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Hindi Story : दत्तक बेटी ने झुका दिया सिर

Hindi Story : लंदन के वेंबली इलाके में ज्यादातर गुजराती रहते हैं. नैरोबी से लंदन आ कर बसे घनश्याम सुंदरलाल अमीन भी अपनी पत्नी सुनंदा के साथ वेंबली में ही रहते थे. वे लंदन में अंडरग्राउंड ट्रेन के ड्राइवर थे. नौकरी से रिटायर होने के बाद वे पत्नी के साथ आराम से रह रहे थे.

घनश्यामभाई को सोशल स्कीम के तहत अच्छा पैसा मिल रहा था. इस के अलावा उन की खुद की बचत भी थी. उन्हें किसी चीज की कमी नहीं थी. बस, एक कमी के अलावा कि वे बेऔलाद थे. गोद में खेलने वाला कोई नहीं था, जिस का पतिपत्नी को काफी दुख था.

किसी दोस्त ने घनश्यामभाई को सलाह दी कि वे कोई बच्चा गोद ले लें. ब्रिटेन में बच्चा गोद लेना बहुत मुश्किल है, वह भी भारतीय परिवार के लिए तो और भी मुश्किल है, इसलिए घनश्यामभाई ने अपने किसी भारतीय दोस्त की सलाह पर कोलकाता की एक स्वयंसेवी संस्था से बात की. उस संस्था ने एक अनाथाश्रम से उन का परिचय करा दिया.

अनाथाश्रम वालों ने घनश्यामभाई से कोलकाता आने को कहा. वे पत्नी के साथ कोलकाता आ गए.

कोलकाता के उस अनाथाश्रम में उन्हें सुचित्र नाम की एक लड़की पसंद आ गई. वह 15 साल की थी. जन्म से बंगाली और महज बंगाली व हिंदी बोलती थी. देखने में एकदम भोली, सुंदर और मुग्धा थी.

पतिपत्नी ने सुचित्र को पसंद कर लिया. सुचित्र भी उन के साथ लंदन जाने को तैयार हो गई. घनश्यामभाई ने सुचित्र को गोद लेने की तमाम कानूनी कार्यवाही पूरी कर ली. सुचित्र को वीजा दिलाने में तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ा. तरहतरह के प्रमाणपत्र देने पड़े. आखिरकार 6 महीने बाद सुचित्र को वीजा मिल गया.

सुचित्र अब लंदन पहुंच गई. उस के लिए वहां सबकुछ नया नया था. देश नया, दुनिया नई, भाषा नई, लोग नए. वहां उस का एक स्कूल में दाखिल करा दिया गया. उस ने जल्दी ही इंगलिश भाषा सीख ली. वह गोरी थी और छोटी भी, इसलिए जल्दी से गोरे बच्चों के साथ घुलमिल गई. स्कूल में गुजराती, पंजाबी और बंगलादेश से आए परिवारों के तमाम बच्चे पढ़ते थे.

सुचित्र अब बड़ी होने लगी. वह अकेली लंदन में अंडरग्राउंड ट्रेन में सफर कर सकती थी. वह बिलकुल अकेली पिकाडाली तक जा सकती थी. वह पढ़ने में भी अच्छी थी.

सुचित्र को गोद लेने वाले घनश्यामभाई और उन की पत्नी सुनंदा खुश थे अपनी इस बेेटी से. छुट्टी के दिनों में वे कभी उसे मैडम तुसाद म्यूजियम दिखाने ले जाते तो कभी उसे हाइड पार्क घुमाने ले जाते. दोस्तों के घर पार्टी में भी वे सुचित्र को हमेशा साथ रखते. सुचित्र सुनंदा को ‘मम्मी’ कहती तो वे खुश हो जातीं. उन्हें ऐसा लगता कि सुचित्र उन्हीं की बेटी है. वह स्कूल तो जा ही रही थी, अब कभीकभार अपनी सहेली के घर रुक जाती. समय के साथ अब वह हर शनिवार को सहेली के घर रुकने की बात करने लगी थी. अभी वह 17 साल की ही थी.

एक दिन सुनंदा को पता चला कि सुचित्र घर से तो अपनी सहेली के घर जा कर रुकने की बोल कर गई थी, पर वह सहेली के घर गई नहीं थी. उन्होंने सुचित्र से सख्ती से पूछताछ की तो सुचित्र खीज कर बोली, “मैं कहीं भी जाऊं, इस से आप को क्या मतलब…”

सुचित्र की इस बात से घनश्यामभाई और सुनंदा को गहरा धक्का लगा. कुछ दिनों बाद एक दूसरी घटना घटी. सुचित्र अकसर स्कूल नहीं जाती थी. घनश्यामभाई और सुनंदा ने जब उस से पूछा तो उस ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया.

पतिपत्नी ने सुचित्र की सहेलियों से पूछताछ की तो पता चला कि सुचित्र सुखबीर नाम के एक पंजाबी लड़के के साथ घूमती है. वह स्कूल छोड़ कर उस के साथ बाहर घूमने चली जाती है.

घनश्यामभाई ने शाम को सुचित्र से पूछा, “मुझे पता चला है कि तुम सुखबीर नाम के किसी लड़के के साथ घूमती हो, क्या यह सच है?”

यह सुन कर सुचित्र ने कहा, “मैं कहां जाती हूं और बाहर जा कर क्या करती हूं, यह आप को बिलकुल नहीं पूछना चाहिए.”

सुनंदा ने कहा, “तुम हमारी बेटी हो. हमें चिंता होती है. तुम अभी 17 साल की ही तो हो.”

“मैं आप की बेटी नहीं हूं. आप ने अपने फायदे के लिए मुझे गोद लिया है. मैं आप की कोख से पैदा नहीं हुई हूं. मेरे ऊपर आप के बहुत कम अधिकार हैं, समझीं?”

“मतलब?” सुनंदा ने पूछा.

“मैं तुम्हारे शरीर का कोई भी हिस्सा नहीं हूं. मेरे शरीर पर मेरा ही अधिकार है?”

सुचित्र की बात सुन कर घनश्यामभाई को गुस्सा आ गया. उन्होंने सुचित्र को एक तमाचा मार दिया.

सुचित्र चिल्लाई, “अगर दूसरी बार आप ने ऐसा किया तो मैं पुलिस बुला लूंगी.”

घनश्यामभाई ने कहा, “मैं खुद ही पुलिस को बताऊंगा कि मेरे द्वारा गोद ली गई बेटी पढ़ने की उम्र में गलत काम करती है. तुम्हें सामाजिक काउंसलिंग में भेज दूंगा।. उस के बाद भी नहीं सुधरी तो फिर भारत वापस भेज दूंगा.”

भारत वापस भेजने की बात सुन कर सुचित्र सोच में पड़ गई. वह एकदम चुप हो गई और अपने बैडरूम में चली गई. अगले दिन उठ कर उस ने मम्मीपापा से माफी मांगी. यह सुन कर घनश्यामभाई और सुनंदा शांत हो गए.

सुनंदा ने कहा, “देखो बेटा, यह तुम्हारी पढ़नेलिखने की उम है. तुम अच्छी तरह पढ़लिख कर अपना कैरियर बना लो. अभी तुम टीनएज हो. जिस लड़के के साथ मन हो, नहीं घूम सकती हो.”

सुचित्र ने सिर झुका कर कहा, “मम्मी, इस तरह की गलती अब दोबारा नहीं करूंगी.”

इस के बाद सुचित्र नियमित रूप से स्कूल जाने लगी. धीरेधीरे इस बात को काफी समय बीत गया.

एक दिन घनश्यामभाई और सुनंदा के पड़ोसियों ने पुलिस से शिकायत की कि हमारे बगल वाले घर से बहुत तेज बदबू आ रही है. तुरंत पुलिस आ गई. घर का दरवाजा बंद था, पर अंदर से ताला नहीं लगा था. पुलिस ने धक्का मारा तो दरवाजा खुल गया.

पुलिस ने अंदर जा कर देखा तो बैडरूम में घनश्यामभाई और उन की पत्नी की लाशें पड़ी थीं. पूछताछ में पड़ोसियों ने बताया कि इन के साथ गोद ली गई एक बेटी भी रहती थी. उस समय वह घर में नहीं थी.

दोनों लाशों को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. उन की गोद ली गई बेटी गायब थी. पता चला कि वह कई दिनों से स्कूल भी नहीं गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि पतिपत्नी की मरने से पहले खाने मेेें नींद की दवा दी गई थी. उस के बाद घनश्यामभाई की हत्या चाकू से और सुनंदा की हत्या मुंह पर तकिया रख कर की गई थी.

पुलिस का पहला शक मारे गए पतिपत्नी की गोद ली गई बेटी सुचित्र पर गया. उन्होंने घनश्यामभाई और सुचित्र के मोबाइल का काल रिकौर्ड चैक किया. 2 ही दिनों में पुलिस सुचित्र के बौयफ्रैंड सुखबीर के घर पहुंच गई.

सुखबीर अकेला ही अपनी विधवा मां के साथ रहता था. सुचित्र भी उसी के घर पर मिल गई. पुलिस ने दोनों से सख्ती से पूछताछ की तो सुचित्र और सुखबीर ने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने प्रेम का विरोध करते की वजह से घनश्यामभाई और सुनंदा की हत्या की है.

सुचित्र ने बताया, “उस रात मैं ने ही अपने मम्मीपापा के खाने में नींद की गोलियां मिला दी थीं, जिस से वे जाग न सकें. दोनों गहरी नींद सो गए तो मैं ने सुखबीर को बुला लिया. उस के बाद मम्मी के मुंह पर तकिया रख कर पूरी ताकत से दबाए रखा तो उन की सांसों की डोर टूट गई.

“मम्मी के छटपटाने की आवाज सुन कर मेरे पापा जाग गए. सुखबीर अपने साथ चाकू लाया था. उसी चाकू से उस ने पापा पर ताबड़तोड़ वार कर के उन्हें बुरी तरह घायल कर दिया. उस के बाद हम दोनों भाग गए.”

दोनों के बयान सुन कर पुलिस हैरान रह गई. सुचित्र अभी नाबालिग थी. पुलिस ने उस की मैडिकल जांच कराई तो पता चला कि वह पेट है. सुचित्र ने जो किया, उसे सुन कर तो अब यही लगता है कि इस तरह बच्चे को गोद लेने में भी कई बार सोचना पड़ेगा.

Online Hindi Story : और मौसम बदल गया

Online Hindi Story : “सुनो, आप ने मांजी से बात की, आज भी पापा का फोन आया था, बहुत परेशान हो रहे थे.”

“मैं तो बिलकुल ही भूल गया…अच्छा हुआ तुम ने याद दिला दिया.”

“कितना मुश्किल होता होगा, पापा के लिए 2-2 बेटे हैं, पर साथ में कोई रखना नहीं चाहता. मां के जाने के बाद पापा वैसे भी अकेले हो गए हैं, अब तो उन्हें साथ की जरूरत है, लेकिन यहां तो कोई बात समझने को तैयार ही नहीं है, पापा से कुछ कहो, तो वे गांव जाने के लिए कहते रहते हैं. अब वहां कौन हैं, जो उन का ध्यान रखेगा, पिछली बार जब गए थे, तो शुगर कितनी बढ़ गई थी, हौस्पिटल में ऐडमिट करवाना पड़ा था. पता नहीं, उम्र बढ़ने के बाद सब बच्चे क्यों बन जाते हैं,” सोनाली अपनेआप ही परिस्थिति का विष्लेषण कर रही थी.”

“क्या हुआ, क्या सोच रही हो, कह तो रहा हूं, कल पक्का बात कर लूंगा.”

“कैसे होगा, दोनों ही जिद्दी हैं, आसानी से बात नहीं मानेंगे, पापा से बात करो तो वे संस्कृति और संस्कारों की दुहाई देने लगते है. हमारे यहां तो बेटी के घर का पानी भी नहीं पीते, बेटियां तो पराया धन होती हैं, उन के घर बारबार आना अच्छा नहीं लगता और मांजी…वे तो मेरे मायके का जिक्र आते ही चिढ़ जाती हैं.”

“न मैं भैया के घर रह सकती हूं और न ही पापा हमारे घर आ कर रह सकते हैं…अजीब मुश्किल हैं,”सोनाली अपनी रौ में बोलती जा रही थी.

सोनाली,“उन की बात अपनी जगह सही है, अब यह पुराने रीतिरिवाज आसानी से पीछा कहां छोड़ते हैं.”

“मैं आप से अपनी परेशानी का हल मांग रही हूं और आप हैं कि मुझे और परेशान किए जा रहे हो,” कहतेकहते सोनाली रुआंसी हो गई.”

“यह तुम्हारा बढ़िया है, कुछ न भी कहो तो भी रोना शुरू कर के मुझे मुजरिम बना देती हो. अब तुम ही बता दो कि मुझे क्या करना है.”

“एक बार आप बात कर के देखो, आप कहोगे तो पापा मना नहीं कर पाएंगे,” कहते हुए सोनाली के चेहरे पर मुसकान फैल गई.

“यह तो है, मैं कहूंगा तो शायद मना नहीं कर पाएंगे. पर मैं एक बात और सोच रहा हूं. मां को कैसे मनाया जाए? मां भी तो पुराने विचारों वाली है और ऊपर से उन का स्वभाव भी थोड़ा गरम है, कहीं उन्होंने कुछ कह दिया तो… मुझे तो डर है कि तुम्हारे पापा की स्थिति ‘आसमान से गिरे खजूर में अटके’ जैसी न हो जाए.”

“जानती हूं मैं, पापा की स्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं होगा. पर यहां मैं तो रहूंगी न… मैं उन का ध्यान रखूंगी तो सब सही होगा. बस, आप एक बार मांजी से बात कर के देखो, मेरे कहने से तो बात बिगड़ जाएगी.”

अगले दिन शाम को घर लौटते हुए सुधीर गुलाबजामुन और समोसे ले कर आया. दोनों ही चीजें मां को बहुत पसंद हैं. पापा को जब भी अपना मनमाना काम करवाना होता, तो वह यही फौर्मूला अपनाते थे.

“सोनाली, जल्दी से अदरक वाली कड़क चाय बना कर मां के कमरे में ले कर आना. गरमगरम समोसे लाया हूं.”

“मां…मां, कहां हो तुम?”

“मैं कहां जाऊंगी, इन चारों कोनों को छोड़ कर, अब तो घर के चारों कोने ही मेरे लिए चारधाम बन गए हैं.”

“क्या बात है, आज तो तुम्हारा गुस्सा समोसे से भी ज्यादा गरम हो रहा है.”

“कोरोना के कारण पहले ही घर में बंद पड़ी थी. बड़ी मुश्किल से बाहर जाने का एक मौका आया वह भी तेरी पत्नी की वजह से न हो पाया.

“कहां जा रही थी… तुम्हें मना किया है. अभी संकट पूरी तरह से नहीं टला है. रोज 4-5 केस आ ही जाते हैं.”

“कोई बहुत दूर थोड़े जा रही थी. सामने मिश्रा भाभी के पोते का मुंडन था. बस, आसपास के लोगों को ही बुलाया था. उसी दिन से सोच रखा था कि हरी वाली कौटन की साड़ी पहनूंगी, जो तू जयपुर से लाया था. अलमारी खोल कर देखा तो कोने में जैसेतैसे पड़ी थी. तेरी बहू से प्रैस करने के लिए कहा, पर इसे मेरी बात कहां याद रहती है. मेरे हाथ में दर्द नहीं होता तो मैं खुद ही कर लेती.”

“भूल गई होगी, तुम कल मुझे दे देना. औफिस जाते समय प्रैस को देता जाऊंगा.”

“पता नहीं सारा दिन क्या करती रहती है. एक तू ही है, जो मेरा खयाल रखता है, वरना मैं तो कब का हरिद्वार निकल गई होती…”

“समोसे लाया है, तो गुलाबजामुन भी जरूर लाया होगा.”

“कैसे भूल सकता हूं, रात को खाने के बाद गुलाबजामुन भी खाएंगे.”

“कुछ तो गड़बड़ है… जो तू मुझे इतना मक्खन लगा रहा है. बता क्या बात है…”

“कुछ भी तो नहीं, तुम्हें तो हर वक्त दाल में काला ही नजर आता है. अच्छी तरह से जानती हूं तुझे, यह सब ट्रिक तू ने अपने पापा से ही सीखी है. कोई न कोई ऐसी बात होगी, जिस के लिए मैं मंजूरी नहीं दूंगी.”

“मां, आज भी तुम मेरे मन की बात जान लेती हो,” सुधीर भावुक हो गया.

“मां हूं न…मुंह की थोड़ी कड़वी जरूर हूं, पर दिल चाशनी से भी ज्यादा मीठा है.”

“जानता हूं,” सुधीर ने मां का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा,” सोनाली के पापा के बारे में बात करनी है. उन को यहां बुलाने की सोच रहे हैं. आप से राय लेनी थी…”

“इस में पूछने वाली क्या बात है, मैं क्यों मना करूंगी?” बात को बीच में काटते हुए मां बोली.

“नहीं, वह बात ऐसी है कि सोनाली की भाभी को उन का घर में रहना पसंद नहीं है. बातबात में घर में झगड़े होते रहते हैं. इसीलिए सोच रहे थे कि…”

“तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया जो ऐसी बेसिरपैर की बातें कर रहा है. 2-3 दिन की बात अलग थी. यहां रहने लगेगे, तो लोग क्या कहेंगे… जितने मुंह, उतनी बातें… किसकिस को समझाते फिरेंगे.”

“हम लोगों की चिंता क्यों करें? 2-3 दिन बात बना कर सब चुप हो जाएंगे. कोरोना में मै ने सब को देख लिया कि कौन किस का साथ देता है…”

“मेरी बात तो तुम्हें हमेशा ही बुरी लगती है. कुछ कहने का फायदा तो है नहीं, तुम ने जय प्रकाशजी (सोनाली के पापा) से पूछ लिया?”

“अभी तो कुछ दिन रहने के लिए बुलाएंगे, फिर धीरेधीरे…”

“मतलब की सारी खिचड़ी पक चुकी है, बस मेरे ही नाम का बघार लगाना बाकी है. जब तुम दोनों अपना मन बना चुके हो तो मुझ से पूछने की क्या जरूरत है… घर तुम्हारा… जिसे चाहे रखो, मैं कौन होती हूं मना करने वाली.”

“पर एक बात अच्छे से समझ लो, मैं अपना कमरा नहीं छोडूंगी जिसे जहां रहना है रहे… मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.”

