नीरा सन्न रह गई. कुछ पलों के लिए तो जैसे होश ही न रहा. इतने में उसे रोटी जलने की गंध आई. उस ने फुरती से गैस बंद की और पलट कर यतीन का चेहरा देखने लगी, ‘यह तुम ने क्या किया?’
‘मैं मजबूर था, भाभी. मैं स्वयं ऐसा कदम नहीं उठाना चाहता था किंतु क्या करता, अर्चना को क्या छोड़ देता? पिछले 4-5 वर्षों से उस की और मेरी मित्रता है.’
‘तुम कुछ समय तक प्रतीक्षा कर सकते थे. मैं और नरेन बाबूजी को मनाने का दोबारा प्रयास करते.’
‘कोई फायदा नहीं होता, भाभी. मैं जानता हूं, वे मानने वाले नहीं थे. उधर अर्चना के घर वाले विवाह के लिए जल्दी मचा रहे थे इसलिए विवाह में विलंब नहीं हो सकता था वरना वे लोग उस का अन्यत्र रिश्ता कर देते.’
‘अब क्या होगा, यतीन? अर्चना को तुम घर कैसे लाओगे?’ नीरा बुरी तरह घबरा रही थी.
‘मैं अर्चना को तब तक घर नहीं लाऊंगा जब तक बाबूजी उसे स्वयं नहीं बुलाएंगे. अब वह मेरी पत्नी है. उस का अपमान मैं हरगिज सहन नहीं कर सकता,’ यतीन दृढ़ स्वर में बोला.
‘फिर उसे कहां रखोगे?’
‘फिलहाल कंपनी की ओर से मुझे फ्लैट मिल गया है. मैं और अर्चना वहीं रहेंगे,’ यतीन धीमे स्वर में बोला और वहां से चला गया.
पिछले कुछ दिनों से यतीन कितना परेशान था, यह तो उस का दिल ही जानता था. भैयाभाभी और बाबूजी से अलग रहने की कल्पना उसे बेचैन कर रही थी. वह किसी को भी छोड़ना नहीं चाहता था किंतु परिस्थितियों के सम्मुख विवश था.
इस के बाद के दिनों की यादें नीरा को अंदर तक कंपा देतीं. बाबूजी को जब यतीन के विवाह के विषय में पता चला तो वे बुरी तरह से टूट गए. उन की हठधर्मी बेटे को विद्रोही बना देगी, इस का उन्हें स्वप्न में भी गुमान न था. उन्होंने बेटों को पालने में बाप की ही नहीं, मां की भूमिका भी निभाई थी. बेटों के पालनपोषण में स्वयं का जीवन होम कर डाला था. किंतु एक लड़की के प्रेम में पागल बेटे ने उन के समस्त त्याग को धूल में मिला दिया था.
अब बाबूजी थकेथके और बीमार रहने लगे थे. नीरा के आने से घर की जो खुशियां पूर्णिमा के चांद के समान बढ़ रही थीं, यतीन के जाते ही अमावस के चांद की तरह घट गईं. नीरा की दशा उस चिडि़या की तरह थी जिस के घोंसले का तिनका बिखर कर दूर जा गिरा था. वह उस तिनके को उठा लाने की उधेड़बुन में लगी रहती थी.
आज जब उस ने बाबूजी को यतीन की फोटो के समक्ष रोते देखा तो विकलता और भी बढ़ गई. अगले दिन नीरा बाजार गई हुई थी. जब लौटी, उस के साथ एक अन्य युवती भी थी. बाबूजी बाहर लौन में बैठे थे.
नीरा ने उस का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘बाबूजी, यह मेरी सहेली पूजा है. हम दोनों एक ही साथ पढ़ती थीं. इस का इस शहर में विवाह हुआ है. आज मुझे अचानक बाजार में मिल गई तो मैं इसे घर ले आई.’’
