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पांच साल बाद- भाग 6: क्या स्निग्धा एकतरफा प्यार की चोट से उबर पाई?

स्निग्धा दिल की बुरी नहीं थी. अत्यधिक प्यारदुलार और अनुचित छूट से वह उद्दंड और उच्छृंखल हो गई थी. वह हर उस काम को करती थी जिसे करने के लिए उसे मना किया जाता था. इस से उसे मानसिक संतुष्टि मिलती. जब लोग उसे भलाबुरा कहते और उस की तरफ नफरतभरी नजर से देखते तो उसे लगता कि उस ने इस संसार को हरा दिया है, यहां के लोगों को पराजित कर दिया है. वह इन सब से अलग ही नहीं, इन सब से महान है. दूसरे लोगों के बारे में उस की सोच थी कि ये लोग परंपराओं और मर्यादाओं में बंधे हुए गुलामों की तरह अपनी जिंदगी जी रहे हैं.

शादी को वह एक बंधन समझती थी. इसे स्त्री की पुरुष के प्रति गुलामी समझती थी. उस की सोच थी कि शादी करने के बाद पुरुष केवल स्त्री पर अत्याचार करता है. इसलिए उस ने ठान लिया था कि वह शादी कभी नहीं करेगी.

परंतु बिना शादी किए किसी पुरुष के साथ रहना उसे अनुचित न लगा.

उसे इलाहाबाद के वे दिन याद आते हैं जब राघवेंद्र के साथ रहते हुए पीठ पीछे उसे लोग न जाने किनकिन विशेषणों से संबोधित करते थे, जैसे- ‘चालू लड़की’, ‘चंट’, ‘छिछोरी’, ‘रखैल’ आदिआदि. तब उसे इन संबोधनों से कोई फर्क नहीं पड़ता था. वह किसी की बात पर कान नहीं धरती थी. वह बेफिक्री का आलम था और राघवेंद्र जैसे राजनीतिक नेता से उस का संपर्क था. वह सातवें आसमान पर थी और जमीन पर चल रहे कीड़ेमकोड़ों से वह कोई वास्ता नहीं रखना चाहती थी. उन दिनों उसे अच्छी बात अच्छी नहीं लगती थी और बुरी बात को वह सुनने के लिए तैयार नहीं थी. लोग उस के बारे में क्या सोचते थे, इस से उस को कोई लेनादेना नहीं था.

स्निग्धा के जीवन के साथ खिलवाड़ करने के लिए केवल राघवेंद्र ही जिम्मेदार नहीं था, इस के लिए स्निग्धा स्वयं जिम्मेदार और दोषी थी. अपनी गलती से उस ने सबक लिया था कि परंपराओं का उल्लंघन हमेशा उचित नहीं होता. राघवेंद्र ने भी स्निग्धा के शरीर से खेलने के बाद उसे छोड़ कर अच्छा नहीं किया था. इस प्रकार के चरित्र से उस का राजनीतिक जीवन तहसनहस हो गया था. इलाहाबाद बहुत आधुनिक शहर नहीं था कि बिना ब्याह के स्त्रीपुरुषों के संबंधों को आसानी से स्वीकार कर लेता. अगले आम चुनाव में उसे पार्टी की तरफ से टिकट नहीं दिया गया. उस ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा, परंतु बुरी तरह हार गया.

स्निग्धा को आज एहसास हो रहा था कि अपने अति आत्मविश्वास के कारण मांबाप द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता का उस ने नाजायज फायदा उठाया था और अपने पांवों को गंदे दलदल में फंसा दिया था. वह अपने परिवार, संबंधियों और परिचितों से दूर हो गई. दोस्त उस का साथ छोड़ गए और आज वह इतनी बड़ी दुनिया में अकेली है. कोई उसे अपना कहने वाला नहीं है. थोड़ी देर के लिए अगर कोई सुखदुख बांटने वाला है तो वह है रश्मि, जो सच्चे मन से उस की बात सुनती है और सलाह देती है.

दिल्ली आ कर वह अपने इलाहाबाद के दिनों की कड़वी यादों को भुलाने में काफी हद तक सफल हो गई थी. वहां रहती तो शहर के रास्तों, गलीकूचों और बागबगीचों से गुजरते हुए अपने कटु अनुभवों को भुला पाना उस के लिए आसान न था. अब निशांत से मिलने के बाद क्या वह अपना पिछला जीवन भूल सकेगी? उस के मन में कोई फांस तो नहीं रह जाएगी कि वह निशांत को धोखा दे रही है. परंतु वह ऐसा क्यों सोच रही है? क्या वह समझती है कि निशांत उसे अपना बना लेगा? उस के दिल में एक टीस सी उठी. अगर निशांत ने उसे ठुकरा दिया तो. इस तो के आगे उस के पास कोई जवाब नहीं था. हो भी नहीं सकता था, परंतु संसार में क्या अच्छे पुरुषों की कमी है? अगर वह चाहती है कि शादी कर के अपना घर बसा ले और एक आम गृहिणी की तरह जीवन व्यतीत करे तो उसे कौन रोक सकता था. निशांत न सही, कोई भी पुरुष उस का हाथ थामने के लिए तैयार हो जाएगा. उस में कमी क्या है?

सच तो यह है कि आज पहली बार उस का दिल सच्चे मन से किसी के लिए धड़का है और वह है निशांत.

स्निग्धा को बाराखंभा वाली जौब मिल गई, उस के जीवन में खुशियों के पलों में इजाफा हो गया, लेकिन जीवन में एक ठहराव सा था. पुरुष हो या स्त्री, एकाकी जीवन दोनों के लिए कष्टमय होता है. यह बात निशांत भी जानता था और स्निग्धा भी, परंतु अभी तक उन्होंने अपने मन की पर्तों को नहीं खोला था. ताश के खिलाडि़यों की तरह दोनों ही अपनेअपने पत्ते छिपा कर चालें चल रहे थे.

प्रतिदिन शाम को वे दोनों मिलते थे. मिलने की एक निश्चित अवधि थी और निश्चित स्थान. इंडिया गेट के लंबेचौड़े, खुले मैदान. कभी बैठ कर, कभी घास पर चलते हुए और कभी फूलों के पौधों के किनारे चलते हुए वे दुनियाजहान की बातें करते, वहां घूम रहे लोगों के बारे में बातें करते, चांदतारों की बातें करते और लैंपपोस्ट की हलकी रोशनी में एकदूसरे की आंखों में चांद ढूंढ़ने की कोशिश करते.

उन को मिलते हुए कई महीने बीत गए. चांद अभी भी उन की पकड़ से दूर था. स्निग्धा पहले जितनी वाचाल और चंचल थी, अब उतनी ही अंतर्मुखी हो गई थी या शायद निशांत के संसर्ग में आ कर उस के जैसी हो गई थी. यह उस के स्वभाव के विपरीत था, परंतु मानव मन परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है. स्निग्धा उस के सामने अपने मन को बहुत ज्यादा नहीं खोल सकती थी, क्योंकि निशांत उस के बारे में सबकुछ जानता था. परंतु वह न तो उस के भूतकाल की कोई बात करता, न भविष्य के बारे में कोई बात. दोनों के बीच अनिश्चितता का एक लंबा ऊसर पसरा हुआ था. क्या इस ऊसर में प्यार का कोई अंकुर पनपेगा?

वोट क्लब के छोटेछोटे कृत्रिम तालाबों के किनारे चलते हुए निशांत ने पूछा, ‘जीवनभर अकेले ही रहने का इरादा है या कुछ सोचा है?’

‘क्या मतलब…?’ उस ने आंखों को चौड़ा कर के पूछा.

निशांत गंभीर था.

‘मांबाप के पास जाने का इरादा है?’ निशांत ने घुमा कर पूछा.

स्निग्धा के हृदय में कुछ चटक गया. फिर भी अपने को संभाल कर कहा, ‘उस तरफ के सारे रास्ते मेरे लिए बंद हो चुके हैं. न मुझ में इतना साहस है, न कोई इच्छा. उन के पास जा कर मुझे क्या मिलेगा? मुझे ही इस संसार सागर को पार करना है, अकेले या किसी के साथ?’ उस का स्वर भीगा हुआ था.

‘किस के साथ?’ निशांत ने उस का हाथ पकड़ लिया.

स्निग्धा के शरीर में एक मीठी सिहरन दौड़ गई. वह सिमटते हुए बोली, ‘जो भी मेरे मन को समझ लेगा.’

‘तो कोई ऐसा मिला है?’ वह जैसे उस के मन को परखने का प्रयास कर रहा था. स्निग्धा मन ही मन हंसी, ‘तो मुझ से बनने की कोशिश की जा रही है.’

वह आसमान की तरफ देखती हुई बोली, ‘देख तो रही हूं, सूरज के रथ पर सवार हो कर कोई औरों से बिलकुल अलग एक पुरुष मेरे जीवन में प्रवेश कर रहा है,’ आसमान में तारों का साम्राज्य था. चांद कहीं नहीं दिख रहा था, परंतु तारों की झिलमिलाहट आंखों को बहुत भली लग रही थी.’

‘परंतु आसमान में तो कहीं सूरज नहीं है, फिर उस का रथ कहां से आएगा?’ उस ने चुटकी ली.

‘अभी रात्रि है. रथ में जुते घोड़े थक गए हैं, वे विश्राम कर रहे हैं. कल फिर यात्रा मार्ग पर निकलेंगे,’ वह हंसी.

‘अच्छा, तो कल शाम तक यहां पहुंच जाएंगे?’

‘कह नहीं सकती. मार्ग लंबा है, समय लग सकता है,’ वह जमीन पर देखने लगी.

निशांत ने उस की कमर में हाथ डाल दिया. वह उस से सट गई.

‘जब सूरज का रथ तुम्हारे पास आ जाए तो उस पुरुष को ले कर मेरे पास आना, मेरे घर.’

