Download App

कीमत संस्कारों की-भाग 3 : हैरीसन परिवार होने के बावजूद भी अकेले क्यों थे?

दीनप्रभु को शिद्दत के साथ एहसास हुआ कि नए समाज का जो यह नया धरातल है उस पर उस के जैसा सदाचारी, सरल स्वभाव का इनसान एक पल को भी खड़ा नहीं हो सकता है. जिंदगी के सुव्यवस्थित आयाम यदि बाहरी दबाव के कारण बदलने लगें तो इनसान एक बार को सहन कर लेता है लेकिन जब अपने ही लोग खुद के बनाए हुए रहनसहन के दायरों को तोड़ने लगें तो जीवन में एक झटका तो लगता ही है साथ ही इनसान अपनी विवशता के लिए हाथ भी मलने को मजबूर हो जाता है.

दीनप्रभु जानते थे कि अपने द्वारा बनाए उस माहौल में रहने को वह मजबूर हैं जिस की एक भी बात उन को रास नहीं आती. वह यह भी समझते थे कि यदि उन्होंने कोई भी कड़ा कदम उठाने की चेष्टा की तो जो घर बनाया है उसे बरबादियों का ढांचा बनते देर भी नहीं लगेगी. जिस देश और समाज में वह रह रहे हैं उस की मान्यताओं को स्वीकार तो उन्हें करना ही पड़ेगा. जिस देश का चलन यह कहे कि ‘ये मेरा अपना जीवन है, आप कुछ भी नहीं कह सकते हैं’ और ‘अब मैं 21 वर्ष का बालिग हो चुका हूं,’ वहां पर बच्चों को जन्म देने वाले मातापिता का नाम केवल इस कारण चलता है क्योंकि बच्चे को जन्म देने वाले कोई न कोई मातापिता ही तो होते हैं.

दिनरात की चिंता तथा काम की अधिकता के चलते एक दिन दीनप्रभु अचानक ही अपने रेस्टोरेंट में काम करते हुए गिर पड़े. अस्पताल पहुंचे और जांच हुई तो पता चला कि वह उच्च रक्तचाप और मधुमेह के रोगी हो चुके हैं. हैरीसन और पौलीन उन्हें देखने तो पहुंचे मगर बजाय इस के कि दोनों उन का मनोबल बढ़ाते, वे खुद उन्हीं को दोषी ठहराने लगे. दोनों ही कहने लगे कि अपना ध्यान नहीं रखते हैं. इतना सारा काम फैला रखा है, कौन इस को संभालेगा? अपनी औलाद के मुंह से ऐसी बातें सुन कर उन का मन पहले से और भी दुखी हो गया. इस के अलावा उन के वे भाई जिन के बारे में उन्होंने सोचा था कि साथ रहेंगे तो मुसीबत में काम आएंगे, जब उन्होंने सुना तो कोई भी तत्काल देखने नहीं आया. हां, सब ने केवल एक बार फोन कर के अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी.

अस्पताल में 2 दिन तक रहने के बाद जब वह घर आए तो डाक्टरों ने उन्हें पूरी तरह से आराम करने की हिदायत दी थी और समय पर दवा लेने तथा हर रोज अपना ब्लड प्रेशर व ब्लड ग्लूकोज को जांचते रहने को कहा था. लेकिन घर पर अकेले पडे़पड़े तो वह अपने को और भी बीमार महसूस कर रहे थे. बच्चों से जब कभी सुबह या शाम उन का सामना हो जाता तो वह केवल ‘हाय डैड’ कह कर अपना फर्ज पूरा कर लेते थे. पत्नी हर दिन उन के पलंग के पास पानी का जग भर कर रख जाती थी पर किसी दिन छुट्टी कर के पति के साथ बैठने का खयाल उस के मन में नहीं आया.

काम करते समय अचानक गिर जाने के कारण उन की कोई हड्डी तो नहीं टूटी थी मगर उठने और बैठने में कमर में उन्हें बेहद तकलीफ होती थी. तकलीफ इतनी ज्यादा थी कि किसी के सहारे से ही वह उठ और बैठ सकते थे. आज जब उन्होंने देखा कि उन का अपना बेटा हैरीसन घर में है तो यह सोच कर आवाज दे दी थी कि उस से पानी ले कर दवा भी खा लेंगे और बाकी का पानी भर कर वह उन के पास भी रख देगा. लेकिन आ कर उस ने जो कुछ कहा उसे सुन कर उन के दिल को भारी धक्का लगा था, साथ ही उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि उन की अहमियत, आजाद खयाल में पलने वाले उन के बच्चों की व्यक्तिगत इच्छाओं के सामने बहुत हलकी है जिन्हें पूरा सुख देने के लिए उन्होंने अपनी हड्डीपसली एक कर दी थी.

सोचते हुए दीनप्रभु को काफी देर हो गई थी. अतीत के विचारोें से हट कर एक बार पूरे घर का जायजा लिया. अपना ही घर देख कर आज उन्हें लगा कि विक्टोरियन हाउस उन की दशा को देख कर भांयभांय कर रहा है. घर में सुख और संपदा की हर वस्तु मौजूद थी मगर यह कैसी मजबूरी उन के सामने थी कि दूसरों के हित के लिए अपना जीवन दांव पर लगाने वाले दीनप्रभु को आज एक गिलास पानी देने वाला कोई नहीं था.

काफी सोचविचार के बाद दीनप्रभु ने फैसला लिया कि अब समय आ गया है कि वह सब से खुल कर बात करें यदि बच्चों की मनोधारणा उन के हित में निकली तो ठीक है अन्यथा वह अपना सामान समेट कर भारत वापस चले जाएंगे और कहीं एकांत में शांति से रहते हुए समाजसेवा कर अपना बाकी का जीवन गुजार देंगे.

शाम हुई. सब लोग घर मेें आ गए. रोज की तरह सब लोग एक साथ खाने की मेज पर बैठे तो सब के साथ खाना खाते हुए दीनप्रभु ने अपनी बात शुरू की और बोले, ‘‘बच्चो, मैं बहुत दिनों से तुम लोगों से कुछ कहना चाह रहा था पर परिस्थितियां अनुकूल नहीं दिखती थीं. आज मुझे लगा कि मैं अपनी बात कह ही दूं.’’

‘‘मैं जब अमेरिका आया था तो अपने साथ बहुत सी जिम्मेदारियां ले कर आया था, जिन्हें पूरा करना मेरा कर्तव्य था और मैं ने वह सब कर भी लिया. यहां रहते हुए मैं ने तुम को सभी तरह की सुविधा और सुखी जीवन देने की पूरी कोशिश की. अमेरिका के सब से अच्छे कालिजों में तुम्हें शिक्षा दिलवाई. तुम लोगों के लिए रेस्टोरेंट और गैस स्टेशन खोल रखे हैं. अब यह तुम्हारी मरजी है कि तुम इन को संभाल कर रखो या फिर नष्ट कर दो.

‘‘मुझे तुम से क्या चाहिए, केवल एक जोड़ा कुरतापाजामा और दो समय की दालरोटी. तुम पर अपना बोझ डालना नहीं चाहता हूं, फिर भी तुम मेरी अपनी संतान हो इसलिए तुम से मैं पूछना चाहता हूं कि मैं ने तुम्हारे लिए इतना सबकुछ किया है बदले में तुम मेरे व्यक्तिगत जीवन के लिए क्या करना चाहते हो?’’

दीनप्रभु की बातें सुन कर उन का बेटा हैरीसन गंभीर हो कर बोला, ‘‘डैड, मैं आप के लिए अमेरिका का सब से आलीशान और महंगा नर्सिंग होम तलाश करूंगा.’’

‘‘और मैं आप से कम से कम 15 दिन में एक बार मिलने जरूर ही आया करूंगी,’’ पौलीन ने बड़े गर्व से कहा.

अपने बच्चों की बातों को सुन कर दीनप्रभु कुछ भी नहीं बोल सके क्योंकि वह जीवन के इस तथ्य को अच्छी तरह समझ चुके थे कि विदेश में आ कर अपनी सुखसुविधा के लिए वह जो कुछ चाहते थे वह तो उन्हें मिल चुका था लेकिन इसे पाने के लिए उन्हें अपने उन भारतीय संस्कारों की कुरबानी भी देनी पड़ी, जिस के तहत एक भाई अपनी बहन के लिए, मां अपने बच्चों और परिवार के लिए, बेटा अपने पिता के लिए और पत्नी अपने पति के लिए जीती है. उन के द्वारा बसाई हुई सुख की नगरी में आज खुद उन का वजन कितना हलका हो चुका है, सोच कर वे उफ् भी नहीं कर सके.

शरोवन कुमार            

कीमत संस्कारों की-भाग 2: हैरीसन परिवार होने के बावजूद भी अकेले क्यों थे?

दीनप्रभु शुरू से ही सदाचारी थे. इसलिए अपनी विदेशी पत्नी के साथ निभा भी गए लेकिन विवाह के बाद उन्हें यह जान कर दुख हुआ था कि उन की पत्नी के परिवार के लोग अपने को सनातन धर्म का अनुयायी बताते थे पर उन का सारा चलन ईसाइयत की पृष्ठभूमि लिए हुए था. अपने सभी काम वे लोग अमेरिकियों की तरह ही करते थे. उन के लिए दीवाली, होली, क्रिसमस और ईस्टर में कोई भी फर्क नहीं दिखाई देता था. लौली के परिवार वाले तो इस कदर विदेशी रहनसहन में रच गए थे कि यदि कभीकभार कोई एक भी शनिवार बगैर पार्टी के निकल जाता था तो उन्हें ऐसा लगता था कि जैसे जीवन का कोई बहुत ही विशेष काम वह करने से भूल गए हैं.

दीनप्रभु अभावों के जीवन के भुक्तभोगी थे इसलिए वह हाथ लगे इस अवसर को खोना नहीं चाहते थे और सबकुछ जानते और देखते हुए भी वह अपने परिवार के साथ तालमेल बनाए रहे. अमेरिका में आ कर उन्होेंने आगे और पढ़ाई की. फिर बाकायदा विदेश में पढ़ाने का लाइसेंस लिया और फिर वह बच्चों के स्कूल में अध्यापक नियुक्त हो गए.

