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योगी को हटाने की कवायद तेज, 2027 में UP election के पहले चेंज !

लोकसभा चुनाव के बाद देश ने उपचुनाव में जनमत दे कर समझा दिया है कि इंडिया ब्लौक की जीत कोई तुक्का नहीं थी. चुनावी संदेश भाजपा में असंतोष को हवा दे दी है, जो धर्म की राजनीति पर सवालिया निशान खड़ा कर रही है.

देश के 7 राज्यों में 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने बता दिया कि भाजपा ने जिस धर्म के ऊपर राजनीति शुरू की थी वह अब उस से नहीं संभल रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव में अयोध्या में भाजपा की हार ने पूरे चुनावी महौल को बदल दिया. भाजपा उस झटके से संभल नहीं पाई थी कि विधानसभा के उपचुनावों में बद्रीनाथ क्षेत्र में मिली हार ने भाजपा की कमर तोड़ दी. इन चुनावों का असर यह हुआ कि भाजपा में धर्म की राजनीति पर बगावत होने लगी है. धर्म के दबाव में जो बातें भाजपा के एससी और ओबीसी नेता कह नहीं पा रहे थे अब वह खुल कर बोलने लगे हैं.
‘सरिता’ ने अपने लेखों में हमेशा यह समझाने का प्रयास किया है कि धर्म की राजनीति समाज के लिए हमेशा नुकसानदायक रही है. यह समाज को बांटने का काम करती है. धर्म का नशा लंबे समय तक नहीं रहता है. यह बहुत जल्द उतर जाता है. एक ही चुनावी हार में भाजपा में यह नशा उतर रहा है. उत्तर प्रदेश में जहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लोकसभा चुनाव के पहले तक भाजपा के ब्रांड माने जाते थे उन को चुनौती देने का साहस भाजपा का कोई नेता नहीं कर सकता था. लोकसभा चुनाव में जैसे ही भाजपा उत्तर प्रदेश में नम्बर 2 की पार्टी बनी योगी आदित्यनाथ के खिलाफ विद्रोह हो गया है.
इस विद्रोह में पार्टी के एससी और ओबीसी नेता सब से आगे हैं. इन को हवा देने का काम सवर्ण नेता कर रहे हैं. जो धर्म की राजनीति से खुद को जोड़ नहीं पा रहे थे. ऐसे में अब यह साफ दिख रहा है कि 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा उत्तर प्रदेश में बड़ा बदलाव कर के योगी आदित्यनाथ को हटा सकती है. इस पर फाइनल मोहर उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा के 10 उपचुनाव के बाद होगा. अगर इन उपचुनाव में भाजपा को सफलता मिलती दिखी तब लड़ाई धीमी होगी लेकिन अगर इन उपचुनाव में भी भाजपा को हार मिलती है तो योगी को हटाने की मुहिम तेज हो जाएगी.

7 राज्यों मे भाजपा की हार
7 राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा केवल 2 सीटें ही जीत सकी. लोकसभा चुनाव के बाद लग रहा था कि भाजपा उस से सबक ले कर उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन करेगी. जब उप चुनाव के परिणाम आए तो यह साफ हो गया कि भाजपा का डिब्बा गुल है. दूसरी तरफ राहुल गांधी और इंडिया ब्लौक पर मतदाताओं का भरोसा कायम है. 13 में 10 सीटें जीत कर इंडिया ब्लौक ने 2 सीट जीतने वाली भाजपा को बड़ा झटका दिया है. भाजपा को सब से बड़ा झटका लगा है बंगाल में, जहां 4 सीटों पर उसे टीएमसी के हाथों मात खानी पड़ी. वह भी तब जब बंगाल में इन 4 सीटों में से 3 सीटों पर पिछले चुनाव में बीजेपी का कब्जा था.

भाजपा की दूसरी बड़ी हार धर्म के राज्य उत्तराखंड की बदरीनाथ सीट पर मिली है. उत्तराखंड के बहुत सारे विकास के दावे धरे के धरे रह गए. हिमाचल में भी कांग्रेस ने भाजपा को हरा दिया. लोकसभा चुनाव के बाद राजनीतिक दलों की ये सब से बड़ी परीक्षा थी. जिस में इंडिया ब्लौक ने एनडीए को 10-2 स्कोर से मात दे दी. उपचुनाव के नतीजों ने इंडिया ब्लौक को खुशी मनाने का बड़ा मौका दे दिया है. बंगाल में टीएमसी ने सभी चारों सीटें जीत कर जलवा बिखेरा है तो उत्तराखंड की दोनों सीटें कांग्रेस के खाते में आई हैं. हिमाचल में भी 3 में से 2 सीटों पर कांग्रेस ने विजय पताका लहराई है तो पंजाब की इकलौती सीट आप की झोली में गिरी है. तमिलनाडु की एकमात्र सीट पर डीएमके ने कब्जा जमाया है.

अयोध्या के बाद बद्रीनाथ
उपचुनाव में इंडिया ब्लौक निखर कर सामने आया है. इस के परिणामों से लोकसभा चुनाव परिणामों पर मोहर लग गई है. जो लोग लोकसभा चुनाव में इंडिया ब्लौक की सफलता को तुक्का समझ रहे थे उन को उपचुनाव ने जबाव दे दिया है. अयोध्या के बाद बद्रीनाथ की हार ने भाजपा की धर्म की राजनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं. कांग्रेस नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कहते हैं, ‘बदरीनाथ में बीजेपी की हार ऊपर वाले का दंड है. भगवान राम की धरती अयोध्या में इंडिया ब्लौक की जीत बहुत महत्वपूर्ण है. अब इस पर बदरीनाथ की जीत ने भी मुहर लगा दी है.’
उत्तराखंड में मंगलौर और बद्रीनाथ सीट पर उपचुनाव हुआ था. इन सीटों पर पहले कांग्रेस और बसपा का कब्जा था. बद्रीनाथ सीट पर कांग्रेस के लखपत सिंह बुटोला ने करीब 5 हजार से अधिक वोटों से भाजपा के राजेंद्र भंडारी को मात दी. राजेंद्र भंडारी ही पहले यहां से विधायक थे लेकिन बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए थे. मंगलौर सीट जो बसपा विधायक सरबत करीम अंसारी के निधन के बाद खाली हुई थी, उस सीट पर पर कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन ने बाजी मारी और कड़े मुकाबले में उन्होंने बीजेपी के करतार सिंह भड़ाना को 400 से अधिक वोटों से हराया. काजी निजामुद्दीन इस सीट पर पहले भी 3 बार कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं.

भाजपा जिस तरह से धनबल और ईडी-सीबीआई के दबाव में काम करवा रही थी उस से लोगों में विद्रोह भी भावना भड़क रही थी. चुनाव में वह भाजपा को जवाब दे रही है. हिमांचल के देहरा में 25 वर्षों के बाद कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हुई है और नालागढ़ में भी कांग्रेस प्रत्याशी बड़े अंतर से जीते हैं. भाजपा केवल हिमाचल में हमीरपुर और मध्य प्रदेश में अमरवाड़ा सीट पर जीत का झंडा लहरा पाई. अब उत्तर प्रदेश में भी 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाला है और भाजपा के लिए बड़ी अग्निपरीक्षा है. भाजपा में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ विद्रोह के दौर में पार्टी के सामने मुश्किलों का दौर है.
हिमाचल प्रदेश की 3 सीटों में से 2 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है. देहरा सीट से सीएम सुक्खू की पत्नी 9,399 वोटों से चुनाव जीतीं तो वहीं नालागढ़ सीट से कांग्रेस के हरदीप सिंह बावा ने बीजेपी के के. एल. ठाकुर को करीब 9 हजार वोटों से हराया. हमीरपुर में बीजेपी के आशीष शर्मा ने कांग्रेस के पुष्पेंद्र वर्मा को कड़े मुकाबले में 1571 वोटों से हराया. पहले ये तीनों सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों के पास थी.

छोटा चुनाव बड़े संदेश
7 राज्यों की 13 विधानसभा सीटों का चुनाव एक सर्वे जैसा था, जिस में पता चल गया कि पूरे देश में भाजपा के खिलाफ माहौल कायम है. भाजपा लोकसभा चुनाव की हार से कोई सबक नहीं ले पाई है. पश्चिम बंगाल में 4 विधानसभा सीटों पर सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने जीत हासिल की. रायगंज, बागदा, राणाघाट और मानिकतला सीट पर टीएमसी उम्मीदवारों ने शानदार जीत हासिल की है. रायगंज सीट से टीएमसी प्रत्याशी कृष्णा कल्याणी ने बीजेपी उम्मीदवार मानस कुमार घोश को 49 हजार वोटों से ज्यादा के अंतर से शिकस्त दी. वहीं बागदा सीट पर टीएमसी की उम्मीदवार मधुपर्णा ठाकुर ने 33,455 वोटों से जीत हासिल की. इस के अलावा राणाघाट से टीएमसी के मुकुट मणि ने बीजेपी के मनोज कुमार बिस्वास को करीब 39 हजार वोटों से हराया. मानिकतला सीट पर टीएमसी की सुप्ती पांडे ने बीजेपी के कल्याण चैबे को 41,406 वोटों से हराया.
पंजाब में जालंधर पश्चिम सीट से आम आदमी पार्टी के मोहिंदर भगत ने बीजेपी के शीतल अंगुरल को करीब 37 हजार वोटों से हराया. पहले यह सीट आम आदमी पार्टी के पास ही थी और शीतल ही यहां से विधायक थे लेकिन बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए जिस के बाद यहां उपचुनाव हुआ. बिहार की रुपौली सीट पर बड़ा उलटफेर हुआ है यहां निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह ने जेडीयू और आरजेडी जैसे दलों को पीछे छोड़ते हुए जीत हासिल कर ली है. बीमा भारती के जेडीयू में शामिल होने की वजह से यहां सीट रिक्त हुई थी. बीमा भारती ने लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था लेकिन वहां भी वह तीसरे नंबर पर रहीं.
तमिलनाडु की विकरावंडी सीट पर सत्ताधारी डीएमके ने जीत हासिल की है. डीएमके के अन्नियुर शिवा शिवाशनमुगम. ए ने पट्टाली मक्कल काची पार्टी के अन्बुमणि. सी को 50 हजार से अधिक वोटों से हराया. मध्य प्रदेश की अमरवाड़ा सीट पर भाजपा से कमलेश शाह 3,252 वोटों से जीत गए. पहले के विधानसभा चुनाव में अमरवाड़ा सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, लेकिन कमलेश प्रताप बाद में बीजेपी में शामिल हो गए जिस के बाद यह सीट खाली हो गई.

अब यूपी की बारी
यूपी में 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं. जब से लोकसभा चुनाव में भाजपा को केवल 33 सीटें ही मिली हैं पार्टी निराशा के दौर में है. इस के मुकाबले विपक्ष उत्साह में है. अब उत्तर प्रदेश में भी 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं. इन चुनावों से प्रदेश की राजनीति करवट लेगी. भाजपा बनाम विपक्ष की जगह अब यह लड़ाई भाजपा बनाम भाजपा हो गई है. भाजपा के अंदर ही विद्रोह के हालात है.
प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में जिस तरह से डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने सरकार और संगठन की मुद्दा उठाया उस के बाद से पर्दे के पीछे की लड़ाई खुल कर सामने आ गई है. भाजपा के विधायक रमेश मिश्रा, पूर्वमंत्री मोती सिंह, केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और सुभाष निशाद जैसे नेताओं के बयान पार्टी के अंदर सबकुछ ठीक नहीं है इस की गवाही दे रहे हैं. राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि भाजपा में अभी यह असंतोष की शुरूआत है. उपचुनाव के परिणाम आने के बाद इस में और तेजी आएगी.

सफल हो रही कांग्रेस की रणनीति
लोकसभा चुनाव प्रचार में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ओबीसी का जो मुद्दा उठाया वह जनता को समझ में आ गया. राहुल ने दूसरा मुद्दा रोजगार का उठाया वह युवाओं में लोकप्रिय हो गया है. अब युवाओं को समझ आ गया है कि उन के लिए मंदिर नहीं रोजगार जरूरी है. राहुल गांधी ने संविधान और आरक्षण खत्म करने की जो बात कही वह भी लोगों के दिल में घर कर गई है. राहुल गांधी द्वारा उठाए गए अग्निवीर जैसे मुद्दे अब लोगों को समझ आ रहे हैं. लोगों को समझ आ रहा है कि अब चुनाव में धर्म और मंदिर की राजनीति पर जनता से जुड़े मुद्दे भारी पड़ रहे हैं. केन्द्र की नई सरकार में कुछ बदलता नहीं दिख रहा है. नीट सहित बहुत परीक्षाओं में पेपर लीक की बात हुई. एनडीए सरकार ने लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी को बोलने नहीं दिया.
लगातार कई परीक्षाओं के कैंसल होने और कई परीक्षाओं के पेपर आउट होने से आम जनता का भरोसा टूट रहा है. नीट परीक्षा को ले कर आम लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि सरकार चाहती क्या है ? भ्रष्टाचार के मोर्चे पर सरकार असफल रही है. जब माहौल अपने पक्ष में नहीं होता तो विपक्ष को छोड़िए पार्टी के भीतर से भी असंतोष की आवाजें उठने लगती हैं. उत्तर प्रदेश में भाजपा के अंदर फैला अंसतोष बढ़ता ही जा रहा है.

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जिस तरह का माहौल बनाया जा रहा है उस से भाजपा की मुश्किलें बढ़ती दिख रही है. अगर योगी हटते हैं तो यह यूपी में कल्याण सिंह पार्ट 2 हो जाएगा. एक तरह से देखें तो भाजपा के अंदर धर्म की राजनीति को ले कर बहस शुरू हो गई है. एससी और ओबीसी नेताओं को समझ आ गया है कि जब तक धर्म का राज खत्म नहीं होगा पार्टी में उन को महत्व नहीं मिलेगा. ऐसे मे वह अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं. पार्टी की चुनावी हार के बाद बने माहौल ने उन को बोलने का मौका दे दिया है. ऐसे में अब उत्तर प्रदेश के 10 उपचुनाव प्रदेश की नई दिशा देने वाले होंगे.

