क्लाइमेट चेंज आज विश्व में एक बड़ी समस्या बनकर उभर चुकी है, जिसका परिणाम सारे विश्व में किसी न किसी रूप में दिखाई पड़ रहा है, ऐसे में एक पेड़ लगाना और उसकी देखभाल करना जरुरी हो चुका है, क्योंकि एक छोटे प्लांट से एक बड़े पेड़ बनने में कई साल लग जाते है, जबकि बाँस या बंबू एक ऐसा पौधा है, जिसे बढ़ने में कम समय लगता है और जहाँ बाँस के पेड़ है, वहां व्यवसाय के पनपने से लोगों की आजीविका भी चल सकती है. इसके अलावा बाँस के पेड़ को ग्रीन गोल्ड भी कहा जाता है.
इस बात को ध्यान में रखते हुए बांस के अधिक से अधिक मात्रा में उत्पादन पर जागरूकता फ़ैलाने के उद्देश्य से वर्ल्ड बम्बू डे पर इंडस्ट्री फाउंडेशन की सोशल वर्कर नीलम छिब्बर कहती है कि ये फाउंडेशन एक गैर सरकारी संगठन है, जो महिला कारीगरों के लिए स्थायी आजीविका विकसित करने और उन्हें सफल उद्यमी बनने के लिए प्रशिक्षण देती है.

यूएसएड के साथ ये संस्था कई प्रोजेक्ट चलाती है, जो बांस की वैल्यू बताती है, क्योंकि ये एक प्राकृतिक फाइबर है और6800 महिलाओं को इसका लाभ मिला है. संस्था का लक्ष्य आगे कर्नाटक में 1200 से अधिक महिला कारीगरों को एकत्रित कर 6 केंद्र स्थापित करना है.इसमें आधुनिक तरीके से बांस की टोकरी बनाने और विभिन्न शिल्प कला कीपावर प्रोजेक्ट के तहत, सोलिगा आदिवासियों के साथ काम कर रही है.इसके अलावा अनुसूचित जातियों और पिछड़े समुदायों की आजीविका को नियमित बनाये रखने की कोशिश कर रही है. इसके लिए अधिक मात्रा में बाँस का उत्पादन होने से ही ये संभवहो सकेगा.

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