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धार्मिक मुद्दा : अमूल्य है गाय तो फिर दान क्यों?

गाय का सब से बड़ा धार्मिक महत्त्व ‘गौदान’ को ले कर ही है. आज के दौर में कोई भी ब्राह्मण ‘गौदान’ नहीं लेना चाहता. आज ‘गौदान’ का संकल्प ले कर उस की कीमत के बराबर नकद देने का चलन है. गाय की कीमत के बराबर बहुत कम लोग दान देते हैं. दान लेने वाले ब्राह्मण को यह इस कारण स्वीकार होता है क्योंकि वह गाय पालने की ?ां?ाट से बच जाता है. आज अगर गाय दान में ली जाती तो वे सड़कों पर भटकती न मिलतीं. पूरा समाज अगर गाय को देवतुल्य मानता, तो गाय का इतना निरादर न होता. गाय की हालत बताती है कि उस को ले कर केवल वोटबैंक और प्रचार की राजनीति काम कर रही है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव की बैंच ने जावेद की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए जावेद के अपराध को ले कर कम चर्चा की, जबकि गाय के महत्त्व को ले कर अधिक लिखा. जस्टिस शेखर कुमार यादव ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का सु?ाव दिया. इस फैसले में गाय के तमाम ऐसे गुणगान लिखे हैं जो जमानत की सुनवाई से अलग थे. हमारे देश में गाय एक चुनावी मुद्दे की तरह है, जिस को ले कर होहल्ला तो बहुत होता है पर उस का जमीनी सच अलग होता है. भारतीय जनता पार्टी ने गाय को धर्म से जोड़ा. इस से उस को वोट भले मिल गए पर गाय के नाम पर धार्मिक तानाबाना टूट रहा है.

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गाय को ले कर देश में मौबलिंचिंग की तमाम घटनाएं घटीं. सड़कों पर गायों को टहलते देखा जा सकता है. कई बार सड़कों पर गाय दुर्घटना का कारण बनती है. कई बार खुद दुर्घटना का शिकार भी हो जाती है. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने गांवगांव जानवरों के आश्रय स्थल खुलवाए, जहां गाय को रखे जाने की व्यवस्था की गई. वहां भी गाय की हालत दयनीय है. भूखीप्यासी गाय के समाचार छपते रहते हैं. गाय को वोट लेने के लिए देवतुल्य तो बना दिया गया पर उन के लिए उचित व्यवस्था नहीं की गई.

जस्टिस शेखर कुमार यादव ने अपने फैसले में इन हालात का भी जिक्र किया है. सोशल मीडिया पर उस की चर्चा नहीं हुई. सोशल मीडिया पर केवल इस बात की चर्चा हो रही है कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाए. ऐसे फैसलों की न्यायिक वजह कुछ भी हो पर इस तरह के फैसलों का राजनीतिक लाभ लेने के लिए राजनीतिक पार्टी, नेता और उन के कार्यकर्ता तैयार रहते हैं. हाईकोर्ट के फैसले के बाद गाय चर्चा में है. इस तरह के फैसलों से गाय पालने वालों और उन का संरक्षण करने वालों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा.

फैसले में गौशाला खोलने वालों की नीयत पर भी सवाल उठाए गए हैं. ऐसी हालत में गाय का पालना लोग बंद कर देंगे. बूढ़ी गाय को भी सुरक्षित रखने की बात कही गई है. गाय का मूत्र एंटीबायोटिक है और गाय औक्सीजन ही लेती है और औक्सीजन ही छोड़ती है जैसे तर्क भी दिए गए हैं. गाय के साथ ऐसे फैसलों से गाय की कमर्शियल वैल्यू जीरो हो जाएगी. लोग गाय पालना छोड़ देंगे. गाय को पूजनीय बना कर यह बताया जा रहा है कि गाय केवल दान में ही दी जा सकती है. गाय का दूध निकालना भी एक तरह का अपराध ही है.

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क्या है घटनाक्रम

उत्तर प्रदेश के संभल जिले के नखासा थाना क्षेत्र के रहने वाले जावेद पर गांव के लोगों ने गाय की चोरी, उस को मारने और गोमांस की तस्करी का आरोप लगा कर मुकदमा लिखाया था. मुकदमा अपराध संख्या 59/2021 धारा 379 भारतीय दंड संहिता एवं धारा 3/5/8 गौवध निवारण अधिनियम में लिखा गया था. पुलिस ने जावेद को इस आरोप में 8 मार्च, 2021 को जेल भेज दिया था. जावेद के घर वालों ने जमानत के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी.

जावेद की तरफ से वकील मोहम्मद इमरान खान और राज्य की तरफ से शासकीय अधिवक्ता शिवकुमार पाल व अपर शासकीय अधिवक्ता मिथिलेश कुमार ने तथ्यों के आधार पर बहस की. सितंबर माह में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जावेद की जमानत याचिका खारिज करते हुए जो तर्क दिए, वे चर्चा में हैं.

घटनाक्रम के अनुसार, खिलेंद्र सिंह ने एफआईआर लिखाई कि 9 फरवरी, 2021 की रात्रि में वह अपने घर के अंदर परिवार के साथ सो रहा था. रात में अज्ञात चोर उस की गाय, उम्र करीब 5 वर्ष, रंग काला व सफेद, सींग 6-6 अंगुल लंबे, चोरी कर के ले गए. सुबह जागने के बाद जानकारी हुई तभी से वह परिजनों के साथ गाय की तलाश कर रहा है लेकिन कहीं कोई पता नहीं चला.

उक्त गाय कटी हालत में 2 अन्य कटी हुई गायों के साथ जंगल में पाई गई जहां अभियुक्तगण छोटे, जावेद, शुऐब, अरकान व रेहान तथा 2-3 अन्य व्यक्ति गाय को काट कर मांस इकट्ठा करते हुए टीकम सिंह आदि द्वारा देखे गए. मुकदमा लिखाने वाले खिलेंद्र सिंह भी मौके पर पहुंचे तथा उस के द्वारा अपनी गाय की उस के कटे हुए सिर से पहचान की.

पक्ष और विपक्ष की राय

जावेद के वकील मोहम्मद इमरान खान ने कहा कि जावेद निर्दोष है. उसे इस प्रकरण में ?ाठा फंसाया गया है. यह भी तर्क रखा गया कि जावेद द्वारा कोई घटना नहीं की गई है. उस पर लगाए गए आरोप ?ाठे हैं. उस से गाय का कटा, मरा या जिंदा मांस बरामद नहीं हुआ है. वह घटनास्थल पर नहीं था और न ही वह भागा है. जावेद के खिलाफ पुलिस से मिल कर ?ाठा मुकदमा दर्ज कराया गया है. जावेद 8 मार्च, 2021 से जेल में है. ऐसी दशा में आवेदक जमानत पर मुक्त किए जाने योग्य है.

जावेद के वकील के तर्कों के विरोध में शासकीय अधिवक्ता शिवकुमार पाल एवं अपर शासकीय अधिवक्ता मिथिलेश कुमार द्वारा जमानत का विरोध किया गया तथा यह तर्क दिया गया कि जावेद के विरुद्ध लगाए गए आरोप बिलकुल सही हैं. जिन से यह साबित है कि अभियुक्त जावेद को टौर्च की रोशनी में देखा एवं पहचाना गया. अन्य 5 नामजद और 2-3 अज्ञात चोर वादी की गाय चोरी कर के ले गए और सुबह जब 4 बजे वादी गायों को चारा डालने गया तो पता चला कि गाय रात्रि में चोरी हो गई. शोरशराबा करने पर गांव के मुनव्वर के खेत में जलती रोशनी दिखी तो वहां अभियुक्त जावेद, सहअभियुक्त शुऐब, रेहान, अरकान व 2-3 अज्ञात, जो गाय को काट कर मांस इकट्ठा कर रहे थे, को टौर्च की रोशनी में पहचाना गया.

मौके पर ये लोग अपनी मोटरसाइकिल सीडी डीलक्स नं. यूपी  21 एबी 5014 को छोड़ कर भाग गए. टौर्च की रोशनी में देखा तो वादी की  2 गायों के सिर व एक अन्य गाय का सिर व मांस कटा हुआ पड़ा है. एक दूसरे गांव के खिलेंद्र ने बताया कि एक अन्य गाय का सिर तो उस की गाय का है जो आज रात को ही चोरी हो गई थी. गाय के कटे हुए सिर और मांस को देख कर गांव में रोष व्याप्त है. पशु चिकित्सक द्वारा भी कटे मांस को गाय का मांस होना बताया गया है.

अपर शासकीय अधिवक्ता द्वारा जोर दे कर कहा गया कि गौवध पूर्णरूप से प्रतिबंधित है तथा गायों को काटा जाना अपराध है. आवेदक को गाय काटते हुए देखा एवं पहचाना गया है. ऐसी दशा में आवेदक जमानत पर मुक्त किए जाने योग्य नहीं है.उल्लेखनीय है कि गाय का भारतीय संस्कृति में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है तथा गाय को भारत देश में मां के रूप में जाना जाता है और उस की देवी के रूप में पूजा की जाती है.

