विद्या बालन की बहुचर्चित फिल्म ‘कहानी’ की कहानी तो सब को याद होगी. एक गर्भवती महिला कोलकाता के गलीकूचों में अपने लापता पति को तलाशती फिरती है. दर्शकों को उस से हमदर्दी हो जाती है. उस की बेबसी पर दर्शकों को तरस आता है. एक तो उस की अवस्था ऐसी, उस पर पति कहीं लापता है लेकिन फिल्म के अंत में पता चलता है कि वह महिला गर्भवती नहीं है और उस का पति 2 साल पहले ही मर चुका है. वह तो अपने पति की मौत का बदला लेने आई थी और ये सब उस के नाटक का हिस्सा था. अजीब सी स्थिति बनती है. वह महिला इस बात को स्वीकार भी करती है कि उसे भी गर्भवती होने वाला स्वांग असली लगने लगा था. काश, यही सच होता. हमदर्दी रखने वाले दर्शकों को भी लगता है जिसे वह जीवन का दुख समझ रहे थे वह उतनी भयावह स्थिति नहीं थी. महिला मां बनने वाली थी और अपने पति को तलाश रही थी. उस के जीवन में एक उम्मीद तो बाकी थी. लेकिन वास्तविकता कितनी भयानक है कि वह अब कभी मां नहीं बन सकती क्योंकि उस का पति मर चुका है.
जो है आज और अभी है
हम सभी के जीवन में कई बार ऐसी स्थितियां आती हैं जब वर्तमान में जो हो रहा होता है वह सब से दुखदायी लगता है, लगता है इस से अधिक बुरा हमारे साथ और कुछ हो ही नहीं सकता. लेकिन वास्तविकता कई बार इस से भी भयानक हो सकती है. भविष्य के गर्त में न जाने कौन सा दुख छिपा है, इस का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. फिल्म ‘कहानी’ की गर्भवती महिला सबकुछ खो कर भी अपने उद्देश्य प्राप्ति में लगी रहती है जबकि वह जानती है वास्तविकता तो कुछ और ही है. लेकिन वह इसी बात में संतुष्ट रहने की कोशिश करती है कि वह अपने पति की मौत का बदला तो ले पाई. विद्या बालन का किरदार हम सभी को जीवन में यही सीख देता है कि जो है, आज है. जिंदगी का जो पल आप जी रहे हैं वह आप का है, उसे पूर्ण रूप से, पूरी शिद्दत के साथ जिएं. वर्तमान स्थिति को दर्दनाक व दुखदायी मान कर उस से मुंह न मोड़ें, जिंदगी के जीने का जज्बा न त्यागें.
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कुछ ऐसा ही मामला हिंदुस्तान और पाकिस्तान से जुड़ा एक बहुचर्चित मामला सरबजीत का है. पंजाब का एक किसान, नशे की हालत में भटकते हुए पाकिस्तान की सीमा में घुस गया. पाकिस्तानी फौजियों ने उसे जासूस बता कर जेल में डाल दिया. बाद में वहां के सुप्रीम कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुनाई. सरबजीत की बहनबेटी ने मानवाधिकार आयोग का सहारा ले कर एक लंबी लड़ाई लड़ी. इस दौरान कभीकभी वे निराश हो जाती थीं. मगर उन्हें उम्मीद थी कि वे जीत जाएंगी. लेकिन उन्हीं दिनों सरबजीत एक दूसरे कैदी की हिंसा का शिकार हुआ और जान से हाथ धो बैठा. सबकुछ खत्म हो जाने के बाद सरबजीत के परिवार के लोगों को जरूर लगता होगा कि वे कितने अच्छे दिन थे जब सरबजीत जेल में बंद था. एक उम्मीद तो थी कि एक दिन सत्य की जीत होगी और वह रिहा हो जाएगा. खुशीखुशी अपने वतन, अपने घर लौट आएगा लेकिन अब कोई उम्मीद, कोई इंतजार बाकी नहीं है.
