Download App

बेबस -भाग 2 : शैलेश एकटक देखते हुए किसकी तरफ इशारा कर रहा था

लेखकमनोज शर्मा

शैलेश ने अपने मोबाइल की गैलरी खोलते हुए एक महिला की फोटो दिखाई. नए जमाने की फैशनेबल अधेड़ औरत, जो शायद उसी कालेज में पढ़ाती है.

‘‘जानते हो ये कौन है?’’ शैलेश ने फोटो दिखाते हुए मुझ से पूछा. ‘‘तुम्हारे कालेज की ही कोई प्रोफेसर होगी,’’ मैं ने उस की आंखों में देखते हुए जवाब दिया.

‘‘हां, ये प्रोमिला है. प्रोफेसर प्रोमिला और तुम्हारी भाभी…’’ वो महिला, जिस की वो फोटो दिखा रहा था, शैलेश से बड़ी लग रही थी. फोटो को करीब ला कर मैं ने देखा. ये तो काफी प्रसिद्ध, किंतु विवादास्पद महिला प्रोफेसर हैं. मैं ने कहीं पढ़ा था कि इस प्रोफेसर महिला ने अपने किसी स्टूडैंट से प्रेमविवाह कर लिया है, पर ये क्या… वो तुम थे?

वह शैलेश को एकटक देखता रहा. शैलेश बिलकुल सफेद हो गया था, मानो जीवन के सारे राज आज मेरे सामने खुल गए हों. आदमी दो जीवन जीता है. एक वो जैसा होता है, पर दूसरा जिसे वो भोगता है. यथार्थ बहुत कष्टदायी होता है, जिस में आदमी अपनी चेतना भूल जाता है और फिर जो बचता है, वो असल से कोसों दूर होता है.

मंदमंद संगीत काफी मधुर था, किंतु शैलेश की इस बात को सुनने के पश्चात मानो हर तरफ शून्य ही नजर आ रहा था. खिड़की के बाहर की हवा दरवाजों पर आघात करती हुई बहुतकुछ कहना चाहती थी, पर दरवाजों से टकरा कर वापस लौट जाती थी. पलभर के सन्नाटे के पश्चात गीत से पूर्व वायलिन गूंजा. शैलेश रोआंसा सा दिखा, मानो वो अपनी जिंदगी से खुश नहीं है.

1-2 मैन्यू को बगल में थामे हुए वेटर 2 कौफी ला कर खड़ा हो गया और मैन्यू को टेबल पर रख के हलकी मुसकराहट के साथ हमें देखने लगा. बर्गर के और्डर मिलते ही वेटर चला गया. तुम नहीं जानते कि हम दोनों ही दोहरी जिंदगी जी रहे हैं. शैलेश ने गंभीर हो कर कहना शुरू किया.

‘‘कैसे…?’’ मैं ने शैलेश की हथेली को उंगली से दबाते हुए पूछा. ‘‘तुम जानते हो ना कि मैं एमए के दाखिले के लिए यहां पहुंचा था.ग्रेजुएशन के पश्चात.’’ ‘‘हां… हां, फिर…’’ मैं ने कहा.

‘‘मेरे एडमिशन के लिए प्रोमिला ने सिफारिश की थी. शायद तभी मुझे इतनी नामी यूनिवर्सिटी में दाखिला मिला था. चूंकि यहां नंबरों से अधिक किसी नामी आदमी से जानपहचान की जरूरत कहीं अधिक है.‘‘मैं एमए में पढ़ने लगा. इन्हीं मोहतरमा ने मुझे होस्टल की सुविधा दिलवाई थी. तुम तो जानते ही हो कि हम लोग छोटे कसबों से ताल्लुक रखते हैं. यहीं पढ़नारहना हमजैसों के वश में कहां?’’ निराशा से भरा चेहरा बोलता रहा, ‘‘मैं उन दिनों पढ़ाई में अव्वल था ही. सो, सब मुझ में दिलचस्पी लेते थे. क्लास में मेरे माक्र्स अच्छे रहते थे और शायद इसलिए प्रोमिला भी…’’

आरंभ में प्रोमिला मैडम थीं, जो अपने पति के साथ छोटे से घर में रहती थीं. मेरा नोट्स आदि के सिलसिले में अकसर उन के यहां आनाजाना था. वो मुझे लाइब्रेरी आदि से भी अपने नाम से किताबें इश्यू करवा देती थीं. मुझे उन दिनों ये सब अच्छा लगता था, क्योंकि शिक्षक की इतनी तव्वजुह. किंतु मुझे नहीं पता था कि वो मुझे दिलोदिल चाहने लगी थी और कई मर्तबा वो मेरी पीठ थपथपाते हुए मुझ से लिपट तक जाती थी. कभीकभार ऐसा होना शायद गलती या भूल से हो सकता है, पर अब तो रोज बातबात पर मेरे हाथों को चूमना, मेरे हाथों को सहलाना और घंटों मुझे प्रेम से निहारना आम बात होने लगी थी.

मैं ने उन्हें बताना चाहा कि आप विवाहित हैं और शिक्षिका के पद पर हैं, ये सब आप के लिए उचित नहीं, पर उन के दिलोदिमाग पर मुहब्बत का भूत सवार था. वह हर पल किसी न किसी बहाने से मुझ से मिलने की कोशिश करती और उन की निगाहें मुझे ही ढूंढ़तीं.

2-3 सालों में वो अपने कौंटैक्ट से इतना अमीर हो गई. पहले प्रिंसिपल की और फिर कई मंत्रियों के साथ संबंध रख कर वह अमीर होती गई. मैं भी अंधे झूठे प्रेम में उन की ओर खिसकता गया.उन्होंने सब को एकएक कर के छोड़ दिया और सब से भरपूर फायदा उठाया.

मुझे लगा कि वह मुझ से सच्चा प्रेम करती है, पर उन्हें केवल साथ चाहिए था, जो उन्हें मुझ से मिलता रहा. कौफी के मग हमारे सामने थे. बगल वाली टेबल पर बैठे एक युवा कपल एकदूसरे के हाथों में हाथ दबाए बैठे थे. जैसे ही गाने का अंतरा बदलता, वे दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकराते हुए गाने लगते.

टेबल पर बैठा आदमी यद्यपि आधा गंजा था, पर था बेहद रोमांटिक.लड़की के बाएं हाथ को चूमते हुए वह संजीदा होता जा रहा था. उस की आंखों में गहरी चमक थी. गाना बदलते ही वो इधरऊधर देखने लगे, जैसे गहरी नींद से अभीअभी जागे हों.

तुम जानते हो, प्रोमिला ने मुझे एक दिन औफर कर दिया. शैलेश ने एक सिगरेट सुलगाई और बाकी बची हुई डब्बी को मेरी ओर कर दिया. मैं ने गरदन दोनों ओर फेरते हुए उसे कंटीन्यू करने को कहा.

बेबस -भाग 1: शैलेश एकटक देखते हुए किसकी तरफ इशारा कर रहा था

लेखकमनोज शर्मा

शैलेश मेज पर दोनों हाथों को मोड़ कर उन पर सिर झुकाए बैठा था. दरवाजे पर आहट सुनते ही उस ने मुंह ऊपर उठाया और दरवाजे की तरफ देखने लगा. बालों को सहेजते हुए बोला, ‘‘कम इन प्लीज.’’

दरवाजा खोल कर मैं अंदर जाते हुए उस के चेहरे की ओर देखने लगा. ‘‘अरे तुम,’’ बोलते हुए अपनी कुरसी पर से उठ खड़ा हुआ और मुसकराते हुए मुझे कुरसी पर बैठने के लिए कहा.

मैं मेज के एक ओर रखी कुरसी पर बैठ गया. टेबल बैल बजाते हुए शैलेश ने चपरासी को बुलाते हुए मुझ से पूछा, ‘‘क्या लोगे दिनेश?’’ मैं ने मुसकराते हुए गरदन दोनों ओर हिला दी.

शैलेश ने आंखों ही आंखों में चपरासी को कुछ निर्देश दिया, फिर चपरासी वहां से लौट गया. ‘‘और कहो, शैलेश. अब तो तुम सहायक प्राध्यापक हो गए हो. सब से पहले तो तुम इस की बधाई लो,’’ मैं ने दोनों हाथों को उस की हथेलियों में रख कर हंसते हुए कहा.

वो मुझे देख कर मुसकराता रहा. ‘‘पर, मैं ये क्या सुन रहा हूं कि तुम ने शादी कर ली. भई, ये बात तो मेरे गले नहीं उतरी… ना बैंड, ना बारात, ना कोई शोरशराबा. बस एकदम से चुपचाप… ये सब कैसे हो गया.’’

चपरासी दरवाजे को ठकठक करता अंदर आ गया और चाय की प्यालियों से भरी ट्रे को मेज पर रख कर खड़ा हो गया. दिनेश के निर्देश पर वो दरवाजे को बंद करता हुआ चला गया.

दिनेश ने मेरी ओर ट्रे खिसकाते हुए चाय उठाने के लिए आग्रह किया. ‘‘यार, तुम ने मटुकनाथ की कहानी सुनी है ना, जिस ने जूली से प्रेमविवाह किया था,’’ वह मुसकरा कर मुझे देखता बोलता रहा.

‘‘हां… हां,’’ मैं ने चाय उठाते हुए गरदन हिलाई. ‘‘बस, कुछ इसी तरह का सीन बन गया,’’ चाय का घूंट भरते हुए वह बोला. ‘‘तुम खुश तो हो ना…?’’ मैं ने प्याली को थामे हुए पूछा.

‘‘अब क्या कहूं. चलो, घर चलते हैं,’’ प्याली का अंतिम घूंट मुंह में उड़ेलते हुए शैलेश बोला. ‘‘इस समय कोई दिक्कत तो नहीं?’’ मैं ने आश्चर्य से पूछा. ‘‘मैं आज की क्लासेज आदि ले चुका हूं और अब कोई ज्यादा जरूरी काम भी नहीं बचा,’’ कुछ सोचते हुए वह बोला, ‘‘हां… चल सकते हैं.’’