‘अवश्य.’

एक दिन स्निग्धा ने मिलते ही एटम बम फोड़ा.

‘मैं तुम्हारे घर आना चाहती हूं.’

‘क्या सूरज का रथ और वह पुरुष आ चुका है?’ उस ने मुसकराती आंखों से स्निग्धा को देखते हुए पूछा.

‘हां,’ उस ने शरमाते हुए कहा.

‘कहां है?’

‘तुम्हारे घर पर ही उस से मिलवाऊंगी.’

‘तो फिर मुझे 2 दिन का समय दो. आने वाले इतवार को मैं घर पर तुम्हारा इंतजार करूंगा. ढूंढ़ लोगी न, भटक तो नहीं जाओगी?’

‘अब कभी नहीं,’ स्निग्धा ने आत्मविश्वास से कहा.

अगले इतवार को स्निग्धा उस के घर पर थी और कुछ ही महीनों बाद उस की बांहों में. कुछ साल में वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. यह तो बताने की जरूरत नहीं पर दोनों बच्चे मां से ज्यादा दादादादी से चिपटे रहते और दादादादी बहू के बिना न कहीं जाते न उस से पूछे बिना कुछ करते. निशांत कई बार कहता, ‘‘तुम भी अजीब हो, मैं ने तुम्हें पाया, बदले में मेरे मातापिता को छीन कर तुम ने अपनी तरफ कर लिया.’’

अलग-थलग पड़ता रूस

पश्चिमी देशों ने अमेरिका के नेतृत्व में एक बार फिर जता दिया है कि वे चाहें तो अपने आर्थिक बल पर ही किसी भी शक्ति नहीं, महाशक्ति को भी बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं. रूस ने सोचा था कि यूक्रेन में उस की सैर कुछ टैंकों से पूरी हो जाएगी और वहां सत्ता परिवर्तन कर के वह अपना कम्युनिस्ट दिनों का रोबदाब फिर साबित कर सकेगा पर यह सैर उस पर भारी पड़ रही है. चीन का अपरोक्ष साथ होने के बावजूद यूक्रेन की जनता का विद्रोह और पश्मिची उन्नत देशों का एकजुटता से रूस का बहिष्कार कर देना राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का एक ऐसा कांटोंभरा ‘उपहार’ रूसी जनता को मिला है जिस का असर दशकों तक रहेगा.

अमेरिका व कई पश्चिमी देश रूस के फैलते पंजों से परेशान थे पर वे अकेले कुछ नहीं कर पाते थे. यूक्रेन के मामले में पुतिन की धौंसबाजी और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर जेलेंस्की की हिम्मत ने एक बहुत बड़े देश के छक्के छुड़ा दिए. रूसी सेना को भारी नुकसान हो रहा है, उस की पोल हर रोज खुल रही है और अब सिवा अणुबम के उस के पास कुछ नहीं बचा है.

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रूस की आबादी 14 करोड़ है और यूक्रेन की 4 करोड़. रूस के पास 1.70 करोड़ वर्ग किलोमीटर की भूमि है और यूक्रेन के पास सिर्फ 6 लाख वर्ग किलोमीटर. रूस की अर्थव्यवस्था 1.5 ट्रिलियन डौलर की है और यूक्रेन की 350 बिलियन डौलर की. यूक्रेन की सेना 2 लाख सैनिकों की है और रूस की 9 लाख की. फिर भी हर रूसी राष्ट्रपति पुतिन के पीछे खड़ा हो, जरूरी नहीं. पर, हर यूक्रेनी अपने राष्ट्रपति जेलेंस्की के पीछे खड़ा है. यूक्रेन से युद्ध के कारण भागे 25 लाख लोगों में ज्यादातर बच्चे, औरतें और बूढ़े हैं. जवान पुरुष ही नहीं, स्त्रियां भी रूसी हमले का जवाब देने के लिए खड़ी हैं. रूस की भारी बमबारी ने 30 दिनों में यूक्रेन की राजधानी को हिला नहीं पाई और इसीलिए दुनिया की सारी राजधानियां अब यूक्रेन के साथ खड़ी हैं.

चीन जैसा कट्टर तानाशाही देश सिर्फ दबे शब्दों में रूस का समर्थन कर पा रहा है क्योंकि 15 ट्रिलियन डौलर की उस की भी अर्थव्यवस्था उस 75 ट्रिलियन डौलर की अर्थव्यवस्था के सामने बौनी है जो आज रूस के खिलाफ खड़ी हो गई है.

75 ट्रिलियन वाले देश कितनी आसानी से एक दंभी, तानाशाह, डेढ़ पसली की डेढ़ ट्रिलियन डौलर वाले देश को हाथिए पर खड़ा कर सकते हैं, यह दिखने लगा है. अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो पुतिन भक्त थे, अब अपना स्वर बदल रहे हैं और वहां की रिपब्लिकन पार्टी को भी राष्ट्रपति जो बाइडन का साथ देना पड़ रहा है. कुछ यूरोपीय देश अभी भी कुछ सामान रूस से खरीद रहे हैं पर धीरेधीरे सब दूरदर्शी सोच में रूस को कंगाल बनाने में जुट गए हैं. रूसी अमीरों का जो पैसा पश्चिमी देशों ने जब्त किया है वह शायद यूक्रेन के पुनर्निर्माण में लग जाए क्योंकि यह अब लगने लगा है कि रूस को तहसनहस हुए यूक्रेन से अभी या कुछ समय बाद लौटना ही होगा.

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यूक्रेन ने साबित कर दिया है कि पश्चिमी देशों की व्यैक्तिक स्वतंत्रताएं, लोकतंत्र, लगातार वैज्ञानिक उन्नति आदि रूसी और्थोडोक्स चर्च पर कहीं अधिक भारी है जिस के इशारे पर भक्त राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने विधर्मी यहूदी वोलोदोमीर जेलेंस्की को हटाने की कोशिश की थी. यह बात, हालांकि, चर्चा में कम ही आई है लेकिन हकीकत यही है और इस युद्ध के बीज भी धर्म ने ही बोए हैं.

मेरी दोस्त मुझसे प्यार करती है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 24 साल है, एमबीए फाइनल ईयर में हूं. मु?ा से मेरी क्लास की एक लड़की ने खुद आगे बढ़ कर फ्रैंडशिप की. मु?ो इस पर एतराज न था. अब हालत यह है कि वह हाथ धो कर मेरे पीछे पड़ी रहती है- मैं कहां हूं, कहां जा रहा हूं, घर वापस कब आऊंगा, रात को देर से क्यों आए. कौन से फ्रैंड के साथ थे वगैरावगैरा. अब तो कहती है कि मेरे घर आओ, मेरे मम्मीपापा से मिल लो. वह मु?ा से शादी करना चाहती है अब, जबकि मैं अभी बिलकुल भी शादी नहीं करना चाहता. मैं ने तो सिर्फ फ्रैंडशिप की थी, यह शादी का सीन बीच में कहां से आ गया है. फंस गया हूं मैं. क्या करूं, आप बताएं?

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जवाब

कहते हैं न, जब कोई चीज हमें आसानी से मिल जाती है तब हमें उस की वैल्यू का अंदाजा नहीं होता. एक लड़की ने खुद आप को प्रपोज किया, आप को पसंद किया तो यह बात आप के लिए ज्यादा माने नहीं रखती.

चलो कोई बात नहीं. आप की दूसरी बात पर गौर करते हैं कि आप ने तो सिर्फ फ्रैंडशिप की थी, शादी के बारे में तो आप ने सोचा तक नहीं. ऐसी बात है तो आप के साथ कोई जबरदस्ती तो कर नहीं सकता. हां, लेकिन उस लड़की को मुगालते में मत रखिए. किसी भी रिश्ते में सचाई का होना बहुत जरूरी है चाहे वह दोस्ती का हो या फिर प्यार या शादी का.

सब से पहले तो यह बात आप के दिमाग में क्लीयर होनी चाहिए कि आप उस लड़की को कितना पसंद करते हैं, उस से शादी करना चाहते हैं कि नहीं. यदि आप उस से सिर्फ फ्रैंडशिप रखना चाहते हैं और किस हद तक फ्रैंडशिप रखना चाहते हैं, यह बात उस लड़की से साफसाफ कर लें. शादी के लिए आप बिलकुल तैयार नहीं हैं, उसे यह बता दें क्योंकि आप दोनों हाथों में लड्डू ले कर चलना चाहते हैं जो संभव नहीं.

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वह लड़की आप से शादी करना चाहती है जबकि आप की बातों से लगता है कि आप फ्रैंडशिप के नाम पर फिजिकल इनवौल्वमैंट भी चाहते हैं जिस के लिए वह लड़की शायद रजामंद न होगी.

अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप क्या चाहते हैं. एक लड़की जो आप से प्यार करती है, शादी करना चाहती है, उसे छोड़ना चाहते हैं या फिर लाइफ में थोड़ा सीरियस हो कर सोचना चाहते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

नारी अब भी तेरी वही कहानी: भाग 2

राइटर- रमेश चंद्र सिंह

‘जब मेरी माहवारी आनी बंद हुई तो आशंका से भर उठी. कोई अनहोनी से मन सिहर उठा. चुपके से मैं एक लेडी डाक्टर से मिली. उस ने प्रैग्नैंसी टैस्ट कराए तो रिजल्ट देख कर मेरे होश उड़ गए. मैं पेट से थी. घर में मां के अलावा कोई न था. पापा औफिस के सिलसिले में किसी दूसरे शहर में गए हुए थे.

‘अब मां को किस मुंह से बताती कि मैं प्रैग्नैंट हूं. मां पर यह जान कर क्या गुजरेगी. मां को हम दोनों बहनों पर बहुत भरोसा था. जब मेरा जन्म हुआ तो पापा के लाख सम झाने पर भी मां न मानी थीं. अपना औपरेशन करा लिया था, बोली थीं, 2 बच्चे ही काफी हैं. दोनों को अच्छी शिक्षा और संस्कार देंगे. उन्हें विश्वास था कि हम दोनों बहनें ऐसा कोई काम न करेंगी जिस से उन का सिर नीचे  झुक जाए.

‘मां बहुत बोल्ड महिला थीं. उन्होंने पापा से कहा था कि इस देश को लड़कियों की सख्त जरूरत है. जिस प्रकार देश में कन्याभ्रूण हत्या की प्रवृत्ति बढ़ी है वह आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत घातक है. उन का यह भी मानना था कि लड़के की प्रतीक्षा में लड़कियों की संख्या बढ़ाना उतना ही देश के लिए घातक है जितना भ्रूण हत्या करना. दोनों ही स्थितियों में जनसंख्या संतुलन बिगड़ता है. एक से जनसंख्या की वृद्धि होती है तो दूसरे से लड़कों की तुलना में लड़कियों का अनुपात घटता है.

‘मां को मैं कैसे बताती कि प्रैग्नैंसी के पीछे मेरा कोई कुसूर नहीं है बल्कि यह एक हादसे का परिणाम है. मैं मां को सबकुछ बताना चाहती थी. उस की गोद में रोना चाहती थी लेकिन विवश थी. न रो सकती थी न कुछ बता सकती थी. इस राज को सिर्फ दीदी जानती थीं, लेकिन दीदी को भी क्या पता कि यह सिर्फ हादसा नहीं था, एक जीवन का कारण भी था. इसी उधेड़बुन में 15 दिन और गुजर गए.

‘आखिरकार, मैं ने दीदी को बताने का निर्णय लिया. समय का चक्र तो देखिए, जहां पहली संतान मां को खुशी देती है वहीं मेरे लिए यह संतान अभिशाप बन गई थी.

‘बेटी, एक कुंआरी मां इस हालत में किस असहनीय पीड़ा से गुजरती है, यह तुम न सम झोगी.

‘फोन पर सबकुछ बताना रिस्की था, पता नहीं फोन कब किस के फोन से इंटरकनैक्ट हो जाए, इसलिए मैं ने दीदी से कहा, ‘दीदी एक भयानक समस्या में फंस गई हूं, तुम प्लीज मु झे तुरंत मिलो. पापा बाहर गए हैं, इसलिए मां को अकेली छोड़ कर मैं नहीं आ सकती.’

‘दीदी ने कहा, ‘शैली, बहुत गंभीर समस्या न हो तो थोड़े दिन रुक जा, तुम्हारे जीजाजी का तबादला लखनऊ हो गया है, हम सभी वहां शिफ्ट करने की तैयारी कर रहे हैं.’

‘दीदी, समस्या काफी गंभीर है, मैं बहुत दिनों तक रुक नहीं सकती.’

‘तो बता, क्या बात है?’

‘फोन पर नहीं बता सकती, दीदी,’ मैं ने चिंतित और घबराई आवाज में कहा.

‘मां को बताया?’

‘मां को नहीं बता सकती, दीदी. समस्या कुछ ऐसी है.’

‘तो सुनो, मैं अगले हफ्ते आऊंगी. तब तक हम लोग लखनऊ शिफ्ट कर जाएंगे.’

‘अच्छा दीदी,’ मैं ने कोई उपाय न देख कर एक हफ्ता इंतजार कर लेना ही उचित सम झा.

‘दीदी ने एक हफ्ता इंतजार करने को कहा था, लेकिन तबादले के फौरन बाद जीजाजी को ट्रेनिंग के लिए दिल्ली जाना पड़ गया था. दोनों बच्चों का नए स्कूल में नामांकन करना था, सो दीदी 15 दिनों बाद आईं. तब तक तुम पेट में 3 महीने की हो गई थीं. अब तो थोड़ाथोड़ा पेट भी दिखने लगा था. एक दिन मां ने टोका था, ‘शैली, अपने शरीर पर ध्यान दो, अभी से पेट निकल जाएगा तो बाद में कंट्रोल करना मुश्किल हो जाएगा.’

‘अब मैं मां को क्या बताती. चुप रह जाने के अलावा कोई उपाय न था.

‘दीदी को देख कर उन्हें अपने कमरे में ले गई और उन से लिपट कर रोने लगी.

‘अब बताओ भी कि बात क्या है, केवल रोनेधोने से समस्या का हल थोड़े निकल जाएगा.’

‘दीदी पेट में…

‘मैं हकलाई. दीदी ने भी आने के बाद मेरे पेट को मार्क किया था. वे बिना पूरी बात बताए ही सम झ गईं.

‘यह तो अच्छा नहीं हुआ. तुम ने बताने में इतनी देर क्यों कर दी?’

‘मु झे ऐसी कोई आशंका न थी, दीदी. शुरू में एकदो बार मिचली आई थी तो सामान्य मिचली सम झ कर नजरअंदाज कर दिया था. मेरा पीरियड तो पहले भी कभीकभी देर से आता था तो सोचा आ जाएगा. किंतु जब 2 महीने बीत गए तो कुछ अनहोनी की आशंका होने लगी. जब गाइनीकोलौजिस्ट से मिली तब कन्फर्म हुआ. मां से बताने का साहस न हुआ. आप सबकुछ जानती थीं, इसलिए आप से बताने का निर्णय लिया. तब तक बहुत देर हो चुकी थी.’

‘सुन कर दीदी के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं. कुछ देर दीदी सोचती रहीं. जीजाजी और बच्चों को छोड़ कर आई थीं, इसलिए दूसरे दिन ही लखनऊ लौटना था. घर में मांपापा अकेले थे. मैं मां के काम में हाथ बंटाती थी.

‘ध्यान से सुन, किसी को कानोंकान इस बारे में खबर न होनी चाहिए. मैं मां से बात करती हूं. तुम्हें लखनऊ चलना होगा. अब तुम्हारे जीजाजी को सबकुछ बताना होगा. बिना उन की मदद के हम लोग कुछ नहीं कर सकते. तुम्हारा अबौर्शन कराना होगा. समय नहीं बचा है, देर होने पर कोई डाक्टर अबौर्शन के लिए भी तैयार न होगा क्योंकि तब तक तुम्हारे लिए काफी रिस्की हो जाएगा.’

‘दीदी ने न जाने मां को क्या सम झाया था, मां मु झे एक हफ्ते के लिए दीदी के साथ लखनऊ भेजने पर तैयार हो गई थीं. तभी पापा ने औफिस से मां को फोन किया कि उन्हें औफिस के जरूरी काम से एक हफ्ते के लिए बाहर जाना है. उन का जरूरी सामान तैयार रखे. मां बोली, ‘बेटी तुम्हारे पापा न रहेंगे तो मैं अकेली पड़ जाऊंगी. शैली को एक हफ्ते बाद ले जाना.’

‘सुन कर दीदी असमंजस में पड़ गईं. मां को अब कैसे बताएं कि मु झे दीदी के साथ तुरंत जाना जरूरी है. एकएक दिन मेरे लिए भारी पड़ रहा था. मेरे मन में विचार आया. मां को अब सबकुछ बता देना ही चाहिए. फिर अगले ही क्षण उन के ब्लडप्रैशर और हार्ट की बीमारी का ध्यान आ गया. मां हलका सा भी तनाव बरदाश्त नहीं कर पातीं. उन का ब्लडप्रैशर तुरंत हाई हो जाता है. मां तो इस हादसे को बरदाश्त ही न कर पाएंगी. अगर उन्हें कहीं कुछ हो गया तो इस के लिए मैं खुद जिम्मेदार होऊंगी.

‘दीदी अब क्या होगा?’ मैं ने चिंतित होते हुए पूछा.

‘दीदी अपना माथा पकड़ कर बैठ गईं.

‘कहते हैं न कि विपत्ति आती है तो अकेले नहीं आती.

‘कुछ सोच कर दीदी ने कहा, ‘चल, उसी गाइनीकोलौजिस्ट के यहां चलते हैं जिस ने तुम्हारा टैस्ट किया था. तुम्हारे जीजाजी को मैं बोल देती हूं, बच्चों को किसी तरह एकदो दिन संभाल लें. इस बीच तुम्हारे जरूरी टैस्ट वगैरह करवा लेते हैं. सभी रिपोर्ट्स ले कर मैं लखनऊ चली जाऊंगी और अबौर्शन का सारा इंतजाम कर के मैं यहां चली आऊंगी. तुम्हें मैं लखनऊ भेज दूंगी. तुम्हारे जीजा को बता दूंगी. वे सबकुछ संभाल लेंगे.’

‘तय कार्यक्रम के अनुसार हम ने सारे टैस्ट करवा लिए. पेट में बच्चा स्वस्थ था. 3 माह से कुछ ज्यादा का ही हो गया था. डाक्टरनी ने कहा, ‘मां को कैल्शियम, आयरन और फौलिक एसिड की गोलियां दें. वरना जच्चाबच्चा दोनों कमजोर हो जाएंगे.’ उस ने कुछ गोलियां लिख दीं. अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में बच्चा साफ दिखाई पड़ रहा था.

‘तो क्या मैं अपने बच्चे की हत्या करने जा रही हूं?’ अचानक विचार कौंधा तो मैं नर्वस हो गई.

‘दीदी ने कहा, ‘अब बच्चे के लिए गोलियों का क्या करेंगे. इसे जन्म थोड़े ही देना है.’ फिर मां से विदा ले कर वे चली गईं.

‘इस बीच मु झे अजीबअजीब सपने आते. कभी लगता, बच्चा रो रहा है. मैं उसे दूध पिला रही हूं. कभी लगता, बच्चे को मु झ से कोई छीन कर भाग रहा है और मैं उस के पीछे रोते हुए दौड़ रही हूं. बड़ा ही तनावग्रस्त समय काटा था मैं ने उस पीरियड में. फिर दीदी आ गईं. अब मु झे लखनऊ जाना था. पापा के आने तक दीदी को मां के साथ रहना था. दीदी ने लखनऊ का रिजर्वेशन भी करवा दिया था. मेरे अबौर्शन का सारा इंतजाम भी करवा आई थीं. जीजा ने सुना तो मेरा सहयोग करने के लिए तैयार हो गए. दीदी बोलीं, ‘संयोग से डाक्टरनी के हसबैंड तुम्हारे जीजाजी को जानते हैं, बोले हैं कि वे सारा इंतजाम करवा देंगे.’

‘पर मैं अकेले जाने के लिए तैयार न हुई, कहा, ‘दीदी, जैसे इतने दिन गुजर गए हैं वैसे 2-3 दिन और गुजर जाएंगे. मैं अकेले न जाऊंगी.’

‘दीदी ने कहा, ‘मूर्ख मत बन. अब तुम्हारे लिए एकएक मिनट भारी पड़ रहा है. गर्भ में भ्रूण बहुत तेजी से बढ़ता है. देर करोगी तो अबौर्शन न हो पाएगा. बच्चे को जन्म देना पड़ेगा. फिर तुम्हारी तो जिंदगी बरबाद होगी ही, बच्चा भी जीवनभर अभिशप्त जीवन जिएगा.’

‘किंतु मैं तैयार न हुई तो दीदी पापा के आने तक रुक गईं.

वह राह जिस की कोई मंजिल नहीं: भाग 2

नंदू मना करती रही, पर वह माने तब न? आखिर अश्वित पैसा जमा ही कर आया. फिर तो नंदू को चारधाम की यात्रा पर जाना ही पड़ा. ‘बड़ा जिद्दी है,’ नंदू के मुंह से एकाएक निकल गया. बगल वाली सीट पर बैठी महिला ने उस की ओर चौंक कर देखा, पर तब तक उस ने आंखें बंद कर ली थीं. आंखें बंद किए हुए ही नंदू सोचने लगी, ‘इस समय वह क्या कर रहा होगा? इस समय तो सो रहा होगा, और क्या करेगा.’

नंदू का वेतन प्रबोधजी सीधे उस के बैंक खाते में पूरा का पूरा जमा कर देते थे. खर्च के लिए ऊपर से सौ,

दो सौ रुपए दे देते थे. वह पैसा अश्वित अपने क्रिकेट, बौल, खिलौनों और चौकलेट पर उड़ा देता था.

रंजना बड़बड़ातीं, ‘‘तू नंदू का पैसा क्यों खर्च करता है? तुझे जरूरत हो, तो मुझ से मांग.’’

‘‘आप मुझे जल्दी कहां पैसा देती हैं. पचास सवाल करती हैं. नंदू तो तुरंत पैसा दे देती हैं.’’

‘‘पर, तुम नंदू का पैसा इस तरह खर्च करते हो, यह अच्छा नहीें लगता.’’

‘‘क्यों अच्छा नहीं लगता?’’

‘‘यह लड़का तो…’’ रंजनाजी सिर पीट लेतीं.

ऐसा नहीं था कि रंजनाजी नंदू के बारे में कुछ नहीं सोचती थीं. न जाने कितनी बार उन्होंने नंदू से शादी के लिए कहा था, पर नंदू ने हमेशा सिर झटक दिया था, ‘‘अब यही मेरा घर है और आप ही लोग मेरे सबकुछ हैं. अब मुझे शादी नहीं करनी. मेरा जीवन इसी घर में कटेगा.’’

‘‘भला इस तरह कहीं होता है नंदू? शादी तो करनी ही पड़ेगी,’’ रंजना उसे समझाने की कोशिश करतीं, पर नंदू उन की बात पर ध्यान न देती.

प्रबोधजी ने नंदू के मामा से भी उस की शादी के लिए कहलवाया, पर उस ने कोई जवाब नहीें दिया.

आखिर एक दिन रंजनाजी ने कहा, ‘‘नंदू, अब तू 28 साल की हो गई है. कब तक शादी के लिए मना करती रहेगी. अंत में बैठी रह जाएगी इसी घर में, कोई नहीं मिलेगा.’’

‘‘पर, मुझे शादी करनी ही कहां है.’’

‘‘आखिर क्यों नहीं करनी शादी? तू जहां कहे, हम वहां कोशिश करें. मैरिज ब्यूरो में, तेरी जाति में, तू जहां कहे, वहां. तू कहे, तो एक बार इलाहाबाद चलते हैं. अब तुम 5 साल बाद कहोगी तो…”

“मैं कभी नहीं कहने वाली. पांच साल ही नहीं, पचास साल बाद भी नहीं, बस.’’

28 साल… उस समय नंदू 28 साल की थी और इस समय अश्वित भी 28 साल का है.

इस बीच कितने साल बीत गए. ये बीते साल उस का कितनाकुछ ले गए. नंदू के बाल, अब उन्हें काले रखने की कितनी कोशिश करनी पड़ती है. आंखें बिना चश्मे के कुछ पढ़ ही नहीं पातीं. अश्वित के हाथों में स्कूल बैग की जगह लैपटाप आ गया है. उछाल मारती समुद्र की लहरों जैसी उस की सहज प्रवृत्ति शांत हो कर पैसा कमाने की ओर घूम गई है. और रंजनाजी व प्रबोधजी? वे अब कहां हैं? समय का बहाव दोनों को बहा ले गया. प्रबोधजी की अचानक हार्टअटैक से मौत हो गई. रंजनाजी पति की मौत के गम को सहन न कर सकीं और 3 महीने बाद ही एक सुबह बिस्तर पर मरी हुई मिलीं. मां की मौत के बाद अश्वित का इंजीनियरिंग का रिजल्ट आया. उस दिन दोनों खूब रोए. अश्वित का रोना बंद ही नहीं हो रहा था. नंदू ने किसी तरह उसे चुप कराया.

इंजीनियरिंग का रिजल्ट आने के बाद एक दिन सुबहसुबह अश्वित नंदू के पास आया, ‘‘नंदू, अब मैं आगे क्या करूं?’’

‘‘क्या करना चाहते हो तुम?’’

‘‘मैं एमबीए करना चाहता हूं.’’

‘‘तो करो न, कौन मना करता है. जितना पढ़ना हो, पढ़ो.’’

‘‘हां, पर अब पापामम्मी नहीं हैं, इसलिए…  नंदू, मैं पैसों की बात कर रहा हूं. मैं जिस इंस्टीट्यूट से एमबीए करना चाहता हूं, उस की फीस ज्यादा है. अगर हम जमा पैसे से फीस भर देते हैं, तो घर के खर्च का क्या होगा?’’

दो पल नंदू ने सोचा. फिर अंदर गई और अपनी पासबुक ला कर बोली, ‘‘इस में जितने पैसे हैं, उतने में हो जाएगा.’’

अश्वित ने पासबुक ले कर देखा, ‘‘हां, हो जाएगा, पर यह तो तुम्हारा पैसा है.’’

‘‘अब तुम्हारा पैसा और मेरा पैसा क्या…? सब एक ही है. ये सब तुम्हारा ही तो है. तुम यह लो, अच्छी नौकरी मिल जाएगी, उस के बाद कोई चिंता ही नहीं रहेगी. जाओ, अपनी फीस भर दो.’’

खुश हो कर अश्वित ने नंदू को गोद में उठा लिया.

‘‘छोड़ो मुझे… अरे, गिर जाऊंगी.’’

नंदू ने बस की अगली सीट पर लगे हैंडिल को पकड़ लिया, ‘ओह, क्याक्या याद आ रहा है.’

Summer Special: क्या गरमी में आपको भी होती है खुजली ?

गरमी के मौसम में आपको सबसे ज्यादा खुजली की समस्या होती है. कई लोगों में ये समस्या घमौरियों का रूप ले लेती है. अगर आप भी गर्मियों में इस वजह से परेशान रहते हैं तो इन टिप्स  की मदद से आप राहत पा सकती हैं.

नमक, हल्दी मेथी का पेस्ट

खुजली से बचने के लिए नमक, हल्दी और मेथी तीनों को बराबर मात्रा में पीस लें. नहाने से पांच मिनट पहले इसे पानी में मिलाकर उबटन बनाएं. इसे अच्छी तरह से पूरे शरीर पर मल लें और पांच मिनट बाद नहा लें. हफ्ते में एक बार इसका इस्तेमाल करने से घमौरियों से निजात मिलती है.

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मुल्तानी मिट्टी

गरमी में त्वचा के लिए मुल्तानी मिट्टी काफी फायदेमंद रहती है. अगर घमौरियां हो जाए तो मुल्तानी मिट्टी का लेप लगाने से राहत मिलेगी.

बर्फ

अगर आप बहुत अधिक खुजली से परेशान रहती हैं तो बर्फ के टुकड़े प्रभावित हिस्सों पर लगाएं इससे आपको आराम मिलेगा. इसे कपड़े में डालकर पांच से दस मिनट के लिए लगाएं. इसे आप चार से छह घंटे के गैप में लगा सकती हैं.

रोज नहाना

खुजली से निजात पाने के लिए रोज स्वच्छ और ताजे पानी से नहाना चाहिए.

एलोवेरा

खुजली होने पर एलोवेरा एक रामबाण उपाय है. प्रभावित हिस्सों पर एलोवेरा का रस लगाने से आपको आराम मिलेगा.

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Summer Special: गरमी में सत्तू के ये हैं फायदे

लेखिका- डा. साधना वेश

सत्तू में ऐसे कई तत्त्व होते हैं, जो डायबिटीज और मोटापे जैसी गंभीर बीमारियों को ही नहीं, बल्कि कई दूसरी बीमारियों को भी शरीर से दूर करते हैं. सत्तू खाने में स्वादिष्ठ ही नहीं, बल्कि सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद होता है. सत्तू के औषधीय गुण भी बहुत हैं. चना और जौ जब साथ में मिलाते हैं, तो गरमियों में यह मिश्रण दवा की तरह काम करता है. गरमियों में सत्तू खाने से अनेक बीमारियां दूर रहती हैं.
चना और जौ को पीस कर सत्तू बनता है, जो शरीर को ठंडक देता है. खास बात यह है कि इस का शरबत, भरवां परांठे या रोटी, पंजीरी, लड्डू, मठरी आदि के रूप में सेवन किया जा सकता है.

मोटापे का दुश्मन

सत्तू एक पूरा आहार है. इस में प्रोटीन के साथ मिनरल, आयरन, मैग्नीशियम और फास्फोरस बहुत होता है. साथ ही, यह फाइबर से भरा होता है. इसे खाने से पेट आसानी से भर जाता है और प्यास भी लगती है. पानी पीने से पेट और देर तक भरा रहता है. ऐसे में यह वजन कम करने के लिए बेहतर खाना है. लू से बचाए सत्तू की तासीर ठंडी होती है, इसलिए गरमी में इसे खाने से शरीर ठंडा भी रहता है और पानी ज्यादा पीने से यह डिहाइड्रेशन से भी बचाता है. इस से लू नहीं लगती है और यह शरीर का तापमान काबू करने में मददगार साबित होता है.

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एनीमिया में फायदेमंद
सत्तू कैल्शियम, आयरन और प्रोटीन से भी भरा होता है. ऐसे में जिन्हें एनीमिया है, वे लोग इसे जरूर खाएं और किशोरावस्था में लड़कियों को ज्यादा से ज्यादा इस का सेवन करना चाहिए.

डायबिटीज में बढि़या
सत्तू में मौजूद बीटा ग्लूकोन शरीर में बढ़ते ग्लूकोज के अवशोषण को कम करता है. इस से ब्लड शुगर का लैवल कंट्रोल में रहता है. सत्तू कम ग्लाइसेमिक इंडैक्स वाला होता है और यह डायबिटीज को काबू रखने में मदद करता है.

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छात्र प्रतिनिधि- भाग 3: क्या छात्र प्रतिनिधि का चुनाव में जयेश सफल हो पाया?

यह सुन कर सभी वाणिज्य, कला और मैनेजमेंट के छात्र जोरों से हंस दिए. जयेश उस पर हो रहे सीधेसीधे आक्रमण से सुन्न हो गया था.

जब हंसी कम हुई, तो अनुरंजन ने कहना शुरू किया, “भले ही यह अद्भुत बात लगती हो, लेकिन उसे ऐसा लगता है कि हमारा कालेज खेल पर अपना पैसा बरबाद करता है.”

वहां मौजूद लगभग सभी छात्रों ने जयेश को हूट कर के अपनी नापसंदगी जाहिर की. जयेश चुपचाप बैठ अपना तिरस्कार होते देखता रहा.

अनुरंजन ने जयेश पर अपना आक्रमण जारी रखा, “क्या हम वास्तव में एक ऐसे छात्र प्रतिनिधि को चुनना चाहते हैं, जो खेलों की परवाह नहीं करता है?जिस को क्रिकेट की परवाह नहीं…?”

सभी छात्र जोरजोर से चिल्लाने लगे. जयेश को अपनेआप पर काबू पाना कठिन हो रहा था. सभी छात्र उस के खिलाफ हो रहे थे. अनुरंजन सभी छात्रों को उस के खिलाफ भड़काने में कामयाब हो रहा था.

अनुरंजन ने आगे कहा, “मुझे गर्व इस बात का है कि मैं खुद क्रिकेट खेलता हूं. और मैं चाहता हूं कि खेलों में हमारे महाविद्यालय का आर्थिक सहयोग और बढे.”

फिर उस ने थम कर कहा, “एक चीज और है, जिसे मैं क्रिकेट से ज्यादा पसंद करता हूं. और वह है जगन्नाथ.”

जाहिर है, उस का उल्लेख रांची के मशहूर जगन्नाथ मंदिर से था. उस के इतना बोलने पर सभी ने जोरों से तालियां बजाईं.

अनुरंजन ने जयेश पर अपने प्रहारों का अंत नहीं किया था, “मेरे मित्र जयेश के बारे में मैं आप को एक और दिलचस्प तथ्य बताता हूं. उस का ईश्वर में विश्वास नहीं है. न तो जगन्नाथ मंदिर ही वह कभी गया है, न ही पहाड़ी मंदिर.”

अब तो छात्रगण बेहद नाराज हो गए. शिव शांति पथ पहाड़ी मंदिर, शिवजी का मंदिर था. उस मंदिर में न जाना, खुद एक अपराध था.

अनुरंजन ने अपनी बात की समाप्ति करते हुए कहा, “आशा है कि अपना वोट डालते समय मेरी बताई इन बातों का आप पूरी तरह से ध्यान रखेंगे. धन्यवाद.” और तालियों की जबरदस्त गड़गड़ाहट के साथ वह वापस अपनी जगह पर आ बैठा.

नीलेंदु ने माइक संभाला, “अनुरंजन के बाद, मैं अपने दूसरे उम्मीदवार, जयेश को आमंत्रित करता हूं कि वह आए और अपना पक्ष रखे कि क्यों उसे छात्र प्रतिनिधि बनाया जाना चाहिए?”

जब जयेश अपनी जगह से उठ कर माइक के सामने आया तो सन्नाटा छा गया. किसी ने उस का तालियों से स्वागत नहीं किया. सिर्फ प्रसनजीत और संदेश तालियां बजा कर उस की हौसलाअफजाई कर रहे थे. माइक के सामने आज सभी जयेश को अपने दुश्मन नजर आ रहे थे. आज सचाई की जीत नामुमकिन थी. अपनी बात को कितने ही सुनहरे तरीके से वह पेश करे, लेकिन जो कीचड़ उस पर पड़ चुकी थी, उसे साफ करना भयंकर कठिन कार्य जान पड़ता था, मानो उसे चक्कर सा आ रहा हो. अब कुछ भी कहना व्यर्थ था. सभी उस के खिलाफ भड़क चुके थे. जयेश के पास अब कोई रास्ता नहीं बचा था. अपने विचारों के बल पर छात्रों को वापस अपने पक्ष में लाने की बात वह सोच भी नहीं सकता था. अगर वह झूठ का सहारा न भी लेना चाहे तो भी अपने प्रतिद्वंद्वी के स्तर तक तो उसे आज गिरना ही पड़ेगा, वरना सालों तक अपमान झेलते रहना पड़ेगा. और उस स्तर तक गिरने के लिए, उसे संदेश द्वारा खोजबीन कर प्राप्त हुए अनुरंजन के पृष्ठभूमि तथ्यों का इस्तेमाल करना ही पड़ेगा. और कोई चारा नहीं था.

यही सब सोच कर जयेश ने अपने भाषण की शुरुआत की, “मेरे प्रतिद्वंद्वी अनुरंजन नावे ने आप को मेरे बारे में बताया. अब मैं भी आप को उस के बारे में कुछ बताना चाहता हूं. ऐसी बात जो वो खुद नहीं बताना चाहता है. शायद आप लोगों को पता नहीं कि अनुरंजन नावे का इतिहास क्या है. अनुरंजन, झारखंड का मूल निवासी नहीं है.”

वहां बैठे सभी छात्र आपस में फुसफुसाने लगे. महाविद्यालय में लगभग सभी छात्र रांची से ही थे. जयेश ने अपना वक्तव्य जारी रखा, “मुझे तो इस बात का बेहद गर्व है कि मेरे पूर्वजों के भी पूर्वजों के नाम की यहां की जमीन का खतियान है. लेकिन मेरे विरोधी की रांची में तो क्या, पूरे झारखंड में कोई जमीन नहीं है, न ही उस के बापदादाओं की है या कभी थी.”

प्रांगढ़ में बैठे विद्यार्थियों में अब आपस में बोलचाल और बढ़ गई. जयेश ने कहा, “मैं शुद्ध झारखंडी हूं, और हमारे राज्य की 9 क्षेत्रीय भाषाओं को पाठ्यक्रम में लागू करवाने का जिम्मा लेता हूं. यह काम मेरा प्रतिद्वंद्वी कभी न कर सकेगा, क्योंकि उसे तो यह भी नहीं पता है कि हमारे राज्य की ये 9 भाषाएं कौन सी हैं. उसे कभी इस राज्य में सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती, क्योंकि वह स्थानीय नहीं है. क्या आप ऐसे व्यक्ति को अपना वोट देना चाहोगे, जिस के भविष्य में इस राज्य से पलायन करना ही लिखा है?”

विद्यार्थीगण अब तैश में आ गए थे. जयेश ने आगे कहा, “क्या बाहर वाला कभी हमारी ही तरह सोच पाएगा? अनुरंजन नावे भले ही खेलप्रेमी हो और ईश्वर में विश्वास रखता हो, लेकिन उस का जन्म माधोपुर में हुआ था.” इसी बात का संदेश ने पता लगाया था.

बाहरी राज्य के शहर का नाम सुन कर विद्यार्थी भड़क गए. जयेश ने उन्हें और भड़काया, “आप को ऐसा नहीं लगता कि रांची के प्रमुख महाविद्यालय का छात्र प्रतिनिधि, रांची या कम से कम झारखंड का होना चाहिए, ताकि आप की सोच और उस की सोच मेल खाती हो?”

छात्रों की भीड़ में अब होहल्ला मच रहा था. जयेश ने उस शोर के ऊपर जोर से माइक में कहा, “मेरे विरोधी ने झारखंड में तब पहली बार कदम रखा, जब अपनी बीएससी की पढ़ाई करने के लिए वह यहां आया था. उस को न तो राज्य से जुड़ी समस्याओं की सूझबूझ है, न ही प्रांतीय लोगों की समझ. हमारी राज्य सरकार ऐसे लोगों को अपने राज्य का हिस्सा नहीं मानती, और आप उसे अपना वोट देना चाहते हो? अगर आप ने ऐसा किया, तो आप राज्य सरकार के कानून के खिलाफ वोट करोगे. झारखंड के मूल निवासी के लोगों के अधिकार हमें सुरक्षित रखने हैं. हम बाहर वालों को ऐसी जिम्मेदारी सौंप कर यह गलती नहीं कर सकते.

“याद रखिएगा कि हमारे अधिकारों की रक्षा करने वाली जितनी भी संस्थाएं हैं, वे सभी हमेशा मेरा साथ देंगी, लेकिन मेरे विरोधी का वे कभी भी साथ नहीं देंगी.

“अगर आप चाहते हैं कि हम अपने अधिकारों की रक्षा करने वाली संस्थाओं के साथ जुड़े रहें, तो अपना वोट आप मुझे ही देंगे.”

इतना कह कर जयेश वापस अपनी जगह पर आ कर बैठ गया. जबरदस्त तालियों के साथ जयेश का नाम गूंजने लगा. नीलेंदु ने वादविवाद के समापन की घोषणा की.

अगले ही दिन चुनाव थे. कुछ ही दिनों में चुनाव के नतीजे आ गए. जयेश को भारी बहुमत की प्राप्ति हुई और वह अपने महाविद्यालय का छात्र प्रतिनिधि बन गया.

‘बाबा’ के सहारे एक्सचेंज चलाने वाली चित्रा रामकृष्ण

सौजन्य- सत्यकथा

शेयर बाजार की प्रोफेशनल सीईओ चित्रा रामकृष्ण का अज्ञात ‘हिमालयन योगी’ के प्रति आस्थावान और अंधभक्त बने रहना महंगा साबित हुआ.

बिते साल 2012 की बात  है. नवंबर में आने वाली दीपावली को ले कर बाजार में गहमागहमी शुरू हो चुकी थी. कई देशी कंपनियां इस मौके पर नया प्रोजेक्ट लांच करने की योजनाएं बना रही थीं तो पूंजी निवेशक भी शेयर बाजार पर नजर टिकाए हुए थे.

शेयर विश्लेषकों से ले कर ब्रोकर तक निवेशकों पर अपनी सलाह थोप रहे थे. शेयर की दुनिया के महारथियों को 1875 में स्थापित और भारत के 417 शहरों तक पहुंच रखने वाले बौंबे स्टाक एक्सचेंज (बीएसई) से अधिक भरोसा नैशनल स्टाक एक्सचेंज (एनएसई) पर था.

कारण उस में आधुनिक तकनीक से लैस डिजिटल सुविधाओं का होना था. वहां एडवांस्ड एल्गोरिद्म आधारित सुपरफास्ट ट्रेडिंग तकनीक का इस्तेमाल शुरू हो चुका था. इस की बदौलत एनएसई ने 1994 में अपनी शुरुआत के एक साल के भीतर ही  अच्छी साख बना ली थी.

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सब कुछ ठीक चल रहा था. शेयर कारोबार से जुड़े लोगों को इस की डिजिटल सुविधाएं पसंद आई थीं. फिर अचानक 5 अक्तूबर, 2012 को उस में एक तकनीकी खराबी आ गई. उस का खामियाजा निवेशकों को भुगतना पड़ा. उन के लगभग 10 लाख करोड़ रुपए स्वाहा हो गए.

यह एनएसई की साख पर बहुत बड़ा बट्टा लगने जैसा था. इस वजह से न केवल उस के तत्कालीन सीईओ रवि नारायण पर अंगुली उठी, बल्कि उन्हें पद से भी हटा दिया गया. उस के कुछ महीने बाद 13 अप्रैल, 2013 को एनएसई की कमान चार्टर्ड अकाउंटेंट चित्रा रामकृष्ण को सौंप दी गई.

यह शेयर कारोबार की पुरुष प्रधान दुनिया में मचा नया हंगामा था. इस की मीडिया में चौतरफा चर्चा हुई. रातोंरात चित्रा उस ‘स्त्री शक्ति’ की श्रेणी में आ गईं, जिन्होंने असाधारण जिम्मा संभाला था. कुछ गिनीचुनी महिला सीईओ और बिजनैस वूमन में उन की भी गिनती होने लगी.

एनएसई के सीईओ के पास स्टाक एक्सचेंज संबंधी निर्णय लेने की भरपूर आजादी होती है. यह उस की सूझबूझ पर निर्भर करता है कि वह किस कंपनी को जगह दे और निवेश के लिए किसे कितनी हिस्सेदारी दे. निवेशक जब शेयर खरीदता है तब वह उस कंपनी में हिस्सेदार बन जाता है, जो उस के द्वारा खरीदे गए शेयरों की संख्या पर निर्भर करता है.

शेयर खरीदने और बेचने का काम ब्रोकर्स यानी दलाल करते हैं. हालांकि उन पर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की नजर बनी रहती है. इस की स्थापना 12 अप्रैल, 1992 को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के तहत हुई थी.

आज की तारीख में 59 वर्षीय वही चित्रा रामकृष्ण एक अजीबोगरीब घोटाले के केंद्र में आ गई हैं. इसे सेबी ने जब पकड़ा, तब मामला सीबीआई के पास चला गया.

सीबीआई की गहन छानबीन के बाद एक ऐसे व्यक्ति का नाम उजागर हुआ, जो वास्तव में था ही नहीं. वह हिमालय में विचरण करने वाला एक अदृश्य ‘हिमालयन योगी’ था.

इस संदर्भ में हैरानी की एक बात उजागर हुई, जिसे चित्रा ने अपने 20 साल के करियर में कभी देखा तक नहीं था. केवल मिलने के आश्वासन के साथसाथ उस की नजर में अध्यात्म की अनुभूति पाती रही, उसी के निर्देश पर एक्सचेंज का सारा काम दनादन करती चली गईं. देश में पूंजी बाजार और फाइनैंस के नियमकानून की शर्तों वाले कामकाज पर उन का हिमालयन योगी के प्रति गजब की अंधभक्त बन गईं.

उस के मेल से जो भी आदेश मिला, उस का पालन करती रही. इस सिलसिले में यहां तक कि उन्होंने उस के आदेशों का पालन करते हुए नियमों के खिलाफ जा कर अनैतिक नियुक्तियां तक कर डालीं. उन्हीं में एक नियुक्ति आनंद सुब्रमण्यम की मुख्य रणनीतिक सलाहकार के पद पर भी हुई.

इसे ले कर ही चित्रा रामकृष्ण पर आरोप लगे कि उन्होंने एनएसई की प्रबंध निदेशक (एमडी) और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) रहते हुए कई अनुचित फैसले लिए और नियुक्तियां कीं.

अपने कार्यालय का दुरुपयोग किया, एक्सचेंज के संचालन से संबंधित गोपनीय जानकारी छिपाने में विफल रहीं और सेबी को गलत एवं भ्रामक जानकारियां देती रहीं. इस पर सेबी ने कहा कि चित्रा ने सारे फैसले अपने अज्ञात आध्यात्मिक गुरु के प्रभाव में किए.

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हालांकि बाद में सीबीआई द्वारा की गई पूछताछ में उन्होंने बताया कि उन के पहले के एमडी व सीईओ रवि नारायण और पूर्व समूह संचालन अधिकारी (जीओओ) आनंद सुब्रमण्यम के खिलाफ सर्कुलर जारी करने में अनदेखी की.

सेबी के आदेश के अनुसार चित्रा एनएसई के एमडी और सीईओ के पद पर दिसंबर 2016 तक रहते हुए कथित तौर पर हिमालय में विचरण करने वाले इस योगी को ‘शिरोमणि’ कह कर बुलाती थीं.

एक मेल में उस नाम का भी प्रयोग किया गया था. उन का दावा था कि वह हिमालय की पहाडि़यों में रहते हैं और 20 सालों से उन के व्यक्तिगत और पेशेवर मामलों के सलाहकार हैं.

एनएसई में घपले के बारे में सेबी को शिकायत साल 2015 में एक व्हिसलब्लोअर ने दी थी. शिकायत में ‘को-लोकेशन स्कैम’ की बात कही गई थी. इस में कहा गया था कि एनएसई में सीनियर मैनेजमेंट लेवल पर खूब धांधलेबाजी चल रही है. को-लोकेशन स्कैम का मतलब होता है एक्सचेंज की बिल्डिंग में सर्वर के करीब जगह दे कर कुछ लोगों को फायदा पहुंचाना.

ऐसा कर अपने पसंदीदा निवेशकों को फायदा मिलता है, जिसे शेयर ब्रोकर शेयरों की खरीदबिक्री का अंजाम देते हैं. बदले में उन्हें कमीशन का अच्छाखासा मुनाफा मिल जाता है.

यानी 2015 में सेबी को शिकायत मिली थी कि कुछ ब्रोकरों ने एनएसई के कुछ शीर्षस्थ अधिकारियों के साथ मिलीभगत से को-लोकेशन फैसिलिटी का दुरुपयोग किया. इस सिलसिले में सेबी ने एनएसई को एक खास जगह पर स्थापित एक्सचेंज के कुछ सर्वर को कारोबार में कथित रूप से वरीयता देने के मामले में जुरमाना लगाया है.

उस सिलसिले में जब चित्रा का नाम सामने आया था, तब सेबी ने उन्हें शोकाज यानी कारण बताओ नोटिस भेज दिया था. दरअसल, यह मामला शेयर के 12 फीसदी सालाना ब्याज से जुड़ा हुआ था, जिस में अनियमितताएं पाई गई थीं.

एनएसई की को-लोकेशन सुविधा के माध्यम से हाई फ्रीक्वेंसी वाले कारोबार में अनियमितता के आरोपों की जांच के बाद सेबी ने एक महत्त्वूर्ण आदेश दिया था.

आदेश में स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि एनएसई को 624.89 करोड़ रुपए और उस के साथ उस पर एक अप्रैल, 2014 से 12 फीसदी की दर से सालाना ब्याज सहित पूरी राशि सेबी द्वारा स्थापित निवेशक सुरक्षा एवं शिक्षा कोष (आईपीईएफ) में भरनी होगी.

नोटिस चित्रा रामकृष्ण के अलावा उन के पहले के एमडी को भी जारी किया गया था. उस नोटिस के जवाब के आधार पर सेबी ने जब अपनी जांच पूरी करने के बाद 190 पन्ने की रिपोर्ट शेयर की, तब अनैतिक नियुक्यों के पीछे की कहानी सामने आई.

सीबीआई ने आनंद सुब्रमण्यम को 24 फरवरी, 2022 की देर रात चेन्नई से गिरफ्तार किया था. एनएसई स्कैम मामले की छनबीन और जांचपड़ताल जैसेजैसे आगे बढ़ी, वैसेवैसे चौंकाने वाले सबूत भी सामने आ गए. इस मामले में करीब 10 साल बाद पहली गिरफ्तारी के साथ कई सबूत सामने आ चुके हैं.

सेंट्रल ब्यूरो औफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआई) के गिरफ्त में आया आनंद सुब्रमण्यम ही ‘हिमालयन योगी’ निकला, जिस के आदेश को चित्रा सिर आंखों पर बिठाए रखती थीं. यानी कथित हिमालयन योगी का राज भी खुल गया.

उस अदृश्य योगी का पता आनंद के पते से मात्र 13 मीटर की दूरी पर पाया गया. इस तरह से पूरा मामला आनंद सुब्रमण्यम, चित्रा रामकृष्ण और अनाम गुरु से जुड़ गया. जांच में पाया गया कि सारा खेल आनंद का किया कराया हुआ था. उस ने ही एक अदृश्य आध्यात्मिक गुरु की कल्पना कर चित्रा के मन में आस्था की अंधभक्ति का बीज बो दिया था.

चित्रा का मानना था कि गुरु की आध्यात्मिक शक्ति की बदौलत ही उन्हें चार्टर्ड अकाउंटेंट जगत में तरक्की मिलने से ले कर भारत की पहली और एशिया की चौथी स्टाक एक्सचेंज की बिजनैस वूमन बनने का गौरव हासिल हुआ था.

इस अचानक मिली बड़ी उपलब्धि के पीछे गुरु की सलाह का योगदान चित्रा के दिल और दिमाग में गहराई तक बैठ गया. इस कारण ही योगी के निर्देशों के जरिए चित्रा ने आंखें मूंद कर आनंद की नियुक्ति करवा दी.

एक के बाद एक प्रमोशन दिलवा दिए और वेतन में बेहिसाब बढ़ोत्तरी भी करवा दी. जबकि आनंद इस काबिल नहीं था.

यानी कि आनंद ने ही पूरे घपले की बिसात बिछाई थी. खुद योगी बन कर अपना फायदा पहुंचा रहा था. वह एक अप्रैल 2015 से ले कर 21 अक्तूबर, 2016 तक एनएसई के ग्रुप औपरेटिंग औफिसर (जीओओ) के साथसाथ  एमडी-सीईओ चित्रा रामकृष्ण का सलाहकार भी रहा.

इन दोनों पदों को चित्रा ने ही सृजित किया था. इस के लिए न कोई विज्ञापन निकाला गया और न ही विभागीय नोटिस जारी हुआ. यहां तक कि इस भरती की स्टाक एक्सचेंज के एचआर डिपार्टमेंट को भी कोई जानकारी दी गई. आनंद ही इस पद का इकलौता उम्मीदवार था.

चित्रा ने इंटरव्यू की महज मौखिक खानापूर्ति की. उस की कोई फाइल तक नहीं बनाई गई. इसी भरती को ले कर सेबी की जांच शुरू हुई और आनंद घपले की पहली कड़ी के रूप में पाया गया.

वह एनएसई में शामिल होने से पहले बामर लौरी एंड कंपनी लिमिटेड में काम करता था. वहां उस की तनख्वाह 15 लाख रुपए सालाना थी. पूंजी बाजार में उसे काम का कोई अनुभव नहीं होने के बावजूद उसे 1.68 करोड़ रुपए का सैलरी पैकेज दे दिया गया था. और तो और, वह हफ्ते में सिर्फ 4 दिन ही काम करता था.

चित्रा रामकृष्ण योगी से काफी प्रभावित थीं. इसी योगी ने चित्रा को ईमेल लिखे और उन्हें सुब्रमण्यम की भरती से ले कर उन की तनख्वाह तक निर्धारित की. वह ईमेल चित्रा के साथसाथ आनंद को भी भेजे जाते थे. रहस्यमयी योगी कई बार आनंद और दूसरे सीनियर अफसरों को प्रमोशन देने की भी सलाह दिया करता था.

सीबीआई को भी कथित योगी के मेल के कुछ स्क्रीन शौट मिले थे, जो अज्ञात आईडी द्वारा आनंद की आईडी पर फारवर्ड किए गए थे. इस के अलावा इस बात का सबूत भी मिला कि उन्होंने ही ईमेल आईडी बनाई थी.

बताते हैं कि आनंद ने अपने लैपटौप को नष्ट कर दिया था. बाद में जब उस की जांच की गई, तब उस का आईपी एड्रेस और ईमेल का आईपी एड्रेस एक ही पाया गया.

इस से पहले कंसल्टेंसी फर्म अर्नस्ट एंड यंग (ईएंडवाई)  के फोरैंसिक औडिट में भी कहा गया था कि चित्रा को आनंद डायरेक्ट कर रहा था. आनंद के डेस्कटौप पर ड्डठ्ठड्डठ्ठस्र.ह्यह्वड्ढह्म्ड्डद्वड्डठ्ठद्बड्डठ्ठ9 और ह्यद्बह्म्शठ्ठद्वड्डठ्ठद्ब.10 नाम से स्काइप अकाउंट भी मिले थे.

ईएंडवाई ने अपनी जांच में आनंद के चेन्नई स्थित आवास से महज 13 मीटर दूर स्थित 2 जियोटैग तसवीरें, हिमालयन योगी की ओर से बुक किया गया होटल, जिस का भुगतान आनंद ने किया था.

योगी को भेजे गए ईमेल अटैचमेंट और इस से कुछ मिनट पहले ही योगी एवं उस की बातचीच में इस्तेमाल किए गए वाक्यों में समानता जैसे मिले सुबूत इस बात की ओर इशारा करते हैं कि योगी कोई और नहीं, बल्कि आनंद सुब्रमण्यम ही है.

ईएंडवाई का यह निष्कर्ष जनवरी 2000 और मई 2018 के बीच रामकृष्ण, सुब्रमण्यम और हिमालयन योगी के बीच बातचीत के विश्लेषण पर आधारित है. उस का कहना है कि उस ने अटैचमेंट वाले 17 ईमेल का विश्लेषण किया.

इन में 8 तसवीरें थीं, जिन में 2 तसवीरों को जियोटैग किया गया था. दोनों तसवीरों का स्थान चेन्नई में सुब्बू (सुब्रमण्यम) के आवासीय पते के करीब था. इन तसवीरों की कैप्चर की गई लोकेशन मेल ह्म्द्बद्द4ड्डद्भह्वह्म्ह्यड्डद्वड्ड की ओर से भेजी गई तसवीरों के कैप्चर किए गए स्थान के समान थी.

ईएंडवाई की रिपोर्ट में कहा गया है कि एक अन्य सुबूत उम्मेद भवन पैलेस में की गई एक बुकिंग है. एक दिसंबर, 2015 को ह्म्द्बद्द4ड्डद्भह्वह्म्ह्यड्डद्वड्डञ्चशह्वह्लद्यशशद्म. ष्शद्व से रामकृष्ण (सुब्रमण्यम के लिए भी चिह्नित) को एक ईमेल भेजा गया. इस में कहा गया था कि कंचन की (रेफरेंस टू सुब्रमण्यम) छुट्टी को मंजूरी मिल गई है और एमडी की ओर से उम्मेद भवन में बुकिंग हो गई है. सुब्बू के बैंक स्टेटमेंट के अनुसार 27 नवंबर, 2015 को होटल को 2,37,984 रुपए का भुगतान भी किया गया था.

इस के साथ ही आनंद सुब्रमण्यम को एनएसई से मिले डेस्कटौप पर इस्तेमाल किए गए स्काइप प्रोफाइल का भी विश्लेषण किया गया. इस में पाया गया कि साझा डेस्कटौप में सुब्रमण्यम के यूजर प्रोफाइल में सानंद का जिक्र था.

विंडोज प्रोफाइल सानंद से संबंधित डेस्कटौप डेटा की समीक्षा से पता चला कि ड्डठ्ठड्डठ्ठस्र.ह्यह्वड्ढह्म्ड्डद्वड्डठ्ठद्बड्डठ्ठ9 और ह्यद्बह्म्शद्वड्डठ्ठद्ब.10 के नाम से स्काइप खाते स्काइप एप्लिकेशन डेटाबेस में कन्फिगर किए गए थे.

योगी के मेल की जानकारी ईएंडवाई द्वारा किए गए फोरैंसिक औडिट और जांच में सामने आई कि आनंद खुद इस मेल आईडी से योगी के तौर पर चित्रा को ईमेल करता था. एक तरह से आनंद चित्रा को प्रभावित करने का एक हथकंडा अपनाया हुआ था.

चित्रा के ईमेल चैट से भी कई चौंकाने वाले खुलासे हुए और कुछ रहस्यमयी योगी के बीच की कई ‘सीक्रेट’ बातें सामने आईं. चित्रा और फेसलेस योगी के बीच के एक चैट को देख कर सेबी के अधिकारी भी चौंक गए, जिस में योगी के साथ सेशल्स घूमने में समंदर में तैरने की बात कही गई थी.

17 फरवरी, 2015 को कथित रूप से उस अज्ञात व्यक्ति से रामकृष्ण को भेजे एक ईमेल में लिखा था, ‘कृपया बैग तैयार रखिए. मैं अगले महीने सेशेल्स की यात्रा की प्लानिंग का रहा हूं, कोशिश करूंगा कि आप भी मेरे साथ चलें. इस से पहले कंचन, कंचना और बरघवा के साथ लंदन चले जाएं और आप 2 बच्चों के साथ न्यूजीलैंड जाएं. अगर आप स्वीमिंग जानती हैं, तो हम सेशेल्स में सी बाथ का आनंद ले सकते हैं और समुद्र तट पर आराम भी कर सकते हैं.’

ईमेल के अनुसार, हांगकांग और सिंगापुर ट्रांजिट और आगे की यात्रा के लिए एक पसंदीदा जगह होगी. मैं अपने टूर औपरेटर से पूछ रहा हूं कि वह हमारे सभी टिकटों के लिए कंचन से संपर्क करें.

इस मेल की जांच में सेबी के आदेश में कहा गया है कि ‘कंचन’ आनंद सुब्रमण्यम ही थे, जबकि कंचना, बरघवा और सेशु की पहचान का खुलासा नहीं किया गया था.

सेबी के आदेश के अनुसार 18 फरवरी, 2015 को एक अन्य ईमेल में उस अज्ञात व्यक्ति ने रामकृष्ण से कहा कि आज आप बहुत अच्छे लग रहे हैं. आप को अपने बालों को बांधने के लिए अलगअलग तरीके सीखने होंगे, जो आप के लुक को दिलचस्प और आकर्षक बना देंगे. बस एक मुफ्त सलाह दे रहा हूं. मुझे पता है कि आप इसे जरूर लपक लेंगे. अपने आप को मार्च के बीच में थोड़ा फ्री रखें.

नैशनल स्टाक एक्सचेंज दुनिया के सब से बड़े स्टाक एक्सचेंजों में से एक है. यह शेयर, औप्शन और फ्यूचर्स सहित कई तरह की सिक्योरिटी खरीदने और बेचने की सुविधा देता है. हालांकि, सामान्य लोगों का सीधा एनएसई से वास्ता नहीं पड़ता है, क्योंकि ब्रोकर एनएसई में प्रतिनिधि का बना रहता है और शेयरों की खरीदबिक्री का असल खेल इसी एनएसई में होता है.

एनएसई पहले भारत का इतना पावरफुल स्टाक एक्सचेंज नहीं था. यह गौरव बौंबे स्टाक एक्सचेंज को मिला हुआ था. एक समय में इस पर ब्रोकरों के कुछ समूहों का दबदबा होता था. वे अपने इशारे पर किसी भी शेयर को मुनाफे वाला बना देते थे. इस की खामियां 1992 में हुए हर्षद मेहता घोटाले में उजागर हुई थीं.

हर्षद मेहता शेयरों की कीमतें बढ़ाने में माहिर था. ऊंचे भाव पर अपने शेयर बेच कर भारी मुनाफा कमाता था, इस में बैंक के कमजोर नियमों का भी फायदा उठाता था. नतीजतन इस घोटाले में लाखों लोगों की गाढ़ी कमाई डूब गई थी.

उस के बाद भारत सरकार ने एक पारदर्शी, सिस्टमैटिक और नियमकानून से चलने वाले स्टाक एक्सचेंज शुरू करने का काम इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक औफ इंडिया को सौंपा. इसी के साथ कामकाज को डिजिटल बनाने पर भी जोर दिया. वह पेपरलेस इलेक्ट्रौनिक शेयर ट्रेडिंग की रूपरेखा तैयार की गई. फिर एनएसई वजूद में आ गया.

उस के बाद बीएसई का कारोबार लगातार घट गया. एनएसई में नए तरीके से सुविधाएं दीं. फिर वह बीएसई से काफी आगे निकल गया.

इस के शुरुआती टीम में आर.एच. पाटिल एनएसई के पहले एमडी बनए गए थे. उन के बाद रवि नारायण सीईओ बने. कुछ और लोग इस में शामिल हुए, जिन में चित्रा रामकृष्ण भी थीं.

एनएसई का कामकाज कुछ सालों तक काफी शानदार रहा, लेकिन उसे भी वही घोटाले की बीमारी लग गई. और फिर सेबी के सामने को-लोकेशन का मामला सामने आया.

को-लोकेशन स्कैम में कुछ चुनिंदा ब्रोकर्स को गलत तरीके से फायदा पहुंचाया गया था. जांच एजेंसीज के मुताबिक, ओपीजी सिक्योरिटीज नामक ब्रोकरेज फर्म को फायदा पहुंचाने के लिए उसे को-लोकेशन फैसिलिटीज का एक्सेस दिया गया था.

इस फैसिलिटी में मौजूद ब्रोकर्स को बाकियों की तुलना में कुछ समय पहले ही सारा डेटा मिल गया था. इस तरह एनएसई के घपलेबाजों ने अपनी जरूरतों और प्राथमिकता के आधार पर इस्तेमाल कर लेते थे और वे शेयरों की खरीद और बिक्री से मुनाफा कमा लेते थे.

एक अनुमान के मुताबिक ब्रोकर्स ने 50,000 करोड़ रुपए के प्रौफिट कमाए, जबकि इस गलत काम करने में सहायक बनने वालों में एनएसई समेत चित्रा पर जुरमाना लगाया. सेबी द्वारा चित्रा पर 3 करोड़ रुपए, नारायण और आनंद पर 2-2 करोड़ रुपए तथा वीआर नरसिम्हन पर 6 लाख रुपए का जुरमाना लगाया गया.

इस के साथ ही सेबी ने एनएसई को कोई भी नया उत्पाद पेश करने से 6 महीने के लिए रोक दिया है. इस तरह का प्रतिबंध चित्रा और सुब्रमण्यन पर भी लगया गया है. वे 3 साल तक किसी भी बाजार ढांचागत संस्थान या सेबी के साथ पंजीकृत संस्थान के साथ नहीं जुड़ सकते हैं. नारायण पर यह पाबंदी 2 साल के लिए लगाई गई है.

यही नहीं, सेबी ने एनएसई को चित्रा के अतिरिक्त अवकाश के बदले में भुगतान किए गए 1.54 करोड़ रुपए और 2.83 करोड़ रुपए के बोनस (डेफर्ड बोनस) को भी जब्त करने का भी निर्देश दिया है.

हालांकि जांच एजेंसियों के सामने कम मुश्किलें नहीं आई हैं. कारण एनएसई ने चित्रा समेत अन्य उच्च अधिकारियों के लैपटौप, कंप्यूटर हार्डवेयर को ई-वेस्ट के नाम काफी पहले नष्ट कर दिया था.

पूंजी बाजार नियामक सेबी जहां अपनी रिपोर्ट के आधार पर न केवल एनएसई के कामकाज के तौर तरीकों पर सवाल उठा रही है, बल्कि कई रहस्यमयी साजिशों की परतें भी खोल दी हैं.

सेबी के आदेश के बाद चित्रा की मुश्किलें बढ़ गई हैं. इनकम टैक्स छापा पड़ने के बाद वह बुरी तरीके से घिर चुकी हैं

इस महीने हो सकती है आलिया-रणबीर की सगाई

बॉलीवुड की पॉपुलर जोड़ी आलिया भट्ट (Alia Bhatt) और रणबीर कपूर (Ranbir Kapoor) अक्सर अपने लवलाइफ को लेकर चर्चे में छाये रहते हैं. हाल ही में आलिया और रणबीर ने फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ की शूटिंग खत्म की है. दर्शकों को इस फिल्म का बेसब्री से इंतजार है. इसके अलावा दोनों के फैंस उन्हें जल्द से जल्द शादी के बंधन में बंधा देखना चाहते हैं.

कुछ दिन पहले खबर आई थी कि आलिया और रणबीर इस साल दिसंबर में शादी करेंगे. लेकिन अब खबर यह आ रही है कि आलिया भट्ट और रणबीर कपूर जल्द ही सगाई करने वाले हैं.

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एक रिपोर्ट के अनुसार, आलिया भट्ट और रणबीर कपूर अप्रैल महीने में सगाई कर सकते हैं. जी हां, दोनों से जुड़े सूत्रों ने बताया था कि अप्रैल का महीना दोनों की शादी के लिए बहुत जल्दी हो जाएगा. क्योंकि इस वक्त वे दोनों अपनी अपकमिंग फिल्म को लेकर काफी बिजी भी चल रहे हैं. ऐसे में दोनों दिसंबर में शादी के बंधन में बंधेंगे.

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खबरों के अनुसार, अप्रैल के अंत में आलिया और रणबीर सगाई कर सकते हैं. बताया जा रहा है कि दिसंबर महीने में ही आलिया भट्ट और रणबीर कपूर को अपने काम से छुट्टियां मिलती हैं, ऐसे में दोनों शादी के लिए दिसंबर ही चुनेंगे.

 

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आपको बता दें कि जब रणबीर कपूर से भी उनकी शादी के सिलसिले में सवाल किया गया था. तो रणबीर ने तारीख बताने से साफ इंकार कर दिया था. आए दिन रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की शादी का नकली कार्ड भी सोशल मीडिया पर वायरल होता है.

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