Romantic Story : “अरे वाह, शिशिर, फ्लैट तो बहुत खूबसूरत है. और देखो न, यहां खिड़की से बाहर का दृश्य कितना सुंदर दिख रहा है,” गरिमा फ्लैट के अंदर दाखिल होते ही चहकती हुई बोलती है.
शिशिर और गरिमा दोनों एकदूसरे को चाहते थे. अभी ज्यादा समय नहीं गुजरा था जब दोनों के मन में प्रेम की कोंपले फूटी थीं. दोनों एक ही कंपनी में कार्यरत थे. शिशिर कंपनी का पुराना एंप्लौय था जबकि गरिमा ने कुछ महीने पहले ही जौइन किया था. 24 वर्षीया गरिमा में अल्हड़पन और शोखियां भरी थीं. उस में खूबसूरती के साथ टैलेंट भी था लेकिन वह कुछ ज्यादा ही भावुक थी, शायद, स्त्री होना उस का कारण हो क्योंकि लोग कहते हैं न, महिलाएं बहुत भावुक होती हैं.
दूसरी तरफ शिशिर 30 वर्ष की उम्र पार कर चुका था. वह काम तथा जीवन दोनों में काफी प्रोफैशनल सा व्यक्तित्व रखता था. वह दिल की सुनता मगर कभीकभी उस का दिमाग दिल पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखता था. दोनों साथ काम करते हुए कब प्यार की जंजीर में उलझे, उन्हें पता न चला.
शिशिर लुधियाना के एक छोटे से गांव से आया था. दिल्ली में रहते हुए उस ने कालेज की पढ़ाई पूरी की और फिर एक कंपनी में अच्छी पोस्ट पर नौकरी करने लगा. वह अपने दोस्तों के साथ किराए के कमरे में रहता था. लेकिन अब उस ने कुछ पैसे जमा कर लिए थे तो एक छोटा सा फ्लैट खरीदने की तमन्ना ने जोर पकड़ा और आज वह गरिमा के साथ फ्लैट देखने आया था.
गरिमा रांची की रहने वाली थी. वह पढ़ने में बहुत तेज थी, इसीलिए सकौलरशिप के माध्यम से दिल्ली में कालेज की पढ़ाई पूरी करने आई थी. बीकौम पूरा होते ही उस ने अपना खर्च निकालने के खयाल से कंपनी में एक छोटी सी नौकरी करना शुरू किया था. दिल्ली जैसे शहर में रहने पर खर्चे थोड़े अधिक थे और उस के क्लर्क पिता जो रुपए भेजते उस में गरिमा का पूरा महीना नहीं चल पाता था.
शिशिर गरिमा को बहुत भोली समझता था लेकिन गरिमा अपने इमोशनल के कारण भोली दिख रही थी.
“गरिमा, अब हम दोनों इस फ्लैट में साथ रहेंगे. तुम अपना गर्ल्स होस्टल छोड़ देना.”
“साथ, अभी से? पहले तुम्हारे व्यक्तित्व को थोड़ा अच्छे से जान लूं, फिर शादी के बंधन में बंध जाऊं, तब. फिलहाल तो जनाब इस फ्लैट को खरीदने का काम कर लीजिए,” गरिमा ने मुसकराते हुए कहा.
“क्या यार, तुम भी न, देश की राजधानी में रह कर आज की लाइफ से दूर हो. यहां के कल्चर में नहीं देख रही हो, लोग एकदूसरे के साथ रहने के लिए शादी का इंतजार नहीं करते?”
“लेकिन मैं इस सोच को सही नहीं मानती.”
“अच्छा देखो, तुम ने भी तो कहा न कि तुम मुझे और अधिक जानना चाहती हो. तो फिर मुझे बेहतर जानने के लिए मेरे साथ रहना और जरूरी हो जाता है,” शिशिर ने गरिमा को कन्विंस करने के खयाल से कहा.
“अच्छा, जब समय आएगा तब देखा जाएगा. अब चलो,” गरिमा ने कहा.
फ्लैट देख कर दोनों वहां से चले गए. कुछ दिनों बाद शिशिर को फ्लैट की चाबी मिल गई. उस के फ्लैट में थोड़ा सा रिनोवेशन का काम था, जिसे शिशिर ने करवाना शुरू कर दिया था. कभीकभी गरिमा भी फ्लैट पर काम देखने चली जाया करती थी.
औफिस में लंचब्रेक हो गया. गरिमा कैंटीन की तरफ बढ़ रही थी कि शिशिर ने रोका, “चलो, किसी होटल में लंच लेते हैं.”
“नहीं, फिर कभी. पास की कैंटीन में ही ठीक है. होटल गई तो औफिस लौटने में देर हो जाएगी.”
“अच्छा, शाम में चलते हैं. शौपिंग के साथ रात का खाना बाहर,” शिशिर ने कहा.
“शौपिंग, बात क्या है? आज तो मेरा जन्मदिन भी नहीं है,” गरिमा ने शरारती अंदाज में कहा.
“फ्लैट पूरी तरह तैयार है. उस में कुछ नए फर्नीचर रखवाने हैं. वहां सब तुम्हारी पसंद का होगा, इसलिए शौपिंग करने चलना है,” कहते हुए शिशिर गरिमा को पास खींच लेता है.
दोनों खुश थे. शिशिर नए फ्लैट में शिफ्ट हो गया था. गरिमा ने शुरुआत में साथ रहने को मना कर दिया था लेकिन शिशिर के प्यार की आगे उसे झुकना पड़ा. अब वे दोनों अपने नए आशियाने में एकसाथ रहने लगे. गरिमा का एमकौम में एडमिशन हो गया था. साथ ही, उस ने पार्टटाइम जौब को करना जारी रखा.
इधर, शिशिर और गरिमा को साथ रहते 6 महीने से ऊपर हो गए. शुरुआत के दिन तितलियों के पंख से भी अधिक खूबसूरत और हलके थे. उन हलके रंगीन दिनों में दोनों स्वयं को बेहद खुशहाल जोड़ी मानने लगे थे. गरिमा को भी लगने लगा कि शायद शिशिर ही वह व्यक्ति है जिस के साथ वह आजीवन खुश रह सकती है. लेकिन बाद के दिनों में उस के भ्रमजाल के धागे एकएक कर टूटने लगे.
शनिवार का दिन था. शिशिर जगा तो देखा कि सुबह के 9 बज गए हैं. देररात तक वह लैपटौप पर जमा हुआ था, इस कारण सुबह इतनी देर से उस की आंख खुली. लेकिन पर्याप्त नींद न लेने के कारण अभी भी सिर भारी लग रहा था.
“यार, जरा एक कप हौट कौफी पिला दो, सिर कुछ हलका हो,” शिशिर ने गरिमा को आवाज लगाई.
बैडरूम से निकलते हुए गरिमा सामने दिख गई, “अरे, सुबह कहां के लिए तैयार हो गईं, आज तो कालेज की छुट्टी है?”
“कालेज की छुट्टी है मगर काम की नहीं. आज एक स्पैशल काम मिला है. यदि मैं इस में सफल हो गई तो एक बड़ी कंपनी में मुझे बड़ी पोस्ट मिल जाएगी. फिर तो अपनी अच्छीखासी सैलरी होगी,” गरिमा चहकती हुई बोली.
“अच्छा, ठीक है. जरा कौफी पिला दो और मेरा नाश्ता भी रेडी रखो.”
“सौरी शिशिर, जल्दी में हूं. औफिस समय से पहुंचना जरूरी है. तुम मैनेज कर लो और हां, लौटने में देर होगी. मैं डिनर कर के आऊंगी, मेरा इंतजार मत करना. ओके बाय…,” कहती हुई गरिमा तेज कदमों से बाहर निकल गई.
