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Hindi Kahani : अमेरिकन बेटा – अपनों से बढ़ कैसा उत्तरदायित्व निभाया पराए खून ने ?

Hindi Kahani : रीता एक दिन अपनी अमेरिकन मित्र ईवा से मिलने उस के घर गई थी, रीता भारतीय मूल की अमेरिकन नागरिक थी. वह अमेरिका के टैक्सास राज्य के ह्यूस्टन शहर में रहती थी. रीता का जन्म अमेरिका में ही हुआ था. जब वह कालेज में थी, उस की मां का देहांत हो गया था. उस के पिता कुछ दिनों के लिए भारत आए थे, उसी बीच हार्ट अटैक से उन की मौत हो गई थी.

रीता और ईवा दोनों बचपन की सहेलियां थीं. दोनों की स्कूल और कालेज की पढ़ाई साथ हुई थी. रीता की शादी अभी तक नहीं हुई थी जबकि ईवा शादीशुदा थी. उस का 3 साल का एक बेटा था डेविड. ईवा का पति रिचर्ड अमेरिकन आर्मी में था और उस समय अफगानिस्तान युद्ध में गया था.

शाम का समय था. ईवा ने ही फोन कर रीता को बुलाया था. शनिवार छुट्टी का दिन था. रीता भी अकेले बोर ही हो रही थी. दोनों सखियां गप मार रही थीं. तभी दरवाजे पर बूटों की आवाज हुई और कौलबैल बजी. अमेरिकन आर्मी के 2 औफिसर्स उस के घर आए थे. ईवा उन को देखते ही भयभीत हो गई थी, क्योंकि घर पर फुल यूनिफौर्म में आर्मी वालों का आना अकसर वीरगति प्राप्त सैनिकों की सूचना ही लाता है. वे डेविड की मृत्यु का संदेश ले कर आए थे और यह भी कि शहीद डेविड का शव कल दोपहर तक ईवा के घर पहुंच जाएगा. ईवा को काटो तो खून नहीं. उस का रोतेरोते बुरा हाल था. अचानक ऐसी घटना की कल्पना उस ने नहीं की थी.

रीता ने ईवा को काफी देर तक गले से लगाए रखा. उसे ढांढ़स बंधाया, उस के आंसू पोंछे. इस बीच ईवा का बेटा डेविड, जो कुछ देर पहले कार्टून देख रहा था, भी पास आ गया. रीता ने उसे भी अपनी गोद में ले लिया. ईवा और रिचर्ड दोनों के मातापिता नहीं थे. उन के भाईबहन थे. समाचार सुन कर वे भी आए थे, पर अंतिम क्रिया निबटा कर चले गए. उन्होंने जाते समय ईवा से कहा कि किसी तरह की मदद की जरूरत हो तो बताओ, पर उस ने फिलहाल मना कर दिया था.

ईवा जौब में थी. वह औफिस जाते समय बेटे को डेकेयर में छोड़ जाती और दोपहर बाद उसे वापस लौटते वक्त पिक कर लेती थी. इधर, रीता ईवा के यहां अब ज्यादा समय बिताती थी, अकसर रात में उसी के यहां रुक जाती. डेविड को वह बहुत प्यार करती थी, वह भी ईवा से काफी घुलमिल गया था. इस तरह 2 साल बीत गए.

इस बीच रीता की जिंदगी में प्रदीप आया, दोनों ने कुछ महीने डेटिंग पर बिताए, फिर शादी का फैसला किया. प्रदीप भी भारतीय मूल का अमेरिकन था और एक आईटी कंपनी में काम करता था. रीता और प्रदीप दोनों ही ईवा के घर अकसर जाते थे.

कुछ महीनों बाद ईवा बीमार रहने लगी थी. उसे अकसर सिर में जोर का दर्द, चक्कर, कमजोरी और उलटी होती थी. डाक्टर्स को ब्रेन ट्यूमर का शक था. कुछ टैस्ट किए गए. टैस्ट रिपोर्ट्स लेने के लिए ईवा के साथ रीता और प्रदीप दोनों गए थे. डाक्टर ने बताया कि ईवा का ब्रेन ट्यूमर लास्ट स्टेज पर है और वह अब चंद महीनों की मेहमान है. यह सुन कर ईवा टूट चुकी थी, उस ने रीता से कहा, ‘‘मेरी मृत्यु के बाद मेरा बेटा डेविड अनाथ हो जाएगा. मुझे अपने किसी रिश्तेदार पर भरोसा नहीं है. क्या तुम डेविड के बड़ा होने तक उस की जिम्मेदारी ले सकती हो?’’

रीता और प्रदीप दोनों एकदूसरे का मुंह देखने लगे. उन्होंने ऐसी परिस्थिति की कल्पना भी नहीं की थी. तभी ईवा बोली, ‘‘देखो रीता, वैसे कोई हक तो नहीं है तुम पर कि डेविड की देखभाल की जिम्मेदारी तुम्हें दूं पर 25 वर्षों से हम एकदूसरे को भलीभांति जानते हैं. एकदूसरे के सुखदुख में साथ रहे हैं, इसीलिए तुम से रिक्वैस्ट की.’’

दरअसल, रीता प्रदीप से डेटिंग के बाद प्रैग्नैंट हो गई थी और दोनों जल्दी ही शादी करने जा रहे थे. इसलिए इस जिम्मेदारी को लेने में वे थोड़ा झिझक रहे थे. तभी प्रदीप बोला, ‘‘ईवा, डोंट वरी. हम लोग मैनेज कर लेंगे.’’

ईवा ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘थैंक्स डियर. रीता क्या तुम एक प्रौमिस करोगी?’’ रीता ने स्वीकृति में सिर हिलाया और ईवा से गले लगते हुए कहा, ‘‘तुम अब डेविड की चिंता छोड़ दो. अब वह मेरी और प्रदीप की जिम्मेदारी है.’’

ईवा बोली, ‘‘थैंक्स, बोथ औफ यू. मैं अपनी प्रौपर्टी और बैंक डिपौजिट्स की पावर औफ अटौर्नी तुम दोनों के नाम कर दूंगी. डेविड के एडल्ट होने तक इस की देखभाल तुम लोग करोगे. तुम्हें डेविड के लिए पैसों की चिंता नहीं करनी होगी, प्रौमिस.’’

रीता और प्रदीप ने प्रौमिस किया. और फिर रीता ने अपनी प्रैग्नैंसी की बात बताते हुए कहा, ‘‘हम लोग इसीलिए थोड़ा चिंतित थे. शादी, प्रैग्नैंसी और डेविड सब एकसाथ.’’

ईवा बोली, ‘‘मुबारक हो तुम दोनों को. यह अच्छा ही है डेविड को एक भाई या बहन मिल जाएगी.’’

2 सप्ताह बाद रीता और प्रदीप ने शादी कर ली. डेविड तो पहले से ही रीता से काफी घुलमिल चुका था. अब प्रदीप भी उसे काफी प्यार करने लगा था. ईवा ने छोटे से डेविड को समझाना शुरू कर दिया था कि वह अगर बहुत दूर चली जाए, जहां से वह लौट कर न आ सके, तो रीता और प्रदीप के साथ रहना और उन्हें परेशान मत करना. पता नहीं डेविड ईवा की बातों को कितना समझ रहा था, पर अपना सिर बारबार हिला कर हां करता और मां के सीने से चिपक जाता था.

3 महीने के अंदर ही ईवा का निधन हो गया. रीता ने ईवा के घर को रैंट पर दे कर डेविड को अपने घर में शिफ्ट करा लिया. शुरू के कुछ दिनों तक तो डेविड उदास रहता था, पर रीता और प्रदीप दोनों का प्यार पा कर धीरेधीरे नौर्मल हो गया.

रीता ने एक बच्चे को जन्म दिया. उस का नाम अनुज रखा गया. अनुज के जन्म के कुछ दिनों बाद तक ईवा उसी के साथ व्यस्त रही थी. डेविड कुछ अकेला और उदास दिखता था. रीता ने उसे अपने पास बुला कर प्यार किया और कहा, ‘‘तुम्हारे लिए छोटा भाई लाई हूं. कुछ ही महीनों में तुम इस के साथ बात कर सकोगे और फिर बाद में इस के साथ खेल भी सकते हो.’’

रीता और प्रदीप ने डेविड की देखभाल में कोई कमी नहीं की थी. अनुज भी अब चलने लगा था. घर में वह डेविड के पीछेपीछे लगा रहता था. डेविड के खानपान व रहनसहन पर भारतीय संस्कृति की स्पष्ट छाप थी. शुरू में तो वह रीता को रीता आंटी कहता था, पर बाद में अनुज को मम्मी कहते देख वह भी मम्मी ही कहने लगा था. शुरू के कुछ महीनों तक डेविड की मामी और चाचा उस से मिलने आते थे, पर बाद में उन्होंने आना बंद कर दिया था.

डेविड अब बड़ा हो गया था और कालेज में पढ़ रहा था. रीता ने उस से कहा कि वह अपना बैंक अकाउंट खुद औपरेट किया करे, लेकिन डेविड ने मना कर दिया और कहा कि आप की बहू आने तक आप को ही सबकुछ देखना होगा. रीता भी डेविड के जवाब से खुश हुई थी. अनुज कालेज के फाइनल ईयर में था.

3 वर्षों बाद डेविड को वेस्टकोस्ट, कैलिफोर्निया में नौकरी मिली. वह रीता से बोला, ‘‘मम्मी, कैलिफोर्निया तो दूसरे छोर पर है. 5 घंटे तो प्लेन से जाने में लग जाते हैं. आप से बहुत दूर चला जाऊंगा. आप कहें तो यह नौकरी जौइन ही न करूं. इधर टैक्सास में ही ट्राई करता हूं.’’

रीता ने कहा, ‘‘बेटे, अगर यह नौकरी तुम्हें पसंद है तो जरूर जाओ.’’

प्रदीप ने भी उसे यही सलाह दी. डेविड के जाते समय रीता बोली, ‘‘तुम अब अपना बैंक अकाउंट संभालो.’’

डेविड बोला ‘‘क्या मम्मी, कुछ दिन और तुम्हीं देखो यह सब. कम से कम मेरी शादी तक. वैसे भी आप का दिया क्रैडिट कार्ड तो है ही मेरे पास. मैं जानता हूं मुझे पैसों की कमी नहीं होगी.’’

रीता ने पूछा कि शादी कब करोगे तो वह बोला, ‘‘मेरी गर्लफ्रैंड भी कैलिफोर्निया की ही है. यहां ह्यूस्टन में राइस यूनिवर्सिटी में पढ़ने आई थी. वह भी अब कैलिफोर्निया जा रही है.’’

रीता बोली, ‘‘अच्छा बच्चू, तो यह राज है तेरे कैलिफोर्निया जाने का?’’

डेविड बोला, ‘‘नो मम्मी, नौट ऐट औल. तुम ऐसा बोलोगी तो मैं नहीं जाऊंगा. वैसे, मैं तुम्हें सरप्राइज देने वाला था.’’

‘‘नहीं, तुम कैलिफोर्निया जाओ, मैं ने यों ही कहा था. वैसे, तुम क्या सरप्राइज देने वाले हो.’’

‘‘मेरी गर्लफ्रैंड भी इंडियन अमेरिकन है. मगर तुम उसे पसंद करोगी, तभी शादी की बात होगी.’’

रीता बोली, ‘‘तुम ने नापतोल कर ही पसंद किया होगा, मुझे पूरा भरोसा है.’’

इसी बीच अनुज भी वहां आया. वह बोला, ‘‘मैं ने देखा है भैया की गर्लफ्रैंड को. उस का नाम प्रिया है. डेविड और प्रिया दोनों को लाइब्रेरी में अनेक बार देर तक साथ देखा है. देखनेसुनने में बहुत अच्छी लगती है.’’

डेविड कैलिफोर्निया चला गया.  उस के जाने के कुछ महीनों बाद ही प्रदीप का सीरियस रोड ऐक्सिडैंट हो गया था. उस की लोअर बौडी को लकवा मार गया था. वह अब बिस्तर पर ही था. डेविड खबर मिलते ही तुरंत आया. एक सप्ताह रुक कर प्रदीप के लिए घर पर ही नर्स रख दी. नर्स दिनभर घर पर देखभाल करती थी और शाम के बाद रीता देखती थीं.

रीता को पहले से ही ब्लडप्रैशर की शिकायत थी. प्रदीप के अपंग होने के कारण वह अंदर ही अंदर बहुत दुखी और चिंतित रहती थी. उसे एक माइल्ड अटैक भी पड़ गया, तब डेविड और प्रिया दोनों मिलने आए थे. रीता और प्रदीप दोनों ने उन्हें जल्द ही शादी करने की सलाह दी. वे दोनों तो इस के लिए तैयार हो कर ही आए थे.

शादी के बाद रीता ने डेविड को उस की प्रौपर्टी और बैंक डिपौजिट्स के पेपर सौंप दिए. डेविड और प्रिया कुछ दिनों बाद लौट गए थे. इधर अनुज भी कालेज के फाइनल ईयर में था. पर रीता और प्रदीप दोनों ने महसूस किया कि डेविड उतनी दूर रह कर भी उन का हमेशा खयाल रखता है, जबकि उन का अपना बेटा, बस, औपचारिकताभर निभाता है. इसी बीच, रीता को दूसरा हार्ट अटैक पड़ा, डेविड इस बार अकेले मिलने आया था. प्रिया प्रैग्नैंसी के कारण नहीं आ सकी थी. रीता को 2 स्टेंट हार्ट के आर्टरी में लगाने पड़े थे, पर डाक्टर ने बताया था कि उस के हार्ट की मसल्स बहुत कमजोर हो गई हैं. सावधानी बरतनी होगी. किसी प्रकार की चिंता जानलेवा हो सकती है.

रीता ने डेविड से कहा, ‘‘मुझे तो प्रदीप की चिंता हो रही है. रातरात भर नींद नहीं आती है. मेरे बाद इन का क्या होगा? अनुज तो उतना ध्यान नहीं देता हमारी ओर.’’

डेविड बोला, ‘‘मम्मी, अनुज की तुम बिलकुल चिंता न करो. तुम को भी कुछ नहीं होगा, बस, चिंता छोड़ दो. चिंता करना तुम्हारे लिए खतरनाक है. आप, आराम करो.’’

कुछ महीने बाद थैंक्सगिविंग की छुट्टियों में डेविड और प्रिया रीता के पास आए. साथ में उन का 4 महीने का बेटा भी आया. रीता और प्रदीप दोनों ही बहुत खुश थे. इसी बीच रीता को मैसिव हार्ट अटैक हुआ. आईसीयू में भरती थी. डेविड, प्रिया और अनुज तीनों उस के पास थे. डाक्टर बोल गया कि रीता की हालत नाजुक है. डाक्टर ने मरीज से बातचीत न करने को भी कहा.

रीता ने डाक्टर से कहा, ‘‘अब अंतिम समय में तो अपने बच्चों से थोड़ी देर बात करने दो डाक्टर, प्लीज.’’

फिर रीता किसी तरह डेविड से बोल पाई, ‘‘मुझे अपनी चिंता नहीं है. पर प्रदीप का क्या होगा?’’ डेविड बोला, ‘‘मम्मी, तुम चुप रहो. परेशान मत हो.’’  वहीं अनुज बोला, ‘‘मम्मा, यहां अच्छे ओल्डएज होम्स हैं. हम पापा को वहां शिफ्ट कर देंगे. हम लोग पापा से बीचबीच में मिलते रहेंगे.’’

ओल्डएज होम्स का नाम सुनते ही रीता की आंखों से आंसू गिरने लगे. उसे अपने बेटे से बाप के लिए ऐसी सोच की कतई उम्मीद नहीं थी. उस की सांसें और धड़कन काफी तेज हो गईं.