परिश्रम से दीनप्रभु ने कभी मुंह नहीं मोड़ा. अपनी नौकरी से उन्होंने थोड़ा बहुत पैसा जमा किया और फिर एक दिन उस पैसे से एक छोटा सा ‘फ्रैंचाइज’ रेस्टोरेंट खोल लिया. फिर उन की मेहनत और लगन रंग लाई. रेस्टोरेंट चल निकला और वह थोड़े समय में ही सुखसंपदा से भर गए. पैसा आया तो दीनप्रभु ने दूसरे धंधे भी खोल लिए और फिर एक दिन उन्होंने प्रयास कर के अमेरिकी नागरिकता भी ले ली. फिर तो उन्होंने एकएक कर अपने भाईबहनों के परिवार को भी अमेरिका बुला लिया. अपने परिवार के लोगों को अमेरिका बुलाने से पहले दीनप्रभु ने सोचा था कि जब कभी विदेश में रहते हुए उन्हें अकेलापन महसूस होगा तो वे 2-1 दिन के लिए अपने भाइयों के घर चले जाया करेंगे.

अब तक दीनप्रभु 3 रेस्टोरेंट और 2 गैस स्टेशन के मालिक बन चुके थे. रेस्टोरेंट को वह और उन की पत्नी संभालते थे और दोनों गैस स्टेशनों का भार उन्होंने अपने दोनों बच्चों पर डाल रखा था. खानपान में उन के यहां पहले ही कोई रीतिरिवाज नहीं था और न ही अब है लेकिन फिर भी दीनप्रभु किसी न किसी तरह अपने भारतीय संस्कारों को बचाए रखने की कोशिश कर रहे थे. जबकि उन की पत्नी बड़े मजे से हर तरह का अमेरिकी शाकाहारी व मांसाहारी भोजन खाती थी. पार्टियों में वह धड़ल्ले से शराब पीती और दूसरे युवकों के साथ डांस भी कर लेती थी.

दीनप्रभु जब भी ऐसा देखते तो यही सोच कर तसल्ली कर लेते कि इनसान को दोनोें हाथों में लड्डू कभी भी नहीं मिला करते हैं. यदि उन को विदेशी जीवन की अभ्यस्त पत्नी मिली है तो उस के साथ उन्हें वह सुख और सम्पन्नता भी प्राप्त हुई है कि जिस के बारे में वह प्राय: ही सोचा करते थे.

विवाह के 25 साल  पलक झपकते गुजर गए. इस बीच संतान के नाम पर उन के यहां एक लड़का और एक लड़की भी आ चुके थे. उन्हें याद है कि जब लौली ने पहली संतान को जन्म दिया था तो उन्होंने कितने उल्लास के साथ उस का नाम हरिशंकर रखा था मगर लौली ने बाद में उस का नाम हरिशंकर से हैरीसन करवा दिया. ऐसा ही दूसरी संतान लड़की के साथ भी हुआ. उन्होंने लड़की का भारतीय नाम पल्लवी रखा था मगर लौली ने पल्लवी को पौलीन बना दिया. लौली का कहना था कि अमेरिकन को हिंदी नाम लेने में कठिनाई आती है. उस समय लौली ने यह भी बताया था कि उस ने भी अपना लीला नाम बदल कर लौली किया था.

लौली की सोच है कि जब जीवन विदेशी संस्कृति में रह कर ही गुजारना है तो वह कहां तक अपने देश की सामाजिक मान्यताओं को बचा कर रख सकती है और दीनप्रभु अपनी पत्नी की इस सोच से सहमत नहीं थे. उन का मानना था कि ठीक है विदेश में रहते हुए खानपान और रहनसहन के हिसाब से हर प्रवासी को समझौता करना पड़ता है लेकिन इन दोनों बातों में अपने देश की उस संस्कृति और संस्कारों की बलि नहीं चढ़ती है कि जिस में एक छोटा भाई अपनी बड़ी बहन को ‘दीदी’, बड़े भाई को ‘भैया’ और अपने से बड़ों को ‘आप’ कह कर बुलाता है. यहां विदेश में ऐसा कोई भी रिवाज या सम्मान नाम की वस्तु नहीं है. यहां चाहे कोई दूसरों से छोटा हो या बड़ा, हर कोई एकदूसरे का नाम ले कर ही बात करता है और जब ऐसा है तो फिर एकदूसरे के सम्मान की तो बात ही नहीं रह सकती है.

एक दिन पौलीन अपने किसी अमेरिकन मित्र को ले कर घर आई और अपने कमरे को बंद कर के उस के साथ घंटों बैठी बातें करती रही तो भारतीय संस्कारों में भीगे दीनप्रभु का मन भीग गया. वह यह सब अपनी आंखों से नहीं देख सके. बेचैनी बढ़ी तो उन्होंने पौलीन से आखिर पूछ ही लिया.

‘कौन है यह लड़का?’

‘डैड, यह मेरा बौय फ्रेंड है,’ पौलीन ने बिना किसी झिझक के उत्तर दिया.

दीनप्रभु जैसे सकते में आ गए. वह कुछ पलों तक गंभीर बने रहे फिर बोले, ‘तुम इस से शादी करोगी?’

उन की इस बात पर पौलीन अपने माथे पर ढेर सारे बल डालती हुई बोली, ‘आई एम नाट श्योर.’ (मैं ठीक से नहीं कह सकती.)

पल्लवी ने कहा तो दीनप्रभु और भी अधिक आश्चर्य में पड़ गए. उन्हें यह सोचते देर नहीं लगी कि उन की लड़की का इस लड़के से यह कैसा रिश्ता है जिसे मित्रता भी नहीं कह सकते हैं और विवाह से पहले होने वाले 2 प्रेमियों के प्रेम की संज्ञा भी उसे नहीं दी जा सकती है. पौलीन अकसर इस लड़के के साथ घूमतीफिरती है. जहां चाहती है, बेधड़क उस के साथ चली जाती है. कई बार रात में भी घर नहीं आती है, उस के बावजूद वह यह नहीं जानती कि इस लड़के से विवाह भी करेगी या नहीं.

ये भी पढ़ें- प्रतिकार

काफी देर तक गंभीर बने रहने के बाद दीनप्रभु ने पौलीन से कहा, ‘क्या तुम बता सकती हो कि बौय फ्रेंड और पति में क्या अंतर होता है?’

‘कोई विशेष नहीं डैड. दोनों ही एकजैसे होते हैं. अंतर है तो केवल इतना कि बौय फ्रेंड की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है जबकि पति की बाकायदा अपनी पत्नी और बच्चों के प्रति एक ऐसा उत्तरदायित्व होता है जिसे उसे पूरा करना ही होता है.’

अतीत की यादें दिमाग में तभी साकार रूप लेती हैं जब कुछ मिलतीजुलती घटनाएं सामने घटित हों. विवाह के बारे में बेटी का नजरिया जान कर उन्हें अपनी बहनों की शादी की याद आ गई. दीनप्रभु ने अपनी मर्जी से कभी अपनी दोनों छोटी बहनों के लिए वर चुने थे और दोनों में से किसी ने भी चूं तक न की थी. मगर आज घर में उन की स्थिति यह है कि अपनी ही बेटी के जीवनसाथी के चुनाव के बारे में जबान तक नहीं खोल सकते हैं.

बिग बॉस 14: राखी सावंत अपनी मां से मिलकर हुई इमोशनल ,रोते हुए कि पति की शिकायत

बिग बॉस 14 धीरे- धीरे ही सही लेकिन अपनी रफ्तार में आगे आ गया है. जिससे इसकी टीआरपी भी बढ़ गई है. फैस अब बिग बॉस को पहले से ज्यादा देखने लगे हैं. राखी सावंत को इमोशनल देखकर फैंस खुद को रोक नहीं पाएं.

दरअसल, मेकर्स ने इस शो को खास बनाने के लिए काफी ज्यादा मेहनत किया है. हाल ही में शो का प्रोमो रिलीज हुआ है जिसमें दिखाया गया है कि शो के अपकमिंग एपिसोड में राखी सावंत, एजाज खान औऱ जैस्मिन भसीन के घर वालों से मिलने वाले हैं.

ये भी पढ़ें- अमिताभ बच्चन की आवाज में कोरोना कॉलर ट्यून हटाने के लिए डाली गई

शो के कंटेस्टेंट अपने घर वालों को देखकर अपने आंसू रोक नहीं पाएंगे, राखी सावंत ने अपनी मां से वीडियो कॉल के जरिए बात किया जिसके बाद राखी सावंत काफी ज्यादा इमोशनल हो गई. उनकी मां ने उन्हें बताया कि घर का कोई सदस्य अस्पताल में भर्ती है. इसे जानने के बाद राखी सावंत काफी ज्यादा इमोशनल हो गई, और वीडियो कॉल पर रोना शुरू कर दिया.

ये भी पढ़ें- नेहा पेंडसें ने ट्रोलर्स को दिया था करारा जवाब, कहा मैं भी वर्जन नहीं हूं

वहीं राखी सावंत रोते हुए अपनी मां से कह रही है कि वह उनके पति रितेश को नेशनल टीवी पर आने के लिए राजी कर लें. राखी सावंत को रोता हुआ देखकर बाकी घर वाले भी काफी ज्यादा इमोशनल हो गए.

ये भी पढ़ें- आहना कुमरा की फिल्म ‘बावरी छोरी’ का ट्रेलर हुआ वायरल

खबर है कि राखी सावंत जल्द कैप्टैंसी का टास्क संभालते हुए नजर आएंगी, राखी सावंत सोनाली फोगाट को मात देकर घर की कैप्टन बन जाएंगी.

पिछले हफ्ते जैस्मिन भीन और रुबीना दिलाइक ने राखी सावंत को अपना निशाना बनाया , तभी सलमान खान ने वीकेंड के वार में जैस्मिन और रुबीना की जमकर क्लास लगाई.

अमिताभ बच्चन की आवाज में कोरोना कॉलर ट्यून हटाने के लिए डाली गई याचिका

कोरोना काल में लोग कोरोना से तो परेशान हैं ही साथ ही अपने मोबाइल के कॉलर ट्यून से भी परेशान हो गए है. जब भी आप अपने किसी करीबी को कॉल करते हैं तो सबसे पहले आपको कुछ देर तक “नमस्कार हमारा देश और पूरा विश्व आज कोविड 19 की चुनौती का सामना कर रहा है कोविड 19 अभी खत्म नहीं हुआ है “इस लंबे ट्यून से लोग परेशान हो गए हैं.

लोग नए साल में इस कॉलर ट्यून से छुटकारा पाना चाहते हैं. लेकिन अब ज्यादा परेशान होने कि जरुरत नहीं है सभी के लिए एक खुशखबरी है. जिसे जानकर आप भी खुश हो जाएंगे. दिल्ली हाई कोर्ट में इस कॉलर ट्यून को हटाने के लिए एक जनहित याचिका लगाई गई है.

ये भी पढ़ें- आहना कुमरा की फिल्म ‘बावरी छोरी’ का ट्रेलर हुआ वायरल

आगर आपको मजाक लग रहा है तो यह मजाक नहीं है यह सच है कि एक राकेश नाम के शख्स ने इसे हटाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल किया है. जिसमें उसने लिखा है कि अमिताभ बच्चन भारत सरकार से अपनी इस आवाज के लिए पैसा ले रहे हैं. इस बात का खुलासा एक रिपोर्ट में हुआ है.

ये भी पढ़ें- नेहा पेंडसें ने ट्रोलर्स को दिया था करारा जवाब, कहा मैं भी वर्जन नहीं हूं

आगे याचिका में उन्होंने कहा कि कोरोना काल में कई ऐसे लोग है जो वॉरियर्स बनकर इस कोरोना काल में नजर आएं हैं लेकिन उनकी किसी भी तरह कि कोई मदद सरकार के तरफ से नहीं कि जा रही है.

ये भी पढ़ें- बिग बॉस 14: घर से बाहर जाते ही राहुल महाजन ने राखी सावंत को लेकर दिया ये बड़ा बयान

वहीं कुछ लोगों का कहना है कि यह ट्यून कुछ लोगों को हमेशा याद दिलाती है कि कोरोना अभी भी जारी है.अगर अमिताभ बच्चन की वर्कफ्रंट कि बात करें तो अमिताभ बच्चन इन दिनों केबीसी 12 में बिजी है. साथ ही वह कई और भी नए प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं.

सरकारी अस्‍पतालों में बेटियों का जन्‍मदिन मनाएगी योगी सरकार

बेटियों को सम्‍मान दिलाने व शिक्षा की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए तत्‍पर योगी सरकार प्रदेश में मिशन शक्ति अभियान के तहत जनवरी-फरवरी माह में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करने जा रही है.

उत्‍तर प्रदेश में पहली बार महिलाओं व बेटियों के लिए शुरू किए गए इस वृहद अभियान से उनमें उत्‍साह देखने को मिल रहा है. आधी आबादी को सशक्‍त बनाने के सरकारी प्रयास जमीनी स्‍तर पर रंग ला रहे हैं. प्रदेश की महिलाओं व बेटियों को इस अभियान से न सिर्फ सरकारी योजनाओं की जानकारी मिल रही है बल्कि उनको इन योजनाओं का लाभ भी सीधे तौर पर मिल र‍हा है.

इस दिशा में एक सकारात्‍मक कदम उठाते हुए 22 जनवरी को सरकारी अस्‍पतालों में जन्‍म लेने वाली बेटियों का जन्‍मदिवस मनाए जाने का फैसला लिया गया है जिसके तहत योगी सरकार की ओर से मां व बेटी को उपहार भी दिए जाएंगे.

 गुड्डा- गुड्डी बोर्ड

मिशन शक्ति के तहत बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ मुहिम को बढ़ावा देते हुए यूपी के जनपदों में एक जनवरी से 20 जनवरी तक जन्‍म लेने वाली बेटियों की संख्‍या के बराबर वृक्षारोपण का कार्य भी किया जाएगा. बता दें कि इन वृक्षों के संरक्षण का दायित्‍व पुरूषों को सौंपा जाएगा. बालिकाओं के निम्‍न लिंगानुपात वाले ब्‍लॉकों की सभी ग्राम सभाओं से डिजिटल एनालॉग गुड्डा-गुड्डी बोर्ड की शुरूआत की जाएगी. इसका क्रियान्‍वन करते हुए समस्‍त ग्राम पंचायतों में छह माह के अंदर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के साथ-साथ ग्राम पंचायत विकास योजनाओं में भी इसे शामिल किया जाएगा.

ये भी पढ़ें- अद्भुत है वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी- पंकज कपूर

उत्‍तर प्रदेश में लगेगी प्रशासन की पाठशाला

प्रदेश में बेटियों के मनोबल को बढ़ाने के लिए अभियान के जरिए प्रशासन की पाठशला कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा. जिसके तहत उन बालिकाओं और महिलाओं की काउंसलिंग की जाएगी जो विभिन्‍न प्रशासनिक सेवाओं जैसे पुलिस, फौज, एयरफोर्स समेत मेडिकल, इंजीनियरिंग व उद्योग जगत में आगे बढ़ने का सपना देख रहीं हैं. कार्यक्रम में जिलाधि‍कारियों व उच्‍चधिकारियों द्वारा ऑफलाइन व ऑनलाइन कैरियर काउंसलिंग शिविरों का आयोजन कर उनकी काउंसलिंग की जाएगी.

ये भी पढ़ें- बर्ड वाचिंग पक्षी अवलोकन एक अजब चसका

हक की बात जिलाधिकारी के साथ

मिशन शक्ति अभियान के तहत हक की बात जिलाधिकारी के साथ कार्यक्रम का आयोजन प्रदेश स्‍तर पर 24 फरवरी को किया जाएगा. इस बार जिलाधिकारी किशोरियों व महिलाओं से दो घंटें तक संवाद स्थापित कर यौन शोषण, लैंगिक असमानता, घरेलू हिंसा, कन्‍या भ्रूण हत्‍या, कार्यस्‍थल पर लैगिंक हिंसा और दहेज उत्‍पीड़न जैसे मुद्दों पर बात करेंगे. इन मुद्दों पर महिलाओं व बेटियों को संरक्षण, सुरक्षा, सुझाव और सहायता भी देंगें. उत्‍तर प्रदेश के सभी जनपदों के जिलाधिकारी वेबिनार, चौपालों, ऑनलाइन बैठक और वीडियो कान्‍फ्रेंसिंग के जरिए किशोरियों व महिलाओं से रूबरू होगें.

शुभारंभ-भाग 1: राधिका ने जिंदगी के आखिरी पड़ाव में अभिरूप को क्यों चुना

मुंबई एअरपोर्ट पहुंच कर बोर्डिंग पास लेते हुए अभिरूप ने राधिका से पूछा, ‘‘विंडो सीट पसंद करोगी न?’’ राधिका ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. अभिरूप ने एक विंडो सीट के लिए कहा, दोनों ने अपना बोर्डिंग पास लिया. राधिका के पास बस अब हैंडबैग था. अभिरूप ने पूछा, ‘‘कौफी पिओगी?’’

‘‘लेकिन आप को तो कौफी अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘तो क्या हुआ, तुम्हें तो पसंद है न. तुम्हारा साथ दे दूंगा.’’

दोनों ने एकदूसरे को भावपूर्ण नजरों से देखा. दोनों की आंखों में बस अनुराग ही अनुराग था. दोनों ‘कैफे कौफी डे’ जा कर कुरसी पर बैठ गए. अभिरूप 2 कौफी ले आए. फ्लाइट के उड़ने में 1 घंटा था. राधिका ने कहा, ‘‘अब क्या करें, एअरपोर्ट आ कर इतनी देर बैठने से मुझे हमेशा कोफ्त होती है, यह समय काटना मुश्किल हो जाता है.’’

अभिरूप हंसे, ‘‘अच्छा, हो सकता है अब तुम्हें ऐसा न लगे. बंदा अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेगा कि तुम्हें बोरियत न हो.’’

अभिरूप के नाटकीय अंदाज पर राधिका हंस पड़ी. अभिरूप की नजर हंसती हुई राधिका पर टिक गई, बोले, ‘‘ऐसे ही हंसती रहना अब हमेशा, बहुत अच्छी लगती हो हंसते हुए.’’

राधिका शरमा गईं, मन में रोमांच की एक तेज लहर सी उठी. लगा, इस उम्र में भी ऐसी बात सुन कर शर्म आ सकती है. और फिर सचमुच अभिरूप के साथ समय कब कटा, पता ही न चला उन्हें. वे ध्यान से उन्हें देखती रही थीं, एकदम चुस्तदुरुस्त, हमेशा हंसतामुसकराता चेहरा, राजनीति, मौसम विज्ञान से ले कर मनोविज्ञान तक, हर विषय पर उन की इतनी अच्छी पकड़ थी कि किसी भी विषय पर वे घंटों बात कर सकते थे.

दोनों तय समय पर प्लेन में अपनी सीट पर जा कर बैठ गए. राधिका विंडो सीट पर बैठ गईं, बीच वाली सीट पर अभिरूप और तीसरी सीट पर एक लड़का आ कर बैठ गया. उड़ान भरते ही राधिका बाहर दिख रहे रूई के गोलों जैसे बादलों में खो गईं. थोड़ी देर में उन्होंने अभिरूप पर नजर डाली. उन की आंखें बंद थीं. बादलों में खोएखोए राधिका के मन में पिछले दिनों की घटनाएं चलचित्र की तरह घूमने लगीं.

55 साल की राधिका और 60 साल के अभिरूप पहली बार सोसायटी के सामने मार्केट में बनी लाइब्रेरी में मिले थे. राधिका ने जब भी उन्हें देखा, ऐसा ही लगा जैसे उम्र उन्हें बस छू कर निकल गई है.

अभिरूप के घर में उन का बेटा विनय, बहू अवनि और पोती रिमझिम थी. अभिरूप एक कंपनी में वाइस प्रैसीडैंट थे. शारीरिक और मानसिक रूप से अत्यधिक फिट होने के कारण वे आज भी कार्यरत थे. योग्यता के कारण उन्हें एक्सटेंशन मिलता जा रहा था.

उन की पत्नी नीला की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी थी जिस में वे बालबाल बचे थे.

अकसर अभिरूप और राधिका मिल ही जाते थे, कभी लाइब्रेरी में तो कभी सैर करते हुए. राधिका अकेली रहती थीं. एक ही बेटा था अनुज, जो अमेरिका में अपनी विदेशी पत्नी कैरेन और बेटे अमन के साथ रहता था. राधिका शुरू में तो साल दो साल में अमेरिका गईं लेकिन उन्हें वहां अच्छा नहीं लगता था. उन का मन यहीं अपने घर में लगता था. अब अनुज ही चक्कर लगा लेता था. शाम को राधिका कुछ साउथ इंडियन बच्चों को हिंदी की ट्यूशंस पढ़ाती थीं. सैर पर जाना उन की दिनचर्या का हिस्सा था. पुस्तकें पढ़ती थीं, वक्तजरूरत या कभी तबीयत खराब होने पर साफसफाई करने वाली मेड लता थी ही.

राधिका के पति विनोद का निधन तो सालों पहले हो गया था. विनोद जो पैसा छोड़ गए थे वह और जो विनय भी जबरदस्ती भेजता रहता था, उन के लिए काफी था.

अभिरूप शनिवार और रविवार को ही राधिका को सैर करते दिखते थे. पता नहीं चला, कब बात होने लगी, वे घर भी आए, दिल खुले, अंतरंगता बढ़ी. दोनों बाहर भी साथ आनेजाने लगे थे. सबकुछ अपनेआप होता चला गया था. दोनों ही बच्चों की परवा, लोगों की बातों से विचलित नहीं हुए. अपनी उम्र के लोगों से बात कर के एक अजीब सा सुकून मिलता है. एक जैसी समस्याएं, एक जैसी खुशियां, सबकुछ शेयर करना बहुत अच्छा लगने लगा. राधिका को ऐसा लगा, वे अकेली नहीं हैं, दोनों एकदूसरे के दर्द को आसानी से समझ सकते हैं. सामने वाले के पास हमारी बात सुनने का समय है, वह हमें गंभीरता से ले रहा है, इस उम्र में यह एहसास ही खासा सुकून देने वाला होता है.

राधिका कुछ अपनी कहतीं, कुछ उन की सुनतीं. मरते पौधों को पानीखाद मिले, अच्छी देखभाल हो तो वे भी जी उठते हैं. इन 2 अकेले प्राणियों को एकदूसरे की सहानुभूति मिली, अपनापन मिला तो दोनों के जीवन में जान आने लगी थी.और एक दिन अभिरूप ने जब राधिका के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो वे बुरी तरह चौंक गई थीं. बस, मुंह से यही निकला था, ‘क्या, इस उम्र में?’

‘क्यों, उम्र को क्या हुआ है तुम्हारी? अगर हम साथ हो जाएं तो जो जीवन हम काट रहे हैं उसे एक अर्थ, एक उद्देश्य दे सकते हैं.’

वे चुप रही थीं, सोचने के लिए समय मांगा था. बहुत सोचा था, लगा था यह भी सही है अकेलापन सहा नहीं जाता, काटने को दौड़ता है, घड़ी की सूइयां ठहरी हुई सी लगती हैं. सब से बड़ी बात तो यह है कि कई बातें ऐसी होती हैं, कुछ दुखदर्द ऐसे होते

हैं जिन्हें जीवनसाथी के साथ ही बांटा जा सकता है. बड़े बच्चों की मां के पुनर्विवाह की बात न तो समाज सोचता है न तो स्वयं, कोई विवेकानंद या दयानंद पैदा नहीं होता इस समाज में. बस, यादों के सहारे ही विधवा जीवन निकालना होता है.

राधिका रातदिन पता नहीं कितने विचारों में डूबतीउतराती रहीं. वे सोचतीं, अपने एकाकी मन का क्या करें जो रहरह कर किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढ़ रहा था जिस के सामने फूट पड़ें, अंदर का सबकुछ बहा डालें किसी झरने की तरह. सभी चाहतें, उमंगें, केवल बच्चों और जवानों के लिए ही होती हैं क्या? उन की उम्र के लोगों की जीवन जीने की कोई साध नहीं होती? सच पूछा जाए तो उन्हें लग रहा था कि जीवन का यही सब से सुंदर, सब से रोमांचकारी समय था. जीवन की संध्या में ही सही. अंतरात्मा का शून्य भरने कोई आया तो था. वे विमुग्ध थीं, अपनेआप पर, अभिरूप पर, अपनी नियति पर.

अपराध : नीलकंठ और सुरमा के बीच लड़ाई की वजह कौन थी?

ऐलिस का साथ पाने के लिए नीलकंठ ने अपनी दम तोड़ती पत्नी सुरमा को बचाने की कोई कोशिश नहीं की.

एंबुलैंस का सायरन बज रहा था. लोग घबरा कर इधरउधर भाग रहे थे. छुट्टी का दिन होने से अस्पताल का आपातकालीन सेवा विभाग ही खुला था, शोरशराबे से डाक्टर नीलकंठ की तंद्रा भंग हो गई.

घड़ी पर निगाह डाली, रात के 10 बज कर 20 मिनट हो रहे थे. उसे ऐलिस के लिए चिंता हो रही थी और उस पर क्रोध भी आ रहा था. 9 बजे वह उस के लिए कौफी बना कर लाती थी. वैसे, उस ने फोन पर बताया था कि वह 1-2 घंटे देर से आएगी.

ये भी पढ़ें- सब से बड़ा सुख-भाग 1: रीतेश के मन में किस बात का डर था

‘‘सर,’’ वार्ड बौय ने आ कर कहा, ‘‘एक गंभीर केस है, औपरेशन थिएटर में पहुंचा दिया है.’’

‘‘आदमी है या औरत?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा.

‘‘औरत है,’’ वार्ड बौय ने उत्तर दिया, ‘‘कहते हैं कि आत्महत्या का मामला है.’’

‘‘पुलिस को बुलाना होगा,’’ नीलकंठ ने पूछा, ‘‘साथ में कौन है?’’

‘‘2-3 पड़ोसी हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ औपरेशन की तैयारी करने को कहो. मैं आ रहा हूं. और हां, सिस्टर ऐलिस आई हैं?’’

‘‘जी, अभीअभी आई हैं. उस घायल औरत के साथ ही ओटी में हैं,’’ वार्ड बौय ने जाते हुए कहा.

राहत की सांस लेते हुए नीलकंठ ने कहा, ‘‘तब तो ठीक है.’’

वह जल्दी से ओटी की ओर चल पड़ा. दरअसल, मन में ऐलिस से मिलने की जल्दी थी, घायल की ओर ध्यान कम ही था.

ये भी पढ़ें- सब से बड़ा सुख-भाग 2: रीतेश के मन में किस बात का डर था

ऐलिस को देखते ही वह बोला, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी? मैं तो चिंता में पड़ गया था.’’

‘‘सर, जल्दी कीजिए,’’ ऐलिस ने उत्तर दिया, ‘‘मरीज की हालत बहुत खराब है. और…’’

‘‘और क्या?’’ नीलकंठ ने एप्रन पहनते हुए पूछा, ‘‘सारी तैयारी कर दी है न?’’

‘‘जी, सब तैयार है,’’ ऐलिस ने गंभीरता से कहा, ‘‘घायल औरत और कोई नहीं, आप की पत्नी सुरमा है.’’

‘‘सुरमा,’’ वह लगभग चीख उठा.

सुबह ही नीलकंठ का सुरमा से खूब झगड़ा हुआ था. झगड़े का कारण ऐलिस थी. नीलकंठ और ऐलिस का प्रणय प्रसंग उन के विवाहित जीवन में विष घोल रहा था. सुबह सुरमा बहुत अधिक तनाव में थी, क्योंकि नीलकंठ के कोट पर 2-4 सुनहरे बाल चमक रहे थे और रूमाल पर लिपस्टिक का रंग लगा था. सुरमा को पूरा विश्वास था कि ये दोनों चिह्न ऐलिस के ही हैं. कुछ कहने को रह ही क्या गया था? पूरी कहानी परदे पर चलती फिल्म की तरह साफ थी.

ये भी पढ़ें- संबल-नमिता राहुल को लेकर हमेशा क्यों परेशान रहती थी?

झुंझला कर क्रोध से पैर पटकता हुआ नीलकंठ बाहर निकल गया.

जातेजाते सुरमा के चीखते शब्द कानों में पड़े, ‘आज तुम मेरा मरा मुंह देखोगे.’

ऐसी धमकियां सुरमा कई बार दे

चुकी थी. एक बार नीलकंठ ने

उसे ताना भी दिया था, ‘जानेमन, जीना जितना आसान है, मरना उतना ही मुश्किल है. मरने के लिए बहुत बड़ा दिल और हिम्मत चाहिए.’

‘मर कर भी दिखा दूंगी,’ सुरमा ने तड़प कर कहा था, ‘तुम्हारी तरह नाटकबाज नहीं हूं.’

‘देख लूंगा, देख लूंगा,’ नीलकंठ ने विषैली मुसकराहट के साथ कहा था, ‘वह शुभ घड़ी आने तो दो.’

आखिर सुरमा ने अपनी धमकी को हकीकत में बदल दिया था. उन का घर 5वीं मंजिल पर था. वह बालकनी से नीचे कूद पड़ी थी. इतनी ऊंचाई से गिर कर बचना बहुत मुश्किल था. नीचे हरीहरी घास का लौन था. उस दिन घास की कटाई हो रही थी. सो, कटी घास के ढेर लगे थे. सुरमा उसी एक ढेर पर जा कर गिरी. उस समय मरी तो नहीं, पर चोट बहुत गहरी आई थी.

ये भी पढ़ें- स्मृतियों का जाल-लाख प्रयास के बावजूद भी वह अपने अतीत को नहीं भूला पा रही थी

शोर मचते ही कुछ लोग जमा हो गए, उन्होंने सुरमा को पहचाना और यही ठीक समझा कि उसे नीलकंठ के पास उसी के अस्पताल में पहुंचा दिया जाए.

काफी खून बह चुका था. नब्ज बड़ी मुश्किल से पकड़ में आ रही थी. शरीर का रंग फीका पड़ रहा था. नीलकंठ के मन में कई प्रश्न उठ रहे थे, ‘सुरमा से पीछा छुड़ाने का बहुत अच्छा अवसर है. इस के साथ जीवन काटना बहुत दूभर हो रहा है. हमेशा की किटकिट से परेशान हो चुका हूं. एक डाक्टर को समझना हर औरत के वश की बात नहीं, कितना तनावपूर्ण जीवन होता है. अगर चंद पल किसी के साथ मन बहला लिया तो क्या हुआ? पत्नी को इतना तो समझना ही चाहिए कि हर पेशे का अपनाअपना अंदाज होता है.’

सहसा चलतेचलते नीलकंठ रुक गया.

‘‘क्या हुआ, सर?’’ ऐलिस ने चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘मैं यह औपरेशन नहीं कर सकता,’’ नीलकंठ ने लड़खड़ाते स्वर में कहा, ‘‘कोई डाक्टर अपनी पत्नी या सगेसंबंधी का औपरेशन नहीं करता, क्योंकि वह उन से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है. उस के हाथ कांपने लगते हैं.’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं?’’ ऐलिस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘जल्दी से डाक्टर जतिन को बुला लो,’’ नीलकंठ ने वापस मुड़ते हुए कहा. वह सोच रहा था कि औपरेशन में जितनी देर लगेगी, उतनी जल्दी ही सुरमा इस दुनिया से दूर चली जाएगी.

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ ऐलिस ने तनिक ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘डाक्टर जतिन को आतेआते एक घंटा तो लगेगा ही. लेकिन इतना समय कहां है? मैं मानती हूं कि आप के लिए पत्नी को इस दशा में देखना बड़ा कठिन होगा और औपरेशन करना उस से भी अधिक मुश्किल, पर यह तो आपातस्थिति है.’’

‘‘नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘यह डाक्टरी नियमों के विरुद्ध होगा और यह बात तुम अच्छी तरह जानती हो.’’

‘‘ठीक है, कम से कम आप कुछ देखभाल तो करें,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘मैं अभी डाक्टर जतिन को संदेश भेजती हूं.’’

डाक्टर नीलकंठ जब ओटी में घुसा तो आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था, कितने ही उद्गार मन में उठते और फिर बादलों की तरह गायब हो जाते थे.

सामने सुरमा का खून से लथपथ शरीर पड़ा था, जिस से कभी उस ने प्यार किया था. वे क्षण कितने मधुर थे. इस समय सुरमा की आंखें बंद थीं, एकदम बेहोश और दीनदुनिया से बेखबर. इतना बड़ा कदम उठाने से पहले उस के मन में कितना तूफान उठा होगा? एक क्षण अपराधभावना से नीलकंठ का हृदय कांप उठा, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उस के शरीर को झंझोड़ रही हो.

नीलकंठ ने कांपते हाथों से सुरमा के बदन से खून साफ किया. उस का सिर फट गया था. वह कितने ही ऐसे घायल व्यक्ति देख चुका था, पर कभी मन इतना विचलित नहीं हुआ था. वह सोचने लगा, क्या सुरमा की जान बचा सकना उस के वश में है?

लेकिन डाक्टर जतिन के आने से पहले ही सुरमा मर चुकी थी. नीलकंठ सूनी आंखों से उसे देख रहा था, वह जड़वत खड़ा था.

जतिन ने शव की परीक्षा की और धीरे से नीलकंठ के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘मुझे दुख है, सुरमा अब इस दुनिया में नहीं है. ऐलिस, नीलकंठ को केबिन में ले जाओ, इसे कौफी की जरूरत है.’’

ऐलिस ने आहिस्ता से नीलकंठ का हाथ पकड़ा और लगभग खींचते हुए ओटी से बाहर ले गई. कमरे में ले जा कर उसे कुरसी पर बैठाया.

‘‘सर, मुझे दुख है,’’ ऐलिस ने आहत स्वर में कहा, ‘‘सुरमा के ऐसे अंत की मैं ने कभी स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी. मैं अपने को कभी माफ नहीं कर सकूंगी.’’

नीलकंठ ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘तुम्हारा कोई दोष नहीं, कुसूर मेरा है.’’

नीलकंठ आंखें बंद किए सोच रहा था, ‘शायद सुरमा को बचा पाना मेरे वश से बाहर था, पर कोशिश तो कर ही सकता था. लेकिन मैं टालता रहा, क्योंकि सुरमा से छुटकारा पाने का यह सुनहरा अवसर था. मैं कलह से मुक्ति पाना चाहता था. अब शायद ऐलिस मेरे और करीब आ जाएगी.’

ऐलिस सामने कौफी का प्याला लिए खड़ी थी. वह आकर्षक लग रही थी.

पुलिस सूचना पा कर आ गई थी. औपचारिक रूप से पूछताछ की गई. यह स्पष्ट था कि दुर्घटना के पीछे पतिपत्नी के बिगड़ते संबंध थे, परंतु नीलकंठ का इस दुर्घटना में कोईर् हाथ नहीं था. नैतिक जिम्मेदारी रही हो, पर कानूनी निगाह से वह निर्दोष था. पोस्टमार्टम के बाद शव नीलकंठ को सौंप दिया गया. दोनों ओर के रिश्तेदार सांत्वना देने और घर संभालने आ गए थे. दाहसंस्कार के बाद सब के चले जाने पर एक सूनापन सा छा गया.

नीलकंठ को सामान्य होने में सहायता दी तो केवल ऐलिस ने. अस्पताल में ड्यूटी के समय तो वह उस की देखभाल करती ही थी, पर समय पा कर अपनी छोटी बहन अनीषा के साथ उस के घर भी चली जाती थी. चाय, नाश्ता, भोजन, जैसा भी समय हो, अपने हाथों से बना कर देती थी. धीरेधीरे नीलकंठ के जीवन में शून्य का स्थान एक प्रश्न ने ले लिया.

कई महीनों के बाद नीलकंठ ने एक दिन ऐलिस से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे जैसी पत्नी ही पाना चाहता था. तुम मुझे पहले क्यों नहीं मिलीं. यह सोच कर कभीकभी आश्चर्य होता है.’’

‘‘सर,’’ ऐलिस बोली, ‘‘सर.’’

नीलकंठ ने टोकते हुए कहा, ‘‘मैं ने कितनी बार कहा है कि मुझे ‘सर’ मत कहा करो. अब तो हम दोनों अच्छे दोस्त हैं. यह औपचारिकता मुझे अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘क्या करूं,’’ ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘सर, आदत सी पड़ गई है, वैसे कोशिश करूंगी.’’

‘‘तुम मुझे नील कहा करो,’’ उस ने ऐलिस की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मुझे अच्छा लगेगा.’’

ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘कोशिश करूंगी, वैसे है जरा मुश्किल.’’

‘‘कोई मुश्किल नहीं,’’ नीलकंठ हंसा, ‘‘आखिर मैं भी तो तुम्हें ऐलिस कह कर बुलाता हूं.’’

‘‘आप की बात और है,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘आप किसी भी संबंध से मुझे मेरे नाम से पुकार सकते हैं.’’

‘‘तो फिर किस संबंध से तुम मेरा नाम ले कर मुझे बुलाओगी?’’ नीलकंठ के स्वर में शरारत थी.

‘‘पता नहीं,’’ ऐलिस ने निगाहें फेर लीं.

‘‘तुम जानती हो, मेरे मन में तुम्हारे लिए क्या भावना है,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम मेरे सूने जीवन में बहार बन कर प्रवेश करो.’’

‘‘यह तो अभी मुमकिन नहीं,’’ ऐलिस ने छत की ओर देखा.

‘‘अभी नहीं तो कोई बात नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘पर वादा तो कर सकती हो?’’ नीलकंठ को विश्वास था कि ऐलिस इनकार नहीं करेगी, शक की कोई गुंजाइश नहीं थी.

‘‘यह कहना भी मुश्किल है,’’ ऐलिस ने मेज पर पड़े चम्मच से खेलते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ नीलकंठ ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘आखिर हम अच्छे दोस्त हैं?’’

‘‘बस, दोस्त ही बने रहें तो अच्छा है,’’ ऐलिस ने कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘यही कि अगर शादी कर ली तो इस बात की क्या गारंटी है,’’ ऐलिस ने एकएक शब्द तोलते हुए कहा, ‘‘कि मेरा भी वही हश्र नहीं होगा, जो सुरमा का हुआ? आखिर दुर्घटना तो सभी के साथ घट सकती है?’’

यह सुनते ही नीलकंठ को मानो सांप सूंघ गया. उस ने कुछ कहना चाहा, पर जबान पर मानो ताला पड़ गया था. ऐलिस ने साथ देने से इनकार जो कर दिया था.

प्यार को प्यार से जीत लो: शालिनी अचानक अपनी बात को कहते-कहते चुप क्यों हो गई

सुबह की हलकी धूप में बैठी मित्रा नई आई पत्रिका के पन्ने पलट रही थीं कि तभी शालिनी की तेज आवाज ने उन्हें चौंका दिया.

‘‘ममा…ममा…आप कहां हो?’’

‘‘ऊपर छत पर हूं. यहीं आ जाओ.’’

सुमित्रा की तेज आवाज सुनते ही शालिनी 2-2 सीढि़यां फांदती उन के पास जा पहुंची. सामने पड़ी कुरसी खींच कर बैठते हुए बोली, ‘‘ममा, मैं आप को कब से ढूंढ़ रही हूं और आप यहां बैठी हैं.’’

शालिनी की अधीरता देख सुमित्रा को हंसी आ गई. इस लड़की को देख कर कौन कहेगा कि यह पतलीदुबली लड़की एक डाक्टर है और एक दिन में कईकई लेबर केस निबटा लेती है.

ये भी पढ़ें- सब से बड़ा सुख-भाग 1: रीतेश के मन में किस बात का डर था

‘‘बोलो, तुम्हें कहना क्या है?’’

पता नहीं क्या हुआ कि शालिनी एकदम चुप हो गई. उस के स्वभाव के विपरीत उस का आचरण देख सुमित्रा अचंभित थीं. वे समझ नहीं पा रही थीं कि कौन सी ऐसी बात है जिसे बोलने के लिए इस वाचाल लड़की को हिम्मत जुटानी पड़ रही है. थोड़ी देर की चुप्पी के बाद शालिनी ने खुद ही बातें शुरू कीं.

‘‘ममा, मैं आप का दिल नहीं दुखाना चाहती थी, लेकिन क्या करूं… आप को धोखे में भी नहीं रख सकती. इसलिए आप को बता रही हूं कि मैं ने और अतुल ने इसी महीने शादी करने का फैसला कर लिया है.’’

बेटी की बातें सुन कर सुमित्रा बुरी तरह चौंक गईं, मानो अचानक ही कोई दहकता अंगारा उन के पांव तले आ गया हो.

‘‘क्या…क्या कह रही हो तुम. यह कैसा मजाक है?’’

‘‘नहीं ममा…आई एम नौट जोकिंग. आई एम सीरियस.’’

‘‘शादीब्याह को क्या तुम ने गुड्डेगुडि़यों का खेल समझ रखा है जिस से चाहोगी जब चाहोगी झट से जयमाला डलवा दूंगी. सच पूछो तो इस में तुम्हारी भी क्या गलती है. समीर ने मेरे मना करने के बावजूद तुम्हारी हर गलतसही मांगों को पूरा कर के तुम्हें इतना स्वार्थी और उद्दंड बना दिया है कि आज तुम्हेें मातापिता की भावनाओं का भी खयाल नहीं रहा.’’

ये भी पढ़ें- संबल-नमिता राहुल को लेकर हमेशा क्यों परेशान रहती थी?

‘‘ममा, हर बात के लिए आप पापा को दोष मत दीजिए. यह मेरा और अतुल का फैसला है. कंपनी अतुल को अगले महीने अमेरिका की अपनी एक शाखा में नियुक्त कर रही है. उस ने मेरे पासपोर्ट और दूसरे कागजात की भी व्यवस्था कर रखी है, इसीलिए हम दोनों इस महीने में शादी करना चाहते हैं.’’

‘‘जब तुम ने सारे फैसले खुद ही कर रखे हैं तो अब पूछना कैसा?’’ गुस्से से तिलमिला कर सुमित्रा बोलीं, ‘‘सूचना देने के लिए धन्यवाद. जाओ, जो दिल चाहे वही करो.’’

सुमित्रा एकटक अपनी जाती हुई बेटी को देखती रहीं. उस की परवरिश में कहां कमी रह गई कि उस की इकलौती संतान, उस की अपनी ही बेटी ने अपने जीवन के इतने अहम फैसले में अपने मातापिता से सलाह तक लेने की जरूरत नहीं समझी. शालिनी की शादी उन के जीवन का सब से बड़ा सपना था. पर आज जब शादी होने का समय आया तो वे एक मूकदर्शक मात्र बन कर रह गई थीं.

बेटी से मिली अवहेलना की दारुण पीड़ा को झेलना उन के लिए दुष्कर था.

ये भी पढ़ें- प्रायश्चित्त : अनुभा के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था

ऐसा नहीं था कि सुमित्रा को अतुल पसंद नहीं था. वह कई बार शालिनी के साथ घर आया था. एक मल्टीनैशनल कंपनी में ऊंचे ओहदे पर काम कर रहा था. संस्कारी और सौम्य स्वभाव का लड़का था. विजातीय होते हुए भी अतुल, सुमित्रा को दिल से स्वीकार होता, अगर मातापिता की उपेक्षा न कर के शालिनी अपनी शादी का फैसला उन्हें अपने विश्वास में ले कर करती.

शाम को आफिस से लौटने के बाद समीर को जब सारी बातें मालूम हुईं तो बेटी के इस अप्रत्याशित फैसले ने उन्हें भी थोड़ी देर के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ बना दिया. पर हमेशा की तरह थोड़ी देर बाद ही बेटी की गलती सुधारने में जुट गए.

समीर ने शालिनी को बुला कर उस से पूछताछ शुरू कर दी.

‘‘इस शादी के लिए क्या अतुल के मातापिता तैयार हैं?’’

‘‘नहीं, पापा, वे दोनों पूरी तरह हमारी शादी के खिलाफ हैं. हफ्ते भर से अतुल उन्हें मनाने में जुटा है फिर भी उस के मातापिता तैयार नहीं हो रहे हैं. उन का कहना है कि उन्हें अपने बेटे के लिए एक विजातीय डाक्टर बहू नहीं, एक सजातीय सीधीसादी घरेलू लड़की चाहिए.’’

‘‘तुम चिंता मत करो, मैं शीघ्र ही अतुल के मातापिता से मिल कर उन्हें समझाबुझा कर तुम दोनों की शादी करवाने की पूरी कोशिश करता हूं.’’

ये भी पढ़ें- दहशत- भाग 4 : कालोनी में हो रही चोरी के पीछे आखिर कौन था

‘‘नहीं, पापा, आप बात नहीं करेंगे. मेरे कारण वे आप के सम्मान को ठेस पहुंचाएं, यह मुझे मंजूर नहीं होगा.’’

‘‘वे अतुल के मातापिता हैं, उन का इस शादी के लिए तैयार होना बहुत जरूरी है, वरना तुम दोनों सारी जिंदगी सुकून से नहीं जी पाओगे.’’

‘‘माई फुट, वे मानें या न मानें… शादी तो हर हाल में अतुल मुझ से ही करेगा. वे मानेंगे तो ठीक, वरना हम दोनों कोर्ट में शादी कर लेंगे.’’

‘‘बेटा, थोड़ा सब्र से काम लो. अतुल उन की इकलौती संतान है, वह उन्हें मना ही लेगा.’’

‘‘नहीं…पापा…मैं अब और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती. मैं तो आज ही अतुल से शादी पक्की करने के लिए बात करूंगी.’’

‘‘जिंदगी के फैसले इस तरह जल्दबाजी में नहीं लिए जाते. इस शादी से सिर्फ तुम्हारा और अतुल का रिश्ता ही नहीं जुड़ेगा, तुम्हारे न चाहने पर भी, ढेर सारे रिश्ते खुद ब खुद तुम से आ जुड़ेंगे… जिन से तुम इनकार नहीं कर सकतीं.’’

‘‘पापा, कौन मुझे इंडिया में रहना है जो इन रिश्तेनातों को निभाने के लिए परेशान रहूं.’’

‘‘अभी तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा है, जब दूर जाओगी तो अपनों की और रिश्तेनातों की अहमियत समझ में आएगी. एक बात और समझ लो कि तुम्हारे इस तीखे तेवर से उन के इस विश्वास को और भी बल मिलेगा कि ज्यादा पढ़ीलिखी लड़की उन लोगों का सम्मान नहीं करेगी. उन के इस भ्रम को तोड़ने के लिए तुम्हें झुकना होगा. बड़ों के सामने झुकने में तुम्हारी तौहीन नहीं होगी, बल्कि खुद झुक कर ही तुम उन्हें झुका सकती हो. उन का प्यार और सम्मान पा सकती हो.’’

बिना कोई जवाब दिए चुपचाप शालिनी वहां से उठ कर बाहर आ गई और अपनी कार ले डा. सुधा वर्मा के घर की तरफ चल दी. डा. सुधा वर्मा उस की सीनियर और गाइड ही नहीं, अंतरंग सहेली जैसी थीं. जब वह सुधा वर्मा के पास पहुंची तब और दिनों की अपेक्षा ज्यादा आपरेशन होने के कारण वे काफी व्यस्त थीं. शालिनी पर नजर पड़ते ही काफी खुश हो गईं.

‘‘अच्छा हुआ जो तुम आ गईं. तुम जरा वार्ड नं. 13 में 113 नंबर बैड पर ऐडमिट डिप्रैशन के एक मरीज की जांच कर लो. सुबह जब मैं राउंड पर गई थी तब तो ठीक थी, अभी थोड़ी देर पहले से उस की परेशानी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है.’’

शालिनी वार्ड नं. 13 की तरफ चल पड़ी. उस वार्ड में एक प्रौढ़ महिला ऐडमिट थी. भरेभरे शरीर और बड़ीबड़ी आंखों वाली उस आकर्षक महिला के चेहरे पर गहरी विषाद की लकीरें छाई हुई थीं, जैसे कोई गहरी वेदना उसे साल रही थी. उस संभ्रांत महिला के साथ आई महिला ने बताया कि 2 दिन से उन की यही स्थिति है. इन 2 दिनों में इन्होंने अन्न का एक दाना भी नहीं खाया है.’’

‘‘इस तरह की स्थिति क्या इन की पहले भी कभी हुई है?’’ शालिनी ने पूछा.

‘‘नहीं…नहीं…डाक्टरनी साहिबा. पहले इन की इस तरह की स्थिति कभी नहीं हुई. वह तो 4 दिन पहले इन की अपने इकलौते बेटे से किसी बात पर जम कर बहस हुई और वह इन्हें छोड़ कर मुंबई चला गया. 2 दिन तक तो इन्होंने किसी तरह अपने को संभाला, लेकिन जब बेटे का कोई फोन नहीं आया तो इन की स्थिति बिगड़ने लगी और हमें यहां लाना पड़ा.’’

शालिनी ने पहले नर्स को जरूरी इंजेक्शन तैयार करने की हिदायत दी फिर खुद भी उस महिला की नब्ज देखने लगी. महिला बेहोशी जैसी स्थिति में भी कुछ बड़बड़ाए जा रही थी, ‘मैं ने पालपोस कर बड़ा किया, इतना प्यार दिया और तू है कि मुझे ही जलाए दे रहा है. क्या तेरा सारा फर्ज उस कल आई लड़की के लिए ही है. बूढ़े मातापिता के प्रति तेरा कोई फर्ज नहीं है…और ऊपर से जलीकटी सुनाता है. जा, चला जा मेरी नजरों के सामने से. इस बीमार मां को जितना दुख दिया है उस से दोगुना दुख तू पाएगा. मैं यह सोचूंगी कि मैं ने अपना दूध अपने बेटे को नहीं एक संपोले को पिलाया है.’

शालिनी को यह समझने में देर नहीं लगी कि बेटे के किसी आचरण ने मां को गहरा सदमा दिया था. जब उस औरत की स्थिति थोड़ी सामान्य हुई और वह सो गई, तो शालिनी ने सुधा दीदी के पास जा कर उन्हें अब तक की स्थिति की रिपोर्ट थमा दी और सीधे आ कर कार में बैठ गई. कार में बैठने के साथ ही उस औरत का अशांत और पीडि़त चेहरा शालिनी की आंखों के सामने बारबार घूम रहा था. बेटे के कठोर आघात ने मां के दिल में कैसी कटुता भर दी थी कि बेहोशी की हालत में भी उसे कोस रही थी. शालिनी को एक ही बात बारबार दंश दे रही थी कि क्या वह खुद भी अतुल के साथ मिल कर कुछकुछ वैसा ही अपराध नहीं कर बैठी थी.

पहली बार शालिनी को अपने पापा की बातों की गहराई समझ में आई थी. अपने सुनहरे भविष्य की अटारी पर बैठी अपने जिस सपने को वह मुग्धभाव से निहार रही थी अचानक ही वह जमीन पर गिर कर चकनाचूर हो गया. अपनी स्वार्थी सोच पर लगाम देने के लिए शालिनी ने अतुल के घर की तरफ अपनी कार मोड़ ली.

वहां पहुंच कर बड़े ही आत्मविश्वास के साथ वह अंदर आ गई. सामने ही अतुल की मम्मी गायत्री देवी पाइप से पौधों को पानी दे रही थीं. उसे गेट खोल कर अंदर आते देख हाथ का पाइप एक तरफ रखते हुए बोलीं, ‘‘तुम…तुम यहां क्या करने आई हो? तुम्हें मालूम नहीं कि अतुल घर पर नहीं है. वह एक हफ्ते के लिए बाहर गया हुआ है.’’

‘‘मुझे मालूम है आंटी, पर मैं अतुल से नहीं आप से बात करने आई हूं.’’

‘‘आई हो तो मुझ से उम्मीद मत रखना. मैं आसानी से अपने फैसले नहीं बदलती. मेरा एक ही जवाब है, अगर अतुल तुम से शादी करेगा तो अपने मातापिता को खो देगा.’’

‘‘आप निश्ंिचत रहिए आंटी, मैं आप को अपना फैसला बदलने के लिए मजबूर करने नहीं आई हूं. अगर आप सोचती हैं कि मेरे साथ अतुल की शादी होने से आप का नाम खराब होगा तो कहीं न कहीं आप की सोच सही ही होगी. आप हमारी बड़ी हैं, अतुल की मां हैं, सच मानिए आंटी, मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं. आप का अतुल पर पहला हक है. मैं उसे आप से कभी अलग करने की बात सोच भी नहीं सकती. जब तक आप नहीं चाहेंगी, आप आशीर्वाद नहीं देंगी, तब तक हम दोनों कभी शादी नहीं करेंगे, यह आप से मेरा वादा है.’’

‘‘और मेरा आशीर्वाद तुम्हें कभी मिलेगा नहीं.’’

‘‘तो ठीक है, आंटी. आज और अभी से मैं अपने सारे संबंध अतुल के साथ तोड़ती हूं.’’

इतना बोल वह तेजी से मुड़ कर अपनी कार में आ बैठी. जिंदगी में पहली बार उस ने किसी के साथ इतनी झुक कर बातें की थीं, फिर भी उसे अपना मन काफी हलका लग रहा था, जैसे किसी अपराधबोध का बोझ उतर गया हो.

ये भी पढ़ें- दरवाजा खोल दो मां : क्या हुआ था सपन के घर कि स्मिता बीमार हो गई    

यह सत्य है कि अतुल के बिना जीना शालिनी के लिए आसान नहीं था, फिर भी अपने भौतिक सुखों के लिए किसी से उस की प्रिय वस्तु छीन लेने के बदले बिना किसी अपेक्षा के अपनी सब से प्रिय वस्तु किसी को समर्पित कर देने में उसे बेहद सुख और संतोष का अनुभव हो रहा था. घर आ कर जैसे ही उस ने अपना फैसला मां को बताया, शालिनी का उदास और क्लांत चेहरा देख उन का सारा गुस्सा फौरन तिरोहित हो गया.

‘‘अरे, वे लोग मेरी बेटी के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? तू चिंता मत कर, मैं गायत्री से बात करूंगी.’’

‘‘नहीं, ममा…आप कोई बात नहीं करेंगी.’’

‘‘अरे, कैसे नहीं करूंगी, मां हूं. लोग अपने बच्चों के लिए क्या नहीं करते…’’

‘‘ममा, प्लीज,’’ वह मां की बात बीच में ही काट कर अपने कमरे में चली गई.

अपने वादे के अनुसार उस दिन से शालिनी ने न अतुल से कोई बात की और न ही उस का कोई फोन रिसीव किया.

करीब एक हफ्ते बाद…एक दिन जब शालिनी अस्पताल से लौटी तो मां ने झट से उस के सामने एक गुलाबी रंग की जरी की बार्डर वाली साड़ी ला कर रख दी और बोलीं, ‘‘जल्दी से तैयार हो जा. एक जगह सगाई में जाना है.’’

‘‘नहीं, ममा, मेरा मन नहीं है.’’

‘‘कभी तो अपनी ममा का दिल रख लिया कर.’’

अपनी मां के प्यार भरे अनुरोध को शालिनी टाल न सकी. मन न होते हुए भी साड़ी ले कर तैयार होने लगी. जल्दी ही तैयार हो कर ड्राइंगरूम में आ बैठी. उस की ममा अभी तैयार नहीं हुई थीं. वह यों ही बैठेबैठे टीवी के चैनल बदलने लगी. तभी दरवाजे पर घंटी बजी शालिनी ने बढ़ कर दरवाजा खोला तो भौचक रह गई. दरवाजे पर कई अजनबी चेहरों के साथ अतुल की मां गायत्री देवी खड़ी थीं. उसे भौचक और घबराई हुई देख कर वे बोलीं, ‘‘अंदर आने के लिए भी नहीं कहोगी.’’

‘‘हां, आइए न,’’ कह कर वह दरवाजे से हट कर खड़ी हो गई.

‘‘तुम्हारी ममा कहां हैं, उन्हें बुलाओ.’’

‘‘प्लीज आंटी, आप मेरी ममा से कुछ मत कहिए. वे पहले से ही मेरे कारण बहुत परेशान हैं.’’

‘‘नहीं…नहीं…मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी. बुलाओ अपनी ममा को.’’

तभी शालिनी को अपने पीछे से अपनी मां की आवाज सुनाई दी, ‘‘अरे, गायत्री बहन, आप आ गईं पर अतुल को कहां छोड़ आईं.’’

‘‘भला अपनी ही सगाई में वह खुद कैसे नहीं आएगा. अपनी पसंद की अंगूठी लेने गया है.’’

फिर शालिनी की तरफ मुखातिब हो कर गायत्रीजी बोलीं, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो बेटा, तुम्हें अपने बड़ों की खुशियों का खयाल है तो क्या बड़े अपने बच्चों की खुशियों का खयाल नहीं रखेंगे. उस दिन तुम्हारी सौम्यता, मेरे प्रति तुम्हारा निस्वार्थ प्रेम और उस से भी बढ़ कर तुम्हारे द्वारा झुक कर सम्मान का भाव प्रकट करने से मुझे लगा, तुम से अच्छी बहू मुझे नहीं मिल सकती. जब तुम्हारी मां ने पहल की तो मैं ने भी देर नहीं की. पहले चाहे मैं ने तुम्हें कितना भी भलाबुरा कहा हो पर आज सच्चे और साफ दिल से कहती हूं, तुम मुझे दिल से पसंद हो. मेरे बेटे की पसंद खराब हो ही नहीं सकती.’’

शालिनी शरमा कर उन के पैरों पर झुक आई तो उसे बीच में ही थाम कर गायत्रीजी ने उसे गले से लगा लिया.

-रीता कुमारी

शुभारंभ-भाग 3 : राधिका ने जिंदगी के आखिरी पड़ाव में अभिरूप को क्यों चुना

दोनों चैल पैलेस पहुंचे. भव्य पैलेस की सुंदरता देख राधिका के मुंह से इतना ही निकला, ‘‘आप ने यहां बुक किया है रूम?’’

‘‘हां, मेरी रानी आज की रात महल में रुकेगी,’’ हंसते हुए अभिरूप ने कहा.

राधिका को भी हंसी आ गई, ‘‘लेकिन यह तो बहुत महंगा होगा, अभि?’’

‘‘तो क्या हुआ? सस्तेमहंगे की चिंता तुम मत करना अब, मैं हूं न. बस, तुम तो मुझे अभि कह कर, मेरा हाथ पकड़ कर जीवन में अब साथ चलती रहो.’’

राधिका ने अभिरूप के कंधे पर सिर रख दिया.

दोनों ने पूरा पैलेस देखा. इस महल को हिमाचल सरकार द्वारा एक फाइवस्टार होटल का रूप दे दिया गया था. बहुत बड़ा सुंदर गार्डन था, जहां सफेद गोल कुरसियां और मेजें रखी थीं. अचानक वहां कई बंदर आ गए. वहां घूमते वेटर ने बताया कि डरने की बात नहीं है. ये किसी को काटते नहीं हैं. राधिका ने कस कर अभिरूप का हाथ पकड़ रखा था. वेटर की बात सुनी तो जान में जान  आई. अभिरूप राधिका के डरे हुए चेहरे का मजा ले रहे थे. हर तरफ देवदार के सुंदर पेड़, खूबसूरत फूलों से सजा पूरा गार्डन. शाम के 5 बज रहे थे. राधिका ने जैसे ही अपने दोनों हाथ समेट कर सीने से लगाए, अभिरूप ने कहा, ‘‘मैं अभी आया,’’ कह कर अभिरूप चले गए, राधिका कुछ समझ नहीं पाईं. कुछ ही पलों में पीछे से राधिका के कंधे पर शौल डालते हुए अभिरूप ने कहा, ‘‘तुम्हें ठंड लग रही थी न, यही लेने गया था रूम से.’’

