बढ़ते सड़क हादसों के साथ रोडरेज यानी रास्ते चलते झगड़ा, गालीगलौज और मारपीट करने की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही हैं. रोड पर लोग छोटीछोटी बातों पर भी हिंसक होने लगे हैं. आखिर ऐसा क्यों? दि?ल्ली के मानसरोवर पार्क इलाके के रहने वाले एक युवक की प्रीत विहार इलाके में रोडरेज के चलते गोली मार कर हत्या कर दी गई.

सोमेश छाबड़ा नाम का शख्स अपने दोस्तों के साथ कार से कनाट प्लेस घूमने आया था. वहां से वह प्रीत विहार की ओर जा रहा था कि तभी एक बाइक पर सवार 2 लड़के उस की कार के पीछे हौर्न बजाने लगे. इन के साइड न देने पर कुछ आगे जा कर उन बाइक सवार लड़कों ने फायरिंग की, जिस से ड्राइव कर रहे सोमेश के सीने पर गोली लग गई और उस की मौत हो गई. आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देख कर फायरिंग करने वालों की तलाश की गई. दिल्ली के ही वसंत कुंज इलाके में देररात रोडरेज की घटना में एक महिला की कुछ लड़कों ने सरेआम पिटाई कर दी.

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उस महिला ने बताया कि वह अपनी किसी जानकार के साथ किशनगंज से वसंत कुंज के लिए निकली थी. इसी दौरान चर्च रोड पर महिला की गाड़ी में उन लड़कों की गाड़ी ने मामूली टक्कर मार दी. टक्कर के बाद महिला को गुस्सा आ गया तो उस ने उस गाड़ी पर पत्थर फेंक दिया, जिस से कार का शीशा टूट गया. इस के बाद महिला और लड़कों के बीच गालीगलौज शुरू हो गई. फिर लड़कों ने उसे पीटा और फरार हो गए. एक और मामला दिल्ली का ही, कार चलाते समय धूम्रपान करने वाले एक व्यक्ति पर 2 लोगों ने आपत्ति जताई. उन्होंने उन से सिगरेट छोड़ने का अनुरोध किया तो वह इंसान इतना भड़क गया और उस ने अपनी कार उन की बाइक में घुसा दी, जिस से उन में से एक की मौत हो गई. दिल्ली की सड़कों पर भागमभाग के बीच मामूली बात पर वाहन चालकों से मारपीट की घटनाएं पिछले कुछ सालों से सुर्खियां बन रही हैं. ऐसे हादसों से यातायात नियमों का पालन करने वाले अनुशासनप्रिय चालकों में खौफ तो है ही, मनोरोग विशेषज्ञ भी इसे गंभीरता से ले रहे हैं.

किसी को ठीक से गाड़ी चलाने की नसीहत देना मुसीबत को न्योता देना है. राजधानी में जब एक महिला ने एक मिनी बस वाले को ध्यान से गाड़ी चलाने को कहा तो उस ड्राइवर ने डंडे से न केवल उस की पिटाई की, बल्कि उसे बचाने आए उस के पति को भी जख्मी कर दिया. ये कुछ उदाहरण हैं. इस तरह के कई अन्य रोडरेज मामले हर दिन शहर में होते रहते हैं. बीच चौराहे पर होने वाली रोडरेज की घटनाएं, दरअसल, लोगों की मानसिकता और उन की असंवेदनशीलता को दर्शाती हैं. सड़क पर गाड़ी को ओवरटेक करने के लिए जगह न देने पर 2 गाडि़यों का हलके से छू जाने पर गालीगलौज और फिर एकदूसरे पर हथियारों से हमला करना जैसी घटनाएं आजकल आम होती जा रही हैं. राजधानी की सड़कों पर गाडि़यों की रफ्तार जिस तरह से बढ़ती जा रही है उसी हिसाब से उन्हें चलाने वालों का गुस्सा भी बढ़ रहा है.

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आज सभी को समय से अपनी जगह पहुंचना होता है जिस के कारण सड़कों पर भागमभाग मची होती है कि हम पहले तो हम पहले. वाहन चलाने वाला सोचता है कि सामने वाले भी उसी अनुसार गाड़ी चलाएं या उसे आगे जाने का रास्ता दें. जब ऐसा नहीं हो पाता तो लड़ाईझगड़ा और यहां तक कि हाथापाई शुरू हो जाती है. केवल दिल्ली में ही नहीं, बल्कि इस तरह की रोडरेज घटनाएं देश के किसी भी कोने में आम बात होती जा रही हैं. देश में जिस तरह से महंगाई की दर बढ़ रही है, लगभग उसी तरह से रोडरेज की घटनाएं भी लगातार बढ़ती जा रही हैं. इलाहाबाद में ऐसी ही एक रोडरेज की घटना वायरल हुई. उस में दिखाया गया कि एक कार में धक्का लग जाने की वजह से बाइकसवार युवकों की जम कर धुनाई कर दी गई. बाद में आक्रोशित भीड़ ने कारसवार युवक की भी जम कर पिटाई कर दी.

