लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

मूंछ दारा नाम था उस का. लंबा शरीर और चौड़ा सीना. देखने में ऐसा लगता था मानो अभी अखाड़े से आ रहा हो. चेहरे पर हमेशा एक मुसकराहट बनी रहती थी. दारा की मां बचपन में मर गई थीं. गांव में बाबूजी ही बचे थे. वे ग्राम प्रधान का ट्रैक्टर चलाते थे, पर हमेशा यही चाहते थे कि उन का लड़का दारा पुलिस में सिपाही हो जाए, तो सारे गांव का ही नाम रोशन हो जाए और… फिर तो प्रधान भी उन्हें घुड़की नहीं दे पाएगा और उन का जितना भी पैसा दबा कर रखा है, वह सब सूद समेत वापस कर देगा. पर बेटा गांव में रह जाता तो वह भी मजदूर बन कर ही रह जाता, इसलिए दारा जैसे ही 10 साल का हुआ, वैसे ही उस के बाबूजी ने उसे शहर में उस के मामा के पास भेज दिया और उन से ताकीद की कि हर महीने खर्चापानी उन के पास आता रहेगा.

वे बस इतना करें कि दारा को पढ़ालिखा कर किसी तरह पुलिस में भरती करा दें. दारा के मामा एक ईंटभट्ठे पर काम करते थे. उन्होंने दारा से खूब मेहनत भी कराई थी और उसे यह भी अहसास करा दिया था कि अगर वह दौड़ में आगे रहेगा, तो पुलिस में भरती हो पाएगा, क्योंकि पुलिस में भरती होने के लिए दौड़ पक्की होनी चाहिए, इसलिए दारा खूब दौड़ लगाता, जिम में जा कर पसीना भी बहाता. भरती की प्रक्रिया में भाग भी लिया, पर इस बेरोजगारी के दौर में सरकारी नौकरी पाना इतना आसान नहीं था. दारा 20 साल को हो चुका था. वह पुलिस में भरती नहीं हो सका, तो अपनी जीविका चलाने के लिए उस ने एक मौल में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर ली. यह नौकरी भी दारा को इसलिए मिल पाई थी, क्योंकि उस का शरीर लंबाचौड़ा तो था ही, साथ ही उस की लंबीलंबी तलवारकट मूछें उसे और भी रोबीला बनाती थीं. वैसे तो आजकल शहरों में सभी नौजवानों में दाढ़ीमूंछ बढ़ाने का शौक चला हुआ था, पर दारा को तो मूंछें बड़ी रखने का शौक था और इस के लिए वह बहुत मेहनत भी करता था.

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बड़ी मूंछों को शैंपू करना और तेलक्रीम लगा कर उन्हें चमकीली बनाए रखना और अपनी मूंछों को सही रखने के लिए पूरे 5 किलोमीटर दूर एक खास सैलून में जाया करता था. मौल में नौकरी मिलना भी खुशी की बात थी. 12 घंटे काम करना था. काम क्या था, बस मौल के अंदरबाहर आतेजाते लोगों पर नजर रखो और साफसुथरी वरदी पहन कर खड़े रहो. 2 बार चाय भी मिलती थी मुफ्त में. दारा मौल के बाहर खड़ा हो कर पूरी निगरानी रखता और मौल के काउंटर पर रहने वाली एक लड़की रिनी को अपनी प्यारभरी नजरों से घूरा करता. अगर गोरा होना ही खूबसूरती है, तो वह लड़की बहुत खूबसूरत थी, लंबा शरीर, पतली कमर और कंधे तक झूलते हुए बाल.

