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बेहतर भविष्य के लिए जिंदगी खोते बच्चे

कभीकभी कुछ बातें हमें उतना नहीं चौंकातीं जितनी वे गंभीर होती हैं, जैसे कि किसी छात्र द्वारा आत्महत्या कर लेना. आत्महत्या की वजह होती है पढ़ाई के बोझ तले दबा महसूस करना या मातापिता की उम्मीदों पर खरा न उतर पाना. तभी तो कहीं से खबर आती है कि फलां शहर के 10वीं कक्षा के छात्र ने परीक्षा में अंक कम आने के डर से फांसी लगा कर अपनी जान दे दी या कहीं से यह समाचार मिलता है कि परीक्षा में फेल हुए 12वीं कक्षा के छात्र ने नींद की गोलियां खा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली.

इन आत्महत्याओं के जो कारण बताए जाते हैं, असलियत में क्या वे ही होते हैं या बात दूसरी भी होती है? दरअसल, जब से शिक्षा का अर्थ ‘शिक्षित करने’ से हट कर ‘समृद्ध करना’ बन गया है तब से हमारी महत्त्वाकांक्षाएं बेहिसाब बढ़ी हैं. अब ‘छोटा परिवार सुखी परिवार’ का नारा ‘छोटा परिवार समृद्ध परिवार’ में बदल गया है. तभी तो अकसर शिक्षण संस्थाओं से विद्यार्थी नहीं निकल रहे, बल्कि अब जैसे भी हो डाक्टर, इंजीनियर, एमबीए वगैरह प्रोफैशनल बनाए जा रहे हैं, जिन का एक ही ध्येय है, बेहिसाब पैसा बनाना. भारत पर बाजार का कब्जा होने के बाद से तो स्कूल खासतौर से प्राइवेट स्कूल बच्चों को ‘पैसा कमाने की मशीन’ बनाने वाली फैक्टरियां बन गए हैं. वे अपने तामझाम से बच्चों का ऐडमिशन कराने आए मातापिता को रिझाते हैं, उन्हें बड़ेबड़े सपने दिखाते हैं और यह यकीन तक दिला देते हैं कि अगर वे उन के यहां से अपने बच्चे को शिक्षा दिलाएंगे तो वह बच्चा अंकों के खेल में तो बाजी मारेगा ही, सफलता की रेस में भी सब से आगे निकल जाएगा.

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बस, यहीं से शुरू हो जाता है बच्चे पर शारीरिक और मानसिक बोझ का पड़ना. स्कूल का बस्ता तो हर कक्षा के बाद अपना वजन बढ़ाता ही है, मातापिता की महत्त्वाकांक्षाएं भी दिनोंदिन बच्चे के कोमल मस्तिष्क पर सवार होने लगती हैं. मातापिता जो अपने जीवन में नहीं कर पाए होते हैं वे अपने बच्चों के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं, चाहे वैसा करने की दिलचस्पी बच्चे में हो या नहीं. एक अध्ययन से सामने आया है कि 8 से 10 साल के बच्चों में पढ़ाई को ले कर इतना दबाव बना दिया जाता है कि खेलनेकूदने के दिनों में उन में से 30 फीसदी बच्चे अवसाद से घिरे नजर आते हैं. इस हद तक कि वे कभीकभार आत्मग्लानि के शिकार बन जाते हैं. उन्हें लगता है कि अगर वे दूसरों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे तो अपनी नजरों में गिर जाएंगे. इस कशमकश में वे कभीकभार अपनी मासूम जिंदगी तक दांव पर लगा बैठते हैं. बड़े दुख की बात है कि 2012 में 14 साल तक की उम्र के 2,738 बच्चों ने अपनी जिंदगी खत्म कर ली थी. इन में से कुछ के पारिवारिक कारण थे, तो कइयों ने परीक्षाफल में मनमाफिक अंक न ला पाने के चलते ऐसा खतरनाक कदम उठा लिया था.

तेजी से टूटते संयुक्त परिवार, आर्थिक और सामाजिक प्रतिष्ठा को सर्वोपरि मानना, खुद के बारे में ‘सुपरकिड’ होने का भरम पाल लेना आजकल के बच्चों को उन के बचपन से लगातार दूर कर रहा है.

कामयाबी पाने की अंधी दौड़

शहरों में ही नहीं, बल्कि अब तो ग्रामीण क्षेत्रों में भी छोटे परिवारों का चलन बढ़ा है, लेकिन ये छोटे परिवार संसाधन असीमित चाहते हैं. इस के लिए मातापिता नौकरी करने लगे हैं. इतना ही नहीं, काम में खुद को बेहतर साबित करने के लिए वे अपनी काम करने की जगह पर ही ज्यादा से ज्यादा समय बिताना पसंद करते हैं. ऐसे लोगों के पास अपने बच्चे के लिए पर्याप्त समय नहीं होता है. नतीजतन, बच्चे घर में ‘आया’ की देखरेख में पलते हैं या ‘प्ले स्कूल’ में अपने बचपन का अनमोल समय गंवा देते हैं. ऐसे बच्चे जब अपने मातापिता से मदद मांगते हैं तो वे या तो व्यस्त होने की दुहाई देते हैं या पीछा छुड़ाने के लिए बच्चे की ऐसी ख्वाहिश भी पूरी कर देते हैं जो जरूरी नहीं होती है. इस के एवज में मातापिता अपने बच्चे से पढ़ाई में शानदार रिजल्ट लाने की डिमांड रखते हैं. कभीकभी तो उसे डरा भी देते हैं कि अगर सब से आगे रहना है तो सब से बेहतर बनना होगा.

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घर में घुसे बाजार और इलैक्ट्रौनिक मीडिया ने छोटे परिवारों को ऐसे बड़े घरों के सपने दिखाए हैं जिन में सुखसुविधाओं के सभी संसाधन भरे हों. फिर अब तो घर से ले कर मोबाइल फोन तक लोन पर मिलने लगे हैं. ईएमआई ने हर घर में सेंध लगा दी है. कर्ज लेना अब गरीब होने की निशानी नहीं रह गया है, बल्कि स्टेटस सिंबल है कि फलां दंपती अपने 3+1 बीएचके फ्लैट के लिए 50 हजार रुपए की ईएमआई भर रहा है.

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 कामयाबी पाने की इस अंधी दौड़ में अब बड़े ही नहीं, बल्कि बच्चे भी शामिल होने लगे हैं. शायद इसीलिए अब उन की पढ़ाईलिखाई का मतलब ‘रुपया कमाने की मशीन’ बनना रह गया है. अगर बच्चा मेधावी है तो ठीक है, लेकिन अगर वह उतना होशियार नहीं है या अपनी पसंद का कैरियर बनाना चाहता है और उस के मातापिता कतई नहीं चाहते हैं, तो ऐसे बच्चे में पढ़ाई के दबाव से तनाव या अवसाद के लक्षण दिखने लगते हैं. किशोरावस्था में एक तरफ तो वे शारीरिक बदलावों से जूझ रहे होते हैं तो दूसरी ओर कैरियर बनाने के प्रैशर से घुट रहे होते हैं, जिस से वे स्वार्थी और आत्मकेंद्रित हो जाते हैं. और जब उन का यह दबाव हद पार कर जाता है तो वे अपनी जान देने तक का मन बना लेते हैं और दे भी देते हैं.

मूर्खता होगी व्यर्थ में मुख्यमंत्री बदलना

किसी भी प्रदेश का मुख्यमंत्री उस प्रदेश के बहुमत रखने वाले विधायकों का चुना हुआ प्रतिनिधि होता है. ऐसे में पार्टी हाईकमान के द्वारा उसको जब बिना किसी कारण के हटा दिया जाता है तो वह मूखर्तापूर्ण कार्य ही नहीं होता उस प्रदेश की जनता और बहुमत वाल विधायकांे का मजाक बनाना होता है. एक तरह से लोकतंत्र मंे यह पार्टी तंत्र को हावी करने वाला फैसला होता है. अगर आंकडों को देखे तो अधिकतर बार इसका कोई अच्छा परिणाम नहीं दिखता. इसका अच्छा प्रभाव ना तो पार्टी पर पडता है और ना ही प्रदेश की जनता पर. ऐसे फैसले राजनीतिक दलो की जगह प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के जैसे लगते है.

गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने विजय रूपाणी का हटाकर भूपेन्द्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया तो कांग्रेस ने पंजाब में कैप्टन अमरिदंर सिह को हटा कर चरनजीत चन्नी को अपना नया मुख्यमंत्री बना दिया है. इसके पहले भाजपा ने उत्तराखंड में त्रिवेन्द्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत और फिर पुष्कर सिंह धामी को अपना मुख्यमंत्री बनाया. तीरथ सिंह रावत का कार्यकल बहुत ही कम समय का रहा. उत्तराखंड में भाजपा का फैसला किसी भी नजर से समझदारी भरा नहीं कहा जा सकता. यह फैसला वैसा ही था जैसे कि मल्टीनेशनल कंपनियों में मैनेजर के ट्रांसफर करना हो.

