लेखक-- राघवेंद्र सैनी
मैं नहीं जानता कि यह मन की प्रवंचना थी. पर रज्जो इसे प्रवंचना ही कहती है. प्रवंचना का दूसरा नाम छिपाव है.'आप ने मुझे ब्याह से पहले अपने बारे में क्यों कुछ नहीं बताया? मुझे यह बताया गया था कि आप दिल्ली में स्टोर में हैं. मैं ने सोचा था, चलो, हम सारी उम्र दिल्ली में रहेंगे. मुझे नहीं पता था कि आप फौजी हैं और आप की बदली होती रहती है.'
‘‘मैं तुम्हें बताना चाहता था. पर मन के भीतर डर था कि फौजी जान कर तुम मना न कर दो. यह डर हर फौजी के मन में है. अस्थिर जीवन की वजह से अच्छी लड़कियां उन्हें पसंद नहीं करती हैं. तुम सुंदर और अच्छी लड़की हो. समझदार हो. तुम मेरी बात जल्दी समझ जाओगी. जल्दी समझ सकती हो.
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"मैं मानता हूं कि मैं फौज में हूं, लेकिन लड़ाकू फौज में नहीं हूं. मुझे हैंड टू हैंड लड़ना नहीं पड़ता है. मैं स्टोर में रहूंगा. लड़ाई होगी तो भी स्टोर में रह कर काम करूंगा. लड़ने वाले जवानों को सामान देता रहूंगा.’’‘बस डर यही है कि फौजी बेमौत मारे जाते हैं.’
‘‘यह तुम्हारा वहम है. जिस की आई होती है, उसी की मौत होती है. क्या सिविल में लोग नहीं मरते हैं? दूसरी बात यह है कि मैं तम्हें यहां घर में रहने नहीं दूंगा. जब तक मैं छुट्ठी पर हूं, हम यहां रहेंगे. मैं ने क्वार्टर के लिए लिखा है. उम्मीद है कि छुट्टी खत्म होने से पहले ही क्वार्टर मिल जाएगा.’’‘उस के लिए पहले से ही टिकट बुक करवानी होेगी. पैसे हैं आप के पास, नहीं तो मैं बैंक से निकलवा लेती हूं.’