रात को डाइनिंग टेबल पर मौन ही पसरा रहा. किसी को गुलाबजामुन भी याद नहीं आए.

“क्या हुआ… मांजी मान गईं?” सुधीर के कमरे में आते ही सोनाली ने पूछा.

दरवाजे के पीछे खड़ी सब सुन तो रही थी, अब मैं अलग से क्या बताऊं? मैं ने पहले ही कहा था, मां नहीं मानेगी.”

“सोनाली ने बात को वहीं खत्म करते हुए कहा,” इस का भी समाधान मैं ने सोच लिया है, उन्हें अपना कमरा छोड़ने की जरूरत नहीं है. मैं ने विहान से बात कर ली, वह ड्राइंगरूम में दीवान पर सो जाएगा. आप पापा से बात कर लो, वह ट्रेन का टिकट करवा लेंगे. परसों रविवार है आप भी घर पर होंगे. हम उन्हें स्टेशन से ले आएंगे.”

“ठीक है, जैसा तुम कहो, हम तो तुम्हारे गुलाम हैं, जैसा आदेश दोगी, मानना तो वही पड़ेगा. पर पापा के आने के बाद हमें भूल मत जाना,” कह कर सुधीर ने सोनाली को अपनी बांहों में भर लिया.

कुछ दिनों के लिए पापा घर आने के लिए राजी हो गए. पर मां की तेवर बदले हुए थे, उन्होंने एक बार भी पापा से ढंग से बात नहीं की. शायद लता बहनजी को मेरा यहां आना अच्छा नहीं लगा. पहले तो उन्होंने कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया. सोनाली बहुत कोशिश करती कि घर का माहौल सामान्य रहे, पर कभी बिजली कड़कने लगती तो कभी ओलों के साथ तेज बौछारें… इतनी ठंडक होने के बावजूद भी घर का तापमान हमेशा गरम रहता. हर कदम फूंकफूंक कर रखना पड़ता. पता नहीं कब तूफान आ जाए…

“बहू, यह गीजर खराब हो गया क्या? गरम पानी नहीं आ रहा…”

“आज शायद पापा पहले नहाने चले गए इसीलिए पानी खत्म हो गया होगा. आप मेरे बाथरूम में नहा लीजिए.”

“कोई नहीं, आज कान्हाजी को थोड़ी देर में भोग लगा लूंगी. अब तो यह सब चलता ही रहेगा.”

“सोनाली, कहां हो तुम… मेरा लंच तैयार हुआ कि नहीं?”

“ला रही हूं, डाइनिंग टेबल पर रखा है. आज तो आप ने बचा लिया, वरना मांजी का गुस्सा… जाने कितनी देर और सुनना पड़ता.”

“पता है… इसीलिए तो तुम्हें आवाज दे कर बुला लिया, वरना थोड़ी देर में तुम्हारी गंगाजमुना दोनों धाराएं एकसाथ बहनी शुरू हो जातीं और हमारी रात काली…”

“बहुत बुरे हो आप, हर वक्त एक ही ओर आप का दिमाग घूमता रहता है.”

“फिर रात की बात पक्की,” सलोनी के गालों पर हलकी से चिकोटी काटते हुए सुधीर ने कहा. आज कहानी यहीं खत्म नहीं हुई थी. शायद आज सोनाली का दिन ही खराब था.

दोपहर को खाने के समय…

“बहू, आज खाने में चनेलौकी की दाल क्यों बनाई है? भूल गईं क्या… मुझे यह दाल बिलकुल पसंद नहीं. क्या अब मेरी यह स्थिति हो गई है कि मुझे घर में अपनी पसंद का खाना भी नसीब नहीं होगा.”

“नहीं मांजी, ऐसा नहीं है. मैं ने प्याज की भिंडी बनाई थी. आज यह दीपक भैया का खाना भी ले गए हैं, इसलिए सब्जी खत्म हो गई.”

“मतलब… खत्म हो गई. क्या दूसरी सब्जी नहीं बन सकती थी या बाजार में सब्जी वालों की हड़ताल है…”

“उबले आलू रखे हैं, अभी भून कर लाती हूं,” सोनाली ने उन्हें मनाने की पुरजोर कोशिश की.

“रहने दे, मुझे दिखाने के लिए बातें न बना. अब मेरा खाना खाने का मन नहीं है. उबले आलू की 2-4 पकौड़ियां तल कर लिया.”

“तली हुई चीजें खाने से आप की तबीयत खराब हो जाएगी,” सोनाली कहना चाहती थी, पर कह नहीं सकी…

वही हुआ, जिस का डर था. शाम होतेहोते मांजी की तबीयत खराब हो गई. आज तो उलटी रुकने का नाम ही नहीं ले रही, क्या करूं… अब तक तो सुधीर बंगलुरु के लिए निकल गए होंगे. इन्हें भी आज ही बाहर जाना था. पिछली बार तो अस्पताल ले जाना पड़ा था,” सोनाली घबराहट में बड़बड़ाने लगी.

“पहले तो तू शांत हो, सब ठीक हो जाएगा. अपनी सास को ओआरएस का घोल लगातार पिलाती रह. इस से शरीर में नमक और चीनी की कमी नहीं रहेगी और जान भी बनी रहेगी, और हां… मुझे पिछली बार की दवाई का पर्चा दे दे. मैं विहान के साथ जा कर दवाई ले आता हूं.”

रात होतेहोते लताजी की तबीयत में काफी सुधार आ चुका था.

“अब आप कैसा महसूस कर रही हैं?”

“पहले से ठीक हूं…”

“कुछ खाने का मन है, खिचड़ी बनवा दे,” लताजी ने सिर हिला कर हामी भरी.

लता जी ने सोनाली और उस के पापा की बातें सुन ली थी, इसलिए शांतिपूर्वक हां कह दिया.

“मुझे भी अकसर ऐसिडिटी हो जाती है. डाक्टर ने तलाभुना खाने से बिलकुल मना कर रखा है, पर जब मन करता है तो कुछ ध्यान नहीं रहता. आखिर जिंदगी सिर्फ लौकीतोरी खा कर तो नहीं गुजारी जा सकती,” लताजी के चेहरे पर फीकी मुसकान आ गई.

“विहान बेटा, ताश ले आ. तेरी दादी का मन भी लगा रहेगा. अकेले लेटेलेटे तो मन और भी घबराता है.”

“आप को ताश खेलना पसंद है?”

“जी, पहले तो बहुत पसंद था. सोनाली की मां और मैं रोज ही खेला करते थे, पर जब से वह साथ छोड़ कर गई है, तब से केवल समय गुजारने का साधनमात्र बन गया है.
विहान जिद कर रहा था कि मुझे भी ताश खेलना सिखाओ इसीलिए… अगर आप को पसंद न हो तो हम नहीं खेलते.”

“नानू, आप को पता नहीं… दादी तो ताश में चैंपियन है. आज तक उन्हें कोई नहीं हरा पाया. क्या जबरदस्त रमी खेलती हैं, मैं इसीलिए तो आप से ट्रिक सीख रहा हूं. मुझे एक दिन दादी को जरूर हराना है. है न दादी… जल्दी से ठीक हो जाओ फिर मैं तुम्हें हराऊंगा.”

“मुझे क्या हुआ… मैं तो ठीक हूं, तू पत्ते बांट…”

“आप की तबीयत…” कहतेकहते जयप्रकाशजी चुप हो गए, शायद खेलने से मन बदल जाए.

“पापा, सुधीर ने कल डॉक्टर का अपौइंटमैंट ले लिया है. मुझे तो विहान की पेरैंट्स मीटिंग में जाना है. क्या आप मांजी को दिखा लाएंगे?”

“हां… हां, क्यों नहीं… मैं चला जाऊंगा.”

“बहू, सुधीर कब तक आएगा?”

“वे तो आज औफिस से ही बंगलुरु चले गए हैं, 2 दिन बाद आएंगे.”

“कोई बात नहीं, जब वह आ जाएगा, तब दिखा लेंगे,” शायद लताजी को सोनाली के पापा के साथ जाने में संकोच हो रहा था.

“कैसी बातें कर रही हैं आप, तबीयत आप की खराब है और आप डाक्टर को दिखाने कुछ दिन बाद जाएंगी. शायद आप को मेरे साथ जाने में संकोच हो रहा है.”

“आप तो जानते हैं, जैसे ही बाहर निकलेंगे गलीमोहल्ले वाले, सब की नजर पड़ेगी. पता नहीं क्याक्या बातें बनाएंगे. 2-3 दिन की ही तो बात है, जैसे ही सुधीर वापस आएगा, मैं डाक्टर को दिखा आऊंगी. अब तो मैं सही भी हो गई हूं,” लताजी ने बात को संभालने की पूरी कोशिश की.

“आप मेरा मतलब नहीं समझीं, आप को इन्फैक्शन है. कभी भी बढ़ सकता है. अब तो संभाल में आ गया, नहीं तो बहुत परेशानी हो सकती थी. आप को मेरे साथ जाने में परेशानी है, तो इस का भी हल है.

“आप सुधीरजी की कार में चले जाइएगा. ड्राइवर आप को डाक्टर के यहां छोड़ देगा. मैं थोड़ी देर में औटो से आ जाऊंगा,” जयप्रकाशजी ने जब अधिकारपूर्वक कहा, तो लताजी को उन की बात माननी ही पड़ी.

सुबह, जैसा निश्चित हुआ था, उसी के अनुसार लताजी ड्राइवर के साथ चली गई और थोड़ी देर बाद जयप्रकाशजी भी औटो के साथ वहां पहुंच गए.

“आप आ गए…बहुत देर हो गई, मुझे तो घबराहट होने लगी थी.”

“पता नहीं, दोपहर का समय है, फिर भी ट्रैफिक बहुत मिला. अब तो सड़कों पर आदमी से ज्यादा वाहन हो गए हैं. क्या आप का नंबर आ गया?”

“नहीं, अभी 2 लोगों के बाद है.”

“आप कुछ लेंगी, पानी या चाय… मैं भी जल्दी में घर से लाना भूल गया,”लताजी मन ही मन खुश हो रही थी. अपनी फिक्र होते देख उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था. डाक्टर साहब से भी सारी बातें जयप्रकाशजी ने ही की.

आप ने सही समय पर दवाई और ओआरएस का घोल दे दिया, जिस से पेट में इन्फैक्शन नहीं फैला. अब मैं 3 दिन की दवाई लिख रहा हूं और कुछ टेस्ट भी आप करवा लीजिए. और हां… मांजी, आप भी थोड़ा घूमना शुरू कर दीजिए, इस से डाइजेशन दुरुस्त रहता है.”

क्लीनिक से बाहर निकल कर जयप्रकाश जी औटो ढूंढ़ने लगे.

“आप भी कार में बैठ जाइए. बाहर कितनी चिलचिलाती धूप हो रही है. पता नहीं आप को औटो कब मिलेगा?”

“पर लोग…”

“आप उन की चिंता न करें. मैं सब देख लूंगी,” अचानक से लताजी का ह्रदय परिवर्तन देख कर जयप्रकाशजी हैरान हो गए.

“फिर क्या था, सारे रास्ते दोनों में बातचीत होती रही. कहीं से भी आभास नहीं हो रहा था कि अभी साथ दिखने मात्र से ही उन को परेशानी हो रही थी.

“अरे, मैं आप को बताना ही भूल गया. आप सुबह 8 बजे तक कुछ नहीं खाएंगे. पैथोलौजी लैब से आप का ब्लड सैंपल लेने आएगा. जब मैं आप की दवाई लेने गया था, तभी उसे बुक कर दिया था.”

‘भाई साहब कितने सरल और सहज हैं. सब काम चुपचाप निबटा दिया. मैं ने कितना गलत समझा,’लताजी मन ही मन विचार करने लगी.

“कहां खो गईं आप, घर आ गया है.”

“भाई साहब, आप का बहुतबहुत धन्यवाद. कल से आप मेरी इतनी अधिक देखभाल कर रहे हैं और मैं अब तक आप से परायों जैसा व्यवहार कर रही थी. मैं अपने व्यवहार पर बहुत शर्मिंदा हूं.”

“ऐसा न कहिए बहनजी, घरपरिवार में तो यह सब चलता ही रहता है.”

“धीरेधीरे घर का मौसम बदलने लगा, पहले जहां लू के थपेड़ों ने आपसी रिश्तों को झुलसा दिया था, वहीं अब रोज पड़ने वाली बूंदों ने मौसम को खुशनुमा बना दिया. पापा भी धीरेधीरे घर का हिस्सा बन गए थे. मैं ने विहान को पढ़ाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी. सब को एकसाथ देख कर कितना सुकून मिलता है. किसी प्रकार की कोई टैंशन नहीं… पता नहीं हमारे समाज में इतनी पाबंदियां क्यों हैं? लड़की का मायका और ससुराल एक जगह मिल कर क्यों नहीं रह सकते?”

“सोनाली क्या सोच रही हैं?” पापा ने आवाज दी.

“एक कोफ्ता और मिल सकता है क्या.. आज लौकी के कोफ्ते बहुत स्वादिष्ठ बने हैं. पेट भर गया है पर मन अभी तृप्त नहीं हुआ है,” पापा ने खाने की तारीफ की, तो सोनाली ने बताया कि आज कोफ्ते मांजी ने बनाए हैं. लताजी ने तो रसोई से सन्यास ले लिया था. आज अचानक मन किया या शायद धन्यवाद कहने का उन्हें यह तरीका समझ आया…पर इतनी तारीफ सुनने को मिलेगी, ऐसा सोचा न था, अब तो हर दूसरे दिन लताजी रसोई के चक्कर लगाने लगीं.धीरेधीरे उन दोनों के बीच संकोच की दूरी घटने लगी. पहले शाम को तिकड़ी जमा होती थी, फिर विहान के ऐग्जाम शुरू होने के बाद दोनों ही ताश खेलते रहते. अब सब अच्छा चल रहा था लेकिन खुशियां कभी भी एक जगह ज्यादा देर तक नहीं ठहरतीं. सोनाली को अपनी ही नजर लग गई. अभी बहार आई थी कि पतझड़ ने भी दस्तक देने शुरू कर दिए.

“पापा देखो न, आज मम्मी सुबह से ही बिना बात के गुस्सा हो रही है. मैं ने अपना सारा होमवर्क निबटा दिया, फिर भी जबरदस्ती पढ़ने के लिए बैठा दिया,” विहान ने सुधीर के आते ही सोनाली की शिकायत करना शुरू कर दिया.”

“ठीक है, मैं बात करता हूं. क्या हुआ, आज बिन बादल, बिजली और बरसात दोनों एक साथ…”

“अमित भैया का फोन आया था. कह रहे हैं कि अब कोरोना का प्रभाव कम होने लगा है, इसीलिए कंपनी वाले औफिस बुला रहे हैं. उन्हें और रीना दोनों को ही जाना पड़ेगा. बच्चों के स्कूल अभी नहीं खुलेंगे, इसलिए वे दोनों घर पर ही रहेंगे. पापा घर पर आ जाते, तो उन्हें बच्चों की कोई चिंता नहीं रहती. कितने खुदगर्ज हो गए हैं भैया… इतने दिन हो गए, पापा को यहां आए हुए. मगर एक भी फोन नहीं… और आज जब उन्हें जरूरत पड़ी तो तुरंत फोन कर दिया. कहीं नहीं जा रहे पापा… अब तो उन का यहां मन भी लग गया है.”

“वह तो ठीक है, पर एक बार पापा को भी बता दो, अगर उन का वहां जाने का मन नहीं होगा तो मैं खुद अमित को मना कर दूंगा.”

“रात को डिनर के समय अमित का फोन आया था, घर वापस आने के लिए कह रहा हैं,” जयप्रकाशजी ने सब को बताया.

“पता है मुझे, पर अब आप वहां नहीं जाएंगे. यह क्या बात हुई, पहले तो उन्हें आप का ध्यान नहीं आया और अब जरूरत पड़ी तो…”

“बेटी, ऐसा नहीं कहते, समय पर अपने ही अपनों के काम नहीं आएंगे तो…” अभी जय प्रकाशजी की बात खत्म नहीं हुई थी कि लताजी ने भी सोनाली का समर्थन किया,”सही तो कह रही है सोनाली, यह क्या बात हुई, अब उन्हें जरूरत है, तो बुला रहे हैं. कल को जब जरूरतें खत्म हो जाएंगी, तब क्या होगा…आप को वहां नहीं जाना चाहिए. बच्चों को भी तो आप की अहमियत का पता चले,” सब लताजी की बात सुन कर आश्चर्यचकित रह गए. कहां तो मां उन के आने का विरोध कर रही थीं और जब वह जाने के लिए कह रहे हैं तो मना कर रही हैं. शायद इतने दिनों से जिस अकेलेपन को वह झेल रही थी, वह अब भरने लगा था.

“नहीं लताजी, मुझे जाना ही पड़ेगा. बेटा खुदगर्ज हो सकता है, पर एक पिता नहीं… अगर मैं भी उस की तरह व्यवहार करूंगा, तो उस में और मुझ में क्या अंतर रह जाएगा. मैं अपने बेटे को सही संस्कार देने में नाकामयाब रहा. पर कोशिश करूंगा कि आने वाली पीढ़ी को संभाल सकूं.

“पापा अपनी जगह सही थे और हम सबकी चिंता भी वाजिब थी. सबके मन दुखी थे, कोई नहीं चाहता था कि पापा वापस जाएं. आप के घर में आने से रौनक आ गई थी. अब आप चले जाएंगे, तो फिर से…”

“जाना तो पड़ेगा, आप भी समझती हैं कि बच्चे गलती कर सकते हैं, पर मांबाप नहीं. मैं आप से रोज फोन पर बात करूंगा.”

सोनाली कभी मां की ओर देखती और कभी अपने पापा की ओर… शायद इस उम्र में व्यक्ति को भौतिक संसाधनों से ज्यादा संग साथ की आवश्यकता अधिक होती है.

“ठीक है नानू, आप मामा के घर जा सकते हैं. पर आप वादा करो, कि गरमियों की छुट्टी में आप हमारे साथ रहेंगे. सही कहा न दादी?”

विहान की बात सुन कर सब लताजी की ओर देख कर मुसकरा उठे.

लेखिका : अपर्णा गर्ग 

Hindi Kahani : प्यार – कस्तूरी से क्यों हो गया था संजय को प्यार

Hindi Kahani : ‘‘अरे संजय… चल यार, आज मजा करेंगे,’’ बार से बाहर निकलते समय उमेश संजय से बोला. दिनेश भी उन के साथ था.

संजय ने कहा, ‘‘मैं ने पहले ही बहुत ज्यादा शराब पी ली है और अब मैं इस हालत में नहीं हूं कि कहीं जा सकूं.’’

उमेश और दिनेश ने संजय की बात नहीं सुनी और उसे पकड़ कर जबरदस्ती कार में बिठाया और एक होटल में जा पहुंचे.

वहां पहुंच कर उमेश और दिनेश ने एक कमरा ले लिया. उन दोनों ने पहले ही फोन पर इंतजाम कर लिया था, तो होटल का एक मुलाजिम उन के कमरे में एक लड़की को लाया.

उमेश ने उस मुलाजिम को पैसे दिए. वह लड़की को वहीं छोड़ कर चला गया.

वह एक साधारण लड़की थी. लगता था कि वह पहली बार इस तरह का काम कर रही थी, क्योंकि उस के चेहरे पर घबराहट के भाव थे. उस के कपड़े भी साधारण थे और कई जगह से फटे हुए थे.

संजय उस लड़की के चेहरे को एकटक देख रहा था. उसे उस में मासूमियत और घबराहट के मिलेजुले भाव नजर आ रहे थे, जबकि उमेश और दिनेश उस को केवल हवस की नजर से देखे जा रहे थे.

तभी उमेश लड़खड़ाता हुआ उठा और उस ने दिनेश व संजय को बाहर जाने के लिए कहा. वे दोनों बाहर आ गए.

अब कमरे में केवल वह लड़की और उमेश थे. उमेश ने अंदर से कमरा बंद कर लिया. संजय को यह सब बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन उमेश और दिनेश ने इतनी ज्यादा शराब पी ली थी कि उन्हें होश ही न था कि वे क्या कर रहे हैं.

काफी देर हो गई, तो संजय ने दिनेश को कमरे में जा कर देखने को कहा.

दिनेश शराब के नशे में चूर था. लड़खड़ाता हुआ कमरे के दरवाजे पर पहुंच कर उसे खटखटाने लगा. काफी देर बाद लड़की ने दरवाजा खोला.

उस लड़की ने दिनेश से कहा कि उस का दोस्त सो गया है, उसे उठा लो. नशे की हालत में चूर दिनेश उस लड़की की बात सुनने के बजाय पकड़ कर उसे अंदर ले गया और दरवाजा बंद कर लिया.

संजय दूर बरामदे में बैठा यह सब देख रहा था. दिनेश को भी कमरे में गए काफी देर हो गई, तो संजय ने दरवाजा खड़काया.

इस बार भी उसी लड़की ने दरवाजा खोला. वह अब परेशान दिख रही थी. उस ने संजय की तरफ देखा और कहा, ‘‘ बाबू, ये लोग कुछ कर भी नहीं कर रहे और मेरा पैसा भी नहीं दे रहे हैं.

मुझे पैसे की जरूरत है और जल्दी घर भी जाना है,’’ कहते हुए उस लड़की का गला बैठ सा गया.

संजय ने लड़की को अंदर चलने को कहा और थोड़ी देर में उसे उसी होटल के दूसरे कमरे में ले गया. उस ने जाते हुए देखा कि उमेश और दिनेश शराब में चूर बिस्तर पर पड़े थे.

संजय ने दूसरे कमरे में उस लड़की को बैठने को कहा. लड़की घबराते हुए बैठ गई. वह थोड़ा जल्दी में लग रही थी. संजय ने उसे पास रखा पानी पीने को दिया, जिसे वह एक सांस में ही पी गई.

पानी पीने के बाद वह लड़की खड़ी हुई और संजय से बोली, ‘‘बाबू, अब जो करना है जल्दी करो, मुझे पैसे ले कर जल्दी घर पहुंचना है.’’

संजय को उस की मासूम बातों पर हंसी आ रही थी. उस ने उसे पैसे दे दिए तो उस ने पैसे रख लिए और संजय को पकड़ कर बिस्तर पर ले गई और अपने कपड़े उतारने लगी.

संजय ने उस का हाथ पकड़ा और कपड़े खोलने को मना किया. लड़की बोली, ‘‘नहीं बाबू, कस्तूरी ऐसी लड़की नहीं है, जो बिना काम के किसी से भी पैसे ले ले. मैं गरीब जरूर हूं, लेकिन भीख नहीं लूंगी.’’

संजय अब बोल नहीं पा रहा था. तभी कस्तूरी ने संजय का हाथ पकड़ा और उसे बिस्तर पर ले गई, यह सब इतना जल्दी में हुआ कि संजय कुछ कर नहीं पाया.

कस्तूरी ने जल्दी से अपने कपड़े उतारे और संजय के भी कपड़े उतारने लगी. अब कस्तूरी संजय के इतने नजदीक थी कि उस के मासूम चेहरे को वह बड़े प्यार से देख रहा था. वह कस्तूरी की किसी बात का विरोध नहीं कर पा रहा था. उस के मासूम हावभाव व चेहरे से संजय की नजर हटती, तब तक कस्तूरी वह सब कर चुकी थी, जो पतिपत्नी करते हैं.

कस्तूरी ने जल्दी से कपड़े पहने और होटल के कमरे से बाहर निकल गई. संजय अभी भी कस्तूरी के खयालों में खोया हुआ था.

समय बीतता गया, लेकिन संजय के दिमाग से कस्तूरी निकल नहीं पा रही थी.

एक दिन संजय बाजार में सामान खरीद रहा था. उस ने देखा कि कस्तूरी भी उस के पास की ही एक दुकान से सामान खरीद रही थी.

संजय उस को देख कर खुश हुआ. उस ने कस्तूरी को आवाज दी तो कस्तूरी ने मुड़ कर देखा और फिर दुकानदार से सामान लेने में जुट गई.

संजय उस के पास पहुंचा. कस्तूरी ने संजय की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया. कस्तूरी ने सामान खरीदा और दुकान से बाहर निकल गई.

संजय उसे पीछे से आवाज देता रहा, लेकिन उस ने अनसुना कर दिया.

कुछ दिन बाद संजय को कस्तूरी फिर दिखाई दी. उस दिन संजय ने कस्तूरी का हाथ पकड़ा और उसे भीड़ से दूर खींच कर ले गया और उस से उस की पिछली बार की हरकत के बारे में पूछना चाहा, तो संजय के पैरों की जमीन खिसक गई. उस ने देखा, कस्तूरी का चेहरा पीला पड़ चुका था और वह बहुत कमजोर हो गई थी. उस ने अपनी फटी चुनरी से अपना पेट छिपा रखा था, जो कुछ बाहर दिख रहा था.

कस्तूरी वहां से जाने के लिए संजय से जोरआजमाइश कर रही थी. संजय ने किसी तरह उसे शांत किया और भीड़ से दूर एक चाय की दुकान पर बिठाया.

संजय ने गौर से कस्तूरी के चेहरे की तरफ देखा, तो उस का दिल बैठ गया. कस्तूरी सचमुच बहुत कमजोर थी. संजय ने कस्तूरी से उस की इस हालत के बारे में पूछा, तो पहले तो कुछ नहीं बोली, लेकिन संजय ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा तो वह रोने लगी.

संजय कुछ समझ नहीं पा रहा था. कस्तूरी ने अपने आंसू पोंछे और बोली, ‘‘बाबू, मेरी यह हालत उसी दिन से है, जिस दिन आप और आप के दोस्त मुझे होटल में मिले थे.’’

संजय ने उस की तरफ सवालिया नजरों से देखा, तो वह फिर बोली, ‘‘बाबू, मैं कोई धंधेवाली नहीं हूं. मैं उस गंदे नाले के पास वाली कच्ची झोंपड़पट्टी में रहती हूं. उस दिन पुलिस मेरे भाई को पकड़ कर ले गई थी, क्योंकि वह गली में चरसगांजा बेच रहा था. उसे जमानत पर छुड़ाना था और मेरे मांबाप के पास पैसा नहीं था. अब मुझे ही कुछ करना था.

‘‘मैं ने अपने पड़ोस में सब से पैसा मांगा, लेकिन किसी ने नहीं दिया. थकहार कर मैं बैठ गई तो मेरी एक मौसी बोली कि इस बेरहम जमाने में कोई मुफ्त में पैसा नहीं देता.

‘‘मौसी की यह बात मेरी समझ में आई और मैं आप और आप के दोस्तों तक पहुंच गई.’’

कस्तूरी चुप हुई, तो संजय ने अपने चेहरे के दर्द को छिपाते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारी यह हालत कैसे हुई?’’

कस्तूरी ने कहा, ‘‘बाबू, यह जान कर आप क्या करोगे? यह तो मेरी किस्मत है.’’

संजय ने फिर जोर दिया, तो कस्तूरी बोली, ‘‘बाबू, उस दिन आप के दिए गए पैसे से मैं अपने भाई को हवालात से छुड़ा लाई, तो भाई ने पूछा कि पैसे कहां से आए. मैं ने झूठ बोल दिया कि किसी से उधार लिए हैं.’’

थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह फिर बोली, ‘‘बाबू, सब ने पैसा देखा, लेकिन मैं ने जो जिस्म बेच कर एक जान को अपने शरीर में आने दिया, तो उसे सब नाजायज कहने लगे और जिस भाई को मैं ने बचाया था, वह मुझे धंधेवाली कहने लगा और मुझे मारने लगा. वह मुझे रोज ही मारता है.’’

यह सुन कर संजय के कलेजे का खून सूख गया. इस सब के लिए वह खुद को भी कुसूरवार मानने लगा. उस की आंखों में भी आंसू छलक आए थे.

कस्तूरी ने यह देखा तो वह बोली, ‘‘बाबू, इस में आप का कोई कुसूर नहीं है. अगर मैं उस रात आप को जिस्म नहीं बेचती तो किसी और को बेचती. लेकिन बाबू, उस दिन के बाद से मैं ने अपना जिस्म किसी को नहीं बेचा,’’ यह कहते हुए वह चुप हुई और कुछ सोच कर बोली, ‘‘बाबू, उस रात आप के अच्छे बरताव को देख कर मैं ने फैसला किया था कि मैं आप की इस प्यार की निशानी को दुनिया में लाऊंगी और उसी के सहारे जिंदगी गुजार दूंगी, क्योंकि हम जैसी गरीब लड़कियों को कहां कोई प्यार करने वाला जीवनसाथी मिलता है.’’

इतना कह कर कस्तूरी का गला भर आया. वह आगे बोली, ‘‘बाबू, यह आप की निशानी है और मैं इसे दुनिया में लाऊंगी, चाहे इस के लिए मुझे मरना ही क्यों न पड़े,’’ इतना कह कर वह तेजी से उठी और अपने घर की तरफ चल दी.

यह सुन कर संजय जैसे जम गया था. वह कह कर भी कुछ नहीं कह पाया. उस ने फैसला किया कि कल वह कस्तूरी के घर जा कर उस से शादी की बात करेगा.

वह रात संजय को लंबी लग रही थी. सुबह संजय जल्दी उठा और बदहवास सा कस्तूरी के घर की तरफ चल दिया. वह उस के महल्ले के पास पहुंचा तो एक जगह बहुत भीड़ जमा थी. वह किसी अनहोनी के डर को दिल में लिए भीड़ को चीर कर पहुंचा, तो उस ने जो देखा तो जैसे उस का दिल बाहर निकलने की कोशिश कर रहा हो.

कस्तूरी जमीन पर पड़ी थी. उस की आंखें खुली थीं और चेहरे पर वही मासूम मुसकराहट थी.

संजय ने जल्दी से पूछा कि क्या हुआ है तो किसी ने बताया कि कस्तूरी के भाई ने उसे चाकू से मार दिया है, क्योंकि सब कस्तूरी के पेट में पल रहे बच्चे की वजह से उसे बेइज्जत करते थे.

संजय पीछे हटने लगा, अब उसे लगने लगा था कि वह गिर जाएगा. तभी पुलिस का सायरन बजने लगा तो भीड़ छंटने लगी.

संजय पीछे हटते हुए कस्तूरी को देख रहा था. उस का एक हाथ अपने पेट पर था और शायद वह अपने प्यार को मरते हुए भी बचाना चाहती थी. उस के चेहरे पर मुसकराहट ऐसी थी, जैसे उन खुली आंखों से संजय को कहना चाहती हो, ‘बाबू, यह तुम्हारे प्यार की निशानी है, पर इस में तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है.’

संजय पीछे मुड़ा और अपने घर पहुंच कर रोने लगा. वह अपनेआप को माफ नहीं कर पा रहा था, क्योंकि अगर वह कल ही उस से शादी की बात कर लेता तो शायद कस्तूरी जिंदा होती.

बारिश होने लगी थी. बादल जोर से गरज रहे थे. वे भी कस्तूरी के प्यार के लिए रो रहे थे.

Best Hindi Story : मैं अहिल्या नहीं नंदिनी हूं

Best Hindi Story : ‘आखिर मेरा दोष क्या है जो मैं अपमान की पीड़ा से गुजर रही हूं? नातेरिश्तेदार, पासपड़ोस यहां तक कि मेरा पति भी मुझे दोषी समझ रहा है. कहता है वह मुझ से शादी कर के पछता रहा है और लोग कहते हैं मुझे अपनी मर्यादा में रहना चाहिए था. पासपड़ोस की औरतें मुझे देखते ही बोल पड़ती हैं कि मुझ जैसी चरित्रहीन औरत का तो मुंह भी देखना पाप है. जो मेरी पक्की सहेलियां थीं वे भी मुझे रिश्ता तोड़ चुकी हैं. लेकिन मेरा दोष क्या है? यही सवाल मैं बारबार पूछती हूं सब से. मैं तो अपनी मर्यादा में ही थी. क्यों समाज के लोगों ने मुझे ही धर्मकर्म के कामों से दूर कर दिया यह बोल कर कि हिंदू धर्म में ऐसी औरत का कोई स्थान नहीं?’ अपने ही खयालों में खोई नंदिनी को यह भी भान नहीं रहा कि पीछे से गाड़ी वाला हौर्न पर हौर्न बजाए जा रहा है.

‘‘ओ बहनजी, मरना है क्या’’ जब उस अजनबी ने यह कहा तो वह चौंक कर पलटी.

‘‘बहनजी? नहींनहीं मैं किसी की कोई बहनवहन नहीं हूं,’’ बोल कर नंदिनी सरपट भागी और वह इंसान उसे देखता रह गया, फिर अपने कंधे उचका कर यह बोल कर आगे बढ़ गया कि लगता है कोई पागल औरत है.

घर आ कर नंदिनी दीवार की ओट से लग कर बैठ गई. जरा सुस्ताने के बाद उस ने घर को बड़े गौर से निहारा. सबकुछ तो वैसे ही था. सोफा, पलंग, टेबलकुरसी, अलमारी, सब अपनीअपनी जगह व्यवस्थित रखे हुए.

मगर नंदिनी की ही जिंदगी क्यों इतनी अव्यवस्थित हो गई? क्यों उसे आज अपना ही घर पराया सा लगने लगा था? जो पति अकसर यह कहा करता था कि वह उस से बहुत प्यार करता है वही आज क्यों उस का चेहरा भी नहीं देखना चाहता?

जिन मातापिता की वह संस्कारी बेटी थी, क्यों उन्होंने भी उस का बहिष्कार कर

दिया? ये सारे सवाल नंदिनी के दिल को मथे जा रहे थे. आखिर किस से कहे वह अपने दिल का दर्द और कहां जाए? मन कर रहा था उस का कि जोरजोर से चीखेचिल्लाए और कहे दुनिया वालों से कि उस की कोई गलती नहीं है. अरे, उस ने तो इस इंसान को अपना भाई समझा था. लेकिन उस के मन में नंदिनी के लिए खोट था वह उसे कहां पता था.

‘‘दीदी’’, हिचकते हुए नंदिनी ने अपनी बड़ी बहन को फोन लगाया, ‘‘क्या आप भी मुझे ही गलत समझ रही हैं? आप को भी यही लगता है कि मैं ही उस इंसान पर गलत नजर रखती थी? नहीं दीदी ऐसी बात नहीं, बल्कि झूठा वह इंसान है, पर यह बात मैं कैसे समझाऊं सब को? मन तो कर रहा है कि मैं कहीं भाग जाऊं या फिर मर जाऊं ताकि इस जिंदगी से छुटकारा मिले,’’ कह कर नंदिनी सिसक पड़ी.

‘‘मरने या कहीं भाग जाने से क्या होगा नंदिनी? लोग तो तब भी वही कहेंगे न और मैं गुस्सा तुम से इस बात पर नहीं हूं कि तुम गलत हो. भरोसा है मुझे तुम पर, लेकिन गुस्सा मुझे इस बात पर आ रहा है कि क्यों तुम ने उस इंसान को माफ कर दिया? क्यों नहीं उस के खिलाफ थाने में रिपोर्ट लिखाई, जिस ने तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ा? तुम ने उसे अपना भाई माना था न? रिश्तों की आड़ में पहले तो उस ने तुम्हारी आबरू लूटी और फिर उसी रिश्ते की दुहाई दे कर बच निकला और तुम ने भी तरस खा कर उसे माफ कर दिया? क्यों, आखिर क्यों नंदिनी?’’

‘‘उस के बच्चों की सोच कर दीदी, उस की पत्नी मेरे कदमों में गिर गिड़गिड़ाने लगी, बोली कि अगर उस का पति जेल चला जाएगा, तो वह मर जाएगी और फिर उस के बच्चे सड़क पर भीख मांगेंगे. दया आ गई मुझे उस के बच्चों पर दीदी और कुछ नहीं, सोचा उस के कर्मों की सजा उस के भोेलेभाले बच्चों को क्यों मिले.’’

‘‘अच्छा, और तुम्हारे बच्चे का क्या, जो तुम से दूर चला गया? चलो मान भी गए कि तुम ने उस के बच्चों का सोच कर कुछ नहीं कहा और न ही पुलिस में रपट लिखाई, लेकिन उस ने क्या किया तुम्हारे साथ? तुम्हें बदनाम कर खुद साफ बच निकला. पता भी है तुम्हें कि लोग तुम्हें ले कर क्याक्या बातें बना रहे हैं? कौन पिताभाई या पति यह बात सहन कर पाएगा भला? तुम्हारी सहेली रमा, सब से कहती फिर रही है कि भाईभाई कह कर तुम ने उस के पति को फंसाने की कोशिश की. मेरी तो समझ में नहीं आ रहा है कि तुम क्यों कर रही हो ये सब?’’

‘‘तुम कोई अहिल्या नहीं, जो दोषी न होते हुए भी पत्थर की शिला बन जाओ और कलंकिनी कहलाओ और इंतजार करो किसी राम के आने का जो तुम्हें तार सके. तुम आज की नारी हो नंदिनी आज की. भूल गई उस लड़के को, जो कालेज की हर लड़की को परेशान करता था और जब एक दिन उस ने मुझ पर हाथ डालने की कोशिश की, तो कैसे तुम उसे घसीटते हुए प्रिंसिपल के पास ले गई थी.

प्रिंसिपल को उस लड़के को कालेज से निकालना पड़ा था. जब उस लड़के के घमंडी पैसे वाले बाप ने तुम्हें धमकाने की कोशिश की, तब भी तुम नहीं डरी और न ही अपने शब्द वापस लिए थे. तो फिर आज कैसे तुम चुप रह गई नंदिनी? छल और बलपूर्वक जिस रावण ने तुम्हें छला उस का ध्वंस तुम्हें ही करना होगा. लोगों का क्या है. वे तो जो सुनेंगे वही दोहराएंगे. लेकिन तुम्हें यह साबित करना होगा कि तुम सही हो गलत वह इंसान है.’’

अपनी बहन की कही 1-1 बात नंदिनी को सही लग रही थी. पर वह साबित कैसे करे कि वह सही है? कोसने लगी वह उस दिन को जब पहली बार वह रूपेश और रमा से मिली थी.

विकास और रूपेश दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे और इसी वजह से नंदिनी और रमा भी अच्छी सहेलियां बन चुकी थीं. रूपेश नंदिनी को भाभी कह कर बुलाता था और नंदिनी उसे रूपेश भैया कह कर संबोधित करती थी. कहीं न कहीं रूपेश में उसे अपने भाई का अक्स दिखाई देता जो अब इस दुनिया में नही रहा.

जब भी रूपेश नंदिनी के घर आता वह उस के लिए वही सब करती, जो कभी अपने भाई के लिए किया करती थी. लेकिन रमा को ये सब अच्छा नहीं लगता. उसे लगता कि वह जानबूझ कर रूपेश के सामने अच्छा बनने की कोशिश करती है, दिखाती है कि वह उस से बेहतर है. कह भी देता कभी रूपेश कि सीखो कुछ नंदिनी भाभी से. चिढ़ उठती वह उस की बातों से, पर कुछ बोलती नहीं.

नंदिनी की सुंदरता, उस के गुण और जवानी को देख रमा जल उठती क्योंकि वह बेडौल औरत थी. इतनी थुलथुल कि जब चलती, तो उस का पूरा शरीर हिलता. कितना चाहा उस ने कि नंदिनी की तरह बन जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. वह जानती थी कि नंदिनी उस से हर मामले में 20 है और इसी बात से वह उस से जलती थी पर दिखाती नहीं थी.

दोनों के घर पासपास होने के कारण अकसर वे एकदूसरे के घर आतेजाते रहते थे. नंदिनी के हाथों का बनाया खाना खा कर रूपेश बोले बिना नहीं रह पाता कि उस के हाथों में तो जादू है. कहता अगर रमा को भी वह कुछ बनाना सिखा दे, तो उस पर कृपा होगी, क्योंकि रोजरोज एक ही तरह का खाना खाखा कर वह ऊब जाता है. उस की बातों पर नंदिनी और विकास हंस पड़ते. लेकिन रमा चिढ़ उठती और कहती कि अब वह उस के लिए कभी खाना नहीं बनाएगी.

दोनों परिवारों के बीच इतनी मित्रता हो गई थी कि अकसर वे साथ घूमने निकल जाते. छुट्टी वाले दिन भी साथ फिल्म देखने जाते या फिर लौंग ड्राइव पर. कभी रमा अपने मायके जाती तो नंदिनी रूपेश के खानेपीने का ध्यान रखती और जब कभी नंदिनी कहीं चली जाती तो रमा विकास के खानेपीने का ध्यान रखती थी.

उस रोज भी यही हुआ था. रमा अपने भाई की शादी में गई थी, इसलिए रूपेश के खानेपीने की जिम्मेदारी नंदिनी पर ही थी. विकास भी औफिस के काम से शहर से बाहर गया था. कामवाली भी उस दिन नहीं आई थी. नंदिनी खाना पकाने के साथसाथ कपड़े भी धो रही थी. इसी बीच रूपेश आ गया, ‘‘भाभी,’’ उस ने हमेशा की तरह बाहर से ही आवाज लगाई.

‘‘अरे, भैया आ जाओ दरवाजा खुला ही है,’’ कह कर वह अपना काम करती रही.

रूपेश हमेशा की तरह सोफे पर बैठ गया और फिर टेबल पर पड़ा अखबार उठा कर पढ़ने लगा. तभी उस की नजर नंदिनी पर पड़ी, तो वह भौचक्का रह गया. भीगी सफेद साड़ी में नंदिनी का पूरा बदन साफ दिखाई दे रहा था और जब वह कपड़े सुखाने डालने के लिए अपने हाथ ऊपर उठाती तो उस का सुडौल वक्षस्थल का उभार और अधिक उभर आता. रूपेश अपलक देखे जा रहा था. उस के उरोज की सुडौलता देख कर उस का मन बेचैन हो उठा और उस ने अपनी नजर फेर ली, पर फिर बारबार उस की नजर वहीं जा कर टिक जाती.

‘‘भैया, चाय बनाऊं क्या?’’ कह कर नंदिनी ने जब अपनी साड़ी का पल्लू कमर में खोसा तो उस का गोरागोरा पूरा पेट दिखने लगा.

नंदिनी के मादक संगमरमरी जिस्म को देख रूपेश का पूरा शरीर थरथराने लगा.

उस की आंखें चौंधिया गईं और उत्तेजना की लहर पूरे जिस्म में फैल गई. आज से पहले नंदिनी को उस ने इस प्रकार कभी नहीं देखा था. नंदिनी को इस अवस्था में देख उस का अंगअंग फड़कने लगा और बेचैन रूपेश ने क्षण भर में ही एक फैसला ले लिया. नंदिनी कुछ समझ पाती उस

से पहले ही उस ने उसे अपनी बांहों में भींच लिया और फिर अपने जलते होंठ उस के अधरों पर रख दिए और जोरजोर से उस के होंठों को चूसने लगा.

नंदिनी कुछ बोल नहीं पा रही थी. अवाक सी आंखें फाड़े उसे एकटक देखे जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि जिसे वह भाईर् मानती आई है आज वह उस के साथ क्या करने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि रूपेश की सरलता और सहजता देख कभी उसे ऐसा नहीं लगा था कि उस के अंदर इतना यौन आक्रमण भरा हुआ है.

रूपेश का यह रूप देख नंदिनी सिहर उठी. भरसक अपनेआप को उस से छुड़ाने का प्रयास करने लगी, पर सब बेकार था. वह अभी भी नंदिनी के होठों को चूसे जा रहा था. उस का एक हाथ नंदिनी के स्तनों पर गया. जैसे ही उस ने नंदिनी के स्तन को जोर से दबाया वह चीख के साथ बेहोश हो गई और फिर जब होश आया तब तक अनहोनी हो चुकी थी.

अपनी करनी पर माफी मांग रूपेश तो वहां से भाग निकला, लेकिन वह रात नंदिनी के लिए अमावस्या की काली रात बन गई. कैसे उस ने पूरी रात खुद में सिमट कर बिताई, वही जानती. मुंह से कोई शब्द नहीं निकल पा रहा था. बस आंखों के रास्ते आंसुओं का दरिया बहे जा रहा था. समझ में नहीं आ रहा था कि किस से कहे और कैसे? जब विकास को इस बात का पता चला तो सहानभूति दिखाने के बजाय वह उसे ही भलाबुरा कहने लगा कि जरूर दोनों का पहले से ही नाजायज रिश्ता रहा होगा और अब जब उसे पता चल गया तो वह रोनेधोने का नाटक कर रही है.

विकास और नंदिनी के घर वाले रूपेश के

खिलाफ पुलिस में बलात्कार का केस दर्ज कराने घर से निकल ही रहे थे कि तभी ऐन वक्त पर वहां रमा पहुंच गई और नंदिनी के पैरों में गिर कर गिड़गिड़ाते हुए अपने पति के जीवन की भीख मांगने लगी, अपने छोटेछोटे बच्चों की दुहाई देने

लगी. रूपेश भी नंदिनी के पैरों में लोट गया. कहने लगा कि चाहे नंदिनी उसे जो भी सजा दे दे, पर पुलिस में न जाए. वरना वह मर जाएगा. अपनी बेइज्जती बरदाश्त नहीं

कर पाएगा.

दोनों पतिपत्नी की दशा देख नंदिनी का दिल पसीज गया. कहने लगी कि उस के साथ जो होना था सो तो हो गया, अब क्यों इतनी जिंदगियां बरबाद हों? यह सुन कर तो सब का पारा गरम हो गया. विकास तो कहने लगा कि जरूर नंदिनी और रूपेश का नाजायज रिश्ता है और इसीलिए उस ने अपना फैसला बदल दिया.

नंदिनी के मांपापा भी गुस्से से यह बोल कर निकल गए कि अब नंदिनी से उन का कोई वास्ता नहीं है, सोच लेंगे कि उन की 1 ही बेटी है. कितना समझया नंदिनी ने सब को कि ऐसी कोई बात नहीं है और इस से क्या हो जाएगा, उलटे उस की भी बदनामी होगी सब जगह, पर किसी ने उस की बात नहीं सुनी और उसे ही दोषी मान कर वहां से चले गए.

मगर नंदिनी गलत थी, क्योंकि कुछ महीने बाद ही रमा और रूपेश ने यह बात फैलानी शुरू कर दी कि नंदिनी अच्छी औरत नहीं है. दूसरे मर्दों को फंसा कर अपनी हवस पूरी करना उस की आदत है. रूपेश को भी उस ने अपने जाल में फंसा रखा था और मौका मिलते ही उसे अपनी हवस का शिकार बना डाला और फिर रोनेधोने का नाटक करने लगी.

यह सुन कर पासपड़ोस की औरतों ने अपनेअपने मुंह पर हाथ रख लिया और ‘हायहाय’ करने लगीं. जो महल्ले की औरतें नंदिनी से रोज बातें करती थीं, अब उसे देख कर मुंह फेरने लगीं और तरहतरह की बातें बनाने लगीं. रूपेश को ले कर विकास ने भी उस पर गंदेगंदे इलजाम लगाए, कहा कि अगर वह सही थी तो क्यों नहीं उस के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज करवाया?

दुनिया की तो वह सुन ही रही थी पर जब उस का पति भी इस तरह उस पर इलजाम लगाने लगा, तो वह टूट गई. विकास की बातों ने उस का कलेजा छलनी कर दिया, ‘‘पहले तो मुझे शंका थी, पर अब वह यकीन में बदल गई. तुम जितनी सतीसावित्री दिखती हो उतनी हो नहीं. मेरी पीठ पीछे मेरे ही दोस्त के साथ… छि: और नाम क्या दे दिया इस रिश्ते को, भाईबहन का रिश्ता ताकि लोगों

को लगे कि यह तो बड़ा ही पवित्र रिश्ता है. है न? धूल झोंक रह थी मेरे आंखों में?

‘‘अरे, जो लोग मुझे टोकने तक की हिम्मत नहीं करते थे, आज वही लोग मेरी आंखों में आंखें मिला कर बात करने की जुर्रत करते हैं सिर्फ तुम्हारी वजह से. नहीं रहना अब मुझे इस घर में,’’ कह कर विकास घर से निकल गया और साथ में बच्चों को भी यह कह कर ले गया कि उस के साथ रह कर उन के भी संस्कार खराब हो जाएंगे. आज नंदिनी के साथ कोई नहीं था सिवा बदनामी के.

बड़ी हिम्मत कर एक रोज उस ने अपने मांबाप को फोन लगाया, पर उन्होंने फोन नहीं उठाया. जब विकास को फोन लगाया तो पहले तो उस ने फोन काटना चाहा, लेकिन फिर कहने लगा, ‘‘क्या यही सफाई देना चाहती हो कि तुम सही हो और लोग जो बोल रहे हैं वह गलत? तो साबित करो न, करो न साबित कि तुम सही हो और वह इंसान गलत. साबित करो कि छल से उस ने तुम्हारी इज्जत पर हाथ डाला.

‘‘माफ कर दूंगा मैं तुम्हें, लेकिन तुम ऐसा नहीं करोगी नंदिनी, पता है मुझे. इसलिए आज के बाद तुम मुझे कभी फोन मत करना,’’ कह कर विकास ने फोन पटक दिया. नंदिनी कुछ देर तक अवाक सी खड़ी रह गईर्.

‘सही तो कह रहे हैं विकास और मैं कौन सा रिश्ता निशा रही हूं और किस के साथ? जब उस ने ही रिश्ते की लाज नहीं रखी तो फिर मैं क्यों दुनिया के सामने जलील हुई जा रही हूं?’ परिवार से रुसवाई, समाज में जगहंसाई और

पति से विरह के अलावा मिला ही क्या मुझे? आज भी अपने पति के प्रति मेरी पूरी निष्ठा है. लेकिन छलपूर्वक मेरी निष्ठा को भ्रष्ट कर दिया उस दरिंदे ने. मेरा तनमन छलनी कर दिया उस ने, तो फिर क्यों मैं उस हैवान को बचाने की सोच रही हूं?

सही कहा था दीदी ने मैं कोई अहिल्या नहीं जो बिना दोष के ही शिला बन कर सदियों तक दुख भोगूं और इंतजार करूं किसी राम के आने का. मैं नंदिनी हूं नंदिनी जो गलत के खिलाफ हमेशा आवाज उठाती आई है, तो फिर आज जब मुझ पर आन पड़ी तो कैसे चुप रह गई मैं? नहीं, मैं चुप नहीं रहूंगी. बताऊंगी सब को कि उस दरिंदे ने कैसे मेरे तनमन को छलनी किया. कोमल हूं कमजोर नहीं, मन ही मन सोच कर नंदिनी ने अपनी दीदी को फोन लगाया.

नंदिनी के जीजाजी के एक दोस्त का भाई वकील था, पहले दोनों बहनें उन के पास गईं और फिर सारी बात बताई. सारी बात जानने के बाद वकील साहब कहने लगे, अगर यह फैसला रेप के तुरंत बाद लिया गया होता, तो नंदिनी का केस मजबूत होता, लेकिन सुबूतों के अभाव की वजह से अब यह केस बहुत वीक हो गया है, मुश्किल है केस जीत पाना. शायद पुलिस भी अब एफआईआर न लिखे.’’

‘‘पर वकील साहब, कोई तो रास्ता होगा न? ऐसे कैसे कुछ नहीं हो सकता? नंदिनी की दीदी बोली.

‘‘हो सकता है, अगर गुनहगार खुद ही अपना गुनाह कबूल कर ले तो,’’ वकील ने कहा.

‘‘पर वह ऐसा क्यों करेगा?’’ वकील की बातों से नंदिनी सकते में आ गई, क्योंकि उस के सामने एक बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई थी. लेकिन उसे उस इंसान को सजा दिलवानी ही है, पर कैसे यह सोचसोच कर वह परेशान हो उठी.

घर आ कर भी नंदिनी चिंता में डूबी रही. बारबार वकील की कही यह बात कि सुबूत न होने की वजह से उस का केस बहुत वीक है उस का दिमाग झझकोर देती. वह न चैन से सो पा

रही थी और न ही बैठ. परेशान थी कि कैसे वह रूपेश के खिलाफ सुबूत जुटाए और कैसे उसे जल्द से जल्द सजा दिलवाए. पर कैसे? यही बात उसे समझ में नहीं आ रही थी. तभी अचानक उस के दिमाग में एक बात कौंधी और तुरंत उस ने अपनी दीदी को फोन लगा कर सारा मामला समझा दिया.

‘‘पर नंदिनी, यह काम इतना आसान नहीं है बहन,’’ चिंतातुर उस की दीदी ने कहा. उसे लगा कि कहीं नंदिनी किसी मुसीबत में न फंस जाए.

‘‘जानती हूं दीदी, पर मुश्किल भी नहीं, मुझे हर हाल में उसे सजा दिलवानी है, तो यह रिस्क उठाना ही पड़ेगा अब. कैसे छोड़ दूं उस इंसान को मैं दीदी, जिस ने मेरी इज्जत और आत्मसम्मान को क्षतविक्षत कर दिया. उस के कारण ही मेरा पति, बच्चा मुझ से दूर हो गए,’’ कह वह उठ खड़ी हुई.

‘‘आप यहां?’’ अचानक नंदिनी को अपने सामने देख रूपेश चौंका.

‘‘घबराइए नहीं भा… सौरी, अब तो मैं आप को भैया नहीं बुला सकती न. वैसे हम कहीं बैठ कर बातें करें?’’ कह कर नंदिनी उसे पास की ही एक कौफी शौप में ले गई. वहां उस का हाथ पकड़ कर कहने लगी, ‘‘रूपेश, आप उस बात को ले किर गिल्टी फील मत कीजिए और सच तो यह है कि मैं भी आप को चाहने लगी थी. सच कहती हूं, जलन होती थी मुझे उस मोटी रमा से जब वह आप के करीब होती.

‘‘भैया तो मैं आप को इसलिए बुलाती थी ताकि विकास और रमा बेफिक्र रहें, उन्हें शंका न हो हमारे रिश्ते पर. जानते हैं जानबूझ कर मैं ने उस रोज अपनी बाई को छुट्टी दे दी थी. लगा विकास भी बाहर गए हुए हैं तो इस से अच्छा मौका और क्या हो सकता है.’’

‘‘जैसा प्लान बना रखा था मैं ने ठीक वैसा ही किया. पारदर्शी साड़ी पहनी.

दरवाजा पहले से खुला रखना भी मेरे प्लान में शामिल था रूपेश. अगर आप न हरकत करते उस दिन तो मैं ही आप के आगोश में आ जाती. खैर, बातें तो बहुत हो गईर्ं, पर अब क्या सोचा है?’’ उस की आंखों में झांकते हुए नंदिनी बोली, ‘‘कभी विकास और रमा को हमारे रिश्ते के बारे में पता न चले यह ध्यान मैं ने हमेशा रखा,’’ कह कर रूपेश को चूम लिया और जता दिया कि वह उस से क्या चाहती है.

पहले तो रूपेश को थोड़ा अजीब लगा, लेकिन फिर नंदिनी की साफसाफ बातों से उसे पता चल गया कि वह भी उसी राह की राही है जिस का वह.

फिर तय हुआ कल दोनों एक होटल में मिलेंगे, जो शहर से दूर है.

‘‘क्या बहाना बनाया आप ने रमा से?’’ रूपेश की बांहों में समाते हुए नंदिनी ने पूछा.

‘‘यही कि औफिस के काम से दूसरे शहर जा रहा हूं और तुम ने क्या बहाना बनाया?’’

‘‘मैं क्या बहाना बनाऊंगी, विकास मेरे साथ रहते ही नहीं अब,’’ अदा से नंदिनी ने कहा, ‘‘कब का छोड़ कर चला गया वह मुझे. अच्छा ही हुआ. वैसे भी वह मुझे जरा भी पसंद नहीं था,’’ कह कर नंदिनी ने रुपेश को चूम लिया.

पक्षी को जाल में फंसाने के लिए दाना तो डालना ही पड़ता है न, सो नंदिनी वही कर रही थी. पैग नंदिनी ने ही बनाया और अब तक 3-4 पैग हो चुके थे. नशा भी चढ़ने लगा था धीरेधीरे.

‘‘अच्छा रूपेश, सचसच बताना, क्या तुम भी मुझे पसंद करते थे?’’ बात पहले उस ने ही छेड़ी.

‘‘सच कहूं नंदिनी,’’ नशे में वह सब सहीसही बकने लगा, ‘‘जब तुम्हें पहली बार देखा था न तभी मुझे कुछकुछ होने लगा था. लगा था कि विकास कितना खुशहाल है जो तुम जैसी सुंदर पत्नी मिली और मुझे मोटी थुलथुल… जलन होती थी मुझे विकास से. जब भी मैं तुम्हें देखता था मेरी लार टपकने लगती थी. लगता कैसे मैं तुम्हें अपनी बांहों में भर लूं और फिर गोद में उठा कर कमरे में ले जाऊं और फिर… लेकिन जब तुम मुझे भैया कह कर बुलाती थी न, तो मेरा सारा जोश ठंडा पड़ जाता. ‘‘मौका ढूंढ़ता था तुम्हारे करीब आने का और उस दिन मुझे वह मौका मिल ही गया.

‘‘तुम्हारे गोरेगोरे बदन को देख उस दिन मैं पागल हो गया. लगा अगर तभी तुम्हें न पा लूं तो फिर कभी ऐसा मौका नहीं मिलेगा. सच में मजा आ गया था उस दिन तो,’’ एक बड़ा घूंट भरते हुए वह बोला, ‘‘जो मजा तुम में है न नंदिनी वैसा कभी रमा के साथ महसूस नहीं किया मैं ने. वैसे तुम चुप क्यों हो गई नंदिनी, बोलो कुछ…’’

जैसे ही उस ने ये शब्द कहे, कमरे की लाइट औन हो गई. सामने पुलिस को देख रूपेश की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. फिर जब नंदिनी के व्यंग्य से मुसकराते चेहरे को देखा, तो समझ गया कि ये सब उसे फंसाने की साजिश थी अब वह पूरी तरह इन के चंगुल में फंस चुका है.

फिर भी सफाई देने से बाज नहीं आया, कहने लगा, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, म… म… मेरा कोई दोष नहीं है… इस ने मुझे यहां बुलाया था तो मैं आ गया.’’

‘‘हां, मैं ने ही तुम्हें यहां बुलाया था पर क्यों वह भी सुन लो’’, कह कर नंदिनी ने अपना सारा प्लान उसे बता दिया.

एक न चली रूपेश की, क्योंकि सारी सचाई अब पुलिस के सामने थी, सुबूत के साथ, जो नंदिनी ने अपने फोन में रिकौर्ड कर लिया था. पुलिस के डर से रूपेश ने अपना सारा गुनाह कबूल कर लिया. नंदिनी से जबरन बलात्कार और उसे बदनाम करने के जुर्म में कोर्ट ने रूपेश को 10 साल की सजा सुनाई.

गलत न होने के बाद भी नंदिनी को दुनिया के सामने जलील होना पड़ा, अपने पति बच्चों से दूर रहना पड़ा. सोच भी नहीं सकती थी वह कि जिस इंसान को उस ने दिल से भाई माना, वह उस के लिए इतनी गंदी सोच रखता था. रूपेश की सजा पर जहां नंदिनी ने सुकून की सांस ली वहीं विकास और उस के मायके वाले बहुत खुश थे.

अगर नंदिनी ने यह कदम न उठाया होता आज तो वह दरिंदा फिर किसी और नंदिनी को अपनी हवस का शिकार बना देता और फिर उसे ही दुनिया के सामने बदनाम कर खुद बच निकलता. रूपेश को उस के कर्मों की सजा मिल चुकी थी और नंदिनी को सुकून.

Love Story : तेरी देहरी – अनुभव पर क्यों डोरे डाल रही थी अनुभा

Love Story : क्लासरूम से बाहर निकलते ही अनुभा ने अनुभव से कहा, ‘‘अरे अनुभव, कैमिस्ट्री मेरी समझ में नहीं आ रही है. क्या तुम मेरे कमरे पर आ कर मुझे समझा सकते हो?’’

‘‘हां, लेकिन छुट्टी के दिन ही आ पाऊंगा.’’

‘‘ठीक है. तुम मेरा मोबाइल नंबर ले लो और अपना नंबर दे दो. मैं इस रविवार को तुम्हारा इंतजार करूंगी. मेरा कमरा नीलम टौकीज के पास ही है. वहां पहुंच कर मुझे फोन कर देना. मैं तुम्हें ले लूंगी.’’

रविवार को अनुभव अनुभा के घर में पहुंचा. अनुभा ने बताया कि उस के साथ एक लड़की और रहती है. वह कंप्यूटर का कोर्स कर रही है. अभी वह अपने गांव गई है.

अनुभव ने अनुभा से कहा कि वह कैमिस्ट्री की किताब निकाले और जो समझ में न आया है वह

पूछ ले. अनुभा ने किताब निकाली और बहुत देर तक दोनों सूत्र हल करते रहे.

अचानक अनुभा उठी और बोली, ‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

अनुभव मना करना चाह रहा था लेकिन तब तक वह किचन में पहुंच गई थी. थोड़ी देर में वह एक बडे़ से मग में चाय ले कर आ गई. अनुभव ने मग लेने के लिए हाथ बढ़ाया, तभी मग की चाय उस की शर्टपैंट पर गिर गई.

‘‘सौरी अनुभव, गलती मेरी थी. मैं दूसरी चाय बना कर लाती हूं. तुम्हारी शर्टपैंट दोनों खराब हो गई हैं. ऐसा करो, कुछ देर के लिए तौलिया लपेट लो. मैं इन्हें धो कर लाती हूं. पंखे की हवा में जल्दी सूख जाएंगे. तब मैं प्रैस कर दूंगी.’’

अनुभव न… न… करता रहा, लेकिन अनुभा उस की ओर तौलिया उछाल कर भीतर चली गई.

अनुभव ने शर्टपैंट उतार कर तौलिया लपेट लिया. तब तक अनुभा दूसरे मग में चाय ले कर आ गई थी. वह शर्टपैंट ले कर धोने चली गई.

अनुभव ने चाय खत्म की ही थी कि अनुभा कपड़े फैला कर वापस आ गई. उस ने ढीलाढाला गाउन पहन रखा था. अनुभव ने सोचा शायद कपड़े धोने के लिए उस ने ड्रैस बदली हो.

अचानक अनुभा असहज महसूस करने लगी मानो गाउन के भीतर कोई कीड़ा घुस गया हो. अनुभा ने तुरंत अपना गाउन उतार फेंका और उसे उलटपलट कर देखने लगी.

अनुभव ने देखा कि अनुभा गाउन के भीतर ब्रा और पैंटी में थी. वह जोश और संकोच से भर उठा. एकाएक हाथ बढ़ा कर अनुभा ने उस का तौलिया खींच लिया.

अनुभव अंडरवियर में सामने खड़ा था. अनुभा उस से लिपट गई. अनुभव भी अपनेआप को संभाल नहीं सका. दोनों वासना के दलदल में रपट गए.

अगले रविवार को अनुभा ने फोन कर अनुभव को आने का न्योता दिया. अनुभव ने आने में आनाकानी की, पर अनुभा के यह कहने पर कि पिछले रविवार की कहानी वह सब को बता देगी, वह आने को तैयार हो गया.

अनुभव के आते ही अनुभा उसे पकड़ कर चूमने लगी और गाउन की चेन खींच कर तकरीबन बिना कपड़ों के बाहर आ गई. अनुभव भी जोश में था. पिछली बार की कहानी एक बार फिर दोहराई गई. जब ज्वार शांत हो गया, अनुभा उसे ले कर गोद में बैठ गई और उस के नाजुक अंगों से खेलने लगी.

अनुभा ने पहले से रखा हुआ दूध का गिलास उसे पीने को दिया. अनुभव ने एक ही घूंट में गिलास खाली कर दिया.

अभी वे बातें कर ही रहे थे कि भीतर के कमरे से उस की सहेली रमा निकल कर बाहर आ गई.

रमा को देख कर अनुभव चौंक उठा. अनुभा ने कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है. वह उस की सहेली है और उसी के साथ रहती है.

रमा दोनों के बीच आ कर बैठ गई. अचानक अनुभा उठ कर भीतर चली गई.

रमा ने अनुभव को बांहों में भींच लिया. न चाहते हुए भी अनुभव को रमा के साथ वही सब करना पड़ा. जब अनुभव घर जाने के लिए उठा तो बहुत कमजोरी महसूस कर रहा था. दोनों ने चुंबन ले कर उसे विदा किया.

इस के बाद से अनुभव उन से मिलने में कतराने लगा. उन के फोन आते ही वह काट देता.

एक दिन अनुभा ने स्कूल में उसे मोबाइल फोन पर उतारी वीडियो क्लिपिंग दिखाई और कहा कि अगर वह आने से इनकार करेगा तो वह इसे सब को दिखा देगी.

अनुभव डर गया और गाहेबगाहे उन के कमरे पर जाने लगा.

एक दिन अनुभव के दोस्त सुरेश ने उस से कहा कि वह थकाथका सा क्यों लगता है? इम्तिहान में भी उसे कम नंबर मिले थे.

अनुभव रोने लगा. उस ने सुरेश को सारी बात बता दी.

सुरेश के पिता पुलिस इंस्पैक्टर थे. सुरेश ने अनुभव को अपने पिता से मिलवाया. सारी बात सुनने के बाद वे बोले, ‘‘तुम्हारी उम्र कितनी है?’’

‘‘18 साल.’’

‘‘और उन की?’’

‘‘इसी के लगभग.’’

‘‘क्या तुम उन का मोबाइल फोन उठा कर ला सकते हो?’’

‘‘मुझे फिर वहां जाना होगा?’’

‘‘हां, एक बार.’’

अब की बार जब अनुभा का फोन आया तो अनुभव काफी नानुकर के बाद हूबहू उसी के जैसा मोबाइल ले कर उन के कमरे में पहुंचा.

2 घंटे समय बिताने के बाद जब वह लौटा तो उस के पास अनुभा का मोबाइल फोन था.

मोबाइल क्लिपिंग देख कर इंस्पैक्टर चकित रह गए. यह उन की जिंदगी में अजीब तरह का केस था. उन्होंने अनुभव से एक शिकायत लिखवा कर दोनों लड़कियों को थाने बुला लिया.

पूछताछ के दौरान लड़कियां बिफर गईं और उलटे पुलिस पर चरित्र हनन का इलजाम लगाने लगीं. उन्होंने कहा कि अनुभव सहपाठी के नाते आया जरूर था, पर उस के साथ ऐसीवैसी कोई गंदी हरकत नहीं की गई.

अब इंस्पैक्टर ने मोबाइल क्लिपिंग दिखाई. दोनों के सिर शर्म से झुक गए. इंस्पैक्टर ने कहा कि वे उन के मातापिता और प्रिंसिपल को उन की इस हरकत के बारे में बताएंगे.

लड़कियां इंस्पैक्टर के पैर पकड़ कर रोने लगीं. इंस्पैक्टर ने कहा कि इस जुर्म में उन्हें सजा हो सकती है. समाज में बदनामी होगी और स्कूल से निकाली जाएंगी सो अलग. उन के द्वारा बारबार माफी मांगने के बाद इंस्पैक्टर ने अनुभव की शिकायत पर लिखवा लिया कि वे आगे से ऐसी कोई हरकत नहीं करेंगी.

अनुभव ने वह स्कूल छोड़ कर दूसरे स्कूल में दाखिला ले लिया. साथ ही उस ने अपने मोबाइल की सिम बदल दी.

इस घटना को 7 साल गुजर गए.

अनुभव पढ़लिख कर कंप्यूटर इंजीनियर बन गया. इसी बीच उस के पिता नहीं रहे. मां की जिद थी कि वह शादी कर ले.

अनुभव ने मां से कहा कि वे अपनी पसंद की जिस लड़की को चुनेंगी, वह उसी से शादी कर लेगा.

अनुभव को अपनी कंपनी से बहुत कम छुट्टी मिलती थी. ऐन फेरों के दिन वह घर आ पाया. शादी खूब धूमधाम से हो गई.

सुहागरात के दिन अनुभव ने जैसे ही दुलहन का घूंघट उठाया, वह चौंक पड़ा. पलंग पर लाजवंती सी घुटनों में सिर दबाए अनुभा बैठी थी.

‘‘तुम…?’’ अनुभव ने चौंकते हुए कहा.

‘‘हां, मैं. अपनी गलती का प्रायश्चित्त करने के लिए अब जिंदगीभर के लिए फिर तुम्हारी देहरी पर मैं आ गई हूं. हो सके तो मुझे माफ कर देना,’’ इतना कह कर अनुभा ने अनुभव को गले लगा लिया.

VIDEO : पीकौक फेदर नेल आर्ट

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समीर को सीएटल आए 3 महीने हो गए थे. वह बहुत खुश था. डाक्टर मातापिता का छोटा बेटा. बचपन से ही कुशाग्र बुद्घि था. आईआईटी दिल्ली का टौपर था. मास्टर्स करते ही माइक्रोसौफ्ट में जौब मिल गई. स्कूल के दिनों से ही वह अमेरिकन सीरियल और फिल्में देखता, मशहूर सीरियल फ्रैंड्स उसे रट गया था. भारत से अधिक वह अमेरिका के विषय में जानता था. वह अपने सपनों के देश पहुंच गया.

सीएटल की सुंदरता देख कर वह मुग्ध हो गया. चारों ओर हरियाली ही हरियाली, नीला साफ आसमान, बड़ीबड़ी झीलें और समुद्र, सब कुछ इतना मनोरम कि बस देखते रहो. मन भरता ही नहीं.

समीर सप्ताह भर काम करता और वीकैंड में घूमने निकल जाता. कभी ग्रीन लेक पार्क, कभी लेक वाशिंगटन, कभी लेक, कभी माउंट बेकर, कभी कसकेडीएन रेंज, तो कभी स्नोक्वाल्मी फाल्स.

खाना खाने के ढेरों स्थान, दुनिया के सभी स्थानों का खाना यहां मिलता. वह नईनई जगह खाना खाने जाता. अब तक वह चीज फैक्ट्री, औलिव गार्डन, कबाब पैलेस, सिजलर्स एन स्पाइस कनिष्क, शालीमार ग्लोरी का खाना चख चुका था.

औफिस उस का रैडमंड में था सीएटल के पास. माइक्रोसौफ्ट में काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी यहां रहते हैं. मिक्स आबादी है- गोरे, अफ्रीकन, अमेरिकन और एशियाई देशों के लोग यहां रहते हैं. यहां भारतीय और पाकिस्तानी भी अच्छी संख्या में हैं. देशी खाने के कई रेस्तरां हैं. इसीलिए समीर ने यहां एक बैडरूम का अपार्टमैंट लिया.

औफिस में बहुत से भारतीय थे. अधिकतर दक्षिण भारत से थे. कुछ उत्तर भारतीय भी थे. सभी इंग्लिश में ही बात करते. हायहैलो हो जाती. देख कर सभी मुसकराते. यह यहां अच्छा था, जानपहचान हो न हो मुसकरा कर अभिवादन करा जाता.

समीर की ट्रेनिंग पूरी हो गई तो उसे प्रोजैक्ट मिला. 5 लोगों की टीम बनी. एक दक्षिण भारतीय, 2 गोरे और 1 लड़की एमन. समीर एमन से बहुत प्रभावित हुआ. बहुत सुंदर, लंबी, पतली, गोरी, भूरे बाल, नीली आंखें. पहनावा भी बहुत अच्छा फौर्मल औफिस ड्रैस. बातचीत में शालीन. अमेरिकन ऐक्सैंट में बातें करती और देखने में भी अमेरिकन लगती थी. मूलतया एमन कहां की थी, इस विषय में कभी बात नहीं हुई. उसे सब एमी कहते थे.

एमी काम में बहुत होशियार थी. सब के साथ फ्रैंडली. समीर भी बुद्घिमान, काम में बहुत अच्छा था. देखने में भी हैंडसम और मदद करने वाला. अत: टीम में सब की अच्छी दोस्ती हो गई.

एक दोपहर समीर ने एमी से साथ में लंच करने को कहा. वह मान गई. दोनों ने लंच साथ किया. समीर ने बर्गर और एमी ने सलाद लिया. वह हलका लंच करती थी.

समीर ने पूछा, ‘‘यहां अच्छा खाना कहां मिलता है?’’

‘‘आई लाइक कबाब पैलेस,’’ एमी ने जवाब दिया.

समीर को आश्चर्य हुआ कि अमेरिकन हो कर भी यह भारतीय देशी खाना पसंद करती है. समीर ने जब एमी से पूछा कि क्या तुम्हें इंडियन खाना पसंद है, तो उस ने बताया कि हां इंडियन और पाकिस्तानी एकजैसा ही होता है. फिर जब समीर ने पूछा कि क्या तुम अमेरिकन हो तो एमी ने बताया कि हां वह अमेरिकन है, मगर दादा पाकिस्तान से 1960 में अमेरिका आ गए थे.

समीर सोचता रहा कि एमी को देख कर उस के पहनावे से, बोलचाल से कोई नहीं कह सकता कि वह पाकिस्तानी मूल की है. दोनों एकदूसरे में काफी रुचि लेने लगे. अब तो वीकैंड भी साथ गुजरता. एमी ने समीर को सीएटल और आसपास की जगहें दिखाने का जिम्मा ले लिया था. पहाड़ों पर ट्रैकिंग करने जाते, माउंट रेनियर गए. सीएटल की स्पेस नीडल 184 मीटर ऊंचाई पर घूमते हुए स्काई सिटी रेस्तरां में खाना खाया. यहां से शहर देखना एक सपने जैसा लगा.

सीएटली ग्रेट व्हील में वह डरतेडरते बैठा. 53 मीटर की ऊंचाई, परंतु एमी को डर नहीं लगा. भारत में वह मेले में जब भी बैठता था तो बहुत डरता था. यहां आरपार दिखने वाले कैबिन में बैठ कर मध्यम गति से चलने वाला झूला आनंद देता है डराता नहीं.

फेरी से समुद्र से व्हिदबी टापू पर जाना, वहां का इतालियन खाना खाना उसे बहुत रोमांचित करता था. भारत में भी समुद्रतट पर पर जाता था पर पानी एवं वातावरण इतना साफ नहीं होता था. पहाड़ी रास्ते 4 लेन चौड़े, 5 हजार फुट की ऊंचाई पर जाना पता भी नहीं चलता. अपने यहां तो पहाड़ी रास्ते इतने संकरे कि 2 गाडि़यों का एकसाथ निकलना मुश्किल.

साथसाथ घूमतेफिरते दोनों एक दूसरे के बारे में काफी जान गए थे. जैसे एमी के दादा का परिवार 1947 में लखनऊ, भारत से कराची चला गया था. दादी भी लखनऊ से विवाह कर के आई थीं. उन के रिश्तेदार अभी भी लखनऊ में हैं. 1960 में अमेरिका में न्यूयौर्क आए थे. उस के पिता और ताया दोनों छोटेछोटे थे, जब वे अमेरिका आए.

दादादादी ने अपनी संस्कृति के अनुसार बच्चों को पाला था. यहां का खुला माहौल उन्हें बिगाड़ न दे, इस का पूरा खयाल रखा था. ताया पर अधिक सख्ती की गई. वे मुल्ला बन गए. अभी भी न्यूयौर्क में ही रहते हैं और उन का एक बेटा है, जो एबीसीडी है अर्थात अमेरिकन बोर्न कन्फ्यूज्ड देशी.

ताया को अधिक धार्मिक होते देख दादा ने एमी के पिता पर अधिक अनुशासन नहीं लगाया और वे इकोनौमिक्स के प्रोफैसर बन गए. एमी की मां नैंसी अमेरिकन थीं और पिता की सहपाठी. वे अब नरगिस हैं. उन्होंने इसलाम कुबूल कर लिया और दादादादी की देखरेख में नमाजी और उर्दू बोलने वाली बहू बन गईं. दादा तो अब नहीं रहे, दादी साथ रहती थीं, हिंदी फिल्मों की दीवानी. एक सुखी परिवार है.

एमी की परवरिश में देशी और अमेरिकी संस्कृति का समावेश था. अत: वह सभ्य, अनुशासित, समय की पाबंद थी. सुंदर थी, साथ ही अपनी सुंदरता को संवार कर और संभाल कर रखने वाली भी थी. अमेरिकियों की तरह सुबह जल्दी उठना, व्यायाम करना, रात में जल्दी सोना और वीकैंड पर घूमना उस की दिनचर्या में शामिल था. उस के घर में उर्दू भाषा ही बोली जाती. वह उर्दू जानती थी पर बोलती इंग्लिश में थी. एमी के विषय में जान कर समीर को अच्छा लगा. समीर को एमी से प्यार हो गया. वह हर कीमत पर उसे पाना चाहता था. परंतु पाकिस्तानी मूल का होना… कैसे बात बनेगी?

दोनों 6 महीनों से साथ थे. एकदूसरे में रुचि अब एकदूसरे को पाने की चाह में बदल गई थी.

एमी ने समीर को अपने घर वालों से मिलने के लिए बुलाया. घर वालों से यह कह कर मिलाया कि यह औफिस का मित्र है समीर. एमी की दादी को देख कर समीर को अपनी दादी याद आ गई. सलवारसूट में वैसी ही लग रही थीं. प्रोफैसर साहब बहुत हंसमुख थे. तुरंत घुलमिल गए. फुटबौल के दीवाने थे. सीएटल टीम के फैन. समीर को यहां का फुटबौल अजीब लगता था. हाथपैर दोनों से खेला जाता. अधिकतर बौल हाथ में ले कर भागते हैं.

एमी की मां सभ्यशालीन महिला थीं. एमी बिलकुल अपनी मां जैसी थी. एमी की मां ने बिलकुल देशी खाना बनाया था. समीर लखनऊ से है, यह सुन कर दादी तो गदगद हो गईं. अपने बचपन के मायके के किस्से सुनाने लगीं. एक लंबे समय बाद वह इतनी देर हिंदी में बोला. उसे अच्छा लगा. यहां तो वह जब से आया है मुंह टेढ़ा कर के ऐक्सैंट में बोलने की कोशिश करता रहा है.

समीर ने ध्यान दिया दादी, प्रोफैसर, नरगिस सभी उर्दू में बात करते हैं. पर एमी इंग्लिश में जवाब देती. कभीकभी हिंदी में भी. उर्दूहिंदी एकजैसी भाषाएं हैं, जिन्हें वह अपने यहां भी सुनताबोलता था. बस इन के उर्दू में कुछ शब्द गाढ़े उर्दू के हैं पर बात समझ में आ जाती है. उसे यहां अपनापन लगा. एमी के घर वालों को भी समीर अच्छा लगा और उसे बराबर आते रहने का न्योता दिया.

एमी ने समीर के जाने के बाद जब घर वालों से पूछा कि समीर उन्हें कैसा लगा तो वे लोग बोले कि अच्छा है. तब उस ने बताया कि समीर और वह शादी करना चाहते हैं.

यह सुन उस की दादी तो खुश हो गईं क्योंकि वह उन के मायके से जो था और उन्हें समीर नाम से मुसलमान लगा था. प्रोफैसर ने आपत्ति की कि वह पाकिस्तानी नहीं भारतीय है. एमी की मां ने अपना शक जाहिर करते हुए कहा कि कहीं ग्रीन कार्ड के लालच में शादी तो नहीं करना चाहता है. लड़के को अमेरिकन सिटीजन होना चाहिए.

एमी ने धीरेधीरे समीर के बारे में 1-1 बात बताई कि वह भारतीय भी है और हिंदू भी. उस का परिवार भारत में है. अत: कभी भी वापस जा सकता है.

दादी, प्रोफैसर और नरगिस सब ने एकसाथ आपत्ति की कि हिंदू से शादी नहीं हो सकती.

एमी बोली, ‘‘अब तक वह आप सब को बहुत पसंद था पर उस के हिंदू और भारतीय होने से वह बुरा कैसे हो गया?’’

जब कोई प्यार में होता है तो उसे धर्म, भाषा, नागरिकता कुछ दिखाई नहीं देता. दिखता है तो केवल प्यार से भरा मन और वह व्यक्ति जो उस के साथ जीवन बिताना चाहता है. वहीं दूसरे लोगों को व्यक्ति और उस का मन, उस के गुण नहीं दिखते, केवल धर्म दिखता है.

‘‘डैडी आप और ममा ने भी तो दूसरे धर्म में शादी की थी, फिर आप लोग कैसे कह रहे हैं?’’

‘‘बेटी, तुम्हारी मां को हम अपने घर लाए थे. वह हम में रचबस गई. उस ने इसलाम कुबूल कर लिया. तुम्हें दूसरे घर जाना है. यह अंतर है. कल को वह लड़का तुम्हें हिंदू बना ले तो तुम्हारी तो आखरत (मरने के बाद की जिंदगी) गई.’’

एमी ने समीर को सारी बातें बताईं और कहा, ‘‘हम दोनों को जब कोई प्रौब्लम नहीं तो उन्हें क्यों है? हम जब चाहें शादी कर सकते हैं. हमें कोई रोक नहीं सकता पर मैं चाहती हूं कि मेरी फैमिली मेरे साथ हो,’’ यह एमी की देशी परवरिश की सोच थी.

समीर ने कहा, ‘‘तुम मेरा साथ दोगी?’’

‘‘मरते दम तक.’’

‘‘तो ठीक है अपने घर वालों से मेरी

मीटिंग करवाओ.’’

रविवार को समीर एमी के घर वालों से मिलने गया. शाहरुख खान की मूवी की डीवीडी दादी के लिए ले गया. दादी शाहरुख खान की दीवानी थीं सो खुश हो गईं. प्रोफैसर कुछ ठंडे थे. समीर ने उन से सीएटल टीम फुटबौल की बातें छेड़ दीं. वे भी सामान्य हो गए. नरगिस के लिए कबाब ले गया था. वे भी कुछ नौर्मल हो गईं.

फिर समीर ने अपनी मंशा बताई, ‘‘मैं और एमी एकदूसरे से प्यार करते हैं…जीवन भर साथ रहना चाहते हैं…शादी करना चाहते हैं. मगर आप सब की मरजी से…’’ मैं नेशनैलिटी के लिए शादी नहीं कर रहा हूं. मेरी कंपनी ने मेरा ग्रीन कार्ड अप्लाई कर दिया है. हां, मैं इंडियन हूं और मैं भारत आताजाता रहूंगा, मेरे परिवार को जब भी मेरी आवश्यकता होगी मैं उन के पास जाऊंगा… इसी प्रकार जब आप लोगों को भी मेरी जरूरत होगी तो मैं आप का भी साथ दूंगा. रहा धर्म तो यदि मैं आप को दिखाने के लिए मुसलिम बन जाऊं और मन से हिंदू रहूं तो आप क्या कर सकते हैं? धर्म में हम उसे ही याद करते हैं जिसे न आप ने देखा न मैं ने. उसे किस नाम से पुकारें इस पर लड़ाई है, किस प्रकार याद करें इस पर सहमति नहीं. इंसान जिन्हें एकदूसरे से प्यार है वे इसलिए शादी नहीं कर सकते, क्योंकि वे ऊपर वाले को अलगअलग नामों से पुकारते हैं, अलगअलग तरह से याद करते हैं.’’

उस ने मीर को कुछ पढ़ रखा था और एक शेर जो उसे याद था कहा, ‘‘ ‘मत इन नमाजियों को खानसाज-ए-दीं जानो, कि एक ईंट की खातिर ये ढोते होंगे कितने मसीत’ दादी ये धर्म के चोंचले अमेरिका में आ कर तो हम छोड़ दें.’’

सब चुप रहे. जानते थे कि यह ठीक कह रहा.

प्रोफैसर को मुसलिम समाज और सब से बढ़ कर भाईजान का डर था. अमेरिका में भी हम ने अपना पाकिस्तानहिंदुस्तान बना लिया है, अपनी मान्यताएं अपने रीतिरिवाज… यहां वैसे तो इंडियनपाकिस्तानी मिल कर रहते हैं पर शादीविवाह अपने धर्म में ही पसंद करते हैं.

हां, साथसाथ स्कूल, कालेज, औफिस की दोस्ती में अकसर अलगअलग जगह के लोगों में शादियां हो जाती हैं, परंतु मंदिरमसजिद में मिलने वाले साथी पसंद नहीं करते. प्रोफैसर को उन का तो डर नहीं था पर भाईजान…

दादी भी जानतीं थी कि पाकिस्तानियों में तलाक अधिक होते हैं और भारत वाले साथ निभाते हैं. फिर भी हिंदू से…

एमी के घर वाले समीर के बराबर आनेजाने से धीरेधीरे उस से घुलमिल गए. बात टल सी गई पर समीर बराबर जाता रहता. दादी से हिंदी मूवीज पर बातें करता, प्रोफैसर के साथ फुटबौल मैच टीवी पर देखता, उन के लैपटौप में नएनए गेम्स लोड करता, लौन की घास काटने में प्रोफैसर की मदद करता, काटना तो मशीन से होता है पर मेहनत का काम है. नरगिस की किचन में हैल्प करता. यहां सारे काम खुद ही करने होते हैं.

प्रोफैसर कहते, ‘‘मैं तो 3 औरतों में अकेला पड़ गया था… तुम से अच्छी कंपनी मिलती है.’’

समीर एमी से कहता, ‘‘यार एमी, मैं तो तुम्हारे घर का छोटू बन गया पर दामाद बनने के चांस नहीं दिखते. तुम मुझे डिच दे कर किसी पाकी के साथ निकल गईं तो?’’

वह हंस कर कहती, ‘‘यू नैवर नो.’’

प्रोफैसर सोचते समीर अच्छा है, बोलचाल, विचार हमारे जैसे हैं. एमी के साथ जोड़ी अच्छी है, दोनों एकदूसरे के साथ खुश रहेंगे, फिर क्या हुआ अगर वह अल्लाह को ईश्वर कहता है? पूजा करना उस का मामला है… एमी को तो पूजा करने को नहीं कह रहा…

हिम्मत कर के न्यूयौर्क में भाईजान से बात की. बताया कि एमी ने लड़का पसंद कर लिया है हिंदुस्तानी है.

भाईजान बोले, ‘‘क्या पाकिस्तानी लड़कों का अकाल पड़ गया जो हिंदुस्तानी लड़का देखा?’’

‘‘एमी को पसंद है.’’

‘‘हां, अमेरिकन मां की बेटी जो है.’’

‘‘लड़का बहुत अच्छा है. बस वह हिंदू है.’’

भाईजान पर तो जैसे बम फटा, ‘‘क्या कह रहे हो? काफिर को दामाद बनाओगे?’’

प्रोफैसर मिनमिनाए, ‘‘भाईजान, आप तो जानते हैं यहां तो बच्चे भी नहीं सुनते जरा तंबीह करो तो 911 कौल कर पुलिस बुला लेते हैं और बड़े हो कर तो और भी आजाद हो जाते हैं. ये हम से इजाजत मांग रहे हैं, यह क्या कम है? हम हां कर दें तो हमारा बड़प्पन रह जाएगा.’’

भाईजान को लगा कि प्रोफैसर ठीक कह रहे हैं. अत: बोले, ‘‘ठीक है वह मुसलमान हो जाए तो हो सकता है.’’

‘‘नहीं वह इस पर राजी नहीं. वह एमी से भी धर्म परिवर्तन के लिए नहीं कह रहा.’’

भाईजान चिल्लाए, ‘‘काफिर से निकाह नहीं हो सकता. अगर तुम ने शादी की तो मुझ से कोई रिश्ता न रखना… मुल्लाजी को भी तो अपने समाज में सिर उठा कर चलना है वरना उन की कौन सुनेगा.’’

प्रोफैसर को भाई की बातों से बहुत दुख हुआ. हार्ट के मरीज तो थे ही सो हार्ट अटैक आ गया. नरगिस और दादी थीं घर पर. नरगिस ने ऐंबुलैंस कौल की. ऐंबुलैंस डाक्टर व नर्स के साथ आ गई. अस्पताल में भरती किया गया. एमी, नरगिस, दादी और समीर रोज देखने जाते. यहां अस्पताल में भरती करने के बाद डाक्टर व नर्स पूरी देखभाल करते हैं. अस्पताल का रूम फाइवस्टार सुविधा वाला होता है. प्रोफैसर को यहां का खाना पसंद नहीं, तो नरगिस उन का खाना घर से लाती थीं. यहां मरीज की देखभाल अच्छी की जाती है. बिल इंश्योरैंस से जाता है. कुछ 10-15% देना पड़ता है.

कुछ दिन बाद प्रोफै सर घर आ गए. अभी भी देखभाल की आवश्यकता थी. परहेजी खाना ही चल रहा था. इस दौरान समीर उन की देखभाल बराबर करता एक बेटे की तरह और औफिस में भी एमी के काम में मदद करता ताकि एमी प्रोफैसर साहब को अधिक समय दे सके.

प्रोफैसर के दोस्त, मिलने वाले मसजिद के साथी सब दोएक बार आए. भाईजान ने केवल फोन पर खैरियत ली.

बीमारी में कोई देखने आए तो अच्छा लगता है. अमेरिका में किसी के पास समय नहीं है. समीर प्रतिदिन आता. प्रोफैसर को भी अच्छा लगता. प्रोफैसर को लगता अगर उन का अपना बेटा भी होता तो शायद वह भी इतना ध्यान नहीं रखता.

आखिर प्रोफैसर ठीक हो गए. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या तुम ने घर वालों से शादी की बात की?’’

समीर ने बताया, ‘‘हां मैं ने घर वालों को मना लिया है… पहले तो सब नाराज थे पर एमी से बात कर के सब खुश हो गए. मेरे मातापिता धर्मजाति नहीं मानते पर एमी पाकिस्तानी मूल की होने पर चौंके थे. मगर मेरी पसंद के आगे उन्हें सब छोटा लगने लगा. अत: सब राजी हो गए.’’

प्रोफैसर ने अपने ठीक होने की पार्टी में अपने सभी मिलने वालों, दोस्तों को बुलाया

और फिर समीर और एमी की मंगनी की घोषणा कर दी. वे जानते थे शादी में बहुत लोग नहीं आएंगे. दोनों परिवारों की मौजूदगी में शादी सादगी से कोर्ट में हो गई और फिर रिसैप्शन पार्टी होटल में की, जिस में दोनों के औफिस के साथी, नरगिस और प्रोफैसर के दोस्त, पड़ोसी, मिलने वाले शामिल हुए. भाईजान और उन की जैसी सोच वाले नहीं आए. 2 प्रेमी पतिपत्नी बन गए. सच ही तो है, प्रेम नहीं मानता कोई सरहद, भाषा या धर्म.

Romantic Story : तमाचा – सानिया ने किस तरह लिया अपने पति से बदला ?

Romantic Story :  सानिया के अब्बा एक मामूली से फोटोग्राफर थे, जबकि उस के होने वाले ससुर एक बड़े बिजनेसमैन थे. सानिया को उस की सास ने एक शादी में देखा था और तभी उसे पसंद कर लिया था. फिर जल्दी ही उस का रिश्ता भी तय हो गया.

आज सानिया की शादी थी. लाल जोड़े में उस का हुस्न और निखर आया था. सभी सहेलियां उसे घेर कर बैठी थीं और हंसीमजाक कर रही थीं.

‘‘सानिया, तुझे पति नहीं लखपति मिल रहा है,’’ सानिया की खास सहेली रिंकी ने कहा.

‘‘काश, हमें भी कोई ऐसा ही मोटा मुरगा मिल जाए, तो जिंदगी ऐश से कटे,’’ टीना ने अपने दिल पर हाथ रख कर कहा.

‘‘रुपएपैसे का लालच मुझे नहीं है. मैं तो सिर्फ यह चाहती हूं कि मेरा होने वाला पति तनमन से मेरा हो, सिर्फ मेरा,’’ सानिया ने धीरे से कहा.

‘‘जब वह तुम से शादी कर रहा है, तो तुम्हारा ही हुआ न,’’ रिंकी ने कहा.

‘‘शादी करना और सिर्फ बीवी का हो कर रहने में फर्क है रिंकी डियर,’’ सानिया ने कहा.

‘‘अच्छा, अपने विचार अपने पास रख,’’ रिंकी ने कहा, तो सभी सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ीं.

शादी के बाद जब सानिया अपनी ससुराल पहुंची, तो वहां की शानोशौकत देख कर वह भी सोचने पर मजबूर हो गई कि आखिर उस की सास ने उसे ही क्यों चुना? यह ठीक था कि वह शक्लसूरत से अच्छी थी, पर उस जैसी तो और भी बहुत होंगी.

शादी के बाद कुछ दिन तो हंसीखुशी से बीत गए. उस का पति नादिर अपने मांबाप का एकलौता बेटा था, इसलिए उसे लाड़प्यार से पाला गया था.

नादिर अपना ज्यादा समय घर से बाहर ही गुजारता था. सानिया इस बारे में कभी पूछती, तो नादिर कह देता कि काम के सिलसिले में उसे बाहर रहना पड़ता है.

एक दिन सानिया की तबीयत कुछ खराब थी. उस ने नादिर से कहा कि वह उसे डाक्टर को दिखा लाए, तो नादिर ने कहा कि वह अकेली चली जाए, क्योंकि उसे कुछ जरूरी काम है.सानिया डाक्टर को दिखाने चली गई. रास्ते में अचानक सानिया ने एक सिनेमाहाल के पास नादिर को एक लड़की के साथ घूमते देखा. वह वहां का नजारा देख कर सबकुछ समझ गई.

सानिया की हालत अजीब हो गई. किसी तरह वह घर वापस आई. शाम को जब नादिर आया, तो सानिया ने पूछा, ‘‘आज आप कहां थे?’’

‘‘मैं काम के सिलसिले में बाहर गया था,’’ नादिर ने साफ झूठ बोला.

‘‘मैं ने अपनी आंखों से आप को एक लड़की के साथ कहीं घूमते देखा था,’’ सानिया बोली.

‘‘ओह… तो तुम ने देख लिया,’’ नादिर ने लापरवाही से कहा.

‘‘कौन थी वह?’’ सानिया ने पूछा.

‘‘किसकिस के नाम पूछोगी? मैं बाहर क्या करता हूं, इस से तुम्हें क्या लेना?तुम्हें बीवी का हक तो मिल रहा है न,’’ नादिर ने कहा.

‘‘तुम्हारे इस रूप के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती थी,’’ सानिया ने कहा.

‘‘जैसे तुम दूध की धुली हो. शादी से पहले क्याक्या गुल खिलाए होंगे, कौन जानता है,’’ नादिर ने बेशरमी से कहा.

‘‘अगर मैं यह कहूं कि मैं दूध की धुली हूं, तो…’’ सानिया ने कहा.

‘‘इस का क्या सुबूत है तुम्हारे पास?’’ नादिर ने पूछा.

सानिया ने नादिर के सवाल का जवाब नहीं दिया. उस ने तय किया कि वह अपने सासससुर को नादिर की हरकतों के बारे में सबकुछ बताएगी. आखिर उन्हें भी तो मालूम होना चाहिए कि उन का बेटा घर के बाहर क्याक्या गुल खिलाता है.

रात को सानिया दूध ले कर सासससुर के कमरे की तरफ गई.

‘‘कहीं सानिया को नादिर की हरकतों का पता न चल जाए,’’ ससुर की आवाज सुन कर सानिया के कदम दरवाजे पर ही ठहर गए.

‘‘पता चल जाएगा, तो कौन सी कयामत आ जाएगी. आखिर हम एक गरीब घर की लड़की इसीलिए तो लाए हैं. उसे अपनी जबान बंद रखनी होगी. उस का काम सिर्फ इस घर का वारिस पैदा करना है,’’ सास ने कठोर आवाज में कहा.

सासससुर की बातें सुन कर सानिया हैरान रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतने ऊंचे घराने के लोगों के खयाल इतने नीचे होंगे. उस की सेवा, त्याग और प्यार का उन की नजरों में कोई मोल नहीं था. ऊपर से तो वह शांत थी, लेकिन उस के दिलोदिमाग में एक तूफान मचा था.

‘मैं भी दिखा कर रहूंगी कि मैं क्या कर सकती हूं,’ सानिया ने मन ही मन सोचा.

धीरेधीरे समय गुजरने लगा. इस बीच सानिया कई बार अपने मायके भी गई, लेकिन उस ने अपने मांबाप से कुछ नहीं कहा. सानिया मां बनने वाली है, यह मालूम होते ही पूरे घर में खुशी छा गई. गोद भराई की रस्म के लिए लोगों को बुलाया गया. सानिया कीमती जोड़े और जेवरों से लदी बैठी थी.

गोद भराई की रस्म के बाद सास ने सानिया की बलाएं ली और उसे गले लगाया. ‘‘बहुत जल्द तू इस घर को वारिस देने वाली है. मेरे बेटे का चिराग इस घर को रोशन करेगा. मैं दादी बनूंगी,’’ सास ने खुश होते हुए कहा.

‘आप दादी जरूर बनेंगी और इस घर को वारिस भी जरूर मिलेगा, लेकिन वह आप के बेटे का चिराग नहीं होगा.

‘इस राज भरी बात को तो सिर्फ मैं ही जानती हूं कि इस बच्चे का बाप आप का बेटा नहीं, कोई और है. यह करारा तमाचा आप लोगों के मुंह पर लगा कर मैं ने अपना बदला ले लिया है,’ सानिया ने कुटिलता से मुसकराते हुए सोचा.

Love Story : एक सुहाना सफर – सुरभि को किस बात पर सबसे ज्यादा गुस्सा आ रहा था

Love Story :  ‘‘हैलो मां, कैसी हो?’’

‘‘मैं अच्छी हूं, संभव, लेकिन तुम कल जरूर आना. प्रौमिस किया है तुम ने. पिछली बार जो किया वैसा मत करना.’’

‘‘हां मां, अब बताया है न. मेरी एक जरूरी मीटिंग है, बाद में फोन करता हूं.’’

फोन रखते ही संभव के दिमाग में खयालों का तूफान उठा. हालांकि वह इतनी जल्दी शादी करना नहीं चाहता था लेकिन घर का एक भी सदस्य उस की बात सम?ाने के लिए तैयार नहीं था. मां की बढ़ती बीमारी के कारण वह उन की इच्छा नकार नहीं सकता था, इसलिए अपनी इच्छा के विपरीत जा कर वह लड़कियां देखने के लिए तैयार हुआ. जैसे ही घड़ी की ओर उस का ध्यान गया, जल्दी सब निबटा कर वह औफिस के लिए चल पड़ा.

शाम वापस आते ही संभव ने पुणे के ट्रैवल का समय देखा और स्टौप पर जा कर खड़ा रहा. ट्रैवल वैसे ही लेट थी. और तो और, उस का स्टौप भी आखिरी था, इसलिए गाड़ी पूरी पैक्ड थी. केवल एक लड़की के बाजू वाली जगह खाली थी. उस ने उस का बैग धीरे से उठा कर नीचे रख दिया और वहां बैठ गया. संभव ने देखा कि वह लड़की सोई हुई थी और उस का पूरा चेहरा रूमाल से ढका था. संभव की नजर ट्रैवल की खिड़की से बाहर गई. पूनम का चांद दिख रहा था. उस धीमी रोशनी में उस लड़की के घने लंबे बाल चमक रहे थे. बाहर की ठंडी हवा से उस के बाल रूमाल का बंधन तोड़ कर संभव के चेहरे को छू रहे थे. पलभर संभव उस स्पर्श से रोमांचित हुआ. लेकिन तुरंत उस ने खुद को संभाला और थोड़ी दूरी बना कर बैठ गया.

दिनभर की थकान के कारण वह भी जल्दी ही सो गया. लेकिन ड्राइवर ने जोर से ब्रेक लगाया, तब सब मुसाफिर घबरा कर उठ गए. पूछने पर पता चला कि आगे बड़ी दुर्घटना हुई है, इसलिए गाड़ी रुक गई और 5-6 घंटे यातायात शुरू नहीं होगा.

‘‘अरे यार, यह सब आज ही होना था. कल सुबह तक पुणे नहीं पहुंची तो मां जरूर मु?ो डाटेंगी. अब क्या करूं? फोन में नैटवर्क भी नहीं है…’’

संभव बाजू में बैठी लड़की की बकबक सुन रहा था. उस के चेहरे से अब रूमाल हट चुका था. उस के हलके से हिल रहे गुलाबी होंठ, लंबे बालों की एक तरफ से डाली हुई चोटी, माथे पर छोटी सी बिंदी, नैनों का काजल, चांद की रोशनी में उस की गोरी काया काफी निखरी दिख रही थी. कितनी सरल और सुंदर नजर आ रही थी.

उस लड़की का ध्यान संभव की ओर गया. वह लगातार उसे देख रहा था. यह जानने के बाद वह थोड़ा संभल गई. संभव भी थोड़ा औक्वर्ड महसूस कर रहा था. उस ने अपनी नजर दूसरी ओर फेर दी. लेकिन उस की चुलबुलाहट कम नहीं हो रही थी. यह देख कर संभव ने उस से कहा, ‘‘मैडम, आप चिंता न करें. जल्दी ही सफर सुचारु रूप से शुरू होगा. आप को फोन करना है तो आप मेरा फोन इस्तेमाल कर सकती हो, मेरे फोन में नैटवर्क है.’’

उस लड़की ने संभव की ओर देखा. उस के व्यक्तित्व से वह एक सभ्य आदमी लग रहा था और उसे इस वक्त उस के फोन की जरूरत भी थी. संभव से फोन मांग उस ने घर पर फोन घुमाया.

‘‘हैलो मां, मैं सुरभि बोल रही हूं.’’

‘‘यह किस का नंबर है, इतनी रात गए फोन क्यों किया. तुम आ रही हो न कल?’’

‘‘हांहां, मेरा कहा सुन तो लो. मैं पुणे के लिए निकल चुकी हूं. लेकिन यहां आगे एक कार ऐक्सिडैंट हुआ है. ट्रैफिक में फंस चुकी हूं. मैं किसी दूसरे के फोन से आप से बात कर रही हूं. आप चिंता न करें. मैं आती हूं सुबह तक.’’

‘‘ठीक है. अपना खयाल रखना और हां, सुबह वे लोग तुम्हें देखने आएंगे. ज्यादा देर मत करना.’’

सुरभि ने गुस्से में फोन काट दिया. ‘‘मैं यहां उल?ा हूं और इन्हें तो उन मेहमानों की ही पड़ी है.’’ संभव उस की ओर देख रहा था. गुस्से में वह निहायत खूबसूरत नजर आ रही थी, नाम भी उस का कितना खूबसूरत था…सुरभि.

‘‘सौरी, मैं ने अपना गुस्सा आप के फोन पर निकाला,’’ सुरभि की आवाज से संभव ने अपना होश संभाला.

‘‘इट्स ओके, लेकिन आप चिंता मत कीजिए. सुबह तक आप पुणे पहुंच जाओगी. सौरी, मैं ने आप की बातें सुन लीं. बाय द वे, मैं संभव. मैं भी पुणे जा रहा हूं.’’

‘‘मैं सुरभि, आप की बहुत आभारी हूं कि आप के फोन के कारण मैं घर कौल कर सकी.’’ तभी बस में से एक लड़कों का गु्रप सामान ले कर नीचे उतर रहा था. संभव ने उन से पूछा, ‘‘यह क्या, आप सब कहां जा रहे हो?’’

‘‘देखो भैया, हम हरदम इसी रास्ते से सफर करते हैं. यहां हमेशा ट्रैफिक जाम रहता है. यहां 2-3 किलोमीटर पर पगडंडी रास्ता है. आगे छोटीछोटी गाडि़यां मिल जाती हैं पुणे जाने के लिए. उधर जा रहे हैं हम.’’

‘‘लेकिन इतने अंधेरे में, रास्ता महफूज है क्या?’’

‘‘हां, हम कई बार जाते हैं इस रास्ते से और हमारे पास टौर्च भी है.’’

संभव ने सुरभि की ओर देखा. सुरभि सोच में पड़ी थी. उस गु्रप में 2-3 लड़कियां भी थीं. माना कि वह किसी को पहचानती नहीं थी. फिर भी कराटे चैपिंयन होने के कारण, कुछ हुआ तो वह खुद को संभाल सकती थी. वहीं, संभव का बरताव उसे काफी विश्वासभरा लग रहा था. इसलिए उस ने भी तुरंत हामी भर दी. वे दोनों उस ग्रुप के साथ नीचे उतर कर पगडंडी के रास्ते पर चलने लगे.

वे लड़केलड़कियां एक ही कालेज में पढ़ने वाले थे. उन से दोस्ती कर वे दोनों भी साथसाथ चल रहे थे. मोबाइल पर सुरीले गीत चल रहे थे. रास्ता घने जंगल का था. मगर पूनम का चांद उस की शीतल छाया का अस्तित्व महसूस करा रहा था. इसलिए रात इतनी कठिन नहीं लग रही थी. चलतेचलते अचानक सुरभि का पैर एक पत्थर से फिसल गया. वह लुढ़क रही थी कि संभव ने उसे सहारा दिया. पलभर के लिए इस स्पर्श से दोनों के मन में कुछ हलचल मची. कुछ पल वे एकदूसरे की बांहों में थे. मोबाइल पर गाना बज रहा था.

नीलेनीले अंबर पर चांद जब आए,

प्यार बरसाए हम को तरसाए.

ऐसा कोई साथी हो ऐसा कोई प्रेमी हो,

प्यास दिल की बुझा जाए…

उन लड़कों की हंसी से वे होश में आए. सुरभि शरमा कर संभव से दूर हो गई. संभव भी अपनी नजर चुराने लगा.

‘‘इट्स ओके, यार, कभीकभी होता है ऐसा. लेकिन संभल के चलो अब.’’

सुरभि को चलने में दिक्कत हो रही थी. पत्थर से फिसलने से शायद उस के पांव में मोच आ गई थी. वह लंगड़ा कर चल रही थी. संभव ने पूछा, ‘‘सुरभि, तुम्हारे पांव में ज्यादा लगी है क्या, तुम ऐसे लंगड़ा कर क्यों चल रही हो?’’

अभीअभी घटी घटना से सुरभि संभव की नजर से नजर मिलाना टाल रही थी. वह संभव के व्यक्तित्व से तो प्रभावित हुई थी, लेकिन उस का स्पर्श और आंखों की चिंता देख कर वह उस में उलझती जा रही थी. वह घर क्यों जा रही है, यह उसे याद आया. वह आज तक पढ़ाई का कारण बता कर शादी की बात टालती आ रही थी, मगर अब पढ़ाई पूरी होने के बाद वह यह बात टाल नहीं सकती थी, कल उसे इसी कारण घर जाना था.

‘‘सुरभि, क्या कह रहा हूं मैं, तुम्हारा ध्यान कहां है? थोड़ा रुकना चाहती हो क्या?’’

‘‘नहींनहीं, मैं ठीक हूं. पांव में मोच आई है. लेकिन मैं चल सकती हूं.’’

फिर भी संभव ने उसे सहारा दिया. ‘‘देखो, सुरभि, हमारी पहचान बस कुछ घंटों पहले ही हुई है, लेकिन तुम्हें पुणे तक महफूज ले जाना मैं अपनी जिम्मेदारी समझता हूं. तुम कुछ अलग मत सोचो. चलो,’’ संभव का हाथ उस के हाथ में था. क्या था उस स्पर्श में? विश्वास, दोस्ती, चिंता. सुरभि उसे न नहीं कह सकी. हालांकि संभव पहली बार किसी लड़की के साथ ऐसा बरताव कर रहा था, लेकिन सुरभि के बारे में उसे क्या महसूस हो रहा था, यह वह नहीं जानता था. उस की हर अदा, बोलने का स्टाइल, उस के हाथ का कोमल स्पर्श और सब से अहम कि उस का संभव के प्रति विश्वास, इन सब के बारे में वह सोच रहा था.

‘‘संभव, तुम्हें मेरे कारण काफी परेशानी उठानी पड़ रही है.’’

‘‘सुरभि, तुम ऐसा क्यों कह रही हो. ऐसा सोचो कि एक दोस्त दूसरे दोस्त की मदद कर रहा है,’’ वह मुसकराया.

‘‘तुम्हारी यह मुसकराहट किलर है.’’

‘‘क्या?’’

वह क्या बोल गई, यह उस के ध्यान में आते ही उस ने अपनी जबान दांतों तले दबाई. फिर संभव ने हंस कर उस की ओर देखा. कालेज के गु्रप के साथ बाते करतेकरते सफर कब खत्म हुआ, इस का पता ही नहीं चला. वे जंगल से बाहर आ कर एक छोटे रास्ते पर आए. वहां एक छोटा सा होटल था. संभव और सुरभि ने अपना और्डर दिया. सुरभि फ्रैश हो कर हाथपांव धो कर आई. पानी की हलकी बूंदें अभी भी उस के बालों से लिपटी थीं.

‘कितनी खूबसूरत दिखती है यार, इस का हर रूप मुझे दीवाना बना रहा है. लेकिन क्या फायदा, इस मुलाकात के बाद हमारी राहें हमेशा के लिए अलग हो जाएंगी,’ सोचते हुए संभव के चेहरे पर मायूसी छा गई.

‘‘संभव, क्या हुआ? इस चांदनी रात में गर्लफ्रैंड की याद आ रही है क्या?’’

सुरभि के चेहरे के शरारती भाव देख कर संभव के मन से तनहाई के खयाल कहीं गुम हुए.

‘‘नहीं, अरे मेरी कोई गर्लफ्रैंड नहीं है. आओ, खाना खाते हैं.’’ हालांकि, यह जान सुरभि मन ही मन खुश हुई थी. उस ने उसी खुशी में खाना खत्म किया.

