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Hindi Story : नजर वायरस – नजर अटैक से बच कर भैया

Hindi Story : भैया जी को देखते ही मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने काले धागे की दुकान खोल ली हो. उन के गले, दोनों हाथों और दोनों पैरों में काले धागे बंधे हुए थे जैसे काली कमली वाले बाबा हों.

मैं ने पूछा, ‘’भैया जी, क्या बात है, इतने सारे काले धागे शरीर पर बांध लिए क्या चक्कर है?‘’

भैया जी बोले, ‘’बंधु, बात को समझा करो, आजकल जमाना बहुत खराब है. कब, किस को, किस की नजर लग जाए, कुछ पता नहीं. इसलिए, काला धागा बांधना फैशन भी है, पैशन और जरूरत भी है

“तुम्हारी भाभी का कहना है कि तुम लोगों की नजर में जल्दी चढ़ जाते हो, इसलिए तुम्हें लोगों की नजर भी बहुत जल्दी लग जाती है. प्राचीन काल में तो बंगले को नजर लगने पर गाते थे- ’नज़र लगी राजा तोरे बंगले पर…’ आधुनिक काल में कंप्यूटर में वायरस अटैक हो जाता है. उस से बचने के लिए एंटी वायरस का उपयोग करते हैं. उसी प्रकार सदियों से इंसानों पर नजर अटैक होता रहा है, उस की काट के लिए काला धागा बांधना बहुत जरूरी है.

“जब इंसान की बनाई मशीन को नज़र लग सकती है, बंगले को नज़र लग सकती है तो कुदरत के बनाए हुए इंसान, जोकि बहुते ही संवेदनशील होता है, को नजर कैसे नहीं लग सकती. वह उस से कैसे बच सकता है. और बंधु, तुम्हारी भाभी का तो यह कहना है कि आप जाने कहांकहां जाते हो, पता नहीं किसकिस से मिलते हो, आप को कभी भी किसी की भी नजर लग सकती है.‘’

भैया जी थोड़ा सकुचाते, थोड़ा शरमाते हुए दबी हुई मुसकान से एक आंख दबा कर आगे कहने लगे, ‘’बंधु, तुम्हारी भाभी का मानना है कि मैं बहुत स्मार्ट हूं, नजर का टीका उतना असर नहीं करेगा, इसलिए काला धागा आदि हथियार से लैस कर के ही वे मुझे घर से बाहर निकलने देती हैं. उन का बस चलता तो जैसे ट्रक के सामने पुराना जूता लटका देते है वैसे ही कुछ न कुछ धतकरम जरूर करतीं.‘’

मैं ने भाभीजी के विचारों से पूर्ण सहमति व्यक्त करते हुए कहा, ‘’भैया जी, इन कवच कुंडल के बाद भी भूलचूक से आप को नजर लग गई तो मेरी सलाह यह है कि आप को ’बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला’ मंत्र का जाप करना चाहिए.”

भैया जी कहने लगे, ‘’बंधू, आधुनिक युग में पुराने मंत्र आउट आफ डेट हो गए हैं. इसलिए, जैसा देव वैसी पूजा. वायरस अटैक को निष्फल करने के लिए किसी भी गैजेट को वायरस-फ्री करवाना पड़ता है, उसी प्रकार हमारे यहां भी नजर से बचने के लिए बहुत सारे साधन हैं, जैसे काला टीका है, काला धागा है, गुग्गल की धूनी है, निम्बूमिर्ची है, राई नमक है आदि. काला धागा तो पुरानी क्या, नई पीढ़ी में भी बहुत लोकप्रिय है. हर दूसरी टांग में आप कला धागा बंधा देख लो.

“गुग्गल की धूनी देने से पूरा घर नज़र अटैक से फ्री हो सकता है. आप को यकीं न हो, तो गूगल बाबा पर सर्च कर लो. इस से कुछ फायदा हो या न हो, ज्ञान में वृद्धि जरूर हो जाती है, बाकी इतने सारे चैनल हैं जिन पर भविष्य भाग्य बताने वाले व अंतर्राष्ट्रीय कथाकार अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं, जो नजर से ले कर वशीकरण मंत्र के बारे में जनजागरण अभियान चला ही रहे हैं.‘’

मैं ने प्रतिपक्ष की तरह प्रतिप्रश्न किया, ‘’भैया जी, आप के चेहरे में ऐसी क्या बात है जो आप को कभी भी नजर लग जाती है, मेरी नज़र तो आप को कभी नहीं लगी?‘’

‘’बंधू, आप तो घर के आदमी हो. मुझे घर का जोगी जोगड़ा इसलिए समझते हो क्योंकि आप मेरा रोज देखते हो थोबड़ा. सो, आप की नज़र मुझ पर असर नहीं करती है.‘’

यह सुन कर मेरा मन कौमेडी शो के जज की तरह ठहाके लगाने की इच्छा करने लगा क्योंकि भैया जी ठहरे पक्के कृष्ण रंग वाले. इन को नजर कैसे लग सकती है बल्कि ये तो स्वयं नजर को लग जाएं, ऊपर से चेहरे पर थोड़ा सा माता के नूर का असर भी दिखता है. खैर, ’रंग और नूर की बरात किसे पेश करूं…‘ इस असमंजस में होते हुए भी मैं ने उन के और भाभी जी के विचारों का पूर्ण समर्थन कर दिया.

भैया जी के मौलिक विचारों को सुन कर और उन की हरकतें देख कर मैं अकसर मूढ़मति बन जाता हूं जैसे अमेरिका का राष्ट्रपति उत्तर कोरिया के किम जोंग उन को देख कर, उस के विचार सुन कर किंकर्तव्यमूढ़ हो जाता है. उधर अमेरिका टेड़ी नजर डालता है, इधर किम जोंग उन मिसाइल का परीक्षण करने लगता है. मैं भी भैया जी को देखकर किंकर्तव्यमूढ़ हो जाता हूं और अपने विचारों का परीक्षण उन पर करने लगता हूं.

भैया जी की एक विशेषता और है. जब वे खाना खाते हैं तब किसी से बात नहीं करते. उस समय वे उपहार में दिए गए लिफाफे को पूरापूरा वसूलने के मूड में रह कर सच्चे मेहमान होने का कर्तव्य निभाना अपना धर्म समझते हैं. और तो और, उस समय वे मुझ जैसे संकटमोचक को भी नहीं पहचानते हैं. मेरे पूछने पर भैया जी कहने लगे, ‘’बंधु, खाते समय अगर कोई गलत नजरों से देख ले तो देखने वाले की हाय लग जाती है, ऐसा मेरी मां और मेरी पत्नी दोनों कहती हैं.‘’

‘’भैया जी, ज्यादा खाने से आप की सेहत बिगड़ सकती है.‘’

‘’बंधु, स्वाद और सेहत में सदियों से संघर्ष चल रहा है, जिस में अधिकतर स्वाद की जीत होती है. और फिर, कौन नहीं खाता. हमें तो सिर्फ सुस्वादु भोजन का शौक है मगर कुछ लोग खानदान के नाम की रौयल्टी खा रहे हैं, कुछ लोग बाप के नाम की रौयल्टी खा रहे हैं. इस खाने के चक्कर में कुछ लोग बिना स्वाद वाली वस्तुएं भी खा चुके हैं. उन्हें तो कोई कुछ नहीं कहता जबकि वे काला धागा भी नहीं पहनते. बस, हमारे पीछे पड़े रहते हैं.‘’

मेरी शुभकामनाएं भैया जी के परिवार के साथ हैं कि प्रकृति उन्हें बुरी नज़रों और हाय लगने से हमेशा बचा कर रखे.

Romantic Story : विश्वास की आन – क्या मृदुला का सिद्धार्थ पर भरोसा करना सही था?

Romantic Story : ‘‘दिल संभल जा जरा, फिर मुहब्बत करने चला है तू…’’ गाने की आवाज से मृदुला अपना फोन उठाने के लिए रसोई से भागी, जो ड्राइंगरूम में पड़ा यह गाना गा रहा था. नंबर पर नजर पड़ते ही उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. नाम फ्लैश नहीं हो रहा था, पर जो  नंबर चमक रहा था वह उसे अच्छी तरह याद था. वह नंबर तो शायद वह सपने में भी न भूल पाए.

रोहन अपने कमरे से चिल्ला रहा था, ‘‘मौम, आप का फोन बज रहा है.’’

मृदुला ने झटके से फोन उठाया. एक नजर उस ने कमरे में टीवी देखने में व्यस्त ऋषि पर डाली और दूसरी नजर रोहन पर जो अपने कमरे में पढ़ रहा था. वह फोन उठा कर बाहर बालकनी की ओर बढ़ गई.

‘‘हैलो… हाय… क्या हाल हैं?’’

‘‘अब ठीक हूं,’’ उधर से आवाज आई.

‘‘क्यों? क्या हुआ?’’

‘‘बस तुम्हारी आवाज सुन ली बंदे का दिन अच्छा हो गया.’’

‘‘अच्छा, तो यह बात है… अच्छा बताओ फोन क्यों किया? आज मेरी याद कैसे आ गई? तुम अच्छे से जानते हो आज शनिवार है. ऋषि और रोहन दोनों घर पर होते हैं… ऐसे में बात करना मुश्किल होता है,’’ मृदुला जल्दीजल्दी कह रही थी.

‘‘मैं ने तो बस यह बताने के लिए फोन किया कि अब मुझ से ज्यादा सब्र नहीं होता. मैं अगले हफ्ते दिल्ली आ रहा हूं तुम से मिलने. प्लीज तुम किसी होटल में मेरे लिए कमरा बुक करवा दो जहां बस तुम हो और मैं और हो तनहाई,’’ सिद्धार्थ ने अपना दिल खोल कर रख दिया.

‘‘होटल? न बाबा न मैं होटल में मिलने नहीं आऊंगी.’’

‘‘तो फिर हम कहां मिलेंगे? मैं 1500 किलोमीटर मुंबई से दिल्ली सिर्फ तुम्हें मिलने आ रहा हूं ओर एक तुम हो जो होटल तक नहीं आ सकतीं.’’

मृदुला बातों में खोई हुई थी. उसे एहसास ही न हुआ कि कब रोहन अपने कमरे से निकल कर बाहर बालकनी में उस के पीछे आ खड़ा हो गया था.

रोहन पर नजर पड़ते ही मृदुला ने कहा, ‘‘अच्छा, मैं बाद में बात करती हूं,’’ और फिर फोन काट दिया.

‘‘किस का फोन था मौम?’’ रोहन ने पूछा.

‘‘वो… वो मेरी फ्रैंड का फोन था.’’ कह वह फोन ले कर रसोई में चली गई और सब्जी काटने लगी.

वैसे तो वह रसोई में काम कर रही थी पर दिलोदिमाग मुंबई में सिद्धार्थ के पास पहुंच चुका था. दिल जोरजोर से धड़क रहा था. बस एक मिलने की आस में वह पिछले 8 सालों से जल रही थी. अब समझ नहीं पा रही थी कि कहां, कब और कैसे मिलेगी.

जिंदगी में कब कोई आ जाए, इनसान जान ही नहीं पाता. कोई दिल के इतने करीब पहुंच जाता है कि बाकी सब से दूर हो जाता है.

यों तो मृदुला की जिंदगी में कोई कमी न थी. प्यार करने वाला पति ऋषि था. होशियार और समझदार 16 साल का बेटा रोहन था पर फिर सिद्धार्थ, औनलाइन फ्रैंड बन कर उस की जिंदगी में आ गया था और फिर सब उलटपुलट हो गया था.

वह बेटे और पति से छिपछिप कर कंप्यूटर से बहुत मेल और चैट करती थी और फोन भी बहुत करती थी. उस की जिंदगी का हर खुशीगम तब तक अधूरा होता जब तक वह उसे सिद्धार्थ से बांट न लेती.

दोस्ती एक जनून बन गई थी. वह उस से एक दिन भी बिना बात किए न रहती थी. रोज बात करना दोनों की दिनचर्या का अभिन्न अंग था. ऐसा ही कुछ हाल सिद्धार्थ का भी था.

यों तो मृदुला पति के औफिस और बेटे के स्कूल जाने के बाद बात करती थी, फिर भी रोहन गूगल की हिस्ट्री में जा कर कई बार पूछता था कि मम्मी यह सिद्धार्थ कौन है? और वह कुछ जवाब नहीं दे पाती थी सिवा इस के कि पता नहीं.

रोहन को कुछकुछ अंदाजा होता जा रहा था कि मम्मी कुछ ऐसा कर रही हैं, जिसे वे छिपा रही हैं. कई बार गुस्से और आक्रोश में वह अपनी परेशानी का इजहार भी करता पर ज्यादा कुछ कह न पाता.

अब मृदुला क्या करेगी, सिद्धार्थ से मिलने की तमन्ना को दबा लेगी? या फिर होटल जाएगी उस से मिलने? यही सब सोचसोच कर वह परेशान थी.

फिर अचानक उस ने अपना मन बना दिया और सिद्धार्थ को फोन मिला लिया,

‘‘सिद्धार्थ, मैं पहले ही जिंदगी में काफी डरडर कर तुम से बात करती हूं… मैं अब इस डर के साथ और नहीं जीना चाहती. मेरे मन में कोई खोट नहीं है और न ही तुम्हारे मन में, तो क्यों न तुम मेरे घर आ जाओ. मैं तुम से मिलने होटल नहीं आ पाऊंगी और न ही मैं तुम से मिलने का मौका गंवाना चाहती हूं.’’

मृदुला की बात सुन कर सिद्धार्थ हड़बड़ा गया, ‘‘पागल हो गई हो क्या? तुम्हारा पति और रोहन क्या कहेंगे? नहीं यह ठीक नहीं होगा.’’

‘‘क्या ठीक नहीं होगा? क्या यह मेरा घर नहीं है जहां मैं किसी को अपनी मरजी से बुला सकूं? मेरे मन में कोई खोट नहीं है. मैं ने तुम से दोस्ती की तो क्या गलत किया? और अगर ऋषि, रोहन कोई परेशानी हैं तो ठीक है हम इस चैप्टर को अभी हमेशा के लिए बंद कर देते हैं… पर मुझे एक बार तो तुम से मिलना ही है. बहुत बेताब है यह दिल तुम से मिलने को… तुम आओगे न मेरे घर?’’ एक सांस में मृदुला सब बोल गई.

