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पेगासस और सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी सौफ्टवेयर के ममाले में सरकार की एक न सुन अपनी जांच कमेटी बना कर साबित कर दिया है कि देश की हर संस्था भगवा रंग की गुलाम नहीं है और देश में अभी भी लोकतंत्र जिंदा है चाहे उस के पेड़ की हर शाख को काट कर आधाचौथाई कर दिया गया हो.

पेगासस सौफ्टवेयर ऐसा सौफ्टवेयर है जिसे किसी के भी फोन डिवाइस में केवल उस में इस्तेमाल की जा रही सिम का नंबर मालूम कर के बिना फोन छुए डाला जा सकता है. डिवाइस में घुस जाने के बाद यह फोन पर पूरा कंट्रोल कर लेता है और पेगासस सौफ्टवेयर का संचालक न केवल सारा वार्त्तालाप सुन सकता है,  बल्कि डिवाइस का कैमरा भी चालू कर सकता है. इसराईली कंपनी एनएसओ द्वारा यह बनाया गया है और केवल देशों की सरकारों को बेचा जाता है. जब से इस मामले का भंडाफोड़ हुआ है तब से भारत की सरकार बहुमुखी आवाजों में इस पर उठाए सवालों के जवाब दे रही है.

सुप्रीम कोर्ट में भी सरकार का कहना था कि यह मामला सुरक्षा का है, गोपनीय है. दरअसल, सरकार इस बारे में कुछ कहना नहीं चाहती. वह न इस की खरीद मानने को तैयार है न इनकार करने को. पिछले मुख्य न्यायाधीश चाहे जैसे रहे हों,  मौजूदा मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने सरकार की एक नहीं सुनी. एक अवकाशप्राप्त सुप्रीम कोर्ट जज आर वी रवींद्रन की अध्यक्षता में कमेटी बना डाली है, जिसे व्यापक अधिकार हैं.

यह कमेटी कंपट्रोलर औडिटर जनरल औफ इंडिया के तत्कालीन विनोद राय की तरह जीरो लगाने वाली साबित न हो, यह उम्मीद की जा सकती है. मनमोहन सिंह की सरकार को असल में विनोद राय ने हराया था, मोदी ने नहीं. राय ने काल्पनिक आंकड़े दे कर सीएजी की प्रतिष्ठा को धूमिल कर दिया था. अब विनोद राय उसी तरह भाजपा की गोद में बैठे हैं जैसे पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगाई, जिन्होंने मोदी सरकार को राममंदिर उपहार में दिया है.

पेगासस का मामला गंभीर है क्योंकि सरकार ने इस का उपयोग पत्रकारों और विपक्षी नेताओं के खिलाफ किया. जो सूची अंदरूनी स्रोतों से मिली है उस में आतंकवादी नहीं, आम लोग हैं जो आमतौर पर सरकार का अंधा समर्थन नहीं करते और तथ्यों की, जनता के हित में, जांचपरख करते हैं. ऐसे लोगों के पलपल की खबर रख सरकार उन्हें कभी भी ब्लैकमेल कर सकती है.

पेगासस सौफ्टवेयर जैसे सौफ्टवेयर बहुत से हैकर बना लेते हैं. और हैकिंग आज खाली बैठे कंप्यूटर एक्सपर्ट्स का एक खेल हो गया है. वे यह जानकारी अपने आनंद के लिए इस्तेमाल करते हैं और उन्हें इसीलिए दुनियाभर की सरकारें ज्यादा परेशान नहीं करतीं. वे आमतौर पर अपनी कंप्यूटर सौफ्टवेयर कला ही विकसित करने में लगे रहते हैं जबकि इसराईली कंपनी एनएसओ ने इसे सरकारों को अपने विरोधियों का दमन करने के लिए बनाया है. यह सौफ्टवेयर सरकार के हाथों में एटमबम की तरह है जो सिर्फ एक व्यक्ति को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

एक लोकतांत्रिक देश को गुप्तचरी का प्रयोग करने का अधिकार है पर देशविरोधियों के खिलाफ, न कि सत्तारूढ़ पार्टी के विरोधियों के खिलाफ. सरकार जनता का अरबों रुपया इस गुप्तचरी पर खर्च नहीं कर सकती.

सुप्रीम कोर्ट सरकार को दोषी मान कर उसे कठघरे में खड़ा करेगा, इस की गुंजाइश तो कम है क्योंकि मौजूदा मुख्य न्यायाधीश के पास विनोद राय जैसा संघ समर्थित लोगों का सहारा नहीं है लेकिन वह सरकार के हाथ बांध सकता है कि वह सीमा में रह कर ही काम करे क्योंकि किसी आदमी के अधिकार धर्मजनित भगवा झंडे से कहीं ज्यादा अहम और महत्त्वपूर्ण हैं.

अधूरे प्यार की टीस – भाग 1: क्यों बिखर गई सीमा की गृहस्थी

लेखक- डॉ सुधीर शर्मा

आज सुबह राकेशजी की मुसकराहट में डा. खन्ना को नए जोश, ताजगी और खुशी के भाव नजर आए तो उन्होंने हंसते हुए पूछा, ‘‘लगता है, अमेरिका से आप का बेटा और वाइफ आ गए हैं, मिस्टर राकेश?’’

‘‘वाइफ तो नहीं आ पाई पर बेटा रवि जरूर पहुंच गया है. अभी थोड़ी देर में यहां आता ही होगा,’’ राकेशजी की आवाज में प्रसन्नता के भाव झलक रहे थे.‘‘आप की वाइफ को भी आना चाहिए था. बीमारी में जैसी देखभाल लाइफपार्टनर करता है वैसी कोई दूसरा नहीं कर सकता.’’

‘‘यू आर राइट, डाक्टर, पर सीमा ने हमारे पोते की देखभाल करने के लिए अमेरिका में रुकना ज्यादा जरूरी समझा होगा.’’ ‘‘कितना बड़ा हो गया है आप का पोता?’’

‘‘अभी 10 महीने का है.’’ ‘‘आप की वाइफ कब से अमेरिका में हैं?’’ ‘‘बहू की डिलीवरी के 2 महीने पहले वह चली गई थी.’’ ‘‘यानी कि वे साल भर से आप के साथ नहीं हैं. हार्ट पेशेंट अगर अपने जीवनसाथी से यों दूर और अकेला रहेगा तो उस की तबीयत कैसे सुधरेगी? मैं आप के बेटे से इस बारे में बात करूंगा. आप की पत्नी को इस वक्त आप के पास होना चाहिए,’’ अपनी राय संजीदा लहजे में जाहिर करने के बाद डा. खन्ना ने राकेशजी का चैकअप करना शुरू कर दिया.

डाक्टर के जाने से पहले ही नीरज राकेशजी के लिए खाना ले कर आ गया.‘‘तुम हमेशा सही समय से यहां पहुंच जाते हो, यंग मैन. आज क्या बना कर भेजा है अंजुजी ने?’’ डा. खन्ना ने प्यार से रवि की कमर थपथपा कर पूछा. ‘‘घीया की सब्जी, चपाती और सलाद भेजा है मम्मी ने,’’ नीरज ने आदरपूर्ण लहजे में जवाब दिया.

‘‘गुड, इन्हें तलाभुना खाना नहीं देना है.’’ ‘‘जी, डाक्टर साहब.’’ ‘‘आज तुम्हारे अंकल काफी खुश दिख रहे हैं पर इन्हें ज्यादा बोलने मत देना.’’ ‘‘ठीक है, डाक्टर साहब.’’ ‘‘मैं चलता हूं, मिस्टर राकेश. आप की तबीयत में अच्छा सुधार हो रहा है.’’ ‘‘थैंक यू, डा. खन्ना. गुड डे.’’

डाक्टर के जाने के बाद हाथ में पकड़ा टिफिनबौक्स साइड टेबल पर रखने के बाद नीरज ने राकेशजी के पैर छू कर उन का आशीर्वाद पाया. फिर वह उन की तबीयत के बारे में सवाल पूछने लगा. नीरज के हावभाव से साफ जाहिर हो रहा था कि वह राकेशजी को बहुत मानसम्मान देता था.

करीब 10 मिनट बाद राकेशजी का बेटा रवि भी वहां आ पहुंचा. नीरज को अपने पापा के पास बैठा देख कर उस की आंखों में खिं चाव के भाव पैदा हो गए.‘‘हाय, डैड,’’ नीरज की उपेक्षा करते हुए रवि ने अपने पिता के पैर छुए और फिर उन के पास बैठ गया.‘‘कैसे हालचाल हैं, रवि?’’ राकेशजी ने बेटे के सिर पर प्यार से हाथ रख कर उसे आशीर्वाद दिया.‘‘फाइन, डैड. आप की तबीयत के बारे में डाक्टर क्या कहते हैं?’’

