Download App

Hindi kahani : रोजीरोटी – लालाजी ने रिश्वत लेने से क्यों किया इनकार?

Hindi kahani : ‘‘मेरे यहां न तो कोई गलत माल बनता है न ही मैं मिलावट करता हूं. मैं किस बात का महीना दूं?’’ लाला कुंदन लाल ने रोष भरे स्वर में कहा.‘‘लालाजी, बात अकेली मिलावट की नहीं है…अब पुराने नियम और तरीके सब बदल चुके हैं. मिलावट के साथसाथ अब सफाई, रंग और कैलोरी आदि की भी जांच की जाती है,’’ स्वास्थ्य विभाग के चपरासी श्यामलाल ने धीमे स्वर में कहा.‘‘मगर मेरे यहां सफाई का स्तर ठीक है.

आप सारे रेस्तरां में कहीं भी गंदगी दिखाएं, किचन में सबकुछ स्टैंडर्ड का है.’’‘‘ये सब बातें कहने की हैं. अफसर लोग नहीं मानते.’’‘‘मांग जायज हो तो मानें. पिछले 3 साल से महीने की दर बढ़तेबढ़ते 10 गुनी हो गई है…यह तो सरासर लूट है.’’‘‘महीना सब का बढ़ाया है, अकेले आप ही का नहीं.’’‘‘मगर मैं इतना नहीं दे सकता.’’‘‘सोचविचार कर लीजिए. खामख्वाह पंगा पड़ जाएगा,’’ एक तरह से धमकी देता श्यामलाल चला गया.चपरासी के जाते दोनों बेटे सुरेश और अशोक भी पिता के पास आ गए.

कहां तो 100 रुपए महीना था, अब 3 हजार रुपए महीना मांगा जा रहा है. पहले मिलावट के मामले में सजा अधिकतम 6 महीने से 1 साल तक थी साथ में 1 से 2 हजार रुपए तक जुर्माना था.नए प्रावधानों में अब न्यूनतम सजा 3 साल की तथा जुर्माना 25 हजार से 3 लाख रुपए तक हो गया था.

जैसे ही कानून सख्त हुआ था वैसे ही रिश्वत की दर भी आसमान पर पहुंच गई. सफाई या हाईजिन स्तर के नाम पर किसी प्रतिष्ठान, दुकान को बंद करवाने का अधिकार भी खाद्य निरीक्षक को मिल गया था. इस से भी अब लूट बढ़ गई थी.लालजी की गोलहट्टी के नाम से खानेपीने की दुकान सारे शहर में मशहूर थी.

माल का स्तर शुरू से काफी अच्छा था. मिलावट वाली कोई वस्तु नहीं थी.मिलावट तो नहीं थी मगर प्रयोग- शालाओं में कई अन्य आधारों पर नमूना फेल हो जाता था. नमूने को कभी स्तरहीन या अखाद्य या ‘एक्सपायर्ड’ भी करार दे दिया जाता था, जिस से मुकदमा दर्ज हो जाता था या फिर दुकान बंद हो जाती.जितने ज्यादा नए कानून बनते उतने नए अपराधी बनते. जितना सख्त कानून होता उतना ज्यादा रिश्वत का रेट होता. अपराध तो कम नहीं होते थे, भ्रष्टाचार जरूर बढ़ जाता था.लाला कुंदन लाल ने जीवनभर मिलावट नहीं की थी. वे ऐसा करना पसंद नहीं करते थे. ग्राहकों को साफसुथरा खाना देना अपना कर्तव्य सम  झते थे. किसी जमाने में मिलावट का नाम भी नहीं था.

मिलावट क्या होती है…कोई नहीं जानता था.तब खाद्य निरीक्षक का पद भी नहीं था. नगर परिषद का सैनेटरी इंस्पैक्टर कभीकभार बाजार का चक्कर लगा लेता था. किसीकिसी का सैंपल या नमूना ले कर प्रयोगशाला को भेज दिया करता था. सैंपल फेल कम आते थे. सैंपल फेल आने पर जुर्माना होता था जो 50 रुपए से 400-500 रुपए तक था. मगर ऐसा कम ही होता था. कोई सजा का मामला नहीं था.

अब वक्त बदल चुका था. आबादी बहुत बढ़ गई थी. साथ ही कानून और अपराधी भी. अब सैंपल या नमूना फेल ज्यादा आते थे, पास कम होते थे. गेहूं के साथ घुन भी पिसता है, के समान मिलावट न करने वाले भी फंस जाते थे.लाला कुंदन लाल के साथ दोनों बेटे भी विचारमग्न थे. क्या करें? कभी रिश्वत मात्र 100  रुपए महीना थी अब 3 हजार रुपए मांगे जा रहे थे. कल को या भविष्य में 30 हजार रुपए महीना भी मांगे जा सकते थे. वे मिलावट नहीं करते थे मगर हर जगह बेईमानी थी. प्रयोगशालाओं में नमूने फेल, पास करवाए जाते थे.अपने विरोधी या प्रतिद्वंद्वी को फंसाने के लिए कई व्यापारी उस का नमूना प्रयोगशाला में फेल करवा देते थे. बदले समय के साथ अब व्यापार में भी घटियापन बढ़ गया था.

‘‘फूड इंस्पैक्टर 3 हजार रुपए महीना मांग रहा है,’’ लालाजी ने दोनों बेटों को बताया.‘‘पिताजी, दे दीजिए. सैंपल भर लिया, फेल करवा दिया तब परेशानी बढ़ जाएगी,’’ छोटे बेटे अशोक ने कहा.‘‘मगर इन की मांग सुरसा के मुंह के समान बढ़ती जा रही है. कभी 100 रुपए महीना था. अब 3 हजार रुपए मांग रहे हैं, साथ ही आधा दर्जन लोग खाने आ जाते हैं,’’ लालाजी ने रोष भरे स्वर में कहा.इस पर दोनों बेटे खामोश हो गए. क्या करें? पुराना फूड इंस्पैक्टर शरीफ था. 100 रुपए महीना लेने पर भी विनम्रता से पेश आता था. नए जमाने का खाद्य निरीक्षक 3 हजार ले कर भी रूखे और रोबीले अंदाज में बात करता था. लालाजी मिलावट पहले नहीं करते थे, अब भी नहीं करते. बात सिर्फ इंसाफ की थी. इंसाफ कहां था? प्रयोगशालाओं में निष्पक्षता न थी यही सब से बड़ी समस्या थी.2 दिन बाद, चपरासी श्यामलाल दोबारा आया.‘‘लालाजी, क्या इरादा है?’’‘‘मैं ने पहले भी कहा है, मैं मिलावट नहीं करता. मैं महीना किस बात का दूं?’’ दोटूक स्वर में लालाजी ने कहा.

‘‘लालाजी, सोच लीजिए,’’ यह बोल कर गुस्से से तमतमाता चपरासी वापस चला गया.‘‘पिताजी, आप ने यह क्या किया? अब यह हमारा सैंपल भरवा देगा?’’ दोनों बेटों ने पिताजी के पास आ कर कहा.‘‘जो होगा देखेंगे. जोरजबरदस्ती की भी एक सीमा है. जब हम मिलावट ही नहीं करते तब महीना किस बात का दें.’’‘‘पिताजी, वे प्रयोगशाला से नमूना फेल करवा देंगे.’’‘‘जो होगा देखेंगे. अब मैं 60 साल का हूं. मुकदमा हो भी जाता है तो भी परवा नहीं है,’’ लालाजी के स्वर में एक निश्चय और चेहरे पर आभा थी.शाम से पहले एक बड़ी स्टेशनवैगन गोलहट्टी के सामने आ कर रुकी. चिरपरिचित खाद्य निरीक्षक सोम कुमार और स्वास्थ्य अधिकारी मैडम शकुंतला उतर कर दुकान में प्रवेश कर गए.‘‘दुकान का मालिक कौन है?’’ फूड इंस्पैक्टर ने रौब से पूछा. लालाजी सब माजरा सम  झ रहे थे.

दर्जनों बार परिवार सहित खापी कर जाने वाला पूछ रहा है कि दुकान का मालिक कौन है.‘‘मैं हूं जी, बात क्या है?’’इस दबंग जवाब की उम्मीद फूड इंस्पैक्टर को न थी.‘‘क्याक्या बनाते हैं आप?’’‘‘सामने काउंटर में रखा है, देख लीजिए.’’‘‘आप के पास इस काम का लाइसैंस है?’’‘‘हां, है जी. यह देखिए,’’ लालाजी ने शीशे से मढ़ी तसवीर के समान फ्रेम में जड़ी म्यूनिसिपैलिटी के लाइसैंस की कापी सामने रखते हुए कहा.‘‘आप के खिलाफ स्तरहीन खाद्य- पदार्थ बनाने और बेचने की शिकायत है, आप का नमूना भरना है.’’‘‘जरूर भरिए, किस चीज का नमूना दें?’’इस बेबाक जवाब पर खाद्य निरीक्षक सकपका गया.

काउंटर वातानुकूलित था. माल सब साफ था. दुकान में मक्खी, कीट, मच्छर का नामोनिशान तक न था. दुकान में सर्वत्र साफसफाई थी. रसोईघर साफसुथरा था.गुलाबजामुन और रसगुल्लों का नमूना ले लिया. पहले कभी आने पर लालाजी ड्राईफू्रट से आवभगत करते थे मगर इस बार जानबू  झ कर पानी भी नहीं पूछा. इस से इंस्पैक्टर चिढ़ गया.नमूना ले सब चले गए.‘‘पिताजी, अगर नमूना फेल हो गया तो?’’ दोनों बेटों ने कहा, ‘‘पड़ोसी कहता है वह एक दलाल को जानता है जो प्रयोगशाला से नमूना पास करवा सकता है.’’‘‘मगर हम तो मिलावट करते नहीं हैं, हौसला रखो, जो होगा देखेंगे.’’शाम को चपरासी फिर आया. लालाजी ने प्रश्नवाचक निगाहों से घूरते हुए उस की तरफ देखा. ‘‘फूड इंस्पैक्टर कहता है अगर आप को मामला निबटाना है तो निबट सकता है.’’‘‘क्या मतलब?’’‘‘आप चाहें तो नमूना यहीं खत्म कर देते हैं.

प्रयोगशाला में नहीं भेजेंगे और आप चाहें तो नमूना प्रयोगशाला से पास भी करवा सकते हैं. हमारे पास दोनों इंतजाम हैं.’’‘‘जब मैं मिलावट नहीं करता तब कैसा भी इंतजाम क्यों करूं?’’ चपरासी चुपचाप चला गया. डेढ़ माह बाद नतीजा आया. दोनों नमूने पास हो गए. लालाजी का मनोबल ऊंचा हो गया. दुकान की साख बढ़ गई. 2 माह गुजर गए.दोपहर को स्वास्थ्य विभाग की वही पहली वाली जीप दुकान के सामने आ कर रुकी.‘‘आप के खिलाफ शिकायत है. किसी ग्राहक को आप के यहां नाश्ता करने के बाद पेट में दर्द हुआ था,’’ फूड इंस्पैक्टर ने कहा.‘‘वह कौन है?’’‘‘प्रमुख चिकित्सा अधिकारी के पास लिखित शिकायत आई थी. आप का नमूना भरना है.’’‘‘जरूर भरिए.’’ लालाजी के स्वर की दृढ़ता से स्वास्थ्य अधिकारी भी थोड़ा विचलित था. खाद्य निरीक्षक ने दुकान में नजर दौड़ाई. दुकान छोटीमोटी रेस्तरां थी. 4-5 मिठाइयां जैसे रसगुल्ले, गुलाबजामुन, रसमलाई, मिल्ककेक, पिस्ता बर्फी और पुलावचावल के साथ राजमा और छोलेभठूरे आदि प्लेट और पीस रेट के हिसाब से बेचे जाते थे.दीवार पर रेट लिस्ट लगी थी.

साथ  ही लिखा था, ‘यहां गाय का दूध प्रयोग होता है.’, ‘मिल्क नौट फौर सेल’, ‘दूध बेचने के लिए नहीं है.’प्रावधानों के अनुसार जो वस्तु बेचने के लिए न हो उस का नमूना नहीं लिया जा सकता था. मिठाई का सैंपल पास हो चुका था. चावल, पुलाव, राजमा, छोलेभठूरे में क्या मिलावट हो सकती थी?‘‘जरा छोले दिखाइए.’’ लालाजी के इशारे पर कारीगर ने एक कटोरी में गैस पर रखे गरम छोले डाल कर दे दिए. नाक के समीप ला उस को सूंघते हुए फूड इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘मसाले की गंध कुछ अजीब सी है. आप इस का नमूना दे दीजिए.’’मसालाचना, राजमा व छोले की तरी का नमूना अलग से ले टीम चली गई. इस बार चपरासी ‘इंतजाम’ की बात करने नहीं आया. बेटों के सामने भी ‘दलाल’ की मार्फत नमूना पास करवाने की बात नहीं उठाई.डेढ़ महीने बाद नतीजा आया. राजमा, मसालाचना का नमूना पास हो गया था. छोलेतरी का नमूना निर्धारित मात्रा से ज्यादा मसाला मिलाने पर तकनीकी आधार पर फेल हो गया था.रजिस्टर्ड डाक से लालाजी को नोटिस मिला. ‘आप का नमूना प्रयोगशाला द्वारा फेल घोषित किया गया है.

आप इस तारीख को मुख्य दंडाधिकारी के न्यायालय में हाजिर हों. यदि आप राज्य प्रयोगशाला की रिपोर्ट से असहमत हैं तो केंद्रीय प्रयोगशाला में नमूने को दोबारा परीक्षण हेतु 10 दिन के अंदरअंदर भिजवा सकते हैं.’लालाजी नोटिस की प्रति ले कर अपने परिचित वकील के पास पहुंचे.‘‘अरे, भाई, इस मामले को निचले स्तर पर निबटा देना था. जो मांग रहे थे दे देते,’’ वकील साहब ने नोटिस पढ़ कर कहा.‘‘मांग जायज होती तो पूरी कर भी देता. कभी 100-200 रुपए महीना मांगते थे अब 3 हजार रुपए और ऊपर से कभी भी खानेपीने को आ जाते. साथ में रौब अलग से.’’

‘‘मगर मुकदमा कई साल चल सकता है. पेशियों की परेशानी है. नमूना तकनीकी आधार पर फेल है इसलिए सजा का मामला नहीं है. सजा मिलावट के मामले में होती है,’’ वकील साहब ने कहा.‘‘और अगर इसे केंद्रीय प्रयोगशाला में दोबारा परीक्षण के लिए भेज दूं तो?’’

‘‘तब कई पहलू हैं. केंद्रीय प्रयोगशाला इसे पास कर सकती है. राज्य प्रयोगशाला की रिपोर्ट के समान ही रिपोर्ट दे सकती है. विभिन्न रिपोर्ट दे सकती है. मिलावट घोषित कर सकती है.’’

‘‘यह तो एक किस्म का जुआ है. ठीक है, हम नमूना दोबारा परीक्षण के लिए केंद्रीय प्रयोगशाला में भेज देते हैं.’’निर्धारित तिथि को लालाजी, एक पड़ोसी दुकानदार को बतौर जमानती, एक पूर्व नगर पार्षद को बतौर शिनाख्ती और नमूना दोबारा भिजवाने के लिए लकड़ी का खाली डब्बा, रुई का बंडल, सफेद कपड़े का टुकड़ा ले अदालत पहुंच गए. पहले जमानत हुई. फिर नमूना भेजने की तारीख पड़ी. तारीख वाले दिन नमूना दोबारा सील कर केंद्रीय प्रयोगशाला में रजिस्टर्ड पार्सल द्वारा भेज दिया गया.चपरासी अब फिर आया.‘‘लालाजी, हमारे पास केंद्रीय प्रयोगशाला में इंतजाम है.’’