‘‘मुझे थोड़ा वक्त दो सोचने का,’’ उस ने गंभीर होते हुए कहा.

‘‘बस घबरा गए? यों तो बहुत दलीलें देते थे कि मैं तुम्हारे एक बार बुलाने पर दौड़ा चला आऊंगा… अब क्या हुआ? देख ली तुम्हारी फितरत… तुम मुझे होटल में बुला कर मेरा नाजायज फायदा उठाना चाहते थे,’’ उस की आवाज ऊंची हो गई थी.

‘‘चुप करो,’’ सिद्धार्थ बोला, ‘‘ठीक है मैं 20 तारीख को 12 बजे वाली फ्लाइट से

दिल्ली आऊंगा और वह शाम तुम्हारे और तुम्हारी फैमिली के नाम… पर प्लीज, ऋषि मुझे मारेगा तो नहीं?’’

‘‘ठीक है, मैं इंतजार करूंगी,’’ कह कर फोन काट दिया.

मृदुला ने उसे अपने घर बुला तो लिया पर फिर  उलझन में पड़ गई कि ऋषि और रोहन को क्या बताएगी कि सिद्धार्थ कौन है?

ऋषि तो फिर भी समझ जाएगा पर न जाने रोहन कैसे रिएक्ट करेगा… उस की क्या इज्जत रह जाएगी उस के सामने…

इंतजार के 7 दिन एक इम्तिहान की तरह गुजरे जिन में पलपल वह अपने  निर्णय पर अफसोस करती रही, पछताती रही.

मृदुला के अंदर चल रहे तूफान की बाहर किसी को भनक न थी. इन 7 दिनों में मिलने की दिली चाहत को दिमाग में चल रहे प्रश्न ‘अब क्या होगा’ ने दबा दिया था. अब मृदुला को मिलने की तीव्र इच्छा से ज्यादा इस बात की टैंशन थी कि 20 तारीख को वह ऐसा क्या करे ताकि सब अच्छी तरह से निबट जाए?

सुबह उठती तो इसी आस के साथ कि काश 20 तारीख को ऋषि और रोहन अपने दोस्तों से मिलने चले जाएं और वह सिद्धार्थ से बिना टैंशन के मिल सके. पर अकसर लोग जो सोचते हैं वह होता नहीं. उन दोनों का भी ऐसा कोई प्रोग्राम नहीं बना.

आखिरकार 20 तारीख आ ही गई. इस दौरान वह सिद्धार्थ से कोई बात न कर पाई. सारी रात करवटें बदलतेबदलते निकाल दी उस ने कि कल का दिन न जाने क्या तूफान ले कर आएगा उस की जिंदगी में.

कई मरतबा उस ने अपनेआप को कोसा भी कि क्यों ऐसा निर्णय लिया, पर तीर कमान से निकल चुका था. यह भी नहीं कह सकती थी कि वह न आए.

न जाने किस रौ और विश्वास में बह कर उस ने सिद्धार्थ को इतनी दूर से बुला लिया था. घर में शांति थी. सब अपनेअपने काम में लगे थे. तूफान से पहले ऐसा ही सन्नाटा होता है.

ठीक 3 बजे सिद्धार्थ का फोन आ गया, ‘‘मैं एअरपोर्ट पहुंच चुका हूं.’’

मृदुला का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. आंखें खुशी से चमकने लगीं और चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया.

‘‘एक बार फिर सोच लो, कहीं और मिल लेते हैं?’’ सिद्धार्थ ने घबराते हुए पूछा.

‘‘नहीं, अब जो होगा देखा जाएगा. मैं पीछे नहीं हटूंगी,’’ कह उस ने उसे मैट्रो से घर आने का रास्ता बताया और फिर फोन काट दिया.

अब मारे घबराहट के उस के हाथपैर फूलने लगे थे. ऋषि और रोहन अपनेअपने कमरे में थे. अचानक घंटी बजी. धड़कते दिल से उस ने दरवाजा खोला तो एक स्मार्ट, आकर्षक, लंबा, सांवला 38 वर्षीय युवक उस के सामने खड़ा था, जिसे देख उस का मुंह खुला का खुला रह गया.

वही चिरपरिचित हाय सुन कर वह चहक उठी और फिर अपने सूखे गले से धीरे से कहा, ‘‘हाय, आओ अंदर आओ.’’

डरतेडरते सिद्धार्थ ने अंदर कदम रखा, तो झट से रोहन अपने कमरे से बाहर ड्राइंगरूम में आ गया.

‘‘बेटा, ये सिद्धार्थ अंकल हैं.’’

मृदुला के मुंह से सिद्धार्थ नाम बड़ी मुश्किल से निकला, जिसे सुन कर रोहन थोड़ा सकपका गया और फिर अपना गुस्सा छिपाता जल्दी से नमस्ते कर के अपने कमरे में चला गया.

अपनी बेचैनी, घबराहट को छिपाते मृदुला ने हलकी मुसकान से सिद्धार्थ को देखा और सोफे पर बैठने को कहा.

ऋषि के कमरे में कोई हलचल नहीं थी. वहां रोज की तरह टीवी चल रहा था. ऋषि टीवी के सामने बैठे थे. वह कमरे में गई और बोली, ‘‘कोई आया है.’’

‘‘कौन?’’

‘‘सिद्धार्थ.’’

‘‘सिद्धार्थ कौन?’’ चौंकते हुए ऋषि ने पूछा.

‘‘मेरा दोस्त,’’ एक झटके में उस ने बोल दिया और अब वह तैयार थी किसी भी परिणाम के लिए. उस ने निर्णय कर लिया था कि अगर ऋषि नहीं चाहेगा तो वह वहां नहीं रहेगी और सिद्धार्थ के साथ तो कतई नहीं. वह जानती थी कि वह उस का अच्छा दोस्त तो हो सकता है पर अच्छा हमसफर नहीं.

10 मिनट तक ऋषि ने न तो कोई जवाब दिया और न ही अपनी जगह से हिला.

मृदुला रसोई में जा कर कौफी बनाने लगी. बीचबीच में अकेले बैठे सिद्धार्थ से भी बतियाती रही.

अचानक रोहन रसोई में आया और अपना आक्रोश निकालते हुए घर से बाहर चला गया.

कौफी बना कर लाई तो मृदुला ने देखा कि ऋषि कमरे से बाहर आया और फिर बड़े आराम से सिद्धार्थ से हाथ मिला कर उस के पास बैठ गया. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा कि न जाने अब क्या हो. यह उन दोनों के रिश्ते की मजबूती थी कि कभी भी अपने आपसी झगड़े, गलतफहमी और शिकवेशिकायत को किसी के सामने नहीं आने दिया. यह सब कुछ बैडरूम के बाहर नहीं आता था. चाहे कितनी भी लड़ाई हो बैडरूम के बाहर वे नौर्मल पतिपत्नी ही होते थे. 10 मिनट बैठ कर बात करने से माहौल की बोझिलता थोड़ी कम हो गई थी. फिर वह मृदुला और सिद्धार्थ को अकेले छोड़ कर वापस अपने कमरे में चला गया.

पूरी तरह से संभालने में मृदुला को थोड़ा वक्त लगा. जैसेजैसे वक्त बीतता गया. उस का खोया विश्वास लौटने लगा आधे घंटे बाद रोहन वापस आया और सीधा रसोई में चला गया. वह उस के पीछेपीछे रसोई में गई तो देखा रोहन समोसे और जलेबियां ले कर आया था.

मृदुला ने आश्चर्य से उस की तरफ देखा तो वह बोला, ‘‘मां, आप के दोस्त के लिए. जब मेरे दोस्त आते हैं तब आप भी तो बाजार जा कर हमारे लिए पैप्सी और चिप्स लाती हो हमारी पसंद का, तो मैं भी आप की पसंद का आप के फ्रैंड के लिए लाया हूं… क्या आप को हक नहीं है दोस्त बनाने का?’’

मृदुला की आंखों में खुशी के आंसू भर आए और फिर वह खुशीखुशी प्लेट में समोसे और जलेबियां डालने लगी.

करीब 2 घंटे बाद सिद्धार्थ 7 बजे की फ्लाइट से मुंबई लौट गया.

सिद्धार्थ के जाने के बाद मृदुला को डर लग रहा था कि न जाने अब ऋषि क्या बखेड़ा करेगा. डर के मारे वह उस के सामने जाने से कतरा रही थी.

रात का खाना खाने के बाद जब वह बिस्तर पर लेटी तो ऋषि ने पूछा, ‘‘सिद्धार्थ

चला गया?’’

‘‘हां, चला गया.’’

‘‘तुम्हारा सच्चा दोस्त लगता है, तभी इतनी दूर से तुम से मिलने चला आया.’’

‘‘आप को बुरा लगा कि मैं ने एक आदमी से दोस्ती की? मुझे अपना घर दोस्त से ज्यादा प्यारा है और आज की इस हरकत के लिए आप जो चाहो मुझे सजा दे सकते हो.’’

‘‘सजा? कैसी सजा? तुम ने कुछ गलत तो नहीं किया… मैं 1 हफ्ते पहले से ही जानता था कि तुम्हारा दोस्त आने वाला है.’’

मृदुला यह सुन कर चौंक गई. फिर बोली, ‘‘तो आप ने मुझे कुछ कहा क्यों नहीं?’’

‘‘देखो मृदुला, मैं ने 20 साल तुम्हारे साथ काटे हैं… तुम्हारी रगरग से वाकिफ हूं. तुम चाहतीं तो उस से बाहर भी मिल सकती थीं पर तुम ने ऐसा नहीं किया…

कहीं अंदर तुम्हें भी मुझ पर हमारे रिश्ते पर विश्वास था… मैं उन पतियों में से नहीं हूं जो पत्नी को इनसान नहीं समझते… दोस्ती तो किसी से और कभी भी हो सकती है… हफ्ता भर पहले जब तुम ने उसे फोन पर घर आने का न्यौता दिया था तभी मैं ने तुम्हारी सारी बातें सुन ली थीं और मैं तुम्हारे विश्वास को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता था. विश्वास की आन तो मुझे रखनी ही थी,’’ पति की बातें सुन कर मृदुला की आंखों से खुशी की आंसू बहने लगे.

‘‘और हां रही बात यह कि एक आदमी और एक औरत कभी दोस्त नहीं हो सकते, उस में मैं समझता हूं कि मैं ने आज तक तो तुम्हें कभी शिकायत का मौका नहीं दिया… क्यों ठीक कह रहा हूं न मैं?’’

पति की आखिरी बात का मतलब समझते हुए मृदुला शर्म से लाल हो गई और फिर लजाती हुई पति की बांहों में समा गई.

Best Hindi Story : घर ससुर – बाबूजी ने क्यों बेटीदामाद के घर रहने का फैसला लिया

Best Hindi Story : नाराज बाबूजी जब घर ससुर बन कर दामाद के यहां रहने चले गए तो मेघा और मेहुल लोकलाज की वजह से परेशान हो उठे. फिर मेघा ने अपने ही मायके में कुछ ऐसा नजारा देखा कि बाबूजी के प्रति अब तक रखे गए अपने उदासीन रवैए पर उसे शर्मिंदगी महसूस होने लगी. सब्जी काटती हुई मेघा के कान मेहुल की बातों की ओर लगे हुए थे. वह स्पीकर फोन से पितापुत्र की बातों को चुपचाप सुन रही थी. उस के ससुर अपनी बेटी सीमा के घर से बोल रहे थे.

मेहुल ने तल्ख शब्दों में पूछा था, ‘‘मैं आप से फिर पूछ रहा हूं पिताजी कि आप घर आ रहे हैं या नहीं. आखिर कब तक दामाद के घर पड़े रहेंगे? अपनी नहीं तो मेरी इज्जत का तो कुछ खयाल कीजिए. भला आज तक किसी ने ‘घर ससुर’ बनने की बात सुनी है. मुझे तो लगता है कि आप का दिमाग ही चल गया है जो ऐसी बातें करते हैं.’’
‘‘नहीं सुनी तो अब सुन लो, और कितनी बार कहूं कि मैं ने घर ससुर बनने का फैसला काफी सोचसमझ कर लिया है. मुझे अपने दामाद का घर ही अच्छा लग रहा है. कम से कम यहां एक प्याली चाय के लिए 10 बार कुत्ते की तरह भौंकना नहीं पड़ता. सीमा और किशोर मेरी हर बात का पूरा खयाल रखते हैं.
‘‘और सुनो, मेहुल, जब वे लोग भी मुझे बोझ समझने लगेंगे तो दिल्ली का ‘आशीर्वाद सीनियर सिटीजन्स होम’ तो है ही मुझ जैसे उपेक्षित और बोझ बन चुके बूढ़ों के लिए. इसलिए तुम लोग अब मेरी चिंता मत करो,’’ मेघा के ससुर रुद्रप्रताप सिंह बोले.

जवाब में मेहुल कुछ और विषवमन करता हुआ बोला, ‘‘तो फिर बने रहिए घर ससुर और दामाद के हाथों अपनी इज्जत की धज्जियां उड़वाते रहिए.’’

मेघा को अपने ससुर के कहे शब्द स्पष्ट सुनाई पडे़, ‘‘हांहां, अपना आत्मसम्मान खो कर बेइज्जत बाप बने रहने से कहीं बेहतर है कि मैं इज्जतदार ‘घर ससुर’ ही बना रहूं,’’ और इसी के साथ उन्होंने फोन पटक कर अपनी नाराजगी जाहिर की तो मेहुल ने भी गुस्से में स्पीकर का स्विच बंद कर दिया.

मेघा को अपनेआप पर ग्लानि हो आई. सोचने लगी कि उस के मायके में जब लोगों को पता चलेगा कि उस की और मेहुल की लापरवाही के चलते उस के ससुर को बेटी के घर जाना पड़ा तो मायके के लोग उन के बारे में क्या सोचेंगे. उस की भाभियां क्या मां को ताना मारने का ऐसा सुनहरा अवसर हाथ से जाने देंगी. नहींनहीं, किसी भी तरह रिश्तेदारों को यह खबर होने से पहले उसे अपने ससुर को मना कर वापस लाना ही पडे़गा.

इस बारे में पहले मेहुल से बात करनी होगी. यह सोच कर मेघा ने मेहुल से कहा, ‘‘देखो, जो भी हुआ ठीक नहीं हुआ. आखिर वह तुम्हारे पिताजी हैं और उन्होंने तुम को दो बातें कह भी दीं तो क्या हुआ, तुम्हें चुप रहना था. थोड़ा सा सह लेते और उन से नरमी से पेश आते तो यों बात का बतंगड़ नहीं बनता.’’
‘‘हांहां, अब तो तुम भली बनने का नाटक करोगी ही लेकिन तब एक वृद्ध व्यक्ति को समय पर खाना और चायनाश्ता देने में तुम्हारी नानी मरती थी. उस पर रातदिन बाबूजी की शिकायत करकर के तुम्हीं ने मेरा जीना हराम कर रखा था. अब भी तुम्हें बाबूजी के जाने का दुख नहीं है बल्कि उन के साथ पेंशन के 10 हजार रुपए जाने का गम सता रहा है.’’
इस तरह मेहुल ने सारा दोष मेघा के सिर मढ़ दिया तो वह तिलमिला उठी और व्यंग्यात्मक लहजे में बोली, ‘‘तो तुम भी कौन सा बाबूजी की याद में तड़प रहे हो. अपने दिल पर हाथ रख कर कहो कि तुम्हें बाबूजी के रुपयों की कोई जरूरत नहीं है.’’

मेहुल को जब मेघा ने उलटा आईना दिखाया तो वह खामोश हो गया. फिर कुछ नरमी से बोला, ‘‘खैर, जो हो गया सो हो गया. अब इस पर बहस कर के क्या फायदा. सोचो कि उन्हें कैसे बुलाया जाए. क्योंकि जितना मैं उन्हें जानता हूं वह अब खुद आने वाले नहीं हैं. अभी तो वह सीमा के घर हैं पर जहां कहीं उन के आत्म- सम्मान को जरा सी ठेस पहुंची तो वह ‘आशीर्वाद सीनियर सिटीजन्स होम’ जाने में एक पल की भी देर नहीं लगाएंगे. उस के बाद वहां से वह शायद ही वापस आएं.’’
‘‘तुम कहो तो मैं बात कर के देखती हूं,’’ मेघा बोली, ‘‘अब गलती हम ने की है तो उसे सुधारने की कोशिश भी हमें ही करनी पडे़गी. पिताजी हैं.’’
‘‘नहीं, रहने दो,’’ मेहुल बोला, ‘‘बाबूजी को गए महीना भर तो हो ही गया है. अब हफ्ते भर बाद ही बच्चों की क्रिसमस की छुट्टियां होने वाली हैं. हम सब जा कर बाबूजी को मना कर आदर के साथ ले आएंगे.’’
यह सब सुन कर हुर्रे कहते हुए रानी और फनी परदे के पीछे से निकल आए जो मम्मीपापा की ऊंची आवाज सुन कर वहां आ गए थे.
‘‘मां, सच में दादाजी हमारे पास वापस आ जाएंगे?’’ दोनों बच्चे खुशी से उछलते हुए एक स्वर में बोले.
‘‘हां, बेटे, वह जरूर आएंगे. हम सब मिल कर उन्हें लेने जाएंगे,’’ मेघा भीगे स्वर में बोली तो मेहुल के चेहरे पर भी स्नेहसिक्त मुसकान आ गई.
बच्चों की छुट्टियां शुरू होने पर वे अपनी कार से बाबूजी को लेने निकल पडे़. मेहुल ने घर छोड़ने से पहले फोन पर सीमा से यह पूछ लिया था कि बाबूजी घर पर हैं कि नहीं और उन का कहीं जाने का कार्यक्रम तो नहीं है.’’

सच है बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो साथ रहने वाले अपनों के महत्त्व को समझ नहीं पाते पर किसी कारण से जब वही अपने दूर चले जाते हैं तब उन की कमी शिद्दत से महसूस करते हैं. यही हाल मेहुल और मेघा का था. जब तक बाबूजी साथ रहते थे उन्हें हर समय ऐसा लगता था कि बाबूजी बेवजह उन के कामों में टोकाटाकी करते हैं. बच्चों से गैरजरूरी बातें कर के उन का समय बरबाद करते हैं. बाबूजी ने सब पर ही एक तरह से अंकुश लगा रखा था. ऐसा लगता था मानो उन की आजादी खत्म हो गई थी.

बाबूजी कहते थे कि जीवन में कुछ बनने के लिए अपने बच्चों में अनुशासन का बीजारोपण करने के लिए खुद को अनुशासित रह कर आचरण करना पड़ता है तभी बच्चे भी हमें अपना आदर्श मान कर हम से कुछ सीख पाते हैं. तब मेघा और मेहुल को उन की ये बातें कोरी बकवास लगा करती थीं किंतु आज उन्हें बाबूजी की कही एकएक बात में सचाई का आभास हो रहा है.

बाबूजी से हर महीने उन की पेंशन को लेना तो उन्हें याद रहा या यों कहें कि अपना अधिकार तो उन्हें याद रहा पर फर्ज निभाने से वे चूक गए. अपनी सहेलियों के साथ गप लड़ाते हुए मेघा अकसर भूल जाती कि बाबूजी चाय के लिए इंतजार कर रहे हैं. वह शुगर के मरीज हैं पर उन के ही दिए पैसों से शुगर फ्री खरीदने में उन्हें पैसों की बरबादी लगती थी.

मेहुल ने भी कभी यह न सोचा कि वृद्ध पिता को उस से भी कुछ उम्मीदें हो सकती हैं. दो घड़ी मेहुल से बात करने को वह तरस जाते पर उस को इस की कोई परवा न थी. बाबूजी ने तो मेहुल के बड़ा होते ही उसे अपना मित्र बना लिया था पर वही कभी उन का दोस्त नहीं बन पाया.

अचानक गाड़ी घर्रघर्र कर हिचकोले खा कर रुक गई. यह तो अच्छा हुआ कि पास ही में एक मोटर गैराज था. धक्के दे कर गाड़ी को वहां तक ले जाया गया. मैकेनिक ने जांच करने के बाद बताया कि ब्रेक पाइप फट गया है और उसे ठीक होने में कम से कम एक दिन तो लगेगा ही. चूंकि यह एक इत्तेफाक था कि हादसा मेघा के मायके वाले शहर में हुआ था. इसलिए कोई उपाय न देख उन्होंने गाड़ी ठीक होने तक मेघा के मायके में रुकने का फैसला लिया.

एक टैक्सी कर मेहुल अपने परिवार को ले कर ससुराल की ओर चल दिया. उन्हें अचानक आया देख कर सभी बहुत खुश हुए. मेघा के परिवार में मम्मीपापा के अलावा उस के 2 बडे़ भाई और भाभियां थीं. बडे़ भैया के 2 जुड़वां बेटे जय और लय तथा छोटे भैया की एक बेटी स्वीटी थीं. बच्चों में उम्र का ज्यादा फासला नहीं था इसलिए जल्दी ही वे एकदूसरे से घुलमिल गए और हुड़दंग मचाने लगे.

मांबाबूजी के साथ थोड़ी देर बातें करने के बाद मेघा मेहुल को वहीं छोड़ कर रसोई की ओर चल पड़ी जहां उस की दोनों भाभियां रात के खाने की तैयारी में जुटी थीं.

मेघा ने भाभियों का हाथ बंटाना चाहा पर उन्होंने उस का मन रखने के लिए चावल बीनने की थाली पकड़ा दी और वहीं रसोई के बाहर पड़ी कुरसी पर बैठा लिया. मेघा ने देखा कि उस की भाभियों ने बातोंबातों में कितने सारे पकवान बना लिए. वे जब 2 तरह की सब्जियां बना रही थीं तब मेघा ने पूछ लिया कि भाभी यह कम तेलमसाले की सब्जी किस के लिए बना रही हो तो बड़ी भाभी ने कहा कि मम्मीपापा बहुत सी खाने की चीजों से परहेज करते हैं. उन की उम्र देखते हुए उन के लिए थोड़ा अलग से बनाना पड़ता है.
‘‘पर मांबाबूजी को तो कोई बीमारी नहीं है. फिर उन के लिए आप लोग इतना झंझट क्यों कर रही हैं?’’ मेघा ने पूछा.
जवाब छोटी भाभी ने दिया, ‘‘तो क्या हुआ, बुजुर्ग लोग हैं, परहेज करते हैं तभी तो उन का स्वास्थ्य अच्छा है. फिर उन के लिए कुछ करने में कष्ट कैसा? यह तो हमारा फर्ज है. वैसे भी तुम जितना अपने ससुर के लिए करती हो उस हिसाब से हम तो कुछ भी नहीं करतीं.’’
‘‘मैं ने क्या किया और आप को कैसे पता चला?’’ मेघा कुछ असमंजस भरे स्वर में बोली.
‘‘अब रहने भी दो, दीदी,’’ बड़ी भाभी हंसती हुई बोलीं, ‘‘ज्यादा बनो मत. कल ही तो तुम्हारे ससुरजी का फोन आया था. उन्होंने ही तुम्हारे और मेहुल के बारे में हमें सबकुछ बताया.’’

मेघा के मन में जाने कैसेकैसे कुविचार और संदेह सिर उठाने लगे कि बाबूजी ने जरूर उन की शिकायत की होगी और इसीलिए भाभियां उसे यों ताने मार रही हैं पर मन का संशय प्रकट न कर मेघा बोली, ‘‘क्या बताया बाबूजी ने, क्या वह हम से नाराज हैं?’’

‘‘भला क्यों नाराज होंगे? वह तो तुम्हारी और मेहुल की बहुत तारीफ कर रहे थे. कह रहे थे कि बहू तो ऐसी है कि किसी चीज के लिए मेरे मुंह खोलने से पहले ही वह समझ जाती है कि मुझे क्या चाहिए.’’

पता नहीं भाभी और क्याक्या कहती रहीं, मेघा को और कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था. उस की अंतरात्मा उसे धिक्कारने लगी कि अपनी नासमझी की वजह से उस ने कभी बाबूजी की परवा नहीं की. अपनी सुविधानुसार इस बात का खयाल किए बगैर कि वह खाना बाबूजी के स्वास्थ्य के लिए उचित है या नहीं, वह कुछ भी उन के सामने रख देती थी.

शुरुआत में 1-2 बार बाबूजी ने उसे प्यार से समझाने की कोशिश की थी पर उस ने कोई ध्यान न दिया. नतीजतन, उन की तबीयत आएदिन खराब हो जाती थी. एक उस की भाभियां हैं जो उस के स्वस्थ मातापिता का कितना ध्यान रखती हैं और एक वह है.

दूसरी ओर बाबूजी हैं कि इतना होने पर भी मायके में उस की किसी से शिकायत न कर तारीफ ही की. पश्चात्ताप की आग में जलती हुई उस की भावनाएं आंसुओं के रूप में आंखों से छलकने लगीं. वह मन ही मन प्रतिज्ञा करने लगी कि अब आगे से वह कभी भी बाबूजी को किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं देगी.

उधर मेहुल भी मेघा के भाइयों का अपने मातापिता के साथ व्यवहार देख कर ग्लानि से भरा जा रहा था. मेघा के दोनों भाई अपना खुद का कारोबार संभालते थे. दोनों ने ही घर आ कर उस दिन की बिक्री से प्राप्त रुपयों से अपने पिताजी को अवगत कराया. हालांकि उन्होंने किसी से भी रुपयों का ब्योरा देने के लिए नहीं कहा था. कुछ देर पास बैठ पितापुत्र ने एकदूसरे का हालचाल पूछा. फिर वे लोग मेहुल के साथ व्यस्त हो गए.

मेहुल मन ही मन सोच रहा था कि वह तो अपने पिता का इकलौता पुत्र है. इसलिए उसे तो उन की हर बात की ओर ध्यान देने की जरूरत है. मां के गुजर जाने के बाद वह अपनी बात कहते भी तो किस से. वह क्यों नहीं अब तक अपने पिता के मन की पीड़ा को समझ पाया. अब से वह बाबूजी के पेंशन के रुपयों को हाथ भी नहीं लगाएगा बल्कि उन की जरूरतों को अपने कमाए रुपए से पूरी करेगा.

अगले दिन गाड़ी ठीक हो कर घर आ गई पर मेघा के घर वालों ने जिद कर के उन्हें 2 दिन और रोक लिया. इस दौरान मेहुल ने मेघा के भाइयों का अपने मातापिता के साथ बातचीत और व्यवहार को देख कर पहली बार जाना कि बुजुर्गों के अनुभव से कैसे लाभ उठाया जा सकता है. बच्चे कैसे दादा- दादी की वजह से अपने पारिवारिक इतिहास को जानते हैं तथा अपनी संस्कृति और रिश्तों की जड़ों से जुड़ते हैं. हमारे बुजुर्ग ही तो इन सारी चीजों की मूल जड़ होते हैं, हम तो बस, शाखा मात्र होते हैं. यदि मूल जड़ को ही काट कर फेंक दिया जाए तो गृहस्थी का वृक्ष कैसे फलफूल सकता है.

जब से मेघा और मेहुल बच्चों सहित बाबूजी को लेने निकले तो उन दोनों के सामने अपना ध्येय बिलकुल साफ हो चुका था. उन्हें विश्वास था कि उन की नादानी को माफ कर बाबूजी अवश्य उन के साथ वापस अपने घर आ जाएंगे. भला उन जैसा स्वाभिमानी व्यक्ति कभी ‘घर ससुर’ बन कर थोड़े ही रह सकता है. यह सब तो उन्हें सबक सिखाने के लिए बाबूजी ने कहा होगा. इस विश्वास के साथ वे खुशी मन से अपनी मंजिल की ओर बढ़ चले.

Indian Air Force : रक्षा सौदों पर भड़के एयर चीफ मार्शल

Indian Air Force : भारत चारों तरफ से ऐसे देशों से घिरा हुआ है जो हमारी सुरक्षा और शांति को कभी भी छिन्नभिन्न कर सकते हैं. चाहे वह पाकिस्तान हो, नेपाल या श्रीलंका. इन को उकसाने वाली ताकतें और बड़ी हैं जैसे चीन और अमेरिका.

