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Anupamaa: वनराज और अनुज में होगा डांस कम्पटीशन, अनुपमा और काव्या होगी हैरान

स्टार प्लस का सुपर हिट सीरियल अनुपमा में इन दिनों काफी ज्यादा बदलाव आ चुका है, अनुज के आने के बाद से वनराज को हर वक्त इस बात की चिंता रहती है कि कहीं अनुपमा अनुज के प्यार में  न पड़ जाए. इसलिए वह हर वक्त यह कोशिश करता है कि अनुज को अनुपमा से दूर रखा जाए.

अभीतक वनराज को यह बात समझ में आ गया है कि अनुज कही न कही अनुपमा को पसंद जरुर करता है. तभी वह काव्या को छोड़कर अनुपमा पर ज्यादा ध्यान दे रहा है. इतना ही नहीं मौका मिलने पर वनराज अनुज को कड़ी चुनौती दे डालता है.

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वनराज यह बार -बार दिखाने की कोशिश करता है कि वह अनुज कपाड़िया से कम नहीं है, ऐसे में वह पंजा लड़ाने की कोशिश करता है, जिसके बाद नशे भी धूत होकर वनराज और अनुज कपाड़िया एक दूसरे को डांस फ्लोर पर कप्टीशन देने वाले हैं, जिसमें वह एक -दूसरे के साथ डांस करते दिखेंगे, जिसे देखकर काव्या और अनुपमा हैरान हो जाएंगी.

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अब नशे में अनुज कपाड़िया आखिर कर वनराज के सामने यह सच उगल ही देगा कि वह अनुपमा को प्यार करता है. जिसके बाद से वनराज का शक यकिन में बदल जाएगा. अब आगे देखना यह है कि क्या होगा जब अनुपमा को अनुज कपाड़िया के इस सच्चाई के बारे में पता चलेगा. क्या वह इस फैसले को जानकर अनुज के साथ काम करना बंद कर देगी.

कांग्रेस को मिली संजीवनी: कन्हैया और जिग्नेश कांग्रेस में शामिल

पंजाब कांग्रेस में जारी जबरदस्त घमासान के बाद वहाँ हालात अभी बिखरे बिखरे ही हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह को गद्दी से उतारने के लिए अपना पूरा जोर लगा देने वाले  राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के दिल को इस जबरदस्त जीत के बाद भी शांति नहीं मिल पायी. अब उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. पहले कैप्टन को लेकर वे आलाकमान को हलकान किये रहे अब उनकी शिकायत है कि पंजाब कैबिनेट में उनके लोगों को जगह नहीं मिली. वहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह के भाजपा में जाने की सूचना से कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व परेशान है क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो आगामी विधानसभा चुनाव में पंजाब में कांग्रेस को खासा नुकसान हो जाएगा. वहीं नए नए मुख्यमंत्री बने चरणजीत सिंह चन्नी अभी अपने मंत्रिमंडल को समेटने और स्थिर करने में ही चकराए हुए हैं. उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा है.

कुल मिला के पंजाब की परेशानी ने कांग्रेस को हलकान कर रखा है, मगर इस सबके बीच कांग्रेस में दम फूंकने वाली खबर यह है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष और सीपीआई नेता कन्हैया कुमार और गुजरात के वडगाम से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं.

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इन दोनों धुरंधर युवा नेताओं के कांग्रेस में शामिल होते ही कांग्रेस में जैसे नयी जान आ गयी है तो वहीं  भाजपा को सांप सूंघ गया है. उल्लेखनीय है कि दोनों ही युवा नेता भाजपा की दक्षिणपंथी राजनीति के जबरदस्त विरोधी हैं और ये जिस तरह मोदी-शाह के साथ भाजपा और संघ को गरियाते हैं, उदाहरणों के साथ उन्हें लोकतंत्र का दुश्मन करार देते हैं, तर्क-ब-तर्क उनकी नीतियों का पोस्टमार्टम करते हैं, उन तर्कों को काट पाना भाजपा के किसी नेता के बूते की बात नहीं है. ख़ास बात यह है कि कन्हैया और जिग्नेश के आने से अब राहुल और प्रियंका को खुद को हिन्दू साबित करने की कोशिश नहीं करनी पड़ेगी, क्योंकि अब बात होगी सिर्फ जमीनी मुद्दों की. बात होगी जनता की. उसके लिए रोजगार की. भुखमरी, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ, गिरती अर्थव्यवस्था पर केंद्र सरकार को चारों तरफ से घेरा जाएगा.

गौरतलब है कि जिग्नेश मेवानी और कन्हैया कुमार को कांग्रेस में एंट्री कराने में मुख्य भूमिका राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने निभाई है. कहा जा रहा है कि आने वाले समय में प्रशांत खुद भी कांग्रेस का हाथ थामने वाले हैं. वहीं वह कवि कुमार विश्वास को भी कांग्रेस में लाने की तैयारी में हैं. कुमार कभी केजरीवाल के जिगरी दोस्त थे मगर लम्बे समय से उनकी दोस्ती में फफूंद लगी हुई है. कुमार पहले भी राजनीति में आने के इच्छुक थे मगर उनको ठीक मंच नहीं मिल पाया. कांग्रेस में युवा चेहरों के जुड़ने के बाद उनको यह मंच लुभा रहा है.

कुमार विश्वास को यूं तो पूरा देश उनकी कविताओं, ग़ज़लों, राजनीति और राजनेताओं पर तीखी टिप्पणियों से जानता है, सराहता है, मगर उत्तर प्रदेश में जन्मे कुमार विश्वास का कांग्रेस ज्वाइन करना आगामी विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम कर सकता है. कन्हैया और जिग्नेश का साथ पाकर जहां राहुल-प्रियंका उत्साहित हैं, वहीं कुमार विश्वास और खुद प्रशांत किशोर के कांग्रेस में आने की आहट ने समूची कांग्रेस में नयी जान फूंक दी है. गुजरात में युवा नेता हार्दिक पटेल तो पहले ही कांग्रेस का सहारा बन चुके हैं. राजस्थान में सचिन पायलट पार्टी का युवा चेहरा हैं.

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इन तमाम युवा चेहरों के एकसाथ आने से यह तय है कि ये यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में आगामी विधानसभ चुनावों में कांग्रेस पूरी मजबूती के साथ जनता के सामने होगी. जनता को अपनी बातों व तर्कों से प्रभावित करने का बूता रखने वाले ये तमाम नेता कांग्रेस के लिए जबरदस्त प्रचार करेंगे. इनकी भाषण क्षमता का प्रभाव वोटर्स पर पड़ना निश्चित है, इससे इन राज्यों में तो कांग्रेस को फायदा मिलेगा ही, राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस मजबूत होकर उभरेगी.

कन्हैया कुमार आंदोलन से निकले हुए नेता हैं और कांग्रेस को अभी हर दिन आंदोलन की जरूरत है, ऐसे में वे निश्चित तौर पर सिर्फ बिहार कांग्रेस में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में कांग्रेसियों के बीच ऊर्जा का प्रवाह करेंगे.भारतीय जनता पार्टी और संघ जिस तरह पूरे देश को दक्षिणपंथी सोच में ढालने की कोशिश में लगे हैं, कांग्रेस में आने वाले ये तमाम युवा चेहरे उस सोच को तोड़ने का माद्दा रखते हैं. बाबा साहेब आंबेडकर के संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों में गहरा विश्वास रखने वाले ये वो लोग हैं जो गरीबी के दलदल से निकले हैं और देश की अस्सी फीसदी जनता जिन तकलीफों और परेशानियों में जकड़ी है उसे बखूबी समझते हैं. वहीं ये भाजपा की साम्प्रदायिक कुटिलता और दक्षिणपंथी सोच के शिकार भी रह चुके हैं, उनके द्वारा देशद्रोह के झूठे आरोपों में जेल की हवा भी खा चुके हैं, तो भाजपा को उखाड़ फेंकने का कोई मौक़ा अब ये नहीं गवाएंगे.