डेविड अनुज को डांट रहा था, प्रिया ने कहा, ‘‘मम्मी, जब से आप की तबीयत बिगड़ी है, हम लोग भी पापा को ले कर चिंतित हैं. हम लोगों ने आप को और पापा को कैलिफोर्निया में अपने साथ रखने का फैसला किया है. वहां आप लोगों की जरूरतों के लिए खास इंतजाम कर रखा है. बस, आप यहां से ठीक हो कर निकलें, बाकी आगे सब डेविड और मैं संभाल लेंगे.’’

रीता ने डेविड और प्रिया दोनों को अपने पास बुलाया, उन के हाथ पकड़ कर कुछ कहने की कोशिश कर रही थी, उस की सांसें बहुत तेज हो गईं. अनुज दौड़ कर डाक्टर को बुलाने गया. इस बीच रीता किसी तरह टूटतीफूटती बोली में बोली, ‘‘अब मुझे कोई चिंता नहीं है. चैन से मर सकूंगी. मेरा प्यारा अमेरिकन बेटा.’’ इस के आगे वह कुछ नहीं बोल सकी.

जब तक अनुज डाक्टर के साथ आया, रीता की सांसें रुक चुकी थीं. डाक्टर ने चैक कर रहा, ‘‘शी इज नो मोर.’’

Emotional Story : दर्द – जिंदगी के उतारचढ़ावों को झेलती औरत की कहानी

Emotional Story : कनीजा बी करीब 1 घंटे से परेशान थीं. उन का पोता नदीम बाहर कहीं खेलने चला गया था. उसे 15 मिनट की खेलने की मुहलत दी गई थी, लेकिन अब 1 घंटे से भी ऊपर वक्त गुजर गया?था. वह घर आने का नाम ही नहीं ले रहा था.

कनीजा बी को आशंका थी कि वह महल्ले के आवारा बच्चों के साथ खेलने के लिए जरूर कहीं दूर चला गया होगा.

वह नदीम को जीजान से चाहतीं. उन्हें उस का आवारा बच्चों के साथ घर से जाना कतई नहीं सुहाता था.

अत: वह चिंताग्रस्त हो कर भुनभुनाने लगी थीं, ‘‘कितना ही समझाओ, लेकिन ढीठ मानता ही नहीं. लाख बार कहा कि गली के आवारा बच्चों के साथ मत खेला कर, बिगड़ जाएगा, पर उस के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. आने दो ढीठ को. इस बार वह मरम्मत करूंगी कि तौबा पुकार उठेगा. 7 साल का होने को आया है, पर जरा अक्ल नहीं आई. कोई दुर्घटना हो सकती है, कोई धोखा हो सकता है…’’

कनीजा बी का भुनभुनाना खत्म हुआ ही था कि नदीम दौड़ता हुआ घर में आ गया और कनीजा की खुशामद करता हुआ बोला, ‘‘दादीजान, कुलफी वाला आया है. कुलफी ले दीजिए न. हम ने बहुत दिनों से कुलफी नहीं खाई. आज हम कुलफी खाएंगे.’’

‘‘इधर आ, तुझे अच्छी तरह कुलफी खिलाती हूं,’’ कहते हुए कनीजा बी नदीम पर अपना गुस्सा उतारने लगीं. उन्होंने उस के गाल पर जोर से 3-4 तमाचे जड़ दिए.

नदीम सुबकसुबक कर रोने लगा. वह रोतेरोते कहता जाता, ‘‘पड़ोस वाली चचीजान सच कहती हैं. आप मेरी सगी दादीजान नहीं हैं, तभी तो मुझे इस बेदर्दी से मारती हैं.

‘‘आप मेरी सगी दादीजान होतीं तो मुझ पर ऐसे हाथ न उठातीं. तब्बो की दादीजान उसे कितना प्यार करती हैं. वह उस की सगी दादीजान हैं न. वह उसे उंगली भी नहीं छुआतीं.

‘‘अब मैं इस घर में नहीं रहूंगा. मैं भी अपने अम्मीअब्बू के पास चला जाऊंगा. दूर…बहुत दूर…फिर मारना किसे मारेंगी. ऊं…ऊं…ऊं…’’ वह और जोरजोर से सुबकसुबक कर रोने लगा.

नदीम की हृदयस्पर्शी बातों से कनीजा बी को लगा, जैसे किसी ने उन के दिल पर नश्तर चला दिया हो. अनायास ही उन की आंखें छलक आईं. वह कुछ क्षणों के लिए कहीं खो गईं. उन की आंखों के सामने उन का अतीत एक चलचित्र की तरह आने लगा.

जब वह 3 साल की मासूम बच्ची थीं, तभी उन के सिर से बाप का साया उठ गया था. सभी रिश्तेदारों ने किनारा कर लिया था. किसी ने भी उन्हें अंग नहीं लगाया था.

मां अनपढ़ थीं और कमाई का कोई साधन नहीं था, लेकिन मां ने कमर कस ली थी. वह मेहनतमजदूरी कर के अपना और अपनी बेटी का पेट पालने लगी थीं. अत: कनीजा बी के बचपन से ले कर जवानी तक के दिन तंगदस्ती में ही गुजरे थे.

तंगदस्ती के बावजूद मां ने कनीजा बी की पढ़ाईलिखाई की ओर खासा ध्यान दिया था. कनीजा बी ने भी अपनी बेवा, बेसहारा मां के सपनों को साकार करने के लिए पूरी लगन व मेहनत से प्रथम श्रेणी में 10वीं पास की थी और यों अपनी तेज बुद्धि का परिचय दिया था.

मैट्रिक पास करते ही कनीजा बी को एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क की नौकरी मिल गई थी. अत: जल्दी ही उन के घर की तंगदस्ती खुशहाली में बदलने लगी थी.

कनीजा बी एक सांवलीसलोनी एवं सुशील लड़की थीं. उन की नौकरी लगने के बाद जब उन के घर में खुशहाली आने लगी थी तो लोगों का ध्यान उन की ओर जाने लगा था. देखते ही देखते शादी के पैगाम आने लगे थे.

मुसीबत यह थी कि इतने पैगाम आने के बावजूद, रिश्ता कहीं तय नहीं हो रहा था. ज्यादातर लड़कों के अभिभावकों को कनीजा बी की नौकरी पर आपत्ति थी.

वे यह भूल जाते थे कि कनीजा बी के घर की खुशहाली का राज उन की नौकरी में ही तो छिपा है. उन की एक खास शर्त यह होती कि शादी के बाद नौकरी छोड़नी पड़ेगी, लेकिन कनीजा बी किसी भी कीमत पर लगीलगाई अपनी सरकारी नौकरी छोड़ना नहीं चाहती थीं.

कनीजा बी पिता की असमय मृत्यु से बहुत बड़ा सबक सीख चुकी थीं. अर्थोपार्जन की समस्या ने उन की मां को कम परेशान नहीं किया था. रूखेसूखे में ही बचपन से जवानी तक के दिन बीते थे. अत: वह नौकरी छोड़ कर किसी किस्म का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती थीं.

कनीजा बी का खयाल था कि अगर शादी के बाद उन के पति को कुछ हो गया तो उन की नौकरी एक बहुत बड़े सहारे के रूप में काम आ सकती थी.

वैसे भी पतिपत्नी दोनों के द्वारा अर्थोपार्जन से घर की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सकती थी, जिंदगी मजे में गुजर सकती थी.

देखते ही देखते 4-5 साल का अरसा गुजर गया था और कनीजा बी की शादी की बात कहीं पक्की नहीं हो सकी थी. उन की उम्र भी दिनोदिन बढ़ती जा रही थी. अत: शादी की बात को ले कर मांबेटी परेशान रहने लगी थीं.

एक दिन पड़ोस के ही प्यारे मियां आए थे. वह उसी शहर के दूसरे महल्ले के रशीद का रिश्ता कनीजा बी के लिए लाए थे. उन के साथ एक महिला?भी थीं, जो स्वयं को रशीद की?भाभी बताती थीं.

रशीद एक छोटे से निजी प्रतिष्ठान में लेखाकार था और खातेपीते घर का था. कनीजा बी की नौकरी पर उसे कोई आपत्ति नहीं थी.

महल्लेपड़ोस वालों ने कनीजा बी की मां पर दबाव डाला था कि उस रिश्ते को हाथ से न जाने दें क्योंकि रिश्ता अच्छा है. वैसे भी लड़कियों के लिए अच्छे रिश्ते मुश्किल से आते हैं. फिर यह रिश्ता तो प्यारे मियां ले कर आए थे.

कनीजा बी की मां ने महल्लेपड़ोस के बुजुर्गों की सलाह मान कर कनीजा बी के लिए रशीद से रिश्ते की हामी?भर दी थी.?

कनीजा बी अपनी शादी की खबर सुन कर मारे खुशी के झूम उठी थीं. वह दिनरात अपने सुखी गृहस्थ जीवन की कल्पना करती रहती थीं.

और एक दिन वह घड़ी भी आ गई, जब कनीजा बी की शादी रशीद के साथ हो गई और वह मायके से विदा हो गईं. लेकिन ससुराल पहुंचते ही इस बात ने उन के होश उड़ा दिए कि जो महिला स्वयं को रशीद की भाभी बता रही थी, वह वास्तव में रशीद की पहली बीवी थी.

असलियत सामने आते ही कनीजा बी का सिर चकराने लगा. उन्हें लगा कि उन के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है और उन्हें फंसाया गया है. प्यारे मियां ने उन के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात किया था. वह मन ही मन तड़प कर रह गईं.

लेकिन जल्दी ही रशीद ने कनीजा बी के समक्ष वस्तुस्थिति स्पष्ट कर दी, ‘‘बेगम, दरअसल बात यह थी कि शादी के 7 साल बाद?भी जब हलीमा बी मुझे कोई औलाद नहीं दे सकी तो मैं औलाद के लिए तरसने लगा.

‘हम दोनों पतिपत्नी ने किसकिस डाक्टर से इलाज नहीं कराया, क्याक्या कोशिशें नहीं कीं, लेकिन नतीजा शून्य रहा. आखिर, हलीमा बी मुझ पर जोर देने लगी कि मैं दूसरी शादी कर लूं. औलाद और मेरी खुशी की खातिर उस ने घर में सौत लाना मंजूर कर लिया. बड़ी ही अनिच्छा से मुझे संतान सुख की खातिर दूसरी शादी का निर्णय लेना पड़ा.

‘मैं अपनी तनख्वाह में 2 बीवियों का बोझ उठाने के काबिल नहीं था. अत: दूसरी बीवी का चुनाव करते वक्त मैं इस बात पर जोर दे रहा था कि अगर वह नौकरी वाली हो तो बात बन सकती है. जब हमें, प्यारे मियां के जरिए तुम्हारा पता चला तो बात बनाने के लिए इस सचाई को छिपाना पड़ा कि मैं शादीशुदा हूं.

‘मैं झूठ नहीं बोलता. मैं संतान सुख की प्राप्ति की उत्कट इच्छा में इतना अंधा हो चुका था कि मुझे तुम लोगों से अपने विवाहित होने की सचाई छिपाने में कोई संकोच नहीं हुआ.

‘मैं अब महसूस कर रहा हूं कि यह अच्छा नहीं हुआ. सचाई तुम्हें पहले ही बता देनी चाहिए थी. लेकिन अब जो हो गया, सो हो गया.

‘वैसे देखा जाए तो एक तरह से मैं तुम्हारा गुनाहगार हुआ. बेगम, मेरे इस गुनाह को बख्श दो. मेरी तुम से गुजारिश है.’

कनीजा बी ने बहुत सोचविचार के बाद परिस्थिति से समझौता करना ही उचित समझा था, और वह अपनी गृहस्थी के प्रति समर्पित होती चली गई थीं.

कनीजा बी की शादी के बाद डेढ़ साल का अरसा गुजर गया था, लेकिन उन के भी मां बनने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे. उस के विपरीत हलीमा बी में ही मां बनने के लक्षण दिखाई दे रहे थे. डाक्टरी परीक्षण से भी यह बात निश्चित हो गई थी कि हलीमा बी सचमुच मां बनने वाली हैं.

हलीमा बी के दिन पूरे होते ही प्रसव पीड़ा शुरू हो गई, लेकिन बच्चा था कि बाहर आने का नाम ही नहीं ले रहा था. आखिर, आपरेशन द्वारा हलीमा बी के बेटे का जन्म हुआ. लेकिन हलीमा बी की हालत नाजुक हो गई. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद वह बच नहीं सकी.

हलीमा बी की अकाल मौत से उस के बेटे गनी के लालनपालन की संपूर्ण जिम्मेदारी कनीजा बी पर आन पड़ी. अपनी कोख से बच्चा जने बगैर ही मातृत्व का बोझ ढोने के लिए कनीजा बी को विवश हो जाना पड़ा. उन्होंने उस जिम्मेदारी से दूर भागना उचित नहीं समझा. आखिर, गनी उन के पति की ही औलाद था.

रशीद इस बात का हमेशा खयाल रखा करता था कि उस के व्यवहार से कनीजा बी को किसी किस्म का दुख या तकलीफ न पहुंचे, वह हमेशा खुश रहें, गनी को मां का प्यार देती रहें और उसे किसी किस्म की कमी महसूस न होने दें.

कनीजा बी भी गनी को एक सगे बेटे की तरह चाहने लगीं. वह गनी पर अपना पूरा प्यार उड़ेल देतीं और गनी भी ‘अम्मीअम्मी’ कहता हुआ उन के आंचल से लिपट जाता.

अब गनी 5 साल का हो गया था और स्कूल जाने लगा था. मांबाप बेटे के उज्ज्वल भविष्य को ले कर सपना बुनने लगे थे.

इसी बीच एक हादसे ने कनीजा बी को अंदर तक तोड़ कर रख दिया.

वह मकर संक्रांति का दिन था. रशीद अपने चंद हिंदू दोस्तों के विशेष आग्रह पर उन के साथ नदी पर स्नान करने चला गया. लेकिन रशीद तैरतेतैरते एक भंवर की चपेट में आ कर अपनी जान गंवा बैठा.

रशीद की असमय मौत से कनीजा बी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, लेकिन उन्होंने साहस का दामन नहीं छोड़ा.

उन्होंने अपने मन में एक गांठ बांध ली, ‘अब मुझे अकेले ही जिंदगी का यह रेगिस्तानी सफर तय करना है. अब और किसी पुरुष के संग की कामना न करते हुए मुझे अकेले ही वक्त के थपेड़ों से जूझना है.

‘पहला ही शौहर जिंदगी की नाव पार नहीं लगा सका तो दूसरा क्या पार लगा देगा. नहीं, मैं दूसरे खाविंद के बारे में सोच भी नहीं सकती.

‘फिर रशीद की एक निशानी गनी के रूप में है. इस का क्या होगा? इसे कौन गले लगाएगा? यह यतीम बच्चे की तरह दरदर भटकता फिरेगा. इस का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. मेरे अलावा इस का?भार उठाने वाला भी तो कोई नहीं.

‘इस के नानानानी, मामामामी कोई भी तो दिल खोल कर नहीं कहता कि गनी का बोझ हम उठाएंगे. सब सुख के साथी?हैं.

‘मैं गनी को लावारिस नहीं बनने दूंगी. मैं भी तो इस की कुछ लगती हूं. मैं सौतेली ही सही, मगर इस की मां हूं. जब यह मुझे प्यार से अम्मी कह कर पुकारता है तब मेरे दिल में ममता कैसे उमड़ आती है.

‘नहींनहीं, गनी को मेरी सख्त जरूरत है. मैं गनी को अपने से जुदा नहीं कर सकती. मेरी तो कोई संतान है ही नहीं. मैं इसे ही देख कर जी लूंगी.

‘मैं गनी को पढ़ालिखा कर एक नेक इनसान बनाऊंगी. इस की जिंदगी को संवारूंगी. यही अब जिंदगी का मकसद है.’

