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Best Hindi Story : मां की गंध

Best Hindi Story : “किस बात की बेचैनी है. सब तो है तुम्हारे पास… शिफान और हैंडलूम की साड़ियों का बेहतरीन कलेक्शन, सब के साथ मैच करती एसेसरीज, पैरों के नीचे बिछा मखमली गलीचा. मोहतरमा और क्या ख्वाहिश है आप की?”

हालांकि सरगम ये सब मुझे हंसाने के लिए कह रही थी, लेकिन ये बातें मुझे इस समय अच्छी नहीं लग रही थी. मेरा मन फूटफूट कर रोना चाह रहा था, जिस का कारण वो खुद भी नहीं समझ रहा था. अचानक से हुई तेज बारिश ने शहर की सड़कों को पानी में डुबो दिया था. उस पर ये ट्रैफिक… घर पहुंचने में बहुत देर हो जाएगी. बच्चे इंतजार कर रहे होंगे. इतनी बारिश में शांति दीदी भी नहीं आ पाएंगी. खाना कैसे बनेगा? बाहर से मंगवा लूं?

लगातार बजते हौर्न की आवाजों से मेरी बेचैनी और बढ़ रही थी. आंख से निकलते आंसू मुझ से ही सवाल कर रहे थे. ये रास्ता तो तुम ने खुद ही चुना था अब क्यों परेशान हो? तुम को ही तो अपनी मां जैसी जिंदगी नहीं जीनी थी? एक महत्वहीन जिंदगी, जिस का कोई उद्देश्य नहीं था. मां को हमेशा मसालों की गंध में महकता देख तुम ही तो सोचती थी कि मां जैसी कभी नहीं बनूंगी. सच ही तो था ये… चाची की कलफ लगी साड़ियां, उन के शरीर से आती भीनी खुशबू, चाचा का उन की हर बात को मानना और चचेरे भाईबहनों का सब से अच्छे इंगलिश स्कूल में पढ़ना… सबकुछ उसे अपनी और मां की कमतरी का अहसास दिलाता था. उस ने कभी भी अपने मम्मीपापा की जिंदगी में उस रोमांच को महसूस नहीं किया, जो चाचाचाची की जिंदगी में बिखरा हुआ था. बचपन से ही एक छत के नीचे रहते 2 परिवारों के बीच का अंतर उसे अंदर ही अंदर घोलता रहा.

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विचारों की तंद्रा घर के सामने आ कर ही टूटी. गाड़ी पार्किंग में खड़ी कर मैं बदहवास सी अंदर गई. वैभव अब तक घर नहीं आए थे. बेटा अंकु मुझे देखते ही लिपट गया. बेटी मुझे देख कर अपने कमरे में चली गई. मैं ने अंकु को पुचकारते हुए पूछा, ”भूख लगी है मेरे बेटे को?”

अंकु ने नहीं में सिर हिलाया. मेज पर रखी प्लेट में ब्रेड का एक छोटा टुकड़ा रखा हुआ था. मुझे लगा कि वैभव ने बच्चों के लिए कुछ और्डर किया होगा? तब तक अंकु ने कहा, ”आज दीदी ने बहुत अच्छा सैंडविच बनाया था मम्मा.”

“ अवनी ने?”

“हां मम्मा, पहले तो बस ब्रेडबटर ही देती थी, लेकिन आज सैंडविच बनाया.”

अंकु के खिलौनों को समेटती हुई अवनी के कमरे की तरफ गई. मोबाइल पर तेजी से चलती उस की उंगलियां मुझे देख कर थम गई थीं. मैं ने अवनी को पुचकारते हुए अपने सीने से लगा लिया, ”मेरी गुड़िया तो बहुत समझदार हो गई है. सैंडविच बनाने लगी है.”

अवनी ने खुद को अलग करते हुए कहा, “ये आप का परफ्यूम… और अब मैं 13 साल की हो गई हूं. आप घर में नहीं रहेंगी तो इतना तो कर ही सकती हूं.”

इतना अटपटा जवाब… ऐसे क्यों बात कर रही है मुझ से? अरे रोज तो शांति दीदी शाम को आ ही जाती हैं, तब तक वैभव की आवाज आई, ”अरे, आज हमारी रानी साहिबा रसोईघर में. कहीं सपना तो नहीं देख रहा हूं मैं.”

उन की मुसकान ने मुझे फिर से सामान्य कर दिया. वैभव ने हमेशा मुझे वो सम्मान दिया, जो चाचा चाची को देते थे. सबकुछ तो ठीक था मेरी जिंदगी में, जैसा मुझे चाहिए था. मैं ही कुछ ज्यादा सोचने लगती हूं. पता नहीं, किस अपराध बोध में घिर जाती हूं. ये परेशनियां तो जिंदगी के साथ लगी ही रहती हैं. आज समाज में वैभव के नाम के बिना भी मेरी पहचान है.

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जब सब जिंदगी में कुछ ठीक चल रहा हो तो समझ लो जिंदगी करवट लेने वाली है. रात को 11 बजे पापा का फोन आया कि मां की तबियत खराब है. क्या हुआ? कब हुई? ये सब पापा ने सुना ही नहीं. पिछले 3 दिन से इतनी व्यस्त थी कि मां से बात नहीं हुई थी.

सुबह की किरणों के साथ मैं अस्पताल के गेट पर पहुंची. पापा,चाचा आईसीयू गेट के बाहर खड़े थे. मैं उन की तरफ बढ़ने लगी, तो वैभव ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, “हिम्मत रखना.” मैं तब भी कुछ समझ नहीं पाई.

सबकुछ शांत था. मां के पास लगे मौनिटर के अलावा… अब कुछ नहीं हो सकता है. ‘दर्शन कर लो,’ कह कर चाचा मुझे अंदर ले कर गए. मां की आंखें बंद थीं. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. दर्द की एक लहर मेरे सीने से ले कर हाथ तक दौड़ रही थी. मां का चेहरा देख कर लगा कि वो गहरी नींद में सो रही हैं. कांपते हुए हाथों से मैं ने उन का हाथ पकड़ लिया. वैसी ही गरम हथेलियां… महसूस हुआ कि उन्होंने भी मेरा हाथ हलके से दबाया है, तब तक वो मुसकराने लगी और सांस के तेज झटके के साथ सब बंद हो गया. मैं चिल्लाती रह गई, लेकिन मां ने कुछ नहीं सुना. ऐसे मुंह फेर लिया जैसे पहचानती ही नहीं हों. भला ऐसे कौन मां जाती है? अचानक से बिना कुछ बोले… बिना मिले…

मैं उन की अलमारी से कपड़ों को निकाल कर उन की गंध खोज रही थी. सब कपड़े धुले हुए थे. चाची के पास इस उम्मीद में बैठी कि उन से मां का स्पर्श मिलेगा, लेकिन वो तो खुद की ही सुधबुध खो चुकी थीं.

अस्पताल से आए कपड़ों में उन का कपड़ा मिला, जो उस दिन उन्होंने पहना हुआ था. वही मसालों की गंध जिस से मुझे चिढ़ थी, आज मां के पास होने का अहसास करा रही थी. हर रस्म अहसास दिला रहे थे कि मां अब वापस नहीं आएगी. दोनों बच्चों के समय मातृत्व अवकाश खत्म होने के बाद मां कुछ महीने मेरे पास ही रही थीं. वैसे भी साल में 2 बार तो मां उन दोनों के जन्मदिन पर आती ही थीं. अब मेरे पास बस उन पलों की यादें ही बची थीं. अवनी का जुड़ाव मां से बहुत ज्यादा था.

तेरहवीं की रस्मों के बाद पूरा परिवार एकसाथ बैठा हुआ था. अगले दिन सब को अपनेअपने घर निकलना था. चाची की आंखें फिर से डूबने लगीं, वो सुबकते हुए कहने लगीं, “भाभी ने मुझे मुंहदिखाई देते हुए कहा था, ये सारे उपहार तो साल दो साल में पुराने पड़ जाएंगे, लेकिन आज मैं तुम्हें वचन देती हूं कि मेरे जिंदा रहते तुम्हें मायके की कमी महसूस नहीं होने दूंगी.” उन के चलते ही मैं ने अपना पढ़ने और नौकरी करने का सपना पूरा किया.

पापा जो अब तक बिलकुल शांत थे. उन्होंने चाची को समझाते हुए कहा कि वो देवी थीं इस घर को मंदिर बनाने आई थीं अपना काम पूरा कर के चली गईं. अब तुम्हें सब संभालना है. ये क्या बोल रहे थे पापा? मैं ने तो उन्हें कभी मां की तारीफ करते नहीं सुना या उन दोनों के मूक प्रेम को मैं समझ ही नहीं पाई?

मां के जाने के बाद जिंदगी रुक गई थी. कभी लगा ही नहीं वो दूर हो कर भी इस कदर मेरी जिंदगी में मौजूद हैं. शांति दीदी को काम करते देख मैं उन्हें गले लगा लेती. उन से आती गंध में मैं मां को खोजने लगती थी. लगता था, मैं बहुत खराब बेटी हूं. मुझे उन की स्निग्धता और परिपक्वता पर गर्व करना चाहिए था और मैं अपनी आर्थिक स्वतंत्रता के मद में अंधी बनी रही. अपराध बोध से बड़ी कोई सजा नहीं होती और मुझे नहीं पता था कि इस सजा की अवधि कितनी है.

बढ़ती कमजोरी और मानसिक स्थिरता के कारण मैं ने छुट्टी ले ली. वैभव, बच्चे सब मेरी इस हालत से परेशान थे. परेशान तो मैं खुद भी थी, लेकिन इन सब से उबरने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था.

पतझड़ का सूनापन नई पत्तियों की आमद से ही दूर होता है. नन्हे पक्षियों की चहचहाहट से ही निर्जनता को आवाज मिलती है. एक दिन अवनी ने मुझे अपना मोबाइल दिया और कहने लगी, ”मम्मा, आप को पता है कि नानी आप को कितना प्यार करती थीं? आप जितना मुझे और अंकु को मिला कर करती हो उस से भी ज्यादा. याद है, उस दिन मैं ने अंकु के लिए सैंडविच बनाया था, वो मुझे नानी ने ही सिखाया था. पता नहीं क्यों उस दिन मुझे आप पर बहुत ग़ुस्सा आ रहा था. मैं ने नानी से कह दिया कि आप ने मम्मा को अपने जैसा क्यों नहीं बनाया. वो मुझ से कहने लगीं कि आप उन से भी अच्छी हैं, लेकिन मुझे उस दिन कोई बात सुनने का मन नहीं कर रहा था. तब उन्होंने ये मैसेज मुझे भेजा था.

“अवनी बेटा तुम्हें लगता है कि आभा तुम लोगों का ध्यान नहीं रख पाती. उसे भी नौकरी छोड़ कर तुम लोगों के साथ पूरे समय घर पर रहना चाहिए. लेकिन, ये तो गलत है ना बेटा. एक औरत जब बच्चों को छोड़ कर घर से काम करने निकलती है, तो वह खुद ही परेशान होती है. इस नौकरी को पाने के लिए जितनी मेहनत तुम्हारे पापा ने की थी, उतनी ही मेहनत मम्मा ने भी की है. मुझ पर घरपरिवार की बहुत जिम्मेदारियां थीं, लेकिन उस ने मुझे कभी किसी शिकायत का मौका नहीं दिया. जब वो अधिकारी बनी तो तुम्हारे नाना ने कहा कि ये सब तुम्हारे अच्छे कर्मों का फल है. उस की सफलता ने मुझे भी सफल मां बनाया है. उस को कभी गलत मत समझना और हमेशा मजबूती के साथ उस का साथ देना.”

एक बोझ था जो आंसुओं के साथ हलका हो रहा था. अवनी मुझ से चिपकी हुई थी. कह रही थी, आप के अंदर से नानी की खुशबू आ रही है.

लेखिका- पल्लवी विनोद

Romantic Story : क्या अपने प्यार के बारे में बता पाएगी आकांक्षा?

