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अनुपमा-काव्या से पहले वनराज के लाइफ में थी एक और गर्लफ्रेंड?

टीवी शो ‘अनुपमा’ (Anupamaa) का प्रीक्वल सुर्खियों में छाया हुआ है. दर्शकों को इस प्रीक्वल का बेसब्री से इंतजार है. 17 साल पहले अनुपमा के जीवन में क्या हुआ था, अब आप इस शो में देख पाएंगे. डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर आ रहे ‘अनुपमा- नमस्ते अमेरिका’ के एपिसोड्स में  कई दिलचस्प मोड़ देखने को मिलेगा.

शो में कई ट्विस्ट एंड टर्न देखने को मिलेगा. अनुपमा प्रीक्वल (Anupamaa) का पहला प्रोमो सामने आया है. इस प्रोमो में अनुपमा अपनी नई यात्रा को दिखने के लिए सभी का स्वागत करती दिख रही है. अनुपमा की कहानी कहां से शुरू हुई, अनुपमा को किन कठिनाईयों का सामना करना पड़ा औऱ भी शो से जुड़े दिलचस्प मोड़ देखने को मिलेगा.

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शो में आप देखेंगे कि 17 साल पहले अनुपमा की जिंदगी में क्या हुआ? 28 साल की अनुपमा के जीवन का क्या था टर्निंग प्वाइंट? शो में कौन थी मोटी बा, शाह परिवार का बेटा वनराज क्या हमेशा से गुस्सैल मिजाज का ही था.. शो में आपको इंटरेस्टिंग मोड़ देखने को मिलेगा.

 

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खबरों के अनुसार, प्रीक्वल में वनराज का लवलाइफ भी देखने को मिलेगा. पॉपुलर एक्ट्रेस पूजा बनर्जी भी अनुपमा- नमस्ते अमेरिका में नजर आएंगी. वह वनराज की गर्लफ्रेंड की भूमिका निभाएंगी. शो में दिखाया जाएगा कि अनुपमा-काव्या से पहले भी वनराज की एक और गर्लफ्रेंड थी.

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शो में आप देखेंगे कि शुरू से ही अनुपमा के लाइफ में प्यार की कमी रही है. भले ही उसके तीन बच्चे हैं. प्रीक्वल में फिर से वनराज और उनकी एक्स गर्लफ्रेंड का पुराना प्रेम देखने को मिलेगा.

 

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अनुपमा प्रीक्वल शो 25 अप्रैल से डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर देखने को मिलेगा. शो का नाम नमस्ते अमेरिका अनुपमा 2007 बताया जा रहा है. अनुपमा की ये यात्रा अमेरिका में शुरू होने वाली है जहां 17 साल पहले उनका पूरा जीवन बदल गया था जब वह सिर्फ 28 साल की थी.

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प्रीक्वल में आप देख सकेंगे कि शादी के 10 साल बाद अनुपमा के साथ क्या हुआ था. वह और वनराज साथ कैसे रहते थे. खबरों की मानें तो सीरियल ‘अनुपमा’ के प्रीक्वल में टीवी अदाकारा सरिता जोशी भी नजर आएंगी. प्रीक्वल में सरिता जोशी एक खास किरदार निभाने वाली हैं.

GHKKPM: सई से नौकरों की तरह बिहेव करेगा विराट

टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ में हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा है. जिससे दर्शकों का फुल एंटरटेनमेंट हो रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि सई विराट को मनाने के लिए हर तरह से कोशिश करती है लेकिन विराट ता गुस्सा कम नहीं हुआ. शो के आने वाले एपिसोड में कुछ ऐसा होने वाला है कि विराट सई के अहसानों को पैसे से तौलने वाला है.

शो में दिखाया गया कि. नशे में विराट होली एंजॉय करता है लेकिन सुबह होते ही वह अपनी आई पर भांग वाली गुझिया जान-बूझकर खिलाने का इल्जाम लगाता है.

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तो दूसरी तरफ सई वहां आकर सच बता देती है. जिसके बाद विराट उसे  खरी-खोटी सुनाता है. इतना ही नहीं विराट सई से परेशान होकर अपना ट्रांसफर करने का फैसला करता है. इसके बाद सई परिवार वालों की मदद से विराट को रोकने में कामयाब हो जाती है.

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शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि सई विराट की डॉक्टर बनकर उसका इलाज करेगी. इलाज के दौरान सई और विराट एक दूसरे के काफी करीब आ जाएंगे. लेकिन विराट पीछे हटने की कोशिश करेगा. ऐसे में वह सई को डॉक्टर की तरह देखभाल करने के लिए उसका एहसान चुकाएगा. विराट सई को पैसे देगा और कहेगा कि तुम्हारी ट्रिक काम कर गई और मैं ठीक हो गया. विराट का ये बर्ताव देखकर सई का दिल टूट जाएगा.

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17 साल पहले की कहानी सुनाएगी ‘अनुपमा’, देखें प्रीक्वल प्रोमो

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) के प्रीक्वल ओटीटी प्लेटफॉर्म पर जल्द ही ऑन एयर होने वाला है. इस शो का प्रीक्वल खूब सुर्खियां बटोर रही है. इसी बीच मेकर्स ने सीरियल ‘अनुपमा’ के प्रीक्वल का प्रोमो सोशल मीडिया पर शेयर किया है. आइए बताते हैं, इस वीडियो के बारे में.

इस प्रोमो में आप देख सकते हैं कि अनुपमा खुद अपने दर्शकों से बात करती नजर आ रही है. प्रोमो में अनुपमा ने बताया है कि वह सीरियल ‘अनुपमा’ के प्रीक्वल में 17 साल पहले की अनुपमा की कहानी सुनाने जा रही हैं. इस दौरान दर्शकों को पता चलेगा कि अनुपमा ने क्यों वनराज के लिए अमेरिका जाने से इनकार कर दिया था.