इस बात पर राधिका की आंखें भर आईं, बोलीं, ‘‘मैं ने कभी नहीं सोचा था कि अब मेरा कोई ध्यान रखेगा, मेरी चिंता करेगा. सच अभि, थक गई थी मैं अकेली रहतेरहते.’’

अभिरूप ने राधिका का हाथ पकड़ लिया, ‘‘हां राधिका, सच कहती हो, जीवन की सांध्यबेला में एक साथी की कमी कुछ ज्यादा ही महसूस होती है, मैं भी जी उठा हूं तुम्हें पा कर.’’

दोनों कुछ देर ऐसे ही एकदूसरे का हाथ पकड़ कर बैठे रहे. सुंदर जगह थी, दूर तक हरे, स्लेटी, नीले रंग आपस में घुलमिल गए थे, जैसे पहाड़, पेड़ और आसमान अपनीअपनी संज्ञा भूल कर केवल रंग ही रह गए थे.

फिर पैलेस के ‘किंग्स डायनिंग हौल’ में डिनर करने गए. वहां चलते धीमेधीमे पुराने गानों के संगीत ने अलग ही समां बांधा हुआ था. दोनों को बहुत ही रोमांटिक माहौल लगा. दोनों अपनेआप को बहुत युवा और जोश से भरा हुआ महसूस कर रहे थे. डिनर कर के पैलेस में ही थोड़ी देर टहल कर अपने रूम में चले गए. अगली सुबह उन्हें चंडीगढ़ के लिए निकलना था. शानदार पैलेस के इस भव्य रूम की रात के हर पल को दोनों ने पूरी तरह जिया. दोनों के मन में पिछले जीवन की कोई उदासी, कोई

दुख, कोई संदेह लेशमात्र को नहीं था. दोनों अब पूरी तरह से एकदूसरे को समर्पित थे. अब दिलों में था प्यार ही प्यार और ढेर सारा विश्वास.

सुबह दोनों चंडीगढ़ के लिए निकल गए. दोपहर तक वहां पहुंचे. वहां मैरीलैंड में रूम बुक था. हर जगह अभिरूप ने अच्छे से अच्छा प्रबंध किया था. राधिका उन की प्लानिंग की तारीफ करती रहीं. दोनों ने लंच कर के फिर थोड़ा आराम किया. दोनों की अपने बेटों से फोन पर 1-2 बार बात होती रही थी. शाम को दोनों सैक्टर 17 में शौपिंग के लिए गए. राधिका ने कहा, ‘‘हम लोग विनय, अवनि और रिमझिम के लिए कुछ गिफ्ट्स ले कर चलेंगे, उन्हें अच्छा लगेगा.’’

‘‘जरूर, जैसी तुम्हारी इच्छा.’’

राधिका ने विनय के लिए शर्ट, अवनि के लिए सुंदर सूट और रिमझिम के लिए फ्रौक ली. अभिरूप ने राधिका को भी जबरदस्ती शौपिंग करवाई. फिर वहीं खापी कर दोनों होटल वापस आ गए.

अगले दिन मुंबई पहुंच कर दोनों राधिका के ही घर पहुंचे. अभिरूप ने कहा, ‘‘ऐसा करते हैं, चलो, शाम को बच्चों से मिल आते हैं. उन्हें गिफ्ट्स भी दे देते हैं. कई दिन हो गए देखे हुए.’’

दोनों विनय के घर पहुंचे. वहां ताला लगा था. बराबर में रहने वाले पड़ोसी ने बताया कि अवनि को डेंगू हो गया है. वह अस्पताल में एडमिट है. राधिका ने चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘रिमझिम कहां है?’’ पड़ोसी ने ‘कुछ पता नहीं’ कह कर सिर हिला दिया. दोनों घबराए, अस्पताल पहुंचे. पूछताछ कर रूम तक पहुंचे तो विनय रिमझिम को गोद में लिए बाहर बैठा था. उन्हें देख कर परेशान सा खड़ा हो गया.

अभिरूप ने हलकी सी डांट लगाई, ‘‘फोन पर बता नहीं सकते थे?’’

‘‘नहीं पापा, आप लोगों को डिस्टर्ब करना ठीक नहीं लगा.’’

राधिका ने स्नेहिल स्वर में कहा, ‘‘बेटा, जरूर बताना चाहिए था, हम लौट आते. रिमझिम भी छोटी है, तुम्हें इतनी परेशानी न होती. आओ बेटा,’’ कह कर रिमझिम को अपने पास बुलाया राधिका ने. विनय ने राधिका की बात का कोई उत्तर नहीं दिया, बस, मुंह घुमा लिया. राधिका को दुख हुआ. उन्होंने फिर पूछा, ‘‘अवनि कैसी है अब?’’

‘‘प्लेटलेट्स बहुत कम हैं, ठीक होने में टाइम लगेगा, बहुत कमजोर हो गई है.’’

अभिरूप बोले, ‘‘राधिका, तुम रिमझिम को घर ले जाओ. विनय, तुम भी घर जा कर थोड़ा आराम कर लो. मैं यहीं हूं, फिर आ जाना.’’

बुरी तरह थका हुआ विनय राधिका और रिमझिम के साथ कार से घर चला गया. राधिका का घर पहले आया. राधिका ने कहा, ‘‘बस बेटा, मुझे यहीं उतार दो.’’

विनय ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, ‘‘नहीं, आप वहीं चलिए, रिमझिम का सारा सामान वहीं तो है.’’

‘‘ठीक है.’’

राधिका ने विनय के घर पहुंच कर सब संभाल लिया. विनय तो बैड पर पड़ते ही सो गया. राधिका का दिल स्नेह से भर उठा. रिमझिम शांत और समझदार बच्ची थी. राधिका ने उसे खिलापिला कर सुला दिया और फिर सब के लिए खाना बनाने लगी. विनय गहरी नींद सोया. अभिरूप ने फोन किया तो राधिका ने कहा, ‘‘विनय को आराम की जरूरत है, थक गया होगा अस्पताल में बैठेबैठे.’’

‘‘हां, ठीक है. मैं यहीं हूं.’’

विनय जब सो कर उठा तो पूरे घर में खाने की खुशबू फैली हुई थी. डिनर तैयार था. रिमझिम सोई हुई थी. पहली बार उस के मन में राधिका के लिए कोमल भावना उत्पन्न हुई. डिनर कर के उसे अच्छा लगा. 3 दिन से अस्पताल की कैंटीन का खाना खा रहा था. उस ने कहा, ‘‘मैं पापा को भेज रहा हूं जा कर, रात में वहीं रहूंगा.’’

अभिरूप घर आ गए, उन्हें भी दिनभर की थकान थी, आते ही डिनर कर के वे भी सोने के लिए लेट गए. राधिका रिमझिम के पास ही लेट गई. अगली सुबह राधिका ने जल्दी उठ कर मेड के साथ सब काम निबटाया. रिमझिम को तैयार कर स्कूल भेजा. सब का नाश्ता बनाया और फिर तैयार हो कर अभिरूप से कहा, ‘‘अब मैं अवनि के पास जा रही हूं, विनय को भेज देती हूं.’’

विनय घर पर आ गया. अवनि काफी कमजोरी महसूस कर रही थी. राधिका उस का सिर प्यार से सहलाती रहीं तो ढीली तबीयत से बेचैन अवनि का स्वर भर्रा गया. बस ‘मां’ ही कहा.

यह संबोधन सुनते ही राधिका का दिल भर आया. बोलीं, ‘‘बेटा, किसी बात की चिंता न करना. मैं हूं न, सब संभाल लूंगी.’’

अवनि ने राधिका का हाथ कस कर पकड़ लिया. किसी को कुछ बोलने की जरूरत नहीं थी. माहौल में उस समय कोई हलचल नहीं थी. सिर्फ शांति और मौन. कभीकभी मौन भी बहुत कुछ कह जाता है. बस, उसे समझने के लिए उस मौन भाषा के ज्ञान की जरूरत होती है. दोनों इस मौन में बसे प्यार को महसूस कर रही थीं.

3 दिन और यही क्रम चला. अवनि के शरीर में प्लेटलेट्स के सुधरने पर उसे डिस्चार्ज कर दिया गया. कमजोर अवनि की राधिका ने मन से देखभाल की. पूरे घर का माहौल एकदम बदल गया था. लग ही नहीं रहा था कि राधिका इस घर में नई आई हैं. अपने व्यवहार, अपने स्वभाव से उन्होंने बच्चों का मन जीत लिया था. वे अपने घर सुबह जातीं. उन का सामान, कपड़े आदि सब वहीं थे, फिर तैयार हो कर आ जातीं. घर पास में ही था. रिमझिम जब बड़ी मम्मी कह कर उन से चिपटती तो वेनिहाल हो जातीं.

अवनि ठीक हुई तो राधिका ने कहा, ‘‘अब मैं अपने घर जाऊंगी. मेरी कभी भी जरूरत हो निसंकोच बता देना, बच्चो.’’

विनय ने उन पर नजर डाली. रिमझिम को अपनी गोद में बिठा रखा था राधिका ने. आज उन में एक ममतामयी मां नजर आई उसे. बोला, ‘‘आप कहीं नहीं जाएंगी, मां. यहीं रहेंगे हम सब साथ.’’

अवनि ने भी सुर में सुर मिलाते हुए  ‘‘हां, साथ रहेंगे सब,’’ कहते हुए राधिका के हाथ पर हाथ रख दिया.

अभिरूप ने माहौल को हलका करते हुए कहा, ‘‘नहीं भई, कल अगर सासबहू में झगड़ा होगा तो कौन सुलझाएगा? मुझे भी कल से औफिस जाना है.’’

विनय हंस दिया, अवनि कहने लगी, ‘‘चलो, उस झगड़े का भी आनंद ले कर देखा जाएगा, क्यों मां?’’

सब खुले दिल से हंसे. विनय और अवनि उन दोनों के चेहरों की चमक निहार रहे थे. एक पड़ाव पर कुछ देर ठहर उन दोनों का जीवन नई कुलांचें भरने को तैयार था. उन के जीवन के इस पड़ाव के शुभारंभ के लिए दोनों ने मन ही मन उन्हें सच्चे दिल से शुभकामनाएं दी थीं.

 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें