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Women’s Day Special: महिला माफिया

कभी चंबल के बीहड़ों में फूलन देवी, सीमा परिहार जैसी दस्यु सुंदरियों सहित कुछ गिनती की महिलाएं ही अपराध की राह पर कदम रखने वालों में थीं. लेकिन कुछ सालों का आंकड़ा देखा जाए तो यह साफ होता है कि आपराधिक क्षेत्र में महिलाओं की शिरकत बढ़ी है. अपराध करने के मामले में चाहे वह किसी माफिया गिरोह की बात हो या खुले तौर पर हफ्तावसूली, पौकेटमारी आदि करने का मामला हो, किसी न किसी महिला का नाम हर क्षेत्र में है.

आज के इस आधुनिक दौर में महिलाएं अपराध की दुनिया में भी मर्दों का मुकाबला कर रही हैं. इन औरतों ने इंटरपोल को भी परेशान कर के रख दिया है. भारत की अनेक महिला डौन को पकड़ने के लिए इंटरपोल ने दुनियाभर में नोटिस जारी किए हुए हैं. इन महिलाओं के खिलाफ जालसाजी, धोखाधड़ी व अपहरण के मामले दर्ज हैं.

माफिया डौन दाऊद इब्राहिम के भारत से विदेश भागने के बाद कुछ साल तक तो उस ने यहां के आपराधिक कारोबार पर खुद ही नियंत्रण रखा था लेकिन मुंबई बम धमाकों में प्रमुख अभियुक्त होने के चलते उस पर पुलिस की चौकस निगाह होने और प्रतिद्वंद्वी गिरोहों से बढ़ती तनातनी के कारण उस ने अपने गैंग की यहां की गतिविधियों पर अपना नियंत्रण रखना छोड़ दिया. तभी से मुंबई समेत आसपास के माफिया कारोबार की कमान उस की बहन हसीना पारकर संभाल रही है. यह अलग बात है कि पुलिस को यह सब पता होते हुए भी उस के पास इस बाबत कोई पुख्ता सुबूत नहीं है. इसी कारण से वह हसीना के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा पा रही.

बीवियों की अहम भूमिका

मुंबई के अरुण गवली के बारे में कहा जाता है कि जब वह अपने आपराधिक मामलों के चलते जेल में बंद था तब उस के गिरोह का संचालन उस की पत्नी आशा गवली किया करती थी. माफिया सरगना अश्विन नाईक का मामला भी इसी तरह का था. उस के भी जेल में बंद होने के दौरान गिरोह की कमान उस की पत्नी नीता नाईक के हाथ में थी. बाद में नीता ने राजनीतिक संरक्षण पाने के लिए शिवसेना जौइन कर ली थी और नगरसेविका भी चुनी गई थी लेकिन नीता के चरित्र पर शक होने के बाद अश्विन ने उस की हत्या करवा दी थी.

गिरोह चलाती महिलाएं

ठाणे के उपनगरीय इलाकों में आतंक का पर्याय रहा सुरेश मंचेकर पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. सुरेश की होटल व्यवसायियों और भवननिर्माताओं के बीच जबरदस्त दहशत कायम थी. उस ने हफ्तावसूली और सुपारी ले कर हत्याएं करा कर न केवल मुंबई में बल्कि गोआ, हैदराबाद और मध्य प्रदेश में अकूत संपत्ति बनाई थी. बताते हैं कि सुरेश मंचेकर जब मुंबई में नहीं होता था तो उस के गिरोह की बागडोर उस की बूढ़ी मां लक्ष्मी और पत्नी सुप्रिया के हाथों में हुआ करती थी.

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सुप्रिया की सुरेश के साथ शादी होने की बात भी बहुत दिलचस्प है. यह बात उन दिनों की है जब सुप्रिया केईएम अस्पताल में नर्स थी. सुरेश अपनी किसी बीमारी के इलाज के लिए उस अस्पताल में भरती था. उसी दौरान दोनों में पता नहीं कब नजदीकियां बढ़ीं और वे एकदूसरे को दिल दे बैठे. बाद में उन के प्यार की दास्तान वैवाहिक जिंदगी में बदल गई.

मोनिका बेदी जब बौलीवुड में काम पाने के लिए संघर्ष कर रही थी और उसे कोई भी निर्माता घास नहीं डाल रहा था तब अबू सलेम ने उस की मदद की थी. अबू के धमकाने पर मोनिका को एक नहीं कई फिल्मों में काम मिला था. अबू सलेम के इस एहसान से मोनिका इस कदर दब गई कि बिना आगापीछा सोचे ही वह अबू के हर काम में उस का साथ देने लगी थी.

दौलत और रुतबे की चाह

पिछले साल छोटा शकील गिरोह से जुड़ी रुबीना सिराज सैयद पुलिस के हाथ लगी थी. उस का भी आपराधिक कैरियर कम रोचक नहीं है. कुछ साल पहले तक ब्यूटीशियन का काम करने वाली रुबीना को रुतबा और दौलत की चाहत ने अपराध की दुनिया में खींचा था. छोटा शकील गिरोह में शामिल होने के बाद वह न सिर्फ उस का समूचा आर्थिक कारोबार संभालती थी बल्कि जेल में बंद गिरोह के सदस्यों की मदद करने का काम भी करती थी.

छोटा शकील के गिरोह में ही एक और महिला थी-शमीम ताहिर मिर्जा बेग उर्फ पौल, जो हफ्तावसूली रैकेट के लिए इस गिरोह में अहम भूमिका निभाती थी. वह गिरोह के सरगना छोटा शकील को हफ्तावसूली के संभावित शिकार के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराती थी. इस के अलावा वह हफ्तावसूली की रकम को हवाला के जरिए छोटा शकील के खाते में जमा कराने का काम भी करती थी.

हो रहा है इजाफा

पिछले कुछ सालों में आपराधिक क्षेत्र में महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ी है. इस की वजह यह है कि महिलाएं अपने महंगे शौकों पर होने वाले खर्च की भरपाई के लिए इस शौर्टकट को अपनाती हैं जो न केवल उन की जिंदगी को तबाह कर देता है बल्कि उन की जान को भी बन जाता है.

महिलाओं को अपने गिरोह से जोड़ने पर माफिया सरगनाओं को एक बड़ा फायदा यह होता है कि महिलाओं पर जल्दी कोई संदेह नहीं करता और वे आसानी से काम को अंजाम दे देती हैं. फिर महिला सिपहसालारों के साथ माफिया सरगनाओं को लेनदेन में भी झंझट नहीं रहता.

लिहाजा, इस तरह की अनेक महिलाएं हैं जो अलगअलग माफिया गिरोहों के लिए हथियार सप्लाई करने से ले कर महत्त्वपूर्ण जानकारी जुटाने तक के काम में लगी हैं. कुछ ऐसी महिलाएं भी हैं जो अलग से अपना आपराधिक कारोबार चला रही हैं.

इस तरह की फरार महिला अपराधियों में अंजली माकन, शोभा अय्यर, शबाना मेमन, रेशमा मेमन, समीरा जुमानी आदि के नाम प्रमुख हैं. शबाना और रेशमा मुंबई में हुए बम विस्फोट कांड के आरोपी अयूब मेमन व टाइगर मेमन की बीवी हैं. समीरा जुमानी पासपोर्ट रैकेट में अभियुक्त है. अंजली माकन एक बैंक से डेढ़ करोड़ रुपए की धोखाधड़ी कर फरार है.

शोभा अय्यर एक प्लेसमैंट एजेंसी चलाती थी. लोगों को रोजगार दिलाने के नाम पर उस ने खासी दौलत बटोरी और फरार हो गई.

क्या कहते हैं आंकड़े

अपराध जगत में अपराधी महिलाओं की संख्या कम नहीं है. महाराष्ट्र ने अब महिला अपराध जगत में भी अपना वर्चस्व साबित कर दिया है. पिछले 3 साल के नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों पर गौर करें तो इस राज्य की सर्वाधिक 90,884 महिलाओं को विभिन्न अपराधों के तहत गिरफ्तार किया गया है.

महिला अपराध में महाराष्ट्र के बाद आंध्र प्रदेश का नंबर आता है. यहां पिछले 3 सालों में 57,406 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है. इस के बाद मध्य प्रदेश का नंबर आता है. जहां 49,333 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है. इस मामले में गुजरात चौथे नंबर पर है. वहां 3 सालों में 41,872 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है.