Romantic Story : कैफे की गैलरी में एक कोने में बैठे अभय का मन उदास था. उस के भीतर विचारों का चक्रवात उठ रहा था. वह खुद की बनाई कैद से आजाद होना चाहता था. इसी कैद से मुक्ति के लिए वह किसी का इंतजार कर रहा था. मगर क्या हो यदि जिस का अभय इंतजार कर रहा था वह आए ही न? उस ने वादा तो किया था वह आएगी. वह वादे तोड़ती नहीं है…

3 साल पहले आकांक्षा और अभय एक ही इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ते थे. आकांक्षा भी अभय के साथ मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी, और यह बात असाधारण न हो कर भी असाधारण इसलिए थी क्योंकि वह उस बैच में इकलौती लड़की थी. हालांकि, अभय और आकांक्षा की आपस में कभी हायहैलो से ज्यादा बात नहीं हुई लेकिन अभय बात बढ़ाना चाहता था, बस, कभी हिम्मत नहीं कर पाया.

एक दिन किसी कार्यक्रम में औडिटोरियम में संयोगवश दोनों पासपास वाली चेयर पर बैठे. मानो कोई षड्यंत्र हो प्रकृति का, जो दोनों की उस मुलाकात को यादगार बनाने में लगी हो. दोनों ने आपस में कुछ देर बात की, थोड़ी क्लास के बारे में तो थोड़ी कालेज और कालेज के लोगों के बारे में.

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फिर दोनों की मुलाकात सामान्य रूप से होने लगी थी. दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी. मगर फिर भी आकांक्षा की अपनी पढ़ाई को ले कर हमेशा चिंतित रहने और सिलेबस कम्पलीट करने के लिए हमेशा किताबों में घुसे रहने के चलते अभय को उस से मिलने के लिए समय निकालने या परिस्थितियां तैयार करने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी. पर वह उस से थोड़ीबहुत बात कर के भी खुश था.

दोस्ती होते वक्त नारी सौंदर्य के प्रखर तेज पर अभय की दृष्टि ने भले गौर न किया हो पर अब आकांक्षा का सौंदर्य उसे दिखने लगा था. कैसी सुंदरसुंदर बड़ीबड़ी आंखें, सघन घुंघराले बाल और दिल लुभाती मुसकान थी उस की. वह उस पर मोहित होने लगा था.

शुरुआत में आकांक्षा की तारीफ करने में अभय को हिचक होती थी. उसे तारीफ करना ही नहीं आता था. मगर एक दिन बातों के दौरान उसे पता चला कि आकांक्षा स्वयं को सुंदर नहीं मानती. तब उसे आकांक्षा की तारीफ करने में कोई हिचक, डर नहीं रह गया.

आकांक्षा अकसर व्यस्त रहती, कभी किताबों में तो कभी लैब में पड़ी मशीनों में. हर समय कहीं न कहीं उलझी रहती थी. कभीकभी तो उसे उस के व्यवहार में ऐसी नजरअंदाजगी का भाव दिखता था कि अभय अपमानित सा महसूस करने लगता था. वह बातें भी ज्यादा नहीं करती थी, केवल सवालों के जवाब देती थी.

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अपनी पढ़ाई के प्रति आकांक्षा की निष्ठा, समर्पण और प्रतिबद्धता देख कर अभय को उस पर गर्व होता था, पर वह यह भी चाहता था कि इस तकनीकी दुनिया से थोड़ा सा अवकाश ले कर प्रेम और सौहार्द के झरोखे में वह सुस्ता ले, तो दुनिया उस के लिए और सुंदर हो जाए. बहुत कम ऐसे मौके आए जब अभय को आकांक्षा में स्त्री चंचलता दिखी हो. वह स्त्रीसुलभ सब बातों, इठलाने, इतराने से कोसों दूर रहा करती थी. आकांक्षा कहती थी उसे मोह, प्रेम या आकर्षण जैसी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं. उसे बस अपने काम से प्यार है, वह शादी भी नहीं करेगी.

अचानक ही अभय अपनी खयालों की दुनिया से बाहर निकला. अपनेआप में खोया अभय इस बात पर गौर ही नहीं कर पाया कि आसपास ठहाकों और बातचीतों का शोर कैफे में अब कम हो गया है.

अभय ने घड़ी की ओर नजर घुमाई तो देखा उस के आने का समय तो कब का निकल चुका है, मगर वह नहीं आई. अभय अपनी कुरसी से उठ कैफे की सीढि़यां उतर कर नीचे जाने लगा. जैसे ही अभय दरवाजे की ओर तेज कदमों से बढ़ने लगा, उस की नजर पास वाली टेबल पर पड़ी. सामने एक कपल बैठा था. इस कपल की हंसीठिठोलियां अभय ने ऊपर गैलरी से भी देखी थीं, लेकिन चेहरा नहीं देख पाया था.

लड़कालड़की एकदूसरे के काफी करीब बैठे थे. दोनों में से कोई कुछ नहीं बोल रहा था. लड़की ने आंखें बंद कर रखी थीं मानो अपने मधुरस लिप्त होंठों को लड़के के होंठों की शुष्कता मिटा वहां मधुस्त्रोत प्रतिष्ठित करने की स्वीकृति दे रही हो.

अभय यह नजारा देख स्तब्ध रह गया. उसे काटो तो खून नहीं, जैसे उस के मस्तिष्क ने शून्य ओढ़ लिया हो. उसे ध्यान नहीं रहा कब वह पास वाली अलमारी से टकरा गया और उस पर करीने से सजे कुछ बेशकीमती कांच के मर्तबान टूट कर बिखर गए.

इस जोर की आवाज से वह कपल चौंक गया. वह लड़की जो उस लड़के के साथ थी कोई और नहीं बल्कि आकांक्षा ही थी. आकांक्षा ने अभय को देखा तो अचानक सकते में आ गई. एकदम खड़ी हो गई. उसे अभय के यहां होने की बिलकुल उम्मीद नहीं थी. उसे समझ नहीं आया क्या करे. सारी समझ बेवक्त की बारिश में मिट्टी की तरह बह गई. बहुत मुश्किलों से उस के मुंह से सिर्फ एक अधमरा सा हैलो ही निकल पाया.

अभय ने जवाब नहीं दिया. वह जवाब दे ही नहीं सका. माहौल की असहजता मिटाने के आशय से आकांक्षा ने उस लड़के से अभय का परिचय करवाने की कोशिश की. ‘‘साहिल, यह अभय है, मेरा कालेज फ्रैंड और अभय, यह साहिल है, मेरा… बौयफ्रैंड.’’ उस ने अंतिम शब्द इतनी धीमी आवाज में कहा कि स्वयं उस के कान अपनी श्रवण क्षमता पर शंका करने लगे.  अभय ने क्रोधभरी आंखें आकांक्षा से फेर लीं और तेजी से दरवाजे से बाहर निकल गया.

आकांक्षा को कुछ समझ नहीं आया. उस ने भौचक्के से बैठे साहिल को देखा. फिर दरवाजे से निकलते अभय को देखा और अगले ही पल साहिल से बिना कुछ बोले दरवाजे की ओर दौड़ गई. बाहर आ कर अभय को आवाज लगाई. अभय न चाह कर भी पता नहीं क्यों रुक गया.

आधी रात को शहर की सुनसान सड़क पर हो रहे इस तमाशे के साक्षी सितारे थे. अभय पीछे मुड़ा और आकांक्षा के बोलने से पहले उस पर बरस पड़ा, ‘‘मैं ने हर पल तुम्हारी खुशियां चाहीं, आकांक्षा. दिनरात सिर्फ यही सोचता था कि क्या करूं कि तुम्हें हंसा सकूं. तमाम कोशिशें कीं कि गंभीरता, कठोरता, जिद्दीपन को कम कर के तुम्हारी जिंदगी में थोड़ी शरारतभरी मासूमियत के लिए जगह बना सकूं. तुम्हें मझधार के थपेड़ों से बचाने के लिए मैं खुद तुम्हारे लिए किनारा चाहता था. मगर, मैं हार गया. तुम दूसरों के साथ हंसती, खिलखिलाती हो, बातें करती हो, फिर मेरे साथ यह भेदभाव क्यों? तकलीफ तो इस बात की है कि जब तुम्हें किनारा मिल गया तो मुझे बताना भी जरूरी नहीं समझा तुम ने. क्यों आकांक्षा?’’

आकांक्षा अपराधी भाव से कहने लगी, ‘‘मैं तुम्हें सब बताने वाली थी. तुम्हें ढेर सारा थैंक्यू कहना चाहती थी. तुम्हारी वजह से मेरे जीवन में कई सारे सकारात्मक बदलावों की शुरुआत हुई. तुम मुझे कितने अजीज हो, कैसे बताऊं तुम्हें. तुम तो जानते ही हो कि मैं ऐसी ही हूं.’’

आकांक्षा का बोलना जारी था, ‘‘तुम ने कहा, मैं दूसरों के साथ हंसती, खिलखिलाती हूं. खूब बातें करती हूं. मतलब, छिप कर मेरी जासूसी बड़ी देर से चल रही है. हां, बदलाव हुआ है. दरअसल, कई बदलाव हुए हैं. अब मैं पहले की तरह खड़ ूस नहीं रही. जिंदगी के हर पल को मुसकरा कर जीना सीख लिया है मैं ने. तुम्हारा बढ़ा हाथ है इस में, थैंक्यू फौर दैट. और तुम भी यह महसूस करोगे मुझ से अब बात कर के, अगर मूड ठीक हो गया हो तो.’’ अब वह मुसकराने लगी.

अभय बिलकुल शांत खड़ा था. कुछ नहीं बोला. अभय को कुछ न कहते देख आकांक्षा गंभीर हो गई. कहने लगी, ‘‘तुम्हें तो खुश होना चाहिए. तुम मेरे नीरस जीवन में प्यार की मिठास घोलना चाहते थे तो अपनी ही इच्छा पूरी होने पर इतने परेशान क्यों हो गए? मुझे साहिल के साथ देख कर इतना असहज क्यों हो गए? मेरे खिलाफ खुद ही बेवजह की बेतुकी बातें बना लीं और मुझ से झगड़ रहे हो. कहीं…’’ आकांक्षा बोलतेबोलते चुप हो गई.

इतना सुन कर भी अभय चुप ही रहा. आकांक्षा ने अभय को चुप देख कर एक लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘तुम ने बहुत देर कर दी, अभय.’’

यह सुन कर उस के पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई. हृदय एक अजीब परंतु परिपूर्ण आनंद से भर गया. उस का मस्तिष्क सारे विपरीत खयालों की सफाई कर बिलकुल हलका हो गया. ‘तुम ने बहुत देर कर दी, अभय,’ इस बात से अब वह उम्मीद टूट चुकी थी जिसे उस ने कब से बांधे रखा था. लेकिन, जो आकांक्षा ने कहा वह सच भी तो था. वह न कभी कुछ साफसाफ बोल पाया न वह समझ पाई और अब जब उसे जो चाहिए था मिल ही गया है तो वह क्यों उस की खुशी के आड़े आए.

अभय ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘कम से कम मुझ से समय से मिलने तो आ जातीं.’’ यह सुन कर आकांक्षा हंसने लगी और बोली, ‘‘बुद्धू, हम कल मिलने वाले थे, आज नहीं.’’ अभय ने जल्दी से आकांक्षा का मैसेज देखा और खुद पर ही जोरजोर से हंसने लगा.

एक झटके में सबकुछ साफ हो गया और रह गया दोस्ती का विस्तृत खूबसूरत मैदान. आकांक्षा को वह जितना समझता है वह उतनी ही संपूर्ण और सुंदर है उस के लिए. उसे अब आज शाम से ले कर अब तक की सारी नादानियों और बेवकूफीभरे विचारों पर हंसी आने लगी. उतावलापन देखिए, वह एक दिन पहले ही उस रैस्टोरैंट में पहुंच गया था जबकि उन का मिलना अगले दिन के लिए तय था.

अभय ने कुछ मिनट लिए और फिर मुसकरा कर कहा, ‘‘जानबूझ कर मैं एक दिन पहले आया था, माहौल जानने के लिए आकांक्षा, यू डिजर्व बैटर.’’

