लेखका-रमेश चंद्र छबीला

मीनाक्षी का दिल तब अधिक सहम उठा जब उस का एकलौता नन्हा बेटा रमन स्कूल से घर न लौटा. वह घबरा गई और गहरी आशंका से घिर गई कि कहीं रमन को औटो ड्राइवर ने कुछ कर तो नहीं दिया. सोफे पर बैठी मीनाक्षी ने दीवारघड़ी की ओर देखा. 3 बजने वाले थे. उस ने मेज पर रखा समाचारपत्र उठाया और समाचारों पर सरसरी दृष्टि डालने लगी. चोरी, चेन ?पटने, लूटमार, हत्या, अपहरण व बलात्कार के समाचार थे.

2 समाचारों पर उस की दृष्टि रुक गई, ‘12 वर्षीया बालिका से स्कूलवैन ड्राइवर द्वारा बलात्कार, दूसरा समाचार था, स्कूल के औटो ड्राइवर द्वारा 8 वर्षीय बालक का अपहरण, फिरौती न देने पर हत्या.’ पूरा समाचार पढ़ कर सन्न रह गई मीनाक्षी. यह क्या हो रहा है? क्यों बढ़ रहे हैं इतने अपराध? कहीं भी सुरक्षा नहीं रही. इन अपराधियों को तो पुलिस व जेल का बिलकुल भी भय नहीं रहा. पता नहीं क्यों आज इंसान के रूप में ऐसे शैतानों को बच्चियों पर जघन्य अपराध करते हुए जरा भी दया नहीं आती. फिरौती के रूप में लाखों रुपए न मिलने पर मासूम बच्चों की हत्या करते हुए उन का हृदय जरा भी नहीं पसीजता. सोचतेसोचते मीनाक्षी ने घड़ी की ओर देखा. साढ़े 3 बज रहे थे.

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अभी तक रमन स्कूल से नहीं लौटा. स्कूल की छुट्टी तो 3 बजे हो जाती है. घर आने तक आधा घंटा लगता है. अब तक तो रमन को घर आ जाना चाहिए था. मीनाक्षी के पति गिरीश एक प्राइवेट कंपनी में प्रबंधक थे. उन का 8 वर्षीय रमन इकलौता बेटा था. रमन शहर के एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ रहा था. रमन देखने में सुंदर और बहुत प्यारा था दूधिया रंग का. सिर पर मुलायम चमकीले बाल. काली आंखें. मोती से चमकते दांत. जो भी रमन को पहली बार देखता, उस का मन करता था कि देखता ही रहे. वह पढ़ाई में भी बहुत आगे रहता. उस की प्यारीप्यारी बातें सुन कर खूब बातें करने को मन करता था. एक दिन गिरीश ने मीनाक्षी से कहा था, ‘देखो मीनाक्षी, हमें दूसरा बच्चा नहीं पैदा करना है. मैं चाहता हूं कि रमन को खूब पढ़ालिखा कर किसी योग्य बना दूं.’ मीनाक्षी ने भी सहमति के रूप में सिर हिला दिया था.

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