यहां पर पेड़पौधे, जल, पहाड़, वायु, पृथ्वी का भी पूजन किया जाता है. उन का वैज्ञानिक आधार यह है कि वे मनुष्य के जीवन में बड़े लाभकारी हैं. वे उन्हें जीवन देते हैं. भारत के लोगों की यह बहुत बड़ी पहचान है कि वे उदार होते हैं और अपनी उदारता के कारण वे जिस जीव में मनुष्य का कल्याण देखते हैं उसे अपना भगवान मान लेते हैं.

ऐसा ही कल्याण वे गाय में देखते हैं जो बलिष्ठ स्वस्थ होने के लिए दूध देती है. खाद्य हेतु गोबर देती है, विषाणुनाशक मूत्र देती है. वंश को बढ़ाने हेतु बछड़ा और बैल उत्पन्न करती है जो बड़ा होने पर खेती व जोताई करता है.

फैसले पर भारी पड़ा गाय का महत्त्व

हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव की बैंच ने गाय के महत्त्व को ले कर तमाम पौराणिक तथ्य दिए. उन्होंने कहा कि भारतीय वेद, शास्त्र, पुराण, रामायण और महाभारत, जो भारतीय संस्कृति की पहचान हैं, में गाय की बड़ी महत्ता दर्शायी गई है. गाय हमारी संस्कृति का आधार है. वैदिक ज्योतिषशास्त्र में गाय को वैतरणी पार करने के लिए गायदान की प्रथा के उल्लेख के साथ श्राद्धकर्म में गाय के दूध की खीर का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इस से पितरों को तृप्ति मिलती है.

सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु के साथसाथ वरुण, वायु आदि देवताओं को यज्ञ में दी गई प्रत्येक आहुति गाय के घी से देने की परंपरा है, जिस से सूर्य की किरणों को विशेष ऊर्जा मिलती है और यही विशेष ऊर्जा वर्षा का कारण बनती है और वर्षा से ही अन्न, पेड, पौधे आदि को जीवन मिलता है. हिंदू विवाह जैसे मंगल कार्यों में गाय का बड़ा महत्त्व है.

जस्टिस शेखर कुमार यादव अपने फैसले में आगे कहते हैं, ‘‘वैज्ञानिक यह मानते हैं कि गाय ही एक पशु है जो औक्सीजन ग्रहण करती है और  औक्सीजन छोड़ती है. पंचगव्य जोकि गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर द्वारा तैयार किया जाता है, कई प्रकार के असाध्य रोगों में लाभकारी है. हिंदू धर्म के अनुसार, गाय में 33 कोटि देवीदेवता निवास करते हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48 में कहा गया है कि वह गाय नस्ल को संरक्षित करेगा और दुधारू एवं अन्य भूखे जानवरों सहित गौहत्या पर रोक लगाएगा. इस के बाद भी भारत के 29 राज्यों में से 5 राज्यों में गाय मांस की बिक्री व गोवध पर प्रतिबंध नहीं है.’’

जस्टिस शेखर कुमार यादव अपने फैसले में लिखते हैं, ‘‘बीमार और अंगभंग गाय अकसर लावारिस देखने में नजर आती है. ऐसी स्थिति में यह बात सामने आती है कि गाय के संरक्षण/ संवर्धन करने वाले लोग क्या कर रहे हैं? कभीकभार एकदो गाय के साथ फोटो  खिंचवा कर वे सम?ाते हैं कि उन का काम पूरा हो गया. किंतु, ऐसा नहीं है. सरकार को भी संसद में बिल ला कर गाय को मौलिक अधिकार में शामिल करते हुए गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करना होगा और उन लोगों के विरुद्ध कड़े काननू बनाने होंगे जो गाय को नुकसान पहुंचाने की बात करते हैं.

जमानत हुई निरस्त

हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव की बैंच ने कहा कि उपरोक्त सभी स्थितियों एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यही निष्कर्ष निकलता है कि आवेदक/अभियुक्त के विरुद्ध प्रथम दृष्टया अपराध किया जाना साबित होता है. आवेदक/अभियुक्त ने गोवध का अपराध किया है. यह आवेदक का पहला अपराध नहीं है. इस के पूर्व भी उस ने गोवध किया है जिस से समाज का सौहार्द बिगड़ा है. यदि जमानत पर छोड़ दिया जाता है तो वह फिर यही कृत्य करेगा, जिस से समाज का वातावरण बिगड़ेगा और तनाव की स्थिति उत्पन्न होगी. उपरोक्त आवेदकगण का जमानत आवेदनपत्र बलहीन है एवं निरस्त किए जाने योग्य है. तदनुसार, उपरोक्त जमानत आवेदनपत्र निरस्त किए जाते हैं.

अदालत के फैसले के अनुसार, गाय को जानवर की जगह देवतुल्य मान कर अगर व्यवहार किया जाए तो उस को ही नुकसान होगा. फैसले के अनुसार, गाय केवल दान देने की चीज है. ऐसे में उस को केवल ब्राह्मणों के घरों में होना चाहिए. गौशालाएं और गाय के सहारे चलने वाली डेयरियां बंद हो जानी चाहिए. गाय का दूध और घी का बेचना अपराध की श्रेणी में आना चाहिए. अगर गाय के साथ ऐसा व्यवहार किया गया तो गाय का वजूद अपनेआप ही खत्म हो जाएगा. वह केवल धार्मिक ग्रंथों में ही रह जाएगी.

चाटुकारिता जरूरी है कर्तव्य के साथ

आगे बढ़ने के लिए कर्तव्यपालन के साथ चाटुकारिता जरूरी है. यह और बात है कि इस से निजी लाभ होता है जबकि संस्थान या पार्टी का सदा नुकसान ही होता है. प्रमुख पदों पर बैठे लोगों को चाटुकार अधिक पसंद आते हैं. साथ ही, वे यह भी चाहते हैं कि कर्तव्यपालन होता रहे. बीरबल और अकबर की कहानियों में एक बहुत प्रचलित कहानी है बैंगन की. एक दिन बादशाह अकबर की रसोई में बैंगन की सब्जी बनी. बादशाह ने बड़ी तारीफ कर के उसे खाया. तारीफ में सभी दरबारी बैंगन के गुण बताने लगे.

बीरबल ने कहा, ‘हुजूर बैंगन तो सब्जियों का राजा है. इस वजह से उस के सिर पर ताज होता है.’ बादशाह को यह बात बहुत पसंद आई. उन्होंने बीरबल की बहुत तारीफ की. दूसरे दरबारियों को इस से चिढ़ हुई. अगले दिन बादशाह को पेट में दर्द हुआ. तब उन्होंने कहा कि ‘बैंगन की सब्जी की वजह से पेट में दर्द है.’ दरबारी खुश कि अब बीरबल को डांट पड़ेगी. बीरबल ने भी पलटी मारी कहा, ‘बादशाह हुजूर, बैंगन तो होता ही ‘बे-गुण’ है. इस का नाम ही इसी वजह से बैंगन है.’ अकबर को यह तो पता था कि बीरबल चापलूसी कर रहा है, पर यह चापलूसी उन को पंसद आई. चापलूसी अगर कर्तव्य के साथ न हो तो भारी पड़ती है. नीतिगत फैसले जब चापलूसीभरे होने लगें तो वे अच्छे परिणाम नहीं देते.

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चापलूसी में डूबी सत्ता चाटुकारिता के तमाम प्रमाण मौजूद हैं. अगर राजनीति में इस की शुरुआत पर गौर करें तो 1970 के दशक में कांग्रेस में ऐसे चाटुकार नेताओं की लंबी लिस्ट रही है. उस दौर में यह आश्चर्यजनक बात होती थी. तब कोई चाटुकारिता को स्वीकार करने को तैयार न था. आज के समय में चाटुकारिता पूरी तरह से स्वीकार हो चली है. एक शर्त विज्ञापनों की तरह से लगी है कि कर्तव्य का भी पालन हो. कांग्रेस में संजय गांधी का उदय हो रहा था. उन की मां इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं. संजय गांधी कांग्रेस के नेता थे. इंदिरा गांधी के पुत्र होने के कारण कांग्रेसी उन की चाटुकारिता में लगे थे. चाटुकारिता का कोई लैवल नहीं होता. यह लगातार बढ़ती जाती है. संजय गांधी के साथ ही नारायण दत्त तिवारी होते थे. उम्र में संजय गांधी से बड़े थे. कांग्रेस की राजनीति में उन को संजय से अधिक अनुभव था.

नारायण दत्त तिवारी भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रहे. 15 माह जेल में रहे थे. 1947 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी स्टूडैंट्स यूनियन अध्यक्ष बने. 1945 से 49 तक औल इंडिया स्टूडैंट्स कांग्रेस के सैक्रेटरी रहे. 1952 में पहली बार विधायक बने थे. 1969 से 71 तक यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. इस के पहले वे नेहरू युवा केंद्र की स्थापना कर चुके थे. कहने का मतलब यह है कि नारायण दत्त तिवारी संजय गांधी के मुकाबले बड़े नेता थे. इस के बाद भी संजय गांधी की चाटुकारिता करनी जरूरी थी. संजय गांधी के करीबी लोगों को कांग्रेस में खास पद दिए जा रहे थे. अपनी चाटुकारिता को साबित करने के लिए वे संजय गांधी की चप्पल उठाने की घटना को ले कर चर्चा में आ गए थे.

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इस के बाद संजय गांधी खेमे में उन की जगह मजबूत हो गई. बाद में वे उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहे. केंद्र सरकार में भी मंत्री रहे. कांग्रेस संगठन में भी प्रभावी पदों पर रहे. राजनीति में खुलेतौर पर चापलूसी की शुरुआत उसी दौर में हुई. उस के बाद यह सिलसिला आगे बढ़ता रहा. चापलूसी अतिरिक्त योग्यता बन गई. लगभग हर दल में ऐसे नेताओं की संख्या है. मनुवाद के विरोध में बनी बहुजन समाज पार्टी में भी यह कल्चर हावी हो गया. बसपा प्रमुख मायावती के मंच पर ही पैर छूने वाले नेताओं की संख्या बढ़ गई. मायावती के दौर में अफसरों में भी उन की चप्पलें उठाने के प्रकरण सामने आए.

राजनीतिक दलों में चाटुकारिता ने तमाम ऐसे रास्ते खोल दिए जिन में मेहनत करने वाले नेता पीछे हटने लगे. समाजवादी पार्टी में जब सत्ता पिता मुलायम सिंह यादव के हाथ से निकल कर बेटे अखिलेश यादव के पास गई तो पार्टी के बड़े नेता अखिलेश को भाईभतीजा की तरह मान कर चल रहे थे. अखिलेश को यह व्यवहार पंसद नहीं आया और समाजवादी पार्टी का विभाजन ही हो गया. यही हालत बिहार में लालू यादव के परिवार में हुई. चाटुकरिता जैसेजैसे अपना दायरा फैलाती गई, संगठन प्रभावित होता गया. बिगड़ जाता है कर्तव्यपालन का तालमेल नेताओं की इमेज कंसलटैंट करने वाली सौम्या चतुर्वेदी कहती हैं, ‘‘असल में पहले लोगों को लगता है कि चापलूसी एक सीमाभर काम करेगी. कुछ समय बाद कोई सीमा नहीं रहती. ऐसे में कई लोग चापलूसी कर के लोगों को गुमराह करने लगते हैं.

यहीं से नुकसान शुरू हो जाता है. इस का पता जब तक चलता है तब तक नुकसान की भरपाई करना मुश्किल हो जाता है. लोग चापलूसी के साथ कर्तव्यपालन करना भूल जाते हैं जिस की वजह से नुकसान हो जाता है.’’ ‘‘चापलूस लोगों को जब बढ़ावा मिलता है तो मेहनत करने वाले लोगों में हीनभावना भरने लगती है, जिस से वे तनाव का शिकार हो कर हताश होने लगते हैं. किसी भी संस्था में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती है तो संस्थान को नुकसान होने लगता है, जिस का प्रभाव तत्काल तो दिखाई नहीं देता पर कुछ समय बाद इस का गंभीर प्रभाव दिखने लगता है. चापलूसी और कर्तव्यपालन के बीच तालमेल बैठाना बहुत मुश्किल होता है. ऐसे में जरूरी यही है कि चापलूसी की भावना रखने वाले लोगों को कम से कम महत्त्व दिया जाए.’’ मनोविज्ञानी डाक्टर मधु पाठक कहती हैं, ‘

‘ऊंचे पद पर बैठे लोग यह मानते हैं कि वे जो सोच रहे हैं वह सब से सही है. वे अपने आसपास ऐसे लोगों का तानाबाना बुन लेते हैं जो उन की उम्र और अनुभव से बहुत छोटे होते हैं. ये लोग सलाह देने या सहीगलत बताने की हालत में नहीं होते. ऐसे में चापलूसी में हर बात की हां में हां मिलाते रहते हैं. शिखर पर बैठे हुए व्यक्ति को अपनी आलोचना सहन नहीं होती. आलोचना को विरोध मान कर केवल समर्थन करने वालों को ही वह अपने आसपास रखता है. वहीं, सलाह देने वालों को अपने लाभ से मतलब होता है. ऐसे में वे आलोचना कर के अपना नुकसान नहीं करना चाहते.’’ जो भी पावरफुल होता है, तानाशाह होता है वह अपने पास किसी सलाहकार को नहीं रखता. प्रधानमंत्री के रूप में देखें तो इंदिरा गांधी के पास ऐसा कोई सलाहकार नहीं था जो अपनी बात उन से मनवा सके.

आज के दौर में यही हालत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की है. उन के मंत्रिमंडल में ऐसा कोई नहीं जो प्रभावी तरह से अपनी बात मनवा सके या उन के किसी काम में सुधार की बात कर सके. 10 साल प्रधानमंत्री रहे डाक्टर मनमोहन सिंह अपने मंत्रिमंडल की बात सुनते थे. उसी दौर में राहुल गांधी ने किसान मुआवजा को ले कर केंद्र सरकार के फैसले का बिल फाड़ दिया था. क्या मोदी सरकार में कोई ऐसा कर सकता है? किसी भी गलत फैसले के खिलाफ कोई बोलने वाला नहीं है. जीएसटी में एक हजार से अधिक सुधार हो चुके हैं. लेकिन किसी ने भी जीएसटी बिल को गलत नहीं बोला. अगर जीएसटी बिल इतना अच्छा था, कारोबार और कारोबारियों के हित में था तो फिर एक हजार सुधार क्यों? अगर किसी बिल में एक हजार सुधार हो जाएं तो उस बिल को ही क्यों न बदल दिया जाए? जीएसटी आर्थिक सुधारों की दिशा में बड़ा कदम बताया जा रहा था.

अगर जीएसटी आर्थिक सुधार की दिशा में बड़ा कदम था तो कारोबार को नुकसान क्यों? और जीएसटी का कलैक्शन कम क्यों हुआ? जीएसटी को ले कर राज्यों को आपत्ति क्यों? सलाहकारों में बढ़ रही चापलूसी जब सलाहकारों को लगता है कि सुनने वाले को उन की सही सलाह अच्छी नहीं लग रही, तब वह सही सलाह की जगह पर चापलूसी करने लगता है. सुनने वाले की बातों से वह सम?ा लेता है कि उस को किस तरह से अपनी राय देनी है. कहावत है कि जबान ऐसी ताकत रखती है कि उस के प्रयोग से हाथी मिल भी सकता है और हाथी के पैर के नीचे कुचला भी जा सकता है. यहां इस कहावत का मतलब है कि जबान से गलत बात नहीं करनी चाहिए. आज के संदर्भ में इस का अर्थ यह है कि सलाह ऐसी दीजिए जिस से हाथी पर बैठने को मिले, हाथी के पैर के नीचे न आना पड़े. सही सलाह देने और चापलूसी करने के बीच का अंतर खत्म होता जा रहा है.

सर्वगुण संपन्न

Driver’s Foot: कही आप भी तो नहीं ‘ड्राइवर्स फुट’ बीमारी का शिकार, ऐसे बचें

32 साल के राहुल ने अपना कारोबार शुरू किया था, जिस के सिलसिले में उसे रोज दिल्ली से गुड़गांव जाना पड़ता था. रोजाना 5-6 घंटे गाड़ी चलाने से उसे दाएं पैर में तकलीफ होने लगी. आराम करने से भी कोई फायदा नहीं हुआ, बल्कि उस का दर्द और बढ़ गया. यहां तक कि उस ने गाड़ी चलाना भी छोड़ दिया. पैर में तेज दर्द होने के चलते उसे अपने निजी काम करने में भी परेशानी होने लगी.

मजबूर हो कर राहुल को डाक्टर के पास जाना पड़ा. उसे दर्द दूर करने और दूसरी दवाएं दी गईं. इस से उसे थोड़ी देर के लिए तो आराम हो जाता, लेकिन फिर दर्द शुरू हो जाता.

पूरी जांच करने के बाद पता चला कि राहुल को ‘ड्राइवर्स फुट’ की समस्या है, जिस के चलते उस के प्लांटर फैशिया में तकलीफ हो रही थी.

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यह प्लांटर फेशिया पैरों के दर्द की एक सामान्य समस्या है, जो अकसर लंबे समय तक गाड़ी चलाने से हो जाती है. ट्रैफिक जाम में इंतजार करने और 2-3 घंटे तक लगातार ड्राइविंग करने से न केवल एडि़यों में दर्द होने लगता है, बल्कि दाएं पैर में सुन्नपन महसूस होने लगता है और दर्द बढ़तेबढ़ते कमर के निचले हिस्से तक चला जाता है.

अगर इस समस्या का लंबे समय तक इलाज न कराया जाए, तो दर्द बढ़ जाता है, जिसे ‘प्लांटर फैशिया’ कहते हैं. इस के साथसाथ एड़ी और फुट की बाल में भी दर्द होता है.

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क्या है ‘ड्राइवर्स फुट’

यह पैरों के दर्द की एक सामान्य समस्या है, जो ज्यादातर ड्राइवरों को हो जाती है. अगर इस समस्या का इलाज न कराया जाए, तो इस से कई दूसरी बड़ी समस्याएं पैदा हो जाती हैं.

जो लोग लंबे समय तक लगातार ड्राइविंग करते हैं, उन्हें इस समस्या का शिकार होने का डर ज्यादा होता है.

आमतौर पर दर्द पैर की एडि़यों में महसूस होता है. पैर के अंगूठे में भी तेज दर्द होता है, फुट की आर्च में भी सूजन आ जाती है और फुट के अंगूठे की बाल में भी लगातार दर्द होता है, क्योंकि यह हिस्सा लगातार ऐक्सिलेटर पर रहता है. ट्रैफिक जाम इस दर्द को ज्यादा बढ़ा देता है, क्योंकि इस दौरान लंबे समय तक पैर एक ही हालत में रहता है.

ये हैं लक्षण

फुट की बाल में दर्द होना :

पैर का वह भाग, जो पैडल से टच होता है, उस में सब से ज्यादा दर्द होता है. लगातार पैडल को दबाने से दर्द और बढ़ जाता है, जिस के चलते पैरों की उंगलियों पर खरोंचें आ जाती हैं और हड्डियों में तेज दर्द होता है.

एडि़यों में दर्द होना :

ड्राइविंग करते समय हमेशा एडि़यां गाड़ी के फर्श पर होती हैं, इस से उन में खरोंच आ सकती है और दर्द हो सकता है. ब्रेक लगाने, ऐक्सिलेटर दबाने वगैरह से यह दर्द और बढ़ सकता है.

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पैरों के अगले हिस्से में दर्द होना:

ज्यादा ट्रैफिक में लंबे समय तक पैडल को दबाने से पैरों में तनाव हो सकता है. इस से पंजों के आगे के हिस्से में दर्द हो सकता है. हालांकि, यह दर्द तुरंत गायब हो जाता है, लेकिन जो लोग रोजाना लंबी दूरी तक ड्राइविंग करते हैं या पेशेवर ड्राइवर हैं, उन्हें इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, क्योंकि अगर समय रहते इलाज न कराया जाए, तो हालात और भी गंभीर हो सकते हैं.

फुट की आर्च में सूजन हो जाना :

आमतौर पर जिन लोगों को इस तरह की समस्या होती है, उन्हें एड़ी और फुट की आर्च में तेज दर्द होता है. लंबे समय तक ड्राइव करने के बाद जब गाड़ी से उतरते हैं, तब यह दर्द और ज्यादा बढ़ जाता है.

इलाज…..

ऐक्सरसाइज और स्ट्रैचिंग :

  1. इस दर्द से आराम पाने के लिए सब से पहला जरूरी और आसान उपाय है कि स्ट्रैचिंग और ऐक्सरसाइज करें.
  2. स्ट्रैचिंग सब से अच्छा उपाय है, क्योंकि इस से एडि़यों, आर्च और बाल सौकेट का तनाव कम होता है.
  3. लौंग ड्राइव से बचें.
  4. ज्यादा भारी सामान उठाने से तुरंत आराम मिल जाता है.
  5. शरीर के प्रभावित क्षेत्र पर दिन में कई बार 20-30 मिनट तक बर्फ लगाएं,
  6. इस के साथ ही प्लांटर फैशिया और एचिलिस टेंडन को स्ट्रैच करने के लिए ऐक्सरसाइज करें. इस से न केवल आप को आराम मिलेगा, बल्कि दोबारा यह समस्या होने का डर भी कम हो जाएगा.

दवाएं :

शुरुआती दौर में हील पैड्स के साथ सूजन कम करने वाली दवाएं ही  काफी रहती हैं.

सर्जरी :

बहुत ही कम मामलों में सर्जरी की जरूरत होती है. अगर समय के साथ हालात गंभीर हो जाते हैं और अगर दवाओं से भी इलाज न हो पाए, तो डाक्टर सर्जरी करने की सलाह भी दे सकते हैं.

ऐसे करें रोकथाम

  • अगर आप लंबे समय से ड्राइविंग कर रहे हैं, तो ऐंठन से बचने के लिए तुरंत ड्राइविंग बंद कर दें.
  • अपने पैरों के खून के बहाव को ठीक करने के लिए मसाज करें और हलके हाथ से रगड़ें. इस से मांसपेशियां रिलैक्स होंगी और ऐंठन कम हो जाएगी.
  • हमेशा आरामदायक जूते पहनें, जो आप के पैरों में अच्छी तरह फिट हों.
  • मांसपेशियों में लगातार ऐंठन, शरीर में विटामिन और इलैक्ट्रोलाइट की कमी से भी यह समस्या हो सकती है. सही मात्रा में ऐसी तरल चीजों का सेवन करें, जिन में पोटैशियम और मैग्नीशियम ज्यादा मात्रा में हो.

सर्वगुण संपन्न – भाग 2 : सास-बहू की दिलचस्प कहानी

लेखिका-अर्चना सक्सेना

जिस दिन वह लोग शताब्दी ऐक्सप्रैस से सुबह निकले, सुमित्रा कुछ अधिक असहज अनुभव कर रही थीं. कुछ तो तबियत खराब थी और कुछ असुरक्षा की भावना भी थी कि तबियत बिगड़ गई तो कौन संभालेगा. परंतु नीति से कुछ नहीं कहा उन्होंने. वह घर का सभी काम निबटा कर औफिस चली गई.

लक्ष्मी बरतन धो रही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी. सुमित्रा दरवाजा खोलने बाहर आईं. कोठी के मेन गेट पर 2 लोग एक लिफाफा पकड़े खड़े थे. सुमित्रा ने प्रश्नवाचक दृष्टि उन पर डाल कर कुछ पूछने के लिए मुंह खोला ही था कि उन में से एक लिफाफा आगे करते हुए बोला, “आप का ही नाम सुमित्रा है? और यह घर आप के ही नाम है न?”

सुमित्रा ने हां में सिर हिलाया, तो वह पुनः बोला, “आप का साढ़े 3 लाख रुपए का बिजली का बिल बकाया है. आप के नाम नोटिस है, हमें बिजली काटनी होगी.””क्या…? यह कैसे संभव है? हम तो हर महीने बिजली का बिल समय से जमा करते हैं? और इस महीने नहीं भी किया हो तो भी इतना बिल कैसे आ सकता है?”

सुमित्रा को घबराहट हो गई थी.”आप की प्रोपर्टी कौमर्शियल है. ऊपर से सालभर से आप ने बिल घरेलू खपत के हिसाब से भरा है. बिल तो जल्द से जल्द भरना ही पड़ेगा. तब तक के लिए बिजली तो काटी ही जाएगी.””अरे, पर ऐसे कैसे बिजली काट सकते हैं आप लोग? पहली बात तो यह कौमर्शियल प्रोपर्टी नहीं है, यहां अब कोई बिजनेस नहीं होता. दूसरे, बिना किसी नोटिस के आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? अभी तो कोई घर पर भी नहीं है. परिवार के लोग बाहर गए हैं और बहू औफिस. मुझे तो वैसे भी इन बातों की समझ नहीं है.”

सुमित्रा को अपने पैरों के नीचे से जमीन हिलती हुई सी प्रतीत हो रही थी. घबराहट के मारे उन्हें चक्कर सा आने लगा था.”नोटिस तो पहले भी आया होगा डिपार्टमेंट से. आप लोगों ने ही लापरवाही की होगी. हम मजबूर हैं, हमें अपना काम करने दीजिए.”लक्ष्मी भी जोरजोर की आवाजें सुन कर बाहर निकल आई थी. पूरा माजरा तो उस की समझ में नहीं आया, पर सुमित्रा की घबराहट देख कर उस ने नीति को फोन लगा दिया.

नीति ने फोन पर उन लोगों से बात करवाने के लिए कहा, तो उन में से एक ने नीति से भी वही सब दोहरा दिया.”मैं अभी औफिस में हूं. थोड़ी मोहलत तो चाहिए ही. रकम बहुत बड़ी है, और मुझे तो इस के बारे में कोई जानकारी भी नहीं है. परिवार के लोगों के वापस आने तक आप बिजली नहीं काट सकते. मम्मी को तो पता भी नहीं कि क्या करना है. आप प्लीज कल मुझ से  मिलिए और सब विस्तार से बताइए.”

नीति ने स्थिति स्पष्ट की.”और क्या बताना है मैडम? यही है जो अभी बताया. ठीक है, आप कल मिलिए, और 15 दिनों की मोहलत मैं दिलवा सकता हूं पैसों के इंतजाम के लिए, पर उस के लिए मेरे चायपानी का इंतजाम कर दीजिएगा बस.””कितना खर्चा आएगा आप के चायपानी में…?” उधर से नीति ने पूछा.

“अब रकम बड़ी है तो 20 हजार तक तो कर दीजिए हमारा भी,” उस ने बड़ी ही ढीढता से कहा, तो नीति ने अगले दिन मिलने के लिए हामी भर दी.वह लोग वहां से चले गए. नीति ने सुमित्रा को सांत्वना दी और जल्दी ही घर पहुंचने का आश्वासन देने के साथ फोन रख दिया.परंतु सुमित्रा की घबराहट कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी. वह निढाल सी बिस्तर पर पड़ गईं.

वह उस दिन को कोस रही थीं, जब उन्हें भी बिजनेस करने का भूत सवार हुआ था. सुमित का विवाह नहीं हुआ था तब. मायका जयपुर में होने की वजह से जब भी वह वहां जाती, कालोनी की सहेलियां कुछ न कुछ लाने की फरमाइश कर देतीं. एक दिन किसी की सलाह पर छोटा सा बिजनेस ही शुरू करने की ठान ली उन्होंने. 40-50 हजार रुपए का सामान खरीद लाईं और छोटा सा बोर्ड भी टांग लिया.

तब घर में किसी ने नहीं सोचा था कि यह बोर्ड लगाना इतना भारी पड़ जाएगा. किसी पहचान वाले ने ही जलन के मारे शिकायत कर दी और एक छोटे से कमरे में शुरू किए गए छोटे से व्यापार की वजह से पूरी कोठी का ही कौमर्शियल प्रयोग का बिजली बिल आ गया.

सुमित्रा तो तब भी बहुत तनाव में आ गई थीं. पूरी तरह से घाटे का सौदा साबित हुआ था वह बिजनेस. उन्होंने फौरन काम बंद कर दिया था. दिनेशजी ने उस माह का बिल तो भर दिया था और दौड़भाग कर के पुनः कौमर्शियल प्रोपर्टी से घरेलू भी करवाया था, पर आज अचानक ये क्या हुआ पता नहीं.

जब घबराहट कम नहीं हुई सुमित्रा की, तो लक्ष्मी पड़ोस से कांता को बुला लाई. उस ने नीति को भी दोबारा फोन लगाया, पर मीटिंग में होने की वजह से वह इस बार फोन नहीं उठा सकी.कांता के हाथ फिर नीति के खिलाफ बोलने का अवसर आ गया. कांता कहने लगी, “अरे, वह कहां उठाएगी? इस से तो बेहतर किसी डाक्टर को फोन कर लक्ष्मी.”

“डाक्टर का नंबर थोड़ी न है मेरे पास भाभी. और नीति बहू ऐसी नहीं हैं, जरूर बिजी होंगी. देखना, अभी फोन आता होगा उन का.””तुझे बड़ा भरोसा है उस पर.””हां भाभी. पढ़ीलिखी नहीं हूं तो क्या, इनसान की थोड़ीबहुत पहचान तो है मुझे,” लक्ष्मी ने कहा, तो कांता ने मुंह बिचकाया.वास्तव में मीटिंग समाप्त होते ही नीति ने फौरन घर पर फोन लगाया. फोन लक्ष्मी ने ही उठाया और सुमित्रा की तबियत की जानकारी दी.

नीति डाक्टर को ले कर आधे घंटे में ही घर पहुंच गई.डाक्टर के जाने के बाद नीति ने सुमित्रा को धीरज बंधाया और उन के सिर में हलकी मालिश कर उन्हें सुला दिया.कुछ दवा का असर था और कुछ नीति के धीरज देने का, सुमित्रा जब सो कर उठी तो हलका अनुभव कर रही थीं.

नीति ने परिवार में किसी को इस बारे में कुछ नहीं बताया. कांता ने जब इस बारे में पूछा तो उन से भी उस ने यही कहा, “पापा और राधिका इतने दिनों में कहीं गए हैं, उन का वहां मन नहीं लगेगा और वह मन से फंक्शन में सम्मिलित नहीं हो पाएंगे. हो सकता है कि वे वापस भी चल पड़ें. मैं संभाल तो रही हूं. अगर जरूरी लगा तो बता दूंगी. और सुमित तो इतनी दूर से क्या कर पाएंगे तो क्यों परेशान करना?”

सुमित्रा यद्यपि चाहती तो थीं कि ऐसे में उन का कोई ‘अपना’ वहां होता, फिर भी उन्हें नीति की बात उचित लगी.अगले दिन नीति की जो महत्वपूर्ण प्रेजेंटेशन थी औफिस में, उस पर उस की पदोन्नति भी निर्भर करती थी, परंतु बिना किसी हिचकिचाहट के उस ने उस दिन छुट्टी ले ली और सुमित्रा को इस बारे में बताया तक नहीं.

उस ने एंटीकरप्शन ब्यूरो को भी फोन कर के सारी जानकारी दे दी थी और रिश्वतखोरी के इलजाम में अगले दिन उन दोनों व्यक्तियों को रंगेहाथ पकड़वा दिया.सुमित्रा को बिजलीघर साथ ले जा कर पुनः महत्वपूर्ण दस्तावेज निकलवा कर जो भी त्रुटि थी, वह उस ने ठीक करवाई.

सब देखसमझ रही सुमित्रा अब भी मुंह से कुछ नहीं कह रही थीं, परंतु नीति की काबिलीयत का वह मन ही मन लोहा मान रही थीं. और कहीं न कहीं उन का पाषाण हृदय पिघलता जा रहा था.

सर्वगुण संपन्न – भाग 1 : सास-बहू की दिलचस्प कहानी

लेखिका-अर्चना सक्सेना

सुबह के 9 बज चुके थे. सुमित्रा डाइनिंग टेबल की कुरसी पर बैठ कर मटर छील रही थीं. सब्जी काटनेछीलने के लिए यही जगह भाती है उन्हें, कमर भी सीधी रहती है और सब्जियां भी आराम से सामने फैला कर रख पाती हैं.

अपनी और सुमित के पापा दिनेशजी की चाय बना कर बिसकुट के साथ ले चुकी थीं. आजकल के बच्चे तो कुकीज कहते हैं और उन्हें भी सिखाते हैं, पर सुमित्रा को तो जैसी आदत है वह वही बोलना पसंद करती हैं.

अब इस उम्र में क्यों वह अपनी आदतें बदलें? इतने में घंटी बजी तो उन्होंने पति को आवाज दी. “अरे सुनो, देखना तो कौन आया इतनी सुबह? लक्ष्मी तो छुट्टी वाले दिन 10 बजे के बाद ही आती है.” दिनेशजी ने दरवाजा खोला, तो पड़ोस की कांता भीतर तक ही आ गई.

“अरे सुमित्रा सुबह से काम में लग जाती हो. छुट्टी वाले दिन तो बहू को जिम्मेदारी दिया करो. 9 बज चुके हैं, उठी नहीं वह अभी? भई बड़ी छूट दे रखी है तुम ने.””अरे 2 दिन ही तो मिलते हैं छुट्टी के. जरा देर तक सो लेती है. नहीं तो रोज ही सुबह से भागदौड़ लगी रहती है उस की भी,” सुमित्रा ने खिसिया कर कहा.

“रहने दो. सब दिखाई देता है मुझे. रोज भी तुम ही लगी रहती हो घर के कामों में. शनिवार, रविवार को तुम भी आराम किया करो,” कांता ने अपनापन दिखाते हुए कहा कि तभी उस की निगाहें दिनेशजी से जा टकराईं. उन की आंखों में क्रोध स्पष्ट था.

कांता ने तुरंत बात बदलते हुए कहा, “अच्छा छोड़ो, मैं तो यह चाबी देने आई थी. हम लोग बाहर जा रहे हैं. आतेआते रात हो जाएगी. लक्ष्मी आए तो उस से काम करवा लेना प्लीज. मैं ने जल्दी बुलाया था आज, पर वह बोली कि सुमित्रा भाभी के घर 11 बजे जाना है, तभी करूंगी आप का भी,” कह कर कांता ने चाबी पकड़ाई और दिनेशजी को नमस्ते करते हुए निकल गई.

उस के जाते ही दिनेशजी बड़बड़ाए, “मुझे बिलकुल पसंद नहीं हैं यह कांता भाभीजी. दूसरों के घर में आग लगा कर तमाशा देखते हैं ऐसे लोग. तुम भी जरा दूरी रखा करो.””पर, गलत क्या कह कर गई है वह? क्या यह सच नहीं है कि 9 बजे तक बहू सो रही है और मैं काम में लगी हूं? पर, तुम्हें ये कभी दिखाई देता ही नहीं. बस बिना वजह पूरे घर ने लाड़ पर चढ़ा कर रखा हुआ है,”

चिढ़ कर सुमित्रा ने उत्तर दिया.”तो तुम से कौन कहता है जल्दी उठने को? तुम अपने मन से उठती हो और अपने मन से ही काम करती हो. और नीति कामकाजी लड़की है. अगर 2 दिन देर से उठती है तो क्या गलत है? रोज तो तुम से भी पहले उठ कर जो बन पड़ता है कर के औफिस जाती है न?”

“तो ये भी अहसान है मुझ पर? नौकरी करती है तो अपने लिए. मैं रखती हूं क्या उस की कमाई?””तो घरेलू लड़की ढूंढ़ लेती न? तब क्यों कामकाजी चाहिए थी? तब तो जमाने को दिखाना था कि बड़ी आधुनिक सोच वाली हो. और अब वही आम दकियानूसी सास बन रही हो.””हां… हां, अगर थोड़ाबहुत अनुशासन की उम्मीद करने को दकियानूसी सोच कहते हैं, तो मैं दकियानूसी ही भली हूं. आप बनिए आधुनिक.”

आज दिनेशजी भी हार मानने को तैयार नहीं थे, फिर बोल पड़े, “अगर अनुशासन है तो सब के लिए एक सा होना चाहिए. तुम्हारा बेटा अब तो फिर भी 9 या साढ़े 9 बजे तक बहू के साथ उठ कर आ जाता है. पहले तो 11 बजे से पहले उठता ही नहीं था. और राधिका तो कभी भी नहीं उठती जल्दी.”

“मां के घर ही मनमानी कर सकती है. कल को वह ससुराल जाएगी तो अपनेआप घर संभालेगी,”सुमित्रा ने फौरन तरफदारी की.”हां, ये तो है… अगर तुम्हारे जैसी सास उसे भी मिली तो रो के या हंस के संभालना ही पड़ेगा,” दिनेशजी ने फौरन चुटकी ली.इतने में सुमित के कमरे का दरवाजा खुला और नीति मुसकराती हुई बाहर आई. “गुडमोर्निंग मम्मा, गुडमोर्निंग पापाजी. 1-1 चाय और लेंगे आप दोनों?”

दिनेशजी ने फौरन हामी भरी. सुमित्रा मना करती कि तभी सुमित भी बाहर आ गया और बोला, “सब की बना लो. तुम्हारे हाथ की चाय को कौन मना कर सकता है?” अब तो सुमित्रा सचमुच मना करना चाहती थीं, पर बेटे की खातिर चुप रह गईं.

चाय पीतेपीते ही नीति ने नाश्ते की तैयारी कर ली.आज सब को गरमागरम पनीर के परांठे मिलने वाले थे नाश्ते में. नीति हर छुट्टी पर कुछ न कुछ अलग बनाती ही थी. कामकाज में सुमित्रा जितनी दक्ष न सही, पर फिर भी होशियार ही थी.

सुमित्रा अब भले ही अपने सर्वगुण संपन्न होने का दावा कर लें, पर सच तो ये है कि गोल रोटी बेलना उन्हें उन की सास ने ही सिखाया था. अब यह अलग बात है कि हर काम सिखाते हुए तानेउलाहने भी दिल खोल कर दिए उन्होंने कि मां ने कुछ सिखा कर नहीं भेजा. खैर जो भी हो, उम्र के साथ अनुभवी होती चली गई वह. परंतु वह तो बहू से अधिक कुछ कह भी नहीं पातीं. पति, पुत्र और बेटी तीनों ही उस की तरफ हो जाते हैं. ज्यादा से ज्यादा मुंह फुला सकती हैं, और वही अकसर करती भी हैं. उस पर भी सब को परेशानी है. बेटा तो फिर भी खामोश रहता है, पर राधिका तो मां को ही समझाने बैठ जाती है. और पति की तो पूछो ही मत, ऐसे नाराजगी जाहिर करते हैं, अपनी मां के ताने बिलकुल भूल गए.

तब तो मां को रोकने की  कभी हिम्मत नहीं दिखाई. और बहू में तो कोई दोष दिखाई ही नहीं देता. सारी कमियां भी पत्नी में हैं और सारा रौब भी पत्नी पर ही चलता है.नाश्ता तैयार हो गया था. पनीर के परांठे वाकई स्वादिष्ठ थे. सब नीति की प्रशंसा के पुल बांध रहे थे. बस सुमित्रा ही शांति से खा रही थीं. नीति ने आशा भरी नजरों से उन्हें देखा कि वह भी कुछ कहें, पर वह चुपचाप खाने में मगन थीं.

जब बहुओं की प्रशंसा की बारी आती है तो सासें आमतौर पर कंजूस हो ही जाती हैं. वहीं जब सवाल बेटियों का हो तो अवगुणों में भी गुण तलाश ही लेती हैं ये.नीति समझदार थी. कभी किसी से कुछ न कहती. मां के खिलाफ सुमित से भी कभी कुछ नहीं कहा उस ने, फिर भी बेवजह के इस रूखेपन से कभीकभी दिल भर आता था उस का.

दिनेशजी के पैतृक नगर से उन के फुफेरे भाई की बेटी के विवाह का निमंत्रण आया. उन की बुआ अभी जीवित थीं और उन्होंने सपरिवार आने का आग्रह किया था. सुमित एक महीने के लिए विदेश गया हुआ था. सुमित्रा का रक्तचाप पिछले कुछ दिनों से बढ़ा हुआ चल रहा था. उन्होंने जाने में असमर्थता व्यक्त की. किसी को तो उन के पास रुकना ही था तो नीति ने सहर्ष रुकना स्वीकार किया.

वैसे भी जिस दिन निकलना था, उस दिन उस के औफिस में जरूरी मीटिंग थी और अगले ही दिन कोई जरूरी प्रेजेंटेशन भी. दिनेशजी के साथ राधिका  लखनऊ चली गई. 3 दिन

दिन के तो विवाह के कार्यक्रम ही थे. इतने दिनों के बाद अपने शहर जा रहे थे दिनेशजी, इसलिए सप्ताहभर का कार्यक्रम बनाया गया. राधिका तो वैसे भी लखनऊ से चिकनकारी की खरीदारी को ले कर उत्साहित थी.

अगर आप भी हाई ब्लड प्रेशर के मरीज हैं तो पढ़ें ये खबर

गलत खानपान, भागादौड़ी, काम का दबाव और भी ना जाने किन परेशानियों से आप जूझते रहते हैं.  जिसका असर सीधे तौर पर आपकी सेहत पर पड़ता है. इन परेशानियों का ही नतीजा है कि बहुत से लोगों में ब्लड प्रेशर की शिकायते बढ़ने लगी हैं. जिसके चलते लोगों में दिल की बीमारी, स्ट्रोक, हार्ट अटैक जैसी गंभीर बामारियां होने लगी हैं. ब्लड प्रेशर से होने वाली बीमारियां बहुत से लोगों के मौत का कारण बनती हैं.

इस खबर में ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए कुछ खास खानपान की जानकारी देंगे.इन टिप्स को फौलो कर आप इस बीमारी के होने वाले खतरे को कम कर सकेंगे. तो आइए जानें कि इस बीमारी के दौरान किस तरह का खानपान आपके सेहत के लिए अच्छा होगा.

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तरबूज

तरबूज में एल-सिट्रीलाइन नाम का एक एसिड पाया जाता है. ब्लड प्रेशर को कम करने में ये काफी असरदार होता है. इसमें प्रचूर मात्रा में फाइबर, लाइकोपीन, विटामिन ए जैसे जरूरी तत्व पाए जाते हैं. रक्तचाप को काबू में रखने में ये तत्व बेहद प्रभावशाली होते हैं.

पालक

हरी और पत्तेदार पालक हमारी सेहत के लिए बेहद लाभकारी होता है. इसमें फिइबर, पोटैशियम, मैग्निशियम जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं. ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में भी पालक मदद करता है.

संतरा

विटामिन  गुणों से भरपूर संतरा रक्त संबंधी समस्याओं में काफी लाभकारी होता है. इसमें फाइबर और विटामिन-सी भी मौजूद होता है, जो सेहत को कई तरह से फायदा पहुंचाता है.

गाजर

हाई ब्लड प्रेशर को दूर करने में गाजर बेहद प्रभावशाली होता है. आपको बता दें कि गाजर में पोटैशियम और बीटा-कैरोटीन की मात्रा अधिक होती है, जो हाई ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद करती है. गाजर का जूस दिल और गुर्दे के कार्य को भी कंट्रोल करता है.

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चुकंदर

ब्लड फ्लो को बेहतर करने में ये फल मददगार होता है. इसमें भरपूर मात्रा में नाइट्रेट होता है. एक स्टडी में ये बात सामने आई थी कि चुकंदर का जूस पीने से ब्लड प्रेशर समान्य रहता है.

अंतिम फैसला : भाग 4

“शैली, यह…यह तुम क्या कर रही हो? कहां जा रही हो?” शैली को बैग में अपना सामान रखते देख मनीष  बौखला उठा, “तुम मुझे छोड़ कर जा रही हो?” “हां, क्योंकि अब तुम्हारी ज़िंदगी में मेरे लिए कोई जगह नहीं है मनीष. मेरा तुम्हारी ज़िंदगी से निकल जाना ही सही रहेगा,” अपने बहते आंसू पोंछते हुए शैली बोली, “शादी भले ही जिस प्रकार भी हुई हो, पर वह तुम्हारी पत्नी है. तुम पर उस का पूरा अधिकार है.“

शैली को इस तरह रोते देख मनीष की आंखों से भी आंसू निकल पड़े, बोला, “ठीक है तो फिर, मैं इस अधिकार को ही खत्म कर दूंगा.  तलाक दे दूंगा मीरा को.“ मनीष ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब वह मीरा को तलाक दे कर रहेगा, क्योंकि बेमतलब के रिश्ते में बंधे रहने का अब कोई मतलब नहीं है. “बस, तुम मेरा साथ दोगी न, यह बताओ?” मनीष ने उस की आंखों में झांकते हुए पूछा.

“हां, हर हाल में, लेकिन तुम्हारे घरवाले? और तुम्हारी पत्नी, क्या वह तलाक देने के लिए राजी होगी?” सशंकित होते हुए शैली बोली. “नहीं पता कि क्या होगा और क्या नहीं, लेकिन इतना जानता हूं कि मैं तुम्हारे बगैर नहीं जी सकता शैली,” कह कर उस ने शैली को अपने सीने से लगा लिया. लेकिन शैली के मांपापा इस रिश्ते के लिए अब तैयार नहीं थे. वे नहीं चाहते थे कि मनीष  से उस की शादी हो. लेकिन शैली तो जन्मजन्मांतर तक मनीष  का साथ निभाने का वादा कर चुकी थी, तो वह कैसे अपनी बात से अब पीछे हट सकती थी.

यह बात सुनते ही कि मनीष मीरा को तलाक दे कर शैली के साथ शादी करना चाहता है, नरेंद्र चीख पड़े. “तू गांडो थई गयो छे? (तुम पागल हो गए हो?) तारु मगज फरी गयो लागे छे? (लगता है तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है?) अरे, शादीब्याह कोई गुड्डेगुड़ियों को खेल नहीं, जो जब चाहा तोड़ दिया, जब चाहा जोड़ दिया. यह जन्मजन्मांतर का रिश्ता होता है समझे?”

“हां, समझा, और मैं भी वही समझाने की कोशिश कर रहा हूं, पप्पा, कि शादी कोई खेल नहीं, जो अपनी खुशी के लिए किसी की बलि चढ़ा दी जाए. मुझे मीरा से तलाक चाहिए ही हर हालत में और अगर आप लोगों ने मेरी बात नहीं मानी तो मैं….तो मैं कुछ भी करूंगा, पर मुझे तलाक चाहिए,“ मनीष  ने सपाट शब्दों में अपना फैसला सुना दिया और नरेंद्र ने वही पिता वाली धमकी दे डाली कि अगर वह उन की बात से फिरेगा, तो वह उसे अपनी जायदाद से बेदखल कर देंगे.

“नहीं चाहिए मुझे आप की ये धन-संपत्ति और कोठी. मुझे मेरी आजादी चाहिए, वह दे दीजिए, बस.” लेकिन नरेंद्र उस की बात सुनने को भी तैयार न थे. मीरा को भी उस ने कितना समझाया कि जिस रिश्ते में प्यार ही नहीं, उस में बंधे रहने का क्या मतलब? तलाक के बाद वह भी तो अपनी ज़िंदगी अपनी तरह से जी सकेगी? रही बेटे की बात, तो वह उस की ज़िम्मेदारी लेने को तैयार है. लेकिन मीरा मनीष को तलाक देने के लिए हरगिज तैयार न थी. उस का कहना था, ‘मेरा पति सिर्फ मेरा है’ लेकिन यह शब्द भी मीरा के नहीं थे. यह सारे शब्द तो उस के दबंग पिता और भाइयों के थे, जो उसे जैसा करने को बोल रहे थे वह वही किए जा रही थी. इतना ही नहीं, गांव के दोचार दबंग लोगों के साथ उस का भाई मनीष  के घर भी पहुंच गया और धमका गया कि अगर उस ने मीरा को तलाक देने की सोची भी, तो उन से बुरा कोई नहीं होगा.

यह शादी नहीं, बल्कि एक सौदा था, जो दोनों परिवारों ने मिल कर किया था और इस में दलाल बना था वह पंडित, जिस ने मीरा के पिता के कहने पर मनीष  की झूठी कुंडली बनवाई थी और फिर अपनी बेटी की भी, क्योंकि उस की नजर मनीष  के पिता की दौलत पर जो थी. वह शुरू से ही चाहता था कि किसी तरह उस की बेटी की शादी नरेंद्र के बेटे से हो जाए और उस की अनपढ़ बेटी पूरी ज़िंदगी राज करे. गांव समाज के लोग भी मनीष  के इस फैसले के खिलाफ हो गए थे. उन का कहना था कि शादीशुदा होते हुए भी मनीष  कैसे किसी लड़की के साथ वहां रह सकता है वह भी विजातीय लड़की के साथ. वह तो इस गांव की नाक कटवाने पर तुला है. हम ऐसा हरगिज नहीं होने देंगे. उस की भलाई इसी में है कि वह अपनी पत्नी व बेटे के पास लौट आए.

मातापिता, परिवार, गांव-समाज सब मनीष  और शैली के प्यार के दुश्मन बन गए थे. मीरा अब सासससुर का घर छोड़ कर अपने मायके में रहने लगी थी. वह अपने बेटे से भी किसी को मिलने न देती थी. नरेंद्र चाहते थे अगर बेटा अपनी मरजी करना ही चाहता है तो, कम से कम कुछ जमीनजगह और पैसे बहू और पोते के नाम कर दे, ताकि बाद में उन का जीवन अच्छे से बीत सके. पर इस के लिए भी वे लोग तैयार न थे. उन का कहना था कि अपने बेटे को बुलाओ यहां नहीं तो मीरा और उस के बेटे को वहां पहुंचा देंगे. फिर कैसे नहीं रखेगा, हम भी देखते हैं.

अब तो मनीष  और शैली के पास घमकीभरे फोन भी आने लगे थे. मीरा का भाई फोन कर उसे जान से मारने की धमकी देता, कहता, वह मनीष की ज़िंदगी से निकल जाए, नहीं तो कहीं मुंह दिखाने के काबिल न रह जाएगी. शैली के मातापिता को भी धमकियां मिलने लगी थीं कि समझा ले अपनी औलाद को नहीं तो बिना औलाद रह जाएंगे. ऐसी धमकी सुन कर कांप उठते वे क्योंकि एक शैली ही तो उन का सहारा थी.

रोजरोज के धमकीभरे फोन और परिवार की तरफ से जिल्लतभरी बातें सुनसुन कर मनीष  अब तनाव में रहने लगा था. शैली भी बस रोती रहती थी. एक छोटी सी आहट सुन कर भी दोनों डर जाते, ऐसी स्थिति हो गई थी उन की. औफिस जानेआने  में भी अब शैली को डर लगने लगा था. हरदम उसे डरासहमा देख, मनीष  खुद को गुनहगार समझने लगा था. उसे लग रहा था यह सब उस की वजह से हो रहा है. लेकिन दोनों अब अपना कदम पीछे नहीं करना चाहते थे. इसलिए मनीष एक बार गांव जा कर सब को समझाना चाहता था. अगर समझें तो ठीक, वरना एक अंतिम फैसला लेगा वह, यह सोच लिया था उस ने.

मनीष और शैली को साथ देख कर गांव वालों के तेवर चढ़ गए. मनीष को तो उस के पिता ने घर की दहलीज भी नहीं लांघने दी, तो उस की बात क्या सुनते.  लेकिन फिर भी मनीष  ने सब को समझाना चाहा कि वे एकदूसरे से प्यार करते हैं, शादी करना चाहते हैं, इस बात की उन्हें इजाजत दी जाए. सब के सामने हाथ जोड़े, पांव पड़े, पर कोई उस की एक भी बात सुनने को तैयार न था. उलटे, उसे जलीकटी बातें सुनाए जा रहा था. गालियां दी जा रही थीं. गांव समाज के सामने गुहार लगातेलगाते मनीष और शैली का मुंह सूख गया, लेकिन फिर भी किसी को उन पर दया न आई. समझ गया मनीष  कि ये लोग पत्थरदिल इंसान हैं, नहीं समझेंगे उन की बात. इसलिए अब एक अंतिम फैसला लेना जरूरी है. सामने दुकान में पड़ी मिट्टी के तेल की बोतल उठा कर दोनों ने अपने शरीर पर उधेल लिया. गांव वालों को तो अब भी यही लगा कि दोनों नाटक कर रहे हैं अपनी बात मनवाने के लिए. मगर जब मनीष और शैली ने अपने शरीर में आग लगा ली, तो लोग अवाक रह गए कि यह क्या हो गया! धूधू कर दोनों जलते रहे और लोग ‘बचाओ बचाओ’ चिल्लाते रहे. खत्म हो गए दोनों, जल कर भस्म हो गए. एक प्यार का दुखद अंत हो गया. जीतेजी तो दोनों मिल न सकें, मर कर एक हो गए. तब तक पुलिस भी वहां पहुंच गई.

हमारे देश की यह भी एक अजीब हालत है. पुलिस मौके पर तब पहुंचती है जब गुनाह हो चुका होता है.  बेटे की मौत के जुर्म में पुलिस नरेंद्र को पकड़ कर ले गई. लेकिन वह दसबीस दिनों बाद ही छूट कर घर आ गया, क्योंकि मनीष  और शैली की हत्या तो हुई नहीं थी. पूरे गांव के सामने उन्होंने आत्मदाह किया था. खैर, जो भी हो पर एक पंडित की गलत भविष्यवाणी और पिता की जिद ने सब बरबाद कर दिया. किसी का कुछ नहीं गया, न उस कुंडली मिलान करने वाले महाज्ञानी, कर्मकांड करवाने वाले पंडित का और न ही मीरा के पिता और दबंग भाइयों का और न ही गांव समाज के लोगों का. जीवन अभिशप्त तो नरेंद्र, मीरा और उस के मासूम बेटे का बन गया.

फिल्म ‘भवाई ’को लेकर अभिनेता प्रतीक गांधी क्यों उत्साहित हैं?

एक अक्टूबर को प्रदर्शित होने वाली हार्दिक गुज्जर निर्देशित फिल्म ‘‘भवाई’’का टीजर व ट्रलर बाजार में आने के साथ ही ‘‘स्कैम 1992’’ फेम अभिनेता प्रतीक गांधी सूर्खियों में बने हुए हैं. फिल्म ‘भवाई’ के टीजर व ट्रेलर ने संवाद, संगीत, शानदार सेट, रंगीन वेश भूषा के चलते काफी व्यापक प्रभाव पैदा किया है, जिसके चलते पूरा देश प्रतीक गांधी  की भी प्रशंसा कर रहा है. फिल्म ‘‘भवाई’से निर्देषन के क्षेत्र में कदम रख रहे हार्दिक गज्जर की यह फिल्म प्रेम कहानी प्रधान संगीतमय फिल्म है. तो वहीं अभिनेता प्रतीक गांधी अपनी आगामी फिल्म‘भवई‘में बिल्कुल विपरीत अवतार में दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए तैयार हैं.

फिल्म‘‘भवाई’’की कहानी  1982 के गुजरात के एक ग्रामीण परिवेश की प्रेम कहानी है. जहाँ लोगों का जीवन अल्प विकसित है.जब एक स्थानीय राज नेता नाटक ‘रामलीला‘के एक सप्ताह के उत्सव की व्यवस्था करता है, तो अभिनय की आकांक्षाओं वाले एक स्थानीय युवाराजा राम जोषी (प्रतीकगांधी) कोइ समें रावण के रूप में अभिनय करने का मौका मिलता है.जबकि रानी(ऐंद्रितारे) को ‘देवी सीता‘की भूमिका निभाते हैं.पर दोनों अंततःप्यार में पड़ जाते हैं. मगर उनके आस-पास के लोग यह मानने से इनकार करते हैं कि रावण और सीता के बीच एक वैध संबंध हो सकता है. क्योंकि वह सीता को देवी और रावण को बुरी शक्ति मानते हैं.

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एक रूढ़िवादी गांव में विवाद के बीच, जहां लोग वास्तविक और रील जीवन के बीच अंतर नहीं कर सकते हैं.अंधविश्वास,  नकली धार्मिक विश्वास और साजिशें इस मीठी प्रेम कहानी में संघर्षों को जन्म देती हैं.तो क्या प्रेम कहानी अपने तार्कि क अंत तक पहुँचेगी या सदियों पुरानी धार्मिक मान्यताओं और राजनीतिक जोड़-तोड़ के आगे झुक जाएगी?

इस फिल्म से जुड़ने के सवाल पर अभिनेता प्रतीक गांधी कहते हैं-‘‘मैने इस फिल्म को ‘स्कैम 1992’ से पहले 2018 में स्वीकार की थी.जब मैंने पहली बार यह कहानी सुनी,  तो मैं इससे प्रभावित होकर इस फिल्म को करने का मन बना लिया था.

तब मैंने निर्देषक हार्दिक से कहा कि,‘अब आपतय करें कि आप मुझे इस किरदार के लिए चाहते हैं या नहीं.क्योंकि उस समय तक मैने केवल गुजराती भाषा की फिल्म ही की थी.  हिंदी में फिल्म बनाना और इसे रिलीज करना दोनों अलग-अलग कारक हैं क्योंकि इसमें विभिन्न चर हैं,  और इसके अलावा एक नया चेहरा लॉंच करना भी है चुनौतीपूर्ण था, इसलिए मैंने इसे निर्देश  र्दिक गज्जर पर छोड़ दिया था.‘‘

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लेकिन ओटीटी प्लेटफार्म पर वेबसीरीज ‘‘स्कैम 1992’’ को मिली जबरदस्त सफलता के बाद सारे हालात बदल गए. इस पर प्रतीक गांधी ने कहा-‘‘ जी हाॅ! पर मैं फिल्म ‘भवाई’को लेकर अति उत्साहित हूं.भवाई हमेशा मेरे दिल के करीब रहेगी.जिसकी कई वजहें हैं.पहली बात तो फिल्म‘ भवाई ’ मेरी पहली बॉलीवुड फिल्म है.किसी भी अभिनेता के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है.दूसरा पजह यह कि ‘ स्कैम 1992’ के माध्यम से मुझ पर लोगों का प्यार बरस रहा है.अब दर्शकों का एक समूह मुझे एक अलग भूमिका में देखने की उम्मीद कर रहा है, इसलिए मैं उन्हें कुछ अलग दिखाना चाहता हूं और वह इसका आनंद लेंगे. ”

डॉ.जयंती लाल गड़ा (पेनस्टूडियो) द्वारा प्रस्तुत, धवल जयंती लालगड़ा, अक्षय जयंती लाल गड़ा, पार्थ गज्जर, और हार्दिक गज्जर द्वारा निर्मित फिल्म ‘‘भवई’’में प्रतीक गांधी, ऐंद्रितारे, राजेंद्र गुप्ता, राजेश शर्मा और अभिमन्यु सिंह प्रमुख भूमिकाओं में हैं.

राज कुंद्रा की बेल के 4 दिन बाद शिल्पा शेट्टी ने शेयर की ये लंबी चौड़ी पोस्ट

बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पति लंबे समय के बाद जेल से रिहा होकर घर वापस आ चुके हैं. शिल्पा शेट्टी (shilpa shetty)  पति राज  (raj kundra) के आने के बाद से काफी ज्यादा खुश हैं.  शिल्पा शेट्टी ने राहत की सांस ली है. कुछ वक्त पहले ही शिल्पा शेट्टी (shilpa shetty) ने अपने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया था. जिसमें उन्होंने लिखा था कि  वह धीरे- धीरे बुरे समय से निकल रही हैं.

शिल्पा शेट्टी ने एक किताब का आर्टिकल शेयर किया था जिसमें लिखा था कि बुरे वक्त से जूझना बड़ी बात नहीं है लेकिन बुरे वक्त से उभरना बड़ी बात है. जिसपर शिल्पा शेट्टी ने वंडर वूमन का स्टीकर लगाया है. आगे उन्होंने लिखा है कि बुरा वक्त इंसान को और भी ज्यादा मजबूत और ताकतवर बनाता है.

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बुरा वक्त किसी को भी अच्छा नहीं लगता है लेकिन आने के बाद इससे जुझना ही पड़ता है. जैसे ही यह बुरा वक्त खत्म होता है हम अपने आप को सदमा से बाहर करने लगते हैं.

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गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है कि शिल्पा शेट्टी ने अपने दिल का हाल अपने किताब के जरिए शेयर किया है. इससे पहले भी शिल्पा शेट्टी ने कई बार अपने मन का हाल किताब के जरिए शेयर किया था.

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बता दें कि शिल्पा शेट्टी का यह पोस्ट सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. वहीं फैंस शिल्पा की जमकर तारीफ कर रहे हैं. वहीं शिल्पा शेट्टी को स्ट्रांग वूमेन भी कहा जा रहा है.

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