‘‘नहीं भाई, मुझे इंतजाम नहीं करवाना. नमूना फेल भी आ जाता है तो भी कोई बात नहीं. जब तक अदालत फैसला सुनाएगी मैं इस दुनिया से बहुत दूर जा चुका होऊंगा.’’ लालाजी के इस बेबाक जवाब पर चपरासी चला गया. दुकान में खापी रहे ग्राहक खिलखिला कर हंस पड़े.2 महीने बाद नतीजा आया. नमूना मिलावटी नहीं था. मसाले की मात्रा निर्धारित स्तर से कम थी जबकि राज्य प्रयोगशाला ने मसाले की मात्रा निर्धारित स्तर से ज्यादा बताई थी.

चार्ज की पेशी पर बहस हुई. माननीय न्यायाधीश ने दोनों प्रयोगशालाओं द्वारा दी गई अलगअलग परीक्षण रिपोर्टों के आधार पर लालाजी को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया.सारे सिलसिले में 7-8 महीने का समय लगा? और 12 हजार रुपए खर्च हुए. थोड़ी परेशानी तो हुई मगर लालाजी के नैतिक साहस और बेबाकी की सारे दुकानदारों और पड़ोसियों में चर्चा और प्रशंसा हुई.

Family Story : खोया हुआ सच – क्यों दुखी रहती थी सीमा ?

Family Story : सीमा रसोई के दरवाजे से चिपकी खड़ी रही, लेकिन अपनेआप में खोए हुए उस के पति रमेश ने एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. बाएं हाथ में फाइलें दबाए वह चुपचाप दरवाजा ठेल कर बाहर निकल गया और धीरेधीरे उस की आंखों से ओझल हो गया.

सीमा के मुंह से एक निश्वास सा निकला, आज चौथा दिन था कि रमेश उस से एक शब्द भी नहीं बोला था. आखिर उपेक्षाभरी इस कड़वी जिंदगी के जहरीले घूंट वह कब तक पिएगी?

अन्यमनस्क सी वह रसोई के कोने में बैठ गई कि तभी पड़ोस की खिड़की से छन कर आती खिलखिलाहट की आवाज ने उसे चौंका दिया. वह दबेपांव खिड़की की ओर बढ़ गई और दरार से आंख लगा कर देखा, लीला का पति सूखे टोस्ट चाय में डुबोडुबो कर खा रहा था और लीला किसी बात पर खिलखिलाते हुए उस की कमीज में बटन टांक रही थी. चाय का आखिरी घूंट भर कर लीला का पति उठा और कमीज पहन कर बड़े प्यार से लीला का कंधा थपथपाता हुआ दफ्तर जाने के लिए बाहर निकल गया.

सीमा के मुंह से एक ठंडी आह निकल गई. कितने खुश हैं ये दोनों… रूखासूखा खा कर भी हंसतेखेलते रहते हैं. लीला का पति कैसे दुलार से उसे देखता हुआ दफ्तर गया है. उसे विश्वास नहीं होता कि यह वही लीला है, जो कुछ वर्षों पहले कालेज में भोंदू कहलाती थी. पढ़ने में फिसड्डी और महाबेवकूफ. न कपड़े पहनने की तमीज थी, न बात करने की. ढीलेढाले कपड़े पहने हर वक्त बेवकूफीभरी हरकतें करती रहती थी.

क्लासरूम से सौ गज दूर भी उसे कोई कुत्ता दिखाई पड़ जाता तो बेंत ले कर उसे मारने दौड़ती. लड़कियां हंस कर कहती थीं कि इस भोंदू से कौन शादी करेगा. तब सीमा ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि एक दिन यही फूहड़ और भोंदू लीला शादी के बाद उस की पड़ोसिन बन कर आ जाएगी और वह खिड़की की दरार से चोर की तरह झांकती हुई, उसे अपने पति से असीम प्यार पाते हुए देखेगी.

दर्द की एक लहर सीमा के पूरे व्यक्त्तित्व में दौड़ गई और वह अन्यमनस्क सी वापस अपने कमरे में लौट आई.

‘‘सीमा, पानी…’’ तभी अंदर के कमरे से क्षीण सी आवाज आई.

वह उठने को हुई, लेकिन फिर ठिठक कर रुक गई. उस के नथुने फूल गए, ‘अब क्यों बुला रही हो सीमा को?’ वह बड़बड़ाई, ‘बुलाओ न अपने लाड़ले बेटे को, जो तुम्हारी वजह से हर दम मुझे दुत्कारता है और जराजरा सी बात में मुंह टेढ़ा कर लेता है, उंह.’

और प्रतिशोध की एक कुटिल मुसकान उस के चेहरे पर आ गई. अपने दोनों हाथ कमर पर रख कर वह तन कर रमेश की फोटो के सामने खड़ी हो गई, ‘‘ठीक है रमेश, तुम इसलिए मुझ से नाराज हो न, कि मैं ने तुम्हारी मां को टाइम पर खाना और दवाई नहीं दी और उस से जबान चलाई. तो लो यह सीमा का बदला, चौबीसों घंटे तो तुम अपनी मां की चौकीदारी नहीं कर सकते. सीमा सबकुछ सह सकती है, अपनी उपेक्षा नहीं. और धौंस के साथ वह तुम्हारी मां की चाकरी नहीं करेगी.’’

और उस के चेहरे की जहरीली मुसकान एकाएक एक क्रूर हंसी में बदल गई और वह खिलाखिला कर हंस पड़ी, फिर हंसतेहंसते रुक गई. यह अपनी हंसी की आवाज उसे कैसी अजीब सी, खोखली सी लग रही थी, यह उस के अंदर से रोतारोता कौन हंस रहा था? क्या यह उस के अंदर की उपेक्षित नारी अपनी उपेक्षा का बदला लेने की खुशी में हंस रही थी? पर इस बदले का बदला क्या होगा? और उस बदले का बदला…क्या उपेक्षा और बदले का यह क्रम जिंदगीभर चलता रहेगा?

आखिर कब तक वे दोनों एक ही घर की चारदीवारी में एकदूसरे के पास से अजनबियों की तरह गुजरते रहेंगे? कब तक एक ही पलंग की सीमाओं में फंसे वे दोनों, एक ही कालकोठरी में कैद 2 दुश्मन कैदियों की तरह एकदूसरे पर नफरत की फुंकारें फेंकते हुए अपनी अंधेरी रातों में जहर घोलते रहेंगे?

उसे लगा जैसे कमरे की दीवारें घूम रही हों. और वह विचलित सी हो कर धम्म से पलंग पर गिर पड़ी.

थप…थप…थप…खिड़की थपथपाने की आवाज आई और सीमा चौंक कर उठ बैठी. उस के माथे पर बल पड़ गए. वह बड़बड़ाती हुई खिड़की की ओर बढ़ी.

‘‘क्या है?’’ उस ने खिड़की खोल कर रूखे स्वर में पूछा. सामने लीला खड़ी थी, भोंदू लीला, मोटा शरीर, मोटा थुलथुल चेहरा और चेहरे पर बच्चों सी अल्हड़ता.

‘‘दीदी, डेटौल है?’’ उस ने भोलेपन से पूछा, ‘‘बिल्लू को नहलाना है. अगर डेटौल हो तो थोड़ा सा दे दो.’’

‘‘बिल्लू को,’’ सीमा ने नाक सिकोड़ कर पूछा कि तभी उस का कुत्ता बिल्लू भौंभौं करता हुआ खिड़की तक आ गया.

सीमा पीछे को हट गई और बड़बड़ाई, ‘उंह, मरे को पता नहीं मुझ से क्या नफरत है कि देखते ही भूंकता हुआ चढ़ आता है. वैसे भी कितना गंदा रहता है, हर वक्त खुजलाता ही रहता है. और इस भोंदू लीला को क्या हो गया है, कालेज में तो कुत्ते को देखते ही बेंत ले कर दौड़ पड़ती थी, पर इसे ऐसे दुलार करती है जैसे उस का अपना बच्चा हो. बेअक्ल कहीं की.’

अन्यमनस्क सी वह अंदर आई और डेटौल की शीशी ला कर लीला के हाथ में पकड़ा दी. लीला शीशी ले कर बिल्लू को दुलारते हुए मुड़ गई और उस ने घृणा से मुंह फेर कर खिड़की बंद कर ली.

पर भोंदू लीला का चेहरा जैसे खिड़की चीर कर उस की आंखों के सामने नाचने लगा. ‘उंह, अब भी वैसी ही बेवकूफ है, जैसे कालेज में थी. पर एक बात समझ में नहीं आती, इतनी साधारण शक्लसूरत की बेवकूफ व फूहड़ महिला को भी उस का क्लर्क पति ऐसे रखता है जैसे वह बहुत नायाब चीज हो. उस के लिए आएदिन कोई न कोई गिफ्ट लाता रहता है. हर महीने तनख्वाह मिलते ही मूवी दिखाने या घुमाने ले जाता है.’

खिड़की के पार उन के ठहाके गूंजते, तो सीमा हैरान होती और मन ही मन उसे लीला के पति पर गुस्सा भी आता कि आखिर उस फूहड़ लीला में ऐसा क्या है जो वह उस पर दिलोजान से फिदा है. कई बार जब सीमा का पति कईकई दिन उस से नाराज रहता तो उसे उस लीला से रश्क सा होने लगता. एक तरफ वह है जो खूबसूरत और समझदार होते हुए भी पति से उपेक्षित है और दूसरी तरफ यह भोंदू है, जो बदसूरत और बेवकूफ होते हुए भी पति से बेपनाह प्यार पाती है. सीमा के मुंह से अकसर एक ठंडी सांस निकल जाती. अपनाअपना वक्त है. अचार के साथ रोटी खाते हुए भी लीला और उस का पति ठहाके लगाते हैं. जबकि दूसरी ओर उस के घर में सातसात पकवान बनते हैं और वे उन्हें ऐसे खाते हैं जैसे खाना खाना भी एक सजा हो. जब भी वह खिड़की खोलती, उस के अंदर खालीपन का एहसास और गहरा हो जाता और वह अपने दर्द की गहराइयों में डूबने लगती.

‘‘सीमा, दवाई…’’ दूसरे कमरे से क्षीण सी आवाज आई. बीमार सास दवाई मांग रही थी. वह बेखयाली में उठ बैठी, पर द्वेष की एक लहर फिर उस के मन में दौड़ गई. ‘क्या है इस घर में मेरा, जो मैं सब की चाकरी करती रहूं? इतने सालों के बाद भी मैं इस घर में पराई हूं, अजनबी हूं,’ और वह सास की आवाज अनसुनी कर के फिर लेट गई.

तभी खिड़की के पार लीला के जोरजोर से रोने और उस के कुत्ते के कातर स्वर में भूंकने की आवाज आई. उस ने झपट कर खिड़की खोली. लीला के घर के सामने नगरपलिका की गाड़ी खड़ी थी और एक कर्मचारी उस के बिल्लू को घसीट कर गाड़ी में ले जा रहा था.

‘‘इसे मत ले जाओ, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं,’’ लीला रोतेरोते कह रही थी.

लेकिन कर्मचारी ने कुत्ते को नहीं छोड़ा. ‘‘तुम्हारे कुत्ते को खाज है, बीमारी फैलेगी,’’ वह बोला.

‘‘प्लीज मेरे बिल्लू को मत ले जाओ. मैं डाक्टर को दिखा कर इसे ठीक करा दूंगी.’’

‘‘सुनो,’’ गाड़ी के पास खड़ा इंस्पैक्टर रोब से बोला, ‘‘इसे हम ऐसे नहीं छोड़ सकते. नगरपालिका पहुंच कर छुड़ा लाना. 2,000 रुपए जुर्माना देना पड़ेगा.’’

‘‘रुको, रुको, मैं जुर्माना दे दूंगी,’’ कह कर वह पागलों की तरह सीमा के घर की ओर भागी और सीमा को खिड़की के पास खड़ी देख कर गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘‘दीदी, मेरे बिल्लू को बचा लो. मुझे 2,000 रुपए उधार दे दो.’’

‘‘पागल हो गई हो क्या? इस गंदे और बीमार कुत्ते के लिए 2,000 रुपए देना चाहती हो? ले जाने दो, दूसरा कुत्ता पाल लेना,’’  सीमा बोली.

लीला ने एक बार असीम निराशा और वेदना के साथ सीमा की ओर देखा. उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी. सहसा उस की आंखें अपने हाथ में पड़ी सोने की पतली सी एकमात्र चूड़ी पर टिक गईं. उस की आंखों में एक चमक आ गई और वह चूड़ी उतारती हुई वापस कुत्ता गाड़ी की तरफ दौड़ पड़ी.

‘‘भैया, यह लो जुर्माना. मेरे बिल्लू को छोड़ दो,’’ वह चूड़ी इंस्पैक्टर की ओर बढ़ाती हुई बोली.

इंस्पैक्टर भौचक्का सा कभी उस के हाथ में पकड़ी सोने की चूड़ी की ओर और कभी उस कुत्ते की ओर देखने लगा. सहसा उस के चेहरे पर दया की एक भावना आ गई, ‘‘इस बार छोड़ देता हूं. अब बाहर मत निकलने देना,’’ उस ने कहा और कुत्ता गाड़ी आगे बढ़ गई.

लीला एकदम कुत्ते से लिपट गई, जैसे उसे अपना खोया हुआ कोई प्रियजन मिल गया हो और वह फूटफूट कर रोने लगी.

सीमा दरवाजा खोल कर उस के पास पहुंची और बोली, ‘‘चुप हो जाओ, लीला, पागल न बनो. अब तो तुम्हारा बिल्लू छूट गया, पर क्या कोई कुत्ते के लिए भी इतना परेशान होता है?’’

लीला ने सिर उठा कर कातर दृष्टि से उस की ओर देखा. उस के चेहरे से वेदना फूट पड़ी, ‘‘ऐसा न कहो, सीमा दीदी, ऐसा न कहो. यह बिल्लू है, मेरा प्यारा बिल्लू. जानती हो, यह इतना सा था जब मेरे पति ने इसे पाला था. उन्होंने खुद चाय पीनी छोड़ दी थी और दूध बचा कर इसे पिलाते थे, प्यार से इसे पुचकारते थे, दुलारते थे. और अब, अब मैं इसे दुत्कार कर छोड़ दूं, जल्लादों के हवाले कर दूं, इसलिए कि यह बूढ़ा हो गया है, बीमार है, इसे खुजली हो गई है. नहीं दीदी, नहीं, मैं इस की सेवा करूंगी, इस के जख्म धोऊंगी क्योंकि यह मेरे लिए साधारण कुत्ता नहीं है, यह बिल्लू है, मेरे पति का जान से भी प्यारा बिल्लू. और जो चीज मेरे पति को प्यारी है, वह मुझे भी प्यारी है, चाहे वह बीमार कुत्ता ही क्यों न हो.’’