देश में 2010, 2011 व 2012 में कुल 93 लाख अपराधियों की गिरफ्तारी हुई है, इन में महिलाओं का सहभाग महज 6 फीसदी ही है.

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महाराष्ट्र में 2010 में विभिन्न अपराधों के तहत 30,118 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है, जबकि 2011 में 30,159 व 2012 में 30,607 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है. महाराष्ट्र में पति पर अत्याचार करने पर 20 हजार महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है. मारपीट करने पर 16,843, हमला करने पर 15,348, चोरी करने पर 3911, हत्या करने पर 1,900 व हत्या का प्रयास करने पर 1,700 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है.

प्रदेश में महिला अपराध में मुंबई की 7,264 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है. इसी तरह जलगांव में 5,384, नासिक ग्रामीण में 5,235, अहमदनगर में 4,984 व पुणे में 4,052 महिला अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है.

पिछले दिनों हरियाणा में एक ऐसी महिला अपराधी को गिरफ्तार किया गया जो स्मैक बेचने का धंधा करती थी. अपराध जगत में ऐसी महिलाएं भी शामिल हैं जो सैक्स रैकेट का धंधा करती हैं. ये महिलाएं पैसे के लिए अपने संपर्क में आने वाली दूसरी युवतियों को भी उसी नरक में धकेल देती हैं.

वजह चाहे जो हो, ऐसे अपराधों में संलिप्त महिलाएं दबंग, निडर व आक्रामक प्रवृति की होती हैं पर इतना तय है कि नजाकत, सौंदर्य, शालीनता और ममता की मूरत मानी जाने वाली महिला का अपराध की कू्रर राह पर कदम रख लेना सेहतमंद समाज के निर्माण का लक्षण नहीं दिखता.

पहली डेट: क्यों उसका मन आशंकाओं से भरा था?

शृंगारमेज के आगे खड़ी हम दोनों अपनीअपनी प्रथम ‘डेट’ के लिए शृंगार कर रही थीं. अदिति अपने मंगेतर रीतेष के लिए आकांक्षाओं से भरा दिल लिए, कंपकंपाते हाथों से अपेक्षाओं को सहेजती हुई और मैं पीयूष के लिए आशंकाओं भरा दिल लिए, थरथराते हाथों से अनिश्चितता का दामन पकडे़.

हम दोनों के होंठ यदाकदा कुछ बुदबुदा देते थे. एकदूसरे के आमनेसामने खड़े हो बात करने का साहस दोनों ही नहीं जुटा पा रही थीं. दर्पण की छवि ही बिना एकदूसरे का सामना किए कभीकभार कुछ बोल देती थी.

चेहरे पर पाउडर लगाते हुए अदिति ने ही पूछा, ‘‘कौन सी साड़ी पहन रही  हो, मां?’’

‘‘शायद नीली, हलकी सी जरी वाली…नहींनहीं…’’ वातावरण में गूंजे शब्द खुद को ही अजीब लगे और बोल पड़ी, ‘‘पिं्रटेड सिल्क वाली, क्यों, ठीक रहेगी न? और हां, मेकअप कैसा है?’’ और पूछते ही उस विचार ने कौंध कर अधरों पर थोड़ी सी मुसकराहट छिटका दी कि एक किशोरी से बेहतर सलाह ‘डेट्स’ के शृंगार पर और कौन दे सकता है.

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मेरी मुसकराहट ने अदिति को भी अछूता न छोड़ा. वह बोली, ‘‘नहीं, नीली जरी वाली…कुछ तो ‘ग्लैमरस’ होना चाहिए न,’’ और उस ने मेरे गालों को हलके से मल कर रूज को हलका कर दिया और ‘आईशैडो’ को करीबकरीब मिटा ही दिया.

मैं ने दर्पण में देखा तो भौंहें अपनेआप ही सिकुड़ गईं, ‘‘अरे, यह तो मेकअप करने से पहले जैसी हो गई हूं.’’

‘‘हां, मां, यह तुम्हारा असली रूप ही है. आप ही ने तो हमें हरदम यह सिखाया है कि अंदर का रूप वास्तविक होता है, बाहर का नहीं. यह एक महत्त्वपूर्ण भेंट है… उस पर गलत प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए.’’

‘‘अरे, तुम कब से मेरी बात सुनने लगी हो?’’

‘‘मां, घबराओ नहीं,’’ अदिति ने कहते हुए शरारत में कंधे उचका दिए, ‘‘यह तो मुलाकात मात्र है.’’

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‘‘अभी तो तुम कह रही थीं कि यह एक महत्त्वपूर्ण भेंट है…मुझे सावधान रहना चाहिए कि उस पर गलत प्रभाव न पड़े.’’

अदिति भी हंस पड़ी और मेरी नकल कर के बोली, ‘‘आप कब से मेरी बात सुनने लगी हैं?’’

तनाव थोड़ा सा कम हो रहा था पर हाथों के कंपन ने फिर भी बिंदी गिरा ही दी.

अदिति बोली, ‘‘मां, थोड़ी देर बैठ जाओ या थोड़ी देर ‘योगा’ कर लो.’’

‘‘क्या? मैं और योगा? अरे, कब देखा है तुम ने मुझे योगा करते हुए?’’

‘‘हां मां,’’ अदिति ने गंभीरता से कहा, ‘‘इस से तुम्हें आराम मिलेगा. जूली रोज योगा करती है. वह कहती है कि इस से तनाव नहीं रहता.’’

थोड़ा सा तनाव दूर होने की हलकी सी जो शांति उपजी थी, वह जूली के नाम से ही कपूर की तरह उड़ गई. शरीर की मांसपेशियां सूखी लकड़ी की तरह अकड़ गईं. मुंह का स्वाद न चाहते हुए भी कसैला हो गया. अपने को शांत रखने की कोशिशों के बावजूद आवाज में व्यंग्य उभर आया, ‘‘हां, जूली को ही योगा की ज्यादा जरूरत है, तुम्हारे पिता के साथ रहने के लिए. उसी को ही योगा से उत्पन्न शांति की जरूरत है. मैं तो अपने हिस्टीरिया के साथ ही सब से ज्यादा आरामदायक स्थिति में हूं, मुझे तो यही आता है.’’

‘‘मुझे खेद है, मां,’’ अदिति ने जल्दी से मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘पता नहीं क्यों मैं ने उस का नाम ले लिया. यह मेरी मूर्खता ही है.’’

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चेहरे पर मुखौटा चढ़ा लेने के बावजूद बेचैनी छिप नहीं रही थी. होंठ वक्र हो कर थरथरा रहे थे, गले की नसें बैठने का नाम नहीं ले रही थीं. अवांछित आंसुओं को रोकने की कोशिश में आंखें फड़फड़ाए जा रही थीं, सबकुछ धुंधला पड़ रहा था.

दूर से आती अदिति की आवाज ने मुझे चौंका दिया, ‘‘शायद मैं भी रीतेष के साथ अपनी प्रथम डेट की वजह से ‘नर्वस’ हूं.’’

सहसा मैं सचेत हो गई. अपने पर ही कोफ्त हुई कि क्यों ऐसा होता है?

किसी तरह अपने को संभालती हुई बर्फीली मुसकान के साथ मैं बोली, ‘‘सब ठीक है बेटा, जूली तुम्हारे पिता की पत्नी है,’’ और जोर से अपने होंठों को दबा अगला वाक्य–‘हालांकि वह इतनी छोटी है कि तुम्हारी बहन जैसी लगती है,’ निकलने से रोक पाई.

बेटी की आंखों में झलकी ममता और दया का मिश्रण मैं झेल न सकी. शीशे की ओर मुंह फेर आंखों के नीचे की लाइन मिटाने लगी. मिटातेमिटाते थक गई पर वह न मिटी. तब आभास हुआ कि यह मिटने वाली लाइन नहीं, यह तो विवाद के उन थपेड़ों की निशानी है जो अब उम्रभर अंकित रहेगी.

‘‘मां, मां, आप ठीक तो हैं न?’’ अदिति की आवाज कानों से टकराई

और न चाहते हुए भी मैं बोल पड़ी, ‘‘हां, ठीक ही तो हूं. 42 साल की हो गई हूं. पति 22 साल का साथ मेरे से आधी उम्र की लड़की के लिए छोड़ गए हैं. ठीक ही तो है, उस की तो उम्र ही नहीं, वजन भी शायद मेरे से आधा होगा.’’

