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आदर्श मत बनना तनु

शाम के वक्त 7 बजे थे. अनिल ने औफिस से आते ही बैग सोफे पर पटका और फ्रेश होने चला गया. वहीं बैठी उस की मां माया उस के लिए चाय बनाने के लिए उठ गई. उन्होंने टाइम देखा, बहू तनु भी औफिस से आने ही वाली होगी, यह सोच कर उस के लिए भी चाय चढ़ा दी. चाय बनी ही थी कि डोरबैल बजी. तनु भी आ गई थी. माया को प्यार से देख कर मुसकराई. माया ने स्नेहपूर्वक कहा, ”बेटा, तुम भी फ्रेश हो जाओ, चाय तैयार ही है.”

माया के पति टी वी देख रहे थे. वे औफिस से जल्दी आते हैं. माया ने बहू व बेटे को चाय पिलाई. अनिल ने झींकते हुए कहा, ”तनु, आज सुबह सब्जी में कितना नमक था, बहुत गुस्सा आया मुझे. और एक तो यह गट्टे की सब्जी क्यों बनाई? मुझे जरा भी पसंद नहीं. मां,आप ने भी तनु को नहीं बताया कि मैं यह सब्जी नहीं खाता.”

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”तनु को पसंद है. तुम्हारी शादी को 5 महीने ही हुए हैं, तनु को इस सब्जी का शौक है और इस सब्जी को बनाने में उस ने सुबहसुबह बहुत मेहनत की है. कभी तुम उस की पसंद का खाओ, कभी वह तुम्हारी पसंद का खाए. और सब्जी तो बहुत ही अच्छी बनी थी, मुझे भी नहीं आती ऐसी बनानी.”

माया ने देखा, तनु का चेहरा उतर गया था. नयानया विवाह था. माया सोचने लगी, एक पत्नी को पति से मिली तारीफ़ से जितनी ख़ुशी मिलती है, उतनी किसी और की तारीफ़ से नहीं, वह भी जब नयानया विवाह हो. दुनिया नएनए खुमार से भरी ही तो लगती है. आजकल के कपल्स के बीच रोमांस, मानमनुहार के लिए समय ही नहीं. माया हैरान होती हैं अपने बेटेबहू का लाइफस्टाइल देख कर. दोनों के पास सबकुछ है. बस, समय नहीं है. उस पर भी अब अनिल अपनी नवविवाहिता के हाथ की बनी सब्जी की तारीफ़ करने के बजाय कमी निकाल रहा था. हां, नमक ज्यादा था, हो जाता है कभी कभी. पर सुबह के गए अब मिले हैं, तो इस बात को क्या तूल देना. खैर, उन की लाइफ है, बीच में ज्यादा बोलना ठीक नहीं.

अनिल उस के बाद भी चिढ़ा ही रहा. माया जानती हैं, उन के फूडी बेटे को खानेपीने में कोई कमी बरदाश्त नहीं. कितनी बार उन से भी उस की बहस होती ही रही है. इकलौता बेटा है,खूब नखरे दिखाता है. पर अब तनु क्यों सहे इतने नखरे. मैं मां हूं, मैं ने सह लिए. ये बेचारी क्यों सहे. सुबह जातेजाते कितनी हैल्प करवाती है. वे मना करती रह जाती हैं पर तनु जितना हो सकता है, उतने काम करवा कर जाती है. तनु कहती है, ”मां, मुंबई में सफर करने के बाद आ कर तो हिम्मत नहीं होती कुछ करने की, कम से कम सुबह तो कुछ करने दें.”

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माया मेड के साथ सब काम मैनेज कर ही लेती हैं पर तनु सुबह कुछ न कुछ कर ही जाती है. तीनतीन टिफ़िन होते हैं, काफी काम होता है. मेड सब के जाने के बाद ही आती है. माया एक पढ़ीलिखी हाउसवाइफ हैं. खाली समय वे टीवी में नहीं, किताबों के साथ बिताती हैं. उन की खूब पढ़ने की आदत है. खुली सोच वाली शांतिपसंद महिला हैं वे. तनु को खूब स्नेह देती हैं, वह भी उन्हें खूब मान देती है. माया के पति और बेटा कुछ आत्मकेंद्रित से हैं, तनु सब को समझने की कोशिश में लगी हुई है. वे जानती हैं कि तनु भी मुंबई की ही लड़की है, उस का मायका भी मुंबई में ही है. पेरैंट्स और एक छोटी बहन सब कामकाजी हैं.

लौकडाउन के बाद औफिस शुरू हुए ही थे. अभी तीनों को हफ्ते में 3 दिन ही जाना पड़ रहा था. बाकी दिन सब वर्क फ्रौम होम करते थे. ऐसे में सब को खूब परेशानी हो रही थी. टू बैडरूम फ्लैट था. लिविंगरूम में रखे डाइनिंग टेबल पर सुधीर काम करते थे. अनिल के रूम में एक टेबल थी जिस पर वह बैठ जाता था. तनु कभी इधर कभी उधर अपना लैपटौप उठाए घूमती रहती. एक दिन झिझकती हुई बोली, “मां, आप के रूम में बैठ कर एक कौल कर लूं, अर्जेंट है, बौस से बात करनी है?”

”और क्या, आराम से बैठो, तब तक मैं किचन में कुछ कर लेती हूं.”

”थैंक्स मां, अनिल तो एक मिनट के लिए भी अपनी टेबल नहीं देता.”

माया को दुख हुआ, बोलीं, ”जब मन हो, मेरे रूम में बैठ कर काम कर लेना.”

तनु की मीटिंग लंबी चली. बैड पर गलत पोस्चर में बैठेबैठे उस का कंधा अकड़ गया. माया ने जब सब को खाने के लिए आवाज दी, सब ने थोड़ी देर के लिए लैपटौप बंद किया. माया ने कहा, ”तनु को बहुत परेशानी हुई बैड पर बैठेबैठे, उसे भी एक टेबल चाहिए. तनु, या तो तुम यहीं पापा के साथ बैठ जाया करो या अनिल अपनी टेबल इसे मीटिंग के लिए तो दे दिया कर.”

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सुधीर ने कहा, ”मुझे कोई दिक्कत नहीं है, बेटा. पर मुझे बहुत फ़ोन करने होते हैं, तुम डिस्टर्ब तो नहीं होगी?”

”मुझे अपनी डैस्क पर ही आराम मिलता है,” अनिल ने कहा, ”दो दिन की ही तो बात होती है, कहीं भी एडजस्ट कर लो.”

तनु चुप ही रही. माया बहुत कुछ सोचने लगी थीं. कुछ समय और बीता. एक दिन तनु औफिस से थोड़ा पहले आ गई थी. माया फोन पर अपनी फ्रैंड से एक कोने में ही बैठ कर बात कर रही थीं. तनु जो मूवी देख रही थी,वह ख़तम होने ही वाली थी. अनिल जैसे ही औफिस से आया, उस ने कहा, “अरे तनु, इसे बंद कर दो, बेकार मूवी है और मेरे लिए बढ़िया सी चाय बनाओ.” जुर अनिल ने टीवी बंद कर दिया.

तनु का अपमानित चेहरा देख माया फोन पर फिर बात न कर सकीं, उन्होंने जल्दी ही फोन रख दिया पर चुप रहीं. बेटे पर बहुत गुस्सा आया पर रोजरोज उसे बहू के सामने टोकना शायद उसे अच्छा न लगता.

माया तनु को देखती, हैरान होती कि यह क्यों हर बात में एडजस्ट किए जा रही है जैसे अपनी किसी चीज में कोई इच्छा हो ही न. वही पहनती जो अनिल को पसंद था, वही बनाती जो घर में सब को पसंद हो, कोई भी बात हो, न अपनी राय देती,न पसंद बताती. माया सोचती यह तो अभी नवविवाहिता ही है, कहां हैं इस के सारे शौक, एक मूवी भी अपनी पसंद की नहीं देखती. अनिल जब चाहे,रिमोट ले कर चैनल बदल दे. वह कुछ भी न कहती. बस, मुसकरा कर रह जाती.

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एक दिन सब घर से ही काम कर रहे थे. लंच के बाद माया थोड़ी देर आराम करती थीं. उस दिन लेट कर उठीं तो देखा, सुधीर डाइनिंग टेबल पर हमेशा की तरह फोन पर हैं. अनिल के रूम से जोरजोर से हंसने की आवाज़ आई, तो माया ने झांका, अनिल किसी दोस्त से गपें मार रहा था. किचन में जा कर देखा, तनु फर्श पर लैपटौप लिए बैठी थी और किसी मीटिंग में होने का इशारा माया को दिया.

माया चुपचाप अपने रूम में आ कर बैठ गईं. पौन घंटे बाद तनु उन के कमरे में आई और लैपटौप एक तरफ रख, उन के बैड पर पड़ गई. उस के मुंह से एक आह सी निकल गई, इतना ही कहा, “ओह्ह, मां, फर्श पर तो कमर अकड़ गई.”

माया आज और चुप न रह पाईं, बोलीं, ”एक बात करनी है तुम से.”

”हां मां, कहो न.”

”तुम किचन में नीचे बैठ कर काम क्यों कर रही थीं?”

”अनिल ने कहा, वह अपने रूम में ही रहेगा, उसे वहीं आराम मिलता है.”

”तुम ने उसे बताया नहीं कि तुम्हारी जरूरी मीटिंग है.”

”बताया तो था, पर वह बोला, मैं कहीं और बैठ कर अपना काम कर लूं. आप सो रही थीं, तो मैं किचन में ही बैठ गई.”

”सुनो तनु, अपनी बात क्यों नहीं कहतीं तुम?”

”मां, मैं चाहती हूं कि मैं एक अच्छी पत्नी और बहू बन कर रहूं. मेरे मम्मीपापा में जब किसी बात पर झगड़ा होता था तो मुझे अच्छा नहीं लगता था. मैं सोचा करती थी कि मैं अपनी शादी के बाद घर में कोई झगड़ा कभी होने ही नहीं दूंगी.”

माया मुसकराईं, ”तुम्हारे मम्मीपापा झगड़े के बाद नौर्मल हो जाते थे न?”

”हां मां, पर मुझे उन के झगड़े अच्छे नहीं लगते थे.”

”देखो तनु, तुम आदर्श पत्नी या बहू बनने की कोशिश भी न करना, उस से अच्छा होगा कि एक आम बहू या पत्नी बन कर अपने मन की भी कभी करो. सिर्फ हमारे मन से नहीं, कभी अपने मन से भी चलो और अगर कभी किसी से झगड़ा हो भी जाए तो डरना कैसा, हम साथसाथ रहते हैं, कितनी देर तक झगड़ा चलेगा. थोड़ा मनमुटाव कभी हो भी जाए तो रिश्ते टूट थोड़े ही जाते हैं. मैं तो कहती हूं कि उस के बाद का प्यार बड़ा प्यारा होता है.

“कोई बहस न हो, कोई झगड़ा न हो, इसी कोशिश में लगी रहोगी, तो खुद के लिए कैसे जियोगी, कितने दिन ऐसे खुश रह लोगी, मन ही मन कुंठित होती रहोगी. फिर जो नुकसान होगा उसे कौन भरेगा. कल बच्चे हो जाएंगे, फिर तो उन की ही इच्छाएं सर्वोपरि हो जाएंगी. अपने लिए कब जियोगी? फिर आदर्श मां बनने के चक्कर में पड़ जाओगी.

“अपनी बात कहना, फिर उसे पूरा करना सीखो. मैं ने भी यह गलती की है, हमेशा वही किया जो सास, ससुर, ननद, देवर, सुधीर, अनिल को पसंद रहा. जो हमें खुद को अच्छा लगता था, वह किया ही नहीं. अब इतनी उम्र बीतने पर अफ़सोस होता है कि अपने लिए तो मैं जी ही नहीं.

“सो, आदर्श बनने के चक्कर में बिलकुल मत पड़ो. मैं तो कहती हूं कि मुझ पर भी गुस्सा आए, तो मुझ से भी लड़ लो. मन मार कर जीने से फ़ायदा नहीं होगा, कुछ नहीं मिलेगा. उलटे, दिनोंदिन कमजोर होती जाओगी.‘’

तकिये के सहारे लेटी तनु मंत्रमुग्ध सी अपनी सासुमां का चेहरा देखे जा रही थी, सोचने लगी, ये कैसी सासुमां हैं जो मुझे इस तरह से समझा रही हैं, ये तो निराली ही हैं.

माया ने पूछा, ”अब किस सोच में हो?”

”मुझे तो लगता था आप खुश होंगी कि मैं घर में सब का ध्यान रखती हूं, जो कुछ कहा जाता है, मैं वही करती हूं. मैं सच में एक आदर्श बहू और पत्नी बनना चाहती थी, मां.”

”कोई जरूरत नहीं है, मुझे एक आम इंसान अच्छा लगता है जो खुद भी जीना चाहे, जिस की खुद भी इच्छाएं हों और जो उन्हें भी पूरा करना चाहे. वैसे भी, हमारा समाज पुरुषप्रधान है, एक लड़की ही क्यों आदर्श बनने के चक्कर में अपना जीवन होम करे. अनिल और सुधीर क्यों नहीं करते ऐसा कुछ कि हमारी इच्छाओं के लिए अपनी इच्छाएं कभी छोड़ दें, कभी तो कहें कि चलो, आज वह बनाओ जो तुम्हें पसंद हो. ऐसा तो कभी नहीं होता.

“कभी उस की सुनो, कभी वह तुम्हारी सुने, पर ऐसा होता नहीं है. ऐसे में दुख होता है. और मैं यह बिलकुल नहीं चाहती कि मेरी बहू कभी अपना मन मारे. आज भी मेरे मन में कितनी कड़वी यादें हैं जबजब मैं अपने मन का नहीं कर पाई. एक उम्र के बाद तुम्हें यह दुख नहीं होना चाहिए कि कभी तुम ने अपने मन का कुछ किया ही नहीं. आम इंसान की तरह ही जी लो, बहूरानी,‘’ कहतेकहते माया ने तनु के सिर पर हाथ रख दिया. तनु ने उन की हथेली चूम ली. इतने में अनिल अंदर आया, वहीं पलंग पर वह भी लेट गया, बोला, ”तनु, आज मंचूरियन और फ्राइड राइस बनाओगी?”

”नहीं अनिल, आज नहीं, फिर कभी.”

अनिल को जैसे एक झटका लगा, उठ कर बैठ गया, ”क्या?”

”हां, मीटिंग किचन में फर्श पर बैठ कर अटेंड की है, कमर अकड़ गई. आज शौर्टकट मारूंगी, बस, पुलाव ही बना सकती हूं, बहुत थक गई हूं. मां ने भी आज सुबह से बहुत काम कर लिया है, ठीक है न?”

विवाह के बाद यह पहला मौका था जब तनु ने किसी बात के लिए मना किया था. अनिल कभी पत्नी का मुंह देखता, कभी मां का. फिर उस ने इतना ही कहा, ”ठीक है, जैसी तुम्हारी मरजी.”

अनिल का कोई फोन आ गया तो वह बाहर निकल गया. माया ने तनु का हाथ सहलाते हुए कहा, ”शाबाश, यह हुई न बात.”

सुधीर ने अंदर आते हुए पूछा, ”किस बात की शाबाशी दी जा रही है, भाई, हमें भी बताओ.”

”पर्सनल बात है सासबहू की, पापा,” हंसती हुई कह कर तनु रूम से बाहर निकलने लगी, माया ने उसे देखा, तो उस ने माया को आंख मार दी. माया जोर से हंस पड़ीं. सुधीर कुछ समझे नहीं, बस, माया के मुसकराते चेहरे को देखते रह गए.

Rubina Dilaik ने इंस्टा हैक करने वाले को जमकर लताड़ा तो फैंस ने ऐसे की तारीफ

बिग बॉस 14 कि विजेता रुबीना दिलाइक अपने सोशल मीडिया पर खूब छाई रहती हैं. लेकिन अगर इस दौरान उनसे कोई भिड़ता है तो वह करारा जवाब देने में भी पीछे नहीं रहती हैं. रुबीना दिलाइक ने हाल ही सोशल मीडिया पर किसी को करारा जवाब दिया है.

दरअसल, रुबीना दिलाइक का इंस्टाग्राम  अकाउंट हैक करने की कोशिश कर रहा था. ऐसे में रुबीना ने देर रात अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा कि कोई ‘मेरा इंस्टाग्राम अकाउंट हैक करने की कोशिश कर रहा है. लोकेशन दिल्ली बता रहा है. आगे उन्होंने लिखा कि अपनी एनर्जी को कहीं और लगाओं देश बुरे दौर से गुजर रहा है. ‘

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जिसके बाद से लगातार सोशल मीडिया पर कमेंट आ रहे हैं कुछ फैंस ने ये भी कहा कि आप अपनी एनर्जी को सही जगह लगाएं और रुबीना को सपोर्ट करते हुए कहा कि आप इन नकारात्मक लोगों से दूर रहें.

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रुबीना के इस अवतार को देखकर लोगों को एक बार फिर बिगबॉस वाली रुबीना दिलैक कि याद आ गई. फैंस रुबीना को बहुत प्यार करते हैं. उनके किसी भी फोटो पर लाइक और कमेंट करना नहीं भूलते हैं. ऐसे में रुबीना दिलाइक भी अपने फैंस को खुश करने के लिए आए दिन नए-नए पोस्ट शेयर करती रहती हैं.

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वर्कफ्रंट कि बात करें तो रुबीना कई नए प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है. इसके साथ ही वह अपनेी फैमली के साथ टाइम बितानी भी नहीं भूलती हैं.

Irrfan Khan की पहली डेथ एनिवर्सरी पर इमोशनल हुए फैंस, सोशल मीडिया पर किया याद

गुरुवार को दिवंगत अभिनेता इरफान की पहली डेथ एनीवर्सरी है. आज से एक साल पहले यानि 29 अप्रैल 2020 को उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था. जिसके बाद कुछ वक्त के लिए लोगों को इस बात पर भरोसा करना मुश्किल हो रहा था कि अब इरफान हमारे बीच नहीं रहें.

इरफान खान एक ऐसे कलाकार थे जो किसी भी किरदार में फिट हो जाते थें. इरफान ने सिर्फ बॉलीवुड ही नहीं अपने एक्टिंग का लोहा उन्होंने हॉलीवुड में भी मनवाया था. कई सुपर हिट फिल्मों में उन्होंने काम किया था.

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जनवरी 1967 में जन्में  इरफान खान ने जुरासिक वर्ल्ड, द अमेजिन स्पाइडर मैन ,स्लमडॉग मिलिनियर जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में काम किया था. आज उन्हें हर कोई याद कर रहा है. शायद यही वजह है कि आज ट्विटर का पहला ट्रेंड #irphan कर रहा है.

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इफान  की कमी कोई भी पूरा नहीं कर सकता है उन्होंने जो भी एक्टिंग कि है वह आज अमर हो गई है. वह ना रहकर भी आज हमारे बीच अपनी एक्टिंग कि वजह से जिंदा हैं. उनके फिल्म के कई डायलॉग आज भी हमारे दिल में बसे हुए हैं. फिर वह चाहे पार्लियामेंट वाला डायलॉग हो या फिर रिश्ते में डकैत वाला डायलॉग हो.

उनकी पत्नी सुतापा और बेटे बाबिल ने भी उन्हें सोशल मीडिया पर आज याद किया है. इसके अलावा हजारों कि संख्या में लोग सोशल मीडिया पर उन्हें पोस्ट करके याद कर रहे हैं.

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इरफान के जाने का गम आज हर किसी को हो रहा है. लेकिन वह हमेशा अपने फैंस के दिलों में जिंदा रहेंगे.

बुरके के पीछे का दर्द

बुरके के पीछे का दर्द- भाग 3 : नसीम के साथ अकरम ने ऐसा क्या किया

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. मैं चौंका लेकिन उस ने बेफिक्री से कहा, ‘‘बाई होगी, सर. वह इसी तरह दस्तक देती है.’’

हां, बाई ही थी. पहले दरवाजे की दरार से उस ने देखा, फिर बड़ी एहतियात से इधरउधर देखते हुए दरवाजा खोला.

एक कमसिन लड़की थी, जो तुरंत अंदर दाखिल हुई और चोर निगाह से मु झे देखते हुए अपने काम में लग गई.

नसीम ने उसे बताया कि मैं उस का टीचर रहा हूं और मु झ से कहा कि उस लड़की का नाम रेशमा है. वह दो वक्त आती है और भरोसे की है. वह घर का ही नहीं, उस का भी बहुत खयाल रखती है.

‘‘सर, आप मेरी दास्तान सुनतेसुनते ऊब गए होंगे,’’ फिर रेशमा से मुखातिब हो कर बोली, ‘‘रेशमा, पहले चाय बना लो. तुम भी पी लेना.’’

लड़की स्मार्ट थी. आननफानन चाय बना लाई और एक तिपाई खिसका कर बड़ी नफासत से हम दोनों के बीच रख दी.

‘‘क्या फिर तुम शारजाह गईं?’’ चाय का?घूंट भरते हुए मैं ने नसीम से पूछा.

‘‘कहां, सर?’’ उस ने बातों का सिलसिला पकड़ते हुए शुरू किया, ‘‘अगले दिन मु झे पता लगा कि मैं प्रैग्नैंट हूं. डाक्टर से तसदीक करा लेने के बाद जब मैं ने उसे यह खबर दी तो सुनते ही उस ने माथा पीट लिया और  झुं झला कर बोला, ‘अरे, तुम ने तो सारा प्लान ही चौपट कर दिया.’

‘‘मैं सकते में आ गई, बोली, ‘कौन सा प्लान? तुम को तो खुश होना चाहिए कि तुम बाप बनने वाले हो.’ वह बोला, ‘पर हम अभी बच्चा अफोर्ड नहीं कर सकते. फिर तुम्हें तो अगले जुमे को शारजाह जाना है. वहां काफी काम होगा. ऐसी हालत में तुम सब कैसे कर सकोगी?’

‘‘ ‘क्यों नहीं कर पाऊंगी? फिर अभी तो शुरुआत है और हफ्ते दो हफ्ते में तो तुम भी आ ही जाओगे,’ नसीम ने कहा.

‘‘ ‘हां, पर तुम्हें कैसे बताऊं कि तुम्हारे लिए वहां कितना काम है,’ वह बोला.

‘‘मैं उस का मतलब नहीं सम झ पाई. उस ने जोर दे कर कहा कि ऐसे में अब यही रास्ता बचा है कि मैं अबौर्शन करा लूं. उस की इस बात से तो मैं थोड़ा घबरा गई. मेरे मना करने पर तो वह मु झे मारने को भी तैयार हो गया. मु झे उसी समय लगने लगा कि मैं ने उसे ले कर जो सपने बुने थे, वे सब जमींदोज होने को हैं.

‘‘मेरी एक न चली और मु झे अबौर्शन कराना ही पड़ा. उसी में कुछ कौंप्लिकेशंस हो गए, जिन की वजह से मु झे इलाज कराना पड़ रहा है. उसी सिलसिले में मु झे डाक्टर के पास जाना पड़ रहा है, जहां आप से मुलाकात हुई.’’

‘‘अब कैसी हो?’’ मैं ने दरियाफ्त करना जरूरी सम झा.

‘‘अब काफी कुछ ठीक हूं.’’

काम करने वाली लड़की आई और चाय के कप उठाती हुई नसीम से पूछा, ‘‘अब, मैं जाऊं?’’

नसीम ने इशारे से इजाजत दे दी. इस बार मैं ने रेशमा को नजदीक से देखा. सचमुच वह आम मेड जैसी नहीं लगती थी. काफी सलीकेदार थी और भरसक सूफियाना सजधज के साथ काम पर आई थी. उस ने एक भरपूर नजर मु झ पर डाली और बड़ी एहतियात से इधरउधर देखते हुए दरवाजा खोला और तेजी से निकल गई.

रेशमा के जाने के बाद नसीम ने अपनी बात फिर शुरू की. उस ने बताया कि अबौर्शन के बाद उसे बैडरैस्ट की सलाह दी गई है, इसलिए उसे मजबूरन काम से छुट्टी लेनी पड़ी.

उस ने आगे बताया, ‘‘एक दिन दोपहर को मु झे कुछ सुनाई पड़ा कि कोई आया हुआ है और अकरम उस से बात कर रहा है. थोड़ी देर बाद आने वाले की आवाज तेज हो गई कि जैसे वह अकरम को डांट रहा हो. उन की बातों के चंद लफ्ज मेरे कानों में पड़े, जिन से मु झे पता लगा कि उन की बातों के केंद्र में मैं हूं.

‘‘कोशिश कर के मैं दरवाजे तक खिसक आई और उन की बातें सुनने लगी. मैं जैसे आसमान से गिरी. जो सुना, उस पर एकाएक यकीन न हुआ. मैं ने अकरम को पूरी ईमानदारी से प्यार किया था और उस पर मैं अपने से भी ज्यादा भरोसा करने लगी थी. सोच भी नहीं सकती थी कि वह मेरे साथ ऐसा छल कर सकता है. वह मु झे उस शेख को बेच चुका था. नोटों का भारी बंडल और शारजाह मु झे अकेले भेजने की तैयारी…सब मेरी आंखों में घूम गया. मेरी आंखों के आगे अंधेरा घिर आया और मैं अपना सिर पकड़ कर बैठ गई. हाय, अब मैं क्या करूं, कैसे इन के चंगुल से बचूं, मैं कुछ सोच न पा रही थी. कमजोरी भी इतनी थी कि एकदम भाग भी नहीं सकती थी. और भाग कर जाऊंगी कहां? लखनऊ लौट नहीं सकती थी. वह वहां से मु झे फिर पकड़ लाएगा.’’

‘‘फिर कहां जाओगी? मुंबई में रहीं तो कब तक बच पाओगी,’’ मैं ने भी अपनी फिक्र जाहिर की.

‘‘जी सर, मुंबई में अब नहीं रह पाऊंगी. मर्ुिशदाबाद में मेरी एक फूफी हैं, दूर के रिश्ते की. उन का उसे पता नहीं है. वहां वे मु झे काम भी दिलवा रही हैं.’’

‘‘हां. यह ठीक रहेगा, पर तुम वहां से निकली कैसे?’’ मैं ने जानना चाहा.

‘‘कुछ दिन मैं ने ऐसा बरताव किया कि जैसे मु झे कुछ इल्म ही न हो. अनजान ही बनी रही. इन डाक्टर साहब का पता मु झे मालूम था. ये दूर के रिश्ते में मेरे मामू लगते हैं. इन का इलाज तो चल ही रहा था. मैं टैक्सी ले कर अकेले ही आती थी. एक दिन आई तो लौटी ही नहीं. यह जगह मैं ने चुपचाप तय कर ली थी. तब से यहीं छिप कर रहती हूं. मु झे पता है कि वह मु झे तलाश रहा है.

‘‘एक दिन डाक्टर साहब के क्लीनिक के पास भी दिखाई दिया था. मैं बहुत डर गई थी, पर न जाने कैसे बच गई. एक दिन मैं ने दरवाजे की दरार से उसे यहां भी देखा था. आसपास में पूछताछ कर रहा था. मैं किसी से मिलती नहीं हूं, इसलिए मु झे कोई जानता नहीं है. तब से ऐसे ही डरीछिपी रहती हूं और पूरी एहतियात बरतती हूं. अब थोड़ी ताकत आ गई है, अब आगे की सोच सकती हूं. पर पहले मैं उसे सबक सिखाना चाहती हूं. उसे रंगेहाथ पकड़वाना चाहती हूं. मैं ने जितनी शिद्दत से उसे प्यार किया था, अब उतनी ही ज्यादा उस से नफरत करती हूं. मु झे पता लगा है कि वह क्राइम बीट पर काम करतेकरते लड़कियां सप्लाई करने का धंधा करने लगा है. उस ने बहुत अच्छे कौंटैक्ट बना लिए हैं. खूब कमाया है. मु झे शक तो शुरू से ही था, अब कनफर्म हो गया कि वरली वाला फ्लैट उसे किसी ने गिफ्ट किया है.’’

‘‘हो सकता है, वैसे वरली में तो किराए पर रहना भी हर कोई अफोर्ड नहीं कर सकता,’’ मैं ने कहा.

‘‘ठीक कहा आप ने, सर इसीलिए तो मु झे पहले दिन ही शक हुआ था, लेकिन मैं उस से इस कदर प्यार करती थी कि यकीन न करने का सवाल ही नहीं उठता था. सर, मैं ने एक प्लान बनाया है. बस, उस में मु झे आप की मदद की जरूरत पड़ेगी. आप से इमदाद की गुजारिश तो कर ही सकती हूं न?’’

‘‘क्यों नहीं?’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे बिना बताए ही मैं सम झ गया कि तुम्हारा प्लान क्या है.’’

वह मुसकराई और बोली, ‘‘आप ने मेरी मेड रेशमा को तो अभी देखा न? वह पूरे तौर पर मेरे साथ है.’’

‘‘मैं ने कयास लगा लिया है कि तुम क्या करने वाली हो. पर तुम कोई बड़ा जोखिम उठाना चाहती हो. यह सब उतना आसान नहीं है जितना तुम सम झ रही हो. मैं तुम्हें डिसकरेज नहीं करना चाहता पर तुम्हें आगाह जरूर करना चाहता हूं कि इस में न सिर्फ तुम्हारे बल्कि रेशमा के लिए भी बड़ा खतरा है. अकरम कोई अकेला नहीं है, ऐसे अकरम एक नहीं कई हैं. पूरा का पूरा माफिया है. तुम किसकिस से लड़ोगी?’’

‘‘तो मैं क्या करूं, सर? क्या चुप बैठ कर उसे मनचाहा करने दूं? नहीं सर, उसे सबक सिखाना तो जरूरी है.’’

‘‘मैं तो फिर भी यही सोचता हूं कि तुम्हें जल्द से जल्द मुर्शिदाबाद चले जाना चाहिए. तुम्हारे प्लान में बड़ा खतरा है. मान लो, तुम इस में कामयाब भी हो गईं तो तुम्हें हासिल क्या होगा? और अगर नाकामयाब रहीं तो तुम्हारा जीना तक मुश्किल हो सकता है.’’

‘‘मैं सम झ रही हूं, सर, और यह भी कि आप को अपनी इज्जत का खयाल है. नहीं, मैं आप पर आंच नहीं आने दे सकती. आप बेफिक्र रहें. लेकिन क्या डर कर बैठना ठीक होगा? किसी न किसी को तो पहल करनी होगी. पत्रकारिता के सिद्धांत पढ़ाते वक्त आप ने भी तो यही सिखाया है, सर.’’

मु झे एकबारगी कोई जवाब नहीं सू झा, फिर भी बोला, ‘‘तुम अकेली जान क्या कर लोगी? फिर हमें प्रैक्टिकल होना चाहिए. सब अच्छी तरह सोच लो, तभी कोई कदम उठाना.’’

‘‘जी, मैं इस पर कुछ और सोचती हूं.’’

मैं ने उठते हुए कहा, ‘‘मेरा मोबाइल नंबर लिख लो. जब भी मेरी जरूरत पड़े, मैं आ जाऊंगा और जो हो सकेगा, करूंगा,’’ दरवाजे तक पहुंचतेपहुंचते फिर कहा, ‘‘बहुत एहतियात रखना.’’

‘‘जी, सर,’’ वह दरवाजे तक आई.

कई दिन तक उस का कोई फोन नहीं आया. मैं ने सम झ लिया कि शायद उस ने अपना खयाल बदल लिया होगा और मुर्शिदाबाद चली गई होगी. एक दिन उस घर तक भी गया, जहां वह मु झे ले गई थी, पर दरवाजे पर ताला लगा था. दरार से  झांका तो अंदर कुछ नजर नहीं आया.

बुरके के पीछे का दर्द- भाग 2 : नसीम के साथ अकरम ने ऐसा क्या किया

चंद मिनटों में ही वह अंदर आ गई. मैं तब तक खड़ा ही था और उस छोटे से घर को देख रहा था. पुराने ढंग का मकान था जो करीबकरीब खंडहर सा हो चला था. सिर्फ एक छोटा सा कमरा, उस से जुड़ा टौयलेट और दूसरी तरफ रसोई जो इतनी छोटी थी कि पैंट्री ही ज्यादा लगती थी. कमरे में 1 बैड, 2 कुरसियां, 1 मेज,

1 छोटी सी अलमारी और दीवार पर टंगा आईना. बस, कुल जमा यही था उस घर का जुगराफिया.

वह कुछ बात शुरू करे या मेरी उत्सुकताओं का जवाब दे, मैं ने उस से पूछा, ‘‘यह घर तो डाक्टर के क्लीनिक के एकदम पीछे ही था, फिर गलियोंगलियों इतना घुमाफिरा कर तुम क्यों लाईं?’’

वह जवाब न दे कर सिर्फ मुसकराई, फिर बोली, ‘‘सर, आप खुद सब सम झ जाएंगे. फिलहाल मैं चाय बना कर लाती हूं. आप वहां बैठेबैठे बोर हो चुके होंगे और आगे भी जब मैं अपनी कहानी सुनाऊंगी तो और भी बोर होंगे.’’

बोर होने से कहीं ज्यादा मैं उत्सुकता के तूफान में घिरा हुआ था. पता नहीं वह कौन सी मजबूरी है जो वह इतने खुफिया तरीके से रह रही है.

चाय  बना कर लाने में उसे ज्यादा देर नहीं लगी. चाय की चुस्कियों के साथ हम आमनेसामने बैठ गए. मैं ने एक सवालिया निशान वाली नजर उस पर उछाली, जिसे उस ने भांप लिया.

नसीम ने अपनी दास्तान सुनानी शुरू की, ‘‘2 साल मेरे ठीकठाक बीते. अकरम भी उसी अखबार में था, डेस्क पर नहीं, रिपोर्टर था. मु झे सिटी न्यूज संभालना था. हम जल्दी ही एकदूसरे के करीब आ गए. वह सजीला बांका जवान था. कोई भी उस से प्यार कर बैठता. एक दिन वह मेरे पास औफर ले कर आया कि मुंबई के सब से बड़े अखबार ने उसे बुलाया है और उस का एडिटर उस की पहचान का है. अगर हम दोनों ही मुंबई चलें तो हमारी जिंदगी ही बदल जाएगी. अपना कैरियर तो मैं भी बनाना चाहती थी, इसलिए उस की बात मु झे जंच रही थी, पर मेरा कहना था कि पहले हम निकाह कर लें, फिर मुंबई जाएं.’’

‘‘हां, तुम्हारा सोचना वाजिब था. पर वह उस पर क्या बोला?’’ मु झे भी अब उस की कहानी में रस आने लगा था.

‘‘पर वह हर बार यही कहता कि पहले हम नया जौब जौइन कर लें और मुंबई में सैटल हो लें, फिर वहीं निकाह कर लेंगे. मैं पूरी तरह उस के प्यार की गिरफ्त में आ चुकी थी, उस की बात मान कर हम लोग मुंबई चले आए. उसे तो औफर था ही, मु झे भी उसी अखबार में नौकरी मिल गई. जिंदगी ने रफ्तार पकड़ ली. वरली में हम ने एक फ्लैट भी ले लिया.’’

‘‘कैसे? इतनी जल्दी इतना पैसा कैसे आया?’’

‘‘यह सवाल मेरे मन में भी उठा था. उस ने कहा कि फ्लैट किराए पर लिया है. जब पैसा हो जाएगा, खरीद लेंगे. मैं उसे शिद्दत से प्यार करती थी, इसलिए सवालजवाब की गुंजाइश ही न थी. जो वह कहता, मैं उस पर यकीन कर लेती थी. वहां वह क्राइम बीट पर था. देर रात तक उस की ड्यूटी रहती. देर से लौटता और सुबह देर तक सोता रहता. तब तक मैं तो औफिस जा चुकी होती, पता नहीं, वह न जाने कितने बजे उठता. इस तरह जिंदगी चल रही थी. मैं बारबार निकाह जल्दी करने पर जोर देती पर वह हर बार टाल देता. हम लोग करीब होते जा रहे थे. एक रात नाजुक लमहों में मैं पूरी तरह समर्पित हो गई. तमाम प्रीकौशंस धरी की धरी रह गईं.’’

‘‘तुम ने किसी पल उसे रोका नहीं.’’

‘‘नहीं. मैं उस के प्यार में इस कदर डूब गई थी कि मैं खुद अपने ऊपर काबू नहीं रख सकी. पर अगली सुबह मैं ने जिद पकड़ ली कि कल ही हम निकाह कर लेंगे. उस ने कहा कि मैं आज ही मौलवी से बात करता हूं, हम अगली जुमेरात को निकाह कर लेंगे पर वह अगली जुमेरात कभी नहीं आई.’’

‘‘लेकिन क्यों?’’ मैं ने पूछा.

‘‘वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाता कि मौलवी नहीं मिला, एक बड़ी स्टोरी कर रहा हूं, सो वक्त नहीं मिल पा रहा है. वक्त मिलते ही जरूर सब इंतजाम कर डालूंगा…वगैरहवगैरह.

‘‘एक रोज मेरा औफ था. अकरम उस रात बहुत देर से लौटा था और ड्राइंगरूम में ही सोफे पर सो गया था, इसलिए उसे पता न था कि आज मैं घर पर हूं. करीब 11 बजे कौलबैल बजी. उस वक्त मैं किचन में थी और आटा गूंध रही थी. दरवाजा उसी ने खोला. जो आया था, उसे उस ने ड्राइंगरूम में बैठा लिया और देर तक वे आपस में बातें करते रहे. जब मैं खाली हुई तो देखने आई कि कौन आया है. यह भी कि उस के लिए चायनाश्ते का इंतजाम करूं. मैं ने परदे की आड़ से ही देखा, आने वाला कोई शेख था और उस के सामने मेज पर नोटों की गड्डियां रखी थीं. मैं एकाएक सकते में आ गई, पर जब वह चला गया तो मैं सामने आई.

‘‘अकरम मु झे घर में पा कर कुछ चौंका, फिर पूछा कि मैं आज इस वक्त घर पर कैसे हूं. मैं ने बताया कि आज मेरा वीकली औफ है और मैं ने दरियाफ्त करनी चाही कि कौन आया था. उस ने बताया कि शेख शारजाह का एक बड़ा बिजनैसमैन है. मैं उस के कारोबार पर फीचर कर रहा हूं, उसी के सिलसिले में आया था. वहां एक अखबार निकालना चाहता है, जिस का एडिटर मु झे

बनाएगा और तुम भी वहीं असिस्टेंट एडिटर बनोगी.

‘‘ ‘अच्छा,’ कह कर मेरी आंखें खुशी से चमक उठीं. पर मैं ने पूछा कि इतने सारे रुपए किसलिए? क्या वह फीचर करने का नजराना दे रहा है?

‘‘‘नहीं, शारजाह जाने के टिकट, वीजा वगैरह के खर्च के मद में हैं ये रुपए.’

‘‘अब किसी तरह के शक की गुंजाइश न थी.

‘‘मैं खुद भी बहुत खुश थी कि नई जगह जाने से और ज्यादा आजादी से काम करने का मौका मिलेगा. आननफानन अकरम ने सब तैयारी कर ली और एक दिन कोरियर वाला दरवाजे पर खड़ा था, टिकट और पासपोर्ट लिए. मैं खुशीखुशी दरवाजे पर पहुंची. पर यह क्या? डिलीवरी बौय ने सिर्फ मेरा टिकट और पासपोर्ट दिया. मैं सकते में आ गई, क्या सिर्फ अकेले मु झे जाना है? पूरा दिन मैं अकरम का मोबाइल मिलाती रही, पर वह हमेशा बंद मिला और रात को वह इतनी देर से आया कि मु झे अपने सवालों और जिज्ञासाओं के साथ ही सोना पड़ा. सुबह मु झे ड्यूटी पर जाना था और वह जैसे घोड़े बेच कर सो रहा था. आखिर, मु झ से रहा न गया तो उसे  झं झोड़ कर जगाना पड़ा. वह आंखें मलता हुआ उठा. जब मैं ने बताया कि सिर्फ मेरा टिकट आया है, तुम्हारा क्यों नहीं. क्या मैं अकेली जाऊंगी?

‘‘उस ने उनींदे स्वर में ही कहा कि अभी तुम जा कर सब ठीकठाक करोगी, मैं बाद में आऊंगा.’’

‘‘अरे, तुम ने कहा नहीं कि ठीकठाक करने तो पहले उसे जाना चाहिए, तुम्हें तो बाद में जाना चाहिए,’’ मैं बोला.

‘‘जी हां सर, मैं ने उस से यही सवाल किया था, जिस का जवाब दिया कि उसे अभी यहां कई काम निबटाने हैं और दफ्तर वाले उसे एकदम छोड़ने को तैयार नहीं हैं. उस ने आगे कहा कि मैं बेफिक्र हो कर जाऊं. वे लोग अच्छी तरह मेरा खयाल रखेंगे. और मैं निरुत्तर हो गई.’’