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खुद संवारें वर्तमान
कई बार लोग यह नहीं सोचते कि दुख की घड़ी में भी कुछ होने की उम्मीद तो है. अगर वह उम्मीद ही खत्म हो गई तब क्या बचेगा, जीवन ही बेमतलब हो जाएगा. क्या पता, जो आज है वह कल हो न हो. बूढ़े मांबाप की लंबी बीमारी के दिनों में लगता है ये कितनी परेशानी के दिन हैं लेकिन जब वे लोग नहीं रहते तब लगता है बीमार ही सही मांबाप तो थे. अब कितना अकेलापन है. दुनिया ही पराईपराई लगती है, लगता है कि कोई सच्चा हमदर्द ही नहीं रहा. उन की बीमारी में भी उन के ठीक होने की उम्मीद तो थी. तब लगता है शायद हमें और कोशिश करनी चाहिए थी. हमारी कोशिशों में कहीं कोई कमी रह गई लेकिन बीता कल लौट नहीं सकता. दंगे के कारण एक शरणार्थी कैंप में रह रही एक महिला ने अपना दर्द बयान करते हुए कहा, ‘‘पहले नहीं लगता था कि बच्चे, घर कोई बहुत बड़ी चीज हैं. कुछ न कुछ का रोना लगा ही रहता था. लेकिन अब जब घर, बच्चे कुछ नहीं बचा तो लगता है मेरे पास क्या नहीं था, तब मैं ने जिंदगी को जिया क्यों नहीं, और अब?’’ बड़ी ही नहीं, छोटीछोटी बातों में ही आकलन करें तो यह एहसास हो जाता है कि जो आज है, वह अच्छा है.
काम वाली से किचकिच करती, कार्यों के बोझ से दबी गृहिणियां कितनी परेशान और बेचैन होती हैं. उन्हें लगता है न खत्म होने वाले कार्यों ने उन का सुखचैन सब छीन लिया है. लेकिन जिस दिन काम वाली नहीं आती है उस दिन यह एहसास होता है कि घर का असली और मुश्किल काम क्या होता है और काम वाली के साथ मिल कर काम करते हुए काम कितना आसान होता है.
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हम और आज
सवाल है कि आखिर क्यों नहीं हम जिंदगी को भरपूर जी पाते हैं? क्यों हर पल बुरे की आशंका से ग्रसित रहते हैं? वक्त रेत की तरह हाथ से फिसलता जाता है और हम मूकदर्शक बने देखते रहते हैं. इन सब का सब से बड़ा कारण है वर्तमान के महत्त्व को नहीं समझने की आदत. दरअसल, काल की 3 अवस्थाएं भूत, भविष्य एवं वर्तमान हैं. लेकिन न जाने क्यों हम लोगों की सारी आशाएं, सभी आशंकाएं भविष्य काल से जुड़ी रहती हैं. हम उसी को सोचते रहते हैं जबकि हकीकत यह है कि भविष्य हमें कभी मिलता ही नहीं है. भविष्य हर रोज वर्तमान बन कर एक नए रूप में प्रकट होता है, और कहता है, ‘मुझे पहचानो और जियो. मुझे जियो और बहुत खूबसूरत बना दो. क्योंकि मैं तुम्हारा अतीत भी बनने वाला हूं.’ लोग कहते हैं अतीत को भूल जाना चाहिए. जो खत्म हो गया, वह खत्म हो गया. लेकिन गहरी दृष्टि डालें तो पता चलेगा जिंदगी हर इंसान को हर दिन अतीत संवारने का मौका देती है. बस, हमें इतना करना है कि वर्तमान को भरपूर और सुंदर तरीके से जीना शुरू कर दें. हर दिन एक छोटे से संकल्प से शुरू करें कि मेरा आज अच्छा हो जाए या मुझे आज को सब से अच्छा दिन बनाना है.
हर हाल में रहें खुश
यह मानवीय स्वभाव है कि जो उस के पास होता है उसे उस की कद्र नहीं होती. जब वह पीछे छूट जाता है तब उस की कद्र होती है, उस की कमी का एहसास होता है. यह बात आम जीवन में पति, बच्चे, जौब, रिश्ते, घर, गाड़ी, सभी पर लागू होती है. जो विवाहित है वह अपने रिश्ते की कद्र नहीं करता. जो अविवाहित है उस के लिए विवाहित होना सब से बड़ी आकांक्षा है. जो महिला मां नहीं बन सकती वह मां बनने के लिए हर कोशिश करती है फिर चाहे वह मैडिकल इलाज हो या कुछ और जिस महिला के बच्चे हैं वह उन की शिक्षा, जिम्मेदारियों की किचकिच से परेशान है. जो संयुक्त परिवार में है उसे उस में कमियां दिखाई देती हैं, उस की अच्छाइयां नहीं दिखतीं. यानी कुल मिला कर वर्तमान स्थिति से असंतुष्टि. जबकि यह कोई नहीं जानता कि भविष्य में क्या होगा, क्या पता वह वर्तमान से अधिक भयावह हो, जैसा सरबजीत के साथ हुआ. इसलिए वर्तमान को अपनी पूंजी मानें, उसे संवारें क्योंकि अगर वर्तमान संवर गया तो वह सुखद अतीत होगा.