कन्हैया कुमार ने तो पार्टी ज्वाइन करते ही अपनी मंशा साफ़ कर दी है. मीडिया से मुखातिब होते ही उन्होंने कहा – “मैं कांग्रेस पार्टी इसलिए ज्वाइन कर रहा हूं क्योंकि मुझे ये महसूस होता है कि इस देश में कुछ लोग, वो सिर्फ लोग नहीं है वो एक सोच हैं. वो इस देश की सत्ता पर न सिर्फ काबिज हुए हैं, इस देश की चिंतन, परंपरा, संस्कृति, इसका मूल्य, इसका इतिहास, इसका वर्तमान और इसका भविष्य खराब करने की कोशिश कर रहे हैं. हमने ये चुनाव किया है कि हम इस देश की सबसे पुरानी पार्टी, सबसे लोकतांत्रिक पार्टी में इसलिए शामिल होना चाहते हैं कि हमको लगता है और इस देश के लाखों लोगों को लगने लगा है कि अगर कांग्रेस नहीं बची तो ये देश नहीं बचेगा. कांग्रेस सिर्फ एक पार्टी नहीं है, यह एक विचार है. यह देश की सबसे पुरानी और सबसे लोकतांत्रिक पार्टी है, और मैं ‘लोकतंत्र’ पर जोर दे रहा हूं… सिर्फ मैं ही नहीं कई लोग सोचते हैं कि देश कांग्रेस के बिना नहीं रह सकता.”

कन्हैया ने कहा – ”देश 1947 से पहले वाली स्थिति में चला गया है. कांग्रेस पार्टी वो पार्टी है जो महात्मा गांधी की विरासत को लेकर आगे चलेगी. लोकसभा में 545 सीटें हैं, इसमें दो सौ सीटें लगभग ऐसी हैं जहां भाजपा के सामने कांग्रेस के अलावे कोई विकल्प नहीं है. कांग्रेस पार्टी एक बड़ा जहाज है, अगर ये पार्टी बचेगी तो इस देश के लाखों करोड़ों नौजवानों की अकाक्षाएं बचेंगी. भगत सिंह के सपनों का भारत बचेगा और बाबा साहेब की समानता के भारत का निर्माण संभव हो पाएगा.”

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर कन्हैया को फ्री हैंड मिला तो आने वाले पांच-सात सालों में उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस की स्थिति बहुत बेहतर हो जाएगी. कन्हैया कुमार इस देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की लड़ाई के प्रतीक हैं. उन्होंने एक छात्र नेता के रूप में कट्टरवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी. इस तरह के गतिशील व्यक्तित्व के शामिल होने से कांग्रेस का पूरा कैडर उत्साह से भर जाएगा. कन्हैया के कारण बिहार में कांग्रेस, आरजेडी की पिछलग्गू नहीं रह जाएगी.

कन्हैया के कांग्रेस में आने से बिहार में तेजस्वी यादव की राह में एक बड़ा रोड़ा पैदा होगा. कन्हैया ने जो लाइन खींची है वो तेजस्वी यादव से बहुत बड़ी है. यह बात खुद तेजस्वी यादव भी बहुत अच्छी तरह जानते हैं. क्योंकि लोकसभा चुनाव में कन्हैया को हराने के लिए तेजस्वी की पार्टी आरजेडी ने काफी अहम भूमिका निभाई थी. उस सीट से भाजपा के सबसे जहरीले नेताओं में से एक गिरिराज सिंह चुनाव जीते थे. अब विधानसभा चुनाव में सिर्फ यादव वोट ही तेजस्वी के खाते में जाएंगे क्योंकि पिछड़ा, दलित और मुस्लिम वोट के लिए कन्हैया के नेतृत्व में कांग्रेस राज्य में बड़ा विकल्प बन कर खड़ी होगी. बहुत दिनों बात कांग्रेस को हिंदी बेल्ट में इतना पोलराइजिंग फिगर और पोटेंशियल वाला नेता मिला है. अगर इसका ठीक से इस्तेमाल हो गया तो भाजपा को अपना बोरिया-बिस्तर समेटने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा.

वहीं जिग्नेश मेवानी ने भी लोकतांत्रिक मूल्यों में अपनी आस्था जाहिर करते हुए साफ़ कहा – ”लोकतंत्र और भारत के विचार को बचाने के लिए, मुझे उस पार्टी के साथ रहना होगा जिसने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया और अंग्रेजों को देश से बाहर निकाला. इसलिए मैं आज यहां कांग्रेस के साथ हूं. मैं कानूनी वजह से औपचारिक रूप से कांग्रेस में शामिल नहीं हो सका. मैं एक निर्दलीय विधायक हूं, अगर मैं किसी पार्टी में शामिल होता हूं, तो मैं विधायक के रूप में नहीं रह सकता. मगर मैं वैचारिक रूप से कांग्रेस का हिस्सा हूं, और आगामी गुजरात चुनाव कांग्रेस के चुनाव चिह्न से लड़ूंगा.”

गुजरात की वडगाम विधानसभा सीट से जनप्रतिनिधि जिग्नेश मेवानी अगले साल गुजरात में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के गणित के लिहाज से काफी अहम साबित हो सकते हैं. दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले, पेशे से वकील तथा पूर्व पत्रकार जिग्नेश मेवानी ऐसे वक्त में कांग्रेस का हाथ थाम रहे हैं, जब पार्टी अनुसूचित जाति समुदाय की ओर हाथ बढ़ा रही है, जो उनका परंपरागत समर्थक रहा है. पार्टी ने पंजाब में भी कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर दलित मुख्यमंत्री – चरणजीत सिंह चन्नी – को तैनात किया है.

जिग्नेश मेवानी ने ट्वीट कर इस कदम का समर्थन भी किया था. उन्होंने लिखा था – “चरणजीत सिंह जी को पंजाब का मुख्यमंत्री नियुक्त करने का फैसला एक संदेश है, जो राहुल गांधी और कांग्रेस ने दिया है. इसका ज़ोरदार असर न सिर्फ दलितों पर होगा, बल्कि समूचे निचले तबके पर होगा. दलितों के लिए यह कदम सिर्फ शानदार नहीं, सुकून देने वाला भी है.”

जिग्नेश मेवानी अभी उत्तरी गुजरात के बनासकांठा जिले की वडगाम सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्होंने यह सीट कांग्रेस के समर्थन से 2017 के विधानसभा चुनावों में जीती थी. यह कांग्रेस के लिए एक मजबूत सीट विधानसभा सीट थी, लेकिन पार्टी ने मेवाणी को इस सीट पर समर्थन दिया, इसके बदले उन्होंने पूरे राज्य में कांग्रेस का समर्थन किया. 2016 में ऊना में दलितों के साथ हुई हिंसा के बाद राज्य में हुए प्रदर्शनों का उन्होंने नेतृत्व किया. वे गुजरात में दलितों के जमीन के हक के लिए भी लड़ते रहे हैं.

2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को गुजरात में 53 फीसदी दलितों के वोट मिले थे, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के डेटा के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनाव में गुजरात में 67 फीसदी दलितों ने कांग्रेस को वोट दिया. ऐसा उस वक्त हुआ जब ओबीसी, उच्च जातियों और आदिवासियों का मोह इस दौरान पार्टी से भंग हुआ.

मेवानी की वडगाम सीट 182 में से उन 9 विधानसभा सीटों में शामिल है, जहां लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को लीड मिली थी. पार्टी को दलितों का इतना समर्थन मेवानी की वजह से ही मिला था.जिग्नेश मेवानी और कन्हैया कुमार दोनों हिंदुत्व की विचारधारा के खिलाफ मजबूती से बोलते हैं. इसलिए ऐसे वक्त में जब टीएमसी, एआईएमआईएम, और समाजवादी पार्टी जैसे दल कांग्रेस की दक्षिणपंथी ताकतों के साथ मुकाबले की क्षमता को लेकर सवाल उठा रहे हैं , ऐसे में ये दोनों नेता कांग्रेस का बड़ा सम्बल बनेगे और विपक्षी दलों के बीच कांग्रेस के औरा को मजबूत करेंगे. खासकर भाजपा विरोधी युवा वोटरों के बीच वह यह संदेश आसानी से पहुचायेंगे कि कांग्रेस ही देश में मुख्य भाजपा विरोधी ताकत है.