और कनीजा बी ने गनी की खातिर अपना सुखचैन लुटा दिया, अपना सर्वस्व त्याग दिया. फिर उसे एक काबिल और नेक इनसान बना कर ही दम लिया.

गनी पढ़लिख कर इंजीनियर बन गया.

उस दिन कनीजा बी कितनी खुश थीं जब गनी ने अपनी पहली तनख्वाह ला कर उन के हाथ पर रख दी. उन्हें लगा कि उन का सपना साकार हो गया, उन की कुरबानी रंग लाई. अब उन्हें मौत भी आ जाए तो कोई गम नहीं.

फिर गनी की शादी हो गई. वह नदीम जैसे एक प्यारे से बेटे का पिता भी बन गया और कनीजा बी दादी बन गईं.

कनीजा बी नदीम के साथ स्वयं भी खेलने लगतीं. वह बच्चे के साथ बच्चा बन जातीं. उन्हें नदीम के साथ खेलने में बड़ा आनंद आता. नदीम भी मां से ज्यादा दादी को चाहने लगा था.

उस दिन ईद थी. कनीजा बी का घर खुशियों से गूंज रहा था. ईद मिलने आने वालों का तांता लगा हुआ था.

गनी ने अपने दोस्तों तथा दफ्तर के सहकर्मियों के लिए ईद की खुशी में खाने की दावत का विशेष आयोजन किया था.

उस दिन कनीजा बी बहुत खुश थीं. घर में चहलपहल देख कर उन्हें ऐसा लग रहा था मानो दुनिया की सारी खुशियां उन्हीं के घर में सिमट आई हों.

गनी की ससुराल पास ही के शहर में थी. ईद के दूसरे दिन वह ससुराल वालों के विशेष आग्रह पर अपनी बीवी और बेटे के साथ स्कूटर पर बैठ कर ईद की खुशियां मनाने ससुराल की ओर चल पड़ा था.

गनी तेजी से रास्ता तय करता हुआ बढ़ा जा रहा था कि एक ट्रक वाले ने गाय को बचाने की कोशिश में स्टीयरिंग पर अपना संतुलन खो दिया. परिणामस्वरूप उस ने गनी के?स्कूटर को चपेट में ले लिया. पतिपत्नी दोनों गंभीर रूप से घायल हो गए और डाक्टरों के अथक प्रयास के बावजूद बचाए न जा सके.

लेकिन उस जबरदस्त दुर्घटना में नन्हे नदीम का बाल भी बांका नहीं हुआ था. वह टक्कर लगते ही मां की गोद से उछल कर सीधा सड़क के किनारे की घनी घास पर जा गिरा था और इस तरह साफ बच गया था.

वक्त के थपेड़ों ने कनीजा बी को अंदर ही अंदर तोड़ दिया था. मुश्किल यह थी कि वह अपनी व्यथा किसी से कह नहीं पातीं. उन्हें मालूम था कि लोगों की झूठी हमदर्दी से दिल का बोझ हलका होने वाला नहीं.

उन्हें लगता कि उन की शादी महज एक छलावा थी. गृहस्थ जीवन का कोई भी तो सुख नहीं मिला था उन्हें. शायद वह दुख झेलने के लिए ही इस दुनिया में आई थीं.

रशीद तो उन का पति था, लेकिन हलीमा बी तो उन की अपनी नहीं थी. वह तो एक धोखेबाज सौतन थी, जिस ने छलकपट से उन्हें रशीद के गले मढ़ दिया था.

गनी कौन उन का अपना खून था. फिर भी उन्होंने उसे अपने सगे बेटे की तरह पालापोसा, बड़ा किया, पढ़ाया- लिखाया, किसी काबिल बनाया.

कनीजा बी गनी के बेटे का भी भार उठा ही रही थीं. नदीम का दर्द उन का दर्द था. नदीम की खुशी उन की खुशी थी. वह नदीम की खातिर क्या कुछ नहीं कर रही थीं. कनीजा बी नदीम को डांटतीमारती थीं तो उस के भले के लिए, ताकि वह अपने बाप की तरह एक काबिल इनसान बन जाए.

‘लेकिन ये दुनिया वाले जले पर नमक छिड़कते हैं और मासूम नदीम के दिलोदिमाग में यह बात ठूंसठूंस कर भरते हैं कि मैं उस की सगी दादी नहीं हूं. मैं ने तो नदीम को कभी गैर नहीं समझा. नहीं, नहीं, मैं दुनिया वालों की खातिर नदीम का भविष्य कभी दांव पर नहीं लगाऊंगी.’ कनीजा बी ने यादों के आंसू पोंछते हुए सोचा, ‘दुनिया वाले मुझे सौतेली दादी समझते हैं तो समझें. आखिर, मैं उस की सौतेली दादी ही तो हूं, लेकिन मैं नदीम को काबिल इनसान बना कर ही दम लूंगी. जब नदीम समझदार हो जाएगा तो वह जरूर मेरी नेकदिली को समझने लगेगा.

‘गनी को भी लोगों ने मेरे खिलाफ कम नहीं भड़काया था, लेकिन गनी को मेरे व्यवहार से जरा भी शंका नहीं हुई थी कि मैं उस की बुराई पर अमादा हूं.

अब नदीम का रोना भी बंद हो चुका था. उस का गुस्सा भी ठंडा पड़ गया था. उस ने चोर नजरों से दादी की ओर देखा. दादी की लाललाल आंखों और आंखों में भरे हुए आंसू देख कर उस से चुप न रहा गया. वह बोल उठा, ‘‘दादीजान, पड़ोस वाली चचीजान अच्छी नहीं हैं. वह झूठ बोलती हैं. आप मेरी सौतेली नहीं, सगी दादीजान हैं. नहीं तो आप मेरे लिए यों आंसू न बहातीं.

‘‘दादीजान, मैं जानता हूं कि आप को जोरों की भूख लगी है, अच्छा, पहले आप खाना तो खा लीजिए. मैं भी आप का साथ देता हूं.’’

नदीम की भोली बातों से कनीजा बी मुसकरा दीं और बोलीं, ‘‘बड़ा शरीफ बन रहा है रे तू. ऐसे क्यों नहीं कहता. भूख मुझे नहीं, तुझे लगी है.’’

‘‘अच्छा बाबा, भूख मुझे ही लगी है. अब जरा जल्दी करो न.’’

‘‘ठीक है, लेकिन पहले तुझे यह वादा करना होगा कि फिर कभी तू अपने मुंह से अपने अम्मीअब्बू के पास जाने की बात नहीं करेगा.’’

‘‘लो, कान पकड़े. मैं वादा करता हूं कि अम्मीअब्बू के पास जाने की बात कभी नहीं करूंगा. अब तो खुश हो न?’’

कनीजा बी के दिल में बह रही प्यार की सरिता में बाढ़ सी आ गई. उन्होंने नदीम को खींच कर झट अपने सीने से लगा लिया.

अब वह महसूस कर रही थीं, ‘दुनिया वाले मेरा दर्द समझें न समझें, लेकिन नदीम मेरा दर्द समझने लगा है.’

Best Hindi Story : भीगा मन – कबीर के मन से कैसे मिटा अमीरी गरीबी का फर्क ?

Best Hindi Story : कबीर बारबार घड़ी की ओर देख रहा था. अभी तक उस का ड्राइवर नहीं आया था.

जब ड्राइवर आया तो कबीर उस पर बरस पड़ा, ‘‘तुम लोगों को वक्त की कोई कीमत ही नहीं है. कहां रह गए थे?’’

‘‘साहब, घर में पानी भर गया था, वही निकालने में देर हो गई.’’

‘‘अरे यार, तुम लोगों की यही मुसीबत है. चार बूंदें गिरती नहीं हैं कि तुम्हारा रोना शुरू हो जाता है… पानी… पानी… अब चलो,’’ कार में बैठते हुए कबीर ने कहा.

बरसात के महीने में मुंबई यों बेबस हो जाती है, जैसे कोई गरीब औरत भीगी फटी धोती में खुद को बारिश से बचाने की कोशिश कर रही हो. भरसक कोशिश, मगर सब बेकार… थक कर खड़ी हो जाती है एक जगह और इंतजार करती है बारिश के थमने का.

कार ने रफ्तार पकड़ी और दिनभर का थकामांदा कबीर सीट पर सिर टिका कर बैठ गया. हलकीहलकी बारिश हो रही थी और सड़क पर लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से जूझ रहे थे. अनगिनत छाते, पर बचाने में नाकाम. हवा के झोंकों से पानी सब को भिगो गया था.

कबीर ने घड़ी की ओर देखा. 6 बजे थे. सड़क पर भीड़ बढ़ती जा रही थी. ट्रैफिक धीमा पड़ गया था. लोग बेवजह हौर्न बजा रहे थे मानो हौर्न बजाने से ट्रैफिक हट जाएगा. पर वे हौर्न बजा कर अपने बेबस होने की खीज निकाल लेते थे.

ड्राइवर ने कबीर से पूछा, ‘‘रेडियो चला दूं साहब?’’

‘‘क्या… हां, चला दो. लगता है कि आज घर पहुंचने में काफी देर हो जाएगी,’’ कबीर ने कहा.

‘‘हां साहब… बहुत दूर तक जाम लगा है.’’

‘‘तुम्हारा घर कहां है?’’

‘‘साहब, मैं अंधेरी में रहता हूं.’’

‘‘अच्छा… अच्छा…’’ कबीर ने सिर हिलाते हुए कहा.

रेडियो पर गाना बज उठा, ‘रिमझिम गिरे सावन…’

बारिश तेज हो गई थी और सड़क पर पानी भरने लगा था. हर आदमी जल्दी घर पहुंचना चाहता था. गाना बंद हुआ तो रेडियो पर लोगों को घर से न निकलने की हिदायत दी गई.

कबीर ने घड़ी देखी. 7 बजे थे. घर अभी भी 15-20 किलोमीटर दूर था. ट्रैफिक धीरेधीरे सरकने लगा तो कबीर ने राहत की सांस ली. मिनरल वाटर की बोतल खोली और दो घूंट पानी पीया.

धीरेधीरे 20 मिनट बीत गए. बारिश अब बहुत तेज हो गई थी. बौछार के तेज थपेड़े कार की खिड़की से टकराने लगे थे. सड़क पर पानी का लैवल बढ़ता ही जा रहा था. बाहर सब धुंधला हो गया था. सामने विंड शील्ड पर जब वाइपर गुजरता तो थोड़ाबहुत दिखाई देता. हाहाकार सा मचा हुआ था. सड़क ने जैसे नदी का रूप ले लिया था.

‘‘साहब, पानी बहुत बढ़ गया है. हमें कार से बाहर निकल जाना चाहिए.’’

‘‘क्या बात कर रहे हो… बाहर हालत देखी है…’’

‘‘हां साहब, पर अब पानी कार के अंदर आने लगा है.’’

कबीर ने नीचे देखा तो उस के जूते पानी में डूबे हुए थे. उस ने इधरउधर देखा. कोई चारा न था. वह फिर भी कुछ देर बैठा रहा.

‘‘साहब चलिए, वरना दरवाजा खुलना भी मुश्किल हो जाएगा.’’

‘‘हां, चलो.’’

कबीर ने दरवाजा खोला ही था कि तेज बारिश के थपेड़े मुंह पर लगे. उस की बेशकीमती घड़ी और सूट तरबतर हो गए. उस ने चश्मा निकाल कर सिर झटका और चश्मा पोंछा.

‘‘साहब, छाता ले लीजिए,’’ ड्राइवर ने कहा.

‘‘नहीं, रहने दो,’’ कहते हुए कबीर ने चारों ओर देखा. सारा शहर पानी में डूबा हुआ था. कचरा चारों ओर तैर रहा था. इस रास्ते से गुजरते हुए उस ने न जाने कितने लोगों को शौच करते देखा था और आज वह उसी पानी में खड़ा है. उसे उबकाई सी आने लगी थी. इसी सोच में डूबा कबीर जैसे कदम बढ़ाना ही भूल गया था.

‘‘साहब चलिए…’’ ड्राइवर ने कहा.

कबीर ने कभी ऐसे हालात का सामना नहीं किया था. उस के बंगले की खिड़की से तो बारिश हमेशा खूबसूरत ही लगी थी.

कबीर धीरेधीरे पानी को चीरता हुआ आगे बढ़ने लगा. कदम बहुत भारी लग रहे थे. चारों ओर लोग ही लोग… घबराए हुए, अपना घर बचाते, सामान उठाए.

एक मां चीखचीख कर बिफरी सी हालत में इधरउधर भाग रही थी.

उस का बच्चा कहीं खो गया था. उसे अब न बारिश की परवाह थी, न अपनी जान की.

कबीर ने ड्राइवर की तरफ देखा.

‘‘साहब, हर साल यही होता है. किसी का बच्चा… किसी की मां ले जाती है यह बारिश… ये खुले नाले… मेनहोल…’’

‘‘क्या करें…’’ कह कर कबीर ने कदम आगे बढ़ाया तो मानो पैर के नीचे जमीन ही न थी और जब पैर जमीन पर पड़ा तो उस की चीख निकल गई.

‘‘साहब…’’ ड्राइवर भी चीख उठा और कबीर का हाथ थाम लिया.

कबीर का पैर गहरे गड्ढे में गिरा था और कहीं लोहे के पाइपों के बीच फंस गया था.

ड्राइवर ने पैर निकालने की कोशिश की तो कबीर की चीख निकल गई. शायद हड्डी टूट गई थी.

‘‘साहब, आप घबराइए मत…’’ ड्राइवर ने हिम्मत बंधाते हुए कहा, ‘‘मेरा घर नजदीक ही है. मैं अभी किसी को ले कर आता हूं.’’

कबीर बहुत ज्यादा तकलीफ में उसी गंदे पानी में गरदन तक डूबा बैठा रहा. कुछ देर बाद उसे दूर से ड्राइवर भाग कर आता दिखाई दिया. कबीर को बेहोशी सी आने लगी थी और उस ने आंखें बंद कर लीं.

होश आया तो कबीर एक छोटे से कमरे में था जो घुटनों तक पानी से भरा था. एक मचान बना कर बिस्तर लगाया हुआ था जिस पर वह लेटा हुआ था. ड्राइवर की पत्नी चाय का गिलास लिए खड़ी थी.

‘‘साहब, चाय पी लीजिए. जैसे ही पानी कुछ कम होगा, हम आप को अस्पताल ले जाएंगे,’’ ड्राइवर ने कहा.

चाय तिपाई पर रख कर वे दोनों रात के खाने का इंतजाम करने चले गए. कबीर कमरे में अकेला पड़ा सोच रहा था, ‘कुदरत का बरताव सब के साथ समान है… क्या अमीर, क्या गरीब, सब को एक जगह ला कर खड़ा कर देती है… और ये लोग… कितनी जद्दोजेहद भरी है इन की जिंदगी. दिनरात इन्हीं मुसीबतों से जूझते रहते हैं. आलीशान बंगलों में रहने वालों को इस से कोई सरोकार नहीं होता. कैसे हो? कभी इस जद्दोजेहद को अनुभव ही नहीं किया…’

कबीर आत्मग्लानि से भर उठा था. यह उस की जिंदगी का वह पल था जब उस ने जाना कि सबकुछ क्षणिक है. इनसानियत ही सब से बड़ी दौलत है. बारिश ने उस के तन को ही नहीं, बल्कि मन को भी भिगो दिया था.

कबीर फूटफूट कर रो रहा था. उस के मन से अमीरीगरीबी का फर्क जो मिट गया था.

Love Story : वापसी – दो प्रेमियों की दिलचस्प कहानी

Love Story : आज फिर शुभ्रा का खत आया था, स्पीड पोस्ट से. मैं हैरान था कि हर रोज तो मोबाइल पर इतनी बातें होती हैं फिर खत लिखने की नौबत कैसे आ गई. दरअसल, हमें मिले साल से ऊपर हो गया था, इसीलिए उस के गिलेशिकवे बहुत बढ़ गए थे. भारी मन से मैं उस का खत पढ़ने लगा. उस के खत में शिकायतें, शिकवे, उलाहने थे. अगले पेज पर भी बदस्तूर एकदूसरे की जुदाई में गीली लकडि़यों की तरह सुलगते, पानी के बिना मछली की तरह तड़पते और साबुन की टिकिया की तरह घुलते जाने का जिक्र था.

एक बात हर तीसरे वाक्य के बाद लिखी थी, ‘कहीं तुम मुझ  से दूर तो नहीं हो जाओगे न, मुंह तो नहीं फेर लोगे? मैं ने तो अपना तनमन तुम्हें समर्पित कर दिया, कहीं तुम भी मेरे पति की तरह तो नहीं करोगे? मेरे हो कर भी.’

फिर भावुक शब्दों में लिखा था, ‘मैं यहां इतने लाखों इंसानों के बीच अकेली, लगातार अपनी पहचान खोती जा रही हूं. तुम में वह नजर आता है जो दूसरों में नजर नहीं आता. मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहने में गर्व महसूस करूंगी. कहीं तुम बदलने तो नहीं लगे हो?’ तुम्हारी बातों से तो लगता है कि तुम हारने लगे हो. तुम मिले थे तो लगा था कि अब मेरा कोई है जिस के सहारे मैं जीवन को सार्थक ढंग से काट सकूंगी. अब लगातार तुम से दूर रह कर एक अनसोचा डर मुझे खाए जा रहा है कि कहीं मैं तुम्हें खो न दूं. अब तुम से कब मुलाकात होगी. तुम मिलो तो दिल का सारा गर्द व गुबार उतरे.’

पिछले 1 साल से शुभ्रा मेरी जिंदगी में तूफान बन कर आई थी. दिन में कई बार फोन करती. अपनी कहानियां मुझ से डिस्कस करती. हमारे बीच हर किस्म का फासला था, उम्र का, स्थान का, खयालात का, नजरिए का. 1 साल पहले दिल्ली में एक साहित्यिक गोष्ठी में शुभ्रा से मेरा परिचय हुआ था. उस गोष्ठी में मेरा महत्त्वपूर्ण आख्यान था. शुभ्रा की शिरकत भी एक वक्ता की हैसियत से थी. वह एक सरकारी कालेज में लैक्चरर थी. उस के 2 कविता संग्रह आ चुके थे. विवाहित थी और 2 बच्चों की मां थी. विश्वविद्यालय परिसर में बने विश्रामगृह में हमें ठहराया गया था. वहां हमारे कमरे आमनेसामने थे. मेरे नाम से वह बहुत पहले से ही वाकिफ थी क्योंकि मेरी कहानियां पिछले कई बरसों से अच्छी पत्रिकाओं में छप रही थीं और मेरे  5 कहानी संग्रह भी छप चुके थे.

अभी गोष्ठी का पहला ही दिन था और शुभ्रा ने मुझे ढूंढ़ कर अपना परिचय दिया, ‘मैं शुभ्रा वर्मा. आप तो मुझे जानते नहीं होंगे मगर मैं आप को नाम व चेहरे से अच्छी तरह जानतीपहचानती हूं.’

मैं ने मजाक में कहा, ‘क्या मेरा नाम इतना बदनाम है कि बिना अपना परिचय दिए आप ने मुझे पहचान लिया?’

‘नहीं, सर, आप की तो हमारे शहर की सभाओं में अच्छी धूम है. हम तो आप को आमंत्रित करने की योजना बना रहे थे. मैं तो समझती थी कि आप खासे बुजुर्ग होंगे, जैसा कि आप की कहानियों की परिपक्वता से अंदाजा लगता था मगर आप तो मुझ से भी जवान निकले.’

‘अजी, अभी तो मैं जवां हूं मगर आप भी कम हसीन नहीं हैं.’

बड़ी देर तक हम साथसाथ बैठे चहकते रहे. गोष्ठी के पहले सत्र के बाद शाम को हम कनाट प्लेस की तरफ घूमने निकल गए. शुभ्रा का अंतरंग साथ पाने के लिए मैं ने टैक्सी कर ली थी. इतने सारे लोगों की भीड़ होते हुए भी हम एकदूसरे में इतने खो गए थे कि सब से किनारे होते गए और पहले ही दिन एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था.

शुभ्रा तो मेरे नाम की दीवानी थी. मेरी बहुत सी कहानियों की कटिंग उस ने फाइलों में संभाल कर रखी हुई थी. कई कहानियों के अंत उसे पसंद नहीं थे. उन के बारे में हम बातें करते रहे. लगातार बातें करते वह जरा नहीं थकी थी. मेरी कई कहानियां उसे जबानी याद थीं. इस वजह से भी मेरी उत्सुकता उस में बढ़ गई थी. एक तो वह गजब की सुंदर थी और फिर बुद्धिजीवी भी. ऐसी स्त्रियां तो कहानियों में ही मिलती हैं. उस ने लेखन के बारे में हजारों सवाल पूछे. वह ठहरी साहित्य में पीएचडी और मैं विज्ञान में स्नातक.

साहित्य शुभ्रा के रोमरोम में बसता था. वह पागलों की तरह साहित्य को समर्पित थी. बस, एक समस्या थी उस की. पढ़ने के मामले में उस की बात ठीक थी मगर जब कुछ लिखने की बात आती तो कागजकलम दगा दे जाते थे.

उस शाम हम 10 बजे तक कनाट प्लेस के गोल बरामदों में घूमते रहे. पहले दिन ही उस ने अपने जीवन की सारी बातें मुझे बता दीं और मेरे व्यक्तिगत जीवन में भी झांक लिया था. अकेले दिल्ली आने की यह उस की पहली यात्रा थी. उस के पति महोदय को उस के साथ आना था मगर ऐन वक्त पर 1 दिन पहले उसे अपने बौस के साथ कोलकाता जाना पड़ा. बच्चे अपनी मां को सौंप कर शुभ्रा इस 300 किलोमीटर के सफर पर अकेली चली आई थी. विश्वविद्यालय के सभागार में प्रेमचंद पर प्रवचन देने का लोभ वह रोक न पाई. शुभ्रा ने पीएचडी प्रेमचंद के साहित्य पर ही की थी. अगले दिन कवि सम्मेलन था जिस में उसे भी कविता सुनानी थी. देशभर से चुने हुए साहित्यकार आमंत्रित थे.

बारबार शुभ्रा का मुझे सर कहना अखर रहा था. मैं ने कह दिया कि अब हमारी दोस्ती काफी गहरी हो चुकी है, अब तो मुझे सर कह कर न बुलाओ.

शुभ्रा चहकी, ‘नहीं सर, आप तो मेरे गुरु हैं. अब तो आप की दीक्षा से ही मेरा कल्याण होगा. चाहे दोस्त समझिए या अपनी शिष्या, अब तो आप ही मेरा जीवन सार्थक करेंगे. भागतेभागते मैं थक गई हूं. आप का स्वभाव मुझे बहुत अच्छा लगा और जीवन के प्रति आप का दृष्टिकोण…’

मुझे झिझक हो रही थी. इतनी सुंदर और सुशिक्षित स्त्री, उम्र में मुझ से 10 साल छोटी, सरकारी कालेज में लैक्चरर, मुझ साधारण व्यक्ति की इतनी इज्जत करती है, शायद मेरी कहानियों की वजह से. ऐसी औरत का साथ पाने के लिए जैसे मैं बरसों से तरस रहा था. अब मेरी चिरसंचित इच्छा पूरी होने जा रही थी. अंदर ही अंदर मैं बुरी तरह कांप रहा था. कहीं यह बंद आंखों का सपना तो नहीं. उस के साथ कहां तक जा पाऊंगा मैं.

शुभ्रा कहे जा रही थी, ‘आप की कहानियों की जान है आप की सटीक व सधी हुई भाषा और आज के समय के अनुरूप आप के कथानक. आप पाठक को उलझाते नहीं, उसे सीधे समस्या की जड़ में ले कर जाते हैं. आप की कथाओं में गजब की विविधा है. मैं सोचती थी कि यह आदमी कितनी जगह घूमता होगा. इतने अद्भुत स्थल, इतने अनोखे मंजर, देशदुनिया के हर धर्म व शेड के लोगों को कथा का पात्र बनाना. सर, आप सोच भी नहीं सकते कि कुछ पत्रिकाओं के मैं सारे अंक खरीदती हूं, आप की कोई नई कहानी पढ़ने के लिए. यू टच माई हार्ट, सर. बाकी किताबें तो दिमाग को कंपकंपाती हैं मगर आप के पात्र सीधे मेरे मन को छूते हैं.’

खाना तो हम बाहर ही खा कर आए थे. गैस्ट हाउस के डाइनिंग हाल में अभी मेहमानों ने खाना खत्म नहीं किया था. कुछ लोग मुझे ढूंढ़ रहे थे. मुझे उन से दूर रखने के लिए शुभ्रा मुझे अपने कमरे में ही ले गई. पजैसिव होने की इंतहा थी यह.

मन ही मन मैं भी गहरे रोमांच में था. चाहता था कि हमारा यह संबंध प्रगाढ़ से प्रगाढ़तम हो. मगर बहुत गहरे धंसने का मेरा इरादा नहीं था. मैं तो उसे नजदीक से छू कर महसूस करना चाहता था. हमारे बीच हजार मील का फासला था. हम दोनों शादीशुदा थे, बालबच्चों वाले थे. हमारी दोस्ती का आधार साहित्य ही था और ऐक्सफैक्टर था जो विपरीत लिंगों में अकसर होता है कि वे एकदूसरे के प्रति बड़ी तेजी से खिंचे चले आते हैं मगर बाद में…

शुभ्रा तो दीवानगी की हद तक मुझे पसंद करने लगी थी. इन 3 दिनों की गोष्ठी का एकएक पल मेरे साथ बिताना चाहती थी. दरअसल, मेरी भी कमजोरी थी कि मैं भी उस के रूप पर मोहित हो गया था. इतना कभी किसी ने मुझे नहीं चाहा था. मैं चाहता था कि वह मुझे अपनी बांहों में भर कर मेरा कचूमर निकाल दे.

शुभ्रा कह रही थी, ‘सर, आप का तो पता नहीं मगर मुझे आज मन की मुराद मिल गई है. आप को इतना करीब देख कर मैं ने अपनी सभी वर्जनाओं और मर्यादाओं को तिलांजलि देने का मन बना लिया है. किसी भी कीमत पर मैं आप को सारी उम्र के लिए अपने लिए मांग रही हूं. मेरा सबकुछ ले लो मगर अपना साथ मुझे दे दो. आप के साथ मेरी गजब की कैमिस्ट्री मिलती है. मैं जानती हूं कि इतनी दूर रह कर हम एकदूसरे के साथ किस तरह जुड़े रह सकते हैं. आजकल मोबाइल है, पत्र व्यवहार है और फिर समयसमय पर हम मिलेंगे न. आप सबकुछ जानतेसमझते हैं. मैं खुद ही स्वयं को आप को समर्पित कर रही हूं. समाज इसे गलत समझता होगा मगर आप को सदा के लिए अपने दिल में बसाने के लिए मैं इसे जरूरी समझती हूं. हमारे बीच जिस्म की दीवार नहीं होनी चाहिए. मेरा स्वार्थ आप से कुछ अनुचित काम करवाना नहीं है. मगर आप का साथ अब मुझ से छूटेगा नहीं.’

शुभ्रा मन बना चुकी थी. अब उसे कोई तर्क दे कर समझाना संभव नहीं था. अंदर ही अंदर खुद मैं भी उस के रूप का दीवाना हो चला था. वह मेरे गले से लिपट गई और उस रात हम ने दिल खोल कर एकदूसरे से प्यार किया. धनुष की प्रत्यंचा पर बाण सरीखी चढ़ी शुभ्रा ने दिल से मेरे सामने खुद को प्रस्तुत कर दिया. मैं तो यह देख कर रसविभोर हो गया कि साहित्य में लिखी जाने वाली ये बातें कभी मेरे साथ सच भी हो सकती हैं. मैं ने शुभ्रा से कोई सवाल नहीं किया. उस ने इस जिस्मानी प्रेम को ले कर एक ही तर्क दिया था कि दिमागी खुराफात के साथसाथ अगर हम में एकदूसरे के प्रति शारीरिक आकर्षण भी होगा तो हमारा साथ कभी छूटेगा नहीं. आप मेरी तरफ खिंचे चले आएंगे.

वे 3 रातें मैं ने शुभ्रा के साथ असीम आनंद के साथ काटीं. पहले मुझे लगा था कि शायद पति में कोई कमी होने के कारण शुभ्रा ने पहली ही नजर में मुझ से जिस्मानी संबंध बनाने का मन बना लिया हो मगर जब उस से विस्तार में चर्चा हुई तो पता चला कि अपने पति से उसे कोई शिकायत नहीं थी. एक ही ढर्रे का जीवन जीतेजीते वह बोर हो गई थी. मुझे सामने पा कर उसे लगा कि हजार मील का फासला पाटने के लिए उस के पास एक ही रास्ता है कि वह मुझ से आशिक व महबूब की तरह पेश आए. शुभ्रा के प्रस्ताव में कोई गंदगी नहीं थी. वह आज की औरत की तरह अपने पैरों से चल कर मंजिल तक पहुंचना चाहती थी. साहित्य में दूसरे आदमी के प्रति अतिरिक्त मोह को कागज पर उतारना अलग बात थी मगर कुछ नया अनुभव करने के लिए शुभ्रा ने भी जिस्म की हदों से आगे देखने का साहस करना चाहा और वह कामयाब रही.

चलते समय हमारा मन बहुत भारी था. हमें अपनेअपने घरों को लौटना था. सपनों की दुनिया की अवधि कितनी होती है. आंख खुलते ही आदमी खुद को यथार्थ की जमीन पर पाता है.

आज शुभ्रा के इस भावुक खत ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि हमारे बीच आखिर कैसा रिश्ता है. शुभ्रा भी अपने उद्देश्य से भटक रही थी और मैं भी उसे ही सबकुछ मान बैठा था. ठंडे मन से मैं ने उसे जवाब दिया, ‘शुभ्रा, अपने सुंदर नाम के विपरीत तुम्हारा यह अरण्य रोदन हमें कहीं का नहीं छोड़ेगा. मान लो, हमें समाज का डर न भी हो तो भी क्या? टीनऐजर्स की तरह हमारा यह व्यवहार कहां तक उचित है. एक सही लेखक समाज को सच्ची राह दिखाता है. साहित्य समाज का दर्पण होता है.

‘एक बार हम बहक गए तो इस का यह अर्थ नहीं कि हम कीचड़ से बाहर ही न निकलें. अपनी सोच को साफ करो और साहित्य को मिशन की तरह समझो और स्वस्थ साहित्य की रचना करो. किसी शायर ने ठीक ही कहा है – जिस्म हमराह बने तो इसे अपना समझो, ये अगर बीच में आए तो हटा दो यारो. तुम से एक अच्छी कहानी के इंतजार में, तुम्हारा… सर.’ पत्र पोस्ट करते ही मेरे मन से सारा बोझ हट गया था.

Romantic Story : ऐ दिले नादां – स्पेनिश लड़की की अनोखी प्रेम कहानी

Romantic Story : मेसी मुझे जयपुर से पुष्कर जाने वाली टूरिस्ट बस में मिला था. मैं अकेला ही सीट पर बैठा था. उस वक्त वे तीनों बस में प्रविष्ट हुए. एक सुंदर विदेशी लड़की और 2 नवयुवक अंगरेज. लड़की और उस का एक साथी तो दूसरी सीट पर जा कर बैठे, वह आ कर मेरे बाजू वाली सीट पर बैठ गया. मैं ने उस की तरफ मुसकरा कर देखा तो उस ने भी जबरदस्ती मुसकराने की कोशिश करते हुए देखा.

‘‘यू आर फ्रौम?’’ मैं ने सवाल किया.

‘‘स्पेन,’’ उस ने उत्तर दिया, ‘‘मेरा नाम क्रिस्टियानो मेसी है. वह लड़की मेरे साथ स्पेन से आई है. उस का नाम ग्रेटा अजीबला है और उस के साथ जो लड़का बैठा है वह अमेरिकी है, रोजर फीडर.’’

लड़की उस के साथ स्पेन से आई थी और अब अमेरिकी के साथ बैठी थी. इस बात ने मुझे चौंका दिया. मैं ने गौर से उस का चेहरा देखा. उस का चेहरा सपाट था और वह सामने देख रहा था. मैं ने लड़की की तरफ नजर डाली तो रोजर ने उसे बांहों में ले रखा था और वह उस के कंधे पर सिर रखे अपनी जीभ उस के कान पर फेर रही थी. विदेशी लोगों के लिए इस तरह की हरकतें सामान्य होती हैं. अब हम भारतीयों को भी इस तरह की हरकतों में कोई आकर्षण अनुभव नहीं होता है बल्कि हमारे नवयुवक तो आजकल उन से भी चार कदम आगे हैं.

रोजर और गे्रटा आपस में हंसीमजाक कर रहे थे. मजाक करतेकरते वे एकदूसरे को चूम लेते थे. उन की ये हरकतें बस के दूसरे मुसाफिरों के ध्यान का केंद्र बन रही थीं. लेकिन मेसी को उन की इन हरकतों की कोई परवा नहीं थी. वह निरंतर उन की तरफ से बेखबर सामने शून्य में घूरे जा रहा था. या तो वह जानबूझ कर उन की तरफ नहीं देख रहा था या फिर वह उन्हें, उन की हरकतों को देखना नहीं चाहता था. मेसी का चेहरा सपाट था मगर चेहरे पर एक अजीब तरह की उदासी थी.

‘‘तुम ने कहा, गे्रटा तुम्हारे साथ स्पेन से आई है?’’

‘‘हां, हम दोनों एकसाथ एक औफिस में काम करते हैं. हम ने छुट्टियों में इंडिया की सैर करने की योजना बनाई थी और हम 4 साल से हर महीने इस के लिए पैसा बचाया करते थे. जब हमें महसूस हुआ, काफी पैसे जमा हो गए हैं तो हम ने दफ्तर से 1 महीने की छुट्टी ली और इंडिया आ गए.’’

उस की इस बात ने मुझे और उलझन में डाल दिया था. दोनों स्पेन से साथ आए थे और इंडिया की सैर के लिए बरसों से एकसाथ पैसा जमा कर रहे थे. इस से स्पष्ट प्रकट होता है कि उस के और ग्रेटा के क्या संबंध हैं. ग्रेटा उस वक्त रोजर के साथ थी जबकि उसे मेसी के साथ होना चाहिए था. मगर वह जिस तरह की हरकतें रोजर के साथ कर रही थी इस से तो ऐसा प्रकट हो रहा था जैसे वे बरसों से एकदूसरे को जानते हैं, एकदूसरे को बेइंतिहा प्यार करते हैं या फिर एकदूसरे से गहरा प्यार करने वाले पतिपत्नी हैं.

‘‘क्या ग्रेटा और रोजर एकदूसरे को पहले से जानते हैं?’’ मैं ने उस से पूछा.

‘‘नहीं,’’ मेसी ने उत्तर दिया, ‘‘ग्रेटा को रोजर 8 दिन पूर्व मिला. वह उसी होटल में ठहरा था जिस में हम ठहरे थे. दोनों की पहचान हो गई और हम लोग साथसाथ घूमने लगे…और एकदूसरे के इतना समीप आ गए…’’ उस ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

मैं एकटक उसे देखता रहा.

‘‘ये पुष्कर क्या कोई धार्मिक पवित्र स्थान है?’’ मेसी ने विषय बदल कर मुझ से पूछा.

‘‘पता नहीं, मुझे ज्यादा जानकारी नहीं. मैं मुंबई से हूं. अमृतसर से आते हुए 2 दिन के लिए यहां रुक गया था. एक दिन जयपुर की सैर की. आज पुष्कर जा रहा हूं. साथ ही ये बस अजमेर भी जाएगी,’’ मैं ने उत्तर दिया.

‘‘हम लोग दिल्ली, आगरा में 8 दिन रहे. जयपुर में 8 दिन रहेंगे. वहां से मुंबई जाएंगे. वहां 3-4 दिन रहने के बाद गोआ जाएंगे और फिर गोआ से स्पेन वापस,’’ मेसी ने अपनी सारी भविष्य की यात्रा की योजना सुना दी और आगे कहा, ‘‘सुना है पुष्कर एक पवित्र स्थान है, जहां मंदिर में विदेशी पर्यटक हिंदू रीतिरिवाज से शादी करते हैं. हम लोग इसीलिए पुष्कर जा रहे हैं. वहां ग्रेटा और रोजर हिंदू रीतिरिवाज से शादी करेंगे?’’ मेसी ने बताया.

‘‘लेकिन शादी तो गे्रटा को तुम से करनी चाहिए थी. तुम ने बताया कि तुम ने यहां आने के लिए एकसाथ 4 सालों तक पैसे जमा किए हैं और तुम दोनों एकसाथ काम करते हो.’’

‘‘ये सच है कि इस साल हम शादी करने वाले थे,’’ मेसी ने ठंडी सांस भर कर बताया, ‘‘इसलिए साथसाथ भारत की सैर की योजना बनाई थी. हम बरसों से पतिपत्नी की तरह रह रहे हैं मगर…’’

‘‘मगर क्या?’’ मैं ने प्रश्नभरी नजरों से मेसी की ओर देखा.

‘‘अब ग्रेटा को रोजर पसंद आ गया है,’’ उस ने एक ठंडी सांस ली, ‘‘तो कोई बात नहीं, ग्रेटा की इच्छा, मेरे लिए दुनिया में उस की खुशी से बढ़ कर कोई चीज नहीं है.’’

मेसी की इस बात पर मैं उस की आंखों में झांकने लगा. उस की आंखों से एक पीड़ा झलक रही थी. मैं ने उसे नीचे से ऊपर तक देखा. वह 28-30 साल का एक मजबूत कदकाठी वाला युवक था. लेकिन जिस तरह बातें कर रहा था और उस के चेहरे के जो भाव थे, आंखों में जो पीड़ा थी मुझे तो वह कोई असफल भारतीय प्रेमी महसूस हो रहा था. उस की प्रेमिका एक पराए पुरुष के साथ मस्ती कर रही है लेकिन वह फिर भी चुपचाप तमाशा देख रहा है, पे्रमिका की खुशी के लिए…इस बारे में सोचते हुए मेरे होंठों पर एक मुसकराहट रेंग गई. यह प्रेम की भावना है. जो भावना भारतीय प्रेमियों के दिल में होती है वही भावना मौडर्न कहलाने वाले यूरोपवासी के दिल में भी होती है. दिल के रिश्ते हर जगह एक से होते हैं. सच्चा और गहरा प्यार हर इंसान की धरोहर है, उसे न तो सीमा में कैद किया जा सकता है और न देशों में बांटा जा सकता है.

जब मेसी ये सारी बातें बता रहा था तो वह एक असफल प्रेमी तो लग ही रहा था, अपनी प्रेमिका से कितना प्यार करता है, उस की बातों से स्पष्ट झलक रहा था साथ ही उस की भावनाओं से एक सच्चे प्रेमी, आशिक का त्याग भी टपक रहा था. बस चल पड़ी. इस के बाद हमारे बीच कोई बात नहीं हो सकी. मगर वह कभीकभी अपनी स्पेनी भाषा में कुछ बड़बड़ाता था जो मेरी समझ में नहीं आता था लेकिन जब मैं ने एक बार उस की आंखों में आंसू देखे तो मैं चौंक पड़ा और मुझे इन आंसुओं का और उस की बड़बड़ाहट का मतलब भी अच्छी तरह समझ में आ गया. आंसू प्रेमिका की बेवफाई के गम में उस की आंखों में आ रहे थे और जो वह बड़बड़ा रहा था, मुझे विश्वास था उस की अपनी बेवफा प्रेमिका से शिकायत के शब्द होंगे. ग्रेटा और रोजर की मस्तियां कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थीं. मैं तो पूरे ध्यान से उन की मस्तियां देख रहा था. वह भी कभीकभी मुड़ कर दोनों को देख लेता था लेकिन जैसे ही वह ग्रेटा और रोजर को किसी आपत्तिजनक स्थिति में पाता था, झटके से अपनी गरदन दूसरी ओर कर लेता था. जबकि मैं उन की आपत्तिजनक स्थिति से न सिर्फ पूरी तरह आनंदित हो रहा था बल्कि पहलू बदलबदल कर उन की हरकतों को भी देख रहा था.

पुष्कर आने से पूर्व हम ने एकदूसरे से थोड़ी बातचीत की. एकदूसरे के मोबाइल नंबर और ईमेल लिए, इस के बाद वे तीनों पुष्कर में मुझ से जुदा हो गए क्योंकि पुष्कर में बस 2-3 घंटे रुकने वाली थी. पुष्कर में एक बड़ा सा स्टेडियम है जहां पर हर साल प्रसिद्ध पुष्कर मेला लगता है. इस में ऊंटों की दौड़ भी होती है. वहां मैं ने कई विदेशी जोड़ों को देखा, जिन के माथे पर टीका लगा हुआ था और गले में फूलों का हार था. पुष्कर घूमने के लिए आने वाले विदेशी पर्यटक बड़े शौक से हिंदू परंपरा के अनुसार विवाह करते हैं. उन का वहां हिंदू परंपरा अनुसार विवाह कराया जाता है फिर चाहे वह विवाहित हों या कुंवारे हों.

वापसी में भी वे हमारे साथ थे. मेसी मेरे बाजू में आ बैठा और ग्रेटा और रोजर अपनी सीट पर. तीनों के माथे पर बड़ा सा टीका लगा हुआ था और गले में गेंदे के फूलों का हार था जो इस बात की गवाही दे रहा था कि रोजर और ग्रेटा ने वहां पर हिंदू परंपरा के अनुसार शादी कर ली है. वापसी में बस अजमेर रुकी. मेसी भी मेरे साथ आया. जब वह उस स्थान के बारे में पूछने लगा तो मैं ने संक्षिप्त में ख्वाजा गरीब नवाज के बारे में बताया.

लौट कर बोला, ‘‘यहां बहुत लोग कह रहे थे कि कुछ इच्छा है तो मांग लो, शायद पूरी हो जाए.’’

‘‘तुम ने कुछ मांगा?’’ मैं ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘हां,’’ उस का चेहरा गंभीर था.

‘‘क्या?’’

‘‘हम ने अपना प्यार मांगा?’’

‘‘प्यार? कौन?’’

‘‘ग्रेटा.’’

एक शब्द में उस ने सारी कहानी कह दी थी. और उस की इस बात से यह साफ प्रकट हो रहा था कि वह गे्रटा को कितना प्यार करता है. वही गे्रटा जो कुछ दिन पूर्व तक तो उस से प्यार करती थी, इस से शादी भी करना चाहती थी…लेकिन यहां उसे रोजर मिल गया. रोजर उसे पसंद आ गया तो अब वह रोजर के साथ है. यह भी भूल गई है कि मेसी उसे कितना प्यार करता है. वे एकदूसरे को सालों से जानते हैं. सालों से एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी भी करने वाले थे. लेकिन पता नहीं उसे रोजर में ऐसा क्या दिखाई दिया या रोजर ने उस पर क्या जादू किया, अब वह रोजर के साथ है. रोजर से प्यार करती है. मेसी के प्यार को भूल गई है. यह भूल गई है कि वह मेसी के साथ भारत की सैर करने के लिए आई है. वह मेसी, जिसे वह चाहती है और जो उसे दीवानगी की हद तक चाहता है. सुना है कि विदेशों में प्यार नाम की कोई चीज ही नहीं होती है. प्यार के नाम पर सिर्फ जरूरत पूरी की जाती है. जरूरत पूरी हो जाने के बाद सारे रिश्ते खत्म हो जाते हैं.

शायद गे्रटा भी मेसी से अभी तक अपनी जरूरत पूरी कर रही थी. जब उस का दिल मेसी से भर गया तो वह अपनी जरूरत रोजर से पूरी कर रही है. लेकिन मेसी तो इस के प्यार में दीवाना है. बस वाले हमारा ही इंतजार कर रहे थे. हम बस में आए और बस चल पड़ी. रोजर और ग्रेटा एकदूसरे की बांहों में समाते हुए एकदूसरे का चुंबन ले रहे थे. वह पश्चिम का एक सुशिक्षित युवक दिल के हाथों कितना विवश हो गया है और अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर स्वयं को धोखा देने वाली की बातें करने लगा है. गंडेतावीज भी पहनने लगा है जो अजमेर की दरगाह पर थोक के भाव में मिलते हैं.

जयपुर में वे अपने होटल के पास उतर गए, मैं अपने होटल पर. उस ने मेरा फोन नंबर व ईमेल आईडी ले लिया और कहा कि वह मुझे फोन करता रहेगा. मैं रात में ही मुंबई के लिए रवाना हो गया और उस को लगभग भूल ही गया. 8 दिन बाद अचानक उस का फोन आया.

‘‘हम लोग मुंबई में हैं और कल गोआ जा रहे हैं.’’

‘‘अरे तो पहले मुझ से क्यों नहीं कहा. मैं तुम से मिलता. आज या कल तुम से मिलूं?’’

‘‘आज हम एलीफैंटा गुफा देखने जाएंगे और कल गोआ के लिए रवाना होना है. इस से कल भी मुलाकात संभव नहीं.’’

‘‘गे्रटा कैसी है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘रोजर के साथ बहुत खुश है,’’ उस का स्वर उदास था.

इस के बाद उस का गोआ से एक बार फोन आया, ‘‘हम गोआ में हैं. बहुत अच्छी जगह है. इतना अच्छा समुद्री तट मैं ने आज तक नहीं देखा. मुझे ऐसा महसूस हो रहा है मानो मैं अपने देश या यूरोप के किसी देश में हूं. 4 दिन के बाद मैं स्पेन चला जाऊंगा. गे्रटा भी मेरे साथ स्पेन जाएगी. लेकिन वह दूसरे दिन न्यूयार्क के लिए रवाना हो जाएगी. वहां रोजर उस का इंतजार कर रहा होगा. वह हमेशा के लिए स्पेन छोड़ देगी. अब वे दोनों वहां के रीतिरिवाज के अनुसार शादी करने वाले हैं.’’ उस की बात सुन कर मैं ने ठंडी सांस ली, ‘‘कोई बात नहीं मेसी, गे्रटा को भूल जाओ, कोई और गे्रटा तुम्हें मिल जाएगी. तुम गे्रटा को प्यार करते हो न. तुम्हारे लिए तो गे्रटा की खुशी से बढ़ कर कोई चीज नहीं है. गे्रटा की खुशी ही तुम्हारी खुशी है,’’ मैं ने समझाया.

‘‘हां,अनवर यह बात तो है,’’ उस ने मरे स्वर में उत्तर दिया. इस के बाद उस से कोई संपर्क नहीं हो सका. एक महीने के बाद जब एक दिन मैं ईमेल चैक कर रहा था तो अचानक उस का ईमेल मिला : ‘गे्रटा अमेरिका नहीं जा सकी. रोजर ने उस से शादी करने से इनकार कर दिया. वह कई दिनों तक बहुत डिस्टर्ब  रही. अब वह नौर्मल हो रही है. ‘हम लोग अगले माह शादी करने वाले हैं. अगर आ सकते हो तो हमारी शादी में शामिल होने जरूर आओ. मैं सारे प्रबंध करा दूंगा.’ उस का ईमेल पढ़ कर मेरे होंठों पर एक मुसकराहट रेंग गई. और मैं उत्तर में उसे मुबारकबाद और शादी में शामिल न हो सकने का ईमेल टाइप करने लगा.

Madhya Pradesh : धर्म परिवर्तन – तालिबान की ओर बढ़ते भारत के कदम

Madhya Pradesh : मध्य प्रदेश सरकार धर्म परिवर्तन के लिए मृत्युदंड का प्रावधान करेगी. यह तालिबान के नियमों की याद दिलाती है. यह एक चिंताजनक बात है कि क्या मध्य प्रदेश तालिबान बनने की ओर बढ़ रहा है?

जब से नरेंद्र मोदी की सत्ता देश में आई है धीरेधीरे देश, धर्म धार्मिकता के मुद्दे पर कट्टरता की ओर बढ़ता चला जा रहा है. ऐसा ही एक मामला अब “धर्म परिवर्तन” पर मृत्युदंड देने की घोषणा बन कर सुर्खियां बटोर रहा है.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव की घोषणा कि है मध्य प्रदेश सरकार लड़कियों के धर्म परिवर्तन के लिए दोषियों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान करेगी.

लोकतंत्र में यह एक ऐसा अधोकदम है, जो महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा की बिनाह पर उठाया गया है. मजे की बात यह कि यह घोषणा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर की गई, जो महिलाओं के सशक्तिकरण और उन के अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है. इस तरह मध्यप्रदेश सरकार ने एक तरह से एक तीर से दो निशाने लगाए हैं.

दिखावे के लिए, इस घोषणा के पीछे मुख्यमंत्री का उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा और स्वाभिमान की रक्षा करना है. उन्होंने कहा- उन की सरकार महिलाओं के खिलाफ अत्याचार करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी और उन्हें “मृत्युदंड की सजा” दिलाने के लिए काम करेगी.

यह कदम मध्य प्रदेश सरकार की ओर से महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने के लिए उठाया गया एक ऐसा थोथा कदम है जिस के पीछे कट्टरपंथी मानसिकता है. यह घोषणा कहने को महिलाओं को उन के अधिकारों के बारे में जागरूक करने और उन्हें सशक्त बनाने में मदद करेगी. मगर इस के पीछे भयावह सच है की मध्य प्रदेश एक तरह से तालिबान बनने वाला है.

दरअसल, इस तरह के कानून को लागू करने से पहले इस के व्यापक प्रभावों पर विचार किया जाना चाहिए. यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि यह कानून महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने में मदद करे और उन्हें सशक्त बनाने में योगदान करे. इस के अलावा, यह भी महत्वपूर्ण है कि इस कानून को तत्काल रोकना होगा.

अंत में, यह कहा जा सकता है कि मध्य प्रदेश सरकार की यह घोषणा महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम नहीं कही जा सकती. ‌यह घोषणा महिलाओं को उन के अधिकारों के बारे में जागरूक करने और उन्हें सशक्त बनाने की जगह कट्टरपंथी मानसिकता का प्रसार करेगी.

स्मरण रहे, तालिबान शासन में भी धर्म परिवर्तन और महिलाओं के अधिकारों के मामले में बहुत सख्त नियम थे. तालिबान के अनुसार, इस्लाम छोड़ना या धर्म परिवर्तन करना एक गंभीर अपराध माना जाता था, जिस के लिए मृत्युदंड की सजा दी जा सकती थी.

तालिबान शासन में महिलाओं के अधिकारों को भी बहुत सीमित किया गया था. महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने, काम करने और सार्वजनिक स्थानों पर जाने की अनुमति नहीं थी. उन्हें पुरुषों की उपस्थिति में ही घर से बाहर निकलने की अनुमति थी.

“तालिबान” के इन नियमों का उद्देश्य इस्लामी कानूनों को लागू करना और समाज में इस्लामी मूल्यों को बढ़ावा देना था. लेकिन इन नियमों के कारण महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों का हनन हुआ.

मध्यप्रदेश सरकार आज उसी दिशा में जाना चाहती है, वह धर्म परिवर्तन के लिए मृत्युदंड का प्रावधान करेगी, तालिबान के नियमों की याद दिलाती है. यह एक चिंताजनक बात है कि क्या हम तालिबान की ओर बढ़ते कदम नहीं देख रहे हैं?

धर्म में व्यक्तिगत, सामाजिक, और राजनीतिक पक्ष शामिल

संविधान के अनुसार धर्म अकसर व्यक्तिगत विश्वासों और मूल्यों का प्रतिबिंब होता है. यह व्यक्ति के जीवन को अर्थ और उद्देश्य देता है, और अकसर नैतिक और नैतिक मार्गदर्शन प्रदान करता है. इस दृष्टिकोण से, धर्म व्यक्तिगत मामला है जो व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन और निर्णयों को प्रभावित करता है.

राजनीतिक दृष्टिकोण

धर्म जब राजनीतिक और सामाजिक शक्ति का स्रोत बन जाता है, तब विध्वंस पैदा होने लगता है. यह राजनीतिक दलों और सरकारों द्वारा उपयोग किया जाने लगा है जैसे महाकुंभ में उत्तरप्रदेश सरकार की भागीदारी. आज के भारत में धर्म शासन का सत्ता का विषय होता जा रहा है, जहां यह राजनीतिक शक्ति और प्रभाव का एक साधन बनाया जा रहा है.

दरअसल,धर्म सामाजिक संरचना और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. यह सामाजिक मूल्यों और नियमों को आकार देता है, और अकसर सामाजिक संगठन और संबंधों को प्रभावित करता है. इस दृष्टिकोण से, धर्म एक सामाजिक मामला भी है जो व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन को प्रभावित करता है.

सवाल यह कि धर्म शासन का, सत्ता का विषय है या व्यक्तिगत आजादी मिलने के बाद संविधान में यही प्रावधान किए गए कि धर्म एक व्यक्तिगत मसला है. मगर अब धीरेधीरे नरेंद्र मोदी की सरकार इसे सत्ता के आधार पर तय करना चाहती है और ऐसे कानून बनाना चाहती है की कोई भी व्यक्ति इस जलती हुई आग में झुलस सकता है.

Trending Debate : फिर निकला भाषा विवाद का जिन्न

Trending Debate : उत्तर भारत में लाखों की संख्या में दक्षिण भारत के लोग रहते हैं, काम करते हैं, व्यापार करते हैं और उत्तर भारतीयों से शादियां भी करते हैं. इसी तरह उत्तर भारत के भी लाखों लोग दक्षिण में रहते हैं. इन्हें भाषाओं को ले कर कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन नेताओं ने हमेशा उत्तर और दक्षिण के बीच भाषा को हथियार बनाया ताकि उन की राजनीति चमकती रहे.

हिंदी फिल्मों की तरह ही दक्षिण भारतीय फिल्मों को भी खूब पसंद किया जाता है. ऐक्शन, इमोशन, ड्रामा और कौमेडी से भरपूर इन फिल्मों को हर आयुवर्ग के लोग देखते हैं. यही वजह है कि साउथ के बड़े सितारों की फिल्में हिंदी भाषा में जम कर कमाई करती हैं. मुंबई फिल्म इंडस्ट्री दक्षिण भारतीय फिल्मों की हिंदी डबिंग या उन के रीमेक वर्जन से खूब कमाई करती है. फिर चाहे वह फिल्म बाहुबली हो, केजीएफ-2 हो, कल्कि 2898 एडी हो, आरआरआर हो, कबीर सिंह, वांटेड, गजनी या तेरे नाम हो. दक्षिण की इन रीमेक फिल्मों में छोटी के कलाकारों ने काम किया है.

इसी तरह कई बौलीवुड फिल्मों की रीमेक फिल्में दक्षिणी भाषाओं में बनीं और जबरदस्त हिट हुईं. 2018 में आई फिल्म ‘अंधाधुन’ बौलीवुड की बेहतरीन फिल्मों में से एक है. मर्डर मिस्ट्री पर बेस्ड इस फिल्म में आयुष्मान खुराना, तबू और राधिका आप्टे ने भूमिकाएं निभाई हैं. यह एक फ्रैंच फिल्म से प्रेरित फिल्म थी. दक्षिण में इस फिल्म का एक तेलुगू रीमेक बना- ‘मेस्ट्रो’. जिस में सुपरस्टार नितिन और तमन्ना भाटिया मुख्य भूमिका में हैं. कोरोना के चलते इस फिल्म को 17 सितंबर 2021 में सीधे ओटीटी पर रिलीज किया गया. इस के अलावा इस फिल्म को मलयालम सिनेमा में भी रीमेक किया गया, जिस में साउथ के फेमस एक्टर पृथ्वीराज को लीडरोल में लिया गया.

अक्षय कुमार और परेश रावल स्टारर फिल्म ‘ओ माय गाड’ एक यूनिक फिल्म थी, जिस के जरिए भगवान के नाम पर होने वाली डार्क पौलिटिक्स को दिखाया गया. यह फिल्म तेलुगु और कन्नड़ में भी रीमेक हुई और खूब चली. तेलुगु में इस फिल्म का नाम ‘गोपालागोपाला’ है, वहीं कन्नड़ में इस फिल्म का नाम ‘मुकुंद मुरारी’ है.

फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ बौलीवुड की सब से बेस्ट कौमेडी ड्रामा फिल्म जिस में आमिर खान, आर माधवन, शरमन जोशी, करीना कपूर और बोमन ईरानी थे और जिस में इंडियन एजुकेशन की कमियों को उजागर किया गया था, इस का तमिल फिल्ममेकर शंकर ने रीमेक बनाया- ‘ननबन’. इस में साउथ के नामी एक्टर विजय, जीवी और सत्यराज को लिया गया.

2007 में आई फिल्म ‘जब वी मेट’ बौलीवुड की रोमांटिक कौमेडी फिल्म थी, जिस में करीना कपूर और शाहिद कपूर लीड रोल में थे. इस फिल्म का साउथ रीमेक बना – ‘कंदर काढलाई’, इस रीमेक में भरत श्रीनिवास और तमन्ना भाटिया लीड रोल में हैं.

इसी तरह संजय दत्त की सुपरहिट फिल्म ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ के तेलुगू रीमेक में सुपरस्टार चिरंजीवी ने लीड रोल किया है, वहीं इस के तमिल रीमेक में कमल हासन ने मुख्य किरदार निभाया है. तेलुगु में इस फिल्म का नाम ‘शंकर दादा एमबीबीएस’ और तमिल में इस फिल्म का नाम ‘वसूल राजा एमबीबीएस’ है.

2008 में नसीरुद्दीन शाह और अनुपम खेर अभिनीत बहुचर्चित फिल्म ‘ए वेडनेसडे’ एक आम आदमी की कहानी है, जो सिस्टम से तंग आ कर ऐसा कदम उठा लेता है कि पुलिस और सरकार को उस की हर मांग के आगे झुकना पड़ता है. इस फिल्म के तमिल रीमेक में कमल हसन और मोहन लाल जैसे एक्टर्स ने काम किया. इस फिल्म को हौलीवुड में भी ‘अ कौमन मैन’ के नाम से रीमेक किया गया.

क्या इन फिल्मों को हिंदी या दक्षिणी भाषाओं को जाने, समझे, बोले और लिखे बगैर रीमेक करना संभव था? क्या रीमेक करते वक्त कोई भाषा विवाद पैदा हुआ? क्या दक्षिण के एक्टर्स ने यह कह कर फिल्म में काम करने से मना किया कि यह हिंदी की रीमेक है? या बौलीवुड एक्टर्स ने दक्षिण की फिल्मों के रीमेक में काम करने से मना किया? नहीं.

उन्हें भाषा, क्षेत्र आदि से कोई फर्क नहीं पड़ा. दक्षिण के लोग हिंदी समझते हैं, हिंदी फिल्में देखते हैं, इसलिए उन्होंने आसानी से हिंदी फिल्मों के रीमेक बनाए और पैसा कमाया. उत्तर के लोग भी अनेक दक्षिणी भाषाएं जानते समझते हैं इसलिए वे दक्षिण की फिल्मों को हिंदी में डब कर सके. यहां भाषा का कोई विवाद कभी नहीं उठा. न ही भाषा के प्रति कोई नफरत दिखी.

उत्तर भारत में लाखों की संख्या में दक्षिण भारत के लोग रहते हैं, काम करते हैं और व्यापार करते हैं. उत्तर भारतीयों से शादियां भी करते हैं. इसी तरह उत्तर भारत के भी लाखों लोग दक्षिण में रहते और काम करते हैं. वे आसानी से काम कर सकते हैं क्योंकि उन को हिंदी भाषा और दक्षिणी भाषा दोनों में कोई दिक्कत नहीं है.

जो बात नहीं समझ में आती उसे अंग्रेजी में समझ लेते हैं. लेकिन राजनेताओं ने हमेशा उत्तर और दक्षिण का भेद बना कर रखा ताकि उन की राजनीति चमकती रहे. आमजन के स्तर पर भाषा का कोई विवाद नहीं है, जो है वह राजनीतिक स्तर पर है. नेता सड़क से संसद तक इस को मुद्दा बना कर अपनी नेतागिरी चमकाते हैं.

भारत हमेशा से विभिन्न भाषाभाषी लोगों का देश रहा है. कहावत भी है कि यहां कोसकोस पर पानी और चार कोस पर वाणी बदल जाती है. देश के नागरिकों को भाषाओं को ले कर दिक्कत होती और भाषा विवाद ही होना होता तो हर चार कोस पर झगड़े हो रहे होते. मगर नहीं होते.

लेकिन जिस तरह दक्षिण में हिंदी के प्रति दुर्भावना दिखाई देती है उस के आधार में दरअसल राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं ही समाई हुई हैं. इतिहास के पन्ने पलटें तो दक्षिण में हिंदी विरोध का लंबा राजनीतिक इतिहास दिखाई देता है.

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने दक्षिण भारत में वर्ष 1918 में ‘दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा’ की स्थापना की थी. वे हिंदी को भारतीयों को एकजुट करने वाली भाषा मानते थे. तब से ही तमिलनाडु में हिंदी विरोध के स्वर उठने शुरू हो गए थे.

भाषा को ले कर संकीर्ण सोच से ऊपर उठने की बजाय नेता इस मुद्दे पर अपनी राजनीति चमकाने में जुटे रहे और इस विरोध को हवा देते रहे. जबकि दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा आज भी सक्रिय है. सभा हिंदी सिखाने का काम करती है. यहां हिंदी पढ़नेवाले तकरीबन 65 फीसद लोग तमिल भाषी हैं. इतने सालों में हिंदी प्रचार सभा से हिंदी सीखने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ती ही गई. फिर भी दक्षिण में हिंदी को ले कर विवाद चरम पर है.

नई शिक्षा नीति के तीन भाषा फार्मूले को ले कर तमिलनाडु सरकार लगातार केंद्र सरकार पर दक्षिण भारतीयों पर हिंदी थोपने का आरोप लगा रही है. नई शिक्षा नीति को ले कर तमिलनाडु का वैसे तो कई मसलों पर विरोध है. लेकिन द्रविड़ अभिमान पर गठित हुए इस राज्य की मुख्य आपत्ति तीन भाषा फार्मूला को ले कर ज्यादा है, जिस में हिंदी को दूसरी भाषा के रूप में अपनाने की सलाह भाजपा और संघ द्वारा दी जा रही है.

केंद्र सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति यानी एनईपी 2020 के तहत प्रस्तावित तीन भाषा नीति कहती है कि बच्चों को तीन भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए. पहली भाषा छात्र की मातृभाषा या राज्य की क्षेत्रीय भाषा होगी. जैसे तमिलनाडु में तमिल, महाराष्ट्र में मराठी, बंगाल में बंगाली. दूसरी भाषा में कोई अन्य भाषा हो सकती है. भाजपा नीत केंद्र सरकार हिंदी को इस संदर्भ में प्रोत्साहित करती है, खास कर गैरहिंदी भाषी राज्यों में. उस का तर्क है कि इस से राष्ट्रीय एकता मजबूत होगी. हालांकि यह अनिवार्य नहीं है और राज्य अपने हिसाब से दूसरी भाषा चुन सकते हैं. तमिलनाडु का सख्त विरोध इसी बिंदु पर है. तीसरी भाषा अंग्रेजी या अन्य कोई यूरोपीय भाषा हो सकती है.

तीन भाषा नीति का विरोध ऐसे वक्त में हो रहा है जब दक्षिण के राज्य परिसीमन को ले कर भी सवाल उठा रहे हैं. उन्हें डर है कि परिसीमन होने पर लोकसभा में दक्षिण राज्यों की सीटें कम हो जाएंगी. जिस से केंद्र में उन की आवाज कमजोर हो जाएगी. ऐसे में परिसीमन और हिंदी का विरोध एक साथ चल रहा है और दोनों एकदूसरे को मजबूती दे रहे हैं.

असल बात यह है कि तमिलनाडु की राजनीति में बीते कई दशक से स्थानीय द्रविड़ राजनीति का वर्चस्व रहा है. कभी डीएमके (द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम) तो कभी एआईएडीएमके (अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) जैसी स्थानीय पार्टियां ही सत्ता की मलाई खाती रही हैं. सही मायनों में देखें तो ये महज स्थानीय पार्टियां नहीं, बल्कि अपने अपने हिसाब से तमिल उपराष्ट्रीयता का प्रतिनिधित्व करती हैं.

गौरतलब है की 1916 में साउथ इंडियन लिबरेशन एसोसिएशन की स्थापना हुई थी, जिस का उद्देश्य ब्राह्मण जाति की आर्थिक शक्ति का विरोध करना और गैरब्राह्मण का सामाजिक उत्थान करना था. 17 सितंबर 1879 को तमिलनाडु में जन्मे पेरियार ने जस्टिस पार्टी का गठन किया, जिस ने ब्राह्मणवादी विचारधारा का घोर विरोध किया. जस्टिस पार्टी ने अस्पृश्यता के लिए बहुत काम किया और मंदिर मार्ग पर अछूतों को चलने के लिए आंदोलन चलाए.

इसी जस्टिस पार्टी को 1944 में पेरियार ने द्रविड़ कड़गम पार्टी का नाम दिया, जो किसी भी हालत में मनुवादी सोच से ग्रस्त भाजपा या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दक्षिण से दूर रखना चाहती है. इसी तरह अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम भी क्षेत्रीय राजनीतिक दल है जो ब्राह्मण सोच और वर्चस्व को दक्षिण पर हावी नहीं होने देना चाहता.

दशकों से ये दोनों ही पार्टियां तमिलनाडु की राजनीति में उपराष्ट्रीयता का दबदबा बनाए हुए हैं. तमिल उपराष्ट्रीयता के ही जरिए द्रविड़ राजनीति तमिलनाडु की सत्ता पर काबिज रही है. ऐसे में दक्षिण में हिंदी भाषा और उस के साथ ही संस्कृत का प्रचारप्रसार भाजपा को द्रविड़ राजनीति में सेंध लगाने का बड़ा मौका दे देगा.

संचार और सूचना क्रांति के दौर में तमिल उपराष्ट्रीयता वाली सोच को लगने लगा है कि यदि हिंदी आई तो उस के जरिए राष्ट्रीयता की विचारधारा मजबूत होगी. जिस का असर स्थानीय राजनीति पर भी पड़ेगा. हिंदी या किसी भी सामान्य संपर्क भाषा के ज्यादा प्रचलन से कट्टरवादी स्थानीय सोच को चोट पहुंचेगी और इस के साथ ही तमिल माटी में राष्ट्रीय राजनीति की जगह मजबूत होगी.

जिस का आखिर में नतीजा हो सकता है कि द्रविड़ राजनीति की विदाई हो जाए. इसलिए तमिलनाडु में हिंदी का विरोध आवश्यक है.

गौरतलब है कि 1937 में सी. राजगोपालाचारी की कांग्रेस सरकार ने तमिलनाडु के स्कूलों में अनिवार्य हिंदी लागू की थी. इस के बाद जस्टिस पार्टी और पेरियार जैसे द्रविड़ नेताओं के नेतृत्व में हिंदी के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए.

1940 में इस नीति को रद्द कर दिया गया, लेकिन स्वतंत्रता के बाद हिंदी विरोधी भावनाएं बढ़ गईं. जब 1968 में तीन भाषा फार्मूला लागू किया गया, तो तमिलनाडु ने इसे हिंदी थोपने के रूप में देखते हुए इसे अस्वीकार कर दिया.

तत्कालीन मुख्यमंत्री सीएन अन्नादुरई के नेतृत्व में, राज्य ने दो भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) अपनाई. तमिलनाडु एकमात्र ऐसा राज्य है जिस ने कभी भी तीन भाषा के फार्मूले को लागू नहीं किया, बल्कि हिंदी की जगह अंग्रेजी को प्राथमिकता दी.

भाजपा जब भी तमिलनाडु और दूसरे दक्षिणी राज्यों में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश करती है, वह हिंदी और संस्कृत को बढ़ावा देती है. 2022 में केंद्र सरकार ने काशीतमिल संगम की शुरुआत की थी. इस के जरिए काशी और तमिलनाडु को करीब लाने और दक्षिण को उत्तर भारत की संस्कृति से जोड़ने की कोशिश की गई थी.

हिंदीहिंदुत्व के जरिए पूजापाठी लोगों को स्थापित करने की भाजपा की नीयत भांप कर ही हिंदी के नाम पर भाजपा को वहां घेरा जाता है. डीएमके सहित दूसरी पार्टियां भी हिंदी विरोध और द्रविड़ अस्मिता के नाम पर मैदान में उतर जाती हैं.

2019 में भी हिंदी को ले कर विवाद बढ़ा था, फिर तमिलनाडु की क्षेत्रीय पार्टियों को भाजपा की घेराबंदी का मौका मिल गया था. तब हिंदी दिवस पर अमित शाह ने कहा था कि हमारे देश में कई भाषाएं बोली जाती हैं, लेकिन एक भाषा ऐसी होनी चाहिए जो देश का नाम दुनिया में बुलंद करे और हिंदी में यह खूबी है.

शाह के इस बयान का दक्षिण के राज्यों में काफी विरोध हुआ और निशाने पर भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दोनों आए. भाजपा के नेता हालांकि वक्तवक्त पर कहते रहे हैं कि भाजपा न भाषा विरोधी पार्टी है, न दक्षिण विरोधी पार्टी और यह कि उस की विचारधारा सब को साथ ले कर चलने की है. लेकिन दक्षिण के राज्यों में क्षेत्रीय दल भाजपा को उत्तर भारत की पार्टी और ब्राह्मण पार्टी के तौर पर ही देखते हैं और उस पर निशाना साधते हैं.

भाजपा को लगता है कि हिंदी और संस्कृत के प्रचारप्रसार के चलते जहां भाजपा खेमा दक्षिण में मजबूत होगा और मनुवादियों को वहां आगे बढ़ने, नौकरी करने, जमीनजायदाद बनाने आदि में बड़ा फायदा मिलेगा. वहीं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को यह डर भी सताने लगा है कि परिसीमन के बाद लोकसभा और विधानसभा की सीटों में बदलाव होगा.

जनसंख्या के लिहाज से उत्तर भारत का पलड़ा भारी है. दक्षिण भारत ने पिछले तीन दशकों में जनसंख्या नियंत्रण पर बेहतर काम किया और अब इस से उन्हें भारी नुकसान भी उठाना पड़ सकता है.

मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र पर हिंदी थोप कर भाषा युद्ध का बीज बोने का आरोप लगाया है. स्टालिन ने कहा कि 1965 से ही डीएमके का अनेकों बलिदानों के जरिए हिंदी से मातृभाषा तमिल की रक्षा करने का इतिहास रहा है. मातृभाषा की रक्षा करना डीएमके के खून में है. कुछ लोग हिंदी को बाकी भाषाओं से ऊपर रखना चाहते हैं और गैरहिंदी राज्यों पर इसे जबरन थोपने की कोशिश कर रहे हैं.

एमके स्टालिन ने कहा कि किसी भी तरह की भाषा थोपने से दुश्मनी ही पैदा होती है. कुछ कट्टरपंथी लोग तमिलनाडु में तमिलों के सही स्थान की मांग करने के ‘अपराध’ के लिए हमें अंधराष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी करार देते हैं. हिंदी थोपना स्वाभाविक और तमिल की बात करना राष्ट्रविरोधी, हमें यह स्वीकार नहीं है.

दरअसल तमिलनाडु में भाषा विरोध की जड़ में द्रविड़ राजनीति ही है, जो ब्राह्मणवादी सोच और उस के फैलाव से घबराई हुई है. हिंदी और संस्कृत को द्रविड़ मानसमनुवाद से जोड़ कर देखते हैं, जिस के विस्तार से द्रविड़ समाज का अस्तित्व संकट में पड़ सकता है. वैसे आमजन के स्तर पर तमिलनाडु में हिंदी जाननेसमझने और बोलने वाले कम नहीं हैं. हर तीसरा व्यक्ति हिंदी समझता और बोलता है.

तीन भाषा फार्मूले का विकास

इस फार्मूले को सब से पहले शिक्षा आयोग (1964-66) द्वारा प्रस्तावित किया गया था. इसे आधिकारिक तौर पर कोठारी आयोग के रूप में जाना जाता है. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन के वक्त राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनपीई) 1968 को आधिकारिक तौर पर अपनाया गया. प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी एनपीई 1986 को बनाए रखा. इसे भाषाई विविधता और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की तरफ से 1992 में संशोधित किया गया.

भौतिक विज्ञानी डा. दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता वाले आयोग ने तीन भाषाएं सीखने की सिफारिश की-

➤ मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा
➤ संघ की आधिकारिक भाषा
➤ पहली दो भाषाओं के अलावा कोई आधुनिक भारतीय या यूरोपीय भाषा

Health Update : जीवनभर छूटे न इन 3H का साथ

Health Update : आजकल की भागदौड़ वाली जिंदगी में हर कोई अगर कुछ ढूंढ रहा है तो वह है खुशी या हैप्पीनेस. इसे पाने के लिए सब कुछ करने तैयार है लेकिन इस को वह हासिल करने में नाकाम हो रहा है. इसे अचीव करने के लिए यहां कुछ उपाय सुझाए गए हैं.

3H यानि: हैल्थ (Health) + हारमनी (Harmony) + हैप्पीनेस (Happiness)

आजकल की भागमभाग वाली जिंदगी में हम तनाव से भरे हुए हैं और कहीं न कहीं इस तनाव का असर हमारे स्वास्थ्य, आपसी तालमेल और खुशियों पर पड़ता है, इसलिए एक अच्छी और खुशहाल लाइफ के लिए इन 3H का साथ होना बेहद जरूरी है. तो फिर क्यों न हम कोशिश करें “जीवनभर छूटे न इन 3H का साथ” ताकि हम रहें स्वस्थ और तनावमुक्त और अपने सारे लक्ष्यों और संकल्पों को पूरा कर सकें.

क्योंकि जीवन का कोई भी लक्ष्य या संकल्प हो, बिना इन 3H के पूरा नहीं किया जा सकता.

इस को समझे कुछ इस तरह:

हैल्थ (Health)

बिना अच्छी हैल्थ या स्वास्थ्य के हम अपना कोई भी संकल्प, लक्ष्य या काम अच्छे से या कुशलतापूर्वक नहीं कर सकते है क्योंकि यह तो हम सभी जानते हैं कि एक स्वस्थ शरीर ही किसी भी काम को अच्छे से और तय समय सीमा में कर सकता है.

हार्मोनी या तालमेल (Harmony)

जब हमारी हैल्थ या स्वास्थ्य अच्छा होगा तभी हम एकदूसरे के संग एक अच्छी हार्मोनी या तालमेल बना पाएंगे (जैसे: परिवार और दोस्तों संग, औफिस में). यदि आपस में अच्छा तालमेल या हार्मोनी नहीं होगी तो तनाव होता है और यह हमें कई बार बीमार भी बना देता है तब हम अवसाद से घिर सकते हैं.

हैप्पीनेस (Happiness)

जब हम अवसाद से घिर जाते हैं तब हम कभी भी खुश नहीं रह सकते और तब दुनिया की सारी धनदौलत चाहकर भी हैप्पीनेस को नहीं खरीद सकती. इसलिए लक्ष्य कोई भी हो उसे पूरा करने के लिए इन 3H का साथ होना जरूरी है.

हेल्थ (Health )

आजकल की हमारी भागमभाग और तनाव से भरी व्यस्त दिनचर्या और डिजिटल दुनिया के अधिक समय तक इस्तेमाल हम को कम उम्र में ही बीमार बना रही है,रही है. जिस से कार्य करने की क्षमता प्रभावित हो रही है. कहा जाता है “हेल्थ इस वेल्थ” मतलब हमारा स्वास्थ्य ही धन है क्योंकि यदि हमारा स्वास्थ्य ठीक नहीं तो कहीं न कहीं हम जीवन के सभी आकर्षण को खो देते हैं और और अपने लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाते हैं.

लेकिन यदि हम चाहें तो हमारी व्यस्त दिनचर्या में थोड़ा सा बदलाव ला कर अपनी सेहत का खयाल रख सकते हैं. साथ ही अपनी कार्य करने की क्षमता को भी बड़ा सकते हैं और अपने संकल्प को पूरा कर सकते हैं.

स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के लिए हमें नियमित शारीरिक व्यायाम, योग, ध्यान, संतुलित भोजन, अच्छे विचार, नियमित चिकित्सकीय जांच, पर्याप्त मात्रा में सोना और आराम करना और हमेशा खुश रहने, धैर्य रखने की आदत आदि की आवश्यकता होती है.

अच्छा स्वस्थ्य पाने के लिए काम आएंगे ये तरीके

लें भरपूर नींद

अच्छे स्वास्थ्य के लिए वयस्कों को कम से कम 7-8 घंटे की नींद होना आवश्यक है. यह हमारे स्वास्थ्य पर अनुकूल असर डालती है और दिनभर ऊर्जा से से भरपूर रखती है. यह हमें कई गंभीर बीमारियों जैसे: मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग, उक्त रक्तचाप से दूर रखती है.

करे नियमित व्यायाम

अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें रोज सुबह आधे या एक घंटा शारीरिक व्यायाम की आवश्यकता होती है. नियमित व्यायाम में हम तेज चलना, दौड़ लगाना, साइकिलिंग करना आदि शामिल कर सकते हैं. यदि इस की आदत डाल लें तो जल्दी ही आप अपने नए साल के संकल्प को पूरा कर पाएंगे.

फायदे

•हमारी मांसपेशियों को स्वस्थ रखता है
• शरीर में खून के बहाव को भी बेहतर बनाता है
• ब्लडप्रैशर को नियंत्रित करने में मदद करता है
• तनाव व डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारियों से दूर रखता है
• हमारा मेटाबौलिज्म बढ़ता है जिस के कारण आराम करते समय भी कैलोरी बर्न होती है
• वजन तेजी से कम होता है
• बढ़ती उम्र की गति को धीमा कर के आप को अधिक समय तक जवान बनाए रखने में मदद करता है. दिमाग भी सक्रिय रूप से कार्य करता है.
• हमारा स्टैमिना बढ़ता है, जिस से हम अपना काम बेहतर और अच्छे तरीके से कर पाते हैं जिस से हमारी कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है.

रहें दूर अल्ट्रा प्रोसेसस्सड फूड से और करें संतुलित भोजन

कैलोरी से भरपूर अल्ट्राप्रोसेस्ड फूड्स में फाइबर की मात्रा कम, चीनी की मात्रा जरूरत से ज्यादा होती है इसलिए ऐसी चीजों को खाने से पेट तो भर जाता है, लेकिन वजन भी तेजी से बढ़ने लगता है. इन का सेवन हम आमतौर भूख न लगने पर भी कर लेते हैं जो स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसानदायक है.

जैसे: फ्रेंचफ्राइज, पिज्जा, फ्रोजन फूड साथ ही आलू को न खा कर आप इस से तैयार चिप्स, चिल्ली पोटैटो या फिर फ्रेंचफ्राई आदि खाद्य पदार्थ का सेवन करते हैं. इन को बनाने की प्रक्रिया में रसायनों का प्रयोग होने से उस की असल गुणवत्ता खराब हो जाती है और यही फूड्स आप के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं.

इसलिए स्वस्थ रहने के लिए संतुलित आहार अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें भरपूर पोषण देता है. इस में सभी आवश्यक पोषक तत्व जैसे कार्बोहाइड्रेट, लिपिड, प्रोटीन और विटामिन, मिनरल, पानी आदि शामिल होते हैं. इसलिए संतुलित आहार के लिए हमें हमारी दिनचर्या में जैसे ताजे फल या फलों का रस, सलाद, हरी सब्जियां, दूध, अंडे, दही, अंकुरित सलाद, नट्स, बीन्स, फाइबरयुक्त भोजन करना चाहिए.

मोबाइल पर बिताए कम से कम समय

आज चाहे बच्चे हो या बड़े अपना अधिकतर समय मोबाइल में व्यतीत करते हैं. हम सभी ने अपने आप को स्क्रीन के सामने कैद कर लिया है और इस का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल हमारे स्वास्थ्य पर एक गहरा प्रभाव डाल रहा है.

क्योंकि हम ने आपस में मिलनाजुलना छोड़ दिया है और हमारे बच्चों ने खेलनाकूदना बंद सा ही कर दिया है. सारे गेम मोबाइल पर ही खेलते हैं, जिस से उन का शारीरिक विकास रुक गया है. उन की क्रिएटिविटी कम हो रही है, हमारे बच्चे कम उम्र में ही बीमारियों का शिकार हो रहे है.
दिनभर फोन पर बिजी रहने की आदत सेहत से जुड़ी कई प्रकार की समस्याएं भी
खड़ी कर सकती हैं जैसे: आंखों की समस्या, गले और पीठ में दर्द, उंगलियों में दर्द, नींद न आने की समस्या, डिप्रेशन आदि.

हारमनी (Harmony)

हारमनी या तालमेल का अर्थ, किसी भी संबंध के मध्य पारस्परिक समन्वय से है. तालमेल जितना अच्छा होगा जीवन भी उतना ही सुगम होगा. किसी भी क्षेत्र में चाहे घरपरिवार हो, पतिपत्नी, औफिस या समाज हो हर जगह तालमेल की जरूरत होती है. यदि आपस में तालमेल बैठाना आ गया तो आप का जीवन खुशियों से भर जाएगा लेकिन यह तालमेल की स्थिति तभी बन पाती है जब हम एकदूसरे को समय दे पाते हैं. यदि यह नहीं तो सभी जगह हमारी तूतू मैंमैं होती रहेगी और तनाव होगा इसलिए जरूरी है कि हम घरपरिवार, बच्चों, समाज और अपने कार्य क्षेत्र में तालमेल बनाए रखें.

रिश्ता कोई भी हो बेहतरी के लिए पर्याप्त समय मांगता है, लेकिन आजकल समय के अभाव के चलते रिश्तों को निभाने के लिए पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं और रिश्तों को जबरन निभा रहे हैं. यह कहीं न कहीं रिश्तों की मिठास को कम कर रहा है जिस की वजह से आजकल संयुक्त परिवार टूटे रहे हैं. पतिपत्नी अलग हो रहे हैं. मातापिता बच्चों से दूर हो रहे है. सब कुछ होते भी अपने आप को अकेला महसूस कर रहे हैं और इस अकेलेपन का दर्द या इलाज ढूंढने के लिए डिजिटल दुनिया का सहारा ले रहे हैं.

अपना बहुत सारा समय इस पर बिता रहे हैं जिस के कारण अपनों से और परिवार से दूर होते जा रहे हैं. पुराने समय की बात करें तो हम किसी भी समस्या का हल आपस में बैठ कर सुलझाया करते थे. जिस के कारण हम एकदूसरे से जुड़े रहते थे लेकिन आजकल इस के अभाव में हम अकेले होते जा रहे हैं और धीरेधीरे अवसाद की और जा रहे हैं. इस मानसिक तनाव या स्थिति में नए संकल्प और अपने निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

हैप्पीनेस (Happiness)

आजकल की भागदौड़ वाली जिंदगी में हर कोई यदि कुछ चीज ढूंढ रहा है तो वह है खुशी या हैप्पीनेस. इसे पाने के लिए सब कुछ करने तैयार है लेकिन इस को वह हासिल करने में नाकाम हो रहा है. ऐसा कहा जाता है कि पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है लेकिन शायद खुशी नहीं. इसलिए हैप्पीनेस के लिए पहचाने अपनी खुशियों को.
हम सभी को अलगअलग तरीके से खुशी मिलती है. जैसे किसी को अच्छा खाने से खुशी मिलती है, तो किसी को अच्छे कपड़े पहनने से, तो किसी को घूमनेफिरने से, तो किसी को अपने घर के गार्डन में काम करने से, तो किसी तो मंदिर जा कर सेवा करने. किसी को पढ़नेलिखने से, तो किसी को परिवार के साथ समय बिताने से, तो किसी को संगीत सुनने से, तो किसी को पैसा कमाने से और अपना बैंकबैलेंस बढ़ने से आदि तो खुश रहने के लिए सब से जरूरी है कि आप अपनी खुशी को पहचाने. आखिर आप को किस काम को करने से खुशी मिल रही है उस को पहचानना आवश्यक है ताकि आप खुश रह सकें.

करें सेल्फकेयर

कई बार खुद की केयर करने से एवं दूसरों की केयर करने से भी आप ऊर्जावान और आनंदित हो सकते हैं जैसे परिवार संग क्वालिटी समय बिताना, प्रकृति से जुड़ना कुछ समय पेड़पौधों के साथ बिताना, अपनी पसंद का काम करना या कुछ ऐसा काम भी करना जिस से यदि दूसरों को भी खुशी मिलती हो हमेशा अपने बारे में ही न सोचें.

सकारात्मक रहें

खुश रहने के लिए संतुष्ट रहें और अपनी सोच को सकारात्मक रखें. दूसरों से ज्यादा उम्मीद न रखें. अक्सर हम दूसरे से कुछ ज्यादा ही उम्मीद रख लेते हैं और जब वह पूरी नहीं होती तो निराश और दुखी हो जाते हैं. वास्तव में कई बार हमारी यही निराशा खुशी के ऊपर हावी हो जाती है और हम चाहकर भी खुश नहीं रह पाते जैसे: उन को हमारे साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए था अच्छा खाना बनाना चाहिए था अच्छा गिफ्ट देना चाहिए था वगैरहवगैरह.

बिताए कुछ समय अपने के साथ

आजकल की भागदौड़ वाली दिनचर्या के बाद जब भी फ्री समय मिलता है हम अपना मोबाइल ले कर बैठ जाते हैं. अपना बहुत सारा समय इस आभासी दुनिया में बिता देते हैं जिस के कारण हम पूरी दुनिया से और लोगों के साथ तो जुड़े (कनैक्ट) रहते हैं. यदि हम चाहें तो अपने इस अकेलेपन को दूर करने के लिए अपना कुछ समय परिवार, बच्चों और अपने दोस्तों के साथ मिलनेजुलने, हंसीमजाक, गपशप करने, घूमनेफिरने, खानेपीने में गुजार सकते हैं और कुछ खुशियों के पल अपनी यादों में शामिल कर सकते हैं और खुश रह सकते हैं.

इसलिए आवश्यक है कि एक खुशहाल, स्वस्थ और तनाव मुक्त लाइफ के लिए “छूटे न साथ इन 3H का.” यदि आप इन 3H को पकड़ कर रखेंगे तभी आप अपने लक्ष्यों को बिना किसी रूकावट के पूरा कर पाएंगे.

Rich and Poor : गैरबराबरी की साजिश

Rich and Poor : फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थौमस पिकेटी का गैरबराबरी के मामले में बहुत नाम है और वे लगातार अमीरगरीब देशों में बढ़ती गैरबराबरी का सवाल उठा रहे हैं. लगभग सभी अमीरगरीब देशों में पिछले 50 सालों में 1-2 फीसदी अमीर लोगों के पास जो धन है वह 60-70 फीसदी गरीब के कुल धन से भी ज्यादा है. 50-60 सालों में, जब से कम्युनिज्म का खात्मा हुआ है, हर देश में करों को पूंजी निर्माण के नाम पर घटाया गया है पर उस से रिच और सुपर रिच नहीं बल्कि सुपरडुपर रिच पैदा हो गए हैं.

अगर सुपर रिच और सुपरडुपर रिच अपनी पूंजी का इस्तेमाल आम जनता की भलाई में लगा रहे होते तो कोई बात नहीं थी. टोकन मामलों को छोड़ कर ये सुपरडुपर रिच अपनी संपत्ति को सरकारों को खरीदने, छोटी कंपनियों को दरवाजे बंद करने को मजबूर करने और ऐयाशी करने में लगा रहे हैं.

अमेरिका के एलन मस्क, जो 400 अरब डौलर के मालिक हैं, ने खुल्लमखुल्ला खब्ती, चातुर्य, कट्टरपंथी, स्वतंत्रताओं के विरोधी डोनाल्ड ट्रंप के लिए चुनाव में जम कर पैसा खर्च किया और उन के जीतने के बाद अब उन के मंत्रिमंडल में जा बैठे हैं. फेसबुक के मालिक जुकरबर्ग भी ऐसे ही हैं.

भारत में सुपरडुपर रिच गौतम अडानी और मुकेश अंबानी एक के बाद एक कंपनियां खरीद रहे हैं या छोटी कंपनियों को बंद करा रहे हैं, सरकारी मोटे ठेके हथिया रहे हैं जिन में खर्च का आकलन पहले किया ही नहीं जा सकता.

आज अमीरों के घर 500 करोड़ रुपए में बिक रहे हैं जबकि गरीबों को 100 फुट की कच्चीपक्की झोंपडि़यों और 6-6 मंजिले कमजोर व 2 छोटेछोटे कमरों वाले मकानों में रहना पड़ रहा है जिन में बहुत जगह सीवर भी नहीं है. भारत के गांवों को तो छोडि़ए, शहरों की सब से महंगी बस्तियों के एक किलोमीटर इलाके में झोंपडि़यों जैसे रिहाइश वाले मकान दिख जाएंगे.

देश में आज एयरकंडीशंड मौल बन रहे हैं लेकिन असली खरीदारी पटरियों से होती है जहां सामान सस्ता नहीं होता, बस, दुकान का किराया सस्ता बना देता है. लोगों के पास मोबाइल पहुंच गए हैं पर डाक खत्म हो गई है. लोग अपने चहते के लिखे शब्दों को संभाल कर रखने को तरसने लगे हैं. देश में 84 करोड़ भूखे लोगों को सरकार 5 किलो अनाज दे रही है और बात करती है खुद की तीसरी दुनिया की सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की.

गैरबराबरी ऐसे ही नहीं आई है. यह तंत्र थोपा जाता है, यह साजिश है जिस में सरकार, अमीर, रुतबे वाले और राजनीतिक दल शामिल हैं. थौमस पिकेटी चिल्लाता रहे, उस की सुनने वाला कोई नहीं.

College Ragging Cases : रैगिंग पर गर्व

College Ragging Cases : केरल के कालेज औफ नर्सिंग में जिस क्रूर ढंग से सीनियर लड़कों ने नए लड़कों से रैगिंग की, वह यह बताता है कि परपीड़न, सैडिज्म किस तरह हम भारतीयों के रगरग में भरा हुआ है. अपने को शांतिप्रिय विश्वगुरु मानने वाले, लाखों देवीदेवताओं में अगाध श्रद्धा रखने वालों के बच्चे खुलेआम सैडिस्टिक बिहेवियर का प्रदर्शन करते हैं और उस समय इकट्ठा हुई उन्हीं की उम्र के दूसरे लड़कों की भीड़ खुशी से तालियां बजाती है, हंसती है, ठहाके लगाती है.

रैगिंग बुलिंग के मामले सारी दुनिया में होते रहते हैं पर सारी दुनिया के लोग अपने को विश्वगुरु नहीं मानते. यह तमगा तो हम ने ही खुद को दे रखा है. हम ही विश्वशांति का ढोल पीटते हैं जबकि अपनी कायरता, कमजोरी और बंटवारे को धर्म की कांटेदार चादरों से ढकते रहते हैं.

केरल से हाल ही में कई मामले आए. श्रीनारायण इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस, श्रीनारायण कालेज, सीएसआई इंस्टिट्यूट औफ लीगल स्टडीज और गवर्नमैंट कालेज औफ नर्सिंग आदि सभी में आए नए छात्रों के साथ सीनियर छात्रों द्वारा बेहद क्रूर व वीभत्स रैगिंग की गई.

किन्नौर में तो एक मांबाप ने शिकायत की कि उन के 9वीं कक्षा के बेटे ने 12वीं कक्षा के छात्र द्वारा की गई उस की रैगिंग से अपमानित होने पर आत्महत्या कर डाली. गनीमत यह है कि रैगिंग में लड़के अभी तक लड़कों की ही रैगिंग करते हैं पर भयंकर बात यह है कि इस रैगिंग में आमतौर पर प्राइवेट पार्ट्स को छेड़ा जाता है. जो समाज दिनरात नैतिकता का गुणगान करता है, जहां सैक्स इश्यू है वहां लड़के माथे पर तिलक लगाए कमजोर छात्रों के प्राइवेट पार्ट्स को सब के सामने दिखाने और उन से छेड़छाड़ करने में जरा भी नहीं हिचकिचाते.

यह सम झ नहीं आता कि जिस समाज को पाप धोने के लिए गंगा में डुबकी लगाने के लिए लगी रहती है या जो जमीन पर लोटलोट कर मीलों मंदिरों तक पहुंचने को पाप धोना कहता है वह इस तरह के पापों को सहज क्यों लेता है. दरअसल, यह हमारे दोगलेपन की निशानी है. यह हमारे अंदर बैठे जानवर से भी ज्यादा क्रूर जीव के होने की भी निशानी है.

असल में रैगिंग दुनियाभर में गरीबों के बच्चों की ज्यादा होती है. हमारे यहां जब भी ऊंची जातियों के स्कूलकालेजों में पिछड़ी या निचली जातियों के इक्केदुक्के छात्र आ जाते हैं तो उन्हें बुरी तरह प्रताडि़त किया जाता है. वैसे, छात्रों ने आम जीवन में अपने परिवारों के आसपास की पिछड़ी व निचली जातियों के लोगों के साथ अकसर होता क्रूर व्यवहार देखा होता है.

ड्रग्स ने इस समस्या को और गहरा किया है क्योंकि बहुत बार रैगिंग करने वाले शराब और ड्रग में आधे मदहोश होते हैं और उन्हें, सही का तो मालूम ही नहीं, गलत क्याक्या करना है, इस की पूरी ट्रेनिंग मिली होती है.

हमारे नेता, पुलिस, अदालतें उपदेश दे कर बच निकलते हैं. धर्मगुरु पिछले जन्मों के पापों का फल कह कर बच निकलते हैं. जो पीडि़त हुए वे अगले साल नए छात्रों को उस से ज्यादा पीड़ा देने की ठान लेते हैं. रैगिंग एक बार का मामला नहीं है. यह हर संस्थान का ट्रेडमार्क ट्रैंड जैसा है.

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