शिशिर मन ही मन खीझ कर रह गया. इन 6 महीनों में वह युवक से गृहस्थ पुरुष की भूमिका में आ गया था. गृहस्थ पुरुष जो घर के काम और जिम्मेदारियों को स्त्री का केंद्र मानता था. पुरुष की दुनिया बाहर थी और घर की जवाबदेही स्त्री के जिम्मे. हालांकि शिशिर के इस परिवर्तन में कुछ हद तक गरिमा की भी भूमिका थी. चंचल चहकती रहने वाली गरिमा मध्यवर्गीय परिवार से थी जहां छोटीछोटी बात या काम को ले कर तनाव करना उस ने नहीं सीखा था. इसलिए सामान्य नारीत्व को जीते हुए वह घर के कामों को निबटा दिया कर देती थी. लेकिन शिशिर पर इस का बुरा प्रभाव पड़ा. वह अपने दायित्व को कम करने लगा तथा पुरुषत्व के अहंकार को मन पर हावी करने लगा.
गरिमा ने अपनी स्किल और टैलेंट की बदौलत कंपनी में अच्छी पोस्ट प्राप्त कर ली थी. अब उस का पार्टटाइम जौब अच्छी फिक्स्ड नौकरी बन गई. गरिमा की व्यस्तता बढ़ गई थी. उसे एमकौम भी कंप्लीट करना था और अपनी नौकरी पर भी पूरा फोकस करना था. ऐसे में वह शिशिर या दैनिक कार्य में पहले की तरह समय नहीं दे पा रही थी. वह शिशिर को आज के समय की सोच का युवक समझती थी. मगर शायद यह उस का भ्रम था. क्योंकि शिशिर के व्यवहार में कुछ हद तक परिवर्तन आने लगा था. गरिमा अपनी व्यस्तता के कारण थोड़ी सी कम जिम्मेदार हो गई थी. उसे लगता, शिशिर उस की परिस्थिति समझेगा और उसे सहयोग व स्नेह देगा लेकिन यहां बात इस के उलट थी.
शिशिर बातबात पर गरिमा पर खीझ जाता. तेज आवाज में बोल देता. उस के कपड़ेजूते इधरउधर होते तो इस के लिए भी वह गरिमा पर ही गुस्सा होता- “देख रहा हूं, किसी भी चीज का तुम्हें खयाल नहीं रहा. मेरे प्रति तुम्हारा प्यार कम होता जा रहा है,” शिशिर उबल रहा था.
“यह क्या कह रहे हो, सुशील. भला काम के आधार पर तुम मेरे प्यार को कैसे माप सकते हो? तुम देख रहे हो न कि मैं कितनी मेहनत कर रही हूं. मेरे खुद के भी खानेसोने का सही रूटीन नहीं है. मेरी पढ़ाई पूरी हो जाए, उस के बाद सिर्फ मेरा जौब ही रहेगा न. फिर तुम्हें शिकायत नहीं होगी. पूरा समय दूंगी.”
“अच्छा, तुम लड़कियां भी न कुछ ज्यादा ही महत्त्वाकांक्षी होती हो. अरे जौब कर रही हो तो पढ़ाई छोड़ो और यदि पढ़ाई जारी रखना है तो जौब बाद में कर लेना. जब संभल नहीं रहा तो चारचार जगह पैरहाथ क्यों चलाती हो?”
“संभल नहीं रहा… सुनो, मैं तो अपनी लाइफ, पढ़ाई, नौकरी सबकुछ संभाल रही हूं. तुम अपनी देखो, खुद को ही संभाल नहीं पा रहे हो. मैं तुम्हारे व्यवहार से घबरा कर अपनी अभिलाषा और सपनों को नहीं छोड़ सकती,” कहती हुई गरिमा गुस्से में कमरे में चली जाती है.
शिशिर गुस्से में हौल में ही पड़ा रहा. सुबह गरिमा उठ कर अपने रूटीन वर्क में लग गई. रविवार का दिन था तो उस ने सोचा, आज थोड़ा सा रिलैक्स टाइम बिता लूंगी. लेकिन शिशिर की बात उसे अब भी चुभ रही थी. शिशिर ने रात का खाना भी नहीं खाया था. सुबह उठा तो पेट भूख का एहसास करा रहा था. उस ने गरिमा को सौरी बोला. ‘सौरी’ शब्द सुन कर गरिमा ने भी लंबी सांस खींची. उस ने समझा, शिशिर को रात वाले बातव्यवहार पर शर्मिंदगी है. बात सही थी, शिशिर को एहसास हुआ कि वह कुछ ज्यादा बोला. लेकिन यह एहसास थोड़े समय के लिए ही था. शिशिर यदाकदा गरिमा को तल्ख बात बोल ही देता था. एक रोवाबदार पति की भांति उस पर अपना शिकंजा कसता. गरिमा कुछ हद तक न चाहते हुए भी आपसी तालमेल को बरकरार रखने की चेष्टा कर रही थी.
प्रेम व खिंचाव के मिश्रणभरे माहौल में साथ रहते हुए एक साल बीत गया. गरिमा को कंपनी की तरफ से प्रोफैशनल टूर के लिए जाना था. वह तैयारियां करने लगी. शिशिर को उस का जाना खल रहा था. वह गरिमा के लिए कुछ ज्यादा हीं पजैसिव होने लगा था. अब उसे गरिमा का ज्यादा स्वच्छंद रहना चुभता था. वह बोल पड़ा, “मैं अच्छाखासा कमा लेता हूं, फिर तुम्हें यों काम के पीछे भागने की क्या जरूरत है, छोड़ो यह सब?”
“शिशिर, यह तुम बोल रहे हो? तुम तो देश की राजधानी में रहने वाले आज के युवा हो?”
“हां, मगर मुझे तुम्हारा यों बाहर लोगों के साथ रहना अच्छा नहीं लगता. मैं तो, बस, तुम्हें अपने दिल में ही कैद कर के रखना चाहता हूं,” कहते हुए शिशिर ने गरिमा को बांहों में भरना चाहा लेकिन गरिमा ने उस की बांहें झटक दीं.
“इसे दिल में नहीं, घर में कैद करना कहते हैं, शिशिर. तुम दकियानूसी सोच की तरफ बढ़ रहे हो.”
“तुम जो समझो मगर मुझे तुम्हारा टूर पर जाना अच्छा नहीं लग रहा. छोड़ो न…”
“नहीं,” गरिमा बीच में ही बोल पड़ी, “मैं ने तुम्हारे साथ कितना एडजस्ट किया है. छोटीछोटी बातों को इग्नोर कर के तुम्हारे साथ खुशीखुशी रहने का प्रयास करती रही. लेकिन अब नहीं. मैं औफिस टूर पर अवश्य जाऊंगी और मेरे आने का इंतजार न करना.”
“मतलब?” शिशिर समझ न सका.
“मतलब यही कि अब मैं समझ चुकी हूं कि जिंदगी सिर्फ भावनाओं पर टिकी नहीं होती. उसे समझदाररूपी दृढ़ स्तंभ की भी आवश्यकता होती है और अब मेरी समझदारी कह रही है कि मुझे तुम से दूर हो जाना चाहिए.”
“गरिमा, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. तुम मेरे प्यार को यों छोड़ नहीं सकतीं. शीघ्र ही हम दोनों वैवाहिक बंधन में बंध जाएंगे.”
“वैवाहिक बंधन? मैं ने ठीक ही कहा था कि शादी से पहले एकदूसरे को अच्छी तरह जान लेना चाहिए. कुछ महीनों के साथ में ही मैं तुम्हें जान चुकी हूं. मैं भावुक हूं, बेवकूफ नहीं. लिवइन में रहना मेरे जीवन का एक गलत फैसला रहा.”
“मैं ने तुम्हें खुशियों के उजाले दिए,” शिशिर ने कहा.
“तुम्हारे साथ बिताए गए समय में चंद खुशी जबकि स्याह घनी रात अधिक मिली. लेकिन मैं अपने अस्तित्व को इस रात के अंधेरे में खोने नहीं दूंगी. मैं जा रही हूं अपने जीवन को नए सिरे से जीने के लिए. मुझे एहसास हो रहा है कि नया सवेरा मेरा इंतजार कर रहा है,” कहती हुई गरिमा अपना सामान पैक करती है और शिशिर का साथ छोड़ कर निकल पड़ती है अपनी मेहनत और अपने सपनों को नूतन सुखद दिन से मिलवाने के लिए.
लेखिका- रेखा भारती