वहीं, बिहार में रोडरेज के विवाद में कुछ नशेडि़यों ने कारसवार एक थानेदार राजीव कुमार की जम कर पिटाई कर दी, जिस से वह जख्मी हो गए. कारण, उन की कार से ईरिक्शा को हलकी ठोकर लग गई जिस से बौखलाए उस में बैठे लोग निकल कर उसे पीटने लगे. आज से 20-25 साल पहले सड़क पर गाड़ी चलाते समय व्यक्तियों में सहनशीलता और सौहार्द का भाव व यातायात नियमों का पालन करना प्रत्येक व्यक्ति की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति होती थी और वे रोडरेज जैसे शब्दों से अनजान थे. लेकिन आज छोटीछोटी बातों पर लोग बीच चौराहे पर लड़ने व गालीगलौज पर उतर आते हैं. गाड़ी को साइड न देने पर, मामूली सी टक्कर लगने पर, सड़क पर जाम लगे होने के कारण आगे वाले द्वारा गाड़ी को जल्दी नहीं निकालने, गाड़ी कैसे चल रही है, हौर्न कैसे बजा दिया, औफिस या घर जल्दी पहुंचने का तनाव और ऐसे छोटेछोटे कारणों के चलते आज लोगों, खासकर युवाओं, पर गुस्सा इस कदर हावी हो जाता है कि छोटीछोटी बात पर गालीगलौज, मारपीट, लड़ाईझगड़ा तक सीमित नहीं रहता, बल्कि गुस्से में आ कर हाथापाई करने और जानलेवा हमला करने तक बढ़ने लगा है. कौन होते हैं ये लोग कम पढ़ेलिखों से ले कर शिक्षित लोग भी हो सकते हैं.

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कई बार बडे़ घरों की बिगड़ी औलादें भी ऐसी हरकतें करते पाए जाते हैं. ऐसा ही एक मामला बिहार में हुआ था जब ओवरटेक करने पर एक जेडीयू नेता के बेटे ने 12वीं के एक छात्र पर गोली चला दी थी. उस की मौत हो गई थी. रोडरेज की अधिकतर घटनाओं में युवा शामिल होते हैं. आज के युवा छोटीछोटी बातों पर भड़क जाते हैं और लड़ाईझगड़े पर उतर आते हैं. लड़तेझगड़ते वाहन चालकों का अपनाअपना गुस्सा निकालने के बाद भले ही वहां खड़े लोग उन्हें समझाबुझा कर रवाना कर देते हैं पर जातेजाते वे एकदूसरे को ‘देख लेंगे’ की धमकी देना नहीं भूलते. ड्राइविंग करते वक्त युवाओं को तीनगुना ज्यादा गुस्सा आता है. इस का पता 2014 में दिल्ली के लेडी हार्डिंग अस्पताल और एम्स के संयुक्त शोध से चला है.

देश में होने वाले कुल सड़क हादसों में 60 फीसदी मौतें रोडरेज के कारण होती हैं. द्य 42 फीसदी मामलों में 2 वाहनों के चालक छोटी सी बात पर आपस में भिड़ जाते हैं. द्य 33 फीसदी मामलों में कारचालक दुपहियाचालक से लड़ने पर आमादा हो जाते हैं. द्य 70 फीसदी रोडरेज के मामले दर्ज ही नहीं हो पाते हैं. द्य 38 फीसदी रोडरेज के मामले तेज गति से गाड़ी चलाने या ओवरटेक के कारण होते हैं. द्य 13 प्रतिशत झगड़े लाइट जंप के कारण होते हैं. द्य 4 प्रतिशत मामले पीछे से बेवजह हौर्न बजाने के कारण होते हैं. झुंझलाहट के कारण ये भी : द्य सड़कों पर भारी जाम और गाडि़यों का शोर. द्य दूसरों द्वारा नियमों का पालन न करने पर. द्य बिना ट्रैफिक के लालबत्ती पर रुकना. द्य बिना सूचना सड़कों को बंद करने पर. द्य सड़क के बीच गलत तरीके से गाड़ी खड़ी होने पर.