पूजा ने आगे बढ़ कर बाबूजी के पांव छू लिए. बाबूजी ने उस के सिर पर हाथ रख कर पास पड़ी कुरसी पर बैठ जाने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘बैठो बेटी, कहां काम करते हैं तुम्हारे पति?’’
‘‘जी, एचएएल हैदराबाद में.’’
‘‘अभी पूजा यहां अकेली है, बाबूजी. जब इस के पति को वहां कोई अच्छा मकान मिल जाएगा, वे इसे ले जाएंगे,’’ नीरा ने कहा.
बाबूजी एचएएल का नाम सुन कर खामोश हो गए. यतीन भी तो यहां इसी फैक्टरी में काम करता था. दर्द की एक परछाईं उन के चेहरे पर से आ कर गुजर गई किंतु शीघ्र ही उन्हें पूजा की उपस्थिति का भान हो गया और उन्होंने स्वयं को संभाल लिया. इस के बाद वे, पूजा और नीरा काफी देर तक बातचीत करते रहे.
जब पूजा जाने लगी तो बाबूजी ने कहा, ‘‘बेटी, अब तो तुम ने घर देख लिया है, आती रहना.’’
‘‘जी बाबूजी, अब जरूर आया करूंगी. मैं भी घर में अकेली बोर हो जाती हूं.’’
इस के बाद पूजा अकसर नीरा के घर आने लगी. धीरेधीरे वह बाबूजी से खुलने लगी थी. वे तीनों बैठ कर विभिन्न विषयों पर बातचीत करते, हंसते, कहकहे लगाते और कभीकभी ताश खेलते.
पूजा ने अपने स्वभाव और बातचीत से बाबूजी का मन मोह लिया था. बाबूजी भी उसे बेटी के समान प्यार करने लगे थे. वह 3-4 दिनों तक न आती तो वे उस के बारे में पूछने लगते थे. पूजा नीरा को घर के कामों में भी सहयोग देने लगी थी.
कुछ दिनों बाद न जाने क्यों पूजा एक सप्ताह तक न आई. एक दिन बाबूजी नीरा से बोले, ‘‘पूजा आजकल क्यों नहीं आ रही है?’’
‘‘मैं आप को बताना भूल गई बाबूजी, कल पूजा का फोन आया था. वह बीमार है.’’
‘‘बीमार है? और तुम मुझे बताना भूल गईं. तुम से ऐसी लापरवाही की उम्मीद न थी. जाओ, उसे देख कर आओ. उसे किसी चीज की आवश्यकता हो तो लेती जाना. आखिर हमारा भी तो उस के प्रति कुछ फर्ज बनता है.’’
बाबूजी की पूजा के प्रति इस ममता को देख कर नीरा मुसकरा उठी. पूजा ने बाबूजी के मन में अपना स्थान बना लिया था, फिर भी यतीन का अभाव उन्हें खोखला बना रहा था. नरेन, नीरा और पूजा के अथक प्रयासों के बावजूद उन का स्वास्थ्य दिन पर दिन गिरता जा रहा था.
एक रात बाबूजी को दिल का दौरा पड़ा. वे बेहोश हो गए. नरेन ने यतीन को भी फोन कर दिया था. वह और अर्चना तुरंत अस्पताल पहुंचे. सारी रात आंखों में ही कट गई.
यतीन की दशा सब से खराब थी. वह बारबार रो पड़ता था. नीरा ही उसे तसल्ली दे रही थी. सुबह के समय बाबूजी को होश आया. समय पर डाक्टरी चिकित्सा मिल जाने के कारण खतरा टल गया था. बाबूजी के होश में आने पर यतीन सामने से हट गया. सोचा, हो सकता है उस को देख कर उन के दिल को धक्का लगे और उन की दशा फिर से बिगड़ जाए.