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निशाने पर राजस्थान और छत्तीसगढ:

पंजाब में कैप्टन अमरिदंर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद अब राजस्थान में मुख्यमंत्री अषोक गहलोत और छत्तीसगढ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को उनके पदों से हटाने की खबरें दिखने लगी है. राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और युवा कांग्रेसी सचिन पायलेट के बीच शीतउद्या    लंबे समय से चल रहा है. छत्तीसगढ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का बदलने की बात चल रही है. वहां पर कांग्रेस नेता टीएस सिंहदेव मुख्यमंत्री बदलने के पक्ष मंे है. इसको लेकर दोनो ही पक्षों में विधायक लांब बंद होते रहते है. कांग्रेस के ज्यादातर लोग दोनो राज्यों के मुख्यमंत्रियों से नाराज है. उनका आरोप है कि कांग्रेस के लोगों की अवहेलना हो रही है.

यह जरूरी नहीं है कि कांग्रेस राजस्थान और छत्तीसगढ में अपने मुख्यमंत्री बदले ही. वैसे भी बिना बडे कारण हुये राजस्थान और छत्तीसगढ मंे मुख्यमंत्री बदला जाना मुखर्तापूर्ण कहा जायेगा. वैसे कांग्रेस मंे यह चलन पुराना है. इंदिरा गांधी के समय ऐसे ही मुख्यमंत्री बदले जाते थे. उत्तर प्रदेश  में मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल को देखे तो यह पता चलता है कि आजादी के बाद से केवल बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ही दो ऐसे नेता है जिन्होने अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया है. बाकी के किसी मुख्यमंत्री ने 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया. जिन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने ज्यादा समय तक कार्यकाल पूरा किया वहां अपेक्षाकृत विकास भी अधिक किया है.

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‘मोदीशाह’ ने 13 राज्यों में 19 मुख्यमंत्री बनाए: मुख्यमंत्री का चुनाव विधानसभा में बहुमत वाले दल के विधायक करते है. लेकिन अब यह साफ कि यह काम केन्द्र के नेता जिनको हाई कमान कहा जाता है वह करते है. भाजपा में ‘मोदीशाह’ की जोडी ने 19 मुख्यमंत्री ऐसे बनाये है. इनमंे उत्तर प्रदेश  के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, हिमंता बिस्व सरमा, सर्वानंद सोनोवाल, देवेन्द्र फडनविस, त्रिवेन्द्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत, पुष्कर सिंह धामी, जयराम ठाकुर, बिप्लब देव, मनोहरलाल खट्टर, रघुबर दास, लक्ष्मीकांत पारसेकर, प्रमोद सांवत, बीरेन सिंह, पेमा खांडू, आंनदी बेन पटेल, विजय रूपाणी, भूपेंद्र पटेल, बासवराज बोम्मई है. इनमें से गुजरात, गोवा और उत्तराखंड के 6 मुख्यमंत्रियों को हटाया जा चुका है.
भाजपा में ‘मोदीशाह’ की जोडी ने मुख्यमंत्रियों को ताश के पत्तों की तरह से फेंटा है. इस तरह ही कांग्रेस में इंदिरा गांधी के समय मुख्यमंत्री बनाये और हटाये जाते थे. इंदिरा गांधी के पक्ष में तर्क रखने वाले कहते थे इससे पार्टी का भला होगा. अगर आकलन कर तो इंदिरा की इस नीति के कारण ही प्रदेशो  में क्षत्रप नेताओं प्रभाव नहीं बढ सका जिसकी वजह से धीरेधीरे राज्यों में कांग्रेस खत्म होती गई. अंत में केन्द्र में भी कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई. किसी भी नेता के फैसले का अच्छा या बुरा दोनो ही तरह से प्रभाव कुछ सालों के बाद पता चलता है. ‘मोदीशाह’ जिस तरह से फैसले कर रहे इनका आकलन कुछ साल बाद किया जा सकेगा.

केन्द्रीयकरण की राजनीति: मुख्यमंत्रियों को व्यर्थ मंे इस कारण बदला जाता है जिससे ताकत केन्द्र के नेताओं के हाथ में रहे. केन्द्रीयकरण की राजनीति पार्टी पर दूरगामी प्रभाव डालती है. धीरेधीरे पार्टी का प्रभाव राज्यों से खत्म होने लगता है. उदाहरण के लिये उत्तर प्रदेश को देखे तो 1980 के बाद से 90 के दशक में कांग्रेस ने यहां कि भी बडे नेता को टिक कर काम नहीं करने दिया. जून 1980 में विष्वनाथ प्रताप सिह यहां मुख्यमंत्री बने. इसके बाद जुलाई 1982 में श्रीपति मिश्रा, अगस्त 1984 में नारायण दत्त तिवारी, सितम्बर 1985 में वीर बहादुर सिंह, जून 1988 में नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने. 10 साल से भी कम समय में 5 बार मुख्यमंत्री बदल दिये गये.

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इसका परिणाम यह हुआ कि उत्तर प्रदेश मंे कांग्रेस ऐसे कमजोर हुई कि 1989 में जब मुलायम सिंह यादव का उदय क्षत्रप नेता के रूप में हुआ तो फिर कांग्रेस यहां कभी अपना मुख्यमंत्री नहीं बना पाई. 1989 से 2021 तक यह सिलसिला जारी है. करीब 32 साल का समय हो चुका है. कांग्रेस यहां खडी होती नहीं दिख रही है. अगर कांग्रेस ने क्षेत्रीय नेता के रूप में अपने किसी नेता को मजबूत होने दिया होता तो कांग्रेस की हालत उत्तर प्रदेश में यह नहीं होती. 1989 में जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने उसके बाद से राजनीति कांग्रेस के हाथांे से निकल गई. इस दौर में 3 बार खुद मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने. एक बार अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने.

कांग्रेस के पास कोई ऐसा नेता नहीं था जो मुलायम और मायावती जैसे कदद्ावर नेताओं का मुकाबला कर सकता. खुद कांग्रेस में इतनी ताकत नही थी कि वह भाजपा-सपा और बसपा के सामने खडी हो पाती. इंदिरागांधी के केन्द्रीयकरण की राजनीति ने कांग्रेस के प्रभावशाली नेताओं को खत्म कर दिया. भाजपा भी उसी राह पर चल रही है. इसका आकलन आज भले ही न लग पा रहा हो पर 20 साल के बाद देखने पर लगेगा कि दिक्कतें कहां पर थी जिनसे पार्टी कमजोर हो कर खत्म हो गई.

50 साल आगे की दुनिया देखने वाले एलन मस्क

इलेक्ट्रिक कार बनाने वाली कंपनी टेस्ला के संस्थापक और दुनिया के सबसे बड़े धन्नासेठ एलन मस्क की आँखों में पचास साल आगे के सपने तैर रहे हैं. कहने को एलन इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि वाले एक बड़े कारोबारी हैं, जो ऑटोमोबाइल, सोलर पैनल, सैटेलाइट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में नए-नए प्रयोगों से हमेशा चर्चा में रहते हैं, मगर अब अंतरिक्ष में मानवबस्ती बसाने के लक्ष्य के तहत इस अमेरिकी बिजनेसमैन ने अंतरिक्ष-पर्यटन की शुरुआत भी कर दी है.

एलन मस्क ने ऐलान किया है कि वो 2026 तक इंसानों को मंगल ग्रह पर ले जाएंगे. एलन का यह दावा नासा के दावे से 7 साल पहले मंगल ग्रह पर इंसान को ले जाने का है. यानि मंगल ग्रह पर इंसानों को भेजने का नासा का मिशन 2033 का है लेकिन एलन मस्क ने मंगल पर इंसान को उतारने का लक्ष्य 2026 रखा है. एलन ने कुछ दिन पहले ही ऐलान किया था कि वो तीसरा विश्व युद्ध शुरू होने से पहले मंगल ग्रह पर इंसानों की बस्ती बसा देंगे.

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19 सितंबर 2021 एलन मस्क की कपंनी स्पेस एक्स का पहला ऑल-सिविलियन क्रू अंतरिक्ष की सैर कर धरती पर लौटा है. कंपनी ने पहली बार अंतरिक्ष में 4 आम लोगों को भेजा जो इस यात्रा के बाद अब बहुत ख़ास बन गए हैं. नासा के फ्लोरिडा स्थित कैनेडी स्पेस रिसर्च सेंटर से इस रॉकेट की लॉन्चिंग हुई. रॉकेट में सवार 4 लोग 3 दिन तक 575 किलोमीटर ऊपर पृथ्वी की कक्षा में रहे.

एलन मस्क के रॉकेट से अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले पहले व्यक्ति का नाम है जेयर्ड इसाकमैन, जिन्होंने पूरे मिशन की कमान संभाली. उनके साथ 29 वर्षीय हेयली आर्केनो थीं जो इस मिशन में मेडिकल ऑफिसर की जिम्मेदारी निभा रही थीं. तीसरे व्यक्ति थे शॉन प्रोक्टर, जिनकी उम्र 51 साल है और वो जियोलॉजी के प्रोफेसर हैं. और चौथे शख्स थे क्रिस सेम्ब्रोस्की, जो 42 साल के हैं और अमेरिकी एयरफोर्स के पायलट रहे हैं. तीन दिन अंतरिक्ष की इस सैर को नाम दिया गया था – इंस्पिरेशन 4, जो शुरू हुआ था अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित कैनेडी स्पेस सेंटर से. गौरतलब है कि इन लोगों में से कोई भी पेशेवर अंतरिक्ष यात्री नहीं था. इन लोगों को मात्र पांच  महीने की ही ट्रेनिंग दी गई थी. उल्लेखनीय है कि 2009 के बाद पहली बार इंसान इतनी ऊंचाई पर गया था. इस मिशन का लक्ष्य कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक करना और सेंट जूड चिल्ड्रन रिसर्च अस्पताल के लिए फंड जुटाना था.

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बहुत बड़े हैं एलन के सपने 

एलन के सपने अंतरिक्ष अन्वेषण और पर्यटन तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि इससे भी बहुत आगे के हैं. वह चांद के साथ-साथ मंगल ग्रह पर इंसानों के लिए स्थायी ठिकाना बनाना चाहते हैं. इन दोनों ठिकानों तक वे पृथ्वी से नियमित फ्लाइट शुरू करना चाहते हैं ताकि आम इंसान भी रॉकेट पर चढ़ कर अंतरिक्ष में सैर-सपाटे का लुत्फ़ ले सके.

आमतौर पर किसी भी कारोबारी-उद्योगपति का लक्ष्य जहां सिर्फ अपनी कुल सम्पत्ति के  आंकड़े में एक नया शून्य जोड़ना होता है, वहीँ एलन वैश्विक चिंताओं का हल ढूंढने में अपना सबकुछ दांव पर लगाने को तैयार खड़े हैं. एलन कहते हैं कि इस मिशन के लिए अगर उन्हें अपनी सारी दौलत भी लगानी पड़े तो वह पीछे नहीं हटेंगे. इस मिशन के तहत उनकी कम्पनी अब तक करीब 1500 छोटे उपग्रह लांच कर चुकी है, जिन्हें स्पेस वर्ल्ड में स्टारलिंक सेटेलाइट्स के नाम से जाना जाता है.

एलन कहते हैं कि वे मंगल ग्रह पर एक बेस बनाने में अपनी पूंजी का सबसे बड़ा हिस्सा लगाना चाहते हैं और उन्हें कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर उन्होंने इस मिशन को सफल बनाने में अपनी सारी पूंजी लगा दी. मंगल ग्रह पर मनुष्यों का एक बेस, एलन की नज़र में बहुत बड़ी सफलता होगी.

एलन पूरी दुनिया को सौर ऊर्जा से चलाना चाहते हैं. वह मानते हैं पारंपरिक ईंधन भंडार कम होते होते एक दिन इस स्टेज पर पहुंच जाएगा, जब इसके लिए मारामारी शुरू हो जाएगी. वहीँ पारम्परिक ईधन जिसमें लकड़ी और कोयला मुख्य है, का अंधाधुंध इस्तेमाल जिस तेज़ी से ग्लोबल वार्मिंग की चुनौती को महासंकट में बदल रहा है, उसकी रोकथाम ना हुई तो धरती से मानवजाति का नामोनिशान मिट जाएगा.

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एलन मानते हैं कि पूरी मानव सभ्यता को बचाने का एक ही उपाय है – वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का विकास और उस पर निर्भरता. उनकी कंपनी टेस्ला इसी उपाय पर लगातार काम कर रही है. इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन को किफायती बनाने से लेकर उसे सर्वसुलभ करने का मिशन ही टेस्ला का ध्येय बन गया है.

साथ ही टेस्ला बिना ड्राइवर वाली कार भी आम उपभोक्ताओं लिए बाजार में उतारने की तैयारी में है. इन नवोन्मेषी तैयारियों के साथ टेस्ला ने अपनी मार्केट वैल्यू में ऐतिहासिक वृद्धि की है और इस साल के शुरुआत में ही पहला 700 बिलियन डॉलर का लक्ष्य पार कर लिया जो दुनिया की शीर्ष कार कम्पनियों- टोयोटा, फ़ॉक्सवैगन, ह्यूनडाई, जनरल मोटर्स और फ़ोर्ड की कुल मार्केट वैल्यू से भी ज्यादा है.

दरअसल एलन सौर ऊर्जा के अधिकतम इस्तेमाल वाली व्यवस्था गढ़ना चाहते हैं. वह अमेरिका में सौर ऊर्जा से संचालित ट्यूब ट्रेन के प्रोजेक्ट पर भी काम कर रहे हैं, वहीँ आम लोगों की ज़िंदगी भी सौर ऊर्जा से रोशन करने के लिए अभिनव प्रयोगों में जुटे हैं.

गौरतलब है कि घरेलू उपयोग वाले सोलर पैनल वाली उनकी सबसे बड़ी कम्पनी ने लगभग पांच साल पहले एक ऐसा विकल्प बाजार में पेश किया था जिसमें घर की छतों पर अलग से सोलर पैनल लगाने की जरूरत नहीं रह गई थी. बल्कि छतों की टाइल्स में ही सौर पैनल लगा दिया गया था और इससे घर की बिजली की ज़रूरतें पूरी की जा सकती थी. अब जरा सोचिए कि यदि यह विकल्प सर्वसुलभ हो जाए तो दुनियाभर में ऊर्जा संकट की गंभीर चुनौती को कितनी आसानी से मात दी जा सकती है.

कौन हैं एलन मस्क 

एलन के नाम से ख्यात ईलॉन रीव मस्क का जन्म 28 जून 1971 को हुआ था. उनकी माँ कनाडा की और पिता दक्षिण अफ्रीका से हैं यानी 50 साल के एलन एक दक्षिण अफ्रीकी-कनाडाई-अमेरिकी हैं. उनके पिता ज़ाम्बिया में एक पन्ना खदान के मालिक थे, लिहाज़ा एलन एक भव्य जीवन शैली के साथ बड़े हुए हैं.

बचपन से ही पढ़ने के बेहद शौक़ीन एलन ने मात्र 10 वर्ष की आयु में कमोडोर वीआईसी-20 का उपयोग करते हुए कंप्यूटिंग में रुचि विकसित कर ली थी. 12 साल की उम्र में उन्होंने ‘ब्लास्टर’ नामक एक वीडियो गेम तैयार किया जिसे एक स्थानीय मैग्ज़ीन ने उनसे पाँच सौ अमेरिकी डॉलर में खरीदा. इसे एलन मस्क की पहली ‘व्यापारिक उपलब्धि’ कहा जा सकता है.

एलन दिग्गज व्यापारी, निवेशक और इंजीनियर हैं. वे अपनी कंपनी स्पेसएक्स के संस्थापक, सीईओ और मुख्य डिजाइनर हैं, वहीँ वे टेस्ला कंपनी के सह-संस्थापक, सीईओ और उत्पाद के वास्तुकार भी हैं. एलन ओपनएआई के सह-अध्यक्ष, न्यूरालिंक के संस्थापक और सीईओ और द बोरिंग कंपनी के संस्थापक भी हैं. इसके अलावा वे सोलरसिटी के सह-संस्थापक और पूर्व अध्यक्ष, ज़िप2 कंपनी के सह-संस्थापक और एक्स.कॉम के संस्थापक भी हैं, जिसका कि बाद में कॉन्फ़िनिटी के साथ विलय हो गया और उसे नया नाम पेपैल मिला.

दिसंबर 2016 में, एलन को फ़ोर्ब्स पत्रिका की दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोगों की सूची में 21वाँ स्थान प्राप्त हुआ. 8 जनवरी 2021 तक, एलन की कुल संपत्ति 185 अरब अमेरिकी डॉलर आंकी गयी और फोर्ब्स द्वारा दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति के रूप में उन्हें सूचीबद्ध किया गया. अमेरिका के कई आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका में सत्ता बदलने के बाद, एलन मस्क की कंपनी का भविष्य और भी सुनहरा हो सकता है. डेमोक्रैट्स के आने से इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला का काम और भी बढ़ेगा क्योंकि जो बाइडन की पार्टी ने चुनाव अभियान के दौरान ‘ग्रीन-एजेंडे’ को बढ़ावा देने के लगातार वादे किये थे

मानवजाति को बचाने का लक्ष्य 

एलन द्वारा मंगल ग्रह पर मानव बस्ती की स्थापना का उद्देश्य “मानव विलुप्त होने के खतरे” को कम करना है, जो ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण अगले पचास सालों में बड़े खतरे के बीच खड़ी होगी.