लेखक – संदीप कुमरावत

Love Story : क्या नीना को उसका प्यार मिल पाया

Love Story : नीना के प्रति मेरा आकर्षण चुंबक की तरह मुझे खींच रहा था. एक दिन मैं ने हंस कर सीधेसीधे उस से कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं.’’ वह ठहाका मार कर हंसी, ‘‘तुम बड़े नादान हो रविजी. महानगर में प्यार मत करो, लुट जाओेगे.’’ उस ने फिर कहीं दूर भटकते हुए कहा, ‘‘इस शहर में रहो, पर सपने मत देखो. छोटे लोगों के सपने यों ही जल जाते हैं. जिंदगी में सिर्फ राख और धुआं बचते हैं. सच तो यह है कि प्यार यहां जांघों के बीच से फिसल जाता है.’’ ‘‘कितना बेहूदा खयाल है नीना…’’ ‘‘किस का…?’’ ‘‘तुम्हारा,’’ मैं ने तल्ख हो कर कहा, ‘‘और किस का?’’ ‘‘यह मेरा खयाल है?’’ वह हैरान सी हुई, ‘‘तुम यही समझे…?’’ ‘‘तो मेरा है?’’ ‘‘ओह…’’ उस ने दुखी हो कर कहा, ‘‘फिर भी मैं कह सकती हूं कि तुम कितने अच्छे हो… काश, मैं तुम्हें समझा पाती.’’ ‘‘नहीं ही समझाओ तो अच्छा,’’ मैं ने उस से विदा लेते हुए कहा, ‘‘मैं समझ गया…’’ रास्तेभर तरहतरह के खयाल आते रहे.

आखिरकार मैं ने तय किया कि सपने कितने भी हसीन हों, अगर आप बेदखल हो गए हों, तो उन हसरतों के बारे में सोचना छोड़ देना चाहिए. मैं नीना की जिंदगी से कट सा गया था. मैं नीना को एक बस के सफर में मिला था. वह भी वहीं से चढ़ी थी, जहां से मैं चढ़ा था और वहीं उतरी भी थी. कुछ दिन में हैलोहाय से बात आगे बढ़ गई. वह एक औफिस में असिस्टैंट की नौकरी कर रही थी. बैठनाउठना हो गया. वह बिंदास थी, पर बेहद प्रैक्टिकल. कुछ जुगाड़ू भी थी. मेरे छोटेमोटे काम उस ने फोन पर ही करा दिए थे. उस दिन मैं फैक्टरी से देर से निकला, तो जैक्सन रोड की ओर निकल गया. दिल यों भी दुखी था, क्योंकि फैक्टरी में एक हादसा हो गया था. बारबार दिमाग में उस लड़के का घायल चेहरा आ रहा था. मैं एक मसाज पार्लर के पास रुक गया. यह पुराना शहर था अपनी स्मृति में, इतिहास को समेटे हुए.

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मैं ने घड़ी देखी. 7 बज रहे थे. मैं थकान दूर करने के लिए घुस गया. अभी मैं जायजा ले ही रहा था कि मेरी नजर नीना पर पड़ी, ‘‘तुम यहां…?’’ ‘‘मैं इसी पार्लर में काम करती हूं.’’ ‘‘पर, तुम ने तो बताया था कि किसी औफिस में काम करती हो…’’ ‘‘हां, करती थी.’’ ‘‘फिर…?’’ ‘‘सब यहीं पूछ लोगे क्या…?’’ कहते हुए वह दूसरे ग्राहक की ओर बढ़ गई. नशे से लुढ़कतेथुलथुले लोगों के बीच से वह उन्हें गरम बदन का अहसास दे रही थी. यह देख मुझे गहरा अफसोस हुआ. मैं सिर्फ हैड मसाज ले कर वापस आ गया. रास्ते में मैं ने फ्राई चिकन और रोटी ले ली थी. कमरे में पहुंच कर मैं ने अभी खाने का एक गस्सा तोड़ा ही था कि मोहन आ गया. ‘‘आओ मोहन,’’ मैं ने कहा, ‘‘बड़े मौके से आए हो तुम.’’ ‘‘क्या है?’’ मोहन ने मुसकराते हुए पूछा. वह एक दवा की दुकान पर सेल्समैन था. पूरा कंजूस और मजबूर आदमी. अकसर उसे घर से फोन आता था, जिस में पैसे की मांग होती थी.

इस कबूतरखाने में इसी तरह के लोग किराएदार थे, जो दूर कहीं गांवघर में अपने परिवार को छोड़ कर अपना सलीब उठाए चले आए थे. मैं ने थाली मोहन की ओर खिसकाई. बिना चूंचूं किए वह खाने लगा. मोहन बोला, ‘‘यार रवि, तुम्हीं ठीक हो. तुम्हारे घर वाले तुम्हें नोचते नहीं. मैं तो सोचता हूं कि मेरी जिंदगी इसी तरह खत्म हो जाएगी कि मैं वापस भी नहीं जा सकूंगा गांव… पहले यह सोच कर आया था कि 2-4 साल कमा कर लौट जाऊंगा… मगर, 10 साल होने को हैं, मैं यहीं हूं…’’ ‘‘सुनो मोहन, मुझे फोन इसलिए नहीं आते हैं कि मेरे घर में लोग नहीं हैं… बल्कि उन्हें पता ही नहीं है कि मैं कहां हूं… इस दुनिया में हूं भी कि नहीं… यह अच्छा है… आज जिस लड़के के साथ हादसा हुआ, अगर मेरी तरह होता तो किस्सा खत्म था, पर अब जाने क्या गुजर रही होगी उस के घर वालों पर…’’ ‘‘एक बात बोलूं?’’ ‘‘बोलो.’’ ‘‘तुम शादी कर लो.’’ ‘‘किस से?’’ ‘‘अरे, मिल जाएगी…’’ ‘‘मिली थी…’’ मैं ने कहा. ‘‘फिर क्या हुआ?’’ ‘‘टूट गया.’’ रात काफी हो गई थी. मोहन उठ गया. सवेरे मेरी नींद देर से खुली, मगर फैक्टरी में मैं समय से पहुंच गया.

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मुझे वहीं पता चला कि उस ने अस्पताल में रात तकरीबन 3 बजे दम तोड़ दिया. मैनेजर ने एक मुआवजे का चैक दिखा कर हमदर्दी बटोरने के बाद फैक्टरी में चालाकी से छुट्टी कर दी. मैं वापस लौटने ही वाला था कि नीना का फोन आया. चौरंगी बाजार में एक जगह वह इंतजार कर रही थी. ‘‘क्या बात है?’’ मैं ने पूछा. ‘‘कुछ नहीं,’’ वह हंसी. ‘‘बुलाया क्यों?’’ ‘‘गुस्से में हो?’’ ‘‘किस बात के लिए?’’ ‘‘अरे, बोलो भी.’’ ‘‘बोलूं?’’ ‘‘हां.’’ ‘‘झूठ क्यों बोली?’’ ‘‘क्या झूठ?’’ ‘‘कि औफिस में…’ ‘‘नहीं, सच कहा था.’’ ‘‘तो वहीं रहती.’’ ‘‘बौस देह मांग रहा था,’’ उस ने साफसाफ कहा. ‘‘क्या…?’’ मैं अवाक रह गया. काफी देर बाद मैं ने कहा, ‘‘चलो, मुझे माफ कर दो. गलतफहमी हुई.’’ ‘‘गलतफहमी में तो तुम अभी भी हो…’’ ‘‘मतलब…?’’ मैं इस बार चौंका, ‘‘कैसे?’’ ‘‘फिर कभी,’’ नीना ने हंस कर कहा. उस दिन नीना के प्रति यह गलतफहमी रह जाती, अगर मैं उस के साथ जिद कर के उस के घर नहीं गया होता. मेरे घर की तरह दड़बेनुमा मकान था.

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एक बिल्डिंग में 30-40 परिवार होंगे. सचमुच कभीकभी जिंदगी भी क्या खूब मजाक करती है. वह 2 बूढ़ों को पालते हुए खुद बूढ़ी हो रही थी. उस की मां की आंखों में एक चमक उठी. कुछ अपना रोना रोया, कुछ नीना का. मेरा भी कोई अपना कहने वाला नहीं था. भाई कब का न जाने कहां छोड़ गया था. मांबाप गुजर चुके थे. चाचाताऊ थे, पर कभी साल 2 साल में कोई खबर मिलती. उस दिन नीना का हाथ अपने हाथ में ले कर मैं ने कहा, ‘‘मुझे अब कोई गलतफहमी नहीं है, तुम्हें हो, तो कह सकती हो.’’ ‘‘मुझे है,’’ उस ने हंस कर कहा, ‘‘पर, कहूंगी नहीं.’’ एक खूबसूरत रंग फिजा में फैल कर बिखर गया. उस दिन उस के छोटे बिस्तर पर जो अपनापन मिला, मां की गोद के बाद कभी नहीं मिला था. दो महीने बाद दोनों ने शादी कर ली, बस 10 जने थे. न घोड़ी, न बरात, पर मुझे और नीना को लग रहा था कि सारी दुनिया जीत ली. अगली सुबह मैं अपने साथ खाने का डब्बा ले गया था. इस से बढ़ कर दहेज होता है क्या?

लेखक- संजय कुमार सिंह

Instagram Influencers : जानकारियों के लिए इन्फ्लुएंसर्स पर निर्भरता कितना सही

Instagram Influencers : आज युवा अपना सब से ज्यादा समय सोशल मीडिया पर बिता रहा है. वह अपनी समस्या का हल ढूढ़ने की जगह सोशल मीडिया का सहारा लेने लगा है. इन्फ्लुएंसर्स भी बड़ा वर्ग इन युवाओं को अपना फौलोअर्स बना रहा है और इन के द्वारा ऐसा कंटेंट परोसा जा रहा है जो भटकाने का ही काम कर रहा है.

 

यंगस्टर्स इन्फ्लुएंसर्स की फैन फौलोइंग देख कर उन पर आंख बंद कर के भरोसा कर रहे हैं और सोचते हैं कि वे उन्हें सही जानकारी दे रहे हैं जबकि ऐसा नहीं है.

 

यूनेस्को की हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार कंटेंट क्रिएटर फैक्ट चेक करने से कतरा रहे हैं. यूनेस्को द्वारा किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक 62 फीसदी कंटेंट क्रिएटर किसी भी खबर या जानकारी को शेयर करने से पहले स्टैंडर्ड तरीके से उस का फैक्ट चेक नहीं करते हैं.

 

ये इन्फ्लुएंसर सिर्फ प्रोडक्ट्स या सर्विस के प्रचार तक सीमित रहते हैं. ये इन्फ्लुएंसर्स फैशन से ले कर रिलेशन तक, फिजिकल फिटनैस से ले कर स्किन केयर तक, ट्रेवल, इन्वेस्टमेंट, लाइफ स्टाइल, धर्म, राजनीति जैसी हर चीज पर एक्सपर्ट बन कर अपनी राय रखते हैं. और युवा जो इन की दी सलाह पर चलने में सक्षम नहीं होते वे कुंठा, असुरक्षा और हीनता की भावना से घिरने लगते हैं. अपने फैसलों को ले कर उन का आत्मविश्वास डगमगाने लगता है और वे डिप्रेशन, बौडी डिस्मार्फिया, ऐंगजाइटी जैसी मानसिक समस्याओं में घिरने लगते हैं.

 

कोई इन इंफ्लुएंसर्स और इन के फौलोअर्स को समझाए कि जब किताब के एक पेज को पढ़ कर किताब की पूरी जानकारी नहीं मिल सकती तो क्या 15-30 सेकेंड के रील में इन्फ्लुएंसर्स जो जानकारी दे रहे हैं क्या सही दे रहे हैं?

