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शादी से पहले ‘अनुपमा’ ने मारी बाजी, जीता ये अवार्ड

टीआरपी चार्ट में हर हफ्ते टॉप पर रहने वाला टीवी शो ‘अनुपमा’ (Anupamaa) की कहानी में नया मोड़ आ चुका है. शो में जल्द ही अनुपमा-अनुज की शादी का ट्रैक दिखाया जाएगा. तो वहीं शाह हाउस में अनुपमा-अनुज की शादी को लेकर हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. फैंस अनुज-अनुपमा की केमिस्ट्री को काफी पसंद करते हैं. ऐसे में अनुपमा को इस किरदार के लिए कई अवार्ड से नवाजा जा चुका है.

अब अनुपमा ने एक औऱ अवार्ड अपने नाम किया है. शो के लिए अब रुपाली गांगुली ने बॉलीवुड लाइफ डॉट कॉम का अवॉर्ड जीता है. जी हां, इस अवॉर्ड को पाकर ‘अनुपमा’ यानी रुपाली गांगुली बेहद खुश हैं. उन्होंने टेबल पर इस अवॉर्ड को रखकर खुद जमीन पर बैठकर इसके साथ पोज दिए हैं.

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इन तस्वीरों में अनुपमा ब्लैक ड्रेस में काफी खूबसूरत नजर आ रही हैं. शो में अनुपमा का किरदार घरेलू महिला से शुरू होता है. वह अपने फैमिली के लिए काफी डेडिकेटेड है, लेकिन जब उसे अपने पति वनराज के एक्सट्रा मैरिटल अफेयर के बारे में पता चलता है तो वह पूरी तरह टूट जाती है. और आखिरी में उसे तलाक देने का फैसला करती है. इसके बाद अनुपमा की जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आते है. लेकिन वह हर मुश्किल का सामना करती है.

 

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अनुपमा की जिंदगी में अनुज की एंट्री होती है, तब से उसकी जिंदगी ही बदल जाती है. कहते है न कि ‘एक अच्छा साथी जिंदगी के सफर में मिल जाये तो हर मुश्किल आसान हो जाती है.’ यहीं अनुपमा के साथ होता है. अनुज हर कदम पर उसके साथ है.  फैंस को अनुपमा (Rupali Ganguly) और अनुज कपाड़िया (Gaurav Khanna) का  रोमांस काफी पसंद आ रहा है.

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बता दें कि रुपाली गांगुली ने इन तस्वीरों को शेयर करते हुए एक इमोशनल नोट भी लिखा है. उन्होंने सबसे पहले अपने पति अश्विन और बेटे रुद्रांश को यह अवॉर्ड डेडिकेट किया है. इसके साथ ही उन्होंने ‘अनुपमा’ के निर्माता राजन शाही को शुक्रिया कहा है. इसके साथ ही उन्होंने डायरेक्टर्स, राइटर्स और कास्ट के सभी लोगों को शुक्रिया कहा है.

 

‘अनुपमा’ में इन दिनों शाह हाउस में जंग छिड़ी हुई है. अनुपमा ने अनुज से शादी करने का ऐलान कर दिया है. वह इस बार अपने बच्चों और बा के भी विरोध में नजर आ रही हैं. लेकिन इस सबके बीच बा ने गुस्से में उसे शादी के दौरान अपशगुन होने की बद्दुआ दी है.

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मिर्च की खेती बनी आमदनी का जरीया

कोई भी काम लगन और मेहनत से किया जाए, तो उस से फायदा ही होता है. खेतीकिसानी में भी खेती का रकबा भले ही कम हो, पर खेती के नए तौरतरीकों के जरीए भी ज्यादा आमदनी जुटाई जा सकती है.

इस बात को जबलपुर जिले के एक किसान ओमप्रकाश तिवारी ने साबित कर के दिखाया है. उन्होंने खेती के परंपरागत तौरतरीकों को छोड़ कर अपनी 5 एकड़ जमीन पर हरी मिर्च की खेती कर के लाखों रुपए की आमदनी ले कर एक मिसाल कायम की है.

जबलपुर जिले के घाट पिपरियां गांव के किसान ओमप्रकाश तिवारी बताते हैं कि तीखी मिर्च ने उन की जिंदगी में मिठास घोल दी है. प्लास्टिक मल्चिंग और ड्रिप इरीगेशन सिस्टम से उन्होंने अपनी 5 एकड़ जमीन पर मिर्च की खेती कर 16 टन प्रति एकड़ का उत्पादन लिया है. ठंड के इस सीजन में 40 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से उन्होंने एक दफा में 4 लाख रुपए तक की बचत कर ली है.

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जून में तैयार करते हैं नर्सरी

ओमप्रकाश तिवारी अपने खेतों में मिर्च की खेती के लिए बाजार से उन्नत किस्म के मिर्च के बीज लाते हैं और घर पर खुद ही नर्सरी तैयार करते हैं. बारिश के पहले उन्होंने जून महीने में नर्सरी तैयार की थी. अपने खेतों के लिए उन्होंने जवाहर मिर्च का उपयोग बीज के तौर पर किया है.

खेत में बारिश के समय जुलाई महीने में मिर्च की रोपाई का काम किया जाता है. वैसे तो किसान तीनों मौसम में मिर्च की रोपाई का काम कर सकते हैं. पौधे से पौधे की दूरी 30 सैंटीमीटर और क्यारी की दूरी साढ़े 4 फुट रख कर उन्होंने मिर्च की रोपाई की थी. 7 से 8 महीनों में मिर्च की फसल तैयार हो जाती है. जवाहर किस्म के बीज से मिर्च का उत्पादन 1 हेक्टेयर में तकरीबन 280 क्विंटल तक मिल जाता है.

क्यारी पर लगाएं मल्चिंग, फिर रोपें पौधा

मिर्च की खेती करने वाले किसानों को ओमप्रकाश तिवारी सलाह देते हुए कहते हैं कि मिर्च की बोआई ऐसे खेत में करनी चाहिए, जहां जल निकासी का समुचित इंतजाम हो. इस के लिए क्यारी को 1 मीटर के आधार में 20 सैंटीमीटर ऊंचाई पर बनाना चाहिए. इस में गोबर की सड़ी खाद मिला दें. 30 माइक्रोन मोटाई वाली प्लास्टिक मल्चिंग शीट से क्यारियों को कवर कर देना चाहिए.

ड्रिप इरिगेशन से सिंचाई, समयसमय पर खाद का प्रयोग अच्छे उत्पादन के लिए जरूरी होता है. मल्चिंग का फायदा यह होगा कि इस से खरपतवार नहीं होगा और मिर्च के लिए जरूरी नमी बनी रहेगी.

मिर्च की मुख्य फसल जून से अक्तूबर महीने के बीच में होती है. कुछ लोग सितंबर से अक्तूबर महीने के बीच में और कुछ लोग फरवरी से मार्च महीने के बीच में भी मिर्च लगाते हैं.

ओमप्रकाश तिवारी के खेतों में लगी मिर्च की फसल अकेले उन्हें ही फायदा नहीं दे रही, बल्कि उन की खेती से गांव के 50-60 लोगों को रोजगार मुहैया करा रही है. खेत में रोज 50-60 गांव वालों को मिर्च तोड़ने का काम मिल जाता है. एक किलोग्राम मिर्च की तुड़ाई के एवज में उन्हें 7-8 रुपए मिलते हैं. रोजाना एक मजदूर 20 से 25 किलोग्राम मिर्च तोड़ लेता है.

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मिर्च की खेती की तैयारी के समय सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए. इस के बाद प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन 120 से 150 किलोग्राम, फास्फोरस 60 किलोग्राम और पोटाश 80 किलोग्राम लगता है.

ड्रिप इरिगेशन में इस की मात्रा 150 दिन में बांट कर हर दूसरे दिन देना ज्यादा फायदेमंद होता है. ड्रिप सिंचाई के साथ ही एनपीके 19:19:19 दे सकते हैं.

मिर्च में फूल आने के समय प्लेनोफिक्स

10 पीपीएम और उस के 3 हफ्ते बाद छिड़काव करने से अच्छी बढ़वार होती है और फल भी अधिक आते हैं. रोपाई के 18 और 43 दिन बाद ट्राईकेटेनाल 1 पीपीएम की ड्रेंचिंग करनी चाहिए.

मिर्च की खेती में लगने वाले रोग

मिर्च की खेती में ज्यादातर रोग पत्तियों को सिकोड़ने वाले होते हैं. रोग लगने से पौधों की बढ़वार रुक जाती है और इस का असर फसल उत्पादन पर पड़ता है.

मिर्च में आमतौर पर लगने वाले रोगों का उपचार इस तरह से किया जा सकता है.

थ्रिप्स : मिर्च की फसल में सब से घातक और नुकसान पहुंचाने वाली बीमारी कुकड़ा रोग है. यह रोग वास्तव में थ्रिप्स कीट के कारण होता है. थ्रिप्स मिर्च के पौधों की पत्तियों का रस चूसते हैं. इस से पत्तियां नाव के आकार में ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं.

उपचार के लिए किसान रोगरोधी किस्मों का चयन करें. बीजों को थायोमेथाक्जाम 5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर लेना चाहिए.

रोग लगने पर नीम तेल का 4 फीसदी का छिड़काव  करना चाहिए. फिप्रोनिल 5 फीसदी एससी की डेढ़ मिली. मात्रा प्रति एक लिटर पानी में मिला कर स्प्रे कर करना फायदेमंद होता है.

सफेद मक्खी : इस कीट के शिशु व वयस्क पत्तियों की निचली सतह पर चिपक कर रस चूसते हैं, जिस से पत्तियां नीचे की तरफ मुड़ जाती हैं. कीट की लगातार निगरानी करते रहें.

संख्या के आधार पर डाईमिथोएट की 2 मिलीलिटर मात्रा को एक लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. अधिक प्रकोप की स्थिति में थायोमेथाक्जाम 25 डब्ल्यूजी की 5 ग्राम को 15 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करने से फसल को सफेद मक्खी से बचाया जा सकता है.

माइट : इस कीट के प्रकोप से पौधों की पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जाती हैं. मिर्च में लगने वाली माइट आंखों से दिखाई नहीं देती. यह कोई कीट ही नहीं होता, इसलिए इस की रोकथाम के लिए कीटनाशी काम नहीं करता है. ये पत्तियों की सतह से रस चूसते हैं. बचाव के लिए डायोकोफाल 2.5 मिलीलिटर या ओमाइट 3 मिलीलिटर प्रति लिटर में स्प्रे करना चाहिए. पाला पड़ने या बारिश में ज्यादा रोग लगने का खतरा रहता है.

बाजार की अच्छी जानकारी होनी चाहिए

ओमप्रकाश तिवारी बताते हैं कि मिर्च से अच्छा फायदा चाहिए, तो बाजार की अच्छी जानकारी होनी चाहिए. अगर ज्यादा मात्रा में मिर्च हो रही है, तो दूसरे शहरों में भी इसे बेच सकते हैं. मेरी मिर्च जबलपुर मंडी में जाती है. रोज दिनभर मिर्च की तुड़ाई होती है. इस के बाद ग्रेडिंग कर इस की पैकिंग की जाती है.