हाल ही में पहलगाम में आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारत ने औपरेशन सिंदूर चलाया, जिस के बाद पाकिस्तान से तनाव और बढ़ गया है. औपरेशन सिंदूर को सफलतापूर्वक संपन्न करने के बाद भी जंग का माहौल बना हुआ है.

भारत ने 23 अप्रैल को सिंधु जल संधि को स्थगित करने समेत पाकिस्तान के खिलाफ कई कदम उठाने की घोषणा की है. इस से भविष्य में तनाव बढ़ने का जोखिम काफी बढ़ गया है. वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कह ही दिया है कि औपरेशन सिंदूर अभी खत्म नहीं हुआ है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी हुंकार भर रहे हैं कि यह तो अभी सिर्फ वार्मअप है. यानी युद्ध कभी भी छिड़ सकता है.

ऐसे में सेनाओं की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है. वैसे भी इस बार की लड़ाई कश्मीर के विवादित क्षेत्र तक सीमित नहीं थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि अगर भारत पर फिर से हमला हुआ तो नई दिल्ली सीमा पार “आतंकवादी ठिकानों” को फिर से निशाना बनाएगी. मगर कोई भी लड़ाई अच्छे हथियारों के बिना नहीं जीती जा सकती है. आप सिर्फ धमकियां देदे कर दुश्मन को हरा देंगे, ऐसा तो संभव नहीं है.

जंग जीतनी है, तो सेनाओं को संसाधनों से मजबूत करना होगा. सेना की ताकत में कटौती करेंगे, उन को समय से हथियार उपलब्ध न करा के, उन की वीरता का श्रेय खुद ले कर सेना की वर्दी में अपने पोस्टर देश भर में लगवाते फिरेंगे तो सेना का मनोबल कैसे ऊपर उठेगा?

आप अपनी राजनीति चमकाने के लिए सेना को भी मोहरा बनाने से बाज नहीं आ रहे हैं. औपरेशन सिंदूर की सफलता को मीडिया के सामने बयान करने के लिए सोचीसमझी रणनीति के तहत सेना की दो महिला अधिकारियों – कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को लाया गया. यह एक अच्छी बात बनी रहती अगर मुस्लिमों के प्रति मन में घोर नफरत पालने वाले भाजपाई नेता कर्नल सोफिया कुरैशी के बारे में अनर्गल बातें कर के सेना के साहस और शौर्य को अपमानित न करते.

अब उस की लीपापोती के लिए कर्नल सोफिया कुरैशी को भाजपा अल्पसंख्यक विंग की ‘पोस्टर गर्ल’ बनाया जा रहा है. यानी आप अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए सेना को भी इस्तेमाल करने से नहीं चूक रहे हैं तो ऐसे में सेना के बड़े अधिकारीयों का भड़कना लाजिमी है.

29 मई को सीआईआई के वार्षिक बिजनेस समिट – 2025 के उद्घाटन सत्र में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति में एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह ने सेना को हथियार सप्लाई के बारे में जो कुछ कहा वह बताता है कि अब धैर्य जवाब दे रहा है. वायुसेना प्रमुख ने भरी सभा में राजनाथ सिंह के मुंह पर बोल दिया कि एक भी डिफैंस प्रोजेक्ट समय से पूरा नहीं होता है.

मजे की बात है कि जिस मंच पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह औपरेशन सिंदूर को ले कर मोदी सरकार की तारीफ कर रहे थे, उसी मंच पर भारतीय वायु सेना के प्रमुख, एयर चीफ मार्शल ए. पी. सिंह ने सैन्य उपकरणों की खरीद में हो रही लगातार देरी को ले कर सारा कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया.

एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह ने 29 मई को डिफैंस सिस्टम की खरीद और डिलीवरी में हो रही देरी पर एयर चीफ मार्शल ने यह तक कह दिया कि सरकार जो पूरे नहीं कर सकती वैसे वादे करते ही क्यों हैं? कई बार कौन्ट्रैक्ट साइन करते समय ही पता होता है कि यह समय पर नहीं होगा, फिर भी साइन कर देते हैं, जिस से पूरा सिस्टम खराब हो जाता है.

यह पहला मौका है जब किसी सेना प्रमुख ने सिस्टम पर इस तरह का सवाल उठाया है. सीआईआई वार्षिक बिजनेस समिट में एयर चीफ मार्शल ने कहा – टाइमलाइन एक बड़ा मुद्दा है. समय से डिफैंस प्रोजेक्ट पूरा न होने की वजह से औपरेशनल तैयारी पर असर पड़ता है.

एयर चीफ मार्शल ने कहा कि वायु शक्ति के बिना कोई सैन्य अभियान सफल नहीं हो सकता. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे पास क्षमता और सामर्थ्य दोनों हों. सिर्फ ‘मेक इन इंडिया’ कहना काफी नहीं है, अब हमें ‘भारत में डिजाइन और विकास’ की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे.

इस से पहले 8 जनवरी को भी चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह ने तेजस लड़ाकू विमानों की डिलीवरी में हो रही देरी को ले कर चिंता जाहिर की थी. उन्होंने कहा था कि 40 जेट अभी तक फोर्स को नहीं मिले हैं. जबकि चीन और पाकिस्तान जैसे देश अपनी ताकत बढ़ा रहे हैं. एयरफोर्स चीफ ने लाइट कौम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) कार्यक्रम का हवाला देते हुए कहा कि फरवरी 2021 में एचएएल के साथ तेजस एमके1 ए फाइटर जेट के लिए 48000 करोड़ का कान्ट्रैक्ट साइन किया गया था. डिलीवरी मार्च 2024 से शुरू होनी थी, लेकिन आज तक एक भी विमान नहीं आया. तेजस एमके2 का प्रोटोटाइप भी अभी तक तैयार नहीं हुआ है. एडवांस्ड स्टेल्थ फाइटर एएमसीए का भी अभी तक कोई प्रोटोटाइप नहीं है.

एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह यहीं नहीं रुके उन्होंने साफ कहा कि हमें आज तैयारी करनी होगी तभी हम भविष्य के लिए भी तैयार हो सकेंगे. आने वाले 10 साल में इंडस्ट्री से ज्यादा आउटपुट मिलेगा, यह ठीक है, लेकिन आज हमें जो जरूरत है वह आज ही पूरी होनी चाहिए.

हम सिर्फ भारत में मैन्युफैक्चरिंग के बारे में बात नहीं कर सकते. हमें डिजाइनिंग के बारे में भी बात करनी होगी. हमें सेना और इंडस्ट्री के बीच भरोसे की जरूरत है. एक बार जब हम किसी चीज के लिए प्रतिबद्ध हो जाते हैं, तो हमें उसे पूरा करना चाहिए.

एयर चीफ मार्शल ए. पी. सिंह ने आगे कहा, जब हम एक राष्ट्र के बारे में बात करते हैं, तो हम सभी सेना, नौसेना, वायु सेना, विभिन्न एजेंसियां, उद्योग, डीआरडीओ – हम सभी एक बड़ी चेन के कड़ियां हैं और हम सभी को यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारा ग्रुप, जिस से मैं भी संबंधित हूं, वह कमजोर समूह नहीं है जिस की वजह से यह चेन टूट जाए.

एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने युद्ध में बढ़ते तकनीकी दखल को ले कर भी चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा- निसंदेह भारत ने औपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान में बैठे आतंकियों को भारी नुकसान पहुंचाया. मगर चीफ औफ नेवल स्टाफ ने मुझ से कहा कि युद्ध का तरीका बदल रहा है. हम हर दिन नई तकनीक की खोज कर रहे हैं. अब तकनीक की युद्ध में अहम भूमिका हो गई है.

औपरेशन सिंदूर ने बताया देश किस दिशा में जा रहा और आगे क्या करना है. हमें भविष्य में क्या करना है, इस को ले कर औपरेशन सिंदूर ने आइडिया दे दिया है. अभी बहुत काम बाकी है. युद्ध सेनाओं को सशक्त बना कर जीते जाते हैं.

चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह की चिंता जायज है. इस वक्त चीन सिक्स जेनेरशन ड्रोन्स उड़ा रहा है, और भारत फोर्थ जेनेरशन ड्रोन्स पर भी ठीक तरीके से काम नहीं कर पा रहा है. इसी कार्यक्रम में नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी ने कहा कि आज के युग में युद्ध और शांति की सीमाएं धुंधली होती जा रही हैं.

गैरराज्यीय तत्व वाणिज्यिक तकनीकों का उपयोग कर सुरक्षा चुनौतियां बढ़ा रहे हैं. हम ‘सामूहिक सटीकता’ के युग में हैं, जहां अत्यंत सटीक क्षमताओं का होना हर देश के लिए आवश्यक है. आतंकवादी हमले तेजी से बड़े संघर्ष में बदल सकते हैं, और बिना प्रत्यक्ष टकराव वाले युद्ध, साइबर तथा अंतरिक्ष क्षेत्र का उपयोग अब यथार्थ बन चुका है. भारतीय नौसेना भी साल 2047 तक पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बल बनने के लिए प्रतिबद्ध है.

मगर यह तभी हो सकेगा जब मोदी सरकार अपनी स्वार्थपरक राजनीति से ऊपर उठ कर सचमुच देश की सुरक्षा के बारे में गंभीरता से सोचे और सैन्य बलों में काटछांट न कर के उन को सभी आवश्यक हथियार निश्चित समय सीमा में उपलब्ध कराए.

हमारे सैनिक संसाधनों के अभाव में किस तरह देश की सुरक्षा में अपनी जान की बाजी लगा रहे हैं, यह दर्द उन के परिवारों से पूछिए, जिन्होंने अपने जांबाज बेटों को सिर्फ इसलिए खो दिया क्योंकि उन के पास अच्छे लड़ाकू विमान नहीं थे या बेहतर हथियार नहीं थे.

कितनी शर्मनाक बात है की इस बात को भी मोदी सरकार ने ढांपने की कोशिश की कि औपरेशन सिंदूर के दौरान हमारे किसी एयरक्राफ्ट को क्षति पहुंची. मगर मीडिया में बारबार क्षतिग्रस्त एयरक्राफ्ट के टुकड़े दिखाए जाने के बाद अंततः सीडीएस अनिल चौहान ने 31 मई को मीडिया के सामने औपरेशन सिंदूर के दौरान राफेल जेट गिरने की बात स्वीकार कर ली है. हालांकि कितने राफेल जेट क्षतिग्रस्त हुए यह बात अभी भी परदे में है.

कांग्रेस पार्टी ने सीडीएस अनिल चौहान के इस स्वीकारोक्ति को ले कर केंद्र सरकार से सवाल किया है, जिस में उन्होंने कहा था कि महत्वपूर्ण ये नहीं है कि विमान गिराए गए बल्कि ये है कि वे क्यों गिरे? कांग्रेस ने कहा कि राफेल गिरने की बात को सीडीएस ने स्वीकार कर लिया है. अब सरकार को इस से इनकार करना बंद कर देना चाहिए कि हमारा कोई नुकसान नहीं हुआ है. साफ है तकनीक के मामले में हम पिछड़ रहे हैं.

उधर वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह के बयान मीडिया में आने के बाद आम आदमी पार्टी ने भी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए एक्स पर लिखा – मोदी सरकार भारतीय सेनाओं को कमजोर कर रही है. वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह ने साजोसामान मिलने में हो रही देरी पर सरकार को चेताया है.

गोलाबारूद, हथियार और लड़ाकू विमानों की आपूर्ति में लगातार देरी हो रही है. अग्निवीर योजना से स्थायी सैन्य बल में भारी कटौती जैसे सरकार के फैसलों का सीधा असर सैन्य क्षमता पर पड़ रहा है. प्रधानमंत्री मोदी से अपील है कि वे देश की सुरक्षा से समझौता बंद करें और सेनाओं को कमजोर न करने वाली नीतियों पर ध्यान दें.

गौरतलब है कि हिंदुस्तान टाइम्स ने 2015 में बताया था, कि लगभग 10 परियोजनाएं, जिन की स्वीकृत लागत औसतन 1,686 करोड़ रुपए है, औसतन 5 साल से विलंबित हैं. और यह समस्या केवल भारतीय वायुसेना तक ही सीमित नहीं है.

मार्च 2012 में तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिख कर चेतावनी दी थी, कि भारतीय सेना के टैंकों में गोलाबारूद खत्म हो गया है, और कमियों को दूर करने तथा सेना को युद्ध स्तर पर लाने की जरूरत है. सिंह ने लगभग 97 प्रतिशत वायु रक्षा को अप्रचलित बताया था और कहा था कि विशेष बलों के पास हथियारों की बहुत कमी है.

जनरल वी.के. सिंह, मार्च 2014 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए. वे 2014 में लोकसभा सांसद बने, और उन्हें मंत्री भी बनाया गया. सिंह ने अपने पत्र में दावा किया था, कि उन्हें ‘घटिया’ खरीद आदेश को मंजूरी देने के लिए 14 करोड़ रुपए की रिश्वत की पेशकश की गई थी.

विदेशी कंपनियों के साथ भारत के रक्षा अनुबंध अक्सर भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे रहे हैं, जिस के परिणामस्वरूप सरकार को वित्तीय नुकसान होता है, और सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण में बाधा उत्पन्न होती है. लेकिन दुखद यह है, कि जनरल वी.के. सिंह सरकार में आकर भी उस बीमारी का इलाज नहीं कर पाए, जिस की शिकायत उन्होंने पिछली सरकार से की थी.

Kota Coaching Centers : कोचिंग शहर कोटा का पीआर

Kota Coaching Centers : स्टूडैंट्स के सुसाइड करने की घटनाओं के कारण बदनाम हो रहे कोटा ने अब अपने पूरे कोचिंग शहर की पब्लिसिटी शुरू की है. कुछ कोचिंग सैंटरों ने मिल कर कोचिंग के गिरते नाम को बचाने की कोशिश की है. एक एडवरटाइजमैंट में कोचिंग इंस्टिट्यूट्स को केयरिंग इंस्टिट्यूट्स कहा गया है. इन के द्वारा 10 लाख से अधिक डाक्टर्स व इंजीनियर्स देने का बखान किया गया है. उन के इमोशनल वैलबीइंग सैंटरों की बात की गई है.