‘‘औपरेशन से पैदा हुए 3 बच्चों के बाद मांसपेशियां कसाव के दायरे में आने का नाम नहीं लेना चाहतीं, जवानी दामन छोड़ दूर खड़ी हो गई है. शादी से पहले कभी डेट नहीं की और शादी के बाद तो उस का प्रश्न ही नहीं उठता. तुम्हारे पिता ही सबकुछ थे. आज जिंदगी में पहली बार डेट पर जा रही हूं. वह आदमी, जो कुछ ही मिनटों में मेरा द्वार खटखटाएगा,  समझ में नहीं आता कि उस से क्या कहूंगी?’’

‘‘मां, याद करो, आप ने हमें क्या शिक्षा दी है,’’ अदिति मुझे उखड़े हुए मूड से निकालने का प्रयत्न करती हुई बोली.

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थोड़ी सी मुसकराहट वापस आई, ‘‘यही कि ज्यादा चपड़चपड़ न करूं?’’

‘‘ओह, मां.’’

‘‘पगली, मैं तो मजाक कर रही थी.’’

‘‘मां, कृपया आज कोई मजाक नहीं, ठीक है न. आज आप सिर्फ आप ही रहें,’’ और उस ने वे ढेर सारे उपदेश, जो कभी मैं ने उसे दिए थे और उस के पहले मेरी मां ने मुझे दिए थे, दे डाले. फिर शरारत से बोली, ‘‘यदि आप ज्यादा नर्वस हों तो बोलिएगा मत, चुपचाप सुनती रहिएगा. पुरुषों को अच्छा लगता है, जब कोई उन्हें सुनता रहे. अपने को वे महत्त्वपूर्ण समझने लगते हैं,’’ कहते हुए अदिति अपने बाल बनाने लगी.

मैं फिर आशंकाओं के अंधेरे कुएं में गिरती चली गई. अपनी आवाज उसी अंधेरे कुएं से आती लगी, ‘यह कैसी विवशता है. अनिल ने तो मुझे अपने जीवन से झाड़बुहार कर कचरे की तरह बाहर फेंक दिया और मैं सारी कटुताओं के साथ उसे अपने में समाए बैठी हूं. किसी भी तरह आंचल झटक कर दूर नहीं हो पा रही हूं.’

अदिति मेरी ओर मुड़ी और एक बार जो मेरे बोलने का प्रवाह चालू हो गया था, वह अबाध गति से बहने लगा, ‘‘अदिति, हालांकि शादी के दूसरे साल से ही अनिल विश्वासघात करने लगे थे, लेकिन मैं अपने को ही दोषी मान कर उन के अनुरूप ढलने का निरंतर प्रयास करती रही.

‘‘लोग कहते हैं कि आदमी का प्यार उस की जिह्वा में समा जाता है. इसलिए मैं ने उन की पसंद की खाने की चीजों में निपुणता हासिल की.

‘‘हर तरह से, हर कोण से अपने को बदला, पर कहीं कोई अंतर न पड़ा.

‘‘उन का अलमस्त, फक्कड़ स्वभाव, उन की इश्कबाजी, जो शादी के प्रथम वर्ष में गुदगुदा जाती थी और जिसे मैं ‘निधि’ की निधि समझे बैठी थी, वही मेरी सौतन बन बैठी. उस निधि पर डाका डालने, उसे हड़पने कई जूलियां आईं और गईं.

‘‘हर प्रेम संबंध धीरेधीरे दिल को नम व जड़ करता गया. फिर 3 बच्चों के साथ जाती भी तो कहां? सच पूछो तो जाना भी नहीं चाहती थी कहीं. अनिल के साथ कुछ इस तरह जुड़ी थी कि सब यातनाओं के बाद भी उसे जीवन का नासूर समझ काट न सकी.’’

अदिति ने सांत्वना भरे अपने हाथों से मेरे हाथों को सहलाया तो लगा कि बच्ची इस माहौल में रह कर अपनी उम्र से बड़ी हो गई है. अनायास मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘बेटा, ऐसा नहीं कि मैं तुम बच्चों के चेहरे पर आए भावों को पढ़ नहीं पाती. मैं जानती हूं कि तुम्हें अपने पिता पर रोष है. रोष क्या मुझे कम है? पर स्नेह तंतु तोड़ने में अपने को असमर्थ पाती हूं.

‘‘मित्रों और हितैषियों ने कई बार समझाया कि मैं अपनी जिंदगी की बागडोर खुद संभालूं, पर संभालती तो कैसे. आत्मप्रताड़ना से फुरसत मिले तब न.

‘‘आत्मग्लानि, रोष, कड़वाहट से भरे दिल में किसी और भावना के लिए कोई जगह ही नहीं बची थी. जिंदगी का हर पहलू इन से भरा हुआ था कि एक सुबह आंखें खुलीं और पाया कि इस दौरान  धीरेधीरे मैं ने सब मित्रों को दूर खिसका दिया. तुम लोगों के चेहरों पर भी मेरे प्रति लुकीछिपी अधीरता दिनबदिन ज्यादा उजागर होने लगी. तब लगा, मेरा यह रोष, मेरी यह प्रताड़ना सिर्फ मुझे ही खा कर संतुष्ट नहीं, मेरे परिवार की ओर भी मुंहबाए खड़ी है.

‘‘उस दिन मैं यह जान गई कि अब मुझे इस दलदल से निकलना ही पड़ेगा और उसी दिन से शुरू हो गया था आत्मसम्मान को पाने का अनंत सफर.

‘‘जिस दिन मैं पहली बार नौकरी पर गई थी, आत्मविश्वास फिर डगमगा गया था. पर तुम लोगों के उल्लसित चेहरे देख डगमगाते कदमों को सहारा मिला था.

‘‘अदिति, यहीं पर दफ्तर में पीयूष से मुलाकात हुई. तुम्हारे पिता से बिलकुल अलग व्यक्तित्व, शांत, गंभीर, अल्पभाषी पर अपनी लगन के पक्के. 2 बार मना करने पर भी आज शाम के रात्रिभोज के लिए पूछ बैठे.

‘‘अब तुम्हीं बताओ, उम्र के इस दौर में कैसे परियों के देश में पहुंच जाऊं? कहां से वह उत्साह लाऊं, जो कब का मुझे छोड़ कर जा चुका है? नहीं, अब मुझ में और निराशाओं को झेलने की शक्ति नहीं रही. मैं न जा पाऊंगी. यह प्रथम डेट शुरू होने से पहले ही समाप्त हो जाए तो बेहतर है.’’

मैं अपना मुंह छिपाते हुए मुड़ने ही वाली थी कि अदिति की दर्पण से झांकती 2 बेबस आंखें मेरे पैरों में बेड़ी डाल गईं और मैं वैसे ही, वहीं जकड़ी खड़ी रह गई.

अदिति की आंखें मुझे बरबस खींचे जा रही थीं. भावनाओं के ज्वारभाटे पर किसी तरह अंकुश लगा कर आवाज को सामान्य बनाते हुए नए संकल्प के साथ मैं बोली, ‘‘नीली हलकी जरी वाली साड़ी ही ठीक रहेगी, कुछ तो ग्लैमरस होना चाहिए न.’’

क्षणभर में अदिति मेरी बांहों में झूम रही थी. मैं ने प्यार से उस के माथे को चूमा. उस के बालों को सहलाते हुए अचानक मेरी नजर दर्पण पर पड़ी, जहां से झांकती अपनी आंखों को देख मैं चौंक पड़ी. उन में प्रथम डेट का भय नहीं था, बल्कि थी आशा की एक किरण.

Women’s Day: महिलाओं की सेहत पर नाइट शिफ्ट का असर

हाल ही की एक रिसर्च मे यह बात सामने आई है कि जो महिलाएं 5 साल या उस से ज्यादा समय तक नाईट शिफ्ट में काम करती हैं, दिन में 9 से 5 बजे तक काम करने वाली महिलाओं की तुलना में, उन्हें दिल के रोग की वजह से मौत होने का खतरा ज्यादा होता है. नर्सों, डाक्टरों, काल सेंटर कर्मचारियों के साथ ही हास्पिटैलिटी इंडस्ट्री में महिलाओं को रात में काम करना पड़ता है.