सिर्फ भारत देश में ही नहीं, बल्कि देशविदेश के हर कोने में रोडरेज की घटनाएं हो रही हैं. 1980 के दशक में यूएसए से लास एंजिल्स व कैलिफोर्निया के टीवी समाचार वाचकों ने सब से पहले इस शब्द का प्रयोग शुरू किया था. रोडरेज का सीधा अर्थ है, गाड़ी को असामान्य तरीके से चलाना, एकाएक ब्रेक लगाना, दूसरी गाड़ी के पीछे झटके से गाड़ी को रोकना, असामान्य तरीके से हौर्न बजाना, अनावश्यक रूप से आगे जाने की होड़, दूसरे की गाड़ी को टच करना, तेज रोशनी कर गाड़ी चलाना, सड़क पर स्टंट करना या इसी तरह की गतिविधियां करते हुए सामने वाले से लड़ने को तत्पर रहना रोडरेज की श्रेणी में आता है. 2014 में दिल्ली के एम्स व लेडी हार्डिंग अस्पताल द्वारा कराए गए एक सर्वे में यह बात सामने आई कि वाहन चलाते समय युवाओं में गुस्से की मात्रा अधिक हो जाती है.

यही नहीं, सड़क पर यातायात जाम होने, बेतरतीब यातायात, गाड़ी चलाते समय मोबाइल पर बातें करना, खराब सड़कें, तेज हौर्न, गलत तरीके से पार्किंग, काम का दबाव, समय पर पहुंचने का दबाव आदि रोडरेज का कारण बन जाते हैं. वहीं, पैसा और सत्ता का मद भी ऐसा है जो युवाओं को रोडरेज के लिए उकसाता है. रोडरेज को ले कर कानून तो बने हैं पर लोगों में कानून का डर नहीं है. लोग अपनी सत्ता के दम पर पैसे लेदे कर मामले को रफादफा करा लेते हैं. और नहीं तो यातायात उल्लंघन पर जुर्माना दे कर मामले को वहीं खत्म कर देते हैं. देश में बढ़ते सड़क हादसों के साथ रोडरेज यानी रास्ता चलते संघर्ष व मारपीट की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही हैं. भारत में ऐसी घटनाओं में रोजाना औसतन 3 लोगों की मौत हो रही है. समस्या की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए अब इस से निबटने के लिए ठोस कानून की मांग उठ रही है. सरकारी आंकड़े केंद्रीय गृहमंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों में कहा गया है कि वर्ष 2015 के दौरान देश में रोडरेज के 3,782 मामले दर्ज किए गए. इन में से 4,702 लोग घायल हुए थे और 1,388 लोग मारे गए थे. बीते साल रोडरेज के सब से ज्यादा मामले ओडिशा में दर्ज किए गए थे.

इस के अलावा केरल के 4 शहरों और दिल्ली में ऐसे सब से ज्यादा मामले सामने आए थे. और भी कई राज्य हैं जहां रोडरेज के मामले आए थे. तथ्यों के अनुसार, सड़कों पर सहयात्रियों के साथ मारपीट के मामले महज वयस्कों तक ही सीमित नहीं हैं. नैशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में रोडरेज के सिलसिले में 1,538 किशोरों के खिलाफ भी मामले दर्ज हुए थे. इन में से लगभग 250 किशोरों की उम्र तो 12 से 16 वर्ष के बीच थी. केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय की ओर से जारी आकड़ों के मुताबिक, रोडरेज की घटनाओं की तादाद के मामले में तमिलनाडु, महाराष्ट्र मध्य प्रदेश, केरल और उत्तर प्रदेश शीर्ष 5 राज्यों में शुमार हैं. राजधानी दिल्ली में तो ऐसे मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.

रोडरेज की घटनाओं के कारण परिवहन विशेषज्ञों का कहना है कि तेजी से बढ़ती आबादी, गांवों से शहरों में होने वाले विस्थापन, वाहनों की तादाद में वृद्धि, सड़कों के आधारभूत ढांचे का अभाव व ड्राइवर में बढ़ती असहिष्णुता ऐसे मामले बढ़ने की प्रमुख वजहें हैं. कई सड़क हादसे ड्राइवरों की लापरवाही या ड्राइविंग के दौरान मोबाइल पर बात करने की वजह से होते हैं. असहिष्णुता तो इतनी कि गाड़ी में जरा सी टक्कर लगने में लोग मारधाड़ पर उतारू हो जाते हैं. आज लोगों में सहनशीलता खत्म होती जा रही है, जिस का नतीजा है रोडरेज. रोडरेज का कारण सड़कों पर वाहनों की बढ़ती तादाद तो है ही, ट्रैफिक उल्लंघन पर कड़ी सजा का प्रावधान नहीं होना और शराब पी कर वाहन चलाना भी इस की प्रमुख वजह है.

कोलकाता के एक निजी बैंक में काम करने वाली शालिनी सिंह रोजाना लगभग 30 किलोमीटर का सफर तय कर के अपने दफ्तर पहुंचती हैं. उन का कहना है कि यहां ड्राइवर ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन कर आसानी से बच निकलते हैं. मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाना तो आम बात है. कई बार ट्रैफिक पुलिस वाले भी नियमों का उल्लंघन करते देख कर अनदेखी कर देते हैं. उन्हें लगता है कि दोषी वाहन चालक को रोकने की स्थिति में ट्रैफिक जाम हो सकता है. इस से दोषियों का कुछ नहीं बिगड़ता. वे आगे बताती हैं कि जरूरत के मुकाबले पुलिस वालों की तादाद कम होना और नियमों के उल्लंघन के लिए कड़ी सजा का प्रावधान नहीं होना ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन की सब से बड़ी वजह है. रोडरेज की ज्यादातर घटनाएं इन नियमों के उल्लंघन से जुड़ी हैं.

समस्या को कैसे रोका जाए विशेषज्ञों का कहना है कि यह समस्या बहुआयामी है. इसलिए इस पर अंकुश लगाने का एक उपाय पूरी तरह से कारगर नहीं हो सकता. लेकिन ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर सजा व जुर्माने के प्रावधानों को पहले के मुकाबले कठोर बना कर ऐसे मामलों पर कुछ हद तक काबू जरूर पाया जा सकता है. इस के साथ ही, ड्राइवरों में जागरूकता अभियान चलाना जरूरी है. देश में सड़कों की लंबाई के मुकाबले वाहनों की बढ़ती तादाद ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है. इस वजह से लोगों को सड़कों पर पहले के मुकाबले ज्यादा देर तक रहना पड़ता है.

इस से उन में नाराजगी, झुंझलाहट और हताशा बढ़ती है. ऐसे में अकसर मामूली कहासुनी भी हिंसक झगड़ों में बदल जाती है. समाजविज्ञानी मनोहर माइति कहते हैं, ‘‘लोगों के पास अब पैसा तो बहुत आ गया है, लेकिन सहिष्णुता तेजी से कम हो रही है. ऐसे में सड़क पर अपनी नई कार पर हलकी खरोंच लगते ही लोग दोषी ड्राइवर के साथ झगड़े व मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं.’’ यह सिर्फ रोडरेज ही नहीं, बल्कि असहनशीलता का भी मामला है. लोगों में ऐसी असहनशीलता क्यों बढ़ रही है और इस से कैसे निबटा जाए, यहां जानते हैं. साइकोलौजिस्ट अमित आर्या कहते हैं कि युवा किसी भी घटना पर जल्दी रिऐक्ट करते हैं या फिर वे लोग किसी तरह की पावर से जुड़े होते हैं. यह काफी हद तक उन के सर्कल, आसपास के वातावरण पर भी निर्भर करता है.

अगर इंसान के आसपास के लोग और पेरैंट्स बहुत एग्रेसिव हैं तो देखा गया है कि वह शख्स भी जल्दी रिऐक्ट करता है. और आवेश में आ कर किसी भी घटना को अंजाम दे देता है. केजीएमयू के सायकैट्री डिपार्टमैंट के हैड प्रो. पी के दलाल कहते हैं, ‘‘अकसर लोग रोड पर साइड न देने या जाम लगने, तेज हौर्न बजाने और कई बार पार्किंग के स्पेस को ले कर झगड़ बैठते हैं. इस तरह की परिस्थिति में उलझने से बेहतर है कि आप उन्हें अवौयड करें. किसी दूसरे की गलती ठहराने के बजाय मामले को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने की कोशिश करें. अगर गलती आप की है तो माफी मांग लें. जिस पर आप गुस्सा कर रहे हैं, एक बार उस इंसान की जगह पर रह कर देखेंगे तो सिचुएशन बेहतर ढंग से समझ पाएंगे. गुस्सा होने या अपनी ताकत दिखाने से चीजें सुधरने के बजाय और बिगड़ जाती हैं.

अनजान जगह पर रिऐक्ट करने से बचें. आजकल हमारी सोसायटी तेजी से बदल रही है. मोरैलिटी पीछे छूटती जा रही है. हम अंजाम की परवा किए बिना हर चीज पर रिऐक्ट करने के आदी होते जा रहे हैं. द्य ऐसे अवौयड करें द्य अगर आप को ट्रैफिक समस्या से रोज जूझना पड़ता है तो दूसरों पर गुस्सा निकालने के बजाय घर से 5-10 मिनट पहले निकलने की आदत डाल लें. द्य अगर रोड पर आप को साइड नहीं दे रहे हैं तो इंतजार करें. बारबार हौर्न बजा कर दूसरे को इरिटेट न करें. द्य किसी भी घटना पर रिऐक्ट करने से बचें. द्य खुद को दूसरे की जगह पर रख कर सोचें कि अगर आप वहां होते तो क्या करते. द्य अगर बहस बढ़ रही है तो समझदारी इसी में है कि माफी मांग कर वहां से निकल जाएं.

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