Download App

पेट की चर्बी से हैं परेशान तो आज से ही खाना शुरू करें लहसुन

भारतीय घरों में लहसुन का इस्तेमाल आम है. स्वाद बढ़ाने के लिए लहसुन का प्रयोग होता है. पर इसका प्रयोग केवल स्वाद के लिए नहीं होता, बल्कि अच्छी सेहत के लिहाज से भी लहसुन जरूरी है. आपको बता दें कि पेट की चर्बी को कम करने में भी लहसुन काफी लाभकारी है.

इस बात की पुष्टी कई शोधों में भी हो चुकी है. जानकारों का कहना है कि अगर आप पेट की चर्बी कम करना चाहते हैं तो लहसुन को अपनी डाइट में शामिल करें. इसके अलावा वजन कंट्रोल करने में भी ये बेहद लाभकारी है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि रोजाना लहसुन खाना कैसे हमारी सेहत के लिए लाभकारी हो सकता है.

ये भी पढ़ें- जानिए गर्म पानी पीने के स्वास्थ्य लाभ

हाल ही में प्रकाशित एक जर्नल के मुताबिक फैट बर्न करने में लहसुन काफी प्रभावशाली है. जानकारों की माने तो रोजाना लहसुन का सेवन जल्दी आपका वजन कम कर सकता है.

  • लहसुन खाने से शरीर में यूरिन ज्यादा प्रोड्यूस होता है, जिससे वजन और बेली फैट कम होने में मदद मिलती है.
  • लहसुन में प्रचूर मात्रा में विटामिन बी-6 और सी पाया जाता है.
  • इसके अलावा फाइबर, मैगनीज और कैल्शियम का भी ये प्रमुख स्रोत होता है.
  • अगर आप वजन कम करने के साथ ही पेट की चर्बी कम करना चाहते हैं तो रोज सुबह खाली पेट लहसुन की एक कली को पानी के साथ खाएं.
  • इसके अलावा इसका सेवन आप गुनगुने पानी में नींबू का रस डालकर भी कर सकते हैं. नींबू का रस और लहसुन का एक साथ सेवन करने से वजन दोगुना तेजी से कम होता है.

ये भी पढ़ें- शरीर के विषैले पदार्थों को बाहर करना है तो आज ही अपनाएं ये 6 चीजें

  • लहसुन खाने से लंबे समय तक पेट भरा रहता है. जिसके कारण आप कम खाना खाते हैं.
  • लहसुन के लगातार सेवन से शरीर को काफी उर्जा मिलती है. इसके अलावा शरीर का मेटाबौलिज्म भी अच्छा रहता है और इम्यून भी मजबूत रहता है.
  • कई शोधों के नतीजों की माने तो लहसुन के सेवन से कोलेस्ट्रोल भी कंट्रोल में रहता है.
  • इसके साथ ही ये शरीर से सभी टौक्सिंस को बाहर निकालकर डाइजेस्टिव सिस्टम को बेहतर बनाता है.

ये भी पढ़ें- क्या आप डैस्क जौब करते हैं?

Anupamaa: अपने अंदाज में अनुपमा करेगी अनुज से प्यार का इजहार, किंजु-तोषु के बीच होगी लड़ाई

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) में दिलचस्प मोड़ दिखाया जा रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि अनुपमा भी अनुज के फील कर रही है लेकिन अनुज से कह नहीं पाती है कि वह भी उससे प्यार करती है. शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा वैलेंटाइन डे के मौके पर अनुज से अपने दिल का हाल बयां करती है.

शो में आप देखेंगे कि अनुज अनुपमा का रोमांटिक अंदाज देखकर हैरान हो जाएगा. अनुपमा अपने अंदाज में अपने दिल की बात कहेगी. वह अनुज को आई लव यू नहीं कहेगी. अनुपमा अलग अंदाज में अनुज को प्रपोज करेगी. अनुपमा कहेगी कि वह अनुज के साथ बूढ़ा होना चाहता है. अनुपमा की ये बात सुनते ही अनुज खुशी से झुम उठता है.

ये भी पढ़ें- नहीं रहे डिस्को किंग बप्पी लहरी, मुंबई के अस्पताल में ली अंतिम सांस

 

अनुपमा का प्यार देखकर अनुज रो पड़ेगा. वह कहेगा कि 26 साल से इस पल का इंतजार कर रहा था. इसके बाद अनुज और अनुपमा मिलकर केक काटेंगे. शो में दिखाया जाएगा कि अनुज अगले दिन सुबह होते ही अनुपमा के घर पहुंच जाएगा.

ये भी पढ़ें- वैलेंटाइन डे पर सितारों ने कही ये बात, पढ़ें खबर

 

वह अनुपमा से पूछेगा कि क्या कल रात उसने कोई सपना देखा था. ये बात जानकर अनुपमा भड़क जाएगी. अनुपमा कहेगी कि बिती रात की घटना सच थी.  शो में आप ये भी देखेंगे कि किंजल-तोषु में जमकर लड़ाई होगी. किंजल कहेगी कि तोषु उसके बिना क्लब गया था. तोषु ऑफिस में मिटिंग होने का बहाना बनाएगा.

 

शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि नंदिनी समर के साथ ब्रेकअप कर लेती है. वह इमोशनल होकर समर से दूर जाने का फैसला करती है. इस बार समर भी उसे नहीं रोक पाता है.

Karan Kundra और तेजस्वी प्रकाश की सीक्रेट डेट, फोटोग्राफर्स देख ऐसे भागी तेजू!

तेजस्वी प्रकाश (Tejasswi Prakash) और करण कुंद्रा (Karan Kundra) इन दिनों अपने लवलाइफ को लेकर सुर्खियों में छाये हुए हैं. दोनों को अक्सर साथ में देखा जाता है. फैंस को भी करण-तेजस्वी के फोटोज और वीडियोज का बेसब्री से इंतजार रहता है. तेजस्वी और करण का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें तेजस्वी को देखकर भाग रही हैं.

तेजस्वी प्रकाशऔर करण कुंद्रा का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. इस वीडियो को देखकर आप कह सकते हैं कि दोनों चोरी-छुपे डेट पर गए थे तो वहीं फोटोग्राफर्स भी उनका पीछा करते-करते वहां पहुंच गए.

ये भी पढ़ें- YRKKH: मनीष को आएगा हार्ट स्ट्रोक, क्या अक्षरा की जिंदगी में होगी नए शख्स की एंट्री?

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Viral Bhayani (@viralbhayani)

 

जब फोटोग्राफर्स को तेजस्वी प्रकाश ने देखा तो वह कार की तरफ भागने लगी. और उन्होंने कहा कि ‘कहां से आ जाते हो यार आप लोग’ कहां पर छुपे रहते हो. फिर वह करण कुंद्रा के साथ कार में बैठ जाती है. तेजस्वी प्रकाश का यह अंदाज फैंस को काफी पसंद आ रहा है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Viral Bhayani (@viralbhayani)

 

एक इंटरव्यू के अनुसार तेजस्वी प्रकाश से करण कुंद्रा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि वह बहुत प्यारे, स्मार्ट और  जानकार हैं. मैं उनसे रोजाना बहुत कुछ सीखती. तेजस्वी ने ये भी कहा कि मैं उनके साथ खुद को भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से बढ़ते हुए देखती हूं.

ये भी पढ़ें- हर्ष लिंबाचिया ने उड़ाया Bharti Singh के वजन का मजाक, देखें Video

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Karan Kundrra (@kkundrra)

 

तेजस्वी प्रकाश ने करण कुंद्रा के बारे में आगे कहा कि जब वह कहते हैं कि उन्होंने इसे कभी महसूस नहीं किया तो मैं समझ सकती हूं. क्योंकि कई बार जिस तरह से वह रिएक्ट करते हैं और जिस तरह के वह बन जाते हैं, उससे वो खुद भी हैरान रह जाते हैं.

ये भी पढ़ें- Anupamaa: शूटिंग जाने से पहले अनुज कपाड़िया को घर पर करना पड़ता है ये काम, देखें Video

मैं अपनी गर्लफ्रेंड को कैसे इंप्रेस करूं?

सवाल

मैं 32 वर्षीय पुरुष हूं और मेरा अपनी ही हमउम्र लड़की से 2 महीने से अफेयर चल रहा है. वह मुझ से ज्यादा कमाती है और काफी अच्छी पोस्ट पर जौब कर रही है. मैं भी अच्छा कमाता हूं पर उस से कम. उस ने मुझ पर अपनी कमाई और नौकरी का कभी रोब नहीं झाड़ा लेकिन मुझे ही कई बार अपने कमतर होने का एहसास होता है. इसलिए चाह कर भी उस से सैक्स की बात नहीं कर पाता. मैं चाहता हूं कि वह ही मुझ से सैक्स करने के लिए बोले. मैं उसे बिना छुए ही सैक्स के लिए उत्तेजित करूं तो कैसे?

ये भी पढ़ें- मैं भोजपुरी फिल्मों में एक्टिंग करना चाहता हूं, क्या करूं?

जवाब

सैक्स पुरुष ही नहीं, फीमेल भी सैक्स करना चाहती हैं. आप की प्रौब्लम है कि आप सैक्स तो करना चाहते हैं लेकिन गर्लफ्रैंड से बोलने में हिचक रहे हैं कि पहल वह करे. दूसरे शब्दों में, आप ऐसा क्या करें कि वह आप की ओर इतनी अट्रैक्ट हो जाए कि एक्साइमैंट में खुद सैक्स की पहल करे तो टैंशन मत लीजिए, कुछ टिप्स आप को देते हैं, आजमा कर देखिए, रिजल्ट पौजिटिव ही आएगा.

आप जब भी अपनी गर्लफ्रैंड से मिलें, उसे कामुक नजरों से देखें. आप की लस्टभरी आंखें देख कर वह समझ जाएगी कि आप का मूड क्या है. उस के मन में सैक्स की इच्छा होगी तो वह भी आप को वैसे ही देखेगी और आप दोनों का एकदूसरे को ऐसे देखना ही दोनों में एक्साइटमैंट भर देगा.

कौन सी लड़की होगी जिसे अपनी तारीफ सुनना पसंद न आए. गर्लफ्रैंड की बौडी की खूबसूरती की तारीफ  करें. उसे अच्छा महसूस होगा और वह आप की ओर अट्रैक्ट होगी.

अपनी पार्टनर को सैक्सी मैसेज भेजेंगे तो वह उत्तेजित हो सकती है. शाम को उस से मिलने जाना है तो सुबह से ही उस के साथ सैक्सी बातें करें. आप को देख कर उसे महसूस होगा कि आप उस के लिए कितने बेकरार हैं तो यह बात उसे भी उत्तेजक बना देगी.

मिलने पर उसे कोई सैक्सी सा अंडरगारमैंट गिफ्ट कर उसे सरप्राइज करें. आप का गिफ्ट देख कर वह समझ जाएगी कि आप का मूड क्या है और आप जो चाहते हैं वह हो जाएगा. अगर गर्लफ्रैंड के साथ कोई सैक्सी मूवी देखेंगे तो यह भी

उसे उत्तेजित कर सकता है. एक अच्छी रोमांटिक मूवी चुनें जिस में ढेर सारे रोमांटिक सीन हों. जब आप दोनों साथसाथ फिल्म देखेंगे तो हो सकता है आप दोनों की रोमांटिक मूवी स्टार्ट हो जाए. औल द बैस्ट.

ये भी पढ़ें- मैं बहुत ही दुबलापतला हूं, क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

प्यार नहीं पागलपन- भाग 1: लावण्य से मुलाकात के बाद अशोक के साथ क्या हुआ?

अति सुंदर होने और लावण्य होने में अंतर अशोक ने लावण्य को देख कर ही जाना था. ऐसा उस में कुछ भी नहीं था कि उसे देखते ही दिल धड़कने लगता. आंखें   झपकना भूल जातीं या फिर दिमाग सन्न हो जाता. फिर भी वह बगल से गुजरती और एक नजर उसे देख न लेने पर अफसोस जरूर होता. उस की लयबद्ध चाल किसी मधुर संगीत की तरह दिमाग पर छा जाती थी.

वह अपने मामामामी के साथ कवि सम्मेलन में आई थी. उस दिन मंच पर अशोक ने जो कविता पढ़ी थी, उसे खूब प्रशंसा मिली थी. लोगों ने खूब तालियां बजा कर वाहवाही की थी. कवि सम्मलेन खत्म हुआ तो वह अपने मामामामी के साथ

अन्य श्रोताओं की तरह अशोक को बधाई देने आई थी.

लावण्य के मामा सुधीर, जो नोएडा के जानेमाने उद्योगपति थे, अशोक के परिचित

थे. वह उन से पहले भी 2-3 बार मिल

चुका था.

‘‘क्या बात है अशोकजी, आज तो आप ने कमाल ही कर दिया. क्या अद्भुत रचना थी?’’ सुधीर ने बधाई देते हुए कहा, ‘‘वैसे तो आप की कविता हम लोगों को भी पसंद आई, लेकिन मेरी इस भांजी को सब से अधिक पसंद आई. आओ लावण्य…’’

थोड़ी दूरी पर खड़ी युवती को बुला कर सुधीर ने अशोक से परिचय कराया.

‘‘आप की कविता बहुत अच्छी लगी, खासकर आप का गाने का अंदाज,’’ लावण्य ने कहा.

लावण्य जो कह रही थी, उस में शायद अशोक को कोई रुचि नहीं थी. वह स्टेज के उजाले में लावण्य को एकटक देख रहा था. उस ने लाल चटक रंग की मिडी स्कर्ट पहन रखी थी. सफेद ड्राईक्लीन किया हुआ टौप, पतली कमर पर बंधी काली चमकती चमड़े की बैल्ट, वैसी ही काली जूती. स्कर्ट के नीचे के खुले पैरों को देख कर अंदर छिपे पैरों के आकार का अंदाजा लगाते हुए सीने पर काफी ढीले टौप पर नजरें पहुंचीं तो लड़की की सुंदरता में चारचांद लगाने वाले इसी हिस्से पर अशोक की नजरें टिकी रह गई थीं. गेहुंए रंग की लावण्य का चेहरा काफी आकर्षक था.

औपचारिक बातें खत्म हुईं तो अशोक ने कहा, ‘‘कल हमारा एक कवि सम्मेलन और है. उसे भी सुनने आ रहे हैं न?’’

‘‘ओह, क्यों नहीं,’’ सुधीर ने कहा, ‘‘शहर में आप जिस कवि सम्मेलन में होते हैं, उसे सुनने मैं अवश्य ही जाता हूं.’’

‘‘आप भी आ रही हैं न?’’ अशोक लावण्य से मुखातिब हुआ.

‘‘जी, पक्का नहीं है,’’ लावण्य होंठों ही होंठों में मुसकरा कर बोली.

‘‘आप जरूर आइए, आज का तो विषय पर आधारित कवि सम्मेलन था. कल विशुद्ध हास्य कवि सम्मेलन है. सिर्फ हंसना है,’’ अशोक ने कहा, ‘‘आप को बड़ा मजा आएगा. इस के अलावा कल मंच का संचालन भी मैं ही करूंगा.’’

ये भी पढ़ें- परिंदा: उस अजनबी से मिलने के बाद इशिता की जिंदगी में क्या हुआ

‘‘मैं पहले भी आप को सुन चुकी हूं पर बधाई देने पहली बार आई हूं.

‘‘यह सच है. शायद आज भी न आती, पर मामा ने कहा और मैं…’’

‘‘तो क्या आप बेमन से…?’’ अशोक ने सवाल किया.

‘‘नहीं, नहीं, ऐसी बात नहीं है. बिना जानपहचान के…’’

‘‘शायद आप को मालूम नहीं, हम अपने श्रोताओं की तालियों, उन की वाहवाही, बधाइयों पर ही जीते हैं. आज आप आई हैं, इस का मेरे ऊपर क्या असर होगा, यह आप नहीं जान पाएंगी?’’ अशोक गंभीर हो गया.

‘‘क्या असर होगा?’’

‘‘यह आप कल देखिएगा,’’ अशोक ने यह कहा, तो वहां खड़े सभी लोग हंस पड़े.

लावण्य धीरेधीरे कमर मटकाते हुए मंच से उतरने लगी. उस के नितंबों का हिलना, हवा के   झोंके की तरह अशोक को स्पर्श कर गया. उस के असर से अशोक मुक्त होता, उस के पहले ही उस की नजर उस के बालों में लगे गुलाब पर पड़ी. वह उस के छोटे से जूड़े में लगा गुलाब देखता ही रह गया.

उस दिन पहली ही नजर में उसी पल लावण्य आंखों के रास्ते अशोक के दिल में बस गई थी. इस का मतलब था, अशोक को लावण्य से प्यार हो गया था.

अगले दिन लावण्य अशोक का हास्य कवि सम्मेलन सुनने आई थी. वह आगे से 5वीं लाइन में बैठी थी. अशोक ने उसे मंच पर बैठेबैठे ही खोज लिया था. उस के बाद अशोक ने अपनी जिंदगी में शायद उतना अच्छा संचालन पहले नहीं किया था. लावण्य को हंसते देख अशोक का रोमरोम रोमांचक हो उठता था.

लावण्य उस दिन भी अशोक को बधाई देने आई थी. इस मुलाकात में अशोक ने उस का फोन नंबर और पता ले लिया था. उस के बाद शहर में जहां भी कवि सम्मेलन या सैमिनार या कोई फंक्शन होता, अशोक लावण्य को फोन कर के जरूर आने के लिए कहता. कभी वह अशोक के आमंत्रण पर आ जाती तो कभी कोई जरूरी काम बता कर आने से मना कर देती. लेकिन अशोक उस से बराबर संपर्क बनाए रहा. किसी न किसी बहाने वह लावण्य को मिलने के लिए बुला ही लेता था. 6-7 महीने में अशोक उस से 10-12 बार मिला. 2 बार अशोक उसे खाने पर भी ले गया.

अशोक अपनी आमदनी का काफी बड़ा हिस्सा लावण्य को इंप्रैस करने पर खर्च कर रहा था. इतनी मुलाकातों के बाद उसे लगने लगा था कि लावण्य उस में रुचि लेने लगी थी. अब तक वे ‘आप’ से ‘तुम’ पर आ गए थे.

ये भी पढ़ें- स्वयंवर: मीता ने आखिर पति के रूप में किस को चुना

लावण्य मेजर विवेक की बेटी थी. उस ने जब पहली बार उसे यह बताया था, तो उसे काफी आश्चर्य हुआ था. मेजर विवेक जाति से बनिया- एक सेना का अफसर, यह अशोक की कल्पना के बाहर की बात थी.

‘‘यह क्या कह रही हो लावण्य? तुम्हारे पिता मिस्टर विवेक जैन सेना में अफसर थे?’’

‘‘मिस्टर नहीं, मेजर… मेजर विवेक, तुम्हें इस में आश्चर्य क्यों हो रहा है?’’ लावण्य ने अशोक से पूछा.

लेकिन अशोक उस से यह नहीं कह सका कि एक बनिए का सेना में अधिकारी होना उस के लिए आश%

नरेंद्र मोदी: सत्य को मरोड़ने के प्रयोग

Writer- रोहित और शाहनवाज

पंजाब में सुरक्षा मसले पर घटी घटना को किसी बड़े षड्यंत्र की शक्ल दी जा रही है. लोगों को बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री की जान खतरे में थी. सवाल यह है कि क्या सच में प्रधानमंत्री की जान का खतरा था या यह महज राजनीतिक स्टंट था? अतीत में प्रधानमंत्री मोदी की कथनी और करनी बहुतकुछ बताती है.

साल था 2005. वाजपेयी सरकार के हटने के बाद देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुआई में यूपीए सरकार बनी थी. जवाहरलाल नेहरू की 116वीं जयंती के अवसर पर उस दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जेएनयू परिसर में एक आयोजन में शामिल होने गए थे. वहां उन्होंने जैसे ही भाषण देना शुरू किया तो छात्रों के एक धड़े ने काले झंडे दिखाते हुए उन के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी.

उस समय मनमोहन सिंह छात्रों के इस विरोध से न तो जरा भी बिदके और न ही उखड़े और न ही उन्हें अपनी जान का खतरा महसूस हुआ. कमाल की बात तो यह थी कि विरोध करने वाले छात्रों को न तो गिरफ्तार किया गया और न ही सभा से निकाला गया, बल्कि प्रधानमंत्री ने अपना भाषण जारी रखा और अपने भाषण में विरोध कर रहे छात्रों से वादा किया, ‘‘आप जो कहते हैं मैं उस से सहमत नहीं हो सकता, लेकिन मैं इसे कहने के आप के अधिकार की रक्षा करूंगा.’’

यह आजाद देश का कोई इकलौता उदाहरण नहीं है जब देश के प्रधानमंत्रियों को इस तरह के विरोधों का सामना करना पड़ा हो. इंदिरा गांधी को तो अपने समय में सीधेसीधे भारी विरोध झेलने पड़े थे. ऐसे कई उदाहरण इतिहास में भरे पड़े हैं जिन्हें गिनाना कागज भरने जैसी बात होगी, पर उन सभी में एक बात यह जरूर थी कि किसी ने इन विरोधों से कभी अपनी जान का खतरा नहीं बताया, जैसे हाल ही में पंजाब के दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया.

ये भी पढ़ें- विधानसभा चुनाव 2022: भगवा एजेंडे की परीक्षा

मसला यह हुआ कि, 5 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी को चुनावी रैली के लिए पंजाब के फिरोजपुर जाना था. मौसम खराब होने के चलते वे आननफानन भटिंडा से सड़कमार्ग के रास्ते 130 किलोमीटर दूर फिरोजपुर के लिए निकल पड़े. करीब 90 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद उन का काफिला फिरोजपुर फ्लाईओवर पर रुक गया. दरअसल, काफिले से लगभग एक किलोमीटर दूरी पर किसान प्रधानमंत्री का विरोध कर रहे थे, जिस कारण काफिले को रोकना पड़ा. करीब 20 मिनट के इंतजार के बाद जब प्रदर्शनकारी किसान रास्ते से नहीं हटे तो प्रधानमंत्री के काफिले को यूटर्न लेना पड़ा और वापस भटिंडा एअरपोर्ट के लिए रवाना होना पड़ा.

यह किसी भी प्रधानमंत्री के लिए सामान्य घटना सरीखी बात होनी चाहिए, क्योंकि इतने बड़े पद पर विरोध और आलोचनाएं होना स्वाभाविक व आम बातें होती हैं, लेकिन विवाद तब खड़ा हो गया जब प्रधानमंत्री ने भटिंडा एअरपोर्ट के अधिकारी से कहा, ‘‘अपने सीएम को धन्यवाद कहना कि मैं भटिंडा एअरपोर्ट तक जिंदा लौट पाया,’’ जिस का खंडन उन्होंने नहीं किया. इस पूरी घटना को मीडिया द्वारा प्रधानमंत्री की सुरक्षा से जोड़ कर बढ़ाचढ़ा कर बताया गया.

अब सवाल बनता है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी की जान को सही में खतरा था या यह चुनावों के मद्देनजर सिर्फ एक राजनीतिक स्टंट था? प्रधानमंत्री को यदि सच में खतरा था तो सुरक्षा देने वाली एजेंसी (एसपीजी) 20 मिनट तक उसी फ्लाईओवर पर फोटोशूट क्यों करवाती रही? वह उसी समय तुरंत उन्हें वापस क्यों नहीं ले गई? सवाल यह कि अगर खतरा था तो एसपीजी के होते हुए भाजपा कार्यकर्ता काफिले के इतने नजदीक कैसे पहुंच गए?

130 किलोमीटर दूर सड़क से चलने का सुझाव आखिर किस का था? क्या दौरा रद्द नहीं करवाया जा सकता था?

ये भी पढ़ें- चुनावी सपने में कृष्ण

सब से जरूरी बात यह कि प्रधानमंत्री के काफिले को न तो किसी ने सामने आ कर रोका, न काले झंडे दिखाए, न किसी ने कंकड़पत्थर बरसाए, न किसी ने गोलियां चलाईं तो फिर जान का खतरा कैसे? पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी का कहना है कि फिरोजपुर रैली में भीड़ न जुटा पाने के चलते इस तरह की राजनीति की जा रही है. अब इन सभी सवालों के मद्देनजर ही यह घटना संदेह के घेरों में आ जाती है और सब से बड़ा सवाल बनाती है कि क्या मोदी अपनी सुरक्षा का नैरेटिव चला कर जनता को गुमराह कर रहे हैं?

फायरहौज औफ फाल्सहुड

साल 2016 में क्रिस्टोफर पौल और मिरियम मैथ्यूस ने अमेरिका के थिंकटैंक माने जाने वाले आरएएनडी कौर्पोरेशन के लिए एक पेपर लिखा, जिस में उन्होंने रूस में व्लादिमीर पुतिन सरकार द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली प्रचार तकनीकों का विश्लेषण किया. उस पेपर का नाम उन्होंने ‘फायरहौज औफ फाल्सहुड’ रखा, जिस का अर्थ हिंदी में ‘असत्य की आग’ है.

इस पेपर में उन्होंने यह बताया कि रूसी मौडल केवल अपनी जनता को झूठ पर विश्वास करने के लिए मजबूर करता है. यह झूठ अकसर इतना स्पष्ट झूठ होता है कि जनता उसे सच मान बैठती है और बेवकूफ बन जाती है. उस पेपर में बताया गया कि रूसी मौडल का वह आइडिया जनता को भ्रमित करता है और उसे पूरी तरह बहका देता है.

इन दोनों लेखकों ने पुतिन के इस प्रचार मौडल की 4 विशेषताओं की पहचान की, जिन में पहला ‘हाई वौल्यूम एंड मल्टी चैनल’ है, जिस का अर्थ ‘किसी झूठ को बारबार अलगअलग माध्यम से जनता के सामने परोसना

है.’ दूसरा, ‘रैपिड कंटीन्यूअस एंड रिपीटीटिव’ है, जिस का अर्थ ‘किसी झूठ को तेजी से और दोहराव के साथ पेश करना ताकि लोग उस झूठ को क्रौस चैक न कर सकें.’ तीसरा, ‘लैक कमिटमैंट टू औब्जैक्टिव रियलिटी’ है, जिस का अर्थ ‘गलत और भ्रामक सूचनाओं को इतनी मजबूती के साथ परोसना कि उस की सत्यता का पता ही न चल सके.’ और चौथा, ‘लैक कमिटमैंट टू कंसिस्टैंसी’ है, जिस का अर्थ ‘यदि कोई झूठी और भ्रामक सूचना एक्सपोज होती है तो इस का असर उस के लीडर पर न पड़े.’

इन दोनों ने इन 4 बिंदुओं के माध्यम से पुतिन के प्रोपगंडा मौडल को समझने का प्रयास किया था, पर देखा जाए तो दुनिया के सभी चरमपंथी नेताओं की कार्यशैली और प्रचार स्टाइल में ये चारों बिंदु फिट बैठते हैं. वे जनता को भ्रमित करने के लिए नएनए नैरेटिव छेड़ते हैं.

मोदी की भ्रामक दौड़

26 मई, 2014 को जब देश के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन से देश के भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शपथ दिलाई, तब अधिकतर भारतीयों के लिए यह दिन किसी बड़े बदलाव से कम नहीं था. इस से पहले के 10 सालों में लोगों ने देश में ऐसे प्रधानमंत्री को देखा था जिसे विरोधियों द्वारा ‘कठपुतली’ और मन ‘मौन’ कहा जाता था. वहीं प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में शामिल नरेंद्र मोदी के भाषणों ने जनता पर कुछ अलग ही जादू कर दिया था. उस दौरान अकेले मोदी ने पूरे देश में कुल 437 बड़ी रैलियों, 5,827 सभाओं में जनता से लच्छेदार वादे किए.

ये भी पढ़ें- जमीनी हकीकत के करीब होते हैं निकाय चुनाव

जनता ने नरेंद्र मोदी को उस मसीहा की तरह समझा जो उन के दुखदर्द दूर करने के लिए अवतरित हुआ था. मोदी की पीआर टीम और मीडिया चैनलों ने भी मोदी की छवि को मसीहा के रूप में प्रदर्शित करने का काम किया. टीवी चैनलों, अखबारों इत्यादि पर मोदीमयी विज्ञापन हमेशा छाए रहे. जनता में खुशी थी क्योंकि पिछले 10 सालों के अकाल के बाद लोगों के सूने कानों ने चुंबकीय भाषणों और बड़ेबड़े वादों को सुना था. वह समय देश में सत्ताविरोधी लहर का था.

पर मोदी ने जिस तरह के वादे जनता के बीच किए, 7 साल बाद वे जुमले और झूठ नजर आने लगे हैं. यहां तक कि उन के व्यवहार में इस की बारंबारता देखने को मिलती है. खुद देश के गृहमंत्री अमित शाह ने अपने एक इंटरव्यू में चुनावी वादों को जुमला बताया था. इसी को ले कर सरिता पत्रिका ने मोदी के वादों और भाषणों का संकलन कर आज के हालात से तुलना करते हुए विश्लेषण किया है.

ये भी पढ़ें- नरेंद्र दामोदरदास मोदी और संसद का आईना

किसान हताश

हाल ही में एक साल तक चले किसान आंदोलन के बाद देश के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की. उन्होंने संबोधन में कहा, ‘‘शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रह गई होगी, जिस के कारण दीये के प्रकाश जैसा सत्य कुछ किसान भाइयों को हम समझा नहीं पाए.’’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वे दीये के प्रकाश जैसे सत्य को कुछ किसानों को समझा नहीं पाए, पर असल में इन कृषि कानूनों की बुनियाद ही बड़े झूठ पर टिकी हुई थी, जिस में किसानों के साथ झूठ और धोखे के अलावा कुछ नहीं था. जिस समय देश लौकडाउन के चलते बंद पड़ा था उस दौरान केंद्र ने बिना किसान यूनियनों की सहमति लिए इन अध्यादेशों को कैबिनैट में पास करा विधेयक का रूप दिया. यह न सिर्फ किसानों को अंधेरे में रखने जैसा था बल्कि किसी जालसाजी से भी कम न था. असल यह कि मोदी सरकार ने किसानों को समझाने की जगह, कानून थोपने का काम किया.

मुद्दा तो यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2016 में किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, पर जमीनी सचाई ठीक उलट है. सचाई यह है कि साल 2012-13 के बाद से किसानों की आय से जुड़ा एनएसएसओ का डाटा उपलब्ध ही नहीं है. साल 2014 और 2019 के बीच कृषि से जुड़ी मजदूरी की दर में गिरावट आई है.

टाटा इंस्टिट्यूट औफ सोशल साइंसेज के स्कूल औफ डैवलपमैंट स्टडीज में नाबार्ड के चेयर प्रोफैसर आर रामकुमार मानते हैं कि साल 2016 और 2020 के बीच वास्तव में खेती से जुड़ी आय में बढ़ोतरी के बजाय गिरावट आई है. वे इस के लिए कृषि के खिलाफ व्यापारिक शर्तों में बदलाव और सरकार की तर्कहीन नीतियों को जिम्मेदार मानते हैं.

2014 में सरकार बनने से पहले भाजपा ने ‘अच्छे दिन’ के नाम से किसानों के लिए कई विज्ञापन चलाए. वे सारे फर्जी साबित हुए. आज किसानों के हालात सब के सामने हैं. केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए कृषि कानूनों के विरोध में किसान एक साल से ऊपर राजधानी दिल्ली के बौर्डरों पर रहे पर बजाय उन्हें सुनने के खालिस्तानी, आतंकवादी, देशद्रोही जैसे शब्दों से भाजपा नवाजती रही और प्रधानमंत्री चुपचाप सहमति देते रहे.

महंगाई की मार भारी

जिस दौरान केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, उस समय भाजपा बढ़ती महंगाई को ले कर सरकार पर बहुत हमलावर रहती थी. सोशल मीडिया पर ऐसी फोटो आज भी दिख जाती हैं जब भाजपा के बड़ेबड़े नेता गैस सिलैंडर ले कर सड़कों पर अपने समर्थकों के साथ प्रदर्शन करने उतर जाया करते थे.

नरेंद्र मोदी के शब्द 2014 के पहले 22 नवंबर 2013 के भाषण में- महंगाई बढ़ती गई तो गरीब  खाएगा क्या.प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) महंगाई का ‘म’ बोलने को भी तैयार नहीं.

देश के सत्ताधारी नेताओं को गरीब की परवा नहीं. हम चुन कर आएंगे तो 100 दिन में महंगाई खत्म करेंगे. परमात्मा के जो आईटी प्रोफैशनल थे उन्होंने मेरे दिमाग में ऐसा सौफ्टवेयर डाला है कि मैं छोटा सोच नहीं सकता.

लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने महंगाई को बड़ा मुद्दा भी बनाया था. उन के नारों और भाषणों में यह बात उन्होंने स्पष्ट की थी कि वे सरकार में आ कर देश से महंगाई को खत्म करेंगे. उन के पोस्टरों में ‘बहुत हुई महंगाई की मार, अब की बार मोदी सरकार’ जैसी लाइनें जनजन को रटवा दी गई थीं.

आज हालात यह हैं कि प्रधानमंत्री मोदी खुद महंगाई के मसले पर ‘मौन’ हो गए हैं. 100 दिन तो क्या, आज 7 साल हो गए हैं, महंगाई कम होने की जगह बढ़ी है. आज मोदी खुद महंगाई का ‘म’ बोलने को तैयार नहीं हैं, मरो तो मरो, आप का नसीब.

खलिहर युवाओं की फौज

आज हालत यह है कि भाजपा शासन में लाखों ‘खलिहर युवाओं’ की फौज खड़ी हो गई है. सीएमआईई हर दिन के आंकड़े पेश करता है जिस में देश की रोजगार स्थिति ठीक नहीं दिखती है. आइएलओ के आंकड़ों के अनुसार भी भारत की औसत रोजगार दर 47 फीसदी है. हम से नीचे माने जाने वाले पड़ोसी देश पाकिस्तान, श्रीलंका और बंगलादेश भी भारत से इस मामले में आगे हैं. पाकिस्तान और श्रीलंका की रोजगार दर कमश: 50 और 51 फीसदी है. जबकि, बंगलादेश में रोजगार दर 57 फीसदी है.

27 अप्रैल, 2019 को प्रधानमंत्री मोदी वाराणसी में एक प्राइवेट चैनल पर कहते हैं देश में हर साल सवा करोड़ रोजगार बढ़ रहे हैं. जिस साल प्रधानमंत्री बेरोजगारी पर अपनी बात रख रहे थे उसी साल के एनएसएसओ के लीक्ड हुए डाटा के अनुसार देश 45 साल की सब से अधिक बेरोजगारी झेल रहा था. सरकारी नौकरियां लगातार सिकुड़ रही थीं. मसलन, रेलवे, एसएससी की वैकेंसियों में भारी गिरावट आई है. रही बात मीडिया की तो सीएमआईई के हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, मीडिया और प्रकाशन उद्योग में काम करने वालों में से 78 फीसदी लोगों ने अपनी नौकरी खो दी है. सितंबर 2016 में पूरे भारत में मीडिया और प्रकाशन उद्योग से 10.3 लाख से अधिक लोग जुड़े थे. लेकिन अगस्त 2021 में इन की संख्या केवल 2.3 लाख रह गई है.

9 दिसंबर, 2014 को नरेंद्र मोदी झारखंड की इलैक्शन रैली में-

रोजगार आप को आप के प्रदेश में मिलना चाहिए.

कारखानों का जाल बिछे, हर गांव, गली, महल्ले में रोजगार के अवसर पैदा हों.

मोदी ने भाषण में जो कहा वही कर दिया, आज लोग बेरोजगार हो, घर बैठे, रूखीसूखी रोटियां खाने को मजबूर हैं. स्थिति यह है कि जिस मेक इन इंडिया का सपना देश के युवाओं को दिखाया गया, उस पर अब मोदी सरकार बात करने को तैयार नहीं. साल 2014 में सत्ता में आने के बाद देश की जीडीपी लगातार गिरावट में ही दर्ज की गई, जिस कारण विदेशी निवेशकों ने कभी भारत में आ कर निवेश करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. ऐसे ही स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया इत्यादि योजनाओं का क्या हाल हुआ, कितने युवा इस से सफल हुए, कितनों को नौकरी मिली, इस पर पूरी सरकार चुप है.

अर्थव्यवस्था डांवांडोल

19 जून, 2012 को सीरी फोर्ट औडिटोरियम’ में सीए एसोसिएशन की बैठक में मोदी ने कांग्रेस पर गिरती अर्थव्यवस्था और भ्रष्टाचार को ले कर आरोप लगाया था कि डौलर के मुकाबले रुपए गिरना आर्थिक कारणों से नहीं बल्कि भ्रष्ट राजनीति से हुआ है.

देखा जाए तो डौलर के मुकाबले रुपया दोनों सरकारों में गिरा है. मनमोहन का कार्यालय छोड़ते और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पीएम बनते समय एक डौलर के मुकाबले रुपए की कीमत 63 थी, जो 2021 आतेआते गिर कर लगभग  75 रुपए पहुंच गई तो क्या यह मान  लिया जाए कि मौजूदा समय में भी मोदी सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त है? 15 अगस्त, 2019 को अपने दूसरे कार्यकाल में लालकिले के प्राचीर से देश की जनता के सामने दहाड़ते हुए मोदी ने 2025 तक भारत के 5 ट्रिलियन डौलर इकोनौमी बनने की बात कही थी.

प्रधानमंत्री ने 5 ट्रिलियन डौलर इकोनौमी का सपना तो दिखा दिया पर यह नहीं बताया कि इसे वे कैसे पूरा करेंगे, वह भी तब जब डौलर के मुकाबले रुपया और जीडीपी दोनों लगातार गिर रहे हैं. वर्ल्ड बैंक के डाटा के अनुसार, भारत की जीडीपी साल 2014 में 7.41 थी, जो 2020 तक -7.96 दर्ज की गई. हालत यह है कि मिनिस्ट्री औफ फाइनैंस के अनुसार पिछले साल तक देश में फैले कोरोना महामारी के कारण भारत के आर्थिक हालात इतने खराब हो चुके थे कि साल 2019 में भारत का कर्जा 147 लाख करोड़ रुपए से बढ़ कर 194 लाख करोड़ रुपए हो गया. जिस दौरान दुनिया में सभी देशों की अर्थव्यवस्था खतरे में थी, उस के बावजूद उन की जीडीपी का लगभग 40 से 50 प्रतिशत हिस्सा सरकारी कर्ज का था, लेकिन हमारे देश की जीडीपी का लगभग 75-80 फीसदी हिस्सा कर्जे में था.

जुलाई 2021 को लोकसभा में सरकार से पूछे गए एक सवाल के जवाब में वित्त मंत्रालय ने कहा कि कौर्पोरेट एलीट क्लास के पिछले 4 सालों के 8 लाख करोड़ रुपए के बैडलोन को बट्टे खाते में डाल दिया गया है. इस का अर्थ यह है कि सरकार ने कौर्पोर्रेट एलीट का 8 लाख करोड़ का ऋण माफ कर दिया.

कालाधन आया क्या?

2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी के अपने फैसले को सही ठहराते हुए कहा था कि यह नोटबंदी उन लोगों पर नकेल कसने के लिए की गई जिन के पास कालाधन है. कई गोदी चैनलों में नोटों में ट्रैकिंग चिप की झूठी बातें भी फैलाई गईं, पर न तो देश में कालाधन आया और न ही आज तक मोदी यह बता पाए कि नोटबंदी से देश का क्या भला हुआ.

देश का पैसा लूटने वाले चोरलुटेरों को सबक सिखाने की बात करने वाले मोदी आज 7 साल बाद भी किसी पर कार्यवाही नहीं कर पाए. विजय माल्या, नीरव मोदी जैसे भगौड़ों को वापस लाने की कोरी बात तो चलती रही लेकिन आज तक उन्हें देश वापस नहीं ला पाए. ऐसी पनामा और पैंडोरा पेपर जैसी कई रिपोर्टें सामने आती रहीं, जिन में अमीर लोग फर्जी तरीके से अपना टैक्स बचाते पाए गए, पर मोदी सरकार उन पर कार्रवाई तो दूर, बात करने तक को राजी नहीं.

9 जनवरी, 2014 को मोदी ने कहा-  हमारा चोरी किया पैसा विदेश से वापस आना चाहिए, इन पैसों पर जनता का अधिकार है. एक बार विदेशों में जमा काला धन वापस आ गया तो लोगों के खातों में 15-20 लाख यों ही आ जाएंगे.

इसी मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए 2 अप्रैल, 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता से अपने भाषण में कहते हैं, ‘‘आप मानते हैं कि विदेशी बैंकों में हिंदुस्तान का कालाधन है? आप मानते हैं कि देश के कुछ चोरलुटेरों ने विदेशी बैंकों में हमारा पैसा गंवा दिया है? दुनिया के किसी भी देश में हिंदुस्तान का पैसा रखा गया है, वह पाईपाई वापस लानी चाहिए कि नहीं लानी चाहिए? भाइयो और बहनो, मैं ने ठान लिया है अगर आप मुझे मौका और आशीर्वाद देंगे तो मैं पाईपाई वापस लाऊंगा.’’ जिस की हकीकत सब के सामने है.

7 अप्रैल, 2014 को भाजपा का मैनिफैस्टो लौंच करते हुए मोदी-

विकास सर्वसमावेशक, विकास सार्वदेशिक विकास सर्वप्रिय हो.

गरीब, शोषित, वंचित, पीडि़त के लिए सरकार एकमात्र सहारा है.

यह सरकार का दायित्व है कि बूढ़े मांबाप को स्वास्थ्य सुविधा दे व वंचित बच्चों को पढ़ाए.

सर्वसमावेशक की हकीकत यह है कि जो मोदी सत्ता में आने से पहले जातिगत जनगणना करवाने के पक्ष में थे, सत्ता में आते ही जातिगत जनगणना करवाने के लिए तैयार नहीं हैं. यहां तक कि दलित, पिछड़ों को भागीदारी देने के नाम पर उन के प्रतिनिधियों को मात्र मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है. भाजपा के कार्यकाल में न तो दलितपिछड़ों को सही जगह मिल पाई न ही सत्ता में मुकम्?मल हिस्सेदारी. अधिकतर जगहों पर ऊंची जातियों से आने वाले लोगों को प्राथमिकता दी गई है.

गरीबी की दुहाई

मोदी ने अपने अधिकतर भाषणों में खुद को गरीब बताया, कहा कि वह चाय बेचा करते थे इसलिए वे जनता का दुखदर्द समझते हैं. लेकिन यह बात समझ से बाहर है कि सत्ता में आते ही वे गरीबविरोधी और अमीरहितैषी कैसे बन गए? औक्सफेम 2020 के आंकड़े कहते हैं कि देश में ऊपर के 10 प्रतिशत लोगों के पास देश की कुल 74 प्रतिशत संपत्ति है. इसे उलटा कर के देखें तो भारत के 90 प्रतिशत लोगों की आबादी देश में मात्र 26 प्रतिशत पर ही अपना हिस्सा रखती है.

विश्व बैंक के आंकड़ों का उपयोग करते हुए प्यू रिसर्च सैंटर ने अनुमान लगाया है कि भारत में गरीबों की संख्या महामारी के कारण केवल एक वर्ष में 6 करोड़ से लगभग दोगुनी से अधिक 13 करोड़ 40 लाख हो गई है. इस का मतलब है कि भारत 45 वर्षों के बाद ‘सामूहिक गरीबी का देश’ कहलाने की स्थिति में वापस आ गया है. इस रिसर्च के अनुसार, भारत में पिछले एक साल में कुल 3.2 करोड़ मध्यवर्गीय लोग गरीबी में जा घुसे हैं.

इस वर्ष औक्स्फेम की वार्षिक रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई कि दुनिया के 1,000 टौप बिसनैसमैनों ने 9 महीनों के भीतर ही कोरोना वायरस से हुए नुकसान की भरपाई कर ली थी. कोरोनाकाल में जहां टौप अमीरों को वापस अपनी स्थिति में पहुंचने में 9 महीने लगे, वहीं रिपोर्ट के अनुसार, गरीबों को अपनी पुरानी स्थिति में पहुंचने में पूरा एक दशक यानी 10 साल लगने वाले हैं. ऐसे में सवाल यह है कि विकास किस का हो रहा है?

26 दिसंबर, 2014 को वाराणसी दौरे पर प्रधानमंत्री मोदी-

मेरे लिए रेलवे बहुत बड़ी प्राथमिकता है. रेलवे का निजीकरण नहीं होने वाला है. पर आज हकीकत सब के सामने है. रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने वाले मसीहा ने न सिर्फ ट्रेनों, रेलवे स्टेशनों का निजीकरण किया बल्कि पिछले साल  23 अगस्त को एनएमपी के माध्यम से 6 लाख करोड़ की राष्ट्रीय संपत्ति के मूल्य का निर्धारण कर निजी हाथों को सौंप दिया, जिस में ट्रांसमिशन लाइन, टैलिकौम टावर, गैस पाइपलाइन, हवाई अड्डे, यात्री ट्रेन, रेलवे स्टेशन, सडकें, स्टेडियम, बंदरगाह, बिजली इत्यादि शामिल हैं. इस के अलावा सरकारी बैंकों के निजीकरण का मसौदा भी तैयार होता दिखाई दे रहा है.

ये वही नरेंद्र मोदी हैं जो कह रहे थे कि देश को बिकने नहीं दूंगा. इन्हीं का कहना था कि गरीब, शोषित, वंचित, पीडि़त इन सब का एकमात्र सहारा सरकार होती है, फिर ये सरकारी संपत्ति बेच कर किस प्रकार का सहारा गरीबों को देना चाहते हैं?

23 जनवरी, 2014 को इलैक्शन कैंपेन के दौरान नरेंद्र मोदी ने कहा था, ‘‘हमारी सारी मुसीबतों का कारण गलत दृष्टि रही है. क्यों न हमारे देश में 100 नए शहर बनें, आधुनिक शहर बनें, ‘वाक टू वर्क’ कौंसैप्ट के रूप से बनें, स्मार्ट सिटी बनें. ये स्पैशलाइज्ड सिटी क्यों न बनें? अगर हम चाहें तो हम 100 नए शहरों का सपना आज देश की आवश्यकता के लिए पूरा कर सकते हैं.’’ आज सवाल यह है कि ये स्मार्ट सिटी कहां है? अब क्यों स्मार्ट सिटी पर चर्चा नहीं होती?

स्मार्ट सिटी की असलियत तो यह निकली कि 2014 से 2019 तक सरकार से मात्र 30 प्रतिशत फंड ही स्मार्ट सिटी बनाने के लिए रिलीज किया गया. वहीं, झूठ तो यह भी कि तमाम आंकड़ों के बावजूद चुनाव जीतने के लिए पिछड़ते उत्तर प्रदेश को नंबर वन राज्य बताने में जरा भी जबान नहीं डगमगाई.

आज हालत यह है कि अबूझ विकास तो दूर, हम अपने लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा तक नहीं दे पा रहे हैं. कोरोनाकाल में देशवासी औक्सीजन तक के लिए दरदर भटकते रहे. कइयों की मौत इसी के चलते हो गई. वहीं, लौकडाउन में लाखों प्रवासी मजदूर सैकड़ों मील दूर पैदल चलने को मजबूर हुए.

सामाजिक न्याय खतरे में

3 मई, 2014 को मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले अपने ट्विटर अकाउंट से ट्वीट करते हुए कहते हैं, ‘‘हम ने आपातकाल की भयावहता देखी है जब प्रैस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी को दबा दिया गया था. यह हमारे लोकतंत्र पर कलंक है.’’

सरकार बन जाने के बाद भी 16 नवंबर, 2017 को ट्वीट करते हुए प्रधानमंत्री मोदी लिखते हैं, ‘‘एक स्वतंत्र प्रैस जीवंत लोकतंत्र की आधारशिला है. हम सभी रूपों में प्रैस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं. 125 करोड़ भारतीयों के कौशल ताकत और रचनात्मकता को प्रदर्शित करने के लिए हमारे मीडिया स्पेस का अधिक से अधिक उपयोग किया जाए.’’

पर हकीकत इस के ठीक विपरीत है. अपनी बातों में प्रधानमंत्री प्रैस की स्वतंत्रता के पक्षकारी जरूर हैं पर आंकड़े कुछ और ही कहते हैं. दुनियाभर में प्रैस की स्वतंत्रता और पत्रकारों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बौर्डर्स ने 37 ऐसे राष्ट्रध्यक्षों यानी सुप्रीम नेताओं के नाम प्रकाशित किए जिन्होंने अपने देश में प्रैस को प्रभावित करने का काम किया. इस लिस्ट में मोदी का नाम भी शामिल किया गया है.

इसी वर्ष अप्रैल में वर्ल्ड फ्रीडम इंडैक्स की रिपोर्ट पब्लिश हुई थी. उस के अनुसार, 180 देशों की लिस्ट में भारत शर्मनाक 142वें स्थान पर था जिसे आजाद पत्रकारिता के लिहाज से बेहद खराब माना गया है.

यह खतरनाक बात है कि हाल ही में पैगासस जैसे खतनाक मैलवेयर का इस्तेमाल देश के पत्रकारों, न्यायाधीशों, विपक्षी नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की जासूसी करने के आरोप में मोदी सरकार घिरी है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी बना कर जांच के आदेश दिए हैं.

कथनी और करनी में अंतर यह बात स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी लोगों के बीच अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहते हैं लेकिन अधिकतर समय उन की कथनी और करनी में भारी अंतरभेद पाया गया है. यह बात समझने के लिए सीधा उदाहरण आधार कार्ड योजना, एफडीआई, जीएसटी इत्यादि पर उन की राय से समझा जा सकता है.

26 सितंबर, 2013 को तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु में बीजेपी यूथ कौन्फ्रैंस को संबोधित करते हुए मोदी ने कांग्रेस द्वारा लाए आधार कार्ड स्कीम का विरोध करते कहा था, ‘‘आप इस प्रकार से किसी के माध्यम से किसी को भी आधार कार्ड देते जाओगे तो हिंदुस्तान में घुसपैठ करने वाले लोगों को बढ़ावा मिलेगा. पड़ोसी देश गैरकानूनी तरीके से हमारे देश में घुस कर इस देश के नागरिक बन जाएंगे.’’ लेकिन वहीं दूसरी ओर जब मोदी सत्ता में आए तो इसी आधार कार्ड की स्कीम को हर जगह अनिवार्य  कर दिया.

ऐसे ही 14 सितंबर, 2012 को गुजरात में एक रैली को संबोधन करते हुए नरेंद्र मोदी ने एफडीआई के संदर्भ में कहा था, ‘‘अगर यह रिटेल के अंदर शतप्रतिशत हो गई और इस प्रकार का मार्केट शुरू होगा तो हिंदुस्तान के छोटे व्यापारी के पास खरीदी करने कौन आएगा? इस से मैन्युफैक्चर सैक्टर को भी गंभीर झटका लगेगा. देश के लाखों गरीब मजदूर बेरोजगार हो जाएंगे.’’

वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी सरकार ने शतप्रतिशत एफडीआई के लिए अपने दरवाजे खोल दिए. जिस जीएसटी का विरोध कर वह सत्ता में पहुंची, सत्ता में आने के बाद उसे जनता पर थोप दिया. क्या अब देश के छोटे व्यापारी बरबाद नहीं हो रहे? क्या अब देश के मैन्युफैक्चर सैक्टर पर इस का असर नहीं पड़ रहा? कई सवाल हैं जिन के जवाब तो दूर, उन्हें चर्चा से ही कोसों दूर कर दिया गया है.

झूठ बोलने को ले कर आज मोदी सोशल मीडिया में युवाओं के निशाने पर हैं. इन 7 सालों में न तो देश की महंगाई कम हुई, न रोजगार बढ़ा, न जीडीपी बढ़ी. जिन चीजों के वादे करते हुए मोदी ने सरकार बनाई थी वे सब मुद्दे धूमिल कर दिए गए हैं. यहां तक कि बहुत बार वे अपने झूठ और अर्धसत्य से विवादों में रहते हैं. कई हलकों में पंजाब में घटित कथित सुरक्षा की चूक को प्रधानमंत्री मोदी का राजनीतिक स्टंट बताया जा रहा है. कहा जा रहा है कि इस माध्यम से वे चुनावों को मुद्दों से हटा कर मोदी खुद पर केंद्रित करना चाहते हैं. वे पिछले कुछ समय से धूमिल होती अपनी इमेज को फिर से रिगेन करना चाहते हैं.

अंधविश्वास: वास्तु- तर्क पर भारी पड़ता वहम

Writer- प्रतिभा अग्निहोत्री

देश में आज भी ऐसे लोग हैं जो अजीबोगरीब अंधविश्वासों से घिरे हुए हैं. गरीब टोनाटोटका से घिरे रहते हैं तो पौश वास्तुदोष में फंसे रहते हैं. अधिक दिक्कत इन्हीं शिक्षित पौश लोगों से है जो पढ़लिख कर भी अंधविश्वासों को अपना रहे हैं.

2 वर्ष पहले मेरी सहेली नीमा ने बड़े अरमानों से अपनी सारी जमा पूंजी लगा कर अपने सपनों का आशियाना बनवाया. घर में एकएक चीज उस ने कई माह तक बाजार में घूमघूम कर, चुनचुन कर लगवाई. धूमधाम से गृहप्रवेश कर के खुशीखुशी परिवार सहित घर में रहने आ गई.

अभी एक माह ही हुआ था कि उसे चिकनगुनिया ने आ घेरा. वह अभी पूरी तरह ठीक भी नहीं हो पाई कि उस की सास के बाथरूम में फिसल कर गिर जाने से पैर में फ्रैक्चर हो गया. इसी प्रकार कुछ अन्य छोटीमोटी समस्याएं तकरीबन एक साल तक चलती ही रहीं.

एक दिन उस के पति के एक मित्र मिलने आए. वे बोले, ‘इस घर का नक्शा वास्तु के हिसाब से अनुचित है, इसीलिए इस घर में आने के बाद से ही आप लोग समस्याओं से घिरे हैं. बेहतर है कि आप इसे वास्तु के हिसाब से बनवा लीजिए, सारी समस्याओं का अंत हो जाएगा.’

सहेली के परिवार के मन में यह बात इतने गहरे तक घर कर गई कि 2 माह के अंदर ही उस ने घर खाली कर के किराए पर चढ़ा दिया और अपने पुराने घर में रहने चली गई.

रमेश ने अपनी समस्त जमा पूंजी से एक फ्लैट खरीदा. घर में वृद्ध मातापिता थे, सो हारीबीमारी लगी ही रहती. एक दिन उन के एक वास्तुशास्त्री मित्र आए और बोले, ‘यार, इस घर में वास्तुदोष है. परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए भोजन प्रदान करने वाला अन्नपूर्ण किचन गलत स्थान पर बना हुआ है. तू किचन को कमरा और कमरे को किचन में परिवर्तित करेगा तो वह दोष समाप्त हो जाएगा, वरना तेरे घर में कोई न कोई बीमार ही रहेगा और आर्थिक कष्ट भी रहेगा.’

ये भी पढ़ें- धर्म और पाखंड: मोक्ष के लिए आत्महत्या और हत्याएं

रमेश व उन की पत्नी को उन की बात समझ आ गई और अगले दिन से ही कमरे को किचन में तबदील करने का काम प्रारंभ कर दिया गया. चूंकि कमरे में नाली की कोई व्यवस्था न थी, सो कमरे के बीच में टाइल्स के नीचे से एक पतली सी नाली बना दी गई ताकि रसोईघर में स्थित सिंक का पानी बाहर निकल सके.

किचन से कमरे के इस आमूलचूल परिवर्तन के बाद रमेश आश्वस्त थे कि अब घर में बीमारी का नामोनिशान नहीं रहेगा और उन का व्यवसाय भी फलेगा. पर एक दिन उस नवनिर्मित नाली में कचरा अटक जाने से सिंक ओवरफ्लो हो गया तथा सिंक का पानी फर्श पर आ गिरा.

रमेश की पत्नी का पैर फिसला और वे चारों खाने चित हो गईं. रीढ़ की हड्डी में फैक्चर हो जाने से 3 माह बिस्तर पर रहीं. पत्नी की बीमारी के कारण व्यवसाय में पर्याप्त ध्यान न दे पाने से उधर भी घाटा होने लगा. अब रमेश हैरत में थे कि घर में वास्तुदोष समाप्त हो जाने के बाद भी आर्थिक और शारीरिक कष्ट क्यों हुआ?

आजकल वास्तुशास्त्र का चलन बहुत जोरों पर है. घर खरीदने से पूर्व उस के मुख्यद्वार, बैडरूम, किचन और बाथरूम की दिशा आदि को वास्तुशास्त्री द्वारा दिखाए जाने का प्रचलन बहुत अधिक बढ़ गया है. गृहप्रवेश के समय वास्तुपूजा को भी आवश्यक माना जाता है.

एक राजपत्रित अधिकारी संजय घर में प्रवेश के समय वास्तु पूजा कराना अत्यंत आवश्यक मानते हैं. उन के अनुसार, वास्तुपूजा करा लेने से घर में निहित समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं और घर में सदा सुखशांति व खुशहाली रहती है.

ये भी पढ़ें- बैंड, बाजा और बरात के साथ गे कपल की शादी

विज्ञान की दृष्टि में वास्तु

पेशे से सिविल इंजीनियर एस के भटनागर कहते हैं, ‘‘वास्तु का सीधा तात्पर्य घर में पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था, पानी की समुचित निकासी और ताजी हवा के आवागमन से है और इस के वैज्ञानिक कारण भी हैं क्योंकि यह सर्वविदित है कि प्रत्येक बीमारी के कीटाणु अंधेरे और सीलनभरे वातावरण में ही जन्म लेते हैं. जब घर में बीमारी होगी तो आर्थिक प्रगति तो असंभव ही है. इस के विपरीत जब हवा, प्रकाश के आवागमन व पानी के निकास की समुचित व्यवस्था होगी तो बीमारियां जन्म ही नहीं लेंगी. सो, परिवार के सभी सदस्य स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगे. ऐसे में आर्थिक उन्नति भी होगी ही.’’

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए इंजीनियर भटनागर कहते हैं, ‘‘वर्तमान समय में इस वैज्ञानिक दृष्टिकोण में अंधविश्वास का प्रवेश हो जाने से जनमानस में वहम व्याप्त हो गया है जिस से कई बार लोग अपने अच्छेखासे घर में ही आमूलचूल परिवर्तन करा देते हैं जो सर्वथा अनुचित है.’’

केवल मन का वहम है वास्तु

भोपाल के आर्किटैक्ट और 10 वर्षों से इंटीरियर डैकोरेशन का काम कर रहे आशीष मालवीय वास्तु को कोरा इंसानी वहम बताते हैं. वे कहते हैं, ‘‘प्रकाश, ताजी हवा और खुलेपन के सीधेसादे फंडे में अंधविश्वास और वहम का तड़का लगा कर कुछ लोगों ने इसे अपनी मोटी कमाई का जरिया बना लिया है. आजकल के पंडित और ज्योतिषी मानवीय कमजोरियों का लाभ उठा कर उस के जीवन की समस्त समस्याओं को वास्तु से जोड़ कर मन में वहम उत्पन्न कर देते हैं और फिर विभिन्न उपायों द्वारा उस दोष को समाप्त करने का झांसा दे कर खासी रकम वसूलते हैं. आश्चर्य इस बात का है कि वास्तु के इस फेर में समाज का पूर्ण शिक्षित उच्चवर्ग फंसा हुआ है.’’

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए आशीष कहते हैं, ‘‘समाज के खासे रसूख और पैसे वाले लगभग 50 प्रतिशत लोग वास्तु की गिरफ्त में हैं. उन के मनमस्तिष्क में तथाकथित वास्तु ने इतनी गहरी पैठ बना ली है कि वे अपने ज्योतिष या पंडित की सलाह के अनुसार घर के पूरे नक्शे को ही परिवर्तित करा देते हैं, फिर चाहे इस के लिए उन्हें कितना ही पैसा क्यों न खर्च करना पड़े.’’

वास्तु की सचाई भी यही है कि पंडितों और ज्योतिषियों द्वारा आम आदमी के मन में वास्तु का वहम इतनी गहराई से भर दिया गया है कि लोग घर में छोटेछोटे आवश्यक कार्य भी वास्तु के अनुसार कराना चाहते हैं. अपने घर में इंटीरियर का काम करा रहीं महिला चिकित्सक मेघा गरमी में ग्रीन नैट या दीवाली पर झालर लगाने के लिए परमानैंट हुक या रौड लगावाना वास्तु के अनुसार नहीं मानतीं.

अपने तर्क को सही सिद्ध करते हुए वे कहतीं हैं, ‘‘वास्तु के अनुसार घर में हुक या कीलें परमानैंट लगाने से घर की सुखशांति नष्ट हो जाती है, इसलिए इस के लिए कोई टैंपरैरी इंतजाम करना ही उपयुक्त रहेगा.’’

आश्चर्य इस बात का है कि आम जनमानस पंडितों को ईश्वर का दूत मान कर उन के द्वारा कराई गई शांतिपूजा पर विश्वास कर के घर में प्रवेश करना उचित समझता है, जबकि पंडितजी का उद्देश्य मनुष्य के मन में वहम उत्पन्न कर के सिर्फ अपनी कमाई करना होता है.

वर्माजी के नवनिर्मित घर का अवलोकन कर एक पंडितजी ने नेक सलाह दी, ‘‘आप का पूरा घर तो वास्तु के अनुसार बना है परंतु हौल के दाहिने कोने में दोष है जिस से घर के मुखिया के जीवन को हानि है. मेरे पास इस का उपाय है, मैं पूजा से उस कोने को दोषमुक्त कर दूंगा.’’

ये भी पढ़ें- कोरोना काल में पुरुष मांज रहे बर्तन

वास्तु के नाम पर लंबीलंबी पूजाएं करा कर जनमानस को दिग्भ्रमित करने के अनेक उदाहरण हमें अपने आसपास देखने को मिल जाएंगे जहां पर घर को दोषयुक्त बता कर पंडित उसे दोषमुक्त कराने का दावा करते हैं और जिस के लिए वे यजमान से खासी रकम वसूल कर अपनी जेबें भरते हैं.

सैनिक स्कूल से बतौर प्रिंसिपल रिटायर हुए कर्नल आर के सिंह आज के तथाकथित वास्तु पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहते हैं, ‘‘कुछ दशकों पूर्व तक जमीन की कमी नहीं थी, जिस से इंसान मनचाहा घर बना लेता था परंतु आज जमीन की कमी के चलते फ्लैट कल्चर का चलन है जहां बिल्डर एकसाथ सैकड़ोंहजारों की संख्या में घर बनाता है तो एक ही दिशा में घर बन पाना असंभव है.

‘‘दोष घरों में नहीं, बल्कि इंसान की मानसिकता में है जो अपने जैसे ही पंडितरूपी आम आदमी से पूजा करा कर घर के दोष को समाप्त करवाने में विश्वास करते हैं और अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई को खुशीखुशी उन के चरणों में अर्पित कर देते हैं.’’

क्या है आवश्यक

वास्तव में घर की सुखशांति और खुशहाली के लिए किसी वास्तु, पंडित, पूजा अथवा ज्योतिषी की नहीं, बल्कि घर के सदस्यों के परस्पर सहयोग व समझदारी की आवश्यकता होती है और इसे बनाए रखने के लिए घर के प्रत्येक सदस्य को मेहनत करनी होती है.

रजनी ने अपने घर में कोई वास्तु और नक्षत्र पूजा नहीं करवाई और आज घर में रहते हुए 5 वर्ष हो गए हैं. वे कहती हैं, ‘‘इस घर में आने के बाद हमें कभी कोई परेशानी नहीं हुई बल्कि प्रत्येक कार्य उसी तरह हुआ जैसे हम चाहते थे. हां, हम दोनों पतिपत्नी की ट्यूनिंग बहुत अच्छी है जिस से समस्याएं उत्पन्न होने से पूर्व ही हल हो जाया करती हैं. आखिर हमारी अपनी समस्याओं को कोई दूसरा कैसे हल कर सकता है.’’

कर्नल सिंह भी कुछ ऐसे ही विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं, ‘‘घर में रोशनी और हवा का पर्याप्त आवागमन जरूरी है. शारीरिक, पारिवारिक और आर्थिक परेशानियां तो जीवन की सामान्य प्रक्रिया है, उस से घर का कोई लेनादेना नहीं होता और न ही मन में इस प्रकार के वहम को कोई जगह देनी चाहिए.’’

वास्तव में वास्तु मन का कोरा वहम और अंधविश्वास है जिस का तर्क से कोई लेनादेना नहीं है. आज आवश्यकता है पडितों के इस फैलाए जाल से बाहर निकल कर तर्क से विचार करने की कि क्या वास्तव में तथाकथित पंडितों के पास घर में सुखशांति लाने की कोई जादू की छड़ी है. जब कि सचाई यह है कि सहनशीलता, परस्पर सम्मान, बच्चों को अच्छे संस्कार देने की जादू की छड़ी हमारे अपने हाथ में है जिस का उपयोग कर के हम अपने जीवन की समस्त समस्याओं का निदान कर सकते हैं.

2 वर्ष पहले मेरी सहेली नीमा ने बड़े अरमानों से अपनी सारी जमा पूंजी लगा कर अपने सपनों का आशियाना बनवाया. घर में एकएक चीज उस ने कई माह तक बाजार में घूमघूम कर, चुनचुन कर लगवाई. धूमधाम से गृहप्रवेश कर के खुशीखुशी परिवार सहित घर में रहने आ गई.

अभी एक माह ही हुआ था कि उसे चिकनगुनिया ने आ घेरा. वह अभी पूरी तरह ठीक भी नहीं हो पाई कि उस की सास के बाथरूम में फिसल कर गिर जाने से पैर में फ्रैक्चर हो गया. इसी प्रकार कुछ अन्य छोटीमोटी समस्याएं तकरीबन एक साल तक चलती ही रहीं.

एक दिन उस के पति के एक मित्र मिलने आए. वे बोले, ‘इस घर का नक्शा वास्तु के हिसाब से अनुचित है, इसीलिए इस घर में आने के बाद से ही आप लोग समस्याओं से घिरे हैं. बेहतर है कि आप इसे वास्तु के हिसाब से बनवा लीजिए, सारी समस्याओं का अंत हो जाएगा.’

सहेली के परिवार के मन में यह बात इतने गहरे तक घर कर गई कि 2 माह के अंदर ही उस ने घर खाली कर के किराए पर चढ़ा दिया और अपने पुराने घर में रहने चली गई.

रमेश ने अपनी समस्त जमा पूंजी से एक फ्लैट खरीदा. घर में वृद्ध मातापिता थे, सो हारीबीमारी लगी ही रहती. एक दिन उन के एक वास्तुशास्त्री मित्र आए और बोले, ‘यार, इस घर में वास्तुदोष है. परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए भोजन प्रदान करने वाला अन्नपूर्ण किचन गलत स्थान पर बना हुआ है. तू किचन को कमरा और कमरे को किचन में परिवर्तित करेगा तो वह दोष समाप्त हो जाएगा, वरना तेरे घर में कोई न कोई बीमार ही रहेगा और आर्थिक कष्ट भी रहेगा.’

रमेश व उन की पत्नी को उन की बात समझ आ गई और अगले दिन से ही कमरे को किचन में तबदील करने का काम प्रारंभ कर दिया गया. चूंकि कमरे में नाली की कोई व्यवस्था न थी, सो कमरे के बीच में टाइल्स के नीचे से एक पतली सी नाली बना दी गई ताकि रसोईघर में स्थित सिंक का पानी बाहर निकल सके.

किचन से कमरे के इस आमूलचूल परिवर्तन के बाद रमेश आश्वस्त थे कि अब घर में बीमारी का नामोनिशान नहीं रहेगा और उन का व्यवसाय भी फलेगा. पर एक दिन उस नवनिर्मित नाली में कचरा अटक जाने से सिंक ओवरफ्लो हो गया तथा सिंक का पानी फर्श पर आ गिरा.

रमेश की पत्नी का पैर फिसला और वे चारों खाने चित हो गईं. रीढ़ की हड्डी में फैक्चर हो जाने से 3 माह बिस्तर पर रहीं. पत्नी की बीमारी के कारण व्यवसाय में पर्याप्त ध्यान न दे पाने से उधर भी घाटा होने लगा. अब रमेश हैरत में थे कि घर में वास्तुदोष समाप्त हो जाने के बाद भी आर्थिक और शारीरिक कष्ट क्यों हुआ?

आजकल वास्तुशास्त्र का चलन बहुत जोरों पर है. घर खरीदने से पूर्व उस के मुख्यद्वार, बैडरूम, किचन और बाथरूम की दिशा आदि को वास्तुशास्त्री द्वारा दिखाए जाने का प्रचलन बहुत अधिक बढ़ गया है. गृहप्रवेश के समय वास्तुपूजा को भी आवश्यक माना जाता है.

एक राजपत्रित अधिकारी संजय घर में प्रवेश के समय वास्तु पूजा कराना अत्यंत आवश्यक मानते हैं. उन के अनुसार, वास्तुपूजा करा लेने से घर में निहित समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं और घर में सदा सुखशांति व खुशहाली रहती है.

विज्ञान की दृष्टि में वास्तु

पेशे से सिविल इंजीनियर एस के भटनागर कहते हैं, ‘‘वास्तु का सीधा तात्पर्य घर में पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था, पानी की समुचित निकासी और ताजी हवा के आवागमन से है और इस के वैज्ञानिक कारण भी हैं क्योंकि यह सर्वविदित है कि प्रत्येक बीमारी के कीटाणु अंधेरे और सीलनभरे वातावरण में ही जन्म लेते हैं. जब घर में बीमारी होगी तो आर्थिक प्रगति तो असंभव ही है. इस के विपरीत जब हवा, प्रकाश के आवागमन व पानी के निकास की समुचित व्यवस्था होगी तो बीमारियां जन्म ही नहीं लेंगी. सो, परिवार के सभी सदस्य स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगे. ऐसे में आर्थिक उन्नति भी होगी ही.’’

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए इंजीनियर भटनागर कहते हैं, ‘‘वर्तमान समय में इस वैज्ञानिक दृष्टिकोण में अंधविश्वास का प्रवेश हो जाने से जनमानस में वहम व्याप्त हो गया है जिस से कई बार लोग अपने अच्छेखासे घर में ही आमूलचूल परिवर्तन करा देते हैं जो सर्वथा अनुचित है.’’

केवल मन का वहम है वास्तु

भोपाल के आर्किटैक्ट और 10 वर्षों से इंटीरियर डैकोरेशन का काम कर रहे आशीष मालवीय वास्तु को कोरा इंसानी वहम बताते हैं. वे कहते हैं, ‘‘प्रकाश, ताजी हवा और खुलेपन के सीधेसादे फंडे में अंधविश्वास और वहम का तड़का लगा कर कुछ लोगों ने इसे अपनी मोटी कमाई का जरिया बना लिया है. आजकल के पंडित और ज्योतिषी मानवीय कमजोरियों का लाभ उठा कर उस के जीवन की समस्त समस्याओं को वास्तु से जोड़ कर मन में वहम उत्पन्न कर देते हैं और फिर विभिन्न उपायों द्वारा उस दोष को समाप्त करने का झांसा दे कर खासी रकम वसूलते हैं. आश्चर्य इस बात का है कि वास्तु के इस फेर में समाज का पूर्ण शिक्षित उच्चवर्ग फंसा हुआ है.’’

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए आशीष कहते हैं, ‘‘समाज के खासे रसूख और पैसे वाले लगभग 50 प्रतिशत लोग वास्तु की गिरफ्त में हैं. उन के मनमस्तिष्क में तथाकथित वास्तु ने इतनी गहरी पैठ बना ली है कि वे अपने ज्योतिष या पंडित की सलाह के अनुसार घर के पूरे नक्शे को ही परिवर्तित करा देते हैं, फिर चाहे इस के लिए उन्हें कितना ही पैसा क्यों न खर्च करना पड़े.’’

वास्तु की सचाई भी यही है कि पंडितों और ज्योतिषियों द्वारा आम आदमी के मन में वास्तु का वहम इतनी गहराई से भर दिया गया है कि लोग घर में छोटेछोटे आवश्यक कार्य भी वास्तु के अनुसार कराना चाहते हैं. अपने घर में इंटीरियर का काम करा रहीं महिला चिकित्सक मेघा गरमी में ग्रीन नैट या दीवाली पर झालर लगाने के लिए परमानैंट हुक या रौड लगावाना वास्तु के अनुसार नहीं मानतीं.

अपने तर्क को सही सिद्ध करते हुए वे कहतीं हैं, ‘‘वास्तु के अनुसार घर में हुक या कीलें परमानैंट लगाने से घर की सुखशांति नष्ट हो जाती है, इसलिए इस के लिए कोई टैंपरैरी इंतजाम करना ही उपयुक्त रहेगा.’’

आश्चर्य इस बात का है कि आम जनमानस पंडितों को ईश्वर का दूत मान कर उन के द्वारा कराई गई शांतिपूजा पर विश्वास कर के घर में प्रवेश करना उचित समझता है, जबकि पंडितजी का उद्देश्य मनुष्य के मन में वहम उत्पन्न कर के सिर्फ अपनी कमाई करना होता है.

वर्माजी के नवनिर्मित घर का अवलोकन कर एक पंडितजी ने नेक सलाह दी, ‘‘आप का पूरा घर तो वास्तु के अनुसार बना है परंतु हौल के दाहिने कोने में दोष है जिस से घर के मुखिया के जीवन को हानि है. मेरे पास इस का उपाय है, मैं पूजा से उस कोने को दोषमुक्त कर दूंगा.’’

वास्तु के नाम पर लंबीलंबी पूजाएं करा कर जनमानस को दिग्भ्रमित करने के अनेक उदाहरण हमें अपने आसपास देखने को मिल जाएंगे जहां पर घर को दोषयुक्त बता कर पंडित उसे दोषमुक्त कराने का दावा करते हैं और जिस के लिए वे यजमान से खासी रकम वसूल कर अपनी जेबें भरते हैं.

सैनिक स्कूल से बतौर प्रिंसिपल रिटायर हुए कर्नल आर के सिंह आज के तथाकथित वास्तु पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहते हैं, ‘‘कुछ दशकों पूर्व तक जमीन की कमी नहीं थी, जिस से इंसान मनचाहा घर बना लेता था परंतु आज जमीन की कमी के चलते फ्लैट कल्चर का चलन है जहां बिल्डर एकसाथ सैकड़ोंहजारों की संख्या में घर बनाता है तो एक ही दिशा में घर बन पाना असंभव है.

‘‘दोष घरों में नहीं, बल्कि इंसान की मानसिकता में है जो अपने जैसे ही पंडितरूपी आम आदमी से पूजा करा कर घर के दोष को समाप्त करवाने में विश्वास करते हैं और अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई को खुशीखुशी उन के चरणों में अर्पित कर देते हैं.’’

क्या है आवश्यक

वास्तव में घर की सुखशांति और खुशहाली के लिए किसी वास्तु, पंडित, पूजा अथवा ज्योतिषी की नहीं, बल्कि घर के सदस्यों के परस्पर सहयोग व समझदारी की आवश्यकता होती है और इसे बनाए रखने के लिए घर के प्रत्येक सदस्य को मेहनत करनी होती है.

रजनी ने अपने घर में कोई वास्तु और नक्षत्र पूजा नहीं करवाई और आज घर में रहते हुए 5 वर्ष हो गए हैं. वे कहती हैं, ‘‘इस घर में आने के बाद हमें कभी कोई परेशानी नहीं हुई बल्कि प्रत्येक कार्य उसी तरह हुआ जैसे हम चाहते थे. हां, हम दोनों पतिपत्नी की ट्यूनिंग बहुत अच्छी है जिस से समस्याएं उत्पन्न होने से पूर्व ही हल हो जाया करती हैं. आखिर हमारी अपनी समस्याओं को कोई दूसरा कैसे हल कर सकता है.’’

कर्नल सिंह भी कुछ ऐसे ही विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं, ‘‘घर में रोशनी और हवा का पर्याप्त आवागमन जरूरी है. शारीरिक, पारिवारिक और आर्थिक परेशानियां तो जीवन की सामान्य प्रक्रिया है, उस से घर का कोई लेनादेना नहीं होता और न ही मन में इस प्रकार के वहम को कोई जगह देनी चाहिए.’’

वास्तव में वास्तु मन का कोरा वहम और अंधविश्वास है जिस का तर्क से कोई लेनादेना नहीं है. आज आवश्यकता है पडितों के इस फैलाए जाल से बाहर निकल कर तर्क से विचार करने की कि क्या वास्तव में तथाकथित पंडितों के पास घर में सुखशांति लाने की कोई जादू की छड़ी है. जब कि सचाई यह है कि सहनशीलता, परस्पर सम्मान, बच्चों को अच्छे संस्कार देने की जादू की छड़ी हमारे अपने हाथ में है जिस का उपयोग कर के हम अपने जीवन की समस्त समस्याओं का निदान कर सकते हैं.

निम्न बातों का रखें खास ध्यान

घर खरीदते या बनवाते समय किसी पूजापाठ को करने या वास्तुशास्त्री से सलाहमशवरा करने के स्थान पर इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-

घर में पर्याप्त वैंटिलेशन हो ताकि हवा का आवागमन सुचारु रूप से हो सके और घर के सदस्यों को ताजी हवा प्राप्त हो सके.

यह सुनिश्चित करें कि सूर्य के उदय अथवा अस्त होते समय सूर्य का प्रकाश आप को मिल सके क्योंकि इस समय सूर्य की रोशनी में अल्ट्रावौयलेट रेंज नहीं होतीं और यह धूप विटामिन डी से भरपूर होती है.

किचन, बाथरूम और बालकनी आदि से पानी के निकास की समुचित व्यवस्था होनी अत्यंत आवश्यक है. बाथरूम में एंटी स्किड टाइल लगी हों ताकि पैर आदि के स्लिप होने का डर न रहे.

ऐसी लोकेशन पर घर लें जहां या तो सोसाइटी में ही रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता हो अथवा बाजार आप के घर के पास में हो.

पशुपालन: ऐसे पहचानें विदेशी व संकर नस्ल की गायों को

डा. नागेंद्र कुमार त्रिपाठी, वैज्ञानिक, पशुपालन

विदेशी व संकर नस्ल की गायों को अपने देश में अलगअलग नस्ल की गाय पाली जाती हैं. इन गायों के दूध देने की क्षमता भी काफी अधिक है, परंतु पशुपालकों को विदेशी व संकर नस्ल की गायों की पहचान करना काफी टेढ़ी खीर साबित होता है, इसलिए यह जानना जरूरी है कि पशुपालक इन की पहचान कैसे करें.

प्रमुख देशी नस्लें साहिवाल

यह लंबे सिर, छोटे सींग, मध्यम आकार, लाल रंग, ढीले चमड़े व लंबे थनों वाली नस्ल है, जो प्रति ब्यांत (300 दिन) तकरीबन 1,900 लिटर दूध देने की क्षमता रखती है.

लाल सिंधी

यह गहरे लाल और भूरे रंग की मध्यम आकार की गाय है. लाल सिंधी गाय का सींग छोटा और कान काफी बड़ा होता है. इस नस्ल की गाय प्रति ब्यांत तकरीबन 1,600 लिटर दूध देती है.

ये भी पढ़ें- फरवरी महीने के खेती के खास काम

गिर

यह सफेद चित्तियों से युक्त लाल रंग की मध्यम आकार की नस्ल है, जो गुजरात की गिर पहाडि़यों में पाई जाती है. इस के सींग मध्यम आकार के, पीछे की ओर मुड़े हुए, कान लंबे लटकते हुए व पूंछ कोड़े जैसी होती है. यह प्रति ब्यांत तकरीबन 1,500 लिटर दूध देती है.

थारपारकर

यह गठीले शरीर, लंबा चेहरा, मध्यम आकार के सींग, लंबे काले गच्छों से युक्त पूंछ व बड़े कान वाली गाय है, जो राजस्थान के थार मरुस्थल और कच्छ में पाई जाती है. यह प्रति ब्यांत तकरीबन 2,200 लिटर दूध देने की क्षमता रखती है.

हरियाणा, कौकरेज व देवनी

दूध उत्पादन के नजरिए से ये गाएं खास हैं. हालांकि हमारे राज्य की भौगोलिक और जलवायु के नजरिए से हरियाणा नस्ल की गाय उपयुक्त है.

हरियाणा नस्ल

इस नस्ल की गाय का रंग सफेद या हलका धूसर, चेहरा लंबा और माथा चौड़ा, सींग छोटा अंदर की तरफ मुड़ा हुआ और पूंछ लंबी होती है. यह प्रति ब्यांत तकरीबन 900 लिटर दूध देती है.

ये भी पढ़ें- जाड़े की अति वर्षा से खेती को हुए नुकसान और उस की भरपाई

इन नस्लों के अलावा हमारे देश में अधिक दूध देने वाली कुछ विदेशी नस्लें भी हैं, जिन का देशी नस्लों के साथ संकरण कर अधिक दूध देने वाली संकर नस्लें तैयार की जाती हैं.

प्रमुख विदेशी नस्लें जर्सी

इस नस्ल का मूल स्थान जर्सी द्वीप है. इस नस्ल का रंग हलका लाल या बादामी होता है, जिस पर सफेद रंग के धब्बे होते हैं. सींग छोटे अंदर की ओर मुड़े हुए और माथा, कंधा व पीठ समतल होता है. यह तकरीबन 30 महीने के भीतर बच्चा देती है और ब्यांतार तकरीबन

13-14 महीने का होता है. यह प्रति ब्यांत औसतन 4,500 लिटर दूध देती है.

होलिस्टन फ्रीजियन

मूल रूप से नीदरलैंड में पाई जाने वाली नस्ल की गाय बहुत बड़ी, काली व सफेद रंग की होती है. यह दुनिया की सब से अधिक दूध देने वाली नस्ल है, जिस का औसत दूध उत्पादन 7,000 लिटर प्रति ब्यांत होता है. ब्यांत अंतराल व बच्चा देने की प्रथम आयु तकरीबन जर्सी के समान होती है.

ब्राउन स्विस

इस का मूल स्थान स्विट्जरलैंड है. यह बड़े डीलडौल वाली हलके भूरे रंग की होती है, जिस की पीठ और गरदन ऊपर से सीधी होती है. यह प्रति ब्यांत तकरीबन 5,000 लिटर दूध देती है. ब्यांत अंतराल, बच्चे देने की प्रथम आयु तकरीबन जर्सी के समान होती है.

संकर गाय करन फ्री

राष्ट्रीय दुग्ध अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा थारपारकर व होलिस्टन फ्रीजियन नस्ल के संयोग से विकसित की गई है. इस नस्ल की गाय के शरीर पर काला धब्बा व कभीकभी पूरी तरह से काला शरीर और लाल पर सफेद धब्बा पाया जाता है. यह प्रति ब्यांत तकरीबन 3,700 लिटर दूध देती है.

करन स्विस

राष्ट्रीय दुग्ध अनुसंधान संस्थान,

करनाल द्वारा ब्राउन स्विस और साहिवाल लाल/सिंधी नस्ल के संयोग से विकसित की गई है. इस नस्ल की गाय लाल रंग की होती है. इस का औसतन 3,300 लिटर दूध प्रति बयांत होता है.

इन प्रजातियों में से आप अपनी सुविधानुसार कोई भी गाय चुन सकते हैं. अधिक जानकारी के लिए पशुपालक नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं.

राम रहीम: चुनावी दंगल में फरलो, सुलगते सवाल…

मगर, बीच-बीच में कुछ ऐसी घटनाएं घट जाती है जो कुछ सवाल खड़े कर देती हैं जिनका प्रति उत्तर न  तो संविधान के पास होता है और नहीं विधायिका अथवा कार्यपालिका के पास. न्यायपालिका भी मौन रह जाती है.

आज ऐसा ही एक बड़ा प्रश्न देश के सामने एक यक्ष प्रश्न बन कर खड़ा है. पंजाब में. विधानसभा चुनाव अपने शबाब पर है इस दरमियान डेरा सच्चा सौदा के बाबा राम रहीम की औचक जमानत, देश में एक बड़ा सुलगता प्रश्न खड़ा कर रही है जिसका समाधान आवश्यक है.

आमतौर पर राम रहीम जैसे कथित  अपराधियों को परिवारिक दुख सुख के दरमियां ही न्यायालय से कुछ समय के लिए फरलो आदि जमानत राहत मिलती है.

मगर अब सवाल यह खड़ा हो गया है कि पंजाब में अत्यंत महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव चल रहे हैं और एक अपराधी को जिसकी जगह जेल में होनी चाहिए वह लोगों से अपील करने जा रही है है कि आप किस “राजनीतिक दल” को वोट दें.

इसका सीधा सा मतलब यह है कि बाबा राम रहीम जैसे अपराधी सिर्फ और सिर्फ अपने समर्थकों को चुनावी दिशा देने के लिए बाहर निकाले गए हैं जो एक तरह संविधान पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है.

क्या यह शर्मनाक नहीं है कि डेरा सच्चा सौदा जिसके प्रमुख रहे कथित राम रहीम पर कानून का शिकंजा कसा हुआ है इस बार भी 2022 के विधानसभा चुनाव में किस पार्टी या फिर किस उम्मीदवार को समर्थन देगा, इस विषय को लेकर भी डेरा में मंथन चल रहा है.

ये भी पढ़ें- विधानसभा चुनाव 2022: भगवा एजेंडे की परीक्षा

राम रहीम के बाहर आते ही यह चर्चा का दौर चल पड़ा  कि हरियाणा सरकार द्वारा राम रहीम की जमानत, चुनाव के मद्देनजर हुई है. यह सच भी होता दिखाई दे रहा है क्योंकि इस बारे में डेरा सच्चा सौदा 17 – 18 फरवरी को ही पंजाब विधानसभा चुनाव को लेकर अपना फैसला देगा.

डेरा सच्चा सौदा की राजनीतिक इकाई जो चाहती थी वही हो गया. विधानसभा चुनाव के मद्देनजर  राम रहीम को राहत के लिए एक रणनीति बनाई गई थी. पंजाब के अनेक जिलों में जाकर पंजाब की वोटर्स और डेरा श्रद्धालुओं की नब्ज टटोलने में जुटी हुई है.

पंजाब की राजनीति में “डेरा” का प्रभाव

पंजाब में अनेक महत्वपूर्ण डेरा धार्मिक प्रचार प्रसार के संस्थान हैं. जिनमें राधा स्वामी सत्संग डेरा ब्यास, और निरंकारी मिशन के बाद डेरा सच्चा सौदा का भी प्रभुत्व है. यहां उल्लेखनीय है कि

2017 के विधानसभा चुनाव में डेरा सच्चा सौदा ने अकाली दल को अपना खुलकर समर्थन दिया था, हालांकि अकाली दल सरकार बनाने में नाकाम रहा और कांग्रेस की सरकार बन गई . पंजाब में डेरा सच्चा सौदा के लगभग 40 लाख वोटर्स है और 117 सीटों में से करीब 70 पर डेरा सच्चा सौदा का प्रभाव है.

ये भी पढ़ें- अपनी पीठ ठोंकता, मिस्टर प्रधानमंत्री!

अब राजनीति का तमाशा देखिए! गुरमीत राम रहीम काे फरलाे मिलने के मामले में शिराेमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने तीखी प्रतिक्रिया की है. एसजीपीसी ने इसकी निंदा करते हुए भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक साजिश बताया है. एसजीपीसी के अध्यक्ष  हरजिंदर सिंह धामी का कहना है  हरियाणा सरकार की ओर से राम रहीम को 21 दिनों के लिए जेल से फरलाे देना एक सुनियोजित साजिश है. पंजाब चुनाव के दौरान यह फरलाे पूरी तरह राजनीति से प्रेरित है.

ऐसे में अब देखना यह  है कि डेरा सच्चा सौदा का प्रभाव राजनीति के क्या गुल खिलाता है.  सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या आने वाले समय में किसी एक राजनीतिक पार्टी को आशीर्वाद देकर उसे सत्ता मिलाकर बाबा राम रहीम जेल से बाहर आने की जुगत में है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें