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सोनू सूद की मां के नाम पर रखा गया सड़क का नाम, बताई अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि

बॉलीवुड एक्टर सोनू सूद कोरोना काल में जरुरतमंदों की मदद करते नजर आ रहे है. लेकिन इसी दौरान उन्हें एक बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है. जिससे उनकी खुशी दोगुनी हो गई है.

दरअसल सोनू के होमटाउन मोगा में उन्होंने अपनी मां के नाम पर रोड़ का नाम रखा है. इस वजह से वह बहुत ज्यादा खुश नजर आ रहे हैं. सोनू सूद ने सड़क के नामकरण के बाद एक फोटो शेयर किया है जिसमें उन्होंने लिखा है कि ‘यह है और यह होगा’ आगे उन्होंने लिखा है अब तक कि सबसे बड़ी उपलब

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मां के नाम पर सड़क का नाम करण होने पर सोनू सूद काफी इमोशनल हो गए उन्होंने कहा कि मैं आपको बहुत ज्यादा मिस करता हूं मां उन्होंने इंस्टाग्राम पर लिखा कि एक दृश्य जिसे मैं पूरे लाइफ सपने में देखा. आज मेरे होमटाउन में मेरी मां के नाम पर सड़क का नाम  सरोज सूद रखा गया है.

 

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उन्होंने पूरी लाइफ घर से कॉलेज की यात्रा कि थी, यह मेरे लाइफ का महत्वपूर्ण हिस्सा रहेगा. आज मुझे पूरा यकिन आ गया है कि मां और पिता स्वर्ग में मुस्कुरा रहे होंगे.

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कुछ दिन पहले सोनू सूद ने बताया कि उनके नेक काम कि वजह से उन्हें फिल्म में रोल मिलने कम हो गए हैं. सोनू सूद ने अपने इंस्टाग्राम पर भी इसकी तस्वीर शेयर कि है. उन्होंने एक कहा अब जोरोल मुझे मिल रहे हैं. वह बिल्कुल अलग है.

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अब मुझे रीयल लाइफ हीरो के रोल मिल रहे हैं जो बिल्कुल अलग किरदार होंगे. मैंने जीवन में जो चीज कि है उससे अलग करने की कोशिश कर रहा हूं. अभी मुझे अपने जीवन में बहुत कुछ करना है.

रणथंबोर में फैमिली के साथ वेकेशन मना रही है आलिया भट्ट, फैंस ने दी बधाई

बॉलीवुड स्टार आलिया भट्ट इन दिनों राजस्थान में एजॉय कर रही हैं. राजस्थान में रणथंबोर में आलिया भट्ट अपनी फैमिली के साथ ही नहीं बल्कि रणबीर कपूर की फैमली के साथ ट्रीप पर गई हुई हैं. बता दें कि आलिया भट्ट और कपूर फैमली ने साथ मिलकर नए साल को एंजॉय किया .

इसी बीच आलिया भट्ट की तस्वीर बीती रात सोशल मीडिया पर वायरल हुई है. जिसे आलिया भट्ट ने अपने सोशल मीडिया अकाउं पर शेयर किया है.

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तस्वीर में आलिया भट्ट अपनी होने वाली सास और नन्नद के साथ बेहद खूबसूरत लग रही हैं. आलिया भट्ट नीतू कपूर और रिद्धिमा कपूर साहनी के साथ राजस्थान के वादियों में समय बीता रही हैं. आलिया भट्ट की ताजा तस्वीर सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है. जिसे लोग खूब ज्यादा पसंद कर रहे हैं.

आलिया भट्ट अपनी होने वाली सास यानी रणबीर कपूर की मॉम नीतू कपूर के साथ बला की खूबसूरत लग रही है. रिद्धिमा कपूर भी इस तस्वीर में बेहद खूबसूरत लग रही हैं.

इस दौरान आलिया भट्ट की मां सोनी राजदान  और बहन शाहीन भट्ट भी नजर आ रही थी. जिसमें वह काफी ज्यादा खूबसूरत लग रही थीं.

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इस तस्वीर में आलिया भट्ट की फैमिली और कपूर फैमली साथ में खूब मस्ती करती नजर आ रही हैं. सभी लोग एक साथ खूब खुश नजर आ रहे हैं.

वहीं कुछ लोग ये भी कयास लगा रहे हैं जल्द ही शादी करने वाले हैं. कुछ वक्त पहले रणबीर कपूर ने बयान दिया था कि कोरोना की वजह से हमारे शादी में लेट हो रहा है.

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कुछ महीने पहले रणबीर कपूर की फैमिली में दिक्कते आ रही थी. क्योंकि रणबीर कपूर के पापा कि डेथ हो गई थी.जिससे उनके परिवार में दिक्कत हो रही थी, अब सभी लोग सामान्य है.

 

बिचौलिए-भाग 1 : समीर ने वंदना को धोखा क्यों दिया

सोमवार की सुबह सीमा औफिस पहुंची तो अपनी सीट की तरफ जाने के बजाय वंदना की मेज के सामने जा खड़ी हुई. उस के चेहरे पर तनाव, चिंता और गुस्से के भाव अंकित थे. अपना सिर झुका कर मेज की दराज में से कुछ ढूंढ़ रही वंदना से उस ने उत्तेजित लहजे में कहा, ‘‘वंदना, वह तुझे बेवकूफ बना रहा है.’’ वंदना ने झटके से सिर उठा कर हैरान नजरों से सीमा की तरफ देखा. उस के कहे का मतलब समझने में जब वह असमर्थ रही, तो उस की आंखों में उलझन के भाव गहराते चले गए. कमरे में उपस्थित बड़े बाबू ओमप्रकाश और सीनियर क्लर्क महेश की दिलचस्पी का केंद्र भी अब सीमा ही थी.

‘‘क….कौन मुझे बेवकूफ बना रहा है, सीमा दीदी?’’ वंदना के होंठों पर छोटी, असहज, अस्वाभाविक मुसकान उभर कर लगभग फौरन ही लुप्त हो गई.

‘‘समीर तुझे बेवकूफ बना रहा है. प्यार में धोखा दे रहा है वह चालाक इंसान.’’

‘‘आप की बात मेरी समझ में कतई नहीं आ रही है, सीमा दीदी,’’ मारे घबराहट के वंदना का चेहरा कुछ पीला पड़ गया.

‘‘मर्दजात पर आंखें मूंद कर विश्वास करना हम स्त्रियों की बहुत बड़ी नासमझी है. मैं धोखा खा चुकी हूं, इसीलिए तुझे आगाह कर भावी बरबादी से बचाना चाहती हूं.’’

‘‘सीमा दीदी, आप जो कहना चाहती हैं, साफसाफ कहिए न.’’ ‘‘तो सुन, मेरे मामाजी के पड़ोसी हैं राजेशजी. कल रविवार को समीर उन्हीं की बेटी रजनी को देखने के लिए अपनी माताजी और बहन के साथ पहुंचा हुआ था. रजनी की मां तो पूरे विश्वास के साथ सब से यही कह रही हैं कि समीर ही उन का दामाद बनेगा,’’ सीमा  की बात का सुनने वालों पर ऐसा प्रभाव पड़ा था मानो कमरे में बम विस्फोट हुआ हो.

ओमप्रकाश और महेश अब तक सीमा के दाएंबाएं आ कर खड़े हो गए थे. दोनों की आंखों में हैरानी, अविश्वास और क्रोध के मिश्रित भाव झलक रहे थे.

‘‘मैं आप की बात का विश्वास नहीं करती, जरूर आप को कोई गलतफहमी हुई होगी. मेरा समीर मुझे कभी धोखा नहीं दे सकता,’’ अत्यधिक भावुक होने के कारण वंदना का गला रुंध गया.

‘‘मेरी मां कल मेरे मामाजी के यहां गई थीं. उन्होंने अपनी आंखों से समीर को राजेशजी के यहां देखा था. समीर को पहचानने में वे कोई भूल इसलिए नहीं कर सकतीं क्योंकि उसे उन्होंने दसियों बार देख रखा है,’’ सीमा का ऐसा जवाब सुन कर वंदना का चेहरा पूरी तरह मुरझा गया. उस की आंखों से आंसू बह निकले. किसी को आगे कुछ भी टिप्पणी करने का मौका इसलिए नहीं मिला क्योंकि तभी समीर ने कमरे के भीतर प्रवेश किया. ‘नमस्ते,’  समीर की आवाज सुनते ही वंदना घूमी और उस की नजरों से छिपा कर उस ने अपने आंसू पोंछ डाले. उस के नमस्ते के जवाब में किसी के मुंह से कुछ नहीं निकला. इस बात से बेखबर समीर बड़े बाबू ओमप्रकाश के पास पहुंच कर मुसकराता हुआ बोला, ‘‘बड़े बाबू, यह संभालिए मेरा आज की छुट्टी का प्रार्थनापत्र, इसे बड़े साहब से मंजूर करा लेना.’’

‘‘अचानक छुट्टी कैसे ले रहे हो?’’ उस के हाथ से प्रार्थनापत्र ले कर ओमप्रकाश ने कुछ रूखे लहजे में पूछा.

‘‘कुछ जरूरी व्यक्तिगत काम है, बड़े बाबू.’’

‘‘कहीं तुम्हारी सगाई तो नहीं हो रही है?’’ सीमा कड़वे, चुभते स्वर में बोली, ‘‘ऐसा कोई समारोह हो, तो हमें बुलाने से…विशेषकर वंदना को बुलाने से घबराना मत. यह बेचारी तो ऐसे ही किसी समारोह में शामिल होने को तुम्हारे साथ पिछले 1 साल से प्रेमसंबंध बनाए हुए है.’’