20 किलोग्राम की एक पैकिंग होती है. सुबह तड़के ही मंडी में माल पहुंचाना होता है. हरी मिर्च का भाव ज्यादा मिलता है. स्वाद में अधिक तीखी होती है. लाल मिर्च को भी 30 से 40 रुपए के भाव में बेच देते हैं.

मिर्च की तुड़ाई समय पर न होने से पौधों में कुछ मिर्च पक कर लाल हो जाती हैं. वैसे भी लाल मिर्च को सुखा कर बेचने का झंझट न पालें. हरी मिर्च से थोड़े कम दाम पर लाल मिर्च को भी तुरंत बेचना ही फायदेमंद होता है.

जबलपुर के आसपास के इलाकों में हरी मिर्च की खेती के लिए ओमप्रकाश तिवारी जानेपहचाने जाते हैं. ज्यादा जानकारी के लिए ओमप्रकाश तिवारी के मोबाइल फोन नंबर 7691916297 पर बात की जा सकती है.

प्रीत किए दुख होए

नंदीग्राम खगडि़या जिले का एक कसबा था, जो वहां से महज 10 किलोमीटर ही दूर था. कहलाता तो वह दलित बस्ती इलाका था, लेकिन वहां के सारे दलित ब्राह्मणों को ‘बाबू लोग’ पुकारते थे. इक्कादुक्का घर राजपूतों के भी थे.

नरेंद्र मोदी और “कृत्रिम महंगाई”

पहली दफा जब नरेंद्र दामोदरदास मोदी प्रधानमंत्री बने थे और अचानक पेट्रोल डीजल आदि के दाम कम होने लगे तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि यह उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने आप हो रहा है-भावना यह थी कि स्थिति उनके “अच्छे कर्मों” और नेक कदम से, देश में महंगाई कम हो रही है. अन्यथा, कांग्रेस के समय तो देश में मंहगाई को लेकर त्राही त्राही मची हुई थी.

दरअसल, मामला सिर्फ सोच का है. कोई प्रधानमंत्री पद पर बैठा हुआ शख्स ऐसा कैसे कह सकता है कि मेरे पदभार ग्रहण करने के बाद महंगाई कम हो रही है और यह सिर्फ मेरे कारण हो रहा है, खुशहाली आ रही है. आखिर यह मैं मैं क्या है.

और देखिए कि किस तरह आज नरेंद्र दामोदरदास मोदी के प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहते आज महंगाई सर चढ़कर बोल रही है.और नरेंद्र मोदी की बोलती बंद है.

वस्तुत: कई ऐसी जींस है जहां कृत्रिम रूप से महंगाई लाई गई है,वह भी हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के आशीर्वाद से. कैसे?

आइए! नीचे हम आपको विस्तृत रूप से बताने का प्रयास करते हैं.

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आउट ऑफ कंट्रोल महंगाई

देश में महंगाई धीरे-धीरे आउट ऑफ कंट्रोल होती जा रही है. छोटी छोटी और बड़ी चीजें लगातार महंगी होती जा रही है लोगों के हाथों से खिसकती दिखाई दे रही है जिसमें पहली पंक्ति में है- रसोई गैस जो 7 वर्षों में लगभग दोगुने मूल्य पर मिल पा  रहा है.

दरअसल, हमारे यहां सबसे बड़ी बीमारी है जमाखोरी की. आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी जमाखोरों पर अंकुश लगाने का कोई कारगर सिस्टम हमारे देश में लागू नहीं हो पाया है.

अब जैसे कि भोज्य पदार्थ तेल है देखते ही देखते प्रति किलो पचहत्तर रूपए मंहगा हो गया है इस तरह लगभग यह दुगने दाम तक पहुंच गया है.

वैश्विक स्तर पर मंदी एवं रूस यूक्रेन युद्ध का असर  भी पड़ रहा है और महंगाई का “बम” लगातार फूट रहा है. खाद्य तेलों के बाद पेट्रोल, डीजल के दामों में लगातार उछाल आ रहा है. डीजल के रेट बढ़ते ही ट्रांसपोर्टिंग चार्ज भी बढ़ता जा रहा है. चांवल गेंहू की कीमतों में भी वृद्धि हुई है. आटा- मैदा के अलावा कई किराना सामानों के दामों में भी वृद्धि हुई है. इस बढ़ती महंगाई ने आम आदमी का जीना ही मुहाल हो गया है.

यह सच है कि पूरे देश में महंगाई का तांडव सामने आया है. महंगाई बढ़ने के कई कारण हैं. विश्वव्यापी मंदी के बाद रूस- यूक्रेन के बीच जारी युद्ध का असर कई देशों के उत्पादन के आयात निर्यात पर भी पड़ा है. विदेशों से तेलों का बड़े पैमाने पर आयात होता है . माह भर पहले से खाद्य तेलों की कीमतों में भारी उछाल आया है. सभी खाद्य तेलों के दामों में वृद्धि हुई है. खाद्य तेलों के बढ़े दामों को लेकर मचे हाहाकार के बीच रसोई गैस के दाम भी सरकार ने बढ़ा दिया .

पेट्रोल डीजल के दाम तो सरकार के हाथों में है फिर भी है हफ्ते भर के अंतराल में 5 रूपये तक वृद्धि हुई है. पेट्रोल 106 रूपये में तो डीजल 97 रूपये 41 पैसे में बिक रहा है.

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सच है कि सिर्फ तेलों के दामों पर ही आंच नहीं आई है बल्कि अनाज के दाम भी बढ़ गए हैं. चावल के दाम में बढोत्तरी हो गई है. चावल के साथ गेंहू के दाम में भी उछाल आया है. स्थानीय कृषि उपज मंडियों में अच्छी क्वालिटी का गेंहू 2150 तक बिक रहा.

बढ़ती महंगाई से आम लोग काफी परेशान हैं.

व्यवसायी संजय जैन के मुताबिक बढ़ती महंगाई से घर का बजट बिगड़ता जा रहा है. अब तो रोजमर्रा के सामानों की व्यवस्था करने में ही बड़ी परेशानी हो रही है. महिलाएं नरेंद्र मोदी सरकार के समय में बढ़ती मंहगाई से दुखी हैं .

उन का प्यार बर्फ में जम गया: भाग 2

मौसम विभाग ने टेक्सासवासियों को अगले सप्ताह में आने वाले विंटर स्टार्म और कोल्ड वेदर के

बारे में सचेत रहने की सूचना दी थी. फरवरी 11 तारीख से मौसम ने करवट लेना शुरू किया.12 तारीख को ठीक 11 बजे दिन में काउंटी हेल्थ औफिस ने डेनियल को फोन कर कहा, “आप को टीके का दूसरा डोज 15 फरवरी को लेना था, पर आने वाले कुछ दिनों में बहुत खराब मौसम की सूचना को देखते हुए उसे रद्द कर दिया गया है. आप चाहें तो दूसरा डोज आज 12 बजे आ कर ले सकते हैं, अन्यथा मौसम ठीक होने पर आप को सूचित किया जाएगा.”

डेनियल ने अपने बेटे से बात की, तो उस ने कहा, “आप को दिक्कत क्या है? कार उठाइए और 10 मिनट की दूरी पर आपvका टीका केंद्र है. मौसम ठीक होने का इंतजार न करें और जा कर दूसरा डोज ले लें. डैड, आप से एक बात कहनी थी.”

“कहो न बेटे.”

“ यू नीड ए पार्टनर. आप की तबीयत भी ठीक नहीं रहती है. हम लोग इतनी दूर हैं कि चाह कर भी मदद नहीं कर सकते हैं. आप के स्वास्थ्य की चिंता बनी रहती है.”

“हां, पहले तो मैं ऐसा नहीं सोचता था, पर अब मुझे भी ऐसा लगने लगा है.”

“ ग्रेट. आप को पार्टनर मिल जाए तो मैं भी एक तरफ से बेफिक्र हो जाऊंगा.”

मौसम बहुत खराब चल ही रहा था. ठंड काफी थी और शाम तक मूसलाधार बारिश होने का अनुमान था. एक बजे दोपहर तक डेनियल टीका ले कर वापस अपने घर में आया. प्रशासन ने सभी स्कूलकालेज और दफ्तर बंद रखने की घोषणा पहले ही कर दी थी. स्कूल के औनलाइन क्लास भी बंद कर दिए गए. दूसरे दिन शाम से डेनियल की तबियत खराब होने लगी. उसे बुखार, बांह और पूरे बदन में दर्द और काफी बेचैनी महसूस हुई. डाक्टर को फोन करने पर उस ने बताया कि टीके की दूसरी डोज के बाद ऐसा होता है. अगर दो दिन से ज्यादा तकलीफ रहती है, तब क्लिनिक आ सकते हैं. ज्यादा तकलीफ हो तब पेनकिलर ले सकते हैं.

डेनियल ने स्टोर में लोयला को फोन कर के कहा, “कोरोना का टीका लेने के बाद मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही है. मैं कुछ और ग्रोसरी के सामान की लिस्ट मेल कर रहा हूं, तुम डिलीवर कर देना.”

“आज तो काफी कस्टमर्स डिलीवरी लिस्ट में आप से ऊपर हैं. उम्मीद है कि कल दोपहर बाद आप को

डिलीवरी मिलेगी, वह भी मौसम ठीक रहा तब. आप को ऐसे में किसी के साथ रहना चाहिए डेनियल.”

“ तुम्हीं साथ दो न.”

“मैं 1-2 दिन की बात नहीं कर रही हूं. आप दिल के मरीज हैं, आर्थराइटिस से परेशान हैं, आप को सहारे की जरूरत है.”

“मैं भी 1-2 दिन की बात नहीं कर रहा हूं.”

कुछ देर तक दोनों तरफ खामोशी पसरी रही. फिर लोयला बोली, “वैसे, आप कुछ ज्यादा दिनों की

सप्लाई स्टाक कर लें. हालांकि आजकल रोजमर्रा की चीजों की शॉर्टेज चल रही है, खासकर दूधब्रेड आदि. बाहर से सप्लाई आना लगभग बंद है. फिर भी जितना बन सके, मैं कोशिश करूंगी.

“ओके, मैं कल ग्रोसरी ले कर आती हूं. टिल देन बाय, टेक केयर.”

अगले दिन सुबह से मूसलाधार बारिश हो रही थी. दोपहर के बाद बारिश थमी, तब लोयला डेनियल का सामान अपने कार की ट्रंक में रख कर डेनियल के घर जा रही थी. आसमान से बर्फ रूई के छोटे टुकड़ों की तरह गिर रहे थे. डेनियल के ड्राइव वे में कार पार्क करने के लिए जैसे ही उस ने कार मोड़ी, कार बर्फ पर फिसल कर फ्रंट लान की मिट्टी में जा फंसी. उस ने किसी तरह से कार को कंट्रोल किया, वरना कार पेड़ से जा टकराती. लगातार बारिश और हिमपात के चलते लान की मिट्टी काफी गीली थी. उस के कार के फ्रंट व्हील्स कीचड़ में फंस गए.

लोयला अपना रेनकोट पहन कर बाहर निकली. ट्रंक से ग्रोसरी कार्टन निकाल कर उस ने डेनियल की डोर बेल बजाई.

डेनियल उसे देख कर बोला, “तुम्हारी कार को क्या हुआ? ऐसे मौसम में तुम

क्यों आई?“

“अब आ ही गई तो अंदर आने दोगे या सामान रख कर चली जाऊं? सौरी जाने का सवाल कहां है. कार बुरी तरह फंस गई है.“

“उसे बाद में देखेंगे, पहले अंदर आओ.“

डेनियल कौफी बना लाया और बोला, “लो कौफी पियो. ऐसे मौसम में कौफी दोनों के लिए अच्छी है.“

लोयला विंडो गिलास से बाहर देखते हुए बोली, “बाहर हेवी स्नो फाल शुरू हो गया है.“

दोनों टीवी में लोकल वेदर चैनल न्यूज देख रहे थे. प्रशासन की ओर से मौसम को ले कर एडवाइजरी और चेतावनी दी गई, “आप लोग अपने घरों से बाहर न निकलें. आगामी 3 दिनों तक मौसम में सुधार की संभावना नहीं है.“

“अब मैं क्या करूं डेनियल, मेरी कार भी फंसी है और ऐसे मौसम में कोई हेल्प करने वाला भी नहीं आ सकता है.“

“तुम्हारी कार अगर ठीक भी होती तो मैं तुम्हें जाने नहीं देता. तुम ने टीवी पर सुना नहीं वार्निंग. जब तक मौसम ठीक नहीं होता है, तुम यहां से नहीं जा सकती हो. तुम्हें यहीं रहना होगा. मैं फ्रिज में देखता हूं दोनों के खाने लायक खाना है या नहीं. नहीं हुआ तो कुछ बना लेंगे या तुम्हारे लाए ग्रोसरी में बर्गर है न, वो काफी होगा.“

“अगर आप कहें तो मैं खाने में कुछ बना दूं. मैं फिश ले कर आई हूं.“

“नो, आज जो रेडीमेड फूड है, उसी से काम चलेगा. मौसम के बहाने ही कुछ दिन के लिए हम साथी बन गए हैं.“

तभी जोर से बिजली चमकी और बाद में उस की गर्जना से लगा घर कांप उठा. कुछ पल बाद बिजली भी चली गई.

“माय गौड, अब पता नहीं बिजली कब आए. हमारा किचेन स्टोव भी सिर्फ बिजली से चलता है. फ्रिज का खाना माइक्रोवेव में गरम भी नहीं कर पाएंगे.“

डेनियल बोला, “अभी से फ्रिज से निकाल दें. खाने के समय तक कुछ ठंडापन कम हो जाएगा, फिर जैसा भी हो खाना पड़ेगा. अब हीटर भी नहीं काम करेगा और मेरे सारे विंटर ड्रेस घर पर पड़े हैं.“

“मेरे क्लोजेट से ब्लैंकेट्स और जो भी चाहो निकाल लो. स्लीपिंग पजामा भी ले सकती हो.“

लोयला ने फोन देख कर कहा, “ठंड बढ़ती जा रही है. बाहर का टेम्परेचर माइनस 10 डिगरी सैल्सियस है. हीटर

चलने का सवाल ही नहीं है. आज रात माइनस 15 डिगरी सैल्सियस होने वाला है. मुश्किल तो ये है कि लाइट भी नहीं है. फोन की लाइट ज्यादा यूज करना भी ठीक नहीं है. पावर नहीं होने से चार्ज भी नहीं कर पाएंगे.“

“ऐसा करते हैं हम लोग, अपने बच्चों से बात कर यहां की स्थिति बता देते हैं, फिर पता नहीं कब बात हो.“

डेनियल और लोयला दोनों ने अपने बच्चों से बात की और कहा कि फोन पर ज्यादा बातें नहीं हो सकती हैं. जरूरी बातें मैसेज पर होंगी. पता नहीं, फोन कब डेड हो जाए. वाईफाई भी बिना पावर के नहीं काम करेगा. दोनों के बच्चों ने कहा कि अच्छा है आप के साथ कोई जानपहचान वाला है.

शाम को जल्दी डिनर कर दोनों अपने ब्लैंकेट में समा गए. किसी तरह रात गुजारी. सुबह उठे तो देखते हैं कि बाहर चारों तरफ बर्फ की मोटी परत जम चुकी थी. नल में पानी भी नहीं आ रहा था.

प्रीत किए दुख होए: भाग 1

नंदीग्राम खगडि़या जिले का एक कसबा था, जो वहां से महज 10 किलोमीटर ही दूर था. कहलाता तो वह दलित बस्ती इलाका था, लेकिन वहां के सारे दलित ब्राह्मणों को ‘बाबू लोग’ पुकारते थे. इक्कादुक्का घर राजपूतों के भी थे.

आबादी में ज्यादा होने के बावजूद वहां के दलितों को ‘बाबू लोगों’ ने हड़प नीति का इस्तेमाल कर सब की जरजमीन छीन कर गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. वहां 2 घर बचे थे, जो भूमिहीन व गरीब थे. वे लोग किसी के सहारे पलते थे. इन्हीं 2 घरों में से एक घर में जैसे कीचड़ में कमल खिल गया था.

झुग्गीझोंपड़ी योजना के तहत वहां पुराना स्कूल था, जिस में ज्यादातर ‘बाबू लोगों’ के बच्चे ही पढ़ा करते थे. दलितों के लड़के रहे ही कहां, जो स्कूल में दिखते. बस, एकमात्र काजल थी, जो दलित तबके से आती थी.

हालांकि सभी लड़के काजल से अलग बैठते थे, लेकिन एक ब्राह्मण छात्र सुंदर था, जो उस के एकाकीपन का साथी बन गया था, इसलिए सुंदर से भी सब चिढ़ते थे. एक ब्राह्मण का लड़का दलित लड़की से नजदीकियां बनाए, यह किसी को गवारा न था.

काजल दलित जरूर थी, लेकिन खूबसूरती में बेजोड़ सुंदर. उस की इसी खूबसूरती का मुरीद था सुंदर.

स्कूल से विदाई का दिन आ गया. अब यहां से निकल कर छात्रों को मध्य विद्यालय में दाखिला लेना था. काजल अच्छे नंबरों से पास हुई थी.

‘‘काजल, आगे कहां पढ़ोगी? बाबा तो मुझे शहर भेजने पर तुले हैं… खगडि़या,’’ सुंदर ने कहा.

‘‘मैं…? मैं कैसे जा सकती हूं शहर? मेरी मां अकेली हैं. वैसे, गांव से बाहर एक किलोमीटर दूर है मध्य विद्यालय. मैं वहीं दाखिला लूंगी और रोज आनाजाना करूंगी.’’

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‘‘सोचा तो मैं ने भी यही था, लेकिन बाबा का सपना है मुझे हाकिम बनाने का.

‘‘चल न तू भी शहर? मैं मनाऊंगा चाची को…’’ सुंदर ने कहा, ‘‘मेरा वहां अकेले मन नहीं लगेगा.’’

‘‘तो मैं क्या करूं? हो सकता है कि मेरी पढ़ाई भी छूट जाए. मैं गरीब भी हूं और मां मुझे बेहद प्यार करती हैं. वे मुझे दूर नहीं जाने देंगी,’’ काजल ने भोलेपन से कहा.

‘‘तो मेरी भी पढ़ाई छूट जाएगी…’’ सुंदर बोला, ‘‘मैं मर जाऊं तभी तेरा साथ छूटेगा.’’

‘‘मरे तेरे दुश्मन. मैं तो लड़की हूं… चूल्हाचक्की के लिए पढ़ाई करना जरूरी नहीं है. लेकिन तुम्हें तो पढ़ाई करनी ही पड़ेगी. हाकिम न बन सके तो शादी न होगी. बच्चे होंगे तो उन को भूखा मारोगे क्या? कमाई तो करनी ही पड़ेगी…’’ काजल ने कहा, ‘‘कहीं बाबागीरी न करनी पड़ जाए…’’

‘‘अरी मेरी दादी…’’ कहते हुए सुंदर ने उस के कान उमेठ दिए, ‘‘तू मुझे मेरी जन्मपत्री बता रही है क्या? आखिर मेरे बाबा की पूजापाठ, कथावाचन और शादीश्राद्ध की रोजरोज की आमदनी कहां जाएगी?’’

‘‘उई बाबा…’’ कह कर काजल वहां से भाग गई. सुंदर वहां ठगा सा खड़ा रह गया. स्कूल के और भी बच्चे थे. एक तगड़ा लड़का भी था, जो सरपंच का बेटा था. वह सुंदर से जलता था.

‘‘वह उड़नपरी है, उड़नपरी. वह किसी की नहीं होती. उस पर भी वह दलित है. कानून जानता है क्या? अंदर हो जाओगे और बाबाजी की जन्मपत्री, लगनपत्री, मरणपत्री सब की सब छिन जाएगी,’’ उस लड़के ने सुंदर की हंसी उड़ाई.

‘‘चल भाग यहां से. अपना चेहरा देख. काजल तो क्या, कोई काली भैंस भी तुझे घास नहीं डालेगी,’’ सुंदर ने जवाब दिया.

‘‘अच्छा, तो तुझे अपने चेहरे पर घमंड है?’’

शुरू हो गई दोनों में उठापटक. तगड़े लड़के ने सचमुच सुंदर का चेहरा भद्दा कर दिया. काजल को मालूम हुआ, तो दौड़ कर देखने आई और हिम्मत देने के बजाय हंसी उड़ा दी, ‘‘वाह, नाम सुंदर, मुंह छछूंदर?’’

सुंदर ने गुस्से में दौड़ कर उसे पकड़ा और कहा, ‘‘काजल, तुम भी… ठीक है, अब मैं शहर जाऊंगा और तुझे एकदम भूल जाऊंगा.

‘‘देखना, मैं हाकिम बन कर ही आऊंगा,’’ दुखी हो कर सुंदर अपने घर की ओर चल दिया.

यह सुन कर काजल भी रो पड़ी, ‘‘ऐसा मत करना सुंदर. एक तेरा ही तो सहारा है मुझे.’’ लेकिन, सुंदर ने उस का कहा नहीं सुना और अपने घर चला गया.

पंडित रमाकांत को जब सब मालूम हो गया, तो उन्होंने भी सुंदर को खूब पीटा, ‘‘एक तो दलित लड़की है, दूसरे तुम ब्राह्मण. क्या होगा बिरादरी में मेरा? कम से कम मुझ पर तो रहम कर. आखिर उम्र ही क्या है तेरी? ठहर, तेरे मामा को फोन करता हूं. वह तुझे ले जाएगा और मारमार कर हाकिम बनाएगा.’’

सुंदर को भी उस मामा के बारे में मालूम था कि वे काफी बेरहम हैं. उन की अब तक 2 बीवियां भाग चुकी हैं.

‘‘नहीं बाबा, नहीं. मुझे कहीं और भेज दो, पर मैं वहां नहीं जाऊंगा,’’ कह कर सुंदर रो पड़ा.

‘‘अरे, चुप हो जा. मैं समझ गया सबकुछ. अच्छा है… जब 2-4 थप्पड़ रोज पड़ेंगे न, तो भाग जाएगा काजल के इश्क का भूत,’’ उन्होंने सचमुच ही उसी रात फोन कर के अगले दिन उस के मामा को बुलवा लिया.

‘‘तुम बेफिक्र रहो. इसे मैं अच्छे स्कूल में पढ़ाऊंगा और खुद निगरानी करूंगा,’’ मामा ने सुंदर की मां से कहा.

‘‘देखना भैया, बच्चा कोमल है. मारना मत. और हां, पंडितजी की इसे हाकिम बनाने की इच्छा है,’’ मां ने हाथ जोड़ कर कहा.

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‘‘बनेगाबनेगा हाकिम, कैसे नहीं बनेगा. सुनी नहीं है वह कहावत कि मारमार कर हाकिम बनाना,’’ इतना कह कर मामा खुद रिकशा लेने चले गए और तुरंत ही रिकशा ले कर आ भी गए.

सामान रिकशे में रखा और मामाभांजे दोनों चल पड़े खगडि़या स्टेशन.

रास्ते में ही काजल का घर था. ‘काजल माफ करना. तेरा दिल दुखा कर मैं ने अच्छा नहीं किया. तुझे कभी नहीं भूलूंगा काजल,’ इतना सोचते ही सुंदर रो पड़ा.

‘‘चुप हो जा… नई दुलहन की तरह रो रहा है… पड़ेगा एक थप्पड़,’’ मामा ने लताड़ा.

सुंदर एकदम चुप. मामा ऐसे मूंछें ऐंठ रहे थे, जैसे सीताहरण के दौरान रावण ने सीता के रोने पर तेज हंसी के साथ मूंछें ऐंठी थीं.

गाड़ी मिली, चली और उतर गए बेगुसराय. फिर वहां से 10 किलोमीटर सवारी गाड़ी से और 5 किलोमीटर आगे मैदान बौराही, जहां न तो कोई स्कूल था, न ही कालेज.

काजल को जैसे ही पता चला कि सुंदर वाकई शहर चला गया है तो वह भी रो पड़ी और दौड़ कर मां का आंचल खींच कर ठुनकने लगी, ‘‘सुंदर शहर चला गया मां. मैं भी शहर में पढ़ूंगी.’’

‘‘अरी बावली, वे बाबू लोग हैं और तुम ठहरी दलित. फिर शहर जाने के लिए पैसे कहां हैं बेटी?’’ मां ने काजल को बड़े ही प्यार से समझाया.

‘‘मां, अब सुंदर पढ़लिख कर कब आएगा? मैं ने उस की हंसी उड़ाई थी. शायद वह मुझ से रूठ कर चला गया है,’’ काजल की आंखों से टपकते आंसू उस के कोमल गालों पर लकीर बनाने लगे.

‘‘बेटी, अगर तुम उस से लगाव रखती हो तो तुझे आंसू नहीं बहाने चाहिए. हंस कर दुआ करनी चाहिए कि वह पढ़लिख कर हाकिम बन कर ही तुझ से मिले,’’ मां ने आंचल से उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘क्या मालूम, कल वह हाकिम बन कर अंगरेजी में बातें करेगा. समझोगी तुम?

‘‘अच्छा है कि तुम इस गांव में ही मन लगा कर पढ़ो. हाकिम तो गांव में भी पढ़ कर हुए हैं लोग. हमारे पहले राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और दूसरे कई शख्स हैं, जिन्होंने गांव में ही पढ़ाई की थी. कल चलना, हैडमास्टर सर से कह कर स्कूल में दाखिला करा दूंगी.’’

काजल समझ गई और चहकते हुएबोली, ‘‘हां मां, मैं उसे दिखा दूंगी कि बड़ा बनने के लिए शहर में ही नहीं, बल्कि गांव में भी पढ़ाई की जा सकती है. शहर या वहां के स्कूल नहीं पढ़ते, पढ़ते हैं छात्र, जो गांव में भी होते हैं.’’

‘‘मेरी अच्छी बेटी,’’ इतना कह कर मां ने उस का मुंह चूम लिया.

दूसरे दिन ही मां ने काजल का दाखिला गांव के ही मिडिल स्कूल में करा दिया. उसे यह सुन कर और भी खुशी हुई कि मुफ्त में ड्रैस, किताबें और कौपियां  मिलेंगी.

‘‘साइकिल भी दूंगा… अगर मन से पढ़ेगी तो… साइकिल चलाना आता है न तुझे?’’ हैडमास्टर सर ने पूछा.

‘‘साइकिल भी चलाना सीख लूंगी,’’ काजल ने पूछा.

‘‘गुड गर्ल… कल से तुम स्कूल आना शुरू कर दो.’’

‘‘जी सर,’’ इतना कह कर काजल अपनी मां के साथ घर चली आई.

इधर सुंदर को मामा के घर गए महीनों बीत गए. सुंदर की मां ने फोन किया तो सुंदर के मामा बबलू ने कहा, ‘‘हांहां, खूब मन लगा कर पढ़ रहा है वह. बगैर हाकिम बनाए इसे

छोड़ूंगा क्या? पटना से ले कर दिल्ली तक के नेताओं का झोला टांगा है, अटैची ढोई है. वह सब कब काम आएगा?’’

सुंदर चूल्हा फूंक रहा था. दौड़ादौड़ा वह वहां आया और बोला, ‘‘मामा, मां से मेरी भी बात करा दो. कई दिन पहले उन्हें मैं ने अपने सपने में देखा था.’’

‘‘जब देख ही लिया था तो बातें क्यों न कर लीं? चल भाग. ऐसा जोर का घूंसा दूंगा कि तेरी बत्तीसी बाहर निकल जाएगी,’’ मामा बबलू बिगड़ गए.

सुंदर रो पड़ा और रोतेरोते ही फिर चूल्हा फूंकने लगा.

बाहर बंगले पर बबलू गए, तो सुंदर ने दौड़ कर फोन का चोगा उठा लिया. अब लगाए तो कौन नंबर? घर में तो फोन है नहीं.

मां हाट आई होंगी और एसटीडी से बातें की होंगी. वह ठगा सा चोगा रख कर रो पड़ा, ‘मुझे कहां फंसा दिया बाबा? यहां जब कोई स्कूल ही नहीं है, तो पढ़ूंगा क्या खाक?

‘दिनरात मामा की तीमारदारी करनी पड़ती है. घर से लाई किताबें भी खोलने नहीं देते. यह मामा नहीं कंस है, कंस…

‘मैं ने काजल को भी धोखा दिया है. यह सब मुझे उसी की सजा मिल रही है. बाबा, अपने बच्चे की खुशी क्यों नहीं देखी गई आप से?’ सोच कर सुंदर और भी उदास हो गया.

सपनों का जगह से कोई संबंध नहीं होता: समीक्षा भटनागर

रचनात्मकता जगह यानी कि गांव,छोटा शहर या बड़े शहर की मोहताज नहीं होती. छोटे शहर में रह रहे या छोटे शहर में जन्मा इंसान भी बड़े बड़े रचनात्मक काम करने के सपने देख और उन्हें पूरा कर सकता है. जी हां! यह कटु सत्य है. मशहूर बौलीवुड अदाकारा समीक्षा भटनागर को कत्थक नृत्य व संगीत में महारत हासिल है.जबकि समीक्षा भटनागर मूलतः देहरादून, उत्तराखंड की रहने वाली हैं.मगर उन्हे बचपन से ही नृत्य व संगीत का शौक रहा है. उनके इस शौक को बढ़ावा देने के मकसद से उनके पिता कृष्ण प्रताप भटनागर और मां कुसुम भटनागर देहरादून से दिल्ली रहने आ गए. जहां समीक्षा भटनागर ने अपनी कत्थक डांस अकादमी खोली. फिर दो वर्ष बाद अपनी प्रतिभा को पूरे विश्व तक पहुंचाने के मकसद से वह मुंबई आ गयी. सीरियल ‘एक वीर की अरदास: वीरा’ सहित कई सीरियलों व फिल्मों में वह अभिनय कर चुकी हैं. इतना ही नही बतौर निर्माता कुछ म्यूजिक वीडियो और एक लघु फिल्म ‘‘भ्रामक’’ बनायी,जिसे नेटफ्लिक्स पर काफी सराहा गया. इन दिनों वह ‘धूप छांव’ सहित करीबन पांच फिल्में कर रही हैं.

प्रस्तुत है समीक्षा भटनागर से हुई एक्सक्लूसिव बातचती के अंश:

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देहरादून जैसे छोटे शहर से मुंबई आकर फिल्म अभिनेत्री बनने की यात्रा कितनी आसान रही?

मेरी राय में हर लड़की को बड़े बड़े सपने देखने और उन्हे पूरा करने के लिए प्रयास करने का हक है. सपनों का जगह से कोई संबंध नही होता. जी हां! मैं मूलतः देहरादून , उत्तराखंड की रहने वाली हूं.लेकिन मैं हमेशा रचनात्मक क्षेत्र में ही काम करना चाहती थी. मुझे मेरे सपनों को पूरा करने में, मेरे पैशन को आगे बढ़ाने में मेरे पिता कृष्ण प्रताप भटनागर व मां कुसुम भटनागर ने पूरा सहयोग दिया. मैंने अपनी मां कुसुम भटनागर से ही कत्थक नृत्य सीखा है.वह बचपन से कत्थक नृत्य करती रही हैं. उनकी इच्छा थी कि मैं भी कत्थक नृत्य सीखते हुए आगे बढ़ूं. इसके अलावा नृत्य व संगीत मुझे ईश्वरीय देन है. मैं गाती भी हूं. मेरे परिवार ने हमेशा मेरे पैशन को बढ़ाने में सहयोग दिया. मैं भी अपने पैशन के प्रति पूरी लगन से जुड़ी रही हूं. मैं हमेशा कुछ न कुछ नया सीखती रहती हूं. आप मेरे इंस्टाग्राम पर जाएंगे,तो पाएंगे कि मैं कभी नृत्य सीख रही हूं तो कभी संगीत सीख रही हूं. कभी मैं उसके वीडियो बनाती हूं.

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एक वक्त वह आया, जब मेरे पैशन को उंची उड़ान मिल सके, इस सोच के साथ हमारा परिवार देहरादून से दिल्ली आ गया. दिल्ली आने के बाद मैंने काफी कुछ सीखा. कुछ समय बाद मैंने अहसास किया कि यदि मुझे रचनात्मक क्षेत्र में कुछ बेहतरीन काम करना है, तो दिल्ली की बनिस्बत मुंबई ज्यादा अच्छी जगह है. इसलिए मुंबई जाकर कोशिश करती हूं. यदि कुछ हो गया, तो ठीक है, नहीं से फिर वापस दिल्ली आ जाएंगे. मुंबई पहुंचते ही मुझे अच्छा रिस्पांस मिला. मुझे पहला टीवी सीरियल ‘‘एक वीर की अरदास: वीरा’’ करने का अवसर मिला.

दिल्ली में आपने अपनी डांस अकादमी खोली थी, जिसे दो वर्ष बाद आपने बंद कर दिया था?

वास्तव में दिल्ली में एक मशहूर अंतरराष्ट्रीय डांस स्कूल में मैं डांस टीचर के रूप में काम करती थी. उन्होंने मुझसे कहा कि मैं अपनी प्रायवेट क्लासेस भी शुरू कर सकती हूं. उससे पहले मैंने दिल्ली में ही शॉमक डावर से भी डांस सीखा था.क्योंकि मेरी समझ में आ गया था कि वर्तमान युग में सिर्फ क्लासिकल डांस से काम नहीं चलेगा. पश्चिमी डांस आना चाहिए. खैर, उसके बाद मैंने अपनी डांस अकादमी शुरू की, जिसे काफी अच्छा प्रतिसाद मिला. लोगों को नृत्य सिखाने की मेरी स्टाइल बहुत अच्छी थी, जो लोग काफी पसंद कर रहे थे.लेकिन कुछ दिन में ही मुझे लगा कि मेरी जिंदगी थमसी गयी है .इसके बादक्या? सिर्फ मैं हमेशा नृत्य सिखाती और गाती रहूंगी. जबकि मैं तो बचपन से अपने आपको सिनेमा के परदे पर देखना चाहती थी. मेरी तमन्ना रही है कि मेरी कला को पूरा विश्व देखे. और मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूं कि मैंने मुंबई आने का निर्णय लिया और यहां मुझे सफलता मिली.

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तो क्या आपको मुंबई में संघर्ष नहीं करना पड़ा था?

संघर्ष तो हर किसी को करना पड़ता है. मैं मुंबई अभिनय के क्षेत्र में कैरियर बनाने की मंशा लेकर ही आयी थी. अभिनय में और हाव भाव में मेरे अंदर का नृत्य कौशल तथा गायन मदद करता है. जब मैं मुमबई आयी तो मुझे अभिनय का ए बी सी डी नहीं पता था. इसलिए मुंबई पहुंचने के बाद मैंने शून्य से शुरूआत की. लगातार ऑडीशन दिए. रिजेक्ट हुई, पर उससे सीखा. बहुत सी असफलताएं मिली. पर मैंने ठान लिया था कि मुझे हार नहीं माननी है.

मुझे पहला सीरियल ‘‘एक वीर की अरदास:वीरा’’ करने का अवसर मिला. यह सीरियल मुझे अचानक मिला था. वास्तव में इस सीरियल के लिए मेरी जगह किसी दूसरी अभिनेत्री को अनुबंधित किया गया था. पर पता नहीं क्या हुआ,उ स अभिनेत्री ने यह सीरियल नहीं किया और यह मेरी झोली में आ गया. इससे मुझे काफी शोहरत मिली. यहां से मेरी एक खूबसूरत यात्रा शुरू हुई. कलाकार के तौर पर पहचान मिली. फिर ‘उतरन’ व ‘देवों के देव महादेव’ से भी जुड़ने का अवसर मिला. मैंने फिल्में की और लगातार व्यस्त हूं.

अक्सर देखा गया है कि टीवी सीरियल में शोहरत पाने के बाद कलाकार थिएटर की तरफ मुड़कर नहीं देखते. आपके सीरियल लोकप्रिय थे. फिर भी आपने थिएटर किया?

मुझे टीवी सीरियल मंे अभिनय करते देख लोग प्रशंसा कर रहे थे. लेकिन मैं अपने अभिनय से संतुष्ट नही हो रही थी.एक कलाकार के तौर पर मुझे लग रहा था कि मेरे अंदर इससे अधिक बेहतर परफार्म करने की क्षमता है.पर कहीं न कहीं गाइडेंस की जरुरत मुझे महसूस हुई. यह थिएटर में ही संभव था. थिएटर में मेरे निर्देशक मुझे डांटते थे. वह कहते थे कि एक ही लाइन को हर बार कुछ अलग तरह से बोलो. थिएटर करते हुए मेरे अंदर का आत्मविश्वास बढ़ा. वैसे भी मैं अपने आपको आगे बढ़ाने के लिए हमेशा प्रयास करती रहती हूं. मैं अपने स्किल पर काम करती रहती हूं. यही मेरी दिमागी सोच है कि मैं खुद अपने काम से कभी भी संतुष्ट नहीं होती. थिएटर पर मैने ‘‘रोशोमन ब्लूज’’ नामक नाटक के सत्तर से अधिक शो में अभिनय किया. उसके बाद मुझे फिल्में मिली.

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आपकी पहली फिल्म तो ‘‘ कलेंडर गर्ल’’ थी?

मैं अपनी पहली फिल्म ‘पोस्टर ब्वॉयज’ मानती हूं. वैसे मैंने ऑडीशन देने के बाद फिल्म ‘कलेंडर गर्ल’ में बिजनेस ओमन’ का छोटा सा कैमियो किया था.मेरा सपना तो सिल्वर स्क्रीन ही है. मगर मैंने शुरूआत में टीवी पर काम किया,क्योंकि फिल्म नगरी में मैं किसी को जानती नहीं थी. तो जैसे ही मुझे अपनी प्रतिभा को उजागर करने का अवसर मिला, मैंने रूकना उचित नही समझा. टीवी एक ऐसा माध्यम है, जहां आप जल्दी सीखते हैं. टीवी पर काम करने से आपकी परफार्मेंस को लेकर तुरंत लोगों की प्रतिक्रिया मिलती है, जिसे समझकर आप अपने अंदर सुधार ला सकते हैं. टीवी पर काम करते हुए हम संवाद को जल्द से जल्द याद करना सीख जाते हैं.हमारी संवाद अदायगी सुधर जाती है.

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फिल्म ‘पोस्टर ब्वाॅयज’से पहले आपने नए कलाकारों के साथ ही काम किया था.मगर फिल्म ‘पोस्टर ब्वॉयज’ में आपको पहली बार सनी देओल,बॉबी देओल, श्रेयश तलपड़े सहित कई दिग्गज कलाकारों के साथ अभिनय करने का अवसर मिला था. उस वक्त आपके मन में किसी तरह का डर था या नही?

जब मैं टीवी सीरियल कर रही थी,उस वक्त एक सहायक निर्देशक ने मुझसे कहा था, ‘मैडम आप खूबसूरत हैं और अभिनय में माहिर हैं.आपको फिल्में करनी चाहिए.’ उस वक्त मैंने उससे कहा था-‘‘मौका मिलने पर वह भी कर लूंगी.’’ फिर एक दिन उसी ने मुझे फोन करके ‘पोस्टार ब्वॉयज’ के लिए ऑडीशन करके भेजने के लिए कहा.उसने मेरे पास ऑडीशन की स्क्रिप्ट आयी और मैंने भी ऑडीशन करके भेज दिया था, पर मुझे यकीन नहीं था कि फिल्म मिल जाएगी.मगर शायद उस वक्त मेरे अच्छे दिन थे. जिस दिन मेरे पास ऑडीशन की स्क्रिप्ट आयी,उसके तीसरे दिन मैं इस फिल्म की शूटिंग कर रही थी. तो मैंने सोच लिया था कि अब मुझे आगे ही बढ़ना है.मैंने इस फिल्म के लिए काफी मेहनत की थी. पहले ही दिन मेरा चार पन्ने का दृष्य था.इस सीन में मैं फिल्म के अंदर बॉबी को डांटती हूं. इसके मास्टर सीन के फिल्मांकन में तालियां बज गयीं और मेरा आत्मविश्वास अचानक बढ़ गया.मैंने काफी मेहनत की. बॉबी सर ने काफी सपोर्ट किया. श्रेयश तलपड़े से अच्छी सलाह मिली. मुझे कभी इस बात का अहसास ही नहीं हुआ कि मैं बड़े कलाकारों के साथ काम कर रही हूं. फिल्म के प्रदर्शन के बाद मेरी व बॉबी सर के अभिनय की काफी तारीफें हुई.

लेकिन इस फिल्म को बाक्स आफिस पर जिस तरह की सफलता मिलनी चाहिए थी, नहींमिली.तब आपके मन में किस तरह के विचार आए थे?

जब मुझे फिल्म ‘‘पोस्टर ब्वायॅज’’ मिली थी,तो मुझे लगा था कि अब अच्छा समय आ गया. यहां से पूरा गेम बदल जाएगा. मेरे पास फिल्मों की लाइन लग जाएगी. मगर अफसोस फिल्म को उस तरह से सफलता नहीं मिली. मैंने सोचा कि ठीक है. नए सिरे से मेहनत करना है. थोड़ा सा बुरा लगा था. पर मैंने जिंदगी में रूकना सीखा नहीं था. इस फिल्म के बाद मुझे एक दूसरी फिल्म ‘‘हमने गांधी को मार दिया’’ मिली. बहुत अच्छी फिल्म थी. मेरे किरदार को लोगों ने काफी पसंद भी किया था. मगर इस फिल्म का सही ढंग से प्रचार नहीं किया गया था.लेकिन सबसे अच्छी बात यह रही कि फिल्म के निर्माता व निर्देशक नईम जी ने जो कहा वह करके दिखाया. उन्होंने अपने स्तर पर पूरी जान लगाकर फिल्म को तय तारीख को सिनेमाघर में पहुंचाया था. मेरे लिए यह खास फिल्म रही. लेकिन इन दिनों मुझे फिल्म ‘‘धूप छांव’’ के प्रदर्शन का बेसब्री से इंतजार है.

फिल्म ‘‘धूप छांव’’ किस तरह की फिल्म है. इस फिल्म में आपको क्या खास बात नजर आयी?

मैं हमेशा एक कलाकार के तौर पर खुद को एक्सप्लोर करती हूं. मैं इस बात में यकीन नहीं करती कि आप ऐसा कर लोगे तो आपको किरदार मिलने लगेंगे. एक दिन निर्देशक हेमंत सरन ने मुझे इस फिल्म का आफर दिया, जिसमें पारिवारिक मूल्यों की बात की गयी है. मुझे फिल्म का विषय पसंद आएगी. रिश्तों की जो अहमियत खत्म हो गयी है, उस पर यह फिल्म बात करती है. जब आप संयुक्त परिवार या अपने परिवार के साथ रहते हैं,तब आपको अहसास होता है कि परिवार कितनी अहमियत रखता है और आप बेवजह बाहर खुशियां तलाश रहे थे.फिल्म ‘धूप छांव’ में भाई, पति पत्नी के रिश्तों की बात की गयी है. यदि पति नही है,तो पत्नी किस तरह जिंदगी जी रही है, उसकी बात की गयी है.इसमें जीवन मूल्यों को अहमियत दी गयी है. इसमें भावनाओं का सैलाब है.

फिल्म ‘धूप छांव’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगी?

फिल्म ‘‘धूप छांव’’ दो भाईयों की कहानी है. बडे़ भाई के किरदार में अहम शर्मा हैं और उनकी पत्नी के किरदार में मैं हूं. कहानी को लेकर ज्यादा नहीं बता सकती. लेकिन इस फिल्म में मेरे किरदार में काफी वेरिएशन देखने को मिलेगा. एक कालेज जाने वाली लड़की से लेकर एक कालेज जाने वाले बीस वर्ष के बेटे की मां तक का मेरा किरदार है. कालेज जाने वाली लड़की,शादी हुई, बच्चे पैदा हुए,वह बड़े हुए,फिर वह 15 वर्ष के हुए.फिर 21 वर्ष के हैं और फिर हमने उनकी शादी भी कराई. तो मेरे किरदार में इतनी बड़ी यात्रा है.इसमें कई घटनाक्रम कमाल के हैं.मुझे अभिनय करते हुए अहसास हुआ कि यह कुछ कमाल का काम कर रही हूं. सिर्फ ग्लैमरस किरदार नहीं है.जरुरत है कि आपके चेहरे व आपके किरदार के साथ दर्शक जुड़ सकें.

इसके अलावा कौन सी फिल्में कर रही हैं?

‘धूप छांव’ के अलावा मैंने एक फिल्म जॉगीपुर’ की है. इसे हमने भारत बांगलादेश की सीमा पर फिल्माया है.इसमें कुछ राजनीतिक बातों के अलावा रिश्तों पर बात की गसी है. मैंने इसमें वकील का किरदार निभाया है,जो कि अपने भाई के लिए लड़ती है..इसमें मेरे साथ जावेद जाफरी भी हैं.वह भी वकील हैं.

एक फिल्म ‘‘ द एंड’’ की है, जो कि हिंदी व पंजाबी दो भाषाओं में बनी है.इस फिल्म में मेरे साथ देव शर्मा, दिव्या दत्ता, दीपसिंह राणा भी हैं.इसके अलावा एक हास्य प्रधान वेब सीरीज ‘जो मेरे आका’, जिसमें मेरे साथ श्रेयष तलपड़े व कृष्णा अभिषेक हैं.इसके अलावा कुछ और फिल्में हैं. मैंने एक फिल्म की षूटिंग भोपाल में की है.इस फिल्म का नाम अभी तक तय नहीं हुआ है.मगर मैने इस फिल्म जो किरदार निभाया है, वैसा किरदार अब तक नहीं किया है. इस किरदार के बारे में सुनकर या इस फिल्म को देखकर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाएंगे.इसके अलावा ‘‘भ्रामक’’ के बाद अब दूसरी लघु फिल्म भी बनाने वाली हूं.

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भ्रामक’ की विषयवस्तु की प्रेरणा कहां से मिली थी?

देखिए, तेरह मिनट की फिल्म थ्रिलर ही बन सकती है.तो हम सोचते रहे और अचानक यह कहानी दिमाग में आ गयी,जिसका मेरे निजी अनुभव से दूर दूर तक कोई वास्ता नही है. इसकी कहानी इतनी है कि उसके पति की मृत्यू को अरसा बीत चुका है,पर वह इस सच को स्वीकार नही कर पा रही है.उसका मानना है कि उसका पति अभी भी उसके साथ ही रह रहा है.एक अजीब सी मानसिक स्थिति में रह रही इस महिला के किरदार के जरिए मैने तमाम भावनात्मक पहलुओं को परदे परजीने का प्रयास किया है. यह एक काल्पनिक कहानी है.

हाल ही में आप दिल्ली की ‘लव कुश रामलीला’ में सीता के किरदार में नजर आयी थीं?

पहली बात तो मुझे किसी भी माध्यम से कोई परहेज नही है.थिएटर कर चुकने के कारण मुझे स्टेज या लाइव ऑडियंश का कोई खौफ नहीं था.मैं तो सीता का किरदार निभाने को लेकर काफी उत्साहित थी. मुझे लगा कि ‘रामलीला’में काम करने पर कुद अलग सीखने को मिलेगा.कुछ अलग तरह का एक्सपोजर मिलेगा.और वैसा ही हुआ.मुझे गर्व है कि मैने सीता मां का किरदार निभाया और लोगों का प्यार मिला. मेरे इंस्टाग्राम पर लोगों ने कमेंट किया है कि उन्हे दीपिका चिखालिया के बाद मैं सीता के किरदार में काफी पसंद आयी.मेरे लिए यह उपलब्धि है.

आपको कत्थक नृत्य में महारत हासिल है.यह अभिनय में किस तरह से मदद करता है?

क्लासिकल डांस की खूबी यह है कि वह आपको बहुत ‘ग्रेस’ दे देता है. आपके शरीर का ग्रेस किसी भी किरदार में ढलने में काफी मदद करता है. क्लासिकल नृत्य सीखने के बाद चेहरे पर भाव लाना बहुत सहज हो जाता है.बाॅडी लैंगवेज पर कंट्रोल बहुत तगड़ा हो जाता है. उसे जैसे चाहें वैसे मोड़ सकते हैं. इसी तरह मेरी गायन कला भी मदद करती है.इससे मेरी वॉयस मोल्युशन अच्छी हो जाती है.

आपने अपने गायन स्किल के ही चलते म्यूजिक वीडियो बनाए.पर कत्थक डांस के लिए कुछ करने वाली हैं?

सोशल मीडिया पर मैं अपने कत्थक नृत्य के वीडियो डालती रहती हूं. इसके अलावा मेरी एक फिल्म ‘‘धड़के दिल बार बार’’ है, जिसमें मेरा किरदार एक क्लासिक डां टीचर का है, जो कि बच्चों को क्लासिकल डांस सिखाती है.फिल्म की शुरूआत ही की मेरे कत्थक डांस के साथ होती है. इसके अलावा मैं कत्थक पर कुछ खास वीडियो भी बनाने वाली हूं.

कोई ऐसा किरदार जिसे आप निभाना चाहती हों?

मैं हमेशा अलग तरह के किरदार ही निभाती आयी हूं. मैं प्रियंका चोपड़ा की बहुत बड़ी प्रशंसक हूं. मैंने उनकी फिल्म ‘‘बर्फी ’’ देखी थी. इसमें उनका अभिनय सामान्य अभिनय नहीं था. इसी तरह मुझे ‘मर्दानी’ पसंद हैं.मैं भी जिमनास्टिक और मार्षल आर्ट में ट्रेनिंग ले रखी है. बाइक चला लेती हूं. मैंने कई चीजों का प्रशिक्षण ले रखा है.पर मुझे आर्मी पृष्ठभूमि वाला किरदार निभाना है. देशभक्ति वाला किरदार निभाना है.

GHKKPM: पाखी ने की ऐसी हरकत, भवानी ने की सरेआम पिटाई!

‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) पाखी का किरदार निभाने वाली ऐश्वर्या शर्मा सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. आए दिन एक्ट्रेस की इंस्टा रील वायरल होती रहती है. वह अक्सर फनी वीडियोज फैंस के साथ शेयर करती हैं. अब एक वीडियो सामने आया है, जिसमें पाखी की पिटाई हो रही है. आइए बताते हैं, क्या इस वीडियो के बारे में.

पाखी (Pakhi) ने सोशल मीडिया पर अपनी एक रील शेयर की है. इस रील में पाखी ‘नाच मेरी जान’ गाने पर जमकर डांस कर रही हैं. इस गाने पर पाखी और भवानी ठुमके लगाते हुए नजर आ रहे हैं.

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इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि पाखी और उसकी बड़ी मामी नोरा फतेही के इस ‘नाच मेरी जान’ गाने पर थिरक रहे होते हैं. इस बीच गाने में नाच शब्द बार बार आता है. ऐसे में पाखी नाच शब्द पर ऐसे ठुमके लगती है कि भवानी परेशान हो जाती हैं. उसके बाद वो पाखी के सिर पर जोर से मारती हैं. इसके बाद वो पाखी से कहती हैं, ‘अरे माइकल जैक्सन. रुक जा कि नागमढ़ि लेकर ही जाएगी पूरी.

 

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‘गुम है किसी के प्यार में’ में इन दिनों  दिखाया जा रहा है कि विराट का गुस्सा देखकर भवानी भी सई की क्लास लगाती है. अश्विनी भी सई को ही गलत बताती है. अश्विनी और भवानी कहती है कि विराट और सई का तलाक हो चुका है. ऐसे में उसका चौहान परिवार से कोई नाता नहीं है. लेकिन सई चौहान परिवार छोड़ने से इंकार कर देती है.

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शो में आप देखेंगे कि विराट की तबियत खराब हो जाएगी. अश्विनी विराट के लिए फिजियोथेरपिस्ट खोजेगी. तो दूसरी तरफ सई फिजियोथेरपिस्ट बनकर विराट का इलाज करेगी. ऐसे में चौहान परिवार भी उसका साथ देगा.

सही समय पर

कमलेश के साथ मैं ने विवाहित जिंदगी के 30 साल गुजारे थे, लेकिन कैंसर ने उसे हम से छीन लिया. सिर्फ एक रिश्ते को खो कर मैं बेहद अकेला और खाली सा हो गया था.

ऊब और अकेलेपन से बचने को मैं वक्तबेवक्त पार्क में घूमने चला जाता. मन की पीड़ा को भुलाने के लिए कोई कदम उठाना, उस से छुटकारा पा लेने के बराबर नहीं होता है.

आजकल किसी के पास दूसरे के सुखदुख को बांटने के लिए समय ही कहां है. हर कोई अपनी जिंदगी की समस्याओं में पूरी तरह उलझा हुआ है. मेरे दोनों बेटे और बहुएं भी इस के अपवाद नहीं हैं. मैं अपने घर में खामोश सा रह कर दिन गुजार रहा था.

कमलेश से बिछड़े 2 साल बीत चुके थे. एक शाम पापा के दोस्त आलोकजी मुझे हार्ट स्पैशलिस्ट डाक्टर नवीन के क्लीनिक में मिले. उन की विधवा बेटी सरिता उन के साथ थी.

बातोंबातों में मालूम पड़ा कि आलोकजी को एक दिल का दौरा 4 महीने पहले पड़ चुका था. उन की बूढ़ी, बीमार आंखों में मुझे जिंदगी खो जाने का भय साफ नजर आया था.

उन्हें और उन की बेटी सरिता को मैं ने उस दिन अपनी कार से घर तक छोड़ा. तिवारीजी ने अपनी जिंदगी के दुखड़े सुना कर अपना मन हलका करने के लिए मुझे चाय पिलाने के बहाने रोक लिया था.

कुछ देर उन्होंने मेरे हालचाल पूछे और फिर अपने दिल की पीड़ा मुझ से बयान करने लगे, ‘‘मेरा बेटा अमेरिका में अपनी पत्नी व बच्चों के साथ ऐश कर रहा है. वह मेरी मौत की खबर सुन कर भी आएगा कि नहीं मुझे नहीं पता. तुम ही बताओ कि सरिता को मैं किस के भरोसे छोड़ कर दुनिया से विदा लूं?

‘‘शादी के साल भर बाद ही इस का पति सड़क दुर्घटना में मारा गया था. मेरे खुदगर्ज बेटे को जरा भी चिंता नहीं है कि उस की बहन पिछले 24 साल से विधवा हो कर घर में बैठी है. उस ने कभी दिलचस्पी…’’

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तभी सरिता चायनाश्ते की ट्रे ले कर कमरे में आई और अपने पापा को टोक दिया, ‘‘पापा, भैया के रूखेपन और मेरी जिंदगी की कहानी सुना कर मनोज को बोर मत करो. मैं टीचर हूं और अपनी देखभाल खुद बहुत अच्छी तरह से कर सकती हूं.’’

चाय पीते हुए मैं ने उस से सवाल पूछ लिया था, ‘‘सरिता, तुम ने दोबारा शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘मेरे जीवन में जीवनसाथी का सुख लिखा होता तो मैं विधवा ही क्यों होती,’’ उस ने लापरवाही से जवाब दिया.

‘‘यह तो कोई दलील नहीं हुई. जिंदगी में कोई हादसा हो जाता है तो इस का मतलब यह नहीं कि फिर जिंदगी को आगे बढ़ने का मौका ही न दिया जाए.’’

‘‘तो फिर यों समझ लो कि पापा की देखभाल की चिंता ने मुझे शादी करने के बारे में सोचने ही नहीं दिया. अब किसी और विषय पर बात करें?’’

उस की इच्छा का सम्मान करते हुए मैं ने बातचीत का विषय बदल दिया था.

मैं उन के यहां करीब 2 घंटे रुका. सरिता बहुत हंसमुख थी. उस के साथ गपशप करते हुए समय के बीतने का एहसास ही नहीं हुआ था.

सरिता से मुलाकात होने के बाद मेरी जिंदगी उदासी व नीरसता के कोहरे से बाहर निकल आई थी. मैं हर दूसरेतीसरे दिन उस के घर पहुंच जाता. हमारे बीच दोस्ती का रिश्ता दिन पर दिन मजबूत होता गया था.

कुछ हफ्ते बाद आलोकजी की बाईपास सर्जरी हुई पर वे बेचारे ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहे. हमारी पहली मुलाकात के करीब 6 महीने बाद उन्होंने जब अस्पताल में दम तोड़ दिया तब मैं भी सरिता के साथ उन के पास खड़ा था.

‘‘मनोज, सरिता का ध्यान रखना. हो सके तो इस की दूसरी शादी करवा देना,’’ मुझ से अपने दिल की इस इच्छा को व्यक्त करते हुए उन की आवाज में जो गहन पीड़ा व बेबसी के भाव थे उन्हें मैं कभी नहीं भूल सकूंगा.

आलोकजी के देहांत के बाद भी मैं सरिता से मिलने नियमित रूप से जाता रहा. हम दोनों ही चाय पीने के शौकीन थे, इसलिए उस से मिलने का सब से अच्छा बहाना साथसाथ चाय पीने का था.

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मेरी जिंदगी अच्छी तरह से आगे बढ़ रही थी कि एक दिन मेरे दोनों बेटे गंभीर मुद्रा बनाए मेरे कमरे में मुझ से मिलने आए थे.

‘‘पापा, आप कुछ दिनों के लिए चाचाजी के यहां रह आओ. जगह बदल जाने से आप का मन बहल जाएगा,’’ बेचैन राजेश ने बातचीत शुरू की.

‘‘मुझे तंग होने को उस छोटे से शहर में नहीं जाना है. वहां न बिजली है न पानी. अगर मन किया तो तुम्हारे चाचा के घर कभी सर्दियों में जाऊंगा,’’ मैं ने अपनी राय उन्हें बता दी.

राजेश ने कुछ देर की खामोशी के बाद आगे कहा, ‘‘कोई भी इंसान अकेलेपन व उदासी का शिकार हो गलत फैसले कर सकता है. पापा, हमें उम्मीद है कि आप कभी ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जो समाज में हमें गरदन नीचे कर के चलने पर मजबूर कर दे.’’

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‘‘क्या मतलब हुआ तुम्हारी इस बेसिरपैर की बात का? तुम ढकेछिपे अंदाज में मुझ से क्या कहना चाह रहे हो?’’ मैं ने माथे में बल डाल लिए.

रवि ने मेरा हाथ पकड़ कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘हम मां की जगह किसी दूसरी औरत को इस घर में देखना कभी स्वीकार नहीं कर पाएंगे, पापा.’’

‘‘पर मेरे मन में दूसरी शादी करने का कोई विचार नहीं है फिर तुम इस विषय को क्यों उठा रहे हो?’’ मैं नाराज हो उठा था.

‘‘वह चालाक औरत आप की परेशान मानसिक स्थिति का फायदा उठा कर आप को गुमराह कर सकती है.’’

‘‘तुम किस चालाक औरत की बात कर रहे हो?’’

‘‘सरिता आंटी की.’’

‘‘पर वह मुझ से शादी करने की बिलकुल इच्छुक नहीं है.’’

‘‘और आप?’’ राजेश ने तीखे लहजे में सवाल किया.

‘‘वह इस समय मेरी सब से अच्छी दोस्त है. मेरी जिंदगी की एकरसता को मिटाने में उस ने बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है,’’ मैं ने धीमी आवाज में उन्हें सच बता दिया.

‘‘पापा, आप खुद समझदार हैं और हमें विश्वास है कि हमारे दिल को दुखी करने वाला कोई गलत कदम आप कभी नहीं उठाएंगे,’’ राजेश की आंखों में एकाएक आंसू छलकते देख मैं ने आगे कुछ कहने के बजाय खामोश रहना ही उचित समझा था.

अगली मुलाकात होने पर जब मैं ने सरिता को अपने बेटों से हुई बातचीत की जानकारी दी तो वह हंस कर बोली थी, ‘‘मनोज, तुम मेरी तरह मस्त रहने की आदत डाल लो. मैं ने देखा है कि जो भी अच्छा या बुरा इंसान की जिंदगी में घटना होता है, वह अपने सही समय पर घट ही जाता है.’’

‘‘तुम्हारी यह बात मेरी समझ में ढंग से आई नहीं है, सरिता. तुम कहना क्या चाह रही हो?’’ मेरे इस सवाल का जवाब सरिता ने शब्दों से नहीं बल्कि रहस्यपूर्ण अंदाज में मुसकरा कर दिया था.

सप्ताह भर बाद मैं शाम को पार्क में बैठा था तब तेज बारिश शुरू हो गई. बारिश करीब डेढ़ घंटे बाद रुकी और मैं पूरे समय एक पेड़ के नीचे खड़ा भीगता रहा था.

रात होने तक शरीर तेज बुखार से तपने लगा और खांसीजुकाम भी शुरू हो गया. 3 दिन में तबीयत काफी बिगड़ गई तो राजेश और रवि मुझे डाक्टर को दिखाने ले गए.

उन्होंने चैकअप कर के बताया कि मुझे निमोनिया हो गया है और उन की सलाह पर मुझे अस्पताल में भरती होना पड़ा.

तब तक दोनों बहुएं औफिस जा चुकी थीं. राजेश और रवि दोनों गंभीर मुद्रा में यह फैसला करने की कोशिश कर रहे थे कि मेरे पास कौन रुके. दोनों को ही औफिस जाना जरूरी लग रहा था.

तब मैं ने बिना सोचविचार में पड़े सरिता को फोन कर अस्पताल में आने के लिए बड़े हक से कह दिया था.

सरिता को बुला लेना मेरे दोनों बेटों को अच्छा तो नहीं लगा पर मैं ने साफ नोट किया कि उन की आंखों में राहत के भाव उभरे थे. अब वे दोनों ही बेफिक्र हो कर औफिस जा सकते थे.

कुछ देर बाद सरिता उन दोनों के सामने ही अस्पताल आ पहुंची और आते ही उस ने मुझे डांटना शुरू कर दिया, ‘‘क्या जरूरत थी बारिश में इतना ज्यादा भीगने की? क्या किसी रोमांटिक फिल्म के हीरो की तरह बारिश में गाना गा रहे थे.’’

‘‘तुम्हें तो पता है कि मैं ट्रेजडी किंग हूं, रोमांटिक फिल्म का हीरो नहीं,’’ मैं ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘तुम्हारे पापा से बातों में कोई नहीं जीत सकता,’’ कहते हुए वह राजेश और रवि की तरफ देख कर बड़े अपनेपन से मुसकराई और फिर कमरे में बिखरे सामान को ठीक करने लगी.

‘‘बिलकुल यही डायलाग कमलेश हजारों बार अपनी जिंदगी में मुझ से बोली होगी,’’ मेरी आंखों में अचानक ही आंसू भर आए थे.

तब सरिता भावुक हो कर बोली, ‘‘यह मत समझना कि दीदी नहीं हैं तो तुम अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर सकते हो. समझ लो कि कमलेश दीदी ने तुम्हारी देखभाल की जिम्मेदारी मुझे सौंपी है.’’

‘‘तुम तो उस से कभी मिली ही नहीं, फिर यह जिम्मेदारी तुम्हें वह कब सौंप गई?’’

‘‘वे मेरे सपने में आई थीं और अब अपने बेटों के सामने मुझ से डांट नहीं खाना चाहते तो ज्यादा न बोल कर आराम करो,’’ उस की डांट सुन कर मैं ने किसी छोटे बच्चे की तरह अपने होंठों पर उंगली रखी तो राजेश और रवि भी मुसकरा उठे थे.

मेरे बेटे कुछ देर बाद अपनेअपने औफिस चले गए थे. शाम को दोनों बहुएं मुझ से मिलने औफिस से सीधी अस्पताल आई थीं. सरिता ने फोन कर के उन्हें बता दिया था कि मेरे लिए घर से कुछ लाने की जरूरत नहीं है क्योंकि मेरे लिए खाना तो वही बना कर ले आएगी.

मैं 4 दिन अस्पताल में रहा था. इस दौरान सरिता ने छुट्टी ले कर मेरी देखभाल करने की पूरी जिम्मेदारी अकेले उठाई थी. मेरे बेटेबहुओं को 1 दिन के लिए भी औफिस से छुट्टी नहीं लेनी पड़ी थी. सरिता और उन चारों के बीच संबंध सुधरने का शायद यही सब से अहम कारण था.

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अस्पताल छोड़ने से पहले मैं ने सरिता से अचानक ही संजीदा लहजे में पूछा था, ‘‘क्या हमें अब शादी नहीं कर लेनी चाहिए?’’

‘‘अभी ऐसा क्या खास घटा है जो यह विचार तुम्हारे मन में पैदा हुआ है?’’ उस ने अपनी आंखों में शरारत भर कर पूछा.

‘‘तुम ने मेरी देखभाल वैसे ही की है जैसे एक पत्नी पति की करती है. दूसरे, मेरे बेटेबहुएं तुम से अब खुल कर हंसनेबोलने लगे हैं. मेरी समझ से यह अच्छा मौका है उन्हें जल्दी से ये बता देना चाहिए कि हम शादी करना चाहते हैं.’’

सरिता ने आंखों में खुशी भर कर कहा, ‘‘अभी तो तुम्हारे बेटेबहुओं के साथ मेरे दोस्ताना संबंधों की शुरुआत ही हुई है, मनोज. इस का फायदा उठा कर मैं पहले तुम्हारे घर आनाजाना शुरू करना चाहती हूं.’’

‘‘हम शादी करने की अपनी इच्छा उन्हें कब बताएंगे?’’

‘‘इस मामले में धैर्य रखना सीखो, मेरे अच्छे दोस्त,’’ उस ने पास आ कर मेरा हाथ प्यार से पकड़ लिया, ‘‘कल तक वे सब मुझे नापसंद करते थे, पर आज मेरे साथ ढंग से बोल रहे हैं. कल को हमारे संबंध और सुधरे तो शायद वे स्वयं ही हम दोनों पर शादी करने को दबाव डालेंगे.’’

‘‘क्या ऐसा कभी होगा भी?’’ मेरी आवाज में अविश्वास के भाव साफ झलक रहे थे.

‘‘जो होना होता है सही समय आ जाने पर वह घट कर रहता है,’’ उस ने मेरा हाथ होंठों तक ला कर चूम लिया था.

‘‘पर मेरा दिल…’’ मैं बोलतेबोलते झटके से चुप हो गया.

‘‘हांहां, अपने दिल की बात बेहिचक बोलो.’’

‘‘मेरा दिल तुम्हें जीभर कर प्यार करने को करता है,’’ अपने दिल की बात बता कर मैं खुद ही शरमा गया था.

पहले खिलखिला कर वह हंसी और फिर शरमाती हुई बोली, ‘‘मेरे रोमियो, अपनी शादी के मामले में हम बच्चों को साथ ले कर चलेंगे. जल्दबाजी में हमें ऐसा कुछ नहीं करना है जिस से उन का दिल दुखे. मेरी समझ से चलोगे तो ज्यादा देर नहीं है जब वे चारों ही मुझे अपनी नई मां का दर्जा देने को खुशीखुशी तैयार हो जाएंगे.’’

‘‘तुम सचमुच बहुत समझदार हो, सरिता,’’ मैं ने दिल से उस की तारीफ की.

‘‘थैंक यू,’’ उस ने आगे झुक कर मेरे होंठों को पहली बार प्यार से चूमा तो मेरे रोमरोम में खुशी की लहर दौड़ गई थी…

सही समय की शुरुआत हो चुकी थी.

केले की खेती

Writer- डा. विनय कुमार सिंह, डा. डीके सिंह

हमारे यहां केला एक प्रमुख लोकप्रिय पौष्टिक खाद्य फल है. पके केलों का प्रयोग फसलों के रूप में और कच्चे केले का प्रयोग सब्जी व आटा बनाने में होता है. भारत लगभग 16.8 मिलियन टन के वार्षिक उत्पाद के साथ केले के उत्पादन में दुनिया का नेतृत्व करता है.

यह पोटैशियम, फास्फोरस, कैल्शियम और मैग्नीशियम का भी एक अच्छा स्रोत है. फल वसा और कोलैस्ट्रौल से मुक्त, पचाने में आसान है.

केले के पाउडर का उपयोग पहले बच्चे के भोजन के रूप में किया जाता है. केले के इन सभी गुणों के कारण व सस्ता होने के चलते इस की मांग बाजार में सालभर बनी रहती है.

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जलवायु

केले की फसल के लिए अनिवार्य रूप से आर्द्र और गरम जलवायु की जरूरत होती है. इस के उत्पादन के लिए आमतौर पर 10 डिगरी सैल्सियस न्यूनतम और 40 डिगरी सैल्सियस उच्च आर्द्रता के तापमान को सही माना गया है. एक विशेष अवधि के लिए जब तापमान 24 डिगरी सैल्सियस के ऊपर हो जाता है, तो पैदावार ज्यादा होती है.

भूमि

केले की फसल के लिए मिट्टी का चयन करने में मृदा की गहराई और जल निकासी

2 सब से महत्त्वपूर्ण घटक हैं. इस के अच्छे उत्पादन के लिए खेत में मिट्टी 0.5 से 1 मीटर गहरी होनी चाहिए. मृदा में नमी बनाए रखने, उपजाऊ और्गैनिक पदार्थ की प्रचुरता सहित इस का पीएच मान 6.5 तक होना चाहिए.

प्रजातियां

जी-9 (टिशू कल्चर)

इस प्रजाति की सब से बड़ी खासीयत है कि इस पर पनामा बीमारी का प्रकोप कम होता है. इस के पौधे छोटे और मजबूत होते हैं, जिस से आंधीतूफान में टूट कर नष्ट होने की संभावना बहुत कम होती है. इस के अलावा केले की दूसरी प्रजाति 14 से 15 महीने में तैयार होती है, वहीं जी-9 प्रजाति 9 से 10 महीने में तैयार हो जाती है.

एक हेक्टेयर में 3,086 पौधे लगते हैं. इस के उत्पादन में तकरीबन 1.25 लाख रुपए तक की लागत लगती है. अगर इस की खेती से मुनाफे की बात करें, तो तकरीबन साढ़े 3 लाख से 4 लाख रुपए तक का मुनाफा मिल जाता है.

रसथाली

केले की यह प्रजाति तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक और बिहार में उगाई जाती है. यह मध्यम लंबी किस्म है. स्वादिष्ठ होने के साथसाथ इस की खुशबू भी अच्छी होती है.

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रोबस्टा

यह एक अर्धलंबी किस्म है, जो तमिलनाडु के अधिकांश क्षेत्रों में और कर्नाटक, आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में उगाई जाती है. अच्छे विकसित फल बड़े आकार के गुच्छे पैदा करती है, जिस से उपज ज्यादा होती है. जो वजन में 25 से 30 किलोग्राम होती है. मिठास व खुशबू भी अच्छी होती है. लीफ स्पौट रोग के प्रति अति संवेदनशील होती है.

ड्वार्फ कैवेंडिश

केले की यह किस्म गुजरात, बिहार और पश्चिम बंगाल के राज्यों में व्यावसायिक किस्म है. इस के औसतन गुच्छे का वजन लगभग 15 से 25 किलोग्राम होता है.

खेत की तैयारी

समतल खेत की 4-5 गहरी जुताई कर के भुरभुरा बना लें. इस के बाद लाइनों में रोपण के लिए गड्ढे बनाएं. 50×50×50 सैंटीमीटर लंबा, चौड़ा और गहरा गड्ढा खोदें.

केले के लिए गड्ढे मई के माह में खोद कर 15-20 दिन खुला छोड़ दें, जिस से धूप आदि अच्छी तरह लग जाए. इस के बाद 20-25 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, 50 ईसी क्लोरोपाइरीफास 3 मिलीलिटर व 5 लिटर पानी और आवश्यकतानुसार ऊपर की मिट्टी के साथ मिला कर गड्ढे को भर देना चाहिए व गड्ढों में पानी लगा देना चाहिए.

पौध रोपण

मईजून या सितंबरअक्तूबर के महीने में पौध रोपण किया जाता है. केले की रोपाई पट्टा डबल लाइन विधि के आधार पर की जाती है. इस विधि में दोनों लाइनों के बीच की दूरी 0.90 से 1.20 मीटर है, जबकि पौधे से पौधे की दूरी 1.2 से 2 मीटर है.

इस रिक्तता के कारण इंटरकल्चरल आपरेशन आसानी से किए जा सकते हैं. अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए रोपण 1.2×1.5 मीटर पर किया जाता है. रोपण के तुरंत बाद खेत की सिंचाई कर देनी चाहिए.

खाद व उर्वरक

भूमि की उर्वरता के अनुसार प्रति पौधा 300 ग्राम नाइट्रोजन, 100 ग्राम फास्फोरस व 300 ग्राम पोटाश की जरूरत पड़ती है. फास्फोरस की आधी मात्रा पौधा रोपते समय और बाकी बची आधी मात्रा रोपाई के बाद देनी चाहिए. नाइट्रोजन की पूरी मात्रा 5 भागों में बांट कर अगस्त, सितंबर, अक्तूबर व फरवरी और अप्रैल में देनी चाहिए. पोटाश की पूरी मात्रा 3 भागों में बांट कर सितंबर, अक्तूबर व अप्रैल के महीने में देनी चाहिए.

केले के खेत में नमी हमेशा बनी रहनी चाहिए. पौध रोपण के बाद सिंचाई करना बहुत जरूरी है. जरूरत के मुताबिक ग्रीष्म ऋतु में 7 से 10 दिन और सर्दी में 12 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए.

मार्च से जून महीने तक केले के थालों में पौलीथिन बिछा देने से नमी सुरक्षित रहती है, सिंचाई की मात्रा भी आधी रह जाती है. साथ ही, फलोत्पादन और गुणवत्ता में वृद्धि होती है.

रोग पर नियंत्रण

केले की फसल में कई रोग कवक और विषाणुओं के द्वारा लगते हैं. जैसे पर्ण चित्ती या लीफ स्पौट, गुच्छा शीर्ष या बंची टौप, एंथ्रेक्नोज व तना गलन, हर्ट राट आदि लगते हैं.

इन रोग के उपचार के लिए फंगल संक्रमण के मामले में 1 फीसदी बोर्डो, कौपर औक्सीक्लोराइड या कार्बंडाजिम के साथ छिड़काव करने से सकारात्मक नतीजे मिले हैं.

रोगमुक्त रोपण सामग्री का उपयोग किया जाना चाहिए और संक्रमित पौधे को नष्ट कर दिया जाना चाहिए. इन के नियंत्रण के लिए कौपर औक्सीक्लोराइड 0.3 फीसदी का छिड़काव करना चाहिए या मोनोक्रोटोफास 1.25 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के साथ छिड़काव करना चाहिए.

कीट नियंत्रण

केले में कई कीट लगते हैं. जैसे पत्ती बीटिल (बनाना बीटिल) और बीटिल आदि लगते हैं. नियंत्रण के लिए मिथाइल औडीमेटान 25 ईसी 1.25 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल कर करें या कार्बोफ्यूरान या फोरेट या थिमेट 10जी दानेदार कीटनाशी प्रति पौधा 25 ग्राम प्रयोग करें.

कीटों को नियंत्रित करने के लिए 0.04 फीसदी एंडोसल्फान, 0.1 फीसदी कार्बारिल या 0.05 फीसदी मोनोक्रोटोफास के उपयोग उपयुक्त इंटरकल्चरल आपरेशनों का चयन काफी हद तक प्रभावी पाया गया है.

फल की कटाई

रोपण के 12-15 महीने के भीतर फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है. केले की मुख्य कटाई का मौसम सितंबर से अप्रैल महीने तक होता है.

विभिन्न प्रकार की मिट्टी, अनुकूल मौसम के हालात और ऊंचाई के आधार पर फूल आने के तकरीबन 90-150 दिनों के बाद परिपक्वता प्राप्त करते हैं.

जब फलियां की चारों घरियां तिकोनी न रह कर गोलाई ले कर पीली होने लगें, तो फल पूरी तरह से विकसित हो कर पकने लगते हैं.

इस दशा में तेज धार वाले चाकू आदि के द्वारा घार को काट कर पौधे से अलग कर

लेना चाहिए. कटे हुए गुच्छे को आमतौर पर अच्छी तरह से गद्देदार ट्रे या टोकरी में एकत्र किया जाना चाहिए और संग्रह स्थल पर ले जाया जाना चाहिए.

स्थानीय खपत के लिए हाथों को अकसर डंठल पर छोड़ दिया जाता है और खुदरा विक्रेताओं को बेच दिया जाता है.

पकाने की विधि

केले को सही तरह से पकाने के लिए गुच्छे को किसी बंद कमरे में रख कर केले की पत्तियों को अच्छी तरह से ढक देते हैं. इतना ही नहीं, उस कमरे में अंगीठी जला कर रख देते हैं. कमरे को मिट्टी से सील बंद कर देते हैं. लगभग 48 से 72 घंटे तक कमरे में रखा केला पक कर तैयार हो जाता है.

उपज

केले की किस्म  :      उपज (टन/हेक्टेयर)

ड्वार्फ कैवेंडिश   :      35-40

रोबस्टा  :      38-45

अन्य किस्म    :      25-30

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