 

लौन: हरा भरा गलीचा

आधुनिक युग में जहां एक ओर घर की आंतरिक बनावट व साजसज्जा का ध्यान रखा जाता है वहीं दूसरी ओर घर के चारों ओर खाली पड़ी जमीन या आंगन को आकर्षक बनाया जाता है. घर के बाहर का बगीचा आजकल आउटडोर लिविंगरूम कहलाता है. इस लिविंगरूम का फर्श यदि एक जीवंत हराभरा गलीचा हो तो घर की शोभा ही अनोखी बन जाती है. जी हां, हम जिस हरेभरे गलीचे की बात कर रहे हैं वह और कुछ नहीं बल्कि लौन है.

लौन एक हरे कैनवस की भांति होता है जिस के ऊपर आप रुचि के अनुसार रंग बिखेर सकते हैं. आधुनिक चिकित्सा पद्धति ने भी यह स्वीकारा है कि हमारे आसपास पेड़पौधों व हरियाली का मानव मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. सुबहशाम लौन पर नंगे पांव चलने से प्राकृतिक रूप से ऐक्यूप्रैशर होता है और आंखों को भी शीतलता प्राप्त होती है. अन्य पौधों के मुकाबले लौन की विशेषता यह है कि यह वर्षभर हराभरा रहने के साथ बगीचे का स्थायी अंग बन जाता है, जिसे बारबार लगाने की आवश्यकता नहीं होती. आइए, लौन लगाने व उस की देखभाल करने की जानकारी लें.

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घास का चुनाव :

घास का चुनाव करते समय वातावरण, तापमान, आर्द्रता इत्यादि की जानकारी अवश्य लें. गरम स्थानों पर उगाई जाने वाली घास जहां गरम, आर्द्र मौसम को सहन कर सकती है वहीं ठंडे स्थानों पर लगाई जाने वाली घास अत्यंत कम तापमान (कभीकभी 0 डिगरी सैंटीग्रेड से नीचे) व पाले की मार को सहन करने की क्षमता रखती है. अगर भूमि काफी है तो दूब घास यानी साइनोडोन डैक्टाइलोन की उन्नत किस्मों का प्रयोग करें. छोटे लौन में गद्देदार घास, कोरियन घास यानी जौयशिया जैपोनिका का प्रयोग कर सकते हैं.

इसी प्रकार ठंडे इलाकों में जहां तापमान शून्य से कम चला जाता है और पाले की मार भी अधिक होती है वहां बंगाल बैंट यानी एगरोस्टिस की विभिन्न प्रजातियां बहुत अच्छा गलीचा बनाती हैं. कैंटकी ब्लू घास यानी पोआ प्रेटेंसिस व राई घास यानी लोलियम पेरेनि भी ठंडे क्षेत्रों में उपयुक्त पाई गई हैं.

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जमीन की तैयारी :

लौन लगाने के लिए धूपदार जगह का चुनाव करें. एक बार लौन लगाने पर वह वर्षों तक आप के आंगन की खूबसूरती बढ़ाएगा, इसलिए जमीन की तैयारी पर अधिक ध्यान देना आवश्यक है. चूंकि घास जमीन की सतह पर चारों ओर फैलती है और जड़ें बहुत गहरी नहीं जातीं इसलिए ऊपरी 10-12 इंच की मिट्टी का भुरभुरा होना जरूरी है. इस मिट्टी को भली प्रकार छान लें और कंकड़पत्थर निकाल दें. अब मिश्रण तैयार करें. इस में 2 भाग छनी हुई मिट्टी, 1 भाग छनी हुई रेत व 1 भाग छनी हुई गोबर की खाद मिलाएं. इस मिश्रण को 15-20 दिन तक धूप लगाएं व 2 दिन के अंतराल पर उलटपलट करें. मिश्रण को गीला कर के पौलिथीन शीट से इस प्रकार ढकें कि हवा कहीं से भी अंदर न जा सके. इसे 25-30 दिन तक बिना छेड़े रहने दें, पौलिथीन से मिश्रण का तापमान बढ़ेगा और कीट, बीमारियां व खरपतवार के बीज नष्ट हो जाएंगे. इस प्रकार तैयार किया गया मिश्रण आदर्श लौन लगाने के लिए सर्वोत्तम है. अब इस मिश्रण को समान सतह बना कर फैलाएं. मिश्रण फैलाते समय ग्रेडिएंट का ध्यान रखना आवश्यक है ताकि पानी निकासी का उचित प्रबंधन हो. वैसे तो लौन समतल भूमि पर बनाया जाता है परंतु इसे और अधिक आकर्षक बनाने के लिए छोटेछोटे टीले यानी पहाड़ भी बनाए जा सकते हैं.

लौन लगाने का समय :

शुष्क व गरम इलाकों में बरसात के आरंभ में लौन लगाएं. इस में घास के पौधे शुरुआती जड़ें अच्छी तरह पकड़ेंगे और वातावरण में नमी की मात्रा अधिक होने से घास का फैलाव भी शीघ्रता से होगा. ठंडे इलाकों में लौन फरवरी, मार्च, जुलाई, अगस्त या सितंबर, अक्तूबर में भी लगाया जा सकता है. यद्यपि अगर सिंचाई करने की पर्याप्त सुविधा हो तो सर्द महीनों को छोड़ कर लगभग पूरे वर्ष लौन लगा सकते हैं.

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लौन कैसे लगाएं :

लौन लगाने के 2 प्रमुख तरीके हैं, बीज से व पौध से. जब लौन बीज से लगाना चाहें तो  बीज की मात्रा का ज्ञान होना चाहिए. घास की कुछ प्रजातियों के बीज अत्यंत छोटे होते हैं ऐसे बीजों को समान मात्रा में रेत में मिला कर बोया जाता है. इस में लौन को कई बराबर भागों में विभाजित करें. फिर उस में बीज बराबर हिस्सों में छिड़काव विधि द्वारा डालें. इस से पूरे लौन में बराबर बीज डलेगा. बीज डालने के बाद उस के ऊपर लौन मिश्रण की 0.5 से 1.0 सैंटीमीटर ऊंची सतह बिछाएं. लौन के ऊपर बीज डाल कर सीधे सिंचाई न करें. इस पर जूट या बोरी या सूखी घास बिछा कर फौआरे से सिंचाई करें.

बीज बोने के बाद मिश्रण में नमी खत्म न होने दें, आवश्यकतानुसार फौआरे या स्प्रिंकलर से पानी दें. लगभग 12-15 दिन बाद जब बीज उगना शुरू हो जाए तो जूट हटा दें. बहुत बड़ा लौन हो तो बिना जूट से ढके केवल स्प्रिंकलर से भी पानी दे सकते हैं. पौध से लौन लगाने के लिए पहले नर्सरी में पौध तैयार की जाती है, फिर जड़दार घास को लगाया जाता है. यह तरीका बड़े लौन के लिए ठीक नहीं है.

लौन लगाने के और भी कई तरीके हैं परंतु सब से आधुनिकतम तरीका है टर्फिंग. इस में लौन विभिन्न आकार के टुकड़ों (टाइलों) में बनाबनाया उपलब्ध रहता है. सब से पहले लौन का मिश्रण मनचाहे आकार में बिछा लें. अब इस भूमि को नाप कर, इसी के आकार का टुकड़ा नर्सरी से ले आएं. यदि लौन का आकार बड़ा है तो घास टाइलों के रूप में (1×1 फुट) कटवा कर लाएं. इन टाइलों को ईंटों की चिनाई की तरह भूमि पर बिछाएं. लौन को खूब पानी दें. इस प्रकार की लौन घास लगभग सभी नर्सरियों में 90-150 रुपए प्रति किलोग्राम के मूल्य पर उपलब्ध रहती है. यह लौन लगाने का सब से आसान व शीघ्रतम तरीका है. इस तरह आप रातोंरात घर के आंगन में हराभरा लौन लगा सकते हैं. इसे इंस्टैंट लैंडस्केपिंग भी कहा जाता है.

लौन की देखभाल :

खूबसूरत लौन बगीचे की जान और घर की शान है. यदि लौन की घास ऊंचीनीची, ज्यादा बढ़ी या खरपतवार से भरपूर है तो बगिया की सुंदरता नष्ट हो जाती है. लौन को खूबसूरत बनाए रखने के लिए इन बातों का खयाल रखें :

मोइंग (घास काटना) :

घास की सतह को समतल व हराभरा रखने के लिए घास को समयसमय पर काटना आवश्यक है. मोइंग करने से घास में नई कोंपलें (टिलरिंग) निकलती हैं, जिस से लौन घना बनता है और शीघ्रता से एक हरे गलीचे की तरह फैलता है. मोइंग करते समय घास की ऊंचाई 5-7 सैंटीमीटर रखनी चाहिए. अधिक छोटी करने पर घास की जड़ें कमजोर पड़ सकती हैं और घास पर तीव्र धूप व पाले का असर भी जल्द पड़ता है. मोइंग कितने समय के अंतराल पर करें, यह घास के स्वभाव और उस के उगने की क्षमता पर निर्भर करता है. छोटे लौन के लिए हाथ से चलने वाला मोअर इस्तेमाल करें.

रोलिंग :

लौन में समतल हरियाली प्राप्त करने के लिए रोलिंग करना जरूरी है. रोलिंग का काम बरसात का मौसम शुरू होने पर शुरू करें. रोलिंग में घास के तने, जो जमीन से ऊपर उठे हों, को रोलर के दबाव से मिट्टी के नजदीक पहुंचा दिया जाता है. घास की गांठों से नई जड़ें निकलती हैं जिस से घास के बीच की खाली जमीन भर जाती है और घास समान रूप से पूरे लौन को ढक लेती है.

सिंचाई :

नए लगाए लौन में तब तक सिंचाई करें जब तक जड़ें मिट्टी न पकड़ लें. वैसे सालभर आमतौर पर तापमान और वातावरण की नमी के अनुसार सिंचाई करें. जब लौन अपनी जड़ें पकड़ ले तब लौन में समुचित पानी दें और उस के बाद सिंचाई के अंतराल को बढ़ा दें. दूसरी सिंचाई तभी करें जब लौन की मिट्टी में सूखने के आसार नजर आने लगें. ऐसा करने से घास की जड़ें गहराई तक जाएंगी और मजबूत बनेंगी, गहरी जड़ें लौन को वातावरण के दुष्प्रभावों  से बचाने के साथसाथ घास को बारंबार मोइंग सहन करने की ममता भी प्रदान करती हैं.

खाद व उर्वरक :

लौन में हरियाली कायम रखने के लिए पोषक तत्त्वों में से नाइट्रोजन सब से जरूरी है. इस के लिए रासायनिक खादों में 15 भाग अमोनियम सल्फेट, 5 भाग सुपर फास्फेट व 2 भाग पोटैशियम सल्फेट का मिश्रण बनाएं. अब इस मिश्रण को 2.5 किलोग्राम प्रति 100 वर्ग मीटर की दर से लौन में छिड़काव विधि द्वारा वर्ष में 2 बार डालें. खाद डालने के बाद लौन की जम कर सिंचाई करें, ताकि ये रसायन मिट्टी में चले जाएं और जड़ों तक पोषक तत्त्व पहुंच जाएं.

खरपतवार उन्मूलन :

लौन में खरपतवार का होना उस की सुंदरता को नष्ट करता है. अगर लौन मिश्रण को अच्छी प्रकार स्टरिलाइज किया गया हो तो यह ज्यादा परेशानी का कारण नहीं बनता. छोटे लौन में खुरपी से खरपतवार को जड़सहित निकाल फेंकें. चौड़े पत्ते वाले खरपतवार के लिए रासायनिक स्प्रे का प्रयोग किया जा सकता है.

कीट व बीमारियां :

आमतौर पर लौन में कीट व बीमारियों का प्रकोप बहुत कम देखने को मिलता है. यद्यपि कोई बीमारी अगर लौन में नजर आए तो उस का सावधानी से निरीक्षण करें. कई बार खराब जल निकासी के कारण भी लौन में समस्या आती है. ऐसा होने पर जल निकासी का प्रबंध करें. फफूंद की समस्या आने पर लौन में डाइथेनन (2 लिटर पानी) व बाविस्टिन (1 ग्रा./लिटर पानी) के घोल से ड्रैचिंग करें, यानी मग में डाल कर घास पर डालें. घास में रस्ट की समस्या आने पर प्रोपिकोनाजोल का स्प्रे करें.

जड़ों को छेदने वाले ग्रब्ज या कीटों की रोकथाम के लिए क्लोरपाइरेफास (2 मिली./लिटर पानी) की डै्रचिंग करें. वैसे तो आंगन में एक हराभरा लौन सब की नजर आकर्षित करने के लिए पर्याप्त है लेकिन अगर इस के साथसाथ छोटे अलंकृत पौधे या वस्तुएं सजाएं तो इस का आकर्षण कई गुना हो जाता है. यदि लौन से हो कर घर का प्रवेशद्वार पड़ता है तो लौन में रास्ता बनाएं ताकि लौन पर लोग न चलें. बाजार में अलगअलग प्रकार के पेवर उपलब्ध हैं जिन का बखूबी प्रयोग किया जा सकता है. गोल पत्थर के पेवर आप के लौन को जापानी आभास देंगे. लौन के एक कोने में छोटी रौकरी, फौआरा या झरना इत्यादि आप के लैंडस्केप को जीवंत कर देगा. किसी कोने में रखा बर्ड बाथ व पेड़ों की शाखों पर बर्ड नैस्ट आप के प्रकृति प्रेम को उजागर करेगा.

एक्वापोनिक्स की पद्धति और तकनीक- भाग 2: मीडिया बेड विधि

मीडिया बेड तकनीक पर आधारित इकाइयां छोटे पैमाने पर एक्वापोनिक्स के लिए सब से लोकप्रिय डिजाइन हैं. अधिकांश विकासशील देशों में इस विधि की सिफारिश की जाती है. यह डिजाइन कम जगह घेरने, अपेक्षाकृत कम प्रारंभिक लागत और सरल तकनीक के कारण नए लोगों के लिए उपयुक्त हैं.

मीडिया बेड का निर्माण करना

सामग्री : मीडिया बेड प्लास्टिक ड्रम, फाइबर ग्लास या पौलीथिन शीट से बनाया जा सकता है.

आकार : आदर्श मीडिया बेड लगभग  1 मीटर चौड़ी और 1-3 मीटर की लंबी होनी चाहिए. मीडिया बेड (ग्रेवल टैंक) इतना चौड़ा नहीं होना चाहिए कि किसान/संचालक को कम से कम आधे बेड तक भी पहुंचने में कठिनाई हो.

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गहराई : मीडिया बेड की गहराई भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह इकाई में रूट स्पेस वौल्यूम की मात्रा को नियंत्रित करता है. यदि टमाटर, भिंडी या गोभी जैसी बड़ी फल वाली सब्जियां बो रहे हैं, तो मीडिया बेड में तकरीबन 30 सैंटीमीटर की गहराई होनी चाहिए, जिस के बिना बड़ी सब्जियों में पर्याप्त रूट स्पेस नहीं मिलेगा. पौधों की जड़ आपस में उल?ा जाएंगी और पोषक तत्त्वों की कमी का अनुभव होगा. छोटी पत्तेदार हरी सब्जियों की जड़ों को 15-20 सैंटीमीटर तक मीडिया बेड गहराई की आवश्यकता होती है, जिस से मीडिया बेड का आकार सीमित होने पर उन्हें बढ़ने का एक अच्छा विकल्प मिल जाता है.

मीडिया के विकल्प

मीडिया के कुछ आवश्यक मापदंड हैं. मीडिया निष्क्रिय होना चाहिए, उस में धूल और विषैलापन न हो और यह एक उदासीन पीएच (7.0) वाला होना चाहिए, ताकि पानी की गुणवत्ता प्रभावी बनी रहे.

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मीडिया की विशेषताएं

बैल साइफन और उस के घटक : मीडिया बेड से निश्चित मात्रा में जल निकासी के लिए बैल साइफन लगाया जाता है. बैल साइफन के तीन मुख्य घटक होते हैं. 30 सैंटीमीटर की मीडिया गहराई ओर 1-3 मीटर के मीडिया क्षेत्र वाले एक्वापोनिक डिजाइनों की प्रत्येक बेड के लिए 200-500 लिटर/घंटा जल प्रवाह की दर रखनी चाहिए.

स्टैंडपाइप : मीडिया बेड तकनीक में बैल साइफन स्टैंडपाइप का निर्माण पीवीसी पाइप से किया जाता है. यह बैल साइफन का सब से भीतरी हिस्सा है, जिस का व्यास 2.5 सैंटीमीटर  और ऊंचाई लगभग 22 सैंटीमीटर होती है. स्टैंडपाइप मीडिया बेड के पेंदे में से बाहर निकलता है.

बैल : मीडिया बेड तकनीक में बैल एक पीवीसी पाइप की बनी होती है, जिस का व्यास 7.5 सैंटीमीटर और ऊंचाई 25 सैंटीमीटर रखी जाती है. बैल स्टैंडपाइप को ढकने वाला साइफन का मध्य भाग है. इस पाइप का शीर्ष एक पीवीसी के ढक्कन से बंद किया जाता है और नीचे की ओर खुला रहता है, जहां यह स्टैंडपाइप पर फिट बैठता है.

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बैल के निचले हिस्से में 1 सैंटीमीटर गुणा 4 सैंटीमीटर के 2 आयताकार छिद्र रखे जाते हैं, जो कि पानी को बैल के अंदर स्टैंडपाइप में खींचने के लिए होते हैं. साइफन को तोड़ने में मदद करने के लिए नीचे से 5 सैंटीमीटर और ऊपर  1 सैंटीमीटर का एक छेद भी किया जाता है.

मीडिया गार्ड : यह गार्ड 11 सैंटीमीटर व्यास और 32 सैंटीमीटर की ऊंचाई का होता है. इस में कई छोटे छेद इस के किनारों में ड्रिल द्वारा किए जाते हैं. मीडिया गार्ड पानी के प्रवाह में बाधा डाले बिना स्टैंडपाइप में बेड की बजरी के प्रवेश को रोकता है.

टाइमर यंत्र : मीडिया बेड में कुछ समयांतराल पर पानी भरने और निकासी द्वारा सिंचाई को नियंत्रित करने के लिए पानी के पंप और एक टाइमर स्विच की जरूरत पड़ती है.

इस विधि का लाभ यह है कि इस में श्रम साध्य तरीके से औटोसाइफन को केलिब्रेट नहीं करना पड़ता है. हालांकि, पानी के कम परिसंचरण और मछली टैंक में वायु संचरण के कारण पानी कम छनता है.

जल प्रवाह की गति

पानी को सुचारु रूप से निकासी के लिए स्टैंडपाइप बड़ा और पर्याप्त व्यास का होना चाहिए और इसी स्टैंडपाइप में कुछ ऊंचाई पर 6-12 मिमी व्यास का एक छोटा इनलेट भी होता है. यह छोटा इनलेट आने वाले सभी पानी को निकालने के लिए अपर्याप्त है और इसलिए जब पानी छोटे इनलेट से बाहर निकलता है, तब तक ग्रो बेड पूरा भरने तक जारी रहता है, जब तक यह शीर्ष तक नहीं पहुंच जाता है.

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ग्रो बेड भरने के बाद एक बिंदु पर टाइमर पानी पंप की बिजली काट देता है. ग्रो बेड में पानी छोटे इनलेट छेद के अलावा बैल साइफन से बाहर निकलना शुरू हो जाता है. जब तक पानी नीचे तल के स्तर तक नहीं पहुंच जाता तब तक ग्रो बेड को खाली करना जारी रखता है. इस बिंदु पर पानी के पंप में बिजली दोबारा चालू हो जाती है और ग्रो बेड को ताजा मछली टैंक को पानी से फिर से भरा जाता है. मछली के टैंक के पानी को कम से कम एक घंटे में पूरी तरह से ग्रो बेड में परिसंचारित कर दिया जाता है.

पौध तैयार करने की विधि

* सब से पहले सीडलिंग की एक खाली प्लास्टिक की ट्रे लेते हैं, जिस का आधा भाग खाद या कोको फाइबर से भर दिया जाता है.

* बीज को लगभग 0.5 सैंटीमीटर गहराई में बोया जाता है.

* ट्रे को छायादार जगह में रखें और समय पर सिंचाई करें, जिस से मीडिया में पर्याप्त नमी बनी रहे.

* बीजों को अंकुरित होने और पहली बार पत्तियां दिखाई देने के बाद, पौध को दिन में कुछ घंटों के लिए तेज धूप में रख कर कड़ा किया जाता है.

* पौधों की जड़ों की वृद्धि के  लिए सप्ताह में एक बार फास्फोरसयुक्त जैविक उर्वरक से निषेचित करें.

* पौधों की जड़ों की पर्याप्त वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए पहली पत्ती दिखने के बाद कम से कम 2 सप्ताह तक बढ़ने दें.

* पौधों के पर्याप्त विकसित होने पर उन्हें ग्रो बेड में प्रत्यारोपित करें. एक छोटे कुंद साधन का उपयोग कर के अंकुर और उन की मिट्टी के कप को अलग करें. इस के लिए ध्यान से किसी पतली खुरपी की सहायता से पौध को ट्रे से बाहर निकालें.

मीडिया बेड में रोपाई

जब बजरी से भरी मीडिया बेड में पौध रोपण की जाती है, तो बजरी को एक तरफ धकेल कर एक छोटा गड्ढा बना कर प्रत्यारोपित करें.

मीडिया बेड में पानी के उच्चतम बिंदु से बजरी 5-7 सैंटीमीटर ऊपर तक रखें, जिस से पौधों की जड़ें पानी में आंशिक रूप से डूबी रहें. बहुत गहराई से रोपण न करें, वरना पौधों में रोग लग सकता है.

एक्वापोनिक्स में बरतें सावधानियां?

टैंक का चुनाव ध्यान से करें : मछली टैंक प्रत्येक एक्वापोनिक इकाई में कोई भी मछली टैंक उपयोग किया जा सकता है, लेकिन फ्लैट या शंक्वाकार पेंदे वाले गोल टैंक की सिफारिश की जाती है, क्योंकि वे साफ रखने में आसान होते हैं. मजबूत निष्क्रिय प्लास्टिक या फाइबर ग्लास टैंक का चुनाव करें, क्योंकि ये लंबे समय तक चलते हैं.

पानी की आवाजाही सुनिश्चित  करें : पानी और वायु पंपों के उपयोग से यह सुनिश्चित करें कि पानी में घुलित औक्सीजन और अच्छे पानी की आवाजाही उच्च स्तर पर हो, ताकि आप की मछली, बैक्टीरिया और पौधे स्वस्थ रहें.

याद रखें कि बिजली की लागत एक्वापोनिक्स प्रणाली के बजट का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, इसलिए पंपों और बिजली के स्रोत को बुद्धिमानी से चुनें. यदि संभव हो, तो सौर ऊर्जा का चुनाव करें, जिस से बिजली के खर्च को कम किया जा सके.

पानी की अच्छी गुणवत्ता बनाए रखें :

यह वह माध्यम है, जिस के द्वारा सभी आवश्यक पोषक तत्त्वों को पौधों तक पहुंचाया जाता है. यह मछली के जीवन का माध्यम भी है, इसलिए जल की गुणवत्ता बनाए रखना एक्वापोनिक प्रणाली की सफलता के लिए आवश्यक है. पांच जल गुणवत्ता पैरामीटर निगरानी और नियंत्रण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं : घुलित औक्सीजन (5 मिलीग्राम/लिटर से अधिक), पीएच (6-7), तापमान (18-30 डिगरी सैल्सियस), कुल नाइट्रोजन (3-5 मिलीग्राम/लिटर) और पानी की क्षारीयता (150-500 मिलीग्राम/लिटर).

अत्याहार से बचें

जलीय जीवों के लिए एक्वापोनिक इकाई में अपशिष्ट और अशुद्ध भोजन बहुत हानिकारक होते हैं, क्योंकि वे सिस्टम के अंदर सड़ने लगते हैं. सड़ते हुए भोजन से बीमारी हो सकती है और घुलित औक्सीजन की गंभीर रूप से कमी हो जाती है. मछली को हर दिन भोजन खिलाएं, लेकिन 30 मिनट के बाद इकाई में बचा हुआ भोजन हटा दें. अगले दिन के हिस्से को उसी के अनुसार समायोजित करें.

पौधों को बुद्धिमानी से चुनें

लंबी अवधि की फसलों (बैगन) के साथ पौधों के बीच कम बढ़ने वाली अवधि (सलाद वाले साग) की

सब्जियां लगाएं. याद रखें कि हरे पत्तेदार पौधे, टमाटर, खीरा और मिर्च सहित अन्य लोकप्रिय सब्जियां बहुत अच्छी तरह से पनपती हैं.

Crime Story : हम मर जाएंगे

सौजन्या- सत्यकथा

22फरवरी की सुबह 6 बजे रामपुर गांव के कुछ लोग मार्निंग वाक पर निकले तो उन्होंने पानी की
टंकी के पास लिंक मार्ग से 50 मीटर दूर खेत में एक युवक को बुरी तरह से जख्मी हालत में पड़े देखा. युवक की जान बचाने के लिए उन में से किसी ने थाना खानपुर पुलिस को सूचना दे दी. सूचना प्राप्त होते ही खानपुर थानाप्रभारी विश्वनाथ यादव पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को भी सूचित कर दिया था. विश्वनाथ यादव जिस समय वहां पहुंचे, उस समय ग्रामीणों की भीड़ जुटी थी. भीड़ को परे हटाते हुए वह खेत में पहुंचे, जहां युवक जख्मी हालत में पड़ा था. युवक की उम्र 24 साल के आसपास थी. उस के सिर में गोली मारी गई थी, जो आरपार हो गई थी. उस के एक हाथ में पिस्टल थी तथा दूसरी पिस्टल उस के पैर के पास पड़ी थी.

जामातलाशी में उस के पास से 2 मोबाइल फोन, आधार कार्ड तथा पुलिस विभाग का परिचय पत्र मिला, जिस में उस का नामपता दर्ज था. परिचय पत्र तथा आधार कार्ड से पता चला कि युवक का नाम अजय कुमार यादव है तथा वह बभरौली गांव का रहने वाला है. तुरंत उस के घर वालों को सूचना दे दी गई.
इंसपेक्टर विश्वनाथ यादव अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि एसपी डा. ओमप्रकाश सिंह, एएसपी गोपीनाथ सोनी तथा डीएसपी राजीव द्विवेदी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा युवक के पास से बरामद सामान का अवलोकन किया.

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देखने से ऐसा लग रहा था कि युवक ने आत्महत्या का प्रयास किया था. अब तक अजय के पिता रामऔतार यादव भी घटनास्थल आ गए थे. वह आत्महत्या की बात से सहमत नहीं थे. चूंकि अजय यादव मरणासन्न स्थिति में था, अत: पुलिस अधिकारियों ने उसे इलाज हेतु तत्काल सीएचसी (सैदपुर) भिजवाया लेकिन वहां के डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए और उसे बीएचयू ट्रामा सेंटर रैफर कर दिया. इलाज के दौरान अजय यादव की मौत हो गई.

चूंकि अजय यादव सिपाही था, अत: उस की मौत को एसपी डा. ओमप्रकाश सिंह ने गंभीरता से लिया. उन्होंने जांच के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया, जिस में क्राइम ब्रांच, सर्विलांस टीम तथा स्वाट टीम को शामिल किया गया. इस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर बरामद सामान को कब्जे में लिया. सर्विलांस सेल प्रभारी दिनेश यादव ने अजय के पास से बरामद दोनों फोन की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि 22 फरवरी की रात 3 बजे एक फोन से अजय के फोन पर एक वाट्सऐप मैसेज भेजा गया था, जिस में लिखा था, ‘तत्काल मिलने आओ, नहीं तो हम मर जाएंगे.’

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जिस मोबाइल फोन से मैसेज भेजा गया था, उस फोन की जानकारी की गई तो पता चला कि वह मोबाइल फोन इचवल गांव निवासी राजेश सिंह की बेटी सोनाली सिंह के नाम दर्ज था. जबकि फोन मृतक अजय की जेब से बरामद हुआ था. अजय और सोनाली का क्या रिश्ता है? उस ने 3 बजे रात को अजय को मैसेज क्यों भेजा? जानने के लिए पुलिस टीम सोनाली सिंह के गांव इचवल पहुंची और उस के पिता राजेश सिंह से पूछताछ की.

राजेश सिंह ने बताया कि उस की बेटी सानिया उर्फ सोनाली सिंह आज सुबह से गायब है. हम ने सैदपुर कैफे से उस की औनलाइन एफआईआर भी कराई है. राजेश सिंह ने एफआईआर की कौपी भी दिखाई.
राजेश सिंह की बात सुन कर पुलिस टीम का माथा ठनका. राजेश सिंह को गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज करानी थी, तो थाना खानपुर में करानी चाहिए थी. आनलाइन रिपोर्ट क्यों दर्ज कराई? दाल में जरूर कुछ काला था. यह औनर किलिंग का मामला हो सकता था. संभव था अजय और सोनाली सिंह प्रेमीप्रेमिका हों और इज्जत बचाने के लिए राजेश सिंह ने अपनी बेटी की हत्या कर दी हो.

ऐसे तमाम प्रश्न टीम के सदस्यों के दिमाग में आए तो उन्होंने शक के आधार पर राजेश सिंह के घर पर पुलिस तैनात कर दी. साथ ही पुलिस सानिया उर्फ सोनाली सिंह की भी खोज में जुट गई. अजय का मोबाइल फोन खंगालने पर उस का और सोनाली सिंह का विवाह प्रमाण पत्र मिला, जिस में दोनों की फोटो लगी थी. प्रमाण पत्र के अनुसार दोनों 5 नवंबर, 2018 को कोर्टमैरिज कर चुके थे. इस प्रमाण पत्र को देखने के बाद पुलिस टीम का शक और भी गहरा गया. पुलिस टीम ने सोनाली सिंह के पिता राजेश सिंह व परिवार के 4 अन्य सदस्यों को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.

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23 फरवरी, 2021 की सुबह पुलिस टीम को इचवल गांव में राजेश सिंह के खेत में एक युवती की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. पुलिस टीम तथा अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे और लाश का निरीक्षण किया.
मृतका राजेश सिंह की 25 वर्षीय बेटी सानिया उर्फ सोनाली सिंह थी. उस के सिर में गोली मारी गई थी. चेहरे को भी कुचला गया था. निरीक्षण के बाद पुलिस ने सोनाली सिंह के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल गाजीपुर भेज दिया.

शव के पास से पिस्टल या तमंचा बरामद नहीं हुआ, लेकिन एक जोड़ी मर्दाना चप्पल तथा टूटी हुई चूडि़यां जरूर मिलीं. चप्पलों की पहचान मृतक सिपाही अजय के घर वालों ने की. उन्होंने पुलिस को बताया कि चप्पलें अजय की थीं. पुलिस टीम ने हिरासत में लिए गए राजेश सिंह से बेटी सोनाली सिंह की हत्या के संबंध में पूछताछ की तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो वह टूट गया और उस ने सोनाली सिंह तथा उस के प्रेमी अजय यादव की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. यही नहीं, उस ने हत्या में इस्तेमाल अजय यादव की बाइक यूपी81 एसी 5834 भी बरामद करा दी.

राजेश सिंह ने बताया कि उस की बेटी सानिया सिपाही अजय यादव से प्यार करती थी और दोनों ने कोर्ट में शादी भी कर ली थी. तब अपनी इज्जत बचाने के लिए उस ने दोनों को मौत की नींद सुलाने की योजना बनाई. इस योजना में उस ने अपने पिता अवधराज सिंह, बेटे दीपक सिंह, भतीजे अंकित सिंह तथा पत्नी नीलम सिंह को शामिल किया. इस के बाद पहले सानिया की हत्या की फिर अजय की. उस के बाद दोनों के शव अलगअलग जगहों पर डाल दिए.

पुलिस अजय की हत्या को आत्महत्या समझे, इसलिए उस के एक हाथ में पिस्टल थमा दी तथा बेटी का मोबाइल फोन अजय की जेब में डाल दिया, ताकि लगे कि अजय ने पहले सोनाली सिंह की गोली मार कर हत्या की फिर स्वयं गोली मार कर आत्महत्या कर ली. बेटी के शव के पास अजय की चप्पलें छोड़ना, सोचीसमझी साजिश का ही हिस्सा था. राजेश के बाद अन्य आरोपियों ने भी जुर्म कबूल कर लिया.
थानाप्रभारी विश्वनाथ यादव ने डबल मर्डर का परदाफाश करने तथा आरोपियों को गिरफ्तार करने की जानकारी एसपी डा. ओमप्रकाश सिंह को दी तो उन्होंने पुलिस लाइन स्थिति सभागार में प्रैसवार्ता की और आरोपियों को मीडिया के समक्ष पेश कर डबल मर्डर का खुलासा कर दिया.

चूंकि आरोपियों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थानाप्रभारी विश्वनाथ यादव ने मृतक के पिता रामऔतार यादव की तहरीर पर धारा 302 आईपीसी के तहत राजेश सिंह, अवधराज सिंह, दीपक सिंह, अंकित सिंह तथा नीलम सिंह के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा सभी को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में जो कहानी प्रकाश में आई, उस में दोनों की हत्याओं की वजह मोहब्बत थी.

गाजीपुर जिले के खानपुर थाना अंतर्गत एक गांव है इचवल कलां. इसी गांव में ठाकुर राजेश सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी नीलम सिंह के अलावा बेटा दीपक सिंह तथा बेटी सानिया उर्फ सोनाली सिंह थी. राजेश सिंह के पिता अवधराज सिंह भी उन के साथ रहते थे. पितापुत्र दबंग थे. गांव में उन की तूती बोलती थी. उन के पास उपजाऊ जमीन थी, जिस में अच्छी पैदावार होती थी. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

राजेश सिंह की बेटी सोनाली उर्फ सानिया सुंदर, हंसमुख व मिलनसार थी. पढ़ाई में भी तेज थी. वह पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय डिग्री कालेज सैदपुर से बीए की डिग्री हासिल कर चुकी थी और बीएड की तैयारी कर रही थी. दरअसल, सानिया टीचर बन कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी. इसलिए वह कड़ी मेहनत कर रही थी. सानिया उर्फ सोनाली के आकर्षण में गांव के कई युवक बंधे थे. लेकिन अजय कुमार यादव कुछ ज्यादा ही आकर्षित था. सानिया भी उसे भाव देती थी. सानिया और अजय की पहली मुलाकात परिवार के एक शादी समारोह में हुई थी. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हो गए
थे. इस के बाद जैसेजैसे उन की मुलाकातें बढ़ती गईं, वैसेवैसे उन का प्यार बढ़ता गया.

अजय कुमार यादव के पिता रामऔतार यादव सानिया के पड़ोस के गांव बभनौली में रहते थे. वह सीआरपीएफ में कार्यरत थे. लेकिन अब रिटायर हो गए थे और गांव में रहते थे. उन की 5 संतानों में 4 बेटियां व एक बेटा था अजय कुमार. बेटियों की वह शादी कर चुके थे और बेटा अजय अभी कुंवारा था. रामऔतार यादव, अजय को पुलिस में भरती कराना चाहते थे, सो वह उस की सेहत का खास खयाल रखते थे. अजय बीए पास कर चुका था और पुलिस भरती की तैयारी कर रहा था. उस ने पुलिस की परीक्षा भी दी.
एक दिन अजय ने सानिया के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो वह गहरी सोच में डूब गई. कुछ देर बाद वह बोली, ‘‘अजय, मुझे तुम्हारा शादी का प्रस्ताव तो मंजूर है, लेकिन मुझे डर है कि हमारे घर वाले शादी को कभी राजी नही होंगे.’’

‘‘क्यों राजी नही होंगे?’’ अजय ने पूछा. ‘‘क्योंकि मैं ठाकुर हूं और तुम यादव. मेरे पिता कभी नहीं चाहेंगे कि ठाकुर की बेटी यादव परिवार में दुलहन बन कर जाए. मूंछ की लड़ाई में वह कुछ भी अनर्थ कर सकते हैं.’’ ‘‘घर वाले राजी नहीं होंगे, फिर तो एक ही उपाय है कि हम दोनों कोर्ट में शादी कर लें.’’
‘‘हां, यह हो सकता है.’’ सानिया ने सहमति जताई.

इस के बाद 5 नवंबर, 2018 को सानिया उर्फ सोनाली और अजय कुमार ने गाजीपुर कोर्ट में कोर्टमैरिज कर के विवाह प्रमाण पत्र हासिल कर लिया. कोर्ट मैरिज करने की जानकारी सानिया के घर वालों को नहीं हुई, लेकिन अजय के घर वालों को पता था. उन्होंने सानिया को बहू के रूप में स्वीकार कर लिया.
दिसंबर, 2018 में अजय का चयन सिपाही के पद पर पुलिस विभाग में हो गया. ट्रेनिंग के बाद उस की पोस्टिंग अमेठी जिले के गौरीगंज थाने में हुई. अजय और सानिया की मुलाकातें चोरीछिपे होती रहती थीं. मोबाइल फोन पर भी उन की बातें होती रहती थीं. कोर्ट मैरिज के बाद उन का शारीरिक मिलन भी होने लगा था. इस तरह समय बीतता रहा.

जनवरी, 2021 के पहले हफ्ते में राजेश सिंह को अपनी पत्नी नीलम सिंह व बेटे दीपक सिंह से पता चला कि सानिया पड़ोस के गांव बभनौली के रहने वाले युवक अजय यादव से प्रेम करती है और दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली है. दरअसल, नीलम सिंह ने बेटी को देर रात अजय से मोबाइल फोन पर बतियाते पकड़ लिया था. फिर डराधमका कर सारी सच्चाई उगलवा ली थी. यह जानकारी नीलम ने पति व बेटे को दे दी थी.

राजेश सिंह ठाकुर था. उसे यह गवारा न था कि उस की बेटी यादव से ब्याही जाए, अत: उस ने सानिया की जम कर पिटाई की और घर से बाहर निकलने पर सख्त पहरा लगा दिया. नीलम हर रोज डांटडपट कर तथा प्यार से बेटी को समझाती लेकिन सानिया, अजय का साथ छोड़ने को राजी नहीं थी. 21 फरवरी को अजय की चचेरी बहन की सगाई थी. वह 15 दिन की छुट्टी ले कर अपने गांव बभनौली आ गया. सिपाही अजय के आने की जानकारी राजेश सिंह को हुई तो उस ने अपने पिता अवधराज सिंह, बेटे
दीपक सिंह, भतीजे अंकित सिंह तथा पत्नी नीलम के साथ गहन विचारविमर्श किया.

जिस में तय हुआ कि पहले अजय व सानिया को समझाया जाए, न मानने पर दोनों को मौत के घाट उतार दिया जाए. अवैध असलहा घर में पहले से मौजूद था. योजना के तहत 22 फरवरी की रात 3 बजे राजेश सिंह व नीलम सिंह ने सानिया को धमका कर सिपाही अजय यादव के मोेबाइल फोन पर एक वाट्सऐप मैसेज भिजवाया, जिस में लिखा, ‘तत्काल मिलने आओ, नहीं तो हम मर जाएंगे.’

अजय ने मैसेज पढ़ा, तो उसे लगा कि सानिया मुसीबत में है. अत: वह अपनी मोटरसाइकिल से सानिया के गांव इचबल की ओर निकल पड़ा. इधर मैसेज भिजवाने के बाद राजेश सिंह, नीलम सिंह, दीपक सिंह, अवधराज सिंह व अंकित सिंह ने सानिया उर्फ सोनाली को अजय का साथ छोड़ने के लिए हर तरह से समझाया. लेकिन जब वह नहीं मानी तो राजेश सिंह ने उसे गोली मार दी. फिर लाश को घर में छिपा दिया.
कुछ देर बाद अजय आया, तो उसे भी समझाया गया. लेकिन वह ऊंचे स्वर में बात करने लगा. इस पर वे सब अजय को बात करने के बहाने गांव के बाहर अंबिका स्कूल के पास ले गए.

वहां अजय सानिया को अपनी पत्नी बताने लगा तो उन सब ने उसे दबोच लिया और पिस्टल से उस के सिर में गोली मार दी और मरा समझ कर रामपुर गांव के पास सड़क किनारे खेत में
फेंक दिया. एक पिस्टल उस के हाथ में पकड़ा दी तथा दूसरी उस के पैर के पास डाल दी. सानिया का मोबाइल फोन भी अजय की पाकेट में डाल दिया. इस के बाद वे सब वापस घर आए और सानिया का शव घर के पीछे गेहूं के खेत में फेंक दिया. अजय की चप्पलें भी शव के पास छोड़ दीं.

सुबह राजेश व नीलम ने पड़ोसियों को बताया कि उन की बेटी सानिया बिना कुछ बताए घर से गायब है. फिर सैदपुर कस्बा जा कर कैफे से औनलाइन एफआईआर दर्ज करा दी. उधर रामपुर गांव के कुछ लोगों ने युवक को मरणासन्न हालत में देखा तो पुलिस को सूचना दी. पुलिस ने काररवाई शुरू की तो डबल मर्डर की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

24 फरवरी, 2021 को थाना खानपुर पुलिस ने अभियुक्त राजेश सिंह, दीपक सिंह, अंकित सिंह, अवधराज सिंह तथा नीलम सिंह को गाजीपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

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