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सीरियल ‘अनुपमा’ के प्रीक्वल का प्रोमो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. फैंस शो के प्रीक्वल को लेकर काफी उत्साहित हैं. आपको बता दें कि ‘अनुपमा’ के प्रीक्वल का नाम ‘अनुपमा- नमस्ते अमेरिका’ है. शो की कहानी में 17 साल पहले का दिखाया जाएगा. जिसमें अनुपमा की उम्र 28 साल होगी, जिसके दो बच्चे हैं.

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यह प्रीक्वल 11 एपिसोड का होगा, डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रसारित किया जाएगा. रिपोर्ट के अनुसार रुपाली गांगुली ने बताया है कि 28 साल की लगने के लिए उन्होंने 9 किलो वजन कम किया है.

 

अनुपमा सीरियल की बात करे तो शो में इन एंटरटेनमेंट का जबरतस्त तड़का देखने को मिल रहा है. फैंस को अनुपमा-अनुज की शादी का बेसब्री से इंतजार था. और वो पल आ गया है. शो में अनुपमा-अनुज शादी की रस्में जल्द ही शुरू होने वाला है.

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शो से जुड़ा एक प्रोमो सामने आया है. इस प्रोमो में आप देख सकते हैं कि बापूजी, अनुपमा और अनुज के हाथ में शगुन का थाल देते नजर आ रहे है. जिसमें बापूजी और जीके के साथ-साथ किंजल, देविका और समर भी मौजूद हैं. शो में अनुपमा और अनुज का रोका जल्द ही दिखाया जाएगा.

पांच साल बाद- भाग 6: क्या स्निग्धा एकतरफा प्यार की चोट से उबर पाई?

स्निग्धा दिल की बुरी नहीं थी. अत्यधिक प्यारदुलार और अनुचित छूट से वह उद्दंड और उच्छृंखल हो गई थी. वह हर उस काम को करती थी जिसे करने के लिए उसे मना किया जाता था. इस से उसे मानसिक संतुष्टि मिलती. जब लोग उसे भलाबुरा कहते और उस की तरफ नफरतभरी नजर से देखते तो उसे लगता कि उस ने इस संसार को हरा दिया है, यहां के लोगों को पराजित कर दिया है. वह इन सब से अलग ही नहीं, इन सब से महान है. दूसरे लोगों के बारे में उस की सोच थी कि ये लोग परंपराओं और मर्यादाओं में बंधे हुए गुलामों की तरह अपनी जिंदगी जी रहे हैं.

शादी को वह एक बंधन समझती थी. इसे स्त्री की पुरुष के प्रति गुलामी समझती थी. उस की सोच थी कि शादी करने के बाद पुरुष केवल स्त्री पर अत्याचार करता है. इसलिए उस ने ठान लिया था कि वह शादी कभी नहीं करेगी.

परंतु बिना शादी किए किसी पुरुष के साथ रहना उसे अनुचित न लगा.

उसे इलाहाबाद के वे दिन याद आते हैं जब राघवेंद्र के साथ रहते हुए पीठ पीछे उसे लोग न जाने किनकिन विशेषणों से संबोधित करते थे, जैसे- ‘चालू लड़की’, ‘चंट’, ‘छिछोरी’, ‘रखैल’ आदिआदि. तब उसे इन संबोधनों से कोई फर्क नहीं पड़ता था. वह किसी की बात पर कान नहीं धरती थी. वह बेफिक्री का आलम था और राघवेंद्र जैसे राजनीतिक नेता से उस का संपर्क था. वह सातवें आसमान पर थी और जमीन पर चल रहे कीड़ेमकोड़ों से वह कोई वास्ता नहीं रखना चाहती थी. उन दिनों उसे अच्छी बात अच्छी नहीं लगती थी और बुरी बात को वह सुनने के लिए तैयार नहीं थी. लोग उस के बारे में क्या सोचते थे, इस से उस को कोई लेनादेना नहीं था.

स्निग्धा के जीवन के साथ खिलवाड़ करने के लिए केवल राघवेंद्र ही जिम्मेदार नहीं था, इस के लिए स्निग्धा स्वयं जिम्मेदार और दोषी थी. अपनी गलती से उस ने सबक लिया था कि परंपराओं का उल्लंघन हमेशा उचित नहीं होता. राघवेंद्र ने भी स्निग्धा के शरीर से खेलने के बाद उसे छोड़ कर अच्छा नहीं किया था. इस प्रकार के चरित्र से उस का राजनीतिक जीवन तहसनहस हो गया था. इलाहाबाद बहुत आधुनिक शहर नहीं था कि बिना ब्याह के स्त्रीपुरुषों के संबंधों को आसानी से स्वीकार कर लेता. अगले आम चुनाव में उसे पार्टी की तरफ से टिकट नहीं दिया गया. उस ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा, परंतु बुरी तरह हार गया.

स्निग्धा को आज एहसास हो रहा था कि अपने अति आत्मविश्वास के कारण मांबाप द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता का उस ने नाजायज फायदा उठाया था और अपने पांवों को गंदे दलदल में फंसा दिया था. वह अपने परिवार, संबंधियों और परिचितों से दूर हो गई. दोस्त उस का साथ छोड़ गए और आज वह इतनी बड़ी दुनिया में अकेली है. कोई उसे अपना कहने वाला नहीं है. थोड़ी देर के लिए अगर कोई सुखदुख बांटने वाला है तो वह है रश्मि, जो सच्चे मन से उस की बात सुनती है और सलाह देती है.

दिल्ली आ कर वह अपने इलाहाबाद के दिनों की कड़वी यादों को भुलाने में काफी हद तक सफल हो गई थी. वहां रहती तो शहर के रास्तों, गलीकूचों और बागबगीचों से गुजरते हुए अपने कटु अनुभवों को भुला पाना उस के लिए आसान न था. अब निशांत से मिलने के बाद क्या वह अपना पिछला जीवन भूल सकेगी? उस के मन में कोई फांस तो नहीं रह जाएगी कि वह निशांत को धोखा दे रही है. परंतु वह ऐसा क्यों सोच रही है? क्या वह समझती है कि निशांत उसे अपना बना लेगा? उस के दिल में एक टीस सी उठी. अगर निशांत ने उसे ठुकरा दिया तो. इस तो के आगे उस के पास कोई जवाब नहीं था. हो भी नहीं सकता था, परंतु संसार में क्या अच्छे पुरुषों की कमी है? अगर वह चाहती है कि शादी कर के अपना घर बसा ले और एक आम गृहिणी की तरह जीवन व्यतीत करे तो उसे कौन रोक सकता था. निशांत न सही, कोई भी पुरुष उस का हाथ थामने के लिए तैयार हो जाएगा. उस में कमी क्या है?

सच तो यह है कि आज पहली बार उस का दिल सच्चे मन से किसी के लिए धड़का है और वह है निशांत.

स्निग्धा को बाराखंभा वाली जौब मिल गई, उस के जीवन में खुशियों के पलों में इजाफा हो गया, लेकिन जीवन में एक ठहराव सा था. पुरुष हो या स्त्री, एकाकी जीवन दोनों के लिए कष्टमय होता है. यह बात निशांत भी जानता था और स्निग्धा भी, परंतु अभी तक उन्होंने अपने मन की पर्तों को नहीं खोला था. ताश के खिलाडि़यों की तरह दोनों ही अपनेअपने पत्ते छिपा कर चालें चल रहे थे.

प्रतिदिन शाम को वे दोनों मिलते थे. मिलने की एक निश्चित अवधि थी और निश्चित स्थान. इंडिया गेट के लंबेचौड़े, खुले मैदान. कभी बैठ कर, कभी घास पर चलते हुए और कभी फूलों के पौधों के किनारे चलते हुए वे दुनियाजहान की बातें करते, वहां घूम रहे लोगों के बारे में बातें करते, चांदतारों की बातें करते और लैंपपोस्ट की हलकी रोशनी में एकदूसरे की आंखों में चांद ढूंढ़ने की कोशिश करते.

उन को मिलते हुए कई महीने बीत गए. चांद अभी भी उन की पकड़ से दूर था. स्निग्धा पहले जितनी वाचाल और चंचल थी, अब उतनी ही अंतर्मुखी हो गई थी या शायद निशांत के संसर्ग में आ कर उस के जैसी हो गई थी. यह उस के स्वभाव के विपरीत था, परंतु मानव मन परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है. स्निग्धा उस के सामने अपने मन को बहुत ज्यादा नहीं खोल सकती थी, क्योंकि निशांत उस के बारे में सबकुछ जानता था. परंतु वह न तो उस के भूतकाल की कोई बात करता, न भविष्य के बारे में कोई बात. दोनों के बीच अनिश्चितता का एक लंबा ऊसर पसरा हुआ था. क्या इस ऊसर में प्यार का कोई अंकुर पनपेगा?

वोट क्लब के छोटेछोटे कृत्रिम तालाबों के किनारे चलते हुए निशांत ने पूछा, ‘जीवनभर अकेले ही रहने का इरादा है या कुछ सोचा है?’

‘क्या मतलब…?’ उस ने आंखों को चौड़ा कर के पूछा.

निशांत गंभीर था.

‘मांबाप के पास जाने का इरादा है?’ निशांत ने घुमा कर पूछा.

स्निग्धा के हृदय में कुछ चटक गया. फिर भी अपने को संभाल कर कहा, ‘उस तरफ के सारे रास्ते मेरे लिए बंद हो चुके हैं. न मुझ में इतना साहस है, न कोई इच्छा. उन के पास जा कर मुझे क्या मिलेगा? मुझे ही इस संसार सागर को पार करना है, अकेले या किसी के साथ?’ उस का स्वर भीगा हुआ था.

‘किस के साथ?’ निशांत ने उस का हाथ पकड़ लिया.

स्निग्धा के शरीर में एक मीठी सिहरन दौड़ गई. वह सिमटते हुए बोली, ‘जो भी मेरे मन को समझ लेगा.’

‘तो कोई ऐसा मिला है?’ वह जैसे उस के मन को परखने का प्रयास कर रहा था. स्निग्धा मन ही मन हंसी, ‘तो मुझ से बनने की कोशिश की जा रही है.’

वह आसमान की तरफ देखती हुई बोली, ‘देख तो रही हूं, सूरज के रथ पर सवार हो कर कोई औरों से बिलकुल अलग एक पुरुष मेरे जीवन में प्रवेश कर रहा है,’ आसमान में तारों का साम्राज्य था. चांद कहीं नहीं दिख रहा था, परंतु तारों की झिलमिलाहट आंखों को बहुत भली लग रही थी.’

‘परंतु आसमान में तो कहीं सूरज नहीं है, फिर उस का रथ कहां से आएगा?’ उस ने चुटकी ली.

‘अभी रात्रि है. रथ में जुते घोड़े थक गए हैं, वे विश्राम कर रहे हैं. कल फिर यात्रा मार्ग पर निकलेंगे,’ वह हंसी.

‘अच्छा, तो कल शाम तक यहां पहुंच जाएंगे?’

‘कह नहीं सकती. मार्ग लंबा है, समय लग सकता है,’ वह जमीन पर देखने लगी.

निशांत ने उस की कमर में हाथ डाल दिया. वह उस से सट गई.

‘जब सूरज का रथ तुम्हारे पास आ जाए तो उस पुरुष को ले कर मेरे पास आना, मेरे घर.’

‘अवश्य.’

एक दिन स्निग्धा ने मिलते ही एटम बम फोड़ा.

‘मैं तुम्हारे घर आना चाहती हूं.’

‘क्या सूरज का रथ और वह पुरुष आ चुका है?’ उस ने मुसकराती आंखों से स्निग्धा को देखते हुए पूछा.

‘हां,’ उस ने शरमाते हुए कहा.

‘कहां है?’

‘तुम्हारे घर पर ही उस से मिलवाऊंगी.’

‘तो फिर मुझे 2 दिन का समय दो. आने वाले इतवार को मैं घर पर तुम्हारा इंतजार करूंगा. ढूंढ़ लोगी न, भटक तो नहीं जाओगी?’

‘अब कभी नहीं,’ स्निग्धा ने आत्मविश्वास से कहा.

अगले इतवार को स्निग्धा उस के घर पर थी और कुछ ही महीनों बाद उस की बांहों में. कुछ साल में वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. यह तो बताने की जरूरत नहीं पर दोनों बच्चे मां से ज्यादा दादादादी से चिपटे रहते और दादादादी बहू के बिना न कहीं जाते न उस से पूछे बिना कुछ करते. निशांत कई बार कहता, ‘‘तुम भी अजीब हो, मैं ने तुम्हें पाया, बदले में मेरे मातापिता को छीन कर तुम ने अपनी तरफ कर लिया.’’

अलग-थलग पड़ता रूस

पश्चिमी देशों ने अमेरिका के नेतृत्व में एक बार फिर जता दिया है कि वे चाहें तो अपने आर्थिक बल पर ही किसी भी शक्ति नहीं, महाशक्ति को भी बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं. रूस ने सोचा था कि यूक्रेन में उस की सैर कुछ टैंकों से पूरी हो जाएगी और वहां सत्ता परिवर्तन कर के वह अपना कम्युनिस्ट दिनों का रोबदाब फिर साबित कर सकेगा पर यह सैर उस पर भारी पड़ रही है. चीन का अपरोक्ष साथ होने के बावजूद यूक्रेन की जनता का विद्रोह और पश्मिची उन्नत देशों का एकजुटता से रूस का बहिष्कार कर देना राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का एक ऐसा कांटोंभरा ‘उपहार’ रूसी जनता को मिला है जिस का असर दशकों तक रहेगा.

अमेरिका व कई पश्चिमी देश रूस के फैलते पंजों से परेशान थे पर वे अकेले कुछ नहीं कर पाते थे. यूक्रेन के मामले में पुतिन की धौंसबाजी और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर जेलेंस्की की हिम्मत ने एक बहुत बड़े देश के छक्के छुड़ा दिए. रूसी सेना को भारी नुकसान हो रहा है, उस की पोल हर रोज खुल रही है और अब सिवा अणुबम के उस के पास कुछ नहीं बचा है.

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रूस की आबादी 14 करोड़ है और यूक्रेन की 4 करोड़. रूस के पास 1.70 करोड़ वर्ग किलोमीटर की भूमि है और यूक्रेन के पास सिर्फ 6 लाख वर्ग किलोमीटर. रूस की अर्थव्यवस्था 1.5 ट्रिलियन डौलर की है और यूक्रेन की 350 बिलियन डौलर की. यूक्रेन की सेना 2 लाख सैनिकों की है और रूस की 9 लाख की. फिर भी हर रूसी राष्ट्रपति पुतिन के पीछे खड़ा हो, जरूरी नहीं. पर, हर यूक्रेनी अपने राष्ट्रपति जेलेंस्की के पीछे खड़ा है. यूक्रेन से युद्ध के कारण भागे 25 लाख लोगों में ज्यादातर बच्चे, औरतें और बूढ़े हैं. जवान पुरुष ही नहीं, स्त्रियां भी रूसी हमले का जवाब देने के लिए खड़ी हैं. रूस की भारी बमबारी ने 30 दिनों में यूक्रेन की राजधानी को हिला नहीं पाई और इसीलिए दुनिया की सारी राजधानियां अब यूक्रेन के साथ खड़ी हैं.

चीन जैसा कट्टर तानाशाही देश सिर्फ दबे शब्दों में रूस का समर्थन कर पा रहा है क्योंकि 15 ट्रिलियन डौलर की उस की भी अर्थव्यवस्था उस 75 ट्रिलियन डौलर की अर्थव्यवस्था के सामने बौनी है जो आज रूस के खिलाफ खड़ी हो गई है.

75 ट्रिलियन वाले देश कितनी आसानी से एक दंभी, तानाशाह, डेढ़ पसली की डेढ़ ट्रिलियन डौलर वाले देश को हाथिए पर खड़ा कर सकते हैं, यह दिखने लगा है. अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो पुतिन भक्त थे, अब अपना स्वर बदल रहे हैं और वहां की रिपब्लिकन पार्टी को भी राष्ट्रपति जो बाइडन का साथ देना पड़ रहा है. कुछ यूरोपीय देश अभी भी कुछ सामान रूस से खरीद रहे हैं पर धीरेधीरे सब दूरदर्शी सोच में रूस को कंगाल बनाने में जुट गए हैं. रूसी अमीरों का जो पैसा पश्चिमी देशों ने जब्त किया है वह शायद यूक्रेन के पुनर्निर्माण में लग जाए क्योंकि यह अब लगने लगा है कि रूस को तहसनहस हुए यूक्रेन से अभी या कुछ समय बाद लौटना ही होगा.

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यूक्रेन ने साबित कर दिया है कि पश्चिमी देशों की व्यैक्तिक स्वतंत्रताएं, लोकतंत्र, लगातार वैज्ञानिक उन्नति आदि रूसी और्थोडोक्स चर्च पर कहीं अधिक भारी है जिस के इशारे पर भक्त राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने विधर्मी यहूदी वोलोदोमीर जेलेंस्की को हटाने की कोशिश की थी. यह बात, हालांकि, चर्चा में कम ही आई है लेकिन हकीकत यही है और इस युद्ध के बीज भी धर्म ने ही बोए हैं.

मेरी दोस्त मुझसे प्यार करती है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 24 साल है, एमबीए फाइनल ईयर में हूं. मु?ा से मेरी क्लास की एक लड़की ने खुद आगे बढ़ कर फ्रैंडशिप की. मु?ो इस पर एतराज न था. अब हालत यह है कि वह हाथ धो कर मेरे पीछे पड़ी रहती है- मैं कहां हूं, कहां जा रहा हूं, घर वापस कब आऊंगा, रात को देर से क्यों आए. कौन से फ्रैंड के साथ थे वगैरावगैरा. अब तो कहती है कि मेरे घर आओ, मेरे मम्मीपापा से मिल लो. वह मु?ा से शादी करना चाहती है अब, जबकि मैं अभी बिलकुल भी शादी नहीं करना चाहता. मैं ने तो सिर्फ फ्रैंडशिप की थी, यह शादी का सीन बीच में कहां से आ गया है. फंस गया हूं मैं. क्या करूं, आप बताएं?

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जवाब

कहते हैं न, जब कोई चीज हमें आसानी से मिल जाती है तब हमें उस की वैल्यू का अंदाजा नहीं होता. एक लड़की ने खुद आप को प्रपोज किया, आप को पसंद किया तो यह बात आप के लिए ज्यादा माने नहीं रखती.

चलो कोई बात नहीं. आप की दूसरी बात पर गौर करते हैं कि आप ने तो सिर्फ फ्रैंडशिप की थी, शादी के बारे में तो आप ने सोचा तक नहीं. ऐसी बात है तो आप के साथ कोई जबरदस्ती तो कर नहीं सकता. हां, लेकिन उस लड़की को मुगालते में मत रखिए. किसी भी रिश्ते में सचाई का होना बहुत जरूरी है चाहे वह दोस्ती का हो या फिर प्यार या शादी का.

सब से पहले तो यह बात आप के दिमाग में क्लीयर होनी चाहिए कि आप उस लड़की को कितना पसंद करते हैं, उस से शादी करना चाहते हैं कि नहीं. यदि आप उस से सिर्फ फ्रैंडशिप रखना चाहते हैं और किस हद तक फ्रैंडशिप रखना चाहते हैं, यह बात उस लड़की से साफसाफ कर लें. शादी के लिए आप बिलकुल तैयार नहीं हैं, उसे यह बता दें क्योंकि आप दोनों हाथों में लड्डू ले कर चलना चाहते हैं जो संभव नहीं.

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वह लड़की आप से शादी करना चाहती है जबकि आप की बातों से लगता है कि आप फ्रैंडशिप के नाम पर फिजिकल इनवौल्वमैंट भी चाहते हैं जिस के लिए वह लड़की शायद रजामंद न होगी.

अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप क्या चाहते हैं. एक लड़की जो आप से प्यार करती है, शादी करना चाहती है, उसे छोड़ना चाहते हैं या फिर लाइफ में थोड़ा सीरियस हो कर सोचना चाहते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

नारी अब भी तेरी वही कहानी: भाग 2

राइटर- रमेश चंद्र सिंह

‘जब मेरी माहवारी आनी बंद हुई तो आशंका से भर उठी. कोई अनहोनी से मन सिहर उठा. चुपके से मैं एक लेडी डाक्टर से मिली. उस ने प्रैग्नैंसी टैस्ट कराए तो रिजल्ट देख कर मेरे होश उड़ गए. मैं पेट से थी. घर में मां के अलावा कोई न था. पापा औफिस के सिलसिले में किसी दूसरे शहर में गए हुए थे.

‘अब मां को किस मुंह से बताती कि मैं प्रैग्नैंट हूं. मां पर यह जान कर क्या गुजरेगी. मां को हम दोनों बहनों पर बहुत भरोसा था. जब मेरा जन्म हुआ तो पापा के लाख सम झाने पर भी मां न मानी थीं. अपना औपरेशन करा लिया था, बोली थीं, 2 बच्चे ही काफी हैं. दोनों को अच्छी शिक्षा और संस्कार देंगे. उन्हें विश्वास था कि हम दोनों बहनें ऐसा कोई काम न करेंगी जिस से उन का सिर नीचे  झुक जाए.

‘मां बहुत बोल्ड महिला थीं. उन्होंने पापा से कहा था कि इस देश को लड़कियों की सख्त जरूरत है. जिस प्रकार देश में कन्याभ्रूण हत्या की प्रवृत्ति बढ़ी है वह आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत घातक है. उन का यह भी मानना था कि लड़के की प्रतीक्षा में लड़कियों की संख्या बढ़ाना उतना ही देश के लिए घातक है जितना भ्रूण हत्या करना. दोनों ही स्थितियों में जनसंख्या संतुलन बिगड़ता है. एक से जनसंख्या की वृद्धि होती है तो दूसरे से लड़कों की तुलना में लड़कियों का अनुपात घटता है.

‘मां को मैं कैसे बताती कि प्रैग्नैंसी के पीछे मेरा कोई कुसूर नहीं है बल्कि यह एक हादसे का परिणाम है. मैं मां को सबकुछ बताना चाहती थी. उस की गोद में रोना चाहती थी लेकिन विवश थी. न रो सकती थी न कुछ बता सकती थी. इस राज को सिर्फ दीदी जानती थीं, लेकिन दीदी को भी क्या पता कि यह सिर्फ हादसा नहीं था, एक जीवन का कारण भी था. इसी उधेड़बुन में 15 दिन और गुजर गए.

‘आखिरकार, मैं ने दीदी को बताने का निर्णय लिया. समय का चक्र तो देखिए, जहां पहली संतान मां को खुशी देती है वहीं मेरे लिए यह संतान अभिशाप बन गई थी.

‘बेटी, एक कुंआरी मां इस हालत में किस असहनीय पीड़ा से गुजरती है, यह तुम न सम झोगी.

‘फोन पर सबकुछ बताना रिस्की था, पता नहीं फोन कब किस के फोन से इंटरकनैक्ट हो जाए, इसलिए मैं ने दीदी से कहा, ‘दीदी एक भयानक समस्या में फंस गई हूं, तुम प्लीज मु झे तुरंत मिलो. पापा बाहर गए हैं, इसलिए मां को अकेली छोड़ कर मैं नहीं आ सकती.’

‘दीदी ने कहा, ‘शैली, बहुत गंभीर समस्या न हो तो थोड़े दिन रुक जा, तुम्हारे जीजाजी का तबादला लखनऊ हो गया है, हम सभी वहां शिफ्ट करने की तैयारी कर रहे हैं.’

‘दीदी, समस्या काफी गंभीर है, मैं बहुत दिनों तक रुक नहीं सकती.’

‘तो बता, क्या बात है?’

‘फोन पर नहीं बता सकती, दीदी,’ मैं ने चिंतित और घबराई आवाज में कहा.

‘मां को बताया?’

‘मां को नहीं बता सकती, दीदी. समस्या कुछ ऐसी है.’

‘तो सुनो, मैं अगले हफ्ते आऊंगी. तब तक हम लोग लखनऊ शिफ्ट कर जाएंगे.’

‘अच्छा दीदी,’ मैं ने कोई उपाय न देख कर एक हफ्ता इंतजार कर लेना ही उचित सम झा.

‘दीदी ने एक हफ्ता इंतजार करने को कहा था, लेकिन तबादले के फौरन बाद जीजाजी को ट्रेनिंग के लिए दिल्ली जाना पड़ गया था. दोनों बच्चों का नए स्कूल में नामांकन करना था, सो दीदी 15 दिनों बाद आईं. तब तक तुम पेट में 3 महीने की हो गई थीं. अब तो थोड़ाथोड़ा पेट भी दिखने लगा था. एक दिन मां ने टोका था, ‘शैली, अपने शरीर पर ध्यान दो, अभी से पेट निकल जाएगा तो बाद में कंट्रोल करना मुश्किल हो जाएगा.’

‘अब मैं मां को क्या बताती. चुप रह जाने के अलावा कोई उपाय न था.

‘दीदी को देख कर उन्हें अपने कमरे में ले गई और उन से लिपट कर रोने लगी.

‘अब बताओ भी कि बात क्या है, केवल रोनेधोने से समस्या का हल थोड़े निकल जाएगा.’

‘दीदी पेट में…

‘मैं हकलाई. दीदी ने भी आने के बाद मेरे पेट को मार्क किया था. वे बिना पूरी बात बताए ही सम झ गईं.

‘यह तो अच्छा नहीं हुआ. तुम ने बताने में इतनी देर क्यों कर दी?’

‘मु झे ऐसी कोई आशंका न थी, दीदी. शुरू में एकदो बार मिचली आई थी तो सामान्य मिचली सम झ कर नजरअंदाज कर दिया था. मेरा पीरियड तो पहले भी कभीकभी देर से आता था तो सोचा आ जाएगा. किंतु जब 2 महीने बीत गए तो कुछ अनहोनी की आशंका होने लगी. जब गाइनीकोलौजिस्ट से मिली तब कन्फर्म हुआ. मां से बताने का साहस न हुआ. आप सबकुछ जानती थीं, इसलिए आप से बताने का निर्णय लिया. तब तक बहुत देर हो चुकी थी.’

‘सुन कर दीदी के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं. कुछ देर दीदी सोचती रहीं. जीजाजी और बच्चों को छोड़ कर आई थीं, इसलिए दूसरे दिन ही लखनऊ लौटना था. घर में मांपापा अकेले थे. मैं मां के काम में हाथ बंटाती थी.

‘ध्यान से सुन, किसी को कानोंकान इस बारे में खबर न होनी चाहिए. मैं मां से बात करती हूं. तुम्हें लखनऊ चलना होगा. अब तुम्हारे जीजाजी को सबकुछ बताना होगा. बिना उन की मदद के हम लोग कुछ नहीं कर सकते. तुम्हारा अबौर्शन कराना होगा. समय नहीं बचा है, देर होने पर कोई डाक्टर अबौर्शन के लिए भी तैयार न होगा क्योंकि तब तक तुम्हारे लिए काफी रिस्की हो जाएगा.’

‘दीदी ने न जाने मां को क्या सम झाया था, मां मु झे एक हफ्ते के लिए दीदी के साथ लखनऊ भेजने पर तैयार हो गई थीं. तभी पापा ने औफिस से मां को फोन किया कि उन्हें औफिस के जरूरी काम से एक हफ्ते के लिए बाहर जाना है. उन का जरूरी सामान तैयार रखे. मां बोली, ‘बेटी तुम्हारे पापा न रहेंगे तो मैं अकेली पड़ जाऊंगी. शैली को एक हफ्ते बाद ले जाना.’

‘सुन कर दीदी असमंजस में पड़ गईं. मां को अब कैसे बताएं कि मु झे दीदी के साथ तुरंत जाना जरूरी है. एकएक दिन मेरे लिए भारी पड़ रहा था. मेरे मन में विचार आया. मां को अब सबकुछ बता देना ही चाहिए. फिर अगले ही क्षण उन के ब्लडप्रैशर और हार्ट की बीमारी का ध्यान आ गया. मां हलका सा भी तनाव बरदाश्त नहीं कर पातीं. उन का ब्लडप्रैशर तुरंत हाई हो जाता है. मां तो इस हादसे को बरदाश्त ही न कर पाएंगी. अगर उन्हें कहीं कुछ हो गया तो इस के लिए मैं खुद जिम्मेदार होऊंगी.

‘दीदी अब क्या होगा?’ मैं ने चिंतित होते हुए पूछा.

‘दीदी अपना माथा पकड़ कर बैठ गईं.

‘कहते हैं न कि विपत्ति आती है तो अकेले नहीं आती.

‘कुछ सोच कर दीदी ने कहा, ‘चल, उसी गाइनीकोलौजिस्ट के यहां चलते हैं जिस ने तुम्हारा टैस्ट किया था. तुम्हारे जीजाजी को मैं बोल देती हूं, बच्चों को किसी तरह एकदो दिन संभाल लें. इस बीच तुम्हारे जरूरी टैस्ट वगैरह करवा लेते हैं. सभी रिपोर्ट्स ले कर मैं लखनऊ चली जाऊंगी और अबौर्शन का सारा इंतजाम कर के मैं यहां चली आऊंगी. तुम्हें मैं लखनऊ भेज दूंगी. तुम्हारे जीजा को बता दूंगी. वे सबकुछ संभाल लेंगे.’

‘तय कार्यक्रम के अनुसार हम ने सारे टैस्ट करवा लिए. पेट में बच्चा स्वस्थ था. 3 माह से कुछ ज्यादा का ही हो गया था. डाक्टरनी ने कहा, ‘मां को कैल्शियम, आयरन और फौलिक एसिड की गोलियां दें. वरना जच्चाबच्चा दोनों कमजोर हो जाएंगे.’ उस ने कुछ गोलियां लिख दीं. अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में बच्चा साफ दिखाई पड़ रहा था.

‘तो क्या मैं अपने बच्चे की हत्या करने जा रही हूं?’ अचानक विचार कौंधा तो मैं नर्वस हो गई.

‘दीदी ने कहा, ‘अब बच्चे के लिए गोलियों का क्या करेंगे. इसे जन्म थोड़े ही देना है.’ फिर मां से विदा ले कर वे चली गईं.

‘इस बीच मु झे अजीबअजीब सपने आते. कभी लगता, बच्चा रो रहा है. मैं उसे दूध पिला रही हूं. कभी लगता, बच्चे को मु झ से कोई छीन कर भाग रहा है और मैं उस के पीछे रोते हुए दौड़ रही हूं. बड़ा ही तनावग्रस्त समय काटा था मैं ने उस पीरियड में. फिर दीदी आ गईं. अब मु झे लखनऊ जाना था. पापा के आने तक दीदी को मां के साथ रहना था. दीदी ने लखनऊ का रिजर्वेशन भी करवा दिया था. मेरे अबौर्शन का सारा इंतजाम भी करवा आई थीं. जीजा ने सुना तो मेरा सहयोग करने के लिए तैयार हो गए. दीदी बोलीं, ‘संयोग से डाक्टरनी के हसबैंड तुम्हारे जीजाजी को जानते हैं, बोले हैं कि वे सारा इंतजाम करवा देंगे.’

‘पर मैं अकेले जाने के लिए तैयार न हुई, कहा, ‘दीदी, जैसे इतने दिन गुजर गए हैं वैसे 2-3 दिन और गुजर जाएंगे. मैं अकेले न जाऊंगी.’

‘दीदी ने कहा, ‘मूर्ख मत बन. अब तुम्हारे लिए एकएक मिनट भारी पड़ रहा है. गर्भ में भ्रूण बहुत तेजी से बढ़ता है. देर करोगी तो अबौर्शन न हो पाएगा. बच्चे को जन्म देना पड़ेगा. फिर तुम्हारी तो जिंदगी बरबाद होगी ही, बच्चा भी जीवनभर अभिशप्त जीवन जिएगा.’

‘किंतु मैं तैयार न हुई तो दीदी पापा के आने तक रुक गईं.

वह राह जिस की कोई मंजिल नहीं: भाग 2

नंदू मना करती रही, पर वह माने तब न? आखिर अश्वित पैसा जमा ही कर आया. फिर तो नंदू को चारधाम की यात्रा पर जाना ही पड़ा. ‘बड़ा जिद्दी है,’ नंदू के मुंह से एकाएक निकल गया. बगल वाली सीट पर बैठी महिला ने उस की ओर चौंक कर देखा, पर तब तक उस ने आंखें बंद कर ली थीं. आंखें बंद किए हुए ही नंदू सोचने लगी, ‘इस समय वह क्या कर रहा होगा? इस समय तो सो रहा होगा, और क्या करेगा.’

नंदू का वेतन प्रबोधजी सीधे उस के बैंक खाते में पूरा का पूरा जमा कर देते थे. खर्च के लिए ऊपर से सौ,

दो सौ रुपए दे देते थे. वह पैसा अश्वित अपने क्रिकेट, बौल, खिलौनों और चौकलेट पर उड़ा देता था.

रंजना बड़बड़ातीं, ‘‘तू नंदू का पैसा क्यों खर्च करता है? तुझे जरूरत हो, तो मुझ से मांग.’’

‘‘आप मुझे जल्दी कहां पैसा देती हैं. पचास सवाल करती हैं. नंदू तो तुरंत पैसा दे देती हैं.’’

‘‘पर, तुम नंदू का पैसा इस तरह खर्च करते हो, यह अच्छा नहीें लगता.’’

‘‘क्यों अच्छा नहीं लगता?’’

‘‘यह लड़का तो…’’ रंजनाजी सिर पीट लेतीं.

ऐसा नहीं था कि रंजनाजी नंदू के बारे में कुछ नहीं सोचती थीं. न जाने कितनी बार उन्होंने नंदू से शादी के लिए कहा था, पर नंदू ने हमेशा सिर झटक दिया था, ‘‘अब यही मेरा घर है और आप ही लोग मेरे सबकुछ हैं. अब मुझे शादी नहीं करनी. मेरा जीवन इसी घर में कटेगा.’’

‘‘भला इस तरह कहीं होता है नंदू? शादी तो करनी ही पड़ेगी,’’ रंजना उसे समझाने की कोशिश करतीं, पर नंदू उन की बात पर ध्यान न देती.

प्रबोधजी ने नंदू के मामा से भी उस की शादी के लिए कहलवाया, पर उस ने कोई जवाब नहीें दिया.

आखिर एक दिन रंजनाजी ने कहा, ‘‘नंदू, अब तू 28 साल की हो गई है. कब तक शादी के लिए मना करती रहेगी. अंत में बैठी रह जाएगी इसी घर में, कोई नहीं मिलेगा.’’

‘‘पर, मुझे शादी करनी ही कहां है.’’

‘‘आखिर क्यों नहीं करनी शादी? तू जहां कहे, हम वहां कोशिश करें. मैरिज ब्यूरो में, तेरी जाति में, तू जहां कहे, वहां. तू कहे, तो एक बार इलाहाबाद चलते हैं. अब तुम 5 साल बाद कहोगी तो…”

“मैं कभी नहीं कहने वाली. पांच साल ही नहीं, पचास साल बाद भी नहीं, बस.’’

28 साल… उस समय नंदू 28 साल की थी और इस समय अश्वित भी 28 साल का है.

इस बीच कितने साल बीत गए. ये बीते साल उस का कितनाकुछ ले गए. नंदू के बाल, अब उन्हें काले रखने की कितनी कोशिश करनी पड़ती है. आंखें बिना चश्मे के कुछ पढ़ ही नहीं पातीं. अश्वित के हाथों में स्कूल बैग की जगह लैपटाप आ गया है. उछाल मारती समुद्र की लहरों जैसी उस की सहज प्रवृत्ति शांत हो कर पैसा कमाने की ओर घूम गई है. और रंजनाजी व प्रबोधजी? वे अब कहां हैं? समय का बहाव दोनों को बहा ले गया. प्रबोधजी की अचानक हार्टअटैक से मौत हो गई. रंजनाजी पति की मौत के गम को सहन न कर सकीं और 3 महीने बाद ही एक सुबह बिस्तर पर मरी हुई मिलीं. मां की मौत के बाद अश्वित का इंजीनियरिंग का रिजल्ट आया. उस दिन दोनों खूब रोए. अश्वित का रोना बंद ही नहीं हो रहा था. नंदू ने किसी तरह उसे चुप कराया.

इंजीनियरिंग का रिजल्ट आने के बाद एक दिन सुबहसुबह अश्वित नंदू के पास आया, ‘‘नंदू, अब मैं आगे क्या करूं?’’

‘‘क्या करना चाहते हो तुम?’’

‘‘मैं एमबीए करना चाहता हूं.’’

‘‘तो करो न, कौन मना करता है. जितना पढ़ना हो, पढ़ो.’’

‘‘हां, पर अब पापामम्मी नहीं हैं, इसलिए…  नंदू, मैं पैसों की बात कर रहा हूं. मैं जिस इंस्टीट्यूट से एमबीए करना चाहता हूं, उस की फीस ज्यादा है. अगर हम जमा पैसे से फीस भर देते हैं, तो घर के खर्च का क्या होगा?’’

दो पल नंदू ने सोचा. फिर अंदर गई और अपनी पासबुक ला कर बोली, ‘‘इस में जितने पैसे हैं, उतने में हो जाएगा.’’

अश्वित ने पासबुक ले कर देखा, ‘‘हां, हो जाएगा, पर यह तो तुम्हारा पैसा है.’’

‘‘अब तुम्हारा पैसा और मेरा पैसा क्या…? सब एक ही है. ये सब तुम्हारा ही तो है. तुम यह लो, अच्छी नौकरी मिल जाएगी, उस के बाद कोई चिंता ही नहीं रहेगी. जाओ, अपनी फीस भर दो.’’

खुश हो कर अश्वित ने नंदू को गोद में उठा लिया.

‘‘छोड़ो मुझे… अरे, गिर जाऊंगी.’’

नंदू ने बस की अगली सीट पर लगे हैंडिल को पकड़ लिया, ‘ओह, क्याक्या याद आ रहा है.’

Summer Special: क्या गरमी में आपको भी होती है खुजली ?

गरमी के मौसम में आपको सबसे ज्यादा खुजली की समस्या होती है. कई लोगों में ये समस्या घमौरियों का रूप ले लेती है. अगर आप भी गर्मियों में इस वजह से परेशान रहते हैं तो इन टिप्स  की मदद से आप राहत पा सकती हैं.

नमक, हल्दी मेथी का पेस्ट

खुजली से बचने के लिए नमक, हल्दी और मेथी तीनों को बराबर मात्रा में पीस लें. नहाने से पांच मिनट पहले इसे पानी में मिलाकर उबटन बनाएं. इसे अच्छी तरह से पूरे शरीर पर मल लें और पांच मिनट बाद नहा लें. हफ्ते में एक बार इसका इस्तेमाल करने से घमौरियों से निजात मिलती है.

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मुल्तानी मिट्टी

गरमी में त्वचा के लिए मुल्तानी मिट्टी काफी फायदेमंद रहती है. अगर घमौरियां हो जाए तो मुल्तानी मिट्टी का लेप लगाने से राहत मिलेगी.

बर्फ

अगर आप बहुत अधिक खुजली से परेशान रहती हैं तो बर्फ के टुकड़े प्रभावित हिस्सों पर लगाएं इससे आपको आराम मिलेगा. इसे कपड़े में डालकर पांच से दस मिनट के लिए लगाएं. इसे आप चार से छह घंटे के गैप में लगा सकती हैं.

रोज नहाना

खुजली से निजात पाने के लिए रोज स्वच्छ और ताजे पानी से नहाना चाहिए.

एलोवेरा

खुजली होने पर एलोवेरा एक रामबाण उपाय है. प्रभावित हिस्सों पर एलोवेरा का रस लगाने से आपको आराम मिलेगा.

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