाबूजी को देख मैं ने सोचा था, सबकुछ सामान्य है पर यह हादसा उन्हें घुन की तरह खा रहा था. लगीलगाई दुकान, मकान और जोड़ा हुआ बेटी के लिए ढेरों दहेज…सब छोड़ कर आना उन्हें तोड़ कर रख गया.

चलती हुई ट्रेन में हम करते भी क्या? तभी सामने बैठे एक सज्जन ने हमें ढाढ़स बंधाया था, ‘देखिए, मैं डाक्टर हूं. आप इन्हें यहीं उतार लें, आगे तक जाना इन की जान के लिए खतरनाक हो सकता है.’

‘आप…’

‘हां, मैं, यहीं सैनिक अस्पताल में डाक्टर हूं.’

मैं ने अम्मा की तरफ देखा और उन्होंने मेरी तरफ. उस समय 17 वर्षीया मैं अपने को बहुत बड़ी समझने लगी थी.

अस्पताल में नवीन नाम के उस डाक्टर ने हमारी बड़ी मदद की. बाबूजी को सघन चिकित्सा कक्ष में रखा. हमें भी वहीं रहने का स्थान मिल गया. मां ने उन्हें सबकुछ बता दिया.

एक हफ्ते के अंदर ही नवीन ने एक कमरा दिलवा दिया जिस में एक अटैची के साथ हम सब को गृहस्थी शुरू करनी थी. थोड़े से बरतन, चूल्हा और राशन नवीन ने भिजवाए थे. मना करने पर कहा था उन्होंने, ‘मुफ्त में नहीं दे रहा हूं. बाबूजी ठीक हो जाएंगे तो उन्हें नौकरी दिलवा दूंगा.’

एक दिन बाबूजी को मैं देखने गई. वे ठीक लगे. मैं उन्हें घर ले जाना चाहती थी पर डा. नवीन उस समय ड्यूटी पर नहीं थे. घर पास ही था, पता पूछ कर जब मैं उन के घर पहुंची तो वहां गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था.

भेडि़या और भेड़: रूबी की चंचल मुसकान क्यों गायब हो गई

‘‘मां, मां…’’ लगभग चीखती हुई रूबी अपना बैग जल्दीजल्दी पैक करने लगी. मिसेज सविता उसे बैग पैक करते देख अचंभित हो बोलीं, ‘‘यह कहां जा रही है तू?’’

‘‘मां, बेंगलुरु में जौब लग गई है, वह भी 4 लाख शुरुआती पैकेज मिल रहा है. कल की फ्लाइट से निकल रही हूं.’’

सविता बोलीं, ‘‘अकेली कैसे रहेगी इतनी दूर? कोईर् और भी जा रहा है क्या?’’

रूबी मुसकराती हुई बोली, ‘‘पता है तुम क्या पूछना चाह रही हो. हां, रविश की जौब भी वहीं है. उस से बहुत सहारा मिलेगा मुझे.’’

इस पर सविता बोलीं, ‘‘तू रहेगी कहां? कोई फ्लैट या किराए का घर देख लिया है या नहीं?’’

अब रूबी की चंचल मुसकान गायब हो गई और मां को पलंग पर बैठाते हुए वह बोली, ‘‘मां, मैं और रविश वहां साथ ही रहेंगे.’’ यह सुन कर तो मां ऐसे उछल पड़ीं जैसे कि पलंग पर स्ंिप्रग रखी हो और उन के मुंह से बस यही निकला, ‘‘क्या? पागल तो नहीं हो गई तू, लोग क्या कहेंगे?’’

रूबी बोली, ‘‘जिन लोगों को तुम जानती हो, उन में से कोई बेंगलुरु में नहीं रहता, टैंशन नौट.’’

सविता ने कहा, ‘‘मति मारी गई है तेरी, भेडि़या और भेड़ कभी एक थाली में नहीं खा सकते. क्योंकि भेड़ के मांस की खुशबू आ रही हो तो भेडि़या घासफूस खाने का दिखावा नहीं करता.’’

इस पर रूबी बोली, ‘‘मां, इस भेड़ को भेडि़यों को काबू में रखना आता है. हम साथ रहेंगे अपनीअपनी शर्तों पर, शादी नहीं कर रहे हैं.’’

गुस्से में सविता बोलीं, ‘‘अरे नालायक लड़की, छुरी सेब पर गिरे या सेब छुरी पर, नुकसान सेब का ही होता है, जवानी की उमंग में तू यह क्यों नहीं समझ रही है?’’

रूबी बोली, ‘‘मां, मैं तुम से वादा करती हूं, जब तक उसे पूरी तरह समझ नहीं लेती, उस को हाथ भी नहीं लगाने दूंगी.’’

सविता ने कहा, ‘‘भाड़ में जा, ऐसी बातें तेरे मामा से तो कह नहीं सकती. काश, आज तेरे पिता जिंदा होते.’’

रूबी बोल पड़ी, ‘‘जिंदा होते तो गर्व करते कि बेटी ने दहेज की चिंता से मुक्त कर दिया.’’

रूबी बेंगलुरु पहुंची तो रविश ने उस का गर्मजोशी से स्वागत किया. रूबी मां को तो आश्वस्त कर आई मगर वह रविश के आचार, विचार और व्यवहार को बहुत ही बारीकी से तोल रही थी. रविश ने उसे छूने की तो कोशिश नहीं की मगर उस के उभारों पर उस की ललचाई नजर वह भांप सकती थी. उस दिन तो हद हो गई जब रविश अपने स्लो नैटवर्क के कारण टैलीकौम कंपनी की मांबहन भद्दीभद्दी गालियों के साथ एक कर दे रहा था.

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चरित्र और आचार की परीक्षा को जब तक रूबी भुला पाती, रविश ने टीवी देखते हुए सनी लिओनी पर अपने विचार भी जाहिर कर दिए. अब तो रूबी के सपनों की दुनिया मानो ताश के पत्तों की तरह बिखर गई. दूसरे ही दिन रूबी अपना बोरियाबिस्तर बांध अपनी कलीग के घर जाने लगी, तो रविश ने उस का रास्ता रोकते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

रूबी ने उस के आचार, विचार और व्यवहार पर लंबाचौड़ा भाषण दे दिया. रविश ने सबकुछ शांति से सुना और बोला, ‘‘अरे, इतनी सी बात, यह तो मेरे अंदर का पुरुष जब मुझ पर हावी हो जाता है, तब होता है, हमेशा ऐसा नहीं होता.’’

रूबी ने कहा, ‘‘मगर रविश, मैं ने सोचा था कि तुम बाकी मर्दों से अलग होगे.’’

रविश ने कहा, ‘‘रूबी, जो पुरुष अपने को ऐसा दिखाते हैं वे झूठे होते हैं. सच तो यह है कि हर पुरुष सुंदर स्त्री को देखते ही लालायित हो उठता है. यह नैसर्गिक आदत है उस की. मैं भी पुरुष हूं, झूठ नहीं बोलूंगा. मगर मैं भी तुम्हें मन ही मन…लेकिन तुम्हारी मरजी के बिना नहीं. अब भी तुम अलग रहना चाहती हो तो मैं नहीं रोकूंगा.’’

रूबी उस की साफसाफ बोलने की आदत और नियंत्रण देख अपने कपड़े बैग से निकाल वापस अलमारी में रखने लगी. तभी लाइट चली गई और रविश बोल पड़ा, ‘‘इस को भी अभी जाना था.’’ रूबी के घूर कर देखने पर रविश जीभ दांतों में दबा उठकबैठक लगाने लगा. और रूबी ने इस बचकानेपन पर उसे चूम लिया. आज उस ने अपने अंदर की स्त्री के संयम के किनारे को भी तोड़ दिया क्योंकि आज वह भेडि़या और भेड़ की नैसर्गिकता को समझ चुकी थी.

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