‘‘यह…यह क्या ऊटपटांग बोल रही हो तुम, सीमा?’’ समीर के स्वर की घबराहट किसी से छिपी नहीं रही.

‘‘मैं ने क्या ऊटपटांग कहा है? कल राजेशजी की बेटी को देखने गए थे तुम. अगर लड़की पसंद आ गई होगी, तो अब आगे ‘रोकना’ या ‘सगाई’ की रस्म ही तो होगी न?’’

‘‘समीर,’’ सीमा की बात का कोई जवाब देने से पहले ही वंदना की आवाज सुन कर समीर उस की तरफ घूमा.

वंदना की लाल, आंसुओं से भरी आंखें देख कर वह हड़बड़ाए अंदाज में उस के पास पहुंचा और फिर चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘तुम रो रही हो क्या?’’

‘‘इस मासूम के दिल को तुम्हारी विश्वासघाती हरकत से गहरा सदमा पहुंचा है, अब यह रोएगी नहीं, तो क्या करेगी?’’ सीमा का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा.

‘‘यह आग तुम्हारी ही लगाई लग रही है मुझे. अब कुछ देर तुम खामोश रहोगी तो बड़ी कृपा समझूंगा मैं तुम्हारी,’’ सीमा  को गुस्से से घूरते हुए समीर नाराज स्वर में बोला.

‘‘समीर, तुम मेरे सवाल का जवाब दो, क्या तुम कल लड़की देखने गए थे?’’ वंदना ने रोंआसे स्वर में पूछा.

‘‘अगर तुम ने झूठ बोलने की कोशिश की, तो मैं इसी वक्त तुम्हें व वंदना को राजेशजी के घर ले जाने को तैयार खड़ी हूं,’’ सीमा ने समीर को चेतावनी दी. सीमा के कहे पर कुछ ध्यान दिए बगैर समीर नाराज, ऊंचे स्वर में वंदना से बोला, ‘‘अरे, चला गया था तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा है? मांपिताजी ने जोर डाला, तो जाना पड़ा मुझे मैं कौन सा वहां शादी को ‘हां’ कर आया हूं. बस, इतना ही विश्वास है तुम्हें मुझ पर. खुद भी खामखां आंखें सुजा कर तमाशा बन रही हो और मुझे भी लोगों से आलतूफालतू की बकवास सुनवा रही हो.’’ समीर की क्रोधित नजरों से प्रभावित हुए बगैर सीमा व्यग्ंयभरे स्वर में बोली, ‘‘इश्क वंदना से कर रहे हो और सुनते हो मातापिता की. कल को जनाब मातापिता के दबाव में आ कर शादी भी कर बैठे, तो इस बेचारी की तो जिंदगी बरबाद हो जाएगी या नहीं?’’

‘‘समीर, तुम गए ही क्यों लड़की देखने और मुझे बताया क्यों नहीं इस बारे में कुछ?’’ वंदना की आंखों से फिर आंसू छलक उठे.

‘‘मुझे खुद ही कहां मालूम था कि ऐसा कुछ कार्यक्रम बनेगा. कल अचानक ही मांपिताजी जिद कर के मुझे जबरदस्ती उस लड़की को दिखाने ले गए.’’

‘‘झूठा, धोखेबाज,’’ सीमा बड़बड़ाई और फिर पैर पटकती अपनी सीट की तरफ बढ़ गई.

ऐसे निकालें भड़ास

भड़ास वह है जिसे निकालने पर इंसान खुद को संतुष्ट महसूस करता है. जब तक इंसान इसे बाहर नहीं निकालता, बेचैन रहता है. भड़ास कई तरह से निकलती है, कभी गुस्से में, कभी गालीगलौज से, कभी हंसीमजाक में भी.

मार्केट में किसी से टक्कर लगी, सब्जी की टोकरी गिर गई और सारी सब्जी सड़क पर बिखर गई. आप के मुंह से निकल ही गया, ‘‘अंधा है?’’ आप ने महसूस किया होगा कि इन शब्दों के निकलते ही आप के मन का गुबार कम हो गया.

कई बार मुट्ठियां भिंच जाती हैं, सांस तेज और मुंह से ‘दूर हट’, ‘भाड़ में जा’ जैसे शब्द निकलते ही चले जाते हैं. यदि आप भी ऐसा करते हैं तो, इन शब्दों को ले कर मन में अपराधबोध न लाएं. आप ने तो मन की भड़ास निकाल कर अपना तनाव कम किया है.

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अगर आप किसी बात को ले कर मन ही मन कुढ़ते व कुंठित रहते हैं और चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते तो यह स्थिति आप के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती है. इस संदर्भ में हुए कई शोधों व अध्ययनों से यह स्पष्ट हो चुका है कि मनमस्तिष्क में भरा रहने वाला यह गुबार अगर समय रहते बाहर नहीं आ पाता तो लंबे समय तक चलने वाली इस हालत का दुष्प्रभाव सेहत पर भी पड़ने लगता है और सिरदर्द, हाई ब्लडप्रैशर और न जाने कौनकौन सी बीमारियां सिर उठाने लगती हैं. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि जहररूपी यह कुढ़न अंदर ही अंदर जमा न होती रहे, बल्कि धीरेधीरे बाहर आ जाए.

घरदफ्तर के काम का बोझ, बौस या टीचर की फटकार या दोस्तों में तकरार हो, एक बार मन में चल रहे असमंजसों को बकबका कर हलके हो लें. रोजमर्रा की जिंदगी में भड़ास निकालना एक थेरैपी है. इस थेरैपी पर काम कर रहे इटली के जौन पौर्किन कहते हैं, ‘‘आप हर समय खुद को तराशते, सुधारते नहीं रह सकते. भड़ास निकालने में कुछ गलत नहीं है.’’

दरअसल, इन नाशुके्र, तीखे शब्दों की अपनी ऊर्जा है. कभी ऐसे शब्दों को निकाल कर तो देखिए, कैसी ठंडक पहुंचेगी. यह भी जरूरी नहीं है कि विरोधी या नापसंद व्यक्ति हमेशा सामने ही हो, क्योंकि ऐसा होने पर तो बात और भी ज्यादा बिगड़ सकती है. इसलिए, उस के पीछे अगर उस का कोई प्रतीक चिह्न या पुतला आदि हो, तो भी काम बन सकता है.

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एक जानकारी के अनुसार, जापान में तो बड़ीबड़ी कंपनियों व कार्यालयों में ऐसे विशेष कक्ष की व्यवस्था का चलन भी रहा है, जिस में एक पुतला होता है. जब भी किसी कर्मचारी को अपने किसी सहयोगी कर्मचारी, अधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति की वजह से गुस्सा आता है या तनाव होता है तो वह उस पुतले को गालियां दे कर, मारपीट कर अपनी भड़ास निकाल लेता है.

कीले यूनिवर्सिटी में 2009 को हुए एक प्रयोग में स्टूडैंट्स को हाथ बर्फ से ठंडे पानी में डुबो कर रखने को कहा गया. उन में से जोजो प्रयोग के दौरान अपशब्द बोलते रहे वे ज्यादा देर तक अपने हाथ उस में डुबोए रख पाए.

दरअसल, सभ्य समाज में ऐसे शब्द बोलने की इजाजत नहीं है, पर दुनिया में ऐसा कोई समाज या देश नहीं, जहां लोग गालियां न देते हों. ऐसा माना गया है कि भले सारी दुनिया गाली दे, पर जापानी लोग गाली नहीं देते. जापानियों के बारे में चली आ रही इस धारणा को अपनी किताब ‘स्वेरिंग इज गुड फोर यू : द अमेजिंग साइंस एंड बैड लैंग्वेजेज’ में डाक्टर एम्मा बाइर्न झुठलाती हैं. उन के अनुसार, जापान में आम बातचीत के दौरान एक शब्द बोलते हैं ‘मैंको’. यह शब्द ऐसे बौडी पार्ट्स के लिए बोलते हैं जिन का नाम लेना सभ्यता के खिलाफ है. इस मामले में जापानी भी पीछे नहीं हैं.

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डाक्टर एम्मा ब्रिटिश रोबोट साइंटिस्ट हैं. एक रिसर्च पर न्यूरोसाइंस लैंड में काम करने के दौरान उन्होंने अनुभव किया कि गाली दे देने पर तनमन दोनों में तकलीफ कम होती है. वे कहती हैं कि सोसाइटी, परिवार या किसी संबंध में खुद को खारिज महसूस किए जाने पर जब कोई उलट कर गाली देता है, तो ठुकराए जाने के दर्द में कमी आती है. बुरे शब्द धारदार और नुकीले होते हैं. इन्हें बोल कर जंग जीतने का एहसास होता है.

देशविदेश की कई बड़ी कंपनियां अपने कर्मचारियों के बैठने और स्वतंत्ररूप से खुल कर बात करने के लिए खास प्रबंध रखती हैं. उद्देश्य यही रहता है कि उन के मन की खटासखीझ व गुस्सा बातों के जरिए बाहर आता रहे और वे तनावमुक्त हो कर काम कर सकें. तुच्छ समझे जाने वाले शब्द फूले गुब्बारे में पिन का काम करते हैं. किसी की अकड़ और ईगो को 2 मिनट में फुस्स कर सकते हैं. ये चेहरे पर चढ़े मुखौटों को उतार फेंकते हैं. एम्मा के अनुसार, ये शब्द ‘मस्टर्ड’ यानी सरसों की तरह है, जो स्वाद में खराब लेकिन सेहत के लिए फायदेमंद होता है.

