New Trend : आज की पीढ़ी हर कदम पर दिखावा करने वाली है. क्या सच में दुनिया के सामने दिखावा जरूरी है? क्या आप इन ट्रैंड्स को फौलो नहीं करेंगे तो सोसाइटी आप को नकारा समझेगी? दोस्तों के सामने कूल बनने का सब से महंगा तरीका है जेनजी में शोऔफ का कल्चर.

सोशल मीडिया पर एक वायरल वीडियो में मंदिर में फूल बेचने वाली एक महिला और उस का बेटा मोबाइल स्टोर पर कैश के साथ आईफोन खरीद रहे थे. खरीदारी के बारे में पूछा गया, तो मां ने बताया कि उस का बेटा आईफोन खरीदने की जिद में तीन दिन की भूख हड़ताल पर चला गया था. वीडियो को सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया गया, जिस पर ज्यादातर लोगों ने बेटे को अपनी मां की मेहनत की कमाई को फोन पर खर्च करने के लिए फटकार लगाई.

इस वाकेआ पर ‘घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने’ वाली कहावत बिलकुल सटीक बैठती है. और यही हाल भारत के लगभग सभी जेनजी (1998 से 2012 के बीच पैदा होने वाले) का है. आज यह पीढ़ी शोऔफ के नशे में चूर है. यह खुद को व्यक्त करने, फैशन, स्टाइल और लाइफस्टाइल को सोशल मीडिया पर दिखाने के मामले में हमेशा ऐक्टिव रहती है.

आज की यंग जेनरेशन खुद को सोसाइटी में फिट करने में जुटी पड़ी है. अपनी बराबरी, किसी हाईफाई पर्सनैलिटी से कर बैठते हैं और सोचते हैं कि काश, वे भी ऐसे बन जाएं. वे उन का लाइफस्टाइल कौपी करने की कोशिश करते हैं और ऐसे में खुद की फाइनैंशियल कंडीशन पर ध्यान न दे कर हवाबाजी करने लगते हैं.

हाल ही में मशहूर पंजाबी सिंगर दिलजीत दोसांझ और कोल्डप्ले के कौंसर्ट्स पूरे भारत में हुए. इन कौंसर्ट्स का क्रेज इतना ज्यादा था कि इस के टिकट मिनटों में बिक गए थे. बुकिंग के दौरान ‘बुक माय शो’ की वैबसाइट क्रैश हो गई और इन के टिकट की कीमतों ने हर किसी को हैरान कर दिया. टिकटों की कीमत 38 हजार रुपए से शुरू हो कर 3 लाख रुपए तक थी. इस के बावजूद लोग इसे खरीदने के लिए पागल हुए जा रहे थे. ये सब किस लिए? क्या इन कौंसर्ट्स में न जाने से उन का अस्तित्व नहीं रहेगा या सोसाइटी उन्हें अपनाएगी नहीं? इस का जवाब एक ही है कि वे सोशल मीडिया में ‘कूल’ दिखेंगे.

आज की पीढ़ी हर कदम पर दिखावा करने वाली है. क्या सच में दुनिया के सामने दिखावा जरूरी है? आज की डेट में इस सवाल का जवाब हर किसी की प्रायोरिटी पर डिपैंड करता है, क्योंकि हम एक मैटीरियलिस्टिक वर्ल्ड में रह रहे हैं. आज की पीढ़ी बहुत अलग है. ब्रैंडों पर बहुत खर्च करती है. युवा सोशल मीडिया की वर्चुअल दुनिया में रह रहे हैं.

हमें लगता है कि वे पैसा बरबाद कर रहे हैं और अगर उन्हें नौकरी के बिना कठिन समय का सामना करना पड़ा तो वे क्या करेंगे? लेकिन वे सोचते हैं कि उन्हें एक जीवन मिला है, इसलिए उन्हें हर चीज का आनंद लेना होगा. कोरोना के बाद से यंग जेनरेशन को लगता है कि पैसे से कुछ भी खरीदा जा सकता है और सोसायटी में इस का शोऔफ करने से उन्हें सैटिस्फैक्शन का एहसास होता है. सोशल स्टेटस बरकरार रखने के लिए दिखावा करना जरूरी हो गया है.

इन कारणों से जेनजी है शोऔफ में चूर-

· सोशल मीडिया का प्रभाव : जेनजी सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब आदि पर बहुत ऐक्टिव होते हैं. इन प्लेटफौर्म्स पर लोग अपनी जिंदगी के ‘बेस्ट’ मोमैंट्स साझा करते हैं, ताकि वे लाइक्स, कमैंट्स, और फौलोअर्स पा सकें. यह डिजिटल दुनिया में खुद को दिखाने और वैलिडेशन पाने का तरीका बन गया है.

· स्मार्टफोन और टैक्नोलौजी का असर : जेनजी के पास हमेशा स्मार्टफोन और इंटरनैट का एक्सेस होता है, जिस से वे हर समय अपडेट रहते हैं और नए ट्रैंड्स और फैशन से जुड़ते हैं.

· सोशल वैलिडेशन की चाह : सोशल मीडिया पर दिखावे के साथ जुड़ा हुआ एक कारण यह भी हो सकता है कि जेनजी अपने समाज में या अपने दोस्तों के बीच वैलिडेशन पाने की कोशिश करते हैं. वे दिखाते हैं कि वे ट्रैंड्स के साथ हैं या उन का जीवन ‘परफैक्ट’ है, ताकि वे दूसरों से अच्छा महसूस कर सकें.

एक दोस्त ने आईफोन लिया तो बाकियों के मन भी आ जाता है कि यह तो अब पूरे कैंपस में कूल दिखेगा और हम भौंडे. इसी होड़ में बाकी भी इस दिखावे का हिस्सा बन जाते हैं.

· इन्फ्लुएंसर कल्चर : आजकल बहुत से जेनजी लोग सोशल मीडिया पर इन्फ्लुएंसर के रूप में काम कर रहे हैं. उन के लिए दिखावा करना एक तरह से अपनी ब्रैंड को प्रमोट करने का हिस्सा बन चुका है. वे जिस तरह से अपनी जिंदगी और चीजें पेश करते हैं, वे उन के फौलोअर्स को अट्रैक्ट करने के लिए होती हैं. ऐसे इन्फ्लुएंसर लोगों को गुमराह कर के अपने फेक वर्ल्ड को प्रमोट करते हैं.

इंडियन ऐक्ट्रेस लारा दत्ता ने हाल में युवाओं को एन्करेज करते हुए एक इंटरव्यू में कहा, “मैं दुनियाभर के युवाओं को यह बताना चाहती हूं कि आप जिन इन्फ्लुएंसर को देखते हैं, जिन में हम (सैलिब्रिटीज) भी शामिल हैं, जिन का जीवन अद्भुत है, यह जरूरी नहीं कि वे चीजें हमारी हों या हम ने अपने दम पर हासिल की हों.”

बहुत सारे ऐक्टरऐक्ट्रेस हर पार्टी या इवैंट में बहुत अच्छे से सजधज कर आते हैं, डिजाइनर कपड़े पहनते हैं. वह सारा हेयर और मेकअप और शानदार गहने आदि सब उधार लिया हुआ होता है. बाद में वह सब वापस चला जाता है. इसलिए इस पर विश्वास न करें. यह रिऐलिटी नहीं है. युवा लोग शोऔफ और सोशल वैलिडेशन में फंस गए हैं. वे वह कर रहे हैं जो सोशल मीडिया उन को परोस रहा रहा है. उन्होंने युवाओं से इसे इग्नोर करने की सलाह दी है.

एक सोसाइटी में सुमित, अजय और अमन खास दोस्त हैं. तीनों कालेज में पढ़ते हैं. एक दिन सुमित ने न्यू कार ला कर अपने दरवाजे पर खड़ी कर दी. हवाबाजी मारने के लिए अपने दोनों दोस्तों को कार दिखाने के लिए बुलाया और सब के बीच कूल बन गया. उस की न्यू कार देख कर अजय ललचा गया और सोचने लगा, मैं भी पापा से बोल कर इस से अच्छी कार लूंगा. वहीं कुछ दिनों बाद अमन ने अपना बर्थडे एक क्लब में सैलिब्रेट किया. उस के बाद से अब हर साल ये तीनों दोस्त अपना बर्थडे किसी महंगे रैस्टोरैंट या क्लब में ही सैलिब्रेट करते हैं. यानी, ये अब एक तरह का ट्रैंड बन चुका है कि कोई भी पड़ोसी या दोस्त कुछ करता है तो उस के पीछे बाकी लोग भी होड़ में जुट जाते हैं, चाहे उन की जेब अलाउ करे या न.

आज जेनजी में एक तरह का ‘फोमो’, जिसे फियर औफ मिसिंग आउट कहा जाता है, पैदा हो रहा है. यह सोशल मीडिया की देन है. आएदिन एक नया ट्रैंड मार्केट में देखने को मिलता है, जैसे हाल ही में यूट्यूबर मिस्टर बीस्ट की ब्रैंड फीस्टेबल्स जब भारत में लौंच हुई तो लोग इसे खरीदने के लिए इतने पागल हुए जैसे लंगर बंट रहा हो. अगर इन के प्राइस की बात करें तो आप अपना सिर पकड़ लेंगे. इस के 35 ग्राम चौकलेट का रेट 400 रुपए है और एक आधा लिटर ड्रिंक का रेट 900 रुपय है. इस के बावजूद भारी मात्रा में यूथ ने इसे खरीदा और सोशल मीडिया पर फ्लेक्स करने से चूके नहीं. आखिरकार, खरीदा ही इसलिए था.

आजकल जेनजी अपने कैरियर, रिलेशनशिप, फैमिली प्रैशर आदि से जूझ रहा है. वेह अकसर अपने डिसीजन को ले कर कन्फ्यूज रहता है. ऐसे में उस का साथ देती है रिटेल थेरैपी. मन उदास होने पर झट से शौपिंग मौल चले गए, कुछ सामान खरीद लिया या घर बैठे ही और्डर कर दिया. इस तरह की टैक्निक उन्हें खुशी देती है. इसे ही रिटेल थेरैपी कहा जाता है.

हालांकि यह हरेक की चौइस है कि वह अपन मरजी से कुछ भी खरीदे या जितना मरजी खर्चा करे. लेकिन यह समझना भी जरूरी है कि हमारी इच्छाओं का कोई अंत नहीं है. दूसरों की बराबरी या सोशल वैलिडेशन पैसे और समय दोनों की बरबादी है.

लेखिका : कुमकुम

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