आधी से ज्यादा गलत जानकारी 

 

किसी भी फील्ड के एक्सपर्ट को सालों की मेहनत, पढ़ाई, डिग्री, अनुभव के बाद अपनी फील्ड की जानकारी मिलती है. वे इस के स्पैशलाइज्ड होने के लिए सालों खपाते हैं. बाल सफ़ेद करते हैं लेकिन ये इंफ्लुएंसर्स खुद को 15 से 30 सैकंड की रील में स्पैशलाइज्ड समझने लगते हैं. ये अपने यंग फौलोअर्स को बिना जानकारी इकठ्ठा किए, पढ़े पूरे कौन्फिडेंस के साथ बढ़चढ़ कर जानकारी देते हैं. 

जो भी इन्फ्लुएंसर्स अपने यंग फौलोअर्स को जानकारी दे रहे हैं वे खुद उस फील्ड के एक्स्पर्ट्स नहीं हैं कुछ तो 12 वीं पास हैं, कुछ सिर्फ ग्रेजुएट हैं फिर उन के द्वारा दी जानकारी पर यूथ को क्यों भरोसा करना चाहिए, यह समझने वाली बात है.

यूथ इन इन्फ्लुएंसर्स की फैन फौलोइंग देख कर उन पर आंख बंद कर के भरोसा करते हैं और सोचते हैं कि वे उन्हें सही जानकारी दे रहे हैं जबकि वास्तव में ऐसा नहीं होता.

इंफ्लुएंसर्स सिर्फ रटीरटाई बातें कहते हैं, वह भी यहांवहां से जोड़तोड़ कर इकठ्ठा की गई होती हैं. उन्हें खुद नहीं पता होता कि वे क्या बोल रहे हैं बस वे स्क्रीन पर आ कर वह लाइंस बोल देते हैं और यूथ उन की बातों पर भरोसा कर लेता है.

 

इंफ्लुएंसर्स द्वारा रील्स, शौर्ट वीडियोज़ में दी जाने वाली जानकारी कई किताबों की आधीअधूरी लाइंस का कौकटेल होता है, जिस का कोई सिर पैर नहीं होता. कई बार तो रील का टाइटल कुछ और होता है और उस में कही जाने वाली बात कुछ और होती है. यह किसी भी यूथ को गुमराह करने के लिए काफी है. इन्फ्लुएंसर्स द्वारा दी जाने वाली इस तरह की बिना रिसर्च की आधीअधूरी जानकारी से यूथ में कन्फ्यूजन क्रिएट हो रहा है. वह सही गलत का जजमेंट नहीं कर पा रहा, उस की किसी भी बात या जानकारी को एनालाइज करने की पावर खत्म होती जा रही है.  

 

इंफ्लुएंसर पर ट्रस्ट सोचसमझ कर 

शायद आप नहीं जानते होंगे कि आज ऐसे कई सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स और वेबसाइट्स मौजूद हैं जहां से कोई भी पैसे दे कर फौलोअर्स, लाइक्स और व्यूज बढ़ाने की सर्विस ले सकता है. यानी कि फौलोअर्स खरीदे जा रहे हैं और इस के लिए बाकायदा सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स की ओर से स्पोन्सर्ड विज्ञापन दिखाए जाते हैं.  

इसलिए किसी भी इंफ्लुएंसर को फौलो करने और उस की जानकारी पर भरोसा करने से पहले संभल जाएं. अगर आप को सोशल मीडिया पर कोई ऐसी आईडी नजर आए जिस के फौलोअर्स अचानक ही बढ़ गए हों तो हो सकता है कि उस ने फौलोअर्स खरीदे हों. जी हां, सोशल मीडिया पर इन दिनों 50 रुपये में 1000 फौलोअर्स, 5 रुपये में 100 लाइक्स और 5 रुपये में 1000 व्यूज तक बढ़ाने के बेसिक पैकेज दे कर लोगों को अपनी ओर खींचा जा रहा है. कई डिजिटल मार्केटिंग एजेंसियां हैं जो व्यूज बढ़ाने के तरीक बताती हैं. फिर चाहे उस के लिए जैसे तिकड़म करने पड़ें.  

आप सोचेंगे कि इतने सस्ते में फौलोअर्स, लाइक्स कैसे मिलते हैं तो आप को बता दें कि ये डेड आईडीज का सहारा ले कर किया जाता है. न ये काम करती हैं और न ही इन पर कोई असली व्यक्ति होता है. यानी यह सब एक गोरख धंधा है यूथ को अपनी राह से भटकाने का.

 

यूथ पर नेगेटिव प्रभाव डालने वाले इंफ्लुएंसर्स से बच कर रहें 

 

आजकल इनफ्लुएंसर्स सट्टेबाजी ऐप और औनलाइन जुआ प्लेटफौर्म के विज्ञापन भी करने लगे हैं और यूथ सोचता है कि इतना बड़ा इनफ्लुएंसर प्रमोशन कर रहा है तो सही ही होगा और इस तरह के विज्ञापन से युवा उन पर विश्वास कर के अपना मोटा नुकसान कर बैठते हैं. कई फाइनेंस की भी जानकारी देते हैं, जिस में घुमाफिरा कर किसी विशेष शेयर को खरीदने की बात कह देते हैं, इस से भी कई लोग नुकसान उठा लेते हैं. इसलिए युवाओं को इन्फ्लुएंसर द्वारा दी जाने वाली जानकारी पर भरोसा न करने की सलाह दी जाती है.

ये इनफ्लुएंसर्स आर्थिक लाभ के लिए फैक्ट्स को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं. गलत जानकारियों के साथ खुद को इन्फ्लुएंसर्स के रूप में पेश करते हैं और बेचारा यूथ इन की बातों में आ कर इन की चमकधमक में उन्हें फौलो करने लगता है.  

 

फौलोअर्स के बेस पर नहीं करें इन्फ्लुएंसर्स का चुनाव 

आज युवा अपना सब से ज्यादा समय सोशल मीडिया पर बिता रहा है. वह अब किताबों में अपनी समस्या का हल ढूंढने की जगह सोशल मीडिया का सहारा लेने लगा है. ऐसे में एक बड़ा वर्ग इन युवाओं को अपना फौलोअर्स बना रहा है और इस वर्ग द्वारा ऐसा कंटेंट परोसा जा रहा है जिसे युवा अपनी राह से भटक रहा है, उन की बातों में आ रहा है. ये इन्फ्लुएंसर्स पैसे ले कर ऐसे कंटेंट की ब्रांडिंग कर रहे हैं जो यूथ के लिए नुकसानदायक है.  

 

रील्स के माध्यम से इन्फ्लुएंसर्स कुतार्किक बातें करते हैं कई तो धार्मिक उन्माद बढ़ाने तक का काम करते हैं. इतिहास के बारे में भी गलत जानकारी दी जा रही है. माइथोलौजिकल गपों से पूरा इंटरनेट भरा पड़ा है, इस में इन्फ्लुएंसर्स की बड़ी भूमिका है जो अनापशनाप कुछ भी बिना तथ्यों के कहते रहते हैं.  

सोशल मीडिया में इन्फ्लुएंसर्स द्वारा दिखाई जाने वाली 30 सेकंड की रील्स को मनोरंजन के लिए देखना तो कुछ हद तक ठीक भी है लेकिन इन रील्स को यूथ नौलेज कंजंप्शन का जरिया भी मानने लगा है जो उन के लिए खतरनाक है.

कई इन्फ्लुएंसर्स यूट्यूब शौर्ट्स, इंस्टाग्राम पर सेहत, डाइट और न्यूट्रिशन के बारे में भर भर कर जानकारी दे रहे हैं और यूथ इन्हें आम जिंदगी में अप्लाइ भी कर रहे हैं. यूथ को इस जानकारी को अपनी ज़िंदगी में अप्लाई करने से पहले यह समझना होगा कि ये इन्फ्लुएंसर्स सर्टिफाइड डाक्टर्स, न्यूट्रीशनिस्ट या हैल्थ एक्सपर्ट नहीं हैं. कई हैल्थ के उटपटांग टिप्स देते हैं. एक इन्फ्लुएंसर का दूसरे की बात काटना इसलिए भी जरुरी हो जाता है ताकि लोग उसे अहि मानें, इसलिए इन की बातें आपस में मेल भी नहीं खातीं. बहुत से प्रोडक्ट का प्रचार करने के लिए जबरन तारीफें करते हैं.

 

98% गलत जानकारी पर आंख मूंद कर भरोसा 

 

हाल ही में आई माय फिटनेस पैलऔर डब्लिन सिटी यूनिवर्सिटीकी एक जोइंट स्टडी के मुताबिक 57% मिलेनियल और जेन-जी यूजर्स सोशल मीडिया रील्स में दी जा रही जानकारी को सच मान कर अपनी जिंदगी में अप्लाई कर रहे हैं. स्टडी में ये भी पता चला कि न्यूट्रीशन और डाइट के बारे में सिर्फ 2% वीडियोज में ही सही इंफौर्मेशन दी गई है. यानी 98% लोग गलत जानकारी दे रहे हैं, जिसे यूथ आंख मूंद कर फौलो किए जा रहा है. 

हैल्थ और न्यूट्रिशन के ये वीडियोज की बातों को फौलो करना बेहद खतरनाक हो सकता है क्योंकि इन वीडियोज में लोग एक जेनेरिक किस्म का डाइट प्लान बताया जाता है जो हर देखने वाले के लिए सही नहीं हो सकता क्योंकि हर किसी का बीएमआई इंडेक्स, उस के गोल्स और न्यूट्रीशनल जरूरतें अलगअलग होती हैं. दो लोगों का एक्टिविटी लेवल अलग हो सकता है.  किसी की सिटिंग जौब हो सकती है तो किसी की फील्ड जौब. ऐसे में दोनों की डाइट एक जैसी कैसे हो सकती है ?

सोशल मीडिया पर इन्फ्लुएंसर किसी भी सब्जेक्ट का एक्सपर्ट बन कर ज्ञान दे रहा है और जो युवा इसे बिना सोचेसमझे फौलो कर रहे हैं, उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो में कहा गया, “आजकल हर कोई सफेद बालों की समस्या से परेशान है. लेकिन अगर आप यह रेसिपी अपने बालों में लगाते हैं, तो बुढ़ापे में भी सफेद बाल नहीं होंगे.” 

यह वीडियो ब्यूटी और पर्सनल केयर इंफ्लुएंसर, सुमन द्वारा अपलोड किया गया था. वीडियो में दिखाया गया कि एक इंफ्लुएंसर ने बैंगन को तेल में डुबो कर गरम किया, फिर उस में रोजमैरी और शिकाकाई डाला. इस तेल को एक जार में भर कर उसे बालों में लगाने का तरीका बताया. पर क्या प्रूफ है कि इस से बाल काले ही हो जाएंगे? नहीं हुए तो क्या इन्फ्लुएंसर सार्वजनिक माफ़ी मांगेगी?

इस वीडियो के वायरल होने के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या सोशल मीडिया पर किसी भी प्रकार के हेयर केयर टिप्स को सही मान कर फौलो करना चाहिए. 

उभरे और मोटे होंठ आज हर युवा लड़की की ख्वाहिश बनते जा रहे हैं. होंठों को मोटा बनाने के लिए लड़कियां कई तरह की कास्मेटिक सर्जरी, फिलर्स और ब्यूटी हैक्स ट्राई कर रही हैं. ऐसे में पिछले दिनों दिल्ली की एक मशहूर इंफ्लुएंसर सुभांगी आनंद ने इंस्टाग्राम पर होंठों को मोटा करने का एक ऐसा हैक शेयर किया है जिस ने हर किसी को चौंक दिया. 

शुभांगी का यह वीडियो इंस्टाग्राम पर वायरल हो रहा है. इस वीडियो में शुभांगी आनंद हरी मिर्च का इस्तेमाल नेचुरल लिप प्लम्पर की तरह करती नजर आ रही हैं. वीडियो में देखा जाता है कि शुभांगी पहले हरी मिर्च काटती हैं और फिर उसे होंठों पर लगाती हैं. 2 सेकेंड के बाद ही उन के होंठ बिल्कुल फूले और मोटे नजर आ रहे हैं.

