लेखक- रोहित 

गंजापन जितनी बड़ी समस्या नहीं उस से अधिक गंभीर बना दी गई है. लोग गंजेपन के चलते भारी तनाव में आ कर जोखिम मोल ले रहे हैं. उपहास उड़ने के डर से लोग तरहतरह के तरीके अपना रहे हैं. ये तरीके घातक भी साबित हो सकते हैं. कहते हैं प्राचीन ग्रीस में यह माना जाता था कि गंजे आदमी के सिर पर यदि कबूतर बीट कर दे तो सम?ा उस का गंजापन दूर हो गया. ऐसे ही मिस्र में तो सिर के बाल बढ़ाने और बचाने के कई नुस्खे आजमाने की बातें सामने आई थीं जिन में से एक नुस्खा जंगली चूहे की चमड़ी पर शहद लगा कर सिर पर लगाने से गंजापन दूर होने का था. एक दिलचस्प किस्सा रोम के जुलियस सीजर के बारे में भी प्रचलित था कि अपने गंजेपन को दूर करने के लिए उन्होंने न जाने कितने नुस्खे अपनाए. जब जुलियस सीजर क्लियोपेट्रा से मिलने गए तो वे लगभग गंजे थे.

इस मुलाकात के बाद सीजर ने अपने बालों को बढ़ाने के कई नुस्खे अपनाए, पर उन का हर नुस्खा फेल हो गया और अंत में उन्होंने अपने सिर के पीछे वाले हिस्से के बालों को बढ़ाना शुरू किया जो उस समय का ट्रैंड भी बन गया. सिर के गंजेपन को ले कर चिंता होना हर समय की कहानी रही है. लोगों ने कई नुस्खे अपनाए, टोनेटोटके किए लेकिन बाल तो वापस नहीं आए, हां वे मजाक का पात्र बनते रहे. यह तय है कि हर समय में गंजेपन ने लोगों को चिंता में डाला है. इन चिंताओं के इलाज समयसमय पर बदलते रहे. फर्क इतना पड़ा कि पहले ये घरेलू नुस्खों, टोनोंटोटकों की शक्ल में थे, आज बड़ेबड़े इश्तिहारों के साथ ये तेल, शैंपू, क्रीम, टौनिक, दवाई, ट्रांसप्लांट इत्यादि के रूप में सामने हैं. इसी गंजेपन की समस्या को ले कर साल 2019 में एक फिल्म आई थी ‘बाला.’ यह फिल्म गंजेपन से शर्मिदगी ?ोलती युवा पीढ़ी को ले कर बनाई गई थी. फिल्म में अभिनय किया था चिरपरिचित कलाकार आयुष्मान खुराना ने. फिल्म के शुरुआती संवाद में कहा गया, ‘‘हम आप की खूबसूरती का राज हैं, आप के सिर का पर्मानैंट ताज हैं.

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’’ यह वाक्य सिर के बालों के लिए कहे गए थे. यानी, सर्वविदित तौर पर बालों से व्यक्ति की खूबसूरती का सीधा लेनादेना होता है, ऐसा बताने की कोशिश थी. जाहिर है हर आदमी इस खूबसूरती को बनाए रखना चाहता है. ऐसे में वह सिर के इस ताज को बचाए रखना चाहेगा. फिल्म में ‘बाला’ यानी आयुष्मान खुराना को अपने गंजेपन के चलते कई समस्याओं से गुजरना पड़ता है. बचपन में जो बाला ‘स्कूल का हीरो’ होता था, उस के लहराते बालों की तारीफ हर कोई करता था. स्कूल की सब से सुंदर लड़की उस के बालों पर फिदा होती है. वह बाला अब 30 साल की उम्र में बालों के ?ाड़ने से परेशान हो गया है. गर्लफ्रैंड छोड़ कर चली गई है, औफिस में बालों वाले युवक उसे सब अंकल कह कर पुकार रहे हैं, पीठपीछे उस का मजाक उड़ाया जा रहा है. फिल्म में गंजेपन की समस्या से तंग आ कर बाला कहता है, ‘‘जौब में डिमोट हो जाते हैं, मिमिक्री में फ्लौप हो जाते हैं, बचपन की गर्लफ्रैंड छोड़ कर चली जाती है, सुंदर लड़की से बात नहीं कर पाते हैं, लगता है हंसेगी हम को देख के यार.’

’ सिर पर बाल न होना ठीक इन्हीं संवादों सा एहसास कराते हैं, खासकर तब जब व्यक्ति युवा अवस्था में हो. आखिरकार, कथित तौर से इंसान की खूबसूरती में चारचांद लगाने में बाल अहम किरदार निभाते हैं. यही कारण है कि लोग बालों को बचाने और फिर से उगाने के लिए तरहतरह के नुस्खे अपनाते हैं. फिल्म ‘बाला’ में भी बाल मुकुंद भैंस के गोबर से ले कर सांड के वीर्य तक सबकुछ ट्राई कर लेता है लेकिन बाल बढ़ने की जगह घटते ही जाते हैं. बालों को ले कर यह ओबसैशन कहीं न कहीं हकीकत में भी सामने है. बहुत बार व्यक्ति अपने बालों को वापस पाने के लिए इतना जनूनी हो जाता है कि वह भी कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता है, चाहे परिणाम कितना ही घातक क्यों न हो.

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कुछ घटनाएं द्य ऐसी ही एक घटना गुजरात के महसाना से सामने आई. वहां एक व्यक्ति ने अपना हेयर ट्रांसप्लांट करवाया जिस के चलते 3 दिनों बाद उस की मौत हो गई. मामला 15 सितंबर का है. 31 वर्षीय अरविंद चौधरी, जो मेहसाना के विसनगर तालुका के खदोसन गांव का निवासी था, मेहसाणा के जेल रोड स्थित एक हेयर ट्रांसप्लांट क्लिनिक गया था. अरविंद का ट्रांसप्लांट शाम करीब 4 बजे क्लिनिक में किया गया था. डाक्टरों की हिदायत से वह रात 10 बजे तक क्लिनिक में रहा और फिर डिस्चार्ज हुआ. घर आने के बाद अरविंद को शारीरिक दिक्कत पेश आने लगी. 17 सितंबर की सुबह अरविंद बेचैनी की शिकायत कर वापस क्लिनिक गया. डाक्टरों ने उस की जांच की तो हालत देख कर उसे अस्पताल में भरती होने के लिए कहा क्योंकि उस की धड़कनें बढ़ रही थीं. हालत गंभीर होने पर अरविंद को जल्द ही आईसीयू में स्थानांतरित कर दिया गया. फिर 18 सितंबर को सुबह लगभग 7.30 बजे अरविंद ने अस्पताल में अंतिम सांस ली. अरविंद की इस मृत्यु के पीछे चाहे कितनी ही वजहें गिनाई जा सकती हैं,

सस्ते इलाज या डाक्टरों के खराब ट्रीटमैंट पर इस का सारा ठीकरा फोड़ा जा सकता है पर एक सवाल जो खुद से करना बेहद जरूरी है वह यह है कि क्या हम ने खुद ही मामूली से गंजेपन की समस्या को इतनी शर्मिंदगी वाला हिस्सा तो नहीं बना दिया है कि लोग जान तक को खतरे में डालने वाले जोखिम लेने को तैयार हो गए हैं. द्य दिल्ली के बलजीत नगर इलाके में रहने वाले 30 वर्षीय रमिकांत पेशे से परचून दुकानदार हैं. स्कूली दिनों से ही वे अपने पिताजी के साथ यह काम करने लगे थे. वे कहते हैं, ‘‘गंजापन होना उस व्यक्ति के लिए तनाव वाली स्थिति होती है जिस पर गुजर रही होती है. वहीं, उन के लिए हंसीमजाक का मसला होता है जिन के बाल हैं.’’ रमिकांत बताते हैं कि 11वीं कक्षा के दौरान ही उन के बाल गिरने शुरू हो गए थे. शुरुआत में ज्यादा ध्यान नहीं गया लेकिन जब नहाते हुए बाल हाथों में विजिबल होने लगे तो चिंता होने लगी. वे सरकारी स्कूल में थे, सिर के कपाल वाला हिस्सा उस दौरान चमकने लगा था. उन्होंने बहुत कोशिश की कि जहां से मांग निकलती है उस तरफ से बालों को बढ़ा कर गंजापन छिपा सकें पर धीरेधीरे सिर के बीच से बाल साफ होते गए.

फिर तो ढकने के लिए सिवा टोपी के विकल्प न था. यह उन के लिए बेहद मुश्किल समय था. इतनी छोटी उम्र में बालों का ?ाड़ना उन के लिए शर्मिंदगी वाली बात थी. वह भी उस सरकारी स्कूल में जहां छात्र परिपक्व नहीं होते हैं, हमेशा हंसी उड़ाते हैं. ‘‘मु?ो महसूस होता था कि मैं छोटी उम्र में ही बड़ी उम्र का दिखने लगा हूं. स्कूल में लड़केलड़कियां दोनों पढ़ते थे, लेकिन मु?ो ध्यान नहीं कि मैं ने किसी लड़की से उन 2 सालों में शर्मिंदगी के चलते सीधे मुंह बात की हो. उस दौरान जिस ने जो कहा, वह ट्राई किया. लेकिन कुछ ठीक नहीं हो पाया.’’ हालांकि, रमीकांत अब बाल ?ाड़ने की परवा करना छोड़ चुके हैं. वे अधिकतर समय सिर मुंडवा कर ही रखते हैं, जिस की उन्हें और उन्हें देखने वाले लोगों को आदत पड़ चुकी है. द्य पिछले वर्ष जनवरी की घटना है. समय से पहले गंजेपन से परेशान एक वरिष्ठ सिविल सेवक के 18 वर्षीय टीनेज बेटे प्रत्यूष मिश्रा ने फांसी से लटक कर आत्महत्या कर ली. लड़के के पिता ओडिशा कैडर के सर्वेंट थे. प्रत्यूष मिश्रा अपने मातापिता के साथ माधापुर के खानमेट में रहता था. वह जेईई एंट्रैंस की तैयारी कर रहा था. प्रत्यूष ने अपने सुसाइड नोट में इस बात का जिक्र किया था कि तबीयत खराब चलने से उस के बाल ?ाड़ रहे थे और वह इस से परेशान था.

ठीक इसी तरह की घटना बेंगलुरु में भी सामने आई थी. लगातार बालों के ?ाड़ने से तंग आ कर एक 27 वर्षीय सौफ्टवेयर इंजीनियर आर मिथुन राज ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. मिथुन ने इनफोसिस में काम किया था जिस के बाद वह बेंगलुरु में सौफ्टवेर इंजीनियर कंपनी में काम करने लगे. पुलिस के अनुसार, मिथुन को सिर में स्किन समस्या थी जिस के बाद उन के बाल ?ाड़ने शुरू हुए. उन्होंने कई तरह के हेयर ट्रीटमैंट किए थे लेकिन किसी से खास लाभ उन्हें नहीं हो पाया. मिथुन की मां का कहना था कि सुसाइड वाली घटना से कुछ दिनों पहले वह हेयरफाल को ले कर बेहद परेशान था.

उस ने आत्महत्या करने से पहले कुछ दिन औफिस से छुट्टियां ले रखी थीं. उपहास का पात्र यह सिर्फ भारत में ही नहीं, विदेशों में भी गंजेपन के तनाव से कई लोग ग्रस्त हैं. इसी वर्ष अमेरिका के 24 वर्षीय जैक हौग ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि वे पिछले 5 वर्षों से गंजापन रोकने और बाल उगाने की दवाई खा रहे थे. इस दवाई से उन के बाल तो नहीं उगे, वे भारी तनाव में जरूर चले गए. पिछले साल जनवरी में दवाइयों के चलते उन्हें सुसाइड करने का खयाल भी आया. फिर उन्होंने साईक्लोजिस्ट से इन बातों पर चर्चा की जिस के नतीजे में वे इस से उबर पाए.

अब बाल तो उन के सिर पर नहीं हैं पर वे इसे नौर्मल मान कर बेहतर महसूस कर रहे हैं. मसलन, गंजेपन की यह दिक्कत आज जितना पुरुषों की परेशानी का सबब बनी है उसी तरह से महिलाओं को भी तनाव में डाल रही है. खासकर, लड़कियों के लिए तो बाल होना शादी के सर्टिफिकेट मिलने जैसा होता है. आज पूरी दुनिया में गंजेपन को एंड्रोजेनिक अलोपेसिया नाम दे कर ऐसा प्रचार किया जाने लगा है जैसे कि आप कोई बहुत बड़ी बीमारी से गुजर रहे हों. तमाम विज्ञापनोंइश्तिहारों से लोगों के दिमाग में एक तरह का भय डाला जा रहा है कि यदि आप के सिर पर बाल नहीं तो आप समाज में उठनेबैठने लायक नहीं हैं, आप की शादीब्याह, पसंदनापसंद बस इसी पर आधारित है.

हरेक तेल, शैंपू, लोशन, क्रीम, दवाई वाले लगातार यह प्रचार करते हैं कि असल सुंदरता बालों से ही है. यह सब मिल कर एक तरह का हैक्टिक माहौल क्रिएट कर देते हैं. यारदोस्त, आसपड़ोस के बीच गंजा आदमी उपहास का पात्र बन कर रह जाता है. उसे टकला, गंजा, उजड़ा चमन जैसे कई नामों से पुकारा जाता है. यही कारण भी है कि समाज के इस अलगाव और भेदभावपूर्ण व्यवहार से बचने के लिए व्यक्ति खुद से ऊलजलूल और सस्तेखर्चीले रिस्की तरीके अपनाने लगा है, जिस से कितना बालों का वापस आना संभव है, कहा नहीं जा सकता. एक अंदाजे के मुताबिक, गंजेपन के इलाज के लिए पूरी दुनिया में हर साल करीब साढ़े 3 अरब डौलर तक की रकम खर्च की जाती है.

इस रकम को अगर जोड़ा जाए तो किसी छोटे देश के लिए तो यह सालाना बजट के बराबर है. इस रकम को ले कर एक साक्षात्कार में बिल गेट्स का मानना था कि यह रकम मलेरिया जैसी बीमारी पर काबू पाने के लिए खर्च की जाने वाली रकम से भी बड़ी है. इस से माना जा सकता है कि महज सिर पर बालों को उगाने का दिलासा भर देने से कितने का व्यापार/बाजार खड़ा हो गया है. जब जवानी की परिभाषा सिर के बाल को बना दी गई हो तो गंजापन आना दिक्कत लगनी ही है, पर यह इतनी गंभीर दिक्कत भी नहीं कि इस के लिए खुद को चोट पहुंचाना, आत्महत्या जैसे गंभीर कदम उठाना या ऐसे तरीकों पर पैसे बरबाद करना जिन से जान का भी जोखिम हो अपनाए जाएं. भारत में एक समस्या अधिक रही है कि यहां बौलीवुड ने गंजेपन को फूहड़ तरीके से हंसी का ही विषय बनाया है और अभी भी यहां के स्टार कलाकार हकीकतों से कोसों दूर नकली बाल लगा, हेयरट्रांसप्लांट करा खुद को जवान दिखाना चाहते हैं.

बाहर विदेशों में यह इतना नहीं. वहां ब्रूइस विलिस, ड्वेन जोहन्सन, जेसन स्तेथम जैसे कलाकारों के गंजा होने के बावजूद स्वीकार्यता रही. लोगों ने उन्हें अपना रोल मौडल माना है. इसलिए, वहां गंजा होना भी फैशन सैंस में काउंट किया जाने लगा है. दरअसल, लंबे वक्त से गंजेपन को ले कर तरहतरह की बातें होती रही हैं. विज्ञान के विस्तार न होने से समाज पर यह सोच भी काफी हद तक हावी रही कि एक दमदार मर्द और खूबसूरत औरत होने के लिए सिर पर बाल होने जरूरी हैं. जबकि, अरस्तु जैसे दार्शनिक का मानना था कि गंजेपन के पीछे अधिकाधिक किया गया सैक्स वजह है. पर जब से विज्ञान ने तरक्की की है, यह बात सभी के सामने है कि गंजेपन की असली वजह हार्मोन टेस्टोस्टेरौन में बदलाव से एक नए हार्मोन डीहाइड्रोस्टेरौन बनने की वजह से होता है.

कुछ लोगों में यह खानदानी वजह से गंजापन होता है. जिन के बाल 25-30 वर्ष की उम्र आतेआते ?ाड़ने शुरू हो जाते हैं, ऐसा बहुत बार गलत खानपान और सही मात्रा में पौष्टिकता न लेने के चलते भी होता है. संभव है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते बदलते वातावरण भी कारण के तौर से इस में जुड़ जाएं, पर इस का किसी कौम, देश, जाति से कोई लेनादेना नहीं. इसलिए, इसे पहले तो सामान्य मानने की खासा जरूरत है, फिर विकल्प तलाश किए जाने पर सोचा जाना चाहिए.

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