तब तक लड़कों ने गाड़ी बुक कर ली थी. गाड़ी में भी सुरभि संभव के पास ही बैठी थी. यह इस सफर का आखिरी दौर था. गाड़ी शुरू होते ही थकान से सुरभि की गरदन हलके से संभव के कंधे पर लुढ़क गई. संभव भी थका हुआ था. वह ये खूबसूरत पल अपने मन के किसी कोने में स्टोर करना चाहता था.

ड्राइवर ने जैसे ही गाड़ी का ब्रेक लगाया वैसे ही सुरभि जाग गई. उस का स्टौप आया था. सुरभि ने जाते-जाते फिर एक बार संभव का हाथ थामा. ‘‘संभव, यह सफर मैं कभी भी नहीं भूलूंगी. यह हमेशा मेरी खूबसरत स्मृतियों में रहेगा,’’ वह काफी कुछ कहना चाहती थी, लेकिन शब्द उस की जबान पर नहीं आ रहे थे. शब्द कब आंसू बन कर आंखों से छलके, यह वह जान नहीं पाई. संभव भी इसी कशमकश से गुजर रहा था. उस ने उसे धीरे से सहलाया और भविष्य के सफर के लिए शुभकामनाएं दे कर गाड़ी में बैठ गया.

संभव घर पहुंचा. वह मां से कुछ न बोलते हुए जाने की तैयारी करने लगा. मां ने सोचा थका होगा. तय वक्त पर वे लड़की के घर पहुंच गए. संभव का किसी चीज में मन नहीं था. लड़की की मां उस की प्रशंसा कर रही थीं.

‘‘हमारी सुरु बहुत अच्छे दिमाग की है. उस के हाथ का एक अलग टैस्ट है.’’ फलानाफलाना. संभव को इन सब बातों से काफी चिढ़ थी. उस की नजर से सुरभि का चेहरा हट नहीं रहा था. वह सोचने लगा, ‘मां को तो मेरी शादी होने से मतलब है, फिर मैं कहीं से भी सुरभि को ढूंढ़ कर लाऊंगा.’ उस ने अपने मन में ठान लिया और गरदन ऊपर कर के कहा, ‘‘बंद करो यह सब, मु?ो ये शादीवादी नहीं करनी…’’ लेकिन आगे के शब्द वैसे ही होंठों पर रुक गए. क्योंकि सामने चाय की ट्रे ले कर सुरभि खड़ी थी. वह जान गया कि इस घर की सुरु उस की सुरभि ही थी.

‘‘क्या हुआ, संभव? कुछ कहना है क्या तुम्हें?’’ मां की आवाज से उस ने अपने होश संभाले. वह नीचे बैठ गया और बोला, ‘‘मुझे शादी करनी है. लड़की मुझे पसंद है.’’

उस की इस बात से सब हैरान रह गए. लेकिन उन्हें उस से भी ज्यादा खुशी हुई. सुरभि की रातभर रो कर सूजी आंखों में खुशी के आंसू आए थे, लेकिन केवल संभव ही यह देख सका. सब की नजर से छिप कर इन 2 प्रेमी दिलों का मिलन शुरू हुआ था. दोनों एकदूसरे की बांहों में समा जाते हैं. वह कहते हैं न,

दो दिल मिल रहे हैं

मगर चुपकेचुपके

सब को हो रही है

खबर चुपकेचुपके

लेखिका – सुवर्णा पाटिल

Solar से रोशन हो रहा लड़कियों का कैरियर

Solar : सोलर से रोशनी देने वाली लालटेन हो या लैंप, गांव की लड़कियों के जीवन को रोशन कर रहे हैं. लड़के भले ही पढ़ाई न कर रहे हों लेकिन लड़कियों को अब टेबरी और लालटेन की रोशनी से नजात मिल गई है. वे घर के अंदर सोलर की रोशनी में पढ़ाई कर रही हैं. सोलर से रोशनी देने वाले प्रोडक्टस औनलाइन भी खूब मिल रहे हैं. घर के बाहर लगने वाले खंभे भी आ गए हैं जिन को घर की छत और दीवारों पर लगाया जा रहा है. इन की कीमत 12 सौ रुपए से शुरू होती है.

लखनऊ के नंदौली गांव के अरुण सिंह बताते हैं, ‘हम ने खेत में सिंचाई के लिए सोलर पंप लगाया है. उस से हम अपने खेतों के साथ दूसरे के खेतों की भी सिंचाई करते हैं. आटाचक्की लगाई है. यह हमारे रोजगार का भी साधन बन गया है.’ सोलर पर सरकार 50 फीसदी अनुदान दे रही है. सोलर सिस्टम को और सस्ता व उपयोगी बनाने की जरूरत है. इस में इस्तेमाल की जाने वाली बैटरी की क्वालिटी अच्छी की जाए.

सोलर का सालदरसाल प्रयोग बढ़ता जा रहा है. 2014 में 2.82 गीगावाट से बढ़ कर 2019 में 28 गीगावाट, 2022 में 54 गीगावाट, 2024 में 81 गीगावाट और 2025 में 100 गीगावाट प्रयोग होने लगा है. जैसेजैसे सोलर से बने उत्पाद ज्यादा सस्ते व टिकाऊ और भरोसेमंद होंगे, जनता इन का और प्रयोग करेगी. सोलर पैनल चोरी होने की घटनाएं बढ़ रही हैं, दूसरी तरफ सोलर पैनल जल्दी खराब हो रहे हैं. इस तरफ ध्यान देना जरूरी है.

New Web Series : ‘कन्नेडा’ पंजाबी की ऐसी छवि

New Web Series : रेटिंग – दो स्टार

अब तक किसी न किसी अजेंडा के तहत ही फिल्में बन रही थीं, पर अब अजेंडे के तहत वेब सीरीज भी बनने लगी हैं. लगभग डेढ़ वर्ष पहले हम ने ‘सरिता’ में ही लिखा था कि ओटीटी प्लेटफार्म ‘जियो सिनेमा’ और ‘जियो स्टूडियो’ को एक खास मकसद से खड़ा किया गया है. इन के मालिक लगातार नुकसान करते हुए भी इसे आगे बढ़ा रहे हैं, पर इस की आड़ में देश में चल रहे या पनप रहे दूसरे ओटीटी प्लेटफार्म को खत्म करने का कुचक्र भी रचा जा रहा है. डेढ़ साल बाद आप देख सकते हैं कि डिज्नी प्लस हौटस्टार कहां गया. डिज्नी प्लस हौट स्टार पर ‘जियो’ का कब्जा हो गया है. अब यह ‘जियो स्टार’ हो गया है. इतना ही नहीं अमेजन की क्या हालत है, यह किसी से छिपा नहीं है? तो वहीं नेटफ्लिक्स की भी हालत पतली है. यदि इस पर बहुत गहराई से विचार किया जाए, तो अहसास होगा कि देश कहां जा रहा है. हम आखिर क्या बो रहे हैं. ओटीटी प्लेटफार्म की आड़ में कौन किस तरह के खेल में लिप्त है, यह फिलहाल हमारी समझ से परे बात है.

पिछले कुछ समय से भारत व कनाडा के बीच जो तनातनी बढ़ी है, वह किसी से छिपी नहीं है. कनाडा के प्रधानमंत्री भारतीयों के खिलाफ बयानबाजी करते रहते हैं. कनाडा में भारतीय छात्रों को कई तरह से परेशान किया जा रहा है. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कनाडा में जादातर पंजाबी भारतीय ही रह रहे हैं. पंजाबी छात्र ही वहां ज्यादा गए हैं. तो दूसरी तरफ हमारे अपने ही देश में कंगना रानौत से ले कर कई लोग पंजबी किसानों और पंजाब के निवासियों के खिलाफ आग उगलते हुए ड्रग्स के व्यापारी से ले कर पता नहीं क्या क्या संज्ञा दे रहे हैं.

अब 21 मार्च से मुकेश अंबानी और नीता अंबानी के स्वामित्व वाले ओटीटी प्लेटफार्म ‘जियो स्टार’ पर चंदन अरोड़ा निर्देशित 8 एपीसोड की वेब सीरीज, जिस की लंबाई लगभग साढ़े चार घंटे है, ‘कन्नेडा’ स्ट्रीम होनी शुरू हुई है. इस सीरीज में रंगभेद व नस्लभेद को कहानी का आधार बनाया गया है, मगर दूसरे एपिसोड से अंत तक यह सीरीज सिर्फ इसी बात का चित्रण करती है कि कनाडा के वैंकुवर शहर में रह रहे सभी अप्रवासी भारतीय पंजाबी हैं,और यह सभी ड्रग्स, ह्यूमन तस्करी के साथसाथ बंदूक, गोली बारी व खूनखराबा में लिप्त हैं.

सीरीज दावा करती है कि यह सीरीज सत्य घटनाक्रम पर आधारित है. इन में वह पंजाबी हैं, जो कि 1984 के दंगे में पंजाब राज्य की धरती के लाल होने पर उज्जवल भविष्य की तलाश में कनाडा के वैंकुवअर शहर पहुंचे थे. इस सीरीज में इस के अलावा भारतीयों के मान सम्मान पर कोई बात नहीं कही गई है. नस्लभेद/ रंगभेद पर भी कोई टिप्पणी नहीं है. तो क्या यह सीरीज पंजाबी भारतीयों को पूरे विश्व के समक्ष बदनाम करने, उन की गलत तस्वीर पेश करने के लिए किसी साजिश के तहत बनायी गई है. इस का जवाब तो दर्शक इस सीरीज को देख कर ही दे सकेगा.

मगर अभी तो इस सीरीज का यह पहला सीजन ही आया है. इस का अगला सीजन जल्द आने वाला है लेकिन इस पर बहस जरुर होनी चाहिए कि क्या इस तरह की सीरीज बननी चाहिए?

कनाडा में सदैव रंगभेद व नस्लभेद के आधार पर भेदभाव होता रहा है और आज भी हो रहा है. सीरीज इसी पर केंद्रित होनी चाहिए थी, मगर सह लेखक व निर्देशक चंदन अरोड़ा सत्य घटनाओं के नाम पर आधारित सीरीज के नाम पर इस सीरीज में पंजाबियों को ड्रग्स के धंधे में लिप्त होने के साथ ही बंदूकों और खूनखराबे वाली जिंदगी का ही चित्रण किया है. इस के अलावा इस सीरीज में कुछ नहीं है.

कन्नेडा वेब सीरीज के नरेटर/ सूत्रधार मोहम्मद जीशान अय्यूब के शब्दों में कहें तो इसे समझने के लिए कनाडा देश को समझना होगा, जहां दो देश बसते हैं. एक गोरों की फर्स्ट वर्ल्ड कंट्री ‘कैनेडा’ और दूसरा थर्ड वर्ल्ड कंट्री से आए प्रवासियों का ‘कन्नेडा’, जिस के निवासियों को सेकंड क्लास सिटीजन समझा जाता था. यह कहानी इसी तबके के एक ऐसे रैपर निर्मल चहल उर्फ निम्मा (परमीश वर्मा) की है, जो कनाडा और कन्नेडा के बीच की दूरी को मिटाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है. यह कहानी केवल कनाडा के वेंकुवअर शहर तक ही सीमित है. निर्मल चहल उर्फ निम्मा का अतीत परेशानियों से भरा है. वह संगीत में अपना कैरियर बनाना चाहता है. उस के संगीत को काफी पसंद किया जाता है. वह दलजीत (आदार मलिक) संग मिल कर गीत संगीत बनाता है. दलीजत की बहन हरलीन ( जैस्मीन बाजवा ) से उस का रोमांस भी चल रहा है. वह स्कौलरशिप ले कर पढ़ाई करना चाहता है. इसीलिए स्पोर्टस में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहा है.

कालेज में वह गोरों के खेल रग्बी में सिलेक्ट होने वाला पहला सांवला लड़का बनता है, मगर गोरे साजिशन उसे ड्रग रखने के जुर्म में फंसा कर टीम से निकाल देते हैं. इस के बाद निम्मा को यकीन हो जाता है कि वह कितनी भी मेहनत कर ले, खुद को सुपीरियर समझने वाले कनाडा वासी उसे वह इज्जत नहीं देंगे. निम्मा निडर, बेबाक, महत्वाकांक्षी है. वह सपने भी बड़े ही देखता है. निम्मा का मानना है कि अगर आप के पास पैसा है तो सब कुछ संभव है. यही वजह है कि जेल से बाहर निकलने के बाद निम्मा कनाडा के ड्रग डीलर सरबजीत सिंह रंधावा (अरुणोदय सिंह) के साथ जुड़ जाता है, फिर उस की मुलाकात राजनेता रंजीत बाजवा (रणवीर शौरी) से होती है, जिस का वरद हस्त सरबजीत सिंह रंधावा पर है. जैसी कि उम्मीद थी, वह अपने सपनों को भूल जाता है और अपनी परिस्थितियों का शिकार बन जाता है. अंततः बुरे काम का बुरा नतीजा ही होना है.

इस पूरी कहानी को वैंकुवअर में कार्यरत एक भारतीय नारकोटिक्स अधिकारी, संजय (मोहम्मद जीशान अय्यूब) द्वारा सुनाया गया है, जो वैंकुवर में एक पुलिस अधिकारी है जो निम्मा व सरबजीत के हर कदम पर नज़र रखने में काफी तेज है. लेकिन जब उस के परिवार के सदस्यों के साथ जटिल गतिशीलता से निपटने की बात आती है तो वह कमज़ोर हो जाता है.

फिल्म एडीटर से निर्देशक बने चंदन अरोड़ा ने खुद ही इस का सह लेखन व संवाद भी लिखे हैं. पर उन्होंने बुरी तरह से निराश किया है. मशहूर फिल्मकार राम गोपाल वर्मा ने चंदन अरोड़ा को 2003 में निर्देशक बनाते हुए फिल्म ‘मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं’ के निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी थी, जि सका बंटाधार करने में चंदन अरोड़ा ने कोई कसर बाकी नहीं रखी थी.

इस के बाद 2005 में चंदन अरोड़ा ने असफल फिल्म ‘मैं ,मेरी पत्नी और वह’ का निर्देशन किया था. 2010 में ‘स्ट्राइकर’ का निर्देशन किया था. इस फिल्म ने भी बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा था. तब बतौर निर्देशक उन्हें एक भी फिल्म नहीं मिली. अब पूरे 15 साल बाद चंदन अरोड़ा ने वेब सीरीज ‘कन्नेडा’ ले कर आए हैं.

चंदन अरोड़ा ने एक बेहतरीन विषयवस्तु को अपनी वेब सीरीज का आधार बनाया है. इन दिनों विदेशों में जिस तरह से अप्रवासियों के साथ भेदभाव हो रहा है, वह किसी से छिपा नहीं हैं. ‘कन्नेडा’ की कहानी विदेशी धरती पर भारतीयों द्वारा अपना अस्तित्व, अपना सम्मान तलाशने की जिद को दिखाती है. यानी कि सीरीज की शुरूआत तो अच्छी होती है. मगर दूसरे एपिसोड से ही लेखकीय टीम व निर्देशक अलग अजेंडे पर काम करने लगते हैं, जिस के चलते सीरीज व कहानी से ही उन की पकड़ कमजोर पड़ने लगती है. वह किसी भी चरित्र को पूरी गहराई से रचने में सफल नहीं हो पाए. दर्शक समझ ही नहीं पाता कि आखिर लेखक व निर्देशक क्या कहना या बताना चाहता है.

80 के दशक के अंत और 90 के दशक की शुरुआत में कनाडा में भारतीय पंजाबी समुदाय अपनी पहचान और नस्लवाद के खिलाफ लड़ रहा था, तो दूसरी तरफ समान अवसर के अधिकार के लिए देश में बढ़ती हिंसा को भी देख रहा था. अफसोस इस सीरीज में चंदन अरोड़ा इसे ठीक से चित्रित करने में बुरी तरह से मात खा गए.

फिल्म में निम्मा का एक संवाद है, ‘मैं उन चीज़ों की तस्करी करता हूं जिन की इजाज़त सरकार नहीं देती, उन की नहीं जिन की इजाज़त ज़मीर नहीं देता है.’ इस से निम्मा को ले कर जो बात उभरती है, वह बाद में अजीब घटनाओं में घिर जाता है. धीरेधीरे निम्मा की मूर्खताएं ही उजागर होती है. यह लेखक व निर्देशक दोनों की कमजोरी का नतीजा है.

इतना ही नहीं ड्रग्स के व्यापार में लिप्त होते हुए भी निम्मा खुद कोकीन आदि का सेवन नहीं करता. पर अचानक सातवें एपिसोड में जिस तरह से निम्मा को कोक-सूंघने वाले गैंगस्टर के रूप में चित्रित किया गया है, वह हास्यास्पद ही नहीं बल्कि निर्देशकीय कमजोरी का प्रतिबिंब है.

निम्मा के गीत जिस तरह से युवा पीढ़ी को निडर बनाने के साथ ही मान सम्मान के बारे में सोचने पर मजबूर करती है, उसे इस सीरीज में एक झलक से ज्यादा महत्व ही नहीं दिया गया.

सीरीज देखते हुए बोरियत तो होती ही है और साथ में हमें यह समझ में आता है कि निर्देशक का सारा ध्यान मूल समस्या की बजाय का सारा ध्यान भारतीय पंजाबियों की छवि को खराब करने, उन्हें अवैध व्यापार, बंदूक और गोली बारी व खूनखराबा का पर्याय साबित करने तक ही रहा. जो कि बहुत गलत है.

रैपर और गैंगस्टर निम्मा के दोनों ही रूपों में परमिश वर्मा अपने अभिनय की छाप छोड़ने में सफल रहते हैं. निम्मा के दर्द, गुस्से और महत्वाकांक्षा को परमिश ने अपने अभिनय से सच्चाई के साथ उजागर किया है. खलनायक सरबजीत रंधावा के किरदार में अरुणोदय सिंह इस सीरीज अपने अभिनय से लोगों को अपनी तरफ खींचते हैं, पर अपनेआप को दोहराते भी हैं. राजनेता रंजीत बाजवा के किरदार में रणवीर शौरी ठीक ठाक हैं. यूं तो वह सीरीज में शो पीस के अलावा कुछ नहीं है. हरलीन के किरदार में जैस्मिन बाजवा के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं. वैसे जैस्मीन बाजवा को अपने अभिनय पर काफी काम करने की जरुरत है.

निम्मा के दोस्त दलजीत के किरदार में आदार मलिक का अभिनय भी ठीक ठाक ही है. पुलिस अफसर संजय रावत के किरदार में जीशान अयूब कहीं से भी पुलिस वाले नहीं लगते. उन की चाल ढाल भी उन्हें पुलिस अफसर नहीं बताती.

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