कई इंटरनेट यूजर्स ने इसे खतरनाक बताया. जबकि कुछ लड़कियां इसे ट्राई करने और सही होने का दावा कर रही हैं. मैडम को शायद यह नहीं पता कि यह होंटो को मोटा करने की विधि नहीं बल्कि सुझाने की विधि है. जबकि हैल्थ एक्सपर्ट्स ने मिर्ची के इस्तेमाल से होंठों को मोटा करने के तरीके को गलत और स्किन साइड इफैक्ट्स वाला बताया है क्योंकि होंठों की त्वचा बहुत ही पतली और नाजुक होती है. ऐसे में हरी मिर्च का तीखापन और उस में मौजूद कैप्साइसिन होंठों को नुकसान पहुंचा सकता है. हरी मिर्च के तीखे तत्व होंठों की प्राकृतिक नमी को खत्म कर सकते हैं. इस की वजह से होंठ ड्राई और फटे हुए नजर आ सकते हैं. हरी मिर्च होंठों पर लगाने से खून आने का खतरा भी रहता है.  

 

फाइनैंस एडवाइस देते इंफ्लुएंसर्स 

सोशल मीडिया पर इन दिनों फाइनेंसियल एडवाइस देते इन्फ्लुएंसर्स की संख्या तेजी से बढ़ रही है. कोई क्रिप्टो में पैसे लगाने की सलाह देता है कोई शेयर मार्किट में. हद तो यह है कि कई बेटिंग में भी पैसा लगाने की बात करते हैं. ये गलत डेटा शेयर करते हैं. 

ऐसे इन्फ्लुएंसर्स के हजारोंलाखों सब्सक्राइबर्स होते हैं. इन के वीडियोज पर अच्छीखासी संख्या में व्यूज़ भी आते हैं. कई बार उन की रील्स या वीडियो देख कर युवा निवेशक अपने पैसा लगा देते है जो उन्हें बहुत भारी पड़ता है. 

सच तो ये है कि बहुत कम युवा सोशल मीडिया पर ज्ञान के सही स्रोत तक पहुंच पाते हैं.  सोशल मीडिया ने असल जिंदगी और डिजिटल लाइफ के बीच का फर्क ही मिटा दिया है. युवा अब एक काल्पनिक दुनिया में जी रहे हैं. वे परिवार से, दोस्तों से, किताबों से और प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं. यूथ को इस बात को समझना होगा कि कौन से इन्फ्लुएंसर्स उन के हित में हैं और कौन उन्हें भ्रमित कर रहे हैं. बिना सोचेसमझे उन की कही हर बात का अनुसरण करना यूथ को खतरे में डाल सकता है.

YouTube : यूट्यूब पर भूतिया दुकान चलाते क्रिएटर्स

YouTube : आजकल यूट्यूब ऐसे चैनलों की भरमार है जिन में भूतों की घटनाओं, चुड़ैल का साया, वशीकरण, भटकती आत्माओं, ब्लैक मैजिक के किस्सेकहानियां सुनने को मिलते हैं. ये किस्से कौरी कल्पनाएं होती हैं जिसे ये लोगों तक पहुंचा रहे हैं.

 

यूट्यूब पर देखें तो कुछ क्रिएटर्स ब्रह्मांड की चीख से ले कर, खून पीने वाले पेड़ों, ड्रेकुला, भूतों, नरभक्षियों, जंगली आत्माओं, पिशाचों, चुड़ैलों की उलजलूल कहानियों पर कंटेंट बना रहे हैं. इन्हें देखने वाले लाखों व्यूअर्स हैं. ये कहानियां ऐसे बताते हैं कि लगता है सही कह रहे हैं. कई लोग इन की कही बातों को सही मान बैठते हैं और उसी तरह चीजों को सोचने लगते हैं. 

 

इन की काबिलियत इसी में है कि डरावनी कहानी सुनाने में ये एक माहौल और भूतिया सेटिंग बना लेते हैं. इस में ये परफैक्ट होते हैं. यही वजह है इन के फौलोवर्स की संख्या बढ़ती ही जा रही है. मगर यहां जो भी कंटेंट दिखाया जा रहा है वह समाज में अंधविश्वास फैलाने का काम कर रहा है जोकि सही नहीं है. 

 

इन्हें देखने वाले अधिकतर टीनएजर्स हैं, जिन पर भूत प्रेत जैसी बातें छोटी उम्र से ही इंपैक्ट करने लगती हैं. क्या यह सही है?  भूतप्रेत जैसे पोंगा के किस्सेकहानियां क्या विज्ञान की दुनिया में युवाओं को पीछे धकेलने का काम नहीं करते?

 

एक समय था जब गांवों में भूत प्रेत के किस्से खूब फैले होते थे. लोग रात में अंधेरे में जाने से डरते थे. आज उसी गांव में स्ट्रीट लाइट लगी तो वहां से भूत और उस के किस्से भी गायब होते दिखाई दिए. असल वजह है अंधेरा जो डराता है. दिल्ली जैसा शहर दिन और रात दोनों समय जगा रहता है, यहां अंधेरा नहीं होता इसलिए भूत जैसी कौरी बकवास यहां नहीं फैलते.   

 

क्या इस से देश और दुनिया का विकास होगा

 

ऐसा हो क्यों है कि सरकार इस तरह के कंटेंट पर कोई कंट्रोल नहीं करती? क्या यह अंधविश्वास और पाखंड फैलाने वालों में शामिल नहीं होते? इन सोशल मीडिया क्रिएटर्स की क्या समाज के प्रति कोई जिम्मेवारी नहीं है? क्या इन का काम सिर्फ अपनी भूतिया दुकाने चला कर पैसा कमाना रह गया है?

 

वैसे तो डरावनी चीजें हमेशा से ही रोमांचित करती रही हैं और अपनी ओर आकर्षित भी करती रही हैं. कुछ टीनएजर्स को भूत की कहानियां सुनना पसंद होता था. वह अपनी दादी नानी से फैयरी टेल्स की कहानियां सुनते आए हैं लेकिन वे मीठी सी काल्पनिक कहानियां होती थीं जिस में डर से ज्यादा ख़ुशी का एहसास होता था और बड़े होतेहोते सब समझ आ जाता था. 

 

लेकिन अब यूट्यूब पर तमाम ऐसे क्रिएटर्स की भीड़ इकठा है जो युवाओं में भूतप्रेत के किस्से कहानियों का कचरा भर रहे हैं और साथ में दावे भी कर रहे हैं. वे औनलाइन हौरर कंटेंट की भीड़ भरी दुनिया में अपने चैनल को अलग दिखाने के लिए कुछ भी अंटशंट बक रहें हैं. इस का सीधासीधा असर युवाओं के वास्तविक जीवन पर भी पड़ रहा है. 

 

इन की ही इस तरह की मनगढ़ंत कहानियों का ही नतीजा है कि आम जीवन में भूत के द्वारा कभी चोटियां कट रही हैं. कभी चुड़ैल के आने की बात होती है, तो कभी भगवान अपनेआप दूध पीते नजर आने लगते हैं. इसे अलौकिक शक्ति, अंधविश्वास या धार्मिक फरेब जो भी कहें – मसलन यह है बेवकूफ बनाने की विधि. 

आइए जानते हैं ऐसे क्रिएटर्स के बारे में-

 

हौरर यूट्यूबर प्रिंस सिंह 

 

अपने हौरर यूट्यूब चैनल के साथ लोगों को डराने के लिए यूट्यूबर प्रिंस सिंह काफी फेमस है, अपनी अनोखे अंदाज में डरावनी कहानी सुनाने के लिए वह जाना जाता है. यहां वह कहानी को ऐसे सुनता है जैसे उस के खुद के साथ ये घटनाएं घटी हों. वह कई रोचक ऐतिहासिक तथ्यों, असाधारण घटनाओं और रहस्यमयी चीजों को कवर करता है. 

 

प्रिंस सिंह ने अपना यूट्यूब चैनल 2020 में बनाया और उस के 3 लाख 75 हजार फौलोवर्स हैं.  प्रिंस के दादा एक ज्योतिष और तांत्रिक रहे हैं. पुराने समय में गांव के आसपास के लोग उन के पास समस्या का समाधान, आत्मा का निवारण करवाने आते थे. तब से ही प्रिंस सिंह इन सभी को देखते हुए आ रहा है जिस का उस ने औनलाइन धंधा बना लिया है. 

 

प्रिंस सिंह पेशे से टीचर है और वह अपने क्लास में स्टूडैंट को भी हौरर स्टोरी सुनाता है. अब आप खुद ही सोचिए कि जब टीचर ऐसे होंगे तो वहां के बच्चे क्या ही सीखेंगे. जरा इस की कहानियों के नाम तो एक बार सुन लें. वह हैं शक्तिशाली चुड़ैल बनी जान की दुश्मनएक आत्मा ने लिया बदलाजिम कौर्बेट नैशनल पार्क की असली घटना, वैलेंटाइन डे स्पैशल डरावनी कहानी भी है. 

 

मतलब साफ है इन कहानियों का वास्तविकता से कोई लेनादेना ही नहीं है. यह मनगढ़ंत काल्पनिक कहानी तैयार करता है और युवा अपना सब काम वाम छोड़ कर इन्हें सुन कर सच मानने तुरंत पहुंच भी जाते हैं. तभी तो इस के फौलोवर्स की संख्या इतनी ज्यादा है. 

 

भूतिया यूट्यूबर संयम अंगी

 

सिर्फ यही नहीं बल्कि एक और यूट्यूबर है संयम अंगी. इस ने भी भूत प्रेतों पर स्पैशलाइजेशन किया हुआ है. यह साहब तो अपनी खुद के साथ घटी हुई सच्ची भूतों की कहानियां मसाला और स्पैशल इफैक्ट डाल कर बताता है कि एक बार को तो सुनने वाला इन्हें सच ही मान बैठेगा. लेकिन अगर बारबार इस की कहानियां सुनो तो किसी भी दिमाग वाले को लगेगा कि इस एक ही इंसान के साथ इतनी बार इस तरह की घटनाएं कैसे हो सकती हैं. लेकिन जो अपना दिमाग घर रख कर आए हों उन से क्या कहना. चलिए हम उस की एक ऐसी ही कहानी के बारे में बताते हैं. जिस में वह बता रहा है कि उस ने खेतों में एक डरावनी चुड़ैल को देखा और चुड़ैल ने इसे मारा भी लेकिन भाईसाहब में दम है फिर भी जिंदा बच कर आ गया. 

 

इस ने तो बच्चों को नहीं बख्शा इस की एक कहानी है [गिट्टू राक्षस ]जिस में एक छोटा बच्चा प्रेत बन जाता है क्योंकि उस के मातापिता ने उस का क्रियाकर्म अच्छे से नहीं किया था. यानी कि पंडितों को ढंग से दानदक्षिणा नहीं दिया गया. फिर क्या भूत की नाराजगी दूर करने के लिए सारे रिचुअल्स करवाए गए. किस्से के अनुसार अब उस बच्चे की फोटो लगा कर उसे पूजा जाता है. 

 

यह हनुमान से सिद्धि हासिल करने की एक और सच्ची घटना बताता है. जिस में हनुमान जी ने इडी का टेस्ट लेने के लिए कुछ लड़कियों के रूप में सुंदरियां तक भिजवा दी. इस की मानें तो आने वाले समय में अब भूत प्रेतों के भी मंदिर बनेंगें और उन्हें पूजा जाएगा. हद तो यह है कि ऐसे बेसिर पैर की बातों को टीनएजर खूब चटकारे ले कर सुन रहें हैं. 

 

यूट्यूबर अक्षय वशिष्ट

 

इस लिस्ट में एक नाम है अक्षय वशिष्ट का. इस की दुकान भी यूट्यूब पर मौजूद है, जिस में इस ने भूतिया कहानियों का ज़िक्र कर लोगों को डराने का काम किया है, जैसे कि ऋषिकेश की हौन्टेड रोड ट्रिप, उड़ीसा का शमशानी कालेज, मध्य प्रदेश की खूनी झील, गुडगांव के भूतिया घर की सच्ची कहानी, इस ने तो पुलिस वालों को भी नहीं छोड़ा उन पर भी एक स्टोरी बना दी. पुलिस वालों के सामने आई चुड़ैल. 

