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चित्र अधूरा है- भाग 4 : क्या सुमित अपने सपने साकार कर पाया

कार्तिकेय की बात सुन कर सुमित दरवाजा खोल कर उन से लिपट कर रोने लगा, विश्वास कीजिए पापा, मेरे सारे पेपर अच्छे हुए थे— पता नहीं अंक क्यों इतने कम आए?

कोई बात नहीं, बेटा, जीवन में कभीकभी अप्रत्याशित घट जाता है. उस के लिए इतना निराश होने की आवश्यकता नहीं है. अब हमें आगे के लिए सोचना है. क्या करना चाहते हो, अगले वर्ष प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठना चाहोगे या किसी कालिज में दाखिला ले कर पढ़ना चाहोगे? कार्तिकेय ने पूछा.

पापा, मैं कालिज में दाखिला ले कर पढ़ने के बजाय प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो कर अपनी योग्यता सिद्ध करना चाहूंगा, लेकिन अब मैं यहां नहीं पढ़ना चाहूंगा बल्कि दिल्ली में मौसीजी के पास रह कर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करूंगा, सुमित ने कहा.

ठीक है, जैसी तेरी इच्छा. वैसे भी तेरे मौसाजी तो इसी वर्ष प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने के लिए कह रहे थे. किंतु हम सोच रहे थे कि तुम्हारा काम यहीं हो जाएगा, लेकिन तब उन की बात पर हम ने यान ही नहीं दिया था. दिल्ली में अच्छे कोंचिंग इंस्टीट्यूट भी हैं, कार्तिकेय बोले.

उमा की सुमित को दिल्ली भेजने की बिलकुल भी इच्छा नहीं थी. अनुज भी भैया के दूर होने की सोच कर उदास हो गया था, इसलिए दोनों ही चाहते थे कि वह यहीं रह कर कुछ करे. यहां भी तो सुविधाओं की कमी नहीं है, यहां रह कर भी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की जा सकती है.

कल सुमित की कुशलक्षेम पूछने के लिए दिवाकर और अनिला का फोन आया था, उस के खराब रिजल्ट की बात सुन कर उन्होंने फिर अपनी बात दोहराई तो उमा को भी लगने लगा कि शायद दिल्ली भेजना ही उस के लिए अच्छा हो. कभीकभी स्थान परिवर्तन भी सुखद रहता है और फिर जब स्वयं सुमित की भी यही इच्छा है…

वैसे भी जीवन में कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है. बच्चों को सदा बांध कर तो नहीं रखा जा सकता. संतोष इतना था कि दिल्ली जैसे महानगर में वह अकेला नहीं बल्कि दिवाकर और अनिला की छत्रछाया और मार्गदर्शन में रहेगा.

दिवाकर दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे, सुमित को सदा प्रथम आते देख कर उन्होंने कई बार कहा था कि उसे दिल्ली भेज दिया जाए जिस से वह प्रतियोगी परीक्षाओं की उचित तैयारी कर किसी अच्छे इंस्टीट्यूट से इंजीनियंरिंग या मेडिकल की डिगरी ले तो भविष्य के लिए अच्छा होगा.

सुमित को दिल्ली भेज दिया था. वह बीचबीच में छुट्टियों में घर आता रहता था. एक बार सुमित और अनुज किसी बात पर झगड़ रहे थे. बेकार ही उमा कह बैठी, पता नहीं, कब तुम दोनों को अक्ल आएगी? दूर रहते हो तब यह हालत है. यह नहीं कि बैठ कर परीक्षा की तैयारी करो. पड़ोस के नंदा साहब के लड़के को देखो, प्रथम बार में ही मेडिकल में सेलेक्शन हो गया. कितनी प्रशंसा करती है वह अपने बेटे की- मैं किस मुंह से तुम्हारी तारीफ करूं- यही हाल रहा तो जिंदगी में कुछ भी नहीं कर पाओगे— जब तक हम हैं, दालरोटी तो मिल ही जाएगी, उस के बाद भूखों मरना.

सुमित तो सिर झुका कर बैठ गया किंतु अनुज बोल उठा, ममा, आप ने कभी अधूरे चित्र को देखा है, कितना अनाकर्षक लगता है…

मुझे असमंजस में पड़ा देख कर वह फिर बोला, ममा, अभी हम अधूरे चित्र के समान ही हैं— कभी कोई चित्र शीघ्र पूर्णता प्राप्त कर लेता है और कभीकभी पूर्ण होने में समय लगता है.

मैं उस की बात का आशय समझ कर कह उठी, बेटा, पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं.

कार्तिकेय, जो पीछे खड़े सारा वार्तालाप सुन रहे थे, भी कह उठे, बातें बनाना तो बहुत आसान है बेटा, किंतु कुछ कर पाना—कुछ बन पाना बहुत ही कठिन है. जब तक परिश्रम और लगन से येय की प्राप्ति की ओर अग्रसर नहीं होगे तब तक सफल नहीं हो पाओगे.

सुमित के 2 बार प्रतियोगी परीक्षाओं में असफल हो जाने से हम सब निराश हो गए थे. कार्तिकेय ने तो सुमित से बातें करना ही छोड़ दिया था. वह बीचबीच में घर आता भी तो अपने कमरे में ही बंद पड़ा किताबों में सिर छिपाए रहता, मेरे मुंह से ही जबतब न चाहते हुए भी अनचाहे शब्द निकल जाते. तब दादाजी ही उस का पक्ष लेते हुए कहते, बेटा, ऐसा कह कर उस का मनोबल मत तोड़ा कर— सब डाक्टर और इंजीनियर ही बन जाएं तो अन्य क्षेत्रें का काम कैसे चलेगा? धैर्य रखो— एक दिन अवश्य वह सफल होगा.

पिताजी, न जाने वह शुभ घड़ी कब आएगी—? मांजी तो पोते से इलाज करवाने की अधूरी इच्छा लिए ही चली गईं. अब और न जाने क्या देखना बाकी है—?

बेटा, इच्छा तो इच्छा ही है, कभी पूरी हो पाती है कभी नहीं. वैसे भी क्या आज तक किसी मनुष्य की समस्त इच्छाएं पूर्ण हुई हैं, लिहाजा उस के लिए किसी को दोष देना और अपमानित करना उचित नहीं है, वह उतने ही संयम से उक्कार देते, तब लगता कि मुझ में और कार्तिकेय में पिताजी के समान सूझबूझ क्यों नहीं है. सुमित की परीक्षा की इन घडि़यों में अपने मधुर वचनों से और उस के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों का पता लगा कर उस का मनोबल बढ़ाने का प्रयास क्यों नहीं करते?

वैसे भी सुमित को बचपन से ही मुझ से ज्यादा अपने पापा से लगाव था, अतः उन की बेरुखी से वह बुरी तरह घायल हो गया था. तभी, इस बार सुमित जो गया, आया ही नहीं.

अनिला लिखती, ‘दीदी, सुमित ने स्वयं को पढ़ाई में डुबो लिया है, लेकिन पता नहीं क्यों वह सफल नहीं हो पा रहा है…? जबजब वह घर से लौटता है तबतब वह और भी ज्यादा निराश हो जाता है. शायद अपनी उपेक्षा और अवहेलना के कारण.’

अब उमा को भी महसूस होने लगा था कि शायद अभी तक का हमारा व्यवहार ही उस के प्रति गलत रहा है. तभी उस में आत्मविश्वास की कमी आती जा रही है, और हो सकता है वह पढ़ने का प्रयत्न करता हो, लेकिन अति दबाव में आ कर वह पूरी तरह यान केंद्रित न कर पा रहा हो.

प्रारंभ से ही बच्चों को हम अपनी आकांक्षाओं, आशाओं के इतने बड़े जाल में फांस देते हैं कि वह बेचारे अपना अस्तित्व ही खो बैठते हैं, समझ नहीं पाते कि उन की स्वयं की रुचि किस में है, उन्हें कौन से विषय चुनने चाहिए. वैसे भी हमारी आज की शिक्षा प्रणाली बच्चों के सर्वांगीण विकास में बाधक है. वह उन्हें सिर्फ परीक्षा में सफल होने हेतु विभिन्न प्रकार के तरीके उपलब्ध कराती है न कि जीवन के रणसंग्राम में विपरीत परिस्थितियों से जूझने के. बच्चे की सफलता, असफलता और योग्यता का मापदंड केवल विभिन्न अवसरों पर होने वाली परीक्षाएं ही हैं. चाहे उसे देते समय बच्चे की शारीरिक, मानसिक स्थिति कैसी भी क्यों न हो?

सुमित के न आने के कारण उमा ही बीचबीच में जा कर मिल आती. उसे अकेला ही आया देख कर वह निराश हो जाता था. वह जानती थी कि उस की आंखें पिता के प्यार के लिए तरस रही हैं, लेकिन कार्तिकेय ने भी स्वयं को एक कवच में छिपा रखा था, जहां बेटे की अवहेलना से उपजी आह पहुंच ही नहीं पाती थी. शायद पुरुष बच्चों की सफलता को ही ग्रहण कर गर्व से कह सकता है— ‘आखिर बेटा किस का है?’ लेकिन एक नारी—एक मां ही बच्चों की सफलताअसफलता से उत्पन्न सुखदुख में बराबर का साथ दे कर उन्हें सदैव अपने आंचल की छाया प्रदान करती रहती है.

सुमित की ऐसी दशा देख कर उमा काफी विचलित हो गई थी, लेकिन अब कुछ भी कर पाने में स्वयं को विवश पा रही थी. पितापुत्र के शीत युœ ने पूरे घर के माहौल को बदल दिया था. अब तो हंसमुख अनुज के व्यक्तित्व में भी परिवर्तन आ गया था. वह भी धीरेधीरे गंभीर होता जा रहा था. सिर्फ काम की बातें ही करता था. पूरे दिन अपने कमरे में कैद किताबों में ही उलझा रहता— शायद पापा की खामोशी ने उसे बुरी तरह झकझोर कर रख दिया था.

अनिला से ही पता चला कि सुमित ने बी-एससी- प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर सिविल सर्विसेस की कोचिंग करनी प्रारंभ कर दी है और उसी में रातदिन लगा रहता है-पिताजी के हंसमुख स्वभाव के कारण ही घर में थोड़ी रौनक थी वरना अजीब सी खामोशी छाती जा रहा थी— मां की मृत्यु के पश्चात वह दोपहर का समय अनाथाश्रम जा कर बच्चों और प्रौढ़ों को शिक्षादान करने में व्यतीत करते थे. इस नेक काम की दीप्ति से ही आलोकित उन का तनमन मरुस्थल हो आए. घर में थोड़ी शीतल बयार का झोंका दे कर प्रसन्नता देने का प्रयास करता रहता था.

उमा बेटा, एक कप चाय मिलेगी? सुबह की सैर से लौट कर आए पिताजी ने किचन में आ कर दूध से भरा जग रखते हुए कहा.

बस, एक मिनट, पिताजी—

वास्तव में उन की सैर और भैंस का ताजा दूध लाने का काम दोनों साथसाथ हो जाते थे. कभीकभी सब्जी, फल इत्यादि यदि उचित दाम में मिल जाते तो वह भी ले आते थे.

चाय का कप टेबुल पर रखते हुए उमा ने कहा, पिताजी, आप का स्वप्न पूरा हो गया.

स्वप्न— कैसा स्वप्न—? क्या सुमित सिविल सर्विसेज में आ गया? पिताजी ने चौंकते हुए पूछा.

हां, पिताजी, आज ही उस का फोन आया था, उमा ने कहा.

मुझे मालूम था, आखिर पोता किस का है? वह हर्षातिरेक से बोल उठे थे, साथ ही उन की आंखों में खुशी के आंसू भी छलक आए थे.

सब आप के आशीर्वाद के कारण ही हुआ है. बेटा, बड़ों का आशीर्वाद तो सदा बच्चों के साथ रहता है, लेकिन उस की इस सफलता का मुख्य श्रेय दिवाकर और अनिला को है जिन्होंने उसे पलपल सहयोग और मार्गदर्शन दिया वरना जैसा व्यवहार उसे तुम दोनों से मिला उस स्थिति में वह पथभ्रष्ट हो कर या तो चोरउचक्का बन जाता या बेरोजगारों की संख्या में एक वृद्धि और हो जाती.

पिताजी ज्यादा ही भावुक हो चले थे, वरना इतने कठोर शब्द वह कभी नहीं बोलते. वह सच ही कह रहे थे, वास्तव में दिवाकर और अनिला ने उसे उस समय सहारा दिया जब वह हमारी ओर से निराश हो गया था. मैं पीछे मुड़ी तो देखा कार्तिकेय खड़े थे. एक बार फिर उन का चेहरा दमक उठा था शायद आत्माभिमान के कारण— योग्य पिता के योग्य पुत्र होने के कारण, लेकिन वह जानती थी कि वह अपने मुंह से प्रशंसा का एक शब्द भी नहीं कहेंगे. मैं कुछ कहने को हुई कि वह अपने कमरे में चले गए.

आज सुमित के कारण हमारी नाक ऊंची हो गई थी. कल तक जो बेटा नालायक था, आज वह लायक हो गया. संतान योग्य है तो मातापिता भी योग्य हो जाते हैं वरना पता नहीं कैसे परवरिश की बच्चों की कि वे ऐसे निकल गए कि ताने सुनसुन कर जीना दुश्वार हो जाता है. यह दुनिया का कैसा दस्तूर है?

आज का मानव, जीवन में आए तनिक से झंझावातों से स्वयं को इतना असुरक्षित क्यों महसूस करने लगता है कि अपने भी उसे पराए लगने लगते हैं? अनुज का कथन याद हो आया था— ‘एक अधूरा चित्र तो पूर्णता की ओर अग्रसर हो रहा है दूसरा भी समय आने पर रंग बिखेरेगा ही,’ इस आशा ने मन में नई उमंग जगा दी थी.

मक्का की जैविक खेती

लेखक- नरेंद्र सिंह, मेहरचंद कम्बोज, ओपी चौधरी, अश्विनी कुमार एवं प्रीति शर्मा

अपने पोषण के लिए मक्का भूमि से बहुत ज्यादा तत्त्व लेती है. जैविक खेती के लिए खेत में जीवाणुओं के लिए खास हालात का होना बहुत जरूरी है. मुख्य फसल से पहले दाल वाली फसल या हरी खाद जैसे ढैंचा, मूंग आदि लेनी चाहिए और बाद में इन फसलों को खेत में अच्छी तरह मिला दें. खेत तैयार करने के लिए 12 सैंटीमीटर से 15 सैंटीमीटर गहराई तक खूब जुताई करें, ताकि सतह के जीवांश, पहली फसल के अवशेष, पत्तियां आदि और हरी खाद कंपोस्ट नीचे दब जाएं. इस के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करनी चाहिए. इस के बाद 4 जुताई कर के 2 बार सुहागा लगाना चाहिए. ऐसा करने से उस में घासफूस नष्ट हो जाते हैं और मिट्टी भुरभुरी हो जाती?है. आखिरी जुताई से पहले खेत में 100 किलोग्राम घन जीवामृत खाद डालें व अच्छी तरह से मिला दें. बीज की मात्रा व बिजाई का तरीका समतल भूमि पर बिजाई के बजाय मेंड़ों पर बिजाई करना फायदेमंद रहता है.

मेंड़ों पर बिजाई करने से फसल का सर्दी से बचाव रहता?है व अंकुरण भी जल्दी होता है. मेंड़ पूर्व से पश्चिम दिशा में बनाएं. बीज मेंड़ पर दक्षिण दिशा की ओर 5-6 सैंटीमीटर गहरा बोएं और समतल बिजाई में 3-4 सैंटीमीटर गहरा बोएं. ऐसा करने से जमाव ज्यादा और जल्दी होगा. आमतौर पर साधारण मक्का व उच्च गुणवत्ता मक्का के लिए 8 किलोग्राम, शिशु मक्का के लिए 12 किलोग्राम व मधु मक्का के लिए 3-5 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ काफी होता है. बिजाई के लिए प्लांटर का इस्तेमाल करना चाहिए. बीजोपचार जैविक प्रबंधन में केवल समस्याग्रस्त क्षेत्रों/अवस्था में बचाव के उपाय किए जाते हैं. रोगरहित बीज व प्रतिरोधी प्रजातियों का प्रयोग सब से बढि़या विकल्प हैं. बीजजनित रोगों से बचाव के लिए बीजामृत से बीजोपचार बहुत जरूरी हैं. शाम को 8 किलोग्राम बीज को किसी ड्रम में लें या तिरपाल पर बिछा कर उस में 800 मिलीलिटर बीजामृत मिलाएं. बीज को हथेलियों के बीच लें व अच्छी तरह दबा कर उपचारित करें. रातभर सूखने दें व सुबह बिजाई करें. अगर बीजामृत न हो तो,

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ट्राइकोडर्मा विरीडी 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या स्यूडोमोनास 100 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज व जैव उर्वरक राइजोबियम/एजोटोबैक्टर/ पीएसबी से बीज उपचार कर सकते?हैं. बिरला करना बैड प्लांटर से बीज की मात्रा ज्यादा होने से पौधों की संख्या सिफारिश की गई संख्या से ज्यादा हो सकती है, तो बिजाई के 15 दिन बाद गैरजरूरी पौधों को निकाल दें, ताकि पौधों की आपसी दूरी 20 सैंटीमीटर रह जाए. बीजामृत उपचार के फायदे

* बीज जल्दी व ज्यादा मात्रा में उगते हैं.

* बीजों की जड़ें शीघ्रता से बढ़ती हैं, जो पौधे के जल्दी जमने में मददगार होती?हैं. ऐसे पौधे जल्दी बढ़ते हैं.

* भूमिजनित रोगों का पौधों पर प्रकोप कम होता है. जीवामृत में मौजूद गोबर फफूंदीनाशक व गौमूत्र जंतुरोधक का काम करते हैं, जिस से बीज की सतह पर फफूंदी व दूसरे रोगाणुओं के बीजांडय कोश नष्ट हो जाते है. इस वजह से मक्का के बीज का अंकुरण बढ़ जाता है. खाद खेत में घन जीवामृत को आखिरी जुताई पर खेत में पूरी तरह मिलाएं.

जैविक खेती के लिए देशी गाय की 100 किलोग्राम प्रति एकड़ अच्छी तरह से गलीसड़ी खाद लें व उसे समान रूप से जामन के रूप में 100 किलोग्राम जीवामृत अच्छी तरह मिलाएं. इसे 7 दिनों तक छाया में रखें व रोजाना फावड़े से अच्छी तरह मिलाएं. बिजाई करते समय खेत में पिछली फसल के अवशेष शामिल करें. खेत तैयार करने से पूर्व हरी खाद के लिए ढैंचा की बिजाई करें व गुंफावस्था आने पर इसे खेत में ही मिला दें. इस से खेत की उर्वरता बढ़ती है.

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जीवामृत का इस्तेमाल 200 लिटर जीवामृत प्रति एकड़ के हिसाब से सिंचाई पानी के साथ कीजिए. इस से मक्का फसल में खाद की पूर्ति होगी. जीवामृत वाले ड्रम में कटऔफ नोजल लगाएं. ड्रम को नाके पर रख नोजल से जीवामृत के वेग को इस तरह सैट करें कि इस की पूरी मात्रा सिंचाई के पानी के साथ पूरे खेत में चली जाएं. हर सिंचाई के साथ जीवामृत का प्रयोग करें. खरीफकालीन मक्का में जीवामृत के केवल दो छिड़काव होंगे. पहला छिड़काव बिजाई के 21 दिन बाद 5 फीसदी घोल से व दूसरा 42 दिन बाद 7.5 फीसदी घोल से. जीवामृत के 5 फीसदी घोल बनाने के लिए 5 लिटर जीवामृत को 100 लिटर पानी में मिलाएं व 7.5 फीसदी घोल के लिए 10 लिटर जीवामृत को 150 लिटर पानी में मिलाएं. शरदकालीन मक्का की अवधि लंबी होने के चलते इस में जीवामृत के 4 छिड़काव होंगे.

पहले 2 छिड़काव तो खरीफ मक्का की तरह ही होंगे. तीसरा व चौथा छिड़काव 10 फीसदी घोल से बिजाई के 93 व 114 दिन बाद करें, जिसे बनाने के लिए 20 लिटर जीवामृत को तकरीबन 200 लिटर पानी में मिला कर छिड़कें. खरपतवार पर नियंत्रण अगर खेत से घासफूस न निकाला जाए, तो पैदावार में 50 फीसदी या इस से भी ज्यादा की कमी हो सकती है. घासफूस को चारा लेने की दृष्टि से भी खेत में खरपतवार न उगने दिया जाए. इन्हें कल्टीवेटर, ह्वील हैंड या खुरपे द्वारा निराई कर के या लाइनों के बीच में डाल कर कंट्रोल किया जा सकता?है. फसल के सूखे अवशेषों से मल्चिंग उत्तरी भारत में धान की पराली एक बहुत ज्यादा गंभीर समस्या है. नासमझी के चलते किसान इन्हें जला देते हैं.

इन्हें काट कर दोबारा भूमि में डालने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है. फसल अवशेषों द्वारा मल्चिंग करने से न केवल पोषक तत्त्वों की पूर्ति होती है, बल्कि यह नमी संरक्षण के अतिरिक्त भूमि की उर्वराशक्ति व जैविक कार्बन को भी बढ़ाते हैं. फसलों की कटाई व दाने निकालने के बाद बचे हुए अवशेषों को काट कर अगर मक्का फसल की लाइनों के बीच मल्चिंग की जाए, तो वे इस सूक्ष्म जलवायु को बनाने में बहुत कारगर सिद्ध होते हैं. इस के अलावा मल्चिंग के लिए किसी भी फसल के अवशेषों का इस्तेमाल किया जा सकता है.

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मिट्टी चढ़ाना यह काम फसल को खाद की दूसरी मात्रा डालने के बाद करना चाहिए. सिंचाई और जल निकास मक्का की अच्छी पैदावार लेने के लिए उसे समय पर पानी देना चाहिए. यह आमतौर पर पौधावस्था, फूल आने, दूधिया अवस्था व गुंफावस्था में करनी चाहिए. शरदकालीन मक्का में सिंचाई 20-25 दिन के अंतराल पर करें, ताकि फसल को सर्दी व पाले से बचाया जा सके. खूंड़ों में पानी केवल आधी डोल तक ही भरें. अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में, जहां जल के निकास का ठीक इतंजाम न हो, वहां नालियों से सिंचाई करनी चाहिए. इस से पानी की बचत तो होती ही है, साथ ही मानसून से ज्यादा वर्षा के चलते पानी खड़ा रहने पर भी फसल को नुकसान नहीं होता है.

करवट-भाग 1 : किशोर ने स्कूल जाना क्यों छोड़ दिया

लेखकआर एस खरे

किशोर रुग्ण शैया पर पड़ा सोच रहा था कि मानव मस्तिष्क का यह कौन सा विज्ञान है कि जैसेजैसे वृद्धावस्था में काया जीणॆ और याददाश्त कमजोर हो रही है, वैसेवैसे बचपन की दबी स्मृतियां एकएक कर के चित्रपट की रील की भांति मानस पटल पर उभर कर आने लगी हैं.

आज न जाने क्यों स्कूल के दिनों के दोस्त जमना की याद फिर से उभर आई. गांधी नवीन माध्यमिक विद्यालय में हम दोनों का वह पहला दिन था. तब 2 माह के ग्रीष्म अवकाश के बाद एक जुलाई को स्कूल खुला करते थे. मेरे और जमना दोनों के लिए ही यह नया स्कूल था. हम 5वीं कक्षा पृथकपृथक प्राथमिक विद्यालयों से उत्तीर्ण कर यहां आए थे. दरअसल, जमना का घर इस छोटे से शहर के बिलकुल बाहरी छोर पर था और मेरा शहर के मध्य में. इस शहर में  तब प्राथमिक विद्यालय तो चारपांच थे पर माध्यमिक विद्यालय एवं उच्च माध्यमिक विद्यालय एक ही था.

हमारे विद्यालय का नाम गांधी नवीन माध्यमिक विद्यालय कैसे पड़ा,  इस की सही जानकारी तो नहीं, पर शायद स्कूल की नई बिल्डिंग बन जाने से यह नाम चल निकला होगा. माध्यमिक शाला से ही सटी हुई उच्च माध्यमिक शाला की बिल्डिंग थी. 8वीं कक्षा उत्तीर्ण कर विद्यार्थी इस में प्रवेश लेते.

खपरैल वाले हमारे प्राथमिक विद्यालय की तुलना में माध्यमिक शाला का पक्का भवन था. प्राथमिक विद्यालय में जहां हम टाटपट्टियों पर बैठा करते थे, यहां लकड़ी की बैंचडैस्क थीं.

मां ने मुझे सुबहसुबह नहला कर नया खाकी हाफपैंट और आधी बांह की सफेद कमीज पहनाई थी. स्कूल का यही गणवेष था.

स्कूल के बाहर गेट पर हमारे प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक विद्यार्थियों की सूची लिए खड़े थे. मुझ से कहा कि मैं 6ठी कक्षा के सैक्शन ‘ए’ में जा कर बैठूं. हर एक कमरे के बाहर काले रंग से बडेबड़े अक्षरों में कक्षा और सैक्शन लिखे थे.

कक्षा में पहुंच कर मैं पीछे की बैंच पर जा कर बैठ गया था. उसी समय बाजू में एक गोरा सुंदर सा लड़का आ कर बैठा था. पूछने पर उस ने अपना नाम जमना बताया था. “और तुम्हारा नाम?’’ उस ने पलट कर मुझ से पूछा था.” “किशोर’’ मैं ने बताया तो वह धीरे से मुसकरा दिया था. उस की मुसकान में भोलापन था. धीरेधीरे सभी बैंच विद्यार्थियों से भर गई थीं. फिर थोड़ी देर में जानकी मास्टर साहब हाथ में एक बड़े आकार का रजिस्टर लिए कक्षा में आए थे. इसी रजिस्टर में सभी विद्यार्थियों के नाम लिखे थे.  उन्होंने एकएक कर के सभी के नाम पुकारे और हाजिरी लेने के बाद अपना परिचय देते हुए बताया था कि वे 6ठी कक्षा के सैक्शन ‘ए’  के कक्षा अध्यापक रहेंगे.

जानकी मास्टीर साहब ने उसी दिन टाइम टेबल लिखवाया  कि प्रतिदिन पहले पीरियड से 6ठे पीरियड तक किस विषय को कौन से शिक्षक पढ़ाएंगे और यह कि चौथे पीरियड के बाद 15 मिनट का अवकाश मिलेगा. इस अवकाश को उस समय सभी इंटरवल कहा करते थे.

इंटरवल में सभी विद्यार्थी कक्षा से बाहर निकल आते और स्कूशल के गेट के बाहर खड़े चाट के ठेलों पर भीड़ लग जाया करती थी. जमना अक्सर अपने बस्ते (स्कूलबैग) में अमरूद, सीताफल या बेर रख कर लाता. वह बताया करता कि, उस के घर के आंगन में इन के पेड़ लगे हैं. इंटरवल में फल का आधा भाग मुझे देता और आधा वह खाता. कभीकभी हम चाट के ठेलों पर भी पहुंच जाते जहां एक पत्ते पर चाट ले कर आधाआधा हिस्सा खाते. धीरेधीरे मैं और जमना दोनों पक्के दोस्त बन गए. अब जो भी कक्षा में पहले आ जाता, वह एकदूसरे के लिए अपनी बैंच पर जगह रोक कर रखता. वैसे भी, जो विद्यार्थी पहले दिन जिस बैंच पर बैठ गया था, वह रोज वहीं बैठने लगा था. विद्यार्थियों का यह मनोविज्ञान है कि कक्षा में पहली बार जिस स्थान पर बैठ गए, उस से लगाव हो जाता है.

जमना पढ़ने में बहुत होशियार था. शिक्षक एक बार जो कुछ समझाते, उसे वह आसानी से समझ जाता. कक्षा में जब कोई प्रश्न पूछा जाता, उत्तर देने के लिए उस का हाथ सब से पहले उठता. मासिक परीक्षा में या तो मैं प्रथम आता  या जमना. जब अर्द्धवार्षिक परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ तो कक्षा छठवीं के तीनों सैक्शन में सर्वाधिक अंक जमना के थे. शनिवार की आम बालसभा में प्रधानाध्यापक ने सभी बच्चों के सामने जमना को मंच पर बुला कर पीठ थपथपाई थी. उसे उपहारस्वरूप बाल कथाओं की एक पुस्तक दी गई थी. तब से जमना सभी शिक्षकों का चहेता भी बन गया था. अब कक्षा के सभी बच्चे चाहते कि जमना उन का दोस्त बन जाए. जब जमना कक्षा में पहुंचता तो कई छात्र उस से कहते कि वह उन के पास आ कर बैठे. पर जमना अनसुनी करता हुआ मेरे पास आ कर ही बैठता.

धुंध : अर्चना के परिवार की खुशियां किसने छीन ली

घर के अंदर पैर रखते ही अर्चना समझ गई थी कि आज फिर कुछ हंगामा हुआ है. घर में कुछ न कुछ होता ही रहता था, इसलिए वह विचलित नहीं हुई. शांत भाव से उस ने दुपट्टे से मुंह पोंछा और कमरे में आई.

नित्य की भांति मां आंखें बंद कर के लेटी थीं. 15 वर्षीय आशा मुरझाए मुख को ले कर उस के सिरहाने खड़ी थी. छत पर पंखा घूम रहा था, फिर भी बरसात का मौसम होने के कारण उमसभरी गरमी थी. उस पर कमरे की एकमात्र खिड़की बंद होने से अर्चना को घुटन होने लगी. उस ने आशा से पूछा, ‘‘यह खिड़की बंद क्यों है? खोल दे.’’

आशा ने खिड़की खोल दी.

अर्चना मां के पलंग पर बैठ गई, ‘‘कैसी हो, मां?’’

मां की आंखों में आंसू डबडबा आए. वह भरे गले से बोलीं, ‘‘मौत क्या मेरे घर का रास्ता नहीं पहचानती?’’

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‘‘मां, हमेशा ऐसी बातें क्यों करती रहती हो,’’ अर्चना ने मां के माथे पर हाथ रख दिया.

‘‘तुम्हारे लिए बोझ ही तो हूं,’’ मां के आंसू गालों पर ढुलक आए.

‘‘मां, ऐसा क्यों सोचती हो. तुम तो हम दोनों के लिए सुरक्षा हो.’’

‘‘पर बेटी, अब और नहीं सहन होता.’’

‘‘क्या आज भी कुछ हुआ है?’’

‘‘वही पुरानी बात. महीने का आखिर है…जब तक तनख्वाह न मिले, कुछ न कुछ तो होता ही रहता है.’’

‘‘आज क्या हुआ?’’ अर्चना ने भयमिश्रित उत्सुकता से पूछा.

‘‘आराम कर तू, थक कर आई है.’’

अर्चना का मन करता था कि यहां से भाग जाए, पर साहस नहीं होता था. उस के वेतन में परिवार का भरणपोषण संभव नहीं था. ऊपर से मां की दवा इत्यादि में काफी खर्चा हो जाता था.

आशा के हाथ से चाय का प्याला ले कर अर्चना ने पूछा, ‘‘मां की दवा ले आई है न?’’

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आशा ने इनकार में सिर हिलाया.

अर्चना के माथे पर बल पड़ गए, ‘‘क्यों?’’

आशा ने अपना माथा दिखाया, जिस पर गूमड़ निकल आया था. फिर धीरे से बोली, ‘‘पिताजी ने पैसे छीन लिए.’’

‘‘तो आज यह बात हुई है?’’

‘‘अब तो सहन नहीं होता. इस सत्यानासी शराब ने मेरे हंसतेखेलते परिवार को आग की भट्ठी में झोंक दिया है.’’

‘‘तुम्हारे दवा के पैसे शराब पीने के लिए छीन ले गए.’’

‘‘आशा ने पैसे नहीं दिए तो वह चीखचीख कर गंदी गालियां देने लगे. फिर बेचारी का सिर दीवार में दे मारा.’’

क्रोध से अर्चना की आंखें जलने लगीं, ‘‘हालात सीमा से बाहर होते जा रहे हैं. अब तो कुछ करना ही पड़ेगा.’’

‘‘कुछ नहीं हो सकता, बेटी,’’ मां ने भरे गले से कहा, ‘‘थकी होगी, चाय पी ले.’’

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अर्चना ने प्याला उठाया.

मां कुछ क्षण उस की ओर देखने के बाद बोलीं, ‘‘मैं एक बात सोच रही थी… अगर तू माने तो…’’

‘‘कैसी बात, मां?’’

‘‘देख, मैं तो ठीक होने वाली नहीं हूं. आज नहीं तो कल दम तोड़ना ही है. तू आशा को ले कर कामकाजी महिलावास में चली जा.’’

‘‘और तुम? मां, तुम तो पागल हो गई हो. तुम्हें इस अवस्था में यहां छोड़ कर हम कामकाजी महिलावास में चली जाएं. ऐसा सोचना भी नहीं.’’

रात को दोनों बहनें मां के कमरे में ही सोती थीं. कोने वाला कमरा पिता का था. पिता आधी रात को लौटते. कभी खाते, कभी नहीं खाते.

9 बजे सारा काम निबटा कर दोनों बहनें लेट गईं.

‘‘मां, आज बुखार नहीं आया. लगता है, दवा ने काम किया है.’’

‘‘अब और जीने की इच्छा नहीं है, बेटी. तुम दोनों के लिए मैं कुछ भी नहीं कर पाई.’’

‘‘ऐसा क्यों सोचती हो, मां. तुम्हारे प्यार से कितनी शांति मिलती है हम दोनों को.’’

‘‘बेटी, विवाह करने से पहले बस, यही देखना कि लड़का शराब न पीता हो.’’

‘‘मां, पिताजी भी तो पहले नहीं पीते थे.’’

‘‘वे दिन याद करती हूं तो आंसू नहीं रोक पाती,’’ मां ने गहरी सांस ली, ‘‘कितनी शांति थी तब घर में. आशा तो तेरे 8 वर्ष बाद हुई है. उस को होश आतेआते तो सुख के दिन खो ही गए. पर तुझे तो सब याद होगा?’’

मां के साथसाथ अर्चना भी अतीत में डूब गई. हां, उसे तो सब याद है. 12 वर्ष की आयु तक घर में कितनी संपन्नता थी. सुखी, स्वस्थ मां का चेहरा हर समय ममता से सराबोर रहता था. पिताजी समय पर दफ्तर से लौटते हुए हर रोज फल, मिठाई वगैरह जरूर लाते थे. रात खाने की मेज पर उन के कहकहे गूंजते रहते थे…

अर्चना को याद है, उस दिन पिता अपने कई सहकर्मियों से घिरे घर लौटे थे.

‘भाभी, मुंह मीठा कराइए, नरेशजी अफसर बन गए हैं,’ एकसाथ कई स्वर गूंजे थे.

मानो सारा संसार नाच उठा था. मां का मुख गर्व और खुशी की लालिमा से दमकने लगा था.

मुंह मीठा क्या, मां ने सब को भरपेट नाश्ता कराया था. महल्लेभर में मिठाई बंटवाई और खास लोगों की दावत की. रात को होटल में पिताजी ने अपने सहकर्मियों को खाना खिलाया था. उस दिन ही पहली बार शराब उन के होंठों से लगी थी.

अर्चना ने गहरी सांस ली. कितनी अजीब बात है कि मानवता और नैतिकता को निगल जाने वाली यह सत्यानासी शराब अब समाज के हर वर्ग में एक रिवाज सा बन गई है. फलतेफूलते परिवार देखतेदेखते ही कंगाल हो जाते हैं.

एक दिन महल्ले में प्रवेश करते ही रामप्रसाद ने अर्चना से कहा, ‘‘बेटी, तुम से कुछ कहना है.’’

अर्चना रुक गई, ‘‘कहिए, ताऊजी.’’

‘‘दफ्तर से थकीहारी लौट रही हो, घर जा कर थोड़ा सुस्ता लो. मैं आता हूं.’’

अर्चना के दिलोदिमाग में आशंका के बादल मंडराने लगे. रामप्रसाद बुजुर्ग व्यक्ति थे. हर कोई उन का सम्मान करता था.

चिंता में डूबी वह घर आई. आशा पालक काट रही थी. मां चुपचाप लेटी थीं.

‘‘चाय के साथ परांठे खाओगी, दीदी?’’

‘‘नहीं, बस चाय,’’ अर्चना मां के पास आई, ‘‘कैसी हो, मां?’’

‘‘आज तू इतनी उदास क्यों लग रही है?’’ मां ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘गली के मोड़ पर ताऊजी मिले थे, कह रहे थे, कुछ बात करने घर आ रहे हैं.’’

मां एकाएक भय से कांप उठीं, ‘‘क्या कहना है?’’

‘‘कुछ समझ में नहीं आ रहा.’’

आशा चाय ले आई. तीनों ने चुपचाप चाय पी ली. फिर अर्चना लेट गई. झपकी आ गई.

आशा ने उसे जगाया, ‘‘दीदी, ताऊजी आए हैं.’’

मां कठिनाई से दीवार का सहारा लिए फर्श पर बैठी थीं. ताऊजी चारपाई पर बैठे हुए थे.

अर्चना को देखते ही बोले, ‘‘आओ बेटी, बैठो.’’

अर्चना उन के पास ही बैठ गई और बोली, ‘‘ताऊजी, क्या पिताजी के बारे में कुछ कहने आए हैं?’’

‘‘उस के बारे में क्या कहूं, बेटी. नरेश कभी हमारे महल्ले का हीरा था. आज वह क्या से क्या हो गया है. महल्ले वाले उस की चीखपुकार और गालियों से परेशान हो गए हैं. किसी दिन मारमार कर उस की हड्डीपसली तोड़ देंगे. किसी तरह मैं ने लोगों को रोक रखा है. बात यही नहीं है, बेटी, इस से भी गंभीर है. नरेश ने घर किशोरी महाजन के पास गिरवी रख दिया है,’’ रामप्रसाद उदास स्वर में बोले.

‘‘क्या?’’ अर्चना एकाएक चीख उठी.

मां सूखे पत्ते के समान कांपने लगीं.

‘‘ताऊजी, फिर तो हम कहीं के न रह जाएंगे,’’ अर्चना ने उन की ओर देखा.

‘‘मैं भी बहुत चिंता में हूं. वैसे किशोरी महाजन आदमी बुरा नहीं है. आज मेरे घर आ कर उस ने सारी बात बताई है. कह रहा था कि वह सूद छोड़ देगा. मूल के 25 हजार उसे मिल जाएं तो मकान के कागज वह तुम्हें सौंप देगा.’’

अर्चना की आंखें हैरत से फैल गईं, ‘‘25 हजार?’’

‘‘बहू को तो तुम्हारे दादा ने दिल खोल कर जेवर चढ़ाया था. संकट के समय उन को बचा कर क्या करोगी?’’ ताऊजी ने धीरे से कहा. दुख में भी मनुष्य को कभीकभी हंसी आ जाती है. अर्चना भी हंस पड़ी, ‘‘आप क्या समझते हैं, जेवर अभी तक बचे हुए हैं. शराब की भेंट सब से पहले जेवर ही चढ़े थे, ताऊजी.’’

‘‘तब कुछ…और?’’

‘‘हमारे घर की सही दशा आप को नहीं मालूम. सबकुछ शराब की अग्नि में भस्म हो चुका है. घर में कुछ भी नहीं बचा है,’’ अर्चना दुखी स्वर में बोली, ‘‘लेकिन ताऊजी, एकसाथ इतनी रकम की जरूरत पिताजी को क्यों आ पड़ी?’’

‘‘शराब के साथसाथ नरेश जुआ भी खेलता है. और मैं क्या बताऊं. देखो, कोशिश करता हूं…शायद कुछ…’’ रामप्रसाद उठ खड़े हुए.

‘‘मुझे मौत क्यों नहीं आती?’’ मां हिचकियां लेले कर रोने लगीं.

‘‘उस से क्या समस्या सुलझ जाएगी?’’

‘‘अब क्या होगा? कहां जाएंगे हम?’’

‘‘कुछ न कुछ तो होगा ही, तुम चिंता न करो,’’ अर्चना ने मां को सांत्वना देते हुए कहा.

कार्यालय में अचानक सरला दीदी अर्चना के पास आ खड़ी हुईं.

‘‘क्या सोच रही हो?’’ वह अर्चना से बहुत स्नेह करती थीं. अकेली थीं और कामकाजी महिलावास में ही रहती थीं.

‘‘मैं बहुत परेशान हूं, दीदी. कैंटीन में चलोगी?’’

‘‘चलो.’’

‘‘आप के कामकाजी महिलावास में जगह मिल जाएगी?’’ अर्चना ने चाय का घूंट भरते हुए पूछा.

‘‘तुम रहोगी?’’

‘‘आशा भी रहेगी मेरे साथ.’’

‘‘फिर तुम्हारी मां का क्या होगा?’’

‘‘मां नानी के पास आश्रम में जा कर रहना चाहती हैं.’’

‘‘फिर…घर?’’

‘‘घर अब है कहां? पिताजी ने 25 हजार में गिरवी रख दिया है. जल्दी ही छोड़ना पड़ेगा.’’

‘‘शराब की बुराई को सब देख रहे हैं. फिर भी लोगों की इस के प्रति आसक्ति बढ़ती जा रही है,’’ सरला दीदी की आंखें भर आई थीं, ‘‘अर्चना, तुम को आज तक नहीं बताया, लेकिन आज बता रही हूं. मेरा भी एक घर था. एक फूल सी बच्ची थी…’’

‘‘फिर?’’

‘‘इसी शराब की लत लग गई थी मेरे पति को. नशे में धुत एक दिन उस ने बच्ची को पटक कर मार डाला. शराब ने उसे पशु से भी बदतर बना दिया था.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’

‘‘मैं सीधे पुलिस चौकी गई. पति को गिरफ्तार करवाया, सजा दिलवाई और नौकरी करने यहां चली आई.’’

‘‘हमारा भी घर टूट गया है, दीदी. अब कभी नहीं जुड़ेगा,’’ अर्चना की रुलाई फूट पड़ी.

‘‘समस्या का सामना तो करना ही पड़ेगा. अब यह बताओ कि प्रशांत से और कितने दिन प्रतीक्षा करवाओगी?’’

अर्चना ने सिर झुका लिया, ‘‘अब आप ही सोचिए, इस दशा में मैं…जब तक आशा की कहीं व्यवस्था न कर लूं…’’

‘‘तुम्हारा मतलब है, कोई अच्छी नौकरी या विवाह?’’

‘‘हां, मैं यही सोच रही हूं.’’

ऐसा होगा, यह अर्चना ने नहीं सोचा था. शीघ्र ही बहुत बड़ा परिवर्तन हो गया था उस के घर में. मां की मृत्यु हो गई थी. वह आशा को ले कर सरला दीदी के कामकाजी महिलावास में चली गई थी. अब समस्या यह थी कि वह क्या करे? आशा का भार उस पर था. उधर प्रशांत को विवाह की जल्दी थी.

एक दिन सरला दीदी समझाने लगीं, ‘‘तुम विवाह कर लो, अर्चना. देखो, कहीं ऐसा न हो कि प्रशांत तुम्हें गलत समझ बैठे.’’

‘‘पर दीदी, आप ही बताइए कि मैं कैसे…’’

‘‘देखो, प्रशांत बड़े उदार विचारों वाला है. तुम खुल कर उस से अपनी समस्या पर बात करो. अगर आशा को वह बोझ समझे तो फिर मैं तो हूं ही. तुम अपना घर बसा लो, आशा की जिम्मेदारी मैं ले लूंगी. मेरा अपना घर उजड़ गया, अब किसी का घर बसते देखती हूं तो बड़ा अच्छा लगता है,’’ सरला दीदी ने ठंडी सांस भरी.

‘‘कितनी देर से खड़ा हूं,’’ हंसते हुए प्रशांत ने कहा.

‘‘आशा को कामकाजी महिलावास पहुंचा कर आई हूं,’’ अर्चना ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘चलो, चाय पीते हैं.’’

‘‘आशा तो सरला दीदी की देखरेख में ठीक से है. अब तुम मेरे बारे में भी कुछ सोचो.’’

अर्चना झिझकते हुए बोली, ‘‘प्रशांत, मैं कह रही थी कि…तुम थोड़ी प्रतीक्षा और…’’

लेकिन प्रशांत ने बीच में ही टोक दिया, ‘‘नहीं भई, अब और प्रतीक्षा मैं नहीं कर सकता. आओ, पार्क में बैठें.’’

‘‘बात यह है कि मेरे वेतन का आधा हिस्सा तो आशा को चला जाएगा.’’

‘‘यह तुम क्या कह रही हो, क्या मुझे इतना लोभी समझ रखा है,’’ प्रशांत ने रोष भरे स्वर में कहा.

‘‘नहींनहीं, मैं ऐसा नहीं सोचती. पर विवाह से पहले सबकुछ स्पष्ट कर लेना उचित है, जिस से आगे चल कर ये छोटीछोटी बातें दांपत्य जीवन में कटुता न घोल दें,’’ अर्चना ने प्रशांत की आंखों में झांका.

‘‘तुम्हारे अंदर छिपा यह बचपना मुझे बहुत अच्छा लगता है. देखो, आशा के लिए चिंता न करो, वह मेरी भी बहन है. चाहो तो उसे अपने साथ भी रख सकती हो.’’

सुनते ही अर्चना का मन हलका हो गया. वह कृतज्ञताभरी नजरों से प्रशांत को निहारने लगी.

प्रशांत के मातापिता दूर रहते थे, इसलिए कचहरी में विवाह होना तय हुआ. प्रशांत का विचार था कि दोनों बाद में मातापिता से आशीर्वाद ले आएंगे.

रविवार को खरीदारी करने के बाद दोनों एक होटल में जा बैठे.

‘‘तुम बैठो, मैं आर्डर दे कर अभी आया.’’

अर्चना यथास्थान बैठी होटल में आनेजाने वालों को निहारे जा रही थी.

‘‘मैं अपने मनपसंद खाने का आर्डर दे आया हूं. एकदम शाही खाना.’’

‘‘अब थोड़ा हाथ रोक कर खर्च करना सीखो,’’ अर्चना ने मुसकराते हुए डांटा.

‘‘अच्छाअच्छा, बड़ी बी.’’

बैरे ने ट्रे रखी तो देखते ही अर्चना एकाएक प्रस्तर प्रतिमा बन गई. उस की सांस जैसे गले में अटक गई थी, ‘‘तुम… शराब पीते हो?’’

प्रशांत खुल कर हंसा, ‘‘रोज नहीं भई, कभीकभी. आज बहुत थक गया हूं, इसलिए…’’

अर्चना झटके से उठ खड़ी हुई.

‘‘अर्चना, तुम्हें क्या हो गया है? बैठो तो सही,’’ प्रशांत ने उसे कंधे से पकड़ कर झिंझोड़ा.

परंतु अर्चना बैठती कैसे. एक भयानक काली परछाईं उस की ओर अपने पंजे बढ़ाए चली आ रही थी. उस की आंखों के समक्ष सबकुछ धुंधला सा होने लगा था. कुछ स्मृति चित्र तेजी से उस की नजरों के सामने से गुजर रहे थे- ‘मां पिट रही है. दोनों बहनें पिट रही हैं. घर के बरतन टूट रहे हैं. घर भर में शराब की उलटी की दुर्गंध फैली हुई है. गालियां और चीखपुकार सुन कर पड़ोसी झांक कर तमाशा देख रहे हैं. भय, आतंक और भूख से दोनों बहनें थरथर कांप रही हैं.’

अर्चना अपने जीवन में वह नाटक फिर नहीं देखना चाहती थी, कभी नहीं.

जिंदगी के शेष उजाले को आंचल में समेट कर अर्चना ने दौड़ना आरंभ किया. मेज पर रखा सामान बिखर गया. होटल के लोग अवाक् से उसे देखने लगे. परंतु वह उस भयानक छाया से बहुत दूर भाग जाना चाहती थी, जो उस के पीछेपीछे चीखते हुए दौड़ी आ रही थी.

 

जब बहक जाए पति या बेटा

सरकारी औफिस में अधिकारी के रूप में काम करने वाले प्रदीप कुमार को देर रात तक घर से बाहर रहना पड़ता था. औफिस के काम से छोटेबडे़ शहरों में टूर पर भी जाना होता था. 48 साल के प्रदीप की शादी हो चुकी थी. उन की 2 बेटियां और 1 बेटा था. घर में वे जब भी पत्नी के साथ सैक्स की बात करते तो पत्नी शोभा मना कर देती. शोभा को बडे़ होते बच्चों की फिक्र होने लगती थी. शोभा को यह पता था कि यह प्रदीप के साथ एक तरह का अन्याय है पर बच्चों को संस्कार देने के खयाल में वह पति की भावनाओं को नजरअंदाज कर रही थी. प्रदीप का काम ऐसा था जिस में कई बड़े ठेकेदार और प्रभावी लोग जुडे़ होते थे. ऐसे में जब वह टूर पर बाहर जाते तो उन को खुश करने वालों की लाइन लगी रहती थी.

प्रदीप स्वभाव से सामान्य व्यक्ति थे. न किसी चीज के प्रति ज्यादाभागते थे और न ही किसी के प्रति उन के मन में कोई वैराग्य भाव ही था. हर हाल में खुश रहने वाला उन का स्वभाव था. एक बार वे आगरा के टूर पर थे. वहां उन को एक खास प्रोजैक्ट पर काम करना था. इस कारण उन को लगातार एक सप्ताह तक वहां रहना था. प्रदीप के लिए सरकारी गैस्ट हाउस में इंतजाम था. वहीं एक दिन कौलगर्ल की चर्चा होने लगी. देर शाम एक ठेकेदार ने लड़की का इंतजाम कर दिया. कुछ नानुकुर करने के बाद प्रदीप ने लड़की के साथ रात गुजार ली. इस के बाद तो यह सिलसिला चल निकला. कई बार प्रदीप को खुद लगता कि वे गलत कर रहे हैं पर उन को यह सब अच्छा लगने लगा था. अब वे अकसर शहर से बाहर जाने का बहाना बनाने लगे. कुछ दिन तो यह बात छिपी रही पर शोभा को शक होने लगा. शोभा ने बिना कुछ कहे उन पर नजर रखनी शुरू कर दी. शोभा को कई ऐसी जानकारियां मिल गईं जिन से उस का शक यकीन में बदल गया.

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शोभा ने सोचा कि अगर वह यह बात पति से करेगी तो आसानी से वे मानेंगे नहीं. लड़ाई झगड़ा अलग से शुरू हो जाएगा. बच्चों के जिन संस्कारों को बचाने के लिए वह प्रयास करती आई है वे भी खाक में मिल जाएंगे. ऐसे में शोभा ने अपने घरेलू डाक्टर से बात की. डाक्टर ने कुछ बातें बताईं. कुछ दिन बीत गए. प्रदीप इस बात से खुश थे कि शोभा को उन के नए शौक के बारे में कुछ पता नहीं चला. अचानक एक दिन प्रदीप को तेज बुखार आ गया. शोभा उन को ले कर डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने कुछ ब्लड टैस्ट कराने के लिए कह दिया. दवा दे कर प्रदीप को वापस घर भेज दिया और बैडरैस्ट करने को कहा है. घर पहुंचने के बाद प्रदीप ने बैडरैस्ट तो किया पर बुखार कम हो कर वापस आजा रहा था.

एक दिन के बाद प्रदीप जब डाक्टर के पास जाने लगे तो शोभा भी साथ चली गई. डाक्टर ने ब्लड रिपोर्ट देखी और चिंता में पड़ गया. उस ने शोभा को कुछ देर बाहर बैठने के लिए कहा और प्रदीप से बात करने लगा. डाक्टर ने कहा कि रिपोर्ट में तो बुखार आने का कारण एचआईवी का संक्रमण आ रहा है. क्या आप कई औरतों से संबंध रखते हैं? प्रदीप सम झदार व्यक्ति थे, डाक्टर से  झूठ बोलना उचित नहीं सम झा. सारी कहानी डाक्टर को बता दी. इस के बाद डाक्टर ने पतिपत्नी दोनों को ही सामने बैठा कर सम झाया. सैक्स के महत्त्व को सम झाया और बाजारू औरतों से सैक्स संबंध बनाने के खतरे भी बताए. उस रात प्रदीप को नींद नहीं आई. शोभा उन के पास ही थी. प्रदीप ने अपनी गलती मान ली और शोभा से माफी भी मांगी. दूसरी ओर शोभा ने अपनी गलती मान ली. प्रदीप को ज्यादा परेशान देख कर शोभा ने उन को गले लगाते हुए कहा, ‘‘यह सब नाटक था तुम्हारी आंखें खोलने के लिए. हां, बुखार वाली बात तो ठीक थी पर एचआईवी की बात गलत थी. हमें पहले ही पता था कि तुम बाहर जा कर क्या गलती कर बैठे हो.’’

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न करें  झगड़ा

लखनऊ में सैक्स रोगों की काउंसलिंग करने वाले डा. जी सी मक्कड़ कहते हैं, ‘‘सैक्स के लिए बाजारू औरतों से संबंध रखना सेहत के लिए किसी भी तरह से अच्छा नहीं होता. इस के लिए केवल पुरुष ही दोषी नहीं हैं, कई बार पत्नियां पतियों को समझ नहीं पातीं. घरपरिवार, बच्चों के चलते उन को समय नहीं मिलता या वे मेनोपौज का शिकार हो कर पति की जरूरतों को पूरा करने से बचने लगती हैं. ऐसे में पति के भटकने का खतरा बढ़ जाता है. कभी वह कोठे पर जाने लगता है तो कभी सैक्स कारोबार करने वाली दूसरी औरतों के चक्कर में पड़ जाता है. इस से बचने के लिए औरतों को बहुत ही धैर्यपूर्वक परेशानी का मुकाबला करना चाहिए.  झगड़ा करने से परिवार के टूटने का खतरा ज्यादा रहता है.’’

समाजसेवी शालिनी कुमार कहती हैं, ‘‘आमतौर पर आदमी के लिए उम्र के 2 पड़ाव बेहद कठिन होते हैं. एक जब वह 17 से 20 साल की उम्र में होता है. और दूसरा 45 साल के करीब. ऐसे में वह अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बाजारू औरतों की मदद लेने लगता है. ऐसे में उस का प्रभाव एक औरत को मां या पत्नी के रूप में  झेलना पड़ता है. घरपरिवार को बचाने के लिए बहुत ही समझदारी से काम लेना चाहिए.’’

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जब बिगड़ जाए बेटा

25 साल के अनुराग की अच्छी नौकरी लग गई. उस के ऊपर कोई खास जिम्मेदारी भी नहीं थी. अनुराग की गर्लफ्रैंड तो बहुत थीं पर उन से उस के सैक्स संबंध नहींथे. अनुराग को दोस्तों से पता चला कि सैक्स संबंधों के लिए कौलगर्ल बेहतर होती हैं क्योंकि उन से केवल जरूरत भर का साथ होता है. गर्लफ्रैंड तो गले की हड्डी भी बन सकती है. पब और डिस्को में जाने के दौरान उस की मुलाकात ऐसी ही कुछ लड़कियों से होने लगी. सैक्स के लिए टाइमपास करने वाली ये लड़कियां कई बार पार्टटाइम गर्लफ्रैंड भी बन जाती थीं. देखनेसुनने में यह भी सामान्य लड़कियों की ही तरह होती हैं. अनुराग को अपने शहर में ऐसा काम करने से खतरा लगता था. ऐसे में वह लड़की को ले कर दिल्ली, मुंबई और गोआ जाने लगा. वह अकसर वीकएंड पर ऐसे कार्यक्रम बनाने लगा. बाहर जा कर उसे बहुत अच्छा लगने लगा.

अनुराग के इस शौक  ने उसे बदल दिया था. वह घर में कम समय देता था. जब भी उस की शादी की बात चलती वह अनसुना कर देता. एक बार वह ऐसी ही एक लड़की के साथ गोआ गया था. वहां से जिस दिन उसे वापस आना था उस की मां उस को लेने के लिए एअरपोर्ट पहुंच गई. अनुराग को इस बारे में कुछ पता नहीं था. वह लड़की के साथ एअरपोर्ट से बाहर आ कर टैक्सी में बैठने लगा. लड़की पहले ही टैक्सीमें बैठ चुकी थी. इस के पहले कि टैक्सी आगे बढ़ती, अनुराग की मां ने उसे पुकारा, ‘‘बेटा, मैं अपनी गाड़ी ले कर आई थी. इसी में आ जाओ.’’

मां की आवाज सुन कर अनुराग सोच में पड़ गया. उसे साथ वाली लड़की की फिक्र होने लगी. वह मां से कुछ कहता, इस के पहले मां बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, अपनी फ्रैंड को साथ ले आ.’’ अनुराग को कुछ राहत महसूस हुई. गाड़ी में बैठने के बाद अनुराग की मां ने लड़की की बेहद तारीफ करनी शुरू कर दी. घर आतेआते यह भी कह दिया कि वह बहू के रूप में उसे पसंद है. अनुराग उस लड़की को छोड़ कर वापस घर आया तो मां को बहुत प्रसन्न पाया. मां अनुराग और उस लड़की की शादी की बातें करने लगीं. कुछ देर तो अनुराग चुप रहा फिर बोला, ‘‘मां, आप को जिस लड़की के बारे में कुछ पता नहीं उस से मेरी शादी करने जा रही हो?’’

मां बोलीं, ‘‘बेटा, मैं भले ही उस से आज मिली थी पर तू तो उस के साथ घूम कर आया है. तुझे देख कर लगता है कि तू बहुत खुश है उस के साथ. जब तू खुश है तो मुझे और क्या चाहिए?’’

अनुराग परेशान हो गया. उस ने सोचा कि मां को सचाई बतानी ही होगी. रात में ठंडे दिमाग से अनुराग ने मां को पूरी बात बताई और अपनी गलती मान ली. अनुराग की मां बोलीं, ‘‘बेटा, तुझे अपनी गलती समझ आ गई, इस से बड़ी क्या बात हो सकती है. अब अच्छी लड़की देख कर तेरी शादी हो जानी चाहिए.’’

शादी के बाद अनुराग बदल गया. मां की समझदारी ने अनुराग का जीवन खराब होने से बचा लिया. इस प्रकार ऐसे हालात को संभालने में पत्नी और मांबाप को धैर्य से काम लेना चाहिए. नहीं तो एक खुशहाल परिवार को बिखरने में देर नहीं लगेगी.

बेटे के प्रति ध्यान रखने योग्य बातें

  1. बेटे के दोस्तों पर निगाह रखें. जिन दोस्तों का स्वभाव अच्छा न लगे उन से दूरी बनाने के लिए बेटे को सम झाएं.
  2. बेटे की बदलती सैक्स लाइफ पर नजर रखने की कोशिश करें. उस की मुलाकात मनोचिकित्सक से कराएं. जो बातें आप नहीं बता सकतीं वह उस के संबंध में समझा सकता है.
  3. बाजारू औरतों के साथ सैक्स संबंध बनाने के खतरे बताएं. ऐसे संबंधों से यौन रोग फैल सकते हैं यह बताएं.
  4. कोठे वैसे नहीं होते जैसे फिल्मों में दिखते हैं, यह सम झाएं. वहां होने वाले नुकसान से आगाह कराते रहें. वहां पुलिस का छापा पड़ने से जेल जाने का खतरा रहता है.
  5. बेटे को समझाने में पति की मदद ले सकती हैं. कई बार वह आप से बात करने में हिचक सकता है. ऐसे में पिता से बात करना सरल होता है.
  6. उसे लड़कियों से दोस्ती करने से रोकें नहीं. दोस्ती की सीमाओं को बता कर रखें. बेटे को अनापशनाप खर्च करने के लिए पैसे न दें.
  7. समय से उस की शादी करा दें. कई बार शादी के बाद सुधार आ जाता है.

पति के प्रति ध्यान रखने योग्य बातें

  1. पति से बात करने से पहले खुद से जरूरी जानकारियां एकत्र करने की कोशिश करें.
  2. कुछ ऐसा उपाय करें कि बिना आप के कहे पति को अपनी गलती सम झ में आ जाए.
  3. अपनी बात रखने के लिए  झगड़ा न करें. ऐसे तर्क न करें जिन से संबंधों में कटुता आए.
  4. पति के साथ शारीरिक संबंध बनाए रखें. घरपरिवार की जिम्मेदारी के बीच सैक्स संबंधों को न भूलें.
  5. एक उम्र के बाद महिलाओं में सैक्स की इच्छा खत्म होने लगती है. ऐसे में महिला रोगों की जानकार डाक्टर से मिलें और उचित इलाज करवाएं.
  6. पति के साथसाथ अपनी सैक्स परेशानियां मनोचिकित्सक को बताएं.
  7. पति को बाजारू औरतों के साथ सैक्स संबंध बनाने के खतरे बताएं.
  8. ऐसे काम पद और प्रतिष्ठा दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
  9. पति को पारिवारिक जिम्मेदारी का एहसास कराते रहें. इस से उन का ध्यान इधरउधर नहीं भटकेगा.
  10. समयसमय पर पति के साथ अकेले बाहर जाने का कार्यक्रम रखें, होटल में रुकें ताकि सैक्स संबंधों को खुल कर जी सकें.

चैन से जागना है तो सो जाओ

क्या आपने किसी ऐसी कंपनी के बारे में सुना है जो अपने कर्मचारियों को सोने के लिए पैसा देती है. नहीं सुना तो अब सुन लीजिये. जापान की कंपनी क्रेजी इनकॉर्पोरेशन अपने कर्मचारियों को अच्छी नींद लेने के लिए पैसा और अवॉर्ड दोनों दे रही है. अब सवाल उठता है ऐसा क्यों?

दरअसल दुनिया भर के युवाओं में नींद पूरी न लेने की समस्या यानी इन्सोमनिया की महामारी बनती जा रही है. जिसके परिणामस्वरूप स्ट्रेस, एंग्जाइटी, पैनिक अटैक्स और ब्रेन स्ट्रोक्स के मामले बढ़ते जा रहे हैं.

आप सोच रहे होंगे इन सब बातों से कम्पनी को क्या दिक्कत. तो बात यह है कि आज की कंपनी मानती हैं कि पर्याप्त नींद लेने वाला कर्मचारी उत्पादक होता है और जो पर्याप्त सोता नहीं है उस से दफ्तर में आकर कुछ होता नहीं है.

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ओवरटाइम और डेडलाइन का चाबुक

जापान समेत दुनिया भर में 20 साल की उम्र से ज्यादा के 92 फीसदी लोगों का कहना है कि वो पर्याप्त नींद नहीं ले पाते. अमेरिका रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र के मुताबिक एक-तिहाई लोगों का कहना है कि वे रोजाना भरपूर नींद नहीं ले पाते. नींद न लेना युवाओं को जहाँ हेल्थ हैजार्ड देता है वहीँ कम्पनियों को मोटा आर्थिक नुकसान.

एक सर्वे के मुताबिक़ कर्मचारियों के पर्याप्त न सोने के चलते जापान समेत अमेरिका जैसे विकसित देशों को भी लाखों-करोड़ों का नुकसान हुआ है. ज्यादा समय नहीं हुआ जब एक रिपोर्टर की मौत उसके लगातार ओवरटाइम करने के कारण हो गयी थी.

31 साल की मिवा सादो ने महीने में करीब 159 घंटे ओवरटाइम करना था. सच तो यह है कि पूरी दुनिया में वर्कप्लेस पर तनाव, डेडलाइन की मार इस कदर बढ़ गयी है कि युवा होलीडेज नहीं ले पाते. सर्वे के मुताबिक 10 में 8 युवा कर्मचारी तनाव की समस्या से पीड़ित हैं.

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भारतीय युवा खस्ताहाल

देश में नींद के मारे युवाओं का हाल तो और भी बुरा है. आंकड़े बताते हैं कि करीब 93% भारतीय नींद की कमी के शिकार हैं. और नींद की यह कमी किसी के लिए कारोबार बन चुकी है. शायद इसीलिए नींद से जुड़ी थैरेपी का बाजार पहले से 20% बढ़ गया है.

रिपोर्ट तो यह भी कहती है है कि करीब 58% भारतीयों का काम नींद की वजह बुरी तरह प्रभावित होता है. लिहाजा वे दफ्तरों का काम टाइम पर पूरा नहीं कर पाते और कम्पनियां नुकसान झेलती हैं.

युवा बनाम बुजुर्ग

अब सवाल उठता है कि युवा ही क्यों नींद के मारे हैं. बुजुर्ग आबादी में यह समस्या इतनी विकराल क्यों नहीं है. ऐसा इसलिए हैं क्योंकि ज्यादातर बुजुर्ग नौकरी से रिटायर हो गए हैं और अपनी आर्थिक जिमीदारियों से भी. लिहाजा उनके सर पर न तो महीने की कमाई का बड़ा टार्गेट है और न ही कम्पनी की पीपीटी का स्यापा.

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इसके अलावा युवाओं के आधुनिक लाइफस्टाइल जिसमें देर रात तक पार्टी करना, दोस्तो के साथ लौंग ड्राइव पर जाना या नाइट शोज के चक्कर लगाना भी अपर्याप्त नींद का प्रमुख कारण है. जब इतना सब रात में युवा करेंगे तो जाहिर है सुनाह ऑफिस जाने के चक्कर में कम से कम सो पायंगे और दिन भर अपनी डेस्क पर ऊघेंगे. जबकि बुजुर्ग अपने सारे काम नियत समय पर पूरे कर दवा खाकर आराम से सो जाते हैं. लिहाजा इस इन्सोमनिया की चपेट में नहीं आते.

कौन है नींद का दुश्मन

दरअसल टेक्नीकल डिजिटल साइंस के एक शोध के मुताबिक फास्ट स्पीड ब्रॉडबैंड और मोबाइल इंटरनेट की वजह से ज्यादा देर तक मोबाइल में लगे रहने वालो की नींद 25 मिनट तक घटती है. वहीं इटली के बोकोनी विश्वविद्यालय के शोध में ये देखा गया कि ज्यदातर युवा फास्ट स्पीड के ब्रॉडबैंड का इस्तेमाल करते हैं और सोने के समय भी सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं.

रात भर वे वीडियो गेम्स, चैट और मूवीज में लगे रहते हैं जो इनकी औसतन आधे घंटे की नींद वो रोज  गँवा रहे हैं. अगले दिन ऑफिस, स्कूल या कॉलेज जाने की वजह से उन्हें जल्दी उठना पड़ता है. इससे उनकी नींद के घंटे कम होते जा रहे हैं. अमेरिकन नॉन-प्रॉफिट कॉमन सेंस मीडिया द्वारा कराए गए अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि दुनियाभर में 8 से 12 साल के बीच के बच्चे हर दिन करीब 4 घंटा 36 मिनट स्क्रीन मीडिया के सामने बिताते हैं.

से नो टू होम डिजिटलाइजेशन

हुआ यह है कि हर घर पूरी तरह से इंटरनेट, स्मार्टफोन और डिजिटलाइजेशन से लैस है. सबकी सुनिया इसे में सिमट गई है. ब्राऊजर के तिलिस्म में सब ऐसे खोएं हैं कि किसी को खाने, पढ़ने और सोने की फिक्र नहीं. जबकि ये होम डिजिटलाइजेशन न सिर्फ आपकी बेशकीमती नींद आपसे चुरा रहा है बल्कि आको बीमार भी कर रहा है. माना कि टेक्नोलॉजी और मोबाइल आज हमारी अनिवार्य जरूरतों में शामिल हैं, लेकिन इनके गुलाम न बनें, वर्ना शारीरिक व मानसिक दिक्कतों के साथ साथ हम अपनों से भी दूर होते जायेंगे.

मैं अपनी दोस्त से प्यार नहीं करता लेकिन मुझे उसके साथ रहना अच्छा लगता है, जब मैं उसे यह बात बताता हूं तो वह समझती नहीं, क्या करूं?

सवाल

मेरी एक दोस्त हैमैं उस से प्यार नहीं करता लेकिन मुझे उस के साथ रहना पसंद है. मैं उस से अपने मन का हाल कहता हूं और वह सबकुछ सुनती है. वह मेरी सिर्फ दोस्त है लेकिन उस के साथ अच्छा महसूस होता है. उस की और मेरी लाइफ में एकदूसरे की जगह बिलकुल बराबर है. हम किसी और के बारे में ज्यादा बात नहीं करतेपर एकदूसरे से प्यारमोहब्बत की बातें करने से भी बचते हैं. हम दोनों एकदूसरे के साथ अच्छा फील करते हैं पर प्यार है या नहींयह नहीं जानते. क्या मुझे उस से फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स के लिए पूछना चाहिए?

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जवाब

आप उस से प्यार नहीं करते लेकिन सैक्सुअली इंटरेस्टेड हैं तो फ्रैंड्स विद बेनेफिट्स में कुछ हर्ज नहीं है. आप को यदि लगता है कि आप की फ्रैंड भी आप के साथ फ्रैंड्स विद बेनेफिट्स चाहती है तो आप उस से साफ शब्दों में पूछ लीजिए. बात को ज्यादा घुमाने या तोड़मरोड़ कर बोलने की कोशिश न करें.

इस से सिचुएशन बिगड़ भी सकती है. अगर वह इंटरेस्टेड न हुई तो वह आप को पर्वेर्ट भी समझ सकती है और यह कह सकती है कि आप ने उस की दोस्ती और फ्रेंडली नेचर को गलत समझ लिया है. इसलिए साफ शब्दों में पूछिए और जो भी वह जवाब दे उसे ऐक्सैप्ट कर लीजिए.

हां, यह बात याद रखिएगा कि एक बार फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स में आने के बाद किसी न किसी स्टेज पर दोस्ती अफैक्ट होती ही है.

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जो फ्रैंडशिप आप की अभी है वह सैक्स के बाद इसी तरह की नहीं होगी. बस, इस बात को ध्यान में रखिए और जो आप को सही लगे, कीजिए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

 

करवट-भाग 2 : किशोर ने स्कूल जाना क्यों छोड़ दिया

लेखकआर एस खरे

फिर अनायास एक दिन अनजाने में ऐसा कुछ हुआ  जिस ने सबकुछ उलटपलट कर दिया. नवंबर माह के तीसरे शनिवार की बालसभा में उस दिन मंच पर प्रधानाध्यापक के साथ खादी का कुरतापाजामा पहने व गांधी टोपी लगाए हरिजन सेवक संघ के पदाधिकारी बैठे थे. उन के स्वागत के पश्चात हमारे प्रधानाध्यापक ने बताया कि मंच पर आसीन अतिथि नारायण प्रसाद ने लंबे समय तक गांधीजी के साथ ‘अस्पृश्यता निवारण’  का काम किया है और अब वे हरिजनों के उत्थान के लिए अपने संभाग में काम कर रहे हैं. परिचय उपरांत नारायण प्रसाद ने पहले तो हरिजन सेवक संघ द्वारा किए जाने वाले कार्यों का ब्योरा दिया, फिर उन्होंने खुशखबरी सुनाई थी कि हमारे विद्यालय के तीनों हरिजन छात्रों को उन का संघ  गोद ले रहा है. तीन नामों में एक नाम जमना का भी था. अब आगे इन तीनों की पूरी पढ़ाई का खर्चा हरिजन सेवक संघ उठाएगा.

हमारी कक्षा के छात्रों को जैसे ही  पता चला कि जमना हरिजन है, वे उस से दूरी बनाने लगे थे. अब वे कोशिश करते कि जमना धोखे से भी उन से छू न जाए. कुछ विद्यार्थी मुझ से भी कहते कि उस बैंच पर न बैठूं, जिस पर जमना बैठता है. मुझे उस समय तक ऐसा कोई भान नहीं था कि किसी के हरिजन होने से उस से दूर क्यों बैठना है. पर कुछ दिनों में ही वह मनहूस घड़ी भी आ गई. यह दिसंबर के उस रविवार की बात थी जब पूरे देश में सूर्यग्रहण के कारण सब लोग अपनेअपने घरों में दुबके हुए थे. यहां तक कि हमारे घर में लकड़ी की बनी  खिड़कियों एवं दरवाजों की दरारों को भी मां ने चादर से ढक दिया था, ताकि सूर्य की हलकी सी भी किरण छन कर अंदर न आ सके. उस समय वैज्ञानिक चेतना का इतना प्रचारप्रसार नहीं था और देश के अधिकांश भाग में प्राचीन भ्रांतियां व्याप्त थीं. आज वह सब सोच कर भले ही हंसी आए,  पर 70 -75 वर्ष पहले सच यही था.

ग्रहण समाप्त होते ही ग्रहण का दान मांगने आने वालों का तांता लगना शुरू हो गया था. मां मुझे कटोरे में गेहूं भर कर देतीं और उसी में एक पैसे का सिक्का भी डाल देतीं. मैं बाहर जा कर मांगने वालों की झोली में डाल आता, किंतु इस बार की आवाज कुछ जानीपहचानी लगी. यह हमारी मेहतरानी राधा की आवाज थी जो ‘ग्रहण का दान दे जाओ बहन जी,’ आवाज लगा रही थी. राधा रोज सुबह के समय तो हर घर से मैला उठाती, फिर मैले से भरी टोकरी सिर पर रख कर कहीं दूर फेंकने जाती. किंतु  शाम के समय अच्छे से तैयार हो कर हर घर से रोटियां लेने आती. मां उस की टोकरी में दूर से 2 रोटियां डाल देतीं, फिर थोड़ी देर रुक कर उस से दो बातें अवश्य करतीं.

राधा की आवाज सुनते ही मां ने अनाज भर कर कटोरी में पैसा डाला और मुझे पकड़ा दिया. मां भी मेरे पीछेपीछे बाहर आईं. मैं बाहर निकल कर आया, तो देखा, राधा के साथ मेरा दोस्त जमना भी खड़ा था. एक टोकनी अनाज से भरी उस के सिर पर रखी थी.

“अरे जमना, तुम,” आश्चर्य से मेरे मुंह से निकला था और मां को बताया था मां, यह जमना है, मेरा सब से पक्का दोस्त.

“बिहारी, तुम यहां रहते हो. तुम्हारा घर भी स्कूल से बड़ी दूर है. आज ग्रहण था  तो मां मुझे भी साथ ले आई,” जमना ने कहा.

मां ने राधा को बताया कि हमारा बिहारी तुम्हारे बेटे की रोज तारीफ करता है. बड़ा सुंदर बेटा है तुम्हारा. खूब पढ़ाना इसे. किशोर बताता है कि जमना पढ़ाई में सब से आगे है.

राधा ने दूर से ही जमीन को छूते हुए दो बार  माथे से लगाया. ऐसा कर के उस ने अपने बेटे की प्रशंसा का आभार व्यक्त किया था.

‘आप लोगों की कृपा से जमना पढ़लिख जाए और कहीं अच्छी नौकरी करे, ताकि अपने बापू की तरह गटर-नाली की सफाई न करना पड़े. होगा तो वही, जो कुदरत चाहेगी,’ ये शब्द थे राधा के.

राधा ने अपनी टोकनी उठा कर सिर पर रखी और आगे बढ़ गई. उस के पीछेपीछे जमना भी चल दिया था. दोनों के जाते ही मां ने मुझे समझाना शुरू कर दिया था, ‘तुम इसी जमना के बारे में रोज बताया करते थे. यह तो मेहतर जाति का है. मेहतर की तो छाया भी पड़ जाए तो तुरंत नहाना पड़ता है. और तुम उस की बगल में बैठ रहे थे. उस के लाए फल खा रहे थे. एक ही पत्ते पर दोनों चाट भी खाया करते थे. चलो, अभी तक तो अनजाने में यह सब होता रहा, पर अब कल से जमना से दूर बैठना और उसे छूना भी नहीं. अगर वह धोखे से भी छू ले या उस की छाया पड़ जाए, तो घर आ कर तुरंत नहाना और कपड़े धोना. कुछ भी खाने को दे अब, तो उसे  मना कर देना.”

बालमन पर सर्वाधिक प्रभाव मां का ही होता है. सो, मैं ने बिना किसी तर्क के मां की बात मान ली थी.

19 वां ‘इफ्फला ’फिल्मोत्सव 2021 में भारतीय फिल्मकारों की विजय पताका

लॉस एंजिल्स के 19वें वार्षिक भारतीय फिल्म महोत्सव में थमिज की फिल्म‘‘सेठथुमन (सुअर)’’,साजिन बाबू द्वारा निर्देशित मलयालम फिल्म ‘‘बिरयानी’’,अभिनेत्री कनिकु श्रुति, अजीतपाल सिंह की फिल्म ‘फायरइन द माउंटेंस’ ,करिष्मादेव दुबे की फिल्म ‘बिट्टू’,रीमा दास की फिल्म‘फाॅर ईच अदर’,आरती ने हर्ष की लघुफिल्म ‘‘द सॉन्ग वी सैंग’’ और आरती ने हर्ष की फिल्म ‘‘द सॉन्ग वी सैंग’’ ने भारत का किया नाम रोशन

अमरीका के कैलीफोर्निया शहर में लॉस एंजिल्स का भारतीय फिल्म महोत्सव यानी कि ‘इफ्फला (आई एफ एफ एल ए -प्थ्थ्स्। )’ एक गैर-लाभकारी संगठन है,जो फिल्मों का प्रदर्शन करने के अलावा भारतीय डायस्पोर के विविध दृष्टिकोणों को बढ़ावा देकर भारतीय सिनेमा और संस्कृति के प्रसार के प्रति समर्पित है.‘इफ्फला’ फिछले 19 वर्षों से हर वर्ष फीचर फिल्मों के साथ ही लघु फिल्मों का अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव आयोजित करता आ रहा है. कोविड 19 के चलते इस फिल्मोत्सव के 19 वें संस्करण का ‘वच्युअर्ल’आयोजन संपन्न हुआ.

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अमरीका में लॉस एंजिल्स के भारतीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफएएलए) ने 27 मई को महोत्सव के 19वें संस्करण के लिए अपने ग्रैंड जूरी विजेताओं और ऑडियंस अवार्ड्स की घोषणा की, जो जिसका आयोजन वच्र्युअल किया गया था. यह फिल्मोत्स ववच्र्युअली 20 से 27 मई तक पूरे कैलीफोर्निया के साथ ही पहली बार भारत में उपलब्ध रहा. इस वर्ष इस फिल्म समारोह में कुल चालिस फिल्में शामिल हंई,जिनमें दो विश्व सिनेमा,8 नार्थ अमेरिकन,पाॅंच यूएस और 18 लॉस एंजिल्स प्रीमियर शामिल हैं. यह फिल्में 16 महिला निर्देशकों के साथ 17 भाषाओं में बनी है.

पुरस्कार विजेताओं को लेकर ज्यूरीउवाचःं
तमिल निर्देशक थमिज की पहली फिल्म से थुमन (सुअर) को सर्वश्रेष्ठ फीचर का ग्रैंड जूरी पुरस्कार से नवाजे जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए विशेष ज्यूरी ने कहा-‘‘सर्वश्रेष्ठ फीचर के लिए ग्रैंड जूरी पुरस्कार एक ऐसी फिल्म को दिया गया,जिसने हमें फिल्म निर्माण और नाटकीयता दोनों के मामले में काफी प्रभावित किया. यह एक अभूतपूर्व पहली विशेषता है, कोमल और प्रभावशाली, दिल और हिम्मत के साथ की गई, जो एक ही समय में बहुत स्पष्ट और बहुत परिपक्व और जटिल है.हम थमिज के लिए एक उज्ज्वल भविष्य देखते हैं और हम उन्हें शुभकामनाएं देते हैं .‘

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फीचर जूरीने साजिन बाबू द्वारा निर्देशित मलयालम फिल्म ‘‘बिरयानी’’ को एक सम्माननीय उल्लेख देते हुए कहा-‘‘एक असाधारण और प्रभावशाली कार्यक्रम की समीक्षा करने के बाद,हमने दृढ़ता से महसूस किया और एक ऐसी फिल्म का सम्मानजन उल्लेख देना चाहते थे जो एक महिला द्वारा अनुभव किए गए संघर्ष और पाखंडको  एक कच्चा और बेदाग रूप देती है,जो सिर्फ अपने जीवन को नेविगेट करने की कोशिश कर रही है‘. फिल्म में खदीजा के मुख्य किरदार में अभिनेत्री कनिकु श्रुति ने अविश्वसनीय रूप से शक्तिशाली अभिनय किया है. ‘

बतौर स्वतंत्र निर्देशक अजीत पाल सिंह की पहली फीचर फिल्म ‘‘फायरइन द माउंटेंस’’को सर्वश्रेष्ठ फिल्म के ऑडियंस अवार्ड से नवाजा गया.
पुरस्कार विजेता लघु फिल्में:
सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म के ग्रैंड जूरी पुरस्कार से करिश्मा दुबे की  फिल्म ‘बिट्टू’को नवाजा गया.इस फिल्म को लेकर टिप्पणी करते हुए ज्यूरी ने कहा-“एक शानदार युवा लड़की के बारे में एक शानदार फिल्म, जिसकी जीभ खराब है,जिसे पता चलता है कि उसकी अवज्ञा जीवन रक्षक है. हमें यह फिल्म बिल्कुल दिलचस्प और सम्मोहक लगी। एक सच्ची कहानी के आधार पर,दुबे ने सनसनी खेज होने से बचते हुए घटना को मानवीय बनाने में कामयाबी हासिल की और दो लड़कियों के बीच दोस्ती के बारे में कहानी बताई.  यह सबसे लुभावनी चीजों में से एक है,जिसे हमने लंबे समय में देखा है औ रहम यह देखने के लिए इंतजार नहीं कर सकते कि वह आगे क्या करती है.

लघु फिल्मों की ही कैटेगरी में पहला ऑन रेबल में शन रीमादास की फिल्म‘फॉरईच अदर’ को देते हुए ज्यूरी ने टिप्पणी की-‘‘यह अद्भुत गति और पेसिंग के साथ एक अद्भुत फिल्म है.वास्तव में जूरी के विचार-विमर्श में बहुत ही विनोदी आवाज के साथ एक बहुत ही उत्सुकता से देखी गई फिल्म के रूप में सामने आयी.

‘‘
इसके अलावा आॅनरेबल में शन के तहत उप मन्युभट्टाचार्य और कल्पसांघवी की फिल्म‘‘वडे’’को चुना गया. लघुफिल्मों  की ज्यूरी ने इसपर टिप्पणी करते हुए कहा-‘‘ जलवायु परिवर्तन के दुःखद परिणाम और कलकत्ता की एक डायस्टोपियनरी इमेजिंग की एक आश्चर्यजनक एनीमेटेड लघु फिल्म है. इसमें लेखन और कहानी से लेकर ध्वनि डिजाइन तक सब कुछ अवश्य देखने वाली फिल्म है. ’
इतना ही नही फिल्म‘‘फाॅर एवरटूनाइट’’की युवा अदाकारा निविता चालिकी को  का पुरस्कार देते हुए  ज्यूारी नेकहा-‘‘निविता ने बहुत सूक्ष्म रूप से निष्पादित अभिनय किया है. उसने शानदार ढंग से इस चरित्र के जीवन को एक भारतीय अमरीकी किशोर होने की चिंताओं को दर्शाते हुए पर्दे पर उतारा.

हम इस उभरती हुई प्रतिभाषाली कलाकार को भविष्य में भी देखने के लिए बहुत उत्साहित हैं. ”
सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म के ऑडियंस अवार्ड से आरती ने हर्ष की फिल्म ‘‘द सॉन्ग वी सैंग’’ कोमिला.
2021 की फीचर फिल्म की ज्यूूरी में मिलन चक्रवर्ती (मार्जिनल मीडियावर्क्स के फिल्म के प्रमुख), नाथन फिशर (पेरिस स्थित ‘स्ट्रे डॉग्स’ के संस्थापक) और जेनविल्सन (फिल्म इंडिपेंडेंट स्पिरिट अवार्ड्स नामांकन प्रक्रिया के सह-प्रबंधक, और साल भर की सदस्य स्क्रीनिंग श्रृंखला फिल्म इंडिपेंडेंट प्रेजेंट्स के लिए एक वरिष्ठ प्रोग्रामर)का समावेश रहा.

वहीं 2021 की लघुफिल्मों की ज्यूरी में तनुज चोपड़ा (‘पंचिंग एट द सन’के निर्देषक), निकडो दानी (सीबीएस रीवाइवलआफमर्फीब्राउनऔर एलेक्सस्ट्रेंजेलोव के अभिनेता), और सकीना जाफरी (अभिनेत)का समावेश रहा.

2021 पुरस्कार विजेताओं की सूचीः
थमिज की फिल्म‘‘सेठथुमन (सुअर)’’को सर्वश्रेष्ठ फिल्म के ग्रैंड जूरी पुरस्कार औ रसर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म के पुरस्कार से करिश्मा देव दुबे की फिल्म ‘‘बिट्टू’’को नवाजा गया.
‘ऑडियंस अवार्ड्स’के तहत अजीत पाल सिंह की फिल्म ‘‘फायरइन द माउंटेंस’’ सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म तथा आरती ने हर्ष की लघुफिल्म ‘‘द सॉन्ग वी सैंग’’ को सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म का पुरस्कार
साजिन बाबू की फीचरफिल्म ‘‘बिरयानी’’, रीमादास की लघु फिल्म‘‘फॉरईचअदर’’,उप मन्युभट्टाचार्य और कल्प सांघवी की लघु फिल्म ‘‘वडे’’को ऑनरेबल मेंशन पुरस्कार तथा लघु फिल्म ‘‘ फाॅर एवरटूनाइट ’’मेंउत्कृष्ट अभिनय के लिए निविता चालिकी को ऑनरेबल में शन पुरस्कार.

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