मैं ने भी चाय पी कर प्याली मेज की ओर सरका दी. चपरासी प्याली के लिए जैसे ही पहुंचा, शैलेश ने उस से कहा, ‘‘सोनू, मैं निकल रहा हूं. मेरे एक खास दोस्त आए हैं. थोड़ा काम भी है मुझे. कोई खास बात हो, तो मुझे फोन कर लेना.’’

शैलेश ने अपने दफ्तर के दरवाजे को बंद किया. हम दोनों निकल पड़े. बाहर का मौसम अच्छा था. धूप अब कम थी. बारिश का सा मौसम था. बादल कई छोटेबड़े खंडों में बंटा था. कहीं सफेद तो कहीं उमड़ा हुआ, पर आसमान को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि देर रात तेज बारिश हो सकती है.

मुझे याद है, जब पिछली मर्तबा भी मैं शैलेश से मिला था तकरीबन 8 साल पहले कुछ ऐसा सा ही मौसम था. यूकेलिप्टस के लंबे वृक्ष तेज हवा में लहर रहे हैं. 2-3 स्टूडैंट हमें देख कर मुसकरा कर रुक गए. ऐसा लगता था कि जैसे वो कोई सवाल पूछना चाहते हों, पर वो एकदूसरे की पहल का इंतजार करते रहे थे और कुछ ना पूछ सके.

शैलेश काफी कन्फ्यूज्ड सा लगा मानो मन में कुछ हो, पर कर कुछ और ही रहा हो. जैसे शरीर कहीं, आत्मा कहीं और ही. पहले तो वह ऐसा न था. पर खैर, मैं उस से काफी सालों के बाद मिला हूं. फिर पहले वो गरीब आदमी था, जिस के पास साइकिल तक नहीं थी, पर ये शैलेश गाड़ी वाला है, जो नयानया सहायक प्राचार्य हो गया है. यद्यपि, हम दोनों ने बचपन एकसाथ जिया, पर आज हम दोनों का व्यक्तित्व बहुत भिन्न है.

शायद इसी से उस ने मुझे यकायक मिलने को यहां बुलाया, जैसे कि उसे अंतिम बार ही मिलना हो. वो जैसा फोन पर था, चिड़चिड़ा सा बिलकुल वैसा ही दिखा.

जहां एक ओर शैलेश गरीबी में भी स्वयं के व्यक्तित्व और रहनसहन पर इतराता था, वहीं आज इतनी अमीर आसामी हो कर भी कुत्सित था. पहले वो दोएक साथियों व अपनी किताबों से ही खुश था, पर आज गाड़ी, नौकरचाकर होने के बाबजूद व्यग्र था. वो अपने से ही दुखी था, जैसे कोई सजा काट रहा हो.

शैलेश चुपचाप था. उस ने गाड़ी स्टार्ट की. मैं भी दूसरी सीट पर बैठ गया. मुझे लगा था कि शैलेश घर जाएगा, पर वो कौफी होम के गेट पर जा कर रुक गया.

कौफी होम के अंदर कम रोशनी की हुई थी. धीमी पीली लाइट में कोई सूफी गाना चल रहा था, जिसे सुनते हुए हम दोनों उस खिड़की के किनारे मेज पर बैठ गए, जिस से बाहर झांका जा सकता था.

 

आभास : सुधा दीदी को शारदा के कौन से पुराने दिन याद आ रहे थें

लेखक- राज भटनागर ‘देवयानी’

‘‘ओ  ह मम्मी, भावुक मत बनो, समझने की कोशिश करो,’’ दूसरी तरफ की आवाज सुनते ही शारदा के हाथ से टेलीफोन का चोंगा छूट कर अधर में झूल गया. कानों में जैसे पिघलता सीसा पड़ गया. दिल दहला देने वाली एक दारुण चीख दीवारों और खिड़कियों को पार करती हुई पड़ोसियों के घरों से जा टकराई. सब चौंक पड़े और चीख की दिशा की ओर दौड़ पड़े.

‘‘क्या हुआ, बहनजी?’’ किसी पड़ोसी ने पूछा तो शारदा ने कुरसी की ओर इशारा किया.

‘‘अरे…कैसे हुआ यह सब?’’

‘‘कब हुआ?’’ सभी चकित से रह गए.

‘‘अभीअभी आए थे,’’ शारदा ने रोतेरोते कहा, ‘‘अखबार ले कर बैठे थे. मैं चाय का प्याला रख कर गई. थोड़ी देर में चाय का प्याला उठाने आई तो देखा चाय वैसी ही पड़ी है, ‘अखबार हाथ में है. सो रहे हो क्या?’ मैं ने पूछा, पर कोई जवाब नहीं, ‘चाय तो पी लो’, मैं ने फिर कहा मगर बोले ही नहीं. मैं ने कंधा पकड़ कर झिंझोड़ा तो गरदन एक तरफ ढुलक गई. मैं घबरा गई.’’

‘‘डाक्टर को दिखाया?’’

‘‘डाक्टर को ही तो दिखा कर आए थे,’’ शारदा ने रोते हुए बताया, ‘‘1-2 दिन से कह रहे थे कि तबीयत कुछ ठीक नहीं है, कुछ अजीब सा महसूस हो रहा है. डाक्टर के पास गए तो उस ने ईसीजी वगैरह किया और कहा कि सीढि़यां नहीं चढ़ना, आप को हार्ट प्रौब्लम है.

ये भी पढ़ें- हम बिकाऊ नहीं : रामनाथ फाइल देखकर क्यों चौक गया

‘‘घर आ कर मुझ से बोले, ‘ये डाक्टर लोग तो ऐसे ही डरा देते हैं, कहता है, हार्ट प्रौब्लम है. सीढि़यां नहीं चढ़ना, भला सीढि़यां चढ़ कर नहीं आऊंगा तो क्या उड़ कर आऊंगा घर. हुआ क्या है मुझे? भलाचंगा तो हूं. लाओ, चाय लाओ. अखबार भी नहीं देखा आज तो.’

‘‘अखबार ले कर बैठे ही थे, बस, मैं चाय का प्याला रख कर गई, इतनी ही देर में सबकुछ खत्म…’’ शारदा बिलख पड़ीं.

‘‘बेटे को फोन किया?’’ पड़ोसी महेशजी ने झूलता हुआ चोंगा क्रेडल पर रखते हुए पूछा.

‘‘हां, किया था.’’

‘‘कब तक पहुंच रहा है?’’

‘‘वह नहीं आ रहा,’’ शारदा फिर बिलख पड़ीं, ‘‘कह रहा था आना बहुत मुश्किल है, यहां इतनी आसानी से छुट्टी नहीं मिलती. दूसरे, उस की पत्नी डैनी वहां अकेली नहीं रह सकती. यहां वह आना नहीं चाहती क्योंकि यहां दंगे बहुत हो रहे हैं. मुसलमान, ईसाई कोई भी सुरक्षित नहीं यहां. कोई मार दे तो मुसीबत. बिजलीघर में कर दो सब, वहां किसी की जरूरत नहीं, सबकुछ अपनेआप ही हो जाएगा.’’

‘‘और कोई रिश्तेदार है यहां?’’

‘‘हां, एक बहन है,’’ शारदा ने बताया.

‘‘अरे, हां, याद आया. परसों ही तो मिल कर आए थे सुहासजी उन से. कह रहे थे कि यहां मेरी दीदी है, उन से ही मिल कर आ रहा हूं. आप उन का पता बता दें तो हम उन्हें खबर कर दें,’’ शर्मा जी ने कहा.

वहां फौरन एक आदमी दौड़ाया गया. सब ने मिल कर सुहास के पार्थिव शरीर को जमीन पर लिटा दिया. आसपास की और महिलाएं भी आ गईं जो शारदा को सांत्वना देने लगीं.

ये भी पढ़ें- उदास क्षितिज की नीलिमा -भाग 1 : आभा को बहू नीलिमा से क्या दिक्कत थी

तभी रोतीबिलखती सुधा दीदी आ पहुंचीं.

‘‘हाय रे, भाई रे…क्या हुआ तुझे, परसों ही तो मेरे पास आया था. भलाचंगा था. यह क्या हो गया तुझे एक ही दिन में. जाना तो मुझे था, चला तू गया, मेरे से पहले ही सबकुछ छोड़छाड़ कर…हाय रे, यह क्या हो गया तुझे…’’

बहुत ही मुश्किल से सब ने उन्हें संभाला. उन्होंने अपनी तीनों बहनों, सरोज, ऊषा, मंजूषा व अन्य सब रिश्तेदारों के पते बता दिए. फौरन सब को सूचना दे दी गई. थोड़ी ही देर में सब आ पहुंचे.

काफी देर तक कुहराम मचा रहा, फिर सब शांत हो गए पर शारदा रोए ही जा रही थीं.

सुधा दीदी कितनी ही देर तक शारदा के चेहरे की ओर एकटक देखती रहीं. शारदा के चेहरे पर 22 वर्ष पुराना मां का चेहरा उभर आया, जब बाबूजी गुजरे थे और उन्होंने बंगलौर फोन किया था, ‘बाबूजी नहीें रहे, फौरन आ जाओ.’

‘पर ये तो दौरे पर गए हुए हैं, कैसे आ सकते हैं एकदम सब?’ शारदा ने बेरुखी से कहा था.

‘तुम उस के दफ्तर फोन करो, वह बुला देंगे.’

‘किया था पर उन्हें कुछ मालूम नहीं कि वह कहां हैं.’

‘ऐसा कैसे है, दफ्तर वालों को तो सब पता रहता है कि कौन कहां है.’

‘वहां रहता होगा पता, यहां नहीं,’ शारदा ने तीखे स्वर में कहा था.

‘मुझे दफ्तर का फोन नंबर दो, मैं वहां कांटेक्ट कर लूंगी.’

‘मेरे पास नहीं है नंबर…’ कह कर शारदा ने रिसीवर पटक दिया था.

ये भी पढ़ें- सुकून : सोहा किसे लेकर ज्यादा चिंतित थी

ऐसे समय में भी शारदा ऐसा व्यवहार करेगी, कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था. आखिरकार चाचाजी ने ही सब क्रियाकर्म किए. इस ने जैसा किया वैसा ही अब इस के आगे आया.

यह तो शुरू से ही परिवार से कटीकटी रही थी. हम 4 बहनें थीं, भाई एक ही था, बस. कितना चाव था इस का सब को कि बहू आएगी घर में, रौनक होगी. सब के साथ मिलजुल कर बैठेगी.

अम्मां तो इसे जमीन पर पैर ही ना रखने दें, हर समय ऊषा, मंजूषा से कहती रहतीं, ‘जा, अपनी भाभी के लिए हलवा बना कर ले जा…हलवाई के यहां से गरमगरम पूरियां ले आओ नाश्ते के लिए… भाभी से पूछ ले, ठंडा लेगी या गरम…भाभी के नहाने की तैयारी कर दे… गुसलखाना अच्छी तरह साफ कर देना…’

शाम को कभी गरमगरम इमरती मंगातीं तो कभी समोसे मंगातीं, ‘जा अपनी भाभी के लिए ले जा,’ पर भाभी की तो भौं तनी ही रहतीं हरदम.

एक दिन बिफर ही पड़ीं दोनों, ‘हम नहीं जाएंगी भाभी के पास. झिड़क पड़ती हैं, कहती हैं ‘कुछ नहीं चाहिए मुझे, ले जाओ यह सब…’

सरोज ने मां से 1-2 बार कहा भी, ‘क्या जरूरत है इतना सिर चढ़ाने की, रहने दो स्वाभाविक तरीके से. अपनेआप खाएपीएगी जब भूख लगेगी, तुम क्यों चिंता करती हो बेकार…’

‘अरे, कौन सी 5-7 बहुएं आएंगी. एक ही तो है, उसी पर अपना लाड़चाव पूरा कर लूं.’

पर इस ने तो उन के लाड़चाव की कभी कद्र ही न जानी, न ही ननदें कभी सुहाईं. आते ही यह तो अलग रहना चाहती थी. इत्तिफाकन सुहास की बदली हो गई और बंगलौर चली गई, सब से दूर…

ऊषा, मंजूषा की शादियों में आई थी बिलकुल मेहमान की तरह.

न किसी से बोलनाचालना, न किसी कामधंधे से ही मतलब. कमरे में ही बैठी रही थी अलगथलग सब से, गुमसुम बिलकुल…और अभी भी ऐसी बैठी है जैसे पहचानती ही न हो. चलो, नहीं तो न सही, हमें क्या, हम तो अपने भाई की आखिरी सूरत देखने आए थे…देख ली…अब हम काहे को आएंगे यहां…

‘‘राम नाम सत्य है…राम नाम सत्य है…’’ की आवाज से दीदी की तंद्रा टूटी. अर्थी उठ गई. हाहाकार मच गया. सब अरथी के पीछेपीछे चल पड़े. आज मां के घर का यह संपर्क भी खत्म हो गया.

औरत कितनी भी बड़ी उम्र की हो जाए, मां के घर का मोह कभी नहीं टूटता, नियति ने आज वह भी तुड़वा दिया. कैसा इंतजार रहता था राखीटीके का, सुबह ही आ जाता था और सारा दिन हंसाहंसा कर पेट दुखा देता था. ये तीनों भी यहां आ जाती थीं मेरे पास ही.

अरथी के पीछेपीछे चलते हुए वह फिर फूट पड़ीं, ‘‘अब कहां आनाजाना होगा यहां…जिस के लिए आते थे, वही नहीं रहा…अब रखा ही क्या है यहां…’’

अचानक उन की नजर शारदा पर पड़ी, जो अरथी के पीछेपीछे जा रही थी. उस के चेहरे पर मेकअप की जगह अवसाद छाया हुआ था, आंखों का आईलाइनर आंसुओं से धुल चुका था. होंठों पर लिपस्टिक की जगह पपड़ी जमी थी. ‘सैट’ किए बाल बुरी तरह बिखर कर रह गए थे, मुड़ीतुड़ी सफेद साड़ी, बिना बिंदी के सूना माथा, सूनी मांग…रूखे केश और उजड़े वेश में उस का इस तरह वैधव्य रूप देख कर दीदी का दिल बुरी तरह दहल उठा. रंगत ही बदल गई इस की तो जरा सी देर में. कैसी सजीसजाई दुलहन के वेश में आई थी 35 साल पहले, कितना सजाती थी खुद को और आज…आज सुहास के बिना कैसी हो गई. आज रहा ही कौन इस का दुनिया में.

मांबाप तो बाबूजी से पहले चल बसे थे, एक बहन थी वह शादी के दोढाई साल बाद अपने साल भर के बेटे को ले कर ऐसी बाजार गई, सो आज तक नहीं लौटी. एक भाई है, वह किसी माफिया गिरोह से जुड़ा है. कभी जेल में, कभी बाहर. एक ही एक बेटा है, वह भी इस दुख की घड़ी में मुंह फेर कर बैठ गया. उन्हें उस पर बहुत तरस आया, ‘बेचारी, कैसी खड़ी की खड़ी रह गई.’

अरथी को गाड़ी में रख दिया गया. गाड़ी धीरेधीरे चलने लगी और कुछ ही देर में आंखों से ओझल हो गई.

गाड़ी के जाने के बाद शारदा का मन बेहद अवसादग्रस्त हो गया.

जब हम दुख में होते हैं तो अपनों का सान्निध्य सब से अधिक चाहते हैं, पर ऐसे दुखद समय में भी अपनों का सान्निध्य न मिले तो मन बुरी तरह टूट जाता है. अकेलापन, बेबसी बुरी तरह मन को सालने लगती है.

यही हाल उस समय शारदा का हो रहा था. बारबार उसे अपने बेटे की याद आ रही थी कि काश, इस घड़ी में वह उस के पास होता. उसे गले लगा कर रो लेती. कुछ शांति मिलती, कितनी अकेली है आज वह, न मांबाप, न भाईर्बहन. कोई भी तो नहीं आज उस का जो आ कर उस के दुख में खड़ा हो. नीचे धरती, ऊपर आसमान, कोई सहारा देने वाला नहीं.

बेटे के शब्द बारबार कानों से टकरा कर उस के दिल को बुरी तरह कचोट रहे थे, जिसे जिंदगी भर अपने से ज्यादा चाहा, जिस के कारण उम्र भर किसी की परवा नहीं की, उसी ने आज ऐसे दुर्दिनों में किनारा कर लिया, मां के लिए जरा सा भी दर्द नहीं. बाप के जाने का जरा भी गम नहीं, जैसे कुछ हुआ ही न हो.

कैसी पत्थर दिल औलाद है. जब अपनी पेटजाई औलाद ही अपनी न बनी तो और कौन बनेगा अपना. सासननदें तो भला कब हुईं किसी की, वे तो उम्र भर उस के और सुहास के बीच दीवार ही बनी रहीं. सुहास तो सदा अपनी मांबहनों में ही रमा रहा. उस की तो कभी परवा ही नहीं की. इस कारण सदैव सुहास और उस के बीच दूरी ही बनी रही.

अब भी तो देखो, एक शब्द भी नहीं कहा किसी ने…सुहास के सामने ही कभी अपनी न बनी, तो अब क्या होगी भला. कैसे रहेगी वह अकेली जीवन भर?  न जाने कितनी पहाड़ सी उम्र पड़ी है, कैसे कटेगी? किस के सहारे कटेगी? उसे अपने पर काबू नहीं हो पा रहा था.

दूसरी ओर बेटे की बेरुखी साल रही थी. उसे लगा जैसे वह एक गहरे मझधार में फंसी बारबार डूबउतरा रही है. कोई उसे सहारा देने वाला नहीं कि किनारे आ जाए. क्या करे, कैसे करे?

उस ने तो कभी सोचा भी न था कि ऐसा बुरा समय भी देखना पड़ेगा. वह वहीें सीढि़यों की दीवार का सहारा ले कर बिलख पड़ी जोरजोर से.

सामने से उसे सुधा दीदी, सरोज, ऊषा, मंजूषा आती दिखाई दीं. उन्होंने उसे चारों ओर से घेर लिया और सांत्वना देने लगीं, ‘‘चुप कर शारदा, बहुत रो चुकी. वह तो सारी उम्र का रोना दे गया. कब तक रोएगी…’’ कहतेकहते सुधा दीदी स्वयं रो पड़ीं और तीनों बहनें भी शारदा के गले लग फफक पड़ीं, सब का दुख समान था. अत: जीवन भर का सारा वैमनस्य पल भर में ही आंसुओं में धुल गया.

‘‘हाय, क्या हाल हो गया भाभी का,’’ ऊषा, मंजूषा ने उस के गले लगते हुए कहा.

‘‘मैं क्या करूं, दीदी? कैसे करूं? कहां जाऊं?’’ शारदा ने बिलखते हुए कहा.

‘‘तू धीरज रख, शारदा, जाने वाला तो चला गया, अब लौट कर तो आएगा नहीं,’’ सुधा दीदी ने उसे प्यार से सीने से लगाते हुए कहा.

‘‘पर मैं अकेली कैसे रहूंगी, सारी उम्र पड़ी है. वह तो मुझे धोखा दे गए बीच में ही.’’

‘‘कौन कहता है तू अकेली है, वह नहीं रहा तो क्या, हम 4 तो हैं तेरे साथ. तुझे ऐसे अकेले थोड़े ही छोडे़ंगे. चलो, घर में चलो.’’

वे चारों शारदा को घर में ले आईं, ऊषा, मंजूषा ने सारा घर धो डाला. सरोज ने उस के नहाने की तैयारी कर दी. तब तक सुधा दीदी उस के पास बैठी उस के आंसू पोंछती रहीं.

थोड़ी ही देर में सब नहा लिए, ऊषा, मंजूषा चाय बना लाईं. नहा कर, चाय पी कर शारदा का मन कुछ शांत हुआ. उस वक्त शारदा को वे चारों अपने किसी घनिष्ठ से कम नहीं लग रही थीं, जिन्होंने उसे ऐसे दुख में संभाला.

उसे लगा, जिन्हें उस ने सदा अपने और सुहास के बीच दीवार समझा, असल में वह दीवार नहीं थी, वह तो उस के मन का वहम था. उस के मन के शीशे पर जमी ईर्ष्या की गर्द थी. आज वह वहम की दीवार गहन दुख ने तोड़ दी. मन के शीशे पर जमी ईर्ष्या की गर्द आंसुओं में धुल गई.

बेटा नहीं आया तो क्या, उस की 4-4 ननदें तो हैं, उस के दुख को बांटने वाली. वे चारों उसे अपनी सगी बहन से भी ज्यादा लग रही थीं, आज दुख की घड़ी में वे ही चारों अपनी लग रही थीं. आज पहली बार उस के मन में उन चारों ननदों के प्रति अपनत्व का आभास हुआ.

 

कोरोना ने खोली धार्मिक नैतिकता की पोल

हमारे धर्म की नैतिकता की पोल वैसे तो हमेशा ही खुली रहती थी पर इस बार कोविड संकट में जिस तरह से खुली है वह पहली बार तो नहीं हुआ पर हरेक के हिलाने वाला अवश्य होनी चाहिए जिस तरह मरते लोगों की परवाह किए बिना लोगों ने ऑक्सीजन सिलेंडर, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, रेम…….., डौक्सी, प्लाज्मा, अस्पताल के बेड, आईसीयू में भर्ती में ऊपरी पैसा मांगा या मोटा मुनाफा कमाया, वह दहलाने वाला था.

मौत के समय क…….खसोटों के किस्से बहुत पुराने हैं. हर अस्पताल आमतौर पर तब तक मृतक की लाश नहीं सौंपना जब तक बिल की पाईपाई न चुका दी जाए. हमेशा ही हमारे यहां एंबुलेंस ड्राइवर और अर्दली दुर्घटनाओं में अपने रेट बड़ा देते हैं पर इस महामारी में हरेक ने भर भर कर पैसा बनाया है. यह मेहनत का मुनाफा नहीं था, यह मरते व्यक्ति को बचाने के चक्कर में परिजनों की अंतिम कोशिश पर ब्लैकमेल था.

ये भी पढ़ें- कोविड काल और रामायण

पराकाष्ठा तो तब हुई जब श्मशान में जलाने के लिए जगह मिलने में कमी होने पर वहां हर जने ने पैसा वसूलना शुरू कर दिया. कफन के कपड़े तक के पैसे बढ़ा कर पैसा बनाया गया. लकड़ी के औने पौने टाम लिए गए. मृत व्यक्ति के शव को लाने ले जाने के लिए पैसे लग गए. मौत के तांडव में सैंकड़ों नहीं हजारों ने पैसा बनाया और उन के धर्म की शिक्षा ने कहीं उन को ललकारा नहीं कि कैसा अनैतिक काम कर रहे हो.

धर्म ने यदि नहीं ललकारा तो इसलिए गीता का उपदेश और पौराणिक यातनाएं बड़ी काम आती है. लीपापोती करने में. कोई ङ्क्षहदू मरता तो है ही नहीं. उस की आत्मा जीवित रहती है बशर्ते कि उस के पार्थीक शव निपटान विधि से संपन्न किया जाए. तभी उस के कर्मों का फल जांच कर अगले जन्म में किस योनि में जगह मिलती है. हमारे मृत संबंधी के सही जगह मिले इसलिए परिजनों को आज से नहीं पौराणिक काल से लूटा जा रहा है.

रेल दुर्घटनाओं में एक बड़ी भीड़ उमड़ती है, सेवा करने के लिए नहीं, मारे गए या घायलों को लूटने के लिए. लोगों की घडिय़ां, औरतों के कानों के बुंदे, चूडिय़ां, हार बेरहमी से खींचे जाते हैं. कोई चीज फंसी रह गई हो तो हाथ पैर काट दिए जाते हैं. पुलिस आती है तो भी यह खेल चलता है जब भीड़ नहीं पुलिस वाले कमाते हैं.

ये भी पढ़ें- बेरोजगार युवा और मोदी सरकार

धर्म ने अन्विता सिखाई नहीं है, उस ने लूटना सिखाया है. एक नवीन कालरा के पकड़ कर बंद कर देने से कुछ नहीं होगा क्योंकि हरेक को शिक्षा मिली है कि आपदा में अवसर खोजो. प्रधानमंत्री ने भी आंसू बहाने का नाटक कर इन मौतों को भुनाने का प्रयास किया है. अपनी गलतियों न मान कर औन लाइन सभा में दुख प्रकट कर के बनावटी शोक प्रकट किया है जैसा हमारे यहां उठाबनी में होता है.

ठीक है इस बार बीमारी में सेवा करने वाले हरेक जने ने कोविड हो जाने का जोखिम लिया है पर यह जोखिम तो डॉक्टरों और नर्सों ने लिया है, अस्पतालों के सपोर्ट स्टाफ ने लिया है, अस्पतालों का दवाइयां पहुंचाने वालों ने लिया है. उन्होंने इस तरह का पैसा नहीं बनाया है. उन्हें थोड़ा बहुत अतिरिक्त मिला होगा पर उसे बचाने की कीमत कहा जाएगा, मरने वाले से कफन चोरी नहीं.

यह इसलिए हुआ है कि हमारे धर्म में नैतिकता का पाठ केवल पंडितों, देवताओं, भगवानों की पूजा होती है. आप अगर 4 बार प्रसाद चढ़ाते हैं तो नैतिक हैं. व्रत उपवास कर के भोजन कराते हैं तो नैतिक हैं, दान देते हैं तो नैतिक है. तीर्थ यात्रा कर पैसा चढ़ा कर आते हैं तो नैतिक हैं.

ये भी पढ़ें- कोरोना और पुलिस

मरने वाला तो यहां अपने भाग्य में मौत लिखा कर आता है. यह उस के पहले के पापों का फल है. हम क्या कर सकते हैं? हम ईश्वर के विधान को नहीं बदल सकते. हम पूजापाठ कर सकते है पर सेवा कर के किसी की जान नहीं बचा सकते. यह …..तो आधुनिक शिक्षा ने दिया है. नई नैतिकता ने दिया है कि समाज आप के लिए वही करेगा जो आप दूसरों के लिए करोगे. वैज्ञानिकों का मुंह हम जरूर देख रहे थे पर अपने दिमागों पर धार्मिक परदा डाले रख कर.

पगली-भाग 3 : रूपा सड़क पर किसे देखकर परेशान हो गई

‘‘रूपा, बेटा फ्रैश हो जाओ. दामादजी भी आते होंगे. शाम को तु झे वापस भी जाना है न,’’ मां एक बार फिर से उस के पास आ कर खड़ी हो गई. उस ने घड़ी देखी, सुबह के 10 बजे थे. वह चुपचाप स्नानघर को बढ़ गई. रूपा कानपुर चली गई और उस का इस बीच लखनऊ आना संभव न हो पाया. उस का स्वास्थ्य भी कुछ ढीला चल रहा था. आजकल उस की दिलचस्पी एक भिखारिन लड़की में बढ़ गई थी जो हर शनिवार को तेल की बालटी ले उस के दरवाजे पर खड़ी हो जाती थी. उस की उम्र 11-12 वर्ष की होगी. रूपा उसे बिठा लेती, अपने सामने खाना खिलाती, कभी कपड़ेचप्पल भी पकड़ाती. जिस दिन वह न आती, रूपा को उलटेसीधे खयाल आते.

अब वह भिखारिन भी आ कर उस के बरामदे में निश्ंिचत हो सो भी जाती, फिर नींद खुलने पर आगे बढ़ जाती. रूपा ने एक दिन उस के मन की चाह लेने को पूछा.‘‘स्कूल में पढ़ना चाहती हो?’’‘‘अम्मा से पूछ कर बताऊंगी?’’ ‘‘कहां रहती हो?’’

‘‘गंदे नाले के बगल की बस्ती में.’’ ‘‘और कौन हैं घर में?’’ ‘‘अम्मा हैं और 2 भाई भी हैं.’’ दोतीन महीना नदारद रही. फिर एक दिन प्रकट हो गई बारबार अपना दुपट्टा पेट पर डालते हुए. उस की हरकतों पर रूपा को शक हो गया. ‘‘कुछ गलत काम की हो क्या?’’

वह फफक पड़ी. ‘‘किस ने किया? पुलिस में चलोगी? अनाथालय में रहोगी?’’ रूपा घबरा उठी. ‘‘अम्मा से पूछूंगी.’’ ‘‘ठीक है, कल तुम अपनी अम्मा को ले कर ही आना. तब तक मैं दोचार जगह बात कर के रखती हूं. तुम्हें घबराने और डरने की कोई जरूरत नहीं है.’’

दिन, हफ्ते, महीने गुजर गए. मगर वह न आई. रूपा भी अपने मायके चली गई. उस का बेटा भी अब 3 महीने का हो गया था. रूपा कानपुर वापस लौटने की तैयारी में लग गई. इधर हफ्तेभर से सुमन की अम्मा भी काम पर नहीं आई थी. 2 दिन की काम से मोहलत ले कर सुमन से मिलने उस के ससुराल गई थी मगर हफ्तेभर से ऊपर हो गया था, अब तक नहीं लौटी.