रेगिस्तान व धूलभरे राजस्थान का कोटा शहर कोचिंग सैंटर बन गया, यह अजबगजब बात है. ऐसे शहर अब कई हो गए हैं. सीकर हो गया है. हिसार होने लगा है. इस बाबत अब तो शहरों में आपस में कंपीटिशन होने लगा है. हर बड़ी कोचिंग कंपनी अपनी ब्रांचें हर शहर में खोलने लगी हैं. फिर भी कोटा की यूएसपी अभी बरकरार है और उसे बचाए रखने के लिए बड़ी कंपनियों ने पैसे जमा कर के अपना पीआर शुरू किया है ताकि पेरैंट्स इसे सुसाइडों का शहर मान कर बच्चों को भेजना बंद न कर दें.

कोचिंग सिटीज या बड़े शहरों में कोचिंग कंपनियां असल में रैगुलर स्कूलों और कालेजों की कैपेसिटी व इंट्रेस्ट की पोल खोलती हैं. रैगुलर स्कूलकालेजों में खर्च तो बराबर का होता है पर वहां उतनी तेजी से पढ़ने और एग्जाम में बैठ कर पेपर सौल्व करने की तकनीक नहीं सम झाई जाती, जो एग्जाम पैटर्न की जरूरत है.

कोटा एजुकेशनल मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री ने तो अब जानबू झ कर एग्जाम लेने वालों को ब्राइब दे कर ऐसे पेपर भी बनवाने शुरू कर दिए हैं जिन को सौल्व करने की स्किल रैगुलर स्कूलकालेज सिखा ही नहीं सकते. जब वे एग्जाम सिस्टम को बदलवा सकते हैं तो उन के लिए शहर की इमेज सुधारना मुश्किल नहीं है, क्योंकि इस पूरे धंधे में पैसा बहुत है. पेरैंट्स सूटकेस भरभर कर पैसा ला रहे हैं और अपने लाड़लों के फ्यूचर के लिए आज के नए एजुकेशन इंडस्ट्रियलिस्टों को दे रहे हैं जो सपने बेचते हैं, नौलेज नहीं.

पूरा मौडल कुछ के सपनों के सच होने पर चल रहा है, इसलिए शहर का पीआर करना सस्ते का सौदा है.

Teenage Crime : टीन्स के आगे पावरलैस पेरैंट्स

Teenage Crime : टीनएज क्राइम नया तो नहीं है पर अब इस में इंटरनैट और सोशल मीडिया का एमलगेशन हो गया है और टीनएज छोटीछोटी बातों पर बेहद स्ट्रैस महसूस करने लगे हैं. ब्रिटिश मिनी सीरीज ‘एडोलोसैंस’ ने फिल्मक्राफ्ट, यंग ऐक्टर और अपने सब्जैक्ट के जरिए एक तरह का तहलका मचा दिया है. एक घंटे का एक एपिसोड बिना कैमरे को रोके फिल्माया गया है और कैमरा एक कैरेक्टर से दूसरे पर लैंड करता है लेकिन पता नहीं चलता जो टीनएजर्स की उल झी जिंदगी की मेज पर पेज खोलता चला जाता है.

आज के टीन्स जो भाषा यूज कर रहे हैं वह बड़ों के लिए मोहनजोदाड़ो वाली स्क्रिप्ट सी है. उन की लैंग्वेज ही जब सम झ नहीं आए तो उन की फीलिंग्स, उन के फीयर, उन के फेल्योर के रीजन, उन के छोटेछोटे अचीवमैंट, उन की पार्टियां, उन की ड्रग और सैक्स की हैबिट्स कैसे समझ आएंगी. आज बिस्तर में क्विल्ट ओढ़ कर टीन्स जो मैसेज पासवर्ड से चल रहे मोबाइल के जरिए एकदूसरे को पास कर रहे हैं वे एडल्ट्स को पता नहीं होते. अगर उन्होंने उन्हें डांटडपट कर मोबाइल खुलवा लिया तो भी मैसेजों की भाषा सम झ नहीं आएगी.

इस सीरीज में एक 13 साल का लड़का अपनी स्कूलमेट को किचन नाइफ से 7 गहरे जख्म कर के मार डालता है क्योंकि उसे लगता है कि वह उस से हेट करती है. आज के टीन लड़कों को लगता है कि 80 फीसदी लड़कियां केवल 20 फीसदी लड़कों को पसंद करती हैं क्योंकि बाकी 80 फीसदी लड़के अगली, इंपोटैंट, इग्नोरैंट होते हैं.

लड़कियां ऐसा सोचती हैं या नहीं, यह पक्का नहीं पर अगर ऐसा है भी तो सरप्राइजिंग नहीं क्योंकि आज का टीन और यंग बुरी तरह भटक गया है. सोशल मीडिया का हैंडल उस के हाथ में है तो फ्रैंडशिप की डैफिनिशन ही बदल गई है. फेसबुक, इंस्टाग्राम पर जिन्हें फौलो करते हो, जिन्हें फ्रैंड बनाते हो उन्हें जानते भी नहीं हो पर वे ही वर्चुअल फ्रैंड हैं और फिजिकल पेजैंट के साथ स्कूलमेट, स्पौर्ट्समेट, बसमेट, नेबर सब कामचलाऊ जानपहचान वाले हैं जिन्हें घंटों के लिए जरूरत के समय रखा जाता है.

ज्यादा इंपौर्टेंट फ्रैंड सोशल मीडिया वाले हो गए हैं जिन से मिले नहीं, जो टीन्स के घर को जानते नहीं, जिन्हें अपने सैकड़ों फ्रैंड्स में किसी के दुखसुख से मतलब नहीं. ये फ्रैंड सिर्फ इमोजी से काम करते हैं या अजबगजब एक्रोनिम इस्तेमाल करते हैं और तीनचार शब्दों के मैसेज में लव, हेट, डिसअपौइंटमैंट, ब्रेकअप कर डालते हैं. ऐसे टीन्स हर समय स्ट्रैस में रहते हैं क्योंकि किसी भी वर्चुअल फ्रैंड का मैसेज कभी भी आ सकता है और उस को सैकंडों में जवाब देना होता है.

यह स्ट्रैस आज के टीन्स को ड्रग्स और वायलैंस की ओर ले जा रहा है. पेरैंट्स सिर्फ घर, खाना या पौकेटमनी देने के लिए रह गए हैं. सोशल मीडिया से कमाई नहीं होती पर पेरैंट्स अब कुछ भी कर के बहुत ज्यादा खर्च कर रहे हैं. सोशल मीडिया ऐसा ओपियम बन चुका है जिसे बेचने के लिए 1830 से 1860 तक ब्रिटेन ने चीन पर हमला किया और ट्रेड करने का राइट पाया. आज अमेरिकी कंपनियां इंटरनैट के जरिए गरीब और अमीर देशों के घरों में घुस कर सोशल मीडिया के सहारे डिजिटल ओपियम बेच रही हैं. दुनिया के सब से ज्यादा अमीर कपड़ा, खाना, मकान, गाड़ी नहीं बेच रहे, वे सिर्फ सोशल मीडिया प्लेटफौर्म बेच रहे हैं.

‘एडोलोसैंस’ मिनी सीरीज पेरैंट्स के लिए बनी है पर वे अब हैल्पलैस हैं क्योंकि वे खुद सोशल मीडिया के दूसरे अटैक रिलीजन के शिकार हैं. उन को सोशल मीडिया ने उसी तरह इग्नोरैंस, रौंग हिस्ट्री, वायलैंस, फौल्स नैशनलिज्म बेचा है जैसा टीन्स और यंग्स को सैक्स, ड्रग्स, फौल्स फ्रैंडशिप, फौल्स रिलेशनशिप बांटा है. आज के पेरैंट्स किसी को सपोर्ट करने लायक नहीं हैं. वे काम कर के पैसे कमा रहे हैं पर वे किसी भी तरह की नौलेज नहीं रखते. उन के लिए भी पार्टियां जरूरी हैं चाहे पौलिटिकल हों, रिलीजंस हों या ड्रिंक्स व डांस वाली.

पेरैंट्स भी आज वीक हैं और उन से यह एक्सपैक्ट करना कि वे टीन्स को सम झेंगे या सम झाएंगे, इंपौसिबल है. सोशल मीडिया अनचैक्ड, अनएडिटिड इन्फौर्मेशन या कहिए डिसइन्फौर्मेशन इस बुरी तरह परोस रहा है कि पेरैंट्स पावरलैस एडल्ट्स बन कर रह गए हैं जो अपने टीन या यंग बच्चों को प्रोटैक्ट नहीं कर सकते. दुनियाभर में अब लोग फिर से स्ट्रे डौग्स की तरह बनते जा रहे हैं जिन्हें खाने को तो मिल रहा है पर जीने की ट्रेनिंग नहीं मिल रही.

Love Story : बेवजह – कहानी युवती के पिघलते हुए एहसासों की

Love Story : ‘‘तू ने वह डायरी पढ़ी?’’ प्राची ने नताशा से पूछा.

‘‘हां, बस 2 पन्ने,’’ नताशा ने जवाब दिया.

‘‘क्या लिखा था उस में?’’

’’ज्यादा कुछ नहीं. अभी तो बस 2 पन्ने ही पढ़े हैं. शायद किसी लड़के के लिए अपनी फीलिंग्स लिखी हैं उस ने.’’

‘‘फीलिंग्स? फीलिंग्स हैं भी उस में?‘‘ प्राची ने हंसते हुए पूछा.

‘‘छोड़ न यार, हमें क्या करना. वैसे भी डायरी एक साल पुरानी है. क्या पता तब वह ऐसी न हो,’’ नताशा ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘अबे रहने दे. एक साल में कौन सी कयामत आ गई जो वह ऐसी बन गई. तू ने भी सुना न कि उस के और विवान के बीच क्या हुआ था. और अब उस की नजर तेरे अमन पर है. मैं बता रही हूं उसे तान्या के साए से भी दूर रख, तेरे लिए अच्छा होगा.’’

‘‘हां,’’ नताशा ने हामी भरी.

‘‘चल तू यह डायरी जल्दी पढ़ ले इस से पहले कि उसे डायरी गायब होने का पता चले. कुछ चटपटा हो तो मु झे भी बताना,’’ कहते हुए प्राची वहां से निकल गई.

नताशा कुछ सोचतेसोचते लाइब्रेरी में जा कर बैठ गई. 2 मिनट बैठ कर वह तान्या के बारे में सोचने लगी. उस के मन में तान्या को ले कर कई बातें उमड़ रही थीं. आखिर तान्या की डायरी में जो कुछ लिखा था उस की आज की सचाई से मिलताजुलता क्यों नहीं था? क्यों तान्या उसे कभी भी अच्छी नहीं लगी. वह एक शांत स्वभाव की लड़की है जो किसी से ज्यादा मतलब नहीं रखती. लेकिन, विवान के साथ उस का जो सीन था वह क्या था फिर.

पिछले साल कालेज में हर तरफ तान्या और विवान के किस्से थे. तान्या और विवान एकदूसरे के काफी अच्छे दोस्त थे. हालांकि, हमेशा साथ नहीं रहते थे पर जब भी साथ होते, खुश ही लगते थे. पर कुछ महीनों बाद तान्या और विवान का व्यवहार काफी बदल गया था. दोनों एकदूसरे से कम मिलने लगे. जबतब एकदूसरे के सामने आते, यहांवहां का बहाना बना कर निकल जाया करते थे. किसी को सम झ नहीं आया असल में हो क्या रहा है. फिर 2 महीने बाद नताशा को प्राची ने बताया कि तान्या और विवान असल में एकदूसरे के फ्रैंड्स विद बैनिफिट्स थे. उन दोनों ने कानोंकान किसी को खबर नहीं होने दी थी, लेकिन उसे खुद विवान ने एक दिन यह सब बताया था. उन दोनों के बीच यह सब तब खत्म हुआ जब तान्या ने ड्रामा करना शुरू कर दिया. ड्रामा यह कि वह हर किसी को यह दिखाती थी कि वह बहुत दुखी है और इस की वजह विवान है. वह तो बिलकुल पीछे ही पड़ गई थी विवान के.

नताशा को यह सब सुन कर तान्या पर बहुत गुस्सा आया था. उस जैसी शरीफ सी दिखने वाली लड़की किसी के साथ फ्रैंड्स विद बैनिफिट्स में रहेगी और फिर पीछे भी पड़ जाएगी, यह उस ने कभी नहीं सोचा था. जब क्लासरूम में डैस्क के नीचे उसे तान्या की डायरी पड़ी मिली तो वह उसे पढ़ने से खुद को रोक नहीं पाई. वह बस यह जानना चाहती थी कि आखिर यह तान्या डायरी में क्या लिखती होगी, अपने और लड़कों के किस्से या कुछ और.

लाइब्रेरी में बैठेबैठे ही नताशा ने वह डायरी पढ़ ली. डायरी पूरी पढ़ते ही उस ने अपना फोन उठाया और प्राची को कौल मिला दी.

‘‘हैलो,’’ प्राची के फोन उठाते ही नताशा ने कहा.

‘‘हां, बोल क्या हुआ,’’ प्राची ने पूछा.

‘‘जल्दी से लाइब्रेरी आ.’’

‘‘हां, पर हुआ क्या?’’

‘‘अरे यार, आ तो जा, फिर बताती हूं न.’’

‘‘अच्छा, रुक, आई,’’ प्राची कहते हुए लाइब्रेरी की तरफ बढ़ गई.

प्राची नताशा के पास पहुंची तो देखा कि वह किसी सोच में डूबी हुई है. प्राची उस की बगल में रखी कुरसी पर बैठ गई.

‘‘बता, क्या हुआ,’’ प्राची ने कहा.

‘‘यार, हम ने शायद तान्या को कुछ ज्यादा ही गलत सम झ लिया.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि तू यह डायरी पढ़. तू खुद सम झ जाएगी कि मैं क्या कहना चाहती हूं और यह भी कि तान्या के बारे में हम जो कुछ सोचते हैं, सचाई उस से बहुत अलग है. तू बस यह डायरी पढ़, अभी इसी वक्त,’’ नताशा ने प्राची को डायरी थमाते हुए कहा.