 

अपने एक ब्रौडकास्ट मित्र के साथ मिल कर यह कहानियों को ऐसे सुनाता है मानो ये घटना तो इस के साथ कल ही घटित हुई हो. इस के आलावा भी बहुत से नाम हैं जैसे गौरव कटारे, वी के रावत, अंकन बोस, उमेश रोताके आदि जो भूत प्रेतों की दुकानें यूट्यूब पर चला रहे हैं. 

 

इसी प्रकार इन यूट्यूबर की कई ऐसी कहानियां हैं जब किसी इंसान के शरीर में आत्मा का प्रवेश हो जाता है और वह अजीबोगरीब हरकतें करने लगता है, तो वास्तविक जीवन की घटनाओं की परेशान करने वाली कहानियां अपने इस चैनल के माध्यम से दिखाते हैं. पूरे भारत देश भर से फौरर स्टोरी लोग उन से शेयर करते हैं और वो अपने यूट्यूब चैनल पर उसे चलाते हैं. इस तरह ये कहानियां यूट्यूब चैनल के माध्यम से सभी की पहुंच में हो गए हैं. 

 

टीनएजर्स समझें इस बात को-  

 

निर्णय लेने की शक्ति में बाधा 

 

जब आप भूतों और अकाल्पनिक शक्तियों पर भरोसा करने लग जाते हैं, तो वास्तविक जगत से दूर होने लगते हैं और तब लगता है कि पढ़ाईलिखाई की भी क्या जरुरत है, बाबाओं के चमत्कार और जादू से मैं पास हो जाऊंगा. अपनी कोई सोच विचार नहीं रहते. 

 

निकम्मा बनाते हैं 

 

ये यूट्यूबर खुद तो उलटीपुलटी कहानियां सूना कर पैसा बना रहे हैं मगर आम युवाओं और तीनएजर्स का बड़ागर्क कर रहे हैं. ये कामधंधा और पढ़ने की उम्र में में चमत्कारों के भरोसे बैठ जाते हैं. 

 

समय की बर्बादी है 

 

जब घंटोंघंटों इस तरह की चीजों को देखने में निकल जाएंगे, तो अपने कैरियर पर फोकस करने के लिए वक्त कहां से मिलेगा. वक्त होगा तब भी आप इन काल्पनिक कहानियों में खोए रहेंगे. 

 

दुनिया आगे जा रही है आप पिछड़ जाएंगे 

 

आप किसी भी पढ़ेलेखे अच्छे व्यक्ति से बात करने लायक भी नहीं रह जाएंगे क्योंकि आप के पास बात करने लायक ज्ञान होगा ही नहीं. कुछ नौलेज की चीज देखेंगे तो कुछ सीखेंगे न. जो देखेंगे वैसे ही बनेगें. 

 

क्रिमिनल माइंड बनते देर नहीं लगेगी 

 

आज जो क्रिमिनल्स कोलकाता और निर्भया जैसे कांड में इन्वोल्व रहते हैं. उन का दिमाग ऐसा ही कंटेंट देख कर शैतानी हो जाता है और वे कुछ कर बैठते हैं. इस से अच्छा है कि पत्र पत्रिकाएं पढ़ी जाएं. जहां से ज्ञान भी मिले और तर्क भी मजबूत हो. इन जैसे इन्फ्लुएंसर्स को देखने से समय बरबाद तो होगा ही साथ में दिमाग में कचरा ही जाएगा.

Indian National Congress : जनता को कैसे मिलेगा हिस्सेदारी न्याय ?

Indian National Congress : कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में जिन गांरटी की बात की है वह जनता के कितने गले उतरेगी यह सोचने वाली बात है ?

2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस भारत जोड़ो न्याय यात्रा के 5 स्तंभों किसान न्याय, युवा न्याय, नारी न्याय, श्रमिक न्याय और हिस्सेदारी न्याय को चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया है. हर वर्ग में 5 गारंटी हैं. इस तरह से कांग्रेस पार्टी ने कुल 25 गारंटियां दी हैं. 1926 से ही देश के राजनीतिक इतिहास में कांग्रेस घोषणापत्र को ‘विश्वास और प्रतिबद्धता का दस्तावेज’ माना जाता है. कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन का कहना है कि देश बदलाव चाहता है. मौजूदा मोदी सरकार की गारंटियां का वही हश्र होने जा रहा है जो 2004 में भाजपा की ‘इंडिया शाइनिंग’ नारे का हुआ था. इस के लिए हमारे हर गांव और शहर के कार्यकर्ता को उठ खड़ा होना होगा. घरघर अपने घोषणापत्र को पहुंचाना होगा.

हिस्सेदारी न्याय में गिनती करो यानी जातीय गणना का मुददा पहला है. दूसरा मुद्दा आरक्षण का हक है. जिस के तहत कहा गया है कि आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा रेखा हटा दी जाएगी. जनसंख्या हिस्सेदारी के अनुसार एससी और एसटी को बजट में हिस्सा दिया जाएगा. वन अधिकार के तहत जल, जंगल और जमीन का कानूनी हक दिया जाएगा. अपनी धरती अपना राज्य के तहत जहां एसटी सब से ज्यादा है वहां उन को हक दिया जाएगा. वह क्षेत्र एसटी घोषित होंगे.

साधारण तरह से देखें तो यह दिखता है कि हिस्सेदारी की इस गारंटी में ओबीसी का नाम नहीं है. जिस ओबीसी को ले कर राहुल गांधी भाजपा और मोदी से सवाल कर रहे थे वह पूरी तरह से गायब है. देश पर सब से अधिक समय तक कांग्रेस की हुकूमत रही है. उस ने कभी धर्म और जाति के मसले को हल करने की कोशिश नहीं की. ऐसे में जनता कांग्रेस की इन गारंटी पर कितना भरोसा करेगी यह अहम सवाल है.

जब जाति और उस के अधिकार की बात आती है तो समझ आता है कि अंगरेजों के समय जो कांग्रेस थी उस की सोच सवर्णवादी थी. पंडित जवाहर लाल नेहरू के नाम में पंडित नहीं होता तो कांग्रेस में वह होते ही नहीं. लोकमान्य तिलक से ले कर सरदार बल्लभ भाई पटेल तक हिंदूवादी मानसिकता के थे. मुगल काल देश में जाति व्यवस्था नहीं थी. अंगरेजों ने जनगणना के माध्यम से जाति व्यवस्था को मजबूत करने का काम किया. उन का सोचना था कि वह भारत में राज करने के लिए आए है, समाज सुधार करने नहीं आए हैं. आर्य समाज जैसे संगठनों ने जाति सुधार की बात कही पर उस से धर्म जाति व्यवस्था खत्म नहीं हुई उल्टे देश में धर्म का प्रभाव बढ़ा जिस के फलस्वरूप देश आजादी के समय दो अलगअलग देशों में बंट गया.

अंगरेजों ने जाति व्यवस्था को स्वीकार किया

हमारे समाज में आज जो जाति व्यवस्था देखने को मिल रही है वह मुगल काल के पतन और भारत में अंगरेजी हुकूमत की शुरूआत में आगे बढ़ी. 1860 और 1920 के बीच अंगरेजों ने भारतीय जाति व्यवस्था को अपने सरकार चलाने का हिस्सा बना लिया था. प्रशासनिक नौकरियां और वरिष्ठ नियुक्तियां केवल ईसाइयों और कुछ जातियों के लोगों को दी गईं.

1920 के दशक के दौरान सामाजिक अशांति के कारण इस नीति में बदलाव आया. 1948 में जाति के आधार पर नकारात्मक भेदभाव को कानून द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया और 1950 में इसे भारतीय संविधान में शामिल किया गया. भारत में 3,000 जातियां और 25,000 उप-जातियां हैं.

जाति शब्द पुर्तगाली शब्द कास्टा से लिया गया है. जिस का अर्थ है नस्ल, वंश और मूल रूप से शुद्ध हो. यह भारतीय शब्द नहीं है. अब यह अंगरेजी और भारतीय भाषाओं में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है. ऋग्वेद के समय (1500-1200 ईसा पूर्व) में दो वर्ण आर्य वर्ण और दास वर्ण थे. यह भेद मूलत: जनजातीय विभाजनों से पैदा हुआ. वैदिक जनजातियां स्वयं को आर्य मानती थीं और प्रतिद्वंद्वी जनजातियों को दास, दस्यु और पणि कहा जाता था. दास आर्य जनजातियों के लगातार सहयोगी थे. इन को आर्य समाज में शामिल कर लिया गया, जिस से वर्ग भेद को जन्म मिला.

वर्ण से बनी जातियां

अथर्ववेद काल के अंत में नए वर्ग भेद सामने आए. पहले दासों का नाम बदल कर शूद्र कर दिया गया. आर्यों का नाम बदल कर वैश्य कर दिया गया. ब्राह्मणों और क्षत्रियों के नए कुलीन वर्गों को नए वर्ण के रूप में देखा जाने लगा. शूद्र न केवल तत्कालीन दास थे बल्कि इस में वे आदिवासी जनजातियां भी शामिल थीं जो गंगा की बस्तियों में विस्तार के साथ आर्य समाज में शामिल हो गईं.

उत्तर वैदिक काल में प्रारंभिक उपनिषद में, शूद्र को पूसन या पोषणकर्ता कहा गया. इस का अर्थ शूद्र मिट्टी को जोतने वाले थे. अधिकांश कारीगरों को भी शूद्रों के वर्ग में खड़ा कर दिया गया. ब्राह्मणों और क्षत्रियों को अनुष्ठानों में एक विशेष स्थान दिया गया है. जो उन्हें वैश्यों और शूद्रों दोनों से अलग करता है. ब्राह्मणवादी ग्रंथ 4 तरह की वर्ण व्यवस्था की बात करते हैं. बौद्ध ग्रंथों में ब्राह्मण और क्षत्रिय को वर्ण के बजाय जाति के रूप में वर्णित किया गया है. शूद्रों का उल्लेख चांडाल, बांस बुनकर, शिकारी, रथ निर्माता और सफाईकर्मी जैसे व्यावसायिक वर्गों के रूप में किया गया था.

महाभारत में वर्ण व्यवस्था का जिक्र मिलता है. भृगु के माध्यम से यह बताया गया कि ब्राह्मणों का वर्ण सफेद, क्षत्रियों का लाल, वैश्यों का पीला और शूद्रों का काला था. इन वर्गो के कामों के आधार पर भी विभाजन किया गया. सुख और साहस के इच्छुक को क्षत्रिय वर्ण, जो लोग पशुपालन में रुचि रखते थे और हल चला कर जीवन यापन करते थे, उन्हें वैश्य वर्ण में रखा गया. जो लोग हिंसा, लोभ और अपवित्रता के शौकीन थे उन्हें शूद्र वर्ण कहा गया. ब्राह्मण वर्ग को सत्य, तपस्या और शुद्ध आचरण के प्रति समर्पित मनुष्य के रूप में दर्शाया गया.

मुसलिम इतिहासकारों हाशिमी और कुरेशी ने 1927 और 1962 में प्रकाशित पुस्तक में यह प्रमाणित किया कि भारत में जाति व्यवस्था इसलाम के आगमन से पहले स्थापित हो गई थी. यह और उत्तर पश्चिम भारतीय उपमहाद्वीप में खानाबदोश जंगली जीवनशैली इस का प्रमुख कारण था. जब अरब मुसलिम सेनाओं ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया तो बड़े पैमाने पर निचली जातियों ने धर्मांतरण किया. इसलाम में जाति व्यवस्था नहीं थी. इस कारण से मुगल काल में जाति व्यवस्था को बढ़ावा नहीं मिला. इतिहास के प्रोफैसर रिचर्ड ईटन का दावा है कि भारत में इसलामिक युग से पहले हिंदू जाति व्यवस्था थी.

मुगलों के दौर में नहीं थी जाति व्यवस्था

प्रोफैसर पीटर जैक्सन लिखते हैं कि मध्ययुगीन दिल्ली सल्तनत काल (1200 से 1500) के दौरान हिंदू राज्यों में जाति व्यवस्था के लिए हिंदू धर्म जिम्मेदार है. जैक्सन का कहना है कि जाति के सैद्धांतिक मौडल के विपरीत जहां केवल क्षत्रिय ही योद्धा और सैनिक हो सकते हैं, ऐतिहासिक साक्ष्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि मध्ययुगीन युग के दौरान हिंदू योद्धाओं और सैनिकों में वैश्य और शूद्र जैसी अन्य जातियां भी शामिल थीं. जैक्सन लिखते हैं इस बात का कोई सबूत नहीं है कि 12वीं शताब्दी के अंत में निचली जाति के हिंदुओं द्वारा व्यापक रूप से इसलाम में धर्म परिवर्तन किया गया था.

ब्रिटिश शासन के दौरान 1881 की जनगणना में लोगों की गिनती जाति के रूप में की गई. 1891 की जनगणना में 60 उप समूह शामिल थे, जिन में से प्रत्येक को 6 व्यावसायिक और नस्ल की श्रेणियों में विभाजित किया गया था. बाद की जनगणनाओं में यह संख्या बढ़ गई. 1860 और 1920 के बीच अंगरेजों ने अपनी शासन प्रणाली में जाति व्यवस्था को शामिल कर लिया, प्रशासनिक नौकरियां और वरिष्ठ नियुक्तियां केवल उच्च जातियों को दी गईं. जनजातियों में अपराधी किस्म के लोगों को रखा गया.

ब्रिटिश सरकार ने 1871 का आपराधिक जनजाति अधिनियम लागू किया. इस कानून ने घोषित किया कि कुछ जातियों के सभी लोग आपराधिक प्रवृत्ति के साथ पैदा हुए थे. इतिहास के प्रोफैसर रामनारायण रावत कहते हैं कि इस अधिनियम के तहत जन्म से अपराधी जातियों में अहीर, गुर्जर और जाट शामिल थे. बाद में इस में अधिकांश शूद्र और अछूत, जैसे चमार और साथ ही संन्यासी और पहाड़ी जनजातियां शामिल हैं.

1900 से 1930 के दशक के दौरान पश्चिम और दक्षिण भारत में आपराधिक जातियों की संख्या बढ़ी. सैकड़ों हिंदू समुदायों को आपराधिक जनजाति अधिनियम के तहत लाया गया. 1931 में अकेले मद्रास प्रेसीडैंसी में 237 आपराधिक जातियों और जनजातियों को इस अधिनियम के तहत शामिल किया. इस तरह से देश जाति में बंटा और धर्म उस के ऊपर हावी हो गया. हिंदू धर्म को बढ़ावा देने वालों में दक्षिणापंथी लोग तो थे ही कांग्रेस में भी बड़े पैमाने पर इस विचार धारा के लोग हावी रहे. जिस से मतभेद के कारण जवाहर लाल नेहरू समाज में वह सुधार नहीं कर पाए जिस के बारे में वह सोचते थे.

Best Hindi story : सुधीर किसके बारे में सोचकर परेशान रहता था

Best Hindi story : सुधीर सोच रहा था मां क्या सोचेंगी जब बैंक के संयुक्त खाते में उन्हें 50 हजार रुपयों की जगह केवल 400 रुपए मिलेंगे. शायद उन्हें इस बात का आभास हो जाएगा कि फर्ज की जिस किताब पर सुधीर नोटों का कवर चढ़ाता आ रहा था, उस कवर को शायद उस ने हमेशा के लिए फाड़ कर फेंक दिया है. सब लोग खर्राटे ले रहे थे लेकिन सुधीर की आंखों में नींद नहीं थी. न जाने अपने जीवन की कितनी रातें उस ने बिना सोए ही बिताई थीं अपने घर वालों के बारे में सोचतेसोचते.

‘‘हमारे मकान मालिक का लड़का 7 साल पहले लंदन पढ़ने गया था. उस ने घर वालों को उन के हाल पर छोड़ दिया है. बेटे का फर्ज कभी निभाया ही नहीं उस ने,’’ अपने बारे में सुरेंद्रजी के मुंह से यह सुन कर हैरान रह गया सुधीर.

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दिल्ली के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर पिताजी के अलावा सुधीर के स्वागत के लिए घर के सभी लोग आए थे. लंदन से उड़ान भर कर विमान रात को 3 बजे दिल्ली पहुंचा था. पिताजी के लिए इतनी रात में हवाई अड्डे पहुंचना काफी कठिन था. 5 साल पहले उन को पक्षाघात हो गया था. तभी से वे घर की चारदीवारी में कैद हो कर रह गए थे. पिताजी एक प्राइवेट कंपनी में ऊंचे पद पर काम करते थे. कंपनी वालों ने उन को काफी अच्छी रकम दी थी उन की लंबी सेवा के उपलक्ष्य में. सब्जीमंडी में पुश्तैनी घर की निचली मंजिल पर पिताजी का कब्जा था.

परिवार में 4 बच्चों में सिर्फ सुधीर ही काम पर लगा हुआ था. 7 साल पहले वह बनारस से इंजीनियरिंग कर के लंदन चला गया था. वहीं नौकरी मिल गई. इरादा था कि कुछ अनुभव हासिल कर के भारत लौट आएगा, परंतु ऐसा हो न पाया. पिताजी को जब पक्षाघात हुआ था तब वह भारत आया था. उस का बड़ा मन था कि लंदन की नौकरी छोड़ कर भारत में ही परिवार के साथ रहे. पर घर के सब लोगों की सलाह थी कि अगर एक बार लंदन से भारत आ गया तो फिर दोबारा चाह कर भी लंदन नहीं जा सकेगा. भारत में तो उसे मुश्किल से 5-6 हजार रुपए की नौकरी मिलेगी. फिर कोई भरोसा नहीं कि उसे नौकरी दिल्ली में ही मिल पाएगी.

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लंदन में नौकरी कर के सुधीर घर वालों की आर्थिक मदद तो कर ही सकता था. वह हर माह लंदन से पैसे भेज दिया करता था. साल में वह एक बार 4 हफ्तों के लिए भारत अवश्य आता था. लंदन में सुधीर एक कमरे के फ्लैट में रहता था. उस के साथ भारत से वहां गए कई युवक तो अब शादी कर के बालबच्चे वाले हो गए थे. उन्होंने अच्छेअच्छे बड़े घर खरीद लिए थे परंतु सुधीर उसी एक कमरे में दिन गुजार रहा था. उस को तो बस पैसे कमाने और बचाने की धुन थी. एक यही ध्येय था कि परिवार की गाड़ी चलती रहे.

शुरूशुरू में तो मां सुधीर की शादी का जिक्र भी करती थीं परंतु अब उन्हें भी इस बात का आभास हो गया था कि वह घर वालों की आर्थिक मदद इसीलिए कर पाता है क्योंकि उस की शादी नहीं हुई है. शादी हो जाने पर वह इतनी मदद नहीं कर सकता. आजकल के जमाने की लड़की ससुराल वालों की इतनी आर्थिक मदद कहां करने देगी. बेचारे पिताजी तो पक्षाघात के पश्चात शायद इतना अधिक सोचनेसमझने के योग्य नहीं रह गए थे कि उस की शादी की सोचते. पिछली जनवरी को वह 32 साल का हो गया था.

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सुधीर की अटैची और बैग तो संजय ने उठा लिए. मां के पीछे अलका खड़ी थी. वह अब 20 साल की हो गई थी. मां को उस की शादी की चिंता सता रही थी. संजय भी इस साल इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश लेने के लिए परीक्षा की तैयारी कर रहा था. सब से छोटी नताशा अभी 14 साल की ही थी. परिवार में वह सब की लाड़ली थी. टैक्सी से जब वे घर पहुंचे तो पिताजी जागे हुए थे. पिछले साल से वे कुछ और दुबले हो गए थे. सुधीर की आंखें भर आईं. सुबह के 5 बज गए थे. मां सब को कुछ देर आराम करने के लिए कह रही थीं. सुधीर की चारपाई संजय के कमरे में ही लगा दी गई थी. मां ने जिद कर के पिताजी को सोने के लिए भेज दिया.

वैसे सुधीर को मालूम था कि हमेशा की तरह अब कोई नहीं सोएगा. मां के कहने पर अलका चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई. सुधीर ने अपनी अटैची खोल कर सारी चीजें निकाल लीं. उसे मालूम था कि नताशा चैन नहीं लेगी, जब तक वह सुधीर द्वारा लाई हुई चीजें देख नहीं लेगी. हमेशा की तरह सुधीर अपने लिए तो पहनने के कपडे़ भी नहीं लाया क्योंकि उस के कपड़ों का एक संदूक यहां था ही. वह मां और अलका के लिए कई साडि़यां लाया था. नताशा के लिए 2 पोशाकें थीं. पिताजी के लिए गरम कोट व कमीजें और संजय के लिए सूट, पतलूनें व कमीजें थीं. सब के लिए वह एकएक स्वेटर भी लाया था. अलका अपनी साडि़यां देख कर बहुत खुश हुई और नताशा ने सुधीर को धन्यवाद की मीठी पप्पी दी.

सुबह के 7 बज गए थे. नताशा स्कूल के लिए तैयार हो रही थी. अलका और संजय कालेज जाने के लिए 9 बजे घर से निकलते थे. पिताजी भी उठ गए थे. उन्होंने चाय के लिए आवाज दी. सुधीर उन के कमरे में चला गया और उन्हें लंदन से लाया हुआ स्वेटर पहना दिया. ‘‘तुम जब आ जाते हो तो मुझे बहुत संतोष होता है कि मेरे चारों बच्चे मेरे साथ हैं,’’ पिताजी भावुक हो गए. तभी मां चाय का प्याला लिए आईं, ‘‘आप क्यों मन छोटा करते हैं. सुधीर तो हम सब से दूर रह कर अपना फर्ज पूरा कर रहा है. हम लोगों ने इस की पढ़ाईलिखाई पर कितना खर्च किया, अब इस का फर्ज बनता है कि हमारी मदद करे.’’

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मां की बात का पिताजी ने कोई उत्तर न दिया. सुधीर सोच रहा था, ‘बेकार में ही मां मुझे फर्ज की याद दिलाए बिना नहीं रहतीं. मैं कौन सा अपने फर्ज से पीछे हटने वालों में से हूं.’ पिताजी खामोशी से चाय पीने लगे. पक्षाघात के पश्चात वे काफी बदल गए थे. पहले घर में उन का कितना रोब और दबदबा था. अब तो घर में मां का ही हुक्म चलता था. मां दोपहर के खाने की तैयारी कर रही थीं.

‘‘तुम्हारा आज का क्या प्रोग्राम है?’’ मां ने सुधीर से पूछा.

‘‘सोचता हूं, 1 बजे कनाट प्लेस चला जाऊंगा. कुछ बैंक का काम करना है. अपने साथ मनीऔर्डर लाया हूं. बैंक में जमा कर दूंगा और कुछ यहां के खर्च के लिए भी रुपए निकाल लूंगा. घर आतेआते 6-7 तो बज ही जाएंगे.’’

‘‘मैं जल्दी से खाना बना देती हूं,’’ मां बोलीं. सुधीर नहाधो कर तैयार हो गया. उस का बैंक मनीऔर्डर अटैची में था. साथ में ही रखी थीं दवाओं की कुछ शीशियां जो उस के मित्र रवि ने अपने बडे़ भाई के लिए भेजी थीं. सुधीर ने सोचा कि अगर वक्त मिला तो बैंक का काम खत्म कर के वह रवि के भाई को हौजखास में दवाएं दे आएगा. क्या पता उन को दवाओं की बहुत सख्त जरूरत हो. दोपहर का खाना खा कर सुधीर आटो से कनाट प्लेस आ गया. उस का बैंक खाता जनपथ के एक बैंक में था. उस के 2 तरह के खाते थे. एक खाते में वह ब्रिटिश पाउंड रखता था और दूसरे खाते में भारतीय मुद्रा. उस के दोनों ही खाते मां के साथ संयुक्त थे क्योंकि बेचारे पिताजी तो कनाट प्लेस आनेजाने के लायक नहीं थे.

सुधीर अपने साथ 5 हजार पाउंड का मनीऔर्डर लाया था. उसे उस ने जमा कर दिया और अपने खाते से 10 हजार रुपए निकाल लिए. बैंक का काम खत्म करतेकरते 4 बज गए. सुधीर के पास वक्त ही वक्त था. सोचा, चलो, शाम की चाय रवि के भैया के यहां ही पी जाए. आटो वाले को रवि के भाई का फ्लैट ढूंढ़ने में थोड़ी सी दिक्कत जरूर हुई. घर में रवि के भाईसाहब थे. वे शायद आराम कर रहे थे. उन को 3 महीने पहले दिल का दौरा पड़ा था. सुधीर को देख कर बड़े खुश हुए. सुधीर ने दवाएं उन को दे दीं. उस ने सोचा, आशा तो चाय पीने की कर के आया था, परंतु ये चाय कैसे बनाएंगे. वह चलने लगा, परंतु भाईसाहब ने रोक लिया, ‘‘आप को बिना चाय पिए नहीं जाने दूंगा. 15-20 मिनट में रजनी आ जाएगी. उस से भी मिल लीजिएगा. अपने देवर की बहुत ही लाड़ली भाभी है.’’

रवि के भाईसाहब आगे बोले, ‘‘रवि ने अपने पिछले पत्र में आप का जिक्र किया था. यह तो अच्छा हुआ कि वह आप की ही कंपनी में काम करता है. उस के ऊपर जरा नजर रखिएगा.’’

‘‘रवि बहुत ही मेहनती और नेक लड़का है. लंदन में बेहद तरक्की करेगा,’’ सुधीर बोला.

‘‘हम लोगों को तो बस यही चिंता रहती है कि हमारा रवि कहीं वहां रह कर बदल न जाए. ऐसे में हम तो बस लुट ही जाएंगे,’’ वे बोले, ‘‘हमारे मकानमालिक का लड़का 7 साल पहले लंदन पढ़ने गया था. पढ़ाई खत्म कर के नौकरी करने लगा. यहां उस के घर वालों के बुरे दिन आ गए. पर मजाल है कि उस ने कोई मदद की उन की. घर वालों को उन के हाल पर ही छोड़ दिया है. बेटे का फर्ज कभी निभाया ही नहीं उस ने.’’

‘‘बेचारे सुरेंद्रजी लाचार हो गए हैं, उन्हें पक्षाघात हुआ था. हम ने तो उन्हें कभी देखा भी नहीं है. घर का किराया लेने भी कभी उन की पत्नी या कभी उन के बच्चे ही आते हैं.’’

तभी रवि की भाभी आ गईं. सुधीर से मिलने के पश्चात वे डाक को देखने लगीं.

‘‘अरे, यह नोटिस तो सुरेंद्रजी के नाम आया है. कल आप याद दिलाना, औफिस जाते हुए उन के पते पर डाल दूंगी. पता नहीं कोई जरूरी नोटिस हो, उन के पास जल्दी ही पहुंचना चाहिए,’’ रवि की भाभी ने हौले से कहा.

‘‘तुम डाक को बाद में देख लेना, पहले इन्हें कुछ चायवाय तो पिलाओ,’’ रवि के भाई की बात का उत्तर दिए बिना ही उन की पत्नी रसोई में चाय बनाने चली गईं.

कुछ ही देर बाद वे एक ट्रे में चाय और मिठाई, नमकीन ले आईं. सुधीर का मन घर जाने को हो रहा था. वैसे भी सवेरे का घर से निकला था. रवि की भाभी उस के बारे में इधरउधर की बातें पूछ रही थीं. सुधीर अपनी ओर से बातचीत का सिलसिला जारी करने के मूड में नहीं था. वह उठते हुए बोला, ‘‘भाभीजी, आप सुरेंद्रजी का पता लिफाफे पर लिख दीजिए. मुझे अपना एक पत्र डालना है, वह नोटिस भी पोस्ट कर दूंगा.’’

रवि की भाभी ने लिफाफे पर सुरेंद्रजी का पता लिख दिया. सुधीर ने एक नजर लिफाफे पर डाली और बोला, ‘‘आप फिक्र मत कीजिए. यह पत्र उन को कल नहीं तो परसों तक अवश्य मिल जाएगा.’’ उस रात सुधीर ने खाना नहीं खाया. रवि के भैया के यहां चाय के साथ काफी कुछ खा लिया था. मां और भाईबहनों ने काफी जिद की परंतु सुधीर खाने के लिए तैयार न हुआ. उस रात सुधीर को नींद न आई. सारी रात करवटें ही बदलता रहा और सोचता रहा. घर के सब लोग खर्राटे ले कर सो रहे थे पर उस की आंखों में नींद कहां. न जाने अपने जीवन की कितनी रातें उस ने बिना सोए ही बिताई थीं अपने और अपने घर वालों के बारे में सोचतेसोचते. सवेरा होने पर मां और पिताजी ने भी महसूस किया कि सुधीर रात को सोया नहीं है. फिर भी उन्होंने उस से कोई कारण न पूछा.

सुधीर नहाधो कर जल्दी ही तैयार हो गया. उस को कनाट प्लेस जाने की जल्दी थी. उसे एअरलाइंस के औफिस भी जाना था. उस की वापसी की उड़ान 4 मार्च की थी, परंतु वह लंदन जल्दी लौट जाना चाहता था. उस को 22 फरवरी की उड़ान मिल गई. सुधीर के मन को बहुत राहत मिली. सारा दिन इधरउधर घूमता रहा, खाना रेस्तरां में ही खाया. शाम को सुधीर ने पिताजी को बताया कि उस की वापसी 22 फरवरी की है.

‘‘अरे, अब की बार इतने कम दिन क्यों? हमेशा की तरह 4 हफ्ते क्यों नहीं?’’ पिताजी हैरानी से बोले.

‘‘आजकल कंपनी में काफी छंटनी हो रही है. कहीं इन छुट्टियों के चक्कर में कंपनी से मेरी ही छुट्टी न हो जाए.’’ मातापिता सुधीर की इस दलील के बाद कुछ न बोले.

मां ने इस बार महसूस किया कि सुधीर कुछ बदलाबदला सा है. कई बार पैसे की तंगी का जिक्र किया, परंतु सुधीर ने कोई खास दिलचस्पी ही न दिखाई. पहले तो इस तरह की बात सुनने के पश्चात वह मां को अपने साथ लाए रुपयों में से ढेर सारे रुपए दे देता था या बैंक जा कर पैसे निकाल कर उन के हाथ में रख देता था. एकएक कर के दिन बीत गए और सुधीर के जाने का दिन भी आ पहुंचा. पिताजी के अलावा घर के सभी लोग हवाई अड्डे पर आए थे. विमान की ओर जाते समय सुधीर सोच रहा था, पता नहीं घर के लोग हवाई अड्डे पर ही होंगे या घर चले गए होंगे. मां हमेशा ही पैसों की कमी का रोना रोती रहती हैं, फिर डीडीए का फ्लैट खरीदने के लिए पैसे कहां से आए? संजय के नाम पर लिए गए इस फ्लैट में काफी सारा तो उस का ही पैसा लगा हुआ था. फिर उस से मां और पिताजी ने फ्लैट की बात क्यों छिपाई? अगर वह उस दिन रवि के भाईसाहब से नहीं मिलता तो उस को फ्लैट के बारे में कुछ पता भी न चलता. उस नोटिस ने उस के विश्वास की नींव ही खोखली कर दी थी.

सुधीर सोच रहा था कि मां क्या सोचेंगी, जब वह बैंक में जा कर उस के और अपने संयुक्त खाते में 50 हजार रुपयों की जगह केवल 400 रुपए पाएंगी. शायद उन को इस बात का आभास हो जाएगा कि फर्ज की जिस किताब पर सुधीर नोटों का कवर चढ़ाता आ रहा था, उस कवर को उस ने शायद हमेशा के लिए फाड़ कर फेंक दिया है. सुधीर को लंदन के हवाई अड्डे पर सीमा मिलने वाली थी. पिछले 3 सालों से वह उस के साथ शादी करने की बात को टालता आ रहा था. उस ने पहले ही सीमा को शादी के लिए दिल्ली से फोन कर के राजी कर लिया था.

Bollywood : बोटौक्स व सर्जरी कराने में हर्ज कैसा

Bollywood : इस में कोई दोराय नहीं कि दर्शक, फिल्मों में ऐक्टरऐक्ट्रैस को हौट, सुंदर व आकर्षक देखना चाहते हैं. ऐसा वे प्रोफैशनल कारणों से ज्यादा करते हैं. ऐसा इसलिए यदि किसी मूवी में ऐक्ट्रैस ज्यादा सुंदर नहीं दिखती तो दर्शक ही उन्हें ट्रोल करते हैं या पसंद नहीं करते. हमारी सोसाइटी ही है जो सुन्दरता के पैरामीटर्स सेट करता है. तो ऐसे में एक्ट्रैसेज का प्लास्टिक सर्जरी या बोटोक्स करना गलत कैसे हुआ? 

हर किसी को सुंदर दिखने का हक है, वह अपनी बौडी और लुक्स के बारे में डिसीजन ले सकता है. अगर कोई सर्जरी या बोटोक्स से खुश है और इसे जरुरी समझता है तो सही जगह से बेझिझक करे. इसे हव्वा बनाने की जगह नोर्मलाइज और एक्सेप्ट करने की जरूरत है. आज जैसे हेयर ट्रांसप्लांट आम लोगों के दायरे में आ चुका है वैसे ही इस तरह की सर्जरियां भी आने वाले समय में आम होने लगेंगी.    

  • जाह्नवी कपूर

जाह्नवी कपूर बौलीवुड की खूबसूरत एक्ट्रैस हैं. अपनी मां की तरह ही जाह्नवी ने भी कई प्लास्टिक सर्जरी कराई हैं. इन में नाक, होंठ और जौ लाइन की सर्जरी शामिल हैं. वह अपनी फिजिक और बोल्डनैस के लिए जानी जाती हैं. 

  • अदिति राव हैदरी

इन की खूबसूरती के चर्चे सोशल मीडिया पर होते ही रहते हैं. उन्होंने अपनी नाक पतली कराने के लिए सर्जरी कराई थी.

  • नीसा देवगन

सोशल मीडिया पर ट्रोलर्स ने काजोल की बेटी पर आरोप लगाए कि उन्होंने ब्यूटी ट्रीटमेंट्स व स्किन लाइटमेंट लेने के साथ ही प्लास्टिक सर्जरी का भी सहारा लिया है. 

  • खुशी कपूर

खुशी कपूर ने कास्मेटिक सर्जरी करवाने की बात स्वीकार कर चुकी हैं. खुशी ने खुलासा किया कि उन्होंने अपनी फिल्मी शुरुआत से पहले नाक की सर्जरी और होंठों में फिलर करवाया था. 

  • दिशा पाटनी

दिशा की पुरानी फोटोज को देख कर अकसर यही आशंका जताई जाती है कि एक्ट्रैस ने नाक और होंठ की सर्जरी कराई है. वह बौलीवुड कि हौटेस्ट एक्ट्रैस में एक हैं. 

  • नोरा फतेही

 

अभिनेत्री, डांसर नोरा ने कई सर्जरी करवाई हैं. सोशल मीडिया पर लोगों का दावा है कि उन्होंने हिप्स और ब्रैस्ट की सर्जरी कराई है. हालांकि एक्ट्रेस ने इन दावों का खंडन करती हैं.  

  • शनाया कपूर

शनाया कपूर ने अभी बौलीवुड में डेब्यू नहीं किया है. मगर अभी से वह काफी पौपुलर हैं. उन की पुरानी तस्वीरों में होंठ और नाक की शैप देख कर पता चलता है कि उन्होंने प्लास्टिक सर्जरी करवाई है.

  • राजकुमार राव

इस लिस्ट में राजकुमार राव का नाम भी शामिल है. उन्होंने खुद इस बात का खुलासा एक इंटरव्यू में किया कि उन्होंने आइब्रो शेप और ठोड़ी फिलर ट्रीटमेंट कराया है. 

लेखिका : कुमकुम गुप्ता

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