सोलरसिटी, टेस्ला और स्पेसएक्स का लक्ष्य, विश्व और मानवता को बदलने के लिए एलन के दृष्टिकोण के चारों ओर ही घूमता हैं. वे एक उच्च गति परिवहन प्रणाली की कल्पना भी करते हैं जिसका नाम उन्होंने दिया है – हाईपरलुप, जिसके तहत उनके सुपरसोनिक जेट विमानों का ऊर्ध्वाधर उड़ान भरना और उतरना शामिल है. इसे ‘मस्क इलेक्ट्रिक जेट’ के रूप में जाना जाएगा. वे अमेरिका में ‘सुपर-फ़ास्ट अंडरग्राउंड ट्रांसपोर्ट सिस्टम’ का ख़ाका भी तैयार कर रहे हैं.

हमारे धन्नासेठ एलन की तरह नहीं सोच सकते 

देश और दुनिया को आगे बढ़ाने, मानवजाति को बचाने, पृथ्वी के अंत को रोकने जैसी एलन मस्क की सोच और नवोन्मेषी व्यापारशैली हमारे धन्नासेठों के लिए क्या कभी आदर्श बनेगी? हमारे धन्नासेठों की सूची में शामिल अम्बानी-अडानी, भारती-मित्तल-टाटा जैसे अरबपति उद्योगपतियों की व्यावसायिक नीति-सिद्धांतों में क्या राष्ट्रीय या वैश्विक चिंता का बोध कभी पैदा होगा? शायद नहीं, क्योंकि उनका एकमात्र लक्ष्य मुनाफाखोरी है. उनकी अर्जित संपत्ति में हर साल नए शून्य तो बढ़ते हैं मगर मानवजाति के कल्याण की कोई योजना वहां से नहीं फूटती, उलटे धरती की तबाही से जुड़े दो-चार प्रोजेक्ट हर साल जरूर खड़े हो जाते हैं. वो चाहे पहाड़ी क्षेत्रों में हों या समुद्र के भीतर. यहाँ तक कि कॉरपोरेट सोशल रेस्पांसिबिलिटी यानी सीएसआर के मार्फ़त समाज को सीधे तौर पर कुछ देने की जिम्मेदारी भी वे पूरी ईमानदारी से नहीं उठा रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि गौतम अडानी की कुल संपत्ति 2021 में 16.2 बिलियन डॉलर से बढ़कर 50 बिलियन डॉलर हो चुकी है. अडानी इस साल सबसे ज्यादा कमाई करने वाले कारोबारी बन गए हैं. इस मामले में उन्होंने अमेजन के सीईओ जेफ बेजोस और टेस्ला के सीईओ एलन मस्क को भी पीछे छोड़ दिया है. मगर अपनी संपत्ति का जिस तरह उपयोग मानवजाति के हित में एलन कर रहे हैं, अडानी की सोच इसके बिल्कुल विपरीत है.

ढहती अर्थव्यवस्था के बीच भी अडानी-अम्बानी तरक्की की नित नयी इबारतें गढ़ रहे हैं, लेकिन उन इबारतों में मनुष्य और पृथ्वी को बचाने की एक लाइन नहीं है. खदाने खोद कर पृथ्वी के गर्भ को खाली करने से लेकर, जंगलों को ख़त्म करने और समुद्र को उथलपुथल करने तक की क़वायतों के बीच भारतीय उद्योगपतियों मंशा सिर्फ अपनी तिजोरियां भरने की रही है.

 

पुरुषों में भी बढ़ रहा है कौस्मैटिक सर्जरी का क्रेज

बदलते जमाने के साथ पुरुषों में भी तेजी से सजनेसंवरने की चाह बढ़ रही है. वे तेजी से प्लास्टिक सर्जरी की तरफ रुख कर रहे हैं. पहले यह चलन जहां विदेशों में और सेलिब्रिटीज के बीच था, वहीं अब आम व्यक्ति इस से अछूता नहीं है. भारतीय युवकों को भी अब अपने शरीर के बेडौल हिस्से नागवार गुजरने लगे हैं. आज के पुरुष अधिक आमदनी अर्जित कर रहे हैं और वे सिर्फ घर की जिम्मेदारियों तक सीमित नहीं हैं. अब वे अपनी कमाई का काफी हिस्सा खुद पर खर्च कर रहे हैं.

भारतीय कौस्मैटिक उद्योग की नई रिपोर्ट इंडियन कौस्मैटिक सैक्टर एनालिसिस की मानें तो पुरुषों में संजनेसंवरने की चाह को देखते हुए पुरुष कौस्मैटिक का बाजार 20 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है. पिछले कुछ वर्षों में पुरुषों के कौस्मैटिक उत्पाद काफी लोकप्रिय हुए हैं. कौस्मैटिक सर्जनों का कहना है कि पुरुष अपने उभरे हुए सीने को सुगठित आकार देने के लिए सर्जरी यानी गाइनेकोमेस्टिया कराने के लिए अधिक संख्या में आते हैं. साथ ही नाक को मनचाहा आकार देने के लिए युवा नोज जौब और रानोप्लास्टी भी करवाते हैं.

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युवा दिखने के लिए पुरुषों में आइलिड सर्जरी भी लोकप्रिय उपचार है. इस में उन की ऊपरी और निचली पलक से वसा, मांसपेशी व ढीली त्वचा निकाली जाती है जिस की वजह से वे युवा दिखते हैं. चेहरे की ?ार्रियों, सिकुड़न, ढीलापन, चेचक, कीलमुहांसे या उन के दाग, सफेद दाग, चेहरे पर कटे या जले के दाग और आंखों के नीचे पड़े गहरे काले धब्बे को दूर करने, पेट की चरबी को हटाने, बाल प्रत्यारोपण से गंजापन दूर कराने, कृत्रिम मसल्स आदि के लिए कौस्मैटिक सर्जरी का सहारा ले रहे हैं.

हर उम्र में कौस्मैटिक सर्जरी

प्लास्टिक व कौस्मैटिक सर्जन डा. चिरंजीव के अनुसार, हमारे यहां हर उम्र के पुरुष आते हैं. युवकों के साथसाथ अधेड़ उम्र के लोग भी कौस्मैटिक सर्जरी से खुद को आकर्षक बनाना चाहते हैं. आमतौर पर पुरुष धंसी ठुड्डी को ठीक कराने, ?ार्रियों से छुटकारा पाने, पलकों को ठीक कराने, आकर्षक चेहरा पाने के लिए आते हैं. इस के अलावा स्लिमट्रिम और मर्दाना व्यक्तित्व पाना भी उन की ख्वाहिश होती है.

आकर्षक दिखना जरूरी है

डा. चारू शर्मा बताती हैं कि कौस्मैटिक सर्जरी कराने के लिए ब्यूटी क्लिनिकों में पुरुषों का अनुपात महिलाओं को छूने लगा है. अब पुरुष अपने सौंदर्य व व्यक्तित्व को ले कर अधिक सतर्क हो गए हैं. आजकल के युवाओं का मानना है कि कैरियर के लिए आकर्षक दिखना बहुत जरूरी है. युवाओं का मानना है कि अच्छी शक्लसूरत से उन में कौन्फिडैंस आता है जो उन के काम में ही नहीं तरक्की में भी सहायक है.

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अंगों की सर्जरी कराते पुरुष

कौस्मैटिक ?सर्जन के अनुसार, आमतौर पर कौस्मैटिक सर्जरी में पुरुष फेस लिफ्ट सब से अधिक कराते हैं. 14 प्रतिशत पुरुष फेस लिफ्ट कराते हैं जबकि 11 प्रतिशत पुरुष कानों की कौस्मैटिक सर्जरी कराते हैं. करीब 10 प्रतिशत साफ्ट टिश्यू फिलर कराते हैं तथा करीब 9 प्रतिशत बोटोक्स कराते हैं. 7 प्रतिशत लाइपोसक्शन कराते हैं जबकि 6 प्रतिशत छाती के उभार को कम करने की सर्जरी कराते हैं. वहीं 4 प्रतिशत पलकों, 4 प्रतिशत डर्माब्रैजन, 4 प्रतिशत बाल प्रत्यारोपण और 4 प्रतिशत पैरों की उभरी हुई नसों को ठीक कराने की सर्जरी कराते हैं.

पार्लर में युवाओं की तादाद

विशेषज्ञों का कहना है कि यह बीते दिनों की बात हो गई जब युवा फिटनैस और चुस्तीतंदुरुस्ती के लिए जिम जाते थे. आज के युवा अपने त्वचा और चेहरे को ले कर काफी जागरूक हैं. इस के लिए वे बेहिचक कौस्मैटिक सर्जरी या सौंदर्य प्रसाधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं. यही वजह है कि पुरुषों का कौस्मैटिक बाजार 1 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का हो गया है. सौंदर्य के प्रति बड़े शहरों में ही नहीं बल्कि छोटे शहरों के युवाओं में भी काफी क्रेज देखने को मिल रहा है.

