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USA : ट्रंप का मोदी को झटका

USA : अमेरिकी प्रैसिडैंट डोनाल्ड ट्रंप ने ‘दोस्त’ नरेंद्र मोदी के ‘विश्वगुरु’ कहलवाने और विश्व की चौथीपांचवीं अर्थव्यवस्था होने का गुमान करने वाली उन की सरकार की पोल एक झटके में खोल दी जब 104 भारतीयों को चैनों में जकड़ व अपने मिलिटरी एरोप्लेन में ठूंस कर अमेरिका से भारत भेजा. प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी और उन के विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने यहां देश की संसद में जो पोपला बयान दिया कि, ‘ऐसा तो पहले भी होता रहा है,’ एक तरह से भारत सरकार की रीढ़ की हड्डी के न होने या बेहद ही कमजोर होने का सुबूत है.

ऐसा अगर पहले भी होता रहा था तो भारतीय जनता पार्टी ने आज तक क्यों नहीं कभी आपत्ति उठाई. अमेरिका ने जो आज किया है वह न केवल अमानवीय है बल्कि भारत, जो उस को दोस्त मानता है, का खुल्लमखुल्ला अपमान भी है. भारतीय नागरिक विदेश के लिए भारत से वैध तरीके से निकले थे. अमेरिका में वे अवैध ढंग से घुसे थे तो भी उन्होंने अमेरिकी लोगों के साथ कोई अपराध नहीं किया था. उन्हें गिरफ्तार करने पर ही वहां मौजूद भारतीय दूतावास को खड़े हो जाना चाहिए था.

बजाय इस के कि भारत अपनी महान शक्ति दिखाता, भारत सरकार के विदेश मंत्री मिमियाते दिखे कि वे उन एजेंटों के खिलाफ ऐक्शन लेंगे जिन्होंने इन युवाओं को धोखा दिया. उन की यह हिम्मत नहीं हुई कि वे अमेरिकी इमिग्रेशन अफसरों को भारतीयों को चैनों से जकड़ने पर फटकार लगा सकें कि यह भारतीय नागरिकों का नहीं, भारत का अपमान है.

नरेंद्र मोदी ने कोई ऐसा बयान नहीं दिया कि वे विरोध में डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात को टाल देंगे. मुलाकात के दौरान कोई ऐसा फैसला नहीं लिया गया कि आगे ऐसा नहीं होगा. उन्होंने इस कांड का जिम्मा उन लोगों के कर्मों पर डाल दिया जो बिना कानूनी कागजों के अमेरिका में घुसे थे.

भारतीय मूल के कई लोग डोनाल्ड ट्रंप के तलवे चाटते हुए उन के सहयोगी बने हुए हैं. वे उन भारतीय पुलिसवालों से कम नहीं हैं जिन्होंने ब्रिटिश ब्रिगेडियर रेजिनाल्ड डायर ने हुक्म के चलते जालियांवाला बाग में जमा भारतवासियों की भीड़ पर 13 अप्रैल, 1919 को गोलियां चलाई थीं.

काश पटेल अमेरिका की सैंट्रल इंटैलिजैंस एजेंसी (सीआईए) के मुखिया हैं जो भारतीय मूल के हैं. विवेक रामास्वामी एक राज्य के गवर्नर का चुनाव लड़ रहे हैं. सीताराम कृष्णन आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस यूनिट के अध्यक्ष हैं. बौबी जिंदल स्वास्थ्य व मानव सेवाओं के मुखिया हैं. अपने को हिंदू कहने वाली तुलसी गबार्ड नैशनल इंटैलिजैंस की मुखिया हैं. उपराष्ट्रपति जे डी वेंस की पत्नी उषा वेंस भारतीय मूल की हैं. ये सब जनरल डायर की पुलिसफोर्स की तरह के हैं जिन्होंने निहत्थे, शांति से घुसे युवाओं को चैनों में जकड़ने की अनुमति दी या ऐसा किए जाने पर कोई विरोध नहीं किया.

देश की ताकत उस की नीतियों में होती है, ढोल पीटने में नहीं. हम दिल्ली में बैठ कर ढोल पीटते रहें, नेहरू-इंदिरा को गालियां देते रहें तो ताकतवर नहीं बन जाएंगे. ताकतवर तो तब होंगे जब एक भी भारतीय पर आंच आए तो हम ऐसी जुर्रत करने वाले देश को लाल आंख दिखा सकें.

RSS : भेद और भेदभाव

RSS : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत ने अगर कहा है कि सच्ची आजादी तब मिली है जब राम मंदिर बना, तो कुछ खास गलत नहीं कहा. दरअसल वे उस वर्णव्यवस्था में विश्वास करते हैं जिस में ब्राह्मणों के पुरुषों को असली सत्ता मिलती है और ब्राह्मण स्त्रियों समेत अन्य सभी वर्गों के पुरुष-स्त्री को आधीपूरी गुलामी. ज्ञात इतिहास के अनुसार, पौराणिक कहानियों में इस ‘स्वर्णकाल’ का वर्णन है वरना तो यहां जो निशान मिलते हैं वे बौद्धों, मुगलों या यूरोपियों द्वारा छोड़े गए हैं. पौराणिक काल के बाद अब राम मंदिर बनने को फिर से पौराणिक व्यवस्था को आजादी मिलना कहा जा सकता है.

भारतीय जनता पार्टी में अनेक जातियों के लोग हैं. कुछ औरतें भी हैं. पर सभी एक तरफ से राजा के दरबार में जीहुजूरी करते हैं. यह राम मंदिर की देन है और यही पुराणों में वर्णित है जिस में यम और दुर्वासा राजा राम तक से मिलने पर अपनी शर्तें रख सकते हैं. जिन्हें पुराणों का सही ज्ञान चाहिए वे लक्ष्मण को मिले दंड के बारे में वाल्मीकि रामायण में पढ़ लें.

राम मंदिर बनने के बाद से देश के कोनेकोने में मंदिरों की बाढ़ आ गई है. 1947 तक का बेचारा निरीह ब्राह्मण, जो चपरासगीरी भी करता था, आज रेशमी कपड़े पहन कर छोटेबड़े मंदिर का पुजारी बन गया है. यही तो आजादी है.

जब अमेरिका और यूरोप में रंगभेद की श्रेष्ठता लौट रही है तो भारत में क्यों न लौटे? डोनाल्ड ट्रंप समाज को अपने मागा गैंग और चर्च के पादरियों की सहायता से बदल रहे हैं. 2 बड़े लोकतंत्रों को आजादी 2024 में ही मिली है. एक में राम मंदिर बनने पर, दूसरे में डोनाल्ड ट्रंप की जीत पर.

Online Hindi Story : दूसरा कोना – ऋचा के प्रति लोगों ने कैसी राय बना ली

Online Hindi Story : ‘‘अजीब तरह का व्यवहार कर रही थी अजय की पत्नी. पूरे समय बस अपनी खूबसूरती, हंसीमजाक, ब्यूटीपार्लर उफ, कोई कह सकता है भला कि उस के पति की अभीअभी कीमोथेरैपी हुई है. उस के हावभाव, अदाओं से कहीं से भी नहीं लग रहा था कि उस के पति को इतनी गंभीर बीमारी है. मुझे तो दया आ रही है बेचारे अजय पर. ऐसे समय में उस का खयाल रखने के बजाय, उस की पत्नी ऋचा अपनी साजसज्जा में लगी रहती है,’’ घर का दरवाजा खोलने के साथ ही प्रिया ने अपने पति राकेश से कहा. ‘‘हां, थोड़ा अजीब तो मुझे भी लगा ऋचा का तरीका, पर चलो छोड़ो न, तुम क्यों अपना दिमाग खराब कर रही हो. हमें कौन सा रोजरोज उन के घर जाना है. औफिस का कलीग है, कैंसर की बीमारी का सुना तो एक बार तो देखने जाना बनता था,’’ राकेश ने प्रिया को बांहों में लेते हुए कहा.

‘‘अरे, छोड़ो क्या, मेरे तो दिमाग से ही नहीं निकल रही यह बात. कोई इतना लापरवाह कैसे हो सकता है. ऋचा पढ़ीलिखी, अच्छे परिवार की लड़की है, फिर भी ऐसी हरकतें. मुझे तो शर्म आ रही है कि ऐसी भी होती हैं औरतें. ‘‘ऋचा औफिस की पार्टीज में भी कितना बनसंवर कर आती थी. कितना मरता था अजय उस की खूबसूरती पर. एक से एक लेटैस्ट ड्रैसेज पहनती थी वह तब भी. पर अब हालत कैसी है, कम से कम यह तो सोचना चाहिए.’’ राकेश ने प्रिया की बातों में अब हां में सिर हिलाया और कहा कि बहुत नींद आ रही है, सुबह औफिस भी जाना है, चलो सो जाते हैं.

बिस्तर पर पहुंच कर भी प्रिया के मन में ऋचा की बातें, उस की हंसी फांस की तरह चुभ रही थी. आज की मुलाकात ने रिचा को प्रिया की आंखों के सामने लापरवाह औरत के रूप में खड़ा कर दिया था. यही सब सोचतेसोचते प्रिया की आंख कब लग गई, उसे पता ही नहीं चला. अगली सुबह औफिस जाते हुए राकेश को गुडबाय किस देने के बाद अंदर आई तो देखा राकेश अपना टिफिन भूल गए. प्रिया ने राकेश को कौल कर के रुकने को कहा. दौड़ते हुए वह राकेश का टिफिन नीचे पार्किंग में पकड़ा कर आई. ‘‘तुम एक चीज भी याद नहीं रख सकते. मैं न होती तो तुम्हारा क्या होता?’’ प्रिया ने मुसकराते हुए कहा.

राकेश ने भी उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘तुम न होती तो कोई और होती.’’ इस पर प्रिया ने उसे घूरने वाली नजरों से देखा. राकेश ने जल्दी से ‘आई लव यू’ कहा और बाय कहते हुए वहां से निकल गया.

सब काम निबटा कर प्रिया ने चाय बनाई और टीवी औन कर लिया. चैनल पलटतेपलटते ‘सतर्क रहो इंडिया’ पर आ कर उस का रिमोट रुका. प्रिया ने बिना पलकें झपकाए पूरा एपिसोड देख डाला. उसे फिर ऋचा का खयाल आ गया. अब वह तरहतरह की बातें सोचने लगी कि ऋचा का कहीं किसी से चक्कर तो नहीं चल रहा, कहीं वह अजय से छुटकारा तो नहीं पाना चाहती? दिनभर प्रिया के दिमागी घोड़े ऋचा के घर के चक्कर लगाते रहे. शाम को राकेश के आने पर प्रिया ने फिर से ऋचा की बात छेड़ी तो राकेश ने थोड़ा झुंझला कर कहा, ‘‘अरे यार, क्या ऋचाऋचा लगा रखा है? उन की जिंदगी है, तुम क्यों इतना सोच रही हो?’’

प्रिया चुप हो गई. वह राकेश को नाराज नहीं करना चाहती थी. बहुत प्यार जो करती थी वह उस से. मगर प्रिया के दिमाग से ऋचा का कीड़ा उतरा नहीं था. उस ने अपनी किट्टी की सहेलियों को भी उस के व्यवहार के बारे में बताया.

सहेलियों में से एक बोली, ‘‘जिस के पति के जीवन की डोर कब कट जाए, पता नहीं, वह पति के बारे में न सोच कर सिर्फ अपने बारे में बातें कर रही है, कैसी औरत है वह.’’ ‘‘जो बीमार पति से भी इधरउधर घूमने की फरमाइश करती है, कैसी अजीब है वह,’’ दूसरी सहेली ने कहा.

‘‘ऐसी औरतें ही तो औरतों के नाम पर धब्बा होती हैं,’’ तीसरी बोली. सब सहेलियों ने मिल कर ऋचा के उस व्यवहार का पूरा पोस्टमौर्टम कर दिया. धीरेधीरे प्रिया के दिमाग से ऋचा का कीड़ा निकल गया. हां, कभीकभार वह राकेश से अजय के बारे में जरूर पूछ लेती. राकेश का एक ही जवाब होता, ‘अजय अब शायद ही औफिस आ सके.’ प्रिया को अफसोस होता और मन ही मन सोचती कि बेचारे अजय का तो समय ही खराब निकला.

4 महीने बाद एक दिन राकेश ने औफिस से फोन पर प्रिया को बताया कि अजय की मृत्यु हो गई. प्रिया को बहुत दुख हुआ. राकेश ने प्रिया से कहा कि तुम शाम को तैयार रहना, अजय के घर जाना है. औफिस के सभी लोग जा रहे हैं. प्रिया और राकेश अजय के घर पहुंचे. घर में कुहराम मचा हुआ था. अभी उम्र ही क्या थी अजय की, अभी 42 साल का ही तो था. ऐसे माहौल में प्रिया का मन अंदर घुसते हुए घबरा रहा था. अंदर घुसते ही सब से पहले ऋचा पर उस की नजर पड़ी. ऋचा का रंग बिलकुल सफेद पड़ा हुआ था. जो ऋचा 4 महीने पहले उसे नवयुवती लग रही थी, आज वही मानो बुढ़ापे के मध्यम दौर में पहुंच गई हो. जिस तरह ऋचा रो रही थी, प्रिया का मन और आंखें दोनों भीग गए. वह ऋचा को संभालने उस के करीब पहुंच गई.

बाहर अजय की अंतिम यात्रा की तैयारियां चल रही थीं. राकेश भी बाहर औफिस के लोगों के साथ खड़ा था. सभी अजय की जिंदादिली और हिम्मत की तारीफ कर रहे थे.

राकेश के पास ही डा. प्रकाश खड़े थे. डा. प्रकाश राकेश के बौस के खास मित्र थे. औफिस की पार्टीज में अकसर उन से मिलना हो जाया करता था. डा. प्रकाश ने कहा, ‘‘अजय जितना हिम्मत वाला था, उस से भी बढ़ कर उस की पत्नी ऋचा है.’’ राकेश ने जब यह बात सुनी तो उस के मन में उत्सुकता जाग गई. उस ने

डा. प्रकाश से मानो आंखों से ही पूछ लिया कि आप क्या कह रहे हैं. ‘‘अजय का पूरा इलाज मेरी देखरेख में ही हुआ है,’’ डा. प्रकाश ने कहा, ‘‘राकेश, अजय की रिपोर्ट्स के मुताबिक उस के पास मुश्किल से एक से डेढ़ महीने का समय था. यह ऋचा ही थी जिस ने उसे 4 महीने जिंदा रखा.’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘जब इन लोगों को कैंसर की बीमारी का पता चला तो ऋचा डिप्रैशन में चली गई थी. अजय अपनी बीमारी से ज्यादा ऋचा को देख कर दुखी रहने लगा था. अजय की चिंता देख कर मैं ने पूछा तब उस ने सारी बात मुझे बताई. उस दिन अजय और मेरे बीच बहुत बातें हुईं. मैं ने उसे ऋचा से बात करने को कहा. ‘‘अगली बार जब वे दोनों मुझ से मिलने आए तो हालात बेहतर थे. तब ऋचा ने मुझे बताया कि उस के पति उसे मरते दम तक खूबसूरत रूप में ही देखना चाहते हैं. उस ने कहा था, ‘अजय चाहते हैं कि मैं हर वह काम करूं जो उन के ठीक रहने पर करती आई हूं. उन के साथ नौर्मल बातें करूं. हंसीमजाक, छेड़ना सब करूं. बस, उन की बीमारी का जिक्र न करूं. इन थोड़े बचे दिनों में वे एक पूरी जिंदगी जीना चाहते हैं मेरे साथ.

‘‘अजय ने मुझ से कहा, ‘तुम्हें दुखी देख कर मैं पहले ही मर जाऊंगा. मुझे मरने से पहले जीना है.’ मैं ने भी दिल पर पत्थर रख कर उन की बात मान ली. डाक्टर साहब, अब अजय काफी अच्छा महसूस कर रहे हैं.’ उस दिन यह कहतेकहते ऋचा की आंखों में आंसू आ गए थे, मगर पी लिए उस ने अपने आंसू भी अजय की खातिर. ‘‘ऋचा बहुत हिम्मती है. आज देखो, दिल पर से पत्थर हटा तो कैसा सैलाब उमड़ आया है उस की आंखों में.’’

डा. प्रकाश की बातें सुन कर राकेश का मन ग्लानि से भर गया. जिस ऋचा के लिए उस ने और प्रिया ने मन में गलत धारणा पाल ली थी, आज उसी ऋचा के लिए उस के मन में बहुत आदरभाव उमड़ आया था. राकेश को काफी शर्म भी महसूस हुई यह सोच कर कि कैसे हम लोग बिना विचार किए एक कोने में खड़े हो कर किसी के बारे में अच्छीबुरी राय बना लेते हैं. कभी दूसरे कोने में जा कर देखने या विचारने की कोशिश ही नहीं करते.

Hindi Story : हमारी नयनतारा – कैसे मिसाल बने वाणी और श्लोक

Hindi Story : वाणी और श्लोक की पहली मुलाकात कालेज में हुई थी। वाणी दिल्ली से ही थी, वहीं श्लोक मध्य प्रदेश से यहां पढ़ने आया था। उन दोनों को वाणी की दोस्त नेहा ने मिलवाया था। पहली बार मिलने पर भी ऐसा लग रहा था जैसे वे सालों से एकदूसरे को जानते हों। जल्द ही उन में दोस्ती हुई और फिर दोस्ती प्यार में बदल गई। सारा दिन दोनों एकदूसरे के साथ ही गुजारते, एकदूसरे की पढ़ाई में मदद करते। कालेज में सब उन की मिसाल देते थे।

देखते ही देखते कालेज के 3 साल कब बीत गए पता ही नहीं चला। बीसीए की डिग्री हासिल करने के बाद दोनों ने सोचा कि क्यों न अब एमसीए भी कर लें। इस के लिए दोनों ने मुंबई में एक ही कालेज में दाखिला लिया। वहां एकदूसरे का साथ होने से उन्हें बहुत मदद मिली। एमसीए के बाद दोनों को बहुत अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई पर अब परेशानी यह हुई की वाणी को जौब बंगलुरू ब्रांच में मिली जबकि श्लोक को मुंबई ब्रांच में। वाणी का मन न होते हुए भी श्लोक के जोर देने पर वह बंगलुरू जाने के लिए तैयार हो गई।

1 साल तो जैसेतैसे बीत गए पर दोनों का मन एकदूसरे के बिना न लगता।दिनभर में जब भी वक्त मिलता एकदूसरे को कौल, मैसेज या वीडियो कौल करते रहते। दोनों एक दिन यों ही वीडियो कौल पर बात कर रहे थे, तब श्लोक ने कहा,”वाणी, क्यों न अब शादी कर के एकसाथ रहें।”

वाणी ने कहा,”यह अचानक से तुम्हें क्या हुआ?”

“बस, अब तुम्हारे बिना और नहीं रहना चाहता।”

वाणी कुछ देर तो कुछ न कह पाई पर फिर उस ने भी जल्दी से हां भर दी,”पर श्लोक, क्या हमारे घर वाले मान जाएंगे? वैसे तो मां को पता है इस बारे में पर शादी के लिए परिवार में सब की रजामंदी जरूरी है।”

श्लोक ने कहा,”चलो, हिम्मत कर के बात करते हैं। वैसे, मुझे तो मना करने की कोई खास वजह नहीं दिख रही।”

उन दोनों ने अपनेअपने घर पर बात की और सब आसानी से उन की शादी के लिए मान गए जिस पर उन्हें काफी हैरानी भी हुई कि सब इतनी आसानी से मान कैसे गए। फिर धूमधाम से उन के मातापिता ने उन की शादी करवाई। करवाते भी क्यों नहीं, वे दोनों अपने मातापिता की इकलौती संतान जो थे। अब वाणी ने शादी के बाद मुंबई ब्रांच में ही ट्रांसफर करवा लिया।

शादी के बाद वे विदेश घूमने गए और आते ही उन्हें पता चला कि दोनों की अपने डिपार्टमैंट में प्रोमोशन हो गई है। इस प्रोमोशन की वजह से दोनों का काम बहुत बढ़ गया। सुबह जल्दी जाना और रात को देर से आना। देखते ही देखते उन के विवाह के 3 साल पूरे हो गए।

आज बहुत दिनों बाद उन्हें एक लौंग वीकेंड औफ मिला था। दोनों अपने घर की बालकनी पर बैठे कौफी पी रहे थे। तब अचानक वाणी ने श्लोक से कहा,”श्लोक, हमारी शादी को 3 साल हो गए हैं, क्यों न अब हम अपनी संतान के बारे में सोचें…”

“कह तो तुम ठीक ही रही हो वाणी, पर तुम्हें यह अचानक से क्या सूझा?”

“अचानक कहां, तुम्हारी और मेरी मम्मी तो मुझ से यह कितनी बार पूछ चुकी हैं।”

“वाणी, मैं भी हमेशा से चाहता था कि हमारी एक प्यारी बेटी हो पर मुझे लगा तुम इस के लिए अभी तैयार नहीं हो इसलिए तुम से कभी नहीं कहा पर अब तुम यह चाहती हो तो ठीक है। कल सुबह ही डाक्टर के पास चलते हैं।”

वाणी ने अचरज से श्लोक की तरफ देखते हुए पूछा,”डाक्टर क्यों?”

“क्योंकि मातापिता बनने से पहले हमें कुछ जरूरी टैस्ट करवा लेने चाहिए।इस से पता चल जाएगा कि हम कितने स्वस्थ हैं। बच्चे के लिए हमारा स्वस्थ होना बहुत जरूरी है।”

अगली सुबह वे दोनों अस्पताल के लिए रवाना हुए। वहां जा कर उन दोनों ने डाक्टर महिमा से मुलाकात की। वे बहुत ही सीनियर डाक्टर थीं।श्लोक की रिपोर्ट्स तो ठीक था पर वाणी की रिपोर्ट्स कुछ खराब आई थीं। डाक्टर ने वाणी से पूछा,”क्या तुम्हें पेट पर कभी कोई चोट लगी है या फिर तुम पेट के बल जोर से गिर गई हो?”

वाणी और श्लोक एकदूसरे को देखने लगे। फिर दोनों ने एकसाथ डाक्टर से पूछा,”आप यह सब क्यों पूछ रही हैं?”

डाक्टर ने कहा,”जो पूछ रही हूं पहले उस बारे में जवाब दीजिए।”

वाणी ने कहा,”हां, एक बार जब मैं 15 साल की थी तब मैं फिसल कर बहुत जोर से गिर गई थी। तब सिर और पेट में कुछ चोटें आई थीं। ठीक होने में मुझे 6 माह लग गए थे।”

डाक्टर ने वाणी की बात सुनने के बाद कहा,”बस, तब जोर से गिरने की वजह से जो आंतरिक चोटें आप को आई थीं उस वजह से अब आप का मां बन पाना मुश्किल है,” इतना सुनना था कि वाणी जोरजोर से रोने लगी। तब श्लोक ने उसे संभाला।श्लोक ने कहा,”यह तो काफी साल पहले की बात है। इस का अब से क्या संबंध?”

डाक्टर ने कहा,”कुछ चोटें ऐसी होती हैं जो हमारे आंतरिक अंगों को हानि पहुंचा देती हैं। वाणी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। अगर यह मां बन भी गई तो इसे और बच्चे की जान को खतरा रहेगा। गर्भपात के चांसेज भी बहुत ज्यादा रहेंगे।”

श्लोक ने डाक्टर से पूछा,”क्या अब कुछ भी नहीं हो सकता?”

डाक्टर ने कहा,”आप लोग सरोगेसी के बारे मैं सोच सकते हैं।”

श्लोक ने डाक्टर से कहा,”इस में तो काफी खर्चा होगा न?”

डाक्टर ने कहा,”वह तो है। मगर आप अपनी तसल्ली के लिए 1-2 डाक्टर से और सलाह ले सकते हैं।”

वाणी और श्लोक अस्पताल से बाहर निकलते हुए बेहद उदास थे, तभी श्लोक ने कहा,”वाणी, एक डाक्टर के कहने से क्या होता है, हम 2-3 डाक्टरों से बात कर के देखते हैं। शायद कोई हमारी मदद कर सके। वैसे भी वाणी, हम अभी सरोगेसी अफोर्ड नहीं कर सकते। यह तो तुम जानती ही हो और मुझे मांपापा से पैसा लेने पसंद नहीं है। पहले ही वे हमारे लिए बहुत कुछ कर चुके हैं। उन से मैं कोई और मदद नहीं लेना चाहता।”

वाणी ने कहा,”तुम ठीक ही कह रहे हो।”

अगले 2-3 दिन वे दोनों शहर के अलगअलग डाक्टर के चक्कर लगाते रहे पर सब ने वाणी की रिपोर्ट्स देखने पर वही बात कही जो डाक्टर भावना ने कही थी। दोनों उदास थे पर इस का ज्यादा असर वाणी पर दिख रहा था।

आज इस बात को पता चले 1 महीना हो चुका था। वाणी अब श्लोक से भी ज्यादा बात नहीं करती। औफिस से छुट्टी ले कर ज्यादा समय घर पर अकेली गुमसुम सी रहती। श्लोक वाणी की यह हालत देख नहीं पा रहा था। एक दिन बहुत हिम्मत जुटा कर उस ने वाणी से बात करने की सोची। वाणी चुपचाप बालकनी में खड़ी थी। तभी श्लोक वहां गया और वाणी से कहा,”मैं काफी दिनों से तुम से कुछ कहना चाह रहा हूं। वाणी, यह तो मैं भी चाहता हूं कि हमारी भी एक संतान हो पर इस के लिए मैं तुम्हें किसी भी खतरे में नहीं डाल सकता। बहुत प्यार करता हूं तुम से। यह कुदरत की मरजी है कि उन्होंने हमें हमारी संतान नहीं दी पर उन्होंने हमें दूसरा रास्ता तो दिखाया है, इस के लिए मैं उन का शुक्रगुजार हूं।”

वाणी ने पूछा,”कौन सा दूसरा रास्ता?”

“देखो वाणी, हमारी खुद की संतान नहीं हो सकती इस का यह मतलब नहीं है कि हमारी गोद खाली रहे। ऐसे कितने ही बच्चे हैं इस दुनिया में जिन के मातापिता नहीं हैं और कितने ही ऐसे लोग हैं जिन की संतान नहीं है।यदि ये सब अपनी संतान की तरह अनाथ बच्चों को अपना लें तो कोई भी इस दुनिया में बेऔलाद और कोई भी बिना संतान के नहीं रहेगा।”

“तुम्हारा मतलब है कि हम बच्चा गोद लें?”

“हां, वाणी मेरा यही मतलब है। हम जिस भी बच्चे को घर लाएंगे उस के लिए हम ही उस के मातापिता होंगे।इस से हमारी गोद भर जाएगी और उसे मातापिता और पूरे परिवार का प्यार मिलेगा।”

वाणी रोते हुए श्लोक की तरफ देखने लगी तो श्लोक को लगा कि वाणी को शायद उस की बात सही नहीं लगी।उस ने जैसे ही कुछ आगे कहना शुरू किया, तो वाणी ने कहा,”रुको, अब कुछ और कहने की जरूरत नहीं है। मैं ने तो कभी इस तरह देखा ही नहीं कि भले ही हमारी खुद की संतान न भी हो तब भी तो हम मातापिता बन सकते हैं। हम कल से ही ऐडौप्शन का प्रोसेस स्टार्ट कर देते हैं।”

श्लोक ने कहा,”कल से क्यों, अभी से क्यों नहीं?”

वाणी बोली,”क्या ऐसा हो सकता है?”

“हां, मेरा एक दोस्त सुमित एक एनजीओ के साथ काम करता है। वह इस में हमारी मदद कर सकता है।”

कागजी काररवाई होने के बाद वाणी और श्लोक 1 साल की एक छोटी सी बच्ची को घर ले आए। जिस दिन वे उसे लेने गए, दोनों के मातापिता ने मिल कर घर को सजाया। जैसे ही वे घर पहुंचे, उन का बहुत अच्छे से स्वागत किया गया। जब नामकरण की बारी आई तो सब ने पूछा कि क्या नाम रखें इस नन्ही परी का? इस पर वाणी और श्लोक ने कहा,”हमारी नैनों का तारा हमारी नयनतारा।”

लेखिका- अमृता परमार

Hindi Kahani : फैसला – क्या आदित्य की हो पाई अवंतिका ?

Hindi Kahani : ‘‘4 साल… और इन 4 सालों में कितना कुछ बदल गया है न,’’ अवंतिका बोली. ‘‘नहीं, बिलकुल नहीं… तुम पहले भी 2 चम्मच चीनी ही कौफी में लिया करती थी और आज भी,’’ आदित्य ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘अच्छा, और तुम कल भी मुझे और मेरी कौफी को इसी तरह देखते थे और आज भी,’’ अवंतिका ने आदित्य की ओर देखते हुए कहा. आदित्य एकटक दम साधे अवंतिका को देखे जा रहा था. दोनों आज पूरे 4 साल बाद एकदूसरे से मिल रहे थे. आदित्य का दिल आज भी अवंतिका के लिए उतना ही धड़कता था, जितना 4 साल पहले.

आदित्य और अवंतिका कालेज के दोस्त थे. दोनों ने एकसाथ अपनी पढ़ाई शुरू की और एकसाथ खत्म. आदित्य को अवंतिका पहली ही नजर में पसंद आ गई थी, लेकिन प्यार के चक्कर में कहीं प्यारा सा दोस्त और उस की दोस्ती खो न बैठे इसलिए कभी आई लव यू कह नहीं पाया. सोचा था, ‘कालेज पूरा करने के बाद एक अच्छी सी नौकरी मिलते ही अवंतिका को न सिर्फ अपने दिल की बात बताऊंगा, बल्कि उस के घर वालों से उस का हाथ भी मांग लूंगा.’ वक्त कभी किसी के लिए नहीं ठहरता. मेरे पास पूरे 2 साल थे अच्छे से सैटल होने के लिए, लेकिन 2 साल शायद अवंतिका के लिए काफी थे.

उस शाम मुझे अवंतिका के घर से फोन आया कि कल अवंतिका की सगाई है. ये शब्द उस समय एक धमाके की तरह थे, जिस ने कुछ समय के लिए मुझे सन्न कर दिया. मैं ने उसी दिन नौकरी के सिलसिले में बाहर जाने का बहाना बनाया और अपना शहर छोड़ दिया. मैं ने अवंतिका को बधाई देने तक के लिए भी फोन नहीं किया. मैं उस समय शायद अपने दिल का हाल बताने के काबिल नहीं था और अब उस का हाल जानने के लिए तो बिलकुल भी नहीं.

वक्त बदला, शहर बदला और हालात भी. हजार बार मन में अवंतिका का खयाल आया, लेकिन अब शायद उस के मन में कभी मेरा खयाल न आता हो और आएगा भी क्यों, आखिर उस की नई जिंदगी की शुरुआत हो गई है, जिस में उस का कोई भी दोष नहीं था. मैं ने भी इसे एक अनहोनी मान लिया था या फिर जिस चीज को मैं बदल नहीं सकता उस के लिए खुद को बदल लिया था, लेकिन कहीं न कहीं अधूरापन, एक याद हमेशा मेरे साथ रहती थी.

वक्त की एक सब से बड़ी खूबी कभीकभी वक्त की सब से बड़ी कमी लगती है. शायद, यही मेरी अधूरी प्रेम कहानी का अंत था. मेरी नौकरी और मेरे नए घर को पूरे 3 साल हो गए थे. रोज की ही तरह मैं अपने औफिस का कुछ काम कर रहा था. आज जल्दी काम हो गया तो अपना फेसबुक अकाउंट जो आज की जेनरेशन में बड़ा मशहूर है, को लौगइन किया. आज पता नहीं क्यों अवंतिका की बहुत याद आ

रही थी. कलैंडर पर नजर पड़ने पर याद आया कि आज तो अवंतिका का जन्मदिन है. मैं ने उस के पुराने मोबाइल नंबर को इस आशा से मिलाया कि अगर उस ने फोन उठा लिया तो उस को जन्मदिन की बधाई दे दूंगा. बहुत हिम्मत कर के मैं ने उस का नंबर मिलाया, लेकिन मोबाइल स्विचऔफ था.

पता नहीं क्यों, दिल ने कहा कि मैं उस को फेसबुक पर ढूंढं़ू, क्या पता खाली समय में वह भी फेसबुक लौगइन करती हो. अवंतिका नाम टाइप करते ही कई अवंतिकाओं की प्रोफाइल मेरी आंखों के सामने आ गई. कोई अवंतिका शर्मा, मल्होत्रा, खन्ना कितनी ही अवंतिका सामने आ गईं, लेकिन मेरी अवंतिका अभी तक नहीं मिली. आशा तो कोई थी नहीं, लेकिन एक अजीब सी निराशा हो रही थी. अचानक मेरी नजर एक प्रोफाइल पर पड़ी. अवंतिका वर्मा… मुझे आश्चर्य हुआ कि शादी के बाद भी उस का सरनेम नहीं बदला और लोकेशन भी मुंबई की है. लगता है मुंबई के ही किसी शख्स से उस की शादी हुई होगी.

उस ने अपना फोटो नहीं डाला था और सबकुछ लौक कर रखा था. मैं फिर भी उस की प्रोफाइल को बारबार देख रहा था. मुझे विश्वास था यह मेरी ही अवंतिका है, लेकिन मुझे खुद पर विश्वास नहीं था. मैं ने उस को फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी. एक पुराने दोस्त के नाते वह मेरी रिक्वैस्ट जरूर स्वीकारेगी. उस रात मुझे नींद नहीं आई. मैं मन ही मन यह सोच रहा था कि कितनी बदल गई होगी न वह, शादी के बाद सबकुछ बदल जाता है. अगर वह मुझे भूल गई होगी तो? अरे, ऐसे कैसे कोई कालेज के दोस्तों को भूलता है, भला? इसी असमंजस में पूरी रात बीत गई.

सुबह होते ही सब से पहले मैं ने फेसबुक अकाउंट चैक किया. आज पता चला कि लोग प्यार को बेवकूफ क्यों कहते हैं? उस दिन मुझे निराशा ही हाथ लगी. 2 दिन तक यही सिलसिला चलता रहा और 2 दिन बाद आखिर वह दिन आ ही गया जिस का मैं बेसब्री से इंतजार कर रहा था. अवंतिका ने मेरी रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली, लेकिन सबकुछ अच्छा होते हुए भी मुझे अचानक आश्चर्य हुआ, क्योंकि यह अवंतिका वर्मा तो सिंगल थी. उस का रिलेशनशिप स्टेटस सिंगल आ रहा था.

कहीं मैं ने किसी दूसरी अवंतिका को तो रिक्वैस्ट नहीं भेज दी. अचानक एक मैसेज मेरे फेसबुक अकाउंट पर आया. ‘‘कहां थे, इतने दिन तक.’’ यह मैसेज अवंतिका ने भेजा था. वह इस समय औनलाइन थी. मेरा दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था. मन कर रहा था कि उस से सारे सवालों के जवाब पूछ लूं. किसी तरह अपनेआप पर काबू पाते हुए मैं ने जवाब दिया, ‘‘बस, काम के सिलसिले में शहर छोड़ना पड़ा.’’ तभी अवंतिका ने जवाब देते हुए कहा, ‘‘ऐसा भी क्या काम था कि एक बार भी फोन तक करने की जरूरत नहीं समझी.’’

‘‘वह सब छोड़ो, यह बताओ कि शादी के बाद उसी शहर में हो या कहीं और शिफ्ट हो गई हो? और हां, फेसबुक पर अपना फोटो क्यों नहीं डाला? बहुत मोटी हो गई हो क्या,’’ उसे लिख कर भेजा. ‘‘शादी… यह तुम्हें किस ने कहा,’’ अवंतिका ने लिख कर भेजा.

‘‘मतलब…’’ मैं ने एकदम पूछा. ‘‘तुम्हारी तो सगाई हुई थी न.’’ मैं ने लिखा.

‘‘हम्म…’’ अवंतिका ने बस इतना ही लिख कर भेजा. ‘‘तुम अपना नंबर दो मैं तुम्हें फोन करता हूं.’’

अवंतिका ने तुरंत अपना नंबर लिख दिया. मैं ने बिना एक पल गवांए अवंतिका को फोन कर दिया. उस ने तुरंत फोन रिसीव कर कहा, ‘‘हैलो…’’

आज मैं पूरे 4 साल बाद उस की आवाज सुन रहा था. एक पल के लिए लगा कि यह कोई खुली आंखों का ख्वाब तो नहीं. अगर यह ख्वाब है तो बहुत ही खूबसूरत है जिस ख्वाब से मैं कभी बाहर न निकलूं. मुझे खुद पर और उस पल पर विश्वास ही नही हो रहा था. उस की हैलो की दूसरी आवाज ने मुझे अपने विचारों से बाहर निकाला. मैं ने कहा, ‘‘कैसी हो?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं, लेकिन तुम बताओ कहां गायब हो गए थे. वह तो शुक्र है आजकल की टैक्नोलौजी का वरना मुझे तो लगा था कि अब तुम से कभी बात ही नहीं हो पाएगी.’’ ‘‘अरे, ऐसे कैसे बात नहीं हो पाएगी,’’ मैं ने कहा, ‘‘लेकिन तुम यह बताओ कि तुम ने शादी क्यों नहीं की अभी तक?’’

‘‘अभी तक? क्यों, तुम्हारी शादी हो गई क्या,’’ अवंतिका ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘नहीं हुई,’’ मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘क्या कर रही हो आजकल.’’

उस ने हंसते हुए बताया, ‘‘जौब कर रही हूं. दिल्ली में एक सौफ्टवेयर कंपनी है पिछले 3 साल से वहीं जौब कर रही हूं.’’ ‘‘क्या?’’ मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था. उस पल पर, न अपने कानों पर, न ही अवंतिका पर. कौन कहता है अतीत अपनेआप को नहीं दोहराता? मेरा अतीत मेरे सामने एक बार फिर आ गया था.

3 साल से हम दोनों एक ही शहर में थे और आज इस तरह… ‘‘तुम्हें पता है कि मैं कौन से शहर में हूं,’’ मैं ने उस से पूछा.

‘‘नहीं,’’ उस ने कहा. ‘‘मैं भी दिल्ली में ही हूं.’’

‘‘पता है मुझे,’’ अवंतिका बोली. ‘‘क्या,’’ मैं ने उस से कहा.

‘‘मुझे तुम से मिलना है, जल्दी बोलो कब मिलेंगे.’’ ‘‘ठीक है… जब तुम फ्री हो तो कौल कर देना.’’

‘‘तुम से मिलने के लिए मुझे वक्त निकालने की जरूरत है क्या?’’ ‘‘ठीक है तो कल मिलते हैं.’’

‘‘हां, बिलकुल,’’ मैं ने तपाक से कहा. आज मुझे अवंतिका से मिलना था. पूरे 4 साल बाद मैं जैसा इस समय महसूस कर रहा हूं, उसे बताने के लिए शब्दों की कमी पड़ रही थी. मेरा दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था, जैसे मानों पेट में तितलियां उड़ रहीं थीं.

जिंदगी भी बड़ी अजीब होती है, जो पल सब से खूबसूरत होते हैं, उन्हीं पर विश्वास करना मुश्किल होता है. जब आप को जिंदगी दूसरा मौका देती है, तो आप चाहते हैं कि हर एक कदम संभलसंभल कर रखें. यही है जिंदगी, शायद ऐसी ही होती है जिंदगी. मैं एक रेस्तरां के अंदर बैठा अवंतिका का इंतजार कर रहा था और सोच रहा था कि किस सवाल से बातों की शुरुआत करूं. मेरी निगाहें मेन गेट पर थीं. दिल की धड़कन बहुत तेजी से आवाज कर रही थी, लेकिन उसे सिर्फ मैं ही सुन सकता था.

आखिरकार, वह समय आ ही गया. जब अवंतिका मेरे सामने थी. वह बिलकुल भी नहीं बदली थी. उस में 4 साल पहले और अब में कोई फर्क नहीं आया था, मुझे ऐसा लग रहा था कि कल की एक लंबी रात के बाद जैसे आज एक नई सुबह में हम मिले हों. उस के वही पहले की तरह खुले बाल, वही मुसकराहट ओढ़े हुए उस का चेहरा… सबकुछ वही. मैं ने अवंतिका से पूछा, ‘‘अच्छा, तुम्हारी मम्मी ने तो मुझे बताया था कि तुम्हारी सगाई है. मुझे तो लगा था अब तक तुम्हारी एक प्यारी सी फैमिली बन गई होगी.’’

‘‘हम्म… सोचा तो मैं ने भी यही था, लेकिन जो सोचा होता है अगर हमेशा वही हो तो जिंदगी का मतलब ही नहीं रह जाता. मेरा एक जगह रिश्ता तय हुआ तो था, लेकिन जिस दिन सगाई थी, जिस के लिए मेरी मम्मी ने तुम्हें इन्वाइट किया था, उसी दिन लड़के वालों ने दहेज में कार और कैश मांग लिया, उन्हें बहू से ज्यादा दहेज प्यारा था. मैं ने उसी समय उस लड़के से शादी करने से मना कर दिया. उस दिन काफी दुख हुआ था मुझे, सोचा तुम मिलोगे तो तुम्हें अपनी दिल की व्यथा सुनाऊंगी लेकिन तुम भी ऐसे गायब हुए जैसे कभी थे ही नहीं,’’ अवंतिका ने कहा. उस वक्त मुझे अपने ऊपर इतना गुस्सा आ रहा था कि काश, मैं उस दिन अवंतिका के घर चला जाता… कितनी जरूरत रही होगी न उस वक्त उस को मेरी. जिस वक्त मैं यह सोच रहा था कि उस के साथ उस का हमसफर होगा उस वक्त उस के साथ तनहाई थी… मैं कितना गलत और स्वार्थी था.

‘‘यहां नौकरी कब मिली,’’ मैं ने अवंतिका से पूछा. ‘‘3 साल पहले,’’ उस ने बताया.

3 साल… 3 साल से हम दोनों एक ही शहर में थे. कभी हम दोनों गलती से भी नहीं टकराए,’’ मैं ने मन में सोचा. आज मैं इस सुनहरे मौके को गवांना नहीं चाहता था. आज मैं वह गलती नहीं करना चाहता था, जो मैं ने 4 साल पहले की थी.

मैं ने अवंतिका का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘अवंतिका मुझे माफ कर दो, पहले मुझ में इतनी हिम्मत नहीं थी कि तुम से अपने दिल की बात कह सकूं, लेकिन आज मैं इस मौके को खोना नहीं चाहता. मैं तुम्हारे साथ जिंदगी बिताना चाहता हूं, बोलो न, दोगी मेरा साथ,’’ अवंतिका मुझे एकटक देखे जा रही थी. उस ने धीरे से पास आ कर कहा, ‘‘ठीक है, लेकिन एक शर्त पर, तुम हफ्ते में एक बार डिनर बनाओगे तो,’’ इतना कह कर वह जोर से हंस दी.

मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था, लेकिन आखिर पूरे 4 साल बाद मैं अपने खोए प्यार से जो मिला था.

Best Hindi Story : आख़िरी पन्ना – अरुण ने क्यों माया को चुप करा दिया ?

Best Hindi Story : रविवार का दिन था. अरुण बहुत दिनों से पुरानी यादें ताजा करने को उत्सुक था. उस ने प्रतिभा को अपने साथ चलने के लिए मना लिया.

प्रतिभा ने विरोध नहीं किया.  वे सुबहसवेरे ही अलीगढ़ के लिए घर से निकल पड़े. तीनों बहुत खुश थे. दोपहर तक वे गतंव्य तक पहुंच गए.

सब से पहले  अरुण उन्हें ले कर उस रैस्तरां  पहुंचा जहां वह अपने दोस्तों के साथ अधिकांश वक्त बिताया करता था. वह बोला, “प्रियांक, यहां मैं दोस्तों के साथ रोज आया करता था.”

“आज आप हमारे साथ आए हैं. मैं और मम्मी भी आप के बेस्ट फ्रैंड हैं, पापा.”

उस की बात सुन कर अरुण ने प्रतिभा की तरफ देखा. उस ने नजरें झुका लीं. कौफी का मजा लेते हुए अरुण का अतीत उस की आंखों के  सामने चलचित्र की तरह घूमने लगा. उसे याद आ रहा था कि 9वीं क्लास से  वह अलीगढ़ शहर में पलाबढ़ा था. अरुण के पापा बेंगलुरु से ट्रांसफर हो कर यहां आए थे. एमएससी करने के बाद अरुण कंपीटिशन की तैयारी के लिए दिल्ली चला आया और कुछ महीने बाद  नौकरी के सिलसिले में वह नागपुर चला गया था.

अरुण का परिवार खुले विचारों का नहीं था. उस के पापा का देहांत  एक ऐक्सिडैंट में तब हो गया जब वह  बीए में पढ़ता था. उस की मम्मी  माया ने उस की अच्छी परवरिश की थी. नौकरी मिल जाने के बाद 27 साल की उम्र में वह अपनी बिरादरी की लड़की से ही अरुण की शादी कराना चाहती थी.

एक बार अरुण अपनी बूआ की लड़की शिप्रा की शादी में हाथरस गया था. वहीं पर उस की प्रतिभा से पहली बार मुलाकात हुई थी. वह शिप्रा की फ्रैंड थी. शादी के दिन सजीधजी गुलाबी  लहंगे में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी. अरुण का ध्यान शादी से ज्यादा उसी पर था. प्रतिभा भी इस बात को महसूस कर रही थी. रात को फेरों के समय अरुण उसी की बगल में जा कर बैठ गया था. युवाओं में चुहलबाज़ी चल रही थी. प्रतिभा भी इस बातचीत में शामिल थी और उस की हर बात का अपने तीखे अंदाज में जवाब दे रही थी.

‘आप को देख कर  लगता है मैं भी आज इसी मंडप में आप के साथ सात फेरे ले लूं.’

‘रोका किस ने है? हिम्मत है तो ले कर देख लीजिए. सामने से आप की मम्मी आ रही है.’

मम्मी पर नजर पड़ते ही अरुण शांत हो कर बैठ गया. उस की इस हरकत पर प्रतिभा जोर से हंसी और बोली, ‘लगता है अपनी मम्मी से बहुत डरते हैं.’

‘डरते तो हम किसी से नहीं हैं, बस, उन का अदब जरूर करते हैं. इसीलिए इस समय शांत बैठे हैं. वरना…’

‘मुझे अपने घर ले जाने से पहले सोच लीजिए. मैं कोई आम लड़की नहीं हूं. बहुत सुखसुविधाओं में पलीबढ़ी, फैशनेबल  लड़की हूं. घूमनेफिरने में यकीन रखती हूं. उठा पाएंगे मेरे इतने नखरे?’

‘हम भी किसी से कम नहीं हैं. जिस चीज पर दिल आ जाए उसे ले कर ही रहते हैं,’ दबी जबान में वह बोला.

‘अपनी बात को पूरा करने के लिए अपनी मम्मी से जरूर पूछ लीजिए.’

‘वे मेरी हर इच्छा का मान करती हैं. आज तक उन्होंने  मेरी कोई बात नहीं टाली है.’

‘मुझे नहीं लगता उन्हें मुझ जैसी स्टाइलिश बहू चाहिए.’

‘देख लेना 6 महीने के अंदर मैं आप को अपनी दुलहन बना कर यहां से ले जाऊंगा.’

‘बाद में अपनी बात से मुकर तो नहीं जाएंगे?’

‘मर्द की जबान है, एक बार कह दिया, तो कह दिया,’  अरुण बिंदास बोला.

प्रतिभा के साथ उसे समय का पता ही नहीं चला. विदाई के समय सब भावुक हो गए थे. प्रतिभा की आंखों में भी आंसू थे और अरुण के भी.

शाम को अरुण को वापस आना था. रास्ते में उस ने बात छेड़ी, ‘मम्मी, आप को प्रतिभा कैसी लगी?’

‘उस के बारे में सोचना छोड़ दे. उस के साथ तेरा मेल नहीं हो सकता.’

‘यह आप कैसे कह सकती हैं?’

‘मुझे भी एक नजर में वह अच्छी लगी थी, मैं ने तेरी बूआ से पूछा. उन्होंने बताया कि तेरे और उस के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर है.

वह बहुत खुले विचारों की आधुनिक लड़की है. उस के मम्मीपापा उस की हर इच्छा पूरी करते हैं. हमारे बस का उस के नखरे उठाना नहीं है.’

‘मम्मी मायके और ससुराल में अंतर होता है. साथ रहेगी, तो घर की परिस्थिति भी समझने लगेगी.’

‘ लगता है तुम्हें वह बहुत पसंद आ गई है.’

‘हां मम्मी, मैं उसी से शादी करना चाहता हूं. अब इस बारे में कुछ मत कहिएगा. वह हमारी बिरादरी की है और मुझे पसंद भी है. वह हम दोनों  की शर्तें पूरी कर रही है. आप को इस रिश्ते पर एतराज नहीं होना चाहिए.’

माया उस की कोई बात नहीं टालती थी. देखने में परिवार  और प्रतिभा उन के मनमाफिक थी लेकिन उस के नखरे सहना उन के बस के बाहर था. अरुण अच्छाखासा कमाता था. पिताजी की 2 दुकानें भी थीं और उन का अपना खुद का घर था.  कुछ खेतीबाड़ी की जमीन थी.  उस से भी उन्हें आय हो जाती थी. घर में किसी प्रकार का कोई अभाव नहीं था. बेटे की इच्छा का मान करते हुए माया ने इस रिश्ते को मंजूरी दे दी. यह सुन कर अरुण मम्मी से लिपट पड़ा, बोला, ‘आप बहुत अच्छी हो. मेरी खातिर आप हर समझौता कर लेती हो.’

‘तेरे अलावा मेरा है ही कौन बेटा इस दुनिया में?’

बूआ के माध्यम से माया ने यह रिश्ता प्रतिभा के घर भिजवा दिया था. प्रतिभा को कोई एतराज नहीं था. जल्दी ही उन दोनों की सगाई हो गई और 2 महीने बाद शादी. माया ने अपने इकलौते बेटे की शादी धूमधाम से की थी. अरुण के सभी दोस्तों ने खूब डांस किया था. अपनी ओर से माया ने इस शादी में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. प्रतिभा का मायका भी संपन्न था. उन्होंने  शादी में दिल खोल कर खर्च किया था. शादी के 6 महीने कब बीत गए, पता ही नहीं चला. उन का अधिकांश समय घूमनेफिरने में ही बीत गया था. बच्चों को खुश देख कर माया खुश थी.  इस दौरान प्रतिभा प्रैग्नैंट हो गई. यह सुन कर माया बहुत खुश थी, बोली, ‘प्रतिभा  बहुत घूमनाफिरना हो गया. अब तुम्हें अपना ही नहीं, अपने अंदर पलने वाली नन्ही जान का भी खयाल रखना है.’

‘मम्मी जी, ऐसा कुछ नहीं होता. मेरी फ्रैंड  बच्चा पैदा होने तक भी घूमतीफिरती रहती है. आप बेकार चिंता कर रही हैं.’

‘अपनी ओर से हमें सावधानी बरतनी चाहिए, बेटा. सब का शरीर एकजैसा नहीं होता.’ माया बोली तो यह बात प्रतिभा को अखर गई. उसे लगा कि वे उस पर प्रतिबंध लगा रही हैं. आज तक कभी किसी ने उस के किसी काम पर रोकटोक नहीं की थी. उस ने अपनी बात अरुण तक पहुंचा दी.

‘प्रैग्नैंट होने का यह मतलब नहीं है कि मैं एक जगह पर बैठी रहूं. आप मम्मी जी को समझा दीजिएगा, मुझे अपनी और बच्चे दोनों की फिक्र है. उन्हें ज्यादा टैंशन लेने की जरूरत नहीं है.’

‘कैसी बात करती हो, प्रतिभा. वे अनुभवी हैं. अपने अनुभव से कुछ बता रही हैं तो तुम्हें उसे मानना चाहिए.’

‘फिर वही बात. मैं ने कहा था, मैं भी अपने स्वास्थ्य को ले कर सचेत हूं. मुझे ज्यादा समझाने की कोशिश न करें,’ प्रतिभा तुनक कर बोली.

इस हालत में माया को उस का इधरउधर घूमना और तंग कपड़े पहनना अखरता लेकिन प्रतिभा को इस की कोई परवा न थी. घर में इन्हीं बातों को ले कर तनातनी होने लगी थी. अरुण बोला, ‘मम्मी ने हम दोनों की इच्छा का मान रखा है. क्या कुछ महीने के लिए हम उन की बात  नहीं मान सकते?’

‘अभी तो यह शुरुआत है. कल बच्चा हो जाएगा तो और भी कई प्रतिबंध लगा देंगी. मुझे ऐसी जिंदगी पसंद नहीं है. मैं जैसी हूं उस में कोई बदलाव नहीं चाहती और न ही किसी पर कोई प्रतिबंध लगाती हूं. अगर उन्हें मेरा यहां रहना पसंद नहीं, तो मैं मायके चली जाती हूं.’

‘तुम कहां रहना चाहती हो, यह तुम्हारा निर्णय है, प्रतिभा.  वे घर की बुजुर्ग हैं और हमारे भले  के लिए ही कुछ कहती हैं.’

‘इसी उम्र के मेरे मम्मीपापा भी हैं लेकिन वे मुझ पर कोई रोकटोक नहीं लगाते. उन्हें भी मेरे प्रैग्नैंट होने की खबर से बहुत खुशी हुई लेकिन उन्होंने अपनी मरजी मुझ पर नहीं थोपी. मुझे अपने जीवन में  रोकटोक पसंद नहीं है.’

‘मैं मम्मी के खिलाफ कुछ नहीं सुन सकता.’

‘ठीक है, तुम रहो अपनी मम्मी के साथ. मैं अपनी मम्मीपापा के पास चली जाती हूं,’ प्रतिभा गुस्से से बोली और जाने की तैयारी करने लगी. माया ने उसे  रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी.

प्रैग्नैंसी में वे  उसे कोई  तनाव नहीं देना चाहते थे. अरुण उसे वहां छोड़ कर आ गया.  उस की हालत देखते हुए उस के मम्मीपापा ने उसे यहीं रहने की सलाह दी.  अरुण को महसूस होने लगा था कि मम्मी ठीक  कहती थी. बाहरी सुंदरता चार दिन की होती है लेकिन इंसान का स्वभाव कभी नहीं बदलता. इस की प्रत्यक्ष मिसाल प्रतिभा थी.

अरुण महीने में एकदो बार उस से मिलने चला जाता. मायके में रह कर वह खुश थी. वह जितने रुपयों की मांग करती, अरुण उसे  भेज देता. निश्चित समय पर प्रतिभा ने प्रियांक को जन्म दिया था. सब खुश थे. माया पोते को देखने हाथरस चली आई थी. नामकरण की औपचारिकता के बाद अरुण बोला, ‘प्रतिभा, अब सबकुछ ठीक से निभ गया. तुम्हें अब अपने घर चलना चाहिए.’

अपने मम्मीपापा के कहने पर प्रतिभा तैयार हो गई. माया उसे अपने साथ घर ले आई थी. माया का समय अपने पोते के साथ बहुत अच्छा कट रहा था. वह उस का बहुत खयाल रखती.

प्रतिभा की जिंदगी फिर से पुराने ढर्रे पर लौट आई. उस से कुछ कहना बेकार था. माया ने अपने होंठ सिल लिए थे.  जितना उस से बन पड़ता वह  प्रियांक की खिदमत में लगी रहती. यह देख कर एक दिन अरुण  नाराजगी जताते हुए  बोला, ‘प्रतिभा, अब तुम भी मम्मी बन गई हो और दूसरे के दर्द को अच्छे से महसूस कर सकती हो. तुम्हें प्रियांक को समय देना चाहिए. दिनभर मम्मी उस की खिदमत में लगी रहती है.’

‘तुम्हें लगता है मैं अपने बच्चों के लिए कुछ नहीं करती. यह सब कहने के लिए मम्मी ने कहा तुम्हें.’

‘वे क्या कहेंगी? मुझे भी बहुतकुछ दिखाई देता है. अपनी जिम्मेदारियों को समझा करो.’

‘फिर वही बात. मैं ने तुम्हें पहले भी कहा था और अब भी कह रही हूं, मुझे अपनी जिंदगी में किसी का दखल पसंद नहीं है. तुम से  परिवार नहीं संभाला जाता, तो तुम रहो यहीं. मैं वापस अपने मायके जा रही हूं.’

इस बार अरुण ने सोच लिया था कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो कल प्रतिभा उन के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द बन सकती है. सो, उस ने उसे जाने से नहीं रोका. वह बोला, ‘तुम्हारी जो इच्छा हो वह करो, लेकिन तुम्हारी मनमरजी इस घर में नहीं चल सकती.’

प्रतिभा का मुंह गुस्से से लाल हो गया. दूसरे दिन ही वह प्रियांक को ले कर मायके चली गई. इस बार झगड़े की शुरुआत अरुण ने की थी. उस ने  सोच लिया था, वह उसे सबक सिखा कर रहेगी.

अरुण उस से मिलने गया तो किसी ने भी उस से ठीक से बात नहीं की. वह समझ गया कि  मम्मीपापा प्रतिभा को सही मानते हैं और उसे गलत.

वे बेटी को कभी कुछ न कहते. इंडिया में उन का सहारा वही थी. उन का बड़ा बेटा अमेरिका मे बस गया था और अब उन की सुध न लेता. वे किसी कीमत पर बेटी को नहीं खोना चाहते थे. उन का रवैया देख कर अरुण ने वहां जाना छोड़ दिया. माया को पोते की याद सालती रहती लेकिन वह मजबूर थी. एक ओर बेटा था, दूसरी तरफ पोता. दोनों के बीच में प्रतिभा थी जो किसी भी हालत में इस घर से तालमेल बिठाने को तैयार न थी. अरुण का रुख देख कर उस ने 4 महीने बाद  कोर्ट से नोटिस भिजवा दिया था. यह देख कर अरुण को बहुत गुस्सा आया.

‘मम्मी, आप ने उन की हिम्मत देख ली. अब हमें कोर्ट में घसीट रहे हैं.’

‘मैं क्या कहूं, बेटा? सबकुछ जान कर रिश्ता जोड़ा था. अब बहुतकुछ  भुगतना ही पड़ेगा. वह क्या चाहती है?’

‘उसे उस के और बेटे के लिए हर महीने खर्चे के लिए 50 हजार रुपए चाहिए. इतना हम कहां से देंगे?’

‘जैसे भी कर के घर की इज्जत बचा लो. बेटे का भविष्य देखना है, तो यह सब तुम्हें करना ही होगा,’ माया बोली.

अरुण ने उस की मांग स्वीकार कर ली और उसे हर महीने रुपए भेजने लगा. बेटे की खातिर अरुण कभीकभी वहां चला जाता. वह बिलकुल पापा जैसे ही दिखता था. लेकिन प्रतिभा का अहं अभी भी संतुष्ट न हुआ था. वह मांबेटे को अच्छा सबक सिखाना चाहती थी जो बारबार उस की जिंदगी में दखल दे कर उसे नर्क बनाना चाहते थे. कोर्ट से उन के लिए एक के बाद एक नोटिस आने लग गए थे.

एक बार अरुण वहां पहुंच कर बोला, ‘यह क्या है, प्रतिभा? तुम ने जो मांगा,  मैं ने तुम्हें दिया. अब क्या रह गया है?’

‘तुम्हारा जो कुछ है वह प्रियांक का भी है. उसे भी बहुतकुछ चाहिए. तुम्हारे नाम पर 2 दुकानें हैं. एक दुकान मेरे नाम कर दीजिए. उस की सारी आमदनी मुझे मिलनी चाहिए.’

‘यह तुम्हारा आखिरी फैसला है.’

‘तुम अच्छे ढंग से जानते हो, महिलाओं के हक में कितने अधिकार हैं. मैं ने अगर उन का प्रयोग कर लिया  तो तुम सब कहीं के न रहोगे.’

‘हम ने ऐसा कुछ नहीं किया है जो तुम्हें इन का इस्तेमाल करने की जरूरत पड़े.’

‘कोर्ट सुबूत मांगता है और सारे सुबूत मेरे पास हैं.’

अरुण ने उस के मुंह लगना ठीक न समझा. उसने एक दुकान उस के नाम कर दी कि शायद अब इस बला से पीछा छूट जाएगा. प्रतिभा को इतने से भी संतोष न था. वह इस चुप्पी को उन की कमजोरी समझती जा रही थी और दिनप्रतिदिन उन पर हावी होने की कोशिश करने लगी थी. लड़ाईझगड़े में 5 साल गुजर गए थे. प्रियांक बड़ा हो रहा था. कभीकभी मम्मी से पापा के बारे में पूछता तो वह कोई न कोई बहाना बना देती. बेटे की खातिर अरुण उस से संपर्क बनाए हुए था. वह उसे ऐसी जिंदगी नहीं देना चाहता था जिस के लिए उसे जिंदगीभर पछताना पड़े.
साल बीत रहे थे और प्रतिभा की मांग बढ़ती जा रही थी. उस के मम्मीपापा सबकुछ जान कर भी मुंह सिले हुए थे. वे अपनी बेटी के स्वभाव से भलीभांति परिचित थे. कुछ कहने पर वह क्याकुछ कर लेगी, कहना मुश्किल था.

प्रियांक 5 साल का हो गया था और अब स्कूल जाने लगा था. कोर्ट की परमिशन से वह उस से मिलने चला जाता. वे दोनों साथसाथ खूब मस्ती करते. वह चाहता,  पापा भी उस के साथ रहें लेकिन छोटा बच्चा इस बारे में कुछ कर नहीं सकता था. कुछ कहने पर प्रतिभा उसे चुप करा देती.

कुछ महीने पहले एक दिन स्कूल में गेट से बाहर आते हुए प्रियांक एक गाड़ी की चपेट में आ गया. उसे बहुत चोट लगी थी. उस की हालत देख कर प्रतिभा के हाथपैर फूल गए. उसे तुरंत हौस्पिटल में भरती कराया गया. उस का ब्लड ग्रुप ओ नैगेटिव और इस समय वह अस्पताल में उपलब्ध भी नहीं था. उस के दोनों पैर की हड्डियां टूट गई थीं और खून भी बहुत बह गया था.

डाक्टर बोले, ‘जल्दी कीजिए, बच्चे की हालत बहुत नाज़ुक है.’

प्रतिभा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? उस ने तुरंत अरुण को फोन किया. बेटे के ऐक्सिडैंट की खबर सुन कर वह तुरंत वहां पहुंच गया. डाक्टर ने उसे सारी बात बताई. वह बोला, ‘आप को जितना चाहिए,  मेरा खून ले लीजिए.  मेरा भी वही ब्लड ग्रुप है.’

प्रियांक की स्थिति अभी भी नाजुक बनी हुई थी. उसे होश आने में पूरे 12 घंटे लगे. लेकिन वह अभी खतरे से बाहर न था. अरुण रातभर हौस्पिटल में ही रहा. माया भी पोते से मिलने चली आई. उन का रोरो कर बुरा हाल था. एक हफ्ते बाद प्रियांक को हौस्पिटल से छुट्टी मिली. उस के पैरों पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था.  अरुण वहां से वापस जाना चाहता था. प्रियांक ने उसे रोक लिया.

‘पापा, प्लीज मत जाओ.’

इस हालत मे बेटे की भावनाओं की कद्र करते हुए वह रुक गया. मजबूरी में ही सही, उसे प्रतिभा के साथ उस के घर जाना पड़ा. इतने दिनों अरुण की भागदौड़ देख कर प्रतिभा समझ गई कि उसे बेटे से कितना प्यार है.

अरुण वहां रुकने में डर रहा था. अब जब उन के बीच इतनी दूरियां बढ़ गईं तब वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था. वह सोच रहा था, भावनाओं में बह कर  किसी क्षण वह कमजोर पड़ गया तो उस के इतने साल की मेहनत पर पानी फिर जाएगा. वह प्रतिभा के सामने अपने आत्मसम्मान  को घटा कर कोई समझौता नहीं चाहता था.

वह हर समय प्रियांक के साथ साए की तरह रहता. उसे देख कर पहली बार प्रतिभा को परिवार की अहमियत समझ में आई कि बच्चे के लिए मम्मीपापा दोनों जरूरी हैं. प्रियांक की हालत अब काफी सुधर  गई थी. यह देख कर अरुण बोला, ‘प्रियांक अब ठीक है. खतरे की कोई बात नहीं है. मुझे चलना चाहिए. तुम इस का खयाल रखना. वैसे भी, तुम ने हमारे बेटे को बहुत अच्छे से रखा है.’

‘क्या तुम कुछ दिन और नहीं रुक सकते?’ प्रतिभा बोली तो अरुण ने उसे ध्यान से देखा. इस समय उस के चेहरे पर अहं की कड़वाहट नहीं, एक पत्नी की मनुहार साफ दिखाई दे रही थी.

‘औफिस से छुट्टी लिए 2 हफ्ते हो गए हैं. मम्मी घर पर अकेली हैं. उन की भी तबीयत  ठीक नहीं रहती. मुझे चलना चाहिए.’

‘प्रियांक पूछेगा तो क्या कहूंगी? वह तुम्हें छोड़ना नहीं चाहता.’

‘छोड़ना तो मैं भी अपनी पत्नी और बेटे को नहीं चाहता था. पर तुम ने परिस्थितियां ऐसी बनाईं कि मैं मजबूर हो गया.’

‘तुम चाहो तो हम अब भी साथ रह सकते हैं. इतना सबकुछ होने के बाद क्या तुम मुझे माफ कर दोगे?’

‘प्रतिभा, बेटे की खातिर मैं सबकुछ करने को तैयार हूं बशर्ते कि तुम मेरे परिवार को अपना लो. वहां  मेरे और मम्मी  के अलावा कोई नहीं है. वह घर कल भी  तुम्हारा था और आज भी तुम्हारा है. फैसला तुम्हें करना है, तुम प्रियांक को कैसी जिंदगी देना चाहती हो,’ अरुण बोला और प्रियांक के उठने से पहले वहां से बाहर निकल गया.

वह उस का रोना  नहीं देख सकता था. प्रतिभा बहुत देर तक सोचती रही. उस की बात अपनी जगह सही थी. केवल अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए वह किस हद तक गिर गई थी. आज उसे इस बात का बड़ा पछतावा हो रहा था. उस ने वापस ससुराल जाने का मन बना लिया.

प्रियांक के पैर से प्लास्टर हटते ही वह बोली, ‘मम्मी, मैं अरुण के पास जाना चाहती हूं.’

वे बोलीं, ‘एक बार फिर से सोच ले, प्रतिभा. जो कदम उठाने जा रही हो उस के दुष्परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं.’

‘मम्मी, प्लीज आज मुझे मत रोकिए. अगर आप ने मुझे पहले समझाया होता तो  यह नौबत न आती.’

‘हम भी तुम्हारे स्वभाव से डरते थे, प्रतिभा. अगर तुम यहां से भी जाने का निश्चय कर लेती तो फिर कहां जाती? ऐसी हालत में कोई गलत कदम उठा लेती तो क्या होता. हम हर हाल में तुम्हें खुश देखना चाहते थे. इस के लिए  हम से जो बन पड़ा, हम ने वही किया. तुम्हारी खातिर हम ने भी अपने होंठ सिल लिए थे,’ मम्मी बोलीं.

उन्हें खुशी थी  आज प्रतिभा किसी के दबाव में नहीं, अपनी इच्छा से यह  घर छोड़ कर वापस अपने पति के पास जा रही थी. प्रियांक को पापा की जरूरत थी, जिसे प्रतिभा कभी भी पूरा नहीं कर सकती थी.

अचानक उसे आया देख कर माया चौंक गई. अरुण को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. पापा को देखते ही प्रियांक अरुण से लिपट गया. उस की शारीरिक कमजोरी अब काफी हद तक ठीक हो गई थी’ थोड़ा चलने में दिक्कत हो रही थी. वह बोली, ‘मम्मीजी, अपने गरूर में मैं ने आप को कितना परेशान किया है, कह नहीं सकती.  क्या मुझे इस घर में जगह मिल सकती है?’

‘प्रतिभा, यह घर  तुम्हारा है. मुझे खुशी है कि आज तुम किसी के दबाव में नहीं, अपनी इच्छा से लौट कर आई हो.  घर की अहमियत क्या होती है, लगता है इस का एहसास तुम्हें हो गया है,’ माया बोली. प्रतिभा उन के गले लग कर रोने लगी. माया ने किसी तरीके से उन्हें चुप करा कर कमरे मे भेज दिया. वहां प्रियांक पापा के साथ खेल रहा था. कमरे में उन के कई  फोटो लगे हुए थे जिन्हें देख कर प्रतिभा भावुक हो गई.  उस ने बोलने के लिए जैसे ही मुंह खोलना चाहा, अरुण ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया.

‘अब कुछ मत कहो, प्रतिभा. एक बुरा समय था जो गुजर गया. हमें आने वाले कल का स्वागत करना चाहिए.’

‘सच में तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है. मेरा ही मन संकुचित था जो अपने से ऊपर कुछ न सोच सकी.’ इतना कहकर वह अरुण के गले लग गई. सबकुछ भुला कर वे एक नई जिंदगी जीने के लिए आगे बढ़ गए थे.

आज अरुण उन्हें उन सब जगहों पर ले कर जा रहा था जहां से उस की पुरानी यादें जुड़ी हुई थीं. प्रियांक की खुशी देखते ही बनती थी. वह मम्मीपापा का साथ पा कर अपने को धन्य समझ रहा था.

Love Story : अधूरी कहानी – एक हादसे से कैसे बदली राघव की जिंदगी ?

Love Story : बात उन दिनों की है, जब राघव 12वीं जमात पास कर के कालेज में पढ़ने गया था. माली हालत अच्छी न होने की वजह से उसे पापा के पास बेंगलुरु जाना पड़ा और इसी बीच वह वहीं काम भी करने लगा. समय मिलते ही राघव अपने सारे दोस्तों को मैसेज करता था. वह शायरी का तो शौकीन था ही, हर रोज नईनई शायरी दोस्तों को भेजता और बदले में वे तारीफ भेजते. वे ज्यादातर बातें मैसेज के जरीए ही करते थे. दोस्तों के अलावा राघव अपनी चचेरी भाभी सोनी को भी मैसेज करता था. वे खड़गपुर में राघव के भाई के साथ रहती थीं. राघव और सोनी दोनों जब भी बातें करते तो ऐसा नहीं लगता था कि कोई देवरभाभी बातें कर रहे हैं. ऐसा लगता था, मानो 2 जिगरी दोस्त बातें कर रहे हों.

एक दिन अचानक राघव के फोन पर एक नंबर से एक प्यारा सा मैसेज आया. वह पढ़ कर बहुत खुश हो गया. लेकिन अगले ही पल वह हैरान रह गया, क्योंकि जब उस नए नंबर पर उस ने फोन किया, तो फोन का जवाब नहीं मिल सका.

राघव ने उसी नंबर पर मैसेज किया, ‘कौन हो तुम?’

उधर से जवाब आया, ‘आप की अपनी दोस्त.’

राघव ने नाम पूछा, तो उस ने बताया नहीं. ‘फिर कभी…’ का मैसेज लिख दिया.

राघव ने सोचा, ‘शायद मेरा ही कोई दोस्त मुझे नए फोन नंबर से परेशान कर रहा है.’

रात को राघव ने उस नंबर पर फोन किया. एक लड़की ने फोन उठाया… और जैसे ही वह ‘हैलो’ बोली, राघव के रोंगटे खड़े हो गए.

राघव ने हकलाते हुए पूछा, ‘‘कौन हो तुम? मेरा नंबर तुम्हें किस ने दिया? तुम कहां से बोल रही हो?’’

उस लड़की ने बताया, ‘मेरा नाम पूजा है?’

इस के बाद उस ने राघव से कहा कि वह उसे पहले से जानती है. उस के बारे में बहुत सारी बातें भी बताईं. वह देखने में कैसा है, उस का कद कितना है वगैरह.

राघव ने पूछा, ‘‘मुझे कहां देखा आप ने?’’

उस लड़की ने कहा, ‘4 महीने पहले मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर देखा था, तभी से नंबर ढूंढ़ रही हूं.’

राघव चौंक गया, क्योंकि ठीक 4 महीने पहले वह अपनी मौसी को छोड़ने वहां गया था. वह खयालीपुलाव पकाते हुए सोचने लगा कि एक अनजान लड़की ने अनजान जगह पर उसे देखा और तब से उस का फोन नंबर ढूंढ़ रही है.

पहले तो वह अनजान था, पर अब राघव दोस्ती के नाते उस से बातें करने लगा. कुछ ही दिन हुए थे राघव और उस लड़की की दोस्ती को कि इसी बीच उस का एक मैसेज आया, जिस में लिखा था, ‘मुझे माफ कर देना. मैं नहीं चाहती कि हमारी दोस्ती की शुरुआत झूठ से हो. सच तो यह है कि मैं ने आप को कभी देखा ही नहीं. बस, सोनी भाभी के फोन पर आप का मैसेज पढ़ा, जो मुझे बहुत पसंद आया. इस के बाद भाभी से आप का नंबर ले कर मैसेज कर दिया.

‘मैं ने सोचा कि अगर आप को पहले ही सब बता देती, तो आप के बारे में इतना कुछ जानने का मौका न मिलता. इस झूठ के लिए मुझे माफ कर देना और मेरी दोस्ती को स्वीकार करना.’

यह मैसेज पढ़ कर राघव को थोड़ा गुस्सा तो आया, पर दोस्तों से इस बारे में जब उस ने बात की, तो वे भी उस की तारीफ के पुल बांधने लगे. उसे सलाह दी कि लड़की अच्छी है, तभी तो उस ने सब सचसच बता दिया. और तो और वह दोस्ती भी करना चाहती है. ऐसे सच्चे दोस्त कम ही मिलते हैं. उसे फोन कर और दोस्ती की नई शुरुआत कर. फिर क्या था, राघव का दिल बागबाग हो उठा.

अगली सुबह राघव ने मैसेज किया, ‘गुड मौर्निंग दोस्त.’

उधर से भी मैसेज आया, जिस में पूछा गया था, ‘मुझे माफ तो कर दिया न? फिर से सौरी ऐंड थैंक्यू… दोस्ती को आगे बढ़ाने के लिए.’

राघव ने भी फिल्मी अंदाज में लिख भेजा, ‘दोस्ती में नो थैंक्स, नो सौरी.’

उन दोनों की दोस्ती परवान चढ़ती गई. पहली बार घर जाते समय राघव उस से खड़गपुर रेलवे स्टेशन पर मिला. ट्रेन वहां ज्यादा देर नहीं रुकी, इसलिए बातें भी न हो सकीं. सिर्फ ‘हायहैलो’ ही हो पाई.

उस समय छठ पूजा की तैयारियां चल रही थीं. राघव घर पर ही था. सोनी भाभी हर साल छठ पूजा के समय गांव आ जातीं. इस बार भी वे आईं, पर अकेली नहीं, पूजा भी साथ थी.

राघव इतना खुश था कि बयां नहीं कर सकता था. उस ने पूजा को अपनी मां और बहनों से मिलवाया. वह पूरा दिन उसी के साथ रहा.

सोनी भाभी कहां चूकने वाली थीं. वे भी ताने कसतीं, ‘‘क्यों देवरजी, क्या इसे यहीं छोड़ दूं हमेशा के लिए?’’

भाभी की ऐसी बातें सुन कर राघव के मन में लड्डू फूटने लगते. काश, ऐसा ही होता.

पूजा थी ही ऐसी. गोरा रंग, लंबी नाक, लंबा कद, पतली कमर, मानो कोई अप्सरा हो. राघव मन ही मन उसे चाहने लगा था. उस के फोन की बैटरी और पैसे खत्म हो जाते, पर बातें नहीं. हर साल छठ पूजा पर पूजा भी सोनी भाभी के साथ उस से मिलने चली आती, लेकिन राघव की कभी हिम्मत नहीं हुई कि वह भी कभी उस के घर जाए. राघव जब भी गांव आता, उस से स्टेशन पर ही मिल कर चला जाता. प्यार वह भी उस से करती थी, पर बोलती नहीं थी. राघव उस से प्यार का इजहार करवा कर ही रहा. अब दोस्ती भूल कर प्यारमुहब्बत की बातें होने लगीं. बात शादी तक पहुंच गई. राघव ने हिम्मत कर के पड़ोसियों के जरीए अपने प्यार और शादी की बात मां तक पहुंचा दी. मां ने इस रिश्ते को एक बार में ही खारिज कर दिया. इस की वजह यह थी कि लड़की उन की बिरादरी की नहीं थी. पढ़ीलिखी है. शहर की रहने वाली है. गांव के बारे में क्या जानती है  मां के खयाल से शायद पूजा घरपरिवार न संभाल सके. उन को ऐसी लड़की चाहिए थी, जो घर को संभाल सके. घर तो पूजा संभाल ही लेती, पर मां को कौन समझाए. पुराने खयालों वाली मां जो एक बार बोल देती हैं, वही राघव के लिए पत्थर की लकीर हो जाता था. समय का पहिया अपनी रफ्तार से चलता रहा. राघव के दोस्तों, पड़ोसियों सभी ने उसे सलाह दी कि वह पूजा को भगा ले जाए. मां कुछ दिन नाराज रहेंगी, पर समय के साथ सब ठीक हो जाएगा.

राघव आगेपीछे की सोचने लगा, ‘जैसे हर मां के सपने होते हैं, वैसे ही मेरी मां के भी सपने होंगे. वे सोचती होंगी कि उन के बेटे की शादी होगी. बैंडबाजा बजेगा, वे खुशी के मारे नाचेंगी…’

राघव ने भी सोच लिया था कि पूरे परिवार के सामने उस की शादी होगी. वह अपनी मां के सपनों को नहीं तोड़ सकता. एक दिन राघव ने पूजा को अपने मन की बात बता दी. वह सुन कर रोने लगी. रोया तो वह भी था.

कुछ सोच कर पूजा ने कहा, ‘‘आप की शादी किसी से भी हो, पर आप हमेशा खुश रहना. मां का दिल कभी मत तोड़ना. आप वहीं शादी कीजिएगा, जहां आप की मां चाहती हैं. जब तक हम दोनों में से किसी एक की शादी नहीं होती, तब तक हम दोस्ती के नाते बातें तो कर ही सकते हैं.’’ फिर पूजा छठ पूजा पर गांव नहीं आई. राघव भी उदास रहने लगा. उन दोनों ने क्याक्या सपने देखे थे कि शादी होगी, शादी के बाद घर पर ही वह कोई काम करेगा, पूजा बच्चों को ट्यूशन पढ़ाएगी और वह दुकान चलाएगा. कहते हैं न कि आदमी जो सोचता है, वह हमेशा पूरा होता है, बल्कि सच में सोचा हुआ काम कभी पूरा नहीं होता. जो राघव ने सोचा था, वह सब तो अधूरा ही रह गया.

Romantic Story : प्यार असफल है तुम नहीं

Romantic Story : रक्षित अपने असफल प्यार के कारण डिप्रैशन का शिकार हो गया, पर कैसे उस के दोस्त काव्य ने उसे गहरे भंवर से निकाला? एक हार्ट केयर हौस्पिटल के शुभारंभ का आमंत्रण कार्ड कोरियर से आया था. मानसी ने पढ़ कर उसे काव्य के हाथ में दे दिया. काव्य ने उसे पढना शुरू किया और अतीत में खोता चला गया… उस ने रक्षित का दरवाजा खटखटाया. वह उस का बचपन का दोस्त था. बाद में दोनों कालेज अलगअलग होने के कारण बहुत ही मुश्किल से मिलते थे. काव्य इंजीनियरिंग कर रहा था और रक्षित डाक्टरी की पढ़ाई.

आज काव्य अपने मामा के यहां शादी में अहमदाबाद आया हुआ था, तो सोचा कि अपने खास दोस्त रक्षित से मिल लूं, क्योंकि शादी का फंक्शन शाम को होना था. अभी दोपहर के 3-4 घंटे दोस्त के साथ गुजार लूं. जीभर कर मस्ती करेंगे और ढेर सारी बातें करेंगे. वह रक्षित को सरप्राइज देना चाहता था. उस के पास रक्षित का पता था क्योंकि अभी उस ने पिछले महीने ही इसी पते पर रक्षित के बर्थडे पर गिफ्ट भेजा था. दरवाजा दो मिनट बाद खुला, उसे आश्चर्य हुआ पर उस से ज्यादा आश्चर्य रक्षित को देख कर हुआ. रक्षित की दाढ़ी बेतरतीब व बढ़ी हुई थी. आंखें धंसी हुई थीं जैसे काफी दिनों से सोया न हो. कपड़े जैसे 2-3 दिन से बदले न हों. मतलब, वह नहाया भी नहीं था. उस के शरीर से हलकीहलकी बदबू आ रही थी, फिर भी काव्य दोस्त से मिलने की खुशी में उस से लिपट गया. पर सामने से कोई खास उत्साह नहीं आया.

क्या बात है भाई, तबीयत तो ठीक है न,’ उसे आश्चर्य हुआ रक्षित के व्यवहार से, क्योंकि रक्षित हमेशा काव्य को देखते ही चिपक जाता था. ‘अरे काव्य, तुम यहां, चलो अंदर आओ,’ उस ने जैसे अनमने भाव से कहा. स्टूडैंट रूम की हालत वैसे ही हमेशा खराब ही होती है पर रक्षित के रूम की हालत देख कर लगता था जैसे एक साल से कमरा बंद हो. सफाई हुए महीनों हो गए हों. पूरे कमरे में जगहजगह जाले थे. किताबों पर मिट्टी जमा थी. किताबें अस्तव्यस्त यहांवहां बिखरी हुई थीं. काव्य ने पुराना कपड़ा ले कर कुरसी साफ की और बैठा. उस से पहले ही रक्षित पलंग पर बैठ चुका था जैसे थक गया हो. काव्य अब आश्चर्य से ज्यादा दुखी व स्तब्ध था. उसे चिंता हुई कि दोस्त को क्या हो गया है? ‘‘तबीयत ठीक है न? यह क्या हालत बना रखी है खुद की व कमरे की? 2-3 बार पूछने पर उस ने जवाब नहीं दिया, तो काव्य ने कंधों को पकड़ कर झिंझड़ कर पूछा तो रक्षित की आंखों से आंसू बहने लगे. कुछ कहने की जगह वह काव्य से चिपक गया, तकलीफ में जैसे बच्चा अपनी मां से चिपकता है.

वह फफकफफक कर रोने लगा. काव्य को कुछ भी समझ न आया. कुछ देर तक रोने के बाद वह इतना ही बोला, ‘भाई, मैं उस के बिना जी नहीं सकता,’ उस ने सुबकते हुए कहा. ‘किस के बिना जी नहीं सकता? तू किस की बात कर रहा है?’ दोनों हाथ पकड़ कर काव्य ने प्यार से पूछा. ‘आम्या की बात कर रहा हूं.’ ‘ओह तो प्यार का मामला है. मतलब गंभीर. यह उम्र ही ऐसी है. जब काव्य कालेज जा रहा था तब उस के गंभीर पापा ने उसे एकांत में पहली बार अपने पास बिठा कर इस बारे में विस्तार से बात की. अपने पापा को इस विषय पर बात करते हुए देख कर काव्य को घोर आश्चर्य हुआ था. पर जब पापा ने पूरी बात समझई व बताई, तब उसे अपने पापा पर नाज हुआ कि उन्होंने उसे कुएं में गिरने से पहले ही बचा लिया. ‘ओह,’ काव्य ने अफसोसजनक स्वर में कहा. ‘रक्षित, तू एक काम कर. पहले नहाधो और शेविंग कर के फ्रैश हो जा. तब तक मैं पूरे कमरे की सफाई करता हूं. फिर मैं तेरी पूरी बात सुनता हूं और समझता हूं,’ काव्य ने अपने दोस्त को अपनेपन से कहा. काव्य सफाईपसंद व अनुशासित विद्यार्थी की तरह था. रो लेने के कारण उस का मन हलका हो गया था.

‘अरे काव्य, सफाई मैं खुद ही कर दूंगा. तू तो मेहमान है.’ काव्य को ऐसा बोलते हुए रक्षित हड़बड़ा गया. ‘अरे भाई, पहले मैं तेरा दोस्त हूं. प्लीज, दोस्त की बात मान ले.’ अब दोस्त इतना प्यार और अपनेपन से कहे तो कौन दोस्त की बात न माने. काव्य ने समझ कर उसे अटैच्ड बाथरूम में भेज दिया, क्योंकि ऐसे माहौल में न तो वह ढंग से बता सकता है और न वह सुन सकता है. पहले वह फ्रैश हो जाए तो ढंग से कहेगा. काव्य ने किताब और किताबों की शैल्फ से शुरुआत की और आधे घंटे में एक महीने का कचरा साफ कर लिया. काव्य होस्टल में सब से साफ और व्यवस्थित कमरा रखने के लिए प्रसिद्ध था. आधे घंटे बाद जब रक्षित बाथरुम से निकला तो दोनों ही आश्चर्य में थे. रक्षित एकदम साफ और व्यवस्थित कक्ष देख कर और काव्य, रक्षित को क्लीन शेव्ड व वैलड्रैस्ड देख कर. ‘वाऊ, तुम ने इतनी देर में कमरे को होस्टल के कमरे की जगह होटल का कमरा बना दिया भाई. तेरी सफाई की आदत होस्टल में जाने के बाद भी नहीं बदली,’ रक्षित सफाई से बहुत प्रभावित हो कर बोला. ‘और तेरी क्लीन शेव्ड चेहरे में चांद जैसे दिखने की,’ चेहरे पर हाथ फेरते हुए काव्य बोला. अब रक्षित काफी रिलैक्स था.

‘भैया चाय…’ दरवाजे पर चाय वाला चाय के साथ था. ‘अरे वाह, क्या कमरा साफ किया है आप ने,’ कमरे की चारों तरफ नजर घुमाते हुए छोटू बोला तो रक्षित झेंप गया. वह रोज सुबहसुबह चाय ले कर आता है, इसलिए उसे कमरे की हालत पता थी. ‘अरे, यह मेरे दोस्त का कमाल है,’ काव्य के कार्य की तारीफ करते हुए रक्षित मुसकराते हुए बोला, ‘अरे, तुम्हें चाय लाने को किस ने बोला?’ ‘मैं ने बोला. दीवार पर चाय वाले का फोन नंबर था.’ ‘थैंक्यू काव्य. चाय पीने की बहुत इच्छा थी,’ रक्षित ने चाय का एक गिलास काव्य को देते हुए कहा. दोनों चुपचाप गरमागरम चाय पी रहे थे. चाय खत्म होने के बाद काव्य बोला, ‘अब बता, क्या बात है, कौन है आम्या और पूरा माजरा क्या है?’ आम्या की बात सुन कर रक्षित फिर से मायूस हो गया, फिर से उस के चेहरे पर मायूसी आ गई. हाथ कुरसी के हत्थे से भिंच गए. ‘मैं आम्या से लगभग एक साल पहले मिला था. वह मेरी क्लासमेट लावण्या की मित्र थी. लावण्या की बर्थडे पार्टी में हम पहली बार मिले थे. हमारी मुलाकात जल्दी ही प्रेम में बदल गई. वह एमबीए कर रही थी और बहुत ही खूबसूरत थी. मैं सोच भी नहीं सकता कि कालेज में मेरी इतनी सारी लड़कियों से दोस्ती थी पर क्यों मुझे आम्या ही पसंद आई. मुझे उस से प्यार हो गया. शायद वह समय का खेल था. हम लगभग रोज ही मिलते थे. मेरी फाइनल एमबीबीएस की परीक्षा के दौरान भी मुझ में उस की दीवानगी छाई हुई थी. वह भी मेरे प्यार में डूबी हुई थी. ‘मैं अभी तक प्यारमोहब्बत को फिल्मों व कहानियों में गढ़ी गई फंतासी समझता था.

जिसे काल्पनिकता दे कर लेखक बढ़ाचढ़ा कर पेश करते हैं. पर अब मेरी हालत भी वैसे ही हो गई, रांझ व मजनूं जैसी. मैं ने तो अपना पूरा जीवन उस के साथ बिताने का मन ही मन फैसला कर लिया था और आम्या की ओर से भी यही समझता था. मुझ में भी कुछ कमी नहीं थी, मुझ में एक परफैक्ट शादी के लिए पसंद करने के लिए सारे गुण थे.’ ‘तो फिर क्या हुआ दोस्त?’ काव्य ने उत्सुकता से पूछा. ‘मेरी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी हो गई थी और मैं हृदयरोग विशेषज्ञ बनने के लिए आगे की तैयारी के लिए पढ़ाई कर रहा था. एक दिन उस ने मुझ से कहा, ‘सुनो, पापा तुम से मिलना चाहते हैं.’ वह खुश और उत्साहित थी. ‘क्यों?’ मुझे जिज्ञासा हुई. ‘हम दोनों की शादी के सिलसिले में,’ उस ने जैसे रहस्य खोलते हुए कहा. ‘शादी? वह भी इतनी जल्दी’ मैं ने हैरानगी से कहा. ‘मैं आम्या को चाहता था पर अभी शादी के लिए विचार भी नहीं किया था. ‘हां, मेरे दादाजी की जिद है कि मेरी व मेरी छोटी बहन की शादी जल्दी से करें,’ आम्या ने शादी की जल्दबाजी का कारण बताया और जैसी शांति से बता रही थी उस से तो ऐसा लगा कि उसे भी जल्द शादी होने में आपत्ति नहीं है.

‘अभी इतनी जल्दी यह संभव नहीं है. मेरा सपना हृदयरोग विशेषज्ञ बनने का है और मैं अपना सारा ध्यान अभी पढ़ाई में ही लगाना चाहता हूं,’ मैं ने उसे अपने सपने के बारे में और अभी शादी नहीं कर सकता हूं, यह समझया. ‘उस के लिए 2-3 साल और रुक जाओ. फिर हम दोनों जिंदगीभर एकदूसरे के हो जांएगे,’ मैं ने उसे समझते हुए कहा. ‘नहीं रक्षित, यह संभव नहीं है. मेरे पिता इतने साल तक रुक नहीं सकते. मेरे पीछे मेरी बहन का भी भविष्य है,’ जैसे उस ने जल्दी शादी करने का फैसला ले लिया हो. ‘मैं ने उसे बहुत समझया. पर उस ने अपने पिता के पसंद किए हुए एनआरआई अमेरिकी से शादी कर ली और पिछले महीने अमेरिका चली गई और पीछे छोड़ गई अपनी यादें और मेरा अकेलापन. मैं सोच नहीं सकता कि आम्या मुझे छोड़ देगी. मैं दुखी हूं कि मेरा प्यार छिन गया. मैं ने उसे मरने की हद तक चाहा. काव्य, मेरा प्यार असफल हो गया. मझ में कुछ भी कमी नहीं थी. फिर भी क्यों मेरे साथ समय ने ऐसा खेल खेला.’ रक्षित फिर से रोने लगा और रोते हुए बोला, ‘बस, तभी से मुझे न भूख लगती है न प्यास. एक महीने से मैं ने एक अक्षर की भी पढ़ाई नहीं की है. मेरा अभी विशेषज्ञ प्रवेश परीक्षा का अगले महीने ही एग्जाम है. यों समझ कि मैं देवदास बन गया हूं.’ वह फिर से काव्य के कंधे पर सिर रख कर बच्चों जैसा रोने लगा. ‘देखो रक्षित, इस उम्र में प्यार करना गलत नहीं है. पर प्यार में टूट जाना गलत है.

तुम्हारा जिंदगी का मकसद हमेशा ही एक अच्छा डाक्टर बनना था न कि प्रेमी. देखो, तुम ने कितना इंतजार किया. बचपन में तुम्हारे दोस्त खेलते थे, तुम खेले नहीं. तुम्हारे दोस्त फिल्म देखने जाते, तो तुम फिल्म नहीं देखते थे. तुम्हारा भी मन करता था अपने दोस्तों के साथ गपशप करने का और यहां तक कि रक्षित, तुम अपनी बहन की शादी में भी बरातियों की तरह शाम को पहुंच पाए थे, क्योंकि तुम्हारी पीएमटी परीक्षा थी. वे सारी बातें अपने प्यार में भूल गए. ‘आम्या तो चली गई और फिर कभी वापस भी नहीं आएगी तुम्हारी जिंदगी में. और यदि आज तुम्हें आम्या ऐसी हालत में देखेगी तो तुम पर उसे प्यार नहीं आएगा, बल्कि नफरत करेगी और सोचेगी कि अच्छा हुआ कि मैं इस व्यक्ति से बच गई जो एक असफलता के कारण, जिंदगी से निराश, हताश और उदास हो गया और अपना जिंदगी का सपना ही भूल गया. क्या वह ऐसे व्यक्ति से शादी करती? ‘सोचो रक्षित, एक पल के लिए भी. एक दिल टूटने के कारण क्या तुम भविष्य में लाखों दिलों को टूटने दोगे, इलाज करने के लिए वंचित रखोगे. इस मैडिकल कालेज में आने, इस अनजाने शहर में आने, अपना घर छोड़ने का मकसद एक लड़की का प्यार पाना था या फिर बहुत सफल व प्रसिद्ध हृदयरोग विशेषज्ञ बनने का था? तुम्हें वह सपना पूरा करना है जो यहां आने से पहले तुम ने देखा था. ‘

रक्षित बता दो दुनिया को और अपनेआप को भी कि तुम्हारा प्यार असफल हुआ है, पर तुम नहीं और न ही तुम्हारा सपना असफल हुआ है. और यह बात तुम्हें खुद ही साबित करनी होगी,’ काव्य ने उसे समझया. ‘तुम सही कहते हो काव्य, मेरा लक्ष्य, मेरा सपना, सफल प्रेमी बनने का नहीं, एक अच्छा डाक्टर बनने का है. थैंक्यू तुम्हें दोस्त, यह सब मुझे सही समय पर याद दिलाने के लिए,’ काव्य के गले लग कर, दृढ़ता व विश्वास से रक्षित बोला. ‘‘कार्ड हाथ में ले कर कब से कहां खो गए हो?’’ मानसी ने अपने पति काव्य को झिंझड़ कर पूछा, ‘‘अरे, कब तक सोचते रहोगे. कुछ तैयारी भी करोगे? कल ही रक्षित भैया के हार्ट केयर हौस्पिटल के उद्घाटन में जोधपुर जाना है,’’ मानसी ने उस से कहा तो वह मुसकरा दिया.

Crime : शर्मसार करते नाबालिग, सख्त हो कानून

Crime : जुल्म की दुनिया में आएदिन नाबालिगों का दबदबा बढ़ता ही जा रहा है, फिर चाहे बात लूटपाट, मर्डर या रेप केस की हो. हाल ही में झारखंड के खूंटी, जिला रनिया थाना क्षेत्र में 5 नाबालिग आदिवासी लड़कियों से 18 नाबालिग लड़कों ने सामूहिक रेप किया.

ये सभी लड़कियां अपने रिश्तेदार के घर शादी से पहले होने वाली रस्म ‘लोटा पानी’ कार्यक्रम में शामिल होने आई थीं, जो रात को अपने घर वापस जा रही थीं. तभी ये 18 लड़के इन का पीछा करते हुए आए और इन्हें अपनी हवस का शिकार बना लिया. किसी तरह एक लड़की वहां से बच निकली. उस ने गांव पहुंच कर वारदात की सूचना गांव वालों को दी. तब कुछ लोग लड़की के साथ आए और बाकी 4 लड़कियों को बचाया.

सभी पीड़िता लड़कियों का मैडिकल चैकअप कराया गया, जिस में रेप की पुष्टि हो गई. मामले की जानकारी लेने के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकार की सचिव राजश्री अपर्णा कुजूर तोरपा पहुंचीं. सभी आरोपियों को विधिसम्मत बालसुधार गृह भेज दिया गया है.

हैरान कर देने की बात यह है कि हमारे देश में नाबालिगों द्वारा कितने भी जघन्य अपराध क्यों न हों, सजा के नाम पर 3 साल के लिए बाल सुधार गृह ही भेजा जाता है और अगर मामला ज्यादा गंभीर है, तो जुवैनाइल कोर्ट में उस नाबालिग को ‘बालिग’ मान कर मुकदमा चलाया जाता है और आईपीसी के तहत सजा सुनाई जाती है.

21 साल की उम्र के बाद नाबालिग को जेल में डाला जाता है, लेकिन किसी भी हालात में मौत की सजा या उम्रकैद की सजा नहीं सुनाई जा सकती, जिस का कई बार ये नाबालिग फायदा उठाते हैं और आपराधिक दुनिया में अपना दबदबा बढ़ाते जाते हैं.

रिकौर्ड्स के मुताबिक, 16 से 18 साल के नाबालिगों में आपराधिक सोच बीते 5 सालों में 43 फीसदी ज्यादा बढ़ी है, जिस के लिए जरूरी है कि कानून में संशोधन किया जाए और नाबालिगों की उम्र 18 साल से घटा कर 16 साल कर दी जाए.

वहीं, ऐसे लड़कों व इन के परिवारों का समाज से बौयकौट कर दिया जाए, क्योंकि ज्यादातर ऐसे लड़के बाल सुधार गृह से बाहर आते ही अपने ऐशोआराम की जिंदगी जीते हैं, लेकिन पीड़िता लड़की व उस के परिवार को सारी जिंदगी नफरत की नजरों से देखा जाता है. जिस वजह से ऐसे परिवारों का समाज बहिष्कार तक कर देता है. कई बार तो दुनिया के तानों से छुटकारा पाने के लिए पीड़िता खुदकुशी तक कर लेती है और वे मनचले लड़के बेखौफ किसी और को अपनी हवस का शिकार बनाने का रास्ता खोजते रहते हैं.

New webseries : दुपहिया सीरिज में गांववालों की गंभीर समस्‍या को हास्‍य अंदाज में परोसने की कोशिश

Dupahiya : रेटिंग – तीन स्टार

भारत गांवों का देश है. इस के बावजूद भारतीय सिनेमा से गांव व ग्रामीण संस्कृति का सफाया हो गया है. ‘लापता लेडीज’ जैसी कुछ फिल्मों में जब ग्रामीण परिवेश की कथा पिरोई जाती है, तो इन फिल्मों के गांव अंगरेजीदां सोच के अनुरूप गांव नजर आते हैं, जिन का देश के गांवों से दूर दूर तक कोई वास्ता नजर नहीं आता लेकिन सात मार्च से अमेजन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही वेब सीरीज ‘दुपहिया’ में सही मायनों में भारतीय ग्रामीण परिवेश, रहनसहन, ग्रामीण सोच स्पष्ट रूप से नजर आती है, जबकि इस वेब सीरीज की निर्देशक पश्चिम बंगाल में पलीबढ़ी और न्यूयार्क, अमरीका से फिल्म विधा की शिक्षा ग्रहण करने वाली सोनम नायर है.

वर्तमान समय में गांवों के अंदर मुख्य सड़कें ईंट की या जिसे खड़ंजा कहते हैं, उस की बन गई है, तो इस फिल्म में उसी तरह का गांव है. गांव का अपना बाजार भी है. पंचायत भी है. इस सीरीज में दहेज की प्रथा, शहर में नौकरी के नाम पर दहेज की रकम का बढ़ना, शरीर का सांवला रंग, आपसी भाईचारा, एकता, गांव की छवि के खिलाफ न जाना वगैरह बहुत कुछ पिरोया गया है. पर कहीं कोई भाषणबाजी नहीं है. हल्केफुल्के हास्य व व्यंग के साथ 35 से 40 मिनट की अवधि वाले 9 एपीसोड में पूरी कहनी समेटी गई है.

इस सीरीज का अंत जिस मोड़ पर किया गया है, उस से यह साफ संकेत मिलता है कि इस का दूसरा भाग भी आएगा. सोनम नायर ने वेब सीरीज ‘दुपहिया’ में जिस तरह से गांव के परिवेश, रहनसहन, किरदारों की सोच, उन के पहनावे आदि को पेश किया है, उसे देख कर लगता है कि सोनम नायर अभी कल ही बिहार के किसी गांव से लौटी हैं. इस सीरीज की सब से बड़ी खासियत यह है कि इस में बंदूक, गोली, कट्टा यानी कि हिंसा, मारपीट और सैक्स का घोर अभाव है. यह पूरी तरह से पारिवारिक मंनोरंजक व विचारोत्तेजक सीरीज है.

सीरीज की कहानी के केंद्र में बिहार का एक काल्पनिक धड़कपुर गांव है, जहां की वार्ड लीडर पुष्पलता यादव (रेणुका शहाणे) का गांव के जीवन की सबसे अच्छी बात क्या है? के सवाल पर दिया गया जवाब है, ‘‘शहरों में अपना दुख अपना दुख, अपनी खुशी अपनी खुशी, गांव में अपना दुख, सब का दुख, अपनी खुशी सब की खुशी.’’ यह ग्रामीण भारत की सही तस्वीर है, जिसे इस के लेखकद्वय चिराग गर्ग और अविनाश द्विवेदी ने बाखूबी अपने लेखन से रेखांकित किया है.

हां! लेखकों की इस सोच पर आप को हंसी आ सकती है कि बिहार में कोई गांव है, जो 25 वर्ष से ‘अपराध मुक्त’ है. जी हां! दुपहिया की कहानी के केंद्र में 25 वर्ष से ‘अपराध मुक्त’ बिहार का एक काल्पनिक धड़कपुर गांव है, जहां लोगों को साफ पानी भी पीने को नहीं मिल रहा है. यहां की पंचायत की नेता पुष्पलता यादव (रेणुका शहाणे) है, जिन्हें अब सरपंच (योगेंद्र टिक्कू) ने अगली बार सरपंच का उम्मीदवार बनाने के अलावा गांव को बोरवेल लगाने की राशि दने का वादा किया जाता है. पर अहम सवाल है कि सरपंच महोदय अपनी कुर्सी आसानी से छोड़ेंगें? उधर गांव के स्कूल के अस्थाई प्रिंसिपल बनवारी झा (गजराज राव) स्थाई प्रिंसिपल बनने के लिए प्रयासरत है. तो वहीं वह अपनी 27 वर्षीय बेटी रोशनी (शिवानी रघुवंशी) की शादी प्रसाद त्रिपाठी (आलोक कपूर) के बेटे कुबेर त्रिपाठी (अविनाश द्विवेदी) से तय करते हैं.

वास्तव में रोशनी गांव की जिंदगी से हट कर शहर में जिंदगी बिताना चाहती है. इसलिए जब लड़का अपने परिवार के साथ उसे देखने उन के घर आता है तो रोशनी बड़े भाई दुर्लभ की बजाय शहर में रह रहे छोटे भाई कुबेर संग विवाह करने की बात करती है. अब इस में लड़के के परिवार को भी कोई दिक्कत नहीं होती अगर लड़की के परिवार वाले उसे 3 लाख की रौयल एनफील्ड और पेट्रोल खर्च के लिए 2 लाख और देने का वादा करते. रोशनी अपने पिता पर दबाव डालती है कि वह शहर में रहने के लिए दहेज की मांग पूरी करे. पिता हार मान लेते हैं और आखिरकार शादी तय हो जाती है.

बेचारे बनवारी झा किसी तरह अपनी सारी जमा पूंजी से रौयल एनफील्ड मोटर साइकल खरीद कर लाते हैं. रोशनी का भाई भूगोल झा (स्पर्ष श्रीवास्तव) को फिल्मों में हीरो बनने का भूत सवार है. जिस दिन मोटर साइकल गांव पहुंचती है, उसी दिन मोटर बाइक चोरी हो जाती है. मतलब 25 साल में पहली बार धड़कपुर में चोरी हो जाती है और गांव का 25 साल पुराना अपराध मुक्त रिकौर्ड टूट जाता है. अब बनवारी झा के सामने इनफीलड मोटर बाइक की भरपाई करने से ले कर गांव की अपनी छवि को बचाते हुए बेटी शिवानी की शादी को टलने नहीं देना है.

गांव की छवि को बचाए रखने के लिए बनवारी झा का परिवार इस बात को छिपाते हुए अपनी तरफ से खोजना शुरू करता है. उन का शक अमावस (भुवन अरोड़ा) पर जाता है, जो कि 7 वर्ष पहले रोशनी का प्रेमी था, पर उसे चोरी करने की ‘क्लेप्टोमोनिया’ नामक बीमारी है. बनवारी ने एक चोरी के मामले में पंचायत के आदेश से अमावस को गांव से तड़ीपार करा दिया था. इसी के साथ रोशनी व अमावस का प्रेम संबंध खत्म हो जाता है पर रोशनी को यकीन है कि अमावस उस से झूठ नहीं बोलेगा. लेकिन अमावस ने चोरी नहीं की है.

दूसरी तरफ पुष्पलता यादव की बेटी व रोशनी की 23 वर्षीय सहेली निर्मल यादव (कोमल कुशवाहा) सांवली है, उसे लगता है कि उस के सांवले रंग के कारण लड़के उसे पसंद नहीं करते. जबकि वह स्वयं पर्सनालिटी डेवलपमेंट व अंगरेजी की शिक्षा देने की क्लास चलाती हैं. निर्मल प्लास्टिक सर्जरी करा कर अपना चेहरा सुंदर करवाना चाहती है, इस में उसे प्रेम करने वाला और भूगोल का दोस्त पिंटू मदद करता है.

राजनीति में पुष्पलता यादव के खिलाफ सरपंच के साथ मिल कर कमलेश (मैक लारा) अपनी चाल चलता है. उधर पुलिस इंस्पेक्टर मिथिलेश पर दबाव है कि वह गांव की तरफ से कोई एफआईआर दर्ज करवाए. ऐसे में जब गांव में पहली चोरी होती है तब क्या गांव वासी घबरा जाते हैं? क्या वह एकदूसरे पर शक करने लगते हैं? क्या वह पीड़ित को नुकसान की भरपाई करने में मदद करते हैं? और अंत में चोर का पता चलता है या नहीं. रोशनी की शादी कुबेर से होती है या नहीं. यह कई सवाल हैं? यही सब दुपहिया सीरीज का हिस्सा है.

यह वेब सीरीज गांव की जिंदगी की एक झलक दिखाने के साथ ही गांव मे रहने वालों की सोच पर भी बात करती है. 9 एपीसोड की इस सीरीज का पहला एपीसोड खत्म होने पर पता चलता है कि रोशनी की शादी में 8 दिन बाकी हैं. यानी कि यह सीरीज धड़कपुर गांव में 8 दिन की यात्रा है. लेखक चिराग गर्ग और अविनाश द्विवेदी ने गांव के पूरे परिवेश, गांव के रहनसहन, गांव वालों का सुखदुख में शामिल होना सहित हर बारीक व मार्मिक बिंदुओं को छुआ है.

बिहार में ‘लौंडा नाच’ काफी प्रचलित है, जिसे कभी अभिनेता पंकज त्रिपाठी भी करते रहे हैं, इसे भी अविनाश द्विवेदी व चिराग गर्ग ने इस सीरीज का प्रमुख आकर्षण बना दिया है. लौंडा नाच करते हुए अभिनेता स्पर्श श्रीवास्तव और भुवन अरोड़ा ने कमाल की प्रतिभा दिखाई है. पूरी सीरीज हंसाते व मनोरंजन करते हास्य व व्यंग के लहजे में कई गंभीर मसले भी उठाती है.

मसलन, शहर की ओर पलायन करने का लालच, शहर के प्रति मोहभंग होना, अखंडता,एक बड़े परिवार के रूप में रहने वाले गांव का सामुदायिक जीवन, एकदूसरे के सुखदुख का हिस्सा बनना, दहेज कुप्रथा, शरीरिक रंगत, एकदूसरे की रक्षा करना है. वहीं त्वचा के रंग से जुड़ा आत्मसम्मान जैसा सार्थक विषय उठाया गया है.

सीरीज ग्रामीण राजनीति के कुचक्र पर भी बात करने से पीछ नहीं रहती. कहानी व पटकथा इतनी अच्छी तरह से लिखी गई है कि इस का हर दृश्य एक सामाजिक टिप्पणी के रूप में कार्य करता है. मसलन, सांवले रंग की लड़की निर्मल प्लास्टिक सर्जरी कराने वाली लड़की से औपरेशन करने से पहले डाक्टर कहती है ‘‘इस दुनिया में हर रोज कुछ और हो जाती हूं मैं, बड़ा जोर लगता है खुद को खुद बनाए रखने में.” उस के बाद निर्मल अपना निर्णय बदल देती है.

इस सीरीज की सब से बड़ी समस्या इस की लंबाई है. 35 से 40 मिनट के 9 एपीसोड, अंतिम एपीसोड तक किरदारों का परिचय चलता रहता है. सबप्लोट और सहायक किरदारों की भरमार है, कुछ सिर्फ़ समय बिताने या विचित्रता को बढ़ाने के लिए हैं. जैसे रिश्तेदार जश्न मनाने के लिए जल्दी आ जाते हैं. असली पत्रकार बनने की चाहत रखने वाला इच्छुक रिपोर्टर को आज पत्रकारिता की स्थिति पर लेक्चर दिया जाता है, जिस से कुछ कटाक्ष प्रसारित होते हैं. संपादक कहता है, “आप खबर लिखो. कन्फर्म करना लोगों का काम है, हमारा काम है छापना है.’’ लेकिन लेखकों का कमाल है कि हर किरदार चमकता है. लेकिन कुछ दृष्य कमजोर हैं. तंबाकू पीटने जैसे कुछ दृष्य बेवजह के लगते हैं.

सीरीज की सब से बड़ी खूबी यह है कि हर गांव की खासियत के अनुरूप इस में दिखाया गया है कि हर मुसीबत में पूरा का पूरा गांव कैसे एक साथ आता है और मिल कर समस्या का समाधान खोजता है. पंचायत का निर्णय सभी मानते हैं. सभी के लिए पहले गांव की छवि को बरकरार रखना है.

शहरी संस्कृति में जीने व स्कर्ट जैसे कपड़े पहनने, लोग क्या कहेंगे यह न सुनने की लालसा के साथ ही अपने भावी पति द्वारा नजरअंदाज किए जाने और अपने पूर्व प्रेमी से पूर्ण समर्थन पाने की दुविधा के बीच फंसी रोशनी के किरदार को जीवंतता प्रदान करने में शिवानी रघुवंशी का प्रयास सराहनीय है.

शिवानी ने रोशनी के मन की दुविधाओं व अंतर्द्वंद को सकार करने में सफल रही हैं. बेटी की जिदंगी की खुशी के लिए सब कुछ न्योछावर करने वाले पिता बनवारी झा के किरदार में गजराज राव का अभिनय सराहनीय है. शहर जा कर हीरो बनने की इच्छा, सदा रील्स बनाते रहने वाले रोशनी के भाई भूगोल के किरदार में स्पर्श श्रीवास्तव छा जाते हैं. भूगोल के वफ़ादार दोस्त टीपू के किरदार में समर्थ माहोर अपनी चुटीली और मज़ेदार संवाद अदायगी से को प्रभावित करने में सफल रहे हैं.

पुष्पलता के किरदार में रेणुका शहाणे के अभिनय पर तो कभी कोई उंगली उठा ही नहीं सकता. पुष्पलता की बेटी और पहले एपीसोड से ही मुख्य संदिग्ध बन जाने वाली निर्मल यादव के किरदार में कोमल कुशवाहा अपनी छाप छोड़ जाती हैं. सांवलेपन से छुटकारा पाने के लालच में गलत रास्तें पर चलने के लिए मजबूर होने की मनोदशा को बखूबी पकड़ा है और लोगों के दिलों तक यह बात पहुंचाने में सफल रही हैं. रोशनी के पूर्व प्रेमी और क्लेप्टोमेनिया से जूझ रहे अमावस की मन की पीड़ा को उजागर करते हुए भुवन अरोड़ा याद रह जाते हैं. पुलिस इंस्पेक्टर मिथिलेश के किरदार में एक बार फिर यशपाल शर्मा ने साबित कर दिया कि वह हर किरदार को निभाने की क्षमता रखते हैं. देहज के लालची दूल्हे कुबेर के किरदार को अविनाश द्विवेदी अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान करने में सफल रहे हैं.

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