जामा में प्रकाशित नर्सेस हैल्थ स्टडी के मुताबिक दिन के साथसाथ रात में काम करने वाली महिला नर्सों को कारनरी दिल के रोग होने का खतरा ज्यादा है. इस स्टडी के दौरान दिल के रोगों के लिए जिम्मेदार पारंपरिक खतरों को भी ध्यान रखा गया है. 300000 नर्सों और पूर्व नर्सों पर हुई इस स्टडी में पाया गया है कि जिन नर्सों ने 10 या उस से ज्यादा साल नाईट शिफ्ट में काम किया है उन्हें, उन महिलाओं की तुलना में जिन्होंने इतने लंबे समय के लिए नाईट शिफ्ट में लगातार काम नहीं किया, कार्नरी दिल के रोग होने का खतरा 15 प्रतिशत या उस से भी ज्यादा है. युवा महिलाओं को यह खतरा ज्यादा है.

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इस संदर्भ में एचसीएफआई के अध्यक्ष और आईएसए के सेक्रेटरी, ‘डा. केके अग्रवाल’ कहते हैं कि रात को काम करने की वजह से कर्मचारियों पर तनाव का दबाव बढ़  जाता है. इस वजह से वह सिगरेट और शराब, अस्वस्थ जंक और अत्यधिक ट्रांस फैट युक्त भोजन के आदि हो जाते हैं. उन्हें अकसर व्यायाम करने का वक्त नहीं मिल पाता और उन की नींद का पैटर्न भी अनियमित हो जाता है. यह सब चीजें मिल कर डायबिटीज, हाईपरटैंशन और मोटापे का कारण बनती हैं, जो दिल के रोगों का प्रमुख कारण है. इस के साथ ही रात में काम करने  से महिलाएं डिप्रैशन में चली जाती हैं. माएं और पत्नियां अपने बच्चों और परिवार की रोजाना जीवन की बातों को जान नहीं पाती. वह दिन में सोती हैं जिस वजह से वह सामाजिक जिम्मेदारियों को निभा नहीं पातीं. नर्सों और डाक्टरों की साप्ताहिक छुट्टी का कोई निश्चित दिन नहीं होता जिस से उन के जीवन में अनिश्चितता आती है और उन में तनाव और अकेलापन बढ़ जाता है.

रात के समय काम करने के साईड इफैक्ट्स को कम करने के लिए रोजाना जीवन में कुछ बदलाव करने जरूरी हैं जिस के लिए परिवार और दोस्तों की समझदारी और सहयोग की जरूरत पड़ती है.

पहली और सब से जरूरी बात यह है कि घर का माहौल ऐसा हो कि वह दिन में 6 से 8 घंटे आराम से सो सकें. यह दिन की नींद केवल एक झपकी नहीं है बल्कि रात की पूरी नींद का विकल्प है इसलिए यह गहरी और शांतमयी होनी चाहिए.

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– काम के बाद एक घंटा आराम करें, चाहे दिन हो या रात, आराम देने वाला संगीत या गुनगुने पानी से स्नान मदद कर सकता है.

-सप्ताह के सातों दिन हर वक्त का खाना एक ही समय पर खाएं इस से शरीर की घड़ी सही काम करती रहती है.

-सब्जियां, मूंगफली का मक्खन क्रैकर्ज के साथ, फल आदि उच्च प्रोटीन वाले आहार खाएं ताकि आप सतर्क रह सकें.

-सोने से पहले एल्कोहल युक्त चीजें न लें.

-काफी, चाए, कोला और दूसरे कैफीन युक्त पेय से बचें जो नींद में बाधा डालते हैं. काफी बे्रक के समय संतरे का रस पिएं और चहलकदमी करें. शारीरिक गतिविधियां जगाए रखने में मदद करती हैं.

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– खाली पेट सोने से बचें. अगर खाने का मन न हो तो एक ग्लास दूध या डेयरी उत्पाद लें, जिन से अच्छी नींद आती है.

-सोने के कमरे में अंधेरा हो या आरामदायक आंखों का कवच पहनें. आंखें बंद होते हुए भी रौशनी के प्रति संवेदनशील होती है जो आप को नींद आने में बाधा बनती हैं या भरपर नींद लेने में रुकावट पैदा करती हैं.

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– दिन के शोर को बंद करें जो आप की आरामदायक गहरी नींद को खराब कर सकता है.

-एक दिन छोड़ कर ही सही लेकिन व्यायाम जरूर करें.

– जुकाम और एलर्जी की उन दवाओं से सावधान रहें जिन में नींद से जुड़े साईड इफैक्ट होते हैं.   

Lock Upp: कंगना रनौत भी हुईं पायल के खिलाफ

निर्माता एकता कपूर और कंगना का ओटीटी प्लेटफार्म पर स्ट्रीम हो रहे शो ‘‘लॉक अप‘‘ लगातार सूर्खियों में बना हुआ. इस शो के सभी कैदी लगातार पायल रोहतगी पर आरोप लगा रहे हैं. अब तो इस शो की संचालक कंगना रानौट ने भी पायल रोहतगी के प्रति तीखा रवैया अपना लिया है. कुल मिलाकर ‘‘लॉक अप’’ के अंदर सभी पायल रोहतगी के खिलाफ हो गए हैं. कुछ लोगों की राय में इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि पायल रोहतगी ने पहले ही एपीसोड में कंगना को जवाब देकर बता दिया था कि वह किसी से कम नहीं है.

यूं भी पायल रोहती अपनी बेबाक राय रखने के लिए जानी जाती हैं.उन्हें पता है कि कब किस तरह का स्टैंड लेना है और कब चुप रहना है.इस शो में करणवीर बेाहरा और मुनव्वर फारूकी किसी व्यक्ति को हराने या नीचा दिखाने के लिए सारे षडयंत्र रचते हैं. लोग देख रहे हैं कि इस शो में यह दोनों किस तरह से चाले चल रहे हैं.

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इनके इस रवैये से यह सीखा जा सकता है कि खुद शेर समझना अच्छी बात है, पर सामने वाले को मुर्ख समझना बेवकूफी है. लोगों को यह बात अब तक पायल रोहती द्वारा उठाए गए सटीक कदमों से अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए. हाल ही में उनकी और करणवीर बोहरा के बीच नोकझोक देखी गई उस समय भी बिना अपना आपा खोए उन्होंने अपनी बात रखी.

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वैसे इस शो के सिद्धार्थ शर्मा, शिवम शर्मा, पूनम पांडे, बबीता फोगाट, सारा खान, साईशा चिंदे, चक्रपाणी,सतेहसीन पूनावाला सहित सभी कैदी एक से ब-सजय़कर एक हैं.लेकिन अभी तक ऐसा कुछ दिखा नहीं, जिससे यह पता लग सके कि यह उनका असली चेहरा है या नहीं. खैर यह तो आने वाले एपीसोड के जरिए पता लग जाएगा.

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Imlie: आर्यन ने चली चाल, आदित्य होगा अरेस्ट

टीवी शो ‘इमली’ (Imlie) में इन दिनों फुल ड्रामा चल रहा है. शो में आपने देखा कि इमली को पता चल गया है कि  आर्यन उसका इस्तेमाल कर रहा है. ये जानकर इमली बहुत टूट जाती है. वह सोचती है कि आर्यन ने उसके लिए जो कुचछ भी किया, वह सिर्फ दिखावा था. शो के आने वाले एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं शो के अपकमिंग एपिसोड के बारे में.

इमली आर्यन का घर छोड़कर चली जाती है तो वहीं अर्पिता आर्यन को खूब खरी-खोटी सुनाती है. इस पर आर्यन कहता है कि इमली जरूर वापस आएगी क्योंकि उसकी सीता मइया इस घर में है. इसके बाद वह कहता है कि वह आदित्य को बर्बाद को करके दी दम लेगा.

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एक तरफ इमली मंदिर में रहने लगी है. वह मंदिर में बैठकर खूब रोती है. दूसरी तरफ आदित्य  अपनी मां को बताता है कि उसने इमली को आर्यन के बारे में जो सच बताया है उसकी वजह से वह एक बार फिर बेघर हो गई है.

 

शो में आप देखेंगे कि  इमली दूसरे दिन ऑफिस जाएगी, उसकी मुलाकात आर्यन से होती है. आर्यन, इमली को अपने केबिन में बुलाता है और उसे काम पर फोकस करने के लिए कहता है फिर इमली उसे आदित्य से बदला लेने की जिद्द छोड़ने के लिए कहती है लेकिन वह मना कर देता है.