आज मैंस पार्लर में जाने वालों में हर आयु वर्ग के लोग शामिल हैं. बालों की खूबसूरती बढ़ाने के लिए पुरुषों में हेयर स्पा का चलन भी खूब देखा जा रहा है. हेयर स्पा की पूरी प्रक्रिया में औयल मसाज, शैंपू हेयरमास्क और कंडीशनिंग की जाती है. इस प्रक्रिया में लगभग 1 घंटा तक लग जाता है.

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इस के अतिरिक्त पुरुष मैंस पार्लर में विभिन्न हेयरस्टाइल, फेशियल और हेयर कलरिंग के साथसाथ पुरुष चैस्ट वैक्ंिसग भी कराते हैं. गोरा रंग पाने का शौक अब लड़कियों में ही नहीं बल्कि पुरुषों में भी देखा जा रहा है और इस के लिए वे तमाम यत्न कर रहे हैं. आकर्षक दिखने के लिए पुरुषों में आजकल टैटू गुदवाने का भी खासा क्रेज है. सैफ अली खान ने जब से करीना का टैटू गुदवाया तब से युवाओं में इस चलन ने खासा जोर पकड़ा है.

सुंदर बालों का शौक

हेयर ट्रांसप्लांट सर्जन डा. मधु कहती हैं कि सुंदर बालों का शौक अब लड़कियों तक नहीं रह गया है बल्कि आज के पुरुष भी सुंदर बाल पाने के लिए काफी पैसा खर्च कर रहे हैं. हमारे क्लिनिक में हर आयुवर्ग के पुरुष आते हैं. अब इस में उम्र की कोई सीमा नहीं रह गई है. पुरुषों के आदर्श कई ऐसे फिल्मी कलाकार हैं जो कहते हैं कि अभी तो मैं जवान हूं, बुड्ढा होगा तेरा बाप.

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सोचा न था : भाग 3

उन के कमरे में जाते ही भैया ने ऊपर अपने कमरे में जा कर पिट्ठू बैग उठाया और बाहर खड़ी अपनी बाइक ले कर तुरंत कहीं निकल गया. मैं जब तक उसे रोकती, पापा ने मुझे आवाज दे कर कमरे में बुला लिया.

मां के सीने में बाईं तरफ तेज दर्द उठने लगा था और वे अपनी छाती पर हाथ रखे जोरों से कराह रही थीं.        मैं पास पहुंची, तो पापा ने मुझे मां के पास बिठाया  और बताया, “तेरी मां को माइनर हार्ट अटैक पड़ा है. अभी तो आराम करने देते हैं. नींद आ गई तो ठीक, नहीं तो रात में ही अस्पताल ले जाना होगा. तू आशीष को बुला कर ला.”

“वह तो अपना पिट्ठू बैग ले कर बाइक से कहीं चला गया है.”   “ओह,” पापा ने इतना ही कहा, फिर मुझ से बोले,“अच्छा ऐसा कर, तू मेरे लिए एक कप कौफी बना कर ले आ. पापा मां को ले कर बहुत चिंतित हो गए थे. ऐसा दर्द मां को दूसरी बार उठा था. इस से पहले भी उन्हें तब अस्पताल में भरती कराया गया था, जब गोद भराई की रस्म के बाद किरन दीदी अपनी सहेली के पति की डेथ पर मां को बिना बताए मुझे साथ ले कर चली गई थी.

और जब पता चला कि वह गमी में गथी, तो उन्होंने घर सिर पर उठा लिया था.                                   “तुझे पता है कि तू ने कितना बड़ा अनर्थ कर डाला. एंगेजमेंट के बाद किसी के यहां गमी में जाना कितना बड़ा अपशकुन है. शादी टूट तक सकती है.” “मां, मुझे तुम्हारी ये दकियानूसी बातें बिलकुल पसंद नहीं हैं.”

बस दीदी का इतना कहना  था कि मम्मी आगबबूला हो उठीं, “बड़ी जबान चलने लगी है तेरी…”“इस में जबान चलने जैसा क्या है मां? किसी के दुख में शरीक होने से ऐसा कुछ नहीं होता.” ये तर्कवितर्क मां को बरदाश्त नहीं हुआ और अपने स्वभाव के कारण वे इतना चिल्लाईं कि बीपी हाई होने के साथ ही दिल का दौरा पड़ गया. यहां तक कि उन्हें अस्पताल में भरती कराना पड़ा.

तब पापा ने हमें समझाया था कि तुम दोनों अपनी मां से ज्यादा उलझा मत करो. उन का पूरा खयाल रखा करो. तब से हम भी उन से बहस न कर के उन की हर बात मान लेते. उन्हें खुश रखने का भी प्रयास करते.

लेकिन मां ना जाने किस मिट्टी की बनी थी कि यदि उन के मन की बात न पूरी हो तो वे हमारी तुरंत क्लास ले डालतीं, फिर ये भी नहीं देखतीं कि हम यूनिवर्सिटी से थकेहारे अभी ही लौटे हैं या भैया अपने एग्जाम की तैयारी में जुटा है. बस उन के मुंह से निकली बात तुरंत  पूरी होनी चाहिए. अभी कुछ महीने पहले की ही तो बात है. भैया अपना फार्मेसी का दूसरा पेपर दे कर घर में घुसा ही था कि मां उसे स्टील का बड़ा सा कटोरदान पकड़ाती हुई बोली, “तुम कपड़े बाद में बदलना. पहले ये गाजर का हलवा सुजाता आंटी को दे आ. मैं ने खूब मेवे डाल कर बनाया है. उर्मिला को भी मेरे हाथ का बना हलवा बहुत पसंद है.”

लेकिन भैया ने साफ मना कर दिया, “मां, मैं अभी नहीं जा सकता. कल सवेरे मेरा इंपोर्टेंट पेपर है. मुझे उस की तैयारी करनी है.”तैयारी केपूरी रात पड़ी है…” मां कुछ आगे बोलती, भैया ने साफ मना कर दिया, “मां, मैं कई बार कह चुका हूं कि मुझे सुजाता आंटी के यहां  जाना  बिलकुल भी पसंद नहीं है. मैं वहां नहीं जाऊंगा,” कह कर भैया तेजी से सीढ़ियां चढ़ता हुआ ऊपर अपने कमरे में चला गया.

उस के बाद तो मां को संभालना मेरे लिए मुश्किल हो गया. वह तो अच्छा हुआ कि उस दिन पापा यूनिवर्सिटी से थोड़ा जल्दी आ गए थे और तुरंत ही परिस्थिति समझते हुए अपने साथ कार में बैठा कर मां को सुजाता आंटी से मिलाने ले गए.

कई दिन से वे उन से मिली भी नहीं थीं और अपनी गोरी, गुदगारी और गुचमा होने वाली बहू को भी नहीं देखा था. घर में ऐसा तनाव मैं बचपन से ही देखती आ रही थी, पर आज 25  साल के भैया पर मां का यों हाथ उठाना मुझे किसी तरह से भी उचित नहीं लगा था. सोचने लगी, “क्या मैच्योर बच्चों को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए?”

इस मामले में मुझे पापा के विचार बचपन से ही पसंद आते थे. ऐसी स्थिति में वे अकसर कह देते थे, “बेटे, मातापिता का फर्ज बच्चों को अच्छी शिक्षा और संस्कार देना है. और ऐसा इस जीवन में अगर हम कर सके तो बच्चे जो भी निर्णय लेंगे, उन का गलत होने का प्रतिशत ना के बराबर होगा.

किरन दीदी ने शादी से पहले जब पापा से कहा था कि, पापा, आप कोई और रिश्ता देख लो. मुझे तो ये लड़के वाले बड़े मंगतू लग रहे हैं. पहले ही इतनी डिमांड उन्होंने पूरी करवा ली और अब कार भी मांग रहे हैं, तो पापा बोल पड़े थे, “तू बात तो सही कह रही है. अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है. उन्हें मना किया जा सकता है…”तभी मां चीख पड़ी थी, “जब मैं ने लड़का पसंद कर लिया है और लड़के के साथ समधन ने भी किरन को पसंद कर लिया है. मैं इस रिश्ते को हाथ से जाने नहीं दूंगी. किरन की शादी इसी लड़के से होगी. रही कार की बात तो क्या उस का इंतजाम हम नहीं कर सकते. अरे, शादी के बाद मेरी लाडली ही तो उस में बैठ कर घूमेगी.”

आखिर मां किरन की शादी वहीं करवा कर मानी. मां को लगता था कि उन्होंने अपनी जिद से किरन की शादी जिस उच्च कुलीन ब्राह्मण परिवार के कुंडली शास्त्र के ज्ञान में पारंगत भृगु संहिता के आधार पर लोगों का भविष्यफल बता कर पैसा कमाने वाले 30 वर्षीय ज्योतिषाचार्य पंडित विमल चतुर्वेदी से की है, वह अपनी ससुराल में सुख से रह रही है.

परंतु किरन दीदी के ससुराल की सुखसचाई से मैं पूरी तरह परिचित थी, क्योंकि दीदी से जब भी बात होती तो अकसर वह अपनी व्यथा सुनाते हुए रो पड़तीं. वे कहतीं, “सिमरन इस घर में बड़ी भाभी को छोड़ कर सब में अपने पांडित्य का अहंकार और घमंड इतना कूटकूट कर भरा है कि मन करता है कि इन सब की कुंडलियां भी किसी सुयोग्य पंडित से जंचवाऊं. बड़ी भाभी तो विमल को टोक भी चुकी हैं.”

“तू कब तक उलटेसीधे उपाय और फालतू का कुंडली भाग्यफल बता कर लोगों को ठगता रहेगा. अरे, कभी किरन को कहीं घुमानेफिराने और पिक्चर दिखाने भी ले जाया कर. उसे केवल घर के काम में उलझाए रखना और बच्चे पैदा करने के लिए ही तू ब्याह कर लाया है. ऐसी बातें सुन कर मैं समझ जाती कि दीदी ससुराल में कितनी सुखी हैं.

मम्मी के पास बैठे पापा को कौफी पकड़ा कर मैं ऊपर भैया वाले कमरे में पहुंची. भैया को कई बार फोन मिलाया, पर स्.उस रात घर पर पढ़ने में मेरा मन न लगा. मम्मी अभी तक बेसुध थीं. मैं ने पापा को खाना खिलाया, खुद भी खाया, फिर अपने कमरे में जा कर लेट गई.

4 साल पहले इसी कमरे में किरन दीदी के साथ बिताए बचपन से अब तक के समय को याद करतेकरते मैं सो गई.सवेरे मां उठ तो गई थीं, पर चेहरे पर उदासी और चुप्पी छाई हुई थी.

 

मैं समझ गई कि मां के होश में आने के बाद पापा उन्हें रातभर समझाते रहे होंगे. उन्होंने बता दिया होगा कि भैया घर छोड़ कर चला गया है.

Anupamaa सीरियल की फैन हैं Asha Bhosale, एक भी एपिसोड नहीं करती मिस

अनुपमा टीवी के उन सीरियल्स में से हैं जिसे देखना खूब पसंद किया जाता है. इस शो की जबरदस्त फैंन फॉलोविंग हैं. स्टार प्लस के इस सुपरहिट सीरियल में आएं दिन शानदार ट्विस्ट आते रहते हैं. शायद यहीं वजह है जो फैंस न चाहते हुए भी इस शो से दूरी नहीं बनाना चाहते हैं.

अब बॉलीवुड सेलिब्रिटीज भी इस सीरियल के फैन बनने लगे हैं. बॉलीवुड सितारों को भी इस सीरियल की कहानी पसंद आ गई है. हाल ही में शो के प्रॉड्यूसर राजन शाही ने इस बारे में खुलासा किया है कि आशा भोसले उनके सीरियल अनुपमा की बहुत बड़ी फैन है .वह इस सीरियल का एक भी एपिसोड मिस नहीं करना चाहती हैं. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि अनुपमा सीरियल को लेकर उन्होंने काफी लंबे समय तक अकेले में उनसे बात करती रही.

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उन्होंने कहा कि सीरियल अनुपमा का हर किरदार स्ट्रांग प्वाइंट ऑफ व्यू से बनाया गया है, वहीं रूपाली गांगूली के किरदार की भी वह जमकर तारीफ करती नजर आईं, आशा भोंसले ने कहा कि वह सबसे स्ट्रांग किरदार है इस सीरियल की इसके दम पर ही टीआरपी टीकी हुई है.

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इतना ही नहीं राजन शाही ने बताया कि आशा भोसले चाहती है कि अनुपमा 1 घंटे के लिए टीवी पर ऑनएयर हो , जिसे दर्शक और भी ज्यादा प्यार दें सकें. इतना ही नहीं आशा भोसले ने राजन शाही की मां को बधाई दी जो इस शो की प्रॉड्यूसर है. उन्होंने कहा कि इस सीरियल की कहानी काफी ज्यादा दिलचस्प है. जिसे देखने के लिए सभी इंतजार करते रहते हैं.

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सलमान खान का कंट्रोवर्सियल शो बिग बॉस 15 का प्रोमो मार्केट में आ गया है, इसके साथ ही इस शो को लेकर कई तरह की चर्चा भी शुरू हो गई है. 3 अक्टूबर से इस शो में हिस्सा लेने वाले प्रतियोगी दिखने लगेंगे.

इसी बीच मेकर्स ने शो के कुछ ऐसे वीडियो जारी किए हैं जिसमें करण कुंद्र , सिंगर अफसाना खान, तेजस्वी प्रकाश के साथ साथ और भी कई सारे सितारे हिस्सा लेते नजर आ रहे हैं. वहीं अफसाना खान इस वीडियो में हम यार तेरा तितलियां वर्गा गाना गुनगुनाती नजर आ रही हैं.

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इससे पहले बिग बॉस ओटीटी कुछ दिनों तक पर्दे पर धमाल मचाए हुए था, जिसके खत्म होने के कुछ वक्त बाद ही इस शो की शुरुआत की जा रही है. अब देखना यह है कि यह शो हर साल की तरह इस बार भी अपने फैंस का दिल जीत पाता हैं या नहीं.

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खबर है कि कलर्स टीवी का मशहूर सीरियल शक्ति अस्तित्व की एहससा में लीड रोल में नजर आने वाले एक्टर सिम्बा नागपाल भी इस शो में 15वें नंबर के कंटेस्टेंट हैं. जिन्हें रियल लाइफ में देखने के लिए फैंस अभी से काफी ज्यादा एक्साइटेड हैं. सिम्बा की एक्टिंग लोगों को काफी ज्यादा पसंद आती है.

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वहीं अगर पहले नंबर की कंटेस्टेंट की बात की जाए तो वह तेजस्वी प्रकाश बन चुकी हैं. इन्हें खतरों से खेलने वाली एक्ट्रेस के तौर पर पेश किया जाता है. वहीं दूसरे नंबर पर करण कुंद्रा का नाम आया है जो हसिनाओं के दिलों के साथ खेलना पसंद करते हैं.

सरकार किसानों के जीवन में व्यापक बदलाव लाने के लिए हर सम्भव कदम उठाने के लिए तत्पर : मुख्यमंत्री

लखनऊ . उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि राज्य सरकार किसानों के जीवन में व्यापक सकारात्मक बदलाव लाने के लिए हर सम्भव कदम उठाने के लिए तत्पर है. उन्हांेने कहा कि राज्य सरकार ने गन्ना किसानों के हित में गन्ना मूल्य में वृद्धि का निर्णय लिया है. 325 रुपये प्रति कुन्तल के गन्ने का गन्ना मूल्य बढ़ाकर 350 रुपये प्रति कुन्तल, 315 रुपये प्रति कुन्तल के सामान्य गन्ने का गन्ना मूल्य 340 रुपये प्रति कुन्तल तथा अनुपयुक्त गन्ने के गन्ना मूल्य में 25 रुपये प्रति कुन्तल वृद्धि की जा रही है. गन्ना मूल्य में इस वृद्धि से प्रदेश के 45 लाख गन्ना किसानों की आय में 08 प्रतिशत की अतिरिक्त बढ़ोत्तरी होगी. उन्हांेने विश्वास व्यक्त किया कि केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं से प्रोत्साहित होकर किसान उत्पादन क्षमता बढ़ाकर प्रदेश को देश का अग्रणी राज्य बनाएंगे.

मुख्यमंत्री जी आज यहां आयोजित किसान सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे. किसान सम्मेलन में हल भेंट कर मुख्यमंत्री जी का स्वागत किया गया.

किसान सम्मेलन में किसानों का स्वागत करते हुए मुख्यमंत्री जी ने कहा कि अन्नदाता किसान कठिन परिश्रम करके अन्न पैदा करता है. अन्न जीवन चक्र का आधार है. किसान द्वारा अपने परिश्रम और पुरुषार्थ से बिना भेदभाव के सभी के लिए अन्न उत्पन्न करना पुण्य का कार्य है. इससे पूर्व, कृषि विभाग द्वारा आयोजित प्रदर्शनी का उद्घाटन करने के पश्चात उन्होंने प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया. प्रदर्शनी में कृषि उत्पादक संगठनों के उत्पाद, आधुनिक कृषि यंत्रों, पराली प्रबन्धन विधियों, जैविक कृषि उत्पादों आदि को प्रदर्शित किया गया था.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्ष 2014 मंे श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने पर देश का भाग्योदय हुआ. प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व की सरकार ने गांव, गरीब, नौजवान, महिलाओं तथा समाज के सभी तबकों के लिए कार्य किया. धरती माता की सेहत का ध्यान रखा जा सके, इस उद्देश्य से उन्होंने मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी किया. कृषकों के हित और कल्याण के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री सिंचाई योजना जैसी योजनाएं संचालित की गयीं. वर्ष 2017 में वर्तमान राज्य सरकार के सत्ता में आने के बाद पहला निर्णय प्रदेश के 86 लाख लघु एवं सीमान्त किसानों का 36 हजार करोड़ रुपये का ऋण माफ करने का लिया गया.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि अन्नदाता किसान के खुशहाल होने से राज्य प्रगति और समृद्धि के मार्ग पर अग्रसर होता है. इस उद्देश्य से वर्तमान राज्य सरकार ने बिचौलियों को समाप्त कर सीधे किसानों से उनके कृषि उत्पादों की खरीद के लिए   अप्रैल, 2017 में प्रोक्योरमेन्ट पॉलिसी लागू की. विगत साढ़े चार वर्षाें में प्रदेश में किसानों से रिकॉर्ड मात्रा में उनके कृषि उपज की खरीद की गयी है. एम0एस0पी0 पर गेहूं खरीद के लिए पूर्ववर्ती सरकार ने 19,02,098 किसानों को 12,808 करोड़ रुपये का भुगतान किया. वर्तमान सरकार ने साढ़े चार साल के कार्यकाल में 43,75,574 किसानों को 36,405 करोड़ रुपये का भुगतान किया.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्ष 2017 में वर्तमान सरकार के सत्ता में आने पर पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यकाल का वर्ष 2009-10 से लेकर वर्ष 2018-19 तक का किसानों का गन्ना मूल्य भुगतान बकाया था. इससे गन्ने का रकबा सिकुड़ता जा रहा था. वर्तमान सरकार ने गन्ना किसानों के हित में बन्द चीनी मिलों का संचालन प्रारम्भ कराया. पिपराइच, मुण्डेरवा, रमाला में पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा बेची गयी चीनी मिलों के स्थान पर नये संयंत्र स्थापित कराए. साथ ही, बकाया गन्ना मूल्य का भुगतान सुनिश्चित कराया. विगत साढ़े चार वर्षों में किसानों को 01 लाख 44 हजार करोड़ रुपये के गन्ना मूल्य का भुगतान कराया गया. 30 नवम्बर, 2021 तक गन्ना मूल्य के भुगतान एवं चीनी मिलों के संचालन के निर्देश दिए गए हैं. कोरोना कालखण्ड में जब देश और दुनिया में चीनी उद्योग प्रभावित हो रहा था, वर्तमान राज्य सरकार ने तकनीक का उपयोग करते हुए प्रदेश की सभी 119 चीनी मिलों का संचालन कराया. जब तक किसानों के खेत में गन्ना उपलब्ध था, चीनी मिलें चलायी गयीं.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि केन्द्र व राज्य सरकार ने किसानों के हित को ध्यान में रखकर नीतियां बनायीं. वर्ष 1918 में स्पैनिश फ्लू में बीमारी के साथ-साथ भूख से भी बड़ी संख्या में मौत हुई. कोरोना के समय में प्रधानमंत्री जी के देशवासियों का जीवन और जीविका बचाने के संकल्प का अनुसरण करते हुए राज्य सरकार ने कार्य किया. देश व प्रदेश में किसी भी व्यक्ति की भूख से मृत्यु नहीं हुई. कोरोना के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के माध्यम से देश के 80 करोड़ व प्रदेश के 15 करोड़ लोगों को अप्रैल, 2020 से लेकर नवम्बर, 2020 तथा मई, 2021 से लेकर नवम्बर, 2021 तक निःशुल्क खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा रहा है.

मुख्यमंत्री जी ने प्रदेशवासियों को निःशुल्क खाद्यान्न एवं वैक्सीन उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री जी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि राज्य ने अब तक 10 करोड़ से अधिक कोरोना वैक्सीन की खुराक उपलब्ध कराने में सफलता प्राप्त की है. इससे प्रदेश में कोरोना का संक्रमण समाप्त प्राय हो गया है. उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण के सम्बन्ध में सावधानी व सतर्कता बरतने के साथ ही जीवन और जीविका को बचाने के लिए प्रभावी प्रयास जारी रहेंगे. राज्य सरकार ने पराली जलाने के सम्बन्ध में किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस ले लिए हैं.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में देश व प्रदेशवासियों का जीवन एवं जीविका बचाने के साथ ही किसानों के हित में लगातार कदम उठाए गए. किसान को 24 जिन्स के लिए लागत का डेढ़ गुना दाम दिलाने की घोषणा प्रधानमंत्री जी ने की. न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की गयी कृषि उपज की खरीद की धनराशि का भुगतान किसान के खाते में किया गया. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के माध्यम से बिना भेदभाव के सभी किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है. प्रदेश में 02 करोड़ 54 लाख किसान इससे लाभान्वित हो रहे हैं.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि किसानों को सिंचाई के बेहतर साधन सुलभ कराने के लिए प्रभावी कदम उठाए गए हैं. किसानों को सोलर पम्प तथा खेत-तालाब योजना के तहत लाभान्वित किया गया है. वर्षों से लम्बित बाणसागर परियोजना को पूर्ण कराकर प्रारम्भ कराया गया. अर्जुन सागर परियोजना बनकर लगभग तैयार हो चुकी है. अगले महीने इसे प्रधानमंत्री जी से राष्ट्र को समर्पित कराने के प्रयास किए जा रहे हैं. सरयू नहर परियोजना लगभग पूरी हो गयी है. इसके अलावा पहाड़ी बांध, जमरार बांध, रसिन बांध सहित विभिन्न परियोजनाओं को पूर्ण कराया गया है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि तराई एवं विन्ध्य क्षेत्र में अक्सर किसानों और जंगली जानवरों के मध्य संघर्ष हो जाता है. राज्य सरकार ने इसे आपदा घोषित करते हुए वन्य जीवों के हमले में मृत व्यक्ति के आश्रितों को 04 लाख रुपये अथवा कृषक बीमा योजना के तहत 05 लाख रुपये की धनराशि देने की व्यवस्था भी की. किसानों के बिजली बिल के सम्बन्ध में ब्याज माफ करते हुए एकमुश्त समाधान योजना के माध्यम से शीघ्र ही एक ठोस योजना लागू की जाएगी. प्रधानमंत्री जी ने सब्सिडी की दर बढ़ाकर डी0ए0पी0 और यूरिया की कीमतों में वृद्धि नहीं होने दी. किसानों को समय पर उर्वरक तथा विद्युत की सुचारु आपूर्ति सुनिश्चित की गयी.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि राज्य सरकार ने प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति को सुदृढ़ किया है. वर्तमान में खेत में किसान की मोटर सुरक्षित है, उसे कोई ले नहीं जा सकता. विगत साढ़े चार वर्षों में प्रदेश में कोई दंगा नहीं हुआ है. अवैध स्लॉटर हाउस बंद करा दिए गए हैं. राज्य सरकार द्वारा निराश्रित गोआश्रय स्थलों का संचालन कराया जा रहा है. यह व्यवस्था भी की गयी है कि कोई भी इच्छुक किसान निराश्रित गोवंश में से 04 गोवंश का पालन-पोषण करने के लिए अपने पास रख सकता है. इसके लिए उसे 900 रुपये प्रति गोवंश प्रति माह प्रदान किए जाने की व्यवस्था की गयी है. कुपोषित महिला अथवा कुपोषित बच्चों के लिए दूध की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु उनकी इच्छा पर एक निराश्रित गोवंश दिए जाने की व्यवस्था की गयी है. इस गोवंश के रख-रखाव के लिए उन्हें 900 रुपये प्रतिमाह प्रदान किए जाने की भी व्यवस्था है.

सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कृषि मंत्री श्री सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि केन्द्र व राज्य सरकार ने लगातार देश और समाज की उन्नति व समृद्धि तथा सभी वर्गों के उत्थान के लिए कार्य किया है. वर्तमान राज्य सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट में किसानों के ऋण माफ करने का निर्णय लिया. बड़ी मात्रा में किसानों से उनकी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क्रय की गयी. प्रदेश सरकार द्वारा किसानों को दिए जा रहे प्रभावी प्रोत्साहन से वर्तमान में राज्य गेहूं, गन्ना, आलू, सब्जी, फलों आदि के उत्पादन में देश में नम्बर एक है. किसानों को खाद, बीज, पानी की समय पर उपलब्धता से प्रदेश खाद्यान्न उत्पादन में देश में सबसे ऊपर है.गन्ना विकास मंत्री श्री सुरेश राणा ने अपने सम्बोधन में कहा कि पूर्ववर्ती सरकारों ने चीनी मिलों को बेचा और बंद किया.

मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में वर्तमान सरकार ने बंद चीनी मिलों का संचालन कराया. गन्ना किसानों के हित में कोरोना काल में भी जरूरी सतर्कता बरतते हुए सभी 119 चीनी मिलों का संचालन कराया गया. 18 से अधिक चीनी मिलों की पेराई क्षमता में वृद्धि की गयी. मुख्यमंत्री जी ने पूर्ववर्ती सरकारों के दौरान बकाया गन्ना मूल्य का भुगतान कराया. विगत साढ़े चार वर्षों में 01 लाख 44 हजार करोड़ रुपये के गन्ना मूल्य का भुगतान कराया गया है. खाण्डसारी उद्योगों को लाइसेंस देने से पेराई क्षमता में बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई है.

किसान सम्मेलन को पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं सांसद श्री राधा मोहन सिंह, सांसद श्री राजकुमार चाहर, विधान परिषद सदस्य श्री स्वतंत्र देव सिंह ने भी सम्बोधित किया.

इस अवसर पर महिला कल्याण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्रीमती स्वाती सिंह, उद्यान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री श्रीराम चौहान, कृषि राज्य मंत्री श्री लाखन सिंह राजपूत सहित अन्य जनप्रतिनिधिगण, शासन-प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी एवं बड़ी संख्या में कृषक समुदाय उपस्थित था.

सम्मेलन में अतिथियों का स्वागत श्री कामेश्वर सिंह ने किया. कार्यक्रम का संचालन श्री घनश्याम पटेल द्वारा किया गया. मंचासीन अतिथियों का स्वागत श्री सुधीर सिंह, श्री रामबाबू द्विवेदी एवं श्री सतेन्दर तुगाना ने किया.

नवजात बछड़े की देखभाल की वैज्ञानिक विधि

लेखक- वृंदा वर्मा, कार्तिकेय वर्मा व डा. संजीव कुमार वर्मा

किसी भी डेरी की कामयाबी के लिए जरूरी है कि उस डेरी की प्रजनन के काबिल सभी गाय हर साल बच्चा पैदा करें. साथ ही साथ यह भी जरूरी है कि पैदा हुए सभी बच्चे जिंदा रहें.

आमतौर पर यह देखा गया है कि समुचित पोषण व देखभाल की कमी में नवजात बछड़े जन्म के पहले महीने के अंदर ही मर जाते हैं और अगर जिंदा रहे भी तो कुपोषण के चलते बड़े होने पर अपनी आनुवंशिक क्षमता का सही से प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं. इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि नवजात बछड़ों की देखभाल वैज्ञानिक विधि से की जाए, ताकि वे सेहतमंद रह कर एक बेहतरीन गाय या सांड़ अथवा बैल बन सकें.

जन्म के तुरंत बाद देखभाल

* जन्म के समय बछड़े या बछिया की नाक और मुंह पर चिपचिपा पदार्थ लगा रहता है जिस के चलते उसे सांस लेने में परेशानी

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हो सकती है, इसलिए जन्म के तुरंत बाद  नाक और मुंह पर लगी श्लेष्मा या कफ को हटा दें.

* गाय को बछड़े या बछिया को चाटने दें, ताकि गाय उस के नथुनों और मुंह को चाट कर साफ कर सके और बच्चे को सांस लेने में कोई कठिनाई न हो और उस का रक्त संचार तेज हो सके.

* बच्चे की नाभि को शरीर से 2 से  5 सैंटीमीटर की दूरी पर बांधें और बांधने के स्थान के 1 सैंटीमीटर नीचे नए ब्लेड से एक कट लगाएं और लटकती नाभि नाल पर टिंचर आयोडीन या बोरिक एसिड या कोई भी दूसरी एंटीसैप्टिक क्रीम लगाएं.

* बच्चे के जन्म के समय के भार को रिकौर्ड करें, क्योंकि जन्म भार के अनुसार ही उसे खीस पिलाया जाना है.

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* गाय के अयन और थनों को  क्लोरीन या पोटैशियम परमेगनेट के घोल से धोएं और सुखाएं.

* नवजात बछड़े या बछिया को गाय का पहला दूध, जिसे खीस भी कहते हैं, भरपेट चूसने दें. जन्म के पहले 4 घंटे में खीस पिलाया जाना बहुत जरूरी होता है.

खीस पिलाना

* प्रसव के बाद स्रावित पहला दूध खीस कहलाता है, जिस में बड़ी मात्रा में गामा ग्लोब्युलिन होता है. यह नवजात को जन्मजात प्रतिरक्षा प्रदान करता है और उस के आगामी जीवन में होने वाले रोगों से लड़ने के लिए जरूरी एंटीबौडी प्रदान करता है.

* खीस पोषक तत्त्वों का बेहतरीन स्रोत है. इस में सामान्य दूध की अपेक्षा प्रोटीन 7 गुना पाया जाता है और यह प्रोटीन विशेष प्रकार का होती है, जिस का अवशोषण नवजात के शरीर में जन्म के पहले 4 घंटों के दौरान सब से ज्यादा होता है. खीस में विटामिन ए भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.

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* खीस रेचक प्रभाव भी देता है और मेकोनियम (पहले मल) के निष्कासन में सहायक होता है.

* पिलाए जाने वाले खीस (कोलोस्ट्रम) की मात्रा शरीर के वजन पर निर्भर करती है. जन्म के पहले 12 घंटों में बछड़े के शरीर भार का 5-8 फीसदी खीस पिलाना चाहिए.

* दूसरे दिन बछड़े के शरीर का तकरीबन 10 फीसदी खीस पिलाना चाहिए.

* तीसरे दिन बछड़े के शरीर का तकरीबन 10 फीसदी खीस पिलाना चाहिए.

आदर्श फीडिंग शैड्यूल

* जन्म के पहले 3 दिनों तक खीस (कोलोस्ट्रम) पिलाना चाहिए.

* जन्म के चौथे से 40वें दिन तक सामान्य दूध या सपरेटा दूध ही पिलाना चाहिए.

* जन्म के 41वें से 90वें दिन तक दुग्ध प्रतिस्थापक पिलाना चाहिए.

दुग्ध प्रतिस्थापक

बनाने का फार्मूला

संघटक  फीसदी

जौ का दलिया   45

मूंगफली की खली 30

गेहूं का चोकर    8

सपरेटा दूध का पाउडर    10

खनिज मिश्रण   2

शीरा    5

एक किलोग्राम दूध को प्रतिस्थापित  करने के लिए उपरोक्त मिश्रण में से 200 ग्राम ले कर उसे सवा लिटर कुनकुने पानी में घोल कर पिलाएंगे.

* जन्म के तीसरे हफ्ते से 90वें दिन तक काफ स्टार्टर भी खिलाना चाहिए. जन्म के तीसरे हफ्ते में 100 ग्राम, चौथे हफ्ते में 200 ग्राम, 5वें हफ्ते में 300 ग्राम, छठे हफ्ते में 500 ग्राम, 7वें और 8वें हफ्ते में 1 किलोग्राम और 9वें से 12वें हफ्ते में सवा किलोग्राम काफ स्टार्टर दिया जाना चाहिए.

काफ स्टार्टर बनाने

का फार्मूला

संघटक  फीसदी

मक्का का दलिया 42

मूंगफली की खली 35

गेहूं का चोकर    10

मछली का चूरा   10

खनिज मिश्रण   2

नमक   1

बछड़ों को ज्यादा

दूध पिलाने से बचें

* खीस (कोलोस्ट्रम) के अधिक सेवन से बछड़ों को दस्त लग सकते हैं, इसलिए  खीस बछड़े के शरीर भार के 10वें हिस्से से अधिक नहीं पिलाना चाहिए. उच्च वसा फीसदी वाला दूध भी दस्त की वजह बनता है, इसलिए बछड़ों को तीसरे हफ्ते से सरपेटा दूध ही दिया जाना चाहिए.

* मां की अचानक मौत या एगैलेक्टिया (दूध का ना उतरना) के मामले में प्राथमिकता तो किसी दूसरी गाय के खीस को ही दी जानी चाहिए और खीस न मिलने की हालत में खीस (कोलोस्ट्रम) के अन्य विकल्प का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इस के लिए 1 लिटर दूध में 2 पूरे अंडे व 30 मिलीलिटर अरंडी का तेल मिला कर दिन में 3 बार पिलाना चाहिए.

युवा स्टाक को खिलाना

* शुरू के पहले 3 महीने में बछड़े का रुमेन काम नहीं करता है. इसे पूरी तरह से विकसित होने में कम से कम 3 महीने लगते हैं, तब तक बछड़े को गैरजुगाली करने वाला माना जाना चाहिए और सैल्यूलोज वाला आहार देने से बचना चाहिए.

* बछड़ों को 3 महीने का होने के  बाद मुलायम दलहनी घास को देना शुरू कर देना चाहिए.

* बछड़े के फीड में जरूरी अमीनो एसिड, विटामिन ए, विटामिन डी के अलावा विटामिन बी कौंप्लैक्स भी जरूर शामिल

होने चाहिए.

* बछड़ों में गैरप्रोटीन नाइट्रोजन यौगिक का उपयोग करने की क्षमता कम होती है, इसलिए यूरिया जैसे पदार्थ खिलाने से

बचना चाहिए.

* बछड़ों को खनिज ब्लौक उपलब्ध कराए जाएं, ताकि बछड़ा चाट सके और खनिज लवणों की कमी से बचा जा सके.

 

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