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Ishq Par Zor Nahi एक्ट्रेस शगुन शर्मा को मिली रेप की धमकी, जानें पूरा मामला

टीवी सीरियल ‘इश्क पर जोर नहीं ‘ इन दिनों यह सीरियल लोगों का खूब मनोरंजन कर रहा है. सीरियल इश्क पर जोर नहीं कि कहानी इन दिनों अहाना और इश्की की कहानी पर रुका हुआ है. सीरियल इश्क पर जोर नहीं में परम सिंह , अक्षित मृदुल और शगुन शर्मा जैसे युवा किरदार निभा रहे हैं.

इन दिनों इश्क पर जोर नहीं कि वजह से शगुन शर्मा बुरी तरह से ट्रोल हो रही हैं. इतना ही नहीं लोग शगुन शर्मा को रेप की धमकियां भी देने लगे हैं. दरअसल, शगुन शर्मा इश्क पर जोर नहीं में सोनू नाम के निगेटीव किरदार में नजर आ रही हैं.

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शो में निगेटीव किरदार निभाने कि वजह से लोग उन्हें ट्रोल कर रहे हैं. लोगों ने तो इस मामले में शगुन शर्मा के परिवार वाले को भी घसीटना शुरू कर दिया है. कुछ समय पहले ही शगुन शर्मा ने ट्विट करते हुए लिखा है कि मैं इस समय दुविधा में हूं लोग मुझे इस किरदार के लिए घसीट रहे हैं.

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मैं वाकई में ऐसी नहीं हू जैसा गलत लोग मेरे बारे में सोच रहे हैं. मैं ऐसा काम अपने किरदार के लिए कर रही हूं. एक इंटरव्यू के दौरान भी शगुन शर्मा ने इस विषय पर खुलकर बात की हैं.

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शगुन शर्मा ने कहा मैं आलोचना का ऑपोजिट साइड देखती हूं. मैंं लोगों का सम्मान करती हूं लेकिन लोग अपनी हदें भूल रहे हैं., उन्हें नहीं पता है कि उन्हें क्या करना चाहिए.  कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो कह रहे हैं कि मुझे खुदखुसी कर लेनी चाहिए. आप ही लोग बताइए कि क्या यह वाकई में सही है. ऐसा करना चाहिए मुझे.

Best of Manohar Kahaniya : मां की भूमिका में चमेली

छत्तीसगढ़ का शहर बिलासपुर हाईकोर्ट होने की वजह से न्यायधानी के नाम से जाना जाता है. दिनेश अपने परिवार के साथ बिलासपुर के जरहाभाटा के मंझवापारा में रहता था. वह अपने ही मोहल्ले की किशोरी वीना कौशिक को भगा ले गया था. यह भी कह सकते हैं कि वीना दिनेश के साथ जीनेमरने की कसम खा कर अपने घर की देहरी लांघ आई थी और उस के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी थी.

वीना के पिता जवाहर कौशिक अपनी पत्नी चमेली और बेटी वीना से अलग दूसरे मोहल्ले में रहते थे. सिर्फ मां चमेली ही वीना की एकमात्र गार्जियन थी. वीना अभी 18 वर्ष की हुई थी कि उसे दिनेश से प्रेम हो गया. फिर एक दिन वह घर से बिना बताए गायब हो गई.

दिनेश के पिता रविशंकर श्रीवास की हेयर कटिंग सैलून थी जिस से वे परिवार का भरण पोषण करते थे. दिनेश भी पिता की दुकान पर काम करता था. वह अल्पायु में ही पढ़ाई छोड़ चुका था. फिलहाल वह 21 वर्ष का था. दिनेश और वीना एकदूसरे का हाथ थाम कर घर से निकले तो कुछ दिन रायपुर में बिताने के बाद बिलासपुर आ गए. इस शहर में वह तिफरा में किराए का मकान ले कर रहने लगे.

दिनेश एक सैलून में नौकरी करने लगा, ताकि वीना की और अपनी जिंदगी को हसीन बना सके. लेकिन यह संभव न हो सका. दिनेश के पिता रविशंकर और मां नूतन को यह पता चला कि बेटा वीना के साथ सुखपूर्वक रह रहा है तो वे मौन रह गए. लेकिन वीना की मां चमेली मौन नहीं रह सकी.

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एक दिन जब दिनेश काम पर गया हुआ था, तो वीना की मां आ धमकी. वीना ने मां को बैठाया, चायपानी को पूछा. दोनों की बातचीत हुई तो चमेली आंसू बहाते हुए कहने लगी, ‘‘बेटी, तुम ने यह क्या कर दिया, हमारी तो सारी इज्जत ही मिट्टी में मिल गई.’’

वीना मां की बातें सुनती रही. बातोंबातों में चमेली ने पूछा, ‘‘बेटा, तुम ने दिनेश से ब्याह कहां किया? गवाह कौनकौन थे?’’

इस पर वीना का सिर झुक गया, वह बोली, ‘‘मां, हम ने अभी तक विवाह नहीं किया है.’’

इस पर चमेली स्तब्ध रह गई. बोली, ‘‘तुम बिना विवाह के दिनेश के साथ कैसे रह सकती हो? यह तो पाप है बेटी.’’

वीना चुपचाप मां की बातें सुनती रही.

चमेली ने आगे कहा, ‘‘तुम खुश तो हो न? मैं तुम्हारी शादी दिनेश से ही करा दूंगी. ऊंचनीच तुम क्या जानो, औरत के लिए मंगलसूत्र और सिंदूर का बड़ा महत्त्व होता है. समाज में रह कर उसी के हिसाब से जीना पड़ता है और उस के नियमकायदे मानने होते हैं. तुम अगर मेरी बात नहीं मानोगी तो पछताओगी.’’

वीना कुछ दिन दिनेश के साथ रह कर समझ गई थी कि प्यार के शुरुआती आकर्षण वाले मीठे सपने जब हकीकत के कठोर धरातल पर टकराते हैं, तब टूट कर किरचाकिरचा बिखर जाते हैं. उसे मां का सहारा मिला तो वह फट पड़ी और आंखों में आंसू लिए मां की गोद में सिर रख कर रोने लगी.

मां ने उसे ढांढस बंधाया, फिर बोली, ‘‘बेटा, तुम ने गलती तो बहुत बड़ी की है. लेकिन मैं मां हूं. मैं तुम्हें माफ नहीं करूंगी तो कौन करेगा.’’

वीना मां की ओर आशा भरी निगाहों से देखने लगी. चमेली ने कहा, ‘‘अच्छा, अब तू दिनेश के साथ खुश है या नहीं, साफसाफ बता.’’

वीना ने बहुत सोचा, फिर कहा, ‘‘मां, मुझे लगता है कि मैं ने भूल की है. मुझे दिनेश के लिए घर नहीं छोड़ना चाहिए था. बताओ, अब मैं क्या करूं?’’

चमेली ने कहा, ‘‘अच्छा, अभी तुम मेरे साथ चलो, बाद में देखेंगे कि क्या करना है.’’

वीना तैयार हो गई. घर में ताला लगा कर उस ने चाबी पड़ोस की एक महिला को दे दी. इस के बाद वह मां चमेली के साथ घर मन्नाडोला चली गई.

रात में जब दिनेश काम से घर लौटा तो वहां ताला लगा था. पड़ोस से पता चला कि वीना की मां आई थी, वह उसे अपने साथ ले गई है. उस ने घर का ताला खोला और चुपचाप लेट गया. उस की आंखों के आगे अंधेरा फैला हुआ था, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. उस ने दरवाजा खोला तो 2 पुलिस वाले खड़े थे. उन्हें देख दिनेश डर गया. पुलिस वाले उसे थाना सिविल लाइंस ले गए.

एक पुलिस वाले ने उसे बताया कि उस पर वीना नाम की लड़की को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का आरोप है. केस दर्ज हो चुका है. यह सुन कर दिनेश घबरा गया.

उस ने पुलिस को बताया कि वह और वीना अपनी मरजी से घर छोड़ कर नई जिंदगी बसर करने के लिए निकले थे और तिफरा में किराए का मकान ले कर खुशीखुशी रह रहे थे. आज उस की मां चमेली यहां आई और बिना बताए उसे अपने साथ ले गई.

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लेकिन पुलिस ने दिनेश की एक नहीं सुनी. उस के खिलाफ थाने में भादंवि की धारा 363 के अंतर्गत वीना को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का मुकदमा दर्ज था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. दिनेश गम का घूंट पी कर रह गया.

वह यह भी साबित नहीं कर सका कि उस ने वीना के साथ विवाह किया था. वैसे भी वीना से अपने पक्ष की कोई उम्मीद रखना बेवकूफी थी, क्योंकि अब वह अपनी मां चमेली के प्रभाव में थी. वह वही कहती जो उस की मां चाहती.

दिनेश के जेल जाने की खबर जब उस के घर वालों को मिली तो उन्होंने एक वकील से इस मामले की पैरवी कराई. फलस्वरूव वह 2 महीने में जेल से बाहर आ गया. जो होना था, वह हो चुका था. दिनेश अब वीना को भुलाने की कोशिश करते हुए अपने परिवार के साथ रहने लगा. इसी बीच एक दिन गोल बाजार में उसे वीना मिल गई.

दिनेश उस से जानना चाहता था कि उस ने उसे किस बात की सजा दिलाई, इसलिए वह उसे एक कौफी हाउस में ले गया. बातचीत हुई तो दोनों के गिलेशिकवे शुरू हो गए. दिनेश ने वीना का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘वीना, जो भी हुआ, मैं उसे भूलने को तैयार हूं.’’

वीना ने आंखें नीची कर के कहा, ‘‘तुम ने मेरे साथ बहुत गलत किया है.’’

दिनेश ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या गलत किया मैं ने?’’

‘‘तुम ने मुझ से शादी नहीं की, मुझे प्यार के बहकावे में रख कर मेरा शोषण करते रहे. क्या यह तुम्हारा फर्ज नहीं था कि मुझ से विवाह कर के अपने घर ले जाते?’’

‘‘देखो वीना, मैं ने जो भी किया, तुम्हारी मरजी से किया. मैं ने कभी जबरदस्ती नहीं की, फिर भी तुम ने मेरे खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा कर मुझे जेल भिजवा दिया, क्या यह सही था?’’

‘‘तुम्हारी नीयत मुझे ठीक नहीं लगी, मां ने मुझे बताया कि शादी के बाद लड़की को सुरक्षा मिलनी चाहिए. तुम तो मुझे मंगलसूत्र और सिंदूर तक नहीं दे सके. अगर तुम मुझे छोड़ कर भाग जाते तो मैं तो बरबाद हो जाती. न इधर की रह जाती, न उधर की. तुम मुझ से प्यार करते थे तो शादी क्यों नहीं की?’’

दिनेश निरुत्तर रह गया. उसे अपनी भूल का अहसास हो रहा था. उसे वीना से ब्याह कर लेना चाहिए था. वह संभल गया, ‘‘अच्छा, मुझ से गलती हो गई. मैं अब तुम से शादी करूंगा, ठीक है.’’

वीना मौन बैठी थी. दिनेश ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘तुम मुझ पर अविश्वास कैसे कर सकती हो. क्या मैं बेवफा हूं? मैं तुम्हारे साथ सारी जिंदगी हंसीखुशी गुजारने को तैयार हूं.’’

इस पर वीना ने धीमे स्वर में कहा, ‘‘मैं सोच कर बताऊंगी. एक बार गलती कर चुकी हूं. इसलिए अब मैं दोबारा कोई गलती करना नहीं चाहती.’’

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बहरहाल दिनेश और वीना में सहमति बनी कि दोनों एक बार फिर से एकदूसरे को समझेंगे, जानेंगे, तब कोई कदम उठाएंगे ताकि पहले की तरह कोई भूल न हो. अब जो भी कदम उठाएंगे, सोचसमझ कर उठाएंगे.

दोनों एक बार फिर घरपरिवार के बंधनों को भूल कर मिलने लगे, भविष्य के सपने बुनने लगे. वीना दिनेश के प्रभाव में आ गई थी. वह जब चाहता, उसे एकांत में ले जा कर संबंध बना लेता और फिर उसे उस के घर छोड़ जाता. लेकिन इस बार भी चमेली दिनेश और वीना के बीच आ कर खड़ी हो गई. इस बार कुछ ऐसा भयावह हो गया, जिस की कल्पना किसी ने नहीं की होगी.

19 जून, 2019 की सुबह दिनेश के मोबाइल की घंटी बजी. देखा वीना की काल थी. उस ने काल रिसीव की. उधर से वीना चहकी, ‘‘आज कोर्ट में तुम्हारी पेशी है न? मैं कोर्ट आऊंगी और मजिस्ट्रैट के सामने तुम्हारे ही पक्ष में बयान दे दूंगी.’’

वीना की बात सुन कर दिनेश श्रीवास खुश हो कर बोला, ‘‘मैं तुम से कब से बोल रहा था कि आ कर मजिस्ट्रैट के सामने बयान दे दो, लेकिन तुम टालती जा रही थी.’’

‘‘मैं मां के कितने प्रेशर में हूं, तुम नहीं जानते. मां ने मेरा जीना हराम कर रखा है. एक तरह से मैं घर में कैद सी हो गई हूं. मां मेरी हर गतिविधि पर निगाह रखती हैं. मैं ने बड़ी मुश्किल से काल की है और आऊंगी भी. मां आज बाहर जाने वाली हैं न…’’ वीना ने ऐसे कहा जैसे उत्साह से भरी हो.

‘‘चलो, कम से कम तुम को सद्बुद्धि तो आई.’’ दिनेश ने हंसते हुए कहा.

19 जून, 2019 को पूर्वाह्न लगभग 11 बजे दिनेश श्रीवास न्यायालय परिसर में पहुंच गया. अब उसे अपने वकील और वीना के आने का इंतजार था. लेकिन पता चला कि उस का वकील नहीं आएगा. पेशी की तारीख आगामी किसी दिन की ली जाएगी. इस से उसे बेचैनी होने लगी. थोड़ी देर में उसे वीना आती दिखाई दी, लेकिन वह अकेली नहीं थी. उस के साथ उस की मां चमेली भी थी.

दिनेश श्रीवास ने वीना को अगली पेशी की तारीख बता कर कहा, ‘‘हमारे वकील साहब बीमार हैं, इसलिए नहीं आए. तुम्हें अगली बार आना होगा, तभी बयान हो पाएगा.’’

वीना कुछ कहती, इस से पहले ही चमेली ने बातों का सिरा अपने हाथों में ले लिया. वह बोली, ‘‘दिनेश, बयान तो हो जाएगा. लेकिन तुम्हें क्या लगता है, वीना का जीवन बरबाद कर के तुम खुश रह पाओगे. मैं ने सुना है तुम कहीं और ब्याह करने की सोच रहे हो?’’

‘‘नहींनहीं, मैं नहीं मेरे पिताजी बात चला रहे हैं.’’ दिनेश ने बात घुमानी चाही.

‘‘और तुम..? तुम क्या करोगे?’’ चमेली ने दिनेश से पूछा.

‘‘मैं क्या करूंगा, मुझे भी नहीं मालूम. मैं पिताजी को नाराज नहीं कर पाऊंगा. उन्होंने मुझे जेल से निकलवाया, मुझे माफ किया. मुझे लगता है आप ने ठीक ही किया, जो वीना को उस दिन घर से ले आईं. बिना ब्याह हम लोगों का एक साथ रहना हमारे और हमारे परिवारों के लिए कलंक बन जाता.’’ दिनेश ने नजरें झुका कर कहा.

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‘‘मगर बेटा,’’ चमेली ने प्यार से कहा, ‘‘फिर तो वीना का भविष्य बरबाद हो गया मानूं. अब उस के साथ कौन शादी करेगा?’’

यह सुन कर दिनेश कनखियों से वीना की ओर देखने लगा. बोला कुछ नहीं. चमेली बोली, ‘‘मैं और मेरी बेटी दोनों कोर्ट में तुम्हारे हक में बयान दे देंगे, मगर तुम्हें वीना को सम्मान के साथ ब्याह कर उसे स्वीकार करना होगा.’’

दिनेश चमेली की बात सुन अनसुनी कर के दूसरी तरफ देखने लगा. चमेली को उस का यह व्यवहार बुरा लगा. उस ने पुचकारते हुए कहा, ‘‘दिनेश, आज क्यों न हम पिकनिक पर चलें. एकदूसरे से बातें भी हो पाएंगी और समझनेसमझाने का मौका भी मिल जाएगा. नहीं तो हमारे रास्ते अलगअलग तो हैं ही.’’

चमेली की बात सुन दिनेश ने हामी भर दी. कोर्ट परिसर में से एक आटो ले कर तीनों पिकनिक मनाने और एकदूसरे को समझने के लिए चमेली के बताए उसलापुर सकरी की ओर निकल गए.

5 जुलाई, 2019 को बिलासपुर सिटी के थाना सिविल लाइंस के दरजनों बार चक्कर लगाने के बाद दिनेश श्रीवास के पिता रविशंकर व मां नूतन अंतत: आईजी कार्यालय में अपना प्रार्थना पत्र ले कर पहुंचे. प्रार्थना पत्र में उन्होंने लिखा था—

हमारा बेटा दिनेश श्रीवास विगत 19 जून, 2019 से लापता है. हमें शक है कि उस के साथ कुछ अनिष्ट हो गया है. हमें यह भी अंदेशा है कि उसे गायब करने में हमारी पड़ोसी वीना और चमेली का हाथ है. हम दरजनों बार सिविल लाइंस थानाप्रभारी से मिले और गुजारिश की कि हमारे बच्चे को ढूंढें, लेकिन वह हमें टाल कर घर भेज देते हैं.

आईजी प्रदीप गुप्ता अपने औफिस में बैठे थे. अर्दली ने अंदर जा कर रविशंकर और नूतन के नाम का पेपर दे दिया. उन्होंने दोनों को तत्काल बुलाया और सामने बैठा कर पूछा, ‘‘बताइए, क्या बात है?’’

इस पर दिनेश की मां ने लिखा हुआ प्रार्थना पत्र उन्हें दे कर निवेदन करते हुए कहा, ‘‘साहब, हमें न्याय दिलाएं, हमारा बेटा गायब है.’’

नूतन ने आंसू बहाते हुए जब आईजी से थाने आनेजाने की आपबीती बताई तो आईजी साहब नाराज हो गए. उन्होंने तत्काल थानाप्रभारी सिविललाइंस से फोन पर बात की. उन्होंने थानाप्रभारी कलीम खान को डांटते हुए कहा, ‘‘इस संवेदनशील मामले में 24 घंटे के अंदर एफआईआर दर्ज कर रिपोर्ट मेरे सामने पेश करें.’’

आईजी प्रदीप गुप्ता के आदेश पर थाना सिविल लाइंस में हड़कंप मच गया. थानाप्रभारी कलीम खान ने तत्काल 2 सिपाही भेज कर वीना और उस की मां को थाने बुला लिया. दोनों थाने आईं तो पुलिस ने सख्ती से पूछताछ करनी शुरू कर दी, लेकिन वीना ने स्पष्ट इनकार करते हुए कहा कि वह दिनेश श्रीवास से बहुत दिनों से नहीं मिली है.

मोबाइल फोन की काल डिटेल्स खंगालने पर इस बात का खुलासा हो गया कि 19 जून तक दिनेश और वीना के बीच मोबाइल पर बातें हो रही थीं. एक सूत्र ने पुलिस को बताया कि 19 तारीख को तीनों कोर्ट में एक साथ दिखाई दिए थे. इसी सूत्र के आधार पर कलीम खान ने कोर्ट में लगे सीसीटीवी की फुटेज खंगालनी शुरू कर दी. एक फुटेज में तीनों को आटो में बैठ कर जाते देखा गया.

पुलिस को बहुत बड़ा सूत्र मिल गया था. इस पर जांच आगे बढ़ाई गई तो वीना की मां चमेली ने 19 जून, 2019 को तीनों के पिकनिक जाने की बात स्वीकार करते हुए उस की हत्या की बात स्वीकार कर ली.

चमेली ने अपने बयान में बताया कि बेटी की जिंदगी बरबाद होते देख वह परेशान रहने लगी थी. उसलापुर सकरी में पिकनिक के दौरान दिनेश श्रीवास ने जब स्पष्ट रूप से हाथ खड़े कर लिए कि अब वह वीना का साथ नहीं निभा सकेगा, तब उस ने और वीना ने मिल कर उस की हत्या कर दी.

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चमेली ने बताया- पिकनिक स्पॉट में दिनेश जब दोपहर को आंखें बंद कर के लेटा था तो उन दोनों ने उस के सिर पर पत्थर दे मारा, जिस से वह बुरी तरह घायल हो गया. बाद में उन्होंने धारदार हंसिया से दिनेश का गला रेत दिया. साथ ही एक पत्थर मार कर उस का चेहरा विकृत कर दिया और उसे वहीं फेंक कर वापस आ गईं.

दिनेश को कोई पहचान न सके, इसलिए उस का मोबाइल वीना ने अपने पास रख लिया. पुलिस ने चमेली और वीना के बयान के आधार पर दिनेश की खोजबीन की तो उन्हें उसलापुर के कोकने नाला में दिनेश का क्षतविक्षत शव मिल गया.

पुलिस ने वीना और चमेली को गिरफ्तार कर लिया. उन के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302, 120बी के तहत केस दर्ज किया गया. पूछताछ के बाद दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें सेंट्रल जेल बिलासपुर भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. वीना परिवर्तित नाम है.

उदास क्षितिज की नीलिमा -भाग 1 : आभा को बहू नीलिमा से क्या दिक्कत थी

‘यह नीलिमा भी कहां जा कर मर जाती है. कितनी बार कहा है कि नीरू के औफिस जाते ही हमें निकलना होगा. दिन चढ़ने से भगवान की सुबह की अर्चना खराब हो जाती है,’ यह बुदबुदाती 55 वर्षीया आभा अपनी बहू पर गरजतीबरसती पूजा की डलिया लिए दरवाजे पर तैयार खड़ी थीं.

पहले ही इन की पूजाअर्चना कुछ कम नहीं थी. घर में आधा दिन पूजापाठ, फिर नियमित मंदिर जाने की आदत से कई बार इन के पति झल्ला जाते थे. अब जब 2 साल पहले पति की मृत्यु और 6 महीने पहले इकलौते बेटे 30 साल के निरूपम के ब्याह हो जाने से इन की व्यस्तता कुछ कम हो गई है, तो पूजापाठ और कर्मकांड दोगुने हो गए हैं.

ये लोग रांची के पहाड़ी मंदिर के पास रहते हैं. नजदीक के विशाल पहाड़ पर स्थित शिव का मंदिर आभा के नित्य दर्शन का केंद्र है. अब पैरों में दर्द की वजह से रोजाना 700 सीढ़ियां चढ़ कर मंदिर तक पहुंचना संभव नहीं होता, इसलिए वे मंदिर प्रांगण में नीचे बरगद के चबूतरे पर बैठ बहू के पूजा कर के कर वापस आने का इंतजार करती हैं. और तब तक पंडित सेवाराम उन के साथ गपशप करते हुए उन की परेशानियां खरोंच कर निकालते व अगली किसी पूजा के लिए उन्हें तैयार करते रहते.

बहु नीलिमा तैयार हो कर अपने कमरे से बाहर आ गई थी. 22 साल की आकर्षक युवती जींस और टीशर्ट में बहुत प्यारी लग रही थी.

सास आभा बहू नीलिमा को देखते ही फट पड़ीं, “यह क्या पहन लिया तुम ने? अब तक तो साड़ी पहन कर ही चल रही थी. मंदिर जा रही हो, कोई डिस्को क्लब नहीं. बेशर्म, जाओ जल्दी, साड़ी पहन कर आओ.”

“मां, भगवान भी ड्रैस देख कर आशीष देते हैं क्या? ड्रैस में बदलाव तो खुद की खुशी के लिए है.”

“सास से जबान लड़ाती है, यही सिखा कर भेजा है तुम्हारे घर वालों ने? जल्दी साड़ी पहन कर आओ. लगता है निरूपम से तुम्हारी शिकायत करनी ही पड़ेगी.”

नीलिमा साड़ी पहन कर आ तो गई लेकिन रोजरोज की यह मुसीबत उसे भारी पड़ने लगी थी.

वह सोचती जा रही थी, कितनी उबाऊ दिनचर्या हो गई है उस की शादी के बाद.

सुबह से लगपड़ कर 9 बजे के अंदर पति को नाश्ता व खाना दे कर औफिस भेजो, रसोई और घर को व्यवस्थित कर नहाने जाओ, ब्याहता सा श्रृंगार कर हर दिन पहाड़ी पर मंदिर जाओ, फिर वापस भी इस जल्दी में आओ कि बरतन धोने वाली दीदी न चली जाए वापस. वरना घर आ कर बरतन, कपड़ा धोना, पोंछना… तब भी चैन कहां, आएदिन सास मंडली और उन के भजन कीर्तन… नाश्ता, खाना, साफसफाई में ही शाम हो आती.

उधर, पति भी चिलगोजे के बीज, मां के दुमछल्ले. दिमाग नाम की कोई चीज तो जैसे उस के पास है ही नहीं. 30 साल की उम्र है, साधारण नाकनक्श में आम सा दिखता इंसान कम से कम अगर दिमाग से पैदल न होता तो भी वह इस शादी को ले कर इतनी निराश न होती.

पति जब कुढ़मगज, तो सास के इस तरह की समय की बरबादी वाली नित्य क्रिया से छुट्टी कैसे मिले उसे.

किसी तरह औफिस का बंधाबंधाया काम निबटा कर जब निरूपम  घर आता तो मां के हुक्म बजाने और लोगों की मीनमेख निकालने में मां का साथ देने के सिवा वह करता भी क्या था.

मां ने पत्नी की उलटीसीधी शिकायत की नहीं कि, आव देखे न ताव पत्नी पर पड़े बरस.

फिर अगर पत्नी बिस्तर पर साथ देने को रुचि न दिखाए, तो दूसरी सुबह कमअक्ल इस बात की भी शिकायत मां के पास ले जाता.

अरे, कुछ बातें सिर्फ पतिपत्नी के बीच ही रहती हैं, इतनी भी समझ नहीं जिसे, उस से दिल जुड़े भी तो कैसे.

पूजा की थाली लिए साड़ी में लटपटाती नीलिमा 700 सीढ़ियां चढ़तीचढ़ती एक खाली पड़ी कील अपनी चप्पल में गड़वा बैठी. चप्पल से होते हुए कील के पैर के तलवे में चुभने से पैर में चोट के साथ मोच आ गई, सो अलग. ऊपर पहाड़ी मंदिर पहुंच कर वह जैसेतैसे नलके पर पहुंची.

हर पल यहां जी भर जियो

विद्या बालन की बहुचर्चित फिल्म ‘कहानी’ की कहानी तो सब को याद होगी. एक गर्भवती महिला कोलकाता के गलीकूचों में अपने लापता पति को तलाशती फिरती है. दर्शकों को उस से हमदर्दी हो जाती है. उस की बेबसी पर दर्शकों को तरस आता है. एक तो उस की अवस्था ऐसी, उस पर पति कहीं लापता है लेकिन फिल्म के अंत में पता चलता है कि वह महिला गर्भवती नहीं है और उस का पति 2 साल पहले ही मर चुका है. वह तो अपने पति की मौत का बदला लेने आई थी और ये सब उस के नाटक का हिस्सा था. अजीब सी स्थिति बनती है. वह महिला इस बात को स्वीकार भी करती है कि उसे भी गर्भवती होने वाला स्वांग असली लगने लगा था. काश, यही सच होता. हमदर्दी रखने वाले दर्शकों को भी लगता है जिसे वह जीवन का दुख समझ रहे थे वह उतनी भयावह स्थिति नहीं थी. महिला मां बनने वाली थी और अपने पति को तलाश रही थी. उस के जीवन में एक उम्मीद तो बाकी थी. लेकिन वास्तविकता कितनी भयानक है कि वह अब कभी मां नहीं बन सकती क्योंकि उस का पति मर चुका है.

जो है आज और अभी है

हम सभी के जीवन में कई बार ऐसी स्थितियां आती हैं जब वर्तमान में जो हो रहा होता है वह सब से दुखदायी लगता है, लगता है इस से अधिक बुरा हमारे साथ और कुछ हो ही नहीं सकता. लेकिन वास्तविकता कई बार इस से भी भयानक हो सकती है. भविष्य के गर्त में न जाने कौन सा दुख छिपा है, इस का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. फिल्म ‘कहानी’ की गर्भवती महिला सबकुछ खो कर भी अपने उद्देश्य प्राप्ति में लगी रहती है जबकि वह जानती है वास्तविकता तो कुछ और ही है. लेकिन वह इसी बात में संतुष्ट रहने की कोशिश करती है कि वह अपने पति की मौत का बदला तो ले पाई. विद्या बालन का किरदार हम सभी को जीवन में यही सीख देता है कि जो है, आज है. जिंदगी का जो पल आप जी रहे हैं वह आप का है, उसे पूर्ण रूप से, पूरी शिद्दत के साथ जिएं. वर्तमान स्थिति को दर्दनाक व दुखदायी मान कर उस से मुंह न मोड़ें, जिंदगी के जीने का जज्बा न त्यागें.

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कुछ ऐसा ही मामला हिंदुस्तान और पाकिस्तान से जुड़ा एक बहुचर्चित मामला सरबजीत का है. पंजाब का एक किसान, नशे की हालत में भटकते हुए पाकिस्तान की सीमा में घुस गया. पाकिस्तानी फौजियों ने उसे जासूस बता कर जेल में डाल दिया. बाद में वहां के सुप्रीम कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुनाई. सरबजीत की बहनबेटी ने मानवाधिकार आयोग का सहारा ले कर एक लंबी लड़ाई लड़ी. इस दौरान कभीकभी वे निराश हो जाती थीं. मगर उन्हें उम्मीद थी कि वे जीत जाएंगी. लेकिन उन्हीं दिनों सरबजीत एक दूसरे कैदी की हिंसा का शिकार हुआ और जान से हाथ धो बैठा. सबकुछ खत्म हो जाने के बाद सरबजीत के परिवार के लोगों को जरूर लगता होगा कि वे कितने अच्छे दिन थे जब सरबजीत जेल में बंद था. एक उम्मीद तो थी कि एक दिन सत्य की जीत होगी और वह रिहा हो जाएगा. खुशीखुशी अपने वतन, अपने घर लौट आएगा लेकिन अब कोई उम्मीद, कोई इंतजार बाकी नहीं है.

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खुद संवारें वर्तमान

कई बार लोग यह नहीं सोचते कि दुख की घड़ी में भी कुछ होने की उम्मीद तो है. अगर वह उम्मीद ही खत्म हो गई तब क्या बचेगा, जीवन ही बेमतलब हो जाएगा. क्या पता, जो आज है वह कल हो न हो. बूढ़े मांबाप की लंबी बीमारी के दिनों में लगता है ये कितनी परेशानी के दिन हैं लेकिन जब वे लोग नहीं रहते तब लगता है बीमार ही सही मांबाप तो थे. अब कितना अकेलापन है. दुनिया ही पराईपराई लगती है, लगता है कि कोई सच्चा हमदर्द ही नहीं रहा. उन की बीमारी में भी उन के ठीक होने की उम्मीद तो थी. तब लगता है शायद हमें और कोशिश करनी चाहिए थी. हमारी कोशिशों में कहीं कोई कमी रह गई लेकिन बीता कल लौट नहीं सकता. दंगे के कारण एक शरणार्थी कैंप में रह रही एक महिला ने अपना दर्द बयान करते हुए कहा, ‘‘पहले नहीं लगता था कि बच्चे, घर कोई बहुत बड़ी चीज हैं. कुछ न कुछ का रोना लगा ही रहता था. लेकिन अब जब घर, बच्चे कुछ नहीं बचा तो लगता है मेरे पास क्या नहीं था, तब मैं ने जिंदगी को जिया क्यों नहीं, और अब?’’ बड़ी ही नहीं, छोटीछोटी बातों में ही आकलन करें तो यह एहसास हो जाता है कि जो आज है, वह अच्छा है.

काम वाली से किचकिच करती, कार्यों के बोझ से दबी गृहिणियां कितनी परेशान और बेचैन होती हैं. उन्हें लगता है न खत्म होने वाले कार्यों ने उन का सुखचैन सब छीन लिया है. लेकिन जिस दिन काम वाली नहीं आती है उस दिन यह एहसास होता है कि घर का असली और मुश्किल काम क्या होता है और काम वाली के साथ मिल कर काम करते हुए काम कितना आसान होता है.

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हम और आज

सवाल है कि आखिर क्यों नहीं हम जिंदगी को भरपूर जी पाते हैं? क्यों हर पल बुरे की आशंका से ग्रसित रहते हैं? वक्त रेत की तरह हाथ से फिसलता जाता है और हम मूकदर्शक बने देखते रहते हैं. इन सब का सब से बड़ा कारण है वर्तमान के महत्त्व को नहीं समझने की आदत. दरअसल, काल की 3 अवस्थाएं भूत, भविष्य एवं वर्तमान हैं. लेकिन न जाने क्यों हम लोगों की सारी आशाएं, सभी आशंकाएं भविष्य काल से जुड़ी रहती हैं. हम उसी को सोचते रहते हैं जबकि हकीकत यह है कि भविष्य हमें कभी मिलता ही नहीं है. भविष्य हर रोज वर्तमान बन कर एक नए रूप में प्रकट होता है, और कहता है, ‘मुझे पहचानो और जियो. मुझे जियो और बहुत खूबसूरत बना दो. क्योंकि मैं तुम्हारा अतीत भी बनने वाला हूं.’ लोग कहते हैं अतीत को भूल जाना चाहिए. जो खत्म हो गया, वह खत्म हो गया. लेकिन गहरी दृष्टि डालें तो पता चलेगा जिंदगी हर इंसान को हर दिन अतीत संवारने का मौका देती है. बस, हमें इतना करना है कि वर्तमान को भरपूर और सुंदर तरीके से जीना शुरू कर दें. हर दिन एक छोटे से संकल्प से शुरू करें कि मेरा आज अच्छा हो जाए या मुझे आज को सब से अच्छा दिन बनाना है.

हर हाल में रहें खुश

यह मानवीय स्वभाव है कि जो उस के पास होता है उसे उस की कद्र नहीं होती. जब वह पीछे छूट जाता है तब उस की कद्र होती है, उस की कमी का एहसास होता है. यह बात आम जीवन में पति, बच्चे, जौब, रिश्ते, घर, गाड़ी, सभी पर लागू होती है. जो विवाहित है वह अपने रिश्ते की कद्र नहीं करता. जो अविवाहित है उस के लिए विवाहित होना सब से बड़ी आकांक्षा है. जो महिला मां नहीं बन सकती वह मां बनने के लिए हर कोशिश करती है फिर चाहे वह मैडिकल इलाज हो या कुछ और जिस महिला के बच्चे हैं वह उन की शिक्षा, जिम्मेदारियों की किचकिच से परेशान है. जो संयुक्त परिवार में है उसे उस में कमियां दिखाई देती हैं, उस की अच्छाइयां नहीं दिखतीं. यानी कुल मिला कर वर्तमान स्थिति से असंतुष्टि. जबकि यह कोई नहीं जानता कि भविष्य में क्या होगा, क्या पता वह वर्तमान से अधिक भयावह हो, जैसा सरबजीत के साथ हुआ. इसलिए वर्तमान को अपनी पूंजी मानें, उसे संवारें क्योंकि अगर वर्तमान संवर गया तो वह सुखद अतीत होगा.

तभी तो कह रही हूं : दामिनी और अर्चना ज्यादा पैसे क्यों देती थी

लड़कियों की मकान मालकिन कम वार्डेन नीलिमा ने रोज की तरह दरवाजे पर ताला लगा दिया और बोलीं, ‘‘लड़कियो, मैं बाहर की लाइट बंद कर रही हूं. अपनेअपने कमरे अंदर से ठीक से बंद कर लो.’’

एक नियमित दिनचर्या है यह. इस में जरा भी दाएंबाएं नहीं होता. जैसे सूरज उगता और ढलता है ठीक उसी तरह रात 10 बजते ही दालान में नीलिमा की यह घोषणा गूंजा करती है.

उन का मकान छोटामोटा गर्ल्स होस्टल ही है. दिल्ली या उस जैसे महानगरों में कइयों ने अपने घरों को ही थोड़ीबहुत रद्दबदल कर छात्रावास में तबदील कर दिया है. दूरदराज के गांवों, कसबों और शहरों से लड़कियां कोई न कोई कोर्स करने महानगरों में आती रहती हैं और कोर्स पूरा होने के साथ ही होस्टल छोड़ देती हैं. इस में मकान कब्जाने का भी कोई अंदेशा नहीं रहता.

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15 साल पहले नीलिमा ने अपने मकान का एक हिस्सा पढ़ने आई लड़कियों को किराए पर देना शुरू किया था. उस काम में आमदनी होने के साथसाथ उन के मकान ने अब कुछकुछ गर्ल्स होस्टल का रूप ले लिया है. आय होने से नीलिमा का स्वास्थ्य और आत्मविश्वास तो अवश्य सुधरा लेकिन बाकी रहनसहन में ठहराव ही रहा. हां, उन की बेटी के शौक जरूर बढ़ते गए. अब तो पैसा जैसे उस के सिर चढ़कर बोल रहा है. घर में ही हमउम्र लड़कियां हैंपर वह तो जैसे किसी को पहचानती ही नहीं.

सुरेखा और मीना एम.एससी.

गृह विज्ञान के फाइनल में हैं. पिछले साल जब वे रांची से आई थीं तो विचलित सी रहती थीं. जानपहचान वालों ने उन्हें नीलिमा तक पहुंचाया.

‘‘1,500 रुपए एक कमरे का…एक कमरे को 2 लड़कियां शेयर करेंगी…’’ नीलिमा की व्यावसायिकता में क्या मजाल जो कोई उंगली उठा दे.

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‘‘ठीक है,’’ सुरेखा और मीना के पिताजी ने राहत की सांस ली कि किसी अनजान लड़की से शेयर नहीं करना पड़ेगा.

‘‘खाने का इंतजाम अपना होगा. वैसे यहां टिफिन सिस्टम भी है. कोई दिक्कत नहीं है,’’ नीलिमा बताती जाती हैं.

सबकुछ ठीकठाक लगा. अब तो वे दोनों अभ्यस्त हो गई हैं. गर्ल्स होस्टल की जितनी हिदायतें और वर्जनाएं होती हैं, सब की वे आदी हो चुकी हैं.

‘‘नो बौयफ्रेंड एलाउड,’’ यह नीलिमा की सब से अलार्मिंग चेतावनी है.

सुरेखा और मीना के बगल के कमरे में देहरादून से आई दामिनी और अर्चना हैं. दोनों ग्रेजुएशन कर रही हैं. इंगलिश आनर्स कहते उन के चेहरे पर ऐसे भाव आते हैं जैसे इंगलैंड से सीधे आई हैं और सारा अंगरेजी साहित्य इन के पेट में हो.

दोनों कमरों के बीच में एक छोटा सा कमरा है जिस में एक गैस का चूल्हा, फिल्टर, फ्रिज और रसोई का छोटामोटा सामान रखा है. बस, यही वह स्थान है जहां देहरादूनी लड़कियां मात खा जाती हैं.

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सुरेखा नंबर एक कुक है. जबतब प्रस्ताव रख देती है, ‘‘चाइनीज सूप पीना हो तो 20-20 रुपए जमा करो.’’

दामिनी और अर्चना बिके हुए गुलामों की तरह रुपए थमा देतीं. निर्देशों पर नाचतीं. सुरेखा अब सुरेखा दीदी बन गई है. अच्छाखासा रुतबा हो गया है. अकसर पूछ लिया करती है, ‘‘कहां रही इतनी देर तक. आंटी नाराज हो रही थीं.’’

‘‘आंटी का क्या, हर समय टोकाटाकी. अपनी बेटी तो जैसे दिखाई ही नहीं देती,’’ दामिनी भुनभुनाती.

ऊपर की मंजिल में भी कमरे हैं. वहां भी हर कमरे में 2-2 लड़कियां हैं. उन की अपनी दुनिया है पर आंटी की आवाज होस्टल के हर कोने में गूंजा करती है.

आज छुट्टी है. लड़कियां देर तक सोएंगी. जवानी की नींद जो है. नीलिमा एक बार झांक गई हैं.

‘‘ये लड़कियां क्या घोड़े बेच कर सो रही हैं,’’ बड़बड़ाती हुई नीलिमा सुरेखा के कमरे के पास से गुजरीं.

सुरेखा की नींद खुल गई. उसे उन की यह बेचैनी अच्छी लगी.

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‘‘अपनी बेटी को उठा कर देखें ये… बस, यहीं घूमती रहती हैं,’’ सुरेखा ढीठ हो लेटी रही. जैसे ऐसा कर के ही वह नीलिमा को कुछ जवाब दे पा रही हो.

उधर होस्टल गुलजार होने लगा. गुसलखाने के लिए चिल्लपौं मची. फिर सबकुछ ठहर गया. कुछ कार्यक्रम बने. मीना की चचेरी बहन लक्ष्मीनगर में रहती है. वहीं लंच का कार्यक्रम था इसलिए सुरेखा और मीना भी चली गईं.

एकाएक दामिनी ने चमक कर अर्चना से कहा, ‘‘चल, बाहर से फोन करते हैं. अरविंद को बुला लेंगे. फिल्म देखने जाएंगे.’’

‘‘अरविंद को बुलाने की क्या जरूरत.’’

‘‘लेकिन अब कौन सा शो देखा जाएगा. 6 से 9 के ही टिकट मिल सकते हैं,’’ अर्चना ने घड़ी देखते हुए कहा.

‘‘तो क्या हुआ?’’ दामिनी लापरवाही से बोली.

‘‘नहीं पागल, आंटी नाराज होंगी…. लौटने में समय लग जाएगा.’’

‘‘ये आंटी बस हम पर ही गुर्राती हैं. अपनी बेटी के लक्षण इन को नहीं दिखते. रोज एक गाड़ी आ कर दरवाजे पर रुकती है… आंटी ही कौन सा दूध की धुली हैं… बड़ी रंगीन जिंदगी रही है इन की.’’

अर्चना, दामिनी और अरविंद ‘दिल से’ फिल्म देखने हाल में जा बैठे. खूब बातें हुईं. अरविंद दामिनी की ओर झुकता जाता. सांसें टकरातीं. शो खत्म हुआ.

कालिज तक अरविंद दोनों को छोड़ने आया था. वहां से दोनों टहलती हुई होस्टल के गेट तक आ गईं. गेट खोलने को हलका धक्का दिया. चूं…चूं… की आवाज हुई.

‘‘तैयार हो जाओ डांट खाने के लिए,’’ अर्चना ने फुसफुसा कर कहा.

‘‘ऊंह, क्या फर्क पड़ता है.’’

गेट खुलते ही सामने नीलिमा घूमते हुए दिखीं. सकपका गईं दोनों लड़कियां.

‘‘आंटी, नमस्ते,’’ दोनों एकसाथ बोलीं.

‘‘कहां गई थीं?’’

‘‘बहुत मन कर रहा था, ‘दिल से’ देखने का,’’ अर्चना ने मिमियाती सी आवाज में कहा.

‘‘यही शो मिला था फिल्म देखने को?’’

‘‘आंटी, प्रोग्राम देर से बना,’’ दामिनी ने बात संभालने की कोशिश की.

‘‘मैं कुछ नहीं जानती. होस्टल का डिसीपिलिन बिगाड़ती हो. आज ही तुम्हारे घर पत्र डालती हूं,’’ नीलिमा यह कहती हुई अपने कमरे की ओर चली गईं.

दामिनी कमरे में आते ही धम से बिस्तर में धंस गई और अर्चना गुसलखाने में चली गई.

‘‘कुछ खानावाना भी है या अरविंद के सपनों में ही रहेगी,’’ अर्चना ने दामिनी को वैसे ही पड़ी देख कर पूछा.

दामिनी वैसे ही मेज पर आ गई. राजमा, भिंडी की सब्जी और चपातियां. दोनों ने कुछ कौर गले के नीचे उतारे. पानी पिया.

‘हेमलेट’ के नोट्स ले कर अर्चना दिन गंवाने का अपराधबोध कुछ कम करने का प्रयास करने लगी. उसे पढ़ता देख दामिनी भी रैक में कुछ टटोलने लगी. सभी के कमरों की लाइट जल रही है.

‘‘जाऊंगी, सौ बार कहती हूं मैं जाऊंगी,’’ आंटी के कमरे की ओर से आती आवाज सन्नाटे को चीरने लगी.

बीचबीच में ऐसा कुछ होता रहता है. इस की भनक सभी लड़कियों को है. आज संवाद एकदम स्पष्ट है.

बेटी की आवाज ऊंची होते देख आंटी को जैसे सांप सूंघ गया. वह खामोश हो गईं. बेटी भी कुछ बड़बड़ा कर चुप हो गई.

सुबह रात्रि के विषाद की छाया आंटी के चेहरे पर साफ झलक रही है. नियमत: वह होस्टल की तरफ आईं पर बिना कुछ कहेसुने ही चली गईं.

फाइनल परीक्षा अब निकट ही है. सुरेखा और मीना प्रेक्टिकल के बोझ से दबी रहती हैं. देहरादूनी लड़कियों को उन्हें देख कर ही पता चला कि गृहविज्ञान कोई मामूली विषय नहीं है. उस पर इस विषय के कई अभ्यास देखे तो आंखें खुल गईं. विषय के साथसाथ सुरेखा और मीना भी महत्त्वपूर्ण हो गईं.

आजकल दामिनी भी सैरसपाटा भूल गई है पर दिल के हाथों मजबूर दामिनी बीचबीच में अरविंद के साथ प्रोग्राम बना लेती है. पिछले दिनों उस के बर्थ डे पर अरविंद एंड पार्टी ने उसे सरप्राइज पार्टी दी. बड़े स्टाइल से उन्हें बुलाया. वहां जा कर दोनों चकरा गईं. सुनहरी पन्नियों की बौछार, हैपी बर्थ डे…हैपी बर्थ डे की गुंजार.

रात के 11 बज रहे हैं. दामिनी और अर्चना ‘शेक्सपियर इज ए ड्रामाटिस्ट’ पर नोट्स तैयार कर रही हैं. दोनों के हाथ तेजी से चल रहे हैं. बगल के कमरे से छन कर आती रोशनी बता रही है कि सुरेखा और मीना भी पढ़ रही होंगी. यहां पढ़ने के लिए रात ही अधिक उपयुक्त है. एकदम सन्नाटा रहता है और एकदूसरे के कमरे की दिखती लाइट एक प्रतिद्वंद्विता उत्पन्न करती है.

बाहर से कुछ बातचीत की आवाज आ रही है. आंटी की बेटी आई होगी. धीरेधीरे सब की श्रवण शक्ति बाहर चली गई. पदचाप…खड़…एक असहज सन्नाटा.

‘‘…अब आ रही है?’’ आंटी तेज आवाज में बोलीं, ‘‘फिर उस के साथ गई थी. मैं ने तुझे लाख बार समझाया है पर क्या तेरा भेजा फिर गया है?’’

‘‘आप मेरी लाइफ स्टाइल में इंटरफेयर क्यों करती हैं? ये मेरी लाइफ है. मैं चाहे जिस तरह जिऊं.’’

‘‘तू जिसे अपना लाइफ स्टाइल कह रही है वह एक मृगतृष्णा है, जहां सिर्फ तुझे भटकाव ही मिलेगा. तू मेरी औलाद है और मैं ने दुनिया देखी है इसलिए तुझे समझा रही हूं. तू समझ नहीं रही है…’’

‘‘मैं कुछ नहीं समझना चाहती. और आप समझा रही हैं…मेरा मुंह आप मत खुलवाओ. पापा से आप की दूसरी शादी…. पता नहीं पहले वाली शादी थी भी या…’’

‘‘चुप, बेशर्म, खबरदार जो अब आगे एक शब्द भी बोला,’’ आज नीलिमा अप्रत्याशित रूप से बिफर गईं.

‘‘चुप रहने से क्या सचाई बदल जाएगी?’’

‘‘तू क्या सचाई जानती है? पिता का साया नहीं था. 6 भाईबहनों के परिवार में मैं एकमात्र कमाने वाली थी. तब का जमाना भी बिलकुल अलग था. लड़कियां दिन में भी घर से बाहर नहीं निकलती थीं और मैं रात की शिफ्ट में काम करती थी. कुछ मजबूर थी, कुछ मैं नादान… यह दुनिया बड़ी खौफनाक है बेटी, तभी तो कह रही हूं…’’

नीलिमा रो रही हैं. वे हताश हो रही हैं. उन की व्यथा को सब लड़कियों ने जाना, समझा. सब ने फिर एकदूसरे को देखा किंतु आज वे मुसकराईं नहीं.

 

उदास क्षितिज की नीलिमा

उदास क्षितिज की नीलिमा -भाग 2 : आभा को बहू नीलिमा से क्या दिक्कत थी

नीचे सास आराम से बरगद पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठी पंडित जी से बतिया रही थीं.

आभा को डरने की बीमारी रही है शुरू से. जब से ब्याह कर आई थीं, इस मंदिर में शिव की पूजा कर के डर भगाने की कोशिश करती थीं. अब बहू है तो पूजा के लिए उसे ही ऊपर भेज पंडित जी से नाना तरह के डर भगाने के उपाय पूछा करती हैं. 10 सालों से सेवाराम पंडित इन के घर के पुरोहित हैं.

वे आएदिन इन्हें विधिविधान से पूजा बताते रहते और आभा नियम से  पंडित सेवाराम से पूजा करवाती रहतीं. भले ये लोग कुर्मी जाति से हैं, पंडित जी को इस घर से सेवामेवा खूब हासिल होता.

आजकल पंडित जी का बेटा ही ऊपर मंदिर में सुबह की पूजा देख लेता है. उस के औफिस चले जाने के बाद 11 बजे तक पंडित जी ऊपर जा कर दर्शनार्थियों की पूजा का भार संभालते. पत्नी रही नहीं, 25 साल का बेटा क्षितिज सुबह 7 बजे से मंदिर की साफसफाई और पूजा का दायित्व संभालता है. साढ़े 10 बजे नीचे अपने घर वापस आ कर जल्दी तैयार हो कर कचहरी निकलता है. कचहरी यानी उस का औफिस.

जिन सीनियर वकील के अंतर्गत वह जूनियर वकील की हैसियत से काम सीख रहा है और कानून की पढ़ाई के अंतिम वर्ष का समापन कर रहा है, उन रामेश्वर की एक बात वह कतई बरदाश्त नहीं कर पाता.

रामेश्वर उसे उस के नाम ‘क्षितिज’ से न बुला कर भरी सभा में ‘पंडी जी’ कहते हैं.

एक तो पंडित कहलाना उसे यों ही नागवार गुजरता, कम नहीं झेला था उस ने कालेज में, तिस पर सब के सामने पंडी जी. लगता है, धरती फटे और वह सब लोगों को उस गड्ढे में डाल गायब हो जाए.

शर्मिंदिगी यहीं खत्म होती, तो कोई बात थी.

रामेश्वर सर के क्लाइंट, कचहरी के लोगबाग जो भी सामने पड़े, ‘और, कैसी चल रही पूजापाठ पंडी जी?’ कह कर उस के आत्मविश्वास पर घड़ों पानी उलीच जाते. अरे, पूछना ही है तो क्षितिज के वकीली के बारे में पूछो, उस की जिंदगी और सपनों के बारे में पूछो. लेकिन नहीं. पूछेंगे पापा के काम यानी पूजापाठ और कर्मकांड.

क्या करे, इन्हें खफा भी नहीं कर पाता. मुक्का खा कर मुक्का छिपाने की आदत लगानी पड़ रही है क्षितिज को.

25 साल का क्षितिज गोरा, पौरुष से दमकते चेहरे वाला 5.9 फुट की हाइट का आकर्षक युवक है. वह आज का नवयुवक है, तार्किक भी, बौद्धिक भी. बस, जिस कमी के कारण वह अपनी जिंदगी खुशी से नहीं जी पा रहा है, वह है स्वयं के लिए आवाज उठाना, आत्मविश्वास से खुद को स्थापित करना.

रामेश्वर ठहरे धर्मकर्म से दूर के इंसान. बड़े दिनों से उन्हें क्षितिज की पूजापाठ की दिनचर्या पर टोकने की इच्छा थी. लेकिन क्षितिज जैसा होनहार युवक कहीं बुरा मान कर उन्हें छोड़ चला न जाए, वे सीधेमुंह उसे कुछ कह न पाते.

इधर क्षितिज से अब सहा नहीं जा रहा था. उस ने आखिर हिम्मत कर के कह ही डाली.

“सर, मुझे पंडी जी मत कहिए न, क्षितिज कहिए.”

“क्यों जनाब, बुरा लगता है? तो छोड़ दो न ये पंडी जी वाले काम. लोगों को अपनी भक्ति खुद ही करने दो न.  और भी काम हैं उन्हें करो. और तुम इतने होनहार हो…”

“सर, करूं क्या? मेरी तो बिलकुल भी इच्छा नहीं पंडिताई करने की. पापा की उम्र हो रही है, इसलिए मुझे उन के आधे से अधिक यजमानों की पूजा करवानी पड़ती है. एक तो पुराने घरों की प्रीत, दूसरे यजमानों से मिलने वाले सामानों व कमाई का मोह, पापा को काम छोड़ने नहीं देता.”

“अरे भाई, पापा से कहो उन से जो बन पड़े, करें. नई पीढ़ी को क्यों अकर्मण्यता वाले काम में झोंक रहे हैं? तुम जब तक हिम्मत नहीं करोगे, हम तो भाई तुम्हे पंडी जी ही कहेंगे, वह भी सब के सामने. अब तुम समझो कि कैसे निकलोगे इस पंडी जी की बेड़ी से.”

जब से रामेश्वर ने उस की सुप्त इच्छा में आग का पलीता लगाया है, दिल करता है वह पापा को मना ही कर दे. 12वीं क्लास पास करने के बाद से, बस, लालपीली धोतियां, पूजा, हवन, आरती, पूजा सामग्री, दान सामग्री आदि में उस की जिंदगी गर्क है. उस के सारे दोस्त अपनी जिंदगी में कितने खुश व मस्त हैं. वे एक सामान्य जिंदगी जीते हैं, कोई अपनी गर्लफ्रैंड और नौकरी में व्यस्त है, कोई नई शादी व व्यवसाय में.

उन्हें न तो यजमानों के घर दौड़ना पड़ता है, न यजमानों के दिए सामान बांध कर पीली धोती पहन स्कूटर से घर व मंदिर के बीच भागना पड़ता है. पापा से कहा भी था धोती पहन कर सड़क पर निकलने में उसे शर्म आती है, पूजा करवाने जाएगा भी, तो कुरतापजामा पहन कर. पापा ने साफ मना कर दिया. यजमानों को लगना चाहिए कि वह ज्ञानी पंडित हैं, वरना श्रद्धा न हुई तो अच्छे पैसे नही मिलेंगे. लेदे कर किसी तरह उस ने बालों में चोटी रखने को मना कर पाया, यह भी कम नहीं था.

दोस्त कहते, क्षितिज पर हमेशा उदासी क्यों छाई है. क्यों न रहे उदास वह. जब सारे दोस्त अपनी गर्लफ्रैंड के साथ जिंदगी का आनंद उठा रहे हैं, घूमफिर रहे हैं तब वह पापा के स्वार्थ के पीछे अपनी जिंदगी गंवा रहा है. यजमान देख लेंगे तो काम मिलना बंद हो जाएगा.

यहां तो सुबह से मंत्रतंत्र के पीछे किसी लड़की का ख्वाब भी क्या आए. कालेज के दिनों में  कभी किसी लड़की की ओर जरा साहस कर के आंख उठाई नहीं कि लड़कियां पंडित जी कह कर चिढ़ा देतीं, लड़के कहते, ‘तेरी ‘पूजा’ कहां है.’ वह मन में जब तक समझने की कोशिश करता, लड़के मौजूद लड़कियों के सामने ही कहते, ‘वही पूजा, जिसे तेरे पापा ने तुझे थमाई है.’

Amitabh Bachchan कि शादी के 48 साल पूरे, शादी की फोटो शेयर कर कही ये बात

3 जून को अमिताभ बच्चन और जया बच्चन के शादी को 48 साल पूरे हो गए हैं. इस खास मौके पर बॉलीवुड के शांहशाह ने एक खास तस्वीर शेयर की है. ये तस्वीर अमिताभ बच्चन और जया बच्च के शादी की है. इसमें आप देख सकते हैं कि दोनों कपल शादी की रस्मों को निभाते जर आ रहा है.

शादी के इस लाल जोड़े में जया बच्चन काफी ज्यादा खूबसूरत लग रही हैं तो वहीं अमिताभ बच्च भी शादी के सफेद कुर्तेे में प्यारे लग रहे हैं. माना जा रहा है कि इस तस्वीर में अमिताभ बच्चन जया बच्चन की मांग भरते जर आ रहे हैं

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अमिताभ बच्चन ने लिखा है कि 3 जून 1973 शादी की सालगिरह पर बधाई देने के लिए आप सभी लोगों का शुक्रिया. इस तस्वीर पर दीया मिर्जा, बिपासा बसु, म़ीश प़ॉल और भी कई सेलेब्स ने उन्हें बधाई दी है. बता दें कि यह कपल हर किसी का फेवरेट है.

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दोनों ही इंडस्ट्री से जुड़े हुए लोग हैं. दोनों ने कई फिल्मों में साथ में काम किया है. अमिताभ और जया ने फिल्म बंसी बिरजू में पहली बार साथ में काम किया था. जहां लोगों ने इकी जोड़ी को देखना खूब पसंद किया था.

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इसके अलावा कभी खुशी कभी गम में उन्हें खूब ज्यादा पसंद किया गया था. इनकी शादी शुदा जीवन में काफी ज्यादा तकलीफें आईं लेकिन फिर भी वह कभी हार नहीं मानें दोनों साथ आगे बढ़ते रहें.

हाई कोर्ट में वकील ने गाया जूही चावला के लिए गाना तो जज ने किया ये काम

बॉलीवुड की मशहूर अदाकारा जूही चावला इन दिनों लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं. 2 दिन पहले ही जूही चावला ने 5G  वायरलेस नेटवर्क लगाए जाने के खिलाफ आवाज उठाई है. जूही चावला ने वायरलेस नेटवर्क को रोके जानें के लिए कोर्ट में याचिका दाखिल कि थी.

आज इस मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट ने ऑनलाइन सुनवाई की है. हालांकि इससे पहले इस मामले पर सुनवाई के लिए 2 बार रोकना पड़ा था. वहीं कोर्ट में सुनवाई के दौरान जूही चावला कि हाजिरी लगाई गई.

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जैसे ही जूही चावला ने वकील में पेशी दी वैसे ही उनके एक वकील ने गाना शुरू कर दिया. जिसके तुरंत बाद कोर्ट के न्यायमूर्ति ने गाे को बंद करने की नसीहत दे डाली.

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इस वकील ने जूही चीवला की साल 1993 में आई फिल्म घुंघट की आड़ में गाे को गाया . यह गाा फिल्म हम है राही प्यार के का गीत है. वकील ने कहा कि इस गाने को गा कर आप कोर्ट के काम में दखल दे रहे हैं.

जिसके बाद सुनवाई के दौरान एक दूसरे व्यक्ति ने दूसरा गाना लाल लाल होठों पर गोरी किसका नाम है गाना शुरू कर दिया. जिसके बाद यह युवक यही नहीं रुका दूसरा गाना भी शुरू कर दिया मेरी बन्नों की आएगी बारात  जिसके बार- बार मना करने के बाद कोर्ट ने शख्स के खिलाफ आवाज उठाई और इस मामले पर जांच शुरू कर दी.

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जल्द इस शख्स की पहचा करके इस मामले पर सुनवाई की जाएगी. गौरतलब है कि जूही चावला ने 5G नेटवर्क पर अपनी चिंता जाहिर की है. अब देखना यह है कि कोर्ट इस पर क्या फैसला लेती है.

 

कोविड काल और रामायण

पहले गलत कर्म कर के बाद में जीतेजी जब उसका परिणाम मिलने लगे तो ऐसा कल्पना कोई आज की राजनीति की देन नहीं है. कोविड के दूसरे दौर के फैलने से हुई हजारों मृत्युओं पर जो आंसू बहाए जा रहे हैं यह कोई नए नहीं है, और तो और रामायण में इस का लंबा वर्णन है जब कैकयी राजा दशरथ को याद दिलाती है कि उन्होंने उसे कुछ वायदे कर रखे थे और उन वादों के अनुसार वह राम को नहीं भारत को युवराज पद पर देखना चाहती है.

बाल्मीकी रामायण के अयोध्याकांड में तेरहवें वर्ष में दशरथ विलाप विस्तार से दिया गया है जिस में राजा दशरथ रोतेरोते कैकयी से प्रार्थना करते हैं, हाथ जोड़ते हैं, दया मांगते हैं, धरती पर लाल आंखों से गिर जाते है, उसे अपशब्द कहते है.

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कोविड के बारे इस तरह का विलाप आजकल सुनने को मिल रहा है पर इस तरह के विलाप न तो राम को राज मिला और न ही जो अकाल केवल सरकारों की बदइंतजामी और गलत फैसलों से भरे हैं वापस आने वाले हैं. विलाप करना भी ठीक है पर उस समय भी जब गलती न मानी जाए और ऊपर से गलत काम करता चला जाए तो यही कहा जाएगा कि यह तो निरी लापरवाही है.

नरेंद्र मोदी अकसर कोविड संबंधी भाषणों में शास्त्रों का उल्लेख करते हैं पर इस देश की विडंबना यह है कि भारत तो चिकित्सा का निम्न स्तर का कार्य तक मानते हैं. तैतरीय संहिता कहती है कि जो भी वैद्य या चिकित्सा हो वह अशुद्ध होता है, हवन के लिए अयोग्य होता है और जब तक उस का शुद्धिकरण न हो तब तक वैद्य को यज्ञ में शामिल नहीं किया जाना चाहिए.

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एक तरह दुख प्रकट करना, आंसू बहाना और दूसरी तरफ पार्टी के लोगों को गौमूत्र, गोलेपन को कोविड का उपचार मानना एक तरह से उन सारे वैज्ञानिकों और डाक्टरों का अपमान है जो अपनी जान की बाजी लगा कर कोविड के मरीजों का बिना धर्म और जाति पूछे इलाज कर रहे हैं.

उन्हें आंसूओं से साबित न करें, उन्हें तो अपने खजाने से पैसा निकाल कर दवाएं दे पर देश की प्राथमिकताएं तो आज भी किसान आंदोलन को दबाए रखना, विश्वगुट बनने की चेष्ठा करते रहना, भव्य संसद मंदिर बनाना, मंदिरों के पट खोलने पर बधाई देना रह गया है.

किसी भी समाज के अपने सांस्कृतिक इतिहास पर गर्व करने का हक है पर उस हक के लिए सार्थक और सक्षम बनना जरूरी है. हमारे यहां सदा भाषण, प्रवचन वेदों व पुराणों का पठनपाठन करने वालों को महिमा गाई है और जब आज भी उन्हें ही पूछा जाएगा और वैज्ञानिकों का यह हाल होगा कि सीरम इंस्ट्रीट्यूट औफ इंडियन के मालिक अदर पूनावाला व उन के पिता डर के मारे लंदन चले जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि यह दुख कितना गहरा है.

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इस देश में सरकार अपनी छवि के प्रति ङ्क्षचतित है. रामायण के उत्तरकांड में तैंतालिसवें सर्ग में राम समा में पूछते हैं कि नगर की प्रजा में क्या चर्चा चल रही है, भाईयों और पत्नी के बारे में लोग क्या कह रहे हैं. वह मानते हैं कि नए राजा की तो लोग निंदा करते ही है. वैसे ही छवि के प्रति हमारे नेता ङ्क्षचतित हैं और प्राथमिकताओं में विधानसभा चुनावों में भाजपा को हराने वाली ममता बैनर्जी से निपटने की तैयारी ज्यादा दिख रही है बजाए कोविड वैक्सीन हरेक को उपलब्ध कराती वे.

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