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Women’s Day Special: अजातशत्रु- मां घर छोड़कर क्यों चली गई?

मां को जाना था, चली गईं. सब ने शांति की सांस ली, जैसे मां का रहना सब पर बोझ रहा हो. जबकि मां अपना कोई काम किसी से नहीं कराती थीं. वे खुद ही इतना सामर्थ्य रखती थीं कि दूसरों के दो काम कर सकती थीं. विशेषरूप से बेटू और उस की पत्नी मानसी बेहद प्रसन्न थे क्योंकि उन के सपनों को पंख लग गए थे और अब सफलता कुछ ही कदम की दूरी पर थी. आलीशान 6 कमरों वाली कोठी, कोठी के सामने बड़ा सा हरा मखमली लौन, तरहतरह के पेड़पौधे, लौन में एक झूला, 2 प्रकाश स्तंभ मेन गेट पर और 2 कोठी के मुख्यद्वार पर. ऐसे मृदुल सपने जाने कब से बेटू और मानसी की आंखों में पल रहे थे, लेकिन मां इन सपनों के बीच रोड़ा बनी थीं. उन के रहते उन के सपनों में रंग नहीं भर पा रहे थे. बड़ी खीज होती थी उन दोनों को. उन्हें लगता कि मां सारे धन पर कुंडली मारे बैठी हैं. किसी को कुछ बताती भी नहीं हैं और न किसी से कुछ मांगती हैं. बेटू ने लाख उगलवाना चाहा, लेकिन मां चुप्पी साध गईं. अधिक जिद करने पर कहतीं-

‘बेटू, तू व्यर्थ की जिद न कर. जो बात तेरे जानने की नहीं है, हमेशा उसी को जानने के लिए कलह क्यों करता है? मैं तुझ से कोई उम्मीद तो नहीं रखती.’ ‘मां, यदि मुझे बता दोगी तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा? क्या मैं छीन लूंगा? तुम्हें अपने बेटे पर विश्वास नहीं है?’

‘हां, यही समझ ले कि नहीं है. बस, तू मुझे परेशान मत कर.’

‘नहीं करूंगा. तुम मेरे साथ चलो. यहां अकेली रहती हो. कोई ऊंचनीच हो गई तो कौन देखेगा?’ ‘जो बात हुई ही नहीं उस की चिंता क्यों करता है? फिर ऊंचनीच तो कहीं भी, किसी के साथ भी हो सकती है. यहां इतने अपने लोग हैं. कोई भी संभाल लेगा. रोमेश और उस की बहू मेरा बड़ा ध्यान रखते हैं.’ ‘अपनों से ज्यादा गैरों पर विश्वास करती हो?’ ‘यही समझ ले. गैर एहसान तो नहीं जताते. अपने तो अपने होने का एहसास हर पल कराते रहते हैं. जहां अपने नहीं होते वहां गैर अपनों से ज्यादा होते हैं.’

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मां बहस पर उतर आतीं. बेटू को थक कर चुप हो जाना पड़ता. एक दिन बेटू बोला, ‘मां, सुमित इस कोठी के 1 करोड़ रुपए दे रहा है. इस से ज्यादा कोई क्या देगा? 40 साल पुरानी हो गई है. बेचनी तो पड़ेगी ही. जगहजगह से चूना झड़ रहा है. अब पुणे से हम से बारबार नहीं आया जा सकता.’ ‘तो इस बार निश्चय कर के ही आया है कि कोठी बेच कर ही जाएगा. पर मैं ने कहा था कि मेरे रहते कोठी नहीं बिकेगी. मैं अपनी छत क्यों दूं?’

‘इसलिए कि मैं अपनी छत बना लूं.’

‘क्या गारंटी है कि इसे बेच कर तू अपनी छत बना लेगा. कल मैं भी बिना छत के हो जाऊंगी. आज मेरा एक ठिकाना तो है. कहने को अपना घर है. तू अपनी छत अपनी मेहनत से बना. यह तेरे पिताजी की मेहनत की कमाई से बनी है. वे तो चले गए. अब इसे भी जाने दूं. तू नहीं समझेगा. मुझे इस से अपने प्राणों से भी ज्यादा मोह है. यह घर ही नहीं, मेरा सुरक्षा कवच भी है. बड़ी मेहनत से बनाया है.’

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‘मां, तुम अपनी जिद नहीं छोड़ोगी?’

‘नहीं, छोड़ भी देती यदि तू ने कोई जमीन का टुकड़ा ले कर डाला होता. मुझे लगता कि तू गंभीरता से मकान बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. 20 साल हो गए तुझे कमाते. तुझ से जमीन का टुकड़ा नहीं खरीदा गया.’

‘मां, कुछ बचता ही नहीं.’

‘यह तेरी सिरदर्दी है. बचाना चाहेगा तभी बचाएगा न. वहां परदेस में पड़ा क्या कर रहा है, यहीं लौट आ.’

‘मां, तुम बेसिरपैर की बातें करती हो. यहां आ कर क्या करूंगा? वहां का जमाजमाया काम छोड़ कर बच्चों को भूखा मार दूं?’

‘नहीं आ सकता तो वहीं रह. मेरा सिर न खा.’ भिन्ना उठा बेटू और फिर कभी न लौट कर आने की कसम खा कर चला गया. उस दिन से मां ने भी किसी से कोई उम्मीद करनी छोड़ दी. अपनी अकेली दुनिया में ही जीने लगीं. मन को समझा लिया कि जिन के बेटाबेटी नहीं होते या परदेस में जा कर बस जाते हैं वे क्या मर जाते हैं? कुछ दिन के लिए जीवन में ठहराव सा आ गया. मन थोड़ा परेशान रहा, लेकिन वे वक्त की गर्द झाड़ उठ खड़ी हुईं. जीवन फिर राह पर आ गया. शांत प्रकृति की शांता व्यर्थ के आडंबरों से दूर अपनी दुनिया में मस्त रहतीं. ज्यादा शोरगुल, ज्यादा बातचीत उन्हें कभी नहीं सुहाती. उन के पति श्यामलाल भी उन्हीं की तरह शांत प्रकृति के थे. उन के जाने के बाद शांता और भी शांत हो गईं. उन्हें लगा कि जीवनभर वे अपने लिए जीती रहीं, ओढ़तीबिछाती रहीं, जिस समाज ने उन्हें सम्मान, घरपरिवार दिया, उस के प्रति भी कुछ फर्ज बनता है. अब कोई जिम्मेदारी भी नहीं है, थोड़ा वक्त भी है. यह सोच कर उन्होंने एक एनजीओ की सदस्यता ले ली और बच्चों को हस्तशिल्प का प्रशिक्षण देने लगीं. बेकार पड़ी चीजों से वे काम की चीजें बनवा लेतीं. यह शौक उन्हें पहले से था. उन्हें पता ही न चलता कि वक्त कैसे खिसक रहा है. धीरेधीरे शांता अशक्त होने लगीं. उम्र अपना प्रभाव छोड़ने लगी. उन्होंने एनजीओ जाना तक बंद कर दिया. घर पर ही बच्चों को सिखाने लगीं. कुछ अतिरिक्त आमदनी भी हो जाती. वरना श्यामलाल द्वारा छोड़े गए पैसों से ही घरखर्च चलातीं. बूंदबूंद रिसने से भरा घड़ा भी खाली होने लगता है. वह तो उन्होंने होशियारी से काम लिया. श्यामलाल द्वारा छोड़े गए पैसों की बैंक से एफडीआर बनवाई और उस से मिलने वाले ब्याज से वे अपना काम चलातीं. घर में एक किराएदार भी रख लिया. देखभाल के साथ किराए की आमदनी भी हो जाती. फिर भी खूब मितव्ययिता से खर्च करतीं, पर जरूरतमंद की सहायता अवश्य करतीं. यह जीवन भी उन्हें रास आ रहा था. कभीकभी बेटी समिधा उन के पास आ जाती या वे उस के पास चली जातीं. समिधा ज्यादा दूर नहीं थी. इस बार समिधा आई तो मां को मोबाइल खरीद व उस में पैसे डलवा कर दे गई. मां को मोबाइल चलाना भी सिखा गई. जरूरी नंबर उस में डाल दिए. अब शांता के लिए आसानी हो गई. अब वे फोन कर के इलैक्ट्रीशियन या प्लंबर को बुला लेतीं. स्वयं उन्हें दौड़ना न पड़ता, न किसी पड़ोसी को परेशान करना पड़ता. किराने का सामान भी फोन पर ही लिखवा देतीं. दुकान का नौकर सामान रख जाता. समिधा के साथसाथ वे अन्य रिश्तेदारों से भी बातें कर लेतीं. यानी टूटते संपर्क फिर से ताजगी से भर गए.

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समिधा कुछ पोस्टकार्डों पर पते लिख कर और दोचार बौलपैन भी मां की अलमारी में रख गई और कह गई कि मां, चिंता न करना. बीचबीच में आती रहूंगी. पुत्री का स्नेह पा कर पुत्र की तरफ से जो परेशानी उन के दिमाग पर छा गई थी, दूर हो गई. समिधा हर महीने मां का मोबाइल रिचार्ज करा देती. वक्त अपनी गति से चलने लगा. काफी समय से समिधा को मां का न फोन मिला, न पत्र, मां का मोबाइल भी स्विच औफ आता. कई बार सोचा कि जा कर मां का हालचाल ले लूं. पर चाह कर भी गृहस्थी से न निकल पाई. वह रिश्तेदारों से फोन कर मां की कुशलता लेती रहती. उन्हीं से पता चला कि मां का मोबाइल खो गया है. शांता को हमेशा पुत्र का भय लगा रहता. रोज ही अखबार में ऐसी खबरें पढ़ने को मिलती थीं कि पुत्र ने संपत्ति के लिए पिता को गोली मार दी, मां और भाई को फावड़े से काट डाला आदि. बेटू की नीयत पर उन्हें हमेशा शक रहता. जब भी बेटू आता, वे बेशक बाहर से बोल्ड बनी रहतीं लेकिन अंदर ही अंदर डरती रहतीं और उन्हें अपनी जान का खतरा बना रहता. पता नहीं बेटू कब, क्या कर दे. यह नहीं कि वे बेटू को प्यार नहीं करती थीं, लेकिन प्यार का यह मतलब नहीं कि बेटू से सम्मान और आदर की जगह गालियां खाएं, अपना अपमान और निरादर कराएं. उस की हरकतों के चलते उन का मन उस की तरफ से हटने लगा था, पर वे अपनी मनोस्थिति किसी पर भी प्रकट न करतीं.

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हां, इन दिनों उन्होंने वकील से मिल कर अपनी समस्त चलअचल संपत्ति की वसीयत समिधा के नाम बनवा दी. बैंक में जितना भी पैसा था, सब में समिधा को नौमिनी बनवा दिया. समिधा को आर्थिक मदद की जरूरत थी क्योंकि उस के पास कोई और सहारा नहीं था. धैर्य जब गर्भ में था तभी संयम एक दुर्घटना में चल बसे थे और तभी से समिधा अपना संघर्ष अपनेआप कर रही थी. समिधा का दुख उन्हें चैन से बैठने न देता. वे अपने मन की बात केवल समिधा से ही कर सकती थीं. अभी भी उस की मदद करती रहतीं. बेटू हमेशा इसी ताकझांक में रहता कि मां अपना सबकुछ बेटी को न पकड़ा दें और वह हाथ मलता ही रह जाए. इसीलिए वह समस्त संपत्ति अपने नाम कराने के लिए तरहतरह के हथकंडे अपनाता. ऐसा नहीं कि शांता कुछ समझती न थीं. बेटू में तो इतना भी अपनापन नहीं था कि कभी बहन का सुखदुख बांटता. वे उस की लालची प्रवृत्ति से परिचित थीं. लेकिन उन्होंने अपनी सोचों की भनक किसी को भी न लगने दी. वे समिधा के नाम वसीयत करा कर और अपने खातों में उसे नौमिनी बना कर निश्ंिचत हो गईं कि यदि वे चली भी गईं तो समिधा को परेशानी नहीं होगी. उस का जीवन आराम से कट जाएगा. अभी बैंक से लौट कर बैठी सुस्ता ही रही थीं कि डोरबैल बजी. उन्होंने उठ कर दरवाजा खोला. सामने बेटू खड़ा था.

‘तू, इस समय?’ उसे अचानक अपने सामने देख कर शांता अचंभित हो गईं.

‘क्या मैं यहां नहीं आ सकता? आप इस तरह क्यों चौंक गईं?’

‘क्यों नहीं आ सकता लेकिन जब भी आता है फोन कर के आता है. इस बार अचानक बिना बताए…?’

‘मां, दिल्ली काम से आया था. सोचा आप से भी मिल लूं.’

‘अच्छा किया, आ, अंदर आ, आराम से बैठ.’

समिधा के पास अचानक एक दिन चाची का फोन आया कि समिधा, दीदी नहीं रहीं. पिछले कई दिनों से तबीयत थोड़ी ढीली चल रही थी. हम ने बेटू को भी फोन कर दिया है. यह सुन कर समिधा सन्न रह गई. मां ऐसे कैसे जा सकती हैं? जरूर मां के साथ ऐसा कुछ घटा है जिसे मां ने किसी को नहीं बताया. समिधा कहां रुकने वाली थी. बेटू से पहले उसे मां के पास पहुंचना था. समिधा सूचना मिलने के 2 घंटे में ही मां के पास पहुंच गई. उस के पहुंचने के पहले ही आसपास के रिश्तेदार आ चुके थे. मां को देख कर समिधा फूटफूट कर रोने लगी. आज मां ही नहीं, उस का मायका भी समाप्त हो गया. दुखी मन से मां के पास बैठी समिधा को अचानक याद आया कि मां रोज डायरी लिखा करती थीं. उस ने तुरंत मां की अलमारी खोल कर डायरी निकाल ली. और अंतिम पृष्ठ खोल कर पढ़ने लगी. उस पर 2 दिन पहले की तारीख पड़ी थी. मां ने लिखा था-

‘‘आज बेटू आया है. उस ने सारा गुस्सा थूक दिया है. बड़े प्यार से मिला है. घर का सारा सामान भी लाया है. प्रेमपूर्वक कुशलक्षेम भी पूछा है. बाजार से गाजर का जूस लाया है. उस ने 2 गिलासों में डाला है. मेरे गिलास में कुछ डाला है, कह रहा है मसाला है, इस से स्वाद बढ़ जाएगा. अपने जूस में दूसरी पुडि़या से मसाला डाला है. हम दोनों ने जूस पिया है. मुझे स्वाद कुछ अच्छा नहीं लगा. बेटू ने गिलास धो कर रख दिए हैं. ‘‘‘मां, जरा बाहर घूम आऊं. थोड़ी देर में आता हूं. आप दरवाजा बंद कर लेना,’ कह कर बेटू बाहर चला गया. मैं दरवाजा बंद करने के लिए उठती हूं. दरवाजा बंद कर डायरी लिखने बैठ जाती हूं. मन शांत है पर हलकेहलके चक्कर आ रहे हैं. अब मैं डायरी बंद कर लेट रही हूं.’’

इस के आगे के पृष्ठ खाली हैं. यानी बेटू ने ही जूस में कुछ मिला कर… समिधा का सिर घूमने लगा. इस का मतलब मां की मृत्यु को 2 दिन हो गए और बेटू यहीं कहीं है और शीघ्र ही आ जाएगा. उस ने मोबाइल खोजा. मोबाइल बिस्तर के नीचे छिपा कर रखा गया था पर औफ था. उस ने उसे औन कर के देखा. मां ने 4 माह पहले किसी न पहचाने नंबर पर कई बार बात की थी. समिधा ने फोन किया, ‘‘मैं समिधा, कांताजी की बेटी बोल रही हूं. आप को मां फोन करती थीं. आप कौन हैं…’’

‘‘अच्छा, आप समिधा हैं? कांताजी कैसी हैं.’’

‘‘मां का कल देहांत हो गया.’’

‘‘ओह, बहुत अफसोस हुआ. आप को एक बात बताने के लिए कांताजी ने कहा था. आप मुझे अपने फोन से फोन करें.’’ समिधा ने उस नंबर पर बात की. उस के रोंगटे खड़े हो गए पूरी बात सुन कर. उस का मन हुआ, बेटू के आने से पहले डाक्टर और पुलिस को फोन कर दे. मां का पोस्टमार्टम होना चाहिए. मां मरी नहीं मारी गई हैं. मातृहंता को जेल की सलाखों के पीछे होना चाहिए. अचानक दूसरा विचार मन में उठा. यदि बेटू सलाखों के पीछे चला जाता है तो उस के परिवार का क्या होगा? मां तो लौट कर आने से रहीं. और यदि यह सिद्ध नहीं हुआ कि बेटू ही…? शायद मां की गति ऐसे ही होनी थी. सब मां की मौत को स्वाभाविक ही मान रहे हैं. समिधा ने जा कर मां की अलमारी टटोली. उस में से मां की चैकबुक, पासबुक और जेवर गायब थे. हां, थोड़ी नकदी जरूर रखी थी. समिधा का मन हुआ कि चीखचीख कर सब को बता दे कि मां स्वाभाविक मौत नहीं मरी हैं. मां का असली हत्यारा कौन है. वह अलमारी बंद कर मुड़ी तो पीछे बेटू को खड़ा पाया. उस की आंखों में ऐसा कुछ था कि समिधा सहम गई.

‘‘तू इतनी जल्दी पुणे से कैसे आ गया, बेटू?’’

‘‘मैं तो यहां परसों ही आ गया था और कल मामाजी के यहां चला गया था. वहीं मां की मृत्यु की सूचना मिली. तू मां की अलमारियों में क्या तलाश रही थी?’’

‘‘जो तू नहीं तलाश सका. मां की मौत के दस्तावेज,’’ कह कर समिधा मां के पास जा कर बैठ गई.

Women’s Day: बढ़ती उम्र की महिलाओं की बदलती मानसिकता

कुछ वर्षों में कमला मल्होत्रा की मानसिकता में काफी बदलाव आया है. भीतर ही भीतर एक आक्रोश सा सुलग रहा है. जराजरा सी बात पर झुंझलाने और क्रोध करने लगती हैं. उन की उम्र होगी 60 वर्ष के करीब. बेटी का विवाह हो चुका है, एक बेटा कनाडा में है, दूसरा मुंबई में. दिल्ली में वे अपने अवकाशप्राप्त पति के साथ एक अच्छे व शानदार फ्लैट में रहती हैं. सबकुछ है, पर इस आभास से मुक्ति नहीं है कि ‘मैं अकेली हूं, मेरा कोई नहीं है.’  एक चिड़चिड़ाहट और तनाव उन के चेहरे पर बराबर दिखाई देता है.

बढ़ती उम्र की शहरी महिलाओं की अब यही एक आम मानसिकता होती जा रही है. पारिवारिक जीवन में जो बदलाव आ रहा है, उस के लिए वे तैयार नहीं होती हैं. बच्चे हाथ से ऐसे छूट जाते हैं जैसे कटोरी से पारा गिर गया हो. पति हर समय सिर पर सवार सा लगने लगता है. जवानी में जो आशा बनी रहती है कि बच्चे बड़े हो कर हमारी सेवा करेंगे, वह टूट जाती है.

घर में काम भी बहुत कम हो जाता है. एक सूनापन सा बराबर बना रहता है. इस बदलाव से महिलाओं को जो पीड़ा होती है, उस से उन के नजरिए में भी फर्क आता है. वे अपनेआप को दुखियारी और बेचारी समझने लगती हैं. उन का आत्मविश्वास, उन की सहनशीलता खत्म हो जाती है.

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इस दौरान पति के साथ भी उन का लगाव कम होने लगता है. प्रेम और आकर्षण को बनाए रखने की दिशा में वे कोई पहल नहीं करतीं. तटस्थ और उदासीन हो कर घर के काम करते हुए भावनाओं में डूब जाती हैं.

विशेषज्ञ बताते हैं कि उन की जिंदगी का यही समय होता है उन के लिए सब से अधिक फुरसत का, जिसे वे व्यर्थ की चिंताओं में बिताने में एक अस्वस्थ सुख का अनुभव करती हैं. मनोवैज्ञानिकों की भाषा में इसे ‘स्वपीड़ा का सुख’ कहते हैं. कमला मल्होत्रा का सुखदुख यही है.

लगभग इसी उम्र की हैं गायत्री देवी. अपनी संतान को ही सबकुछ मान लेने की गलत मानसिकता पाल कर जानेअनजाने वे पति की अवहेलना करती रही हैं.

20 वर्षों के इस भावनात्मक अंतराल के चलते पतिपत्नी के बीच पूरा संवाद नहीं हो पाता. एक गैप बराबर बना रहता है. पति को शिकायत है कि उन की जरूरतों की गायत्री को परवा नहीं है. गायत्री के अनुसार, वे मुझे पूछते ही कब हैं.

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पुरुष बनाम महिला

जाहिर है, यह एक अधेड़ मानसिकता है जिस का शिकार महिलाएं अधिक होती हैं. उन का जीवन कुछ और अधिक सिकुड़ कर आत्मकेंद्रित हो जाता है. खाली समय में कुछ पढ़नेलिखने की आदत भी उन की नहीं होती. पुरुष बाहर की दुनिया से भी कुछ तालमेल रखते हुए जिंदगी की बदली हुई परिस्थिति से समझौता करने का गुर सीख लेते हैं. इस उम्र में जो अडि़यल मानसिकता महिलाओं में पैदा हो जाती है वह पुरुषों में बहुत कम देखी जाती है.

महिला मनोविज्ञान के विश्लेषकों ने इस मानसिकता को काफी खतरनाक बताया है. उन का मानना है कि इस से बीमारियां भी पैदा हो सकती हैं, जिन बीमारियों का जिक्र इस संदर्भ में अकसर किया जाता है उन में अवसाद और उच्च रक्तचाप प्रमुख हैं.

इधर स्ट्रोक और दिल का दौरा भी महिलाओं को अधिक पड़ने लगा है. पहले महिलाओं को यह बहुत कम होता था. बहुत से कारणों में एक कारण अब यह भी बताया जा रहा है कि अधेड़ावस्था में उन का अकेलापन बढ़ जाता है. गृहस्थी में कुछ खास करने को नहीं रह जाता तो खाली दिमाग परेशानी का सबब बन जाता है. पुरानी बातों को याद कर दुखी होने की आदत छोड़नी पड़ेगी.

मनोचिकित्सकों से बात करने पर पता चलता है कि डिप्रैशन की बीमारी भी बढ़ती उम्र की महिलाओं को ही अधिक होती है. अकसर यह इतनी गंभीर हो जाती है कि मनोचिकित्सक के पास जाना अनिवार्य हो जाता है. वे भी उन्हें यही सलाह देते हैं कि आप अपने को किसी काम में उलझाए रखें. कोई अच्छा शौक पालें, पत्रपत्रिकाएं पढ़ें, बागबानी करें और अपनी सोच को सकारात्मकता की ओर उन्मुख करें.

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नकारात्मक विचार

देखने में आ रहा है कि महिलाओं को इधर स्ट्रैस व डायबिटीज भी अधिक होने लगी है. कहते हैं, आदमी जब अपने नकारात्मक विचारों को रोक नहीं पाता और यह लंबे समय तक चलता रहे तो उस के शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है. मधुमेह का यह एक मानसिक कारण है. यह बढ़ती उम्र की महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है. इसी बीच अगर आर्थ्राइटिस भी हो गई हो तो कुछ चिकित्सक उसे भी महिलाओं की मानसिक अवस्था से जोड़ देते हैं. इस उम्र में वे अगर जीने का स्वस्थ दृष्टिकोण अपना लें तो अधेड़ होने की बहुत सी कुंठाओं से बच सकती हैं.

आत्महत्या से पीडि़त महिलाओं की संख्या भी इधर बहुत बढ़ी है. वे दूसरों को फलताफूलता देखती हैं तो उन से अपनी तुलना करने की मजबूरी को दबा नहीं पातीं.

पड़ोस की मीरा को यह बात रास नहीं आई कि अर्चना ने गाड़ी खरीद ली है. हम अपने एक इस छोटे से सपने को भी पूरा नहीं कर पाए तो हमारे जीवन में रखा ही क्या है. मीरा की उलझनें बढ़ गईं. पति के जीवनभर की बचतपूंजी लगा कर अर्चना की गाड़ी से भी अच्छी गाड़ी खरीदने की लालसा उन के मन में जाग उठी.

बढ़ती उम्र में आप के मन में अगर इस प्रकार की कोई वेदना पैदा हो तो आप जरा शांति से बैठ कर हिसाब लगाएं. आप को तब मालूम होगा कि आप के अधिकतर सपने पूरे हो चुके हैं और जो बाकी हैं उन के पूरे न होने का दुख मात्र एक असुरक्षा की भावना है, जो उम्र के साथ बढ़ जाती है.

यहां एक मामूली सी समझ यह रखनी होगी कि आप जब 50-55 वर्ष की होती हैं तो आप का पति 60 पार कर रहा होता है. इस उम्र में उस की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं. वह तन और मन की सेहत पर अधिक खर्च करने लगता है, घरेलू चीजों की खरीदारी पर बेकार पैसा गंवाना समझता है. इस से पतिपत्नी के बीच जो विवाद पैदा होता है वह आप दोनों के अडि़यल रुख को बढ़ावा देता है. यह और बात है कि इस का खमियाजा शायद औरतों को ही ज्यादा भुगतना पड़ता है.

बोलचाल की भाषा में जिसे हम अडि़यलपन कहते हैं वह अधेड़ावस्था में अपनी चरमसीमा पर होता है. कुछ लोग इसे सठियाना भी कहते हैं. यह महिलाओं में अधिक होता है या पुरुष में, इस विषय पर कोई रिसर्च शायद न हुई हो पर अनुभव यही बताते हैं कि स्त्रियां इस की शिकार अधिक होती हैं. सासबहू के झगड़ों का एक कारण यह भी है कि सास अड़ जाती है, जबकि ससुर का नजरिया उदारवादी अथवा समझौते वाला होता है.

इच्छाओं की पूर्ति का सवाल जिस मानसिकता से पैदा होता है उस में भावुकता का पुट अधिक होता है जबकि वास्तविक समझदारी बहुत कम होती है. कभीकभी छोटीछोटी जरूरतों को भी इतना तूल दे दिया जाता है कि घर में तनाव पैदा हो जाता है. पुताई हो रही है तो दीवार पर कौन सा रंग लगे, इस पर भी बहस हो जाती है, मुंह फूल जाते हैं.

ऐसा नहीं कि अधेड़ उम्र की कठिन मानसिक दशा से उबरने का कोई रास्ता नहीं. इस समस्या से सरोकार रखने वाले बताते हैं कि आप अपने आपसी प्रेम के रैगुलेटर को जरा बढ़ा दें तो मन में रस का संचार होने लगेगा. महिलाओं के पास तो इतने गुण हैं कि उन का इस्तेमाल करें तो वे बढ़ती उम्र की कुंठाओं से बच सकती हैं. स्वयं को कुतरने वाले काल्पनिक विचारों के चूहों से बचने के लिए आप यह सब करें :

  • कोई आर्थिक समस्या नहीं तो फ्री में बच्चों को ट्यूशन दें.
  • शौकिया कुकिंग करें.
  • इस उम्र में कुछ आर्थिक जिम्मेदारी निभाने का भी प्रयास करें.
  • सिलाईकढ़ाई करें.
  • पति की दुकान या औफिस है तो वहां बैठें.
  • सुविधाजनक लगे तो बिजलीपानी और फोन आदि के बिल भी स्वयं औनलाइन जमा करें.
  • पैसा हो तो कंप्यूटर या लैपटौप खरीदें, उस पर टाइप करें, हिसाबकिताब रखें.
  • गाने सुनें, फिल्में देखें.
  • व्हाट्सऐप पर पत्रव्यवहार करें, बधाई और शुभकामनाओं का लेनदेन करें.

दो रोटी बना कर खा लेने से आत्मविश्वास नहीं पैदा होगा. घर में बुढ़ाएसठियाए  पतिपत्नी की तरह नहीं, 2 प्रेमियों की तरह रहें. अगर स्वयं को बदल नहीं सकते तो कम से कम जिन खुशियों को महसूस कर सकते हैं उन का तो जीभर के अपने जीवन में स्वागत करें. जब हम छोटीछोटी खुशियों का आनंद नहीं लेंगे तो जाहिर है कि बड़ी खुशियां भी हम से मुख मोड़ कर जा सकती हैं.

Satyakatha: पत्नी और प्रेमिका को निगल गया शक का कीड़ा

सौजन्य: सत्यकथा

संध्या पर भी उसे शक हुआ तो उस ने उस की भी उसी स्थान पर ले जा कर हत्या की, जहां पत्नी की की थी. इस के बाद जो हुआ… शाम के यही कोई 4 बजे थे. महाराष्ट्र के सतारा जिले के भुइज क्षेत्र के रहने वाले काश्तकार संतोष इथापे हमेशा की तरह अपने खेतों की देखरेख कर के लौट रहे थे, तभी पड़ोस के गन्ने के खेत में एक लाश देख कर उन के होश उड़ गए. वह खेत शिवतम भिवताई का था. उस युवती की लाश अर्धनग्नावस्था में थी. यह देख कर वह घबरा गए और उन्होंने शोर मचा कर अन्य किसानों को एकत्र कर लिया. इस के बाद उन्होंने फोन कर के इस की सूचना भुइज थाने में दे दी.

उस समय थाने में एपीआई आशीष कांमले मौजूद थे. उस समय वह अपने सहयोगियों के साथ किसी गंभीर विषय पर विचारविमर्श कर रहे थे. लाश मिलने की सूचना उन के लिए अहम थी, इसलिए वह उसी समय पुलिस टीम के साथ शिवराम द्वारा बताई गई जगह के लिए रवाना हो गए.

घटनास्थल थाने से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर था. वह करीब 10 मिनट में वहां पहुंच गए. इस बीच रास्ते में ही उन्होंने अपने मोबाइल फोन से मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. यह बात 3 अगस्त, 2021 की है.

इस बीच मामले की खबर आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई थी. पुलिस के पहुंचने से पहले ही घटनास्थल पर काफी लोगों की भीड़ जुट चुकी थी. घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस ने वहां का निरीक्षण करना शुरू कर दिया था.

निरीक्षण में मृतका की उम्र यही कोई 34 साल के आसपास लग रही थी. हत्यारे ने उस की हत्या कर उसे गन्ने के पत्तों से छिपाने की कोशिश की थी. लेकिन जानवरों ने उस के शव के ऊपर से उन पत्तों को इधरउधर कर दिया था.

सहायक इंसपेक्टर आशीष कांमले घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि घटना की जानकारी पा कर एसपी (सिटी) अजय बंसल, एडिशनल एसपी धीरज पाटिल और डीवाईएसपी शीतल जानवे मौका ए वारदात पर पहुंच गए. उन के साथ ही फोरैंसिक ब्यूरो के अधिकारी भी थे.

निरीक्षण में पुलिस अधिकारियों ने देखा कि मृतका के दोनों हाथ पीछे कर के उस के ही दुपट्टे से बंधे थे. देखने से लग रहा था कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई थी.

मृतका कौन थी और कहां की रहने वाली थी, इस का कोई सबूत लाश के पास से नहीं मिला. तब उस की शिनाख्त के लिए पुलिस ने वहां पर एकत्र भीड़ से पूछताछ की. मगर उस भीड़ में से कोई भी उस की शिनाख्त कर सका. इस से यह साफ हो गया कि वह महिला वहां की रहने वाली नहीं थी.

पुलिस टीम को यह समझने में देर नहीं लगी कि वह महिला किसी अन्य जगह की रहने वाली है.

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शिनाख्त न होने की स्थिति में पुलिस ने मौके की काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. एसपी (सिटी) अजय बंसल के निर्देश पर एपीआई आशीष कांमले ने इस मामले की जांच शुरू कर दी.

ऐसे में समस्या यह थी कि बिना शव की शिनाख्त के तफ्तीश एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकती थी. ऐसे में जांच अधिकारियों ने वही रास्ता अपनाया जो पुलिस अकसर अपनाती है.

पुलिस टीम ने पहले यह पता लगाने की कोशिश की कि किसी महिला की गुमशुदगी की सूचना शहर के किसी पुलिस थाने में तो दर्ज नहीं है. मगर इस में उन्हें शीघ्र कामयाबी नजर नहीं आई.

ऐसे में जांच अधिकारी एपीआई आशीष कांमले ने टीम के साथ दोबारा घटनास्थल के आसपास के खेतों का निरीक्षण किया. इस में उन्हें कामयाबी मिली.

घटनास्थल से लगभग 10 मीटर की दूरी पर उन्हें एक बैग मिला. जिस में मृतका का आधार और पैन कार्ड थे. आधार कार्ड में मृतका का नाम संध्या विजय शिंदे था और वह सतारा शहर की रहने वाली थी.

यह जानकारी मिलते ही जांच अधिकारी आशीष कांमले ने तत्काल अपनी एक टीम सतारा सिटी भेज कर संध्या शिंदे के बारे में जानकारी हासिल की. वहां पता चला कि सतारा सिटी पुलिस थाने में उस के भाई ने उस की गुमशुदगी शिकायत दर्ज करवाई थी.

पुलिस ने उस के भाई से संपर्क कर शव की शिनाख्त के लिए अस्पताल बुलाया. भुइज पुलिस थाने से संध्या शिंदे की हत्या की खबर पाते ही भाई और कुछ रिश्तेदार तुरंत अस्पताल पहुंच गए थे. जहां उन्होंने रोतेबिलखते हुए संध्या शिंदे के शव की शिनाख्त कर ली.

जांच अधिकारी आशीष कांमले ने उन्हें सांत्वना देते हुए जब संध्या शिंदे की हत्या के मामले में पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि वह कैटरिंग का काम करती थी. अपने काम की वजह से वह 2-3 दिनों तक घर से बाहर रहा करती थी. उस की सहेलियों में कामले थी, जिस के साथ उस की गहरी दोस्ती थी. संध्या उसे मौसी कहती थी.

संध्या शिंदे के भाई और उन के नातेरिश्तेदारों के बयानों के आधार पर जांच टीम ने जल्द ही कामले मौसी को खोज निकाला.

कामले मौसी ने पुलिस को बताया कि वैसे तो वह संध्या शिंदे के दोस्तों के विषय में कुछ खास नहीं जानती, लेकिन अकसर वह निखिल गोले नाम के व्यक्ति के संपर्क में रहती थी. उसे फोन भी करती और उस के साथ कभीकभार बाहर भी घूमने जाती थी. वह कहां जाती थी, इस विषय में कोई जानकारी नहीं है.

नितिन कौन था, क्या करता था और कहां रहता था. इस बारे में पुलिस को कोई जानकारी नहीं थी. इस कड़ी को सुलझाने के लिए इंसपेक्टर आशीष कांमले ने

॒4 टीमें तैयार कर उन्हें उन की जिम्मेदारी सौंप दी.

पुलिस ने संध्या, उस के घर वालों और कामले मौसी के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का बारीकी से अध्ययन किया तो नितिन और संध्या का रहस्य सामने आ गया था.

नितिन गोले का अब पुलिस को पता मिल चुका था. पुलिस ने सादे कपड़ों में उस के ठिकाने पर जब दबिश दी तो कामयाबी नहीं मिली. रात के अंधेरे का फायदा उठा कर पुलिस पर हमला कर वह निकल गया था. जिस के चलते पुलिस टीम को यह यकीन हो गया था कि संध्या का कातिल नितिन गोले ही है.

वह हाथ से निकल गया था, इस के लिए पुलिस को पछतावा तो हुआ, लेकिन ऐसे में उन्हें एक फायदा यह हुआ कि उस का मोबाइल घर पर ही छूट गया था, जिस में उस के सगेसंबंधियों के साथसाथ उस के दोस्तों के भी नंबर थे.

उन नंबरों के जरिए पुलिस ने नितिन गोले की खोजबीन तेजी से शुरू कर दी. साथ ही अपने सभी मुखबिरों को भी उस के प्रति सावधान कर दिया था. ऐसे में उन्हें कामयाबी मिली. 2-4 दिन निकल जाने के बाद सहायक इंसपेक्टर आशीष कांमले को एक मुखबिर ने उन्हें बताया कि नितिन अपने एक दोस्त के संपर्क में अकसर रहता है.

उसे भरोसे में ले कर मुखबिर ने जब पूछा तो उस ने बताया कि वह कर्नाटक के संखकेशवर नगर में रहता है. और एक ट्रक पर क्लीनर का काम करता है.

यह जानकारी पाते ही पुलिस ने उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा कर उस इलाके की नाकेबंदी कर दी. 2-4 दिनों की नाकेबंदी में वह उन की गिरफ्त में आ गया था.

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थाने ला कर पूछताछ करने पर पहले तो उस ने मुंह नहीं खोला लेकिन सख्ती के बाद जब उस ने अपना मुंह खोला तो एक नहीं बल्कि 2-2 गुनाहों को स्वीकार करते हुए बताया कि प्रेमिका संध्या शिंदे की हत्या के 3 साल पहले अपनी पत्नी मनीषा गोले की भी हत्या कर चुका है. जिस का शव भी उस ने उसी जगह दफनाया है, जहां अपनी प्रेमिका संध्या शिंदे के शव को डाला था.

2-2 महिलाओं की हत्याओं के रहस्य को ले कर पुलिस टीम हैरान थी. वहीं दूसरे दिन जब समाचार पत्रों में यह खबर छपी तो इसे ले कर क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी.

सातारा जिले के तालुका वाई के सीरियल किलर संतोष पोल को वहां के लोग अभी भूले भी नहीं थे कि नितिन गोले के रूप में दूसरा हत्यारा उन के सामने आ गया था.

38 वर्षीय नितिन गोले महाराष्ट्र के जनपद सतारा का रहने वाला था. उस के पिता का नाम आनंद राव था. गांव में उन की कुछ पुश्तैनी जमीन थी जिस पर वह काश्तकारी किया करते थे परिवार छोटा था. परिवार में पतिपत्नी के अलावा बेटा नितिन गोले था.

इकलौती औलाद होने के नाते वह मातापिता का लाडला और दुलारा होने के साथसाथ महत्त्वाकांक्षी था. वह सेना में जाना चाहता था. उस का यह सपना साकार भी हुआ था.

अपनी पढ़ाईलिखाई पूरी करने के बाद वह सेना में भरती हो गया. उस की पहली पोस्टिंग आंध्र प्रदेश के बेलगांव में हुई थी. लेकिन 2 महीने बाद ही उस के सिर से देश सेवा का भूत उतर गया था. उसे सर्विस बोझ लगने लगी थी.

सेना के नियमों का पालन न कर पाने की स्थिति में उस ने नौकरी छोड़ दी और घर आ कर अपनी काश्तकारी की देखरेख करने लगा था. मगर जल्द ही उसका मन काश्तकारी से भी ऊब गया और वह सतारा, लोणंद वाठार के रेलवे स्टेशनों पर जा कर हम्माली (सामान उठाने) का काम करने लगा था. इस बीच परिवार वालों ने उस की शादी मनीषा के साथ कर दी थी.

मनीषा को अपनी पत्नी के रूप में पा कर नितिन गोले जितना खुश था, उतनी ही खुश मनीषा भी थी. शादी के कुछ दिन बाद ही वह अपने नए काम की तलाश में महाराष्ट्र के जनपद कोल्हापुर आ गया और एमआईडीसी परिसर की एक प्राइवेट कंपनी में सर्विस करने लगा था.

कुछ दिनों बाद उस ने अपनी पत्नी मनीषा को भी कोल्हापुर बुला कर के उसी परिसर की कंपनी में उस की भी नौकरी लगवा दी थी.

समय अपनी गति से चल रहा था पतिपत्नी दोनों की कमाई से उन का दांपत्य जीवन अच्छी तरह चल रहा था. समय के साथ साथ वह 2 बच्चों का पिता बन गया. बच्चे जैसेजैसे बड़े हो रहे थे, वैसेवैसे उन की जिम्मेदारियां भी बढ़ती जा रही थीं, जिसे दोनों बखूबी निभा भी रहे थे.

लेकिन एक कहावत है कि आदमी की फितरत कब और कैसे बदल जाए, इसे कोई नहीं जानता. यही नितिन गोले के साथ भी हुआ था. मनीषा के खुले विचार और चंचल स्वभाव नितिन गोले को जरा भी पसंद नहीं थे. उस का अपनी कंपनी के कर्मचारियों के साथ हंसनाबोलना बिलकुल ही पसंद नहीं था.

मनीषा अपना काम जिस मेहनत और लगन से करती थी, उस से उस के बौस और उस के कंपनी के कर्मचारियों से उस का मधुर व्यवहार था. उस का अपनी कंपनी के कर्मचारियों से बेझिझक और खुल कर बातें करना नितिन गोले के संदेह का कारण बन गया था, जो समय के साथसाथ एक कू्रर अपराध में बदल गया था.

इस के लिए वह मनीषा को कई बार समझा भी चुका था. लेकिन मनीषा ने उस पर ध्यान नहीं दिया था. उस का कहना था कि वह जिस माहौल में काम करती है, उस में एकदूसरे के संपर्क में रहना ही पड़ता है. मगर नितिन गोले यह मानने को तैयार नहीं था.

मनीषा के चरित्र को ले कर नितिन गोले का संदेह दिनप्रतिदिन गहरा ही होता जा रहा था, जिसे ले कर वह अकसर मनीषा से उलझ जाता था. ऐसे में दोनों के बीच मारपीट तक की नौबत आ जाती थी.

ऐसी स्थिति में वह कोल्हापुर की नौकरी छोड़ कर मनीषा और बच्चों सहित अपने गांव में आ कर रहने लगा था. गांव आने के बाद उस के बाद जो थोड़ीबहुत खेती थी, उसी में वह गुजरबसर करने लगा था. बच्चों को स्कूल में डाल दिया था. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था.

लेकिन नितिन गोले के मन में पत्नी के प्रति जन्मा संदेह का कीड़ा मरा नहीं था. वह अकसर उस कीड़े को ले कर के मनीषा से उलझ जाता था. इस में मनीषा भी पीछे नहीं रहती थी. वह भी उसे खरीखोटी सुना दिया करती थी. जिस से गुस्सा हो कर नितिन गोले ने मनीषा के प्रति एक क्रूर फैसला ले लिया था.

पहली मई, 2021 मौका देख कर नितिन मनीषा को घुमाने के बहाने अपने तालुका से बाहर उस जगह पर ले कर गया, जहां उस ने अपनी प्रेमिका संध्या शिंदे को ले कर गया था.

अंधेरे का फायदा उठा कर उस ने मनीषा की हत्या कर गला घोंट कर दी. और उसी खेत के पास बहने वाले नाले में उस के शव को दफन कर घर लौट आया था.

घर में तो उस ने अपने बच्चों को यह समझा दिया था कि उस की मां उन्हें छोड़ कर कहीं चली गई है, लेकिन गांव और परिवार वालों की नजर को वह क्या करता.

उन के संदेह से बचने और अपने को सुरक्षित रखने के लिए वह वाई पुलिस थाने पहुंचा और वहां मनीषा की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करवा दी. गांव में उस ने यह अफवाह फैला दी कि मनीषा अपने किसी यार के साथ भाग गई.

गांव वाले तो मनीषा को भूल ही गए थे, पुलिस ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया. मामला ठंडे बस्ते में चला गया था. कुछ दिनों बाद गांव वालों की भी उस से सहानुभूति हो गई थी.

सब कुछ सामान्य होने के बाद नितिन गोले को अपनी काश्तकारी से जो समय मिलता था, वह सतारा और लोणंद रेलवे स्टेशन पर जा कर हम्माली कर लिया करता था. इस से उस का ऊपरी खर्चा निकल जाता.

30 वर्षीय संध्या शिंदे को नितिन गोले ने अपने एक दोस्त के यहां शादी समारोह में देखा था. जहां वह वेटर के रूप में आई थी. उस का सौंदर्य, उभरा यौवन और उस के स्वागत के हावभाव को देख कर वह उस का दीवाना हो गया हो गया था.

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समारोह में उस ने उस के आसपास ही रह कर उस से बातचीत का सिलसिला बनाए रखा था. और समारोह से निकला तो उस का मोबाइल नंबर ले लिया था.

घर लौटने के बाद वह सो नहीं पाया. सारी रात करवटें बदलता रहा. वह जिस करवट सोने की कोशिश करता था, उसी करवट संध्या शिंदे का मुसकराता हुआ चेहरा आ कर उस के सामने खड़ा हो जाता था.

किसी तरह रात तो बीत गई थी. लेकिन दिन पहाड़ जैसे लग रहा था. आखिरकार शाम होतेहोते उस ने संध्या शिंदे को फोन लगा ही दिया.

दूसरी तरफ से बिना किसी देर के संध्या शिंदे की मीठी आवाज आई, मानो वही बेकरारी संध्या शिंदे में भी थी, जो नितिन गोले में थी. दोनों में कुछ समय तक औपचारिक बातें हुईं और फिर दोनों ने मिलने का समय व स्थान तय किया.

संध्या शिंदे सतारा सिटी की रहने वाली थी. उस के पति का नाम विजय शिंदे था. विजय शिंदे को शराब पीने की बुरी आदत थी. वह पहले तो कोई कामधंधा करता नहीं था और जब करता था तो कमाई का सारा पैसा अपने दोस्तों के साथ शराब की पार्टी में उड़ा दिया करता करता था. जिस से घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई थी.

ऐसे में उस के वैवाहिक जीवन और शारीरिक सुख की बात छोड़ो, रोटी का भी जुगाड़ संध्या शिंदे को ही करना पड़ता था. यही कारण था कि वह केटरिंग का काम करने लगी, जहां उस की सारी आर्थिक स्थिति धीरेधीरे सुधर गई थी.

दोनों के बीच मोबाइल से बात होने के बाद तय समय और स्थान पर पहुंच गए थे. दोनों ने एकदूसरे का स्वागत किया. कुछ देर पार्क में बैठ कर बातें करने के बाद उन्होंने मौल में जा कर शौपिंग की, जिस का बिल नितिन गोले ने चुकाया. इस मुलाकात में पहले दोस्ती और फिर दोस्ती प्यार में बदल गई थी. प्यार हुआ तो उन की मर्यादा भी टूट गई थी. एक बार जब मर्यादा टूटी तो फिर टूटती ही चली गई.

अब जब भी उन्हें मौका मिलता, वे दोनों एकदूसरे से दिल खोल कर मिलतेजुलते और मौजमस्ती किया करते थे. 6 महीने के इस प्यार और दोस्ती में निखिल गोले को झटका तब लगा, जब उसे यह मालूम पड़ा कि उस की पत्नी मनीषा की ही तरह संध्या शिंदे का भी किसी और के साथ चक्कर चल रहा है.

इस वजह से उसे संध्या शिंदे से भी नफरत हो गई. और उस ने उस का भी वही हाल किया, जो अपनी पत्नी मनीषा का किया था.

पहली अगस्त, 2021 को आखिरकार उसे यह मौका मिल ही गया. उस दिन सतारा स्टैंड से संध्या शिंदे को ले कर के वह बाहर निकला और सीधे नागेवाड़ी गया. वहां एक होटल में रह कर 2 दिनों तक मौजमस्ती की. दूसरे दिन उन्होंने माढर देवी के दर्शन का प्लान बनाया था. लेकिन बरसात के कारण वहां नहीं गए.

3 अगस्त, 2021 को नितिन गोले संध्या शिंदे को ले कर उसी जगह गया, जहां 3 साल पहले उस ने अपनी पत्नी मनीषा गोले को ले जा कर हत्या की थी. वहां पहुंचने के बाद वह कुछ समय तक इधरउधर की बातें करते हुए संध्या शिंदे के चरित्र पर बातें करने लगा. जिसे ले कर दोनों के बीच जम कर झगड़ा हुआ.

इस झगड़े के बीच नितिन गोले ने संध्या शिंदे के दुपट्टे से उस का गला घोट दिया था. उस की हत्या के बाद नितिन गोले ने उस के दोनों हाथों को पीछे कर के उस के दुपट्टे से कस कर बांध दिए. और उस का बैग घटनास्थल से दूर फेंक कर अपने घर लौट आया था.

विस्तार से पूछताछ करने के बाद एपीआई आशीष कांमले ने नितिन गोले के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर घटनास्थल से उस की पत्नी मनीषा गोले की अस्थियों को बरामद कर वह फोरैंसिक जांच के लिए भेज दीं.

इस के बाद उसे सतारा के मेट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया. आज वह सलाखों के पीछे है, लेकिन उसे अपने गुनाहों का जरा भी अफसोस नहीं है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बजट 2022-23 किसानों के लिए ड्रोन युवाओं को कृषि में देगा रोजगार

डा. आरएस सेंगर, कृशानु और वर्षा रानी

(सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ)

इस बार के बजट 2022-23 में ड्रोन के जरीए कृषि क्षेत्र को बढ़ावा दिया जाएगा. इस से फसल मूल्यांकन, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण, कीटनाशकों व पोषक तत्त्वों के छिड़काव में मदद मिलेगी. खाद्यान्न उत्पादन में निरंतर वृद्धि जारी है. आंकड़ों के अनुसार, साल 2020-21 के दौरान देश में खाद्यान्न उत्पादन बीते 5 साल में सब से ज्यादा रहा.

सोचने और सम?ाने की बात है कि देश में पिछले कई सालों से हमारी खेती का जो क्षेत्रफल है, वह सीमित है, लेकिन किसानों और वैज्ञानिकों की मदद से हाईटैक खेती को अपनाते हुए खाद्यान्न उत्पादन लगातार बढ़ रहा है, जिस के लिए देश के किसान और वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं.

क्या है ड्रोन?

ड्रोन एक ऐसा मानवरहित विमान है, जिसे दूर से ही नियंत्रित तरीके से उड़ाया जा सकता है. इस के खेती में इस्तेमाल की अपार संभावनाएं हैं. एक सामान्य ड्रोन की संरचना ‘4 विंग’ यानी यह 4 पंखों वाला होता है, इसलिए इसे ‘क्वाडकौप्टर’ भी कहा जाता है. असल में यह नाम इस के उड़ने के चलते इसे मिला.

यह बिलकुल एक मधुमक्खी की तरह उड़ता है और एक जगह पर स्थिर भी रह सकता है. ड्रोन को कई तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है. जैसे, उस के उड़ने की ऊंचाई के आधार पर, उस के आकार के आधार पर, उस के वजन उठाने की क्षमता के आधार पर, उस की पहुंच क्षमता के आधार पर आदि, परंतु मुख्य रूप से इस के वायु गतिकीय के आधार पर वर्गीकृत किया गया है.

किसानों के लिए

ड्रोन फायदेमंद

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ में पिछले दिनों ड्रोन के माध्यम से खेतों में कीटनाशकों व खरपतवारनाशक रसायनों का छिड़काव करने का प्रदर्शन किया गया. इस का उद्घाटन विश्वविद्यालय के कुलपति डा. आरके मित्तल ने किया. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि ड्रोन किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा.

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कुलपति डा. आरके मित्तल ने यह भी कहा कि ड्रोन एक तकनीक से भरापूरा होने के चलते युवा पीढ़ी को यकीनन आकर्षित करेगा और खेती की तरफ कदम बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेगा. इस की भविष्य में काफी जरूरत रहेगी. इस समय बहुआयामी क्षमताओं से भरापूरा ड्रोन कृषि उत्पादन में प्रबंधन के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होगा. इस पर भारत के साथसाथ कई दूसरे देशों में रिसर्च जारी है. इस को कृषि के विभिन्न कामों में दक्षता व आसानी से इस्तेमाल में लाया जा सकेगा.

उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भी इस को खरीद कर अपनी खेतीकिसानी में इस्तेमाल कर सकेंगे. अब वह दिन दूर नहीं, जब ड्रोन का रिमोट किसानों के हाथ में होगा. इस के लिए कृषि विश्वविद्यालय कोशिश कर रहा है. परिसर में पिछले दिनों इस का प्रदर्शन कर के इस की संभावनाएं और भी बढ़ा दी हैं.

कुलपति डा. आरके मित्तल ने बताया कि समय व जलवायु परिवर्तन के साथसाथ खेती में जहां समस्याओं का आकार व स्वरूप बदला है, वहीं किसानों पर लागत में कमी लाते हुए ज्यादा उत्पादन का दबाव भी बढ़ा है.

उन्होंने कहा कि जहां पर यह किसानों की सेहत के साथसाथ उन के समय को बचाएगा, वहीं उन के खर्च में भी कमी आएगी और नैनोफर्टिलाइजर आदि का समान रूप से छिड़काव अपने खेत में किसान बहुत ही कम समय में कर सकेंगे.

कृषि में ड्रोन की बढ़ सकेगी भूमिका

ड्रोन कृषि प्रबंधन के संचालन के लिए पारंपारिक हवाई वाहनों की अपेक्षा उच्च परिशुद्धता और कम ऊंचाई की उड़ान भर कर छोटे आकार के खेतों में काम करने की क्षमता रखता है.

ड्रोन खेतों के हालात जानने के लिए डाटा इकट्ठा करने और उन का विश्लेषण करने से कामों में विभिन्न अवयवों व घटकों के उचित और सटीक रूप से प्रबंधन में सहायक सिद्ध हो सकता है.

इस ड्रोन की कीमत तकरीबन 6,00,000 रुपए आती है. इस के टैंक की क्षमता 10 लिटर  है, जिस में दवा भर कर खेत में आसानी से छिड़काव किया जा सकता है. 15 मिनट में तकरीबन एक एकड़ क्षेत्रफल में यह अच्छी तरह छिड़काव करता है. छिड़काव करने पर समय की बचत के साथसाथ लेबर की भी बचत होती है.

ऐसे हालात जहां परंपरागत मशीनों का उपयोग करना चुनौती से भरा है, वहां पर इस का इस्तेमाल किया जा सकता है. जैसे जब किसानों के खेत गीले हों, उस में चलने में मुश्किल हो रही हो. इस के अलावा गीले धान का खेत हो, गन्ना हो, मक्का व कपास की फसल, नारियल और चाय बागान, लीची के बागान, आम के बागान आदि में विभिन्न ऊंचाइयों पर जा कर ड्रो की मदद से आसानी से छिड़काव किया जा सकता है.

सीड कौप्टर ड्रोन से बीजारोपण

देश में कई तरह के ड्रोन विकसित हो चुके हैं, जिस से पब्लिक मौनिटरिंग वार्निंग ड्रोन आदि के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.

आज ड्रोन के जरीए तेजी से बीजारोपण भी किया जा सकता है. अगर बोआई में ड्रोन का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है, तो निश्चित रूप से देश में एक ड्रोन क्रांति जरूर कुछ ही सालों में दिखाई देगी.

कंपनियों द्वारा कई ऐसे ड्रोन विकसित किए गए हैं, जिन से 20 से 25 एकड़ खेत की बोआई कम समय में आसानी से की जा सकती है. इन ड्रोन में एक बार में 25 से 30 किलोग्राम बीज रख कर आसानी से बोआई की जा सकती है. पूरी तरह से स्वचालित यह ड्रोन घंटेभर में तकरीबन 10 एकड़ खेत बो सकता है. ड्रोन से दवा के छिड़काव के लिए किसानों को खुद खेत में नहीं जाना पड़ेगा. इसे भारत में निर्मित सब से बड़ा ड्रोन माना जा रहा है. इसे भारत के किसानों की जरूरतों को ध्यान में रख कर डिजाइन किया गया है.

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कृषि में देगा रोजगार

ड्रोन रोजगार का एक ऐसा क्षेत्र है, जिस में ड्रोन का परिचालन (पायलटिंग) सीख कर ऐसे नौजवान, जिन की उम्र 18 साल से ज्यादा है, तकरीबन 20,000 से 30,000 रुपए प्रति माह की कमाई आसानी से कर सकेंगे. इस के लिए पायलट के पास प्रशिक्षण प्रमाणपत्र होना जरूरी है.

देशभर में कई सरकारी व गैरसरकारी संस्थाओं ने ड्रोन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू कर दिए हैं. नौजवानों में ड्रोन के प्रति नया जोश देखने को मिल रहा है.

नागर विमानन महानिदेशालय के मुताबिक, ड्रोन को टेकऔफ वेट के अनुसार कुछ भागों में बांटा गया है :

* नैनो 250 ग्राम से कम या बराबर (सूक्ष्म).

* 250 ग्राम से बड़ा और 2 किलोग्राम से कम या बराबर (मिनी).

* 2 किलोग्राम से बड़ा और 25 किलोग्राम से कम या बराबर (बड़ा).

* 150 किलोग्राम से बड़ा.

व्यावसायिक क्षेत्र में इन को उड़ाने के लिए भारत सरकार द्वारा बनाए गए मापदंडों व नियमों का पालन करना अनिवार्य है.

ड्रोन कृषि प्रबंधन के संचालन के लिए पारंपरिक हवाई वाहनों की अपेक्षा उच्च परिशुद्धता और कम ऊंचाई की उड़ान भर कर छोटे आकार के खेतों में काम करने की क्षमता रखता है.

ड्रोन खेतों के हालात जानने के लिए डाटा जमा करने और उन का विश्लेषण करने व ऐसे कामों में विभिन्न आवेदन वाह घटकों के उचित और सटीक रूप से प्रबंधन में सहायक सिद्ध हो सकता है.

ऐसे हालात जहां परंपरागत मशीनों का इस्तेमाल करना चुनौती से भरा साबित हुआ है, वहां पर ड्रोन काफी कामयाब साबित हो सकते हैं. इन के उपयोग से खेती की उत्पादकता को आसानी से बढ़ाया जा सकता है.

उदाहरण के लिए, धान का खेत, गन्ना, मक्का व कपास की फसल, नारियल और चाय बागान, बागबानी के क्षेत्र में, आम के पेड़ों, लीची के पेड़ों, आड़ू आदि के पेड़ों में ड्रोन की उपयोगिता बहुत खास व उपयोगी है, क्योंकि इस टैक्नोलौजी से इन बड़ेबड़े पेड़ों

पर आसानी से समान रूप से दवाओं का छिड़काव कर के रोग नियंत्रण या कीट नियंत्रण में कामयाबी हासिल की जा सकती है.

टैक्नोलौजी के विकास के साथसाथ ड्रोन के कलपुरजे सस्ते और दक्षपूर्ण होंगे. इन से लंबे अंतराल के लिए हवा में सस्ती उड़ान भरी जा सकेगी. इन का उपयोग कृषि प्रबंधन में आर्थिक रूप से भी फायदेमंद साबित होगा. खेती के कामों में उपयोग कर के इसे कम आमदनी का जरीया मान कर युवा पीढ़ी का खेती से मोह भंग हो रहा था, लेकिन अब नई टैक्नोलौजी और ड्रोन जैसी टैक्नोलौजी के आ जाने से लोगों का आकर्षण इस ओर बढ़ेगा और युवा अब गांव में ही रह कर खेती की ओर आकर्षित होंगे और नई टैक्नोलौजी का समावेश कर उच्च गुणवत्तायुक्त फलफूलों का उत्पादन कर सकेंगे.

वह दिन दूर नहीं, जब ड्रोन का रिमोट किसानों के हाथ में होगा और मोबाइल फोन की तरह वे इसे अपने जीवन में तेजी से अपना कर इस से भरपूर फायदे के लिए खेतों पर चलते हुए नजर आएंगे.

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में ड्रोन टैक्नोलौजी का प्रदर्शन और इस की लौंचिंग की गई. इस दौरान देखा गया कि कृषि विश्वविद्यालय के कार्य क्षेत्र में आने वाले विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों के किसानों ने इस टैक्नोलौजी को बहुत नजदीक से इस के प्रदर्शनों को देखा और इस को किसानों के लिए काफी उपयोगी बताया.

कृषि विश्वविद्यालय में ड्रोन के द्वारा किए गए छिड़काव को देख कर किसानों ने खुशी जाहिर की और कहा कि यह तकनीक भविष्य में किसानों के लिए काफी फायदेमंद होगी.

इस अवसर पर प्रेमपाल सिंह, अखिल कुमार, प्रमोद आदि मौजूद रहे.

किसानों का मानना है कि यदि ड्रोन की कीमत कम हो जाती है या फिर सरकारी लैवल पर खरीद कर किसानों को न्यूनतम दर पर छिड़काव के लिए ड्रोन उपलब्ध होते हैं, तो निश्चित रूप से कृषि के क्षेत्र में ड्रोन एक बदलाव लाने में कामयाब साबित होंगे.

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स बार के बजट 2022-23 में ड्रोन के जरीए कृषि क्षेत्र को बढ़ावा दिया जाएगा. इस से फसल मूल्यांकन, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण, कीटनाशकों व पोषक तत्त्वों के छिड़काव में मदद मिलेगी. खाद्यान्न उत्पादन में निरंतर वृद्धि जारी है. आंकड़ों के अनुसार, साल 2020-21 के दौरान देश में खाद्यान्न उत्पादन बीते 5 साल में सब से ज्यादा रहा.

सोचने और सम?ाने की बात है कि देश में पिछले कई सालों से हमारी खेती का जो क्षेत्रफल है, वह सीमित है, लेकिन किसानों और वैज्ञानिकों की मदद से हाईटैक खेती को अपनाते हुए खाद्यान्न उत्पादन लगातार बढ़ रहा है, जिस के लिए देश के किसान और वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं.

क्या है ड्रोन?

ड्रोन एक ऐसा मानवरहित विमान है, जिसे दूर से ही नियंत्रित तरीके से उड़ाया जा सकता है. इस के खेती में इस्तेमाल की अपार संभावनाएं हैं. एक सामान्य ड्रोन की संरचना ‘4 विंग’ यानी यह 4 पंखों वाला होता है, इसलिए इसे ‘क्वाडकौप्टर’ भी कहा जाता है. असल में यह नाम इस के उड़ने के चलते इसे मिला.

यह बिलकुल एक मधुमक्खी की तरह उड़ता है और एक जगह पर स्थिर भी रह सकता है. ड्रोन को कई तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है. जैसे, उस के उड़ने की ऊंचाई के आधार पर, उस के आकार के आधार पर, उस के वजन उठाने की क्षमता के आधार पर, उस की पहुंच क्षमता के आधार पर आदि, परंतु मुख्य रूप से इस के वायु गतिकीय के आधार पर वर्गीकृत किया गया है.

किसानों के लिए ड्रोन फायदेमंद

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ में पिछले दिनों ड्रोन के माध्यम से खेतों में कीटनाशकों व खरपतवारनाशक रसायनों का छिड़काव करने का प्रदर्शन किया गया. इस का उद्घाटन विश्वविद्यालय के कुलपति डा. आरके मित्तल ने किया. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि ड्रोन किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा.

कुलपति डा. आरके मित्तल ने यह भी कहा कि ड्रोन एक तकनीक से भरापूरा होने के चलते युवा पीढ़ी को यकीनन आकर्षित करेगा और खेती की तरफ कदम बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेगा. इस की भविष्य में काफी जरूरत रहेगी. इस समय बहुआयामी क्षमताओं से भरापूरा ड्रोन कृषि उत्पादन में प्रबंधन के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होगा. इस पर भारत के साथसाथ कई दूसरे देशों में रिसर्च जारी है. इस को कृषि के विभिन्न कामों में दक्षता व आसानी से इस्तेमाल में लाया जा सकेगा.

उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भी इस को खरीद कर अपनी खेतीकिसानी में इस्तेमाल कर सकेंगे. अब वह दिन दूर नहीं, जब ड्रोन का रिमोट किसानों के हाथ में होगा. इस के लिए कृषि विश्वविद्यालय कोशिश कर रहा है. परिसर में पिछले दिनों इस का प्रदर्शन कर के इस की संभावनाएं और भी बढ़ा दी हैं.

कुलपति डा. आरके मित्तल ने बताया कि समय व जलवायु परिवर्तन के साथसाथ खेती में जहां समस्याओं का आकार व स्वरूप बदला है, वहीं किसानों पर लागत में कमी लाते हुए ज्यादा उत्पादन का दबाव भी बढ़ा है.

उन्होंने कहा कि जहां पर यह किसानों की सेहत के साथसाथ उन के समय को बचाएगा, वहीं उन के खर्च में भी कमी आएगी और नैनोफर्टिलाइजर आदि का समान रूप से छिड़काव अपने खेत में किसान बहुत ही कम समय में कर सकेंगे.

कृषि में ड्रोन की बढ़ सकेगी भूमिका

ड्रोन कृषि प्रबंधन के संचालन के लिए पारंपारिक हवाई वाहनों की अपेक्षा उच्च परिशुद्धता और कम ऊंचाई की उड़ान भर कर छोटे आकार के खेतों में काम करने की क्षमता रखता है.

ड्रोन खेतों के हालात जानने के लिए डाटा इकट्ठा करने और उन का विश्लेषण करने से कामों में विभिन्न अवयवों व घटकों के उचित और सटीक रूप से प्रबंधन में सहायक सिद्ध हो सकता है.

इस ड्रोन की कीमत तकरीबन 6,00,000 रुपए आती है. इस के टैंक की क्षमता 10 लिटर  है, जिस में दवा भर कर खेत में आसानी से छिड़काव किया जा सकता है. 15 मिनट में तकरीबन एक एकड़ क्षेत्रफल में यह अच्छी तरह छिड़काव करता है. छिड़काव करने पर समय की बचत के साथसाथ लेबर की भी बचत होती है.

ऐसे हालात जहां परंपरागत मशीनों का उपयोग करना चुनौती से भरा है, वहां पर इस का इस्तेमाल किया जा सकता है. जैसे जब किसानों के खेत गीले हों, उस में चलने में मुश्किल हो रही हो. इस के अलावा गीले धान का खेत हो, गन्ना हो, मक्का व कपास की फसल, नारियल और चाय बागान, लीची के बागान, आम के बागान आदि में विभिन्न ऊंचाइयों पर जा कर ड्रो की मदद से आसानी से छिड़काव किया जा सकता है.

सीड कौप्टर ड्रोन से बीजारोपण

देश में कई तरह के ड्रोन विकसित हो चुके हैं, जिस से पब्लिक मौनिटरिंग वार्निंग ड्रोन आदि के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.

आज ड्रोन के जरीए तेजी से बीजारोपण भी किया जा सकता है. अगर बोआई में ड्रोन का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है, तो निश्चित रूप से देश में एक ड्रोन क्रांति जरूर कुछ ही सालों में दिखाई देगी.

कंपनियों द्वारा कई ऐसे ड्रोन विकसित किए गए हैं, जिन से 20 से 25 एकड़ खेत की बोआई कम समय में आसानी से की जा सकती है. इन ड्रोन में एक बार में 25 से 30 किलोग्राम बीज रख कर आसानी से बोआई की जा सकती है. पूरी तरह से स्वचालित यह ड्रोन घंटेभर में तकरीबन 10 एकड़ खेत बो सकता है. ड्रोन से दवा के छिड़काव के लिए किसानों को खुद खेत में नहीं जाना पड़ेगा. इसे भारत में निर्मित सब से बड़ा ड्रोन माना जा रहा है. इसे भारत के किसानों की जरूरतों को ध्यान में रख कर डिजाइन किया गया है.

कृषि में देगा रोजगार

ड्रोन रोजगार का एक ऐसा क्षेत्र है, जिस में ड्रोन का परिचालन (पायलटिंग) सीख कर ऐसे नौजवान, जिन की उम्र 18 साल से ज्यादा है, तकरीबन 20,000 से 30,000 रुपए प्रति माह की कमाई आसानी से कर सकेंगे. इस के लिए पायलट के पास प्रशिक्षण प्रमाणपत्र होना जरूरी है.

देशभर में कई सरकारी व गैरसरकारी संस्थाओं ने ड्रोन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू कर दिए हैं. नौजवानों में ड्रोन के प्रति नया जोश देखने को मिल रहा है.

नागर विमानन महानिदेशालय के मुताबिक, ड्रोन को टेकऔफ वेट के अनुसार कुछ भागों में बांटा गया है :

* नैनो 250 ग्राम से कम या बराबर (सूक्ष्म).

* 250 ग्राम से बड़ा और 2 किलोग्राम से कम या बराबर (मिनी).

* 2 किलोग्राम से बड़ा और 25 किलोग्राम से कम या बराबर (बड़ा).

* 150 किलोग्राम से बड़ा.

व्यावसायिक क्षेत्र में इन को उड़ाने के लिए भारत सरकार द्वारा बनाए गए मापदंडों व नियमों का पालन करना अनिवार्य है.

ड्रोन कृषि प्रबंधन के संचालन के लिए पारंपरिक हवाई वाहनों की अपेक्षा उच्च परिशुद्धता और कम ऊंचाई की उड़ान भर कर छोटे आकार के खेतों में काम करने की क्षमता रखता है.

ड्रोन खेतों के हालात जानने के लिए डाटा जमा करने और उन का विश्लेषण करने व ऐसे कामों में विभिन्न आवेदन वाह घटकों के उचित और सटीक रूप से प्रबंधन में सहायक सिद्ध हो सकता है.

ऐसे हालात जहां परंपरागत मशीनों का इस्तेमाल करना चुनौती से भरा साबित हुआ है, वहां पर ड्रोन काफी कामयाब साबित हो सकते हैं. इन के उपयोग से खेती की उत्पादकता को आसानी से बढ़ाया जा सकता है.

उदाहरण के लिए, धान का खेत, गन्ना, मक्का व कपास की फसल, नारियल और चाय बागान, बागबानी के क्षेत्र में, आम के पेड़ों, लीची के पेड़ों, आड़ू आदि के पेड़ों में ड्रोन की उपयोगिता बहुत खास व उपयोगी है, क्योंकि इस टैक्नोलौजी से इन बड़ेबड़े पेड़ों

पर आसानी से समान रूप से दवाओं का छिड़काव कर के रोग नियंत्रण या कीट नियंत्रण में कामयाबी हासिल की जा सकती है.

टैक्नोलौजी के विकास के साथसाथ ड्रोन के कलपुरजे सस्ते और दक्षपूर्ण होंगे. इन से लंबे अंतराल के लिए हवा में सस्ती उड़ान भरी जा सकेगी. इन का उपयोग कृषि प्रबंधन में आर्थिक रूप से भी फायदेमंद साबित होगा. खेती के कामों में उपयोग कर के इसे कम आमदनी का जरीया मान कर युवा पीढ़ी का खेती से मोह भंग हो रहा था, लेकिन अब नई टैक्नोलौजी और ड्रोन जैसी टैक्नोलौजी के आ जाने से लोगों का आकर्षण इस ओर बढ़ेगा और युवा अब गांव में ही रह कर खेती की ओर आकर्षित होंगे और नई टैक्नोलौजी का समावेश कर उच्च गुणवत्तायुक्त फलफूलों का उत्पादन कर सकेंगे.

वह दिन दूर नहीं, जब ड्रोन का रिमोट किसानों के हाथ में होगा और मोबाइल फोन की तरह वे इसे अपने जीवन में तेजी से अपना कर इस से भरपूर फायदे के लिए खेतों पर चलते हुए नजर आएंगे.

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में ड्रोन टैक्नोलौजी का प्रदर्शन और इस की लौंचिंग की गई. इस दौरान देखा गया कि कृषि विश्वविद्यालय के कार्य क्षेत्र में आने वाले विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों के किसानों ने इस टैक्नोलौजी को बहुत नजदीक से इस के प्रदर्शनों को देखा और इस को किसानों के लिए काफी उपयोगी बताया.

कृषि विश्वविद्यालय में ड्रोन के द्वारा किए गए छिड़काव को देख कर किसानों ने खुशी जाहिर की और कहा कि यह तकनीक भविष्य में किसानों के लिए काफी फायदेमंद होगी.

इस अवसर पर प्रेमपाल सिंह, अखिल कुमार, प्रमोद आदि मौजूद रहे.

किसानों का मानना है कि यदि ड्रोन की कीमत कम हो जाती है या फिर सरकारी लैवल पर खरीद कर किसानों को न्यूनतम दर पर छिड़काव के लिए ड्रोन उपलब्ध होते हैं, तो निश्चित रूप से कृषि के क्षेत्र में ड्रोन एक बदलाव लाने में कामयाब साबित होंगे.

 खेती में ड्रोन की उपयोगिता

* कीटनाशक व खरपतवारनाशक रसायनों के छिड़काव में.

* फसल में रोगों व कीटों के स्तर की जांच व उपचार में.

* खेतों की भौगोलिक हालत का आकलन करने में.

* तरल और ठोस उर्वरकों का छिड़काव करने में.

* फसल अवशेषों के अपघटन के लिए छिड़काव करने में.

* सिंचाई व हाइड्रोजैल का छिड़काव करने में.

* खेतों व जंगलों में बीजों का छिड़काव करने में.

* फसल को कीटों व टिड्डियों के आक्रमण से बचाने में.

* मवेशियों व जंगली जानवरों से फसल को बचाने में.

* मृदा के ३ष्ठ मानचित्र के विश्लेषण में.

बलात्कार: महिलाओं के खिलाफ होने वाला सबसे आम अपराध!

लेखिकानिकिता डोगरे

बलात्कार भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाला सबसे आम अपराध हो गया है. हर 6 घंटे में एक महिला रेप का शिकार बन जाती है, जिसमें से हर चौथी लड़की नाबालिग होती है. ऐसी ही एक घटना 11 जनवरी 2021 को मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में हुई, जिसके बारे में सुन कर किसी का भी दिल देहेल जाएगा. 13 साल की एक मासूम जबलपुर में अपने पिता के साथ रहती थी और वहीं से अपनी पढ़ाई कर रही थी. पुलिस के अनुसार लड़की के पिता जबलपुर में सरकारी नौकर थे.

9वीं की ये छात्रा लॉकडॉउन के उपरांत कुछ दिनों के लिए अपनी मां के पास जबलपुर से उमरिया आयी थी. 4 जनवरी 2021 को जब वह अपनी मां के साथ बाज़ार में सब्जी खरीदने गई तभी दो दरिंदों ने उसको बहला फुसलाकर उसका अपहरण कर लिया. अपहरण कर वे उस बच्ची को जंगल में अपने पूर्वनिर्धरित अड्डे पर ले गए और वहां  ले जाकर इस शर्मनाक घटना को अंजाम दिया. वहां से निकलने के बाद दोनों अपराधी उस बच्ची को पास के एक ढाबे पर ले गए जहां उनके अन्य साथी मौजूद थे.

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ढाबे के मालिक समेत पांच लोगों ने उस लड़की का बेरहमी से सामूहिक बलात्कार किया और फिर उसको रस्सियों से बांध दिया. पांच दिन तक नाबालिग के साथ दुष्कर्म होता रहा. वहीं उसकी मां अपनी बेटी के खो जाने पर काफी परेशान हो रही थी. आरोपियों ने पीड़िता को किसी को भी कुछ भी बताने या पुलिस में खबर करने पर जान से मार देने की धमकी देकर रिहा कर दिया. भयभीत बालिका ने किसी से भी इस बात का ज़िक्र नहीं किया.

11 जनवरी 2021 को  पहली वारदात में हुए शामिल एक आरोपी ने पुनः उस बालिका का अपहरण करके उसके साथ दुष्कर्म किया और रास्ते पर छोड़ दिया. सहायता करने के बजाय दो ट्रक चालकों ने भी उस नाबालिक का कथित तौर पर बड़ी बेरहमी रेप किया और उसको विलायत कला बड़वारा के समीप टोल नाके पर छोड़ गए. 15 जनवरी 2021 को जैसे तैसे भयभीत बालिका घर पहुंची और उसने अपनी मां के सामने पूरी घटना वर्णित की तब उन्होंने अमरिया पुलिस स्टेशन जाकर उसकी रिपोर्ट दर्ज करवाई. पीड़िता के बयान के आधार पर पुलिस ने गैंग रेप और पोस्को एक्ट के तहत केस दर्ज किया और आगे की कार्रवाही प्रारंभ की. उमरिया पुलिस ने इस बलात्कार के मामले में 7 आरोपियों को पकड़ लिया है और बाकी दो फरार हुए आरोपियों की खोज दो टीमों द्वारा की जा रही है.

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हैरानी की बात तो ये है के बच्ची ने जिससे भी मदद मांगी, उसने ही इस शर्मनाक हरकत को अंजाम दिया. यह मामला काफी गंभीर है और लोगों के असभ्य और पशुवत भाव को दर्शाता है. ऐसी हर चीज पर कठोर प्रतिबंध लगाना चाहिए जो इन लोगों को बढ़ावा देती हैं क्योंकि इस प्रकार घटना पहली बार तो नहीं बल्कि सालों से होती चली आ रही है. एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों के अनुसार भारत में हर एक दिन में बलात्कार के 88 मामले दर्ज किए जाते हैं  जिसका अंजाम देश की बेटियों को भुगतना पढ़ता है. कानून को ऐसे लोगों के प्रति और सख्त होना पढ़ेगा क्यूंकि कहीं ना कहीं बढ़ते बलात्कार के मामलों का कारण उन दरिंदों के मन में कानून के प्रति डर का अभाव है.

तपस्या- भाग 1 : क्या शिखर के दिल को पिघला पाई शैली

सागर विश्वविद्यालय का एम.ए. फाइनल का आखिरी परचा दे कर मंजरी हाल से बाहर आई. वह यह परीक्षा प्राइवेट छात्रा के रूप में दे रही थी. 6 महीने पहले एक दुर्घटना में उस के मातापिता का देहांत हो गया था और उस के बाद वह अपने चाचा के यहां रहने लगी थी. हाल से बाहर आते ही उसे अपनी पुरानी सहेली सीमा दिखाई दी. दोनों बड़े प्यार से मिलीं.

‘‘मंजरी, आज कितना हलका लग रहा है. है न? तेरे परचे कैसे हुए?’’

‘‘अच्छे हुए, तेरे कैसे हुए?’’

‘‘पास तो खैर हो जाऊंगी. तेरे जैसी होशियार तो हूं नहीं कि प्रथम श्रेणी की उम्मीद करूं. चल, मंजरी, छात्रावास में चल कर जी भर कर बातें करेंगे.’’

‘‘नहीं, सीमा, मुझे जल्दी जाना है. यहीं पेड़ की छांव में बैठ कर बातें करते हैं.’’

दोनों छांव में बैठ गईं.

‘‘मंजरी, तुम्हारे मातापिता की मृत्यु इतनी अकस्मात हो गई कि आज भी सच नहीं लगता. चाचाजी के यहां तू खुश तो है न?’’

मंजरी की आंखों में आंसू छलक आए. वह आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘चाचाजी के यहां सब लोग बड़े अच्छे स्वभाव के हैं. वहां पैसे की कोई कमी नहीं है. सब ठाटबाट से आधुनिक ढंग से रहते हैं. लेकिन सीमा, मुझे वहां रहना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘क्यों भला?’’

‘‘देखो, सीमा, मेरे पिताजी साधारण लिपिक थे और चाचाजी प्रखर बुद्धि के होने के कारण आई.ए.एस. हो गए. दोनों भाइयों की स्थिति में इतना अंतर था कि मेरे पिताजी हमेशा हीनभावना से पीडि़त रहते थे. फिर भी वह स्वाभिमानी थे. इसीलिए उन्होंने हमें चाचाजी के घर से यथासंभव दूर रखा था.

‘‘उन्हें बहुत दुख था कि बचपन में उन्होंने पढ़ाई की तरफ ध्यान नहीं दिया. अपनी यह कमी वह मेरे द्वारा पूरी करना चाहते थे. आर्थिक स्थिति कमजोर थी, फिर भी उन्होंने शुरू से ही मुझे अच्छे स्कूल में पढ़ाया. हर साल मुझे प्रथम श्रेणी में पास होते देख वह फूले नहीं समाते थे.’’

‘‘जाने दे ये दुखद बातें. चाचाजी के घर के बारे में बता.’’

‘‘चाचाजी के 2 बच्चे हैं. बड़ी लड़की रश्मि मेरी उम्र की है और वह भी एम.ए. फाइनल की परीक्षा दे रही है. छोटा कपिल कालिज में पढ़ता है. सीमा, तुझे यह सुन कर आश्चर्य होगा कि रश्मि और मैं चचेरी बहनें हैं, फिर भी हमारी शक्लसूरत एकदम मिलतीजुलती है.’’

‘‘तो इस का मतलब यह कि रश्मि बहन भी तुझ जैसी सुंदर है. है न?’’

‘‘रंग तो उस का इतना साफ नहीं, पर अच्छे कपड़ेलत्तों और आधुनिक साजशृंगार से वह काफी आकर्षक लगती है. तभी तो उस की शादी समीर जैसे लड़के से तय हुई है. आज 5 तारीख है न, 20 तारीख को दिल्ली में उन की शादी है.’’

‘‘अच्छा, यह तो बड़ी खुशी की बात है. पर यह समीर है कौन और करता क्या है?’’

‘‘समीर चाचाजी के पुराने मित्र रामसिंहजी का बेटा है. रामसिंहजी मथुरा में ऊंचे पद पर हैं. उन की 2 लड़कियां हैं और एक बेटा. लड़कियों की शादी हो चुकी है. समीर भी आई.ए.एस. है और आजकल सरगुजा में अतिरिक्त कलक्टर के पद पर कार्य कर रहा है. देखने में सुंदर, हंसमुख और स्वस्थ है.’’

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‘‘तो क्या यह प्रेम विवाह है?’’

‘‘प्रेम विवाह तो नहीं कह सकते, लेकिन दोनों एकदूसरे को जानते हैं.’’

‘‘मंजरी, अपने चाचाजी से कहना कि तेरे लिए भी ऐसा ही लड़का ढूंढ़ दें.’’

‘‘हट, कैसी बातें करती है? कहां रश्मि और कहां मैं. पगली, समीर सरीखा पति पाने के लिए मांबाप का रईस होना आवश्यक है और मेरे तो मांबाप ही नहीं हैं. मैं तो शादी की बात सोच भी नहीं सकती. पास होते ही मैं नौकरी तलाश करूंगी. चाचाजी पर मैं और ज्यादा बोझ नहीं डालना चाहती.’’

रहस्यमय ढंग से हंसते हुए सीमा बोली, ‘‘अरे, तू शादी नहीं करना चाहती, तो अपने चाचाजी से मेरे लिए लड़का ढूंढ़ने के लिए कह दे.’’

चाहत: भाग 3

Writer- रमणी मोटाना

आननफानन उन्होंने चलने की तैयारी कर ली. नन्हा निखिल ‘पापापापा’ चिल्लाता रहा पर वे दोनों उसे जबरदस्ती गोद में उठा कर ले गईं.

रंजीत फटी आंखों से देखता रह गया. उस का संसार सूना हो गया. शीघ्र ही उस के पास तलाकनामे के कागजात आ पहुंचे थे. अमरचंद ने अपनी बेटी को पति से मुक्ति दिलवाने में जरा भी देरी न की थी.

कई दिनों तक मेनका मर्माहत सी पड़ी रही. चाह कर भी वह रंजीत को भुला नहीं पा रही थी. अकेले में वह पिछली बातों को याद कर रोती रहती.

उस के मांबाप उसे सम?ाने की कोशिश करते.

‘‘उस रंजीत के लिए आंसू बहाना बेकार है बेटी, वह तुम्हारे लायक नहीं था. हम तुम्हें दोबारा ब्याहेंगे. इस बार तुम्हारे लिए ऐसा लड़का ढूंढें़गे जो तुम्हें पलकों पर बैठा कर रखे.’’

मातापिता की बातें सुन कर मेनका के मन में सवाल उठता, ‘‘क्या वह आदमी निखिल को पिता का प्यार देगा? क्या वह उसे जीजान से अपनाएगा?’’

रंजीत पुणे पहुंचा था. आज उस का निखिल से मिलने का दिन था. तलाक की शर्तों के मुताबिक सप्ताह में एक दिन

2 घंटे के लिए उसे अपने बेटे से मिलने की इजाजत थी.

समय से थोड़ा पहले ही वह अमरचंद की कोठी के बाहर जा पहुंचा. फाटक पर खड़े संतरी ने उसे सलाम ठोंका.

‘‘जरा अंदर खबर कर दो कि मैं निखिल से मिलने आया हूं.’’

‘‘जी साहब,’’ संतरी बोला.

मोटरसाइकिल खड़ी कर के रंजीत सड़क पर टहलने लगा. उस ने सहसा गौर किया कि एक संदिग्ध व्यक्ति फाटक के आसपास मंडरा रहा है. रंजीत ने उस पर सरसरी नजर डाली. शक्ल से वह आदमी मवाली लगता था. फिर सोचा, होगा कोई और रंजीत का ध्यान उस की ओर से हट गया.

‘‘निखिल बाबा तैयार हो रहा है,’’ संतरी ने आ कर सूचना दी.

रंजीत वहीं गेट के पास चहलकदमी करने लगा. तभी घर के अंदर से अचानक एक जोर की चीख सुनाई दी. फिर एकसाथ कई लोगों के चीखने की आवाज आई.

संतरी बंगले की ओर दौड़ा. रंजीत भी पीछे हो लिया.

अंदर पहुंच कर रंजीत ने देखा कि घर के बाहर जो व्यक्ति मंडरा रहा था, अब अंदर जा पहुंचा था. उस ने एक हाथ से निखिल को दबोच रखा था और दूसरे हाथ में पकड़े छुरे को निखिल की गरदन पर रखा हुआ था.

रंजीत ने देखा कि घर के सब सदस्य सहमे हुए से खड़े थे. नौकरचाकर भी भयभीत मुद्रा में खड़े थे. किसी को कुछ सू?ा नहीं रहा था. सब सकते में आ गए थे.

तभी वह आदमी कड़क कर बोला, ‘‘अगर बच्चे की सलामती चाहते हो

तो फौरन रुपया और गहना मेरे हवाले करो.’’

‘‘मम्मी,’’ निखिल सहसा चीखा. शायद छुरे की नोक उस की गरदन में चुभ गई थी. टपटप खून बहने लगा और उस की कमीज लाल होने लगी.

मेनका की चीख निकल गई. रंजीत मौका ताड़ कर उस आदमी पर टूट पड़ा. इस अचानक हमले से वह व्यक्ति बौखला गया. पलक ?ापकते रंजीत ने उस की कलाई पर इतनी जोर का हाथ मारा कि छुरा छिटक कर दूर जा पड़ा और फिर उस की खूब जम कर पिटाई की. फौजी हाथ पड़ते ही वह आदमी अपने प्राणों की भीख मांगने लगा.

‘‘मेनका, जल्दी से पुलिस को फोन करो,’’ रंजीत बोला.

थोड़ी देर बाद रंजीत निखिल को गोद में लिए बैठा उस का खून पोंछ रहा था. निखिल अभी भी भय से कांप रहा था और मेनका उसे आंसूभरी नजरों से देख

रही थी.

‘‘ओह रंजीत, तुम ठीक समय पर आ गए. यदि तुम न आते तो पता नहीं आज क्या होता,’’ मेनका बोली.

‘‘मम्मी, तुम ने देखा, पापा ने कैसे उस चोर की पिटाई की? ढिशुमढिशुम, बिलकुल सुपरमैन की तरह,’’ थोड़ा संभलने के बाद निखिल बोला.

‘‘बेटा, मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं,’’ अमिता बोली.

‘‘मम्मीजी, चाय पीने की इच्छा नहीं है. आप लोग तो, बस, इजाजत दें ताकि मैं निखिल को बाहर घुमाने ले जा सकूं.’’

और रंजीत निखिल को गोद में उठाते बोला, ‘‘क्यों, बेटा, बाहर चलना है?’’

‘‘हां, पापा,’’ निखिल खुश हो

कर बोला.

‘‘बैटमैन की पिक्चर देखनी है या होटल में हैमबर्गर और आइसक्रीम खानी है?’’

‘‘दोनों.’’

‘‘रंजीत, जरा रुको, मैं भी चलती हूं,’’ मेनका सहसा बोली.

रंजीत ने उस की ओर हैरत से देखा.

‘‘तुम चलोगी?’’

‘‘हां, मेरा भी थोड़ा घूमने का मन है.’’

मेनका की मौन आंखों की भाषा रंजीत ने पढ़ ली.

‘‘ठीक है, चलो,’’ रंजीत बोला.

‘‘मोटरगाड़ी में चलें?’’ मेनका ने रंजीत से जैसे इजाजत मांगी.

‘‘नहीं, मोटरसाइकिल पर,’’ कह कर रंजीत मुसकरा उठा.

Naagin 6: शादी से पहले मंडप में ये काम करती दिखीं तेजस्वी

कलर्स टीवी का सीरियल ‘नागिन 6’ को फैंस खूब पसंद कर रहे हैं. शो की कहानी में लगातार ट्विस्ट दिखाया जा रहा है. जिससे फैंस को हाईवोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. ‘नागिन 6’ में इस हफ्ते बड़ा धमाका देखने को मिलेगा. शो से जुड़ा एक वीडियो सामने आया है. आइए बताते हैं इस वीडियो के बारे में.

‘नागिन 6’ का एक बीटीएस वीडियो खूब वायरल हो रहा है, जिसमें एक्ट्रेस तेजस्वी प्रकाश होने वाले पति ऋतेश के साथ मंडप में गोभी के परांठे खाती नजर आईं. एक्ट्रेस के इस वीडियो को उनके फैनपेज ने शेयर किया था. वीडियो में प्रथा और ऋतेश को साथ में परांठे खाते देख उनके को-स्टार ने टांग खींचने का एक भी मौका नहीं छोड़ा.  उन्होंने कहा,  देखो, ये क्या कर रहे हैं, बेशर्मी की भी हद होती है. इसके बाद तेजस्वी प्रकाश अपने बाकी के कलाकारों से भी परांठों के लिए पूछती हैं.

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शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि प्रथा यानी तेजस्वी प्रकाश  सबकी आंखों में धूल झोंकते हुए ऋषभ गुजराल यानी सिंबा नागपाल के साथ शादी के बंधन में बंध जाएगी.

 

बता दें कि ‘बिग बॉस’ से निकलते ही तेजस्वी प्रकाश को  ‘नागिन 6’ का ऑफर मिला. इस बात से तेजस्वी प्रकाश जहां काफी खुश थी. तो वहीं करण कुंद्रा को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था. हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान इस बात का खुलासा तेजस्वी प्रकाश ने खुद किया.

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एक्ट्रेस ने इस बारे में कहा,  करण चाहते थे कि हम छुट्टियों पर जाएं. वही सबसे ज्यादा दुखी थे, जब मैंने इस शो को चुन लिया था, लेकिन उसी वक्त वह इस बात से खुश भी थे कि मैं बालाजी का एक शो कर रही हूं. इटरव्यू में जब एक्ट्रेस से उनके और करण कुंद्रा के रिश्ते के भविष्य के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, अभी मुझे तो कुछ नहीं पता.

 

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तेजस्वी प्रकाश ने कहा कि मुझे लगता है कि टाइम आपको बताएगा. हम केवल सकारात्मक रहने की कोशिश कर रहे हैं. हम इस वक्त प्यार में हैं और मैं कभी भी किसी एक्टर के साथ रिलेशनशिप में नहीं आई तो यह मेरे लिए तो पहली बार है.

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क्रिटिक्स च्वाइस अवार्ड्स के लिए नामांकित स्टार्स ने की चर्चा

महामारी के पिछले दो वर्षों में भारतीय मनोरंजन उद्योग काफी परिवर्तन हुए हैं. इस दो सालों में डिजिटल प्लेटफॉर्म का जमकर विकास हुआ है और कॉन्टेंट को और बेहतर तरीके से दिखाया जा रहा है .  सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार समारोहों में से एक क्रिटिक्स च्वाइस अवार्ड्स द्वारा शॉर्ट फिल्मों, वेब सीरीज और  फीचर फिल्मों में कॉन्टेंट को शानदार समीक्षकों द्वारा काफी सोच समझकर पुरस्कृत किया जाता है . क्रिटिक्स च्वाइस अवार्ड्स के लिए नामांकित सुष्मिता सेन, प्रतीक गांधी और गजराज राव ने  बेहतरीन कहानियों पर चर्चा की  .

फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड की सदस्य सुचरिता त्यागी ने उस सत्र का संचालन किया जिसमें सुष्मिता सेन (वेब सीरीज, आर्या २ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री नामांकित), प्रतीक गांधी (शॉर्ट फिल्म शिम्मी के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता  नामांकित ) और गजराज राव (वेब सीरीज  रे के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता नामांकित) ने भाग लिया. वे महामारी के दौरान परिवार-उन्मुख कहानियों के उद्भव पर चर्चा किये और बात की कैसे ओटीटी क्षेत्र को बदल रहा है.

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सुष्मिता सेन ने कहा कि “महामारी के दौरान लोग अपने परिवारों से दूर हैं और साथ ही जीवन की हानि, कहानी कहने में परिवार के महत्व का उदय हुआ है. यह आपको उन चीजों के बारे में उदासी से दूर करने में मदद करता है जिन्होंने आपके जीवन को प्रभावित किया है.” फिल्म से स्ट्रीमिंग में अपने परिवर्तन पर, वह आगे कहती हैं, “मैं एक ऐसे माध्यम से आती हूं जो शुक्रवार के बारे में था. विभिन्न प्रारूपों को समझने वाले लोगों द्वारा मेरी कभी समीक्षा या सराहना नहीं की गई है, इसलिए जब आलोचक आपको इस तरह सम्मानित करते हैं, तो आपको लगता है कि जैसे आप अपने खेल में माहिर है .”

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प्रतीक गांधी ने कहा कि  “लोगों और मानवीय भावनाओं के बीच संबंध हमेशा कहानी कहने के केंद्र में रहा है, और भारतीय सिनेमा में एक परिवार के बीच का बंधन हमेशा बेहतर रहा है. अंडरवर्ल्ड, वित्तीय थ्रिलर, प्रेम कहानियां, सभी के बारे में हो. विधाएं मनुष्यों के बीच भावनाओं पर ध्यान केंद्रित करती हैं. मुझे इन सूक्ष्म भावनाओं को करने में मजा आता है जो एक कहानी को जटिल बनाती हैं.”

इस लिंक पर क्लिक करके सीसीएसएसए इंडिया फेसबुक पेज पर पूरी बातचीत देखें:

Video: https://fb.watch/bvbo1Q9C1J/

क्रिटिक्स च्वाइस अवार्ड्स आपके लिए फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड और मोशन कंटेंट ग्रुप द्वारा विस्टास मीडिया कैपिटल के सहयोग से लाया गया है. पुरस्कारों के लिए बने रहें!

राजीव सेन और Charu Asopa के मैरिड लाइफ में आई दरार!

टीवी एक्ट्रेस चारू असोपा और राजीव सेन अपने मैरिड लाइफ को लेकर सुर्खियों में छाये हुए है. जी हां, बताया जा रहा है कि इस कपल के रिश्ते में दरार आई है. बता दें कि ये कपल 4 महीने पहले ही पेरेंट्स बने हैं. आइए बताते हैं क्या है पूरा मामला.

राजीव सेन ने अपने यू-ट्यूब चैनल पर बेटी जियाना सेन का एक व्लॉग शेयर कर अपनी बेटी के जल्दी घर लौटने की बात कही थी. वीडियो के कैप्शन में लिखा है कि वो अपने बेटी जियाना को बहुत मिस कर रहे हैं. इस कैप्शन को देखने के बाद कयास लगने लगे हैं कि इनका रिश्ता एक बार फिर कठिन दौर से गुजर रहा है.

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दरअसल सुष्मिता सेन के भाई राजीव सेन और चारू असोपा ने 7 जून 2021 को शादी की थी. और बीते नवंबर में ही एक प्यारी सी बेटी जियाना सेन के मम्मी-पापा बने हैं. चारू असोपा ने कुछ दिनों पहले ही अपनी बेटी के 4 महीने पूरे होने का बर्थडे सेलिब्रेट  किया था. उन्होंने सोशल मीडिया पर फैंस के साथ अपनी फोटोज भी शेयर की. फोटोज में राजीव सेन नहीं नजर आ रहे थे.

 

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रिपोर्ट्स के मुताबिक चारू असोपा अपनी बेटी जियाना सेन के साथ अपने पैरेंट्स के घर बीकानेर गई हैं. इसके बाद से ही ये दोनों एक दूसरे से अलग रहे हैं. खबर आ रही है कि चारू असोपा ने बताया कि राजीव सेन अलग रह रहे हैं.

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बताया जा रहा है कि राजीव सेन ने इन रिपोर्ट्स पर रिएक्ट किया और कहा, मैं खुद अपने घर को क्यों छोड़ूंगा? मैं इन खबरों पर हंसे बिना नहीं रह सकता. मेरे तीन घर हैं. मुंबई में, दुबई में और दिल्ली में. मुझे लगता है कि चारू का कोई करीबी उसे भड़का रहा है.

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उन्होंने आगे कहा कि चारू सिंपल और सीधी-सादी है. वो जरूर उसके बड़े से दोस्तों के ग्रुप में से कोई है. मैं उम्मीद करता हूं कि वो अपना रास्ता न छोड़े. अगर मुझे पता लगा कि वो दोषी कौन है तो मैं जरूर उसका भांडा फोड़ दूंगा.

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