सीमा ठगी सी खड़ी रह गई. आंसुओं के सागर में डूबी यह भोंदू क्या कह रही है. उसे लगा जैसे लीला के शब्द उस के कानों के परदों पर हथौड़ों की तरह पड़ रहे हों और उस का बिल्लू भौंभौं कर के उसे अपने घर से भगा देना चाहता हो.

अकस्मात ही उस की रुलाई फूट पड़ी और उस ने लीला का आंसुओंभरा चेहरा अपने दोनों हाथों में भर लिया, ‘‘मत रो, मेरी लीला, आज तुम ने मेरी आंखों के जाले साफ कर दिए हैं. आज मैं समझ गई कि तुम्हारा पति तुम से इतना प्यार क्यों करता है. तुम उस जानवर को भी प्यार करती हो जो तुम्हारे पति को प्यारा है. और मैं, मैं उन इंसानों से प्यार करने की भी कीमत मांगती हूं, जो अटूट बंधनों से मेरे पति के मन के साथ बंधे हैं. तुम्हारे घर का जर्राजर्रा तुम्हारे प्यार का दीवाना है और मेरे घर की एकएक ईंट मुझे अजनबी समझती है. लेकिन अब नहीं, मेरी लीला, अब ऐसा नहीं होगा.’’

लीला ने हैरान हो कर सीमा को देखा. सीमा ने अपने घर की तरफ रुख कर लिया. अपनी गलतियों को सुधारने की प्रबल इच्छा उस की आंखों में दिख रही थी.

Love Story : कागज के चंद टुकड़ों का मोहताज रिश्ता

Love Story : रोहिणी और नमित की शादी को 10 साल पूरे होने को थे. दांपत्य के इस मोड़ पर रोहिणी द्वारा तलाक के लिए अर्जी देना सब को अचंभित कर रहा था. कभी तलाक नमित ही चाहता था और रोहिणी किसी भी शर्त पर उसे तलाक देने के पक्ष में नहीं थी.

2 साल तक रोहिणी की शादी के लिए लड़का तलाश करने के बाद जब नमित के पापा ने मनचाहा दहेज देने के लिए रोहिणी के पापा द्वारा हामी भरे जाने पर शादी के लिए हां की, तो एक बेटी के मजबूर पिता के रूप में रोहिणी के पिता रमेश बेहद खुश हुए.

अपनी समझदार खुद्दार बेटी रोहिणी की शादी नमित के साथ कर के रमेश अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री समझ कर पत्नी के साथ गंगा स्नान को निकल गए. इन सब बातों से बेखबर कि उधर ससुराल में उन की लाड़ली को लोगों की कैसी प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ रहा है.

शादी में चेहरेमोहरे पर लोगों द्वारा छींटाकशी तो आम बात है, लेकिन जब पति भी अपनी पत्नी के रंगरूप से संतुष्ट न हो, तो पत्नी के लिए लोगों के शब्दबाणों का सामना करना बड़ा मुश्किल लगता है.

रोहिणी सोच से बेहद मजबूत किस्म की लड़की थी, धीरेधीरे तानोंउलाहनों को नजरअंदाज करते हुए उस ने घर की जिम्मेदारी बखूबी संभाल ली थी.

कुछ महीने बाद, शादी के पहले, शिक्षक के लिए दी गई प्रतियोगिता परीक्षा का रिजल्ट आया, जिस में रोहिणी का चयन हुआ और रोहिणी एक शिक्षक बनने की दिशा में आगे बढ़ गई.

इस खुशखबरी और रोहिणी के अच्छे व्यवहार से उस के प्रति घर वालों का नजरिया बदलने लगा था. नमित भी अब रोहिणी से खुश रहने लगा था, पैसा अपने अंदर, किसी के प्रति किसी का नजरिया बदलवाने का खूबसूरत माद्दा रखता है. यही अब उस घर में दृष्टिगोचर हो रहा था.

शादी के 5 साल पूरे होने को थे और रोहिणी की गोद अभी तक सूनी थी. यह बात अब आसपास और परिवार के लोगों को खटकने लगी थी, तो नमित तक भी यह खटकन पहुंचनी ही थी.

शुरू में नमित ने मां को समझाने की कोशिश की, पर दादी शब्द सुनने की उम्मीद ने एक बेटे के समझाते हुए शब्दों के सामने अपना पलड़ा भारी रखा और नमित की मां इस जिद पर अड़ी रही कि अब तो उन्हें एक पोता चाहिए ही चाहिए.

आखिर कब तक… कहते हैं कि अगर किसी बात को बारबार सुनाया जाए, तो वही बात हमारे लिए सचाई सी बन जाती है, ठीक उसी तरह लोगों के द्वारा रोहिणी के मां न बनने की बात सुनतेसुनते नमित को लगने लगा कि अब रोहिणी को मां बनना ही चाहिए और उस के दिमाग पर भी पिता बनने की ख्वाहिश गहराई से हावी होने लगी. उस ने रोहिणी से बात की और उसे चेकअप के लिए ले गया.

रोहिणी की रिपोर्ट नौर्मल आई, इस के बावजूद काफी कोशिश के बाद भी वह पिता नहीं बन सका. अब रोहिणी भी नमित पर दबाव डालने लगी कि उस की सभी रिपोर्ट नौर्मल हैं, तो एक बार उसे भी चेकअप करवा लेना चाहिए, लेकिन नमित ने उस की बात नहीं मानी. वह अपना चेकअप नहीं करवाना चाहता था, क्योंकि उस के अनुसार उस में कोई कमी हो ही नहीं सकती थी.

मां चाहती थीं कि नमित रोहिणी को तलाक दे कर दूसरी शादी कर ले, वह खुल कर तो मां की बात का समर्थन नहीं कर रहा था, पर उस के अंतर्मन को कहीं न कहीं अपनी मां का कहना सही लग रहा था. एक पति पर पिता बनने की ख्वाहिश पूरी तरह हावी हो चुकी थी.

धीरेधीरे उम्मीद की किरण लुप्त सी होने लगी थी, अब उस घर में सब चुपचुप से रहने लगे थे. खासकर रोहिणी के प्रति सभी का व्यवहार कटाकटा सा था. घर वालों के रुखे व्यवहार ने रोहिणी को भी काफी चिड़चिड़ा बना दिया था.

एक दिन नमित ने रोहिणी को समझाने की कोशिश की, ‘‘देखो रोहिणी, वंश चलाने के लिए एक वारिस की जरूरत होती है और मुझे नहीं लगता कि अब तुम इस घर को कोई वारिस दे पाओगी. इसलिए तुम तलाक के कागजात पर साइन कर दो.

‘‘और यकीन रखो, तलाक के बाद भी हमारा रिश्ता पहले जैसा ही रहेगा. हमारा रिश्ता कागज के चंद टुकड़ों का मोहताज कभी नहीं होगा. भले ही हम कानूनी रूप से पतिपत्नी नहीं रहेंगे, पर मेरे दिल में हमेशा तुम ही रहोगी.’’

नाम के लिए कागज पर मेरी पत्नी, मेरे साथ काम कर रही रोजी होगी, परंतु उस से शादी का मेरा मकसद बस औलाद प्राप्ति होगा. तुम्हें बिना तलाक दिए भी मैं उस से शादी कर सकता हूं, पर तुम तो जानती हो कि हम दोनों की सरकारी नौकरी है और बिना तलाक शादी करना मुझे परेशानी में डाल कर मेरी नौकरी को खतरे में डाल सकता है.

‘‘तुम अपना चेकअप क्यों नहीं करवाते हो, नमित.. मुझे लगता है कि कमी तुम में ही है.

‘‘एक बात कहूं, तुम निहायत ही दोगले इनसान हो, शरीफ बने इस चेहरे के पीछे एक बेहद घटिया और कायर इनसान छिपा है.

‘‘कान खोल कर सुन लो, मैं तुम्हें किसी शर्त पर तलाक नहीं दूंगी. तुम्हें जो करना हो कर लो. सारी परेशानियों को सहते हुए, मैं इसी परिवार में रह कर तुम सब के दिए कष्टों को सह कर तुम्हारे ही साथ अपने बैडरूम में रहूंगी.‘‘

‘‘नहीं, मुझ में कोई कमी नहीं हो सकती, और तलाक तो तुम्हें देना ही होगा. मुझे इस खानदान के लिए वारिस चाहिए, चाहे वह तुम से मिले या किसी और से.

“अगर तुम सीधेसीधे तलाक के पेपर पर हस्ताक्षर नहीं करती हो, तो मैं तुम पर मेरे परिवार वालों को परेशान करने और बदचलनी का आरोप लगाऊंगा,’’ नमित के शब्दों का अंदाज बदल चुका था.

कुछ दिन बाद नमित ने कोर्ट में रोहिणी पर इलजाम लगाते हुए तलाक की अर्जी दाखिल कर दी.

अब रोहिणी बिलकुल चुप सी रहने लगी थी, लेकिन तलाक मिलने तक अपने बैडरूम पर कब्जा नहीं छोड़ने के लिए अपने फैसले पर अडिग थी.

प्रकृति की लीला तो देखिए, 2 महीने बाद ही उसे पता चला कि कुदरत ने उस की गोद भरने की तैयारी कर ली है, यह खबर मिलते ही नमित ने तलाक की दी हुई अर्जी वापस ले ली.

उस के अगले ही दिन रोहिणी अपना बैग पैक कर के मायके चली गई. सारी बातें सुन कर मातापिता ने समझाने की कोशिश की कि जब सबकुछ ठीक हो रहा है, तो इस तरह की जिद सही नहीं है.

‘‘अगर आप लोगों को मेरा आप के साथ रहना पसंद नहीं है, तो मैं जल्दी ही कहीं और रूम ले कर रहने चली जाऊंगी. आप लोगों पर ज्यादा दिन बोझ बन कर नहीं रहूंगी.‘‘

बेटी से इस तरह की बातें सुन कर दोनों चुप हो गए.अगले दिन शाम को बेल बजने पर रोहिणी ने दरवाजा खोला, सामने नमित था. बिना जवाब की प्रतीक्षा किए वह अंदर आ कर सोफे पर बैठ गया, तब तक रोहिणी के मातापिता भी आ चुके थे.

बात की शुरुआत नमित ने की, ‘‘रोहिणी भगवान ने हमारी सुन ली और हमारी गोद में जल्दी ही एक खूबसूरत उपहार देने वाले हैं, तो तुम अब यह सब क्यों कर रही हो.

‘‘जब मैं ने तुम्हें तलाक देना चाहा था, तब तो तुम किसी भी शर्त पर तलाक देने को तैयार नहीं थी, फिर अब क्या हुआ.. अब जब सबकुछ सही हो रहा है, सब ठीक होने जा रहा है, तो इस तरह की जिद का क्या औचित्य…‘‘

‘‘नमित, तुम्हें क्या लगता है… यह बच्चा तुम्हारा है? तो मैं तुम्हें यह साफसाफ बता दूं कि यह बच्चा तुम्हारा नहीं… मेरे कलीग सुभाष का है, जो इस तलाक के बाद जल्दी ही मुझ से शादी करने वाला है.

‘‘तुम ने मुझ पर चरित्रहीनता के झूठे आरोप लगाए थे न, मैं ने तुम्हारे लगाए हर उन आरोपों को सच कर के दिखा दिया. और साथ ही, यह भी दिखा दिया कि मुझ में कोई कमी नहीं, कमी तुम में है… तुम एक अधूरे मर्द हो. जो अपनी कमी से पनपी कुंठा, अब तक अपनी पत्नी पर उड़ेलते रहे. विश्वास न हो तो जा कर अपना चेकअप करवाओ और फिर जितनी चाहे, उतनी शादी करो.

‘‘तुम्हारे घर में तुम्हारी मां और बहन द्वारा दिए गए उन सारे जख्मों को मैं भुला देती, अगर बस तुम ने मेरा साथ दिया होता. औरत को बच्चे पैदा करने की मशीन मानने वाले तुम जैसे मर्द, मेरे तलाक नहीं देने के उस फैसले को मेरी एक अदद छत पाने की लालसा समझते रहे और मैं उसी छत के नीचे रह कर अपने ऊपर होते अत्याचारों की आंच पर तपती चली गई… अंदर से मजबूत होती चली गई. ऐसे में मुझे सहारा मिला सुभाष के कंधों का और उस ने एक सच्चा मर्द बन कर, सही मायने में मुझे औरत बनने का सौभाग्य दिया.

अब तुम्हारे द्वारा लगाए गए उन झूठे आरोपों को मैं सच्चा साबित कर के तुम से तलाक लूंगी और तुम्हें मुक्त करूंगी इस अनचाहे रिश्ते से, तुम्हें अपनी मरजी से शादी करने के लिए… जो तुम्हारे खानदान को तुम से वारिस दे सके, जो मैं तुम्हें नहीं दे पाई.

‘‘अब तुम जा सकते हो. कोर्ट में मिलेंगे,” बिना नमित के उत्तर की प्रतीक्षा किए रोहिणी उठ कर कमरे में चली गई.

Hindi Story : नजर वायरस – नजर अटैक से बच कर भैया

Hindi Story : भैया जी को देखते ही मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने काले धागे की दुकान खोल ली हो. उन के गले, दोनों हाथों और दोनों पैरों में काले धागे बंधे हुए थे जैसे काली कमली वाले बाबा हों.

मैं ने पूछा, ‘’भैया जी, क्या बात है, इतने सारे काले धागे शरीर पर बांध लिए क्या चक्कर है?‘’

भैया जी बोले, ‘’बंधु, बात को समझा करो, आजकल जमाना बहुत खराब है. कब, किस को, किस की नजर लग जाए, कुछ पता नहीं. इसलिए, काला धागा बांधना फैशन भी है, पैशन और जरूरत भी है

“तुम्हारी भाभी का कहना है कि तुम लोगों की नजर में जल्दी चढ़ जाते हो, इसलिए तुम्हें लोगों की नजर भी बहुत जल्दी लग जाती है. प्राचीन काल में तो बंगले को नजर लगने पर गाते थे- ’नज़र लगी राजा तोरे बंगले पर…’ आधुनिक काल में कंप्यूटर में वायरस अटैक हो जाता है. उस से बचने के लिए एंटी वायरस का उपयोग करते हैं. उसी प्रकार सदियों से इंसानों पर नजर अटैक होता रहा है, उस की काट के लिए काला धागा बांधना बहुत जरूरी है.

“जब इंसान की बनाई मशीन को नज़र लग सकती है, बंगले को नज़र लग सकती है तो कुदरत के बनाए हुए इंसान, जोकि बहुते ही संवेदनशील होता है, को नजर कैसे नहीं लग सकती. वह उस से कैसे बच सकता है. और बंधु, तुम्हारी भाभी का तो यह कहना है कि आप जाने कहांकहां जाते हो, पता नहीं किसकिस से मिलते हो, आप को कभी भी किसी की भी नजर लग सकती है.‘’

भैया जी थोड़ा सकुचाते, थोड़ा शरमाते हुए दबी हुई मुसकान से एक आंख दबा कर आगे कहने लगे, ‘’बंधु, तुम्हारी भाभी का मानना है कि मैं बहुत स्मार्ट हूं, नजर का टीका उतना असर नहीं करेगा, इसलिए काला धागा आदि हथियार से लैस कर के ही वे मुझे घर से बाहर निकलने देती हैं. उन का बस चलता तो जैसे ट्रक के सामने पुराना जूता लटका देते है वैसे ही कुछ न कुछ धतकरम जरूर करतीं.‘’

मैं ने भाभीजी के विचारों से पूर्ण सहमति व्यक्त करते हुए कहा, ‘’भैया जी, इन कवच कुंडल के बाद भी भूलचूक से आप को नजर लग गई तो मेरी सलाह यह है कि आप को ’बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला’ मंत्र का जाप करना चाहिए.”

भैया जी कहने लगे, ‘’बंधू, आधुनिक युग में पुराने मंत्र आउट आफ डेट हो गए हैं. इसलिए, जैसा देव वैसी पूजा. वायरस अटैक को निष्फल करने के लिए किसी भी गैजेट को वायरस-फ्री करवाना पड़ता है, उसी प्रकार हमारे यहां भी नजर से बचने के लिए बहुत सारे साधन हैं, जैसे काला टीका है, काला धागा है, गुग्गल की धूनी है, निम्बूमिर्ची है, राई नमक है आदि. काला धागा तो पुरानी क्या, नई पीढ़ी में भी बहुत लोकप्रिय है. हर दूसरी टांग में आप कला धागा बंधा देख लो.

“गुग्गल की धूनी देने से पूरा घर नज़र अटैक से फ्री हो सकता है. आप को यकीं न हो, तो गूगल बाबा पर सर्च कर लो. इस से कुछ फायदा हो या न हो, ज्ञान में वृद्धि जरूर हो जाती है, बाकी इतने सारे चैनल हैं जिन पर भविष्य भाग्य बताने वाले व अंतर्राष्ट्रीय कथाकार अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं, जो नजर से ले कर वशीकरण मंत्र के बारे में जनजागरण अभियान चला ही रहे हैं.‘’

मैं ने प्रतिपक्ष की तरह प्रतिप्रश्न किया, ‘’भैया जी, आप के चेहरे में ऐसी क्या बात है जो आप को कभी भी नजर लग जाती है, मेरी नज़र तो आप को कभी नहीं लगी?‘’

‘’बंधू, आप तो घर के आदमी हो. मुझे घर का जोगी जोगड़ा इसलिए समझते हो क्योंकि आप मेरा रोज देखते हो थोबड़ा. सो, आप की नज़र मुझ पर असर नहीं करती है.‘’

यह सुन कर मेरा मन कौमेडी शो के जज की तरह ठहाके लगाने की इच्छा करने लगा क्योंकि भैया जी ठहरे पक्के कृष्ण रंग वाले. इन को नजर कैसे लग सकती है बल्कि ये तो स्वयं नजर को लग जाएं, ऊपर से चेहरे पर थोड़ा सा माता के नूर का असर भी दिखता है. खैर, ’रंग और नूर की बरात किसे पेश करूं…‘ इस असमंजस में होते हुए भी मैं ने उन के और भाभी जी के विचारों का पूर्ण समर्थन कर दिया.

भैया जी के मौलिक विचारों को सुन कर और उन की हरकतें देख कर मैं अकसर मूढ़मति बन जाता हूं जैसे अमेरिका का राष्ट्रपति उत्तर कोरिया के किम जोंग उन को देख कर, उस के विचार सुन कर किंकर्तव्यमूढ़ हो जाता है. उधर अमेरिका टेड़ी नजर डालता है, इधर किम जोंग उन मिसाइल का परीक्षण करने लगता है. मैं भी भैया जी को देखकर किंकर्तव्यमूढ़ हो जाता हूं और अपने विचारों का परीक्षण उन पर करने लगता हूं.

भैया जी की एक विशेषता और है. जब वे खाना खाते हैं तब किसी से बात नहीं करते. उस समय वे उपहार में दिए गए लिफाफे को पूरापूरा वसूलने के मूड में रह कर सच्चे मेहमान होने का कर्तव्य निभाना अपना धर्म समझते हैं. और तो और, उस समय वे मुझ जैसे संकटमोचक को भी नहीं पहचानते हैं. मेरे पूछने पर भैया जी कहने लगे, ‘’बंधु, खाते समय अगर कोई गलत नजरों से देख ले तो देखने वाले की हाय लग जाती है, ऐसा मेरी मां और मेरी पत्नी दोनों कहती हैं.‘’

‘’भैया जी, ज्यादा खाने से आप की सेहत बिगड़ सकती है.‘’

‘’बंधु, स्वाद और सेहत में सदियों से संघर्ष चल रहा है, जिस में अधिकतर स्वाद की जीत होती है. और फिर, कौन नहीं खाता. हमें तो सिर्फ सुस्वादु भोजन का शौक है मगर कुछ लोग खानदान के नाम की रौयल्टी खा रहे हैं, कुछ लोग बाप के नाम की रौयल्टी खा रहे हैं. इस खाने के चक्कर में कुछ लोग बिना स्वाद वाली वस्तुएं भी खा चुके हैं. उन्हें तो कोई कुछ नहीं कहता जबकि वे काला धागा भी नहीं पहनते. बस, हमारे पीछे पड़े रहते हैं.‘’

मेरी शुभकामनाएं भैया जी के परिवार के साथ हैं कि प्रकृति उन्हें बुरी नज़रों और हाय लगने से हमेशा बचा कर रखे.

Romantic Story : विश्वास की आन – क्या मृदुला का सिद्धार्थ पर भरोसा करना सही था?

Romantic Story : ‘‘दिल संभल जा जरा, फिर मुहब्बत करने चला है तू…’’ गाने की आवाज से मृदुला अपना फोन उठाने के लिए रसोई से भागी, जो ड्राइंगरूम में पड़ा यह गाना गा रहा था. नंबर पर नजर पड़ते ही उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. नाम फ्लैश नहीं हो रहा था, पर जो  नंबर चमक रहा था वह उसे अच्छी तरह याद था. वह नंबर तो शायद वह सपने में भी न भूल पाए.

रोहन अपने कमरे से चिल्ला रहा था, ‘‘मौम, आप का फोन बज रहा है.’’

मृदुला ने झटके से फोन उठाया. एक नजर उस ने कमरे में टीवी देखने में व्यस्त ऋषि पर डाली और दूसरी नजर रोहन पर जो अपने कमरे में पढ़ रहा था. वह फोन उठा कर बाहर बालकनी की ओर बढ़ गई.

‘‘हैलो… हाय… क्या हाल हैं?’’

‘‘अब ठीक हूं,’’ उधर से आवाज आई.

‘‘क्यों? क्या हुआ?’’

‘‘बस तुम्हारी आवाज सुन ली बंदे का दिन अच्छा हो गया.’’

‘‘अच्छा, तो यह बात है… अच्छा बताओ फोन क्यों किया? आज मेरी याद कैसे आ गई? तुम अच्छे से जानते हो आज शनिवार है. ऋषि और रोहन दोनों घर पर होते हैं… ऐसे में बात करना मुश्किल होता है,’’ मृदुला जल्दीजल्दी कह रही थी.

‘‘मैं ने तो बस यह बताने के लिए फोन किया कि अब मुझ से ज्यादा सब्र नहीं होता. मैं अगले हफ्ते दिल्ली आ रहा हूं तुम से मिलने. प्लीज तुम किसी होटल में मेरे लिए कमरा बुक करवा दो जहां बस तुम हो और मैं और हो तनहाई,’’ सिद्धार्थ ने अपना दिल खोल कर रख दिया.

‘‘होटल? न बाबा न मैं होटल में मिलने नहीं आऊंगी.’’

‘‘तो फिर हम कहां मिलेंगे? मैं 1500 किलोमीटर मुंबई से दिल्ली सिर्फ तुम्हें मिलने आ रहा हूं ओर एक तुम हो जो होटल तक नहीं आ सकतीं.’’

मृदुला बातों में खोई हुई थी. उसे एहसास ही न हुआ कि कब रोहन अपने कमरे से निकल कर बाहर बालकनी में उस के पीछे आ खड़ा हो गया था.

रोहन पर नजर पड़ते ही मृदुला ने कहा, ‘‘अच्छा, मैं बाद में बात करती हूं,’’ और फिर फोन काट दिया.

‘‘किस का फोन था मौम?’’ रोहन ने पूछा.

‘‘वो… वो मेरी फ्रैंड का फोन था.’’ कह वह फोन ले कर रसोई में चली गई और सब्जी काटने लगी.

वैसे तो वह रसोई में काम कर रही थी पर दिलोदिमाग मुंबई में सिद्धार्थ के पास पहुंच चुका था. दिल जोरजोर से धड़क रहा था. बस एक मिलने की आस में वह पिछले 8 सालों से जल रही थी. अब समझ नहीं पा रही थी कि कहां, कब और कैसे मिलेगी.

जिंदगी में कब कोई आ जाए, इनसान जान ही नहीं पाता. कोई दिल के इतने करीब पहुंच जाता है कि बाकी सब से दूर हो जाता है.

यों तो मृदुला की जिंदगी में कोई कमी न थी. प्यार करने वाला पति ऋषि था. होशियार और समझदार 16 साल का बेटा रोहन था पर फिर सिद्धार्थ, औनलाइन फ्रैंड बन कर उस की जिंदगी में आ गया था और फिर सब उलटपुलट हो गया था.

वह बेटे और पति से छिपछिप कर कंप्यूटर से बहुत मेल और चैट करती थी और फोन भी बहुत करती थी. उस की जिंदगी का हर खुशीगम तब तक अधूरा होता जब तक वह उसे सिद्धार्थ से बांट न लेती.

दोस्ती एक जनून बन गई थी. वह उस से एक दिन भी बिना बात किए न रहती थी. रोज बात करना दोनों की दिनचर्या का अभिन्न अंग था. ऐसा ही कुछ हाल सिद्धार्थ का भी था.

यों तो मृदुला पति के औफिस और बेटे के स्कूल जाने के बाद बात करती थी, फिर भी रोहन गूगल की हिस्ट्री में जा कर कई बार पूछता था कि मम्मी यह सिद्धार्थ कौन है? और वह कुछ जवाब नहीं दे पाती थी सिवा इस के कि पता नहीं.

रोहन को कुछकुछ अंदाजा होता जा रहा था कि मम्मी कुछ ऐसा कर रही हैं, जिसे वे छिपा रही हैं. कई बार गुस्से और आक्रोश में वह अपनी परेशानी का इजहार भी करता पर ज्यादा कुछ कह न पाता.

अब मृदुला क्या करेगी, सिद्धार्थ से मिलने की तमन्ना को दबा लेगी? या फिर होटल जाएगी उस से मिलने? यही सब सोचसोच कर वह परेशान थी.

फिर अचानक उस ने अपना मन बना दिया और सिद्धार्थ को फोन मिला लिया,

‘‘सिद्धार्थ, मैं पहले ही जिंदगी में काफी डरडर कर तुम से बात करती हूं… मैं अब इस डर के साथ और नहीं जीना चाहती. मेरे मन में कोई खोट नहीं है और न ही तुम्हारे मन में, तो क्यों न तुम मेरे घर आ जाओ. मैं तुम से मिलने होटल नहीं आ पाऊंगी और न ही मैं तुम से मिलने का मौका गंवाना चाहती हूं.’’

मृदुला की बात सुन कर सिद्धार्थ हड़बड़ा गया, ‘‘पागल हो गई हो क्या? तुम्हारा पति और रोहन क्या कहेंगे? नहीं यह ठीक नहीं होगा.’’

‘‘क्या ठीक नहीं होगा? क्या यह मेरा घर नहीं है जहां मैं किसी को अपनी मरजी से बुला सकूं? मेरे मन में कोई खोट नहीं है. मैं ने तुम से दोस्ती की तो क्या गलत किया? और अगर ऋषि, रोहन कोई परेशानी हैं तो ठीक है हम इस चैप्टर को अभी हमेशा के लिए बंद कर देते हैं… पर मुझे एक बार तो तुम से मिलना ही है. बहुत बेताब है यह दिल तुम से मिलने को… तुम आओगे न मेरे घर?’’ एक सांस में मृदुला सब बोल गई.

‘‘मुझे थोड़ा वक्त दो सोचने का,’’ उस ने गंभीर होते हुए कहा.

‘‘बस घबरा गए? यों तो बहुत दलीलें देते थे कि मैं तुम्हारे एक बार बुलाने पर दौड़ा चला आऊंगा… अब क्या हुआ? देख ली तुम्हारी फितरत… तुम मुझे होटल में बुला कर मेरा नाजायज फायदा उठाना चाहते थे,’’ उस की आवाज ऊंची हो गई थी.

‘‘चुप करो,’’ सिद्धार्थ बोला, ‘‘ठीक है मैं 20 तारीख को 12 बजे वाली फ्लाइट से

दिल्ली आऊंगा और वह शाम तुम्हारे और तुम्हारी फैमिली के नाम… पर प्लीज, ऋषि मुझे मारेगा तो नहीं?’’

‘‘ठीक है, मैं इंतजार करूंगी,’’ कह कर फोन काट दिया.

मृदुला ने उसे अपने घर बुला तो लिया पर फिर  उलझन में पड़ गई कि ऋषि और रोहन को क्या बताएगी कि सिद्धार्थ कौन है?

ऋषि तो फिर भी समझ जाएगा पर न जाने रोहन कैसे रिएक्ट करेगा… उस की क्या इज्जत रह जाएगी उस के सामने…

इंतजार के 7 दिन एक इम्तिहान की तरह गुजरे जिन में पलपल वह अपने  निर्णय पर अफसोस करती रही, पछताती रही.

मृदुला के अंदर चल रहे तूफान की बाहर किसी को भनक न थी. इन 7 दिनों में मिलने की दिली चाहत को दिमाग में चल रहे प्रश्न ‘अब क्या होगा’ ने दबा दिया था. अब मृदुला को मिलने की तीव्र इच्छा से ज्यादा इस बात की टैंशन थी कि 20 तारीख को वह ऐसा क्या करे ताकि सब अच्छी तरह से निबट जाए?

सुबह उठती तो इसी आस के साथ कि काश 20 तारीख को ऋषि और रोहन अपने दोस्तों से मिलने चले जाएं और वह सिद्धार्थ से बिना टैंशन के मिल सके. पर अकसर लोग जो सोचते हैं वह होता नहीं. उन दोनों का भी ऐसा कोई प्रोग्राम नहीं बना.

आखिरकार 20 तारीख आ ही गई. इस दौरान वह सिद्धार्थ से कोई बात न कर पाई. सारी रात करवटें बदलतेबदलते निकाल दी उस ने कि कल का दिन न जाने क्या तूफान ले कर आएगा उस की जिंदगी में.

कई मरतबा उस ने अपनेआप को कोसा भी कि क्यों ऐसा निर्णय लिया, पर तीर कमान से निकल चुका था. यह भी नहीं कह सकती थी कि वह न आए.

न जाने किस रौ और विश्वास में बह कर उस ने सिद्धार्थ को इतनी दूर से बुला लिया था. घर में शांति थी. सब अपनेअपने काम में लगे थे. तूफान से पहले ऐसा ही सन्नाटा होता है.

ठीक 3 बजे सिद्धार्थ का फोन आ गया, ‘‘मैं एअरपोर्ट पहुंच चुका हूं.’’

मृदुला का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. आंखें खुशी से चमकने लगीं और चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया.

‘‘एक बार फिर सोच लो, कहीं और मिल लेते हैं?’’ सिद्धार्थ ने घबराते हुए पूछा.

‘‘नहीं, अब जो होगा देखा जाएगा. मैं पीछे नहीं हटूंगी,’’ कह उस ने उसे मैट्रो से घर आने का रास्ता बताया और फिर फोन काट दिया.

अब मारे घबराहट के उस के हाथपैर फूलने लगे थे. ऋषि और रोहन अपनेअपने कमरे में थे. अचानक घंटी बजी. धड़कते दिल से उस ने दरवाजा खोला तो एक स्मार्ट, आकर्षक, लंबा, सांवला 38 वर्षीय युवक उस के सामने खड़ा था, जिसे देख उस का मुंह खुला का खुला रह गया.

वही चिरपरिचित हाय सुन कर वह चहक उठी और फिर अपने सूखे गले से धीरे से कहा, ‘‘हाय, आओ अंदर आओ.’’

डरतेडरते सिद्धार्थ ने अंदर कदम रखा, तो झट से रोहन अपने कमरे से बाहर ड्राइंगरूम में आ गया.

‘‘बेटा, ये सिद्धार्थ अंकल हैं.’’

मृदुला के मुंह से सिद्धार्थ नाम बड़ी मुश्किल से निकला, जिसे सुन कर रोहन थोड़ा सकपका गया और फिर अपना गुस्सा छिपाता जल्दी से नमस्ते कर के अपने कमरे में चला गया.

अपनी बेचैनी, घबराहट को छिपाते मृदुला ने हलकी मुसकान से सिद्धार्थ को देखा और सोफे पर बैठने को कहा.

ऋषि के कमरे में कोई हलचल नहीं थी. वहां रोज की तरह टीवी चल रहा था. ऋषि टीवी के सामने बैठे थे. वह कमरे में गई और बोली, ‘‘कोई आया है.’’

‘‘कौन?’’

‘‘सिद्धार्थ.’’

‘‘सिद्धार्थ कौन?’’ चौंकते हुए ऋषि ने पूछा.

‘‘मेरा दोस्त,’’ एक झटके में उस ने बोल दिया और अब वह तैयार थी किसी भी परिणाम के लिए. उस ने निर्णय कर लिया था कि अगर ऋषि नहीं चाहेगा तो वह वहां नहीं रहेगी और सिद्धार्थ के साथ तो कतई नहीं. वह जानती थी कि वह उस का अच्छा दोस्त तो हो सकता है पर अच्छा हमसफर नहीं.

10 मिनट तक ऋषि ने न तो कोई जवाब दिया और न ही अपनी जगह से हिला.

मृदुला रसोई में जा कर कौफी बनाने लगी. बीचबीच में अकेले बैठे सिद्धार्थ से भी बतियाती रही.

अचानक रोहन रसोई में आया और अपना आक्रोश निकालते हुए घर से बाहर चला गया.

कौफी बना कर लाई तो मृदुला ने देखा कि ऋषि कमरे से बाहर आया और फिर बड़े आराम से सिद्धार्थ से हाथ मिला कर उस के पास बैठ गया. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा कि न जाने अब क्या हो. यह उन दोनों के रिश्ते की मजबूती थी कि कभी भी अपने आपसी झगड़े, गलतफहमी और शिकवेशिकायत को किसी के सामने नहीं आने दिया. यह सब कुछ बैडरूम के बाहर नहीं आता था. चाहे कितनी भी लड़ाई हो बैडरूम के बाहर वे नौर्मल पतिपत्नी ही होते थे. 10 मिनट बैठ कर बात करने से माहौल की बोझिलता थोड़ी कम हो गई थी. फिर वह मृदुला और सिद्धार्थ को अकेले छोड़ कर वापस अपने कमरे में चला गया.

पूरी तरह से संभालने में मृदुला को थोड़ा वक्त लगा. जैसेजैसे वक्त बीतता गया. उस का खोया विश्वास लौटने लगा आधे घंटे बाद रोहन वापस आया और सीधा रसोई में चला गया. वह उस के पीछेपीछे रसोई में गई तो देखा रोहन समोसे और जलेबियां ले कर आया था.

मृदुला ने आश्चर्य से उस की तरफ देखा तो वह बोला, ‘‘मां, आप के दोस्त के लिए. जब मेरे दोस्त आते हैं तब आप भी तो बाजार जा कर हमारे लिए पैप्सी और चिप्स लाती हो हमारी पसंद का, तो मैं भी आप की पसंद का आप के फ्रैंड के लिए लाया हूं… क्या आप को हक नहीं है दोस्त बनाने का?’’

मृदुला की आंखों में खुशी के आंसू भर आए और फिर वह खुशीखुशी प्लेट में समोसे और जलेबियां डालने लगी.

करीब 2 घंटे बाद सिद्धार्थ 7 बजे की फ्लाइट से मुंबई लौट गया.

सिद्धार्थ के जाने के बाद मृदुला को डर लग रहा था कि न जाने अब ऋषि क्या बखेड़ा करेगा. डर के मारे वह उस के सामने जाने से कतरा रही थी.

रात का खाना खाने के बाद जब वह बिस्तर पर लेटी तो ऋषि ने पूछा, ‘‘सिद्धार्थ

चला गया?’’

‘‘हां, चला गया.’’

‘‘तुम्हारा सच्चा दोस्त लगता है, तभी इतनी दूर से तुम से मिलने चला आया.’’

‘‘आप को बुरा लगा कि मैं ने एक आदमी से दोस्ती की? मुझे अपना घर दोस्त से ज्यादा प्यारा है और आज की इस हरकत के लिए आप जो चाहो मुझे सजा दे सकते हो.’’

‘‘सजा? कैसी सजा? तुम ने कुछ गलत तो नहीं किया… मैं 1 हफ्ते पहले से ही जानता था कि तुम्हारा दोस्त आने वाला है.’’

मृदुला यह सुन कर चौंक गई. फिर बोली, ‘‘तो आप ने मुझे कुछ कहा क्यों नहीं?’’

‘‘देखो मृदुला, मैं ने 20 साल तुम्हारे साथ काटे हैं… तुम्हारी रगरग से वाकिफ हूं. तुम चाहतीं तो उस से बाहर भी मिल सकती थीं पर तुम ने ऐसा नहीं किया…

कहीं अंदर तुम्हें भी मुझ पर हमारे रिश्ते पर विश्वास था… मैं उन पतियों में से नहीं हूं जो पत्नी को इनसान नहीं समझते… दोस्ती तो किसी से और कभी भी हो सकती है… हफ्ता भर पहले जब तुम ने उसे फोन पर घर आने का न्यौता दिया था तभी मैं ने तुम्हारी सारी बातें सुन ली थीं और मैं तुम्हारे विश्वास को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता था. विश्वास की आन तो मुझे रखनी ही थी,’’ पति की बातें सुन कर मृदुला की आंखों से खुशी की आंसू बहने लगे.

‘‘और हां रही बात यह कि एक आदमी और एक औरत कभी दोस्त नहीं हो सकते, उस में मैं समझता हूं कि मैं ने आज तक तो तुम्हें कभी शिकायत का मौका नहीं दिया… क्यों ठीक कह रहा हूं न मैं?’’

पति की आखिरी बात का मतलब समझते हुए मृदुला शर्म से लाल हो गई और फिर लजाती हुई पति की बांहों में समा गई.

Best Hindi Story : घर ससुर – बाबूजी ने क्यों बेटीदामाद के घर रहने का फैसला लिया

Best Hindi Story : नाराज बाबूजी जब घर ससुर बन कर दामाद के यहां रहने चले गए तो मेघा और मेहुल लोकलाज की वजह से परेशान हो उठे. फिर मेघा ने अपने ही मायके में कुछ ऐसा नजारा देखा कि बाबूजी के प्रति अब तक रखे गए अपने उदासीन रवैए पर उसे शर्मिंदगी महसूस होने लगी. सब्जी काटती हुई मेघा के कान मेहुल की बातों की ओर लगे हुए थे. वह स्पीकर फोन से पितापुत्र की बातों को चुपचाप सुन रही थी. उस के ससुर अपनी बेटी सीमा के घर से बोल रहे थे.

मेहुल ने तल्ख शब्दों में पूछा था, ‘‘मैं आप से फिर पूछ रहा हूं पिताजी कि आप घर आ रहे हैं या नहीं. आखिर कब तक दामाद के घर पड़े रहेंगे? अपनी नहीं तो मेरी इज्जत का तो कुछ खयाल कीजिए. भला आज तक किसी ने ‘घर ससुर’ बनने की बात सुनी है. मुझे तो लगता है कि आप का दिमाग ही चल गया है जो ऐसी बातें करते हैं.’’
‘‘नहीं सुनी तो अब सुन लो, और कितनी बार कहूं कि मैं ने घर ससुर बनने का फैसला काफी सोचसमझ कर लिया है. मुझे अपने दामाद का घर ही अच्छा लग रहा है. कम से कम यहां एक प्याली चाय के लिए 10 बार कुत्ते की तरह भौंकना नहीं पड़ता. सीमा और किशोर मेरी हर बात का पूरा खयाल रखते हैं.
‘‘और सुनो, मेहुल, जब वे लोग भी मुझे बोझ समझने लगेंगे तो दिल्ली का ‘आशीर्वाद सीनियर सिटीजन्स होम’ तो है ही मुझ जैसे उपेक्षित और बोझ बन चुके बूढ़ों के लिए. इसलिए तुम लोग अब मेरी चिंता मत करो,’’ मेघा के ससुर रुद्रप्रताप सिंह बोले.

जवाब में मेहुल कुछ और विषवमन करता हुआ बोला, ‘‘तो फिर बने रहिए घर ससुर और दामाद के हाथों अपनी इज्जत की धज्जियां उड़वाते रहिए.’’

मेघा को अपने ससुर के कहे शब्द स्पष्ट सुनाई पडे़, ‘‘हांहां, अपना आत्मसम्मान खो कर बेइज्जत बाप बने रहने से कहीं बेहतर है कि मैं इज्जतदार ‘घर ससुर’ ही बना रहूं,’’ और इसी के साथ उन्होंने फोन पटक कर अपनी नाराजगी जाहिर की तो मेहुल ने भी गुस्से में स्पीकर का स्विच बंद कर दिया.

मेघा को अपनेआप पर ग्लानि हो आई. सोचने लगी कि उस के मायके में जब लोगों को पता चलेगा कि उस की और मेहुल की लापरवाही के चलते उस के ससुर को बेटी के घर जाना पड़ा तो मायके के लोग उन के बारे में क्या सोचेंगे. उस की भाभियां क्या मां को ताना मारने का ऐसा सुनहरा अवसर हाथ से जाने देंगी. नहींनहीं, किसी भी तरह रिश्तेदारों को यह खबर होने से पहले उसे अपने ससुर को मना कर वापस लाना ही पडे़गा.

इस बारे में पहले मेहुल से बात करनी होगी. यह सोच कर मेघा ने मेहुल से कहा, ‘‘देखो, जो भी हुआ ठीक नहीं हुआ. आखिर वह तुम्हारे पिताजी हैं और उन्होंने तुम को दो बातें कह भी दीं तो क्या हुआ, तुम्हें चुप रहना था. थोड़ा सा सह लेते और उन से नरमी से पेश आते तो यों बात का बतंगड़ नहीं बनता.’’
‘‘हांहां, अब तो तुम भली बनने का नाटक करोगी ही लेकिन तब एक वृद्ध व्यक्ति को समय पर खाना और चायनाश्ता देने में तुम्हारी नानी मरती थी. उस पर रातदिन बाबूजी की शिकायत करकर के तुम्हीं ने मेरा जीना हराम कर रखा था. अब भी तुम्हें बाबूजी के जाने का दुख नहीं है बल्कि उन के साथ पेंशन के 10 हजार रुपए जाने का गम सता रहा है.’’
इस तरह मेहुल ने सारा दोष मेघा के सिर मढ़ दिया तो वह तिलमिला उठी और व्यंग्यात्मक लहजे में बोली, ‘‘तो तुम भी कौन सा बाबूजी की याद में तड़प रहे हो. अपने दिल पर हाथ रख कर कहो कि तुम्हें बाबूजी के रुपयों की कोई जरूरत नहीं है.’’

मेहुल को जब मेघा ने उलटा आईना दिखाया तो वह खामोश हो गया. फिर कुछ नरमी से बोला, ‘‘खैर, जो हो गया सो हो गया. अब इस पर बहस कर के क्या फायदा. सोचो कि उन्हें कैसे बुलाया जाए. क्योंकि जितना मैं उन्हें जानता हूं वह अब खुद आने वाले नहीं हैं. अभी तो वह सीमा के घर हैं पर जहां कहीं उन के आत्म- सम्मान को जरा सी ठेस पहुंची तो वह ‘आशीर्वाद सीनियर सिटीजन्स होम’ जाने में एक पल की भी देर नहीं लगाएंगे. उस के बाद वहां से वह शायद ही वापस आएं.’’
‘‘तुम कहो तो मैं बात कर के देखती हूं,’’ मेघा बोली, ‘‘अब गलती हम ने की है तो उसे सुधारने की कोशिश भी हमें ही करनी पडे़गी. पिताजी हैं.’’
‘‘नहीं, रहने दो,’’ मेहुल बोला, ‘‘बाबूजी को गए महीना भर तो हो ही गया है. अब हफ्ते भर बाद ही बच्चों की क्रिसमस की छुट्टियां होने वाली हैं. हम सब जा कर बाबूजी को मना कर आदर के साथ ले आएंगे.’’
यह सब सुन कर हुर्रे कहते हुए रानी और फनी परदे के पीछे से निकल आए जो मम्मीपापा की ऊंची आवाज सुन कर वहां आ गए थे.
‘‘मां, सच में दादाजी हमारे पास वापस आ जाएंगे?’’ दोनों बच्चे खुशी से उछलते हुए एक स्वर में बोले.
‘‘हां, बेटे, वह जरूर आएंगे. हम सब मिल कर उन्हें लेने जाएंगे,’’ मेघा भीगे स्वर में बोली तो मेहुल के चेहरे पर भी स्नेहसिक्त मुसकान आ गई.
बच्चों की छुट्टियां शुरू होने पर वे अपनी कार से बाबूजी को लेने निकल पडे़. मेहुल ने घर छोड़ने से पहले फोन पर सीमा से यह पूछ लिया था कि बाबूजी घर पर हैं कि नहीं और उन का कहीं जाने का कार्यक्रम तो नहीं है.’’

सच है बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो साथ रहने वाले अपनों के महत्त्व को समझ नहीं पाते पर किसी कारण से जब वही अपने दूर चले जाते हैं तब उन की कमी शिद्दत से महसूस करते हैं. यही हाल मेहुल और मेघा का था. जब तक बाबूजी साथ रहते थे उन्हें हर समय ऐसा लगता था कि बाबूजी बेवजह उन के कामों में टोकाटाकी करते हैं. बच्चों से गैरजरूरी बातें कर के उन का समय बरबाद करते हैं. बाबूजी ने सब पर ही एक तरह से अंकुश लगा रखा था. ऐसा लगता था मानो उन की आजादी खत्म हो गई थी.

बाबूजी कहते थे कि जीवन में कुछ बनने के लिए अपने बच्चों में अनुशासन का बीजारोपण करने के लिए खुद को अनुशासित रह कर आचरण करना पड़ता है तभी बच्चे भी हमें अपना आदर्श मान कर हम से कुछ सीख पाते हैं. तब मेघा और मेहुल को उन की ये बातें कोरी बकवास लगा करती थीं किंतु आज उन्हें बाबूजी की कही एकएक बात में सचाई का आभास हो रहा है.

बाबूजी से हर महीने उन की पेंशन को लेना तो उन्हें याद रहा या यों कहें कि अपना अधिकार तो उन्हें याद रहा पर फर्ज निभाने से वे चूक गए. अपनी सहेलियों के साथ गप लड़ाते हुए मेघा अकसर भूल जाती कि बाबूजी चाय के लिए इंतजार कर रहे हैं. वह शुगर के मरीज हैं पर उन के ही दिए पैसों से शुगर फ्री खरीदने में उन्हें पैसों की बरबादी लगती थी.

मेहुल ने भी कभी यह न सोचा कि वृद्ध पिता को उस से भी कुछ उम्मीदें हो सकती हैं. दो घड़ी मेहुल से बात करने को वह तरस जाते पर उस को इस की कोई परवा न थी. बाबूजी ने तो मेहुल के बड़ा होते ही उसे अपना मित्र बना लिया था पर वही कभी उन का दोस्त नहीं बन पाया.

अचानक गाड़ी घर्रघर्र कर हिचकोले खा कर रुक गई. यह तो अच्छा हुआ कि पास ही में एक मोटर गैराज था. धक्के दे कर गाड़ी को वहां तक ले जाया गया. मैकेनिक ने जांच करने के बाद बताया कि ब्रेक पाइप फट गया है और उसे ठीक होने में कम से कम एक दिन तो लगेगा ही. चूंकि यह एक इत्तेफाक था कि हादसा मेघा के मायके वाले शहर में हुआ था. इसलिए कोई उपाय न देख उन्होंने गाड़ी ठीक होने तक मेघा के मायके में रुकने का फैसला लिया.

एक टैक्सी कर मेहुल अपने परिवार को ले कर ससुराल की ओर चल दिया. उन्हें अचानक आया देख कर सभी बहुत खुश हुए. मेघा के परिवार में मम्मीपापा के अलावा उस के 2 बडे़ भाई और भाभियां थीं. बडे़ भैया के 2 जुड़वां बेटे जय और लय तथा छोटे भैया की एक बेटी स्वीटी थीं. बच्चों में उम्र का ज्यादा फासला नहीं था इसलिए जल्दी ही वे एकदूसरे से घुलमिल गए और हुड़दंग मचाने लगे.

मांबाबूजी के साथ थोड़ी देर बातें करने के बाद मेघा मेहुल को वहीं छोड़ कर रसोई की ओर चल पड़ी जहां उस की दोनों भाभियां रात के खाने की तैयारी में जुटी थीं.

मेघा ने भाभियों का हाथ बंटाना चाहा पर उन्होंने उस का मन रखने के लिए चावल बीनने की थाली पकड़ा दी और वहीं रसोई के बाहर पड़ी कुरसी पर बैठा लिया. मेघा ने देखा कि उस की भाभियों ने बातोंबातों में कितने सारे पकवान बना लिए. वे जब 2 तरह की सब्जियां बना रही थीं तब मेघा ने पूछ लिया कि भाभी यह कम तेलमसाले की सब्जी किस के लिए बना रही हो तो बड़ी भाभी ने कहा कि मम्मीपापा बहुत सी खाने की चीजों से परहेज करते हैं. उन की उम्र देखते हुए उन के लिए थोड़ा अलग से बनाना पड़ता है.
‘‘पर मांबाबूजी को तो कोई बीमारी नहीं है. फिर उन के लिए आप लोग इतना झंझट क्यों कर रही हैं?’’ मेघा ने पूछा.
जवाब छोटी भाभी ने दिया, ‘‘तो क्या हुआ, बुजुर्ग लोग हैं, परहेज करते हैं तभी तो उन का स्वास्थ्य अच्छा है. फिर उन के लिए कुछ करने में कष्ट कैसा? यह तो हमारा फर्ज है. वैसे भी तुम जितना अपने ससुर के लिए करती हो उस हिसाब से हम तो कुछ भी नहीं करतीं.’’
‘‘मैं ने क्या किया और आप को कैसे पता चला?’’ मेघा कुछ असमंजस भरे स्वर में बोली.
‘‘अब रहने भी दो, दीदी,’’ बड़ी भाभी हंसती हुई बोलीं, ‘‘ज्यादा बनो मत. कल ही तो तुम्हारे ससुरजी का फोन आया था. उन्होंने ही तुम्हारे और मेहुल के बारे में हमें सबकुछ बताया.’’

मेघा के मन में जाने कैसेकैसे कुविचार और संदेह सिर उठाने लगे कि बाबूजी ने जरूर उन की शिकायत की होगी और इसीलिए भाभियां उसे यों ताने मार रही हैं पर मन का संशय प्रकट न कर मेघा बोली, ‘‘क्या बताया बाबूजी ने, क्या वह हम से नाराज हैं?’’

‘‘भला क्यों नाराज होंगे? वह तो तुम्हारी और मेहुल की बहुत तारीफ कर रहे थे. कह रहे थे कि बहू तो ऐसी है कि किसी चीज के लिए मेरे मुंह खोलने से पहले ही वह समझ जाती है कि मुझे क्या चाहिए.’’

पता नहीं भाभी और क्याक्या कहती रहीं, मेघा को और कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था. उस की अंतरात्मा उसे धिक्कारने लगी कि अपनी नासमझी की वजह से उस ने कभी बाबूजी की परवा नहीं की. अपनी सुविधानुसार इस बात का खयाल किए बगैर कि वह खाना बाबूजी के स्वास्थ्य के लिए उचित है या नहीं, वह कुछ भी उन के सामने रख देती थी.

शुरुआत में 1-2 बार बाबूजी ने उसे प्यार से समझाने की कोशिश की थी पर उस ने कोई ध्यान न दिया. नतीजतन, उन की तबीयत आएदिन खराब हो जाती थी. एक उस की भाभियां हैं जो उस के स्वस्थ मातापिता का कितना ध्यान रखती हैं और एक वह है.

दूसरी ओर बाबूजी हैं कि इतना होने पर भी मायके में उस की किसी से शिकायत न कर तारीफ ही की. पश्चात्ताप की आग में जलती हुई उस की भावनाएं आंसुओं के रूप में आंखों से छलकने लगीं. वह मन ही मन प्रतिज्ञा करने लगी कि अब आगे से वह कभी भी बाबूजी को किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं देगी.

उधर मेहुल भी मेघा के भाइयों का अपने मातापिता के साथ व्यवहार देख कर ग्लानि से भरा जा रहा था. मेघा के दोनों भाई अपना खुद का कारोबार संभालते थे. दोनों ने ही घर आ कर उस दिन की बिक्री से प्राप्त रुपयों से अपने पिताजी को अवगत कराया. हालांकि उन्होंने किसी से भी रुपयों का ब्योरा देने के लिए नहीं कहा था. कुछ देर पास बैठ पितापुत्र ने एकदूसरे का हालचाल पूछा. फिर वे लोग मेहुल के साथ व्यस्त हो गए.

मेहुल मन ही मन सोच रहा था कि वह तो अपने पिता का इकलौता पुत्र है. इसलिए उसे तो उन की हर बात की ओर ध्यान देने की जरूरत है. मां के गुजर जाने के बाद वह अपनी बात कहते भी तो किस से. वह क्यों नहीं अब तक अपने पिता के मन की पीड़ा को समझ पाया. अब से वह बाबूजी के पेंशन के रुपयों को हाथ भी नहीं लगाएगा बल्कि उन की जरूरतों को अपने कमाए रुपए से पूरी करेगा.

अगले दिन गाड़ी ठीक हो कर घर आ गई पर मेघा के घर वालों ने जिद कर के उन्हें 2 दिन और रोक लिया. इस दौरान मेहुल ने मेघा के भाइयों का अपने मातापिता के साथ बातचीत और व्यवहार को देख कर पहली बार जाना कि बुजुर्गों के अनुभव से कैसे लाभ उठाया जा सकता है. बच्चे कैसे दादा- दादी की वजह से अपने पारिवारिक इतिहास को जानते हैं तथा अपनी संस्कृति और रिश्तों की जड़ों से जुड़ते हैं. हमारे बुजुर्ग ही तो इन सारी चीजों की मूल जड़ होते हैं, हम तो बस, शाखा मात्र होते हैं. यदि मूल जड़ को ही काट कर फेंक दिया जाए तो गृहस्थी का वृक्ष कैसे फलफूल सकता है.

जब से मेघा और मेहुल बच्चों सहित बाबूजी को लेने निकले तो उन दोनों के सामने अपना ध्येय बिलकुल साफ हो चुका था. उन्हें विश्वास था कि उन की नादानी को माफ कर बाबूजी अवश्य उन के साथ वापस अपने घर आ जाएंगे. भला उन जैसा स्वाभिमानी व्यक्ति कभी ‘घर ससुर’ बन कर थोड़े ही रह सकता है. यह सब तो उन्हें सबक सिखाने के लिए बाबूजी ने कहा होगा. इस विश्वास के साथ वे खुशी मन से अपनी मंजिल की ओर बढ़ चले.

Indian Air Force : रक्षा सौदों पर भड़के एयर चीफ मार्शल

Indian Air Force : भारत चारों तरफ से ऐसे देशों से घिरा हुआ है जो हमारी सुरक्षा और शांति को कभी भी छिन्नभिन्न कर सकते हैं. चाहे वह पाकिस्तान हो, नेपाल या श्रीलंका. इन को उकसाने वाली ताकतें और बड़ी हैं जैसे चीन और अमेरिका.

हाल ही में पहलगाम में आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारत ने औपरेशन सिंदूर चलाया, जिस के बाद पाकिस्तान से तनाव और बढ़ गया है. औपरेशन सिंदूर को सफलतापूर्वक संपन्न करने के बाद भी जंग का माहौल बना हुआ है.

भारत ने 23 अप्रैल को सिंधु जल संधि को स्थगित करने समेत पाकिस्तान के खिलाफ कई कदम उठाने की घोषणा की है. इस से भविष्य में तनाव बढ़ने का जोखिम काफी बढ़ गया है. वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कह ही दिया है कि औपरेशन सिंदूर अभी खत्म नहीं हुआ है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी हुंकार भर रहे हैं कि यह तो अभी सिर्फ वार्मअप है. यानी युद्ध कभी भी छिड़ सकता है.

ऐसे में सेनाओं की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है. वैसे भी इस बार की लड़ाई कश्मीर के विवादित क्षेत्र तक सीमित नहीं थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि अगर भारत पर फिर से हमला हुआ तो नई दिल्ली सीमा पार “आतंकवादी ठिकानों” को फिर से निशाना बनाएगी. मगर कोई भी लड़ाई अच्छे हथियारों के बिना नहीं जीती जा सकती है. आप सिर्फ धमकियां देदे कर दुश्मन को हरा देंगे, ऐसा तो संभव नहीं है.

जंग जीतनी है, तो सेनाओं को संसाधनों से मजबूत करना होगा. सेना की ताकत में कटौती करेंगे, उन को समय से हथियार उपलब्ध न करा के, उन की वीरता का श्रेय खुद ले कर सेना की वर्दी में अपने पोस्टर देश भर में लगवाते फिरेंगे तो सेना का मनोबल कैसे ऊपर उठेगा?

आप अपनी राजनीति चमकाने के लिए सेना को भी मोहरा बनाने से बाज नहीं आ रहे हैं. औपरेशन सिंदूर की सफलता को मीडिया के सामने बयान करने के लिए सोचीसमझी रणनीति के तहत सेना की दो महिला अधिकारियों – कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को लाया गया. यह एक अच्छी बात बनी रहती अगर मुस्लिमों के प्रति मन में घोर नफरत पालने वाले भाजपाई नेता कर्नल सोफिया कुरैशी के बारे में अनर्गल बातें कर के सेना के साहस और शौर्य को अपमानित न करते.

अब उस की लीपापोती के लिए कर्नल सोफिया कुरैशी को भाजपा अल्पसंख्यक विंग की ‘पोस्टर गर्ल’ बनाया जा रहा है. यानी आप अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए सेना को भी इस्तेमाल करने से नहीं चूक रहे हैं तो ऐसे में सेना के बड़े अधिकारीयों का भड़कना लाजिमी है.

29 मई को सीआईआई के वार्षिक बिजनेस समिट – 2025 के उद्घाटन सत्र में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति में एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह ने सेना को हथियार सप्लाई के बारे में जो कुछ कहा वह बताता है कि अब धैर्य जवाब दे रहा है. वायुसेना प्रमुख ने भरी सभा में राजनाथ सिंह के मुंह पर बोल दिया कि एक भी डिफैंस प्रोजेक्ट समय से पूरा नहीं होता है.

मजे की बात है कि जिस मंच पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह औपरेशन सिंदूर को ले कर मोदी सरकार की तारीफ कर रहे थे, उसी मंच पर भारतीय वायु सेना के प्रमुख, एयर चीफ मार्शल ए. पी. सिंह ने सैन्य उपकरणों की खरीद में हो रही लगातार देरी को ले कर सारा कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया.

एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह ने 29 मई को डिफैंस सिस्टम की खरीद और डिलीवरी में हो रही देरी पर एयर चीफ मार्शल ने यह तक कह दिया कि सरकार जो पूरे नहीं कर सकती वैसे वादे करते ही क्यों हैं? कई बार कौन्ट्रैक्ट साइन करते समय ही पता होता है कि यह समय पर नहीं होगा, फिर भी साइन कर देते हैं, जिस से पूरा सिस्टम खराब हो जाता है.

यह पहला मौका है जब किसी सेना प्रमुख ने सिस्टम पर इस तरह का सवाल उठाया है. सीआईआई वार्षिक बिजनेस समिट में एयर चीफ मार्शल ने कहा – टाइमलाइन एक बड़ा मुद्दा है. समय से डिफैंस प्रोजेक्ट पूरा न होने की वजह से औपरेशनल तैयारी पर असर पड़ता है.

एयर चीफ मार्शल ने कहा कि वायु शक्ति के बिना कोई सैन्य अभियान सफल नहीं हो सकता. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे पास क्षमता और सामर्थ्य दोनों हों. सिर्फ ‘मेक इन इंडिया’ कहना काफी नहीं है, अब हमें ‘भारत में डिजाइन और विकास’ की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे.

इस से पहले 8 जनवरी को भी चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह ने तेजस लड़ाकू विमानों की डिलीवरी में हो रही देरी को ले कर चिंता जाहिर की थी. उन्होंने कहा था कि 40 जेट अभी तक फोर्स को नहीं मिले हैं. जबकि चीन और पाकिस्तान जैसे देश अपनी ताकत बढ़ा रहे हैं. एयरफोर्स चीफ ने लाइट कौम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) कार्यक्रम का हवाला देते हुए कहा कि फरवरी 2021 में एचएएल के साथ तेजस एमके1 ए फाइटर जेट के लिए 48000 करोड़ का कान्ट्रैक्ट साइन किया गया था. डिलीवरी मार्च 2024 से शुरू होनी थी, लेकिन आज तक एक भी विमान नहीं आया. तेजस एमके2 का प्रोटोटाइप भी अभी तक तैयार नहीं हुआ है. एडवांस्ड स्टेल्थ फाइटर एएमसीए का भी अभी तक कोई प्रोटोटाइप नहीं है.

एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह यहीं नहीं रुके उन्होंने साफ कहा कि हमें आज तैयारी करनी होगी तभी हम भविष्य के लिए भी तैयार हो सकेंगे. आने वाले 10 साल में इंडस्ट्री से ज्यादा आउटपुट मिलेगा, यह ठीक है, लेकिन आज हमें जो जरूरत है वह आज ही पूरी होनी चाहिए.

हम सिर्फ भारत में मैन्युफैक्चरिंग के बारे में बात नहीं कर सकते. हमें डिजाइनिंग के बारे में भी बात करनी होगी. हमें सेना और इंडस्ट्री के बीच भरोसे की जरूरत है. एक बार जब हम किसी चीज के लिए प्रतिबद्ध हो जाते हैं, तो हमें उसे पूरा करना चाहिए.

एयर चीफ मार्शल ए. पी. सिंह ने आगे कहा, जब हम एक राष्ट्र के बारे में बात करते हैं, तो हम सभी सेना, नौसेना, वायु सेना, विभिन्न एजेंसियां, उद्योग, डीआरडीओ – हम सभी एक बड़ी चेन के कड़ियां हैं और हम सभी को यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारा ग्रुप, जिस से मैं भी संबंधित हूं, वह कमजोर समूह नहीं है जिस की वजह से यह चेन टूट जाए.

एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने युद्ध में बढ़ते तकनीकी दखल को ले कर भी चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा- निसंदेह भारत ने औपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान में बैठे आतंकियों को भारी नुकसान पहुंचाया. मगर चीफ औफ नेवल स्टाफ ने मुझ से कहा कि युद्ध का तरीका बदल रहा है. हम हर दिन नई तकनीक की खोज कर रहे हैं. अब तकनीक की युद्ध में अहम भूमिका हो गई है.

औपरेशन सिंदूर ने बताया देश किस दिशा में जा रहा और आगे क्या करना है. हमें भविष्य में क्या करना है, इस को ले कर औपरेशन सिंदूर ने आइडिया दे दिया है. अभी बहुत काम बाकी है. युद्ध सेनाओं को सशक्त बना कर जीते जाते हैं.

चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह की चिंता जायज है. इस वक्त चीन सिक्स जेनेरशन ड्रोन्स उड़ा रहा है, और भारत फोर्थ जेनेरशन ड्रोन्स पर भी ठीक तरीके से काम नहीं कर पा रहा है. इसी कार्यक्रम में नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी ने कहा कि आज के युग में युद्ध और शांति की सीमाएं धुंधली होती जा रही हैं.

गैरराज्यीय तत्व वाणिज्यिक तकनीकों का उपयोग कर सुरक्षा चुनौतियां बढ़ा रहे हैं. हम ‘सामूहिक सटीकता’ के युग में हैं, जहां अत्यंत सटीक क्षमताओं का होना हर देश के लिए आवश्यक है. आतंकवादी हमले तेजी से बड़े संघर्ष में बदल सकते हैं, और बिना प्रत्यक्ष टकराव वाले युद्ध, साइबर तथा अंतरिक्ष क्षेत्र का उपयोग अब यथार्थ बन चुका है. भारतीय नौसेना भी साल 2047 तक पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बल बनने के लिए प्रतिबद्ध है.

मगर यह तभी हो सकेगा जब मोदी सरकार अपनी स्वार्थपरक राजनीति से ऊपर उठ कर सचमुच देश की सुरक्षा के बारे में गंभीरता से सोचे और सैन्य बलों में काटछांट न कर के उन को सभी आवश्यक हथियार निश्चित समय सीमा में उपलब्ध कराए.

हमारे सैनिक संसाधनों के अभाव में किस तरह देश की सुरक्षा में अपनी जान की बाजी लगा रहे हैं, यह दर्द उन के परिवारों से पूछिए, जिन्होंने अपने जांबाज बेटों को सिर्फ इसलिए खो दिया क्योंकि उन के पास अच्छे लड़ाकू विमान नहीं थे या बेहतर हथियार नहीं थे.

कितनी शर्मनाक बात है की इस बात को भी मोदी सरकार ने ढांपने की कोशिश की कि औपरेशन सिंदूर के दौरान हमारे किसी एयरक्राफ्ट को क्षति पहुंची. मगर मीडिया में बारबार क्षतिग्रस्त एयरक्राफ्ट के टुकड़े दिखाए जाने के बाद अंततः सीडीएस अनिल चौहान ने 31 मई को मीडिया के सामने औपरेशन सिंदूर के दौरान राफेल जेट गिरने की बात स्वीकार कर ली है. हालांकि कितने राफेल जेट क्षतिग्रस्त हुए यह बात अभी भी परदे में है.

कांग्रेस पार्टी ने सीडीएस अनिल चौहान के इस स्वीकारोक्ति को ले कर केंद्र सरकार से सवाल किया है, जिस में उन्होंने कहा था कि महत्वपूर्ण ये नहीं है कि विमान गिराए गए बल्कि ये है कि वे क्यों गिरे? कांग्रेस ने कहा कि राफेल गिरने की बात को सीडीएस ने स्वीकार कर लिया है. अब सरकार को इस से इनकार करना बंद कर देना चाहिए कि हमारा कोई नुकसान नहीं हुआ है. साफ है तकनीक के मामले में हम पिछड़ रहे हैं.

उधर वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह के बयान मीडिया में आने के बाद आम आदमी पार्टी ने भी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए एक्स पर लिखा – मोदी सरकार भारतीय सेनाओं को कमजोर कर रही है. वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह ने साजोसामान मिलने में हो रही देरी पर सरकार को चेताया है.

गोलाबारूद, हथियार और लड़ाकू विमानों की आपूर्ति में लगातार देरी हो रही है. अग्निवीर योजना से स्थायी सैन्य बल में भारी कटौती जैसे सरकार के फैसलों का सीधा असर सैन्य क्षमता पर पड़ रहा है. प्रधानमंत्री मोदी से अपील है कि वे देश की सुरक्षा से समझौता बंद करें और सेनाओं को कमजोर न करने वाली नीतियों पर ध्यान दें.

गौरतलब है कि हिंदुस्तान टाइम्स ने 2015 में बताया था, कि लगभग 10 परियोजनाएं, जिन की स्वीकृत लागत औसतन 1,686 करोड़ रुपए है, औसतन 5 साल से विलंबित हैं. और यह समस्या केवल भारतीय वायुसेना तक ही सीमित नहीं है.

मार्च 2012 में तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिख कर चेतावनी दी थी, कि भारतीय सेना के टैंकों में गोलाबारूद खत्म हो गया है, और कमियों को दूर करने तथा सेना को युद्ध स्तर पर लाने की जरूरत है. सिंह ने लगभग 97 प्रतिशत वायु रक्षा को अप्रचलित बताया था और कहा था कि विशेष बलों के पास हथियारों की बहुत कमी है.

जनरल वी.के. सिंह, मार्च 2014 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए. वे 2014 में लोकसभा सांसद बने, और उन्हें मंत्री भी बनाया गया. सिंह ने अपने पत्र में दावा किया था, कि उन्हें ‘घटिया’ खरीद आदेश को मंजूरी देने के लिए 14 करोड़ रुपए की रिश्वत की पेशकश की गई थी.

विदेशी कंपनियों के साथ भारत के रक्षा अनुबंध अक्सर भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे रहे हैं, जिस के परिणामस्वरूप सरकार को वित्तीय नुकसान होता है, और सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण में बाधा उत्पन्न होती है. लेकिन दुखद यह है, कि जनरल वी.के. सिंह सरकार में आकर भी उस बीमारी का इलाज नहीं कर पाए, जिस की शिकायत उन्होंने पिछली सरकार से की थी.

Kota Coaching Centers : कोचिंग शहर कोटा का पीआर

Kota Coaching Centers : स्टूडैंट्स के सुसाइड करने की घटनाओं के कारण बदनाम हो रहे कोटा ने अब अपने पूरे कोचिंग शहर की पब्लिसिटी शुरू की है. कुछ कोचिंग सैंटरों ने मिल कर कोचिंग के गिरते नाम को बचाने की कोशिश की है. एक एडवरटाइजमैंट में कोचिंग इंस्टिट्यूट्स को केयरिंग इंस्टिट्यूट्स कहा गया है. इन के द्वारा 10 लाख से अधिक डाक्टर्स व इंजीनियर्स देने का बखान किया गया है. उन के इमोशनल वैलबीइंग सैंटरों की बात की गई है.

रेगिस्तान व धूलभरे राजस्थान का कोटा शहर कोचिंग सैंटर बन गया, यह अजबगजब बात है. ऐसे शहर अब कई हो गए हैं. सीकर हो गया है. हिसार होने लगा है. इस बाबत अब तो शहरों में आपस में कंपीटिशन होने लगा है. हर बड़ी कोचिंग कंपनी अपनी ब्रांचें हर शहर में खोलने लगी हैं. फिर भी कोटा की यूएसपी अभी बरकरार है और उसे बचाए रखने के लिए बड़ी कंपनियों ने पैसे जमा कर के अपना पीआर शुरू किया है ताकि पेरैंट्स इसे सुसाइडों का शहर मान कर बच्चों को भेजना बंद न कर दें.

कोचिंग सिटीज या बड़े शहरों में कोचिंग कंपनियां असल में रैगुलर स्कूलों और कालेजों की कैपेसिटी व इंट्रेस्ट की पोल खोलती हैं. रैगुलर स्कूलकालेजों में खर्च तो बराबर का होता है पर वहां उतनी तेजी से पढ़ने और एग्जाम में बैठ कर पेपर सौल्व करने की तकनीक नहीं सम झाई जाती, जो एग्जाम पैटर्न की जरूरत है.

कोटा एजुकेशनल मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री ने तो अब जानबू झ कर एग्जाम लेने वालों को ब्राइब दे कर ऐसे पेपर भी बनवाने शुरू कर दिए हैं जिन को सौल्व करने की स्किल रैगुलर स्कूलकालेज सिखा ही नहीं सकते. जब वे एग्जाम सिस्टम को बदलवा सकते हैं तो उन के लिए शहर की इमेज सुधारना मुश्किल नहीं है, क्योंकि इस पूरे धंधे में पैसा बहुत है. पेरैंट्स सूटकेस भरभर कर पैसा ला रहे हैं और अपने लाड़लों के फ्यूचर के लिए आज के नए एजुकेशन इंडस्ट्रियलिस्टों को दे रहे हैं जो सपने बेचते हैं, नौलेज नहीं.

पूरा मौडल कुछ के सपनों के सच होने पर चल रहा है, इसलिए शहर का पीआर करना सस्ते का सौदा है.

Teenage Crime : टीन्स के आगे पावरलैस पेरैंट्स

Teenage Crime : टीनएज क्राइम नया तो नहीं है पर अब इस में इंटरनैट और सोशल मीडिया का एमलगेशन हो गया है और टीनएज छोटीछोटी बातों पर बेहद स्ट्रैस महसूस करने लगे हैं. ब्रिटिश मिनी सीरीज ‘एडोलोसैंस’ ने फिल्मक्राफ्ट, यंग ऐक्टर और अपने सब्जैक्ट के जरिए एक तरह का तहलका मचा दिया है. एक घंटे का एक एपिसोड बिना कैमरे को रोके फिल्माया गया है और कैमरा एक कैरेक्टर से दूसरे पर लैंड करता है लेकिन पता नहीं चलता जो टीनएजर्स की उल झी जिंदगी की मेज पर पेज खोलता चला जाता है.

आज के टीन्स जो भाषा यूज कर रहे हैं वह बड़ों के लिए मोहनजोदाड़ो वाली स्क्रिप्ट सी है. उन की लैंग्वेज ही जब सम झ नहीं आए तो उन की फीलिंग्स, उन के फीयर, उन के फेल्योर के रीजन, उन के छोटेछोटे अचीवमैंट, उन की पार्टियां, उन की ड्रग और सैक्स की हैबिट्स कैसे समझ आएंगी. आज बिस्तर में क्विल्ट ओढ़ कर टीन्स जो मैसेज पासवर्ड से चल रहे मोबाइल के जरिए एकदूसरे को पास कर रहे हैं वे एडल्ट्स को पता नहीं होते. अगर उन्होंने उन्हें डांटडपट कर मोबाइल खुलवा लिया तो भी मैसेजों की भाषा सम झ नहीं आएगी.

इस सीरीज में एक 13 साल का लड़का अपनी स्कूलमेट को किचन नाइफ से 7 गहरे जख्म कर के मार डालता है क्योंकि उसे लगता है कि वह उस से हेट करती है. आज के टीन लड़कों को लगता है कि 80 फीसदी लड़कियां केवल 20 फीसदी लड़कों को पसंद करती हैं क्योंकि बाकी 80 फीसदी लड़के अगली, इंपोटैंट, इग्नोरैंट होते हैं.

लड़कियां ऐसा सोचती हैं या नहीं, यह पक्का नहीं पर अगर ऐसा है भी तो सरप्राइजिंग नहीं क्योंकि आज का टीन और यंग बुरी तरह भटक गया है. सोशल मीडिया का हैंडल उस के हाथ में है तो फ्रैंडशिप की डैफिनिशन ही बदल गई है. फेसबुक, इंस्टाग्राम पर जिन्हें फौलो करते हो, जिन्हें फ्रैंड बनाते हो उन्हें जानते भी नहीं हो पर वे ही वर्चुअल फ्रैंड हैं और फिजिकल पेजैंट के साथ स्कूलमेट, स्पौर्ट्समेट, बसमेट, नेबर सब कामचलाऊ जानपहचान वाले हैं जिन्हें घंटों के लिए जरूरत के समय रखा जाता है.

ज्यादा इंपौर्टेंट फ्रैंड सोशल मीडिया वाले हो गए हैं जिन से मिले नहीं, जो टीन्स के घर को जानते नहीं, जिन्हें अपने सैकड़ों फ्रैंड्स में किसी के दुखसुख से मतलब नहीं. ये फ्रैंड सिर्फ इमोजी से काम करते हैं या अजबगजब एक्रोनिम इस्तेमाल करते हैं और तीनचार शब्दों के मैसेज में लव, हेट, डिसअपौइंटमैंट, ब्रेकअप कर डालते हैं. ऐसे टीन्स हर समय स्ट्रैस में रहते हैं क्योंकि किसी भी वर्चुअल फ्रैंड का मैसेज कभी भी आ सकता है और उस को सैकंडों में जवाब देना होता है.

यह स्ट्रैस आज के टीन्स को ड्रग्स और वायलैंस की ओर ले जा रहा है. पेरैंट्स सिर्फ घर, खाना या पौकेटमनी देने के लिए रह गए हैं. सोशल मीडिया से कमाई नहीं होती पर पेरैंट्स अब कुछ भी कर के बहुत ज्यादा खर्च कर रहे हैं. सोशल मीडिया ऐसा ओपियम बन चुका है जिसे बेचने के लिए 1830 से 1860 तक ब्रिटेन ने चीन पर हमला किया और ट्रेड करने का राइट पाया. आज अमेरिकी कंपनियां इंटरनैट के जरिए गरीब और अमीर देशों के घरों में घुस कर सोशल मीडिया के सहारे डिजिटल ओपियम बेच रही हैं. दुनिया के सब से ज्यादा अमीर कपड़ा, खाना, मकान, गाड़ी नहीं बेच रहे, वे सिर्फ सोशल मीडिया प्लेटफौर्म बेच रहे हैं.

‘एडोलोसैंस’ मिनी सीरीज पेरैंट्स के लिए बनी है पर वे अब हैल्पलैस हैं क्योंकि वे खुद सोशल मीडिया के दूसरे अटैक रिलीजन के शिकार हैं. उन को सोशल मीडिया ने उसी तरह इग्नोरैंस, रौंग हिस्ट्री, वायलैंस, फौल्स नैशनलिज्म बेचा है जैसा टीन्स और यंग्स को सैक्स, ड्रग्स, फौल्स फ्रैंडशिप, फौल्स रिलेशनशिप बांटा है. आज के पेरैंट्स किसी को सपोर्ट करने लायक नहीं हैं. वे काम कर के पैसे कमा रहे हैं पर वे किसी भी तरह की नौलेज नहीं रखते. उन के लिए भी पार्टियां जरूरी हैं चाहे पौलिटिकल हों, रिलीजंस हों या ड्रिंक्स व डांस वाली.

पेरैंट्स भी आज वीक हैं और उन से यह एक्सपैक्ट करना कि वे टीन्स को सम झेंगे या सम झाएंगे, इंपौसिबल है. सोशल मीडिया अनचैक्ड, अनएडिटिड इन्फौर्मेशन या कहिए डिसइन्फौर्मेशन इस बुरी तरह परोस रहा है कि पेरैंट्स पावरलैस एडल्ट्स बन कर रह गए हैं जो अपने टीन या यंग बच्चों को प्रोटैक्ट नहीं कर सकते. दुनियाभर में अब लोग फिर से स्ट्रे डौग्स की तरह बनते जा रहे हैं जिन्हें खाने को तो मिल रहा है पर जीने की ट्रेनिंग नहीं मिल रही.

Love Story : बेवजह – कहानी युवती के पिघलते हुए एहसासों की

Love Story : ‘‘तू ने वह डायरी पढ़ी?’’ प्राची ने नताशा से पूछा.

‘‘हां, बस 2 पन्ने,’’ नताशा ने जवाब दिया.

‘‘क्या लिखा था उस में?’’

’’ज्यादा कुछ नहीं. अभी तो बस 2 पन्ने ही पढ़े हैं. शायद किसी लड़के के लिए अपनी फीलिंग्स लिखी हैं उस ने.’’

‘‘फीलिंग्स? फीलिंग्स हैं भी उस में?‘‘ प्राची ने हंसते हुए पूछा.

‘‘छोड़ न यार, हमें क्या करना. वैसे भी डायरी एक साल पुरानी है. क्या पता तब वह ऐसी न हो,’’ नताशा ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘अबे रहने दे. एक साल में कौन सी कयामत आ गई जो वह ऐसी बन गई. तू ने भी सुना न कि उस के और विवान के बीच क्या हुआ था. और अब उस की नजर तेरे अमन पर है. मैं बता रही हूं उसे तान्या के साए से भी दूर रख, तेरे लिए अच्छा होगा.’’

‘‘हां,’’ नताशा ने हामी भरी.

‘‘चल तू यह डायरी जल्दी पढ़ ले इस से पहले कि उसे डायरी गायब होने का पता चले. कुछ चटपटा हो तो मु झे भी बताना,’’ कहते हुए प्राची वहां से निकल गई.

नताशा कुछ सोचतेसोचते लाइब्रेरी में जा कर बैठ गई. 2 मिनट बैठ कर वह तान्या के बारे में सोचने लगी. उस के मन में तान्या को ले कर कई बातें उमड़ रही थीं. आखिर तान्या की डायरी में जो कुछ लिखा था उस की आज की सचाई से मिलताजुलता क्यों नहीं था? क्यों तान्या उसे कभी भी अच्छी नहीं लगी. वह एक शांत स्वभाव की लड़की है जो किसी से ज्यादा मतलब नहीं रखती. लेकिन, विवान के साथ उस का जो सीन था वह क्या था फिर.

पिछले साल कालेज में हर तरफ तान्या और विवान के किस्से थे. तान्या और विवान एकदूसरे के काफी अच्छे दोस्त थे. हालांकि, हमेशा साथ नहीं रहते थे पर जब भी साथ होते, खुश ही लगते थे. पर कुछ महीनों बाद तान्या और विवान का व्यवहार काफी बदल गया था. दोनों एकदूसरे से कम मिलने लगे. जबतब एकदूसरे के सामने आते, यहांवहां का बहाना बना कर निकल जाया करते थे. किसी को सम झ नहीं आया असल में हो क्या रहा है. फिर 2 महीने बाद नताशा को प्राची ने बताया कि तान्या और विवान असल में एकदूसरे के फ्रैंड्स विद बैनिफिट्स थे. उन दोनों ने कानोंकान किसी को खबर नहीं होने दी थी, लेकिन उसे खुद विवान ने एक दिन यह सब बताया था. उन दोनों के बीच यह सब तब खत्म हुआ जब तान्या ने ड्रामा करना शुरू कर दिया. ड्रामा यह कि वह हर किसी को यह दिखाती थी कि वह बहुत दुखी है और इस की वजह विवान है. वह तो बिलकुल पीछे ही पड़ गई थी विवान के.

नताशा को यह सब सुन कर तान्या पर बहुत गुस्सा आया था. उस जैसी शरीफ सी दिखने वाली लड़की किसी के साथ फ्रैंड्स विद बैनिफिट्स में रहेगी और फिर पीछे भी पड़ जाएगी, यह उस ने कभी नहीं सोचा था. जब क्लासरूम में डैस्क के नीचे उसे तान्या की डायरी पड़ी मिली तो वह उसे पढ़ने से खुद को रोक नहीं पाई. वह बस यह जानना चाहती थी कि आखिर यह तान्या डायरी में क्या लिखती होगी, अपने और लड़कों के किस्से या कुछ और.

लाइब्रेरी में बैठेबैठे ही नताशा ने वह डायरी पढ़ ली. डायरी पूरी पढ़ते ही उस ने अपना फोन उठाया और प्राची को कौल मिला दी.

‘‘हैलो,’’ प्राची के फोन उठाते ही नताशा ने कहा.

‘‘हां, बोल क्या हुआ,’’ प्राची ने पूछा.

‘‘जल्दी से लाइब्रेरी आ.’’

‘‘हां, पर हुआ क्या?’’

‘‘अरे यार, आ तो जा, फिर बताती हूं न.’’

‘‘अच्छा, रुक, आई,’’ प्राची कहते हुए लाइब्रेरी की तरफ बढ़ गई.

प्राची नताशा के पास पहुंची तो देखा कि वह किसी सोच में डूबी हुई है. प्राची उस की बगल में रखी कुरसी पर बैठ गई.

‘‘बता, क्या हुआ,’’ प्राची ने कहा.

‘‘यार, हम ने शायद तान्या को कुछ ज्यादा ही गलत सम झ लिया.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि तू यह डायरी पढ़. तू खुद सम झ जाएगी कि मैं क्या कहना चाहती हूं और यह भी कि तान्या के बारे में हम जो कुछ सोचते हैं, सचाई उस से बहुत अलग है. तू बस यह डायरी पढ़, अभी इसी वक्त,’’ नताशा ने प्राची को डायरी थमाते हुए कहा.

‘‘हां, ठीक है,’’ प्राची ने कहा और डायरी हाथ में ले कर पढ़ना शुरू किया.

5/9/18

कितना कुछ है जो मैं तुम से कहना चाहती हूं, कितना कुछ है जो तुम्हें बताना चाहती हूं, तुम से बांट लेना चाहती हूं. पर तुम कुछ सम झना नहीं चाहते, सुनना नहीं चाहते, कुछ कहना नहीं चाहते. मैं खुद को बहुत छोटा महसूस करने लगी हूं तुम्हारे आगे. ऐसा लगने लगा है कि मेरी सारी सम झ कहीं खो गई है. मेरी उम्र उतनी नहीं जिस में मु झे बच्चा कहा जा सके. बस, 18  ही तो है. उतनी भी नहीं कि मु झे बड़ा ही कहा जाए. इस उम्र में कुछ दीनदुनिया भुला कर जी रहे हैं, कुछ नौकरी कर रहे हैं, कुछ पढ़ रहे हैं तो कुछ प्यारव्यार में पड़े हैं.

मैं किस कैटेगरी की हूं, मु झे खुद को सम झ नहीं आ रहा. शायद उस कैटेगरी में हूं जिस में सम झ नहीं आता कि जिंदगी जा किस तरफ रही है. ऐसा लग रहा है कि बस चल रही है किसी तरह, किसी तरफ. मेरे 2 रूप बन चुके हैं, एक जिस में मैं अच्छीखासी सम झदार लड़की हूं और अपने कैरियर के लिए दिनरात मेहनत कर रही हूं. दूसरा, जहां मैं किसी को पाने की चाह में खुद को खो रही हूं और ऐसा लगने लगा है कि मेरा दिमाग दिनबदिन खराब हुआ जा रहा है.

कैसी फिलोसफर सी बातें करने लगी हूं मैं, है न? तुम हमेशा कहते रहते हो कि मैं इस प्यार और दोस्ती जैसी चीजों में माथा खपा रही हूं, यह सब मोहमाया है जिस में मैं जकड़ी जा रही हूं. पर तुम यह क्यों नहीं देखते कि मैं अपने कैरियर पर भी तो ध्यान दे रही हूं, पढ़ती रहती हूं, हर समय कुछ नया करने की कोशिश करती हूं. तुम्हारी हर काम में मदद भी तो करती हूं मैं, अपने खुले विचार भी तो रखती हूं तुम्हारे सामने. यह सबकुछ नजर क्यों नहीं आता तुम्हें?

शायद तुम सिर्फ वही देखते हो जो देखना चाहते हो. लेकिन, अगर मेरे इस प्यारव्यार से तुम्हें कोई मतलब ही नहीं है, फिर मु झ में तुम्हें बस यही क्यों नजर आता है, और कुछ क्यों नहीं?

13/9/18

मैं सम झ चुकी हूं कि तुम्हें मु झ से कोई फर्क नहीं पड़ता. अच्छी बात है. मैं ही बेवकूफ थी जो तुम्हारे साथ पता नहीं क्याक्या ही सोचने लगी थी. जो कुछ भी था हमारे बीच उसे मैं हमारी दोस्ती के बीच में नहीं लाऊंगी. लेकिन, तुम्हें नहीं लगता कि उस बारे में अगर हम कुछ बात कर लेंगे तो हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा. मु झे ऐसा लगने लगा है जैसे तुम ने मु झे खुद को छूने दिया, लेकिन मन से हमेशा दूर रखा. मैं तुम्हारे करीब हो कर भी इतना दूर क्यों महसूस करती हूं. जो सब मैं लिखती हूं, वह कह क्यों नहीं सकती तुम से आ कर.

5/10/18

हां, मैं ने हां कहा तुम्हें बारबार, पर सिर्फ तुम्हें ही कहा, यह तो पता है न तुम्हें. मैं तुम्हें तब गलत क्यों नहीं लगी जब मैं ने यह कहा था कि मैं तुम्हें चाहने लगी हूं, लेकिन तुम्हें मजबूर नहीं करना चाहती कि तुम मु झ से जबरदस्ती रिश्ते में बंधो. याद है तब तुम ने क्या कहा था कि तुम भी मु झ में इंटरेस्टेड हो लेकिन किसी रिश्ते में पड़ कर मु झे खोना नहीं चाहते. मैं इतना सुन कर भी बहुत खुश हुई थी. मु झे लगा था अगर 2 लोग एकदूसरे में इंटरैस्ट रखते हों, तो फिर तो कोई परेशानी ही नहीं है.

मैं ने बस इतना सोचा कि तुम्हें मेरी फिक्र है, तुम मु झे खोना नहीं चाहते और इतना शायद दोस्ती से बढ़ कर कुछ सम झने के लिए काफी है. फिर, जब तुम मु झे अचानक से ही नजरअंदाज करने लगे, मु झ से नजरें चुराने लगे, और मैं ने गुस्से में तुम्हें यह कहा कि तुम ने मु झे तकलीफ पहुंचाई है, तो तुम मु झे ही गलत क्यों कहने लगे?

23/10/18

एक दोस्त हो कर अगर तुम एक दोस्त के साथ सैक्स करने को गलत नहीं मानते, तो मैं क्यों मानूं? नहीं लगा मु झे कुछ गलत इस में, तो नहीं लगा. पर मैं ने यह भी तो नहीं कहा था न कि मेरे लिए तुम सिर्फ एक दोस्त हो. यह तो बताया था मैं ने कि तुम्हारे लिए बहुतकुछ महसूस करने लगी हूं मैं. फिर तुम ने यह क्यों कहा कि मेरी गलती है जो मैं तुम से उम्मीदें लगाने लगी हूं.

26/10/18

नहीं, तुम सही थे. ऐसा कुछ था ही नहीं जिसे ले कर मु झे दुखी होना चाहिए. आखिर हां तो मैं ने ही कहा था. फैं्रड्स विद बैनिफिट्स ही था वह. अगर कुछ दिन पहले पूछते तुम मु झ से कि मैं दुखी हूं या नहीं तो मैं कहती कि मैं बहुत दुखी हूं, मर रही हूं तुम्हारे लिए. लेकिन अब मैं ऐसा नहीं कहूंगी. बल्कि कुछ नहीं कहूंगी. और कहूं भी क्यों जब मु झे पता है कि तुम्हें फर्क नहीं पड़ेगा. मैं भी कोशिश कर रही हूं कि मु झे भी फर्क न पड़े.

हां, जब भी कालेज की कैंटीन में तुम्हें किसी और से उसी तरह बात करते देखती हूं जिस तरह खुद से करते हुए देखा करती थी तो बुरा लगता है मु झे. वह हंसी जो तुम मेरे सामने हंसा करते थे. सब याद आता है मु झे, बहुत याद आता है. पर यह सब मैं तुम्हें नहीं बताना चाहती, अब नहीं.

2/11/18

तुम्हारी गलती नहीं थी, मु झे सम झ आ गया है. तुम मु झे नहीं चाहते और इस में तुम्हारी गलती नहीं है और न ही मेरी है. उस वक्त हम एकदूसरे को छूना चाहते थे, महसूस करना चाहते थे, सीधे शब्दों में सैक्स करना चाहते थे, जो हम ने किया. मैं न तुम्हें सफाई देना चाहती हूं कोई और न किसी और को. अब अगर तुम ने या किसी ने भी मु झ से यह पूछा कि मैं ने हां क्यों की थी तो मेरा जवाब यह नहीं होगा कि मैं तुम्हें चाहने लगी थी.  मेरा जवाब होगा कि मैं तुम्हारे साथ सैक्स करना चाहती थी, जो मैं ने किया, और मु झे नहीं लगता कि इस में कुछ भी गलत है.

तुम किसी को बताना चाहो तो बता दो, अब मु झे फर्क पड़ना बंद हो चुका है. मु झे अगर अपनी इच्छाओं और  झूठी शान में से कुछ चुनना हो तो मैं अपनी इच्छाएं ही चुनूंगी, हमेशा. लेकिन, मैं तुम से अब कभी उस तरह नहीं मिलूंगी जिस तरह कभी मिलती थी. उस तरह बातें नहीं करूंगी जिस तरह किया करती थी. तुम्हारे लिए वैसा कुछ फील नहीं करूंगी जो कभी करती थी. सब बेवजह था, मैं समझ चुकी हूं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें