सौजन्य- सत्यकथा
शेयर बाजार की प्रोफेशनल सीईओ चित्रा रामकृष्ण का अज्ञात ‘हिमालयन योगी’ के प्रति आस्थावान और अंधभक्त बने रहना महंगा साबित हुआ.
बिते साल 2012 की बात है. नवंबर में आने वाली दीपावली को ले कर बाजार में गहमागहमी शुरू हो चुकी थी. कई देशी कंपनियां इस मौके पर नया प्रोजेक्ट लांच करने की योजनाएं बना रही थीं तो पूंजी निवेशक भी शेयर बाजार पर नजर टिकाए हुए थे.
शेयर विश्लेषकों से ले कर ब्रोकर तक निवेशकों पर अपनी सलाह थोप रहे थे. शेयर की दुनिया के महारथियों को 1875 में स्थापित और भारत के 417 शहरों तक पहुंच रखने वाले बौंबे स्टाक एक्सचेंज (बीएसई) से अधिक भरोसा नैशनल स्टाक एक्सचेंज (एनएसई) पर था.
कारण उस में आधुनिक तकनीक से लैस डिजिटल सुविधाओं का होना था. वहां एडवांस्ड एल्गोरिद्म आधारित सुपरफास्ट ट्रेडिंग तकनीक का इस्तेमाल शुरू हो चुका था. इस की बदौलत एनएसई ने 1994 में अपनी शुरुआत के एक साल के भीतर ही अच्छी साख बना ली थी.
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सब कुछ ठीक चल रहा था. शेयर कारोबार से जुड़े लोगों को इस की डिजिटल सुविधाएं पसंद आई थीं. फिर अचानक 5 अक्तूबर, 2012 को उस में एक तकनीकी खराबी आ गई. उस का खामियाजा निवेशकों को भुगतना पड़ा. उन के लगभग 10 लाख करोड़ रुपए स्वाहा हो गए.
यह एनएसई की साख पर बहुत बड़ा बट्टा लगने जैसा था. इस वजह से न केवल उस के तत्कालीन सीईओ रवि नारायण पर अंगुली उठी, बल्कि उन्हें पद से भी हटा दिया गया. उस के कुछ महीने बाद 13 अप्रैल, 2013 को एनएसई की कमान चार्टर्ड अकाउंटेंट चित्रा रामकृष्ण को सौंप दी गई.
यह शेयर कारोबार की पुरुष प्रधान दुनिया में मचा नया हंगामा था. इस की मीडिया में चौतरफा चर्चा हुई. रातोंरात चित्रा उस ‘स्त्री शक्ति’ की श्रेणी में आ गईं, जिन्होंने असाधारण जिम्मा संभाला था. कुछ गिनीचुनी महिला सीईओ और बिजनैस वूमन में उन की भी गिनती होने लगी.
एनएसई के सीईओ के पास स्टाक एक्सचेंज संबंधी निर्णय लेने की भरपूर आजादी होती है. यह उस की सूझबूझ पर निर्भर करता है कि वह किस कंपनी को जगह दे और निवेश के लिए किसे कितनी हिस्सेदारी दे. निवेशक जब शेयर खरीदता है तब वह उस कंपनी में हिस्सेदार बन जाता है, जो उस के द्वारा खरीदे गए शेयरों की संख्या पर निर्भर करता है.
शेयर खरीदने और बेचने का काम ब्रोकर्स यानी दलाल करते हैं. हालांकि उन पर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की नजर बनी रहती है. इस की स्थापना 12 अप्रैल, 1992 को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के तहत हुई थी.
आज की तारीख में 59 वर्षीय वही चित्रा रामकृष्ण एक अजीबोगरीब घोटाले के केंद्र में आ गई हैं. इसे सेबी ने जब पकड़ा, तब मामला सीबीआई के पास चला गया.
सीबीआई की गहन छानबीन के बाद एक ऐसे व्यक्ति का नाम उजागर हुआ, जो वास्तव में था ही नहीं. वह हिमालय में विचरण करने वाला एक अदृश्य ‘हिमालयन योगी’ था.
इस संदर्भ में हैरानी की एक बात उजागर हुई, जिसे चित्रा ने अपने 20 साल के करियर में कभी देखा तक नहीं था. केवल मिलने के आश्वासन के साथसाथ उस की नजर में अध्यात्म की अनुभूति पाती रही, उसी के निर्देश पर एक्सचेंज का सारा काम दनादन करती चली गईं. देश में पूंजी बाजार और फाइनैंस के नियमकानून की शर्तों वाले कामकाज पर उन का हिमालयन योगी के प्रति गजब की अंधभक्त बन गईं.
उस के मेल से जो भी आदेश मिला, उस का पालन करती रही. इस सिलसिले में यहां तक कि उन्होंने उस के आदेशों का पालन करते हुए नियमों के खिलाफ जा कर अनैतिक नियुक्तियां तक कर डालीं. उन्हीं में एक नियुक्ति आनंद सुब्रमण्यम की मुख्य रणनीतिक सलाहकार के पद पर भी हुई.
इसे ले कर ही चित्रा रामकृष्ण पर आरोप लगे कि उन्होंने एनएसई की प्रबंध निदेशक (एमडी) और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) रहते हुए कई अनुचित फैसले लिए और नियुक्तियां कीं.
अपने कार्यालय का दुरुपयोग किया, एक्सचेंज के संचालन से संबंधित गोपनीय जानकारी छिपाने में विफल रहीं और सेबी को गलत एवं भ्रामक जानकारियां देती रहीं. इस पर सेबी ने कहा कि चित्रा ने सारे फैसले अपने अज्ञात आध्यात्मिक गुरु के प्रभाव में किए.
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हालांकि बाद में सीबीआई द्वारा की गई पूछताछ में उन्होंने बताया कि उन के पहले के एमडी व सीईओ रवि नारायण और पूर्व समूह संचालन अधिकारी (जीओओ) आनंद सुब्रमण्यम के खिलाफ सर्कुलर जारी करने में अनदेखी की.
सेबी के आदेश के अनुसार चित्रा एनएसई के एमडी और सीईओ के पद पर दिसंबर 2016 तक रहते हुए कथित तौर पर हिमालय में विचरण करने वाले इस योगी को ‘शिरोमणि’ कह कर बुलाती थीं.
एक मेल में उस नाम का भी प्रयोग किया गया था. उन का दावा था कि वह हिमालय की पहाडि़यों में रहते हैं और 20 सालों से उन के व्यक्तिगत और पेशेवर मामलों के सलाहकार हैं.
एनएसई में घपले के बारे में सेबी को शिकायत साल 2015 में एक व्हिसलब्लोअर ने दी थी. शिकायत में ‘को-लोकेशन स्कैम’ की बात कही गई थी. इस में कहा गया था कि एनएसई में सीनियर मैनेजमेंट लेवल पर खूब धांधलेबाजी चल रही है. को-लोकेशन स्कैम का मतलब होता है एक्सचेंज की बिल्डिंग में सर्वर के करीब जगह दे कर कुछ लोगों को फायदा पहुंचाना.
ऐसा कर अपने पसंदीदा निवेशकों को फायदा मिलता है, जिसे शेयर ब्रोकर शेयरों की खरीदबिक्री का अंजाम देते हैं. बदले में उन्हें कमीशन का अच्छाखासा मुनाफा मिल जाता है.
यानी 2015 में सेबी को शिकायत मिली थी कि कुछ ब्रोकरों ने एनएसई के कुछ शीर्षस्थ अधिकारियों के साथ मिलीभगत से को-लोकेशन फैसिलिटी का दुरुपयोग किया. इस सिलसिले में सेबी ने एनएसई को एक खास जगह पर स्थापित एक्सचेंज के कुछ सर्वर को कारोबार में कथित रूप से वरीयता देने के मामले में जुरमाना लगाया है.
उस सिलसिले में जब चित्रा का नाम सामने आया था, तब सेबी ने उन्हें शोकाज यानी कारण बताओ नोटिस भेज दिया था. दरअसल, यह मामला शेयर के 12 फीसदी सालाना ब्याज से जुड़ा हुआ था, जिस में अनियमितताएं पाई गई थीं.
एनएसई की को-लोकेशन सुविधा के माध्यम से हाई फ्रीक्वेंसी वाले कारोबार में अनियमितता के आरोपों की जांच के बाद सेबी ने एक महत्त्वूर्ण आदेश दिया था.
आदेश में स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि एनएसई को 624.89 करोड़ रुपए और उस के साथ उस पर एक अप्रैल, 2014 से 12 फीसदी की दर से सालाना ब्याज सहित पूरी राशि सेबी द्वारा स्थापित निवेशक सुरक्षा एवं शिक्षा कोष (आईपीईएफ) में भरनी होगी.
नोटिस चित्रा रामकृष्ण के अलावा उन के पहले के एमडी को भी जारी किया गया था. उस नोटिस के जवाब के आधार पर सेबी ने जब अपनी जांच पूरी करने के बाद 190 पन्ने की रिपोर्ट शेयर की, तब अनैतिक नियुक्यों के पीछे की कहानी सामने आई.
सीबीआई ने आनंद सुब्रमण्यम को 24 फरवरी, 2022 की देर रात चेन्नई से गिरफ्तार किया था. एनएसई स्कैम मामले की छनबीन और जांचपड़ताल जैसेजैसे आगे बढ़ी, वैसेवैसे चौंकाने वाले सबूत भी सामने आ गए. इस मामले में करीब 10 साल बाद पहली गिरफ्तारी के साथ कई सबूत सामने आ चुके हैं.
सेंट्रल ब्यूरो औफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआई) के गिरफ्त में आया आनंद सुब्रमण्यम ही ‘हिमालयन योगी’ निकला, जिस के आदेश को चित्रा सिर आंखों पर बिठाए रखती थीं. यानी कथित हिमालयन योगी का राज भी खुल गया.
उस अदृश्य योगी का पता आनंद के पते से मात्र 13 मीटर की दूरी पर पाया गया. इस तरह से पूरा मामला आनंद सुब्रमण्यम, चित्रा रामकृष्ण और अनाम गुरु से जुड़ गया. जांच में पाया गया कि सारा खेल आनंद का किया कराया हुआ था. उस ने ही एक अदृश्य आध्यात्मिक गुरु की कल्पना कर चित्रा के मन में आस्था की अंधभक्ति का बीज बो दिया था.
चित्रा का मानना था कि गुरु की आध्यात्मिक शक्ति की बदौलत ही उन्हें चार्टर्ड अकाउंटेंट जगत में तरक्की मिलने से ले कर भारत की पहली और एशिया की चौथी स्टाक एक्सचेंज की बिजनैस वूमन बनने का गौरव हासिल हुआ था.
इस अचानक मिली बड़ी उपलब्धि के पीछे गुरु की सलाह का योगदान चित्रा के दिल और दिमाग में गहराई तक बैठ गया. इस कारण ही योगी के निर्देशों के जरिए चित्रा ने आंखें मूंद कर आनंद की नियुक्ति करवा दी.
एक के बाद एक प्रमोशन दिलवा दिए और वेतन में बेहिसाब बढ़ोत्तरी भी करवा दी. जबकि आनंद इस काबिल नहीं था.
यानी कि आनंद ने ही पूरे घपले की बिसात बिछाई थी. खुद योगी बन कर अपना फायदा पहुंचा रहा था. वह एक अप्रैल 2015 से ले कर 21 अक्तूबर, 2016 तक एनएसई के ग्रुप औपरेटिंग औफिसर (जीओओ) के साथसाथ एमडी-सीईओ चित्रा रामकृष्ण का सलाहकार भी रहा.
इन दोनों पदों को चित्रा ने ही सृजित किया था. इस के लिए न कोई विज्ञापन निकाला गया और न ही विभागीय नोटिस जारी हुआ. यहां तक कि इस भरती की स्टाक एक्सचेंज के एचआर डिपार्टमेंट को भी कोई जानकारी दी गई. आनंद ही इस पद का इकलौता उम्मीदवार था.
चित्रा ने इंटरव्यू की महज मौखिक खानापूर्ति की. उस की कोई फाइल तक नहीं बनाई गई. इसी भरती को ले कर सेबी की जांच शुरू हुई और आनंद घपले की पहली कड़ी के रूप में पाया गया.
वह एनएसई में शामिल होने से पहले बामर लौरी एंड कंपनी लिमिटेड में काम करता था. वहां उस की तनख्वाह 15 लाख रुपए सालाना थी. पूंजी बाजार में उसे काम का कोई अनुभव नहीं होने के बावजूद उसे 1.68 करोड़ रुपए का सैलरी पैकेज दे दिया गया था. और तो और, वह हफ्ते में सिर्फ 4 दिन ही काम करता था.
चित्रा रामकृष्ण योगी से काफी प्रभावित थीं. इसी योगी ने चित्रा को ईमेल लिखे और उन्हें सुब्रमण्यम की भरती से ले कर उन की तनख्वाह तक निर्धारित की. वह ईमेल चित्रा के साथसाथ आनंद को भी भेजे जाते थे. रहस्यमयी योगी कई बार आनंद और दूसरे सीनियर अफसरों को प्रमोशन देने की भी सलाह दिया करता था.
सीबीआई को भी कथित योगी के मेल के कुछ स्क्रीन शौट मिले थे, जो अज्ञात आईडी द्वारा आनंद की आईडी पर फारवर्ड किए गए थे. इस के अलावा इस बात का सबूत भी मिला कि उन्होंने ही ईमेल आईडी बनाई थी.
बताते हैं कि आनंद ने अपने लैपटौप को नष्ट कर दिया था. बाद में जब उस की जांच की गई, तब उस का आईपी एड्रेस और ईमेल का आईपी एड्रेस एक ही पाया गया.
इस से पहले कंसल्टेंसी फर्म अर्नस्ट एंड यंग (ईएंडवाई) के फोरैंसिक औडिट में भी कहा गया था कि चित्रा को आनंद डायरेक्ट कर रहा था. आनंद के डेस्कटौप पर ड्डठ्ठड्डठ्ठस्र.ह्यह्वड्ढह्म्ड्डद्वड्डठ्ठद्बड्डठ्ठ9 और ह्यद्बह्म्शठ्ठद्वड्डठ्ठद्ब.10 नाम से स्काइप अकाउंट भी मिले थे.
ईएंडवाई ने अपनी जांच में आनंद के चेन्नई स्थित आवास से महज 13 मीटर दूर स्थित 2 जियोटैग तसवीरें, हिमालयन योगी की ओर से बुक किया गया होटल, जिस का भुगतान आनंद ने किया था.
योगी को भेजे गए ईमेल अटैचमेंट और इस से कुछ मिनट पहले ही योगी एवं उस की बातचीच में इस्तेमाल किए गए वाक्यों में समानता जैसे मिले सुबूत इस बात की ओर इशारा करते हैं कि योगी कोई और नहीं, बल्कि आनंद सुब्रमण्यम ही है.
ईएंडवाई का यह निष्कर्ष जनवरी 2000 और मई 2018 के बीच रामकृष्ण, सुब्रमण्यम और हिमालयन योगी के बीच बातचीत के विश्लेषण पर आधारित है. उस का कहना है कि उस ने अटैचमेंट वाले 17 ईमेल का विश्लेषण किया.
इन में 8 तसवीरें थीं, जिन में 2 तसवीरों को जियोटैग किया गया था. दोनों तसवीरों का स्थान चेन्नई में सुब्बू (सुब्रमण्यम) के आवासीय पते के करीब था. इन तसवीरों की कैप्चर की गई लोकेशन मेल ह्म्द्बद्द4ड्डद्भह्वह्म्ह्यड्डद्वड्ड की ओर से भेजी गई तसवीरों के कैप्चर किए गए स्थान के समान थी.
ईएंडवाई की रिपोर्ट में कहा गया है कि एक अन्य सुबूत उम्मेद भवन पैलेस में की गई एक बुकिंग है. एक दिसंबर, 2015 को ह्म्द्बद्द4ड्डद्भह्वह्म्ह्यड्डद्वड्डञ्चशह्वह्लद्यशशद्म. ष्शद्व से रामकृष्ण (सुब्रमण्यम के लिए भी चिह्नित) को एक ईमेल भेजा गया. इस में कहा गया था कि कंचन की (रेफरेंस टू सुब्रमण्यम) छुट्टी को मंजूरी मिल गई है और एमडी की ओर से उम्मेद भवन में बुकिंग हो गई है. सुब्बू के बैंक स्टेटमेंट के अनुसार 27 नवंबर, 2015 को होटल को 2,37,984 रुपए का भुगतान भी किया गया था.
इस के साथ ही आनंद सुब्रमण्यम को एनएसई से मिले डेस्कटौप पर इस्तेमाल किए गए स्काइप प्रोफाइल का भी विश्लेषण किया गया. इस में पाया गया कि साझा डेस्कटौप में सुब्रमण्यम के यूजर प्रोफाइल में सानंद का जिक्र था.
विंडोज प्रोफाइल सानंद से संबंधित डेस्कटौप डेटा की समीक्षा से पता चला कि ड्डठ्ठड्डठ्ठस्र.ह्यह्वड्ढह्म्ड्डद्वड्डठ्ठद्बड्डठ्ठ9 और ह्यद्बह्म्शद्वड्डठ्ठद्ब.10 के नाम से स्काइप खाते स्काइप एप्लिकेशन डेटाबेस में कन्फिगर किए गए थे.
योगी के मेल की जानकारी ईएंडवाई द्वारा किए गए फोरैंसिक औडिट और जांच में सामने आई कि आनंद खुद इस मेल आईडी से योगी के तौर पर चित्रा को ईमेल करता था. एक तरह से आनंद चित्रा को प्रभावित करने का एक हथकंडा अपनाया हुआ था.
चित्रा के ईमेल चैट से भी कई चौंकाने वाले खुलासे हुए और कुछ रहस्यमयी योगी के बीच की कई ‘सीक्रेट’ बातें सामने आईं. चित्रा और फेसलेस योगी के बीच के एक चैट को देख कर सेबी के अधिकारी भी चौंक गए, जिस में योगी के साथ सेशल्स घूमने में समंदर में तैरने की बात कही गई थी.
17 फरवरी, 2015 को कथित रूप से उस अज्ञात व्यक्ति से रामकृष्ण को भेजे एक ईमेल में लिखा था, ‘कृपया बैग तैयार रखिए. मैं अगले महीने सेशेल्स की यात्रा की प्लानिंग का रहा हूं, कोशिश करूंगा कि आप भी मेरे साथ चलें. इस से पहले कंचन, कंचना और बरघवा के साथ लंदन चले जाएं और आप 2 बच्चों के साथ न्यूजीलैंड जाएं. अगर आप स्वीमिंग जानती हैं, तो हम सेशेल्स में सी बाथ का आनंद ले सकते हैं और समुद्र तट पर आराम भी कर सकते हैं.’
ईमेल के अनुसार, हांगकांग और सिंगापुर ट्रांजिट और आगे की यात्रा के लिए एक पसंदीदा जगह होगी. मैं अपने टूर औपरेटर से पूछ रहा हूं कि वह हमारे सभी टिकटों के लिए कंचन से संपर्क करें.
इस मेल की जांच में सेबी के आदेश में कहा गया है कि ‘कंचन’ आनंद सुब्रमण्यम ही थे, जबकि कंचना, बरघवा और सेशु की पहचान का खुलासा नहीं किया गया था.
सेबी के आदेश के अनुसार 18 फरवरी, 2015 को एक अन्य ईमेल में उस अज्ञात व्यक्ति ने रामकृष्ण से कहा कि आज आप बहुत अच्छे लग रहे हैं. आप को अपने बालों को बांधने के लिए अलगअलग तरीके सीखने होंगे, जो आप के लुक को दिलचस्प और आकर्षक बना देंगे. बस एक मुफ्त सलाह दे रहा हूं. मुझे पता है कि आप इसे जरूर लपक लेंगे. अपने आप को मार्च के बीच में थोड़ा फ्री रखें.
नैशनल स्टाक एक्सचेंज दुनिया के सब से बड़े स्टाक एक्सचेंजों में से एक है. यह शेयर, औप्शन और फ्यूचर्स सहित कई तरह की सिक्योरिटी खरीदने और बेचने की सुविधा देता है. हालांकि, सामान्य लोगों का सीधा एनएसई से वास्ता नहीं पड़ता है, क्योंकि ब्रोकर एनएसई में प्रतिनिधि का बना रहता है और शेयरों की खरीदबिक्री का असल खेल इसी एनएसई में होता है.
एनएसई पहले भारत का इतना पावरफुल स्टाक एक्सचेंज नहीं था. यह गौरव बौंबे स्टाक एक्सचेंज को मिला हुआ था. एक समय में इस पर ब्रोकरों के कुछ समूहों का दबदबा होता था. वे अपने इशारे पर किसी भी शेयर को मुनाफे वाला बना देते थे. इस की खामियां 1992 में हुए हर्षद मेहता घोटाले में उजागर हुई थीं.
हर्षद मेहता शेयरों की कीमतें बढ़ाने में माहिर था. ऊंचे भाव पर अपने शेयर बेच कर भारी मुनाफा कमाता था, इस में बैंक के कमजोर नियमों का भी फायदा उठाता था. नतीजतन इस घोटाले में लाखों लोगों की गाढ़ी कमाई डूब गई थी.
उस के बाद भारत सरकार ने एक पारदर्शी, सिस्टमैटिक और नियमकानून से चलने वाले स्टाक एक्सचेंज शुरू करने का काम इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक औफ इंडिया को सौंपा. इसी के साथ कामकाज को डिजिटल बनाने पर भी जोर दिया. वह पेपरलेस इलेक्ट्रौनिक शेयर ट्रेडिंग की रूपरेखा तैयार की गई. फिर एनएसई वजूद में आ गया.
उस के बाद बीएसई का कारोबार लगातार घट गया. एनएसई में नए तरीके से सुविधाएं दीं. फिर वह बीएसई से काफी आगे निकल गया.
इस के शुरुआती टीम में आर.एच. पाटिल एनएसई के पहले एमडी बनए गए थे. उन के बाद रवि नारायण सीईओ बने. कुछ और लोग इस में शामिल हुए, जिन में चित्रा रामकृष्ण भी थीं.
एनएसई का कामकाज कुछ सालों तक काफी शानदार रहा, लेकिन उसे भी वही घोटाले की बीमारी लग गई. और फिर सेबी के सामने को-लोकेशन का मामला सामने आया.
को-लोकेशन स्कैम में कुछ चुनिंदा ब्रोकर्स को गलत तरीके से फायदा पहुंचाया गया था. जांच एजेंसीज के मुताबिक, ओपीजी सिक्योरिटीज नामक ब्रोकरेज फर्म को फायदा पहुंचाने के लिए उसे को-लोकेशन फैसिलिटीज का एक्सेस दिया गया था.
इस फैसिलिटी में मौजूद ब्रोकर्स को बाकियों की तुलना में कुछ समय पहले ही सारा डेटा मिल गया था. इस तरह एनएसई के घपलेबाजों ने अपनी जरूरतों और प्राथमिकता के आधार पर इस्तेमाल कर लेते थे और वे शेयरों की खरीद और बिक्री से मुनाफा कमा लेते थे.
एक अनुमान के मुताबिक ब्रोकर्स ने 50,000 करोड़ रुपए के प्रौफिट कमाए, जबकि इस गलत काम करने में सहायक बनने वालों में एनएसई समेत चित्रा पर जुरमाना लगाया. सेबी द्वारा चित्रा पर 3 करोड़ रुपए, नारायण और आनंद पर 2-2 करोड़ रुपए तथा वीआर नरसिम्हन पर 6 लाख रुपए का जुरमाना लगाया गया.
इस के साथ ही सेबी ने एनएसई को कोई भी नया उत्पाद पेश करने से 6 महीने के लिए रोक दिया है. इस तरह का प्रतिबंध चित्रा और सुब्रमण्यन पर भी लगया गया है. वे 3 साल तक किसी भी बाजार ढांचागत संस्थान या सेबी के साथ पंजीकृत संस्थान के साथ नहीं जुड़ सकते हैं. नारायण पर यह पाबंदी 2 साल के लिए लगाई गई है.
यही नहीं, सेबी ने एनएसई को चित्रा के अतिरिक्त अवकाश के बदले में भुगतान किए गए 1.54 करोड़ रुपए और 2.83 करोड़ रुपए के बोनस (डेफर्ड बोनस) को भी जब्त करने का भी निर्देश दिया है.
हालांकि जांच एजेंसियों के सामने कम मुश्किलें नहीं आई हैं. कारण एनएसई ने चित्रा समेत अन्य उच्च अधिकारियों के लैपटौप, कंप्यूटर हार्डवेयर को ई-वेस्ट के नाम काफी पहले नष्ट कर दिया था.
पूंजी बाजार नियामक सेबी जहां अपनी रिपोर्ट के आधार पर न केवल एनएसई के कामकाज के तौर तरीकों पर सवाल उठा रही है, बल्कि कई रहस्यमयी साजिशों की परतें भी खोल दी हैं.
सेबी के आदेश के बाद चित्रा की मुश्किलें बढ़ गई हैं. इनकम टैक्स छापा पड़ने के बाद वह बुरी तरीके से घिर चुकी हैं