लव जिहाद का बहाना बना कर हिंदू कट्टरपंथी युवाओं की प्रेम की स्वतंत्रता भी छीन लेने के लिए कानून बना देना चाहते हैं. शायद, उन की मंशा है कि युवा प्रेम कर के शादी करें ही नहीं, क्योंकि लड़कियों को प्रेम करने की आजादी कैसे दी जा सकती है. जब लड़कियां अपनी इच्छा से शादी नहीं कर सकेंगी तो युवाओं की प्रेम करने की स्वतंत्रता छिन जाएगी.

प्रस्तावित लव जिहाद का कानून वैसे तो भारतीय संविधान के खिलाफ होगा पर नरेंद्र मोदी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को अब जिस तरह का बना दिया है, उस से कुछ भी मुमकिन है. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय बारबार यही साबित कर रहे हैं कि सरकार ही नहीं, सरकार को चलाने वाले पोंगापंथी गुट भी सही हैं. लव जिहाद केवल हिंदू लड़कियों के लिए है जो मुसलिम युवकों से विवाह कर लेती हैं. मुसलिम लड़कियां तो कहींकहीं ही हिंदू युवकों से शादी कर पाती हैं क्योंकि हिंदू परिवार उन्हें जगह नहीं देते. तनिष्क ज्वैलरी का विज्ञापन मानव एकता के बारे में चाहे जो कहता रहे, लेकिन हिंदू परिवारों में तो कट्टरता इस कदर है कि वे विधर्मी को तो दूर, विजातीय, विदेशी, दूसरे गोत्र, दूसरी भाषा, दूसरे क्षेत्र की लड़की को भी आसानी से स्वीकारते नहीं हैं. गुजरात का एक वैदिक ब्राह्मण गु्रप सोशल मीडिया पर कहता है,

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‘सगोत्र विवाह, असवर्ण विवाह, तलाक आदि कुकृत्यों को कानूनी प्रोत्साहन दे कर हिंदू संस्कृति की रजवीर्य शुद्धिमूलक व्यवस्था को भ्रष्ट कर के वर्णसंकर सृष्टि द्वारा राष्ट्र के सर्वनाश का बीज बोया जा रहा है.’ इस विचारधारा के अनुसार, विवाह युवकयुवती में प्रेम के लिए नहीं होता, विवाह संस्कार की आपूर्ति के लिए होता है. धार्मिक ग्रंथ में लिखा है, ‘धर्मनिष्ठ पुत्र की प्राप्ति ही हिंदू संस्कृति में विवाह संस्कार का पवित्र उद्देश्य है.’ ये विचार पुरानी पुस्तकों में बंद नहीं हैं, आज सोशल मीडिया पर जम कर प्रचारित व प्रसारित किए जा रहे हैं. हिंदू संस्कृति वर्ण संस्कारिता में समाज एवं राष्ट्र का नियम देखती है... मनु, भृगु, अंगिरा आदि गणों द्वारा गोत्र की सृष्टि हुई थी और गोत्र आधारित विवाह हिंदू जाति के चिरंजीवी होने का प्रधान कारण हैं? जब इस तरह से एक हिंदू को दूसरे हिंदू से विवाह करने पर रोक है तो एक हिंदू को अन्य धर्मी से विवाह करने की छूट कैसे दी जा सकती है? संविधान का अनुच्छेद 21 इंसान को अपनी इच्छा से जीवन जीने का अधिकार देता है पर जिस तरह के निर्णय अब आ रहे हैं, उन को देखते यह संभव है कि सर्वोच्च न्यायालय लव जिहाद के संबंध में बनाए जाने वाले कानून को सही मान ले. न्यायालय अगर किसी के केवल उस की अपनी जाति, कुंडली आधारित विवाह को ही मान्य माने, तो बड़ी बात नहीं.

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