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शो के आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि पुलिस आदित्य को गिरफ्तार कर लेती है. पुलिस कहती है कि आदित्य ने चैनल पर मौसम के बारे में गलत जानकारी दी है. उसकी लापरवाही से पूरे शहर का नुकसान हुआ है और उसके खिलाफ वारंट जारी हुआ है. शो में अब ये देखना होगा कि क्या इमली आदित्य का साथ देगी?

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महिलाओं की सुरक्षा के लिए सिर्फ कानून बनाना ही काफी नहीं

जब किसी लड़की को लगता है कि कोई लड़का या आदमी उस का लगातार पीछा कर रहा है, तो उस में एक गहरी दहशत छा जाती है. पहले तो यह संयोग लगता है पर जब पता चल जाए कि पीछा करने वाला घंटों सड़क पर इंतजार करता है, घर के सामने जमा रहता है, तो यह डर लाजिम ही है. इस से न सिर्फ लड़की के दिनरात खराब होते हैं वह पलपल सहमी भी रहती है.

अब सरकार ने एक नया कानून बना कर पीछा करने को भी गंभीर अपराधों की श्रेणी में डाल दिया है. पहले पीछा करना पर नुकसान न पहुंचाना कोई अपराध नहीं था. मगर 2013 में बने कानून में इंडियन पीनल कोड की धारा 354डी के अंतर्गत पीछा करने वाले को 3 साल तक की सजा हो सकती है भले उस पीछा करने वाले ने कोई नुकसान न पहुंचाया हो.

पर यह कानून बनाना एक बात है और इस का इस्तेमाल करवाना दूसरी. आमतौर पर घर वाले इस कदर डर जाते हैं कि वे पुलिस तक जाने की हिम्मत भी नहीं कर पाते. जो यदाकदा पीछा करते हैं वे तो माह 2 माह में अपना रास्ता बदल लेते हैं, पर जो जनून के शिकार हो जाते हैं वे गैंग बना लेते हैं और स्वभाव से अपराधी किस्म के होते हैं, उन से निबटना आसान नहीं होता.

पुलिस में शिकायत करो तो शुरू में पुलिस कानून के बावजूद कोई विशेष ध्यान नहीं देती. अगर पुलिस पीछा करने वाले को पकड़ कर धमका भी दे तो भी बात नहीं बनती. ऐसे में पीछा करने वाला जगह बदल लेता है. घर की जगह दफ्तर, बाजार, रिश्तेदार या फिर किसी के यहां भी पहुंच जाता है.

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पीछा करने वाले शातिर के दोस्तयार भी बहुत होते हैं, क्योंकि जिस के पास पीछा करने का समय होता है उस के पास पैसा भी होता है और सड़कों पर घंटों धूप, सर्दी, बारिश में खड़े होने की शारीरिक ताकत भी. वह अपराध करने में सक्षम होता है. वह दूसरों से पीछा करने के अधिकार पर उलझ भी जाता है, क्योंकि एक लड़की का पीछा करने वाले को दूसरे लोग पहचानने लगते हैं. आसपास के घर वालों, दुकानदारों, चौकीदारों के कहने के बावजूद यदि वह पीछा करना न छोड़े तो लड़की के मन पर गहरा असर पड़ता है.

यह पीछा करने वाले का मानसिक रोग होता है पर लड़की को भी रोगी बना देता है. जब तक नुकसान न हो तब तक पुलिस में जाने का मतलब जगहंसाई कराना होता है. भारत में तो इस तरह के हर मामले में पहला आक्षेप लड़की पर ही लगता है कि उस ने ही कुछ ऐसा किया होगा कि कोई उस पर दीवाना हो गया.

आजकल पीछा करने वाले मोबाइल से भी तंग करने लगते हैं. वे मैसेज, प्रैंक काल, फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजभेज कर परेशान कर देते हैं. यह भी प्राइवेसी के हनन के आरोप में अपराध है पर ऐसे अपराधों पर सजाएं कम मिलती हैं. वैसे भी भारत में कानून बनाना आसान है पर सजा दिलाना मुश्किल. महीनों नहीं सालों मामले चलते रहते हैं.

दिल्ली में एक लड़की का एक शातिर 2008 से 2010 तक पीछा करता रहा. उस की स्कूटी के पीछे अपनी बाइक लगा देता था. वह इतना दुस्साहसी था कि एक बार रैड लाइट पर उस लड़की की स्कूटी पर ही बैठ गया और शादी करने की जिद करने लगा. उस के पास रिवौल्वर भी था. लड़की के मना करने पर उस ने उस की पीठ में गोली मार दी. यह घटना 2010 की है. वह लड़की अब लकवाग्रस्त है पर 2017 तक मामला अदालत में चल रहा है, क्यों?

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जब तक मामला अदालत में होता है पीडि़ता को चैन नहीं होता, क्योंकि कितनी ही तारीखों पर उसे भी मौजूद रहना पड़ता है.

यह सामाजिक गुनाह है पर अफसोस है कि समाज के ठेकेदार, धर्म के दुकानदार, राजनीतिक दल व अदालतें इस तरह के मामलों को मक्खी के भिनभिनाने का सा मान कर नजरअंदाज कर देते हैं पर यह मक्खी नहीं ततैया होती है, जो दिनरात हराम करती है.

Anupamaa: रुपाली गांगुली का रोमांस देख पति ने दिया ये रिएक्शन

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में  रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) और गौरव खन्ना (Gaurav Khanna) की जोड़ी को फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. शो में दोनों की केमिस्ट्री शानदार दिखाया जा रहा है. शो में आपने देखा कि अनुपमा ने अनुज से शादी के लिए भी ‘हां’ कह दी है. फैंस को अनुज-अनुपमा का रोमांस काफी पसंद आ रहा है. लेकिन अनुपमा के रियल लाइफ पति अश्विन के वर्मा ने शो को लेकर रिएक्शन दिया है. आइए बताते हैं क्या कहा है अनुपमा के रियल पति ने.

शो में अनुज और अनुपमा का रोमांस भी शुरू हो चुका है.तो वहीं रुपाली गांगुली के पति अश्विन के वर्मा भी सीरियल ‘अनुपमा’ को बड़े चाव से देखते हैं. इतना ही नहीं अश्विन के वर्मा अनुज और अनुपमा के रोमांस को देखकर रिएक्शन भी देते हैं. इस बात का खुलासा रुपाली गांगुली ने खुद किया है.

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रिपोर्ट के अनुसार अनुपमा ने बताया है कि मेरे पति मेरे साथ बैठकर सीरियल ‘अनुपमा’ देखना पसंद करते हैं. उन्हें अनुज और अनुपमा का रोमांस काफी पसंद आ रहा है. अनुपमा ने बताया कि मेरे पति मेरे सबसे बड़े फैन हैं.

 

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रुपाली गांगुली ने आगे कहा कि मेरे पति मेरे सबसे बड़े क्रिटिक और सपोर्टर हैं. कई बार तो उनको मेरे शो में गलतियां नजर आती हैं तो कई बार वो मेरी तारीफ करते हैं. वो मेरी छोटी से छोटी गलती भी पकड़ लेते हैं. वो मुझे बताते हैं कि किस तरह से मुझे अपना काम को बेहतर बनाना चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि  मैं हमेशा अपने पति की बातें सुनती हूं.

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खबरों के अनुसार, रुपाली गांगुली ने शो में अनुज-अनुपमा के रोमांस को लेकर कहा ये बहुत शानदार है. अनुपमा में बदलाव की एकमात्र स्थिर चीज है. मैंने इस शो के शुरू होने पर कभी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ होगा. अनुपमा की जिंदगी में कोई दूसरा आदमी आएगा. ट्रैक बहुत ही ऑर्गेनिक है.

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Top 10 Social Story: टॉप 10 सोशल स्टोरी हिंदी में

Top 10 Social Story Of 2022: समाज में रहन के लिए हमें कुछ चुनौतियों को स्वीकार करना पड़ता है. इसके कुछ नियम-कानून होते हैं, जिसे किसी भी हाल में  फॉलो करने के लिए मजबूर किया जाता है.  तो इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं, सरिता की Top 10 Social Story in Hindi. समाज से जुड़ी दिलचस्प कहानियां, जिससे आप समाज में हो रहे घटनाओं से रू-ब-रू होंगे. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौक तो पढ़िए Top 10 Social Story Of 2022.

  1. प्रिया: प्रिया लखनऊ क्यों आई थी

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हर रोज की तरह आज भी शाम को मर्सिडीज कार लखनऊ के सब से महंगे रैस्तरां के पास रुकी और हेमंत कार से उतर कर सीधे रैस्तरां में गया. वहां पहुंच कर उस ने चारों तरफ नजर डाली तो देखा कि कोने की टेबिल पर वही स्मार्ट युवती बैठी है, जो रोज शाम को उस जगह अकेले बैठती थी और फ्रूट जूस पीती थी. हेमंत से रहा नहीं गया. उस ने टेबिल के पास जा कर खाली कुरसी पर बैठने की इजाजत मांगी.

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2. कर्ण : खराब परवरिश के अंधेरे रास्तों से गुजरती रम्या

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न्यू साउथ वेल्स, सिडनी के उस फोस्टर होम के विजिटिंग रूम में बैठी रम्या बेताबी से इंतजार कर रही थी उस पते का जहां उस की अपनी जिंदगी से मुलाकात होने वाली थी. खिड़की से वह बाहर का नजारा देख रही थी. कुछ छोटे बच्चे लौन में खेल रहे थे. थोड़े बड़े 2-3 बच्चे झूला झूल रहे थे. वह खिड़की के कांच पर हाथ फिराती हुई उन्हें छूने की असफल कोशिश करने लगी. मृगमरीचिका से बच्चे उस की पहुंच से दूर अपनेआप में मगन थे. कमरे के अंदर एक बड़ा सा पोस्टर लगा था, हंसतेखिलखिलाते, छोटेबड़े हर उम्र और रंग के बच्चों का.

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3. तेरी मेरी जिंदगी: क्या था रामस्वरूप और रूपा का संबंध?

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रामस्वरूप तल्लीन हो कर किचन में चाय बनाते हुए सोच रहे हैं कि अब जीवन के 75 साल पूरे होने को आए. कितना कुछ जाना, देखा और जिया इतने सालों में, सबकुछ आनंददायी रहा. अच्छेबुरे का क्या है, जीवन में दोनों का होना जरूरी है. इस से आनंद की अनुभूति और गहरी होती है. लेकिन सब से गहरा तो है रूपा का प्यार. यह खयाल आते ही रामस्वरूप के शांत चेहरे पर प्यारी सी मुसकान बिखर गई. उन्होंने बहुत सफाई से ट्रे में चाय के साथ थोड़े बिस्कुट और नमकीन टोस्ट भी रख लिए. हाथ में ट्रे ले कर अपने कमरे की तरफ जाते हुए रेडियो पर बजते गाने के साथसाथ वे गुनगुना भी रहे हैं ‘…हो चांदनी जब तक रात, देता है हर कोई साथ…तुम मगर अंधेरे में न छोड़ना मेरा हाथ …’

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4. ब्लैकमेल: पैसों के चक्कर में जब गलत रास्ते पर गया दिनेश

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कौलबेल की आवाज से रितेश अचानक जैसे नींद से जागा. वह 4 दिन पहले मनाए वेलैंटाइन डे की मधुर यादों में खोया हुआ था. उस की यादों में थी मीनल, जिस के साथ वह सुनहरे भविष्य के सपने संजो रहा था. वह बेमन से उठा, दरवाजा खोला तो कोरियर वाला था. उस ने साइन कर लिफाफा ले लिया, भेजने वाले का नामपता स्पष्ट नहीं दिख रहा था, फिर भी उस ने उत्सुकता से लिफाफा खोला तो कई सारे फोटो लिफाफे में से निकल कर उस के कमरे में बिखर गए. फोटो देखते ही वह जड़ सा हो गया. फोटो उस के और मीनल के प्रेम संबंधों को स्पष्ट बयान कर रहे थे. आलिंगनरत, चुंबन लेते हुए, हंसतेबोलते ये चित्र वेलैंटाइन डे के थे. 4 दिन पहले की ही तो बात है, जब वह मीनल को ले कर लौंग ड्राइव पर निकला था, शाम की हलकी सुरमई चादर धीरेधीरे फैल रही थी, घनी झाडि़यां देख कर उस ने कार सड़क पर ही रोकी और मीनल को ले कर घनी झाडि़यों के पीछे चला गया.

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5. एक कमरे में बंद दो एटम बम: नीना और लीना की कहानी 

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वे चारों डाइनिंग टेबल पर जैसे तैसे आखरी कौर समेट कर उठने के फिराक में थे. दिल के दरवाजे और खिड़कियां अंदुरनी शोर शराबों से धूम धड़ाका कर रहीं थीं.

नीना और लीना दोनों टीन एज बच्चियां अब उठकर अपने कमरे में चली गईं है और कमरे का दरवाजा अंदर से बन्द कर लिया है.

समीर और श्रीजा का चेहरा मेंढ़क के फूले गाल की तरह सूजा है, और उन दोनों के मन में एक दूसरे पर लात घुंसो की बारिश कर देने की इच्छा बलवती हो रही है.

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6. अंधविश्वास की बेड़ियां: क्या सास को हुआ बहू के दर्द का एहसास?

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‘‘अरे,पता नहीं कौन सी घड़ी थी जब मैं इस मनहूस को अपने बेटे की दुलहन बना कर लाई थी. मुझे क्या पता था कि यह कमबख्त बंजर जमीन है. अरे, एक से बढ़ कर एक लड़की का रिश्ता आ रहा था. भला बताओ, 5 साल हो गए इंतजार करते हुए, बच्चा न पैदा कर सकी… बांझ कहीं की…’’ मेरी सास लगातार बड़बड़ाए जा रही थीं. उन के जहरीले शब्द पिघले शीशे की तरह मेरे कानों में पड़ रहे थे.

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7. नो गिल्ट ट्रिप प्लीज: कपिल क्यों आत्महत्या करना चाहता था

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नेहा औफिस से निकली तो कपिल बाइक पर उस का इंतज़ार कर रहा था. वह इठलाती हुई उस की कमर में हाथ डाल कर उस के पीछे बैठ गई फिर मुंह पर स्कार्फ बांध लिया. कपिल ने मुसकराते हुए बाइक स्टार्ट की. सड़क के ट्रैफिक से दूर बाइक पर जब कुछ खाली रोड पर निकली तो नेहा ने कपिल की गरदन पर किस कर दिया. कपिल ने सुनसान जगह देख कर बाइक एक किनारे लगा दी. नेहा हंसती हुई बाइक से उतरी और  कपिल ने जैसे ही हैलमेट उतार कर रखा, नेहा ने कपिल के गले में बांहें डाल दीं. कपिल ने भी उस की कमर में हाथ डाल उसे अपने से और सटा लिया. दोनों काफी देर तक एकदूसरे में खोए रहे.

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8. परिणाम: पाखंड या वैज्ञानिक किसकी हुई जीत?

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“हमारे बेटे का नाम क्या सोचा है तुम ने?” रात में परिधि ने पति रोहन की बांहों पर अपना सिर रखते हुए पूछा.

“हमारे प्यार की निशानी का नाम होगा अंश, जो मेरा भी अंश होगा और तुम्हारा भी,” मुसकराते हुए रोहन ने जवाब दिया.

“बेटी हुई तो?”

“बेटी हुई तो उसे सपना कह कर पुकारेंगे. वह हमारा सपना जो पूरा करेगी.”

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9. रीवा की लीना: कैसी थी रीवा और लीना की दोस्ती

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डलास (टैक्सास) में लीना से रीवा की दोस्ती बड़ी अजीबोगरीब ढंग से हुई थी. मार्च महीने के शुरुआती दिन थे. ठंड की वापसी हो रही थी. प्रकृति ने इंद्रधनुषी फूलों की चुनरी ओढ़ ली थी. घर से थोड़ी दूर पर झील के किनारे बने लोहे की बैंच पर बैठ कर धूप तापने के साथ चारों ओर प्रकृति की फैली हुई अनुपम सुंदरता को रीवा अपलक निहारा करती थी. उस दिन धूप खिली हुई थी और उस का आनंद लेने को झील के किनारे के लिए दोपहर में ही निकल गई.

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10. हिजड़ा: क्यों सिया को खुद से ही चिढ़ थी?

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‘छनाक’ की आवाज के साथ आईना चकनाचूर हो गया था. आईने का हर टुकड़ा सिया का अक्स दिखा रहा था. मांग में भरा सिंदूर, गले का मंगलसूत्र, कानों के कुंडल ये सब मानो सिया को चिढ़ा रहे थे. शायद समाज के दोहरेपन के आगे वह हार मान चुकी थी. एकसाथ कई सवाल उस के मन में उमड़घुमड़ रहे थे.

आईने के नुकीले टुकड़ों में सिया को उस के सवालों का जवाब नहीं मिल सका. आंखों में आंसुओं के साथ पिछली यादें किसी फिल्म की तरह सिया की आंखों के सामने से गुजरने लगी थीं.

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खुशियों के फूल: भाग 2

‘पापा को मैं ने पहले कभी घर पर शराब पीते नहीं देखा था लेकिन अब पापा घर पर ही शराब की बोतल ले कर बैठ जाते हैं. जैसेजैसे नशा चढ़ता है, पापा का बड़बड़ाना भी बढ़ जाता है. इतने सालों से दबाई अतृप्त कामनाएं, शराब के नशे में बहक कर बड़बड़ाने में और हावभावों से बाहर आने लगती हैं. पापा कहते हैं कि उन्होंने अपनी सारी जवानी एक जिंदा लाश को ढोने में बरबाद कर दी. अब वे भरपूर जीवन जीना चाहते हैं. रिश्तों की गरिमा और पवित्रता को भुला कर वासना और शराब के नशे में डूबे हुए पापा मुझे बेटी के कर्तव्यों के निर्वहन का पाठ पढ़ाते हैं.

‘मेरे आसपास अश्लील माहौल बना कर मुझे अपनी तृप्ति का साधन बनाना चाहते हैं. वे कामुक बन मुझे पाने का प्रयास करते हैं और मैं खुद को इस बड़े घर में बचातीछिपाती भागती हूं. नशे में डूबे पापा हमारे पवित्र रिश्ते को भूल कर खुद को मात्र नर और मुझे नारी के रूप में ही देखते हैं.

‘अब तो उन के हाथों में बोतल देख कर मैं खुद को एक कमरे में बंद कर लेती हूं. वे बाहर बैठे मुझे धिक्कारते और उकसाते रहते हैं और कुछ देर बाद नींद और नशे में निढाल हो कर सो जाते हैं. सुबह उठ कर नशे में बोली गई आधीअधूरी याद, बदतमीजी के लिए मेरे पैरों पर गिर कर रोरो कर माफी मांग लेते हैं और जल्दी ही घर से बाहर चले जाते हैं.

‘ऊंचे सुरक्षित परकोटे के घर में मैं सब से सुरक्षित रिश्ते से ही असुरक्षित रह कर किस तरह दिन काट रही हूं, यह मैं ही जानती हूं. इस समस्या का समाधान मुझे दूरदूर तक नजर नहीं आ रहा है,’ कह कर सिर झुकाए बैठ गई थी लिपि. उस की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी थी.

मैं सुन कर आश्चर्यचकित थी कि चौधरी साहब इतना भी गिर सकते हैं. लिपि अपने अविवाहित भाई रौनक के पास भी नहीं जा सकती थी और झांसी में उस की दीदी अभी संयुक्त परिवार में अपनी जगह बनाने में ही संघर्षरत थी. वहां लिपि का कुछ दिन भी रह पाना मुश्किल था.  घबरा कर लिपि आत्महत्या जैसे कायरतापूर्ण अंजाम का मन बनाने लगी थी. लेकिन आत्महत्या अपने पीछे बहुत से अनुत्तरित सवाल छोड़ जाती है, यह समझदार लिपि जानती थी. मैं ने उसे चौधरी साहब और रौनक के साथ गंभीरतापूर्वक बात कर उस के विवाह के बाद एक खुशहाल जिंदगी का ख्वाब दिखा कर उसे दिलासा दी. अब मैं उसे अधिक से अधिक समय अपने साथ रखने लगी थी.  मुझे अपनी बेटी की निश्चित डेट पर हो रही औपरेशन द्वारा डिलीवरी के लिए बेंगलुरु जाना था. मैं चिंतित थी कि मेरे यहां से जाने के बाद लिपि अपना मन कैसे बहलाएगी?

यह एक संयोग ही था कि मेरे बेंगलुरु जाने से एक दिन पहले रौनक लखनऊ से घर आया. मेरे पास अधिक समय नहीं था इसलिए मैं उसे निसंकोच अपने घर बुला लाई. एक अविवाहित बेटे के पिता की विचलित मानसिकता और उन की छत्रछाया में पिता से असुरक्षित बहन का दर्द कहना जरा मुश्किल ही था, लेकिन लिपि के भविष्य को देखते हुए रौनक को सबकुछ थोड़े में समझाना जरूरी था.  सारी बात सुन कर उस का मन पिता के प्रति आक्रोश से?भर उठा. मैं ने उसे समझाया कि वह क्रोध और जोश में नहीं बल्कि ठंडे दिमाग से ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचे जो लिपि के लिए सुरक्षित और बेहतर हो.

अगली सुबह मैं अकेली बेंगलुरु के लिए रवाना हो गई थी और जा कर अर्पिता की डिलीवरी से पूर्व की तैयारी में व्यस्त हो गई थी कि तीसरे दिन मेरे पति ने फोन पर बताया कि तुम्हारे जाने के बाद अगली शाम रौनक लिपि को झांसी भेजने के लिए स्टेशन गया था कि पीछे घर पर अकेले बैठे चौधरी साहब की हार्टअटैक से मृत्यु हो गई.

रौनक को अंदर से बंद घर में पापा टेबल से टिके हुए कुरसी पर बैठे मिले. बेचारे चौधरी साहब का कुछ पढ़ते हुए ही हार्ट फेल हो गया. लिपि और उस की बहन भी आ गई हैं. चौधरी साहब का अंतिम संस्कार हो गया है और मैं कल 1 माह के टूर पर पटना जा रहा हूं.’

चौधरी साहब के निधन को लिपि के लिए सुखद मोड़ कहूं या दुखद, यह तय नहीं कर पा रही थी मैं. तब फोन भी हर घर में कहां होते थे. मैं कैसे दिलासा देती लिपि को? बेचारी लिपि कैसे…कहां… रहेगी अब? उत्तर को वक्त के हाथों में सौंप कर मैं अर्पिता और उस के नवजात बेटे में व्यस्त हो गई थी.

3माह बाद ग्वालियर आई तो चौधरी साहब के उजड़े घर को देख कर मन में एक टीस पैदा हुई. पति ने बताया कि रौनक चौधरी साहब की तेरहवीं के बाद घर के अधिकांश सामान को बेच कर लिपि को अपने साथ ले गया है. मैं उस वक्त टूर पर था, इसलिए जाते वक्त मुलाकात नहीं हो सकी और उन का लखनऊ का एड्रैस भी नहीं ले सका.

लिपि मेरे दिलोदिमाग पर छाई रही लेकिन उस से मिलने की अधूरी हसरत इतने सालों बाद वैंकूवर में पूरी हो सकी.  सोमवार को नूनशिफ्ट जौइन करने के लिए तैयार होते समय मिताली ने कहा, ‘‘मां, मेरी लिपि से फोन पर बात हो गई है. मैं आप को उस के यहां छोड़ देती हूं. आप तैयार हो जाइए. वह आप को वापस यहां छोड़ते समय घर भी देख लेगी.’’

डर- भाग 1: समीर क्यों डरता था?

नेहा महतो के साथ शादी हो जाने के बाद मैं ने एक बड़ी मजेदार बात नोट की है. अब लड़कियों के बीच में मेरी लोकप्रियता पहले से ज्यादा बढ़ गई है. इस बदलाव का कारण भी समझ में आता है. जो चीज आप को आसानी से उपलब्ध नहीं हो, उस में दिलचस्पी का बढ़ जाना स्वाभाविक ही है. हमारे समाज में वैसे तो लड़कियों से मेलजोल आसान नहीं होता पर फिर भी पढ़ते समय, कालेज में, फैक्ट्री में जाते समय, खेत पर कुछ देनेलेने जाते समय मौके मिल ही जाते हैं.