एम्मा बाइर्न मानती हैं कि आपस में भाषा का खुलापन हो, बेबाक बातें बोली जाएं, तो वर्कप्लेस में लोगों के बीच अच्छी बौडिंग होती है. काम ज्यादा अच्छी तरह होता है. किसी को कोसते समय पुरुष अपनी निगाह में मजबूत, उग्र और पौरुष से भरपूर महसूस करते हैं.

अब बात तोड़फोड़ उपचार की. यह सुन कर ताजुब्ब हो रहा होगा. थोड़ीबहुत तोड़फोड़ करना आप को मानसिक सुखशांति प्रदान कर सकता है. असल में जीवन को आसान बनाने वाली कुछ चीजें ही हमारे तनाव का कारण बनती हैं. इसलिए उन या उन के जैसी दूसरी चीजों के साथ की गई तोड़फोड़ मनमस्तिष्क को सुकून देती है.

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कुछ समय पहले साइकोलौजिस्ट ‘बुलेटिन’ ने भी इस ‘डैमेज थेरैपी’ के बारे में बताया था. स्पेन के एक कबाड़खाने में तो लोगों को तोड़फोड़ करने की सेवा शुरू भी की जा चुकी है. 2 घंटे के ढाई हजार रुपए तनाव दूर भगाने की इस दवा से मरीजों को कितना लाभ होता है, इस बारे में ‘स्टोपस्ट्रैस’ नामक संगठन का दावा है कि उपचार के 2 घंटों की अवधि में आधे घंटे में ही आराम आने लगता है.

झुंझलाहट निकालने के फायदे

1. झुंझलाहट बाहर निकालें : पेन मैनेजमैंट में सहायक पति काम पर जाने के लिए तैयार हो रहे हैं. आप टिफिन पैक कर रही हैं. पति औफिस जाने की हबड़बड़ी मचा रहे हैं. वे आवाज पर आवाज दे रहे हैं. ऐसे में आप के पैर को ठोकर लग जाए, तो बहुत दर्द और गुस्सा आता है. अगर उस समय आप जिस चीज से टकराईं, उस पर झुंझला कर कोसते हुए कुछ खराब शब्द मुंह से निकालती हैं, तो इस से दर्द में राहत मिलती है.

2. इंगेज रखें : सिडनी यूनिवर्सिटी में लिंग्विसटिक्स की लैक्चरर मोनिका बेड़नार्क के अनुसार, कई टीवी शोज में गालियों की भरमार होती है. पर वे उतने ही पौपुलर होते हैं. ‘द वुल्फ औफ वौल स्ट्रीट’ फिल्म में हर 20 सैकंड में डायलौग के बीच एक ऐसा शब्द आ जाता था. यह फिल्म 5 बार औस्कर के लिए चुनी गई. दरअसल, अभद्र शब्द सुनते हुए दर्शकों की भड़ास निकलती है, वे सीटी बजाते हैं, तालियां पीटते हैं. यह सब उन को बांध कर रखता है.

3. आपस में बांधे : यह सच है कि सामान्य बातचीत में घटिया बातों के बम नहीं गिराए जाते. लेकिन बेडमार्क कहती हैं कि, बातों में थोड़ा छिछोरापन भी आ जाए, तो संबंध को मदद मिलती है. यानी, यह उन के बीच खुलेपन का संकेत है, मनोवैज्ञानिक रूप से ज्यादा अपनापन महसूस होता है. उन के साथ पक्की दोस्ती और आत्मीयता बनी रहती है.

4 कंट्रोल में रहता है सब : इंग्लिश साइकियाट्रिक नील बर्टन का मानना है कि जब आप किसी की ज्यादतियों पर पलट कर कोसते हुए जवाब देते हैं, तो महसूस होता है कि पलट कर आप ने भी वार किया. इस से आत्मविश्वास बढ़ता है कि आप स्थितियों को कंट्रोल में रख सकते हैं.

5 खुल कर हंसाए : जब आप दोस्तों के बीच हंसीमजाक में हलकीफुलकी बातचीत करते हैं, नौनवेज जोक सुनाते हैं, तो महफिल में सब खुल कर हंसते हैं. इस से मन खुश और सेहत अच्छी रहती है.

6 आसान अभिव्यक्ति : खराब भाषा बोलने या सुनने वाले का कोई नुकसान नहीं होता. एम्मा इसे उस की रचनात्मक, भावनात्मक अभिव्यक्ति कहती हैं. बाइर्न कहती हैं कि गाली देना हमारे पुरुषों का मारपीट के बगैर अपनी नाराजगी जाहिर करने का एक तरीका था. यह समय के साथ शुरू हुआ और इस में सहजता के साथ बदलाव आते गए, स्वरूप बदल गया. भड़ास निकालने या कोसने में कोई बुराई नहीं है.

बदल गया सेहत का पैमाना

इंडियन काउंसिल औफ मैडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के नैशनल इंस्टिट्यूट औफ न्यूट्रिशन (एनआईएन) ने 28 सितंबर को देश की खानपान आदतों पर एक रिपोर्ट जारी की है.’ भारत क्या खाता है’ टाइटल से प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक भारत के शहरों और गांवों में खानपान से जुड़ी आदतों में एक बहुत बड़ा अंतर सामने आया है.

यह रिपोर्ट कहती है कि शहरों में एब्डोमिनल ओबेसिटी यानी तोंद की समस्या 53.6 प्रतिशत लोगों को यानी हर दूसरे व्यक्ति को है. वहीं, गांवों में यह 18.8 प्रतिशत लोगों की समस्या है. बात जब ओवरवेट और ओबेसिटी (मोटापे) की आती है तो उस में भी शहर (31.4 प्रतिशत और 12.5 प्रतिशत) गांवों (16.6 प्रतिशत और 4.9 प्रतिशत) से आगे है. यह रिपोर्ट कहती है कि शहरों में क्रौनिक एनर्जी डैफिशियंसी 9.3 प्रतिशत है, जबकि गांवों में यह 35.4 प्रतिशत है. इस का मतलब है कि गांवों में रहने वाला हर तीसरा व्यक्ति खानपान से जुड़े किसी न किसी विकार से जूझ रहा है. शरीर को एनर्जी की जरूरतों को पूरा करने लायक खाना उन्हें नहीं मिल पा रहा है. शहरों में लोग हर दिन 1943 किलो कैलोरी ले रहे हैं, जो 289 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 51.6 ग्राम फैट्स, 55.4 ग्राम प्रोटीन से आ रही है. वहीं, ग्रामीण इलाकों में लोग 2081 किलो कैलोरी ले रहे हैं. यह 368 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 36 ग्राम फैट्स और 69 ग्राम प्रोटीन से आ रही है.

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फूड ग्रुप्स देखें तो शहरों में 998 किलो कैलोरी अनाज से, 265 किलो कैलोरी फैट्स से और 119 किलो कैलोरी दालोंफलियों से आती है. वहीं, गांवों में एनर्जी सोर्स के तौर पर अनाजों की भागीदारी (1358 किलो कैलोरी) सब से ज्यादा है. इस के बाद फैट्स (145) दाल व फलियां (144) आती हैं. रिपोर्ट कहती है कि 66 प्रतिशत प्रोटीन का सोर्स दालें, फलियां, नट्स, दूध, मांस होना चाहिए. लेकिन, ऐसा हो नहीं रहा. फल और सब्जियां कम खाने से डाइबिटीज और दूध व दूध के प्रोडक्ट्स कम खाने से हाइपरटैंशन (हाई ब्लड प्रैशर) का खतरा बढ़ता जा रहा है. आईसीएमआर के हैदराबाद स्थित नैशनल इंस्टिट्यूट औफ न्यूट्रिशन के मुताबिक अनाज आप की 45 प्रतिशत एनर्जी का सोर्स होना चाहिए. हकीकत यह है कि शहरों में 51प्रतिशत और गांवों में 65.2 प्रतिशत एनर्जी सोर्स के तौर पर अनाज का सेवन हो रहा है.

एनर्जी सोर्स के तौर पर दालों, फलियों, मांस, अंडे और मछली का योगदान 11 प्रतिशत है, जबकि यह 17 प्रतिशत होना चाहिए. इसी तरह, गांवों में 8.7 प्रतिशत और शहरों में 14.3 प्रतिशत आबादी ही दूध और दूध के प्रोडक्ट्स का सही मात्रा में सेवन करती है. सब्जियों की सही मात्रा लेने वाले भी गांवों में सिर्फ 8.8 प्रतिशत और शहरों में 17 प्रतिशत ही है. यदि आप नट्स और औइल सीड्स की बात करें तो सिर्फ 22 प्रतिशत आबादी गांवों में और 27 प्रतिशत आबादी शहरों में इस का सही मात्रा में सेवन कर रही है. यह रिपोर्ट कहती है कि शहरों में लोग एनर्जी की जरूरत का 11 प्रतिशत हिस्सा चिप्स, बिस्कुट्स, चौकलेट्स, मिठाइयों और जूस से लेते हैं. वहीं, गांवों में स्थिति अच्छी है. वहां ऐसा करने वाले सिर्फ 4 प्रतिशत हैं. अच्छी क्वालिटी का प्रोटीन 5 प्रतिशत ग्रामीण और 18 प्रतिशत शहरी आबादी ही कर रही है. क्या है आदर्श थाली सही खानपान वह है जिस से आप को पर्याप्त एनर्जी मिले.

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यही बैलेंस्ड डाइट कहलाता है. इस के लिए आप की 45 प्रतिशत कैलोरी एनर्जी का सोर्स अनाज होना चाहिए. 17 प्रतिशत कैलोरी एनर्जी दालों और फ्लैश फूड्स और 10 प्रतिशत कैलोरी एनर्जी दूध और दूध के प्रोडक्ट्स से मिलनी चाहिए. फैट इनटैक 30 प्रतिशत या उस से कम होना चाहिए. पहली बार सिफारिशों में फाइबर बेस्ड एनर्जी इनटैक शामिल किया है. इस के अनुसार रोज 40 ग्राम फाइबरयुक्त भोजन सेफ है. 5 ग्राम आयोडीन या नमक और 2 ग्राम सोडियम की इनटैक लिमिट तय की गई है. 3,510 मिलीग्राम पौटेशियम भी शरीर में न्यूट्रिशनल वैल्यू जोड़ेगी. सीडेंटरी, मौडरेट और हैवी एक्टिविटी वाले पुरुषों के लिए 25, 30 और 40 ग्राम फैट्स की सिफारिश की गई है. इसी तरह की एक्टिविटी वाली महिलाओं के लिए फैट्स के इनटैक 20, 25 और 30 ग्राम प्रतिदिन सैट किए गए हैं.

2010 में पुरुषों और महिलाओं के लिए फैट इनटैक की सिफारिशें समान रखी गई थीं. बौडी मास इंडैक्स के नए पैमाने नैशनल इंस्टिट्यूट औफ न्यूट्रिशन ने सामान्य बौडी मास इंडैक्स के नए पैमाने भी तय किए हैं, जिस के तहत औसत वजन में 5 किलो की बढ़ोत्तरी की गई है. दरअसल लोगों की डाइट में आए बदलाव की वजह से ये नए मानक तय किए गए हैं. साल 2010 में जहां भारतीय पुरुषों के लिए आदर्श वजन का मानक 60 किलो था, अब उसे बढ़ा कर 65 किलो कर दिया गया है. वहीं, 2010 में महिलाओं का आदर्श वजन का मानक 50 किलो था, जो अब बढ़ कर 55 किलो हो गया है. वजन के साथसाथ भारतीय पुरुषों और महिलाओं की आदर्श लंबाई के मानक में भी बदलाव किया गया है. वर्ष 2010 के स्टैंडर्ड के मुताबिक पहले जहां भारतीय पुरुषों की रैफरैंस लंबाई 5.6 फुट और महिलाओं की लंबाई 5 फुट थी, वहीं नए मानकों के अनुसार अब पुरुषों की औसत लंबाई बढ़ा कर 5.8 फुट और महिलाओं की 5.3 फुट कर दी गई है. अब सामान्य बौडी मास इंडैक्स जिसे शौर्ट में बीएमआई कहते हैं, इन पैमानों पर ही परखे जाएंगे. गौरतलब है कि वजन और लंबाई के अनुपात से ही बौडी मास इंडैक्स निकाला जाता है.

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एक निर्धारित बीएमआई से यह तय किया जाता है कि किसी व्यक्ति का वजन ज्यादा है या कम. वैज्ञानिकों का कहना है कि भारतीयों की डाइट में पोषक तत्त्व वाले खाने की बढ़ोत्तरी हुई है. लोग अपनी इम्युनिटी और स्ट्रैंथ को ले कर जागरूक हुए हैं. इस के अलावा व्यायाम में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है. जिम और स्पोर्ट को लोगों ने अपनी दिनचर्या में शामिल किया है जिस के फलस्वरूप उन की हड्डियों में मजबूती और भारीपन बढ़ा है, वहीं भारतीयों की औसत लंबाई में भी इजाफा हुआ है. इन्हीं बातों के मद्देनजर आदर्श बौडी मास इंडैक्स में ये बदलाव किए गए हैं. खास बात यह है कि इस डेटा में ग्रामीण इलाके के लोगों को भी शामिल किया गया है. 10 साल पहले की गई स्टडी में केवल शहरी इलाके के लोगों को शामिल किया गया था. पहली बार अलगअलग फूड ग्रुप्स से कुल एनर्जी, प्रोटीन, फैट्स और कार्बोहाइड्स का योगदान बताया गया है.

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इस में 2 राष्ट्रीय स्तर के सर्वे डेटा का इस्तेमाल किया गया है. रिपोर्ट में ‘माइ प्लेट’ की सिफारिश की गई है. आप की थाली में खाने का सही अनुपात क्या होना चाहिए, यह बताया गया है. इस से इम्यून फंक्शन मजबूत होगा. डाइबिटीज, हाइपरटैंशन, कोरोनरी हार्ट डिजीज, स्ट्रोक, कैंसर, आर्थ्रराइटिस आदि बीमारियों से बचा भी जा सकता है. ‘भारत क्या खाता है’ रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 2015-16 के नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे-4, नैशनल न्यूट्रिशन मौनिटरिंग ब्यूरो, डब्ल्यूएचओ और इंडियन एकैडमी औफ पीडियाट्रिक्स 2015 की रिपोर्ट्स को स्टडी किया गया है. आईसीएमआर की एक्सपर्ट कमिटी नैशनल इंस्टिट्यूट औफ न्यूट्रिशन ने वयस्क पुरुषों और महिलाओं के लिए कैल्शियम की जरूरी मात्रा भी बढ़ाई है. यह अब प्रतिदिन 1000 मिलीग्राम है. साल 2010 में प्रतिदिन कैल्शियम की 600 मिलीग्राम मात्रा निर्धारित की गई थी. मेनोपौज के बाद महिलाओं को 1200 मिलीग्राम कैल्शियम लेने की सलाह दी गई है.

बिचौलिए-भाग 4 : समीर ने वंदना को धोखा क्यों दिया

‘‘सीमा, यह वंदना दिनेश साहब के साथ कहां गई है?’’ बगल से गुजर रही सीमा से समीर ने विचलित स्वर में प्रश्न किया.‘‘मुझे नहीं मालूम, समीर. वैसे तुम ने यह सवाल क्यों किया?’’ सीमा के होंठों पर व्यंग्यभरी मुसकान उभरी.

‘‘यों ही,’’ कह कर समीर माथे पर बल डाले आगे बढ़ गया. सीमा मन ही मन मुसकरा उठी. वंदना के सिर में दर्द था, भोजनावकाश में यह उस के मुंह से सुन कर वह सीधी दिनेश साहब के कक्ष में घुस गई.

‘‘सर, आज शाम वंदना को आप अपने स्कूटर से उस के घर छोड़ देना. उस की तबीयत ठीक नहीं है,’’ उन से ऐसा कहते हुए सीमा की आंखों में उभरी चमक उन की नजरों से छिपी नहीं रही.

‘‘सीमा, तुम्हारी आंखें बता रही हैं कि तुम्हारे इस इरादे के पीछे कुछ छिपा मकसद भी है,’’ उन्होंने मुसकरा कर टिप्पणी की.

‘‘आप का अंदाजा बिलकुल ठीक है, सर. आप के ऐसा करने से समीर ईर्ष्या महसूस करेगा और फिर उसे सही राह पर जल्दी लाया जा सकेगा.’’

‘‘यानी कि तुम चाहती हो कि समीर वंदना और मेरे बीच के संबंध को ले कर गलतफहमी का शिकार हो जाए?’’ दिनेश साहब फौरन हैरानपरेशान नजर आने लगे.

‘‘सर, घबराइए मत. आप को ऐसा दर्शाने का सिर्फ अभिनय करना है. वंदना के साथ कुछ नहीं करना पड़ेगा आप को. बस, समीर को दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होना चाहिए जैसे वंदना और आप दिनप्रतिदिन एकदूसरे के ज्यादा नजदीक आते जा रहे हो. उस के दिल में ईर्ष्याग्नि भड़काने की जिम्मेदारी मेरी होगी.’’

‘‘कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए?’’

‘‘कुछ नहीं होगा, सर. मैं ने इस योजना पर खूब सोचविचार कर लिया है.’’

‘‘वंदना और समीर की जोड़ी को सलामत रखने को तुम बिचौलिए की भूमिका बखूबी निभा रही हो, सीमा.’’

‘‘बिचौलिए के इस कार्य में आप मेरे बराबर के साथी हैं, यह मत भूलिए, सर,’’ सीमा की इस बात पर उन दोनों का सम्मिलित ठहाका कक्ष में गूंज उठा.

‘‘चाय पियोगी न?’’ एकाएक उन्होंने पूछा तो सीमा से हां या न कुछ भी कहते नहीं बना.

दिनेश साहब के कक्ष में उस ने पहले कभी चाय इसलिए नहीं पी थी क्योंकि कभी उन्होंने ऐसा प्रस्ताव उस के सामने रखा ही नहीं. उस के मौन को स्वीकृति समझ उन्होंने चपरासी को बुला कर 2 कप चाय लाने को कहा. सीमा और वे फिर काफी देर तक एकदूसरे की व्यक्तिगत, घरेलू जिंदगी के बारे में वार्त्तालाप करते रहे. इस पूरे सप्ताह समीर ने वंदना के साथ खुल कर बातें करने के कई प्रयास किए, पर हर बार वह असफल रहा. वंदना उस से कुछ कहनेसुनने को तैयार नहीं थी. समीर की बेचैन नजरें बारबार वंदना के कक्ष की तरफ उठती देख कर सीमा मन ही मन मुसकरा उठती थी. दिनेश साहब की पीठ को गुस्सेभरे अंदाज में समीर को घूरता देख कर तो उस का दिल खिलखिला कर हंसने को करता था. अपनी योजना को आगे बढ़ाने के इरादे से उस ने दूसरे शनिवार को मिलने वाली आधे दिन की छुट्टी का फायदा उठाने का कार्यक्रम बनाया.

‘‘वंदना, कल शनिवार है और तुझे दिनेश साहब के साथ फिल्म देखने जाना है. मैं आज शाम 2 टिकट लेती जाऊंगी,’’ सीमा का यह प्रस्ताव सुन कर वंदना घबरा उठी.

‘‘यह मुझ से नहीं होगा, दीदी,’’ वंदना ने परेशान लहजे में कहा.

‘‘देख, समीर से तेरे दूर रहने के कारण वह अब पूरा दिन तेरे बारे में ही सोचता रहता है. दिनेश साहब और तेरे बीच कुछ चक्कर चल रहा है, इस वहम ने उसे परेशान कर रखा है. अब अगर तू दिनेश साहब के साथ फिल्म देखने चली जाती है तो वह बिलकुल ही बौखला उठेगा. तू ऐसे ही मेरे कहने पर चलती रही, तो वह बहुत जल्दी ही तेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखने को मजबूर हो जाएगा,’’ सीमा ने उसे समझाया.

कुछ देर सोच में डूबी रह कर वंदना ने कहा, ‘‘दीदी, आप की बात में दम है, पर मैं अकेली उन के साथ फिल्म देखने नहीं जाऊंगी. मुझे शर्म आएगी. हां, एक बात जरूर हो सकती है.’’

‘‘कौन सी बात?’’

‘‘आप भी हमारे साथ चलना. आप की उपस्थिति से मैं सहज रहूंगी और समीर को जलाने की हमारी योजना भी कामयाब रहेगी.’’ सीमा ने कुछ सोचविचार कर इस प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे दी. दिनेश साहब की रजामंदी हासिल करना उस के लिए कोई कठिन नहीं था. वे तीनों फिल्म देखने जा रहे हैं, यह जानकारी सीमा द्वारा समीर को तब मिली जब उस ने बड़े बाबू को ऊंचे स्वर में यह बात शनिवार की सुबह बताई. समीर के चेहरे का पहले गुस्से से तमतमाना और फिर उस के चेहरे पर उड़ती नजर आती हवाइयां, ये दोनों बातें ही सीमा की नजरों से छिपी नहीं रही थीं. उन तीनों का इकट्ठा फिल्म देखने का कार्यक्रम सफल नहीं हुआ, पर यह बात समीर नहीं जान सका था. वह तो आंखों से भालेबरछियां बरसाता उन्हें तब तक कुछ दूरी पर खड़ा घूरता रहा था, जब तक सीमा और वंदना को ले कर तिपहिया स्कूटर व दिनेश साहब का स्कूटर औफिस के कंपाउंड से चल नहीं पड़े थे.

हाल में प्रवेश करने से कुछ ही मिनट पूर्व वंदना का छोटा भाई दीपक उसे बुला कर घर ले गया था. वंदना की मां की तबीयत अचानक खराब हो जाने के कारण उस का बुलावा आया था. फिल्म सीमा और दिनेश साहब को ही देखने को मिली. सीमा झिझकते हुए अंदर घुसी थी उन के साथ. उन के शालीन व सभ्य व्यवहार के कारण वह जल्दी ही सामान्य हो गई थी. लोग उन्हें यों साथसाथ देख कर क्या कहेंगे व क्या सोचेंगे, इस बात की चिंता करना भी उसे तब मूर्खतापूर्ण कार्य लगा था. फिल्म की समाप्ति के बाद दोनों एक रेस्तरां में कौफी पीने भी गए. वार्त्तालाप वंदना और समीर के आपसी संबंधों के विश्लेषण से जुड़ा रहा था. दोनों ही इस बात से काफी उत्साहित व उत्तेजित नजर आते थे कि समीर अब वंदना का प्यार व विश्वास फिर से हासिल करने को काफी बेचैन नजर आने लगा था.

‘‘मैं समझती हूं कि अगले सप्ताह के अंत तक समीर और वंदना के केस में सफलता मिल जाएगी,’’ सीमा ने विश्वासभरे स्वर में आशा व्यक्त की.

‘‘तुम्हारा मतलब है समीर वंदना के साथ शादी का प्रस्ताव रख देगा?’’

‘‘हां.’’

‘‘तब तो हम बिचौलियोें का काम भी समाप्त हो जाएगा?’’

‘‘वह तो हो ही जाएगा.’’

‘‘पर इस का मुझे कुछ अफसोस रहेगा. मजा आ रहा था मुझे तुम्हारे निर्देशन में काम करने में, सीमा. तुम्हारा दिल सोने का बना है.’’

‘‘प्रशंसा के लायक मैं नहीं, आप हैं. आप के सहयोग के बिना कुछ भी होना संभव नहीं होता, सर.’’ ‘‘मेरी एक बात मानोगी, सीमा?’’ सीमा ने प्रश्नसूचक निगाहों से उन की तरफ देखा, ‘‘औफिस के बाहर मुझे ‘सर’ मत कहा करो. मेरा नाम ले सकती हो तुम.’’ सीमा से कोई जवाब देते नहीं बना. अचानक उस की दिल की धड़कनें तेज हो गईं.

‘‘तुम मुझे औफिस के बाहर दिनेश बुलाओगी, तो मुझे अच्छा लगेगा,’’ यह कहते हुए उन का गला सूख गया.

‘‘मैं…मैं कोशिश करूंगी, सर,’’ कह कर सीमा हंस पड़ी तो उन के बीच का माहौल फिर सहज हो गया था. रेस्तरां से निकल कर वे कुछ देर बाजार में घूमे. फिर उन के स्कूटर पर बैठ कर सीमा घर लौटी.

‘‘आप, अंदर आइए न.’’

उस के इस निमंत्रण पर दिनेश साहब का सिर इनकार में हिला, ‘‘मैं फिर कभी आऊंगा सीमा, और जब आऊंगा, खाना खा कर जाऊंगा.’’

‘‘अवश्य स…नहीं, दिनेश,’’ सीमा मुसकराई, ‘‘मेरी आज की शाम बहुत अच्छी गुजरी है, इस के लिए धन्यवाद, दिनेश. अच्छा, शुभरात्रि.’’

सीमा जिस अंदाज में लजा कर तेज चाल से अपने घर के मुख्यद्वार की तरफ गई, उस ने दिनेश साहब के बदन में झनझनाहट पैदा कर दी. दरवाजे पर पहुंच सीमा मुड़ी और एक हाथ हिलाने के बाद मुसकराती हुई घर में प्रवेश कर गई.

दिनेश साहब स्कूटर पर अपने घर की तरफ जाते ताजा देखी फिल्म का एक रोमांटिक गीत सारे रास्ते गुनगुनाते रहे. समीर और वंदना के मध्य बिचौलियों की भूमिका निभाते हुए दोनों खुद भी प्रेम की डोरी में बंध गए थे, यह बात दोनों की समझ में आ गई थी. सीमा के अनुमान के मुताबिक, वंदना और समीर के बीच खेले जा रहे नाटक का अंत हुआ जरूर पर उस अंदाज में नहीं जैसा सीमा ने सोच रखा था. वंदना को दिनेशजी के पीछे स्कूटर पर बैठ कर लौटते देख समीर किलसता है, इस की जानकारी उस के तीनों सहयोगियों को थी. वे पूरा दिन समीर के मुंह से उन के खिलाफ निकलते अपशब्द भी सुनते रहते थे. सीमा को नहीं, पर ओमप्रकाश और महेश को समीर से कुछ सहानुभूति भी हो गई थी. उन्हें भी अब लगता था कि वंदना और दिनेश साहब के बीच कुछ अलग तरह की खिचड़ी पक रही थी. वे उस की बातों पर कुछ ज्यादा ध्यान देते थे. गुरुवार को भोजनावकाश में दिनेशजी और वंदना साथसाथ सीमा के पास किसी कार्यवश आए, तो समीर अचानक खुद पर से नियंत्रण खो बैठा.

‘‘सर, मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं,’’ अपना खाना छोड़ कर समीर उन तीनों के पास पहुंच, तन कर खड़ा हो गया.

‘‘कहो, क्या कहना चाहते हो,’’ उन्होंने गंभीर लहजे में पूछा.

ओमप्रकाश और महेश उत्सुक दर्शक की भांति समीर की तरफ देखने लगे. सीमा के चेहरे पर तनाव झलक उठा. वंदना कुछ घबराई सी नजर आ रही थी.

‘‘सर, आप जो कर रहे हैं, वह आप को शोभा नहीं देता,’’ समीर चुभते स्वर में बोला.

‘‘क्या मतलब है तुम्हारी इस बात का?’’ वे गुस्सा हो उठे.

‘‘वंदना और आप की कोई जोड़ी नहीं बनती. आप को उसे फंसाने की गंदी कोशिशें छोड़नी होंगी.’’

‘‘यह क्या बकवास…’’

‘‘सर, एक मिनट आप शांत रहिए और मुझे समीर से बात करने दीजिए,’’ दिनेश साहब से विनती करने के बाद सीमा समीर की तरफ घूम कर तीखे लहजे में बोली, ‘‘तुम्हें वंदना के मामले में बोलने का कोई अधिकार नहीं, समीर. वह अपना भलाबुरा खुद पहचानने की समझ रखती है.’’

‘‘मुझे पूरा अधिकार है वंदना के हित को ध्यान में रख कर बोलने का. तुम लाख वंदना को भड़का लो, पर हमें अलग नहीं कर पाओगी, मैडम सीमा.’’

‘‘अलग मैं नहीं करूंगी तुम दोनों को, मिस्टर. तुम ही उसे धोखा दोगे, इस बात को ले कर वंदना के दिमाग में कोई शक नहीं रहा है,’’ सीमा भड़क कर बोली.

‘‘यह झूठ है.’’

‘‘तुम ही राजेशजी की बेटी को देखने गए थे. फिर तुम्हारी बात पर कौन विश्वास करेगा?’’ सीमा ने मुंह बिगाड़ कर पूछा.

‘‘वह…वह मेरी गलती थी,’’ समीर वंदना की तरफ घूमा, ‘‘मुझे अपने मातापिता के दबाव में नहीं आना चाहिए था, वंदना. पर उस बात को भूल जाओ. यह सीमा तुम्हें गलत सलाह दे रही है. दिनेश साहब के साथ तुम्हारा कोई मेल नहीं बैठता.’’

‘‘तो किस के साथ बैठता है?’’ वंदना को कुछ कहने का अवसर दिए बिना सीमा ने तेज स्वर में पूछा.

‘‘म…मेरे साथ. मैं वंदना से प्यार करता हूं,’’ समीर ने अपने दिल पर हाथ रखा.

‘‘तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता, समीर.’’

‘‘मैं वंदना से शादी करूंगा.’’

‘‘तुम ऐसा करोगे, क्या प्रमाण है इस बात का?’’

‘‘प्रमाण यह है कि मेरे मातापिता हमारी शादी को राजी हो गए हैं. उन्हें मैं ने राजी कर लिया है. पर…पर मुझे लगता है कि मैं वंदना का प्यार खो बैठा हूं,’’ समीर एकाएक उदास हो गया.

‘‘कब तक कर लोगे तुम वंदना से शादी?’’ सीमा ने उस के आखिरी वाक्य को नजरअंदाज कर सख्त लहजे में पूछा.

‘‘इस महीने की 25 तारीख को.’’

‘‘यानी 10 दिन बाद?’’ सीमा ने चौंक कर पूछा.

‘‘हां.’’

सीमा, वंदना और दिनेश साहब फिर इकट्ठे एकाएक मुसकराने लगे. समीर आर्श्चयभरी निगाहों से उन्हें देखने लगा.

‘‘समीर, वंदना और मेरे संबंध पर शक मत करो,’’ दिनेश साहब ने कदम बढ़ा कर दोस्ताना अंदाज में समीर के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘वंदना सिर्फ मेरी है, मेरे दिल का यह विश्वास तुम्हारी पिछले दिनों की हरकतों से डगमगाया है, वंदना,’’ समीर आहत स्वर मेें बोला.

‘‘वे सब बातें मेरे निर्देशन में हुई थीं, समीर,’’ सीमा मुसकराते हुए बोली, ‘‘वह सब एक सोचीसमझी योजना थी. सर और मेरी मिलीभगत थी इस मामले में. वह सब नाटक था.’’

‘‘मैं कैसे विश्वास कर लूं तुम्हारी बातों  का, सीमा?’’ समीर अब भी परेशान व चिंतित नजर आ रहा था.

‘‘मैं कह रही हूं न कि वंदना और दिनेश साहब के बीच कोई चक्कर नहीं है,’’ सीमा खीझ भरे स्वर में बोली.

समीर फिर भी उदास खड़ा रहा. वातावरण फिर तनाव से भर उठा.

‘‘भाई, तुम्हारा विश्वास जीतने का अब एक ही तरीका मुझे समझ में आता है,’’ दिनेश साहब कुछ झिझकते हुए बोले, ‘‘मैं प्रेम करता हूं, पर वंदना से नहीं. कल शाम ही सीमा और मैं ने जीवनसाथी बनने का निर्णय लिया है,’’

‘‘सच, सीमा दीदी?’’ वंदना के इस प्रश्न के जवाब में सीमा का गोरा चेहरा शर्म से गुलाबी हो उठा.

‘‘हुर्रे,’’ एकाएक समीर जोर से चिल्ला उठा, तो सब उस की तरफ आश्चर्य से देखने लगे.

‘‘बहुत खुश हो न, वंदना को पा कर तुम, समीर,’’ दिनेश साहब हंस कर बोले, ‘‘तुम्हें सीमा का दिल से धन्यवाद करना चाहिए. वह एक समझदार बिचौलिया न बनती, तो वंदना और तुम्हारी शादी की तारीख इतनी जल्दी निश्चित न हो पाती.’’

‘‘शादी हमारी तो बहुत पहले से निश्चित है, सर. मुझे ही नहीें, हम सब को इस वक्त जो बेहद खुशी का अनुभव हो रहा है, वह इस बात का कि सीमा और आप ने जीवनसाथी बनने का निर्णय ले लिया है,’’ कहते हुए समीर अपनी मेज के पास पहुंचा और दराज में से एक कार्ड निकाल कर उस ने उन को पकड़ाया. कार्ड वंदना और समीर की शादी का था जो वाकई 25 तारीख को होने जा रही थी. कार्ड पढ़ कर सीमा और दिनेश साहब  के मुंह हैरानी से खुले रह गए. वंदना मुसकराती हुई समीर के पास आ कर खड़ी हो गई. समीर उस का हाथ अपने हाथ में ले कर प्रसन्नस्वर में बोला, ‘‘सर, वंदना और मेरी अनबन नकली थी. सीमा और आप के जीवन के एकाकीपन को समाप्त करने को पिछले कई दिनों से हम सब ने एक शानदार नाटक खेला है.

‘‘हमारी योजना में बड़े बाबू, महेशजी, वंदना और मैं ही नहीं, मेरे मातापिता, सीमा की मां, मामाजी और मामाजी के पड़ोसी राजेशजी तक शामिल थे. मेरे लड़की देखने जाने की झूठी खबर से हमारी योजना का आरंभ हुआ था. वंदना और मैं नहीं, सीमा और आप हमारे इशारों पर चल रहे थे. अब कहिए. बढि़या बिचौलिए हम रहे या आप?’’ ‘‘धन्यवाद तुम सब का,’’ दिनेशजी ने लजाती सीमा का हाथ थामा तो सभी ने तालियां बजा कर उन्हें सुखी भविष्य के लिए अपनीअपनी शुभकामनाएं देना आरंभ कर दिया.

 

जैविक गुड़ से मुनाफा

गन्ने की खेती करने वाले किसानों को चीनी मिल मालिकों की मनमानी के चलते अपनी फसल के वाजिब दाम नहीं मिल पाते हैं. सालभर मेहनत करने वाला किसान गन्ने की फसल को बेचने चीनी मिल पहुंचता है, तो 3-4 दिन लाइन में लगने के बाद फसल की तुलाई होती है और महीनेभर बाद फसल के दाम मिलते हैं. गन्ने की खेती में आने वाली इन मुश्किलों से नजात पाने के लिए किसानों ने गन्ना फसल के प्रोडक्ट्स बनाने शुरू कर दिए हैं. मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में सब से ज्यादा रकबे में गन्ने की खेती होती है. जिले के नौजवान किसानों ने गन्ना फसल से तरहतरह के उत्पाद बना कर उन की ब्रांडिंग कर के काफी मुनाफा कमाया है. पिछले 3 साल से जैविक तरीके से गन्ना उत्पादन करने वाले गाडरवारा तहसील के गोलगांव के किसान योगेश कौरव ने इस साल 20 एकड़ में गन्ना फसल लगाई है. मिल मालिकों के शोषण से बचने और अपनी फसल के सही दाम पाने के लिए उन्होंने गन्ने के अलगअलग उत्पाद तैयार किए हैं. उन्होंने जिले में सब से पहले गुड़ का ऐक्सपोर्ट लाइसैंस बनवाया है.

मुंबई गुजरात के वैंडर के जरीए वे आधा से ले कर एक किलोग्राम तक के गुड़ के पैकेट तैयार करते हैं. उन के गुड़ की आपूर्ति अमेरिका, यूएई, श्रीलंका और सिंगापुर तक होती है. योगेश कौरव कहते हैं कि उन्होंने 5 ग्राम गुड़ वाली कैंडी भी तैयार की है और अभी कुछ मशीनें भी मंगवाई हैं. मिलता है मुनाफा योगेश कौरव ने अपने फार्महाउस पर 2 दर्जन लोगों को रोजगार दे रखा है और उन की मदद से गुड़ के उत्पाद जैसे कैंडी, जैगरी पाउडर और विनेगर तैयार किया जाता है. गुड़ से तैयार किए गए इन उत्पादों की पैकिंग कर इसे औनलाइन मार्केटिंग के जरीए देश के अलगअलग इलाकों में भेजा जाता है. सीधे मिल मालिकों या गुड़ भट्ठी वालों को गुड़ बेचने के बजाय उस के इस तरह से उत्पाद बना कर बेचने से उन्हें काफी मुनाफा मिलता है. इस तकनीक को आसपास के कुछ गांवों के किसान भी सीख रहे हैं. अलगअलग फ्लेवर में गुड़ पहले गुड़ सिर्फ मीठे स्वाद के लिए जाना जाता था, परंतु अब इस में अदरक, धनिया, इलायची का भी फ्लेवर मिलेगा.

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इस की कीमत सामान्य गुड़ से थोड़ी ज्यादा होगी, पर इसे पसंद करने वाले लोग महंगा गुड़ लेने को तैयार हैं. आजकल फ्लेवर वाले गुड़ की मांग बाजार में ज्यादा है. इसी का फायदा उठा कर गन्ने की खेती करने वाले किसान जैविक तरीके से बिना कैमिकल का इस्तेमाल कर अलगअलग फ्लेवर में गुड़ को बना रहे हैं. यह गुड़ 5,00 किलोग्राम, 1 किलोग्राम, 2 किलोग्राम और 5 किलोग्राम की पैकिंग में तैयार किया जाता है. इसी तरह फ्लेवर वाली गुड़ की कैंडी 20 ग्राम, 50 ग्राम में बनाई जाती हैं. प्रशासन करेगा मदद इस बार गन्ना किसानों की मदद के लिए कृषि विभाग और प्रशासन ने भी खासा तैयारी की है. जिले में तकरीबन 65,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में गन्ने का उत्पादन हो रहा है.

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इस में 20 से 25 किसान 150 से 200 एकड़ रकबे में जैविक पद्धति से न केवल गन्ने का उत्पादन कर रहे हैं, बल्कि जैविक गुड़ बनाने का काम भी कर रहे हैं. गन्ना उत्पादन के मामले में मध्य प्रदेश में अपनी पहचान बना चुके नरसिंहपुर जिले में जैविक पद्धति से उत्पादित गन्ने से बनाए जा रहे गुड़ को देशभर में बाजार देने तैयारी है. इस के लिए गुड़ के आउटलेट तैयार होंगे और जैविक गुड़ की कैंडी, जैगरी पाउडर, विनेगर जैसे उत्पाद भी तैयार किए जाएंगे. उपसंचालक, कृषि, राजेश त्रिपाठी कहते हैं कि जैविक खेती करने वाले किसानों के साथ कलक्टर की बैठक हुई थी. इस में किसानों ने मांग की है कि इस की औनलाइन बिक्री के लिए पोर्टल बनाया जाए. साथ ही, हाटबाजार की व्यवस्था हो. गुड़ परीक्षण के लिए लैब व भूमि पंजीयन प्रमाणपत्र का खर्चा कम हो. जनवरी माह में गुड़ की ब्रांड वैल्यू बढ़ाने के लिए गुड़ फैस्टिवल मनाए जाने की भी योजना है. इस में देश के कई राज्यों से शोधकर्ता व माहिर विशेषज्ञ बुलाए जाएंगे.

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नरसिंहपुर के कृषि विज्ञानी डा. आशुतोष शर्मा कहते हैं कि हम रेलवे स्टेशनों पर इस के स्टाल लगा कर व विज्ञापन करा कर किसानों को लाभ पहुंचा सकते हैं. नरसिंहपुर जिले के कलक्टर वेदप्रकाश का कहना है कि गुड़ की ब्रांडिंग करवाने के लिए योजना बनी है, जिस से जिले के जैविक गुड़ को अच्छा बाजार मिल सके. दूसरों के लिए प्रेरणा जिले के उन्नत खेती करने वाले किसान राकेश दुबे ने गन्ने के उत्पादों की ब्रांडिंग कर किसानों के लिए नई राह दिखाई है. उस के बाद योगेश कौरव और आसपास के दूसरे किसानों ने इस तकनीक के जरीए गन्ने की खेती से भरपूर मुनाफा कमाया है. ग्राम खैरी बघोरा के किसान नीरज पटेल कहते हैं कि जैविक गुड़ के फायदे जान कर उन्होंने अभी एक एकड़ में गन्ना लगाया है. बाद में इस का रकबा बढ़ाएंगे. बटेसरा के किसान युवराज सिंह कहते हैं कि जैविक गुड़ बेचने के लिए बाजार नहीं मिलता, जिस से मजबूरी में स्थानीय मंडी में ही बेचना पड़ता है. यदि जैविक गुड़ के लिए बाजार मिलेगा, तो किसानों को फायदा होगा. गन्ने के जैविक उत्पाद बनाने की जानकारी के लिए योगेश कौरव के मोबाइल नंबर 9826067678 और राकेश दुबे के मोबाइल नंबर 9425448313 पर बात कर सकते हैं. ठ्ठ

बिचौलिए-भाग 3 : समीर ने वंदना को धोखा क्यों दिया

सीमा की बातों पर ध्यान न देना, वंदना. तुम्हारी और मेरी ही शादी होगी…जल्दी ही मैं उचित माहौल बना कर तुम्हें अपने घरवालों से मिलाने ले चलूंगा. अभी जल्दी में हूं क्योंकि बाहर मांपिताजी टैक्सी में बैठे इंतजार कर रहे हैं मेरा. कल मिलते हैं, बाय,’’  किसी और से बिना एक भी शब्द बोले समीर तेज चाल से चलता हुआ कक्ष से बाहर निकल गया. उस के यों चले जाने से सब को ही ऐसा एहसास हुआ मानो वह वहां से उन सब से पीछा छुड़ा कर भागा है. ओमप्रकाश और महेश रोतीसुबकती वंदना को चुप कराने के प्रयास में जुट गए. सीमा क्रोधित अंदाज में समीर को भलाबुरा कहती लगातार बड़बड़ाए जा रही थी.

सीमा के अत्यधिक गुस्से की जड़ में उस के अपने अतीत का अनुभव था. विनोद नाम के एक युवक से उस का प्रेमसंबंध 3 वर्षों तक चला था. कभी उस का साथ न छोड़ने का दम भरने वाला उस का वह प्रेमी अचानक हवाई जहाज में बैठ कर विदेश रवाना हो गया था. उस धोखेबाज, लालची व अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी इंसान को विदेश भेजने का खर्चा उस के भावी ससुर ने उठाया था. यह दुखद घटना सीमा की जिंदगी में 2 वर्ष पूर्व घटी थी. वह अब 28 वर्ष की हो चली थी. विनोद की बेवफाई ने उस के दिल  को गहरा आघात पहुंचाया था. अपने सभी हितैषियों के लाख समझाने के बावजूद उस ने कभी शादी न करने का फैसला अब तक नहीं बदला था. समीर की राजेशजी की लड़की देखने जाने वाली हरकत ने उस के अपने दिल का घाव हरा कर दिया था. वंदना को वह अपनी छोटी बहन मानती थी. अपनी तरह उसे भी धोखे का शिकार होते देख उसे समीर पर बहुत गुस्सा आ रहा था. कुछ देर बाद वंदना के आंसू थम गए. फिर उदास खामोशी ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया था. भोजनावकाश तक इस उदासी की जगह क्रोध व कड़वाहट ने ले ली थी. यह देख कर उस के तीनों सहयोगियों को काफी आश्चर्य हुआ.

‘‘मैं समीर के सामने रोनेगिड़गिड़ाने वाली नहीं,’’ वंदना ने तीखे स्वर में सब से कहा, ‘‘वह मुझ से कटना चाहता है, तो शौक से कटे. ऐसे धोखेबाज के गले मैं जबरदस्ती पड़ भी गई, तो कभी सुखी नहीं रह पाऊंगी. वह समझता क्या है खुद को?’’ वंदना के बदले मूड के कारण उसे समझानेबुझाने के बजाय उस के तीनोें सहयोगियों ने समीर को पीठ पीछे खरीखोटी सुनाने का कार्य ज्यादा उत्साह से किया. भोजनावकाश की समाप्ति से कुछ पहले वंदना ने सीमा को अकेले में ले जा कर उस से प्रार्थना की, ‘‘सीमा दीदी, मेरा एक काम करा दो.’’

‘‘मुझ से कौन सा काम कराना चाहती है तू?’’ सीमा ने उत्सुक स्वर में पूछा.

‘‘दीदी, मैं कुछ दिनोें के लिए इस कमरे में नहीं बैठना चाहती.’’

‘‘तो कहां बैठेगी तू?’’

‘‘बड़े साहब दिनेशजी की पीए छुट्टी पर गई हुई है न. आप दिनेश साहब से कह कर कुछ दिनों के लिए वहां पर मेरी बदली करा दो. मैं कुछ दिनों तक समीर की पहुंच व नजरों से दूर रहना चाहती हूं.’’

‘‘ऐसा करने से क्या होगा?’’ सीमा ने उलझनभरे स्वर में पूछा.

‘‘दीदी, समीर के सदा आगेपीछे घूमते रह कर मैं ने उसे जरूरत से ज्यादा सिर पर चढ़ा लिया है. वह मुझे प्यार करता है, यह मैं बखूबी जानती हूं, पर उस के सामने मेरे सदा बिछबिछ जाने के कारण उस की नजरों में मेरी कद्र कम हो गई है.’’ ‘‘तो तेरा यह विचार है कि अगर तू कुछ दिन उस की नजरों व पहुंच से दूर रहेगी तो समीर का तेरे प्रति आकर्षण बढ़ जाएगा?’’ ‘‘यकीनन ऐसा ही होगा, सीमा दीदी. हमारे कमरे में शादीशुदा बड़े बाबू और महेशजी के अलावा समीर की टक्कर का एक अविवाहित नवयुवक और होता तो मैं उस से ‘फ्लर्ट’ करना भी शुरू कर देती. ईर्ष्या का मारा समीर तब मेरी कद्र और ज्यादा जल्दी समझता.’’ कुछ पल सीमा खामोश रह वंदना के कहे पर सोचविचार करने के बाद गंभीर लहजे में बोली, ‘‘मैं तेरे कहे से काफी हद तक सहमत हूं, वंदना. मैं तेरी सहायता करना चाहूंगी, पर सवाल यह है कि दिनेश साहब मेरे कहने भर से तुझे अपनी पीए भला क्यों बनाएंगे?’’

‘‘दीदी, यह काम तो आप को करना ही पड़ेगा. आप उन को विश्वास में ले कर मेरी सोच और परिस्थितियों से अवगत करा सकती हैं. मैं समीर से बहुत प्यार करती हूं, सीमा दीदी. उसे खोना नहीं चाहती मैं. उस से दूर होने का सदमा बरदाशत नहीं कर पाएगा मेरा दिल,’’ वंदना अचानक भावुक हो उठी थी.

‘‘ठीक है, मैं जा कर दिनेशजी से बात करती हूं,’’ कह कर सीमा ने वंदना की पीठ थपथपाई और फिर दिनेश साहब के कक्ष की तरफ बढ़ गई. वंदना की समस्या के बारे में पूरे 10 मिनट तक दिनेश साहब सीमा की बातें बड़े ध्यान से सुनने के बाद गंभीर स्वर में बोले, ‘‘अगर समीर के मन में खोट आ गया है तो यह बहुत बुरी बात है. वंदना बड़ी अच्छी लड़की है. मैं उस की हर संभव सहायता करने को तैयार हूं. तुम बताओ कि मुझे क्या करना होगा?’’ वंदना कुछ दिन उन की पीए का कार्यभार संभाले, इस बाबत उन को राजी करने में सीमा को कोई दिक्कत नहीं आई. ‘‘वंदना की बदली के आदेश मैं अभी निकलवा देता हूं. सीमा, और क्या चाहती हो तुम मुझ से?’’

 

बिचौलिए-भाग 2 : समीर ने वंदना को धोखा क्यों दिया बिचौलिए-भाग 2 : समीर ने वंदना को धोखा क्यों दिया बिचौलिए-भाग 2 : समीर ने वंदना को धोखा क्यों दिया ‘‘समीर, मुझे कुछ दिनों के लिए बिलकुल मत छेड़ो. तुम्हारी लड़की देखने जाने की हरकत के बाद मैं तुम्हारे व अपने प्रेमसंबंध के बारे में बिलकुल नए सिरे से सोचने को मजबूर हो गई हूं. मैं जब भी किसी फैसले पर पहुंच जाऊंगी, तब तुम से खुद संपर्क कर लूंगी,’’ वंदना की यह बात सुन कर समीर नाराज हालत में पैर पटकता उस के केबिन से निकल आया था. सीमा से वह वैसे ही नहीं बोल रहा था. महेश और ओमप्रकाश भी उस से खिंचेखिंचे से बातें करते. उस ने इन दोनों को समझाया भी था कि वह वंदना को प्यार में धोखा देने नहीं जा रहा, पर इन के शुष्क व्यवहार में कोई अंतर नहीं आया था. औफिस में वह सब से अलगथलग तना हुआ सा बना रहता. काम के 7-8 घंटे औफिस में काटना उसे भारी लगने लगे थे. चिढ़ कर उस ने सभी से बात करना बंद कर दिया था. अगले सप्ताह उस की चिंता में और बढ़ोतरी हो गई. सोमवार की शाम वंदना दिनेशजी के साथ उन के स्कूटर की पिछली सीट पर बैठ कर औफिस से गई है, यह उस ने अपनी आंखों से देखा था.

बिचौलिए-भाग 2 : समीर ने वंदना को धोखा क्यों दिया

‘‘सीमा की बातों पर ध्यान न देना, वंदना. तुम्हारी और मेरी ही शादी होगी…जल्दी ही मैं उचित माहौल बना कर तुम्हें अपने घरवालों से मिलाने ले चलूंगा. अभी जल्दी में हूं क्योंकि बाहर मांपिताजी टैक्सी में बैठे इंतजार कर रहे हैं मेरा. कल मिलते हैं, बाय,’’  किसी और से बिना एक भी शब्द बोले समीर तेज चाल से चलता हुआ कक्ष से बाहर निकल गया. उस के यों चले जाने से सब को ही ऐसा एहसास हुआ मानो वह वहां से उन सब से पीछा छुड़ा कर भागा है. ओमप्रकाश और महेश रोतीसुबकती वंदना को चुप कराने के प्रयास में जुट गए. सीमा क्रोधित अंदाज में समीर को भलाबुरा कहती लगातार बड़बड़ाए जा रही थी.

सीमा के अत्यधिक गुस्से की जड़ में उस के अपने अतीत का अनुभव था. विनोद नाम के एक युवक से उस का प्रेमसंबंध 3 वर्षों तक चला था. कभी उस का साथ न छोड़ने का दम भरने वाला उस का वह प्रेमी अचानक हवाई जहाज में बैठ कर विदेश रवाना हो गया था. उस धोखेबाज, लालची व अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी इंसान को विदेश भेजने का खर्चा उस के भावी ससुर ने उठाया था. यह दुखद घटना सीमा की जिंदगी में 2 वर्ष पूर्व घटी थी. वह अब 28 वर्ष की हो चली थी. विनोद की बेवफाई ने उस के दिल  को गहरा आघात पहुंचाया था. अपने सभी हितैषियों के लाख समझाने के बावजूद उस ने कभी शादी न करने का फैसला अब तक नहीं बदला था. समीर की राजेशजी की लड़की देखने जाने वाली हरकत ने उस के अपने दिल का घाव हरा कर दिया था. वंदना को वह अपनी छोटी बहन मानती थी. अपनी तरह उसे भी धोखे का शिकार होते देख उसे समीर पर बहुत गुस्सा आ रहा था. कुछ देर बाद वंदना के आंसू थम गए. फिर उदास खामोशी ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया था. भोजनावकाश तक इस उदासी की जगह क्रोध व कड़वाहट ने ले ली थी. यह देख कर उस के तीनों सहयोगियों को काफी आश्चर्य हुआ.

‘‘मैं समीर के सामने रोनेगिड़गिड़ाने वाली नहीं,’’ वंदना ने तीखे स्वर में सब से कहा, ‘‘वह मुझ से कटना चाहता है, तो शौक से कटे. ऐसे धोखेबाज के गले मैं जबरदस्ती पड़ भी गई, तो कभी सुखी नहीं रह पाऊंगी. वह समझता क्या है खुद को?’’ वंदना के बदले मूड के कारण उसे समझानेबुझाने के बजाय उस के तीनोें सहयोगियों ने समीर को पीठ पीछे खरीखोटी सुनाने का कार्य ज्यादा उत्साह से किया. भोजनावकाश की समाप्ति से कुछ पहले वंदना ने सीमा को अकेले में ले जा कर उस से प्रार्थना की, ‘‘सीमा दीदी, मेरा एक काम करा दो.’’

‘‘मुझ से कौन सा काम कराना चाहती है तू?’’ सीमा ने उत्सुक स्वर में पूछा.

‘‘दीदी, मैं कुछ दिनोें के लिए इस कमरे में नहीं बैठना चाहती.’’

‘‘तो कहां बैठेगी तू?’’

‘‘बड़े साहब दिनेशजी की पीए छुट्टी पर गई हुई है न. आप दिनेश साहब से कह कर कुछ दिनों के लिए वहां पर मेरी बदली करा दो. मैं कुछ दिनों तक समीर की पहुंच व नजरों से दूर रहना चाहती हूं.’’

‘‘ऐसा करने से क्या होगा?’’ सीमा ने उलझनभरे स्वर में पूछा.

‘‘दीदी, समीर के सदा आगेपीछे घूमते रह कर मैं ने उसे जरूरत से ज्यादा सिर पर चढ़ा लिया है. वह मुझे प्यार करता है, यह मैं बखूबी जानती हूं, पर उस के सामने मेरे सदा बिछबिछ जाने के कारण उस की नजरों में मेरी कद्र कम हो गई है.’’ ‘‘तो तेरा यह विचार है कि अगर तू कुछ दिन उस की नजरों व पहुंच से दूर रहेगी तो समीर का तेरे प्रति आकर्षण बढ़ जाएगा?’’ ‘‘यकीनन ऐसा ही होगा, सीमा दीदी. हमारे कमरे में शादीशुदा बड़े बाबू और महेशजी के अलावा समीर की टक्कर का एक अविवाहित नवयुवक और होता तो मैं उस से ‘फ्लर्ट’ करना भी शुरू कर देती. ईर्ष्या का मारा समीर तब मेरी कद्र और ज्यादा जल्दी समझता.’’ कुछ पल सीमा खामोश रह वंदना के कहे पर सोचविचार करने के बाद गंभीर लहजे में बोली, ‘‘मैं तेरे कहे से काफी हद तक सहमत हूं, वंदना. मैं तेरी सहायता करना चाहूंगी, पर सवाल यह है कि दिनेश साहब मेरे कहने भर से तुझे अपनी पीए भला क्यों बनाएंगे?’’

‘‘दीदी, यह काम तो आप को करना ही पड़ेगा. आप उन को विश्वास में ले कर मेरी सोच और परिस्थितियों से अवगत करा सकती हैं. मैं समीर से बहुत प्यार करती हूं, सीमा दीदी. उसे खोना नहीं चाहती मैं. उस से दूर होने का सदमा बरदाशत नहीं कर पाएगा मेरा दिल,’’ वंदना अचानक भावुक हो उठी थी.

‘‘ठीक है, मैं जा कर दिनेशजी से बात करती हूं,’’ कह कर सीमा ने वंदना की पीठ थपथपाई और फिर दिनेश साहब के कक्ष की तरफ बढ़ गई. वंदना की समस्या के बारे में पूरे 10 मिनट तक दिनेश साहब सीमा की बातें बड़े ध्यान से सुनने के बाद गंभीर स्वर में बोले, ‘‘अगर समीर के मन में खोट आ गया है तो यह बहुत बुरी बात है. वंदना बड़ी अच्छी लड़की है. मैं उस की हर संभव सहायता करने को तैयार हूं. तुम बताओ कि मुझे क्या करना होगा?’’ वंदना कुछ दिन उन की पीए का कार्यभार संभाले, इस बाबत उन को राजी करने में सीमा को कोई दिक्कत नहीं आई. ‘‘वंदना की बदली के आदेश मैं अभी निकलवा देता हूं. सीमा, और क्या चाहती हो तुम मुझ से?’’

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