रिनी डियो का इस्तेमाल खूब करती थी और अपने पीछे खुशबू का एक झोंका छोड़ जाती. रिनी जब भी मौल में घुसती, तो दारा उस के बदन की खुशबू लेने के लिए बेताब रहता और उस के आटोरिकशा से उतरते ही उसे देख कर तन कर खड़ा हो जाता और रिनी भी उसे देख कर मुसकरा देती. मौल के गेट पर खड़े दारा के 2 ही पसंदीदा काम थे, एक तो रिनी को ताकते रहना और दूसरा अपनी तलवारकट बड़ी और घनी मूंछों पर ताव देते रहना. दारा की ये बड़ी मूंछें उसे लोगों में एक अलग ही पहचान दिलाती थीं. ‘मौल में रिनी हर आने वाले ग्राहक का बिल काटते हुए मुसकराते हुए बात करती?है, जैसे वह उस का सगा वाला ही हो. शायद यह उस के काम की मजबूरी भी हो सकती है… जैसे मेरा मन भी बैठने को करता है, पर एक सिक्योरिटी गार्ड को तो तन कर खड़ा रहना पड़ता है… घंटों तक… अरे, यह नौकरी तो पुलिस की नौकरी से भी मुश्किल है.’ ‘अकसर खड़ेखड़े अपनेआप से बातें किया करता था दारा. ‘वह तो भला हो मौल में आने वाले परिवारों और उन के साथ आए छोटे बच्चों का… कितनी खुशी से आ कर पूरे मौल में घूमतेफिरते हैं… और पूरा मौल ही खरीद डालने की कोशिश में रहते हैं… मेरी शादी होगी तो मैं भी कम से कम 5 बच्चे पैदा करूंगा और उन के लिए खूब सामान खरीदा करूंगा…’ ‘‘शादी हो गई है क्या तुम्हारी?’’ चाय देने आए लड़के ने दारा की तंद्रा तोड़ते हुए पूछा.

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‘‘शादी… अभी तो नहीं.’’ ‘‘अरे, फिर इतना काहे खोएखोए हो… खुश भी रहो… मजा लो जिंदगी का.’’ और उस दिन वास्तव में दारा को जिंदगी का मजा मिल ही गया, जब मौल बंद होने के बाद रिनी ने दारा से उसे उस के घर तक छोड़ आने को कहा. ‘‘दरअसल… दारा, जब मैं अपने महल्ले में पहुंचती हूं, तब वहां नुक्कड़ पर कुछ आवारा लड़के खड़े रहते हैं जो मुझे छेड़ते हैं, इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम मेरे साथ चलो तो मैं महफूज महसूस करूंगी.’’ रिनी की इस गुजारिश को दारा नहीं टाल सका, क्योंकि जहां किसी लड़की की हिफाजत होती, वहां दारा किसी बौडीगार्ड की तरह अपना किरदार निभाने से पीछे नहीं हटता था. एक आटोरिकशा को रोक कर दोनों उस में सवार हो गए. दारा रिनी की खुशबू को अपने जेहन में महसूस कर सकता था, कनखियों से रिनी को देख रहा था. शहर के कई इलाकों से गुजरता हुआ आटोरिकशा रिनी के घर की तरफ जा रहा था, रिनी जाति से ईसाई थी और उस के पापा ने मां से तलाक ले लिया था. उस की मां ने ही उसे पालपोस कर बड़ा किया है.

घर में वह एकलौती कमाने वाली है और अब मां बीमार रहती हैं, इसलिए मां की सारी जिम्मेदारी उसी पर है. यह सारी जानकारी रिनी ने दारा को रास्ते में दी. दारा ने भी उसे अपने बारे में बताया कि उस की मां तो इस दुनिया में नहीं हैं, गांव में सिर्फ उस के बाबूजी ही रहते हैं. ‘‘अरे वाह, आज तुम से बातों में पता ही नहीं चला कि रास्ता कब खत्म हो गया और अब आ गए हो तो चाय पी कर ही जाना,’’ रिनी ने कहा. रिनी की इस बात को दारा टाल नहीं सका और वह उस के साथ उस के घर चला गया. रिनी के घर में एक ही छोटा सा कमरा था. एक कोने में रिनी की बीमार मां लेटी हुई थीं. दारा ने उन्हें नमस्ते किया और उन का हालचाल पूछा. पहले तो रिनी की मां की आंखों में दारा की तलवारकट मूंछों को देख कर कई सवाल आए, पर जब रिनी ने बताया कि दारा भी उस के साथ ही काम करता है, तो उन की आंखों में निश्चिंतता के भाव आए. दारा एक बार रिनी के घर क्या गया, फिर तो दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगीं. रिनी दारा के लिए अच्छा खाना बना कर लाती, तो कभी दारा अपना लंच भी रिनी के साथ शेयर करता.

