पहले गलत कर्म कर के बाद में जीतेजी जब उसका परिणाम मिलने लगे तो ऐसा कल्पना कोई आज की राजनीति की देन नहीं है. कोविड के दूसरे दौर के फैलने से हुई हजारों मृत्युओं पर जो आंसू बहाए जा रहे हैं यह कोई नए नहीं है, और तो और रामायण में इस का लंबा वर्णन है जब कैकयी राजा दशरथ को याद दिलाती है कि उन्होंने उसे कुछ वायदे कर रखे थे और उन वादों के अनुसार वह राम को नहीं भारत को युवराज पद पर देखना चाहती है.

बाल्मीकी रामायण के अयोध्याकांड में तेरहवें वर्ष में दशरथ विलाप विस्तार से दिया गया है जिस में राजा दशरथ रोतेरोते कैकयी से प्रार्थना करते हैं, हाथ जोड़ते हैं, दया मांगते हैं, धरती पर लाल आंखों से गिर जाते है, उसे अपशब्द कहते है.

ये भी पढ़ें- बेरोजगार युवा और मोदी सरकार

कोविड के बारे इस तरह का विलाप आजकल सुनने को मिल रहा है पर इस तरह के विलाप न तो राम को राज मिला और न ही जो अकाल केवल सरकारों की बदइंतजामी और गलत फैसलों से भरे हैं वापस आने वाले हैं. विलाप करना भी ठीक है पर उस समय भी जब गलती न मानी जाए और ऊपर से गलत काम करता चला जाए तो यही कहा जाएगा कि यह तो निरी लापरवाही है.

नरेंद्र मोदी अकसर कोविड संबंधी भाषणों में शास्त्रों का उल्लेख करते हैं पर इस देश की विडंबना यह है कि भारत तो चिकित्सा का निम्न स्तर का कार्य तक मानते हैं. तैतरीय संहिता कहती है कि जो भी वैद्य या चिकित्सा हो वह अशुद्ध होता है, हवन के लिए अयोग्य होता है और जब तक उस का शुद्धिकरण न हो तब तक वैद्य को यज्ञ में शामिल नहीं किया जाना चाहिए.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...