‘यह नीलिमा भी कहां जा कर मर जाती है. कितनी बार कहा है कि नीरू के औफिस जाते ही हमें निकलना होगा. दिन चढ़ने से भगवान की सुबह की अर्चना खराब हो जाती है,’ यह बुदबुदाती 55 वर्षीया आभा अपनी बहू पर गरजतीबरसती पूजा की डलिया लिए दरवाजे पर तैयार खड़ी थीं.
पहले ही इन की पूजाअर्चना कुछ कम नहीं थी. घर में आधा दिन पूजापाठ, फिर नियमित मंदिर जाने की आदत से कई बार इन के पति झल्ला जाते थे. अब जब 2 साल पहले पति की मृत्यु और 6 महीने पहले इकलौते बेटे 30 साल के निरूपम के ब्याह हो जाने से इन की व्यस्तता कुछ कम हो गई है, तो पूजापाठ और कर्मकांड दोगुने हो गए हैं.
ये लोग रांची के पहाड़ी मंदिर के पास रहते हैं. नजदीक के विशाल पहाड़ पर स्थित शिव का मंदिर आभा के नित्य दर्शन का केंद्र है. अब पैरों में दर्द की वजह से रोजाना 700 सीढ़ियां चढ़ कर मंदिर तक पहुंचना संभव नहीं होता, इसलिए वे मंदिर प्रांगण में नीचे बरगद के चबूतरे पर बैठ बहू के पूजा कर के कर वापस आने का इंतजार करती हैं. और तब तक पंडित सेवाराम उन के साथ गपशप करते हुए उन की परेशानियां खरोंच कर निकालते व अगली किसी पूजा के लिए उन्हें तैयार करते रहते.
बहु नीलिमा तैयार हो कर अपने कमरे से बाहर आ गई थी. 22 साल की आकर्षक युवती जींस और टीशर्ट में बहुत प्यारी लग रही थी.
सास आभा बहू नीलिमा को देखते ही फट पड़ीं, “यह क्या पहन लिया तुम ने? अब तक तो साड़ी पहन कर ही चल रही थी. मंदिर जा रही हो, कोई डिस्को क्लब नहीं. बेशर्म, जाओ जल्दी, साड़ी पहन कर आओ.”
“मां, भगवान भी ड्रैस देख कर आशीष देते हैं क्या? ड्रैस में बदलाव तो खुद की खुशी के लिए है.”
“सास से जबान लड़ाती है, यही सिखा कर भेजा है तुम्हारे घर वालों ने? जल्दी साड़ी पहन कर आओ. लगता है निरूपम से तुम्हारी शिकायत करनी ही पड़ेगी.”
नीलिमा साड़ी पहन कर आ तो गई लेकिन रोजरोज की यह मुसीबत उसे भारी पड़ने लगी थी.
वह सोचती जा रही थी, कितनी उबाऊ दिनचर्या हो गई है उस की शादी के बाद.
सुबह से लगपड़ कर 9 बजे के अंदर पति को नाश्ता व खाना दे कर औफिस भेजो, रसोई और घर को व्यवस्थित कर नहाने जाओ, ब्याहता सा श्रृंगार कर हर दिन पहाड़ी पर मंदिर जाओ, फिर वापस भी इस जल्दी में आओ कि बरतन धोने वाली दीदी न चली जाए वापस. वरना घर आ कर बरतन, कपड़ा धोना, पोंछना… तब भी चैन कहां, आएदिन सास मंडली और उन के भजन कीर्तन… नाश्ता, खाना, साफसफाई में ही शाम हो आती.
उधर, पति भी चिलगोजे के बीज, मां के दुमछल्ले. दिमाग नाम की कोई चीज तो जैसे उस के पास है ही नहीं. 30 साल की उम्र है, साधारण नाकनक्श में आम सा दिखता इंसान कम से कम अगर दिमाग से पैदल न होता तो भी वह इस शादी को ले कर इतनी निराश न होती.
पति जब कुढ़मगज, तो सास के इस तरह की समय की बरबादी वाली नित्य क्रिया से छुट्टी कैसे मिले उसे.
किसी तरह औफिस का बंधाबंधाया काम निबटा कर जब निरूपम घर आता तो मां के हुक्म बजाने और लोगों की मीनमेख निकालने में मां का साथ देने के सिवा वह करता भी क्या था.
मां ने पत्नी की उलटीसीधी शिकायत की नहीं कि, आव देखे न ताव पत्नी पर पड़े बरस.
फिर अगर पत्नी बिस्तर पर साथ देने को रुचि न दिखाए, तो दूसरी सुबह कमअक्ल इस बात की भी शिकायत मां के पास ले जाता.
अरे, कुछ बातें सिर्फ पतिपत्नी के बीच ही रहती हैं, इतनी भी समझ नहीं जिसे, उस से दिल जुड़े भी तो कैसे.
पूजा की थाली लिए साड़ी में लटपटाती नीलिमा 700 सीढ़ियां चढ़तीचढ़ती एक खाली पड़ी कील अपनी चप्पल में गड़वा बैठी. चप्पल से होते हुए कील के पैर के तलवे में चुभने से पैर में चोट के साथ मोच आ गई, सो अलग. ऊपर पहाड़ी मंदिर पहुंच कर वह जैसेतैसे नलके पर पहुंची.