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एक दिन दारा रिनी के लिए बाटीचोखा बना कर लाया, जो उस ने अपने मामा से बनाना सीखा था. रिनी अपनी उंगलियां चाटती रह गई थी. ‘‘अरे, कैसे बना लिया तुम ने इतना टेस्टी खाना… मुझे भी इस की रेसिपी जाननी है,’’ रिनी ने चहकते हुए कहा. ‘‘क्या है मैडम कि इस को बनाने में कई छोटीछोटी चीजों की जरूरत पड़ती है और अगर आप को सच में ही इसे बनाना सीखना है, तो आप को इसे बनता हुआ देखना होगा और उस के लिए आप को हमारे घर चलना होगा और तब ही आप इस को बनाना सीख पाएंगी.’’ दारा पहले से ही रिनी का यकीन जीत चुका था, इसलिए रिनी को उस के साथ जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई. एक दिन काम के बाद दोनों आटोरिकशा में बैठ कर दारा के घर की तरफ निकल लिए, पर रास्ते में तेज बारिश शुरू हो गई और पूरे रास्ते बारिश होती रही. दारा के घर की गली के अंदर आटोरिकशा का जाना मुमकिन नहीं था, इसलिए दोनों वहीं उतर गए. कुछ दूरी पर ही दारा का कमरा था. चूंकि बारिश अभी तेज थी और रुकने के कोई आसार नहीं नजर आ रहे थे, इसलिए दारा और रिनी ने पैदल चलना जारी रखा और भीगते हुए वे दोनों दारा के कमरे पर पहुंच गए. कमरे पर पहुंचने के बाद दारा ने रिनी को सिर पोंछने के लिए तौलिया दिया.

रिनी अपने बालों को झटक कर पोंछने लगी, उस का गोरा बदन पानी में भीगने के बाद और भी चमक उठा था. रिनी जब तौलिए को अपने बदन पर रगड़ती, तो जवान दारा का मन मचल उठता. दारा ने उपलों की आग जलाई और हाथ सेंकने लगा. रिनी भी उस के पास आ कर बैठ गई. उस की खुशबू दारा को मदहोश कर रही थी, फिर भी उस ने बाटी बनाने की तैयारी शुरू कर दी. इतने में रिनी को पता नहीं क्या सूझा कि उस ने दारा का हाथ पकड़ लिया. ‘‘पता है दारा… मुझे तुम्हारे जैसे मर्द की तलाश थी, जो शरीर से मजबूत होने के साथसाथ मेरा ध्यान रखने वाला भी हो,’’ रिनी एक ही सांस में मन की बात कह गई थी. रिनी की छुअन ने दारा के जवान जिस्म में आग लगा दी. उस ने रिनी को बांहों में भर लिया और उस के होंठों को चूमने लगा. दोनों अमरबेल की लता की तरह एकदूसरे से लिपट गए. बाहर उपलों की आग तेजी से जल रही थी और 2 जवान दिल अपने दिलों की आग को बुझाने में लगे हुए थे.

एक बार दोनों के बीच शर्म की दीवार गिरी, फिर तो दोनों के बीच कई बार शारीरिक संबंध बने, जिस का नतीजा यह हुआ कि रिनी पेट से हो गई. ‘‘सुनो दारा… अब हमें शादी कर लेनी चाहिए, क्योंकि मैं पेट से हो गई हूं.’’ उस की ये बात सुन कर दारा थोड़ा चौंक गया, क्योंकि अभी तक तो उस ने शादी के बारे में सोचा नहीं था और फिर गांव में बाबूजी दूसरे धर्म की लड़की से शादी की इजाजत तो कभी नहीं देंगे और दारा का घूमनाफिरना भले ही रिनी जैसे मौडर्न लड़की के साथ हो, पर अपने जीवनसाथी के तौर पर तो दारा ने गांव की सीधीसादी लड़की के बारे में ही सोचा था. ‘‘पर, मैं तुम से शादी नहीं कर सकता, क्योंकि मैं दूसरी जाति का हूं और मेरे गांव में तुम से शादी की इजाजत कभी नहीं मिलेगी,’’ दारा ने कहा. उस की यह बात सुन कर रिनी को बहुत दुख हुआ. वह परेशान हो उठी. ‘‘तो यह तुम ने मेरे शरीर को छूने से पहले क्यों नहीं सोचा था. तुम्हारी वे जातिवादी बातें तब कहां चली गई थीं, जब मेरे होेंठों से अपने होंठों को जोड़ते थे तुम… मैं तुम्हारे बच्चे को ले कर कहां जाऊं?’’ गुस्से में थी रिनी. ऐसा नहीं था कि दारा रिनी को प्यार नहीं करता था, पर दूसरे धर्म की रिनी से शादी करने की बात बाबूजी को बता कर वह उन के मन पर कुठाराघात नहीं करना चाहता था.

रिनी ने तो दारा से प्यार किया था और उस के प्यार की निशानी उस के पेट में बच्चे के रूप में पल रही थी, आजकल शहर में महिला सशक्तीकरण पर बहुत जोर दिया जा रहा था, जिसे देख और सुन कर रिनी ने भी अपने साथ हुए सुलूक को ले कर आवाज उठानी चाही और वह ‘करीम भाई’ नाम के एक आदमी से जा कर मिली. ऐसे तो करीम भाई एक छोटेमोटे नेता थे, पर उन पर कई मर्डर के भी आरोप थे और उन की इमेज एक आपराधिक रिकौर्ड वाले दबंग नेता की भी थी, जो गरीब और बेसहारा लोगों की मदद करने से पीछे नहीं हटता था. करीम भाई ने रिनी को पूरी मदद करने का भरोसा दिया और दारा को अपने ठिकाने पर बुलाया और समझाया. पहले तो दारा की लंबी तलवारकट मूंछों की बहुत तारीफ की और फिर बाद में उसे समझाया कि किसी लड़की को प्यार में धोखा देना अच्छी बात नहीं है, इसलिए वह चुपचाप रिनी से शादी कर ले, नहीं तो अंजाम बहुत बुरा होगा. करीम भाई की छिपी हुई धमकी को दारा अच्छी तरह समझ गया था. वह शादी करने को राजी तो हुआ, पर उस ने अपने बाबूजी को इस शादी की सूचना नहीं देने का फैसला किया और दोनों ने चर्च में जा कर शादी कर ली.

शादी के बाद दारा और रिनी खुश थे, रिनी ने मौल की जौब छोड़ दी और घर में ही रहने लगी. एक बेहतर भविष्य के सपने उस की आंखों में तैर रहे थे. अभी उन की शादी हुए 15 दिन ही हुए थे कि दारा के पास उस के गांव के प्रधान का फोन आया. उन्होंने बताया कि दारा के बाबूजी की मौत हो गई है. दारा यह खबर सुन कर परेशान हो उठा. गांव जा कर उसे बाबूजी की अंत्येष्टि करनी होगी और उस के बाद पता नहीं वहां कितना समय लग जाए, यह सोच कर आननफानन में वह रिनी को अपने साथ ले कर गांव की तरफ रवाना हो गया. दारा का गांव शहर से तकरीबन 400 किलोमीटर दूर था. वह शाम को चला था, तो गांव पहुंचते उसे अगला दिन हो गया. बस से उतर कर रिनी और दारा गांव तक पहुंचाने वाली सड़क पर तेजी से बढ़ने लगे. गांव के कुछ निठल्ले लड़के, जो अपनेआप को पूरे गांव का ठेकेदार समझते थे, उन्होंने जब एक नई शहरी लड़की को गांव में देखा. तो उस पर फिकरे कसने लगे. उन में से एक, जो सब का मुखिया लग रहा था, वह बोला, ‘‘दोस्तो, यह रसभरी तो अभी पूरी तरह पकी नहीं है… बड़ी गदर है… इस का रस चूसने में बड़ा मजा आएगा.’’ रिनी सन्न रह गई थी.