‘‘अच्छा मां, यह सुमन का ससुराल कैसा है? मेरा मतलब है कि पैसाटका कुछ पास में है उन लोगों के या यहां से भी गएबीते हाल हैं?’’ ‘‘यहां से तो ज्यादा ही संपन्न हैं उस का ससुराल. लड़की के लिए गहने तो सभी लाते हैं मगर वे तो सोने की अंगूठी और चैन सुमन की अम्मा को भी दे गए.’’

‘‘मु झे तो पहले से ही शक था. अब पक्का विश्वास हो गया है कि इस ने अपनी कम उम्र लड़की, उस ट्रक ड्राइवर को बेची है. बदले में यही सोनाचांदी पा गई है ये,’’ रूपा क्रोधित हो बोल पड़ी. ‘‘अब इन लोगों में ऐसा ही चलता होगा. इस में हम क्या कर सकते हैं?’’

‘‘नहीं मां, ऐसा नहीं होता. यह सुमन मु झे इस की कोखजाई औलाद नहीं लगती. यह इसे कहीं से चुरा कर लाई थी और अब इस ने इसे बेच दिया है. वरना शादी तो यह उस की उम्र के लड़के से भी कर सकती थी. बाबा का तो बहाना था ताकि और लोग भी अपना मुंह सी लें और विवाह के लिए कोई टिप्पणी न करें. वैसे भी मां, आजकल दूसरों के बारे में कौन सोचता है. सब अपने खोलों में सिमटे रहते हैं.’’

तभी रोती हुई सुमन की अम्मा वहीं आ गई. रूपा और उस की मां हैरानी से उसे देखते ही रह गईं. ‘‘सुमन अब इस दुनिया में नहीं रही. हाय मेरी फूल सी बच्ची, इतनी जल्दी चली गई,’’ सुमन की अम्मा अपने बहते आसुंओं को धोती के पल्लू से पोंछते हुए बोली.

‘‘क्या हुआ उसे?’’ रूपा ने घबरा कर पूछा. ‘‘पहलौटी बच्चा था उस का. सोचा था मायके लिवा लाऊंगी मगर 4 दिन पहले उस का गर्भ गिर गया. ज्यादा खून गिरने से वह बच न सकी, मर गई. हाय मोर बिटिया, अब इस दुनिया में नहीं रही,’’ उस का विलाप फिर शुरू हो गया.

‘‘कम उम्र में जचगी? उस को तो मरना ही था. पहलौटी में नहीं, तो दूसरे बच्चे में मरती. यही सब करने को तो ब्याह ले गया था वह ड्राइवर,’’ रूपा गुस्से में बोली. ‘‘जा, तू मुन्ने को देख. उस के दूध पीने का समय हो गया है,’’ मां ने मौके की नाजुकता को सम झ रूपा को कमरे में ठेला.‘‘अच्छा हुआ मर गई. मुक्ति पा गई नर्क से, वरना यही नर्क न जाने कब तक  झेलती रहती,’’ रूपा जातेजाते कह गई. जिसे सुन कर भी अनसुना कर गईं दोनों मांएं.

कानपुर वापसी में मन बो िझल हो उठा रूपा का. पति आलोक ने कार में सारा सामान अच्छी तरह जमाने के बाद ही रूपा को पुकारा.‘‘यहां आओ रूपा. देखो, सब सामान अच्छे तरीके से रखा है कि नहीं, वरना रास्ते में किसी सामान की जरूरत पड़े तो फिर गुस्सा हो जाओगी कि यह सामान ऊपर क्यों है, यह आगे क्यों हैं, यह पीछे क्यों है,’’ आलोक उस की नकल लगाते हुए अपने हाथों को हिला कर बोला.

सब हंसने लगे. रूपा मुसकरा कर सामान का निरीक्षण करने लगी और संतुष्ट हो कर हंस दी. कानपुर में रेलवे स्टेशन के पास हमेशा की तरह जाम लगा हुआ था. उन की गाड़ी रेंग कर चल रही थी. तभी उस की नजर एक पगली पर पड़ी. जिस के सिर में रूखे बालों का छत्ता बना हुआ था. रंग शायद गेहुंआ था जिसे मैल की परत ने काला बना दिया था. जिस ने एक लंबा फटा कुरता पहन रखा था. वह पगली कूड़े के ढेर में न जाने क्या बीनने में लगी हुई थी. कूड़ा खदबदाती, सामान देखती, फिर फेंक देती. फिर कुछ निकालती, मुंह बनाती, फिर फेंक देती. कितने लोग उस की बगल से गुजर कर जा रहे थे.

पुलिस, संभ्रांत नागरिक, समाजसेवी भी जरूर होंगे इस भीड़ में, फर्जी एनजीओ चलाने वाले भी. मगर उस पगली की मदद करना तो दूर की बात है, उस की तरफ कोई देखना भी गवारा नहीं सम झ रहा था. गाड़ी एक  झटके से आगे बढ़ गई. जाम खुल गया था. घर पहुंचने तक वह पगली दिमाग में घूमती रही, लगा जैसे पहले भी कहीं देखा है उसे. मगर कहां, कुछ याद ही नहीं आ रहा. रूपा ने सोचा आलोक से पूछ कर देख ले.

‘‘वह पगली को देख कर लग रहा था कि पहले भी कहीं देखा है, मगर याद नहीं आ रहा?’’ ‘‘तुम भी न? पता नहीं क्याक्या चलता है तुम्हारे दिमाग में, पहले वह शनिचरी लड़की पाल ली थी उस से पीछा छूटा, तो अब इसे पालने का इरादा है क्या?’’ आलोक ने गाड़ी से सामान घर के भीतर करते हुए पूछा.

‘‘तुम ने सही पहचाना आलोक,’’ रूपा बच्चे को पलंग में लिटा कर सिर थाम कर बैठ गई. ‘‘तुम मेरी बात का बुरा मत मानो.  मैं ने यों ही कहा तुम्हें छेड़ने  को,’’ आलोक ने पानी का गिलास रूपा को पकड़ा कर कहा. ‘‘वह बात नहीं हैं. तुम ने सही याद दिलाई यह पगली तो वही शनिचरी लड़की है,’’ रूपा ने कहा. आलोक तो हमेशा उसे देख यही कहता था, ‘लो, आ गई तुम्हारी शनिचरी.’

‘‘वह लड़की तो अच्छीखासी सुंदर, साफसुथरी और सम झदार थी. 5-6 महीनों के अंदर ही पागल कैसे हो सकती है? तुम्हें गलतफहमी हुई है, वह पगली कोई और है,’’ आलोक पूरे विश्वास से बोला.

‘‘नहीं, वह मेरे पास एक साल तक लगातार आती रही है. मैं भी उसे मामूली सा दान दे कर संतुष्ट होती रही. जबकि उसे उचित मार्गदर्शन, शिक्षा और सुरक्षा की जरूरत थी. वह पुरुषों के व्यभिचार का शिकार हुई है. वह गर्भ से थी. लगता है उस का गर्भ गिर गया है. यह सब शारीरिक व मानसिक कष्ट वह  झेल नहीं पाई, तभी पागल हो गई है.’’

रूपा की आंखें डबडबा आईं. ‘‘तुम्हें कैसे पता यह सब?’’ ‘‘जब वह आखिरी बार यहां आई थी तब मैं ने उस से बात की थी और उस ने अपने साथ हुए अत्याचार की बात भी कुबूली थी. मैं ने उसे मदद करने का वचन भी दिया था. लगता है उस की मां ने उसे यहां आने से रोक दिया था. मु झे दुख है कि मैं ने उस का पताठिकाना खोज कर मदद नहीं की,’’ रूपा रो रही थी और आलोक तेजी से कमरे में चहलकदमी कर रहा था. कुछ देर बाद उस ने इधरउधर फोन लगाने शुरू कर दिए.

‘‘रूपा, मैं ने अपने मित्र की संस्था में सारा विवरण लिखवा दिया है. उन्होंने आश्वासन दिया है कि वे उस किशोरी को ढूंढ़ कर इलाज भी करवाएंगे और संरक्षण भी देंगे. चलो, अब तो अपना मूड ठीक कर लो.’’

रूपा मुसकरा कर आलोक के गले से लिपट गई.

ताक-झांक- भाग 3 : शालू को क्यों हो गई रणवीर से नफरत

उधर रणवीर अपनी बालकनी में शालू की किचन से रोज आती आलू, पुदीने के परांठों की खुशबू से काफी प्रभावित था. पत्नी प्रिया के रोजरोज के उबले अंडे, दलिया के नाश्ते से त्रस्त था. कई बार चुपके से शालू की तारीफ भी कर चुका था और वह कई बार मेड के हाथों उसे भिजवा भी चुकी थी. आज सुबह भी उस ने परांठे भिजवाए थे.

शालू तरुण के साथ नीचे उतरी तो प्रिया और रणवीर भी आ चुके थे. रणवीर गाड़ी स्टार्ट कर रहा था.

‘‘आइए, साथ ही चलते हैं तरुणजी,’’ रणवीर ने कहा तो प्रिया ने भी इशारा किया. चारों बैठ गए.

रणवीर बोला, ‘‘परांठों के लिए थैंक्स शालूजी… आप के हाथों में जादू है… मैं अपनी बालकनी से रोज पकवानों की खुशबू का मजा लेता हूं… प्रिया को तो घी, तेल पसंद नहीं… न बनाती है न मुझे खाने देना चाहती है. तरुणजी आप के तो मजे हैं. रोज बढि़याबढि़या पकवान खाने को मिलते हैं. काश…’’ ‘अबे आगे एक लफ्ज भी न बोलना… क्या बोलने जा रहा था तू,’ तरुण मुट्ठियां भींचते हुए मन ही मन बुदबुदा उठा.

इधर शालू महंगी बड़ी सी गाड़ी में बैठ एक रईस से अपनी तारीफ सुन कर निहाल हुई जा रही थी.

और प्रिया ‘हां फैट खूब खाओ और ऐक्सरसाइज मत करो. फिर थुलथुल बौडी लेकर घूमना इन्हीं यानी शालू के साथ… तरुणकी तारीफ में क्यों बोलोगे? क्या गठीली बौडी है. काश मेरा हबी ऐसा होता,’ प्रिया मन हीमन बोली.

शालू पर उड़ती नजर पड़ी तो न जाने क्यों वह जलन सी महसूस करने लगी. गाड़ी के ब्रेक के साथ सभी के उठते विचारों को भी ब्रेक लगे. पार्टी स्थल आ गया था.

मेहमान आ चुके थे. फंक्शन जोरों पर था. मीठीमीठी धुन के साथ कोल्डड्रिंक्स, मौकटेल के दौर चल रहे थे. तभी वधू का प्रवेश हुआ. स्टेज से उतर लड़के ने उस का स्वागत किया और स्टेज पर ले आया. तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सगाई की रस्म पूरी की गई.

सभी ने बारीबारी से स्टेज पर आ कर बधाई दी. लड़कालड़की की शान में कुछ कहना भी था उन्हें चाहे गा कर चाहे वैसे ही. सभी ने कुछ न कुछ सुनाया.

तरुण और शालू स्टेज पर आए तो प्रिया की हसरत भरी नजरें डैशिंग तरुण पर ही जमी थीं. तरुण ने किसी गीत की मुश्किल से 2 लाइन ही गुनगुनाईं और फिर बधाई गिफ्ट थमा शालू का हाथ थामे शरमाते हुए स्टेज से उतर गया.

‘ओह तरुण की तो बस बौडी ही बौडी है. अंदर तो कुछ है ही नहीं… 2 शब्द भी नहीं बोल पाया लोगों के सामने. कितना शाई… गाना भी पूरा नहीं गा सका,’ तरुण को स्टेज पर चढ़ता देख प्रिया की आंखों में आई चमक की जगह अब निराशा ?ालक रही थी. आकर्षण कहीं काफूर हो रहा था.

‘‘शालू, आप ऐसे कैसे जा सकती हो बगैर डांस किए. मैं ने आप का बढि़या डांस देखा है… मेरे हाथों में… आइएआइए,’’ उमेशजी की पत्नी आशाजी ने आत्मीयता से उसे ऊपर बुला लिया. शालू ने तरुण को इशारा किया. शालू ने तरुण को इशारे से ही तसल्ली दी और सैंडल उतार कर स्टेज पर आ गई.

की फरमाइश का गाना बज उठा. फिर तो शालू ऐसी नाची कि सभी उस के साथ तालियां बजाते हुए मस्त हो थिरकने लगे. तरुण ने देखा वैस्टर्न डांस पर थिरकने वाले लोग भी ठुमकने लगे थे… वह नाहक ही घबरा रहा था… शालू तो छा गई…

गाना खत्म हुआ तो प्रिया के साथ रणवीर स्टेज पर आ गया. उस ने अपनी ठहरी हुई आवाज और धाराप्रवाह में चंद शेरों से सजे संक्षिप्त वक्तव्य के द्वारा सब को ऐसा मंत्रमुगध किया कि सभी वंसमोर वंसमोर कह उठे. प्रिया भी उसे गर्व से देखने लगी कि कितने शालीन ढंग से कितने खूबसूरती से शब्दों को पिरो कर बोलता है रणवीर. उस के इसी अंदाज पर तो वह मर मिटी थी. उस ने कुहनी के पास से रणवीर का बाजू प्यार से पकड़ लिया था. दोनों ने फिर किसी इंगलिश धुन पर डांस किया.

अब डांस फ्लोर पर सभी एकसाथ डांस का मजा लेने लगे. डांस का म्यूजिक चल पड़ा था. स्टेज पर वरवधू भी थिरकने लगे. सभी पेयर में नृत्य कर रहे थे. कभी पेयर बदल भी लिए जा रहे थे. शालू ने धीरेधीरे तरुण के साथ 1-2 स्टेप लिए पर पेयर बदलते ही वह घबरा उठी और किनारे लगी सीट में एक पर जा बैठी. तरुण थोड़ी देर नई रस्म में शामिल हो नाचता रहा.

एक बार प्रिया भी उस के पास आ गई पर दूसरे ही पल वह दूसरे की बांहों में थिरकती तीसरी के पास पहुंच गई. तरुण को झटका सा लगा. कुछ अजीब सा फील होने लगा, ‘कैसे हैं ये लोग… रणवीर अपने में मस्त किसी और की पत्नी के साथ और उस की पत्नी प्रिया किसी और के पति के साथ… अजब कल्चर है इन का. इस से अच्छी तो मेरी शालू है.’ उस ने दूर अकेली बैठी शालू की ओर देखा और फिर उस के पास चला गया.

रणवीर ने देख लिया था, ‘उफ, शालू ने न तो खुद ऐंजौय किया और न पति को ही मजे लेने दिए. अपने पास बुला लिया… ऐसी पार्टियों के लायक ही नहीं वे… उधर प्रिया को देखो. कैसे एक हीरोइन सी सब की नजरों का केंद्र बनी हुई है. आई जस्ट लव हर…’ उसे नशा चढ़ने लगा था. कदमों के साथ उस की आवाज भी लड़खड़ाने लगी थी. रणवीर ने प्रिया को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया तो उस के कदम भी लड़खड़ाए और फिर फर्श पर जा गिरी. हड़कंप मच गया. क्या हुआ? क्या हुआ?

प्रिया दर्द से कराह उठी थी. पैर में फ्रैक्चर हो गया था. रणवीर तो खुद उसे उठाने की हालत में न था. तरुण और शालू ने जैसेतैसे अस्पताल पहुंचाया.

उमेशजी अपने ड्राइवर को गाड़ी ड्राइव करने के लिए बोल रहे थे पर रणवीर माना नहीं. रास्ते भर तरुण, उस की इधरउधर भागती गाड़ी के स्टेयरिंग को मुश्किल से संभालता रहा. पर इस सब से बेखबर शालू महंगी गाड़ी में बैठी एक बार फिर अपने रईस पति की कल्पना में खो गई थी.

प्रिया घर आ गई थी. उस के पैर में प्लास्टर चढ़ गया था. लाते समय भी शालू और तरुण अस्पताल पहुंचे थे. तभी एक गरीब महिला रोती हुई आई और सब से अपने बच्चे के लिए खून देने के लिए गुहार करने लगी. ‘‘तुम प्रिया मैडम के पास चलो शालू. मैं अभी आता हूं,’’ कह तरुण ने शालू से कहा तो वह उस का आशय समझ गई.

‘‘अभी 10 दिन भी नहीं हुए तुम्हें खून दिए तरुण,’’ शालू बोली. तरुण नहीं माना. उस गरीब को खून दे आया. फिर प्रिया को उस के फ्लोर पर सहीसलामत पहुंचाया. अगले दिन बौस से डांट भी खानी पड़ी. औफिस पहुंचने में लेट जो हो गया था.

‘तरुण भी न दूसरों की खातिर अपनी परवाह नहीं करता,’ शालू औटो में बैठी सोच रही थी. अपने ब्लौक के गेट के पास आने पर उसे एक संतरे की रेहड़ी वाला दिखा. उस ने औटो रुकवाया और उतर कर औटो वाले को पैसे देने लगी.

तभी वहां से हवा में बातें करती एक लंबी सी गाड़ी गुजरी. वह रोमांचित हो उठी. उस ने सिर उठा कर देखा, ‘अरे ये तो हमारे पड़ोसी रणवीर हैं. काश, उस का पति भी कोई बीएमडब्ल्यू जैसी गाड़ी वाला होता.’ शालू अभी यह सोच ही रही थी कि वही गाड़ी उलटी साइड से आ कर रेहड़ी वाले से जा टकराई. रेहड़ी उलट गई और रेहड़ी वाला छिटक कर दूर जा गिरा. उस के संतरे सड़क पर चारों ओर बिखर गए. शालू ने साफ देखा था. गाड़ी गलत साइड से आ कर रेहड़ी वाले से टकराई थी. फिर भी रणवीर ने तमाचे उस गरीब को जड़ दिए. फिर चीख कर बोला, ‘‘देख कर नहीं चल सकता?’’ ‘‘साहबजी…’’ आंसू बन रेहड़ी वाले का दर्द आंखों में उतर आया. वह हाथ जोड़े इतना ही बोल सका.

‘‘ये पकड़ अपने नुकसान के रुपए… ज्यादा नाटक मत कर… कुछ नहीं हुआ… अब जल्दी सड़क साफ कर,’’ कह रणीवर ने उसे 2 हजार का 1 नोट दिया. शालू रणवीर का क्रूर व्यवहार देखती रह गई कि इतना अमानवीय बरताव…

उस की महंगी गाड़ी फिर तेजी से उस की आंखों से ओझल हो गई. शालू को इस समय कोई रोमांच न हुआ, बल्कि उसे अपनी आंखों में नमी सी महसूस होने लगी. उस ने पर्स से रुमाल निकाल कर रेहड़ी वाले के माथे से रिसता खून पोंछ कर बैंडएड चोट पर चिका दी. फिर संतरे उठवाने में उस की मदद करने लगी. ‘‘रहने दीजिए मैडमजी मैं उठा लूंगा,’’ रेहड़ी वाले के पैरों और हाथों में भी चोटें थीं.

शालू ने नजरों से ओझल हुई उस गाड़ी की ओर देखा. वहां सिर्फ धूल का गुबार था, जिस ने उस की सपनीली कल्पना को उड़ा कर रख दिया कि शुक्र है उस का तरुण महंगी बड़ी गाड़ी में घूमने वाले ऐसे छोटे दिल के घटिया इंसान की तरह नहीं है. न जाने उस ने कितनी बार तरुण को ऐसे जरूरतमंदों की मदद करते देखा है. रईस ही तो है वह. वास्तव में बड़े दिल वाला रईस. शालू को तरुण पर प्यार आने लगा और फिर वह तेज कदमों से घर की ओर बढ़ चली.

प्रतिदान -भाग 3 : पल्लवी की दिल छू लेने वाली कहानी

आखिर उन्होंने हार मान ली और उसे अपनी नियति मान कर वे कोर्ट केसों में लग गए. पल्लवी और उस के परिवार ने उन पर झूठे सबूतों के सहारे चोरी, मारपीट और अपहरण के 6 मुकदमे दर्ज करा दिए. पल्लवी और उस के परिवार वालों ने उन्हें अपनी बेटी श्रेया से मिलने और बात करने से भी मना कर दिया. उन्हें उम्मीद थी कि बेटी के मोह में वे जरूर टूट जाएंगे और उन की शर्तें मान लेंगे. खैर, शुरू में अंतहीन से लगने वाले इस सिलसिले से उन्हें अपनी सचाई के बल पर जल्दी ही मुक्ति मिल गई पर इस में उन की जिंदगी के बेहतरीन 8 साल गुजर गए. पल्लवी ने अपने परिवार के कहने पर महिला कानूनों की आड़ में उन का मकान एवं रुपयापैसा आदि सब ले लिया.

एक बार कोर्ट केसों से मुक्त होने के बाद वे अपने पैतृक शहर रतलाम चले आए और अपनी जिंदगी के बिखरे हुए धागों को समेटने में लग गए. यहीं एक छोटा सा व्यवसाय शुरू कर लिया और अपनी बहनों के साथ जिंदगी के दिन गुजारने लगे. इस बीच, कभीकभी वे अपनी बेटी श्रेया को जरूर मिस करते पर फिर उन्होंने आदत डाल ली. कभीकभी उन्हें पल्लवी पर काफी गुस्सा भी आता कि उस ने अपने स्वार्थ के चक्कर में उन की और श्रेया की जिंदगी खराब कर दी. फिर भी उन्हें लगता था कि श्रेया की भलाई के लिए उसे तब तक पल्लवी की सचाई के बारे में कुछ न बताया जाए जब तक कि वह इन सब बातों को समझने लायक न हो जाए. सो, उन्होंने इस बारे में चुप्पी ही साधे रखी और श्रेया के बड़ी होने के बाद कभी इस बारे में बात करने का मौका ही नहीं मिला.

अचानक जेम्स की पुकार से उन की तंद्रा भंग हुई. वह नाश्ता करने के लिए आवाज लगा रहा था. कबीर भी इस बीच नहा कर आ चुका था और चेहरे पर आई ताजगी से उस का रूप और भी अच्छा लग रहा था. नाश्ते के बाद दोपहर के खाने के लिए जेम्स को आवश्यक निर्देश देने के बाद वे कबीर को साथ ले कर स्टडीरूम में चले गए. जेम्स अपने काम में लग गया. उसे पता था कि उन के स्टडी में जाने का मतलब है कि उन्हें डिस्टर्ब न किया जाए. स्टडीरूम में अपनी कुरसी पर बैठते हुए उन्होंने कबीर को सामने वाले सोफे पर बैठने का इशारा किया और अपनी समस्या बताने को कहा. कबीर ने जो बताया उस का सार यह था कि वह और श्रेया एक ही कंपनी में सर्विस करते थे और उसी वजह से नजदीकियां बढ़ने पर दोनों ने श्रेया की मां की अनुमति से शादी कर ली. उसे श्रेया और पल्लवी ने यही बताया कि ज्यादा दहेज के लालच में उन्होंने पल्लवी और श्रेया को बेसहारा छोड़ कर दूसरी शादी कर ली थी. वह भी हमेशा यही सोचता रहा कि वे कैसे निर्दयी और लालची प्रवृत्ति के इंसान होंगे जिन्होंने अपनी पत्नी और मासूम बच्ची को सिर्फ पैसों के लिए छोड़ दिया.

श्रेया की मां भी शादी के बाद से उन के साथ ही रहने लगीं. कबीर के स्वयं के मातापिता चंडीगढ़ में रहते हैं, पैतृक मकान है और स्वयं का निजी व्यवसाय करते हैं. उन्होंने ये सब सुन कर कहा कि सभी बातें तो ठीक लग रही हैं, फिर समस्या क्या है?

कबीर ने कहना आरंभ किया कि श्रेया और उस की मां पल्लवी पिछले काफी समय से उस पर दबाव डाल रही थीं कि वह अपने पिता से उन की जायदाद और व्यवसाय में अपना हिस्सा मांगे और वहीं नोएडा में ही कोईर् फ्लैट खरीदे. लेकिन उस का मन नहीं मान रहा था क्योंकि उसी व्यवसाय के बल पर उस के पिता उस के दोनों छोटे भाईबहनों और परिवार को पाल रहे हैं. उस ने कईर् बार श्रेया को समझाने की कोशिश की कि हम दोनों लोग अच्छा कमाते हैं और अभी तो हमारी उम्र भी ज्यादा नहीं हुई है और जल्दी ही हम अपने ही पैसों से कोई अच्छा सा मकान खरीद लेंगे. श्रेया की समस्या यह है कि उस की मां यानी पल्लवी ने उस को अपने ऊपर हुए अत्याचार और श्रेया के लिए उस के संघर्ष व त्याग की कहानी सुना कर उसे इस कदर अपने प्रभाव में ले रखा है कि वह पल्लवी की बात के आगे फिर कोई बात नहीं सुनती है.

पिछले दिनों बात ज्यादा बढ़ने पर श्रेया घर छोड़ कर अपनी मां के साथ उन के गुड़गांव वाले फ्लैट में रहने लगी है. औफिस में भी उस से बात नहीं करती है. श्रेया के इस समय गर्भवती होने से इस तनाव का असर आने वाले बच्चे पर भी पड़ेगा, इस बात को समझाने पर भी उस पर कोई असर नहीं हुआ है, बल्कि इस परिस्थिति का फायदा उठा कर वह और ज्यादा जिद करने लगी है और उसे भावनात्मक दबाव में लेने लगी है. लिहाजा, होने वाले बच्चे की खातिर श्रेया की जिद के आगे उसे झुकना ही पड़ता है. इस सब काम में श्रेया की मां पूरी तरह उस का साथ ही नहीं देतीं, बल्कि उसे उकसाती भी रहती हैं. पिछले हफ्ते श्रेया ने उस को और अधिक दबाव में लेने की खातिर एक वकील के द्वारा तलाक का नोटिस भी भिजवा दिया. इतना ही नहीं, श्रेया ने उस के  और उस के परिवार के खिलाफ भी दहेज प्रताड़ना का झूठा मुकदमा लिखवा दिया है जिस में उसे और उस के परिवार को जमानत करानी पड़ी है. ये सभी परिस्थितियां उस की बर्दाश्त से बाहर हो गई हैं और तंग आ कर उस ने भी तलाक लेने का मन बना लिया है. इसी सिलसिले में बातचीत करने के लिए जब वह उन के गुड़गांव वाले फ्लैट पर गया तभी उस की मुलाकात वहीं रहने वाले अतुल माथुर से हुई.

माथुर साहब से उसे उन के बारे में पूरी सचाई पता चली और उन का पता भी मिला. कबीर ने माथुर साहब से सचाई जानने के बाद उन के बारे में उस के मस्तिष्क में जो उन की बुरे आदमी की पुरानी छवि थी उस के लिए माफी भी मांगी. उन्होंने ही उसे समझाया कि इस में उस की कोईर् गलती नहीं है और उस ने जो भी कुछ विचारधारा उन के बारे में बनाई, वह सुनीसुनाई बातों के आधार पर बनाई. उन्होंने आखिर में कबीर से पूछा कि वह क्या चाहता है और उन से क्या अपेक्षा है? इस के जवाब में कबीर ने कहा कि वह श्रेया और अपने होने वाले बच्चे के साथ ही रहना चाहता है. वह अपनी शादीशुदा गृहस्थी नहीं बिगाड़ना चाहता है और इस समस्या से निकलने के लिए उसे उन की मदद चाहिए. यह सब सुन कर वे एक गहरी सोच में डूब गए. एक पल को तो ऐसा लगा कि उन की अपनी जिंदगी का ही फ्लैशबैक चल रहा है. उन्होंने कबीर से कहा कि वह खाना खा कर आराम करे, उन्हें सोचने के लिए वक्त चाहिए. इतना कह कर वे जेम्स से खाना लगाने के लिए कहने चले गए.

खाना खा कर कबीर तो गेस्टरूम में सोने चला गया और वे फिर अपने स्टडीरूम में आ बैठे. यादों की परतें खुलती चली गईं और वे उन में खोते चले गए. जब चेतना लौटी तो मन में एक निश्चय था कि पल्लवी और उस के झूठे मुकदमों ने उन का जीवन तो खराब कर ही दिया है पर अब वे इस कहानी की पुनरावृत्ति नहीं होने देंगे. उन्हें लगा कि पल्लवी की जो सचाई उन्होंने आज तक श्रेया को सिर्फ इसलिए नहीं बताई क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उन की बेटी की नजर में अपनी मां की जो महान छवि बनी है, उसे कहीं ठेस पहुंचे या श्रेया का अपना मन आहत हो. उन्हें हमेशा लगता था कि ऐसा करने से उन की बेटी के दिल को चोट पहुंचेगी पर अब और नहीं. अपनी बेटी की जिंदगी खराब होते देख कर तो वे बिलकुल शांत नहीं रहेंगे. अगर अब भी वे पल्लवी की ज्यादतियों को चुपचाप सहन करते रहे और अब भी कुछ नहीं बोले तो वे स्वयं को कभी माफ नहीं कर पाएंगे. अब तो उन्हें अपनी बेटी श्रेया की भलाई के लिए पल्लवी को यह प्रतिदान देना ही होगा. यह निर्णय करने के बाद वे कबीर के साथ गुड़गांव जाने की तैयारी करने लगे.

बयार बदलाव की – भाग 4 : नीला की खुशियों को किसकी नजर लग गई थी

’’ मां उस के चेहरे पर मुसकराती नजर डाल कर बोलीं, ‘‘अभी वह बच्ची है. कल को बच्चे होंगे तो कई बातों में वह खुद ही परिपक्व हो जाएगी.’’

‘‘जी मम्मी, मैं भी यही सोचता हूं.’’

‘‘और बेटा, आजकल लड़की क्या और लड़का क्या, दोनों को ही समानरूप से गृहस्थी संभालनी चाहिए. वरना लड़कियां, खासकर महानगरों में, नौकरियां कैसे करेंगी जहां नौकरों की भी सुविधा नहीं है.’’

‘‘जी मम्मी, मैं इस बात का ध्यान रखूंगा.’’

थोड़ी देर दोनों चुप रहे, फिर एकाएक रमन बोल पड़ा, ‘‘मम्मी, सच बताऊं तो मैं नहीं सोच पा रहा था कि आप नीला की पीढ़ी की लड़कियों के रहनसहन की आदतों व पहननेओढ़ने के तरीकों को इतनी स्वाभाविकता से ले लेंगी, इसलिए…’’ कह कर उस ने नजरें ?ाका लीं.

‘‘इसीलिए हमें आने के लिए नहीं बोल रहा था,’’ मम्मी हंसने लगीं, ‘‘तेरे मातापिता अनपढ़ हैं क्या?’’

‘‘नहीं मम्मी, आप की पीढ़ी तो पढ़ीलिखी है. मेरे सभी दोस्तों के मातापिता उच्चशिक्षित हैं पर पता नहीं क्यों बदलना नहीं चाहते.’’

‘‘बदलाव बहुत जरूरी है बेटा. समय को बहने देना चाहिए. पकड़ कर बैठेंगे तो आगे कैसे बढ़ेंगे? रिश्ते भी ठहर जाएंगे, दूरियां भी बढ़ेंगी…’’

‘‘यह सम?ा सब में नहीं होती मम्मी,’’ यह बोला ही था कि तभी उस के पापा आ गए. नीला भी आंखें मलतेमलते उठ कर आ गई और मम्मी की गोद में सिर रख कर गुडमुड कर लेट गई. मम्मी हंस कर प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरने लगीं.

‘‘चलोचलो उठो, तुम्हारी नहीं, मेरी मम्मी हैं. पूरे महीने मु?ो मम्मी के पास नहीं फटकने दिया. खुद ही चिपकी रहीं,’’ छेड़ता हुआ रमन उसे धकेलने लगा. नीला और भी बांहें फैला कर मम्मी की गोद से चिपक गई. देख कर रमन हंसने लगा.

शाम को जाने की सारी तैयारी हो गई. वे दोनों मम्मीपापा को छोड़ने एयरपोर्ट चले गए. एयरपोर्ट के बाहर मम्मीपापा को छोड़ने का समय आ गया. वह दोनों को नमस्कार कर उन के गले लग गया. उस का खुद का मन भी बहुत उदास हो रहा था. पर उसे पता था वह तो कल से काम में व्यस्त हो जाएगा पर नीला को मम्मीपापा की कमी शिद्दत से महसूस होगी.

पापा से गले लग कर नीला मम्मी के गले से चिपक गई. मम्मी ने भी प्यार से उसे बांहों में भींच लिया. वह थोड़ी देर तक अलग नहीं हुई तो वह सम?ा गया कि भावुक स्वभाव की नीला रो रही है. मम्मी की आंखें भी भर आई थीं. नीला को अपने से अलग कर उस की आंखें पोंछती हुई प्यार से बोलीं, ‘‘जल्दी आएंगे बेटा. अब तुम आओ छुट्टी ले कर,’’ रमन भी पास में जा कर खड़ा हो गया. नीला के इर्दगिर्द बांहों का घेरा बनाते हुए बोला, ‘‘जी मम्मी, जल्दी ही आएंगे.’’

‘‘अच्छा बेटा,’’ मम्मीपापा ने दोनों के गाल थपके और सामान की ट्रौली धकेलते, उन्हें हाथ हिलाते हुए एयरपोर्ट के अंदर चले गए. रमन और नीला भरी आंखों से उन्हें जाते हुए देखते रहे. रमन सोच रहा था, बदलाव की बयार तो बहनी ही चाहिए चाहे वह मौसम की हो या विचारों की, तभी जीवन सुखमय होता है.

रणवीर शोरी अपने बेटे हारून शोरी और गायिका व इंटर प्रिन्योर सानिया सईद के साथ वृक्षारोपण अभियान का बने हिस्सा

विश्व पर्यावरण दिवस से पहले मुंबई महानगर पालिका के ‘के पश्चिम’वार्ड सहायक कमिश्नर के विश्वा समोटे ने ‘मे कअर्थ ग्रीन अगेन’ फाउंडेशन के साथ मिलकर ‘बी अ ट्रीपैरेंट-अडॉप्ट से फॉलेनट्रीपिट‘ अभियान की पहल की है.

इस अभियान का मकसद इमारत की सोसायटियों और व्यक्तिग तस्तर पर लोगों को हाल ही में आए ताउते तूफान से के वेस्ट वॉर्ड में उजड़ गये 348 पेड़ों की जगह पर आरोपित किए जाने वाले औरते जी से उगने वाले नए पेड़ों की जिम्मेदारी लेने के लिए प्रेरित करना है. उल्लेखनीय है कि इस अभियान की शुरुआत ऐसे वक्त में की गई है जब ताउते तूफान के चलते मुम्बई में 2363 पेड़ जड़ से उखड़कर गिर गए थे और सैंकड़ों पेड़ों की शाखाएं भी टूट गईं थीं.

ये भी पढ़ें-Ishq Par Zor Nahi एक्ट्रेस शगुन शर्मा को मिली रेप की धमकी, जानें पूरा मामला

ऐसे में विश्वास मोटे ने मेकअर्थ ग्रीन अगेन (डम्ळ।) फाउंडेशन और वृक्ष नर्सरी के सहयोग से एक ऐसे अभियान की शुरुआत की,जिसमें सेलिब्रिटीज भी काफी दिलचस्पी दिखा रहे हैं. इस कड़ी में अब रणवीर शोरी और उनके बेटे हारून शोरी ने भी इस सरल मगर प्रभावी अभियान में हिस्सा लिया. दोनों के अलावा गायिका और एक आंत्रप्योनर के तौर पर अपनी पहचान रखने वाली सानिया सईद ने सीता अशोक नामक पौधे का रोपण किया. उल्लेखनीय है कि उसी जगह पर पहले वडका एक विशालकाय वृक्ष हुआ करता था,जो ताउते तूफान के असर से गिर गया था.

इस खास मौके पर स्थानीय नगर से विका प्रतिमाताई खोपाड़े, बीएमसी में के वेस्टवॉर्ड के सहायक आयुक्त विश्वा समोटे, मे कअर्थ ग्रीनअगेन (डम्ळ।) फाउंडेशन की अनुषा श्रीनिवासन अय्यर, वृक्ष नर्सरी के शानला लवानी और ‘अडॉप्ट के फॉलन ट्रीपिट‘ के नोडल अफसर व बीएमसी के स्टाफ योगेंद्र कांच वाला भी उपस्थित थे.

ये भी पढ़ें- Amitabh Bachchan कि शादी के 48 साल पूरे, शादी की फोटो शेयर कर कही ये बात

बीएमसी में के वेस्टवॉर्ड के असिस्टेंट कमिश्नर विश्वा समोटे ने इस मौके पर कहा, ‘‘माननीय सांसद और अभिनेत्री हेमामालिनी द्वारा इस अभियान का उद्घाटन किए जाने के बाद से  बड़े पैमाने पर स्थानीय लोग पेड़ों का अभिभावक बनने में रूचि दिखा रहे हैं.हमारे वॉर्ड की हरियाली बढ़ाने वाले इस अभियान में नागरिकों की इस तरह की सहभागिता बेहद उत्साहजनक है.‘‘

मेक अर्थ ग्रीनअगेनघ् (डम्ळ।) फाउंडेशन की संस्थापक अनुशा श्रीनिवासन अय्यर कहती हैं, ‘‘पेड़ धरती के फेफड़ों की तरह काम करते हैं. वे कार्बनडाइ ऑक्साइड को ऑक्सीजन में तब्दील कर धरती को सांस लेने देने में मदद करते हैं और धरती के एयर कंडिशनर की तरह काम करते हैं. ऐसे में बीएमसी के असिस्टेंट कमिश्वर विश्वा समोटे द्वारा ताउते तूफान के दौरान गिरे पेड़ों की जगह पर नए पेड़ लगाने के लिए नागरिकों की हिस्सेदार बनाने की पहल सराहनीय कही जाएगी.‘‘

ये भी पढ़ें- हाई कोर्ट में वकील ने गाया जूही चावला के लिए गाना तो जज ने किया ये काम

इस खास मौके पर पहुंचे अभिनेता रणवीर शोरी ने कहा, ‘‘मैं यह देखकर काफी दुखी हुआ था कि तूफान में इतना पुराना और विशालकाय पेड़ उखड़  गया. मगर अब मैं  खुश हूं कि बीएमसी के अधिकारी उसी जगह पर एक नया पेड़ रोपित कर रहे हैं.‘‘इस मौके पर सानिया सईद ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘मुझे इस बात की खुशी है कि बीएमसी मूल प्रजातियों के पौधों को फिर से रोपित करने का अभियान चला रही हैऔर मैं इस अभियान का हिस्सा बनकर बेहद उत्साहित महसूस कर रही हूं. देसी पेड़ कम मात्रा में पानी सोखते हैं और उन्हें रोपित किए जाने से आस पास का माहौल भी खुश गवार बनता है.‘‘

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें