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Hindi Kahani : दूध का कर्ज – क्या पिंकू अपनी वफादारी साबित कर सका?

Hindi Kahani : वह देखने में अच्छा नहीं था. अच्छी नस्ल का भी नहीं था. आम कुत्तों की तरह ही था. इधरउधर की चीजें खा कर जिंदा रहने वाला कुत्ता था. उस की चालढाल भी बहुत अच्छी नहीं थी. भूंकता कम था. बड़ी आशा से 2 महीने पहले खरीदा था कि बड़ा हो कर खूंखार होगा और अपना नाम सार्थक करेगा. लेकिन उस की चालढाल से ऐसा कुछ लग नहीं रहा था. उसे इसलिए खरीदा गया था कि महल्ले में चोरियां अचानक बहुत बढ़ गई थीं. कोरोना के कारण लोगों की नौकरियां चली गई थीं. महंगाई चरम सीमा पर थी. गरीब लोगों को खाने के लाले पड़ गए थे. जगहजगह रात को चोरियां हो रही थीं. इसलिए इसे खरीदा गया कि कम से कम बाहर वह चौकीदारी तो करेगा. जब खरीद कर लाया तो सभी लोग उसे घेर कर बैठ गए थे. उस का नाम क्या रखा जाए, इस पर बहस होने लगी.

बड़े लड़के ने कहा, ‘टाइगर नाम अच्छा होगा. यह बहुत ही फेमस नाम है, हर गलीमहल्ले में टाइगर नाम का कुत्ता मिल जाएगा.

फिर छोटी बिटिया कहने लगी कि, ‘पापा, ‘सीजर’ नाम कैसा होगा?’ इस पर भी लोगों की सहमति नहीं बनी, क्योंकि उत्तर भारत में इस नाम के हजारों कुत्ते मिल जाएंगे. आखिरकार आधे घंटे की बहस के बाद ‘पिंकू’ नाम पर सहमति बन गई.

आदमी हो या जानवर, उस का नाम उस के काम से जाना जाता है. धीरेधीरे समय बीतने लगा. पिंकू में क्रूरता के स्थान पर मानवता झलकने लगी. जब छोटा था तो बच्चों को काटने को दौड़ता था. लेकिन बड़ा होते ही सब की गोद में जा कर बैठ जाता. पूंछ हिलाहिला कर पैरहाथ चाटने लगता. बाहरी के साथ भी उस का यही व्यवहार था. जिस उम्मीद के साथ उसे खरीद कर लाए थे, उस पर वह खरा नहीं उतर रहा था. खिलापिला कर इतना बड़ा किया, सोचा था कि घर की रखवाली मुस्तैदी से करेगा. बाहरी लोगों को अंदर नहीं आने देगा. लेकिन यह सब उलटा होने लगा.

घर में रोज़ तरहतरह के लोग आया करते थे. कभी सब्जी वाला तो कभी पोस्टमैन, भिखारी, फेरीवाला, दोस्त, रिश्तेदार आदिआदि. सभी के साथ पिंकू का व्यवहार एक ही तरह का होता था. स्वागत सभी का एक ही ढंग से करता था. गेट पर आवाज होते ही खड़ा हो जाता. आगंतुक को देखने लगता. उस की तरफ तेजी से दौड़ता. लेकिन भूंकता नहीं था. मेहमान का स्वागत पूंछ हिलाहिला कर, सिर नीचे कर के करता था. आने वाले तो उसे देख कर डर जाते थे कि कहीं काट न ले. लेकिन उस के व्यवहार को देख कर लोगों के मन में डर की भावना खत्म हो जाती थी. कोई भी मेहमान उस की बड़ाई करते थकता नहीं था. जिस से मैं मिलना नहीं चाहता था उसे भी वह खींच कर ले आता था.

लेकिन उस के इस व्यवहार से घर वाले बहुत नाराज रहने लगे. मुझे ताना देने लगे. घर की मालकिन कहती कि खाता तो यह हाथी के बराबर है. इस महंगाई में इसे पालना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो गया है. इसे दूध, चावल और मीट खिलाने में जितना खर्च होता है, उस में तो 2 पहरेदार रखे जा सकते थे.

घर पर हम ने बहुत सारे फूल लगा रखे थे. लेकिन उस की भी वह रखवाली नहीं कर पाता. सवेरे ही लोग फूल तोड़ ले जाते थे. लेकिन पिंकू उन का स्वागत ही करता था. भूंकना तो वह जैसे जानता ही नहीं था.

मां कहने लगी कि अब उसे रात को कमरे में बंद कर दिया करो, नहीं तो वह चोर को भी बुला कर सारा घर दिखा देगा. वह भूंकता तो था ही नहीं. इतना शांत कुत्ता तो मैं ने दुनिया में नहीं देखा. अगर वह भूंकना शुरू कर दे तो कुछ बात बने. लेकिन ऐसा उस में कुछ भी नहीं दिखाई पड़ रहा था. वह एक सज्जन इंसान की तरह सभी से व्यवहार करने लगा था.

आखिर वह दिन आ ही गया. चोर रात को 2 बजे पीछे वाले कमरे की खिड़की तोड़ कर भीतर घुस गया. उस ने घर की सब अलमारियां और बौक्स खोल डाले. औरत के सारे कीमती जेवरों की पोटली बना कर बाहर निकलने की तैयारी करने लगा. खिड़की से जैसे ही उस ने बाहर निकलने की कोशिश किया, पिंकू उस को बड़ी उत्सुकता से देख रहा था. चोर डर गया. उस ने सोचा कि अब वह पकड़ा जाएगा. कुत्ता जरूर भूंकेगा. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. पिंकू ने तो चोर की गोद में अपना पैर रख दिया. प्यार से पूंछ हिलाने लगा. चोर को लगा कि वह भूखा है. उस ने बड़े प्यार से उस का सिर सहलाया और आगे पोटली ले कर चलने लगा. धीरे से फाटक खोला और बाहर निकल गया. मेरा पिंकू भी उस के पीछेपीछे चल दिया.

चोर को पिंकू बहुत पसंद आ गया. इस के पहले भी वह कई जगह चोरी कर चुका था. लेकिन कुत्ते के कारण पकड़ा गया था. 2 साल बाद जमानत पर छूटा था. लेकिन चोरी करने की आदत नहीं गई थी. ज़िंदगी में पहली बार उस को ऐसा कुत्ता मिला था जो जिस ने चोरी करने में उस की सहायता की थी. उस ने पिंकू को दोस्त बना लिया. उसे अपने घर ले आया.

दीनू चोर जब सोता तो उस की बगल में पिंकू भी सो जाता. जब वह खाने को बैठता तो उस की बगल में पिंकू भी दुम हिलाते बैठ जाता. जब नहाने जाता तो वह गंगा के किनारे इंतजार करता रहता. दीनू चोर का घर गंगा के किनारे एक घाट पर था. अपने पापों को वह गंगा नहा कर धो डालता था. ऐसी उस की सोच थी.

दरअसल, पिंकू कुछ ज्यादा ही अब उसे परेशान करने लगा था. जब वह रात को चोरी पर निकलता तो भी वह उस के पीछे लग जाता. उसे मना करता और कहता, ‘भैया, मुझे कुछ पल के लिए तो अकेला छोड़ दो’. मगर वह कहां मानता बल्कि और गोद में छिप कर बैठ जाता. वह भी चोर की तरह ही व्यवहार करने लगा था. आखिर जानवर ही तो था.

इधर पिंकू के अचानक गायब हो जाने से घर में बड़ी खलबली मच गई थी. सभी खोजखोज कर परेशान हो गए थे. लेकिन उस का कहीं भी पता नहीं चला. मां को पूरा विश्वास था कि उसे चोर ही ले गया होगा. यह भी बड़े शर्म की बात थी. कुत्ते को अगर चोर ले जाए तो वह कितना सीधा कुत्ता होगा, इस का अनुमान लगाया जा सकता है.

मेरी छोटी वाली बिटिया कह रही थी कि यह संयोग ही हो सकता है. वह जरूर चोर के साथ खुद ही चला गया होगा. उस के रहते चोर ने कैसे चोरी करने की हिम्मत कर ली, इस बात का बाहरी लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था. हम तो मन ही मन खुश हो रहे थे कि चलो सिर का बवाल हट गया. चोर जेवर ले गया, इस का हमें बहुत ज्यादा दुख नहीं था. हम ने पुलिस को शिकायत जरूर दर्ज कराई थी. लेकिन एक महीने बीत जाने पर भी कुछ रिज़ल्ट सामने नहीं आया, इसलिए पुलिस स्टेशन जा रहा थे. मेरी छोटी बिटिया भी मेरे साथ थी. पिंकू उस से बहुत मुंहलगा हो गया था. वह हमेशा उस के साथ खेला करती थी. जब वह गायब हो गया तो उस ने 2 दिनों तक खाना नहीं खाया था.

बाजार में अचानक पिंकू बिटिया को दिखाई पड़ गया. वह किसी के साथ पीछेपीछे जा रहा था. बिटिया ज़ोर से पिंकू-पिंकू चिल्लाई. आवाज सुन कर दीनू चोर ने पीछे मुड़ कर देखा और तेजी से भागना शुरू कर दिया. पिंकू यह सोच कर कि उस का दोस्त उस से पिंड छुड़ाना चाहता है, उस के पीछे भागना शुरू कर दिया.

मैं भी ‘पिंकूपिंकू’ चिल्लाया. उस ने मेरी तरफ देखा और फिर अपने दोस्त को रुकता न देख कर तेजी से भागना शुरू कर दिया. दीनू ने भी अपनी रफ्तार बढ़ा दी. पिंकू किसी भी तरह उस चोर को रोकना चाह रहा था, इसलिए उस ने आगे लपक कर उस का रास्ता रोकने की कोशिशें करने लगा. ऐसे में चोर दीनू उस के ऊपर ही गिर पड़ा. जमीन पर गिरते ही उस की जेब से कुछ जेवर नीचे गिर पड़े. वह चोरी के जेवरों को किसी दुकान पर बेचने जा रहा था. मैं ने उस जेवर को पहचान लिया. वे सारे जेवर मेरी वाइफ के थे. इसलिए मैं ने एकदम से चोर पर झपट पड़ा और पकड़ लिया. इसे देख वहां अच्छीखासी भीड़ इकट्ठा हो गई. पुलिस भी आ गई.

बिटिया ने पिंकू को गले लगा लिया. उस की आंखों से आंसू टपक रहे थे. ऐसा लग रहा था कि दो पुराने दोस्त मिल गए हों. जेवर मिल जाने की खुशी से हम तुरंत वापस घर चले आए. पिंकू तो अब जैसे हीरो बन गया था. मां, बहन, बेटे, बेटियां सभी उसे गले लगा रहे थे. घर की मालकिन भी तुरंत कटोरी में दूध ला कर उसे पिलाने लगीं. पिंकू बोल नहीं सकता था लेकिन आज सभी को उस ने अपनी वफादारी का पाठ पढ़ा दिया. उस ने हमारे दूध का कर्ज अदा कर दिया था.

Online Hindi Story : कहो, कैसी रही चाची

Online Hindi Story : लड़की लंबी हो, मिल्की ह्वाइट रंग हो, गृहकार्य में निपुण हो… ऐसी बातें तो घरों में तब खूब सुनी थीं जब बहू की तलाश शुरू होती थी. जाने कितने फोटो मंगाए जाते, देखे जाते थे.

फिर लड़की को देखने का सिलसिला शुरू होता था. लड़की में मांग के अनुसार थोड़ी भी कमी पाई जाती तो उसे छांट दिया जाता. यों, अब सुनने में ये सब पुरानी बातें हो गई हैं पर थोड़े हेरफेर के साथ घरघर की आज भी यही समस्या है.

अब तो लड़कियों में एक गुण की और डिमांड होने लगी है. मांग है कि कानवेंट की पढ़ी लड़की चाहिए. यह ऐसी डिमांड थी कि कई गुणसंपन्न लड़कियां धड़ामधड़ाम गिर गईं.

अच्छेअच्छे वरों की कतार से वे एकदम से बाहर कर दी गईं. उन में कुंभी भी थी जो मेरे पड़ोस की भूली चाची की बेटी थी.

‘‘कानवेंट एजुकेटेड का मतलब?’’ पड़ोस में नईनई आईं भूली चाची ने पूछा, जो दरभंगा के किसी गांव की थीं.

‘‘अंगरेजी जानने वाली,’’ मैं ने बताया.

‘‘भला, अंगरेजी में ऐसी क्या बात है भई, जो हमारी हिंदी में नहीं…’’ चाची ने आंख मटकाईं.

‘‘अंगरेजी स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियां तेजतर्रार होती हैं. हर जगह आगे, हर काम में आगे,’’ मैं ने उन्हें समझाया, ‘‘फटाफट अंगरेजी बोलते देख सब हकबका जाते हैं. अच्छेअच्छों की बोलती बंद हो जाती है.’’

‘‘अच्छा,’’ चाची मेरी बात मानने को तैयार नहीं थीं, इसलिए बोलीं, ‘‘यह तो मैं अब सुन रही हूं. हमारे जमाने की कई औरतें आज की लड़कियों को पछाड़ दें. मेरी कुंभी तो अंगरेजी स्कूल में नहीं पढ़ी पर आज जो तमाम लड़कियां इंगलिश मीडियम स्कूलों में पढ़ रही हैं, कुछ को छोड़ बाकी तो आवारागर्दी करती हैं.’’

‘‘छी…छी, ऐसी बात नहीं है, चाची.’’

‘‘कहो तो मैं दिखा दूं,’’ चाची बोलीं, ‘‘घर से ट्यूशन के नाम पर निकलती हैं और कौफी शौप में बौयफ्रैंड के साथ चली जाती हैं, वहां से पार्क या सिनेमा हाल में… मैं ने तो खुद अपनी आंखों से देखा है.’’

‘‘हां, इसी से तो अब अदालत भी कहने लगी है कि वयस्क होने की उम्र 16 कर दी जाए,’’ मैं ने कुछ शरमा कर कहा.

‘‘यानी बात तो घूमफिर कर वही हुई. ‘बालविवाह की वापसी,’’’ चाची बोलीं, ‘‘अच्छा छोड़ो, तुम्हारी बेटी तो अंगरेजी स्कूल में पढ़ रही है, उसे सीना आता है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘खाना पकाना?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘चलो, गायनवादन तो आता ही होगा,’’ चाची जोर दे कर बोलीं.

‘‘नहीं, उसे बस अंगरेजी बोलना आता है,’’ यह बताते समय मैं पसीनेपसीने हो गई.

चाची पुराने जमाने की थीं पर पूरी तेजतर्रार. अंगरेजी न बोलें पर जरूरत के समय बड़ेबड़ों की हिम्मत पस्त कर दें.

उस दिन चाची के घर जाना हुआ. बाहर बरामदे में बैठी चाची साड़ी में कढ़ाई कर रही थीं. खूब बारीक, महीन. जैसे हाथ नहीं मकड़ी का मुंह हो.

‘‘हाय, चाची, ये आप कर रही हैं? दिखाई दे रहा है इतना बारीक काम…’’

‘‘तुम से ज्यादा दिखाई देता है,’’ चाची हंस कर बोलीं, ‘‘यह तो आज दूसरी साड़ी पर काम कर रही हूं. पर बिटिया, मुझे अंगरेजी नहीं आती, बस.’’

मैं मुसकरा दी. फिर एक दिन देखा, पूरे 8 कंबल अरगनी पर पसरे हैं और 9वां कंबल चाची धो रही हैं.

‘‘चाची, इस उम्र में इतने भारीभारी कंबल हाथ से धो रही हैं. वाशिंगमशीन क्यों नहीं लेतीं?’’

‘‘वाशिंगमशीन तो बहू ने ले रखी है पर मुझे नहीं सुहाती. एक तो मशीन से मनचाही धुलाई नहीं हो पाती, कपड़े भी जल्दी पतले हो जाते हैं, कालर की गंदगी पूरी हटती नहीं जबकि खुद धुलाई करने पर देह की कसरत हो जाती है. एक पंथ दो काज, क्यों.’’

चाची का बस मैं मुंह देखती रही थी. लग रहा था जैसे कह रही हों, ‘हां, मुझे बस अंगरेजी नहीं आती.’

उस दिन बाजार में चाची से भेंट हो गई. तनु और मैं केले ले रही थीं. केले छांटती हुई चाची भी आ खड़ी हुईं. मैं ने 6 केलों के पैसे दिए और आगे बढ़ने लगी.

चाची, जो बड़ी देर से हमें खरीदारी करते देख रही थीं, झट से मेरा हाथ पकड़ कर बोलीं, ‘‘रुक, जरा बता तो, केले कितने में लिए?’’

‘‘30 रुपए दर्जन,’’ मैं ने सहज बता दिया.

‘‘ऐसे केले 30 रुपए में. क्या देख कर लिए. तू तो इंगलिश मीडियम वाली है न, फिर भी लड़ न सकी.’’

‘‘मेरे कहने पर दिए ही नहीं. अब छोड़ो भी चाची, दोचार रुपए के लिए क्या बहस करनी,’’ मैं ने उन्हें समझाया.

‘‘यही तो डर है. डर ही तो है, जिस ने समाज को गुंडों के हवाले कर दिया है,’’ इतना कह कर चाची ने तनु के हाथ से केले छीन लिए और लपक कर वे केले वाले के पास पहुंचीं और केले पटक कर बोलीं, ‘‘ऐसे केले कहां से ले कर आता है…’’

‘‘खगडि़या से,’’ केले वाले ने सहजता से कहा.

‘‘इन की रंगत देख रहा है. टी.बी. के मरीज से खरीदे होंगे 5 रुपए दर्जन, बेच रहा है 30 रुपए. चल, निकाल 10 रुपए.’’

‘‘अब आप भी मेरी कमाई मारती हो चाची,’’ केले वाला घिघिया कर बोला, ‘‘आप को 10 रुपए दर्जन के भाव से ही दिए थे न.’’

‘‘तो इसे ठगा क्यों? चल, निकाल बाकी पैसे वरना कल से यहां केले नहीं बेच पाएगा. सारा कुछ उठा कर फेंक दूंगी…’’

और चाची ने 10 रुपए ला कर मेरे हाथ में रख दिए. मैं तो हक्कीबक्की रह गई. पतली छड़ी सी चाची में इतनी हिम्मत.एक दिन फिर चाची से सड़क पर भेंट हो गई.

सड़क पर जाम लगा था. सारी सवारियां आपस में गड्डमड्ड हो गई थीं. समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे रास्ता निकलेगा. ट्रैफिक पुलिस वाला भी नदारद था. लोग बिना सोचेसमझे अपनेअपने वाहन घुसाए जा रहे थे. मैं एक ओर नाक पर अपना रुमाल लगाए खड़ी हो कर भीड़ छंटने की प्रतीक्षा कर रही थी.तभी चाची दिखीं.

‘‘अरे, क्या हुआ? इतनी तेज धूप में खड़ी हो कर क्या सोच रही है?’’

‘‘सोच रही हूं, जाम खुले तो सड़क के दूसरी ओर जाऊं.’’

‘‘जाम लगा नहीं है, जाम कर दिया गया है. यहां सारे के सारे अंगरेजी पढ़ने वाले जो हैं. देखो, किसी में हिम्मत नहीं कि जो गलत गाडि़यां घुसा रहे हैं उन्हें रोक सके. सभ्य कहलाने के लिए नाक पर रुमाल लगाए खड़े हैं या फिर कोने में बकरियों की तरह मिमिया रहे हैं.’’

‘‘तो आप ही कुछ करें न, चाची,’’ उन की हिम्मत पर मुझे भरोसा हो चला था.

चाची हंस दीं, ‘‘मैं कोई कंकरीट की बनी दीवार नहीं हूं और न ही सूमो पहलवान. हां, कुछ हिम्मती जरूर हूं. बचपन से ही सीखा है कि हिम्मत से बड़ा कोई हथियार नहीं,’’ फिर हंस कर बोलीं, ‘‘बस, अंगरेजी नहीं पढ़ी है.’’

चाची बड़े इत्मीनान से भीड़ का मुआयना करने लगीं. एकाएक उन्हें ठेले पर लदे बांस के लट्ठे दिखे. चाची ने उसे रोक कर एक लट्ठा खींच लिया और आंचल को कमर पर कसा और लट्ठे को एकदम झंडे की तरह उठा लिया. फिर चिल्ला कर बोलीं, ‘‘तुम गाड़ी वालों की यह कोई बात है कि जिधर जगह देखी, गाड़ी घुसा दी और सारी सड़क जाम कर दी है. हटो…हटो…हटो…पुलिस नहीं है तो सब शेर हो गए हो. क्या किसी को किसी की परवा नहीं?’’

पहले तो लोग अवाक् चाची को इस अंदाज से देखने लगे कि यह कौन सी बला आ गई. फिर कुछ चाची के पीछे हो लिए.

‘‘हां, चाची, वाह चाची, तू ही कुछ कर सकती है…’’ और थोड़ी ही देर में चाची के पीछे कितनों का काफिला खड़ा हो गया. मैं अवाक् रह गई.

गलतसलत गाडि़यां घुसाने वाले सहम कर पीछे हट गए. चाची ने मेरा हाथ पकड़ा और बोलीं, ‘‘चल, धूप में जल कर कोयला हो जाएगी,’’ और बांस को झंडे की तरह लहराती, भीड़ को छांटती पूरे किलोमीटर का रास्ता नापती चाची निकल गईं. जाम तितरबितर हो चला था. कुछ मनचले चिल्ला रहे थे :

‘‘चाची जिंदाबाद…चाची जिंदाबाद.’’

चाची किसी नेता से कम न लग रही थीं. बस, अंगरेजी न जानती थीं. भीड़ से निकल कर मेरा हाथ छोड़ कर कहा, ‘‘यहां से चली जाएगी या घर पहुंचा दूं?’’

‘‘नहींनहीं,’’ मैं ने खिलखिला कर कहा, ‘‘मैं चली जाऊंगी पर एक बात कहूं.’’

‘‘क्या? यही न कहेगी तू कि कानवेंट की है, मुझे अंगरेजी नहीं आती?’’

‘‘अरे, नहीं चाची, पूरा दुलार टपका कर मैं ने कहा, ‘‘मैं जब बहू खोजूंगी तब लड़की का पैमाना सिर्फ अंगरेजी से नहीं नापूंगी.’’

चाची खिलखिला दीं, शायद कहना चाह रही थीं, ‘‘कहो, कैसी रही चाची?’’

Hindi Story : जीत की मिठाई – मालती ने अपने भाई के साथ क्या किया था?

Hindi Story : आज सुबहसुबह सोहनलालजी की आंखें मुंदते ही मलय और उस की पत्नी आराधना के समक्ष तो जैसे मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो गया. पिता के जाने का दुख तो मलय को था ही, लेकिन साथ ही साथ मलय और आराधना को अब इस बात की चिंता भी सताने लगी थी कि पिता की अंत्येष्टि और मृत्यु पर्यंत  समाज के द्वारा बनाए गए ढकोसलों पर खर्च करने के लिए पैसे कहां से आएंगे, जो भी पूंजी थी वह तो पहले ही दोनों बहन माला और मालती को एक अच्छे परिवार और रईस खानदान  में ब्याहने में चले गए थे और फिर बचीखुची पूंजी भी पिताजी की बीमारी में स्वाहा हो गई. उन में इतना साहस नहीं था कि वे लोगों के कमेंट सुन सकें.

अभी तक तो यह स्थिति थी कि पिता की थोड़ी सी पेंशन और घर से लगी मलय की एक छोटी सी किराने की दुकान से बच्चों की पढ़ाई और जैसेतैसे घर का गुजारा चल रहा था, लेकिन अब पिताजी के जाने के बाद यह सब कैसे हो पाएगा. यह सोच कर मलय निढाल सा सोफे पर जा बैठा, तभी आराधना उस के कांधे पर हाथ रखती हुई बोली, “चलो उठो… माला और मालती को खबर करनी पड़ेगी. और बाकी रिश्तेदारों को भी खबर दे दो. जो होना था, वह तो हो ही गया. अब आगे की आगे सोचेंगे, पहले जो सामने है उसे तो निबटाएं. मेरे पास दोनों बच्चों के स्कूल की फीस के पैसे रखे हैं, उन्हें आप अभी के लिए ले लो और फिर माला और मालती के आने के बाद उन से कुछ मदद के लिए कहना.”

यह सुन कर मलय की आंखों में पानी आ गया. आज उस के पास इतने रुपए भी नहीं थे कि वह अपने पिता की मृत्यु पर मेहमानों को ठहरा भी सके. उसे अपने पिता के अंतिम क्रियाकलापों के लिए भी अपनी दकियानूसी बहनों के आगे हाथ फैलाना पड़ेगा, जो रीतिरिवाज का नाम ले कर हलवापूरी और मौज का इंतजाम करने के मौके नहीं छोड़तीं थीं.

बहनों के आगे हाथ फैलाना पड़ेगा, लेकिन वह कर भी क्या सकता था. उस की अपनी मजबूरी थी. अपने रिश्तेदारों में एक मलय ही तो था, जो पैसों के मामलों में सब से ज्यादा कमजोर था.

सोहनलालजी की मृत्यु की खबर पा कर सभी आसपड़ोस के लोग और नातेरिश्तेदार अपनी बड़ीबड़ी गाड़ियों में आने लगे. सभी रिश्तेदार इकठ्ठे हो ग‌ए थे, सभी एकदूसरे को अपने पैसे की शान इस शोक स्थल पर भी दिखाने से बाज नहीं आ रहे थे, लेकिन सभी मलय से कन्नी काटते हुए नजर आए, क्योंकि मलय की माली हालत से सभी वाकिफ थे. और कोई भी मलय की मदद रुपएपैसे से नहीं करना चाहता था. ऊपरी तौर पर भले ही सभी शोक जता रहे थे और जहां तक हो सके सहयोग करने की बात भी कह रहे थे, लेकिन अंदर ही अंदर सभी इस बात से डरे हुए थे कि कहीं मलय कुछ रुपएपैसे मांग ना ले.

मलय की दोनों बहनों के आने के पश्चात और उन के द्वारा अपने पिता के अंतिम दर्शन करने के उपरांत अंतिम संस्कार की क्रिया पूरी कर दी गई. रिश्तेदारों को विदा करने के बाद जब मलय ने अपनी दोनों बहनों से कहा, “मुझे कुछ रुपयों की जरूरत है. बाबूजी की बीमारी और अब उन की मृत्यु के बाद जो थोड़ेबहुत कर्मकांड करने पड़ेंगे, इस सब पर बहुत खर्चा बैठेगा. तुम दोनों का परिवार संपन्न है. अगर तुम दोनों पैसे का इंतजाम कर दो, तो मैं धीरेधीरे कर के चुका दूंगा.”

मलय का इतना कहना था कि दोनों बहनें एकदूसरे का मुंह ताकने लगीं. उस के बाद माला जो मलय से छोटी और मालती से बड़ी है, उठ खड़ी हुई और तुनक कर बोली, “देखो भैया… और भाभी आप भी सुन लो… हम दोनों बहनें पैसे वाले और र‌ईस परिवार में जरूर गई है, लेकिन इस का ये मतलब कतई नहीं कि हम आप लोगों के शौक और जरूरतों के लिए अपने ससुराल से पैसे ला कर दें. हमारा भी कुछ मानसम्मान है कि नहीं उस घर में, ससुराल से रुपएपैसे ला कर आप लोगों को देने लगें तब तो फिर हो गया…सब के आगे ससुराल में हमारी क्या इज्जत रह जाएगी, मजाक बन जाएगा हमारा. और तो और मेरी ननद मुझे ताने मारने का एक भी मौका नहीं छोड़ेगी, कहेगी कि कैसी भुक्कड़ घर से आई हो. भैया को देना चाहिए तो उलटा आप के भैयाभाभी बहन के आगे हाथ फैला रहे हैं. ना रे बाबा ना, भैया मुझ से तो रुपएपैसे की कोई उम्मीद ना ही रखें तो अच्छा है. हां… छोटी का छोटी जाने. वो देख लें उसे जो करना है.”

माला के ऐसा कहते ही मालती ने भी अपना पल्ला यह कहते हुए झाड़ लिया कि वह भी अपने घर से एक रुपया नहीं ला पाएगी, क्योंकि अभीअभी उस के पति ने नया व्यापार शुरू किया है, जिस में काफी पैसे लग ग‌ए, इसलिए वह रुपएपैसे से तो कोई मदद नहीं कर पाएगी. और फिर हम ने यूरोप जाने का प्रोग्राम भी बनाया है और उस के लिए काफी पैसे पहले ही ट्रेवल एजेंट को दे  दिए हैं.

इतना कह कर मालती माला की ओर देखती हुई कुछ कहने का इशारा करने लगी. मलय अपनी दोनों सगी छोटी बहनों को चुपचाप सुनता रहा और भीतर ही भीतर अपनी बेबसी में टूटता रहा.

तभी आराधना बोली, “हम आप दोनों से पैसे उधार के तौर पर मांग रहे हैं. हम आप लोगों के पैसे डकार नहीं जाएंगे. मुसीबत आ पड़ी है, इसलिए मांग रहे हैं. कोई अपना शौक पूरा करने को नहीं मांग रहे हैं और फिर इन के पिता आप लोगों के भी तो कुछ लगते थे, आप लोगों का भी तो कोई फर्ज बनता है.”

आराधना ने इतना क्या कह दिया, माला उस पर ही टूट पड़ी और कहने लगी, “अरे… रहने दो भाभी आप हमें फर्ज का पाठ ना पढ़ाओ तो बेहतर होगा. जब भी हम दोनों बहनें तीजत्योहारों पर यहां अपने मायके आईं, तो आप और भैया ने कौन सा अपना फर्ज निभाया है, हमें एकएक सस्ती सी साड़ी पकड़ा कर अपने कर्तव्यों का इतिश्री समझ लिया और अपनी तंगी का रोना ले कर बैठ ग‌ए.”

अभी माला की बात पूरी भी नहीं हुई थी, तभी मालती कूद पड़ी और कहने लगी, “सही कह रही हैं जीजी, आप दोनों का तो सदा से पैसों का रोना रहा है, जबकि जबलपुर जैसे शहर के बीचोबीच बाबूजी का यह मकान और दुकान है, जिस पर आप लोग पहले से ही कुंडली मार कर बैठे हैं. बाबूजी अपनी पैंशन भी आप लोगों पर ही खर्च करते थे और फिर बाबूजी के एकलौते बेटाबहू होने के नाते उन का अंतिम क्रियाकर्म करना आप दोनों का ही फर्ज है.”

मलय सोफे पर बैठा भीगी आंखों से बिना कोई जवाब दिए अपनी बहनों की तीखी और स्वार्थ भरी बातें सुनता रहा. उस का दिल तारतार हो गया और उस की आत्मा बारबार चीखचीख कर उस से बस एक ही सवाल कर रही थी कि क्या पैसों के आगे खून के रिश्ते का कोई मोल नहीं…? क्या अपनों का कोई मायने नहीं रह गया है.

जिन की मृत्यु हुई है, वह कोई और नहीं, इन के भी पिता थे और ये वही पिता थे, जिन्होंने अपनी दोनों बेटियों को अच्छी जिंदगी देने के लिए खुद कर्जों के बोझ तले दबते चले गए और ऊफ तक नहीं किया. आज उन्हीं के नाम पर उन की अपनी बेटियां चार पैसे खर्च करने को तैयार नहीं और जिस भाई को दोनों खरीखोटी सुना रही हैं, जिसे अपने पिता के घर और दुकान पर कब्जा करने का लांछन लगा रही हैं, ये वही गरीब बेबस भाई है, जिस ने अपने बीमार पिता की सेवा बिना किसी शिकायत के करता रहा. अपनी बहनों का मान रखने के लिए कर्ज ले कर हर तीजत्योहार में अपनी हैसियत से बढ़ कर उन्हें दिया.

मलय की दोनों बहनों से यह सुन आराधना से रहा नहीं गया. वह बिफर पड़ी और कहने लगी, “मेरी मति मारी गई थी, जो मैं ने अपने सुख और बच्चों के भविष्य की चिंता किए बिना बाबूजी और तुम्हारे भैया को तुम दोनों की शादी बड़े रईस परिवार में करने के लिए कर्ज लेने दिया. अगर तुम्हारे भैया और बाबूजी कर्ज ले कर तुम दोनों का ब्याह ना करवाए होते तो आज तुम दोनों बड़े घर की बहूरानी ना होती, हमें आज यह दिन ना देखना पड़ता और ना ही तुम दोनों से इतना सुनना पड़ता.

“रही बात इस दुकान की, तो आजकल इतने सारे मौल और बड़ेबड़े किराना स्टोर खुल ग‌ए हैं कि इस छोटे से किराने की दुकान से कोई नमक तक खरीदना पसंद नहीं करता. इस गली के कुछ लोग सामान खरीद लें, वही बहुत है.”

तकरार बढ़ गई, दोनों बहनों ने साफ शब्दों में कह दिया कि वो एक रुपए भी नहीं देंगी. मलय को आगे का कर्मकांड जिस प्रकार निबटाना हो निपटाए. उन्हें इस से कोई लेनादेना नहीं है. अब दोनों बहनें सीधे तेरहवीं पर ही आएंगी, इतना कह कर दोनों वहां से चली गईं और मलय उन्हें चुपचाप जाता देखता रहा. उसे अपनी तंगहाली और बहनों का यह कटु व्यवहार अंदर तक तोड़ गया.

मरता क्या ना करता, समाज में व्याप्त मृत्युभोज जैसी कुरीतियों की वजह से मलय को अपने घर और दुकान को गिरवी के तौर पर चढ़ाना पड़ा. तेरहवीं के दिन फिर सभी नातेरिश्तेदार, आसपड़ोस के लोग शामिल हुए और मजे से जायकेदार भोजन का लुफ्त भी उठा रहे थे और मलय की बुराई भी करते हुए हर किसी ना किसी चीज में मीनमेख निकाल रहे थे. दोनों बहनें भी मेहमानों की तरह आईं, मलय और आराधना के द्वारा की गई व्यवस्था और खानपान पर कमी निकाल कर अपने पिता को खोने का ढोंग कर वापस अपने ससुराल चली गईं.

तेरहवीं से जाने के बाद माला और मालती ने क‌ई महीनों तक मलय और आराधना की तरफ मुड़ कर भी नहीं देखा और एक दिन अचानक मलय के घर पर कानूनी नोटिस आया, जिस पर दोनों बहनों ने घर और दुकान पर अपने हिस्से का दावा कर दिया था.

यह पढ़ कर मलय के पैरों तले जमीन खिसक गई, उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि उस की बहनें जिन के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी, जिन के पास सबकुछ था, वे चंद पैसों के लिए इतना नीचे गिर जाएंगी.

आराधना को जैसे ही हिस्से के बारे पता चला, वह गुस्से में तमतामा उठी. उस की भौंहें तन गईं, तभी मलय उसे समझाते हुए बोला, “शांत हो जाओ तुम. कानूनी तौर पर पिता की संपत्ति पर बेटियों का भी बराबरी का अधिकार होता है और वही वो दोनों मांग रही हैं. इस में कोई गलत भी नहीं है. वैसे भी मकान और दुकान दोनों गिरवी पड़े हैं. मेरे पास इतने पैसे भी नहीं कि मैं घर और दुकान वापस पा सकूं, तो ठीक है इन्हें बिक जाने दो. कम से कम माला और मालती को तो उन का हिस्सा मिल जाएगा. हम फिर से एक न‌ई शुरुआत करेंगे.”

मलय के ऐसा कहते ही आराधना उसे लिपट कर फूटफूट कर रोने लगी. शांतिपूर्वक मकान और दुकान बिक गए, जिस के तीन हिस्से हुए. माला और मालती अपने हिस्से के रुपए लेकर चली गईं.

इधर अपना कर्ज चुकाने के बाद मलय के हाथों में कुछ नहीं बचा था. मलय के परिवार के सिर से छत, उस के बीवीबच्चों के मुंह से निवाला और उस का रोजगार सब छिन गया था. उस का पूरा परिवार रास्ते में आ गया था. उधर दोनों बहनें इस बात का जश्न मना रही थीं कि उन्हें उन के हिस्से का पैसा मिल गया. तभी माला की सहेली अर्चना वहां आ गई, जो पिछले कुछ समय से शहर से बाहर थी.

अर्चना को देखते ही माला ने उसे गले लगा लिया और उस की ओर मिठाई की प्लेट बढ़ाती हुई बोली, “तू एकदम सही समय पर आई है. ले, मुंह मीठा कर.”

अर्चना मिठाई की प्लेट हाथों में लेती हुई बोली, “अरे, पहले यह तो बताओ कि यह मिठाई किस खुशी में.”

तभी माला चहकते हुए बोली, “हमारे बाबूजी का मकान और दुकान, जिस में हमारे भैया कब्जा जमाए बैठे थे, आखिरकार बिक ही गया और हम दोनों बहनों को हमारा हिस्सा मिल ही गया. ये हमारे जीत की मिठाई है.”

यह सुनते ही अर्चना मिठाई की प्लेट नीचे रखती हुई बोली, “मैं यह मिठाई नहीं खा सकती, इस मिठाई में मिठास नहीं कड़वाहट छुपी है. ये वह मिठाई है, जिस में एक बेबस भाई का बेघर हो जाने का दर्द छुपा है. तुम दोनों बहनें जीत जरूर गई हो, लेकिन भाईबहन का रिश्ता हार गया है.”

इतना कह कर अर्चना वहां से चली गई. माला और मालती सन्न खड़ी रहीं, जैसे किसी ने उन्हें उन का स्वार्थरूपी असली चेहरा दिखा दिया हो.

Love Story : शादी के बाद – रजनी के मातापिता क्या उससे परेशान थे?

Love Story : रजनी को विकास जब देखने के लिए गया तो वह कमरे में मुश्किल से 15 मिनट भी नहीं बैठी. उस ने चाय का प्याला गटागट पिया और बाहर चली गई.

रजनी के मातापिता उस के व्यवहार से अवाक् रह गए. मां उस के पीछेपीछे आईं और पिता विकास का ध्यान बंटाने के लिए कनाडा के बारे में बातें करने लगे. यह तो अच्छा ही हुआ कि विकास कानपुर से अकेला ही दिल्ली आया था. अगर उस के घर का कोई बड़ाबूढ़ा उस के साथ होता तो रजनी का अभद्र व्यवहार उस से छिपा नहीं रहता. विकास तो रजनी को देख कर ऐसा मुग्ध हो गया था कि उसे इस व्यवहार से कुछ भी अटपटा नहीं लगा.

रजनी की मां ने उसे फटकारा, ‘‘इस तरह क्यों चली आई? वह बुरा मान गया तो? लगता है, लड़के को तू बहुत पसंद आई है.’’

‘‘मुझे नहीं करनी उस से शादी. बंदर सा चेहरा है. कितना साधारण व्यक्तित्व है. उस के साथ तो घूमनेफिरने में भी मुझे शर्म आएगी,’’ रजनी ने तुनक कर कहा.

‘‘मुझे तो उस में कोई खराबी नहीं दिखती. लड़कों का रूपरंग थोड़े ही देखा जाता है. उन की पढ़ाईलिखाई और नौकरी देखी जाती है. तुझे सारा जीवन कैनेडा में ऐश कराएगा. अच्छा खातापीता घरबार है,’’ मां ने समझाया, ‘‘चल, कुछ देर बैठ कर चली आना.’’

रजनी मान गई और वापस बैठक में आ गई.

‘‘इस की आंख में कीड़ा घुस गया था,’’ विकास की ओर रजनी की मां ने बरफी की प्लेट बढ़ाते हुए कहा.

रजनी ने भी मां की बात रख ली. वह दाएं हाथ की उंगली से अपनी आंख सहलाने लगी.

विकास ने दोपहर का खाना नहीं खाया. शाम की गाड़ी से उसे कानपुर जाना था. स्टेशन पर उसे छोड़ने रजनी के पिताजी गए. विकास ने उन्हें बताया कि उसे रजनी बेहद पसंद आई है. उस की ओर से वे हां ही समझें. शादी 15 दिन के अंदर ही करनी पड़ेगी, क्योंकि उस की छुट्टी के बस 3 हफ्ते ही शेष रह गए थे और दहेज की तनिक भी मांग नहीं होगी.

रजनी के पिता विकास को विदा कर के लौटे तो मन ही मन प्रसन्न तो बहुत थे परंतु उन्हें अपनी आजाद खयाल बेटी से डर भी लग रहा था कि पता नहीं वह मानेगी या नहीं.

पिछले 3 सालों में न जाने कितने लड़कों को उसे दिखाया. वह अत्यंत सुंदर थी, इसलिए पसंद तो वह हर लड़के को आई लेकिन बात हर जगह या तो दहेज के कारण नहीं बन पाई या फिर रजनी को ही लड़का पसंद नहीं आता था. उसे आकर्षक और अच्छी आय वाला पति चाहिए था. मातापिता समझा कर हार जाते थे, पर वह टस से मस न होती. उस रात वे काफी देर तक जागते रहे और रजनी के विषय में ही सोचते रहे कि अपनी जिद्दी बेटी को किस तरह सही रास्ते पर लाएं.

अगले दिन रात को तार वाले ने जगा दिया. रजनी के पिता तार ले कर अंदर आए. तार विकास के पिताजी का था. वे रिश्ते के लिए राजी थे. 2 दिन बाद परिवार के साथ ‘रोकने’ की रस्म करने के लिए दिल्ली आ रहे थे. रजनी ने सुन कर मुंह बिचका दिया. छोटे बच्चों को हाथ के इशारे से कमरे से जाने को कहा गया. अब कमरे में केवल रजनी और उस के मातापिता ही थे.

‘‘बेटी, मैं मानता हूं कि विकास बहुत सुंदर नहीं है पर देखो, कनाडा में कितनी अच्छी तरह बसा हुआ है. अच्छी नौकरी है. वहां उस का खुद का घर है. हम इतने सालों से परेशान हो रहे हैं, कहीं बात भी नहीं बन पाई अब तक. तू तो बहुत समझदार है. विकास के कपड़े देखे थे, कितने मामूली से थे. कनाडा में रह कर भी बिलकुल नहीं बदला. तू उस के लिए ढंग के कपड़े खरीदेगी तो आकर्षक लगने लगेगा,’’ पिता ने समझाया.

‘‘देख, आजकल के लड़के चाहते हैं सुंदर और कमाऊ लड़की. तेरे पास कोई ढंग की नौकरी होती तो शायद दहेज की मांग इतनी अधिक न होती. हम दहेज कहां से लाएं, तू अपने घर की माली हालत जानती ही है. लड़कों को मालूम है कि सुंदर लड़की की सुंदरता तो कुछ साल ही रहती है और कमाऊ लड़की तो सारा जीवन कमा कर घर भरती है,’’ मां ने भी बेटी को समझाने का भरसक प्रयास किया.

रजनी ने मातापिता की बात सुनी, पर कुछ बोली नहीं. 3 साल पहले उस ने एम.ए. तृतीय श्रेणी में पास किया था. कभी कोई ढंग की नौकरी ही नहीं मिल पाई थी. उस के साथ की 2-3 होशियार लड़कियां तो कालेजों में व्याख्याता के पद पर लगी हुई थीं. जिन आकर्षक युवकों को अपना जीवनसाथी बनाने का रजनी का विचार था वे नौकरीपेशा लड़कियों के साथ घर बसा चुके थे. शादी और नौकरी, दोनों ही दौड़ में वह पीछे रह गई थी.

‘‘देख, कनाडा में बसने की किस की इच्छा नहीं होती. सारे लोग तुझ को देख कर यहां ईर्ष्या करेंगे. तुम छोटे भाईबहनों के लिए भी कुछ कर पाओगी,’’ पिता ने कहा.

रजनी को अपने छोटे भाईबहनों से बहुत लगाव था. पिताजी अपनी सीमित आय में उन के लिए कुछ भी नहीं कर सकते थे. वह सोचने लगी, ‘अगर वह कनाडा चली गई तो उन के लिए बहुतकुछ कर सकती है, साथ ही विकास को भी बदल देगी. उस की वेशभूषा में तो परिवर्तन कर ही देगी.’ रजनी मां के गले लग गई, ‘‘मां, जैसी आप दोनों की इच्छा है, वैसा ही होगा.’’

रजनी के पिता तो खुशी से उछल ही पड़े. उन्होंने बेटी का माथा चूम लिया. आवाज दे कर छोटे बच्चों को बुला लिया. उस रात खुशी से कोई न सो पाया.

2 सप्ताह बाद रजनी और विकास की धूमधाम से शादी हो गई. 3-4 दिन बाद रजनी जब कानपुर से विकास के साथ दिल्ली वापस आई तब विकास उसे कनाडा के उच्चायोग ले गया और उस के कनाडा के आप्रवास की सारी काररवाई पूरी करवाई.

कनाडा जाने के 2 हफ्ते बाद ही विकास ने रजनी के पास 1 हजार डालर का चेक भेज दिया. बैंक में जब रजनी चेक के भुगतान के लिए गई तो उस ने अपने नाम का खाता खोल लिया. बैंक के क्लर्क ने जब बताया कि उस के खाते में 10 हजार रुपए से अधिक धन जमा हो जाएगा तो रजनी की खुशी की सीमा न रही.

रजनी शादी के बाद भारत में 10 महीने रही. इस दौरान कई बार कानपुर गई. ससुराल वाले उसे बहुत अच्छे लगे. वे बहुत ही खुशहाल और अमीर थे. कभी भी उन्होंने रजनी को इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि उस के मातापिता साधारण स्थिति वाले हैं. रजनी का हवाई टिकट विकास ने भेज दिया था. उसे विदा करने के लिए मायके वाले भी कानपुर से दिल्ली आए थे.

लंदन हवाई अड्डे पर रजनी को हवाई जहाज बदलना था. उस ने विकास से फोन पर बात की. विकास तो उस के आने का हर पल गिन रहा था.

मांट्रियल के हवाई अड्डे पर रजनी को विकास बहुत बदला हुआ लग रहा था. उस ने कीमती सूट पहना हुआ था. बाल भी ढंग से संवारे हुए थे. उस ने सामान की ट्राली रजनी के हाथ से ले ली. कारपार्किंग में लंबी सी सुंदर कार खड़ी थी. रजनी को पहली बार इस बात का एहसास हुआ कि यह कार उस की है. वह सोचने लगी कि जल्दी ही कार चलाना सीख लेगी तो शान से इसे चलाएगी. एक फोटो खिंचवा कर मातापिता को भेजेगी तो वे कितने खुश होंगे.

कार में रजनी विकास के साथ वाली सीट पर बैठे हुए अत्यंत गर्व का अनुभव कर रही थी. विकास ने कर्कलैंड में घर खरीद लिया था. वह जगह मांट्रियल हवाई अड्डे से 55 किलोमीटर की दूरी पर थी. कार बड़ी तेजी से चली जा रही थी. रजनी को सब चीजें सपने की तरह लग रही थीं. 40-45 मिनट बाद घर आ गया. विकास ने कार के अंदर से ही गैराज का दरवाजा खोल लिया. रजनी हैरानी से सबकुछ देखती रही.

कार से उतर कर रजनी घर में आ गई. विकास सामान उतार कर भीतर ले आया. रजनी को तो विश्वास ही नहीं हुआ कि इतना आलीशान घर उसी का है. उस की कल्पना में तो घर बस 2 कमरों का ही होता था, जो वह बचपन से देखती आई थी. विकास ने घर को बहुत अच्छी तरह से सजा रखा था. सब तरह की आधुनिक सुखसुविधाएं वहां थीं. रजनी इधरउधर घूम कर घर का हर कोना देख रही थी और मन ही मन झूम रही थी.

विकास ने उस के पास आ कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज की शाम हम बाहर मनाएंगे परंतु इस से पहले तुम कुछ सुस्ता लो. कुछ ठंडा या गरम पीओगी?’’ विकास ने पूछा.

रजनी विकास के करीब आ गई और उस के गले में बांहें डाल कर बोली, ‘‘आज की शाम बाहर गंवाने के लिए नहीं है, विकास. मुझे शयनकक्ष में ले चलो.’’

विकास ने रजनी को बांहों के घेरे में ले लिया और ऊपरी मंजिल पर स्थित शयनकक्ष की ओर चल दिया.

Romantic Story : विचित्र मांग – संजीव ने अमिता के सामने क्या शर्त रखी थी ?

Romantic Story : “अमिता, एक बात मेरे मन में है, कहूं?” संजीव ने अमिता के होठों पर चुंबन अंकित करते हुए कहा.

“तुम तो मना करते हो इन क्षणों में कुछ बात करने को. इन क्षणों में सिर्फ और सिर्फ ऐसी ही बातें करने के लिए कहते हो,” अमिता ने शोखी से संजीव के पीठ पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए कहा.

“इन क्षणों में जो बातें करने के लिए कहता हूं वही बात है,” संजीव ने कहा.

“कहो,” अमिता ने संजीव को चूमते हुए कहा.

“हम दो के अलावा कोई तीसरा हो तो कैसा रहे…? काफी मजा आएगा. मेरी दिली ख्वाइश है इस की.”

“छीः, कैसी बातें कर रहे हो? मुझे तो शादी के पहले यह सब करना ही उचित नहीं लगता. सिर्फ तुम्हारे कहने से मैं तैयार हो जाती हूं,” अमिता ने कहा.

“तीसरे के जगह पर कोई तीसरी भी हो तो चलेगा. तुम्हारी कोई फ्रेंड हो तो उस से बातें कर सकती हो,” संजीव ने कहा.

अमिता संजीव की बातों से विस्मित हो गई. उसे इस तरह की बात की जरा भी आशा नहीं थी.

वह संजीव के साथ लगभग दो वर्षों से रिलेशनशिप में रह रही थी. वह संजीव से प्यार करती थी और संजीव भी उस से बेइंतिहा प्यार करता था. दोनों शादी करने का विचार रखते थे. शादी के बारे में उन दोनों ने प्लानिंग भी कर रखी थी.
शायद अति उत्साह में आ कर संजीव ने ऐसी बात कह दी थी. यह सोच कर अमिता ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था.

पर, दूसरे दिन उस ने फिर उस से पूछा, “अमिता वो तीन वाली बात पर तुम ने कुछ विचार किया? कहो तो मैं अपने मित्र जीवन से बात करूं.”

“नहीं संजीव. मुझे यह बिलकुल भी पसंद नहीं है. यह मेरे मूल्यों के खिलाफ है,” अमिता ने कहा.

“कम औन अमिता. क्या तुम भी दकियानूसी बातें कर रही हो…? हम आधुनिक समाज में रह रहे हैं. सैक्स भी एक मनोरंजन है. इस का आनंद उठाने में क्या हर्ज है. तुम चाहो तो सपना से बात कर लो. वह तुम्हारे साथ काफी घुलीमिली भी है. मुझे थ्रीसम का कांसेप्ट बहुत भाता है. यह मेरे वर्षों की तमन्ना है. प्लीज अमिता,”
संजीव ने अमिता को समझाने की कोशिश की.

“बिलकुल नहीं,” अमिता ने कहा.

अमिता काफी उलझन में पड़ गई. संजीव से वह प्यार करती थी. उस से शादी करना चाहती थी. उस के कहने पर वह कभीकभार उस के साथ शारीरिक संबंध भी बना लिया करती थी. पर उस की नई मांग अजब थी. यह अमिता के नैतिक मूल्यों के खिलाफ था. उस के नैतिक मूल्यों के खिलाफ तो शादी के पहले शारीरिक संबंध बनाना भी था. पर सुरक्षात्मक उपाय अपना कर ऐसा वह सिर्फ अपने प्रेमी संजीव के साथ कर सकती थी. और संजीव अब किसी और को भी इस में शामिल करना चाहता था. यहां तक कि कोई लड़की भी हो तो उसे स्वीकार्य था. पहले उसे लगा कि उत्तेजना में उस ने ऐसा कह दिया है. परंतु पिछले कई महीनों से वह इस बात पर जोर दे रहा था. खासकर अंतरंग क्षणों में वह जरूर इस मुद्दे को उठा देता था.

क्या करे उस की समझ में नहीं आ रहा था. वैसे, हर बार उस की इस मांग पर उस ने अपनी असहमति जताई थी. कई बार वह उस के स्थान पर खुद को रख कर उस की मांग के औचित्य को समझने की कोशिश करती थी. उसे यह आइडिया बिलकुल भी पसंद नहीं था. फिर यदि ऐसा करने के लिए वह राजी हो जाती है तो जो तीसरा या तीसरी होगा या होगी, उस के साथ कैसा रिश्ता बनेगा. संजीव हमेशा उसे ओपेन माइंडेड होने की सलाह देता था. पर ओपेन माइंडेड होने का यह मतलब तो नहीं कि नैतिक मूल्यों को ताक पर रख दिया जाए. जो लोग ऐसे कृत्य में खुद को सहज पाते हैं, वे भले ही ऐसा करें. पर वह इस के लिए सहज नहीं हो पा रही थी.

एक दिन वह बैठी अखबार के पन्ने पलट रही थी कि एक स्तंभ पर उस की निगाह गई. इस में पाठक अपनी प्रेम से संबंधित समस्याओं की सलाह विशेषज्ञ से लेते थे. एक बड़ी ही विचित्र समस्या इस में उस ने पढ़ी. इस में एक लड़की ने अपने प्रेमी की कम आय होने के कारण आत्महीनता की भावना से ग्रसित होने के कारण सलाह मांगी थी. विशेषज्ञ ने बड़ा ही व्यावहारिक सुझाव दिया था. उसे उस का सुझाव बहुत ही अच्छा लगा था. उस ने देखा, स्तंभ के नीचे एक ईमेल पता दिया हुआ था और स्पष्ट आमंत्रण था पाठकों से शारीरिक और प्रेम से संबंधित समस्या का हल पाने के लिए.

उस ने ईमेल पता नोट किया और अपनी समस्या को विस्तार से लिख कर ईमेल कर दिया. अखबार औनलाइन उपलब्ध था. दूसरे दिन से ही प्रतिदिन वह अखबार को औनलाइन खोलती और उस कौलम को पढ़ने लगी. इस क्रम में अन्य कई लोगों की समस्याओं से वह रूबरू हुई. उसे आश्चर्य हुआ कि लोगों के पास अलगअलग तरह की समस्याएं हैं, कुछ तो बिलकुल ही विचित्र.

एक सप्ताह के बाद उस ने अपनी समस्या का समाधान अखबार में छपा पाया. समाधान कुछ इस प्रकार था-
“आप का बौयफ्रेंड आप से बहुतकुछ चाह सकता है. लेकिन आप को देखना है कि आप किस बात में सहज हैं. सही रिलेशनशिप वही है, जिस में दोनों पक्ष एकदूसरे का सम्मान करें. आप के बौयफ्रेंड को उस सीमा को मानना चाहिए, जो आप ने अपने लिए और उस के साथ अपने भविष्य के लिए तय कर रखा है. आप स्पष्ट रूप से उस से बात करें. उसे स्पष्ट रूप से बताएं कि आप उस की बात को क्यों नहीं मान सकतीं. ओपेन माइंडेड होने का मतलब यही है कि किसी भी मुद्दे के पक्ष और विपक्ष को समझा जाए और फिर उस पर सोचविचार कर सही निर्णय लिया जाए.”

अमिता को यह सुझाव पसंद आया. पहले उस ने विचार किया कि क्यों उसे उस का तिकड़ी वाला प्रस्ताव स्वीकार नहीं है. सब से पहले तो उस के मन में खयाल आया कि सैक्स सिर्फ दो पार्टनर के बीच होना चाहिए. तीसरा कोई भी बीच में नहीं आना चाहिए. यही कारण है कि सैक्स बिलकुल एकांत में किया जाता है. फिर यदि तीसरा या तीसरी को शामिल किया जाए तो आपसी संबंधों में दरार आ सकती है. हो सकता है कि उस के और संजीव में से कोई तीसरे की ओर आकर्षित हो जाए और फिर पूरा समीकरण बिगड़ जाए. पर ज्यादा महत्वपूर्ण उसे नैतिक आधार ही लगा.

अगली बार जब संजीव ने इस बारे में चर्चा की, तो उस ने स्पष्ट रूप से उसे अपना विचार बता दिया. साथ ही, यह भी बता दिया कि यदि उसे यह आइडिया आजमाना है, तो वह उस का साथ नहीं दे सकती. उसे डर था कि शायद संजीव नाराज हो कर उस का साथ छोड़ देगा. परंतु संजीव समझदार निकला. उस ने उस के तर्क को सुना और बात उस की समझ में आई. उस ने अपनी विचित्र मांग को तज कर अपनी प्रेमिका के साथ जीवन बिताने का निर्णय लिया.

Print Media : बौना है प्रिंट मीडिया के आगे सोशल मीडिया

Print Media : सोशल मीडिया ने स्मार्टफोन के जरिए जनजन तक अपनी पैठ भले ही बना ली हो लेकिन प्रिंट मीडिया के सामने वह बौना साबित हुआ है. प्रिंट मीडिया में जहां हर खबर जांचपड़ताल के बाद ही प्रकाशित की जाती है वहीं सोशल मीडिया पर वायरल हुई खबर का कोई ठौरठिकाना नहीं रहता.

आज के तकनीकी युग में सोशल मीडिया ने अपनी खास पहचान बनाई है. गृहिणी हो या सैलिब्रिटी, स्टूडैंट हो या टीचर हरकोई सोशल मीडिया पर व्यस्त है. वर्तमान दौर में इस का सब से बड़ा वाहक बन गया है स्मार्टफोन, तरहतरह के ऐप्स से लोडेड स्मार्टफोन से दुनियाभर के तमाम काम संपन्न हो रहे हैं. इस के अलावा अब स्मार्टफोन समाचारों के प्रसार का भी सुलभ माध्यम बनता जा रहा है. कहीं भी कोई घटना घटी नहीं कि लोग अपना स्मार्टफोन निकाल कर तुरंत उस का वीडियो बना कर अपने फ्रैंड्स को भेज देते हैं. जो नहीं कर पाते वे मोबाइल से मैसेज या घटना का ब्योरा तो बता ही देते हैं और तुरंत ही एक से दूसरे फोन पर पहुंच यह वायरल भी हो जाता है.

सोशल मीडिया का सब से खास और हर हाथ सुलभ साधन स्मार्टफोन न्यूज का प्रमुख वाहक है, लेकिन क्या इस पर प्रसारित न्यूज वास्तव में न्यूज कही जा सकती है?

संपादन का अभाव

सोशल मीडिया पर जो भी न्यूज प्रसारित की जाती हैं उन का कोई ओरछोर नहीं होता. वे या तो किसी व्यक्ति द्वारा मोबाइल से बना कर डाल दी जाती हैं या फिर व्यक्ति विशेष के अपने विचार होते हैं, जिन का किसी प्रकार से संपादन भी नहीं किया गया होता, न ही इन खबरों के मुख्य तथ्यों की कोई जांच होती है और न ही आंकड़ों का अध्ययन. बस, एक ने खबर या पोस्ट बनाई और दूसरे के पास जस की तस फौरवर्ड कर दी.

इस के विपरीत प्रिंट मीडिया में प्रसारित किसी भी खबर का न केवल मूल्यांकन किया जाता है बल्कि उस के इर्दगिर्द के पहलुओं का भी ध्यान रखा जाता है. साथ ही, भाषा, आंकड़े, तथ्य जांच व संपादित कर प्रकाशित किए जाते हैं. कहीं किसी तथ्य से देश व समाज में अराजकता तो नहीं फैल जाएगी या फिर किस तथ्य को छिपाना समाज व देशहित में रहेगा, यह भी देखा जाता है जबकि सोशल मीडिया इन सब चीजों से मुक्त है.

बेहूदा कमैंट्स का पुलिंदा

सोशल मीडिया पर प्रसारित हर खबर सिर्फ फौरवर्ड की हुई होती है. ज्यादातर तो पढ़ने और देखने से पहले ही लाइक पर क्लिक कर देते हैं. कुछ ही पढ़ते व देखते हैं और उस पर कमैंट करते हैं. कमैंट इतने बेहूदा होते हैं कि आप किसी के सामने पढ़ भी नहीं सकते. तिस पर उन्हें शेयर कर फौरवर्ड भी कर दिया जाता है, जो सब के पास स्क्रीन पर मिनटों में पहुंच जाते हैं. जैसे, भ्रष्टाचार पर कोई खबर है तो लिख देंगे ‘फांसी चढ़ा दो इन्हें’ या फिर गालीगलौज से लबरेज भाषा से उस का प्रचार करेंगे, जो बहुत भद्दा लगता है.

इस के विपरीत प्रिंट मीडिया की किसी भी खबर को प्रकाशित करने से पहले उस का गहनता से अध्ययन होता है व बेकार बातें खबर में से काट दी जाती हैं और सभ्य तरीके से उसे समाज के समाने परोसा जाता है.

अभद्र भाषा का प्रयोग

सोशल मीडिया पर प्रसारित सामग्री में अभद्र भाषा का प्रयोग धड़ल्ले से होता है, खासकर, व्हाट्सऐप पर तो बेझिझक कुछ भी डाल दिया जाता है. पढ़नेसुनने वाला इस से खुश होगा या नहीं, यह नहीं सोचा जाता. ऐसे में अगर किसी महिला या बच्चे के हाथ फोन पड़ जाए और वह उसे सुन/पढ़ ले तो अनर्थ हो जाए.

लेकिन प्रिंट मीडिया में प्रकाशित होने वाली सारी सामग्री का पहले तो संपादन होता है और फिर उस से अवांछित सामग्री हटा दी जाती है. सिर्फ एक व्यक्ति द्वारा सुनपढ़ कर फौरवर्ड करने के बजाय अनेक हाथों से निकलने के बाद यह सामग्री प्रकाशन के लिए जाती है. इसलिए इस में अभद्र भाषा होने की लेशमात्र भी गुंजाइश नहीं रहती.

सीमित पाठक वर्ग

सोशल मीडिया पर प्रसारित सामग्री का पाठक वर्ग बहुत सीमित होता है, क्योंकि ग्रुप्स, दोस्त या रिलेटिव आदि ही हमारी फ्रैंड लिस्ट में होते हैं. यह वायरल होने पर डिपैंडैंट होता है. जब कोई सामग्री प्रसारित की जाती है तो कुछ ही लोग उसे देखते व लाइक करते हैं. यहां तक कि एल्गोरिदम भी उन्हें सही जानकारी मिलने से रोकता है. सोशल मीडिया कोई जानकारी देने का माध्यम नहीं है बल्कि यह सिर्फ यूजर्स के इंट्रैस्ट पर काम करता है. यानी, जो जिस तरह का कंटैंट देखना चाहता है, सोशल मीडिया उसे वही दिखाता है. इस का सही या गलत से कोई लेनादेना नहीं, यह सिर्फ एल्गोरिदम पर काम करता है.

प्रिंट मीडिया की खबरें पत्रपत्रिका में प्रिंट होने के बाद सार्वजनिक होती हैं. इन्हें कोई भी पढ़ सकता है व लाइब्रेरी, बुक स्टौल, पत्रपत्रिका विक्रेता आदि द्वारा हर जगह वितरित कर दी जाती हैं. बड़ेबड़े होटलों के रिसैप्शन, शोरूम, औफिस के रिसैप्शन, वेटिंगरूम, प्लेटफौर्म, बस, ट्रेन में सफर के दौरान लोग इन्हें पढ़ते व आगे कई हाथों तक पहुंचाते हैं. इस तरह जहां सोशल मीडिया का पाठक वर्ग सीमित है, वहीं प्रिंट मीडिया का वर्ग अनंत है.

छेड़छाड़ की गुंजाइश

जब से एआई आया है तब से सोशल मीडिया पर एक से बढ़ कर एक फेक रील्स, पोस्ट, वीडियो चलने लगी हैं. किसी की भी फेक इमेज और वौयस का यूज वायरल होने के लिए किया जाता है, क्लिप में कांटछांट की जाती है. बातों को तोड़मरोड़ कर पेश किया जाता है.

दरअसल, स्क्रीन पर डिजिटल न्यूज को तोड़मरोड़ दिया जाता है. कई औप्शन द्वारा कंप्यूटर पर उस में बदलाव किए जा सकते हैं. लेकिन प्रिंट मीडिया में एक बार प्रकाशित होने के बाद छेड़छाड़ की आशंका नहीं रहती और वह जस की तस सब तक पहुंचती है. कोई गलती होने पर या फिर इस की आशंका होने पर सिर्फ बाद में भूल सुधार कर क्षमा मांगी जा सकती है.

सो, कहा जा सकता है कि भले ही सोशल मीडिया ने कंप्यूटर, स्मार्टफोन की स्क्रीन के जरिए जनजन तक अपनी पैठ बना ली हो लेकिन प्रिंट मीडिया के मुकाबले वह आज भी बौना साबित हो रहा है.

सच्चाई, समझ, बुद्धिमत्तापूर्ण खबर आज भी प्रिंट मीडिया ही दे रहा है जो परिपक्वता की समझ व बुद्धिमत्ता का परिचायक है. सो, प्रिंट मीडिया आज भी श्रेष्ठ है.

Social Media : औनलाइन आशिकी कहीं ठग न ले

Social Media : एक प्रोफाइल फोटो देखी, दोचार बार स्टोरी पर रिऐक्ट किया और फिर बातों का सिलसिला ऐसा चला कि दिल खुदबखुद वहीं अटक गया. न मुलाकात हुई, न हाथ पकड़ा, बस चैटिंग और वीडियो कौल्स में ही मोहब्बत पनपने लगी. स्क्रीन के उस पार बैठा शख्स अब दिन की शुरुआत और रात की आखिरी बात बन चुका है. सवाल यह है कि यह एहसास सच्चा है या कोई ट्रैप?

वर्चुअल क्रश ऐक्चुअल में वैसा नहीं होता जैसा सोचा जाता है. आप की चाहत को, आप की फीलिंग्स को, आप के आकर्षण को ठेस न पहुंचे इसलिए वर्चुअल क्रश की ऐक्चुएलिटी जान कर ही कदम बढ़ाएं.

फेसबुक या इंस्टा पर फोटो देखा और देखते ही अपोजिट सैक्स के प्रति आकर्षित हो गए. टीनएज में ही नहीं, बल्कि हर उम्र में ऐसा होना आम बात है. दीपा राहुल की फेसबुक पर प्रोफाइल पिक देख कर आकर्षित हुई और बिना सोचेसमझे उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी. राहुल बहुत ही शातिर लड़का था, एकदो दिन तो उस ने दीपा की फ्रैंड रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट नहीं की, फिर तीसरे दिन यह सोच कर ऐक्सैप्ट की कि अब तो दीपा के मन में विश्वास पैदा हो गया होगा कि मैं ऐसावैसा लड़का नहीं हूं. अगर ऐसावैसा होता तो झट से लड़की की रिक्वैस्ट देखते ही ऐक्सैप्ट कर लेता.

फ्रैंड रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट करने के बाद दोनों के बीच खूब चैट होने लगी. यहां तक कि राहुल दीपा से सैक्स चैट करने की कोशिश करता, लेकिन दीपा इस बात को इग्नोर कर बस उस की स्मार्टनैस की ही दीवानी थी.

फिर एक दिन राहुल ने दीपा को किसी होटल में मिलने को कहा. दीपा भी उस से मिलने को बहुत उत्सुक थी, इसलिए तुरंत हामी भर दी. जैसे ही उस ने रूम में ऐंटर किया वैसे ही उस के होश उड़ गए, क्योंकि फेसबुक पर वह जिस लड़के से चैट कर रही थी वह तो यह युवक था ही नहीं, बल्कि उस की उम्र तो 45-50 के आसपास थी.

दीपा की आंखों के सामने जैसे ही पूरी पिक्चर क्लियर हुई वैसे ही उस व्यक्ति ने उसे अपनी आगोश में ले कर उस के साथ फिजिकल रिलेशन बना लिए और उसे ब्लैकमैल करने के लिए उस का वीडियो भी बना लिया.

जब दीपा को होश आया तब उसे वर्चुअल क्रश की एक्चुएलिटी का पता चला लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. ऐसा सिर्फ दीपा के साथ ही नहीं बल्कि ज्यादातर लड़केलड़कियों के साथ होता है. इसलिए सावधान हो जाएं वर्चुअल क्रश की दुनिया से.

जानिए वर्चुअल क्रश की ऐक्चुएलिटी : जिस अकाउंट से आप को रिक्वैस्ट भेजी गई है वह काफी हैंडसम है और आप यह सोच कर कि यार, मु झ में कोई तो बात होगी जो इतने हैंडसम युवक ने मु झे फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी है, आप ने बिना एक पल गंवाए रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर ली. हो सकता है वह पहले से ही कमिटिड हो या मैरिड और आप से सिर्फ टाइमपास के लिए दोस्ती कर रहा हो.

ऐसी ही एक घटना कुछ समय पहले सुर्खियों में थी. फोन पर एक आदमी और औरत को एकदूसरे से प्यार हो गया. कई दिनों तक चैटिंग चलती रही. जब दोनों शख्स मिलने पहुंचे तो दोनों पतिपत्नी निकले. यह बात सुनने में मजाकिया हो सकती है लेकिन इस वाकए के बाद दोनों के रिलेशन पर क्या असर हुआ होगा, यह गंभीर विषय है. सो, सोचसम झ कर ही इस दिशा में आगे बढ़ें.

औनलाइन पैसा ऐंठना भी मकसद : आजकल ज्यादातर लड़कियां दोस्ती सिर्फ पैसा ऐंठने के लिए करती हैं. ऐसे में अगर आप उन के जाल में फंस गए तो वे आप की जेब ढीली किए बिना नहीं रहेंगी. अकसर जब आप उन से चैट कर रहे होते हैं तो वे यह कह कर चैट बंद करने की बात कहती हैं कि, ‘डियर, बाद में बात करूंगी, नैट पैक खत्म हो गया है.’ ऐसे में बेचारा लड़का बात करने के चक्कर में तुरंत उस का नैट रिचार्ज करवा देता है या फिर वह आएदिन आप से किसी न किसी चीज की डिमांड करे. इस से नुकसान हर हाल में आप का ही होगा. इसलिए औनलाइन दोस्ती खुद पर भारी न पड़े, सोचसम झ कर कदम बढ़ाएं.

फंसाने या धोखा देने वाला गैंग : जिस वर्चुअल क्रश के चक्कर में आप पड़े हो, हो सकता है उस के पीछे किसी बड़े गैंग का हाथ हो और वह आप को अपनी मीठीमीठी बातों में फंसा कर, अपने ठिकाने पर बुला कर आप का किडनैप कर ले और फिर गलत हाथों में बेच दे या आप की पूरी जिंदगी तबाह कर दे.

बदला लेने के लिए भी दोस्ती : हो सकता है कि आप के किसी फ्रैंड ने आप को औफर दिया हो या फिर वह बारबार आप से दोस्ती करने की जिद कर रहा हो, जिस से परेशान हो कर आप ने उसे गुस्से में थप्पड़ मार दिया हो, जिस का बदला लेने के लिए अब वह अपना नाम व फोटो बदल कर आप से फ्रैंडशिप कर के आप का दिल तोड़े. हो सकता है कि वह आप की प्रोफाइल पिक में एडिटिंग कर के आप को कहीं मुंह दिखाने लायक न छोड़े.

आप का कोई कजिन हो : घर में सभी आप की शराफत की तारीफ करते न थकते हों, ऐसे में आप का कोई कजिन ईर्ष्या के मारे आप को चैक करने के लिए भी वर्चुअल मीडियम से आप के सामने फ्रैंडशिप का प्रस्ताव रख सकता है. ऐसे में अगर आप फंस गए तो फिर तो वह आप को सब के सामने नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा और आप अपनों की नजरों में गिर जाएंगे.

फेक आईडी से लौयल्टी टैस्ट : जिस के साथ आप की फ्रैंडशिप है, हो सकता है वह ही आप का लौयल्टी टैस्ट करने के लिए अपनी किसी फेक आईडी से आप को रिक्वैस्ट भेज कर फंसाए. ऐसे में अगर आप ने यह सोच कर कि कौन सा मेरे पार्टनर को पता चलेगा, उस से दोस्ती कर ली. फिर तो आप उस की नजरों में गिर जाएंगी.

खुद को गम से उबारने के लिए : कई लड़केलड़कियां ऐसी सोच के होते हैं कि उन्हें हमेशा कोई न कोई साथी चाहिए होता है. ऐसे में अगर उन का ब्रेकअप हो जाता है तो वे अकेले नहीं रह पाते और खुद को उस गम से उबारने के लिए, खुद की आत्मसंतुष्टि के लिए भी वे औनलाइन दोस्ती का रास्ता चुनते हैं. ऐसी दोस्ती में उन के दिल की भावनाएं नहीं जुड़ी होतीं.

इसलिए आप वर्चुअल क्रश के चक्कर में न पड़ें और अगर आप ने किसी अनजान की रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर ली है तो यहां बताई बातों पर अमल करें.

डिटेल्स चैक करें : सोशल साइट पर किसी की भी फ्रैंड रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट करने से पहले उस का पूरा प्रोफाइल चैक कर लें कि कहीं हाल ही में तो उस ने अकाउंट नहीं बनाया है और साथ ही, उस के प्रोफाइल में फैमिली व फ्रैंड्स के फोटो तो हैं न. किस तरह के मैसेज हैं, इस से भी आप को अंदाजा लग जाएगा कि रिक्वैस्ट भेजने वाला किस तरह की सोच रखने वाला है.

चैट की लैंग्वेज से लगाएं अंदाजा : जब भी आप से बात करता है, गंदे शब्दों का ही प्रयोग करता है, यहां तक कि हर मैसेज में किसिंग, लविंग वाले इमोजी या स्टीकर बना कर भेजे तो सम झ जाएं कि वह सही नहीं है.

हर समय औनलाइन तो नहीं : हर समय अगर आप को मैसेज ही भेजता रहे या फिर आप से हमेशा औनलाइन रहने की जिद करे तो ऐसे व्यक्ति को ब्लौक करने में ही सम झदारी है वरना उस से दोस्ती के कारण आप का कैरियर व पर्सनैलिटी दोनों ही प्रभावित होंगे.

हौट डीपी लगाने की करे डिमांड : आप से हौट लगने की डिमांड करे तो सम झ जाएं कि उसे आप से ज्यादा दिलचस्पी आप की बौडी में है.

अपनी पर्सनल चीजें रखें हाइड : अगर आप को लगता है कि वह आप से तो हर बात पूछ लेता है लेकिन जब आप उस से कुछ पूछती हैं तो वह टाल जाता है. ऐसे में आप उस से अपनी कोई भी पर्सनल बात शेयर न करें वरना वह आप की पर्सनल इन्फौर्मेशन से गलत फायदा उठा सकता है.

Hindi kahani : रोजीरोटी – लालाजी ने रिश्वत लेने से क्यों किया इनकार?

Hindi kahani : ‘‘मेरे यहां न तो कोई गलत माल बनता है न ही मैं मिलावट करता हूं. मैं किस बात का महीना दूं?’’ लाला कुंदन लाल ने रोष भरे स्वर में कहा.‘‘लालाजी, बात अकेली मिलावट की नहीं है…अब पुराने नियम और तरीके सब बदल चुके हैं. मिलावट के साथसाथ अब सफाई, रंग और कैलोरी आदि की भी जांच की जाती है,’’ स्वास्थ्य विभाग के चपरासी श्यामलाल ने धीमे स्वर में कहा.‘‘मगर मेरे यहां सफाई का स्तर ठीक है.

आप सारे रेस्तरां में कहीं भी गंदगी दिखाएं, किचन में सबकुछ स्टैंडर्ड का है.’’‘‘ये सब बातें कहने की हैं. अफसर लोग नहीं मानते.’’‘‘मांग जायज हो तो मानें. पिछले 3 साल से महीने की दर बढ़तेबढ़ते 10 गुनी हो गई है…यह तो सरासर लूट है.’’‘‘महीना सब का बढ़ाया है, अकेले आप ही का नहीं.’’‘‘मगर मैं इतना नहीं दे सकता.’’‘‘सोचविचार कर लीजिए. खामख्वाह पंगा पड़ जाएगा,’’ एक तरह से धमकी देता श्यामलाल चला गया.चपरासी के जाते दोनों बेटे सुरेश और अशोक भी पिता के पास आ गए.

कहां तो 100 रुपए महीना था, अब 3 हजार रुपए महीना मांगा जा रहा है. पहले मिलावट के मामले में सजा अधिकतम 6 महीने से 1 साल तक थी साथ में 1 से 2 हजार रुपए तक जुर्माना था.नए प्रावधानों में अब न्यूनतम सजा 3 साल की तथा जुर्माना 25 हजार से 3 लाख रुपए तक हो गया था.

जैसे ही कानून सख्त हुआ था वैसे ही रिश्वत की दर भी आसमान पर पहुंच गई. सफाई या हाईजिन स्तर के नाम पर किसी प्रतिष्ठान, दुकान को बंद करवाने का अधिकार भी खाद्य निरीक्षक को मिल गया था. इस से भी अब लूट बढ़ गई थी.लालजी की गोलहट्टी के नाम से खानेपीने की दुकान सारे शहर में मशहूर थी.

माल का स्तर शुरू से काफी अच्छा था. मिलावट वाली कोई वस्तु नहीं थी.मिलावट तो नहीं थी मगर प्रयोग- शालाओं में कई अन्य आधारों पर नमूना फेल हो जाता था. नमूने को कभी स्तरहीन या अखाद्य या ‘एक्सपायर्ड’ भी करार दे दिया जाता था, जिस से मुकदमा दर्ज हो जाता था या फिर दुकान बंद हो जाती.जितने ज्यादा नए कानून बनते उतने नए अपराधी बनते. जितना सख्त कानून होता उतना ज्यादा रिश्वत का रेट होता. अपराध तो कम नहीं होते थे, भ्रष्टाचार जरूर बढ़ जाता था.लाला कुंदन लाल ने जीवनभर मिलावट नहीं की थी. वे ऐसा करना पसंद नहीं करते थे. ग्राहकों को साफसुथरा खाना देना अपना कर्तव्य सम  झते थे. किसी जमाने में मिलावट का नाम भी नहीं था.

मिलावट क्या होती है…कोई नहीं जानता था.तब खाद्य निरीक्षक का पद भी नहीं था. नगर परिषद का सैनेटरी इंस्पैक्टर कभीकभार बाजार का चक्कर लगा लेता था. किसीकिसी का सैंपल या नमूना ले कर प्रयोगशाला को भेज दिया करता था. सैंपल फेल कम आते थे. सैंपल फेल आने पर जुर्माना होता था जो 50 रुपए से 400-500 रुपए तक था. मगर ऐसा कम ही होता था. कोई सजा का मामला नहीं था.

अब वक्त बदल चुका था. आबादी बहुत बढ़ गई थी. साथ ही कानून और अपराधी भी. अब सैंपल या नमूना फेल ज्यादा आते थे, पास कम होते थे. गेहूं के साथ घुन भी पिसता है, के समान मिलावट न करने वाले भी फंस जाते थे.लाला कुंदन लाल के साथ दोनों बेटे भी विचारमग्न थे. क्या करें? कभी रिश्वत मात्र 100  रुपए महीना थी अब 3 हजार रुपए मांगे जा रहे थे. कल को या भविष्य में 30 हजार रुपए महीना भी मांगे जा सकते थे. वे मिलावट नहीं करते थे मगर हर जगह बेईमानी थी. प्रयोगशालाओं में नमूने फेल, पास करवाए जाते थे.अपने विरोधी या प्रतिद्वंद्वी को फंसाने के लिए कई व्यापारी उस का नमूना प्रयोगशाला में फेल करवा देते थे. बदले समय के साथ अब व्यापार में भी घटियापन बढ़ गया था.

‘‘फूड इंस्पैक्टर 3 हजार रुपए महीना मांग रहा है,’’ लालाजी ने दोनों बेटों को बताया.‘‘पिताजी, दे दीजिए. सैंपल भर लिया, फेल करवा दिया तब परेशानी बढ़ जाएगी,’’ छोटे बेटे अशोक ने कहा.‘‘मगर इन की मांग सुरसा के मुंह के समान बढ़ती जा रही है. कभी 100 रुपए महीना था. अब 3 हजार रुपए मांग रहे हैं, साथ ही आधा दर्जन लोग खाने आ जाते हैं,’’ लालाजी ने रोष भरे स्वर में कहा.इस पर दोनों बेटे खामोश हो गए. क्या करें? पुराना फूड इंस्पैक्टर शरीफ था. 100 रुपए महीना लेने पर भी विनम्रता से पेश आता था. नए जमाने का खाद्य निरीक्षक 3 हजार ले कर भी रूखे और रोबीले अंदाज में बात करता था. लालाजी मिलावट पहले नहीं करते थे, अब भी नहीं करते. बात सिर्फ इंसाफ की थी. इंसाफ कहां था? प्रयोगशालाओं में निष्पक्षता न थी यही सब से बड़ी समस्या थी.2 दिन बाद, चपरासी श्यामलाल दोबारा आया.‘‘लालाजी, क्या इरादा है?’’‘‘मैं ने पहले भी कहा है, मैं मिलावट नहीं करता. मैं महीना किस बात का दूं?’’ दोटूक स्वर में लालाजी ने कहा.

‘‘लालाजी, सोच लीजिए,’’ यह बोल कर गुस्से से तमतमाता चपरासी वापस चला गया.‘‘पिताजी, आप ने यह क्या किया? अब यह हमारा सैंपल भरवा देगा?’’ दोनों बेटों ने पिताजी के पास आ कर कहा.‘‘जो होगा देखेंगे. जोरजबरदस्ती की भी एक सीमा है. जब हम मिलावट ही नहीं करते तब महीना किस बात का दें.’’‘‘पिताजी, वे प्रयोगशाला से नमूना फेल करवा देंगे.’’‘‘जो होगा देखेंगे. अब मैं 60 साल का हूं. मुकदमा हो भी जाता है तो भी परवा नहीं है,’’ लालाजी के स्वर में एक निश्चय और चेहरे पर आभा थी.शाम से पहले एक बड़ी स्टेशनवैगन गोलहट्टी के सामने आ कर रुकी. चिरपरिचित खाद्य निरीक्षक सोम कुमार और स्वास्थ्य अधिकारी मैडम शकुंतला उतर कर दुकान में प्रवेश कर गए.‘‘दुकान का मालिक कौन है?’’ फूड इंस्पैक्टर ने रौब से पूछा. लालाजी सब माजरा सम  झ रहे थे.

दर्जनों बार परिवार सहित खापी कर जाने वाला पूछ रहा है कि दुकान का मालिक कौन है.‘‘मैं हूं जी, बात क्या है?’’इस दबंग जवाब की उम्मीद फूड इंस्पैक्टर को न थी.‘‘क्याक्या बनाते हैं आप?’’‘‘सामने काउंटर में रखा है, देख लीजिए.’’‘‘आप के पास इस काम का लाइसैंस है?’’‘‘हां, है जी. यह देखिए,’’ लालाजी ने शीशे से मढ़ी तसवीर के समान फ्रेम में जड़ी म्यूनिसिपैलिटी के लाइसैंस की कापी सामने रखते हुए कहा.‘‘आप के खिलाफ स्तरहीन खाद्य- पदार्थ बनाने और बेचने की शिकायत है, आप का नमूना भरना है.’’‘‘जरूर भरिए, किस चीज का नमूना दें?’’इस बेबाक जवाब पर खाद्य निरीक्षक सकपका गया.

काउंटर वातानुकूलित था. माल सब साफ था. दुकान में मक्खी, कीट, मच्छर का नामोनिशान तक न था. दुकान में सर्वत्र साफसफाई थी. रसोईघर साफसुथरा था.गुलाबजामुन और रसगुल्लों का नमूना ले लिया. पहले कभी आने पर लालाजी ड्राईफू्रट से आवभगत करते थे मगर इस बार जानबू  झ कर पानी भी नहीं पूछा. इस से इंस्पैक्टर चिढ़ गया.नमूना ले सब चले गए.‘‘पिताजी, अगर नमूना फेल हो गया तो?’’ दोनों बेटों ने कहा, ‘‘पड़ोसी कहता है वह एक दलाल को जानता है जो प्रयोगशाला से नमूना पास करवा सकता है.’’‘‘मगर हम तो मिलावट करते नहीं हैं, हौसला रखो, जो होगा देखेंगे.’’शाम को चपरासी फिर आया. लालाजी ने प्रश्नवाचक निगाहों से घूरते हुए उस की तरफ देखा. ‘‘फूड इंस्पैक्टर कहता है अगर आप को मामला निबटाना है तो निबट सकता है.’’‘‘क्या मतलब?’’‘‘आप चाहें तो नमूना यहीं खत्म कर देते हैं.

प्रयोगशाला में नहीं भेजेंगे और आप चाहें तो नमूना प्रयोगशाला से पास भी करवा सकते हैं. हमारे पास दोनों इंतजाम हैं.’’‘‘जब मैं मिलावट नहीं करता तब कैसा भी इंतजाम क्यों करूं?’’ चपरासी चुपचाप चला गया. डेढ़ माह बाद नतीजा आया. दोनों नमूने पास हो गए. लालाजी का मनोबल ऊंचा हो गया. दुकान की साख बढ़ गई. 2 माह गुजर गए.दोपहर को स्वास्थ्य विभाग की वही पहली वाली जीप दुकान के सामने आ कर रुकी.‘‘आप के खिलाफ शिकायत है. किसी ग्राहक को आप के यहां नाश्ता करने के बाद पेट में दर्द हुआ था,’’ फूड इंस्पैक्टर ने कहा.‘‘वह कौन है?’’‘‘प्रमुख चिकित्सा अधिकारी के पास लिखित शिकायत आई थी. आप का नमूना भरना है.’’‘‘जरूर भरिए.’’ लालाजी के स्वर की दृढ़ता से स्वास्थ्य अधिकारी भी थोड़ा विचलित था. खाद्य निरीक्षक ने दुकान में नजर दौड़ाई. दुकान छोटीमोटी रेस्तरां थी. 4-5 मिठाइयां जैसे रसगुल्ले, गुलाबजामुन, रसमलाई, मिल्ककेक, पिस्ता बर्फी और पुलावचावल के साथ राजमा और छोलेभठूरे आदि प्लेट और पीस रेट के हिसाब से बेचे जाते थे.दीवार पर रेट लिस्ट लगी थी.

साथ  ही लिखा था, ‘यहां गाय का दूध प्रयोग होता है.’, ‘मिल्क नौट फौर सेल’, ‘दूध बेचने के लिए नहीं है.’प्रावधानों के अनुसार जो वस्तु बेचने के लिए न हो उस का नमूना नहीं लिया जा सकता था. मिठाई का सैंपल पास हो चुका था. चावल, पुलाव, राजमा, छोलेभठूरे में क्या मिलावट हो सकती थी?‘‘जरा छोले दिखाइए.’’ लालाजी के इशारे पर कारीगर ने एक कटोरी में गैस पर रखे गरम छोले डाल कर दे दिए. नाक के समीप ला उस को सूंघते हुए फूड इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘मसाले की गंध कुछ अजीब सी है. आप इस का नमूना दे दीजिए.’’मसालाचना, राजमा व छोले की तरी का नमूना अलग से ले टीम चली गई. इस बार चपरासी ‘इंतजाम’ की बात करने नहीं आया. बेटों के सामने भी ‘दलाल’ की मार्फत नमूना पास करवाने की बात नहीं उठाई.डेढ़ महीने बाद नतीजा आया. राजमा, मसालाचना का नमूना पास हो गया था. छोलेतरी का नमूना निर्धारित मात्रा से ज्यादा मसाला मिलाने पर तकनीकी आधार पर फेल हो गया था.रजिस्टर्ड डाक से लालाजी को नोटिस मिला. ‘आप का नमूना प्रयोगशाला द्वारा फेल घोषित किया गया है.

आप इस तारीख को मुख्य दंडाधिकारी के न्यायालय में हाजिर हों. यदि आप राज्य प्रयोगशाला की रिपोर्ट से असहमत हैं तो केंद्रीय प्रयोगशाला में नमूने को दोबारा परीक्षण हेतु 10 दिन के अंदरअंदर भिजवा सकते हैं.’लालाजी नोटिस की प्रति ले कर अपने परिचित वकील के पास पहुंचे.‘‘अरे, भाई, इस मामले को निचले स्तर पर निबटा देना था. जो मांग रहे थे दे देते,’’ वकील साहब ने नोटिस पढ़ कर कहा.‘‘मांग जायज होती तो पूरी कर भी देता. कभी 100-200 रुपए महीना मांगते थे अब 3 हजार रुपए और ऊपर से कभी भी खानेपीने को आ जाते. साथ में रौब अलग से.’’

‘‘मगर मुकदमा कई साल चल सकता है. पेशियों की परेशानी है. नमूना तकनीकी आधार पर फेल है इसलिए सजा का मामला नहीं है. सजा मिलावट के मामले में होती है,’’ वकील साहब ने कहा.‘‘और अगर इसे केंद्रीय प्रयोगशाला में दोबारा परीक्षण के लिए भेज दूं तो?’’

‘‘तब कई पहलू हैं. केंद्रीय प्रयोगशाला इसे पास कर सकती है. राज्य प्रयोगशाला की रिपोर्ट के समान ही रिपोर्ट दे सकती है. विभिन्न रिपोर्ट दे सकती है. मिलावट घोषित कर सकती है.’’

‘‘यह तो एक किस्म का जुआ है. ठीक है, हम नमूना दोबारा परीक्षण के लिए केंद्रीय प्रयोगशाला में भेज देते हैं.’’निर्धारित तिथि को लालाजी, एक पड़ोसी दुकानदार को बतौर जमानती, एक पूर्व नगर पार्षद को बतौर शिनाख्ती और नमूना दोबारा भिजवाने के लिए लकड़ी का खाली डब्बा, रुई का बंडल, सफेद कपड़े का टुकड़ा ले अदालत पहुंच गए. पहले जमानत हुई. फिर नमूना भेजने की तारीख पड़ी. तारीख वाले दिन नमूना दोबारा सील कर केंद्रीय प्रयोगशाला में रजिस्टर्ड पार्सल द्वारा भेज दिया गया.चपरासी अब फिर आया.‘‘लालाजी, हमारे पास केंद्रीय प्रयोगशाला में इंतजाम है.’’

‘‘नहीं भाई, मुझे इंतजाम नहीं करवाना. नमूना फेल भी आ जाता है तो भी कोई बात नहीं. जब तक अदालत फैसला सुनाएगी मैं इस दुनिया से बहुत दूर जा चुका होऊंगा.’’ लालाजी के इस बेबाक जवाब पर चपरासी चला गया. दुकान में खापी रहे ग्राहक खिलखिला कर हंस पड़े.2 महीने बाद नतीजा आया. नमूना मिलावटी नहीं था. मसाले की मात्रा निर्धारित स्तर से कम थी जबकि राज्य प्रयोगशाला ने मसाले की मात्रा निर्धारित स्तर से ज्यादा बताई थी.

चार्ज की पेशी पर बहस हुई. माननीय न्यायाधीश ने दोनों प्रयोगशालाओं द्वारा दी गई अलगअलग परीक्षण रिपोर्टों के आधार पर लालाजी को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया.सारे सिलसिले में 7-8 महीने का समय लगा? और 12 हजार रुपए खर्च हुए. थोड़ी परेशानी तो हुई मगर लालाजी के नैतिक साहस और बेबाकी की सारे दुकानदारों और पड़ोसियों में चर्चा और प्रशंसा हुई.

Family Story : खोया हुआ सच – क्यों दुखी रहती थी सीमा ?

Family Story : सीमा रसोई के दरवाजे से चिपकी खड़ी रही, लेकिन अपनेआप में खोए हुए उस के पति रमेश ने एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. बाएं हाथ में फाइलें दबाए वह चुपचाप दरवाजा ठेल कर बाहर निकल गया और धीरेधीरे उस की आंखों से ओझल हो गया.

सीमा के मुंह से एक निश्वास सा निकला, आज चौथा दिन था कि रमेश उस से एक शब्द भी नहीं बोला था. आखिर उपेक्षाभरी इस कड़वी जिंदगी के जहरीले घूंट वह कब तक पिएगी?

अन्यमनस्क सी वह रसोई के कोने में बैठ गई कि तभी पड़ोस की खिड़की से छन कर आती खिलखिलाहट की आवाज ने उसे चौंका दिया. वह दबेपांव खिड़की की ओर बढ़ गई और दरार से आंख लगा कर देखा, लीला का पति सूखे टोस्ट चाय में डुबोडुबो कर खा रहा था और लीला किसी बात पर खिलखिलाते हुए उस की कमीज में बटन टांक रही थी. चाय का आखिरी घूंट भर कर लीला का पति उठा और कमीज पहन कर बड़े प्यार से लीला का कंधा थपथपाता हुआ दफ्तर जाने के लिए बाहर निकल गया.

सीमा के मुंह से एक ठंडी आह निकल गई. कितने खुश हैं ये दोनों… रूखासूखा खा कर भी हंसतेखेलते रहते हैं. लीला का पति कैसे दुलार से उसे देखता हुआ दफ्तर गया है. उसे विश्वास नहीं होता कि यह वही लीला है, जो कुछ वर्षों पहले कालेज में भोंदू कहलाती थी. पढ़ने में फिसड्डी और महाबेवकूफ. न कपड़े पहनने की तमीज थी, न बात करने की. ढीलेढाले कपड़े पहने हर वक्त बेवकूफीभरी हरकतें करती रहती थी.

क्लासरूम से सौ गज दूर भी उसे कोई कुत्ता दिखाई पड़ जाता तो बेंत ले कर उसे मारने दौड़ती. लड़कियां हंस कर कहती थीं कि इस भोंदू से कौन शादी करेगा. तब सीमा ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि एक दिन यही फूहड़ और भोंदू लीला शादी के बाद उस की पड़ोसिन बन कर आ जाएगी और वह खिड़की की दरार से चोर की तरह झांकती हुई, उसे अपने पति से असीम प्यार पाते हुए देखेगी.

दर्द की एक लहर सीमा के पूरे व्यक्त्तित्व में दौड़ गई और वह अन्यमनस्क सी वापस अपने कमरे में लौट आई.

‘‘सीमा, पानी…’’ तभी अंदर के कमरे से क्षीण सी आवाज आई.

वह उठने को हुई, लेकिन फिर ठिठक कर रुक गई. उस के नथुने फूल गए, ‘अब क्यों बुला रही हो सीमा को?’ वह बड़बड़ाई, ‘बुलाओ न अपने लाड़ले बेटे को, जो तुम्हारी वजह से हर दम मुझे दुत्कारता है और जराजरा सी बात में मुंह टेढ़ा कर लेता है, उंह.’

और प्रतिशोध की एक कुटिल मुसकान उस के चेहरे पर आ गई. अपने दोनों हाथ कमर पर रख कर वह तन कर रमेश की फोटो के सामने खड़ी हो गई, ‘‘ठीक है रमेश, तुम इसलिए मुझ से नाराज हो न, कि मैं ने तुम्हारी मां को टाइम पर खाना और दवाई नहीं दी और उस से जबान चलाई. तो लो यह सीमा का बदला, चौबीसों घंटे तो तुम अपनी मां की चौकीदारी नहीं कर सकते. सीमा सबकुछ सह सकती है, अपनी उपेक्षा नहीं. और धौंस के साथ वह तुम्हारी मां की चाकरी नहीं करेगी.’’

और उस के चेहरे की जहरीली मुसकान एकाएक एक क्रूर हंसी में बदल गई और वह खिलाखिला कर हंस पड़ी, फिर हंसतेहंसते रुक गई. यह अपनी हंसी की आवाज उसे कैसी अजीब सी, खोखली सी लग रही थी, यह उस के अंदर से रोतारोता कौन हंस रहा था? क्या यह उस के अंदर की उपेक्षित नारी अपनी उपेक्षा का बदला लेने की खुशी में हंस रही थी? पर इस बदले का बदला क्या होगा? और उस बदले का बदला…क्या उपेक्षा और बदले का यह क्रम जिंदगीभर चलता रहेगा?

आखिर कब तक वे दोनों एक ही घर की चारदीवारी में एकदूसरे के पास से अजनबियों की तरह गुजरते रहेंगे? कब तक एक ही पलंग की सीमाओं में फंसे वे दोनों, एक ही कालकोठरी में कैद 2 दुश्मन कैदियों की तरह एकदूसरे पर नफरत की फुंकारें फेंकते हुए अपनी अंधेरी रातों में जहर घोलते रहेंगे?

उसे लगा जैसे कमरे की दीवारें घूम रही हों. और वह विचलित सी हो कर धम्म से पलंग पर गिर पड़ी.

थप…थप…थप…खिड़की थपथपाने की आवाज आई और सीमा चौंक कर उठ बैठी. उस के माथे पर बल पड़ गए. वह बड़बड़ाती हुई खिड़की की ओर बढ़ी.

‘‘क्या है?’’ उस ने खिड़की खोल कर रूखे स्वर में पूछा. सामने लीला खड़ी थी, भोंदू लीला, मोटा शरीर, मोटा थुलथुल चेहरा और चेहरे पर बच्चों सी अल्हड़ता.

‘‘दीदी, डेटौल है?’’ उस ने भोलेपन से पूछा, ‘‘बिल्लू को नहलाना है. अगर डेटौल हो तो थोड़ा सा दे दो.’’

‘‘बिल्लू को,’’ सीमा ने नाक सिकोड़ कर पूछा कि तभी उस का कुत्ता बिल्लू भौंभौं करता हुआ खिड़की तक आ गया.

सीमा पीछे को हट गई और बड़बड़ाई, ‘उंह, मरे को पता नहीं मुझ से क्या नफरत है कि देखते ही भूंकता हुआ चढ़ आता है. वैसे भी कितना गंदा रहता है, हर वक्त खुजलाता ही रहता है. और इस भोंदू लीला को क्या हो गया है, कालेज में तो कुत्ते को देखते ही बेंत ले कर दौड़ पड़ती थी, पर इसे ऐसे दुलार करती है जैसे उस का अपना बच्चा हो. बेअक्ल कहीं की.’

अन्यमनस्क सी वह अंदर आई और डेटौल की शीशी ला कर लीला के हाथ में पकड़ा दी. लीला शीशी ले कर बिल्लू को दुलारते हुए मुड़ गई और उस ने घृणा से मुंह फेर कर खिड़की बंद कर ली.

पर भोंदू लीला का चेहरा जैसे खिड़की चीर कर उस की आंखों के सामने नाचने लगा. ‘उंह, अब भी वैसी ही बेवकूफ है, जैसे कालेज में थी. पर एक बात समझ में नहीं आती, इतनी साधारण शक्लसूरत की बेवकूफ व फूहड़ महिला को भी उस का क्लर्क पति ऐसे रखता है जैसे वह बहुत नायाब चीज हो. उस के लिए आएदिन कोई न कोई गिफ्ट लाता रहता है. हर महीने तनख्वाह मिलते ही मूवी दिखाने या घुमाने ले जाता है.’

खिड़की के पार उन के ठहाके गूंजते, तो सीमा हैरान होती और मन ही मन उसे लीला के पति पर गुस्सा भी आता कि आखिर उस फूहड़ लीला में ऐसा क्या है जो वह उस पर दिलोजान से फिदा है. कई बार जब सीमा का पति कईकई दिन उस से नाराज रहता तो उसे उस लीला से रश्क सा होने लगता. एक तरफ वह है जो खूबसूरत और समझदार होते हुए भी पति से उपेक्षित है और दूसरी तरफ यह भोंदू है, जो बदसूरत और बेवकूफ होते हुए भी पति से बेपनाह प्यार पाती है. सीमा के मुंह से अकसर एक ठंडी सांस निकल जाती. अपनाअपना वक्त है. अचार के साथ रोटी खाते हुए भी लीला और उस का पति ठहाके लगाते हैं. जबकि दूसरी ओर उस के घर में सातसात पकवान बनते हैं और वे उन्हें ऐसे खाते हैं जैसे खाना खाना भी एक सजा हो. जब भी वह खिड़की खोलती, उस के अंदर खालीपन का एहसास और गहरा हो जाता और वह अपने दर्द की गहराइयों में डूबने लगती.

‘‘सीमा, दवाई…’’ दूसरे कमरे से क्षीण सी आवाज आई. बीमार सास दवाई मांग रही थी. वह बेखयाली में उठ बैठी, पर द्वेष की एक लहर फिर उस के मन में दौड़ गई. ‘क्या है इस घर में मेरा, जो मैं सब की चाकरी करती रहूं? इतने सालों के बाद भी मैं इस घर में पराई हूं, अजनबी हूं,’ और वह सास की आवाज अनसुनी कर के फिर लेट गई.

तभी खिड़की के पार लीला के जोरजोर से रोने और उस के कुत्ते के कातर स्वर में भूंकने की आवाज आई. उस ने झपट कर खिड़की खोली. लीला के घर के सामने नगरपलिका की गाड़ी खड़ी थी और एक कर्मचारी उस के बिल्लू को घसीट कर गाड़ी में ले जा रहा था.

‘‘इसे मत ले जाओ, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं,’’ लीला रोतेरोते कह रही थी.

लेकिन कर्मचारी ने कुत्ते को नहीं छोड़ा. ‘‘तुम्हारे कुत्ते को खाज है, बीमारी फैलेगी,’’ वह बोला.

‘‘प्लीज मेरे बिल्लू को मत ले जाओ. मैं डाक्टर को दिखा कर इसे ठीक करा दूंगी.’’

‘‘सुनो,’’ गाड़ी के पास खड़ा इंस्पैक्टर रोब से बोला, ‘‘इसे हम ऐसे नहीं छोड़ सकते. नगरपालिका पहुंच कर छुड़ा लाना. 2,000 रुपए जुर्माना देना पड़ेगा.’’

‘‘रुको, रुको, मैं जुर्माना दे दूंगी,’’ कह कर वह पागलों की तरह सीमा के घर की ओर भागी और सीमा को खिड़की के पास खड़ी देख कर गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘‘दीदी, मेरे बिल्लू को बचा लो. मुझे 2,000 रुपए उधार दे दो.’’

‘‘पागल हो गई हो क्या? इस गंदे और बीमार कुत्ते के लिए 2,000 रुपए देना चाहती हो? ले जाने दो, दूसरा कुत्ता पाल लेना,’’  सीमा बोली.

लीला ने एक बार असीम निराशा और वेदना के साथ सीमा की ओर देखा. उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी. सहसा उस की आंखें अपने हाथ में पड़ी सोने की पतली सी एकमात्र चूड़ी पर टिक गईं. उस की आंखों में एक चमक आ गई और वह चूड़ी उतारती हुई वापस कुत्ता गाड़ी की तरफ दौड़ पड़ी.

‘‘भैया, यह लो जुर्माना. मेरे बिल्लू को छोड़ दो,’’ वह चूड़ी इंस्पैक्टर की ओर बढ़ाती हुई बोली.

इंस्पैक्टर भौचक्का सा कभी उस के हाथ में पकड़ी सोने की चूड़ी की ओर और कभी उस कुत्ते की ओर देखने लगा. सहसा उस के चेहरे पर दया की एक भावना आ गई, ‘‘इस बार छोड़ देता हूं. अब बाहर मत निकलने देना,’’ उस ने कहा और कुत्ता गाड़ी आगे बढ़ गई.

लीला एकदम कुत्ते से लिपट गई, जैसे उसे अपना खोया हुआ कोई प्रियजन मिल गया हो और वह फूटफूट कर रोने लगी.

सीमा दरवाजा खोल कर उस के पास पहुंची और बोली, ‘‘चुप हो जाओ, लीला, पागल न बनो. अब तो तुम्हारा बिल्लू छूट गया, पर क्या कोई कुत्ते के लिए भी इतना परेशान होता है?’’

लीला ने सिर उठा कर कातर दृष्टि से उस की ओर देखा. उस के चेहरे से वेदना फूट पड़ी, ‘‘ऐसा न कहो, सीमा दीदी, ऐसा न कहो. यह बिल्लू है, मेरा प्यारा बिल्लू. जानती हो, यह इतना सा था जब मेरे पति ने इसे पाला था. उन्होंने खुद चाय पीनी छोड़ दी थी और दूध बचा कर इसे पिलाते थे, प्यार से इसे पुचकारते थे, दुलारते थे. और अब, अब मैं इसे दुत्कार कर छोड़ दूं, जल्लादों के हवाले कर दूं, इसलिए कि यह बूढ़ा हो गया है, बीमार है, इसे खुजली हो गई है. नहीं दीदी, नहीं, मैं इस की सेवा करूंगी, इस के जख्म धोऊंगी क्योंकि यह मेरे लिए साधारण कुत्ता नहीं है, यह बिल्लू है, मेरे पति का जान से भी प्यारा बिल्लू. और जो चीज मेरे पति को प्यारी है, वह मुझे भी प्यारी है, चाहे वह बीमार कुत्ता ही क्यों न हो.’’

सीमा ठगी सी खड़ी रह गई. आंसुओं के सागर में डूबी यह भोंदू क्या कह रही है. उसे लगा जैसे लीला के शब्द उस के कानों के परदों पर हथौड़ों की तरह पड़ रहे हों और उस का बिल्लू भौंभौं कर के उसे अपने घर से भगा देना चाहता हो.

अकस्मात ही उस की रुलाई फूट पड़ी और उस ने लीला का आंसुओंभरा चेहरा अपने दोनों हाथों में भर लिया, ‘‘मत रो, मेरी लीला, आज तुम ने मेरी आंखों के जाले साफ कर दिए हैं. आज मैं समझ गई कि तुम्हारा पति तुम से इतना प्यार क्यों करता है. तुम उस जानवर को भी प्यार करती हो जो तुम्हारे पति को प्यारा है. और मैं, मैं उन इंसानों से प्यार करने की भी कीमत मांगती हूं, जो अटूट बंधनों से मेरे पति के मन के साथ बंधे हैं. तुम्हारे घर का जर्राजर्रा तुम्हारे प्यार का दीवाना है और मेरे घर की एकएक ईंट मुझे अजनबी समझती है. लेकिन अब नहीं, मेरी लीला, अब ऐसा नहीं होगा.’’

लीला ने हैरान हो कर सीमा को देखा. सीमा ने अपने घर की तरफ रुख कर लिया. अपनी गलतियों को सुधारने की प्रबल इच्छा उस की आंखों में दिख रही थी.

Love Story : कागज के चंद टुकड़ों का मोहताज रिश्ता

Love Story : रोहिणी और नमित की शादी को 10 साल पूरे होने को थे. दांपत्य के इस मोड़ पर रोहिणी द्वारा तलाक के लिए अर्जी देना सब को अचंभित कर रहा था. कभी तलाक नमित ही चाहता था और रोहिणी किसी भी शर्त पर उसे तलाक देने के पक्ष में नहीं थी.

2 साल तक रोहिणी की शादी के लिए लड़का तलाश करने के बाद जब नमित के पापा ने मनचाहा दहेज देने के लिए रोहिणी के पापा द्वारा हामी भरे जाने पर शादी के लिए हां की, तो एक बेटी के मजबूर पिता के रूप में रोहिणी के पिता रमेश बेहद खुश हुए.

अपनी समझदार खुद्दार बेटी रोहिणी की शादी नमित के साथ कर के रमेश अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री समझ कर पत्नी के साथ गंगा स्नान को निकल गए. इन सब बातों से बेखबर कि उधर ससुराल में उन की लाड़ली को लोगों की कैसी प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ रहा है.

शादी में चेहरेमोहरे पर लोगों द्वारा छींटाकशी तो आम बात है, लेकिन जब पति भी अपनी पत्नी के रंगरूप से संतुष्ट न हो, तो पत्नी के लिए लोगों के शब्दबाणों का सामना करना बड़ा मुश्किल लगता है.

रोहिणी सोच से बेहद मजबूत किस्म की लड़की थी, धीरेधीरे तानोंउलाहनों को नजरअंदाज करते हुए उस ने घर की जिम्मेदारी बखूबी संभाल ली थी.

कुछ महीने बाद, शादी के पहले, शिक्षक के लिए दी गई प्रतियोगिता परीक्षा का रिजल्ट आया, जिस में रोहिणी का चयन हुआ और रोहिणी एक शिक्षक बनने की दिशा में आगे बढ़ गई.

इस खुशखबरी और रोहिणी के अच्छे व्यवहार से उस के प्रति घर वालों का नजरिया बदलने लगा था. नमित भी अब रोहिणी से खुश रहने लगा था, पैसा अपने अंदर, किसी के प्रति किसी का नजरिया बदलवाने का खूबसूरत माद्दा रखता है. यही अब उस घर में दृष्टिगोचर हो रहा था.

शादी के 5 साल पूरे होने को थे और रोहिणी की गोद अभी तक सूनी थी. यह बात अब आसपास और परिवार के लोगों को खटकने लगी थी, तो नमित तक भी यह खटकन पहुंचनी ही थी.

शुरू में नमित ने मां को समझाने की कोशिश की, पर दादी शब्द सुनने की उम्मीद ने एक बेटे के समझाते हुए शब्दों के सामने अपना पलड़ा भारी रखा और नमित की मां इस जिद पर अड़ी रही कि अब तो उन्हें एक पोता चाहिए ही चाहिए.

आखिर कब तक… कहते हैं कि अगर किसी बात को बारबार सुनाया जाए, तो वही बात हमारे लिए सचाई सी बन जाती है, ठीक उसी तरह लोगों के द्वारा रोहिणी के मां न बनने की बात सुनतेसुनते नमित को लगने लगा कि अब रोहिणी को मां बनना ही चाहिए और उस के दिमाग पर भी पिता बनने की ख्वाहिश गहराई से हावी होने लगी. उस ने रोहिणी से बात की और उसे चेकअप के लिए ले गया.

रोहिणी की रिपोर्ट नौर्मल आई, इस के बावजूद काफी कोशिश के बाद भी वह पिता नहीं बन सका. अब रोहिणी भी नमित पर दबाव डालने लगी कि उस की सभी रिपोर्ट नौर्मल हैं, तो एक बार उसे भी चेकअप करवा लेना चाहिए, लेकिन नमित ने उस की बात नहीं मानी. वह अपना चेकअप नहीं करवाना चाहता था, क्योंकि उस के अनुसार उस में कोई कमी हो ही नहीं सकती थी.

मां चाहती थीं कि नमित रोहिणी को तलाक दे कर दूसरी शादी कर ले, वह खुल कर तो मां की बात का समर्थन नहीं कर रहा था, पर उस के अंतर्मन को कहीं न कहीं अपनी मां का कहना सही लग रहा था. एक पति पर पिता बनने की ख्वाहिश पूरी तरह हावी हो चुकी थी.

धीरेधीरे उम्मीद की किरण लुप्त सी होने लगी थी, अब उस घर में सब चुपचुप से रहने लगे थे. खासकर रोहिणी के प्रति सभी का व्यवहार कटाकटा सा था. घर वालों के रुखे व्यवहार ने रोहिणी को भी काफी चिड़चिड़ा बना दिया था.

एक दिन नमित ने रोहिणी को समझाने की कोशिश की, ‘‘देखो रोहिणी, वंश चलाने के लिए एक वारिस की जरूरत होती है और मुझे नहीं लगता कि अब तुम इस घर को कोई वारिस दे पाओगी. इसलिए तुम तलाक के कागजात पर साइन कर दो.

‘‘और यकीन रखो, तलाक के बाद भी हमारा रिश्ता पहले जैसा ही रहेगा. हमारा रिश्ता कागज के चंद टुकड़ों का मोहताज कभी नहीं होगा. भले ही हम कानूनी रूप से पतिपत्नी नहीं रहेंगे, पर मेरे दिल में हमेशा तुम ही रहोगी.’’

नाम के लिए कागज पर मेरी पत्नी, मेरे साथ काम कर रही रोजी होगी, परंतु उस से शादी का मेरा मकसद बस औलाद प्राप्ति होगा. तुम्हें बिना तलाक दिए भी मैं उस से शादी कर सकता हूं, पर तुम तो जानती हो कि हम दोनों की सरकारी नौकरी है और बिना तलाक शादी करना मुझे परेशानी में डाल कर मेरी नौकरी को खतरे में डाल सकता है.

‘‘तुम अपना चेकअप क्यों नहीं करवाते हो, नमित.. मुझे लगता है कि कमी तुम में ही है.

‘‘एक बात कहूं, तुम निहायत ही दोगले इनसान हो, शरीफ बने इस चेहरे के पीछे एक बेहद घटिया और कायर इनसान छिपा है.

‘‘कान खोल कर सुन लो, मैं तुम्हें किसी शर्त पर तलाक नहीं दूंगी. तुम्हें जो करना हो कर लो. सारी परेशानियों को सहते हुए, मैं इसी परिवार में रह कर तुम सब के दिए कष्टों को सह कर तुम्हारे ही साथ अपने बैडरूम में रहूंगी.‘‘

‘‘नहीं, मुझ में कोई कमी नहीं हो सकती, और तलाक तो तुम्हें देना ही होगा. मुझे इस खानदान के लिए वारिस चाहिए, चाहे वह तुम से मिले या किसी और से.

“अगर तुम सीधेसीधे तलाक के पेपर पर हस्ताक्षर नहीं करती हो, तो मैं तुम पर मेरे परिवार वालों को परेशान करने और बदचलनी का आरोप लगाऊंगा,’’ नमित के शब्दों का अंदाज बदल चुका था.

कुछ दिन बाद नमित ने कोर्ट में रोहिणी पर इलजाम लगाते हुए तलाक की अर्जी दाखिल कर दी.

अब रोहिणी बिलकुल चुप सी रहने लगी थी, लेकिन तलाक मिलने तक अपने बैडरूम पर कब्जा नहीं छोड़ने के लिए अपने फैसले पर अडिग थी.

प्रकृति की लीला तो देखिए, 2 महीने बाद ही उसे पता चला कि कुदरत ने उस की गोद भरने की तैयारी कर ली है, यह खबर मिलते ही नमित ने तलाक की दी हुई अर्जी वापस ले ली.

उस के अगले ही दिन रोहिणी अपना बैग पैक कर के मायके चली गई. सारी बातें सुन कर मातापिता ने समझाने की कोशिश की कि जब सबकुछ ठीक हो रहा है, तो इस तरह की जिद सही नहीं है.

‘‘अगर आप लोगों को मेरा आप के साथ रहना पसंद नहीं है, तो मैं जल्दी ही कहीं और रूम ले कर रहने चली जाऊंगी. आप लोगों पर ज्यादा दिन बोझ बन कर नहीं रहूंगी.‘‘

बेटी से इस तरह की बातें सुन कर दोनों चुप हो गए.अगले दिन शाम को बेल बजने पर रोहिणी ने दरवाजा खोला, सामने नमित था. बिना जवाब की प्रतीक्षा किए वह अंदर आ कर सोफे पर बैठ गया, तब तक रोहिणी के मातापिता भी आ चुके थे.

बात की शुरुआत नमित ने की, ‘‘रोहिणी भगवान ने हमारी सुन ली और हमारी गोद में जल्दी ही एक खूबसूरत उपहार देने वाले हैं, तो तुम अब यह सब क्यों कर रही हो.

‘‘जब मैं ने तुम्हें तलाक देना चाहा था, तब तो तुम किसी भी शर्त पर तलाक देने को तैयार नहीं थी, फिर अब क्या हुआ.. अब जब सबकुछ सही हो रहा है, सब ठीक होने जा रहा है, तो इस तरह की जिद का क्या औचित्य…‘‘

‘‘नमित, तुम्हें क्या लगता है… यह बच्चा तुम्हारा है? तो मैं तुम्हें यह साफसाफ बता दूं कि यह बच्चा तुम्हारा नहीं… मेरे कलीग सुभाष का है, जो इस तलाक के बाद जल्दी ही मुझ से शादी करने वाला है.

‘‘तुम ने मुझ पर चरित्रहीनता के झूठे आरोप लगाए थे न, मैं ने तुम्हारे लगाए हर उन आरोपों को सच कर के दिखा दिया. और साथ ही, यह भी दिखा दिया कि मुझ में कोई कमी नहीं, कमी तुम में है… तुम एक अधूरे मर्द हो. जो अपनी कमी से पनपी कुंठा, अब तक अपनी पत्नी पर उड़ेलते रहे. विश्वास न हो तो जा कर अपना चेकअप करवाओ और फिर जितनी चाहे, उतनी शादी करो.

‘‘तुम्हारे घर में तुम्हारी मां और बहन द्वारा दिए गए उन सारे जख्मों को मैं भुला देती, अगर बस तुम ने मेरा साथ दिया होता. औरत को बच्चे पैदा करने की मशीन मानने वाले तुम जैसे मर्द, मेरे तलाक नहीं देने के उस फैसले को मेरी एक अदद छत पाने की लालसा समझते रहे और मैं उसी छत के नीचे रह कर अपने ऊपर होते अत्याचारों की आंच पर तपती चली गई… अंदर से मजबूत होती चली गई. ऐसे में मुझे सहारा मिला सुभाष के कंधों का और उस ने एक सच्चा मर्द बन कर, सही मायने में मुझे औरत बनने का सौभाग्य दिया.

अब तुम्हारे द्वारा लगाए गए उन झूठे आरोपों को मैं सच्चा साबित कर के तुम से तलाक लूंगी और तुम्हें मुक्त करूंगी इस अनचाहे रिश्ते से, तुम्हें अपनी मरजी से शादी करने के लिए… जो तुम्हारे खानदान को तुम से वारिस दे सके, जो मैं तुम्हें नहीं दे पाई.

‘‘अब तुम जा सकते हो. कोर्ट में मिलेंगे,” बिना नमित के उत्तर की प्रतीक्षा किए रोहिणी उठ कर कमरे में चली गई.

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