इसके साथ ही यह युवा नेता कांग्रेस में रूढ़िवादी विचारधारा वाले पुराने नेता, जो अब अपने अस्तबलों से बाहर निकल कर रेस में शामिल ही नहीं होना चाहते, के मुकाबले राहुल गांधी के नेतृत्व वाले सेंटर-लेफ्ट धड़े को मजबूती दे सकते हैं.बीते समय में और वर्तमान में कई लेफ्ट विचारधारा से जुड़े स्टूडेंट यूनियन लीडर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी राजनीति के लिए कांग्रेस को एक बेहतर विकल्प मानते हैं. ऐसा शायद इसलिए भी है क्योंकि सीपीआई और सीपीआई (एम) जैसी पार्टियों में आगे बढ़ने की संभावना काफी कम रह गई है. कन्हैया के कारण और भी छात्र नेताओं को कांग्रेस एक बढ़िया प्लेटफार्म नज़र आ रहा है. आने वाले समय में दक्षिणपंथी विचारधारा को भोथरा करने के इरादे से और भी धुरंधर लोग  कांग्रेस से जुड़ेंगे.

खौफ- भाग 1: हिना की मां के मन में किस बात का डर था

लेखिका- डा. के रानी 

शाम का समय था. राशि दी का फोन आ रहा था. यह देख कर हिना की खुशी का ठिकाना न रहा. वह सम?ा गई कि जरूर कोई खास बात होगी, जिस की वजह से उन्होंने इस समय फोन किया वरना वह रोज रात 10 बजे फोन करती है.

‘‘हैलो दी, कैसी हो? आज आप ने इस वक्त फोन कर दिया.’’ ‘‘क्या बताऊं, मु?ा से सब्र नहीं हो रहा था.’’ ‘‘ऐसी क्या बात हो गई?’’ ‘‘ईशा का रिश्ता पक्का हो गया है. बस, चट मंगनी पट ब्याह होना है. आज से ठीक 10 दिनों बाद सगाई है और उस के अगले दिन ही शादी है. तुम सब को आना है.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है, दी. मैं जरूर आऊंगी.’’‘‘मैं तेरी ही बात नहीं कर रही हूं, बल्कि राजीव, अनन्या और विनय को भी आना है.’’‘‘राजीव की मैं कह नहीं सकती. विनय के अगले महीने इम्तिहान हैं. एक को उस के साथ घर पर रहना होगा. मैं और अनन्या जरूर आएंगे, यह तो पक्का है. कुछ दामाद के बारे में भी बताओ,’’ हिना ने कहा तो राशि दी फोन पर उसे सारी बातें विस्तार से बताने लगीं. बातें करते हुए दोनों को एक घंटा हो गया था, तभी अनन्या ने आवाज लगाई,

‘‘मम्मी, बाहर कोई आया है आप से मिलने.’’‘‘अच्छा दी, बाद में बात करती हूं,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया. खुशी के मारे उस के पैर धरती पर नहीं पड़ रहे थे.राशि दी ईशा के रिश्ते को ले कर कब से परेशान थीं. इतना पढ़लिखने के बाद भी उस के लिए कोई अच्छा रिश्ता नहीं मिल रहा था. अब ऊपर वाले ने उन की सुन ली थी और ?ाट से उस का रिश्ता तय हो गया था. लड़का मल्टीनैशनल कंपनी में इंजीनियर था. अच्छाखासा परिवार था. वहां कोई कमी नहीं थी.

हिना ने खुशखबरी अनन्या और राजीव को भी सुना दी.‘‘मम्मी, ईशा दी की शादी में मजा आ जाएगा. मैं पूरे एक हफ्ते वहीं रहूंगी,’’ अनन्या बोली.‘‘यह क्या कह रही है? शादी के माहौल में इतने दिन कैसे रहा जा सकता है?’’‘‘मम्मी, यही तो मौका होता है सब से मिलने का. शादी में हमारे सारे कजिन आएंगे. वैसे, उन से व्हाट्सऐप पर चैट हो जाती है लेकिन आमनेसामने बात करने का मजा ही कुछ और है.’’

‘‘यह सब छोड़ो, पहले शादी के लिए ड्रैस तैयार करवानी है. समय बहुत कम है.’’‘‘आप ठीक कह रही हैं मम्मी. हम कल ही बाजार जा कर सब से पहले अपने लिए ड्रैस तैयार करवा लेते हैं, बाकी काम तो होते रहेंगे,’’ अनन्या बोली.मांबेटी दोनों ही शादी की तैयारी में उसी दिन से जुट गई थीं.

हिना को अब इस से आगे कुछ सू?ा ही नहीं रहा था. राजीव बोले, ‘‘हिना, मैं एक दिन के लिए ही शादी में आ सकता हूं, उस से ज्यादा नहीं. बेटे के इम्तिहान सिर पर हैं. मैं इस समय इतना बड़ा रिस्क नहीं ले सकता.’’‘‘जैसा तुम्हें ठीक लगे. मैं तो अनन्या के साथ 2 दिन पहले ही चली जाऊंगी. आप को अभी से बता देती हूं.’’

‘‘तुम्हारी जो मरजी, वह करो. इस मामले में मैं कुछ नहीं बोलूंगा. मैं ने अपनी दिक्कत तुम्हें बता दी है, बाकी उन लोगों से तुम खुद ही निबट लेना.’’एक हफ्ता कब गुजर गया, पता ही नहीं लगा. अब शादी में केवल 3 दिन रह गए थे.

अगले दिन हिना और अनन्या को शादी में राशि दी के घर जाना था. अनन्या बोली, ‘‘मम्मी, आप ने स्कूल से कितने दिन की छुट्टी ली है?’’‘‘3 दिन और क्या…? बीच में एक दिन इतवार है. कुल मिला कर 4 दिन हो जाएंगे.’’‘‘आप चली आना, मैं तो वहीं रुकूंगी,’’ अनन्या बोली, तो हिना ने उसे घूर कर देखा. वह जानती थी कि मम्मी किसी भी कीमत पर उसे अकेले नहीं छोड़ेंगी और अपने साथ ही वापस ले आएंगी.

बचपन से वह यही सब देखती आई थी. मम्मी जहां कहीं भी जाती हैं, उसे अपने साथ ले कर जाती हैं. कहीं छोड़ने की नौबत आती तो बहाना बना कर टाल देतीं.पता नहीं क्यों मम्मी बेटी को किसी के भी घर पर अकेले छोड़ने में बहुत डरती थीं. इतना ही नहीं, घर पर कोई मेहमान आता तो वे उन की हर सुविधा का खयाल रखतीं. रात में कोई प्रोग्राम हो तो वे अनन्या के शामिल होने पर पहले ही एतराज जता देती थीं.

मम्मी का रुख देख कर अनन्या ने अब कुछ कहना ही छोड़ दिया था.अलीगढ़ से आगरा का केवल 2 घंटे का रास्ता था. वे टैक्सी से वहां पहुंच गए थे. उन्हें देख कर राशि दी बहुत खुश हुईं.‘‘हिना, तेरे आ जाने से मेरी हिम्मत बहुत बढ़ गई है, नहीं तो मैं बड़ा नर्वस हो रही थी. घर पर पहलीपहली शादी है, इसीलिए मु?ो थोड़ा डर लग रहा है.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है दी. हम मिलजुल कर काम करेंगे तो सबकुछ अच्छे से निबट जाएगा.’’‘‘हां, यह बात तो है. लड़के वालों की कोई डिमांड नहीं है. वे बहुत शरीफ लोग हैं. इसी वजह से मु?ो और ज्यादा हिचक हो रही है. हम अपनी बेटी की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. भले ही वे अपने मुंह से कुछ नहीं कह रहे.’’काफी देर तक वे बातें करती रहीं. अनन्या ईशा के पास आ गई और बोली, ‘‘कैसे हैं हमारे जीजू?’’

‘‘तुम खुद ही देख लेना.’’‘‘वह तो मैं देख लूंगी. तुम भी तो कुछ बताओ.’’‘‘मु?ो तो वे बहुत अच्छे लगे. वे बहुत सुल?ो हुए हैं. वे किसी से ज्यादा बात नहीं करते.’’‘‘अभी बात करने में डरते होंगे. धीरेधीरे तुम से और हम से भी उन की खूब बातें होने लगेंगी और कौनकौन आ रहा है?’’ अनन्या ईशा को चिढ़ाते हुए बोली.‘‘सब आ रहे हैं. मामा के दोनों बेटे और बूआ की दोनों लड़कियां कल  तक पहुंच जाएंगे. तुम्हारे आने से घर  में शादी के माहौल की शुरुआत हो  गई है.’’बातें करते हुए रात हो गई थी. हिना ने कहा, ‘‘दी, मेरे लिए अलग कमरे की व्यवस्था कर देना.’’

‘‘तु?ो कहने की जरूरत नहीं है. मैं जानती हूं कि तू क्या चाहती है? मैं ने तेरे लिए पहले से ही व्यवस्था कर दी है. तुम और अनन्या ऊपर के कमरे में आराम से रहना.’’‘‘थैंक्यू दी,’’ कह कर हिना अनन्या के साथ वहां आ गई. उन्होंने अच्छे से अपना सामान व्यवस्थित कर लिया. हिना ने हमेशा की तरह यहां आ कर अनन्या को ढेर सारी नसीहतें दे डालीं.

 

रिश्तों और प्यार पर चोट करता पैसा

पैसा कमाने के लिए लोग अपने परिवार को छोड़ कर बाहर दूसरी जगह भी जाते हैं. कहावत है कि बाप बड़ा न भैया सब से बड़ा रुपैया. पैसा एक ऐसी चाह है जिस के पास ज्यादा हो वह परेशान, जिस के पास कम हो उसे अधिक पाने की लालसा. यही लालसा परिवार और समाज पर भारी पड़ती है. पैसे को ले कर अकसर रिश्तों में दरार आ जाती है.

कभीकभी पैसा ऐसा विवाद बन जाता है जो समाज में रिश्तों को शर्मिंदगी की ओर ढकेलता है, अपनों के बीच खींचातानी, परिवार में लड़ाईझगड़े, मारपीट आदि. यहां तक कि लोग अपनों का खून बहाने में जरा सा भी परहेज नहीं करते हैं. कहा जाता है कि दुनिया में 3 चीजें हैं जो अपनों को आपस में लड़ा देती हैं-जर, जोरू और जमीन. ये ऐसी चीजें हैं जिन से एक हंसताखेलता परिवार बर्बादी की कगार पर पहुंच जाता है.

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अगर सब ठीक न रहा तो रिश्तों की मिठास में ये चीजें जहर का काम करती हैं. इंसान की प्रवृत्ति में बराबरी की चाह सब से खतरनाक बीमारी है. जब लोगों के जेहन में यह चाह बैठ जाती है तो फिर परिवार और रिश्तों में नया मोड़ आता है. वह मोड़ आपसी कलह और विवाद का होता है. एक बार जब आपसी मतभेद शुरू हो जाते हैं तो परिवार के हालात को सुधारना काफी मुश्किल होता है. ऐसे में पारिवारिक रिश्तों को समझना जरूरी होता है. कई परिवारों को सिर्फ पैसे के विवाद को ले कर टूटते देखा गया है. पैसे के विवाद को ले कर अकसर अखबारों और खबरिया चैनलों में खबरें आती हैं, कहीं भाई ने भाई को मारा तो कहीं पुत्र ने पिता को. लोग पैसे को ले कर क्या अपने, क्या पराए का खून बहाने में जरा सा संकोच नहीं करते. पारिवारिक रिश्ते को चलाने और निभाने के लिए दिल में बहुत सहनशक्ति होनी चाहिए.

रिश्तों में मधुरता जरूरी

हर रिश्ता कच्चे रेशम की डोर से बंधा होता है. अगर वह टूट जाता है तो आसानी से जुड़ता नहीं है. जुड़ता भी है तो दिल में एक गांठ जरूर पड़ जाती है. समाज में जितना जरूरी पैसा है उस से कहीं ज्यादा जरूरी रिश्ते को माना जाता है. यह सच है कि पैसा सब की जरूरत है. लेकिन आप के पास बहुत पैसा हो और परिवार की खुशी न हो तो कहीं न कहीं आप हमेशा अधूरे से रहेंगे. पैसा हमेशा न टिकने वाला होता है लेकिन संबंध समाज में हमेशा सुखदुख में काम आने वाले होते हैं. इसलिए पैसे को महत्त्व न दे कर अगर रिश्तों में मधुरता लाने की कोशिश की जाए तो इस विवाद को कम किया जा सकता है.

जलन की भावना

पैसे का विवाद अधिकतर एकदूसरे से जलन की भावना से शुरू होता है. परिवार हो या पड़ोसी, अगर आप के अंदर इस कुंठा ने जन्म ले लिया है तो मनमुटाव होना लाजिमी है. परिवार में सभी लोग बराबरी में नहीं रह सकते. किसी को अच्छी नौकरी, तो किसी को खानेकमाने भर की. जो खानेकमाने भर की नौकरी करता है उसे अच्छी नौकरी की तलाश करनी चाहिए न कि अच्छी नौकरी करने वाले को ले कर अपना मन कुंठित करे. ऐसा करने से केवल एकदूसरे के प्रति दूरियां बढ़ने के सिवा कुछ नहीं मिलता, आपसी रिश्तों में मनमुटाव शुरू हो जाता है जो आगे चल कर एक विवाद का रूप ले लेता है.

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महत्त्वाकांक्षाओं पर काबू

हम अपने आसपास अगर पैसे के विवाद को देखते हैं तो उस में से एक बात जरूर सामने आती है, मनुष्य की बढ़ती हुई आकांक्षा. फलां व्यक्ति के पास यह चीज है, मेरे पास नहीं है. या फिर हमारे भाई के पास है तो मेरे पास क्यों नहीं. सीधी सी बात है, जितनी चादर उतने पैर फैलाओ. मान लो, अगर आप के परिवार में किसी के पास कार है तो वक्तजरूरत आप के काम आएगी. इसी में खुश रहना चाहिए और अगर आप उस लायक नहीं हैं तो आप को इस सोच से जीना चाहिए कि मेरे पास भले न हो लेकिन मेरे घरपरिवार में तो उपलब्ध है.

आपसी मनमुटाव

अगर परिवार में पैसे को ले कर आपसी मनमुटाव चल रहा है तो परिवार के साथ बैठ कर बातचीत करें. अकसर देखा जाता है कि घरपरिवार की बातें जब बाहर निकल कर जाती हैं तो वे एक प्रकार से ऐसी बीमारी बन जाती हैं जो दीमक की तरह खोखला करने का काम करती हैं. उस का कारण यह है कि घर की बातों पर घरफूंक तमाशा देखने वाले बहुत से लोग होते हैं. जब आप घर की बातों को किसी दूसरे से शेयर करते हैं तो उस बात पर मजे लेने वाले बहुत से लोग होते हैं जो कि परिवार को आपस में लड़वाने का काम अच्छे से जानते हैं.

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अगर आप को परिवार में जमीन, पैसे को ले कर कोई समस्या है तो अपने घर में परिवार के सदस्यों के साथ बैठ कर हल करें जिस से आप अपने दिल की पूरी बात अपनों के सामने रख सकें और उस का निदान परिवार के लोग आसानी से निकाल सकें. इसलिए आपसी मनमुटाव का हल स्वयं करें. किसी बाहरी व्यक्ति को ज्यादा महत्त्व न दें.

सहनशक्ति की भावना

रिश्तों में सहनशक्ति की भावना होना बहुत जरूरी है. अगर आप के अंदर सहनशक्ति की भावना है तो आप किसी भी रिश्ते को अच्छे से निभा सकते हैं. पैसे, जमीन जैसे विवाद में सहनशक्ति की भावना होनी जरूरी है ताकि विवाद उत्पन्न होने की संभावनाएं कम रहें. ऐसी स्थिति में एकदूसरे को समझना बहुत जरूरी है, एकदूसरे की भावनाओं की कद्र करना जरूरी है. अगर परिवार का मुखिया अपने किसी लड़के को उस की मदद के लिए ज्यादा पैसा दे रहा है तो दूसरे लड़के को उस की परिस्थिति को देख कर अपनी बात रखनी चाहिए. कभीकभी देखा गया है कि हर तरह से संपन्न लड़का ऐसी बातों पर एतराज जताता है. एक घर की बात बताना चाहता हूं. 2 लड़कों में एक सरकारी नौकर है और एक के पास प्राइवेट नौकरी थी जो छूट गई है. मां को पैंशन मिलती है जिस से बेरोजगार लड़के का खर्च अभी चल रहा है. लेकिन सरकारी नौकरी करने वाले लड़के ने मां को हमेशा ताना दिया कि सारा पैसा अपने उस बेटे पर खर्च करती हो. स्थिति ऐसी आई कि जब उस की मां बीमार हुई तो उस लड़के ने कहा कि जिस के ऊपर पैसा खर्च किया, वह इलाज करवाए. आज वह मां दर्द से कराहती है और आंखों से आंसू बहते रहते हैं. सहनशक्ति न होना परिवार में विवाद खड़े करने के अलावा कोई दूसरा काम नहीं करता. ऐसे में परिवार में कलह होना स्वाभाविक है.

समझदारी से लें काम

समाज में रहते हुए अपने परिवार के प्रति हमेशा संवेदनशील रहना चाहिए. आप के ऊपर कोई परेशानी हो या खुशी, परिवार हमेशा आप के साथ खड़ा रहता है. ऐसे में पैसे को ले कर विवाद खड़ा कर आप अपनों से दूर हो सकते हैं. रिश्ते चाहे पारिवारिक हों, पड़ोसी या दोस्ती के, अधिकतर देखा जाता है कि उधार लिए गए पैसे चुका न पाने से विवाद खड़ा होता है जिस में फिर मारपीट, लड़ाईझगड़े होने लगते हैं.

ऐसे मामलों में लोग अपना आपा खो देते हैं और एक बड़े अपराध को जन्म दे डालते हैं. ऐसे हालात में लोगों को समझदारी से काम लेना चाहिए. उधार लेने वाले को भी और देने वाले को भी. लेने वाले को थोड़ाथोड़ा कर चुकाने का प्रयास करना चाहिए. उधार देने वाले को अपने अंदर थोड़ा संतोष रखना चाहिए. एक अच्छी समझदारी ही ऐसे विवादों को रोक सकती है.

एक पति ऐसा भी

अभी कुछ दशक पहले तक महिलाओं की स्थिति काफी असंतोषजनक थी. पुरुष मनमानी करता था. कभीकभी तो पति अपनी पत्नी के साथ या पुत्र द्वारा अपनी मां तथा परिवार की अन्य महिलाओं व बच्चों के साथ बहुत कठोर व्यवहार किया जाता था या उन का परित्याग ही कर दिया जाता था. ऐसी महिलाओं के समक्ष निर्वाह करने का संकट भी उत्पन्न हो जाता था. कानून से लाभ मिलने में समय बहुत अधिक लगता था. परित्यक्त महिलाएं अधिकतर मामलों में असहाय ही रहती थीं. अंगरेजों ने अपने शासनकाल में परित्यक्त महिलाओं की स्थिति को भलीभांति पहचान लिया था तथा कानून क्रिमिनल प्रोसीजर कोड में वर्ष 1898 में ही ऐसी व्यवस्था कर दी थी कि यदि साधनसंपन्न होने के बाद भी बिना किसी जायज कारण के विवाहित महिला का पति निर्वाह करने में उपेक्षा करता है या अपनी विधिक या अविधिक अवयस्क पुत्रपुत्रियों की उपेक्षा करता है तो उपेक्षित लोग मजिस्ट्रेट के समक्ष साधारण आवेदन कर के अपने पति या पिता से निर्वाह भत्ता प्राप्त कर सकते थे.

प्रथम बार, यह प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता 1898 की धारा 488 में किया गया था तथा उस समय भरणपोषण भत्ते की अधिकतम धनराशि 50 रुपए निर्धारित की गई थी, जो बढ़ा कर बाद में 200 रुपए कर दी गई थी. ऐसी व्यवस्था की गई थी कि कोई भी व्यक्ति इस प्रावधान का अनुचित लाभ न उठा सके तथा निर्वाह भत्ता देने वाले व्यक्ति के साथ भी कोई कठिनाई न हो. अंगरेजों द्वारा बनाया गया यह प्रावधान सभी धर्मों की औरतों पर समानरूप से प्रभावी होता था. इस प्रावधान ने विशेष रूप से परित्यक्त महिलाओं को, किसी सीमा तक आर्थिक संकट से मुक्ति दिलाई थी. मजिस्ट्रेटों के समक्ष काफी बड़ी संख्या में ऐसे आवेदन प्राप्त होते थे तथा उन का निबटारा भी शीघ्रता के साथ करा जाता था.

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दंड प्रक्रिया संहिता 1898 के स्थान पर बाद में दंड प्रक्रिया संहिता 1973 बनाई गई परंतु निर्वाह भत्ते के प्रावधान को ज्यों का त्यों रखते हुए निर्वाह भत्ते की राशि बढ़ा कर 500 रुपए प्रतिमाह तय कर दी गई जो कि उस समय संतोषजनक व पर्याप्त होती थी.

सम्मानजनक दृष्टिकोण

मैं ने अपने कैरियर के शुरू में अधिवक्ता के रूप में कार्य करते समय तथा बाद में न्यायिक सेवा में आने के बाद बड़ी संख्या में ऐसे मामलों का फैसला किया है जिन में पाया कि ऐसे प्रकरणों में पतिपत्नी के रिश्तों के मध्य कितनी कटुता होती है. वे एकदूसरे पर कैसाकैसा दोषारोपण करते हैं, लांछन लगाते हैं. वे एकदूसरे को नीचा दिखाने व अपमानित करने में हर दांवपेंच का प्रयोग करते हैं. वे स्वयं को दंभी व विजयी प्रदर्शित करते हैं. ऐसे प्रकरणों का निस्तारण करतेकरते, मैं ने मानव स्वभाव को काफी गंभीरता से गहराई तक समझने का प्रयास किया. ऐसे प्रकरणों ने बहुत सिखाया भी.

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एक ऐसा प्रकरण वर्ष 1988 में मेरठ में, न्यायिक अधिकारी की नियुक्ति के समय मेरे समक्ष आया जिस से मैं यह सोचने को विवश हो गया कि भले ही हम इस समाज को पुरुषप्रधान कहें परंतु सभी पुरुष एकजैसे नहीं होते. विवाद किसी सीमा तक बढ़ जाए परंतु कुछ पक्ष फिर भी अपने पिता व अपनी पत्नी के प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण रखते हैं. ऐसे पक्षों की संख्या बहुत कम होती है.