लड़कियां बहुत सुंदर हों, ऐसा नहीं. पर इन के लटकेझटके बहुत होते हैं. कारों में बाप और भाई के घर से बाहर निकलते ही ये आजाद पंक्षी की तरह ऊंची उड़ानें भरनी शुरू कर देती हैं. लड़कियों के साथ फ्लर्ट करना मैं ने बंद तो नहीं किया है पर अब ऐसा करने में पहले जैसा मजा नहीं रहा. उन का दिल जीतने के लिए मेहनत करने का अब दिल नहीं करता. प्यारमोहब्बत की बातें कर के मामला आगे बढ़ाने का फायदा ही क्या जब इंसान उन के साथ मौजमस्ती करने की बात सोच कर मन ही मन भयभीत हो उठता हो?

मेरा कोई पुराना दोस्त कभी विश्वास नहीं करेगा कि मैं अब सिर्फ नेहा के साथ जुड़ा हुआ जी रहा हूं. उन सब का मानना था कि शादी हो जाने के बाद भी मेरा सुंदर लड़कियों को अपने प्रेमजाल में फंसाने का शौक बंद नहीं होगा.

हम सब दोस्त मानते थे कि लडक़ी के साथ संबंध न बनें तो मर्दानगी कैसे होगी.

शादी होने तक मैं दसियों लड़कियों से लुकाछिपा का दोषी रहा था. मुझ पर शादी करने के लिए किसी ने जोर डालना शुरू किया या जिस ने सतीसावित्री बनने की कोशिश की, उस को मांबाप और खाप का डर व जाति क्षेत्र की बात कर एकतरफ कर देने में मैं ने कभी देर नहीं लगाई थी.

फिर एक वक्त ऐसा आया कि मेरे जानपहचान के दायरे में जितनी भी लड़कियां मौजूद थीं, वे कभी न कभी मेरी या मेरी किसी दोस्त की प्रेमिका रह चुकी थीं. बस, प्रेमिकाओं की अदलाबदली कर हम दोस्त अपनेअपने मुंह का स्वाद बदल लेते थे. एकदूसरे की जूठन से शादी कर के हंसी का पात्र बनने की मूर्खता करने को कोई तैयार नहीं था.

मुझ जैसे मौजमस्ती के शौकीन इंसान की जिंदगी में भी एक वक्त ऐसा आया कि मन में अपना घर बसाने की इच्छा बड़ी बलवती हो उठी. मुझे जब ऐसा महसूस हुआ तो मैं ने अपनी जीवनसंगिनी ढूंढऩे की जिम्मेदारी अपने मातापिता के ऊपर डाल दी.

नेहा महतो के साथ मेरा रिश्ता पक्का करने में मेरी बूआ ने बिचौलिए की भूमिका निभाई थी. वह हम सब को पहली नजर में पसंद आ गई थी.

रिश्ता पक्का हो जाने के बाद हम दोनों ने मोबाइल पर खूब बातें करनी शुरू कर दीं. सप्ताह में एकदो बार बाहर छिपछिप कर मिलने लगे. ऐसी हर मुलाकात के बाद मेरे दिल में उस के प्रति दीवानगी के भाव बढ़ जाते थे.

उस की पर्सनैलिटी में एक गहराई थी. ऐसी गरिमा थी जो कसबाई लड़कियों में नहीं होती. मैं ने अब तक  अपनी किसी पुरानी जानपहचान वाली नहीं पाई थी. उस की आंखों में झांकते ही मुझे अपने प्रति गहरे प्रेम और पूर्ण समर्पण के भावों का सागर लहराता नजर आता.

हम दोनों साथ होते तो हंसीखुशी भरा वक्त पंख लगा कर उड़ जाता. अभी और ज्यादा देर के लिए उस का साथ बना रहना चाहिए था, सदा ऐसी इच्छा रखते हुए ही मेरा मन उसे विदा लेता था. उस के भाई लोग बहुत सख्त थे. मैं भी बेकार का पंगा नहीं लेना चाहता था.

नेहा एक दिन मुझे अपने कालेज के दोस्त नीरज के घर ले कर गई. उस ने हमे लंच करने के लिए आमंत्रित किया था.

कुछ देर में ही मुझे यह एहसास हो गया कि नेहा को इस घर में परिवार के सदस्य की तरह से अपना समझा जाता था. नीरज चौधरी की पत्नी कविता उसे देख कर फूल सी खिल गई थी. उन के 3 साल के बेटे आशु का नेहा आंटी के साथ खूब खेलने के बाद भी दिल नहीं भरा था. उस का घर 2 कमरे का ही था पर लगता था कि वहां तो दिलों में जगह है.

‘समीर, नेहा का हमारी जिंदगी में बड़ा खास स्थान है. उस की दोस्ती को हम बहुमूल्य मानते हैं. हमारे इस छोटे से घर में तुम्हारा सदा स्वागत है.’ कविता के दिल से निकले इन शब्दों ने मुझे भी इस परिवार के बहुत निकट होने का एहसास कराया था.

मेरी खातिर करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. खाने में चीजें मेरी पसंद की थीं. अपनी भूख से ज्यादा खाने को मुझे उन दोनों के प्यार ने मजबूर किया था.

खाना खाने के बाद जब आशु सो गया तो उन तीनों के बीच सुखदुख बांटने वाली बातें शुरू हो गईं. पहले आशु को अच्छे स्कूल में प्रवेश दिलाने पर चर्चा हुई. तय यही हुआ कि सरकारी स्कूल में भेजा जाए क्योंकि प्राइवेट में आगे चल कर पढ़ाई बहुत महंगी हो जाएगी.

मैं तो कुछ देर बाद इस चर्चा से उकता सा गया पर नेहा की दिलचस्पी रत्तीभर कम नहीं हुई. करीब डेढ़ घंटे के बाद जब 2 सरकारी स्कूलों के नाम का चुनाव हो गया तो उन सब के चेहरे संतोष व खुशी से चमक उठे थे.

इस के बाद नेहा की शादी के लिए चल रही खरीदारी चर्चा का विषय बनी. इस बार वार्त्तालाप कविता और नेहा के बीच ज्यादा हो रहा था पर नीरज का पूरा ध्यान उन दोनों की तरफ बना रहा, तो मैं अपने बजट के हिसाब से खरीदारी करना चाह रहा था.

मुझे एक बात ने खास कर प्रभावित किया. ये तीनों आपस में बहुत खुले हुए थे. एकदूसरे के समक्ष अपने मनोभावों को खुल कर व्यक्त करने से कोई भी बिलकुल नहीं हिचकिचा रहा था. हर कोई अपनी सलाह दोस्ताना ढंग से दे कर खामोश हो जाता. वह सलाह मानी भी जाए, ऐसा दबाव कोई किसी पर बिलकुल नहीं बना रहा था. हालांकि नीरज चौधरी के घरवालों के रिश्तेदारों में कई पुलिस व पौलिटिक्स में थे पर वह रोबदाब बनाने की कोशिश उस ने कभी नहीं की.

नीरज के माथे पर पुराने घाव का लंबा सा निशान था. इस के बारे में जानकारी प्राप्त करने की उत्सुकता मेरे मन में धीरेधीरे बढ़ती जा रही थी.

‘यह निशान कैसे मिला?’ मेरे इस सवाल को सुन वे तीनों ही खिलखिला कर हंस पड़े थे.

‘यह कैसे मिला और इस से क्या मिला, इन दोनों सवालों का जवाब जानने के लिए तुम्हें एक कहानी सुननी पड़ेगी, समीर,’ नेहा के इस जवाब ने पूरी बात जानने के लिए मेरी उत्सुकता और ज्यादा बढ़ा दी.

उस ने मुझे बताया कि कालेज के दूसरे साल में बाहर से आए कुछ बदमाश युवक जब उसे गेट के पास छेड़ रहे थे तब नीरज इत्तफाक से पास में खड़ा था. उस वक्त तक नेहा और उस की कोई खास जानपहचान नहीं थी.

नीरज ने जब अपने साथ पढऩे वाली नेहा को तंग किए जाने का विरोध किया तो वो लडक़े उस के साथ मारपीट करने पर उतर आए थे. नेहा के बहुत मना करतेकरते भी नीरज उन से लडऩे को तैयार हो गया था. नीरज कुश्ती वगैरह बचपन से करता था पर पांचपांच से भिडऩा तो आसान नहीं था.

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