National Highway : जम्मूकश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को एक अहम आदेश में कहा है कि यदि राजमार्ग पर उचित रखरखाव नहीं है और निर्माण का काम चल रहा है तो वहां यात्रियों से टोल वसूलना अनुचित है.

डेढ़दो दशक पीछे अगर आप सड़क मार्ग से एक शहर से दूसरे शहर जाते थे तो एक्सप्रेसवे के मुकाबले समय भले कुछ ज्यादा लगता था मगर रास्ते भर ढाबे पर रुकरुक कर खाना और चाय पानी का लुत्फ़ उठाते हुए गंतव्य पर पहुंचना बहुत रोमांचक होता था. वो ढाबे पर असली घी में तड़की पंचमेल दाल और तंदूर से निकली गरमगरम रोटी जिस पर मक्खन की एक टिकिया रखी होती थी, आज सोचो तो मुंह में पानी भर आता है.

कभीकभी तो रास्ते में पड़ने वाले खेतखलिहानों में गाड़ी रोक कर फोटो शूट भी कर लेते थे. गन्ने के खेत मिल गए तो दोचार गन्ने तुड़वा कर गाड़ी में रख लिए और रास्ते भर चूसते गए. आम के मौसम में हाईवे के किनारे आम के ढेर लगाए बैठे किसानों से कितने सस्ते में मीठे रसीले आम खरीद लिए जाते थे. 10-15 किलो से कम तो लेते ही न थे. गाड़ी की डिग्गी खुशबूदार आमों से भर जाती थी. ये आम रिश्तेदारों और दोस्तों में भी बांटे जाते थे. शहतूत, जामुन, सेब, खुबानी जैसे फल भी हाईवे के किनारे खूब बिकते और बहुत सस्ते होते थे. क्योंकि बीच में कोई दलाल नहीं होता था. किसान ने अपने खेत से फल तोड़े और सड़क पर बेचने बैठ गया. शाम तक जेब नोटों से भर जाती थी, दूसरे दिन फिर ताजे फल तोड़े और बेचने बैठ गए. किसान और ग्राहक दोनों खुश.

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