‘‘हां, ठीक है,’’ प्राची ने कहा और डायरी हाथ में ले कर पढ़ना शुरू किया.

5/9/18

कितना कुछ है जो मैं तुम से कहना चाहती हूं, कितना कुछ है जो तुम्हें बताना चाहती हूं, तुम से बांट लेना चाहती हूं. पर तुम कुछ सम झना नहीं चाहते, सुनना नहीं चाहते, कुछ कहना नहीं चाहते. मैं खुद को बहुत छोटा महसूस करने लगी हूं तुम्हारे आगे. ऐसा लगने लगा है कि मेरी सारी सम झ कहीं खो गई है. मेरी उम्र उतनी नहीं जिस में मु झे बच्चा कहा जा सके. बस, 18  ही तो है. उतनी भी नहीं कि मु झे बड़ा ही कहा जाए. इस उम्र में कुछ दीनदुनिया भुला कर जी रहे हैं, कुछ नौकरी कर रहे हैं, कुछ पढ़ रहे हैं तो कुछ प्यारव्यार में पड़े हैं.

मैं किस कैटेगरी की हूं, मु झे खुद को सम झ नहीं आ रहा. शायद उस कैटेगरी में हूं जिस में सम झ नहीं आता कि जिंदगी जा किस तरफ रही है. ऐसा लग रहा है कि बस चल रही है किसी तरह, किसी तरफ. मेरे 2 रूप बन चुके हैं, एक जिस में मैं अच्छीखासी सम झदार लड़की हूं और अपने कैरियर के लिए दिनरात मेहनत कर रही हूं. दूसरा, जहां मैं किसी को पाने की चाह में खुद को खो रही हूं और ऐसा लगने लगा है कि मेरा दिमाग दिनबदिन खराब हुआ जा रहा है.

कैसी फिलोसफर सी बातें करने लगी हूं मैं, है न? तुम हमेशा कहते रहते हो कि मैं इस प्यार और दोस्ती जैसी चीजों में माथा खपा रही हूं, यह सब मोहमाया है जिस में मैं जकड़ी जा रही हूं. पर तुम यह क्यों नहीं देखते कि मैं अपने कैरियर पर भी तो ध्यान दे रही हूं, पढ़ती रहती हूं, हर समय कुछ नया करने की कोशिश करती हूं. तुम्हारी हर काम में मदद भी तो करती हूं मैं, अपने खुले विचार भी तो रखती हूं तुम्हारे सामने. यह सबकुछ नजर क्यों नहीं आता तुम्हें?

शायद तुम सिर्फ वही देखते हो जो देखना चाहते हो. लेकिन, अगर मेरे इस प्यारव्यार से तुम्हें कोई मतलब ही नहीं है, फिर मु झ में तुम्हें बस यही क्यों नजर आता है, और कुछ क्यों नहीं?

13/9/18

मैं सम झ चुकी हूं कि तुम्हें मु झ से कोई फर्क नहीं पड़ता. अच्छी बात है. मैं ही बेवकूफ थी जो तुम्हारे साथ पता नहीं क्याक्या ही सोचने लगी थी. जो कुछ भी था हमारे बीच उसे मैं हमारी दोस्ती के बीच में नहीं लाऊंगी. लेकिन, तुम्हें नहीं लगता कि उस बारे में अगर हम कुछ बात कर लेंगे तो हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा. मु झे ऐसा लगने लगा है जैसे तुम ने मु झे खुद को छूने दिया, लेकिन मन से हमेशा दूर रखा. मैं तुम्हारे करीब हो कर भी इतना दूर क्यों महसूस करती हूं. जो सब मैं लिखती हूं, वह कह क्यों नहीं सकती तुम से आ कर.

5/10/18

हां, मैं ने हां कहा तुम्हें बारबार, पर सिर्फ तुम्हें ही कहा, यह तो पता है न तुम्हें. मैं तुम्हें तब गलत क्यों नहीं लगी जब मैं ने यह कहा था कि मैं तुम्हें चाहने लगी हूं, लेकिन तुम्हें मजबूर नहीं करना चाहती कि तुम मु झ से जबरदस्ती रिश्ते में बंधो. याद है तब तुम ने क्या कहा था कि तुम भी मु झ में इंटरेस्टेड हो लेकिन किसी रिश्ते में पड़ कर मु झे खोना नहीं चाहते. मैं इतना सुन कर भी बहुत खुश हुई थी. मु झे लगा था अगर 2 लोग एकदूसरे में इंटरैस्ट रखते हों, तो फिर तो कोई परेशानी ही नहीं है.

मैं ने बस इतना सोचा कि तुम्हें मेरी फिक्र है, तुम मु झे खोना नहीं चाहते और इतना शायद दोस्ती से बढ़ कर कुछ सम झने के लिए काफी है. फिर, जब तुम मु झे अचानक से ही नजरअंदाज करने लगे, मु झ से नजरें चुराने लगे, और मैं ने गुस्से में तुम्हें यह कहा कि तुम ने मु झे तकलीफ पहुंचाई है, तो तुम मु झे ही गलत क्यों कहने लगे?

23/10/18

एक दोस्त हो कर अगर तुम एक दोस्त के साथ सैक्स करने को गलत नहीं मानते, तो मैं क्यों मानूं? नहीं लगा मु झे कुछ गलत इस में, तो नहीं लगा. पर मैं ने यह भी तो नहीं कहा था न कि मेरे लिए तुम सिर्फ एक दोस्त हो. यह तो बताया था मैं ने कि तुम्हारे लिए बहुतकुछ महसूस करने लगी हूं मैं. फिर तुम ने यह क्यों कहा कि मेरी गलती है जो मैं तुम से उम्मीदें लगाने लगी हूं.

26/10/18

नहीं, तुम सही थे. ऐसा कुछ था ही नहीं जिसे ले कर मु झे दुखी होना चाहिए. आखिर हां तो मैं ने ही कहा था. फैं्रड्स विद बैनिफिट्स ही था वह. अगर कुछ दिन पहले पूछते तुम मु झ से कि मैं दुखी हूं या नहीं तो मैं कहती कि मैं बहुत दुखी हूं, मर रही हूं तुम्हारे लिए. लेकिन अब मैं ऐसा नहीं कहूंगी. बल्कि कुछ नहीं कहूंगी. और कहूं भी क्यों जब मु झे पता है कि तुम्हें फर्क नहीं पड़ेगा. मैं भी कोशिश कर रही हूं कि मु झे भी फर्क न पड़े.

हां, जब भी कालेज की कैंटीन में तुम्हें किसी और से उसी तरह बात करते देखती हूं जिस तरह खुद से करते हुए देखा करती थी तो बुरा लगता है मु झे. वह हंसी जो तुम मेरे सामने हंसा करते थे. सब याद आता है मु झे, बहुत याद आता है. पर यह सब मैं तुम्हें नहीं बताना चाहती, अब नहीं.

2/11/18

तुम्हारी गलती नहीं थी, मु झे सम झ आ गया है. तुम मु झे नहीं चाहते और इस में तुम्हारी गलती नहीं है और न ही मेरी है. उस वक्त हम एकदूसरे को छूना चाहते थे, महसूस करना चाहते थे, सीधे शब्दों में सैक्स करना चाहते थे, जो हम ने किया. मैं न तुम्हें सफाई देना चाहती हूं कोई और न किसी और को. अब अगर तुम ने या किसी ने भी मु झ से यह पूछा कि मैं ने हां क्यों की थी तो मेरा जवाब यह नहीं होगा कि मैं तुम्हें चाहने लगी थी.  मेरा जवाब होगा कि मैं तुम्हारे साथ सैक्स करना चाहती थी, जो मैं ने किया, और मु झे नहीं लगता कि इस में कुछ भी गलत है.

तुम किसी को बताना चाहो तो बता दो, अब मु झे फर्क पड़ना बंद हो चुका है. मु झे अगर अपनी इच्छाओं और  झूठी शान में से कुछ चुनना हो तो मैं अपनी इच्छाएं ही चुनूंगी, हमेशा. लेकिन, मैं तुम से अब कभी उस तरह नहीं मिलूंगी जिस तरह कभी मिलती थी. उस तरह बातें नहीं करूंगी जिस तरह किया करती थी. तुम्हारे लिए वैसा कुछ फील नहीं करूंगी जो कभी करती थी. सब बेवजह था, मैं समझ चुकी हूं.

Online Hindi Story : दंश – सोना भाभी को कौन-सी बीमारी थी?

Online Hindi Story : सोना भाभी वैसे तो कविता की भाभी थीं. कविता, जो स्कूल में मेरी सहपाठिनी थी और हमारे घर भी एक ही गली में थे. कविता के साथ मेरा दिनरात का उठनाबैठना ही नहीं उस घर से मेरा पारिवारिक संबंध भी रहा था. शिवेन भैया दोनों परिवारों में हम सब भाईबहनों में बड़े थे. जब सोना भाभी ब्याह कर आईं तो मुझे लगा ही नहीं कि वह मेरी अपनी सगी भाभी नहीं थीं.

सोना भाभी का नाम उषा था. उन का पुकारने का नाम भी सोना नहीं था, न हमारे घर बहू का नाम बदलने की कोई प्रथा ही थी पर चूंकि भाभी का रंग सोने जैसा था अत: हम सभी भाईबहन यों ही उन्हें सोना भाभी बुलाने लगे थे. बस, वह हमारे लिए उषा नहीं सोना भाभी ही बनी रहीं. सुंदर नाकनक्श, बड़ीबड़ी भावपूर्ण आंखें, मधुर गायन और सब से बढ़ कर उन का अपनत्व से भरा व्यवहार था. उन के हाथ का बना भोजन स्वाद से भरा होता था और उसे खिलाने की जो चिंता उन के चेहरे पर झलकती थी उसे देख कर हम उन की ओर बेहद आकृष्ट होते थे.

शिवेन भैया अभी इंजीनियरिंग पढ़ रहे थे कि उन्हें मातापिता ही नहीं दादादादी के अनुरोध से विवाह बंधन में बंधना पड़ा. पढ़ाई पूरी कर के वह दिल्ली चले गए फिर वहीं रहे. हम लोग भी अपनेअपने विवाह के बाद अलगअलग शहरों में रहने लगे. कभी किसी खास आयोजन पर मिलते तो सोना भाभी का प्यार हमें स्नेह से सराबोर कर देता. उन का स्नेहिक आतिथ्य हमेें भावविभोर कर देता.

आखिरी बार जब सोना भाभी से मिलना हुआ उस समय उन्होंने सलवार सूट पहना हुआ था. वह मेरे सामने आने में झिझकीं. मैं ड्राइंगरूम में बैठने वाली तो थी नहीं, भाग कर दूसरे कमरे में पहुंची तो वह साड़ी पहनने जा रही थीं.

मैं ने छूटते ही कहा, ‘‘यह क्या भाभी, आज तो आप बड़ी सुंदर लग रही हो, खासकर इस सलवार सूट में.’’

‘‘नहीं,’’ उन्होंने जोर देते हुए कहा.

मैं ने उन्हें शह दी, ‘‘भाभी आप की कमसिन छरहरी काया पर यह सलवार सूट तो खूब फब रहा है.’’

‘‘नहीं, माया, मुझे संकोच लगता है. बस, 2 मिनट में.’’

‘‘पर क्यों? आजकल तो हर किसी ने सलवार सूट अपने पहनावे में शामिल कर लिया है. यहां तक कि उन बूढ़ी औरतों ने भी जिन्होंने पहले कभी सलवार सूट पहनने के बारे में सोचा तक नहीं था… सुविधाजनक होता है न भाभी, फिर रखरखाव में भी साड़ी से आसान है.’’

‘‘यह बात नहीं है, माया. मुझे कमर में दर्द रहता है तो सब ने कहा कि सलवार सूट पहना करूं ताकि उस से कमर अच्छी तरह ढंकी रहेगी तो वह हिस्सा गरम रहेगा.’’

‘‘हां, भाभी, सो तो है,’’ मैं ने हामी भरी पर मन में सोचा कि सब की देखादेखी उन्हें भी शौक हुआ होगा तो कमर दर्द का एक बहाना गढ़ लिया है…

सोना भाभी ने इस हंसीमजाक के  बीच अपनी जादुई उंगलियों से खूब स्वादिष्ठ भोजन बनाया. इस बीच कई बार मोबाइल फोन की घंटी बजी और भाभी मोबाइल से बात करती रहीं. कोई खास बात न थी. हां, शिवेन भैया आ गए थे. उन्होंने हंसीहंसी में कहा कि तुम्हारी भाभी को उठने में देर लगती थी, फोन बजता रहता था और कई बार तो बजतेबजते कट भी जाता था, इसी से इन के लिए मोबाइल लेना पड़ा.

साल भर बाद ही सुना कि सोना भाभी नहीं रहीं. उन्हें कैंसर हो गया था. सोना भाभी के साथ जीवन की कई मधुर स्मृतियां जुड़ी हुई थीं इसलिए दुख भी बहुत हुआ. लगभग 5 सालों के बाद कविता से मिली तब भी हम दोनों की बातों में सोना भाभी ही केंद्रित थीं. बातों के बीच अचानक मुझे लगा कि कविता कुछ कहतेकहते चुप हो गई थी. मैं ने कविता से पूछ ही लिया, ‘‘कविता, मुझे ऐसा लगता है कि तुम कुछ कहतेकहते चुप हो जाती हो…क्या बात है?’’

‘‘हां, माया, मैं अपने मन की बात तुम्हें बताना चाहती हूं पर कुछ सोच कर झिझकती भी हूं. बात यह है…

‘‘एक दिन सोना भाभी से बातोंबातों में पता लगा कि उन्हें प्राय: रक्तस्राव होता रहता है. भाभी बताने लगीं कि पता नहीं मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है. 50 से 5 साल ऊपर की हो रही हूं्…

‘‘भाभी पहले से भी सुंदर, कोमल लग रही थीं. बालों में एक भी रजत तार नहीं था. वह भी बिना किसी डाई के. वह इतनी अच्छी लग रही थीं कि मेरे मुंह से निकल गया, ‘भाभी, आप चिरयौवना हैं न इसीलिए. देखिए, आप का रंग पहले के मुकाबले और भी निखरानिखरा लग रहा है और चेहरा पहले से भी कोमल, सुंदर. आप बेकार में चिंता क्यों कर रही हैं.

‘‘यही कथन, यही सोच मेरे मन में आज भी कांटा सा चुभता रहता है. क्यों नहीं उस समय उन पर जोर दिया था कि आप के साथ जो कुछ हो रहा है वह ठीक नहीं है. आप डाक्टर से परामर्श लें. क्यों झूठा परिहास कर बैठी थी?’’

मुझे भी उन के कमर दर्द की शिकायत याद आई. मैं ने भी तो उन की बातों को गंभीरता से नहीं लिया था. मन में सोच कर मैं खामोश हो गई.

भाभी और भैया दोनों ही अस्पताल जाने से बहुत डरते थे या यों कहें कि कतराते थे. शायद कुछ कटु अनुभव हों. वहां बातबात में लाइन लगा कर खड़े रहना, नर्सो की डांटडपट, बेरहमी से सूई घुसेड़ना, अटेंडेंट की तीखी उपहास करती सी नजर, डाक्टरों का शुष्क व्यवहार आदि से बचना चाहते थे.

भाभी को सब से बढ़ कर डर था कि कैंसर बता दिया तो उस के कष्टदायक उपचार की पीड़ा को झेलना पड़ेगा. उन्हें मीठी गोली में बहुत विश्वास था. वह होम्योपैथिक दवा ले रही थीं.

‘‘माया, बहुत सी महिलाएं अपने दर्द का बखान करने लगती हैं तो उन की बातों की लड़ी टूटने में ही नहीं आती,’’ कविता बोली, ‘‘उन के बयान के आगे तो अपने को हो रहा भीषण दर्द भी बौना लगने लगता है. सोना भाभी को भी मैं ने ऐसा ही समझ लिया. उन से हंसी में कही बात आज भी मेरे मन को सालती है कि कहीं उन्होंने मेरे मुंह से अपनी काया को स्वस्थ कहे जाने को सच ही तो नहीं मान लिया था और गर्भाशय के अपने कैंसर के निदान में देर कर दी हो.

‘‘माया, लगता यही है कि उन्होंने इसीलिए अपने पर ध्यान नहीं दिया और इसे ही सच मान लिया कि रक्तस्राव होते रहना कोई अनहोनी बात नहीं है. सुनते हैं कि हारमोन वगैरह के इंजेक्शन से यौवन लौटाया जा रहा है पर भाभी के साथ ऐसा क्यों हुआ? मैं यहीं पर अपने को अपराधी मानती हूं, यह मैं किसी से बता न सकी पर तुम से बता रही हूं. भाभी मेरी बातों पर आंख मूंद कर विश्वास करती थीं. 3-4 महीने भी नहीं बीते थे जब रोग पूरे शरीर में फैल गया. सोने सी काया स्याह होने लगी. अस्पताल के चक्कर लगने लगे, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी.’’

मुझे भी याद आने लगा जब मैं अंतिम बार उन से मिली थी. मैं ने भी उन्हें कहां गंभीरता से लिया था.

‘‘माया, तुम कहानियां लिखती हो न,’’ कविता बोली, ‘‘मैं चाहती हूं कि सोना भाभी के कष्ट की, हमारे दुख की, मेरे अपने मन की पीड़ा तुम लिख दो ताकि जो भी महिला कहानी पढ़े, वह अपने पर ध्यान दे और ऐसा कुछ हो तो शीघ्र ही निदान करा ले.’’

कविता बिलख रही थी. मेरी आंखें भी बरस रही थीं. उसे सांत्वना देने वाले शब्द मेरे पास नहीं थे. वह मेरी भी तो बहुत अपनी थी. कविता का अनुरोध नहीं टाल सकी हूं सो उस की व्यथाकथा लिख रही हूं.

Hindi Kahani : एक ब्रौड माइंडेड अंकल – नए नजरिए से रिश्तो को संभालते पिता की कहानी

Hindi Kahani : हमारे महल्ले में एक अंकल रहते हैं. वैसे तो हर महल्ले में कई प्रकार के अंकल पाए जाते हैं, पर हमारे महल्ले के यह अंकल बाकी अंकलों से काफी अलग हैं.

दरअसल, वे महल्ले में सामान्यतः पाए जाने वाले अंकलों की तुलना में कुछ ज्यादा ही ब्रौड माइंडेड हैं. वे इतने ज्यादा खुले विचारों के हैं कि ट्रूकौलर पर उन का फोन नंबर भी ‘ब्रौड माइंडेड अंकल’ के नाम से दिखता है. वे मानते हैं कि इस नई पीढ़ी के साथ मातापिता को दोस्तों की तरह पेश आना चाहिए.

अंकल का अपने बच्चों के साथ भी काफी दोस्ताना व्यवहार है. वे लड़के और लड़की में जरा भी फर्क नहीं करते हैं. अपने बेटों और बेटी दोनों की बराबर नियम से कुटाई करते हैं. मजाल है, जो कोई बच्चा कह दे कि दूसरा बच्चा उस से कम क्यों पिट रहा है.

बच्चों का मोबाइल फोन चुपचाप चैक करने और उन के सोशल मीडिया अकाउंट की जासूसी करने में भी वे लड़केलड़की में कोई भेदभाव नहीं करते. अंकल प्रत्येक क्षेत्र में लैंगिक समानता के सिद्धांत में विश्वास करते हैं.

आज के समय में जब बापबेटे साथ में बैठ कर एक टेबल पर खाना नहीं खाते, हमारे ब्रौड माइंडेड अंकल अपने दोनो बेटों के साथ बैठ कर शराब पीते हैं. बड़ा बेटा पैग बनाता जाता है और अंकल पीते जाते हैं. छोटा बेटा चखना तैयार करता है. अंकल ने सभी को काम बांट कर रखा है, जिस से किसी प्रकार का विवाद न हो.

अंकल का मानना है कि यदि पिता अपने बच्चों के साथ बैठ कर शराब न पिए, तो बच्चे अपने आवारा दोस्तों के पास जा कर बिगड़ सकते हैं. अंकल की दूरदृष्टि के चलते उन के दोनों बेटे पैग बनाने और चखना लगाने में उस्ताद हो गए हैं.

एक बार छोटे बेटे ने नजर चुरा कर थोड़ी बीयर पी ली, तो अंकल ने उसे बहुत प्यार से समझाया, जिस के बाद बच्चे के मुंह पर चार टांके लगे. लेकिन इस घटना के बाद अंकल और उन के बच्चों की दोस्ती और अधिक परिपक्व हो गई.

अपने बच्चों की पढ़ाई और कैरियर को ले कर भी अंकल के विचार काफी सुलझे हुए हैं. वे बच्चों पर अपनी पसंद कभी नहीं थोपते. वे बस बच्चों को अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर सुझाव देते हैं और थोड़ा डराधमका कर अंतिम निर्णय बच्चों पर छोड़ देते हैं. इसीलिए उन्होंने अपने बेटे को इंजीनियरिंग करने का सुझाव दिया, पर जबरदस्ती नहीं की.

जब उन के नालायक बेटे ने कहा कि उसे इंजीनियरिंग में कोई दिलचस्पी नहीं है, तब अंकल को बुरा तो बहुत लगा, पर उन्होंने इस स्थिति को बेहद सौहार्द्रपूर्ण तरीके से संभाला. कोई अन्य अभिभावक होते तो बेटे को मारते, डांटते, पर हमारे ब्रौड माइंडेड अंकल ने प्यार से बेटे से बस इतना कहा कि यदि उसे कोई और कैरियर चुनना है, तो उसे यह घर छोड़ कर जाना पड़ेगा और अपनी पढ़ाई का खर्चा भी खुद ही उठाना पड़ेगा. इस के साथ ही अंकल की जायदाद में तो वह हिस्सा भूल ही जाए.

बस, अंकल के इन प्रेरक शब्दों ने ऐसा जादू किया कि लड़का इंजीनियरिंग करने के लिए तैयार हो गया. आज पड़ोस के अंकल परेशान हैं कि आखिर अंकल के बच्चे उन के काबू में कैसे हैं?

अब जब यह तय हो गया कि अंकल का बेटा इंजीनियर बनेगा तो बात फिर कालेज पर आई. अब अंकल ने अपने व्यक्तिगत जीवन में कभी छोटे लक्ष्य नहीं रखे तो भला बेटे के लिए कैसे कोई समझौता करते.

अंकल ने बेटे को साफ कर दिया कि वे आईआईटी से नीचे के किसी कालेज से खुश नहीं होने वाले. वैसे, अंकल काफी सुलझे हुए हैं और बच्चों के कैरियर के मामले में काफी उदार हैं, पर उन्हें उन चार लोगों से काफी डर लगता है, जिन की नजर चौबीस घंटे अंकल की फैमिली पर रहती है.

अंकल को अकसर अपने बच्चों से कहते हुए सुना गया है कि ‘ऐसा मत करो, चार लोग देखेंगे तो क्या बोलेंगे.‘

पता नहीं, वे कौन से चार लोग हैं, जिन्हें आज तक किसी ने भी नहीं देखा, पर वे अंकल के परिवार में इतना इंटरैस्ट लेते हैं और अंकल भी उन्हें बहुत मानते हैं. अंकल के बच्चों का तो पूरा बचपन ही उन चार लोगों को खुश करने में बीता है.

खैर, अंकल ने बेटे को आईआईटी में दाखिल करवाने के लिए अपनी जान लगा दी. बेटे को कईकई दिनों तक कमरे में बंद कर के रखा, ताकि वह चुपचाप, बिना व्यवधान के पढ़ाई कर पाए. उसे डायपर का डब्बा भी ला कर दिया, ताकि वह अनुपयोगी कार्यों में अपना समय न खराब करे. यहां तक कि सुबहशाम 2-2 घंटे खुद अंकल ने उसे मोटिवेशनल लैक्चर दिया. पर, सब बेकार. बेटे का आईआईटी में दाखिला नहीं हुआ. होता भी कैसे, नीयत ही नहीं थी उस की इंजीनियरिंग करने की. बेचारे अंकल भी क्या करते. अंकल जितने ब्रौड माइंडेड हैं, बच्चे उन के उतने ही नालायक निकले.

खैर, अंकल काफी सुलझे विचार वाले थे. एक आईआईटी की परीक्षा भला अंकल के बुलंद इरादों को कैसे रोक सकती थी. बेटे को इंजीनियरिंग करवाने की उन की प्रबल इच्छा के चलते रास्ते खुद ब खुद बनते चले गए और जल्दी ही बेटे का एडमिशन पोपटमल कालेज औफ इंजीनियरिंग में हो गया. बेटा आखिर तक मना करता रहा कि मुझे इंजीनियरिंग में कोई रुचि नहीं है, पर अंकल खुद हाथ पकड़ कर उस को कालेज छोड़ आए. आखिरकार उन के लड़के को समझ आया कि होस्टल जा कर ही पापा के मोटिवेशनल लैक्चर से छुटकारा मिल सकता है. वह चुपचाप कालेज के होस्टल में शिफ्ट हो गया, जहां पर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के अलावा वह सबकुछ सीख गया.

जितने खुले विचार अंकल के बच्चों की पढ़ाई को ले कर थे, उस से कहीं ज्यादा खुले विचार उन के बच्चों की शादीब्याह को ले कर थे.

अंकल ने अपने बच्चों को लव मैरिज करने की पूरी छूट दे रखी थी. उन्होंने स्पष्ट कह दिया था कि तुम को जिस से शादी करनी हो, कर लेना. बस, वह अपनी कास्ट का होना चाहिए.

आजकल के जमाने में भला कौन अपने बच्चों को इस तरह खुलेआम प्रेमविवाह की अनुमति देता है. अंकल को लव मैरिज से कोई समस्या नहीं थी. रोमांटिक हिंदी फिल्में देखना उन्हें काफी पसंद था. अंकल ने तो अपनी ओर से कुछ बायोडाटा तक ला कर अपने बच्चों के सामने रख दिए कि इन में से जिस किसी को चाहो जा कर लव मैरिज कर लो. इस तरह अंकल बच्चों को पार्टनर ढूंढ़ने की मेहनत से ही बचाना चाहते थे.

पर, जैसा कि हम जानते ही हैं, अंकल के बच्चे ठहरे पूरे नालायक. अंकल द्वारा इतना सब करने के बाद भी जब उन की बेटी ने अपनी कास्ट के बाहर के एक लड़के रमेश से शादी करने की इच्छा जाहिर की, तो अंकल ने बेटी पर जरा भी गुस्सा नहीं किया. बस, उस का मोबाइल फोन ले कर उसे एक कमरे में बंद कर दिया. उन की लड़की ने बहुत बहस की कि पापा, मैं रमेश से प्यार करती हूं, सुरेश के साथ खुश नहीं रहूंगी.

अंकल ने हंसते हुए समझाया कि शादी कर के भला आज तक कौन खुश हुआ है, इसलिए जब दुखी ही होना है तो क्यों न अपनी ही जाति के लड़के के साथ रह कर दुखी हुआ जाए.

ऐसा बिलकुल नहीं था कि अंकल को अंतर्जातीय विवाह से कोई समस्या हो. अंकल तो जातिधर्म में बिलकुल यकीन नहीं करते थे. पर यह कमबख्त समाज, यह तो जातिधर्म सभी को मानता है और अंकल को रहना भी इसी समाज में ही है. अब अंकल समाज को तो नहीं बदल सकते इसलिए उन्होंने ‘चेंज योरसैल्फ बिफोर चेंजिंग द वर्ल्ड’ के सिद्धांत पर चलते हुए खुद को ही बदलने की ठान ली. समाज की खातिर न सिर्फ उन्होंने खुद को बदला, बल्कि बच्चों के कैरियर और प्यार भी कुरबान कर दिए. अपनी लड़की की शादी जबरन अपनी जाति के लड़के सुरेश से करवाने के बाद उन का कद समाज में और बढ़ गया.

तो इस तरह से अंकल ने प्यारमुहब्बत से अपने दोनों बच्चों को सैटल कर ही दिया. लड़के ने सफलतापूर्वक पोपटमल कालेज से अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और अपना स्टार्टअप खोलने के लिए थाईलैंड चला गया. जातेजाते वह अंकल जी का वह एटीएम कार्ड भी ले गया, जिस के पीछे ही अंकल ने उस का पिन लिख रखा था. बाद में जब अंकल के पास अकाउंट खाली होने के मैसेज आए, तो उन्होंने एक पिता के तौर पर यह सोच कर बेटे को माफ कर दिया कि सब उसी का ही तो था. लेकिन एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर वे बेटे को माफ नहीं कर पाए और पुलिस स्टेशन जा कर एफआईआर दर्ज करवा ही दी.

आखिरी समाचार मिलने तक उन के बेटे ने थाईलैंड में अपना धंधा जमा लिया था, वहीं दूसरी तरफ लड़की भी सुरेश से शादी कर के सैटल हो गई थी.

अंकल अब भी कालोनी के बच्चों को प्रेरित करने के लिए मोटिवेशनल लैक्चर देते रहते हैं और आज भी सब उन्हें ब्रौड माइंडेड अंकल के नाम से ही जानते हैं.

Hindi Story : वह मेरे जैसी नहीं है – वक्त के साथ चलती बेटी की कहानी

Hindi Story : स्नेहा मां की बात न मानती, करती अपने मन की. फिर भी मां अंदर ही अंदर खुश होतीं, उसे आशीर्वाद देतीं. आखिर ऐसा था क्या? पढि़ए, पूनम अहमद की कहानी.

मैं ने तो यही सुना था कि बेटियां मां की तरह होती हैं या ‘जैसी मां वैसी बेटी’ लेकिन जब स्नेहा को देखती हूं तो इस बात पर मेरे मन में कुछ संशय सा आ जाता है. इस बात पर मेरा ध्यान तब गया जब वह 3 साल की थी. उसी समय अनुराग का जन्म हुआ था. मैं ने एक दिन स्नेहा से पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा बेड अलग तैयार कर दूं, तुम अलग बेड पर सो पाओगी?’’

स्नेहा तुरंत चहकी थी, ‘‘हां, मम्मी बड़ा मजा आएगा. मैं अपने बेड पर अकेली सोऊंगी.’’

मुझे थोड़ा अजीब लगा कि जरा भी नहीं डरी, न ही उसे हमारे साथ न सोने का कोई दुख हुआ.

विजय ने कहा भी, ‘‘अरे, वाह, हमारी बेटी तो बड़ी बहादुर है,’’ लेकिन मैं चुपचाप उस का मुंह ही देखती रही और स्नेहा तो फिर शाम से ही अपने बेड पर अपना तकिया और चादर रख कर सोने के लिए तैयार रहती.

स्नेहा का जब स्कूल में पहली बार एडमिशन हुआ तो मैं तो मानसिक रूप से तैयार थी कि वह पहले दिन तो बहुत रोएगी और सुबहसुबह नन्हे अनुराग के साथ उसे भी संभालना होगा लेकिन स्नेहा तो आराम से हम सब को किस कर के बायबाय कहती हुई रिकशे में बैठ गई. बनारस में स्कूल थोड़ी ही दूरी पर था. विजय के मित्र का बेटा राहुल भी उस के साथ रिकशे में था. राहुल का भी पहला दिन था. मैं ने विजय से कहा, ‘‘पीछेपीछे स्कूटर पर चले जाओ, रास्ते में रोएगी तो उसे स्कूटर पर बिठा लेना.’’

विजय ने ऐसा ही किया लेकिन घर आ कर जोरजोर से हंसते हुए बताया, ‘‘बहुत बढि़या सीन था, स्नेहा इधरउधर देखती हुई खुश थी और राहुल पूरे रास्ते जोरजोर से रोता हुआ गया है, स्नेहा तो आराम से रिकशा पकड़ कर बैठी थी.’’

मैं चुपचाप विजय की बात सुन रही थी, विजय थोड़ा रुक कर बोले, ‘‘प्रीति, तुम्हारी मम्मी बताती हैं कि तुम कई दिन तक स्कूल रोरो कर जाया करती थीं. भई, तुम्हारी बेटी तो बिलकुल तुम पर नहीं गई.’’

मैं पहले थोड़ी शर्मिंदा सी हुई और फिर हंस दी.

स्नेहा थोड़ी बड़ी हुई तो उस की आदतें और स्वभाव देख कर मेरा कुढ़ना शुरू हो गया. स्नेहा किसी बात पर जवाब देती तो मैं बुरी तरह चिढ़ जाती और कहती, ‘‘मैं ने तो कभी बड़ों को जवाब नहीं दिया.’’

स्नेहा हंस कर कहती, ‘‘मम्मी, क्या अपने मन की बात कहना उलटा जवाब देना है?’’

अगर कोई मु?ा से पूछे कि हम दोनों में क्या समानताएं हैं तो मु?ो काफी सोचना पड़ेगा. मु?ो घर में हर चीज साफ- सुथरी चाहिए, मुझे हर काम समय से करने की आदत है. बहुत ही व्यवस्थित जीवन है मेरा और स्नेहा के ढंग देख कर मैं अब हैरान भी होने लगी थी और परेशान भी. अजीब लापरवाह और मस्तमौला सा स्वभाव हो रहा था उस का.

स्नेहा ने 10वीं कक्षा 95 प्रतिशत अंक ला कर पास की तो हमारी खुशियों का ठिकाना नहीं था. मैं ने परिचितों को पार्टी देने की सोची तो स्नेहा बोली, ‘‘नहीं मम्मी, यह दिखावा करने की जरूरत नहीं है.’’

मैं ने कहा, ‘‘यह दिखावा नहीं, खुशी की बात है,’’ तो कहने लगी, ‘‘आजकल 95 प्रतिशत अंक कोई बहुत बड़ी बात नहीं है, मैं ने कोई टौप नहीं किया है.’’ बस, उस ने कोई पार्टी नहीं करने दी, हां, मेरे जोर देने पर कुछ परिचितों के यहां मिठाई जरूर दे आई.

अब तक हम मुंबई में शिफ्ट हो चुके थे. स्नेहा जब 5वीं कक्षा में थी, तब विजय का मुंबई ट्रांसफर हो गया था और अब हम काफी सालों से मुंबई में हैं.

10वीं की परीक्षाओं के तुरंत बाद स्नेहा के साथ पढ़ने वाली एक लड़की की अचानक आई बीमारी में मृत्यु हो गई. मेरा भी दिल दहल गया. मैं ने सोचा, अकेले इस का वहां जाना ठीक नहीं होगा, कहीं रोरो कर हालत न खराब कर ले. मैं ने कहा, ‘‘बेटी, मैं भी तुम्हारे साथ उस के घर चलती हूं,’’ अनुराग को स्कूल भेज कर हम लोग वहां गए. पूरी क्लास वहां थी, टीचर्स और कुछ बच्चों के मातापिता भी थे. मेरी नजरें स्नेहा पर जमी थीं. स्नेहा वहां जा कर चुपचाप कोने में खड़ी अपने आंसू पोंछ रही थी, लेकिन मृत बच्ची का चेहरा देख कर मेरी रुलाई फूट पड़ी और मैं अपने पर नियंत्रण नहीं रख पाई. मु?ो स्वयं को संभालना मुश्किल हो गया. स्नेहा की दिवंगत सहेली कई बार घर आई थी, काफी समय उस ने हमारे घर पर भी बिताया था.

स्नेहा फौरन मेरा हाथ पकड़ कर मुझे धीरेधीरे वहां से बाहर ले आई. मेरे आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. हम दोनों आटो से घर आए. कहां तो मैं उसे संभालने गई थी और कहां वह घर आ कर कभी मु?ो ग्लूकोस पिला रही थी, कभी नीबूपानी. ऐसी ही है स्नेहा, मु?ो कुछ हो जाए तो देखभाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ती और अगर मैं ठीक हूं तो कुछ करने को तैयार नहीं होगी.

मैं कई बार उसे अपने साथ मार्निंग वाक पर चलने के लिए कहती हूं तो कहती है, ‘‘मम्मी, टहलने से अच्छा है आराम से लेट कर टीवी देखना,’’ मैं कहती रह जाती हूं लेकिन उस के कानों पर जूं नहीं रेंगती. कहां मैं प्रकृतिप्रेमी, समय मिलते ही सुबहशाम सैर करने वाली और स्नेहा, टीवी और नेट की शौकीन.

5वीं से 10वीं कक्षा तक साथ पढ़ने वाली उस की सब से प्रिय सहेली आरती के पिता का ट्रांसफर जब दिल्ली हो गया तो मैं भी काफी उदास हुई क्योंकि आरती की मम्मी मेरी भी काफी अच्छी सहेली बन चुकी थीं. अब तक मु?ो यही तसल्ली रही थी कि स्नेहा की एक अच्छी लड़की से दोस्ती है. आरती के जाने पर स्नेहा अकेली हो जाएगी, यह सोच कर मु?ो काफी बुरा लग रहा था. आरती के जाने के समय स्नेहा ने उसे कई उपहार दिए और जब वह उसे छोड़ कर आई तो मैं उस का मुंह देखती रही. उस ने स्वीकार तो किया कि वह बहुत उदास हुई है, उसे रोना भी आया था, यह उस की आंखों का फैला काजल बता रहा था. लेकिन जिस तरह अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रख कर उस ने मु?ा से बात की उस की मैं ने दिल ही दिल में प्रशंसा की.

स्नेहा बोली, ‘‘अब तो फोन पर या औनलाइन बात होगी. चलो, कोई बात नहीं, चलता है.’’

ऐसा नहीं है कि वह कठोर दिल की है या उसे किसी से आंतरिक लगाव नहीं है. मैं जानती हूं कि वह बहुत प्यार करने वाली, दूसरों का बहुत ध्यान रखने वाली लड़की है. बस, उसे अपनी भावनाओं पर कमाल का नियंत्रण है और मैं बहुत ही भावुक हूं, दिन में कई बार कभी भी अपने दिवंगत पिता को या अपने किसी प्रियजन को याद कर के मेरी आंखें भरती रहती हैं.

जैसेजैसे मैं उसे सम?ा रही हूं, मुझे उस पर गुस्सा कम आने लगा है. अब मैं इस बात पर कलपती नहीं हूं कि स्नेहा मेरी तरह नहीं है. उस का एक स्वतंत्र, आत्मविश्वास से भरा हुआ व्यक्तित्व है. डर नाम की चीज उस के शब्दकोश में नहीं है. अब वह बी.काम प्रथम वर्ष में है, साथ ही सी.पी.टी. पास कर के सी.ए. की तैयारी में जुट चुकी है. हमें मुंबई आए 9 साल हो चुके हैं. इन 9 सालों में 2-3 बार लोकल टे्रन में सफर किया है. लोकल टे्रन की भीड़ से मु?ो घबराहट होती है.

हाउसवाइफ हूं, जरूरत भी नहीं पड़ती और न टे्रन के धक्कों की हिम्मत है न शौक. मेरी एक सहेली तो अकसर लोकल टे्रन में शौकिया घूमने जाती है और मैं हमेशा यह सोचती रही हूं कि कैसे मेरे बच्चे इस भीड़ का हिस्सा बनेंगे, कैसे कालिज जाएंगे, आएंगे जबकि विजय हमेशा यही कहते हैं, ‘‘देखना, वे आज के बच्चे हैं, सब कर लेंगे.’’ और वही हुआ जब स्नेहा ने मुलुंड में बी.काम के लिए दाखिला लिया तो मैं बहुत परेशान थी कि वह कैसे जाएगी, लेकिन मैं हैरान रह गई. मुलुंड स्टेशन पर उतरते ही उस ने मु?ो फोन किया, ‘‘मम्मी, मैं बिलकुल ठीक हूं, आप चिंता मत करना. भीड़ तो थी, गरमी भी बहुत लगी, एकदम लगा उलटी हो जाएगी लेकिन अब सब ठीक है, चलता है, मम्मी.’’

मैं उस के इस ‘चलता है’ वाले एटीट्यूड से कभीकभी चिढ़ जाती थी लेकिन मु?ो उस पर उस दिन बहुत प्यार आया. मैं छुट्टियों में उसे घर के काम सिखा देती हूं. जबरदस्ती, कुकिंग में रुचि लेती है. अब सबकुछ बनाना आ गया है. एक दिन तेज बुखार के कारण मेरी तबीयत बहुत खराब थी. अनुराग खेलने गया हुआ था, विजय टूर पर थे. स्नेहा तुरंत अनुराग को घर बुला कर लाई, उसे मेरे पास बिठाया, मेरे डाक्टर के पास जा कर रात को 9 बजे दवा लाई और मुझे खिला- पिला कर सुला दिया. मुझे बुखार में कोई होश नहीं था.

अगले दिन कुछ ठीक होने पर मैं ने उसे सीने से लगा कर बहुत प्यार किया. मुझे याद आ गया जब मैं अविवाहित थी, घर पर अकेली थी और मां की तबीयत खराब थी. मेरे हाथपांव फूल गए थे और मैं इतना रोई थी कि सब इकट्ठे हो गए थे और मुझे संभाल रहे थे. पिताजी थे नहीं, बस हम मांबेटी ही थे. आज स्नेहा ने जिस तरह सब संभाला, अच्छा लगा, वह मेरी तरह घबराई नहीं.

अब वह ड्राइविंग सीख चुकी है. बनारस में मैं ने भी सीखी थी लेकिन मुंबई की सड़कों पर स्टेयरिंग संभालने की मेरी कभी हिम्मत नहीं हुई और अब मैं भूल भी चुकी हूं, लेकिन जब स्नेहा मुझे बिठा कर गाड़ी चलाती है, मैं दिल ही दिल में उस की नजर उतारती हूं, उसे चोरीचोरी देख कर ढेरों आशीर्वाद देती रहती हूं और यह सोचसोच कर खुश रहने लगी हूं, अच्छा है वह मेरी तरह नहीं है. वह तो आज की लड़की है, बेहद आत्मविश्वास से भरी हुई. हर स्थिति का सामना करने को तैयार. कितनी सम?ादार है आज की लड़की अपने फैसले लेने में सक्षम, अपने हकों के बारे में सचेत, सोच कर अच्छा लगता है.

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