हर व्यक्ति को उम्र के हर पड़ाव में साथी की जरूरत जरूर पड़ती है चाहे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए या शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए. इंसान सामाजिक प्राणी है तो समाज से अलग कट कर नहीं रह सकता. जीवनसाथी की जरूरत भी सामाजिक जरूरत के दायरे से अलग नहीं है. 28 वर्षीय श्रेया के पति की मौत कोरोना वायरस से हो गई. उस के 2 छोटेछोटे बच्चे हैं. इतनी कम उम्र में पति की मौत के कारण उस के ऊपर दुखों का पहाड़ आ गिरा है. उस के घर में कोई कमाने वाला भी नहीं है. वह अपने पति की मौत के बाद बिलकुल ही अकेली हो गई है. पति के मौत के बाद उस के मायके वाले उसे पुनर्विवाह के लिए राजी करना चाह रहे थे. सब चाहते थे कि श्रेया का पुनर्विवाह हो जाए. लेकिन श्रेया ने सिरे से नकार दिया. वह अपने पति की यादों को भुलाना नहीं चाहती.

भावनाओं में बह कर अकेला जीवन गुजारने का प्रण कर चुकी है. परंतु जीवन भावनाओं से नहीं चलता है. कुछ दिनों बाद ही वह बिलकुल सचाई के धरातल पर आ गई थी. पति की मौत के समय जो नातेरिश्तेदार संवेदना प्रकट करने आए थे, वे एकएक कर के चले गए थे. उस के अपने जो मदद करने का आश्वासन दे रहे थे, अपनेअपने कामों में व्यस्त हो चुके थे. कुछ दिनों बाद ही अपने लोगों से मिलने वाली सहानुभूति बंद हो गई थी. कोई पलट कर भी हालचाल नहीं ले रहा था. दरअसल, किसी के पास आज की भागदौड़ की जिंदगी में इतना समय नहीं है. सिर्फ उस के मातापिता द्वारा हालचाल लिया जाता था. अब उस पर दोनों बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी आ पड़ी है. पति द्वारा छोड़े गए पैसे और संपत्ति बच्चे के पालनपोषण में मददगार तो साबित हो रहे हैं परंतु जीवन नितांत अकेला हो गया है. उसे लग रहा है कि वह दोनों बच्चों के लिए आया बन कर रह गई है. रहरह कर उस का अपना अकेलापन खाए जा रहा है. पत्नी की मौत के बाद पुरुष तो दोबारा शादी कर लेता है. लेकिन आज भी औरतों के पुनर्विवाह में कहीं न कहीं धार्मिक सीखें रुकावट पैदा करती हैं. औरतों को धर्म यह सिखाता है कि पति की मृत्यु के बाद विधवा के रूप में जीवन व्यतीत करना चाहिए.

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