दारा ने यह सुना, तो उस का माथा ठनक गया था. उस की मुट्ठियां भिंच गईं, पर रिनी ने मौके की नजाकत देख कर दारा को अपनी तरफ खींचा और आगे की ओर चलने लगी. रिनी उन लोगों के भद्दे कमैंट्स पर ध्यान न कर के सिर झुकाए दारा का हाथ पकड़ कर चलती रही. ‘‘अरे, बड़ी जल्दी है तुम लोगों को गांव में जाने की… अरे ओए… तुम्हीं लोगों से कह रहे हैं… ओ तलवारकट मूंछ वाले… जरा बताते तो जाओ… कहां जा रहे हो? किस के यहां जा रहे हो?’’ एक निठल्ले ने पूछा. ‘‘जी, हमारे पिता का नाम पूरनलाल है और उन का स्वर्गवास हो गया है… हम उन की क्रिया के लिए गांव में आए हैं,’’ दुखी मन से सीधा जवाब दिया दारा ने. इतना कह कर दारा और रिनी वहां से चल दिए. ‘‘अरे… यह पूरनवा का लौंडा है… शहर जा कर कैसा गबरू हो गया है. साला मूंछ तो हम ठाकुरों जैसी रखा है… शहर में नौकरी कर के अपनी औकात भूल गया है… कोई बात नहीं… हम इस को इस की असली औकात बताते हैं,’’ बलवंत नाम का वह लड़का अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर इधरउधर फोन मिलाने लगा. दारा के घर पर गांव वाले इकट्ठा थे, कुछेक रिश्तेदार भी थे, जो लोग दारा को पहचान पाए, वे उस से लिपट कर रोने लगे. पिता की मृत देह देख कर दारा का सब्र जवाब दे गया. वह पिता की देह से लिपट कर रोने लगा. रिश्तेदारों ने हिम्मत दी, पर आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. ‘‘अब कुछ नहीं बचा है बेटा… जितनी देर ये देह पड़ी रहेगी,

उतनी देर पूरन की आत्मा फड़फड़ाएगी… इसलिए अब इसे जल्दी से जल्दी फूंकने का इंतजाम करो.’’ गांव वालों ने पहले से ही तैयारी कर रखी थी. मृत देह को श्मशान ले चलने की तैयारी होने लगी. बाप की अर्थी को जैसे ही दारा ने कंधा लगाया, बलवंत गांव के लड़कों के साथ वहां आ गया और दारा को देख कर कहने लगा, ‘‘क्या रे… शहर जा कर तू औकात भूल गया… हम ठाकुरों जैसी मूंछें रखता है. तू क्या समझता है कि लंबाचौड़ा शरीर पा कर तू भी ठाकुर हो जाएगा… और ये तलवार जैसी मूंछें रख लेगा, तो हम लोग डर जाएंगे…’’ ‘‘बाबूजी… हमें पिता की क्रिया कर लेने दो, फिर आप जो कहोगे हम मान लेंगे,’’ दारा ने कहा. ‘‘वह तो हम अपनेआप मनवा ही लेंगे…’’ एक मुस्टंडे ने पीछे खड़ी रिनी की ओर देख कर कहा. ‘‘पर, तेरी मूंछ तो छोटी और नीचे की ओर होनी चाहिए… तू ने ये तलवारकट मूंछें रख कर हम लोगों की बेइज्जती की है. उस की सजा तो तुझे भुगतनी होगी,’’ इतना कह कर उस लड़के ने दारा के सिर पर एक डंडा मारा, दूसरा डंडा और फिर तीसरा चौथा… 5वां… दारा ने बहुत प्रयास किया कि वह पिता की अर्थी को अपने कंधे से न गिरने दे,

पर वह नाकाम रहा और दारा के कंधे से उस के बाप की अर्थी एक ओर गिर गई और दूसरी ओर दारा का शरीर निढाल हो कर गिरने लगा. ‘‘अरे ओ बिरजू… जरा अपना उस्तरा निकाल और काट ले इस की ये तलवारकट मूंछें,’’ वह लड़का चीख रहा था. दारा के सिर से तेजी से खून निकल रहा था. उस की मुंदती हुई आंखें देख पा रही थीं कि बिरजू नाम का वह आदमी उस्तरा ले कर उस की ओर बढ़ रहा है और कुछ लोग रिनी को अपने कंधे पर उठा कर ले जा रहे हैं. घर के बाहर अब 2 लाशें पड़ी हुई थीं, एक ओर दारा के पिता की लाश, तो दूसरी ओर दारा की लाश… जिस पर अब मूंछ का कोई नामोनिशान नहीं था…

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