सौजन्य- सत्यकथा

शेयर बाजार की प्रोफेशनल सीईओ चित्रा रामकृष्ण का अज्ञात ‘हिमालयन योगी’ के प्रति आस्थावान और अंधभक्त बने रहना महंगा साबित हुआ.

बिते साल 2012 की बात  है. नवंबर में आने वाली दीपावली को ले कर बाजार में गहमागहमी शुरू हो चुकी थी. कई देशी कंपनियां इस मौके पर नया प्रोजेक्ट लांच करने की योजनाएं बना रही थीं तो पूंजी निवेशक भी शेयर बाजार पर नजर टिकाए हुए थे.

शेयर विश्लेषकों से ले कर ब्रोकर तक निवेशकों पर अपनी सलाह थोप रहे थे. शेयर की दुनिया के महारथियों को 1875 में स्थापित और भारत के 417 शहरों तक पहुंच रखने वाले बौंबे स्टाक एक्सचेंज (बीएसई) से अधिक भरोसा नैशनल स्टाक एक्सचेंज (एनएसई) पर था.

कारण उस में आधुनिक तकनीक से लैस डिजिटल सुविधाओं का होना था. वहां एडवांस्ड एल्गोरिद्म आधारित सुपरफास्ट ट्रेडिंग तकनीक का इस्तेमाल शुरू हो चुका था. इस की बदौलत एनएसई ने 1994 में अपनी शुरुआत के एक साल के भीतर ही  अच्छी साख बना ली थी.

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सब कुछ ठीक चल रहा था. शेयर कारोबार से जुड़े लोगों को इस की डिजिटल सुविधाएं पसंद आई थीं. फिर अचानक 5 अक्तूबर, 2012 को उस में एक तकनीकी खराबी आ गई. उस का खामियाजा निवेशकों को भुगतना पड़ा. उन के लगभग 10 लाख करोड़ रुपए स्वाहा हो गए.

यह एनएसई की साख पर बहुत बड़ा बट्टा लगने जैसा था. इस वजह से न केवल उस के तत्कालीन सीईओ रवि नारायण पर अंगुली उठी, बल्कि उन्हें पद से भी हटा दिया गया. उस के कुछ महीने बाद 13 अप्रैल, 2013 को एनएसई की कमान चार्टर्ड अकाउंटेंट चित्रा रामकृष्ण को सौंप दी गई.

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