10 दिनों तक बाबूजी अस्पताल में रहे. नरेन और नीरा उन की सेवा में जुटे रहे. घर का सारा काम पूजा ने संभाला. जिस दिन बाबूजी को घर आना था, पूजा ने सारा घर मोमबत्तियों से सजा दिया था. जिस समय वे कार से उतरे, उस ने आगे बढ़ कर बाबूजी के चरण स्पर्श किए. नरेन और नीरा उन्हें अंदर ले आए.
‘‘बाबूजी, पूजा ने आप की बहुत सेवा की है,’’ नीरा ने उन्हें पलंग पर बैठाते हुए कहा.
‘‘हमेशा सुखी रहो बेटी. वे लोग कितने सुखी होंगे जिन्हें तुम्हारे जैसी बहू मिली है,’’ बाबूजी एक क्षण खामोश रहे. फिर आह सी भरते हुए दुखी स्वर में बोले, ‘‘नरेन ने मेरी पसंद से विवाह किया, देखो कितना खुश है. नीरा हजारों में एक है. काश, यतीन ने भी कहा माना होता तो उस की बहू भी तुम दोनों जैसी होती.’’
नीरा को लगा, यदि अब उस ने बाबूजी से अपने मन की बात न कही तो फिर बहुत देर हो जाएगी. जीवन में अनुकूल क्षण बारबार नहीं आते. वह उन के समीप जा बैठी. उस ने आंखों ही आंखों में नरेन से अनुमति मांगी और बोली, ‘‘आप की इस बेटी से बहुत बड़ा अपराध हो गया है बाबूजी. मुझे क्षमा कर दीजिए.’’
‘‘कौन सा अपराध?’’ बाबूजी हैरान हो उठे.
नीरा ने उन के घुटनों पर सिर रख दिया और डरतेडरते बोली, ‘‘पूजा जिस घर की बहू है, वह घर यही है, बाबूजी. यह पूजा नहीं, आप की दूसरी बेटी अर्चना है.’’
‘‘अर्चना यानी यतीन की पत्नी? इतने दिनों तक तुम मुझ से…’’
‘‘बाबूजी, मैं ने यह अपराध आप को धोखा देने या दुख पहुंचाने के उद्देश्य से नहीं किया. मैं और नरेन चाहते हैं, हम सब आप की छत्रछाया में रहें. यह घर एक घोंसले के समान है, बाबूजी. इस के तिनके को बिखरने मत दीजिए, इन्हें समेट लीजिए,’’ कहतेकहते नीरा रोने लगी.
बाबूजी की आंखों में भी आंसू आ गए. कुछ तो नीरा की निष्ठा और कुछ अर्चना का सरल स्वभाव व सेवाभावना उन्हें कमजोर बना रही थी. साथ ही, हालात ने उन के और यतीन के बीच जो दूरी पैदा कर दी थी उस ने उन की हठधर्मिता को कमजोर बना डाला था. उन्होंने स्नेहपूर्वक नीरा को उठाया फिर अर्चना को अपने पास बैठा लिया और अर्चना की तरफ देख कर कहा, ‘‘बेटी, जीवन में यदि किसी को अपना आदर्श बनाना तो नीरा को ही बनाना. इस के प्रयत्नों के फलस्वरूप इस घर की खुशियां वापस आई हैं,’’ फिर उन्होंने नरेन को यतीन को बुलाने भेज दिया.
वास्तव में व्यक्ति अपने झूठे अहंकार के दायरे में कैद रह कर स्वयं ही अपने जीवन में दुखों का समावेश कर लेता है. बाबूजी ने सोचा, यदि वे अपने इस अहं के दायरे से बाहर आ कर भावनाओं के साथसाथ विवेक से भी काम लेते तो उन बीते दिनों को भी आनंदमय बना सकते थे जो उन्होंने और उन के परिवार ने दुखी रह कर गुजारे थे. उन्होंने खिड़की में से देखा, यतीन नरेन के साथ कार से उतर रहा है. बाहर मोमबत्तियों की झिलमिलाती लौ भविष्य को अपने प्रकाश से आलोकित कर रही थी.