‘‘बाईपास सर्जरी की सलाह दे रहे हैं.’’‘‘उन की सलाह तो आप को माननी होगी, डैड. अपोलो अस्पताल में बाईपास करवा लेते हैं.’’‘‘पर, मुझे आपरेशन के नाम से डर लगता है.’’‘‘इस में डरने वाली क्या बात है, पापा? जो काम होना जरूरी है, उस का सामना करने में डर कैसा?’’‘‘तुम कितने दिन रुकने का कार्यक्रम बना कर आए हो?’’ राकेशजी ने विषय परिवर्तन करते हुए पूछा.

‘‘वन वीक, डैड. इतनी छुट्टियां भी बड़ी मुश्किल से मिली हैं.’’‘‘अगर मैं ने आपरेशन कराया तब तुम तो उस वक्त यहां नहीं रह पाओगे.’’‘‘डैड, अंजु आंटी और नीरज के होते हुए आप को अपनी देखभाल के बारे में चिंता करने की क्या जरूरत है? मम्मी और मेरी कमी को ये दोनों पूरा कर देंगे, डैड,’’ रवि के स्वर में मौजूद कटाक्ष के भाव राकेशजी ने साफ पकड़ लिए थे.

‘‘पिछले 5 दिन से इन दोनों ने ही मेरी सेवा में रातदिन एक किया हुआ है, रवि. इन का यह एहसान मैं कभी नहीं उतार सकूंगा,’’ बेटे की आवाज के तीखेपन को नजरअंदाज कर राकेशजी एकदम से भावुक हो उठे.‘‘आप के एहसान भी तो ये दोनों कभी नहीं उतार पाएंगे, डैड. आप ने कब इन की सहायता के लिए पैसा खर्च करने से हाथ खींचा है. क्या मैं गलत कह रहा हूं, नीरज?’’

‘‘नहीं, रवि भैया. आज मैं इंजीनियर बना हूं तो इन के आशीर्वाद और इन से मिली आर्थिक सहायता से. मां के पास कहां पैसे थे मुझे पढ़ाने के लिए? सचमुच अंकल के एहसानों का कर्ज हम मांबेटे कभी नहीं उतार पाएंगे,’’ नीरज ने यह जवाब राकेशजी की आंखों में श्रद्धा से झांकते हुए दिया और यह तथ्य रवि की नजरों से छिपा नहीं रहा था.

‘‘पापा, अब तो आप शांत मन से आपरेशन के लिए ‘हां’ कह दीजिए. मैं डाक्टर से मिल कर आता हूं,’’ व्यंग्य भरी मुसकान अपने होंठों पर सजाए रवि कमरे से बाहर चला गया था.‘‘अब तुम भी जाओ, नीरज, नहीं तो तुम्हें आफिस पहुंचने में देर हो जाएगी.’’

राकेशजी की इजाजत पा कर नीरज भी जाने को उठ खड़ा हुआ था.‘‘आप मन में किसी तरह की टेंशन न लाना, अंकल. मैं ने रवि भैया की बातों का कभी बुरा नहीं माना है,’’ राकेशजी का हाथ भावुक अंदाज में दबा कर नीरज भी बाहर चला गया.

नीरज के चले जाने के बाद राकेशजी ने थके से अंदाज में आंखें मूंद लीं. कुछ ही देर बाद अतीत की यादें उन के स्मृति पटल पर उभरने लगी थीं, लेकिन आज इतना फर्क जरूर था कि ये यादें उन को परेशान, उदास या दुखी नहीं कर रही थीं.

अपनी पत्नी सीमा के साथ राकेशजी की कभी ढंग से नहीं निभी थी. पहले महीने से ही उन दोनों के बीच झगड़े होने लगे थे. झगड़ने का नया कारण तलाशने में सीमा को कोई परेशानी नहीं होती थी.

शादी के 2 महीने बाद ही वह ससुराल से अलग होना चाहती थी. पहले साल उन के बीच झगड़े का मुख्य कारण यही रहा. रातदिन के क्लेश से तंग आ कर राकेश ने किराए का मकान ले लिया था.

कैसी बीवी चाहिए

लेखिका-  किरण बाला

हर कोई चाहता है कि उस की जीवनसंगिनी बला की खूबसूरत हो. जब युवक शादी के लिए लड़की देखने जाता है तब उस की ‘हां’ खूबसूरती पर आ कर टिकती है, हालांकि, जरूरी नहीं कि हर सुंदर लड़की गुणवान भी हो. आमतौर पर हर युवक रूपवान यानी खूबसूरत बीवी की चाह रखता है और इसे पाने के लिए वह साधारण लड़कियों को नापसंद कर देता है, फिर चाहे वह लड़की कितनी ही गुणवान क्यों न हो. जब कभी रूपवान और गुणवान लड़की में से किसी एक को चुनना हो तो अधिकांश लड़के रूपवती को ही चुनते हैं. क्या उन का निर्णय एकदम सही है? कहीं ऐसा न हो कि बाद में रूप के कारण गुणों को नजरअंदाज करने का उन्हें पछतावा हो? अब गुणों की बात लीजिए.

यदि लड़की साधारण नैननक्श की है, सांवली है, मोटीपतली है, नाटीलंबी है, लेकिन गुणों की खान है तो क्या उस के वैयक्तिक गुणों का कोई मोल नहीं? कोई लड़की कितनी ही सुंदर क्यों न हो, लेकिन वह अवगुणी है, क्रोधी या तुनकमिजाज स्वभाव की है, ?ागड़ालू प्रवृत्ति की है, कामकाज से जी चुराती है, अपने आगे किसी को कुछ नहीं सम?ाती, तो वह किस काम की? क्या ऐसी लड़की दांपत्य जीवन को सुखद बना सकती है? सुंदरता की परिभाषा हर व्यक्ति के लिए भिन्न होती है. कोई गोरे रंग को खूबसूरती का मानदंड मानता है तो कोई तीखे नैननक्श को. किसी के लिए लड़की का छरहरा होना माने रखता है तो किसी को उस की कदकाठी लुभाती है. किसी को उस की मुसकराहट पसंद होती है तो किसी को उस की हंसी. इसलिए सुंदरता की सर्वमान्य परिभाषा नहीं हो सकती. जिस को जो भाए, वही सुंदर.

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जहां तक रूप का प्रश्न है, उम्र के साथ उस की चमक फीकी पड़ने लगती है और एक समय के बाद उस का आकर्षण समाप्त हो जाता है. लेकिन गुण ऐसी अनमोल चीज है जो जीवनपर्यंत मिठास प्रदान करती रहती है. इसलिए रूप पर गुमान करना ठीक नहीं है. लेकिन जब रूप या गुण में से किसी एक विकल्प को चुनना हो तो सम?ादारी इसी में है कि गुणों को वरीयता दी जाए. इस से कभी भी पछतावा नहीं होगा. कई बार ज्यादा खूबसूरत लड़कियां अपने रूपसौंदर्य पर इतना इतराने लगती हैं कि अपने आगे पति को हेय सम?ाती हैं. पति पर हावी होने की कोशिश करती हैं. ऐसी लड़की में पति के प्रति समर्पित रहने की चाह नहीं होती. वह अपने रूपसौंदर्य के बूते पर अपनी हर जायजनाजायज बात मनवाने की कोशिश करती हैं. ऐसे में पति अपनेआप को ठगा हुआ सा पाता है. दरअसल, रूप से ज्यादा मोल समर्पण का होता है.

यदि पत्नी असुंदर भी है लेकिन पति के प्रति समर्पित हो कर उस का हर कदम पर साथ निभाती है तो वह अधिक माने रखता है. संपन्न परिवार के कुछ लड़के अपनी शानोशौकत का प्रभाव दिखा कर किसी गरीब परिवार की खूबसूरत लड़की से शादी कर लेते हैं. वे अपनी सूरत आईने में नहीं देखते कि क्या वे इतनी सुंदर लड़की के काबिल भी हैं? ऐसे में जब वे घर से बाहर निकलते हैं तो उन्हें देख कर लोग कमैंट करते हैं- ‘गधा गुलाबजामुन खा रहा है या कौए की चोंच में अनारकली.’ पुरुष स्वभाव से शंकालु प्रवृत्ति के होते हैं. जब स्वयं का कोई व्यक्तित्व न हो और हुस्न की परी को पत्नी बना कर ले आएं तो उन के मन में हमेशा यह आशंका बनी रहती है कि कहीं उन की पत्नी का अफेयर किसी हैंडसम पुरुष से न हो जाए?

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ऐसे में पुरुष अपनी पत्नी के चरित्र को संदेह की दृष्टि से देखने लगता है जबकि ऐसी कोई बात नहीं होती. शक की दवा लुकमान हकीम के पास भी नहीं है. ऐसे में खूबसूरत बीवी होने के बावजूद दांपत्य सुखद नहीं रहता. शादी गुड्डेगुडि़यों का खेल नहीं है कि क्षणिक आकर्षण देख निर्णय कर लिया जाए. यह देखना ज्यादा जरूरी है कि वह आप की अपेक्षाओं पर कितनी खरी उतरेगी? आप की रुचि, स्वभाव, आदतों, संस्कार आदि से वह सम?ाता कर पाएगी या नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप के और उस के विचार मेल ही न खाएं. रूपसौंदर्य से ज्यादा अहमियत लड़की के स्वभाव और गुणों को देनी चाहिए. एक गुणवान लड़की ही घर के माहौल को खुशनुमा बना सकती है.

फिर चाहे वह सुंदर हो या न. यदि लड़की में अच्छे गुण हैं तो वह ससुराल में जा कर सभी को खुश कर सकती है. अन्यथा वह चाहे जितनी खूबसूरत हो, कोई भी उस से खुश नहीं रहेगा. यदि कोई लड़की कुदरती तौर पर सुंदर है तो यह बहुत अच्छी बात है. इस के लिए कुदरत को धन्यवाद देना चाहिए. लेकिन उसे अपने गुणों पर भी ध्यान देना चाहिए. पत्नी अपने अवगुणों को त्याग कर आप के जीवन में गुणों का समावेश करे, तभी दांपत्य सुखद होगा. हां, यदि किसी लड़की में दोंनों ही बातें हों, अर्थात वह सुंदर भी है और गुणी भी है तो सोने पर सुहागा. इस से अच्छी बात हो ही नहीं सकती. ऐसी लड़की सर्वगुण संपन्न मानी जाती है. जो युवक ऐसी लड़कियों से शादी करते हैं, वे ताउम्र सुखी और प्रसन्न रहते हैं.

समस्या: सिर का गंजापन

लेखक- रोहित 

गंजापन जितनी बड़ी समस्या नहीं उस से अधिक गंभीर बना दी गई है. लोग गंजेपन के चलते भारी तनाव में आ कर जोखिम मोल ले रहे हैं. उपहास उड़ने के डर से लोग तरहतरह के तरीके अपना रहे हैं. ये तरीके घातक भी साबित हो सकते हैं. कहते हैं प्राचीन ग्रीस में यह माना जाता था कि गंजे आदमी के सिर पर यदि कबूतर बीट कर दे तो सम?ा उस का गंजापन दूर हो गया. ऐसे ही मिस्र में तो सिर के बाल बढ़ाने और बचाने के कई नुस्खे आजमाने की बातें सामने आई थीं जिन में से एक नुस्खा जंगली चूहे की चमड़ी पर शहद लगा कर सिर पर लगाने से गंजापन दूर होने का था. एक दिलचस्प किस्सा रोम के जुलियस सीजर के बारे में भी प्रचलित था कि अपने गंजेपन को दूर करने के लिए उन्होंने न जाने कितने नुस्खे अपनाए. जब जुलियस सीजर क्लियोपेट्रा से मिलने गए तो वे लगभग गंजे थे.

इस मुलाकात के बाद सीजर ने अपने बालों को बढ़ाने के कई नुस्खे अपनाए, पर उन का हर नुस्खा फेल हो गया और अंत में उन्होंने अपने सिर के पीछे वाले हिस्से के बालों को बढ़ाना शुरू किया जो उस समय का ट्रैंड भी बन गया. सिर के गंजेपन को ले कर चिंता होना हर समय की कहानी रही है. लोगों ने कई नुस्खे अपनाए, टोनेटोटके किए लेकिन बाल तो वापस नहीं आए, हां वे मजाक का पात्र बनते रहे. यह तय है कि हर समय में गंजेपन ने लोगों को चिंता में डाला है. इन चिंताओं के इलाज समयसमय पर बदलते रहे. फर्क इतना पड़ा कि पहले ये घरेलू नुस्खों, टोनोंटोटकों की शक्ल में थे, आज बड़ेबड़े इश्तिहारों के साथ ये तेल, शैंपू, क्रीम, टौनिक, दवाई, ट्रांसप्लांट इत्यादि के रूप में सामने हैं. इसी गंजेपन की समस्या को ले कर साल 2019 में एक फिल्म आई थी ‘बाला.’ यह फिल्म गंजेपन से शर्मिदगी ?ोलती युवा पीढ़ी को ले कर बनाई गई थी. फिल्म में अभिनय किया था चिरपरिचित कलाकार आयुष्मान खुराना ने. फिल्म के शुरुआती संवाद में कहा गया, ‘‘हम आप की खूबसूरती का राज हैं, आप के सिर का पर्मानैंट ताज हैं.

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’’ यह वाक्य सिर के बालों के लिए कहे गए थे. यानी, सर्वविदित तौर पर बालों से व्यक्ति की खूबसूरती का सीधा लेनादेना होता है, ऐसा बताने की कोशिश थी. जाहिर है हर आदमी इस खूबसूरती को बनाए रखना चाहता है. ऐसे में वह सिर के इस ताज को बचाए रखना चाहेगा. फिल्म में ‘बाला’ यानी आयुष्मान खुराना को अपने गंजेपन के चलते कई समस्याओं से गुजरना पड़ता है. बचपन में जो बाला ‘स्कूल का हीरो’ होता था, उस के लहराते बालों की तारीफ हर कोई करता था. स्कूल की सब से सुंदर लड़की उस के बालों पर फिदा होती है. वह बाला अब 30 साल की उम्र में बालों के ?ाड़ने से परेशान हो गया है. गर्लफ्रैंड छोड़ कर चली गई है, औफिस में बालों वाले युवक उसे सब अंकल कह कर पुकार रहे हैं, पीठपीछे उस का मजाक उड़ाया जा रहा है. फिल्म में गंजेपन की समस्या से तंग आ कर बाला कहता है, ‘‘जौब में डिमोट हो जाते हैं, मिमिक्री में फ्लौप हो जाते हैं, बचपन की गर्लफ्रैंड छोड़ कर चली जाती है, सुंदर लड़की से बात नहीं कर पाते हैं, लगता है हंसेगी हम को देख के यार.’

’ सिर पर बाल न होना ठीक इन्हीं संवादों सा एहसास कराते हैं, खासकर तब जब व्यक्ति युवा अवस्था में हो. आखिरकार, कथित तौर से इंसान की खूबसूरती में चारचांद लगाने में बाल अहम किरदार निभाते हैं. यही कारण है कि लोग बालों को बचाने और फिर से उगाने के लिए तरहतरह के नुस्खे अपनाते हैं. फिल्म ‘बाला’ में भी बाल मुकुंद भैंस के गोबर से ले कर सांड के वीर्य तक सबकुछ ट्राई कर लेता है लेकिन बाल बढ़ने की जगह घटते ही जाते हैं. बालों को ले कर यह ओबसैशन कहीं न कहीं हकीकत में भी सामने है. बहुत बार व्यक्ति अपने बालों को वापस पाने के लिए इतना जनूनी हो जाता है कि वह भी कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता है, चाहे परिणाम कितना ही घातक क्यों न हो.

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कुछ घटनाएं द्य ऐसी ही एक घटना गुजरात के महसाना से सामने आई. वहां एक व्यक्ति ने अपना हेयर ट्रांसप्लांट करवाया जिस के चलते 3 दिनों बाद उस की मौत हो गई. मामला 15 सितंबर का है. 31 वर्षीय अरविंद चौधरी, जो मेहसाना के विसनगर तालुका के खदोसन गांव का निवासी था, मेहसाणा के जेल रोड स्थित एक हेयर ट्रांसप्लांट क्लिनिक गया था. अरविंद का ट्रांसप्लांट शाम करीब 4 बजे क्लिनिक में किया गया था. डाक्टरों की हिदायत से वह रात 10 बजे तक क्लिनिक में रहा और फिर डिस्चार्ज हुआ. घर आने के बाद अरविंद को शारीरिक दिक्कत पेश आने लगी. 17 सितंबर की सुबह अरविंद बेचैनी की शिकायत कर वापस क्लिनिक गया. डाक्टरों ने उस की जांच की तो हालत देख कर उसे अस्पताल में भरती होने के लिए कहा क्योंकि उस की धड़कनें बढ़ रही थीं. हालत गंभीर होने पर अरविंद को जल्द ही आईसीयू में स्थानांतरित कर दिया गया. फिर 18 सितंबर को सुबह लगभग 7.30 बजे अरविंद ने अस्पताल में अंतिम सांस ली. अरविंद की इस मृत्यु के पीछे चाहे कितनी ही वजहें गिनाई जा सकती हैं,

सस्ते इलाज या डाक्टरों के खराब ट्रीटमैंट पर इस का सारा ठीकरा फोड़ा जा सकता है पर एक सवाल जो खुद से करना बेहद जरूरी है वह यह है कि क्या हम ने खुद ही मामूली से गंजेपन की समस्या को इतनी शर्मिंदगी वाला हिस्सा तो नहीं बना दिया है कि लोग जान तक को खतरे में डालने वाले जोखिम लेने को तैयार हो गए हैं. द्य दिल्ली के बलजीत नगर इलाके में रहने वाले 30 वर्षीय रमिकांत पेशे से परचून दुकानदार हैं. स्कूली दिनों से ही वे अपने पिताजी के साथ यह काम करने लगे थे. वे कहते हैं, ‘‘गंजापन होना उस व्यक्ति के लिए तनाव वाली स्थिति होती है जिस पर गुजर रही होती है. वहीं, उन के लिए हंसीमजाक का मसला होता है जिन के बाल हैं.’’ रमिकांत बताते हैं कि 11वीं कक्षा के दौरान ही उन के बाल गिरने शुरू हो गए थे. शुरुआत में ज्यादा ध्यान नहीं गया लेकिन जब नहाते हुए बाल हाथों में विजिबल होने लगे तो चिंता होने लगी. वे सरकारी स्कूल में थे, सिर के कपाल वाला हिस्सा उस दौरान चमकने लगा था. उन्होंने बहुत कोशिश की कि जहां से मांग निकलती है उस तरफ से बालों को बढ़ा कर गंजापन छिपा सकें पर धीरेधीरे सिर के बीच से बाल साफ होते गए.

फिर तो ढकने के लिए सिवा टोपी के विकल्प न था. यह उन के लिए बेहद मुश्किल समय था. इतनी छोटी उम्र में बालों का ?ाड़ना उन के लिए शर्मिंदगी वाली बात थी. वह भी उस सरकारी स्कूल में जहां छात्र परिपक्व नहीं होते हैं, हमेशा हंसी उड़ाते हैं. ‘‘मु?ो महसूस होता था कि मैं छोटी उम्र में ही बड़ी उम्र का दिखने लगा हूं. स्कूल में लड़केलड़कियां दोनों पढ़ते थे, लेकिन मु?ो ध्यान नहीं कि मैं ने किसी लड़की से उन 2 सालों में शर्मिंदगी के चलते सीधे मुंह बात की हो. उस दौरान जिस ने जो कहा, वह ट्राई किया. लेकिन कुछ ठीक नहीं हो पाया.’’ हालांकि, रमीकांत अब बाल ?ाड़ने की परवा करना छोड़ चुके हैं. वे अधिकतर समय सिर मुंडवा कर ही रखते हैं, जिस की उन्हें और उन्हें देखने वाले लोगों को आदत पड़ चुकी है. द्य पिछले वर्ष जनवरी की घटना है. समय से पहले गंजेपन से परेशान एक वरिष्ठ सिविल सेवक के 18 वर्षीय टीनेज बेटे प्रत्यूष मिश्रा ने फांसी से लटक कर आत्महत्या कर ली. लड़के के पिता ओडिशा कैडर के सर्वेंट थे. प्रत्यूष मिश्रा अपने मातापिता के साथ माधापुर के खानमेट में रहता था. वह जेईई एंट्रैंस की तैयारी कर रहा था. प्रत्यूष ने अपने सुसाइड नोट में इस बात का जिक्र किया था कि तबीयत खराब चलने से उस के बाल ?ाड़ रहे थे और वह इस से परेशान था.

ठीक इसी तरह की घटना बेंगलुरु में भी सामने आई थी. लगातार बालों के ?ाड़ने से तंग आ कर एक 27 वर्षीय सौफ्टवेयर इंजीनियर आर मिथुन राज ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. मिथुन ने इनफोसिस में काम किया था जिस के बाद वह बेंगलुरु में सौफ्टवेर इंजीनियर कंपनी में काम करने लगे. पुलिस के अनुसार, मिथुन को सिर में स्किन समस्या थी जिस के बाद उन के बाल ?ाड़ने शुरू हुए. उन्होंने कई तरह के हेयर ट्रीटमैंट किए थे लेकिन किसी से खास लाभ उन्हें नहीं हो पाया. मिथुन की मां का कहना था कि सुसाइड वाली घटना से कुछ दिनों पहले वह हेयरफाल को ले कर बेहद परेशान था.

उस ने आत्महत्या करने से पहले कुछ दिन औफिस से छुट्टियां ले रखी थीं. उपहास का पात्र यह सिर्फ भारत में ही नहीं, विदेशों में भी गंजेपन के तनाव से कई लोग ग्रस्त हैं. इसी वर्ष अमेरिका के 24 वर्षीय जैक हौग ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि वे पिछले 5 वर्षों से गंजापन रोकने और बाल उगाने की दवाई खा रहे थे. इस दवाई से उन के बाल तो नहीं उगे, वे भारी तनाव में जरूर चले गए. पिछले साल जनवरी में दवाइयों के चलते उन्हें सुसाइड करने का खयाल भी आया. फिर उन्होंने साईक्लोजिस्ट से इन बातों पर चर्चा की जिस के नतीजे में वे इस से उबर पाए.

अब बाल तो उन के सिर पर नहीं हैं पर वे इसे नौर्मल मान कर बेहतर महसूस कर रहे हैं. मसलन, गंजेपन की यह दिक्कत आज जितना पुरुषों की परेशानी का सबब बनी है उसी तरह से महिलाओं को भी तनाव में डाल रही है. खासकर, लड़कियों के लिए तो बाल होना शादी के सर्टिफिकेट मिलने जैसा होता है. आज पूरी दुनिया में गंजेपन को एंड्रोजेनिक अलोपेसिया नाम दे कर ऐसा प्रचार किया जाने लगा है जैसे कि आप कोई बहुत बड़ी बीमारी से गुजर रहे हों. तमाम विज्ञापनोंइश्तिहारों से लोगों के दिमाग में एक तरह का भय डाला जा रहा है कि यदि आप के सिर पर बाल नहीं तो आप समाज में उठनेबैठने लायक नहीं हैं, आप की शादीब्याह, पसंदनापसंद बस इसी पर आधारित है.

हरेक तेल, शैंपू, लोशन, क्रीम, दवाई वाले लगातार यह प्रचार करते हैं कि असल सुंदरता बालों से ही है. यह सब मिल कर एक तरह का हैक्टिक माहौल क्रिएट कर देते हैं. यारदोस्त, आसपड़ोस के बीच गंजा आदमी उपहास का पात्र बन कर रह जाता है. उसे टकला, गंजा, उजड़ा चमन जैसे कई नामों से पुकारा जाता है. यही कारण भी है कि समाज के इस अलगाव और भेदभावपूर्ण व्यवहार से बचने के लिए व्यक्ति खुद से ऊलजलूल और सस्तेखर्चीले रिस्की तरीके अपनाने लगा है, जिस से कितना बालों का वापस आना संभव है, कहा नहीं जा सकता. एक अंदाजे के मुताबिक, गंजेपन के इलाज के लिए पूरी दुनिया में हर साल करीब साढ़े 3 अरब डौलर तक की रकम खर्च की जाती है.

इस रकम को अगर जोड़ा जाए तो किसी छोटे देश के लिए तो यह सालाना बजट के बराबर है. इस रकम को ले कर एक साक्षात्कार में बिल गेट्स का मानना था कि यह रकम मलेरिया जैसी बीमारी पर काबू पाने के लिए खर्च की जाने वाली रकम से भी बड़ी है. इस से माना जा सकता है कि महज सिर पर बालों को उगाने का दिलासा भर देने से कितने का व्यापार/बाजार खड़ा हो गया है. जब जवानी की परिभाषा सिर के बाल को बना दी गई हो तो गंजापन आना दिक्कत लगनी ही है, पर यह इतनी गंभीर दिक्कत भी नहीं कि इस के लिए खुद को चोट पहुंचाना, आत्महत्या जैसे गंभीर कदम उठाना या ऐसे तरीकों पर पैसे बरबाद करना जिन से जान का भी जोखिम हो अपनाए जाएं. भारत में एक समस्या अधिक रही है कि यहां बौलीवुड ने गंजेपन को फूहड़ तरीके से हंसी का ही विषय बनाया है और अभी भी यहां के स्टार कलाकार हकीकतों से कोसों दूर नकली बाल लगा, हेयरट्रांसप्लांट करा खुद को जवान दिखाना चाहते हैं.

बाहर विदेशों में यह इतना नहीं. वहां ब्रूइस विलिस, ड्वेन जोहन्सन, जेसन स्तेथम जैसे कलाकारों के गंजा होने के बावजूद स्वीकार्यता रही. लोगों ने उन्हें अपना रोल मौडल माना है. इसलिए, वहां गंजा होना भी फैशन सैंस में काउंट किया जाने लगा है. दरअसल, लंबे वक्त से गंजेपन को ले कर तरहतरह की बातें होती रही हैं. विज्ञान के विस्तार न होने से समाज पर यह सोच भी काफी हद तक हावी रही कि एक दमदार मर्द और खूबसूरत औरत होने के लिए सिर पर बाल होने जरूरी हैं. जबकि, अरस्तु जैसे दार्शनिक का मानना था कि गंजेपन के पीछे अधिकाधिक किया गया सैक्स वजह है. पर जब से विज्ञान ने तरक्की की है, यह बात सभी के सामने है कि गंजेपन की असली वजह हार्मोन टेस्टोस्टेरौन में बदलाव से एक नए हार्मोन डीहाइड्रोस्टेरौन बनने की वजह से होता है.

कुछ लोगों में यह खानदानी वजह से गंजापन होता है. जिन के बाल 25-30 वर्ष की उम्र आतेआते ?ाड़ने शुरू हो जाते हैं, ऐसा बहुत बार गलत खानपान और सही मात्रा में पौष्टिकता न लेने के चलते भी होता है. संभव है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते बदलते वातावरण भी कारण के तौर से इस में जुड़ जाएं, पर इस का किसी कौम, देश, जाति से कोई लेनादेना नहीं. इसलिए, इसे पहले तो सामान्य मानने की खासा जरूरत है, फिर विकल्प तलाश किए जाने पर सोचा जाना चाहिए.

अधूरे प्यार की टीस

Bigg Boss 15: तेजस्वी प्रकाश का नया रूप देखकर फैंस हुए नाराज , सेल्फिश नागिन का दिया टैग

बिग बॉस 15 में आएं दिन कुछ न कुछ नया देखने को मिलता है, ऐसे में मिश्शा अय्यर और तेजस्वी प्रकाश का रिश्ता दिन प्रतिदिन बिगड़ता नजर आ रहा है. कैप्टेंसी टॉस्क के बाद दौरान मीशा और उम्मर रिजाज को सभी के घर से आए गिफ्ट को देना था.

हालांकि इसके बाद जितने लोगों को गिफ्ट देगे उतने नंबर कम होते जाएंगे इनके, इसलिए मीशा ने तेजस्वी को गिफ्ट नहीं देने का फैसला किया, जिसके बाद तेजस्वी के आंखों में आसूं आ गए. तेजस्वी ने भी टॉस्क के बाद गिफ्ट मांगे लेकिन उसने देने से इंकार कर दिया.

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इसके बाद से तेजस्वी ने मीशा को कहा कि वह उसे फ्यूल दे देगी, बिग बॉस 15 में तेजस्वी द्वारा खेले गए गेम को देखने के बाद से उन्हें सेल्फिश नागिन का टैग दिया गया. सोशल मीडिया पर लोगों ने उन्हें और भी गंदा गेम खेलने को लेकर बुरा भला कहा है, कुछ लोगों ने उन्हें कहा कि वह गेम को कभी नहीं जीतेंगी.

एक यूजर ने कहा कि तेजस्वी को कहा कि उन्हें उस दिन को याद करना चाहिए जिस दिन तेजस्वी ने विशाल कोटियन के साथ गंदा गेम खेला था.

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एक ने कमेंट करते हुए कहा कि हे भगवान तेजस्वी सच में सेल्फिश हो गई है. बिग बॉस में ताजा रिपोर्ट की बात करें तो उमर रियाज घर के कैप्टन बन गए हैं.

 

मजाक: मैट्रिमोनियल साइट्स पर वैवाहिक रिश्तों का सच

लेखक- विनोद खंडालकर

मैट्रिमोनियल साइट्स से बेटे के लिए एक अच्छा रिश्ता समझ में आया. रांची निवासी चौबेजी की बेटी का बायोडाटा पढ़ कर उन से बात करने का मन किया तो मैं ने उन्हें फोन लगा दिया.

फोन पर मैं ने पूछा, ‘‘आप रांची से चौबेजी बोल रहे हैं न? मैं मुंबई से रामनाथ पांडे बोल रहा हूं. चौबेजी नमस्ते, मैं ने आप की बेटी का बायोडाटा पढ़ लिया. पसंद भी आया.’’ चौबेजी बोले, ‘‘पसंद क्यों नहीं आएगा बेटी का बायोडाटा. आईआईटी मुंबई में पढ़ रहे मेरे बेटे ने बनाया है.’’ ‘‘वह सब छोडि़ए, यह बताइए कि मैं अपने बेटे का बायोडाटा आप को भेज रहा हूं. अगर पसंद आए तो आगे की बात कर सकते हैं.’’

चौबेजी बोले, ‘‘हां, भेज दीजिए.’’‘‘बेटे के बारे में कुछ बताना चाहता हूं. बेटे ने बीटैक किया है और एक बड़ी कंपनी में प्रोजैक्ट मैनेजर के पद पर कार्यरत है. मैट्रिमोनियल साइट्स के अनुसार आप की बेटी बीई करने के बाद बैंक में असिस्टैंट मैनेजर के पद पर काम कर रही है.’’

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चौबेजी बोले, ‘‘बात करूंगा.’’‘‘कोई बात नहीं, आप कुंडली मिला कर देख सकते हैं, कृपया जल्दी सूचित करें कि कुंडली मिल रही है या नहीं, ताकि आगे की बात हो सके.’’

2 दिनों बाद चौबेजी का फोन आया, कहने लगे, ‘‘कुंडली तो एकदम नहीं मिल रही है पर पंडितजी ने कहा है कि कुछ दानपुण्य करने के बाद यह विवाह सफल हो सकता है.’’ ‘‘अभी तो विवाह तय ही नहीं हुआ. विवाह के सफलअसफल होने की बात करने लगे. ‘‘हां, तो चौबेजी आगे की बात करने के लिए आप बेटी को मुंबई ले कर आ जाएं तो अच्छा होगा. दोनों लड़कालड़की एकदूसरे को देख भी लेंगे, क्योंकि विवाह के लिए इन दोनों की सहमति 90 प्रतिशत    होती है, मातापिता की सहमति मात्र 10 प्रतिशत ही होती है.’’

चौबेजी ने कहा, ‘‘हां, सही कहा आप ने, पर एक रिश्ते के लिए इतनी दूर मुंबई आना हम लोगों के लिए महंगा पड़ेगा. मुंबई में ही और कोई योग्य लड़के हों तो उन के विषय में जानकारी ले लेना, उन को भी देख लेंगे.’’चौबेजी की बात सुन कर मुझे हंसी आ गई. ऐसा कहते हुए उन्हें कोई संकोच भी न हुआ. इन की बेटी के लिए मुझे योग्य लड़के ढूंढ़ने को कहा गया. क्या मेरा बेटा योग्य नहीं है?

मैं ने चौबेजी से कहा, ‘‘तीनचार लड़कों की जानकारी लेने के चक्कर में हम अपने बेटे के विवाह के लिए रुक नहीं सकते. आप कोई गलतफहमी मत रखिए,’’  यह कह कर मैं ने फोन बंद कर दिया.

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करीब एक सप्ताह के बाद फिर चौबेजी का फोन आया और कहने लगे, ‘‘माफ कीजिएगा, मैं ने आप के बेटे का बायोडाटा अच्छे से नहीं देखा था. आप के बेटे की हाइट 5 फुट 5 इंच है, मेरी बेटी की हाइट 5 फुट 6 इंच है. इन की जोड़ी अच्छी नहीं दिखाई देगी. कुंडली भी अच्छे से मैच नहीं कर रही है. लेकिन मेरी दूसरी बेटी जिस की हाइट 5 फुट 3 इंच है, उस ने बीटैक और एमबीए किया है और हैदराबाद में एक बड़ी विदेशी कंपनी में ऊंचे पद पर काम कर रही है. इस दूसरी बेटी के बारे में आप विचार कर सकते हैं. मेरा पूरा परिवार बहुत पढ़ालिखा है. मेरी तीसरी बेटी एमबीबीएस कर रही है और चौथे नंबर का बेटा आईआईटी मुंबई से बीटैक कर रहा है.’’

चौबेजी की बातें सुन कर मैं ने उन्हें उन की बेटियों के लिए और कहीं योग्य वर तलाशने की बात कह कर फोन बंद कर दिया. चौबेजी ने लड़के के चक्कर में 3 लड़कियां पैदा कर लीं. अब उन्हें बेटियों की शादी के लिए परेशान होना पड़ रहा है. शुक्र है कि वे किसी फर्जी मैट्रिमोनियल साइट के झांसे में नहीं आए.

मुझे मैट्रिमोनियल साइट्स पर इसी एक रिश्ते ने इतना परेशान कर दिया और मेरा बहुत समय भी बरबाद हो गया. वहां मैट्रिमोनियल साइट्स से फोन आता है, ‘‘आप को और अच्छे रिश्तों की तलाश है तो 3 हजार रुपए जमा करवा दीजिए.’’

मैं ने कहा, ‘‘अभी तो 2 माह पूर्व आप की साइट जौइन की, तब 2 हजार रुपए में रजिस्ट्रेशन कराया था. मुझे लड़कियों के प्रोफाइल ढूंढ़ने में बहुत माथापच्ची करनी पड़ी क्योंकि आप ने मेरे बेटे की प्रोफाइल के अनुसार रिश्ते नहीं भेजे. एक रिश्ता समझ में आया तो उन के साथ बातचीत में एक माह लग गया. मुझे मेरे बेटे के लिए और अच्छे रिश्ते  भेजिए. अभी तक आप ने जो रिश्ते भेजे, कुछ काम के ही नहीं हैं. इस का उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि फोन रख दिया. अच्छीखासी रजिस्ट्रेशन फीस ले कर इस तरह की लापरवाही की जाती है. चूंकि आप उन की साइट्स से रिश्ते ढूंढ़ रहे हैं, इसलिए बारबार पैसा मांग कर अच्छे रिश्ते भेजने की बात करते हैं. लगता है पहली बार में एकआध रिश्ता ही सही भेजते हैं और बाद में पैसे की मांग कर अच्छे रिश्ते भेजने की बात करते हैं.

ऐसे पांडेजी जैसे कई लोग हैं जो इन मैट्रिमोनियल साइट्स से परेशान हैं. कुछ साइट्स वाले नकली प्रोफाइल बना कर व्हाट्सऐप और फेसबुक के माध्यम से धोखाधड़ी कर रहे हैं. दरअसल, कोरोना महामारी के कारण लोग व्यक्तिगत तौर पर मिल कर रिश्ते बनाने में डर रहे हैं, इसलिए इन साइट्स के माध्यम से लोग रिश्ते ढूंढ़ रहे हैं. लेकिन लोगों को नहीं मालूम कि इन साइट्स पर कितना फर्जीवाड़ा हो रहा है.

लड़की वाले वैसे ही अच्छा लड़का ढूंढ़ने के चक्कर में रहते हैं और इन साइट्स का सहारा लेते हैं. इन साइट्स पर लड़कों की प्रोफाइल और फोटो इतनी अच्छी होती हैं कि लड़की वाले इन के झांसे में आ जाते हैं.

कुछ लड़के तो लड़कियों के मोबाइल नंबर ले लेते हैं और लड़कियों को इतने सब्जबाग दिखाते हैं कि लड़कियां अपने मातापिता से यही रिश्ता करने के लिए दबाव डालती हैं. जब लड़कों को इस बात की भनक लग जाती है तो वे शादी की तैयारी के नाम पर 51 हजार से एक लाख रुपए तक एडवांस की डिमांड करते हैं और यह राशि उन के बैंक खाते में डालने के लिए कहते हैं. जब तक इन्हें यह पैसा नहीं मिल जाता, लड़की से और उन के परिवार से खूब अच्छी बातें करते हैं. जिस दिन इन को पैसा मिल जाता है उस के बाद लड़की वाले बेटी को देखने और आगे की बात करने के लिए उन्हें बुलाते हैं तो इन के मोबाइल ही बंद हो जाते हैं.

फेसबुक पर भी कई साइट्स हैं, जिन में एक सुदंर सी लड़की का फोटो डाल कर आप से कहा जाता है कि ‘क्या आप इस समय अकेले हैं? आप इस सुंदर लड़की से रिश्ते की बात कर सकते हैं.’

आप यदि उन के कहे अनुसार आगे बढ़ते गए तो फिर आप को कई लड़कियों के फर्जी फोटो, प्रोफाइल और मोबाइल नंबर दे दिए जाते हैं. इन में से एक भी रिश्ते की पड़ताल कर अपनी सहमति देते हैं तो फिर इन का खेल शुरू हो जाता है. आप संभल गए तो ठीक है, वरना आप फंसते जाएंगे और ये लड़कियां आप को ऐसे चंगुल में फंसा लेंगी कि आप लाखदोलाख रुपयों से उतर जाएंगे. उतर जाएंगे से तात्पर्य है कि आप के लाखदोलाख डूब जाएंगे.

फर्जी मैट्रिमोनियल साइट्स के मालिक महानगरों में एक औफिस खोल कर रखते हैं और यहां  अधिकतर महिलाएं ही काम करती हैं. यदि आप इन की साइट्स पर जा कर रिश्ते तलाशते हैं तो ये महिलाएं अच्छे रिश्तों का प्रलोभन दे कर आप को जाल में फंसा लेंगी और साइट्स पर रजिस्ट्रेशन करने हेतु मजबूर कर देंगी और रजिस्ट्रेशन के नाम पर अच्छीखासी राशि आप से प्राप्त कर लेंगी. ये महिलाएं अकसर व्हाट्सऐप का उपयोग ज्यादा करती हैं क्योंकि यहां आप के व्यक्तिगत नंबर पर सारी जानकारी आसानी से डाली जा सकती है.

रजिस्ट्रेशन हो जाने के बाद इन के द्वारा व्हाट्सऐप पर अच्छेअच्छे मौडल्स और दूसरे लड़केलड़कियों की फोटो, बायोडाटा और उन के मोबाइल नंबर भेजे जाते हैं. इन्हें जब फोन किया जाता है तो इन के मोबाइल बंद मिलते हैं या शादी के संबंध में बात की जाती है तो ये अनभिज्ञता दिखाते और रौंग नंबर होने की जानकारी देते हैं.

कुछ फर्जी मैट्रिमोनियल साइट्स वाले तो लड़केलड़कियों की पत्रिका,  कुंडलियां भी मिला कर देते हैं. इस का अलग से चार्ज करते हैं. इन के द्वारा मिलाई गई कुंडलियों में लड़केलड़कियों के 36 में से 36 गुण मिलते हैं. तब तो मातापिता को ये शादियां सफल होने के पूरे चांस दिखाई देते हैं.

ये लोग फटाफट रिश्ता तय करने में लग जाते हैं. ये महिलाएं फर्जी लड़के से आप की बात करवाते वीडियोकौल भी करवा देती हैं. जिस ढंग से आप संतुष्ट होना चाहते हैं वैसा पूरा प्रयास करती हैं. जब आप संतुष्ट हो कर आगे की बात करना चाहेंगे तो ये लड़के दहेज की मांग भी कर देते हैं और अपने बैंक खाते में शगुन के नाम पर कुछ धनराशि डालने को  कहते हैं.

इस शगुन की राशि हजारोंलाखों में होती है. कोरोना का हवाला दे कर ये आप से व्यक्तिगत रूप से मिलना नहीं चाहते. पूरी बातें मोबाइल पर ही होती हैं. पेमैंट भी औनलाइन करना होता है. फिर आप कहेंगे ‘यह है डिजिटल इंडिया’. ये लोग अलगअलग नामों से मैरिज ब्यूरो खोल कर लोगों को खूब ठगते हैं और भाग जाते हैं.

मैंट्रिमोनियल साइट्स के वैवाहिक  रिश्तों  का  सच  जानने  के  बाद  यदि  हम  इन  साइट्स के माध्यम से विवाह तय करते हैं तो हमें ही इस रिश्ते की पूरी जांचपड़ताल करनी होगी. किसी के बहकावे में आ कर लुटने से हमें ही बचना है. हमें अपने बेटेबेटियों को विवाह के इस बंधन में बांधने से पहले खूब सोचविचार कर लेना चाहिए,  हमें उन की जिंदगी दांव पर नहीं लगानी है.

इन सब परिस्थितियों को देखते हुए पुराने जमाने में जो रिश्ते तय होते थे वही अच्छे होते थे. हमारे रिश्तेदार ही हमारे बेटेबेटियों के लिए रिश्ते ले कर आते थे और यही रिश्तेदार दोनों पक्षों में मध्यस्थता कर विवाह संपन्न कराते थे. ये विवाह सौ प्रतिशत सफल भी होते थे. भईया, हम तो सलाह देंगे, जरा बच कर रहना इन मैट्रिमोनियल साइट्स से.

 

औनलाइन शौपिंग से दुकानदारी नुकसान में

औनलाइन बाजार से जहां ग्राहकों को फायदा पहुंच रहा है, वहीं छोटे व मध्यम वर्ग के व्यापारी काफी नुकसान में हैं. कई दुकानदारों के लिए तो अब दुकान का किराया और वर्कर्स की तनख्वाह तक निकालना मुश्किल हो रहा है. औनलाइन शौपिंग ने हमारे जीवन को बहुत सरल बना दिया है. रात के 12 बजे घर बैठे कोई चीज याद आ जाए तो उसे झट और्डर कर सकते हैं. हो सकता है थोड़ी देर में एक ड्रोन आ कर आप की मनपसंद चीज आप को पकड़ा जाए. कैसी सुविधाजनक है औनलाइन शौपिंग. न घंटों ट्रैफिक जाम में फंसने का डर, न मनपसंद सामान के लिए दुकानदुकान भटकने की पीड़ा, न घंटों लाइन में लग कर अपनी बारी आने पर ही पेमेंट करने का चक्कर और न भारीभरकम सामानों से भरे थैले लाद कर भागतेहांफते घर आना. रिकशाऔटो के खर्च की बचत अलग से.

समय की बचत, पैट्रोल की बचत यानी फायदा ही फायदा. पहले महिलाएं औनलाइन शौपिंग से घबराती थीं कि क्या पता कैसा सामान डब्बे में बंद हो कर आ जाए? पता नहीं डब्बा एक बार खोल लो और सामान पसंद न आए तो वह वापस हो न हो? पता नहीं जो सामान औनलाइन दिखा था वही आए या उस से घटिया क्वालिटी का आ जाए? ऐसे बहुतेरे सवाल महिलाओं को औनलाइन शौपिंग से दूर रखते थे. परंपरागत दुकानदारी के दौरान पसंद आने वाली चीज को छू कर देखना जो आनंद देता, वह आनंद औनलाइन शौपिंग में कैसे मिल सकता है? मगर कोरोनाकाल में जब लंबे समय के लिए स्थानीय बाजार बंद रहे, तब महिलाओं ने हिम्मत जुटा कर औनलाइन शौपिंग का औप्शन ट्राय किया और पाया कि इस में ज्यादा सहूलियत है. अब तो मध्यवर्गीय और उच्चवर्गीय महिलाएं अपनी अधिकतर खरीदारी औनलाइन ही करती हैं. घर की झाड़ू से ले कर एलईडी टीवी तक सब औनलाइन और्डर हो रहा है.

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औनलाइन शौपिंग समय के साथसाथ बजट का भी काफी खयाल रखती है. स्मार्ट महिलाएं औनलाइन शौपिंग करते समय एकसाथ कई दुकानों या बड़े मौल के दाम की तुलना कर के अपना और्डर प्लेस करती हैं. इस से पैसे की काफी बचत हो जाती है. फिर औनलाइन शौपिंग पर समयसमय पर अच्छे औफर्स और डिस्काउंट की बरसात का फायदा भी मिलता है. आजकल तो औनलाइन खरीद पर लगभग हर सामान पर औफर्स की बौछार होती है, जिस का मजा ही कुछ और है. महल्ले का बनिया किसी सामान पर एक रुपया भी कम नहीं करता, मगर यहां ‘बाय वन गेट वन फ्री’ का औफर सामने है. बनिया उधार नहीं देता और अमेजन अपने ग्राहकों को 60,000 रुपए मूल्य तक का सामान ईएमआई पर देने को तैयार है. उस के लिए भी जरूरी नहीं कि आप के पास क्रैडिट कार्ड हो. आप अपने डैबिट कार्ड का इस्तेमाल कर सकते हैं और थोड़ाथोड़ा पैसा हर महीने दे सकते हैं. ईएमआई भरने के लिए आप को 3 महीने से 12 महीने तक का टाइम मिल सकता है. इस से बढि़या बात क्या होगी.

औनलाइन शौपिंग पर हर उत्पाद (प्रोडक्ट) की अलगअलग विविधता (वैरायटी) में से अपनी पसंद का चयन करने का मौका मिलता है. यह सुविधा किसी दुकान या मौल में जा कर नहीं मिल सकती. औनलाइन शौपिंग में दुनियाभर के सारे उत्पादों की बहुत सारी विविधताओं में से चुनाव करने का विकल्प मिलता है. सोनाली कहती हैं, ‘‘औनलाइन शौपिंग के जरिए हम अब किसी को कभी भी अपनी पसंद का सामान गिफ्ट कर सकते हैं, वह भी कुछ मिनटों के अंदर. दीदीजीजू की वैडिंग एनिवर्सरी थी तो मैं ने रात 12 बजे औनलाइन और्डर कर के बढि़या चौकलेट केक विद बुके भिजवा दिया. ठीक 12 बजे डिलीवरी बौय ने उन के दरवाजे की घंटी बजाई और मेरा सरप्राइज उन के सामने था.’’ अब अपने प्रिय को गिफ्ट भेजने के लिए दूरी का बहाना भी खत्म हो गया है. हमें अपना गिफ्ट और्डर कर के डिलीवरी एड्रैस की जगह पर अपने उस मित्र या रिश्तेदार का पता लिखना होता है, और तय समयसीमा में ही हमारी शौपिंग साइट वह गिफ्ट वहां पहुंचा देती है.

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इस में शक नहीं कि औनलाइन शौपिंग ने महिलाओं की काफी परेशानियां हल कर दी हैं. घर के कामों से समय निकाल कर भाड़ा खर्च कर के बाजार जाना, साथ में बच्चे हों तो उन को भी कुछ न कुछ खिलानापिलाना, बाजार में उन को कुछ पसंद आ गया तो वह भी ले कर देना, एकएक सामान के लिए कईकई दुकानों के चक्कर काटना, दुकानदार से दामों के लिए माथापच्ची करना और अंत में आधेअधूरे सामान के साथ थकेमांदे घर आना, महिलाओं के लिए यह बड़ा सिरदर्द था, जो औनलाइन शौपिंग ने खत्म कर दिया है. मगर इस से जहां उन की घूमनेफिरने, मोलभाव करने की आदतें खत्म हो रही हैं वहीं परंपरागत दुकानदारी को बहुत ज्यादा घाटे का सामना करना पड़ रहा है. ई-शौपिंग ने परंपरागत दुकानदारी को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है. विशेषरूप से रेडीमेड कपड़े, जूते, मोबाइल, ज्वैलरी और इलैक्ट्रौनिक की दुकानों पर तो ग्राहकों का अकाल ही पड़ गया है.

ब्रैंडेड कपड़े, परफ्यूम, फैंसी जूते, घर की साजसज्जा का सामान, घड़ी और यहां तक कि अब खानेपीने का सामान भी घर बैठे इंटरनैट की मदद से मंगवाया जा रहा है. बड़ी बात यह कि औनलाइन बाजार में ऐसी चीजों पर आकर्षक औफर भी उपलब्ध हैं. ऐसे में साधारण व्यापारियों और दुकानदारों को बेतरह नुकसान हो रहा है. कई दुकानदारों के लिए तो अब दुकान का किराया और वर्कर्स की तनख्वाह तक निकालना मुश्किल हो रहा है. आजादपुर के बड़े मार्केट में डेढ़ साल बाद अंजुम मियां ने अपनी बंद दुकान खोली है, मगर ग्राहकों का टोटा पड़ा है. घरेलू सामान से दुकान अटी पड़ी है मगर ग्राहक झांकने भी नहीं आ रहा है. अंजुम मियां ने सोचा था, लौकडाउन खुलने के बाद दुकानदारी अच्छी चलेगी, लिहाजा नया सामान खरीद कर दुकान भर ली थी, मगर अब पछता रहे हैं. न दुकान का किराया निकल रहा है, न काम करने वाले 2 लड़कों को देने भर की तनख्वाह निकल रही है. इसी दुकान पर लौकडाउन से पहले तिल रखने की जगह न होती थी.

दरअसल, औनलाइन बाजार से जहां ग्राहकों को फायदा पहुंच रहा है, वहीं छोटे व मध्यम व्यापारी वर्ग काफी नुकसान में है. ऊधमसिंह नगर में रोजाना करीब 50 करोड़ रुपए का व्यापार औनलाइन मार्केट के चलते कम हो गया है. दूसरी ओर औनलाइन शौपिंग के नाम पर ठगी के मामलों में भी वृद्धि हो रही है. औनलाइन शौपिंग के कारण बेरोजगारी में भी बेतहाशा वृद्धि दर्ज हुई है. पहले एक मझोले दुकानदार के पास भी काम करने के लिए चारपांच लड़के होते थे, मगर अब वह अकेला ही दुकान संभालता है. दिनभर में अगर दोचार ग्राहक ही आए तो लड़कों की क्या जरूरत? आने वाले समय में औनलाइन शौपिंग बेरोजगारी की दर किस हद तक बढ़ा देगी, यह इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि अभी न्यूयौर्क सिटी में अमेजन ने अपना एक नया शोरूम खोला है, जिस में एक भी व्यक्ति काम नहीं करता है. पूरी दुकान ग्राहकों के लिए सजी हुई है. बस, आप को उस में प्रवेश करने के लिए अपने मोबाइल पर अमेजन ऐप औन करना होगा. दरवाजे से प्रवेश करते ही वह आप को चिह्नित कर लेगा.

उस के बाद आप जो भी सामान उठाएंगे वह उस का बिल आप के बैंक अकाउंट से हासिल कर आप को बिल पेमेंट की रसीद आप के मोबाइल फोन पर भेज देगा. औनलाइन शौपिंग तो परंपरागत दुकानदारी के लिए अभिशाप बन ही रही है, यदि ऐसी दुकानें भारत में भी खुलनी शुरू हो गईं तो मालिक और नौकर सब की छुट्टी ही समझें. खुदरा व्यापारियों को झटका लोगों में औनलाइन शौपिंग की बढ़ती लत के चलते हालत यह है कि जो युवा दुकानदारी कर रोजी कमाने की सोचते थे, वे मौल वगैरह में डिलीवरी बौय बन कर रह गए हैं. त्योहारों का सीजन सामने है, मगर तेजी सिर्फ औनलाइन बाजार में ही नजर आ रही है. मोबाइल से ले कर कपड़े और एसेसरीज के बाजार में औनलाइन कंपनियां अब लगभग एकाधिकार की ओर बढ़ती दिख रही हैं, जबकि कोरोनाकाल के बाद मंदी के सीजन में खुदरा व्यापारियों को ग्राहकों का इंतजार है.

खुदरा व्यापारियों का कहना है कि अगर सरकार ने औनलाइन व्यापार में चल रही अवैध व्यापारिक गतिविधियों पर अंकुश नहीं लगाया तो इस से देश के 12 करोड़ खुदरा व्यापारियों को तगड़ा झटका लग सकता है और करोड़ों व्यापारी तबाह हो सकते हैं. इस से करोड़ों लोगों की रोजीरोटी पर सीधा असर पड़ेगा. एक अनुमान के मुताबिक, भारत में इस समय औनलाइन कंपनियों का बाजार 75 अरब डौलर तक पहुंच चुका है. जिस गति से बाजार आगे बढ़ रहा है, आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगले 3 सालों में यह 100 अरब डौलर तक पहुंच सकता है. औनलाइन बाजार जितनी तेजी से बढ़ रहा है, इसे सीधे तौर पर खुदरा व्यापारियों के नुकसान के तौर पर देखा जा रहा है. कैट जैसे व्यापारिक संगठनों का दावा है कि उस के साथ 8 करोड़ से ज्यादा खुदरा विक्रेता जुड़े हैं. जबकि पूरे देश में खुदरा व्यापार में लगभग 12 करोड़ व्यापारी काम कर रहे हैं. यदि एक दुकान पर एक व्यापारी के साथ एक भी सहायक होने का औसत देखें तो इस प्रकार लगभग 24-25 करोड़ लोगों को खुदरा व्यापार क्षेत्र नौकरी देता है.

बड़ी दुकानों को जोड़ने के बाद यह संख्या 30 करोड़ को भी पार कर जाती है. भारी संख्या में कामगारों वाले देश भारत में यह क्षेत्र बड़ी आबादी को रोजगार उपलब्ध कराने का माध्यम बना हुआ है. जो औनलाइन शौपिंग के चलते अब संकट में है. सुविधा बनी लत औनलाइन कंपनियां लोगों से रोजगार छीन रही हैं. खुदरा व्यापारियों का घाटा और बेरोजगारी बढ़ रही है. औनलाइन बाजार का सब से गहरा असर मोबाइल और कपड़े बेचने वाली दुकानों पर पड़ा है. अनुमान है कि देश में बिक रहे कुल मोबाइल का 50 फीसदी से ज्यादा और कपड़ों के बाजार में एकतिहाई से ज्यादा औनलाइन खरीदीबेची की जा रही है. टैक्सटाइल क्षेत्र में भारी संख्या में लोगों के रोजगार प्रभावित होने की बात सामने आ रही है जो चिंताजनक स्थिति पैदा करती है. वहीं, घर बैठे मोबाइल पर एक क्लिक से मनचाहा सामान मंगाने की सुविधा आने वाले कुछ सालों में लत बन जाएगी.

रिसर्च फर्म गार्टनर का दावा है कि लोगों में खासतौर पर महिलाओं में औनलाइन शौपिंग की आदत इस कदर बढ़ जाएगी कि 2024 तक विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) इस लत को विकार घोषित कर देगा. अपना दायरा भूल कर और अन्य महिलाओं की देखादेखी बढ़चढ़ कर सामान और्डर करने की लत वित्तीय संकट और तनाव में वृद्धि करेगी. औनलाइन स्टोर्स लोगों को टारगेट करते हुए उन्हें बेवजह और अधिक खरीदारी करने के लिए मजबूर कर देते हैं. इस के फेर में आ कर उपभोक्ता अपनी जरूरत और क्षमताओं से अधिक खरीदारी करने लगते हैं. लोगों के लिए रोजगार का संकट भी खड़ा होगा और लाखों लोगों का मेहनत से कमाया पैसा गैरजरूरी चीजें खरीदने पर भी खर्च होगा. 2024 तक आर्टिफिशियल इमोशन इंटैलिजैंस के इस्तेमाल से भारी मानवीय संकट उत्पन्न होगा.

तकनीक की मदद से रोबोट भावनाओं को कंट्रोल करेगा. इंसान सिर्फ बैठ कर इस रोबोट को चलाएगा और काम होगा. ऐसे में कौशल की विकलांगता बढ़ेगी. उदाहरण के तौर पर एक रैस्टोरैंट अपने यहां और्डर लेने और खाना परोसने के लिए रोबोट का इस्तेमाल करेगा जो ग्राहकों से बात भी करेगा और उन की पसंद को भी समझेगा. ऐसे में होटल मैनेजमैंट के जरिए वेटर का कौशल सीखे ज्यादातर पेशेवर सिर्फ रोबोट संचालित करते रह जाएंगे.

बायो डी कंपोजर किसानों के लिए बेहद फायदेमंद

लेखक- डा. संजय सिंह, वैज्ञानिक

न कोई खाद, न कोई पैस्टिसाइड, न फफूंदनाशी, सिर्फ डीकंपोजर ‘जैविक कृषि अनुसंधान केंद्र’ द्वारा बनाया गया अपशिष्ट विघटनकारी है. इस के साथसाथ यह कृषि की एक नई विधि भी है, जो पूरी तरह से जैविक है. यह बायोडीकंपोजर किसानों की लागत को आधा करती है. पैस्टिसाइड पर होने वाले खर्च को भी बहुत कम कर देती है. ‘एग्रोकनैक्ट’ जैविक कृषि अनुसंधान केंद्र से इस प्रोडक्ट की उपलब्धता बढ़ाने के लिए वैस्ट डीकंपोजर उपलब्ध कराएगा.

डीकंपोजर बनाने की विधि

* एक ड्रम या टंकी में 200 लिटर पानी लें और उस में 2 किलोग्राम पुराना गुड़ अच्छे से मिलाएं.

* अब डीकंपोजर की एक बोतल का मैटेरियल पानी में डालें और पानी को किसी लकड़ी की मदद से चला दें. हाथों से डीकंपोजर को बिलकुल न छुएं.

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* अब रोजाना सुबहशाम घोल को लकड़ी की मदद से थोड़ा सा तकरीबन 5 मिनट चलाएं. 7 दिनों में आप का घोल कुछकुछ मिट्टी की तरह का रंग लिए हुए तैयार हो जाएगा. कंपोस्ट बनाने की विधि छायादार जगह पर प्लास्टिक शीट बिछा कर उस पर पतली गोबर व कृषि अपशिष्ट की 1 टन की परत बिछा दें और इस पर 20 लिटर तैयार घोल का छिड़काव करें. यह प्रक्रिया तब तक दोहराएं, जब तक कि 200 लिटर घोल खत्म न हो जाए. तैयार कंपोस्ट में 60 फीसदी नमी बनाए रखें.

डीकंपोजर का छिड़काव हर 7 दिन के अंतर पर करें. इस तरह से 40 से 50 दिनों में आप का कंपोस्ट तैयार हो जाएगा. बायोडीकंपोजर सिर्फ विघटन करने वाला ही नहीं है, बल्कि इस के और भी कई इस्तेमाल हैं. बायोपेस्टिसाइड के रूप में 30 लिटर बायोडीकंपोजर 70 लिटर पानी में मिला कर स्प्रे करने से इस से विभिन्न प्रकार की मृदाजनित, जीवाणुजनित बीमारियों से बचा जा सकता है. इस का छिड़काव 10 दिन के अंतर पर करते रहना चाहिए. कीट प्रबंधन कीटों से बचाव के लिए व कीट लगने की अवस्था में भी बायोडीकंपोजर का स्प्रे करने से सभी तरह के कीटों व माइट्स पर इस के बहुत ही असरकारक नतीजे देखने को मिले हैं.

स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई करने वाले किसान 200 लिटर बायोडीकंपोजर को स्प्रिंकलर द्वारा अपनी खड़ी फसल में इस्तेमाल कर सकते हैं. टपक यानी ड्रिप सिंचाई विधि द्वारा 200 लिटर घोल को एक एकड़ खेत में जरूरत के मुताबिक पानी में मिक्स कर के खड़ी फसल में इस्तेमाल किया जा सकता है.

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बायोडीकंपोजर के का एक भाग, डीकंपोजर सौलुशन में 3 भाग पानी मिला कर स्प्रे करने से बैक्टीरियल और फंगल बीमारियों पर कामयाबी मिली है. डीकंपोजर का इस्तेमाल करने वाले किसानों के खेत में कोई भी बीमारी का प्रकोप नहीं देखा गया. डीकंपोजर सभी पोषक तत्त्वों को पौधों को उपलब्ध करवाता है. इस के इस्तेमाल के साथ कम फर्टिलाइजर की जरूरत होती है.

वह खुशनुमा एहसास

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