2014 के लोकसभा चुनावों में प्रचार के समय सबसे अधिक लोग प्रिय नारा था ‘बहुत हुई मंहगाई की मार, अबकि बार मोदी सरकार’. भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी अपनी हर सभा में जनता से पूछते थे ‘दोस्तो मंहगाई कम होनी चाहिये कि नहीं ?’ जनता ने सोंचा था कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मंहगाई कम हो जायेगी. डीजल पेट्रोल की कीमत कम हो जायेगी. सही मायनों में जो जनता ने सोंचा था उसके विपरीत काम हुआ. मंहगाई कम होने की जगह बढती ही जा रही है. डीजल पेट्रोल की कीमतें दोगुनी हो गई है. केन्द्र सरकार अब भी मंहगाई लिये पुरानी कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार बता रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव में मंहगाई और बेरोजगारी को लेकर डाक्टर मनमोहन सरकार से सवाल करने वाले नरेन्द्र मोदी अब इन मुददो पर खामोश है.
मार्च 2014 में गैस का सिलेंडर 410 रुपए का था गैस सिलेंडर, अब 819 का हो गया है. तेल बेच कर 2013 में आते थे 52,537 करोड़ और अब तीन लाख करोड़ सरकार को मिलने लगे है. रसोई गैस की बात हो या बाजार में बिकने वाले कमर्शिल गैस सिलेंडर की 7 सालोे में कीमत दोगुना से भी ज्यादा हो चुकी है. 19 किलो के कमर्शियल गैस सिलेंडर की कीमत 8 सौ रूपये के आसपास थी 2021 में 2 हजार रूपये प्रति सिलेंडर हो चुकी है. देश में पेट्रोल-डीजल और एलपीजी के बढ़ते दामों को लेकर विपक्ष लगातार केंद्र सरकार पर निशाना साध रहा है. इसके बाद भी सत्ता पक्ष पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं बन पा रहा.
मोदी राज में दोगुने हो गये पेट्रोलियम पदाथों के दाम: केन्द्र सरकार के मंत्री गैस के बढते दामांे और मंहगाई को लेकर उल्टेसीधे जवाब देने लगते है. केन्द्र सरकार में मंत्री और उत्तर प्रदेश में चुनावी प्रभारी धर्मेन्द्र प्रधान कहते है ‘कोरोना संकट के कारण विश्व की अर्थ नीति ठप्प हो गई थी. देश के अंदर हमारे सीमित उत्पादन है. इस कारण पेट्रोलियम पदाथों का बाहर से लाना पडता है. पिछले 2 सालों में पेट्रोलियम क्षेत्र मे जो निवेश होना था वह नहीं हुआ. जिसके कारण कच्चे तेल के दामांे में उछाल आई है. इसलिये पेट्रोलियम के दाम बढे हुये है. केन्द्र सरकार ने गरीबों की किसी योजना में कटौती नहीं की है. बल्कि उसे बढाया ही है. किसी गरीब को भूखे नहीं रहने दिया गया है. खर्च बढने से अस्थाई मंहगाई बढी है.’
पेट्रोलियम पदाथों के दाम और मंहगाई कोरोना संकट के पहले से ही बढने लगे थे. कोरोना ने सरकार को बच निकलने का मौका दे दिया है. ईधन पर यह बढ़ोतरी सिर्फ पिछले कुछ साल और महीनों की बात नहीं है. भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए के सत्ता में आने के बाद से ही एलपीजी के दाम लगातार बढ़े हैं. पिछले सात सालों में गैस सिलेंडर की कीमतें दोगुनी हो गई हैं. दूसरी तरफ एलपीजी की बढ़ती कीमतों से सब्सिडी लगभग न के बराबर पहुंच गई है. लोकसभा में तेल और एलपीजी के दामों में हुई बढ़ोतरी को लेकर पूछे गए सवालों पर केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लिखित जवाब में बताया कि 1 मार्च 2014 को एक एलपीजी सिलेंडर की कीमत 410.50 रुपए थी. पिछले सात सालों में एलपीजी की कीमतें दोगुनी हो गई हैं.
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सरकार की कमाई का जरीया है पेट्रोलियम पदार्थ:पेट्रोल-डीजल के दामों में हुई इस बढ़ोतरी को लेकर धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि जहां पेट्रोल को 26 जून 2010 से ही सरकारी नियंत्रण से बाहर कर दिया गया, वहीं डीजल से भी 19 अक्टूबर 2014 को सरकारी नियंत्रण हटा लिया गया. ऐसे में रिटेलर्स अंतरराष्ट्रीय कीमतों, रुपए के एक्सचेंज रेट, टैक्स स्ट्रक्चर और अन्य आधारों पर हर दिन तेल के दाम निर्धारित करते हैं. पेट्रोल-डीजल पर केंद्र और राज्य सरकार की ओर से भारी टैक्स लगाए गये हैं. इसका असर यह है कि जहां 2013 में इससे 52,537 करोड़ का राजस्व जुटा था, वहीं 2019-20 में इससे 2.13 लाख करोड़ रुपए का राजस्व इकट्ठा हुआ. इतना ही नहीं 2020-21 के 11 महीनों में तो तेल के बढ़े दामों से राजस्व 2.94 लाख करोड़ तक पहुंच चुका है.
पेट्रोलियम पदाथों पर एक्साइज ड्यूटी से केन्द्र की कमाई बढ़ी है. पेट्रोल पर फिलहाल 32.90 रुपए और डीजल पर 31.80 रुपए प्रति लीटर की दर से एक्साइज ड्यूटी लगाई जा रही है. 2013 में यह एक्साइज ड्यूटी पेट्रोल पर 17.98 रुपए और डीजल पर 13.83 रुपए थी। केंद्रीय मंत्री के मुताबिक, पेट्रोल, डीजल, जेट फ्यूल, प्राकृतिक गैसों और कच्चे तेल से सरकार का कुल एक्साइज कलेक्शन 2016-17 के 2.37 लाख करोड़ से बढ़कर अप्रैल-जनवरी 2020-21 में 3 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया.
देखा जाये तो सरकार पेट्रोलियम पदाथों के रेट बढने की बात का बहाना बनाती है. सही बात यह है कि केन्द्र और प्रदेष सरकार दोनो ही अलग अलग टैक्स लेते है. अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष संदीप बंसल कहते है ‘हम लंबे समय से मांग कर रहे है कि पेट्रोलियम पदाथों पर जीएसटी लागू कर दी जाय. जिससे इन पर मनमाने टैक्स का भार नहीं पडेगा. जनता को कम कीमत में डीजल पेट्रोल मिलेगा. सरकार इस बात को लगातार अनसुना कर रही है. क्योकि वह पेट्रोलियम पदाथों पर तरह तरह के टैक्स लगाकर अपनी जेब भर रही है. कमर्षियल सिलेंडर के मंहगे होने से ढाबे वाले और गरीब लोग सबसे अधिक परेषान हो रहे है.
’ढाबे पर मजदूर और गरीब लोगो के लिए बिकने वाली खाने पिने की चीजे महगी हो गई. चाय पहले 5 रुपये की बिकती थी अब इसकी कीमत 10 रुपये से अधिक हो गई है. समोसा 5 रुपये का था अब 10 रुपये का हो गया है, ढाबे पर पहले 20 से 25 रुपये की भोजन की थाली में गरीब का पेट भर जाता था. अब इसके लिए 50 से 70 रुपये खरच करने पड़ते है. इस बड़ी कीमत का लाभ ढाबा चलने वाले की भी जेब में नहीं जा रहा. महंगी चीजों को खरीद के वह भी परेशान हो चूका है. ढाबा चलाने वाले विजय अरोरा कहते है हम महंगी चीजे खरीद कर ढाबा चला रहे है. उसके अनुसार कीमत नहीं बढ़ा सकते क्योकि उतनी कीमत बढ़ने से खाने वाले नहीं आएंगे. महंगाई को बोझ जनता के कंधो पर पद भले रहा है पर यह सरकार की जेब में जा रहा है.
मंहगाई पर चिंता क्यो नही ?
मंहगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के एजेंडे पर चुनाव जीतने वाली भाजपा सरकार अब अपने एजेंडे के विकास पर लग गई है. मोदी सरकार ने मंहगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी को काबू में करने की बात भूल कर तीन तलाक, गौ हत्या बिल, धारा 370, राममंदिर और नागरिकता कानून जैसे अपनी पार्टी के एजेंडे को पूरा करने में लग गये. इन मुददों के सहारे ही वह चुनाव जीतना चाहते है. पश्चिम बंगाल के चुनाव में वहां की जनता ने भाजपा के धार्मिक मुददों को नकार चुकी है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को हराने के लिये भाजपा ने नागरिकता कानून के बहाने यह प्रचार किया कि बंगलादेषियों को बाहर किया जायेगा. ममता बनर्जी को हिन्दू धर्म के खिलाफ काम करने वाला साबित करने का प्रयास हुआ. इस सबके बाद भी भाजपा को जीत नहीं हासिल हुई.
2022 के विधानसभा चुनावों मे सबसे अहम लडाई उत्तर प्रदेश में है. यहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ‘अब्बाजान’ जैसे शब्दो का प्रयोग करके हिन्दुओं को डराना चाहते है. भाजपा की सोशल मीडिया टीम इस बात को लेकर आईटी सेल को लगा चुकी है कि वह सोषल मीडिया पर चुनावों में हिन्दू मुसलिम एजेंडे का उठाकर जनता को यह बताते रहे कि भाजपा नहीं आई तो प्रदेश खतरे में पड जायेगा. इन एजेंडों की आड में मंहगाई, डीजल पेट्रोल के बढते दामों, बेरोजगारी और दूसरे मुददों को पीछे ढकेला जा रहा है जिससे इनपर बात न होकर केवल हिन्दू मुस्लिम होता रहे. पश्चिम बंगाल चुनाव की हार के बाद भी भाजपा सबक लेने को तैयार नहीं है.
हिन्दू मुस्लिम के मुद्दे सोशल मीडिया पर दिखते है. वहां खाली बैठे बेरोजगार युवा इसमें अपना समय गुजार रहे है. नारे लगाने वालो में भी वह दिख सकते है. पश्चिम बंगाल चुनाव में प्रचार और सोशल मीडिया पर भाजपा चुनाव जीत गई थी लेकिन जब ईवीएम मशीन से चुनाव परिणाम बाहर निकले तो भाजपा चुनाव हार गई. उत्तर प्रदेश के चुनाव में धरातल पर मंहगाई, डीजल पेट्रोल के बढते दामों, बेरोजगारी और दूसरे मुददों छाये हुये है. यह अभी भले ही असर ना दिखा पा रहे हो पर चुनाव परिणामों पर इसका असर होगा.