पति की दरियादिली

घटना यह थी कि 30 वर्षीय महिला द्वारा अपने पति पर कू्ररतापूर्ण व्यवहार करने, निर्वाह में उपेक्षा करने तथा बिना किसी कारण के परित्याग करने के कथनों के साथ, पति से निर्वाह भत्ता दिलाए जाने हेतु आवेदनपत्र दिया गया एवं अधिकतम निर्धारित धनराशि 500 रुपए प्रतिमाह की दर से निर्वाह भत्ता दिलाने की प्रार्थना की गई. समन प्राप्त होने पर प्रथम तिथि को ही पति न्यायालय में उपस्थित हुआ तथा आवेदनपत्र दे कर कहा कि मेरी पत्नी ने 500 रुपए की दर से निर्वाह भत्ता मांगा है जोकि बहुत कम है. जिस स्टेटस के अनुसार वह मेरे साथ रहती थी उस स्टेटस के साथ जीने के लिए तो कम से कम 2 हजार रुपए प्रतिमाह चाहिए और मैं 2 हजार रुपए का चैक दे रहा हूं तथा हर माह देता रहूंगा ताकि मेरी पत्नी को निर्वाह करने में कोई कठिनाई न हो. उस की पत्नी, वकील तथा मैं स्वयं भी उस व्यक्ति को आश्चर्य से देखते रहे. उस के मनोभाव को समझने का प्रयास किया कि कहीं ऐसा दंभ एवं अहंकार के कारण तो नहीं कर रहा. परंतु ऐसा कुछ भी नहीं था. जब तक वह मुकदमा मेरे न्यायालय में रहा, वह व्यक्ति प्रतिमाह 2 हजार रुपए का चैक जमा करता रहा. जहां प्रत्येक ऐसे प्रकरण में पति कितना भी साधन संपन्न हो, अपनी पत्नी का निर्वाह भत्ता देने में स्वयं को असहाय, विपन्न व अर्थहीन सिद्ध करने का प्रयास करता था, वहीं उस व्यक्ति की दरियादिली मेरी समझ से परे थी या मैं यह भूल गया था कि सभी व्यक्तियों को एक तरह का नहीं माना जा सकता. न जाने क्या कारण थे, जिन के चलते वे अलगअलग रह रहे थे. दोनों में से किसी ने भी वे कारण व्यक्त नहीं किए.

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इस प्रकरण का आश्चर्यजनक पहलू यह था कि दोनों में से किसी ने भी साथसाथ रहने में उत्सुकता नहीं दिखाई और मैं प्रयास करने के बाद भी दोनों में समझौता नहीं करवा पाया. इस प्रकरण ने मुझे सोचने को विवश किया. ऐसा कोई उदाहरण मेरी पूरी न्यायिक सेवा के दौरान दूसरा नहीं आया. प्रकरण तो बहुत आए और सभी में दोनों पक्षों की ओर से एकदूसरे पर दोषारोपण ही किया गया और पति द्वारा निर्वाह भत्ता के भुगतान में अपनी असमर्थता ही प्रकट की गई. यह घटना मेरे लिए आंखें खोलने वाली थी. इस से और लोग भी सीख ग्रहण कर सकते हैं.

(लेखक उत्तराखंड के नैनीताल स्थित उच्च न्यायालय में महानिबंधक रहे हैं.)

प्रेम कबूतर : भाग 2

मेरे पिता सरकारी नौकरी में थे. हालाँकि अच्छे पद पर थें, इज्जत भी थी, लेकिन ईमानदार होने के कारण अथाह पैसा नहीं था. शिक्षा को महत्व देने वाले इस परिवार की मैं छोटी लड़की थी. मम्मी-पाप आम भारतीय अभिभावकों जैसे ही थें. मेरी आगामी बोर्ड परीक्षाओं के लिये परेशान. सम्पा दीदी के दिल्ली जाकर पत्रकारिता के कोर्स करने की जिद को लेकर परेशान. बड़े भैया की हर साल बढ़ती फीस को लेकर परेशान. दिनोदिन बढ़ती महँगाई और महँगी होती शिक्षा के बीच अपनी स्थिर कमाई का सामंजस्य बिठाते माँ-बाप, अपने बच्चों की मनोदशा को क्या पढ़ पातें!

बड़े भैया शिलांग से मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थें. एक तरह से अच्छा ही हुआ जो वे यहाँ नहीं थें. भैया जानते ही चीख-चिल्लाकर घर को सिर पर उठा लेतें. वैसे जब सम्पा दीदी को पता चला था, हंगामा कम उसने भी नहीं किया था. उसने मुझे सलाह मिश्रित डाँट की कड़वी घुट पिलायी थी.

हुआ यूँ कि, उस शाम अखिल का मोमो खाने का मन कर गया था. अब अखिल कहे और मैं न करूँ, ऐसा तो हो नहीं सकता. लेकिन महीने के आखिरी दिन थें और मेरी जमा-पूँजी समाप्त हो चुकी थी. मम्मी से माँगने पर मात्र पैसा संचय करने पर ज्ञान प्राप्त होता, यह मुझे मालूम था. माँगने पर तो वैसे पापा भी यह ही देते, बल्कि कुछ अधिक ही. लेकिन पापा से माँगता ही कौन था!

मैं तो पापा के वॉलेट से बिना उनकी अनुमति लिये, पैसे निकाल लिया करती थी. मेरे सरल पापा थोड़े भुलक्कड़ भी थें, जिसका फायदा मुझे मिल जाया करता था. मैं अपने ही घर में चोरी करने लगी थी. कभी-कभी मेरी आत्मा मुझे कचोटा करती थी. लेकिन, ठीक उसी समय हृदय मुझे समझा लेता कि, प्रेम में सब जायज है. लेकिन उस शाम पापा भी घर पर नहीं थें.

हारकर मुझे दीदी से पैसे माँगने पड़े, और वहीं मुझसे गलती हो गयी. पैसे के लिये मेरी बैचैनी देखकर उसे मुझपर शक हो गया था. जब मैं उससे पैसे लेकर घर से निकली, तो यह जान ही नहीं पायीं कि वो भी मेरे पीछे-पीछे निकल आयी थी.

उसने मुझे अखिल के साथ अंतरंग होकर बैठे देख लिया. मेरे घर लौटते ही वो बिफर पड़ी थी.

दीदी ने कहा-“यह तेरा अखिल के साथ क्या चल रहा है?”

मैंने कहा-“मैं उससे प्यार करती हूँ”

-“प्यार करती हूँ मतलब!?”

-“प्यार करती हूँ, मतलब प्यार करती हूँ”

-“वो तुझे मूर्ख बना रहा है! तुझे दिखता नहीं है. अब मुझे समझ आया तू उसका होमवर्क क्यों करती रहती थी.तेरा जेबखर्च इतनी जल्दी कैसे समाप्त हो जाया करता था. अरे पागल वो तेरा इस्तेमाल कर रहा है.

-“ऐसा कुछ नहीं है! वो अगर पढ़ाई में थोड़ा कमजोर है तो क्या उसकी सहायता करना गलत है!दूसरी बात, उसके पापा की आमदनी उतनी नहीं है कि वो मुझपर खर्च कर सकें. बेचारा खुद ही शर्मिन्दा होता रहता है. और फिर प्यार में खर्च कौन करता है, वह इतना जरूरी नहीं होता. कहीं लड़की कर देती है, कहीं लड़का दीदी, तुम ऐसा कहोगी, मैं नहीं जानती थी. क्या हो गया फेमिनिज्म की उन सभी बातों का क्या वे सभी किताबी थीं”

-“अब इसमें फेमिनिस्म कहाँ से आ गया. आ गया तो सुन ही लो, समय बराबरी का है. लड़का हो या लड़की.यदि दोनों में से कोई भी एक अधिक खर्च करें, और दूसरा उससे बेझिझक करायें, तो समझ लेना चाहिये कि, यहाँ रिश्ता प्रेम का नहीं है, स्वार्थ का है”

-“तुम प्यार को क्या जानो”

-“पुतुल, तू सही कह रही है. मैं प्रेम को नहीं जानती! पर मैं उसे जानती हूँ और तुझे भी. उसके पिता की आर्थिक तू ठगी जा रही है”

-“मेरा भला-बुरा मैं देख लूंगी. तुम बस मम्मी से कुछ मत कहना”

इसके बाद हम दोनों के बीच एक चुप बैठ गया. दीदी ने किसी से कुछ नहीं कहा और मुझसे भी कहना छोड़ दिया.

मेरा समय, अखिल के साथ और उसके बाद, उसके साथ के एहसास के साथ बीतने लगा था. अखिल को नित नये उपहार देना मेरी आदत बन गयी. उसकी बाइक में तेल डलवाना तो मेरी जिम्मेदारी थी ही, कभी-कभी उसका फोन भी रिचार्ज कराना पड़ता था. हर दूसरे दिन अखिल का मन रेस्टुरेंट में खाने का हो जाया करता था. अखिल की प्रसन्नता मेरे लिये महत्वपूर्ण थी. उसकी उदासीनता मेरे लिये असहनीय थी. मुझे ऐसा लगता कि अखिल जैसे लड़के का मुझ जैसी लड़की को प्यार करना, एक एहसान हो; और मैं उसकी कीमत अदा कर रही थी. मैं यह समझ ही नहीं पा रही थी कि प्रेम व्यापार नहीं होता.

अखिल से निकटता बनाये रखने के क्रम में, मैं अपनी सहेलियों से दूर होती चली गयी. उनका क्रोध फब्तियाँ बनकर मुझपर बरसता था.

Male Menopause : क्या है पुरुष रजोनिवृत्ति या मेनोपॉज

पुरुषों के लिए रजोनिवृत्ति शब्द का प्रयोग कभीकभी उम्र बढ़ने के कारण टेस्टोस्टोरोन का स्तर कम होने या टेस्टोस्टोरोन की जैव उपलब्धता में कमी बताने के लिए किया जाता है. महिलाओं की रजोनिवृत्ति और पुरुषों में रजोनिवृत्ति 2 भिन्न स्थितियां हैं. हालांकि, महिलाओं में अंडोत्सर्ग (औव्यूलेशन) खत्म हो जाता है और हार्मोंस बनने भी कम हो जाते हैं और यह सब अपेक्षाकृत कम समय में होता है जबकि पुरुषों में हार्मोन बनना और टेस्टोस्टोरोन की जैव उपलब्धता कईर् वर्षों में कम होती है. जरूरी नहीं है कि इस के नतीजे स्पष्ट हों. पुरुषों में रजोनिवृत्ति महिलाओं की अपेक्षा अचानक नहीं होती है. इस के संकेत और लक्षण धीरेधीरे और सूक्ष्मतौर पर सामने आते हैं. पुरुषों के हार्मोन टेस्टोस्टोरोन के स्तर में कमी किसी भी सूरत में उस तेजी से नहीं होती है जिस तेजी से महिलाओं में होती है. हैल्थकेयर विशेषज्ञ इसे एंड्रोपौज, टेस्टोस्टोरोन डैफिशिएंसी या देर से

शुरू हुआ हाइपोगोनाडिज्म कहते हैं. हाइपोगोनाडिज्म का मतलब है पुरुषों के हार्मोन में इतनी कमी जो किसी उम्रदराज व्यक्त्ति के लिए भी कम हो.

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संकेत और लक्षण

–       मूड बदलना और चिड़चिड़ापन.

–       शरीर में चरबी का पुनर्वितरण.

–       मांसपेशियों की कमी.

–       शुष्क व पतली त्वचा.

–       हाइपर हाइड्रोसिस यानी अत्यधिक पसीना निकलना.

–       एकाग्रता की अवधि कम होना.

–       उत्साह कम होना.

–       सोने में असुविधा यानी अनिद्रा या थकान महसूस होना.

–       यौन इच्छा कम हो जाना.

–       यौन क्रिया ठीक से न होना.

उपरोक्त लक्षण भिन्न पुरुषों में अलगअलग हो सकते हैं और यह अवसाद से ले कर दैनिक जीवन व खुशी में हस्तक्षेप तक, कुछ भी हो सकता है. इसलिए, संबंधित कारण मालूम करना महत्त्वपूर्ण है और इसे दूर करने के लिए आवश्यक इलाज किया जाना चाहिए. कुछ लोगों की हड्डियां भी कमजोर हो जाती हैं. इसे औस्टियोपीनिया कहा जाता है.

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कुछ मामलों में जब जीवनशैली या मनोवैज्ञानिक समस्या आदि जिम्मेदार नहीं लगते हैं, तो पुरुष रजोनिवृत्ति के लक्षण हाइपोगोनाडिज्म के कारण हो सकते हैं जब हार्मोन कम बनते हैं या बनते ही नहीं हैं. कभीकभी हाइपोगोनाडिज्म जन्म से ही मौजूद होता है. इस से यौनारंभ देर से आने और अंडग्रंथि छोटा होने जैसे लक्षण हो सकते हैं. कुछेक मामलों में हाइपोगोनाडिज्म का विकास जीवन में आगे चल कर भी हो सकता है खासकर उन पुरुषों में जो मोटे हैं या जिन्हें टाइप 2 डायबिटीज है. इसे देर से हुआ हाइपोगोनाडिज्म कहा जा सकता है और ऐसे पुरुष में रजोनिवृत्ति के लक्षण सामने आ सकते हैं. हाइपोगोनाडिज्म देर से शुरू होने का पता आमतौर पर आप के लक्षणों और खून की जांच के नतीजों से पता चलता है. इस का उपयोग टेस्टोस्टोरोन का स्तर जानने के लिए किया जाता है.

पुरुष रजोनिवृत्ति के लक्षण का सब से आम किस्म का उपचार जीवनशैली से संबंधित स्वास्थ्यकर विकल्प चुनना है. उदाहरण के लिए, आप का चिकित्सक आप को सलाह दे सकता है :

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–       पौष्टिक आहार लें.

–       नियमित व्यायाम करें.

–       पर्याप्त नींद लें.

–       तनाव मुक्त रहें.

जीवनशैली से संबंधित ये आदतें सभी पुरुषों के लिए फायदेमंद हो सकती हैं. इन आदतों को अपनाने के बाद पुरुष, रजोनिवृत्ति के लक्षणों को महसूस करने वाले पुरुष अपने संपूर्ण स्वास्थ्य में सकारात्मक परिवर्तन देख सकते हैं. अगर आप अवसाद में हैं तो आप के चिकित्सक ऐंटी डिप्रैसैंट्स थेरैपी और जीवनशैली

में परिवर्तन की सलाह देंगे. हार्मोन रीप्लेसमैंट थेरैपी भी एक उपचार है. हालांकि इलाज के लिए मरीज के परिवार का कैंसर प्रोस्टेट का इतिहास और ब्लड पीएसए की रिपोर्ट चाहिए होती है अगर डाक्टर को लगता है कि हार्मोन रीप्लेसमैंट थेरैपी से फायदा होगा.

(लेखक इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, दिल्ली में सीनियर कंसल्टैंट (यूरोलौजी) हैं.)

प्रेम कबूतर : भाग 1

अजनबी तो वो कभी नहीं था, लेकिन इतना करीब भी कहाँ था. सभी के बीच भी तन्हाई का यह एहसास, पहले नहीं था. उसकी गली से गुज़रती तो मैं पहले भी थी, लेकिन अब एक अलग सी बेचैनी मेरा रास्ता रोक देती है. मेरे घर वो बचपन से आता था, लेकिन अब उसके जाने के बाद उसकी खुशबु ढूँढ़ती रहती हूँ. पहले सपने रातों को आते थें, अब सपनों में ही रहती हूँ.

अखिल को सदा से देखा था. प्रथम कक्षा से हम साथ ही थें. हमारा बचपन तिलियामुड़ा की इन गलियों में एक साथ खेलकर किशोर हुआ था. त्रिपुरा के इस छोटे से शहर में जीवन दौड़ता नहीं था, धीमी गति से चलता था. सूर्य और चंद्रमा का अनुपम तथा विलक्षण मिलन संध्या को आकर्षक बना देता था. बच्चों में मिट्टी से सन कर खेलने के प्रति आकर्षण आज भी जीवित था. कोई भी कहीं पहुंचने की शीघ्रता में नहीं था, जो जहाँ था, वहाँ प्रसन्न था.

मैं भी खुश थी, जीवन से संतुष्ट. लेकिन इस साल के आरंभ में बहुत कुछ बदल गया. हमारी वार्षिक परीक्षा समाप्त हो गयी थी. दसवी के क्लास आरम्भ होने में दस दिन का समय था. मेरी सहेली ने अपनी बड़ी बहन की शादी में मुझे बुलाया, तो मैं चली गयी. वहां अखिल भी था. काफी भाग-दौड़ कर रहा था. बार-बार हमारी नजरें मिल रही थीं. यूँ तो नजरें पहले भी कई बार मिली थीं, लेकिन इस बार जो मिलीं, मैं मंत्रमुग्ध सी उसे देखती रह गयी.

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लंबा, गोरा, सुदर्शन, नहीं काफी सुदर्शन, नीले रंग की शर्ट और काली पैंट पहने हुये आकर्षक लग रहा था. मैं अखिल की तुलना में उतनी सुंदर नहीं थी. रंग सांवला. वैसे, लोग कहते थें, साँवली होने के बावजूद मैं सुंदर लगती हूँ. वैसे सुंदरता की परिभाषा मैं समझ नहीं पाती. मेरी लम्बाई पाँच फुट दो-ढाई इंच होगी. गोलाकार चेहरा, आंखें बड़ी-बड़ी, तीखा नाक-नक्श, चिकने होंठ, कंधें तक लंबें बाल, पेट के निचले हिस्से में चर्बी गायब है. कोई कहता है, स्वास्थ्य ठीक नहीं, कोई कहता है, ठीक ही तो है. वैसे मैंने पढ़ाई के अतिरिक्त कभी कुछ सोच ही नहीं था. अपने स्वास्थ्य, चेहरा, नाक-नक्श आदि को लेकर सोचना कभी सोच में भी नहीं आया था. लेकिन, उस रात घर लौटने के बाद आईने के सामने मैंने खुद को देखा. अपने साँवले रंग के कारण मन ही मन दुःख हुआ.

उस दिन हमारी कोई बातचीत नहीं हुयी, उसने मेरी ओर एक बार भी नहीं देखा. लेकिन इसके बाद छुट्टियों के वे दिन, मेरे लिये असह्य हो गये थें. अखिल को एक बार फिर देखने की इच्छा होती थी. बात करने का मन करता था. मैं पढ़ने में अच्छी थी. अपना काम भी समय पर पूरा कर लिया करती थी. मैथ्स और फिजिक्स में अखिल का हाथ जरा तंग था. इस कारण मेरी मदद लेने कभी-कभी घर आया करता था. लेकिन आजकल स्कूल बन्द होने के कारण, उसका भी यूँ आना बंद हो गया था.

मैं चुप रहने लगी थी. इसी बीच मैंने कुछ कविताएँ भी लिखीं. सारी की सारी अखिल को लेकर. कविता को डायरी को कोर्स की पुस्तकों के नीचे दबा के रखती, ताकि किसी के हाथ न लगे. हाथ लगते ही झमेला! मम्मी-पापा का तो सोचकर भी, मन डर जाता है। सम्पा दीदी तो अवश्य झमेला कर देगी. दीदी वैसे तो कॉलेज के प्रथम वर्ष में है लेकिन, प्रेम का सुख उसे प्राप्त ही नहीं हुआ. सब कहते हैं, वो सुंदर नहीं है. फिर वही, सुंदरता का अजीब मापदण्ड! लेकिन, प्रेम क्या मात्र शारीरिक होता है! प्रेम! तो क्या जो मुझे हो रहा था, वह प्रेम था! लेकिन, ये प्रेम कैसे हो सकता था, दोनों में कोई बातचीत नहीं, आँखों में आँखें नहीं, हाथों में हाथ नहीं, मात्र सपना है-यह कैसा प्रेम था!

मुझमें आ रहें परिवर्तन को मेरी माँ ने समझा. उन्होंने और पिताजी ने इसका इलाज भी निकाल लिया. मेरा नाम अपोलो कोचिंग सेंटर में लिखा दिया गया. आरम्भ में मैं कुछ खास प्रसन्न नहीं हुयी थी. लेकिन कोचिंग सेंटर के बैच नम्बर बारह की क्लास में घुसते ही, मेरा सिर अपनी माँ के प्रति श्रद्धा से झुक गया था. उस दिन मैंने जाना कि जो होता है, वह वाकई अच्छे के लिये ही होता है. जब बीरेन सर ने मुझे अखिल की पास वाली कुर्सी पर बैठने का इशारा किया, मेरा कलेजा उछलकर हाथ में आ गया था.

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सफेद शर्ट, नीली जीन्स, कोल्हापुरी चप्पल. क्या ख़ूब जँच रहा था. मैं उसे नहीं देख रही थी. सर जो कह रहे थें, वो लिखने की असफल कोशिश कर रही थी. और अखिल, वो मुझे भला क्यों देखेगा! लेकिन, क्लास समाप्त होने के बाद मैंने जाना कि, वो मुझे देख रहा था. मैं जन्म से एक घेरे में रहने वाली लड़की. छोटे से एक घेरे में मेरी दुनिया, जिसमें अब वो भी प्रवेश कर चुका था. दरअसल, एक बात मैं बहुत अच्छी तरह उस दिन समझ गयी कि प्रेम मेरे भीतर प्रवेश कर चुका है और अब मेरे जीवन में कुछ भी पहले जैसा नहीं रहेगा.

ऐसा ही हुआ. शहर की ठंड में गर्मी घुलने लगी और मौसम के साथ हमारा रिश्ता भी गर्म होने लगा था. स्कूल में हम साथ रहतें और स्कूल के बाद घण्टों हाथ थामें तुरई फॉल के पास बैठें रहतें. यहाँ तक कि घर आकर भी जब मैं उसका होमवर्क कर रही होती थी, तो ऐसा लगता कि जैसे अखिल को छू रही हूँ. सब कुछ अजीब, लेकिन अच्छा लगता था.

Super Dancer 4 : कम टीआरपी की वजह से रातों रात मेकर्स ने लिया शो को बंद करने का फैसला

टीवी दुनिया का हिट रियलिटी शो सुपर डांसर 4 इसी साल मार्च में शुरू हुआ था, इस शो की टीआरपी बढ़ाने और दर्शकों का प्यार जीतने के लिए मेकर्स ने खूब कोशिश की थी, जिसके बावजूद भी अब इस शो को बंद करने का फैसला लेना पड़ा है.

शो की टीआरपी कम होने की वजह से रिशपॉन्स कम हो रहे हैं, इस वजह से इस शो को बंद करने का फैसला लेना पड़ रहा है. कम टीआरपी की वजह से मेकर्स  को यह फैसला लेने पर मजबूर कर दिया है.

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इसी बीच खबर यह भी आ रही है कि चैनल वालों ने नए शो का प्रोमो लॉच किया है जिसमें यह दिखाया गया है कि जिसे देखने के बाद दर्शक कयास लगाने शुरू कर दिए हैं कि अब सुपर डांसर जल्द बंद होने वाला है.

सुपर डांसर 4 में अभी 7 कंटेस्टेंट बचे हैं, और अभी 1 महीना ही बचे हैं सुपर डांसर शो शुरू होने में तो ऐसे में 7 कंटेस्टेंट को 4 सप्ताह में कैसे फाइनल करेंगे. साथ ही सुपर डांसर 4 ने अभी आधे पड़ाव को ही पार किए हैं. वहीं मेकर्स ने कहा कि टीआरपी को देखते हुए हमें यह फैसला लेना पड़ा है.

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बता दें कि बीते हफ्ते हेमा मालिनी शो में गेस्ट बनकर आई थीं, जिसे देखकर लोगों ने खूब प्यार दिया था, यहीं नहीं हेमा मालिनी ने शो में शिल्पा शेट्टी के कहने पर डांस भी किया था. वैसे कुछ लोग यह भी कयास लगा रहे हैं कि शो कि टाइमिंग को खिसकाया जाएगा. अब देखना यह है कि क्या होता है शो में.

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