सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी सौफ्टवेयर के ममाले में सरकार की एक न सुन अपनी जांच कमेटी बना कर साबित कर दिया है कि देश की हर संस्था भगवा रंग की गुलाम नहीं है और देश में अभी भी लोकतंत्र जिंदा है चाहे उस के पेड़ की हर शाख को काट कर आधाचौथाई कर दिया गया हो.
पेगासस सौफ्टवेयर ऐसा सौफ्टवेयर है जिसे किसी के भी फोन डिवाइस में केवल उस में इस्तेमाल की जा रही सिम का नंबर मालूम कर के बिना फोन छुए डाला जा सकता है. डिवाइस में घुस जाने के बाद यह फोन पर पूरा कंट्रोल कर लेता है और पेगासस सौफ्टवेयर का संचालक न केवल सारा वार्त्तालाप सुन सकता है, बल्कि डिवाइस का कैमरा भी चालू कर सकता है. इसराईली कंपनी एनएसओ द्वारा यह बनाया गया है और केवल देशों की सरकारों को बेचा जाता है. जब से इस मामले का भंडाफोड़ हुआ है तब से भारत की सरकार बहुमुखी आवाजों में इस पर उठाए सवालों के जवाब दे रही है.
सुप्रीम कोर्ट में भी सरकार का कहना था कि यह मामला सुरक्षा का है, गोपनीय है. दरअसल, सरकार इस बारे में कुछ कहना नहीं चाहती. वह न इस की खरीद मानने को तैयार है न इनकार करने को. पिछले मुख्य न्यायाधीश चाहे जैसे रहे हों, मौजूदा मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने सरकार की एक नहीं सुनी. एक अवकाशप्राप्त सुप्रीम कोर्ट जज आर वी रवींद्रन की अध्यक्षता में कमेटी बना डाली है, जिसे व्यापक अधिकार हैं.
यह कमेटी कंपट्रोलर औडिटर जनरल औफ इंडिया के तत्कालीन विनोद राय की तरह जीरो लगाने वाली साबित न हो, यह उम्मीद की जा सकती है. मनमोहन सिंह की सरकार को असल में विनोद राय ने हराया था, मोदी ने नहीं. राय ने काल्पनिक आंकड़े दे कर सीएजी की प्रतिष्ठा को धूमिल कर दिया था. अब विनोद राय उसी तरह भाजपा की गोद में बैठे हैं जैसे पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगाई, जिन्होंने मोदी सरकार को राममंदिर उपहार में दिया है.
पेगासस का मामला गंभीर है क्योंकि सरकार ने इस का उपयोग पत्रकारों और विपक्षी नेताओं के खिलाफ किया. जो सूची अंदरूनी स्रोतों से मिली है उस में आतंकवादी नहीं, आम लोग हैं जो आमतौर पर सरकार का अंधा समर्थन नहीं करते और तथ्यों की, जनता के हित में, जांचपरख करते हैं. ऐसे लोगों के पलपल की खबर रख सरकार उन्हें कभी भी ब्लैकमेल कर सकती है.
पेगासस सौफ्टवेयर जैसे सौफ्टवेयर बहुत से हैकर बना लेते हैं. और हैकिंग आज खाली बैठे कंप्यूटर एक्सपर्ट्स का एक खेल हो गया है. वे यह जानकारी अपने आनंद के लिए इस्तेमाल करते हैं और उन्हें इसीलिए दुनियाभर की सरकारें ज्यादा परेशान नहीं करतीं. वे आमतौर पर अपनी कंप्यूटर सौफ्टवेयर कला ही विकसित करने में लगे रहते हैं जबकि इसराईली कंपनी एनएसओ ने इसे सरकारों को अपने विरोधियों का दमन करने के लिए बनाया है. यह सौफ्टवेयर सरकार के हाथों में एटमबम की तरह है जो सिर्फ एक व्यक्ति को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
एक लोकतांत्रिक देश को गुप्तचरी का प्रयोग करने का अधिकार है पर देशविरोधियों के खिलाफ, न कि सत्तारूढ़ पार्टी के विरोधियों के खिलाफ. सरकार जनता का अरबों रुपया इस गुप्तचरी पर खर्च नहीं कर सकती.
सुप्रीम कोर्ट सरकार को दोषी मान कर उसे कठघरे में खड़ा करेगा, इस की गुंजाइश तो कम है क्योंकि मौजूदा मुख्य न्यायाधीश के पास विनोद राय जैसा संघ समर्थित लोगों का सहारा नहीं है लेकिन वह सरकार के हाथ बांध सकता है कि वह सीमा में रह कर ही काम करे क्योंकि किसी आदमी के अधिकार धर्मजनित भगवा झंडे से कहीं ज्यादा अहम और महत्त्वपूर्ण हैं.