देश भर में मोदी सरकार की नीतियों की वजह से पढ़ेलिखे बेरोजगारों की गिनती हर साल बढ़ती जा रही है. कोराना के चक्कर में लाखों छोटे व्यापार व कारखाने बंद हुए है और उन की जगह विशाल कारखानों ने ले ली या बाहरी देशों के सामान ने ले ली है. इन में काम कर रहे औसत समझ के पढ़ेलिखे युवा अब बेकार हो गए हैं. ये ऐसे हैं जो अब खेतों में जा कर काम भी नहीं कर सकते. खेतों में भी अब काम कम रह गया है.

इन युवा बेरोजगारों को लूटने के लिए सैंकड़ों कैब साइटें बन गई है और धड़ाधड़ व्हाट्सएप मैसेज भेजे जाते हैं कि साइट पर आओ, औन लाइन फार्म भरो. बहुत बार तो औन लाइन फार्म भरतेभरते बैंक अकाउंड का नंबर व पिन भी ले लिया जाता है जो बचेखुचे पैसे होते हैं, वे हड़प लिए जाते हैं.

ये भी पढ़ें- कोरोना और पुलिस

कुछ मामलों में युवाओं को सिक्यूरिटी के नाम पर थोड़ा सा पैसा किसी अकाउंट में भेजने को कहा जाता है. इन को चलाने वाले शातिर कुछ दिन अपना सिम बंद रखते हैं और फिर दूसरे फोन में लगा कर इस्तेमाल करने लगते हैं. पुलिस के पास शिकायत करने वालों की सुनने की फुरसत नहीं होती.

आज 20 से 25 साल हर चौथा युवा यदि पढ़ नहीं रहा तो बेरोजगार है. जो काम कर भी रहे हैं वे आधाअधूरा कार्य कर रहे हैं. उन की योग्यता का लाभ उठाया नहीं जा रहा. मांबाप पर बोझ बने ये युवा आज की पढ़ाई का कमाल है कि अपने को फिर भी शहंशाह से कम नहीं समझे और स्मार्ट फोन लिए टिकटौक जैसे वीडियो बना कर सफल समझ रहे है.

ये भी पढ़ें- ममता का करिश्मा

यह समस्या बहुत खतरनाक हो सकती है. आज से पहले युवाओं को कहीं न कहीं कुछ काम मिल जाता था. किसी को सेना में, किसी को ट्रक में क्लीनर का, किसी को खेत पर. पढऩे के बाद इन सब नौकरियों को अछूत माना जाने लगा है. यह और परेशानी की बात है. घर वालों से लड़झगड़ कर झटके पैसों को खर्च कर के आज कम चल रहा है पर कल जब मां बाप खुद रिटायर होने लगेंगे तब क्या होगा पता नहीं.

आज जब बच्चे होते हैं तो पिता की आयु वैसे ही 25-30 की होती है और जब तक बच्चा बड़ा होता है, पिता 50 के आसपास हो जाता है और वह जो भी काम कर रहा होता है उस में आधा अधूरा रह जाता है. वह अपना और बच्चों का बोझ नहीं संभाल सकता.

बहुत मामलों में तो दकियानूसी मांबाप बेरोजगार बेटेबेटी की शादी भी कर देते हैं. कहीं से भी पैसों का जुगाड़ कर मोटा पैसा शादी में खर्च कर दिया जाता है और यदि कोई काम नहीं मिले तो रातदिन रोना ही रोना रहता है.

ये भी पढ़ें- मीडिया की स्वतंत्रता  

मोदी सरकार ने 2-4 साल इस फौज के भगवा दुपट्टे पहना कर वसूली का अच्छा काम किया था पर वह भी अब फीका पडऩे लगा है. मंदिरों के बंद होने से तो एक बड़े अधपढ़े युवाओं के हिस्स्से में बेकारी छा गई है.

औन लाइन व्यापार ने थोड़ी सी नौकरियां दी हैं पर उस में इतना कंपीटीशन हैकि हर रोज आमदनी कम हो रही है और जोखिम बढ़ रहा है. दिक्कत यह है कि देश में ऐसे कारखाने न के बराबर लग रहे हैं जिन में बेरोजगारों की खपत हो, जो भी काम हो रहा है वह विदेशी मशीनों से हो रहा है जहां बेरोजगारी की परेशानी कम है.

भारत सरकार जल्दी ही कुंभ जैसे और प्रोग्राम करवाए जहां लोगों को नंगे रह कर जीना खिाया जाए क्योंकि अब बड़ी गिनती में पढ़ेलिखे नौजवानों और लड़कियों के लिए जानवरों की तरह ही रहना सीखना होगा.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...