दूसरों की सफलता से आप भी बहुत कुछ सीख सकते हैं

संघर्ष में आदमी अकेला होता है और सफलता में दुनिया उस के साथ होती है. ये बात सच है जिसजिस पर ये जग हंसा है, उसी ने एक दिन इतिहास लिखा है. लेकिन जो लोग इतिहास रच चुके हैं क्यों न उन के अनुभवों से सीखते हुए आगे बढ़ें और हम भी उन से इतिहास रचने का जज्बा लें. जैसे कि भारतीय हौकी के भूतपूर्व खिलाड़ी एवं कप्तान मेजर ध्यान चंद ने कहा था कि जीवन में जीत और हार तो होती रहती है, लेकिन हार हमेशा निराशा नहीं देती बल्कि आगे बढ़ने के लिए प्रेरित भी करती है. अगर हम इसे अपने जीवन में उतार लें तो कभी निराश नहीं होंगे. और यही बात अभी हाल ही में वर्ल्ड कप 2024 जीतने वाली हमारी इंडियन टीम ने भी साबित करके दिखाई है.

उन के लिए समय बड़ा बलवान होता है

सफल लोग हमेशा अपना हर काम समय पर करते हैं और कल पर नहीं टालते. यही उन की सफलता की सब से बड़ी कुंजी होती है.

सेल्फ कौन्फिडेंस भी होता है

ऐसे लोगों को खुद पर पूरा विश्वास होता है. कई बार असफल होने पर भी वे निराश नहीं होते बल्कि इसे एक एक्सपीरियंस की तरह लेते हैं. अगली बार और भी ज्यादा जोश से तैयारी करते हैं और सफल होते हैं.

बोलने से ज्यादा सुनने की कला में होते हैं माहिर

कहते हैं न कि समझदारी इसी में है कि कुछ भी बोलने से पहले सामने वाले की सुन लेना चाहिए और फिर अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए. सफल लोग यही करते हैं. वह अपनी अपनी नहीं कहते बल्कि सामने वाले की बात को सुन कर समझ कर ही किसी नतीजे पर पहुंचते हैं.

अपनों के लिए निकालते हैं समय

हम यहां बिजी थे वहां बिजी थे. ये सब तो बहाने हैं. अपनों के लिए टाइम मिल ही जाता है. जैसे की अभी हाल ही में सब ने देखा के वर्ल्ड कप 2024 में किस तरह विराट कोहली ने मैच जीतते ही अपने बिजी टाइम में से मैदान पर ही फोन निकाल कर अपनी बीवी और बेटी से बात की. सफल लोग ऐसा ही करते हैं वे अपनी सफलता में अपनी फैमिली को साथ ले कर चलते हैं तभी उन्हें मुश्किलों से उबरने में अपनी फैमिली का पूरा सपोर्ट भी मिलता है और यही बात उन की कामयाबी खूबसूरत बना देती है.

न्यू स्किल्स सीखते हैं

आज के समय में आ कर आप एक सफल व्यक्ति बनना चाहते हैं तो आप को अपनी स्किल सीखना बेहद ही जरूरी है. इसलिए आप को पहले ऐसी स्किल गेन करनी चाहिए जो आप को आसानी से पैसा कमा कर दे सके इसलिए आप पहले नौलेज लें फिर पैसा कमाने के बारे में सोचें.

दुनिया को बनाएं अपना विश्वविद्यालय

सीखना कभी बंद न करें. हर किसी से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है, इसलिए हर दिन कुछ नया ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करें.

सफलता क्रमिक है

रातोंरात सफलता मिलना वाकई दुर्लभ है. ज़्यादातर लोगों को एक बेहतरीन कैरियर बनाने में सालों, यहां तक कि दशकों लग जाते हैं. इस का रहस्य हर दिन कड़ी मेहनत करना है, और याद रखें कि छोटीछोटी जीत भी आप के जीवन को काफी हद तक बेहतर बना सकती है. समय के साथ, आप खुद को बड़े से बड़े लक्ष्य हासिल करते हुए पाएंगे.

जो दूसरों से जलते नहीं

सफल लोग दूसरों को देख जलते नहीं बल्कि उन से सीखने की कोशिश करते हैं. सिर्फ उन की सफलता से ही नहीं बल्कि गलतियों से भी सीखते हैं.

रहते हैं कूल कूल

अपने गुस्से पर कंट्रोल कर के मन को शांत रखना भी एक कला है जिसे सीखना बहुत जरुरी होता है. इस वजह से हम विपरीत परिस्थितयों का भी आसानी से मुकाबला कर माइंड को कूल रख के एक सही फैसले पर पहुंच सकते हैं.

प्लानिंग करते हैं फिर आगे बढ़ते हैं

कहते है न कि अपने हर कदम क साथ आगे लेने वाले चार कदम के बारे में पहले ही सोचने वाले लोगों को सफलता जल्दी मिलती है. ये बात सही भी है इसलिए अपने फ्यूचर प्लान पर पहले से ही काम कर लें और बैकअप प्लान भी बनाएं ताकि आप को पता हो कि एक बार असफल होने पर वापसी का रास्ता कहां से हो कर गुजरेगा.

अपनी हैल्थ के लिए सजग होते हैं

अगर आप शरीर से और मन से फिट है तभी आप अपने रस्ते में आने वाली बाधाओं को पार कर के सफलता हासिल करेंगे. हर सफल व्यक्ति अपनी सेहत का पूरा धयान रखता है.

मेहनती होते हैं

मेहनत सफलता की सब से बड़ी कुंजी होती है और आलस दुश्मन. इसलिए सफल लोगों के पीछे कई साल की कड़ी मेहनत है जो उन्हें सफलता के दरवाजे तक ले कर जाती है इसलिए मेहनत करने में कोई कमी न छोड़ें.

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

भले ही आप की हार तय हो लेकिन कोशिश करने से हार भी कब जीत में बदल जाएगी कुछ कहा नहीं जा सकता.

शादी में भावनाओं की जगह पैसों ने ले ली है

कुछ लड़के-लड़कियां अकसर पैसों के लिए शादी करते हैं. उन्‍हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन का होने वाले जीवनसाथी से मेंटल लेवल मैच करता भी या नहीं, उन के परिवार कैसे है वे इस पर धयान नहीं देते. लड़की संस्‍कारी है या नहीं. इस से कोई लेनादेना नहीं होता. अब लड़के वालों को लड़की बड़े घर की चाहिए ताकि दहेज मिल सके और लड़की वालों को लड़का अमीर चाहिए ताकि लड़की को घर का कोई काम न करना पड़े. वे अपनीअपनी लाइफस्टाइल अपग्रेड करने के लिए एकदूसरे का साथ चाहते हैं क्योंकि यही उन की जरुरत है.

पैसा देख कर हो रही हैं शादियां

एक जमाना था, अभी हाल ही में 1990 के आसपास जब भावनाओं का जोर था लोग अपनी भावनाओं के कारण अमीरगरीब सब तरह की लड़कियां लेने लगे थे लेकिन अब सब कमर्शियल हो गया है. लोग यह चाहते हैं कि मुझे बिना कमाई करे पैसे मिल जाएं. लड़का भी यही चाहता है और लड़कियां भी यही चाहती हैं. लड़कियों को लगता है लड़का अमीर है प्यार करें न करें पैसे वाला तो है. अब रिश्ते पैसों में तोले जा रहे हैं. जिस के पास पैसा है बड़ी गाड़ी है तो लड़की टिक जाती है और जिस दिन उस लड़के के पास पैसे खतम हो जाते हैं वो लड़की छोड़ के भाग जाती है. चाहे शादी हो चुकी हो या न हुई हो. यही समाज का सच है.

पहले प्यार पैसों का मोहताज नहीं था

पहले फर्स्ट नाइट पर पति अपनी पत्नी को जो भी उपहार देता था वह निजी होता था किसी को उस से कोई मतलब नहीं था फिर चाहे प्यार से दिया गुलाब का फूल हो या फिर गोल्ड की रिंग हो. लेकिन अब यह भी स्टेटस सिम्बल बन गया है. लड़की को अपनी सहेलियों और रिश्तेदारों को बताना होता है कि मुझे गिफ्ट में आई फोन मिला या डायमंड सेट मिला. यह अब एक स्टेटस सिम्बल बन गया है.

इसी तरह विवाह के बाद हनीमून पर जाना साथ में टाइम स्पेंड करने का मात्र एक बहाना था लेकिन अब यह भी स्टेटस सिम्बल हो गया है क्योंकि इस के पिक्स सोशल मीडिया पर शेयर किए जाते हैं. जो घूमने जितनी बड़ी इंटरनेशनल हौलिडे पर गया उतना ही ज्यादा उस महिला के पति ने उसे सर आंखों पर बैठाया हुआ है. अब सारा खेल पैसों का हो गया है जो ज्यादा पैसे वाला है वो ही प्यार करता है क्योंकि दुनिया और बीवी दिखावा देखती है भावनाए नहीं.

साल में 12 एनीवर्सरी मनाते हैं

पहले शादी की पहली वर्षगांठ का बहुत महत्त्व था. उस में बड़े बुजुर्गो का आशीर्वाद भी शामिल होता था. सब के लिए यह दिन खास होता था क्योंकि मन जाता था कि कपल हंसी खुशी अपनी शादी निभा रहे हैं लेकिन अब हर महीने ही शादी की फर्स्ट और सैकेंड एनीवर्सरी के नाम पर केक काटा जाता है और पिक्स सोशल मीडिया पर डाले जाते हैं.

अब पति अगर अपनी पत्नी के लिए जलेबी ले आए तो यह बात पत्नी को नहीं भाती, भले ही वह आप की मनपसंद चीज ही क्यों न हो. क्योंकि लड़की को केक काटते हुए फोटो सोशल मीडिया पर डालना है और जलेबी लो क्लास है. इसलिए वह अपने पति के द्वारा प्यार से लाए गए जलेबी को देख मुंह बना लेती है और केक का डिमांड करती है ताकि वह फोटो शेयर कर वाहवाही लूट सके.

खानदानी ज्वैलरी में भावनाएं थी

खानदानी जूलरी में भावनाएं थीं. लेकिन अब शादी से पहले ही लड़कियां उन्हें तुड़वा कर नए डिजाइन की ज्वैलरी बनवाने की डिमांड करने लगती है. ज्वैलरी पहले पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली एक विरासत थी जिसे सास की सास ने उन्हें दी और अब सास अपने खानदानी जेवर बहु को चढ़ाती है. ये परंपरा इसी तरह से चली आ रही थी. लेकिन अब बहू पहले ही कह देती है कि ये पुराना डिजाइन मुझे नहीं चाहिए, फिर उस के लिए नए गहने खरीदें जाते हैं तो फिर वह ज्वैलरी अब खानदानी विरासत नहीं सिर्फ ज्वैलरी बन कर रह जाती है जिसे सिर्फ फैशन के लिए पहना जाता है.

लड़के को कमाऊं लड़की चाहिए

पहले शादी के लिए अच्छा परिवार, संस्कार, गुणी अधिक चाहिए थी लेकिन अब इन सब में वह कोम्प्रोमाइज भले ही कर ले. लेकिन लड़की कमाने वाली हो ताकि लाइफस्टाइल अपग्रेड हो सकें.

पहले शादी के लिए एक अच्छा परिवार और अच्छे लड़की की तलाश होती थी जिस से गृहस्थी की गाड़ी सुचारु और आसानी से चल सके. लेकिन अब गृहस्थी और बच्चे भले ही नौकरों के भरोसे हो जाएं लेकिन बीवी तो कमाऊं ही चाहिए.

आसमान छूते चांदी के दाम! आखिर क्या है वजह?

सोना और चांदी दोनों को निवेश के साथ-साथ गहनों के रूप में भी प्रयोग किया जाता है. शादी में महिलाओं को जो जेवर मिलते हैं उन को स्त्रीधन कहा जाता है. गहने इसलिए भी महिलाएं साथ रखती हैं कि आर्थिक जरूरत में उस का प्रयोग कर सकें. अब बदलते दौर में चांदी का भाव सोने के मुकाबले अनुपातिक रूप से बढ़ रहा है. इस की कई वजहें हैं.

पिछले 6 माह में चांदी के दामों में तेज उछाल आया है. 14 फरवरी को चांदी का भाव ठीक 74,000 रुपए प्रति किलो था. जुलाई के दूसरे सप्ताह मे लखनऊ सर्राफा एसोसिएशन के विनोद महेश्वरी के अनुसार 15 जुलाई को इस का भाव 94,500 रूपए प्रतिकिलो हो गया है. मंहगाई की इतनी लंबी उछाल सोने ने भी नहीं लगाई है. चांदी के दाम लगातार तेजी से बढ़ रहे हैं. यह नए उच्चतम स्तर पर पहुंच रही है. चांदी का प्रयोग गहनों के साथ बड़े पैमाने पर इंडस्ट्री पर हो रहा है. सभी तरह के कंप्यूटर, फोन, औटोमोबाइल और इक्विपमैंट में चांदी का प्रयोग हो रहा है.

पिछले कुछ समय से चांदी के दाम लगातार तेजी से बढ़ रहे हैं. यह नए उच्चतम स्तर 94,500 रुपए किलो पर पहुंच गई है. तेजी का यह मौजूदा दौर करीब 6 महीने पहले शुरू हुआ. 14 फरवरी को चांदी का भाव ठीक 74,000 रुपए प्रति किलो था. भारत में सोने और चांदी का प्रयोग सब से अधिक गहनों में होता था. महिलाएं गहनों का प्रयोग अधिक करती थी.

अब चांदी के गहनों पर सोने का कलर चढ़ा कर गहने भी तैयार होने लगे हैं. यह सोने जैसे दिखते हैं पर इन की कीमत सोने से कम होती है. चांदी में तेजी का एक कारण यह भी है. सोने का भाव बढ़ने से गहनों के शौकीनों ने चांदी का रुख किया है. इस में बड़ी संख्या नौजवानों की है. इस से चांदी की डिमांड बढ़ रही है और उस का असर कीमतों पर भी दिख रहा है. शादियों में भी इस की मांग बढ़ गई है. युवाओं के बीच चांदी से बने गहनों की डिमांड बढ़ी है. हाथ, गले और पैरों में पहने जाने वाली ज्वैलरी में चांदी का प्रयोग होने लगा है.

दूसरा कारण यह है कि दुनिया भर में राजनीतिक और आर्थिक उथलपुथल है. इस वजह से पिछले कुछ समय के दौरान सोने की कीमतें काफी तेजी से बढ़ी हैं. भारत समेत दुनिया भर के केंद्रीय बैंक भी गोल्ड रिजर्व बढ़ा रहे हैं. जिस से आने वाली मुश्किलों का मुकाबला किया जा सके. भारत में चांदी की डिमांड पूरी करने में हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड की अहम भूमिका है.

इलैक्ट्रौनिक्स इंडस्ट्री में चांदी का बढ़ता प्रयोग

सोने और चांदी का जिक्र भले ही एक साथ होता हो, लेकिन चांदी को हमेशा ही कमतर आंका जाता है. इन का इस्तेमाल साथ-साथ भी होता है. और इन का इस्तेमाल अलगअलग भी होता है. चांदी सोने के मुकाबले कम कीमती है. इस वजह से इस का दाम भी कम रहता है. सोने का गहनों और निवेश में ज्यादा इस्तेमाल होता है. चांदी का जेवरात से ज्यादा इलैक्ट्रौनिक्स इंडस्ट्री में प्रयोग होता है. जैसे इलैक्ट्रिक स्विच, सोलर पैनल और आरएफआईडी चिप्स बनाने में इस का सब से अधिक प्रयोग होता है. इस वजह से पिछले साल चांदी की ग्लोबल डिमांड में करीब 11 प्रतिशत का उछाल आया था.

चांदी में उछाल का एक बड़ा कारण इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन में इस का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है. इस साल दुनियाभर में चांदी की डिमांड 1.2 अरब औंस तक पहुंचने का अनुमान है. चांदी की औद्योगिक डिमांड लगातार बढ़ रही है. इस का सोलर पैनल, इलैक्ट्रौनिक्स और पावर सैक्टर में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है.

सरकार लगातार सोलर एनर्जी पर फोकस कर रही है. इस से भी चांदी की डिमांड में भारी तेजी है, क्योंकि यह सोलर पैनल को बनाने में चांदी का प्रयोग होता है. चांदी का फोटोवोल्टिक्स (पीवी) के रूप में प्रयो दुनियाभर में बढ़ रहा है. यह तकनीक धूप को सीधे बिजली में कन्वर्ट करती है.

इस से जाहिर है कि चांदी की तेज डिमांड बनी रहेगी और उस की कीमतों में उछाल आएगा. बाजार की गतिविधियां बता रही है कि चांदी की कीमतों में उछाल का दौर बना रहेगा. ऐसे में अगर निवेश के हिसाब से चांदी की खरीददारी करना चाहते हैं तो यह एक अच्छा निवेश भी हो सकता है. चांदी का निवेश गहनों की जगह पर सिक्कों में करें. इस की प्योरिटी का ध्यान रखें. चांदी में मिलावट हो जाती है. ऐसे में प्योरिटी का सख्त जरूरत होती है.

काला पति नहीं चाहिए , कोर्ट ने कहा ” cruelty”

अभी तक पत्नी के काला रंग से पति को शिकायत होती थी. मध्य प्रदेश के जबलपुर में पति के काला रंग से परेशान पत्नी ने अलग रहने का फैसला किया है.

समाज में एक कहावत बहुत प्रचलित है कि ‘घी का लड्डू टेढ़ा भला’ यानि लड़का कैसा भी हो अच्छा ही माना जाता है. खासकर घर परिवार शादी विवाह में ऐसे उदाहरण बहुत दिए जाते हैं. लड़का अगर काला है तो भी घर वाले परेशान नहीं होते हैं. वहीं जब लड़की काली हो तो उस की शादी की चिंता उस के पैदा होते ही होने लगती है. कई बार शादी टूटने का बड़ा कारण लड़की की रंगरूप होता है. अब हालात बदल रहे हैं. लड़कियों की संख्या तो कम हो ही रही है वह आत्मनिर्भर भी हो कर अपने फैसले खुद कर रही हैं. ऐसे में वह काले रंग के लड़के के साथ भी शादी कर के नहीं रहना चाहती.

यह बात और है कि कई जोड़े ऐसे भी हैं जो काले गोरे के रंग को छोड़ कर खुशीखुशी रह रहे हैं. कई गोरी पत्नियों को अपने काले रंग वाले पति में आकर्षण नजर आता है. वह उन के साथ खुश रहती हैं. मध्य प्रदेश के जबलपुर में रहने वाले रमेश कुमार नामक युवक ने पुलिस मे शिकायत दर्ज कराई कि पत्नी उस के काले रंग को ले कर ताने मारती है और अब उस ने अलग रहने का फैसला कर लिया है. वह उसे छोड़ कर चली गई है. रमेश की शिकायत पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज करने से पहले पत्नी के साथ परामर्श करना सही समझा है. उसे बुला कर मामला समझेगी.
यह मामला खुल कर सामने आ गया है. इसलिए उदाहरण के लिए इस को सामने रखा जा रहा है. समाज में कई पतिपत्नी ऐेसे हैं जिन के बीच रंग एक बड़ी परेशानी बन रही है. लड़के के तो तमाम मामले हैं जहां सांवली पत्नी से उस को शिकायत होती है. वह तलाक भी मांग लेता है. लड़की को बिना तलाक के छोड़ देता है. दूसरी पत्नी रख लेता है. बहुत सारे उदाहरण समाज में मौजूद हैं. पति के सांवले होने पर पत्नी उसे छोड़ दे ऐसे मामले भी अब आने लगे हैं.

लड़कियों की चाहत बढ़ रही हैं

लड़कियां पढ़ लिख कर आगे बढ़ रही है. नौकरी कर रही है. उन का भी अपना सोशल सर्किल हो रहा है. उन को भी अपनी चाहते पूरी करने का मन होता है. ऐसे में वह अपनी पंसद का लड़का ही चुनना चाहती है. आज के दौर में शादी के लिए लड़के और लड़की की खोज सोशल मीडिया पर बनी साइड्स पर होती है. जहां पर रूप, रंग, नौकरी, आदतें सबकुछ देखने समझने का प्रयास होता है. दूसरी चीजें तो छिपाई भी जा सकती है पर रंग और रूप छिपाया नहीं जा सकता है. कई बार ऐसा होता है कि बढ़ती उम्र का दबाव, अच्छी नौकरी और घर परिवार के दबाव में आकर लड़कियां समझौता कर लेती हैं.

जब शादी के बाद यह साथ चलती है. सोशल मीडिया पर साथसाथ फोटो आते हैं तो देखने के एकदम विपरीत होते हैं. ऐसे में थोड़ी दिक्कत आती है. समाज का एक बड़ा हिस्सा दिखावा पंसद करता है. उन के लिए लड़कालड़की का रंग भी दिखावे में आता है. शादी के लिए लड़कालड़का चुनाव करते समय उन के समान गुणों स्वभाव को देखना चाहिए. जहां तक हो सके समान सोच वाले का चुनाव ही हों. इस में रूपरंग को भी सामने रखना चाहिए. कहते है 19-20 का फर्क तो चल सकता है लेकिन 18 और 24 का फर्क हो तो साथसाथ चलना मुश्किल हो जाता है. शादी के लिए चुनाव करते समय इस का ख्याल रखें.

कई बार रंग में बहुत अधिक फर्क होने का प्रभाव बच्चों पर भी पड़ता है. एक बच्चा गोरा तो एक काला हो जाता है. आपस में उन के बीच भी परेशानी होती है. यह बात और है कि कैरियर और सफलता में रंग रूप का प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन देखने में फर्क पड़ता है और समाज उस को अलग नजर से देखता है. कानून भी इस को ले कर अलग नजरिया रखता है.

क्या कहती है अदालत

बेंगलुरु कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि अपने पति की त्वचा का रंग ‘काला’ होने के कारण उस का अपमान करना क्रूरता है और यह उस व्यक्ति को तलाक की मंजूरी दिए जाने की ठोस वजह है. उच्च न्यायालय ने 44 वर्षीय व्यक्ति को अपनी 41 वर्षीय पत्नी से तलाक दिए जाने की मंजूरी देते हुए कहा कि उपलब्ध साक्ष्यों की बारीकी से जांच करने पर निष्कर्ष निकलता है कि पत्नी काला रंग होने की वजह से अपने पति का अपमान करती थी और वह इसी वजह से पति को छोड़ कर चली गई थी.

उच्च न्यायायल ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ए) के तहत तलाक की याचिका मंजूर करते हुए कहा, ‘इस पहलू को छिपाने के लिए उस ने (पत्नी ने) पति के खिलाफ अवैध संबंधों के झूठे आरोप लगाए. ये तथ्य निश्चित तौर पर क्रूरता के समान हैं.’ बैंगलुरु के रहने वाले इस दंपति ने 2007 में शादी की थी और उन की एक बेटी भी है. पति ने 2012 में बैंगलुरु की एक पारिवारिक अदालत में तलाक की याचिका दायर की थी.

महिला ने भी भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (विवाहित महिला से क्रूरता) के तहत अपने पति तथा ससुराल वालों के खिलाफ एक मामला दर्ज कराया था. उस ने घरेलू हिंसा कानून के तहत भी एक मामला दर्ज कराया और बच्ची को छोड़ कर अपने मातापिता के साथ रहने लगी. उस ने पारिवारिक अदालत में आरोपों से इनकार कर दिया और पति तथा ससुराल वालों पर उसे प्रताड़ित करने का आरोप लगाया. पारिवारिक अदालत ने 2017 में तलाक के लिए पति की याचिका खारिज कर दी थी, जिस के बाद उस ने उच्च न्यायालय का रुख किया था.

न्यायमूर्ति आलोक अराधे और न्यायमूर्ति अनंत रामनाथ हेगड़े की खंडपीठ ने कहा, ‘पति का कहना है कि पत्नी उस का काला रंग होने की वजह से उसे अपमानित करती थी. पति ने यह भी कहा कि वह बच्ची की खातिर इस अपमान को सहता था.’ उच्च न्यायालय ने कहा कि पति को ‘काला’ कहना क्रूरता के समान है. उस ने पारिवारिक अदालत के फैसले को रद्द करते हुए कहा, ‘पत्नी ने पति के पास लौटने की कोई कोशिश नहीं की और रिकौर्ड में उपलब्ध साक्ष्य यह साबित करते हैं कि उसे पति का रंग काला होने की वजह से इस शादी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. इन दलीलों के संदर्भ में यह अनुरोध किया जाता है कि पारिवारिक अदालत विवाह भंग करने का आदेश दें.’

काला रंग होने से लड़की को व्यवहारिक दिक्कतें हो सकती हैं. इन बातों को शादी से पहले समझना चाहिए. जिस से कोर्ट और पुलिस तक मामले न पहुंचे. जिस तरह से लड़कियों की संख्या घट रही है और जन्मदर में गिरावट आ रही है ऐसे मसले आम होंगे. लड़कियां अपनी पसंद के लड़कों को खोजेंगी, ऐसे में केवल लड़का होने से काम नहीं चलने वाला. उसे भी अपने रूपरंग और स्मार्टनेस और कैरियर की तरफ ध्यान देना होगा. पत्नी ज्यादा सुदंर हो तो पति खुद भी कुंठा का शिकार होता रहता है. उसे भी साथ चलने में दिक्कत होती है. ऐसे में जरूरी है कि जोड़ा मेल का हो. बेमेल जोड़े में परेशानी ज्यादा होती है

शादी कर लो भगवान जाग गए हैं

दीवाली के बाद बजने वाले पटाखों की आवाजों से ही मैं जान गया कि ‘भगवान’ जाग गए हैं. यह आतिशबाजी उन के स्वागत के लिए की जा रही है. 4 माह की गहन निद्रा के बाद अंगड़ाई ले कर वे उठ गए हैं. अब हिंदुओं का इंतजार खत्म हुआ. देवताओं ने इस दौरान शादी करनेकरवाने पर लगाई गई पाबंदी हटा दी है. अब अटके हुए प्रेम प्रकरण या सगाइयां अपनी मंजिल पा लेंगे. पंडेपुरोहित, बैंडबाजे वाले, टैंट वाले और कैटरिंग वाले फिर से अपनेअपने मूल व्यापार में व्यस्त हो जाएंगे. अभी तक बेचारे पेट पालने के लिए चार माह से मन मार कर दूसरे काम कर रहे थे. भगवान ने उन्हें अपने असली काम करने का परवाना दे दिया है. भिड़ जाओ अपने पुश्तैनी धंधे में. चार माह का इंतजार कोई कम नहीं होता. अब कमाई करो जब तक कि हम फिर से सो नहीं जाते.

स, सभी जुट जाते हैं अपनेअपने काम में. कहीं ऐसा न हो कि सोचनेसोचने में समय निकल जाए और भगवान फिर से सो जाएं. लड़केलड़कियों की जन्मपत्रिकाएं खंगाली जाने लगती हैं. उम्मीदवारों की जन्मराशि देख कर मुहूर्त निकाले जाने लगते हैं. लड़केलड़की में खोट को नजरअंदाज करने की नौबत आने लगती है. अगर इस बार चूक गए तो कहीं कुंआरे ही न रह जाएं. पंडितजी अपनी डायरी देखने लगते हैं कि कौन सी तारीख को वे उपलब्ध हैं और कितना समय दे सकते हैं. मैरिज हौल के लिए वरवधू के पिता भागदौड़ करने लगते हैं. रिश्तेदार एडवांस में छुट्टी की अर्जियां देने लगते हैं. कैटरिंग मैन्यू और मेहमानों की संख्या के हिसाब से सामान और पैकेज व डील्स बताने लगते हैं.

बैंड वाले बैंड के आकार को ले कर अपनी दर बताने लगते हैं. मेहमानों की सूची बनने लगती है. सवाल उठता है कि डीजे कितने डैसिबल का शोर बजाएगा और कौनकौन से डांस होंगे. मेहंदी रचाने वालों के हाथपैर जोड़ने की नौबत आ जाती है. मुसीबत तो तब होती है जब वर तो तय हो जाता है पर घोड़ा नहीं मिलता.

भगवान ने ढेरों इंसान तो बना दिए पर गिनती के घोड़े क्यों बनाए? बरात के आगेआगे कौनकौन नाचेगा या नाचेगी, इस की सूची बनने लगती है. गानों की भी सूची तैयार की जाने लगती है. इस बात पर वादविवाद होता है कि सड़क पर नाचतेनाचते कितनी देर का जाम लगाया जाए ताकि मंडप पर समय पर पहुंच सकें. वर मंडली को कौन सी शराब परोसी जाए, इस पर चर्चा होने लगती है. लेनदेन की शर्तों पर गुपचुप ‘हां’ ‘न’ होती हैं.

विवाह के निमंत्रणकार्ड छापने वाले भी पहले से कंपोज और टाइपसैट किए रटेरटाए वाक्य फिर से छापने लगते हैं, ‘भेज रहे हैं प्रियजन निमंत्रण तुम्हें बुलाने को. ओ मानस के हंस, तुम भूल न जाना आने को.’ और अंत में तुतलाते हुए बच्चों की मनुहार, ‘जलूल जलूल आना’. न तो निमंत्रणकार्डों का मैटर बदला और न ही विवाह की रीत. यानी सारे रुके हुए काम अब वर्तमान काल में होने लगते हैं.

रावण के भाई कुंभकरण के साल में

6 माह सोने का वर्णन तो सभी ने पढ़ा है, लेकिन मुझे विश्वास है कि देवताओं के

4 माह सोने का वर्णन किसी धर्मप्राण जीव ने भी कहीं नहीं पढ़ा होगा. सवाल यह है कि आखिर देवताओं को 4 माह तक ‘सुलाने’ का और्डर किस ने दिया होगा? शायद देवताओं ने खुद ही अपनी छुट्टी तय की हो और पंडों को बता दिया हो. पंडों ने अपने वारिसों को बता दिया हो और वारिस भले बदलते रहते हों लेकिन ‘भगवान’ का सोने का सीजन वही रहता है.

हो सकता है कुंभकरण को आधे साल सोता देख देवताओं के मन में भी प्रतिस्पर्धा की भावना जागी हो. सोचा होगा, वह राक्षस हो कर 6 माह सोता है तो हम दुनिया चलाने वाले हो कर 4 महीने क्यों नहीं सो सकते. हो सकता है कि उन्होंने कुंभकरण को पछाड़ने के लिए 8 माह तक सोने का टारगेट बनाया हो लेकिन मंदिरों में होने वाले भजन नामक शोर से परेशान हो कर कटौती कर दी हो. 4 माह ही सही, खर्राटे तो भर लें. आखिर इतनी बड़ी दुनिया चलाने वाले को भी आराम की जरूरत तो होती ही है.

 

आम आदमी सप्ताह में एक दिन छुट्टी रख सकता है तो उसे बनाने वाला उस की हैसियत के अनुसार साल में 4 महीने की छुट्टी नहीं ले सकता क्या? सूर्य भगवान और उन का कर्ज नियमित रूप से चुकाने वाला कर्जदार चंद्रमा भी छुट्टी मनाता है, लेकिन वे कभी किसी की शादी के आड़े नहीं आते. वे अपनी ड्यूटी ईमानदारी से निभाते हैं. इसीलिए उन के भक्त और भजन कम हैं. इन्हें छोड़ कर बाकी के सारे भगवान इन 4 माह के अलावा बीचबीच में झपकियां भी ले लेते हैं. मैं समझ जाता हूं कि अब शादियां किसी भी हालत में नहीं हो सकेंगी. चूंकि भगवानों का हर शादी में उपस्थित रहना जरूरी है और पहली निमंत्रणपत्रिका उन्हें ही देते हैं, इसलिए उन के जागने का इंतजार करो. सिर्फ पंडे ही उन्हें जागते हुए देखने की दिव्यदृष्टि रखते हैं. वे भगवान के नाम से फरमान निकालते हैं और धड़ाधड़ शादियां करवाने में भिड़ जाते हैं. मातापिता भी उन की राय मान कर अपनी बेटियों को जल्दीजल्दी रवाना करने लगते हैं.

हिंदुओं की मान्यता है कि उन के 33 कोटि (यानी श्रेणी, करोड़ नहीं) देवीदेवता हैं. इस हिसाब से तो एक माह में पौनेतीन देवीदेवता तो आराम से हो सकते हैं. शेष दुनिया चला सकते हैं. मेरा कहना है कि आपसी समझबूझ से काम लें तो वे बारहों महीने दुनिया चला सकते हैं और इंसान की गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं. बस, टाइमटेबल बनाना है. शिवरात्रि को महादेव जागें तो रामनवी को राम, जन्माष्टमी को कृष्ण तो हनुमान जयंती को हनुमान जागते रहें. वैसे भी, अपने बर्थडे के दिन झांझमंजीरों के शोर में ये सो ही नहीं सकते. बाकी सब पैर पसार कर सोएं. लेकिन नहीं. ये भी सांसदों की तरह अडि़यल रवैया अपनाते हैं. किसी के साथ ऐडजस्ट नहीं करते. माखन चुराने वाला, लड्डू चुराने वाले के लिए अपनी नींद खराब नहीं करेगा. त्रिशूल वाला सुदर्शन चक्र वाले के लिए अपना शैड्यूल नहीं बिगाड़ना चाहता. शेर की सवारी करने वाली, कमल पर बैठने वाली के लिए छुट्टी पर नहीं जाना चाहती. सब गड़बड़ है. एक बार तय कर लिया कि बारीबारी से ड्यूटी नहीं देंगे तो नहीं ही देंगे. सोएंगे तो सभी एकसाथ. जागेंगे भी तो सभी एकसाथ. कोई क्या बिगाड़ लेगा? तो भैया नोट कर लो, दुनिया चलाने वाले सोते भी हैं. लेकिन यह भी नोट कर लो कि उन के सोने के साथ दुनिया नहीं सो जाती. उस का काम बदस्तूर चलता रहता है. स्कूलकालेज चालू रहते हैं. दफ्तरों में काम होता है, बच्चे पैदा होते हैं, व्यापार होता है, बसें, कार, रेलें चलती हैं, हत्या, बलात्कार, चोरी, डकैती, भ्रष्टाचार, दलबदल, तस्करी, धोखाधड़ी वगैरा भी आम दिनों की तरह होते रहते हैं.

इन चार महीनों में न तो पाप थकता है और न ही पुण्य सुस्ताता है. फिर शादी ने ऐसा क्या अपराध किया है जो भगवानों के जागने पर ही हो पाती है? और क्या इन दिनों मंदिरों पर ‘डौंट डिस्टर्ब’ की तख्ती लगी होती है? नहीं, वहां तो हमेशा जैसी ही भीड़ लगी रहती है. किसी खास तिथि को ऐसी भगदड़ मचती है कि कई लोग सीधे भगवान के पास पहुंच जाते हैं. इस दौरान पैदा हुए बच्चे को मंदिर में ले जाने की क्या तुक है? भगवान तो सो रहा है. वह आशीर्वाद कैसे देगा?

परीक्षा के दिनों में विद्यार्थी सिनेमाघरों में कम, मंदिरों में ज्यादा नजर आते हैं. आशीर्वाद किस से लें? भगवान तो खर्राटे मार रहे होते हैं. शायद इसीलिए सभी सफल नहीं हो पाते. मंदिर का पुजारी असफल विद्यार्थी को दिलासा देता है कि परीक्षा वालों ने देवताओं के सोने के दिनों में परीक्षा रखी, इसलिए उन का आशीर्वाद नहीं मिल पाया. वे शिक्षा प्रणाली बदलने के बजाय परीक्षाओं की तारीख बदलने का सुझाव देते हैं.

अजीब बात है. भगवान तो सो रहे होते हैं. लेकिन मंदिरों में चढ़ावा बदस्तूर आ रहा है. चांदी का सिंहासन, सोने का मुकुट, हीरे की अंगूठी और भी न जाने क्याक्या. भजनआरती नामक शोर भी जारी है. कमाल है जिस के हजारवें हिस्से में भी इंसान सो नहीं पाता, उस शोर में भगवान आराम से सो कैसे सकते हैं. नींद की कौन सी गोली खाते होंगे वे? अगर उन की नींद टूटती तो वे पुजारियों और भक्तों को डांटते, ‘कमबख्तो, सोने दो. हम तुम्हारे लिए काम करते हैं. बंद करो यह शोरशराबा. यह हमारे सोने का सीजन है. नहीं माने, तो जागने पर एकएक को देख लेंगे.’ लेकिन सभी के सभी सो रहे होते हैं.

अजीब बात तो यह है कि दूसरे धर्मों के देवता कभी नहीं सोते. मजाल है जो एक पल के लिए भी सो जाएं. कर्तव्यनिष्ठ भगवान हैं उन के. वे जानते हैं कि उन के धर्मावलंबी अक्लमंद हैं, अपने निर्णय खुद लेने में समर्थ हैं इसलिए, वे शादी करनेकरवाने का फरमान जारी करवाने के पचड़े में नहीं पड़ते. जब हमारे भगवानों के सोते हुए भी वही काम होते रहते हैं जो उन के जागते हुए होते हैं, तो फिर उन की नींद खुलने का इंतजार करते रहने में कोई समझदारी है क्या? नहीं न. तो फिर सोने दो उन्हें?

बीवी का मर्डर

रविवार की सुबह 7 बजे के लगभग नोएडा का धनवानों का इलाका सेक्टर-15ए अभी सोया पड़ा था. वीआईपी इलाका होने के कारण यहां सवेरा यों भी जरा देर से उतरता है. चहलपहल थी तो सिर्फ सेक्टर-2 के पीछे के इलाके में. सवेरे 4 बजे से ही

यहां मछलियों का बाजार लग जाता था. इसी बाजार के पास फाइन चिकन एंड मीट शौप है, जहां सवेरे 4 बजे से ही बकरों को काटने और उन्हें टांगने का काम शुरू हो जाता था.

सामने स्थित डीटीसी बस डिपो से बसें बाहर निकलने लगी थीं. डिपो के एक ओर नया बास गांव है, जिस में स्थानीय लोगों के मकान हैं. डिपो के सामने पुलिस चौकी है, जिस के बाहर

2-3 सिपाही बेंच पर बैठ कर गप्पें मार रहे थे और चौकी के अंदर बैठे सबइंसपेक्टर आशीष शर्मा झपकियां ले रहे थे.

गांव के पीछे के मयूरकुंज की अलकनंदा इमारत की पांचवी मंजिल का एक फ्लैट सेक्टर-62 की एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले धनंजय विश्वास का था. फ्लैट में धनंजय अपनी पत्नी रोहिणी के साथ रहते थे. रोहिणी दिल्ली में पंजाब नेशनल बैंक में प्रोबेशनरी औफिसर थी. वह दिल्ली की रहने वाली थी. धनंजय के औफिस का समय सवेरे 9 बजे से शाम 6 बजे तक था. वह औफिस अपनी कार से जाता था. रोहिणी शाम साढ़े 6 बजे तक घर लौट आती थी.

पति पत्नी शाम का खाना साथ ही खाया करते थे. हां, छुट्टी के दिनों दोनों मिल कर हसंतेखेलते खाना बनाते थे. धनंजय हर रविवार को सेक्टर-2 में लगने वाली मछली बाजार से मछलियां और फाइन चिकन एंड मीट शौप की दुकान से मीट लाता था. पहली अप्रैल की सुबह 6 बजे फ्लैट की घंटी बजने पर दूध देने वाले गनपत से दूध ले कर धनंजय फटाफट तैयार हो कर मीट लेने के लिए निकल गया. रोहिणी को वह सोती छोड़ गया था. वह कार ले कर निकलने लगा तो  चौकीदार ने हंसते हुए पूछा, ‘‘साहब, आज रविवार है न, मीट लेने जा रहे हैं?’’

धनंजय ने हंस कर कार आगे बढ़ा दी थी.

फाइन चिकन एंड मीट शौप पर आ कर उस ने 2 किलोग्राम मीट और एक किलोग्राम कीमा लिया. इस के बाद उस ने रास्ते में मछली और नाश्ते के लिए अंडे, ब्रेड, मक्खन और 4 पैकेट सिगरेट लिए. लगभग साढ़े 7 बजे वह फ्लैट पर लौट आया. ऊपर पहुंच कर उस ने ‘लैच की’ से दरवाजा खोला. दरवाजे के अंदर अखबार पड़ा था, जिसे नरेश पेपर वाला दरवाजे के नीचे से अंदर सरका गया था. अखबार उठाते हुए उस ने रोहिणी को आवाज लगाई, ‘‘उठो भई, मैं तो बाजार से लौट भी आया.’’

उस ने डाइनिंग टेबल पर सारा सामान रख कर 2 बड़ी प्लेटें उठाईं. एक में उस ने गोश्त और दूसरे में मछली निकाली. सारा सामान डाइनिंग टेबल पर रख कर वह बैडरूम में घुसा तो उस की चीख निकल गई, ‘‘रोहिणी?’’

धनंजय की सुंदर पत्नी रोहिणी रक्त से सराबोर बैड पर मरी पड़ी थी. उस के गले, सीने और पेट से उस वक्त भी खून रिस रहा था, जिस से सफेद बैडशीट लाल हो गई थी. कुछ क्षणों बाद धनंजय रोहिणी का नाम ले कर चीखता हुआ बाहर की ओर भागा. उस के अड़ोसपड़ोस में 3 फ्लैट थे. दाईं ओर के 2 फ्लैटों में सक्सेना और मिश्रा तथा बाईं ओर के फ्लैट में रावत रहते थे. पागलों की सी अवस्था में धनंजय ने सक्सेना के फ्लैट की घंटी पर हाथ रखा तो हटाया ही नहीं. कुछ क्षणों बाद तीनों पड़ोसी बाहर निकले. वे धनंजय की हालत देख कर दंग रह गए. उस के कंधे पर हाथ रख कर सक्सेना ने पूछा, ‘‘क्या हुआ विश्वास?’’

सक्सेना रिटायर्ड कर्नल थे. उन्होंने ही नहीं, मिश्रा और रावत ने भी किसी अनहोनी का अंदाजा लगा लिया था. धनंजय ने हकलाते हुए कहा, ‘‘रो…हि…णी.’’

सक्सेना, उन का बेटा एवं बहू, मिश्रा और रावत उस के फ्लैट के अंदर गए. बैडरूम का हृदयविदारक दृश्य देख कर सक्सेना की बहू डर के मारे चीख पड़ी. अपने आप को संभालते हुए सक्सेना ने कोतवाली पुलिस को फोन कर घटना की सूचना दी. कोतवाली में उस समय ड्यूटी पर सबइंसपेक्टर दयाशंकर थे.

दयाशंकर ने मामला दर्ज कर के मामले की सूचना अधिकारियों को दी और खुद 2 सिपाही ले कर अलकनंदा पहुंच गए. तब तक आशीष शर्मा भी 2 सिपाहियों के साथ वहां पहुंच गए थे. लोगों के बीच से जगह बनाते हुए पुलिस सीधे पांचवीं मंजिल पर पहुंची. पुलिस के पहुंचते ही धनंजय उठ कर खड़ा हो गया. थोड़ी ही देर में फोरैंसिक टीम के सदस्य भी आ पहुंचे. इंसपेक्टर प्रकाश राय भी आ पहुंचे थे.

प्रकाश राय ने सीधे ऊपर न जा कर इमारत को गौर से देखना शुरू किया. इमारत में ‘ए’ और ‘बी’ 2 विंग थे. दोनों विंग के लिए अलगअलग सीढि़यां थीं. धनंजय ‘ए’ विंग में रहता था. इमारत के गेट पर ही वाचमैन के लिए एक छोटी सी केबिन थी, जिस में से आनेजाने वाला हर व्यक्ति उसे दिखाई देता था. इमारत के चारों ओर घूमते हुए पीछे एक जगह रुक कर प्रकाश राय ने सिक्योरिटी इंचार्ज खन्ना से पूछा, ‘‘ये कमरे किस के हैं?’’

‘‘सफाई कर्मचारियों और वाचमैन के .’’

‘‘कितने वाचमैन हैं?’’

‘‘2 हैं. इन की ड्यूटी 2 शिफ्टों में होती है. सुबह 8 बजे से रात 8 बजे और रात 8 बजे से सवेरे 8 बजे तक.’’

‘‘दोनों के नाम क्या हैं और ये रहते कहां है?’’

‘‘कल नाइट शिफ्ट पर नारायण था. वह सेक्टर-10 में रहता है. मौर्निंग शिफ्ट में जो गार्ड अभी पौने 8 बजे आया है, उस का नाम भास्कर है, वह खोड़ा में रहता है.’’

‘‘अच्छा, यहां स्वीपर कितने हैं?’’

‘‘एक ही है साहब, रणधीर और उस की पत्नी देविका. ये दोनों अपने दोनों बच्चों के साथ यहीं रहते हैं. बाहर का काम रणधीर और टायलेट वगैरह साफ करने का काम देविका करती है.’’

खन्ना से बात करतेकरते प्रकाश राय इमारत के गेट पर पहुंचे. तभी एसएसपी, एसपी और सीओ भी आ गए. इन्हीं अधिकारियों के साथ डौग स्क्वायड की टीम भी आई थी. ऊपर जांच चल रही थी. प्रकाश राय एक सिपाही के साथ नीचे रुक गए, बाकी सभी अधिकारी ऊपर चले गए. प्रकाश राय चौकीदार नारायण, जो रात की ड्यूटी पर था, उसी के रहते हत्या हुई थी. उस से पूछताछ करने लगे, पर उस से प्रकाश राय के हाथ कोई सूत्र नहीं लगा. उस ने धनंजय को मीट लेने जाते और लौटते देखा था बस.

प्रकाश राय के ऊपर पहुंचते ही दयाशंकर ने धनंजय से उन का परिचय कराया. धनंजय के कंधे पर हाथ रख कर सहानुभूति जताते हुए प्रकाश राय ने कहा, ‘‘धनंजय, तुम्हारे साथ जो हुआ, उस का मुझे बेहद अफसोस है. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि अगर तुम्हारा सहयोग मिला तो मैं खूनी को कानून के शिकंजे में जकड़ कर रहूंगा.’’

प्रकाश राय ने खून से लथपथ रोहिणी की लाश देखी. कमरे का निरीक्षण करते. वह सिर्फ एक ही बात सोच रहे थे कि हत्यारा मुख्य द्वार से आया था या दरवाजे से लग क र जो पैसेज है उस में से किचन पार कर के आया था? पैसेज की जांच के लिए वह किचन के दरवाजे पर आए तो किचन टेबल पर ढेर सारा मीट और मछलियां देख कर चौंके. खाने वाले सिर्फ 2 और सामान इतना. प्रकाश राय बैडरूम में लौट आए. एसआई दयाशंकर और आशीष शर्मा अलमारी को सील कर रहे थे. आश्चर्य की बात यह थी कि अलमारी का लौकर खुला था. उस में चाबियां लटक रही थीं. अलमारी का सारा सामान ज्यों का त्यों था, जो इस बात का प्रमाण था कि हत्यारे ने सिर्फ लौकर का माल साफ किया था.

बैडरूम में दूसरी अलमारी भी थी. उसे हाथ नहीं लगाया गया था. दयाशंकर ने प्रकाश राय की ओर प्रश्नभरी नजरों से देखते हुए धनंजय से कहा, ‘‘मिस्टर विश्वास, आप जरा यह अलमारी खोलने की मेहरबानी करेंगे?’’

धनंजय ने प्रकाश राय को दयाशंकर की ओर देखते हुए पूछा, ‘‘मैं इन चाबियों को हाथ लगा सकता हूं?’’

फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट ने गर्दन हिलाते हुए अनुमति दे दी. धनंजय ने पहली अलमारी से चाबी निकाल कर दूसरी अलमारी खोली. प्रकाश राय ने गौर से देखा, अलमारी का सारा सामान ज्यों का त्यों था. पहली अलमारी के लौकर से चोरी गए सामान के बारे में पूछा, ‘‘तुम्हारे अंदाज से कितना सामान चोरी गया होगा?’’

‘‘रोहिणी के जेवरात ही लगभग 30-40 लाख रुपए के थे. 40-42 हजार नकदी भी थी.’’

‘‘इतनी नकदी तुम घर में रखते हो?’’

‘‘नहीं साहब, कल शनिवार  था, रोहिणी ने 40 हजार रुपए बैंक से निकाले थे. बैंक में हम दोनों का जौइंट एकाउंट है. कल सवेरे यह रकम मैं एक टूरिस्ट कंपनी में जमा कराने वाला था.’’

‘‘कारण?’’

‘‘अगले महीने मैं और रोहिणी घूमने जाने वाले थे.’’ कहते हुए धनंजय ने प्रकाश राय को चेकबुक थमा दी. उन्होंने चेकबुक देखा. वह सही कह रहा था. आशीष शर्मा को चेकबुक देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘आशीष, इस चेकबुक को भी कब्जे में ले लो और ‘एवन ट्रैवेल्स’ के एजेंट का स्टेटमेंट भी ले लो. रकम बरामद होने पर प्रमाण के रूप में यह सब काम आएगा.’’

प्रकाश राय किचन में आए. एसआई दयाशंकर और आशीष शर्मा किचन का निरीक्षण कर रहे थे. प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, ‘‘धनंजय साहब, बुरा मत मानिएगा. मैं एक बात जानना चाहता हूं. तुम और रोहिणी सिर्फ 2 लोग हो, इस के बावजूद इतना सारा गोश्त और मछली?’’

‘‘साहब, आज मेरे घर पार्टी थी. मेरे औफिस के 2 अधिकारी आशीष तनेजा और देवेश तिवारी अपनीअपनी बीवियों के साथ खाना खाने आने वाले थे. बारीबारी से हम तीनों एकदूसरे के घर अपनी पत्नियों सहित जमा होते हैं और खातेपीते हैं. इस रविवार को मेरे यहां इकट्ठा होना था.’’

‘‘तुम हमेशा फाइन चिकन एंड मीट शौप से ही मीट लाते हो?’’

‘‘जी सर.’’

थोड़ी देर में आशीष तनेजा और देवेश तिवारी अपनीअपनी पत्नियों के साथ धनंजय के घर आ पहुंचे. रोहिणी की हत्या के बारे में सुन कर वे कांप उठे. सक्सेना उन्हें अपने फ्लैट में ले गए. सवेरे 9 बजे धनंजय के मातापिता भी अलकनंदा आ पहुंचे थे.

अधिकारियों ने आपस में सलाहमशविरा किया और अन्य सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद एसएसपी और एसपी तो चले गए, लेकिन सीओ और इंसपेक्टर प्रकाश राय सहयोगियों के साथ कोतवाली आ गए. सभी चाय पीतेपीते इसी मर्डर केस के बारे में विचारविमर्श करने लगे.

पोस्टमार्टम के बाद लाश धनंजय और उस के घर वालों को सौंप दी गई थी. अंतिम संस्कार में प्रकाश राय तो फोर्स के साथ गए ही थे, अपने कुछ लोगों को भी ले गए थे, जो अंतिम संस्कार में आए लोगों की बातें सुन रहे थे.

विद्युत शवदाहगृह में 2 व्यक्तियों की बातचीत सुन कर आशीष तनेजा के कान खड़े हो गए. एक आदमी कह रहा था, ‘‘कमाल की बात है. आनंदी दिखाई नहीं दी?’’

‘‘सचमुच हैरानी की बात है भई, वह तो रोहिणी की बहुत पक्की सहेली थी. लगता है, उसे किसी ने खबर नहीं दी. रोहिणी के पास तो उस का फोन नंबर भी था.’’

‘‘आनंदी दिखाई देती तो मिस्टर आनंद के भी दर्शन हो जाते.’’

‘‘शनिवार को बैंक में आनंदी का फोन भी आया था?’’

आनंदी को ले कर कुछ ऐसी ही बातें देवेश तिवारी ने भी सुनीं. उधर मेहता ने जो कुछ सुना, वह इस प्रकार था—

‘‘विवाह आगरा में था, इसीलिए दोनों आगरा गए थे.’’

‘‘आगरा तो वे हमेशा आतेजाते रहते थे.’’

‘‘वैसे विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ था.’’

ऐसा ही कुछ नागर ने भी सुना था. इन लोगों ने अपने कानों सुनी बातें फोन पर प्रकाश राय को बता दीं.

यह पता नहीं चल रहा था कि आगरा में किस का विवाह था. प्रकाश राय के लिए यह जानना जरूरी भी नहीं था. एक विचार जो जरूर उन्हें सता रहा था, वह यह कि रोहिणी की पक्की सहेली होने के बावजूद आनंदी उस के अंतिम दर्शन करने भी नहीं आई थी. और तो और आनंदी का पति भी दाहसंस्कार में शामिल नहीं हुआ था. इन दोनों का न होना लोगों को हैरान क्यों कर रहा था? अब इस आनंदी को कहां ढूंढ़ा जाए?

प्रकाश राय स्वयं आशीष शर्मा को ले कर चल पड़े. रास्ते में उन्होंने उसे आनंदी के बारे में जो कुछ सुना था, बता दिया. रोहिणी के बैंक के मैनेजर रोहित बिष्ट से मिल कर प्रकाश राय ने अपना परिचय दिया और वहां आने का कारण बताते हुए कहा, ‘‘जो कुछ हुआ, बहुत बुरा हुआ. हमें तो दुख इस बात का है कि हत्यारे का हमें कोई सुराग नहीं मिल रहा है.’’

‘हम तो आसमान से गिर पड़े. सवेरे 10 बजे आते ही फोन पर रोहिणी की हत्या की खबर मिली.’’

‘‘तुम्हें किस ने फोन किया था?’’

‘‘सक्सेना नाम के किसी व्यक्ति ने. पर एकाएक हमें विश्वास ही नहीं हुआ. हम ने मिसेज विश्वास के घर फोन किया. तब पता चला कि रोहिणी वाकई अब इस दुनिया में नहीं रही. हम अलकनंदा गए थे. मैं दाहसंस्कार में जा नहीं पाया. हां, मेरे कुछ साथी जरूर गए थे.’’

‘‘आप जरा बुलाएंगे उन्हें?’’

कुछ क्षणों बाद ही 5-6 कर्मचारी मैनेजर के कमरे में आ गए. उन्होंने प्रकाश राय से उन का परिचय कराया. बातचीत के दौरान प्रकाश राय ने वहां उपस्थित हैडकैशियर सोलंकी से पूछा, ‘‘शनिवार को मिसेज विश्वास ने कुछ रुपए निकाले थे क्या?’’

‘‘हां, 40 हजार…’’

‘‘खाता किस के नाम था?’’

‘‘मिस्टर और मिमेज विश्वास का जौइंट एकाउंट है.’’

‘‘आप ने मिसेज विश्वास को जो रकम दी, वह किस रूप में थी?’’

‘‘5 सौ के नए कोरे नोटों के रूप में दी थी. उन नोटों के नंबर भी मेरे पास हैं.’’

प्रकाश राय ने आशीष शर्मा से नोटों के नंबर लेने और उस चेक को कब्जे में लेने को कहा.

कुछ क्षण रुक कर उन्होंने अपना अंदाज बदलते हुए कहा, ‘‘बिष्ट साहब, विश्वास के यहां हमें बारबार ‘बैंक, आनंदी, कल फोन किया था’- ऐसा सुनाई पड़ रहा था. आप के यहां कोई आनंदी काम..?’’

‘‘नहीं,’’ वहां मौजूद एक अधिकारी ने कहा, ‘‘वह आनंदी गौड़ है. रोहिणी की फास्टफ्रैंड. वह यहां काम नहीं करती.’’

‘‘अच्छा, यह बात है. बारबार आनंदी का नाम सुनने पर मुझे लगा कि वह यहीं काम करती होगी. आप को मालूम है, यह आनंदी कहां रहती है?’’

‘‘निश्चित रूप से तो मालूम नहीं, पर वह दिल्ली में कहीं रहती है. 2-3 बार वह बैंक भी आई थी. शनिवार को उस का फोन भी आया था. शायद एक, डेढ़ महीना पहले ही उन की जानपहचान हुई थी. मिसेज विश्वास ने ही मुझे बताया था?’’

‘‘यहां किसी ने मिसेज आनंदी को रोहिणी की हत्या के बारे में बताया तो नहीं है? अगर नहीं तो अब कोई नहीं बताएगा. क्या किसी के पास उस का नंबर है? अगर नहीं है तो रोहिणी के काल डिटेल्स से तलाशना पड़ेगा.’’

मैनेजर ने बैंक की औपरेटर से इंटरकौम पर बात की तो प्रकाश राय को आनंदी का फोन नंबर मिल गया. इस के बाद उन्होंने उस नंबर से आनंदी के घर का पता मालूम कर लिया.

‘‘पता कहां का है?’’ मैनेजर से पूछे बिना नहीं रहा गया.

‘‘साउथ एक्स का. अच्छा मिसेज गौड़ ने किसलिए फोन किया था?’’

‘‘औपरेटर ने बताया कि किसी वजह से मोबाइल पर फोन नहीं मिला तो मिसेज गौड़ ने लैंडलाइन पर फोन किया था. वह रविवार को मिसेज विश्वास को शौपिंग के लिए साथ ले जाना चाहती थीं. पर रोहिणी ने कहा था कि उस के यहां कुछ मेहमान खाना खाने आ रहे हैं, इसलिए वह नहीं आ सकेगी.’’

इतने में ही आशीष शर्मा और मिश्रा वहां आ पहुंचे. आशीष अपना काम पूरा कर चुके थे. प्रकाश राय ने रोहिणी का बियरर चेक ले कर उसे देखा और बडे़ ही सहज ढंग से पूछा, ‘‘मिस्टर बिष्ट, आप के बैंक में सेफ डिपौजिट वाल्ट की सुविधा है?’’

‘‘हां, है. आप को कुछ…?’’

‘‘नहीं…नहीं, मैं ने यों ही पूछा. अब हम चलते हैं.’’

प्रकाश राय और आशीष शर्मा बैंक से निकल कर साउथ एक्स में जहां आनंदी रहती थी, वहां पहुंचे. प्रकाश राय ने ऊपर पहुंच कर एक फ्लैट के दरवाजे की घंटी बजाई. कुछ क्षणों बाद दरवाजा खुला. प्रकाश राय को समझते देर नहीं लगी कि उन के सामने आनंदी और उस के पति आनंद गौड़ खड़े हैं और दोनों बाहर जाने की तैयारी में हैं. मिस्टर गौड़ ने आश्चर्य से प्रकाश राय को देखा. प्रकाश राय ने शांत भाव से कहा, ‘‘मुझे आनंद गौड़ से मिलना है.’’

आनंद ने आनंदी को और आनंदी ने आनंद को देखा. 2 अपरिचितों को देख कर वे हड़बड़ा गए थे.

‘‘मैं ही आनंद गौड़ हूं, आप…?’’

‘‘हम दोनों नोएडा पुलिस से हैं. एक जरूरी काम से आप के पास आए हैं. घबराने की कोई बात नहीं है. मुझे आप से थोड़ी जानकारी चाहिए.’’

‘‘आइए, अंदर आइए.’’

प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह ने घर में प्रवेश किया. ड्राइंगरूम में बैठते हुए प्रकाश राय ने कहा, ‘‘मिस्टर आनंद, जिन लोगों का पुलिस से कभी सामना नहीं होता, उन का आप की तरह घबरा जाना स्वाभाविक है. मैं आप से एक बार फिर कहता हूं, आप घबराइए मत. बस, आप मेरी मदद कीजिए.’’

बातचीत के दौरान आनंद से प्रकाश राय को मालूम हुआ कि आनंद के परिवार में मातापिता, भाईबहन और पत्नी, सभी थे. 2 साल पहले आनंद और आनंदी का विवाह हुआ था. करोलबाग में आनंद के पिता की करोलबाग शौपिंग सेंटर नामक एक शानदार दुकान थी . टीवी, डीवीडी प्लेयर, फ्रिज, पंखा आदि कीमती सामानों की यह दुकान काफी प्रसिद्ध थी. मंगलवार को दुकान बंद रहती थी. इसीलिए मिस्टर आनंद घर पर मिल गए थे. पतिपत्नी अपने किसी रिश्तेदार के यहां पूजा में जा रहे थे कि वे वहां पहुंच गए थे. आनंद ने अपने निजी जीवन के बारे में सब कुछ बता दिया तो आनंदी ने प्रकाश राय से कहा, ‘‘अब तो बताइए कि आप हमारे घर कौन सी जानकारी हासिल करने आए हैं?’’

‘‘मिसेज आनंदी, आप यह बताइए कि आप मिसेज रोहिणी विश्वास को जानती हैं?’’

प्रकाश राय के मुंह से रोहिणी का नाम सुन कर आनंद और आनंदी भौचक्के रह गए.

‘‘हां, वह मेरी सहेली है. क्यों, क्या हुआ उसे?’’

‘‘आप की और रोहिणी की मुलाकात कब और कहां हुई थी?’’

‘‘हमारी जानपहचान हुए लगभग एक महीना हुआ होगा. फरवरी के अंतिम सप्ताह में हम दोनों घूमने आगरा गए थे. आगरा से दिल्ली आते समय शताब्दी एक्सप्रेस में हमारी मुलाकात हुई थी.’’

‘‘लेकिन जानपहचान कैसे हुई?’’

‘‘हम आगरा स्टेशन से गाड़ी में बैठे थे. रोहिणी और उस के पति भी वहीं से गाड़ी में बैठे थे. उन की सीट हमारे सामने थी. बांतचीत के दौरान हमारी जानपहचान हुई. हम दोनों के पति गाड़ी चलते ही सो गए थे. हम एकदूसरे से बातें करने लगी थीं. फिर हम बचपन की सहेलियों की तरह घुलमिल गईं.’’

‘‘सारे रास्ते तुम दोनों के पति सोते ही रहे?’’

‘‘अरे नहीं, दोनों जाग गए थे. फिर हम ने एकदूसरे का परिचय कराया. रोहिणी को गाजियाबाद उतरना था, हमें नई दिल्ली. उतरने से पहले हम दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने घर का पता और फोन तथा मोबाइल नंबर दे दिए थे.’’

‘‘तुम अपने पति के साथ रोहिणी के घर जाती थी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘रोहिणी के पति तुम्हारे घर आया करते थे?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘इस का कारण?’’ प्रकाश राय ने आनंद की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘कारण…?’’ आनंद गड़बड़ा गया, ‘‘एक तो दुकान के कारण मुझे समय नहीं मिलता था, दूसरे न जाने क्यों मुझे मिस्टर विश्वास से मिलने की इच्छा नहीं होती थी.’’

‘‘रोहिणी से आखिरी बार तुम कब मिली थीं?’’ प्रकाश राय ने आनंदी से पूछा.

‘‘पिछले हफ्ते मैं रोहिणी के बैंक गई थी.’’

‘‘अच्छा रोहिणी को तुम ने आखिरी बार फोन कब किया था और क्यों?’’

‘‘शनिवार को. लाजपतनगर में शौपिंग के लिए मैं ने उसे बुलाया था. पर उस ने मुझे बताया कि रविवार को उस के यहां कुछ लोग खाने पर आने वाले थे.’’

अब तक आनंद दंपति ने जो कुछ बताया था, वह सब सही था. लेकिन ॐन के एक प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा था. इतनी पूछताछ के बाद बेचैन हुए आनंद ने प्रकाश राय से पूछा, ‘‘आप रोहिणी के बारे में इतनी पूछताछ क्यों कर रहे हैं?’’

 

गंभीर स्वर में प्रकाश राय ने कहा, ‘‘लोग हम से सत्य को छिपाते हैं, लेकिन हमारा काम ही है लोगों को सच बताना. परसों सवेरे 6 से 7 बजे के बीच किसी ने छुरा घोंप कर रोहिणी की हत्या कर दी है.’’

‘‘नहीं..,’’ आनंदी चीख पड़ी. लगभग 10 मिनट तक आनंदी हिचकियां लेले कर रोती रही. उस के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. आनंदी के शांत होने पर प्रकाश राय ने पूरी घटना सुनाई और अफसोस जाहिर करते हुए कहा, ‘‘अभी तक हमें कोई भी सूत्र नहीं मिला है. हमारी जांच जारी है, इसलिए रोहिणी के सभी परिचितों से मिल कर हम पूछताछ कर रहे हैं. कल उस का अंतिम संस्कार भी हो गया है.’’

‘‘लेकिन सर, किसी ने हमें इस घटना की सूचना क्यों नहीं दी?’’ आनंद ने पूछा.

‘‘मैं भी यही सोच रहा हूं मिस्टर आनंद, तुम्हारी पत्नी और रोहिणी में बहुत अच्छी मित्रता थी. फिर भी धनंजय ने तुम्हें खबर क्यों नहीं दी, जबकि उस ने कर्नल सक्सेना को तमाम लोगों के फोन नंबर दे कर इस घटना की खबर देने को कहा था. है न आश्चर्य की बात?’’

‘‘मैं क्या कह सकता हूं?’’

‘‘मैं भी कुछ नहीं कह सकता मिस्टर आनंद. कारण मैं धनंजय से पूछ नहीं सकता. पूछने से लाभ भी नहीं है, क्योंकि धनंजय कह देगा, मैं तो गम का मारा था, मुझे यह होश ही कहां था? अच्छा आनंदी, मैं तुम से एक सवाल का उत्तर चाहता हूं. रोहिणी ने कभी अपने पति के बारे में कोई ऐसीवैसी बात या शिकायत की थी तुम से?’’

‘‘नहीं, कभी नहीं. वह तो अपने वैवाहिक जीवन में बहुत खुश थी.’’

प्रकाश राय का प्रश्न और आनंदी का उत्तर सुन कर आनंद ने जरा घबराते हुए पूछा,  ‘‘आप धनंजय पर ही तो शक नहीं कर रहे हैं?’’

‘‘नहीं, उस पर मैं शक कैसे कर सकता हूं, अच्छा, अब हम चलते हैं. जरूरत पड़ने पर मैं फिर मिलूंगा.’’

मंगलवार, 5 मई. रोहिणी कांड की गुत्थी ज्यों की त्यों बरकरार थी. प्रकाश राय को कई लोगों पर शक था, पर प्रमाण नही थे. सिर्फ शक के आधार पर किसी को पकड़ कर बंद नहीं किया ज सकता. दोपहर बाद प्रकाश राय के औफिस पहुंचने से पहले ही उन की मेज पर फिंगरप्रिंट्स ब्यूरो की रिपोर्ट रखी थी. रिपोर्ट देखतेदेखते उन के मुंह से निकला, ‘‘अरे यह…तो.’’ घंटी बजा कर इन्होंने आशीष शर्मा को बुलाया.

‘‘आशीष शर्मा, रोहिणी मर्डर केस का अपराधी नजर आ गया है.’’ कह कर प्रकाश राय ने उन्हें एक नहीं, अनेक हिदायतें दीं. आशीष शर्मा और उन के स्टाफ को महत्पूर्ण जिम्मेदारी सौंप कर योजनाबद्ध तरीके से समझा कर बोले,  ‘‘जांच को अब नया मोड़ मिल गया है. भाग्य ने साथ दिया तो 2-3 दिनों में ही अपराधी पूरे सबूत सहित अपने शिकंजे में होगा. समझ लो, इस केस की गुत्थी सुलझ गई है. बाकी काम तुम देखो. मैं अब जरा दूसरे केस देखता हूं.’’

उत्साहित हो कर आशीष शर्मा निकल पड़े. 7 मई की सुबह 9 बजे दयाशंकर अपने स्टाफ के साथ औफिस पहुंचे. पिछली रात प्रकाश राय के निर्देश के अनुसार आशीष शर्मा पूरी तरह मुस्तैद थे. थोड़ी देर बाद प्रकाश राय के गाड़ी में बैठते ही गाड़ी सेक्टर-15 की ओर चल पड़ी.

करीब साढ़े 9 बजे प्रकाश राय और आशीष शर्मा अलकनंदा स्थित धनंजय के घर पहुंचे. प्रकाश राय को देख कर धनंजय जरा अचरज में पड़ गया. उस के पिता भी हौल में ही बैठे थे. उस की मां और बहन अंदर कुछ काम में व्यस्त थीं. ज्यादा समय गंवाए बगैर प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, ‘‘मि. विश्वास, तुम जरा मेरे साथ बाहर चलो. रोहिणी के केस में हमें कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं. हम तुम्हें दूर से ही एक व्यक्ति को दिखाएंगे. तुम ने अगर उसे पहचान लिया तो समझो इस हत्या में उस का हाथ जरूर है. उस के पास से तुम्हारी संपत्ति भी मिल जाएगी. अब उसे पहचानने के लिए हमे तुम्हारी मदद की जरूरत है.’’

‘‘ठीक है, आप बैठिए. मैं 10 मिनट में तैयार हो कर आता हूं.’’ कह कर धनंजय अंदर चला गया और प्रकाश राय उस के पिता के साथ गप्पें मारने लगे. गप्पें मारतेमारते उन्होंने बड़े ही सहज ढंग से पास रखी टेलिफोन डायरी उठाई, उस के कुछ पन्ने पलटे और यथास्थान रख दिया. फिर वह टहलते हुए शो केस के पास गए. उस में रखा चाबी का गुच्छा उन्हें दिखाई दिया. शो केस  में रखी कुछ चीजों को देख कर वह फिर सोफे पर आ बैठे.

15-20 मिनट में धनंजय तैयार हो गया. प्रकाश राय और आशीष शर्मा के साथ निकलने से पहले उस ने शो केस में से सिगरेट का पैकेट, लाइटर, पर्स, चाबी और रूमाल लिया. प्रकाश राय और आशीष शर्मा धनंजय को साथ ले कर निरुला होटल की ओर चल पड़े. लगभग 10 मिनट बाद उन की गाड़ी होटल के निकट स्थित बैंक के सामने जा कर रुकी. गाड़ी रुकते ही प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, ‘‘विश्वास, हम ने तुम्हारी सोसायटी के वाचमैन नारायण को गिरफ्तार कर लिया है. इस समय वह हमारे कब्जे में है. इस बैंक के सेफ डिपौजिट लौकर डिपार्टमेंट में 2 चौकीदार काम करते हैं. इन में से हमें एक पर शक है. मुझे विश्वास है कि उस ने नारायण के साथ मिल कर चोरी और हत्या की है. हम उसे दरवाजे पर ला कर तुम्हें दिखाएंगे. देखना है कि तुम उसे पहचानते हो या नहीं?’’

धनंजय को ले कर प्रकाश राय बैंक में दखिल हुए और बैंक के लौकर डिपार्टमेंट में पहुंचे. वहां मौजूद 2-4 लोगों में से प्रकाश राय ने एक व्यक्ति से पूछा, ‘‘आप…?’’

‘‘मैं बैंक मैनेजर हूं.’’

‘‘आप इन्हें जानते हैं?’’

‘‘हां, यह धनंजय विश्वास हैं.’’

‘‘आप के बैंक में इन का खाता है?’’

‘‘खाता तो नहीं है, लेकिन कल दोपहर 3 बजे इन्होंने लौकर नंबर 106 किराए पर लिया है.’’

‘‘आप जरा वह लौकर खोलने का कष्ट करेंगे?’’

बैंक मैनेजर सुरेशचंद्र वर्मा ने लौकर के छेद में चाबी डाल कर 2 बार घुमाई, पर लौकर एक चाबी से खुलने वाला नहीं था, क्योंकि दूसरी चाबी धनंजय के पास थी. प्रकाश राय धनंजय से बोले, ‘‘मिस्टर विश्वास, तुम्हारी जेब में चाबी का जो गुच्छा है, उस में लौकर नंबर 106 की दूसरी चाबी है. उस से इस लौकर को खोलो.’’

धनंजय घबरा गया. उस ने चाबी निकाल कर कांपते हाथों से लौकर खोल दिया. प्रकाश राय ने लौकर में झांक कर देखा और फिर धनंजय से पूछा, ‘‘यह क्या है मिस्टर विश्वास?’’

धनंजय ने गरदन झुका ली. प्रकाश राय ने लौकर से कपड़े की एक थैली बाहर निकाली. उस थैली में धनंजय के फ्लैट से चोरी हुए सारे जेवरात और 5 सौ रुपए के नोटों का एक बंडल भी था, जिस पर रोहिणी के पंजाब नेशनल बैंक की मोहर लगी थी. इस के अलावा एक और चीज थी उस में, एक रामपुरी छुरा.

‘‘मिस्टर विश्वास, यह सब क्या है?’’ प्रकाश राय ने दांत भींच कर पूछा.

एक शब्द कहे बिना धनंजय ने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक कर रोते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं अपना गुनाह कबूल करता हूं. रोहिणी का खून मैं ने ही किया था.’’

दरअसल, हुआ यह था कि मंगलवार को प्रकाश राय को जो फिंगरप्रिंट्स रिपोर्ट मिली थी, उस के अनुसार फ्लैट में केवल रोहिणी और धनंजय के ही प्रिंट्स मिले थे.  इसीलिए प्रकाश राय की नजरें धनंजय पर जम गई थीं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, रोहिणी की मौत आधी रात के बाद 2 बजे से सुबह 4 बजे के बीच हुई थी.

जबकि धनंजय सवा 6 बजे से 7 बजे के बीच हत्या होने की बात कह रहा था? पूरा माजरा प्रकाश राय की समझ में धीरेधीरे आता जा रहा था. धनंजय को अपने ही घर में चोरी करने की क्या जरूरत थी? इस सवाल का जवाब भी प्रकाश राय की समझ में आ गया था. उन्होंने आशीष शर्मा को समझाते हुए कहा, ‘‘आशीष, धनंजय बहुत ही चालाक है. तुम एक काम करो,पिछले 2 दिनों से धनंजय बाहर नहीं गया है. आज भी वह घर पर ही होगा. कुछ दिनों बाद वह चोरी का सामान किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर जरूर रखेगा. उस का सारा घर हम लोगों ने छान मारा है. हो सकता है, उस ने बिल्डिंग में ही कहीं सामान छिपा कर रखा हो या फिर…

‘‘धनंजय जिस वक्त गोश्त लाने निकला था, उस समय उस ने सामान कहीं बाहर रख दिया होगा. पर उस ने कहां रखा होगा? आशीष कहीं ऐसा तो नहीं कि वह थैली ले कर नीचे उतरा हो और स्कूटर की डिक्की में रख दी हो? हो सकता है.’’ प्रकाश राय चुटकी बजाते हुए बोले, ‘‘वह थैली अभी उसी डिक्की में ही हो? तुम फौरन अपने स्टाफ सहित निकल पड़ो और धनंजय पर नजर रखो.’’

इस के बाद आशीष शर्मा ने अलकनंदा के आसपास अपने सिपाहियों को धनंजय पर निगरानी रखने के लिए तैनात कर दिया था. धनंजय अपने स्कूटर पर ही निकलेगा, यह आशीष शर्मा जानते थे. इसलिए उन्होंने स्कूटर वाले और टैक्सी वाले अपने 2 मित्रों को सहायता के लिए तैयार किया. सारी तैयारियां कर के वह अलकनंदा के पास ही एक इमारत में रह रहे अपने एक गढ़वाली मित्र के घर में जम गए.

5 मई का दिन बेकार चला गया. 6 मई को दोपहर के समय धनंजय के नीचे उतरते ही आशीष शर्मा सावधान हो गए. वह अपनी स्कूटर स्टार्ट कर के जैसे ही बाहर निकला, वैसे ही ही अपने सिपाहियों के साथ टैक्सी में बैठ कर वह उस के पीछे हो लिए. गोल चक्कर होते हुए धनंजय निरुला होटल के पास स्थित बैंक के सामने आ कर रुक गया. आशीष ने थोड़ी दूरी पर ही टैक्सी रुकवा दी. स्कूटर खड़ी कर के धनंजय ने डिक्की खोली और कपड़े की एक थैली निकाली. धनंजय के हाथ में थैली देख कर ही उन्होंने मन ही मन प्रकाश राय के अनुमान की प्रशंसा की.

थैली ले कर धनंजय के बैंक में घुसते ही आशीष ने अपने मित्र को बैंक में भेजा, क्योंकि यह जानना जरूरी था कि धनंजय का बैंक में खाता है या किसी परिचित से मिलने गया था. उन के मित्र ने लौट कर उन्हें बताया कि धनंजय मैनेजर के साथ लौकर वाले कमरे में गया है. इस से पहले सीधे मैनेजर की केबिन में जा कर उस ने एक फार्म भरा था.

धनंजय को खाली हाथ बाहर आते देख कर अपने 2 सिपाहियों को उस का पीछा करने के लिए कह कर आशीष शर्मा वहीं ओट में खड़े हो गए. धनंजय के वहां से जाते ही वह सीधे बैंक मैनेजर की केबिन में पहुंचे. अपना परिचय दे कर उन्होंने कहा, ‘‘अभी 5 मिनट पहले जिस व्यक्ति ने आप के यहां लौकर लिया है, वह वांटेड है. हमारे आदमी उस का पीछा कर रहे हैं. आप हमें सिर्फ यह बताइए कि आप से उस की क्या बातचीत हुई. ’’

‘‘धनंजय को एक महीने के लिए लौकर चाहिए  था. यहां उपलब्ध लौकर्स में से उस ने 106 नंबर लौकर पसंद किया. नियमानुसार फार्म भर कर एडवांस जमा किया और लौकर में एक थैली रख कर चला गया.’’

आशीष शर्मा ने बैंक से ही प्रकाश राय को फोन किया. इस के बाद बैंक मैनेजर से कहा, ‘‘यह व्यक्ति शायद कल फिर आए, तब इसे लौकर खोलने की इजाजत मत दीजिएगा. मैं कुछ सिपाही कल सवेरे बैंक खुलने से पहले ही यहां भेज दूंगा. वह यहां आया तो इसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा. अगर यह खुद नहीं आया तो हम इसे ले कर आएंगे.’’

धनंजय को बैंक ले जाने के लिए जब प्रकाश राय अलकनंदा पहुंचे थे तो वहां शो केस की वस्तुओं को देखने के बहाने उन्होंने चाबी के गुच्छे में लौकर नंबर 106 की चाबी देख ली थी. टेलीफोन के पास रखी धनंजय की टेलीफोन डायरी को उन्होंने केवल आनंदी का नंबर जानने के लिए यों ही उल्टापलटा था. ‘ए’ पर आनंदी का नंबर न पा कर उन्होंने ‘जी’ पर नजर दौड़ाने के लिए पन्ने पलटे, क्योंकि आनंदी का पूरा नाम आनंदी गौड़ था. मगर ‘एफ’ और ‘एच’ के बीच का ‘जी’ पेज गायब था. वह पेज फाड़े जाने के निशान मौजूद थे.

पकड़े जाने के थोड़ी देर बाद ही धनंजय ने अपने आप पर काबू पा लिया था. गहरी सांस ले कर उस ने कहा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, मैं ने ही अपनी बीवी की हत्या की है. उस के चरित्र पर मुझे लगातार शक रहता था. आगे चल कर मेरा शक विश्वास में बदल गया. लेकिन कुछ बातें अपनी आंखों से देखने पर मैं बेचैन हो उठा. मैं अपनी पत्नी को बेहद चाहता था, पर मुझे धोखा दे कर उस ने सब कुछ नष्ट कर दिया था. उस की चरित्रहीनता का कोई सबूत मैं नहीं दे सकता. मेरे पास एक ही रास्ता था, उसे हमेशा के लिए मिटा देने का. वही मैं ने किया भी.’’

प्रकाश राय धनंजय को कोतवाली ले आए. धनंजय ने बड़े योजनाबद्ध तरीके से रोहिणी का खून किया था. रविवार पहली तारीख को उस ने जानबूझ कर आशीष तनेजा और देवेश तिवारी को अपने घर बुलाया. रात 3 से 4 बजे के बीच रोहिणी की हत्या करने के बाद सवेरे उठ कर वह बड़े ही सहज ढंग से मटनमछली लाने गया, सिर्फ इसलिए कि कोई उस पर शक न करे. इतना ही नहीं, पुलिस को चकमा देने के लिए उस ने खुद चोरी भी की थी. चोरी का सारा सामान उस ने मटन लेने जाते समय स्कूटर की डिक्की में रख दिया था.

इस के बाद वह कुछ बताने को तैयार नहीं था. जब प्रकाश राय ने टेलीफोन डायरी का ‘जी’ पेज कैसे फटा, इस बारे में पूछा तो जवाब में उस ने सिर्फ 2 शब्द कहे, ‘‘मालूम नहीं.’’

धनंजय को अगले दिन कोर्ट में पेश करना था. उस रात प्रकाश राय देर तक औफिस में ठहरे थे. एक सिपाही से उन्होंने धनंजय को अपने पास बुलवाया और उसे कुर्सी पर बैठा कर बोले,‘‘धनंजय, मेरा काम पूरा हो गया है. कल तुम्हें जेल भेजने के बाद हमारी मुलाकात कोर्ट में होगी. मुझे मालूम है कि तुम कुछ न कुछ छिपा रहे हो. मैं सत्य जानने के लिए उत्सुक हूं. अब तुम मुझे कुछ भी बतोओगे, उस का कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि तुम्हारे सारे कागजात तैयार हो गए हैं. उस में परिवर्तन नहीं हो सकता है. तुम जो कुछ भी बताओगे, वह मेरे तक ही सीमित रहेगा. अब मुझे बताओ कि तुम ने आनंद और आनंदी को रोहिणी की हत्या की खबर क्यों नहीं दी और आनंदी के फोन नंबर का ‘जी’ पेज तुम ने क्यों फाड़ डाला?’’

धनंजय गंभीर हो गया. उस की आंखों में आंसू भर आए. कुछ क्षणों बाद खुद को संभालते हुए बोला, ‘‘जो सच है, मैं सिर्फ आप को बता रहा हूं. एक सुखी परिवार को नष्ट करना या बचाना, आप के हाथ में है. पर मुझे विश्वास है कि आप यह बात किसी और को नहीं बताएंगे.

‘‘आगरा में रोहिणी की मौसेरी बहन का विवाह था. उसी विवाह में हम आगरा गए थे. विवाह के बाद शताब्दी एक्सप्रेस से हम लौट रहे थे तो हमारी मुलाकात आनंद और आनंदी से हो गई. वे सामने की सीट पर बैठे थे. मैं 2 पैग पिए हुए था, फिर भी मुझे नींद नहीं आ रही थी. उस समय मेरी नींद उड़ गई थी.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘मेरे सामने बैठी आनंदी और कोई नहीं, मेरी प्रेमिका थी. हम दोनों एकदूसरे को जीजान से चाहते थे.’’

‘‘क्या?’’ प्रकाश राय की आंखें हैरानी से फैल गईं, ‘‘अच्छा, फिर क्या हुआ?’’

‘‘मेरी क्या हालत हुई होगी, आप अंदाजा लगा सकते हैं. पास में पत्नी बैठी थी और सामने प्रेमिका, वह भी अपने पति के साथ. मुझे देखते ही आनंदी भी परेशान हो गई थी. मैं असहज मानसिक अवस्था और बेचैनी के दौर से गुजर रहा था, वह भी उसी दौर से गुजर रही थी. सचसच कहूं तो हम दोनों ही अपने ऊपर काबू नहीं रख पा रहे थे.

‘‘इस मुलाकात के असर से उबरने में मुझे 4 दिन लगे. तब मुझे नहीं मालूम था कि एक चक्रव्यूह से निकल कर मैं दूसरे चक्रव्यूह में फंस गया हूं. तब मैं यह भी नहीं जानता था कि इस दूसरे चक्रव्यूह से निकलने के लिए मुझे रोहिणी की हत्या करनी पड़ेगी. खैर…

‘‘ट्रेन में आनंदी और रोहिणी की गप्पें जो शुरू हुईं तो थोड़ी देर बाद वे एकदूसरे की पक्की सहेली बन गईं. आनंदी 2-3 बार मेरे घर भी आई थी. खुदा का लाख शुक्र था कि हर बार मैं घर पर नहीं रहा. मैं आनंदी से मिलना भी नहीं चाहता था. मैं उस से संबंध बढ़ा कर रोहिणी को धोखा देना नहीं चाहता था. इसलिए रोहिणी और आनंदी की बढ़ती दोस्ती से मैं चिंतित था.’’

धनंजय सांस लेने के लिए रुका. प्रकाश राय को लगा, कुछ कहने के लिए वह अपने आप को तैयार कर रहा है. उन का अंदाजा गलत नहीं था. धनंजय भारी स्वर में बोला, ‘‘एक दिन ऐसी घटना घटी कि मैं पागल सा हो गया. मुझे लगा, मेरे दिमाग की नसें फट जाएंगी. अपने सिर को दोनों हाथों से थाम कर मैं जहां का तहां बैठ गया. अपने आप पर काबू पाना मुश्किल हो गया. मैं कंपनी के काम से सेक्टर-18 गया था. वहां एक होटल में मैं ने रोहिणी को एक युवक के साथ सटी हुई बैठी देखा, हकीकत जाहिर करने के लिए यह काफी था. मैं यह जानता था कि उस होटल में रूम किराए पर मिलते थे. मैं उस होटल से थोड़ी दूरी पर ही बैठ कर कल्पना से सब देखता रहा. खून कैसे खौलता है, मैं ने उसी वक्त महसूस किया. 12 बजे उस होटल में गई रोहिणी 4 बजे बाहर निकली थी.

‘‘इस के बाद कुछ दिनों की छुट्टी ले कर मैं ने रोहिणी का पीछा किया. अनेक बार रोहिणी मुझे उसी युवक के साथ दिखाई दी. वह युवक और कोई नहीं, आनंद था…आनंदी का पति.’’

धनंजय ने आंखों में भर आए आंसुओं को पोंछा. प्रकाश राय स्तब्ध बैठे थे, पत्थर की मूर्ति बने. थोड़ी देर बाद शांत होने पर धनंजय बोला, ‘‘कैसा अजीब इत्तफाक था. विवाह से पहले मेरी प्रेमिका के साथ मेरे शारीरिक संबंध थे और विवाह के बाद मेरी प्रेमिका के पति के साथ मेरी पत्नी के शारीरिक संबंध. आनंदी को तो मैं पहले से जानता था, लेकिन रोहिणी और आनंद की पहचान तो शताब्दी एक्सप्रेस में हुई थी. यात्रा के दौरान जिस चक्रव्यूह में मैं फंसा था, उस से निकलने के लिए मैं ने रोहिणी को हमेशा के लिए मिटा दिया और आनंदी मेरी नजरों के सामने न आए, इसीलिए मैं ने टेलीफोन डायरी से ‘जी’ पेज फाड़ दिया था. मुझे जो भी सजा होगी, इस का मुझे जरा भी रंज नहीं होगा. मैं खुशीखुशी सजा भोग लूंगा. बस यही है मेरी दास्तान.’’

इस केस की बदौलत आनंद और आनंदी से प्रकाश राय की जानपहचान हो गई थी. कुछ दिनों बाद आनंद से उन्हें एक ऐसी बात पता चली कि उन का सिर चकरा कर रह गया था. जबजब आनंद और आनंदी उन के सामने आते थे, वह बेचैन हो जाते थे और सोचने पर मजबूर हो जाते थे कि काश, धनंजय और आनंदी एवं रोहिणी और आनंद का विवाह हो गया होता.

एक दिन बातचीत में आनंद ने कहा, ‘‘मुझे धनंजय की सजा का दुख नहीं है. उसे सजा होनी भी चाहिए. मुझे दुख है तो रोहिणी का. मैं ने आप से कहा था कि रोहिणी की और मेरी मुलाकात शताब्दी एक्सप्रेस में हुई थी. रोहिणी को देख कर मैं अभेद्य चक्रव्यूह में फंस गया था. आगरा से दिल्ली तक की यात्रा के घंटे मैं ने कैसे बिताए, मैं ही जानता हूं, क्योंकि मेरे सामने बैठी रोहिणी कोई और नहीं, मेरी पूर्व प्रेमिका थी.’’

यह सुनते ही प्रकाश राय के होश फाख्ता होतेहोते बचे. विचित्र था संयोग और भयानक थी भाग्य की विडंबना. क्या सचमुच नियति के खेल में मनुष्य मात्र खिलौना होता है?

(कथा सत्य घटना पर आधारित है, किसी का जीवन बरबाद न हो, कथा में स्थानों एवं सभी पात्रों के नाम बदले हुए हैं)

पार्क वाली लड़की और आजकल की हीरोइनें

वे अपनी बैंच पर बैठे रहते हैं और वह लड़की उस पार्क के कोने में. देखा जाए तो दोनों में न कोई समानता है, न संबंध, फिर भी पता नहीं क्यों, पार्क के उस कोने में बैठी लड़की उन्हें बहुत अच्छी लगती है. उस लड़की को भी उन का उस बैंच पर बैठे रहना अखरता नहीं बल्कि आश्वस्त करता है, एक प्रकार की सुरक्षा प्रदान करता है. बस, एक यही सूत्र है शायद, जो इन दोनों को इस पार्क से जोड़े हुए है.

कैसी अजीब बात है, वे इस लड़की को देखदेख कर उस के बारे में बहुतकुछ बातें जान गए हैं, पर उस का नाम वे अब तक नहीं जान पाए. वह रोज इस पार्क में 5 बजे शाम को आ बैठती है. कल वह बसंती सूट पहन कर आई थी, परसों हलका हरा. कल वह जामुनी सूट पहन कर आएगी और परसों सफेद जमीन पर खिले नीले फूलों वाला.

जिस दिन वह बसंती सूट पहनती है उस दिन चुन्नी हलकी हरी होती है. हलके हरे सूट पर बसंती चुन्नी. जामुनी सूट पर सफेद चुन्नी और नीले फूलों पर वह नारंगी रंग की चुन्नी डाल कर आती है. वे माथे पर बिंदी नहीं लगाती. अगर लगाए तो उन का मन मचल जाए और वह मन ही मन गाने लगें, ‘चांद जैसे मुखड़े पर बिंदिया सितारा…’

ऐसा कटावदार चेहरा हो, और इतना गोरा रंग, ऐसा चौड़ा चमकता हुआ माथा हो और ऐसी कमान सी तनी हुई पतली, काली भौंहें और उन के बीच बिंदी न हो, जानें क्यों, उन्हें यह बात अच्छी नहीं लगती. उन का कई बार मन हुआ, कभी इस लड़की से कहें, ‘बिंदी लगाया करो न, बहुत अच्छी लगोगी.’ पर कह नहीं सके. उम्र का बहुत फासला है. यह फासला उन्हें ऐसा कहने से रोकता है. कहां 55-56 साल की ढलान पर खड़े पकी उम्र के, उम्रदराज खेलेखाए व्यक्ति और कहां यह 20-22 साल की खिलती धूप सी बिखरबिखर पड़ते यौवन वाली नवयौवना.

लड़की हंसती है तो दाएं गाल पर गड्ढा बनता है. बायां गाल उन्हें दिखाई नहीं देता, इसलिए वे उस के बारे में निश्चित नहीं हैं. उस के दांत सुघड़ और चमकीले सफेद हैं. वह लिपस्टिक नहीं लगाती, पर अधर बिलकुल ताजे खिले कमलदल से नरम और कोमल हैं. बाल बहुत घने और काले हैं.

बालों की हठीली लट उस के माथे पर हवा के साथ बारबार आ जाती है, जिसे वह किताब पढ़ते समय अदा से सिर झटक कर हटाया करती है, पर अकसर वह हटती नहीं है. वह नाक में कील या लौंग नहीं पहनती, पर नाक छिदी हुई है. कानों में वह गोल, छोटी बालियां पहनती है, जो हमेशा हिलती रहने के कारण बहुत लुभावनी लगती हैं. लंबी गरदन में अगर वह काले मनकों की माला पहनने लगे तो अच्छा रहेगा.

यह लड़की किसी प्रतियोगिता में बैठने की तैयारी कर रही है. इस के पास वे जिन किताबों को देखते हैं वैसी किताबें उन के लड़के के पास रही हैं. उन का लड़का अब नौकरी में है. एमबीए करने के बाद एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सहायक मैनेजर. 15 हजार रुपए से तनख्वाह शुरू हुई है. बाप रे, आजकल की कंपनियां इन नएनए छोकरों को कितना रुपया दे देती हैं, जबकि वे 10 हजार रुपए पर पहुंचतेपहुंचते रिटायर हो जाएंगे.

इस लड़की को अंगरेजी में खास दिक्कत होती है. पार्क में आ कर अकसर वह अंगरेजी के वाक्यांश, मुहावरे और शब्दार्थ रटा करती है. यह लड़की चूडि़यां नहीं पहनती, कड़े पहनती है. अगर चूडि़यां पहने तो इसे लाल रंग की पहननी चाहिए, बहुत अच्छी लगेंगी इस की गोरी कलाइयों पर, वे कई बार ऐसा सोच चुके हैं. इस की लंबी, नाजुक, पतली उंगलियों में अंगूठी सचमुच बहुत अच्छी लगे, पर यह नहीं पहनती. लंबे नाखूनों पर नेलपौलिश नहीं लगाती, पर उन का कुदरती गुलाबी रंग उन्हें हमेशा अच्छा लगता है…अच्छा यानी…?

यों आजकल ढीलेढाले कुरतों का रिवाज है पर इस लड़की का कुरता ऊपर कसा हुआ और नीचे काफी ढीला होता है. पुराने जमाने में जिस प्रकार की फ्रौकें बना करती थीं, उस तरह का होता है. कसे हुए कुरते में उस के उभार बेहद आकर्षक और दिलकश प्रतीत होते हैं, तिस पर कुरते का नीचा कटा गला. जब कभी हवा से उस की चुन्नी उभारों पर से उड़ जाती है, गले के नीचे उस के पुष्ट उभार नजर आने लगते हैं, खासकर तब, जब वह पार्क की घास पर बेलौस हो, लेटी हुई पढ़ती रहती है.

पार्क में आते ही वह सैंडल उतार कर उन्हें पौधों के नजदीक रख देती है. सैंडल बहुत कीमती नहीं होतीं. कभीकभार वे मरम्मत भी मांगती रहती हैं, पर शायद उसे वक्त नहीं मिलता कि ठीक करवा लाए या फिर घर में कोई ऐसा नहीं जिसे वह मोची के पास तक भेज कर…वैसे अगर सुनहरी बैल्टों वाली सैंडल वह पहने तो एकदम परी लगे. मन हुआ, वे उस से कहें किसी दिन, पर कह नहीं सके.

ढीले कुरते के कारण कमर का अंदाजा नहीं लग पाता, पर जरूर उस की नाप…वह कौन सा आदर्श नाप होती है विश्व सुंदरियों की, 36-24-36 या ऐसा ही कुछ. वे अगर दरजी होते तो जरूर इस लड़की का कोई सूट तैयार करने के लिए मचल उठते.

इस लड़की को देखदेख कर ही वे यह भी जान गए हैं कि इस की माली हालत बहुत अच्छी नहीं है. बहुत खराब भी नहीं होगी, वरना उस के पास इतने रंग के सूट कहां से आते? पर इस ने शादी के बजाय पढ़ाई को तरजीह दी है. इस का मतलब है, इस के मांबाप इस की शादी के लिए पर्याप्त पैसा नहीं जोड़ पाए हैं और लड़की को अच्छा वर मिल जाए, इसलिए किसी अच्छी नौकरी में लगवाने के लिए इस का कैरियर बनाने का प्रयास कर रहे हैं. जरूर इस के मांबाप समझदार लोग हैं वरना इसे यहां अकेली पार्क में पढ़ने क्यों आने देते? वे इस पर शक भी तो कर सकते थे. नजर रखने के लिए यहां किसी न किसी बहाने दसियों बार आ भी तो सकते थे.

वे सोचने लगे, प्रतियोगिता के लिए इस के पास ज्यादा किताबें नहीं हैं. इस की तुलना में उन के लड़के के पास ढेरों किताबें थीं, एक से एक अच्छे लेखकों की देशीविदेशी किताबें. अकसर यह उन्हीं किताबों को ले कर यहां आती है और उन्हें रटती रहती है. घर में या तो कमरे कम हैं या फिर आसपास का माहौल अच्छा नहीं है वरना यह यहां आ कर क्यों पढ़ा करती? हो सकता है पासपड़ोस के लोग ऊंची आवाज में टीवी वगैरा चलाते हों. आजकल के पड़ोसी भी तो अजीब होते हैं, उन्हें दूसरों की तकलीफों से कुछ लेनादेना नहीं होता.

इस पार्क का सब से ज्यादा हराभरा वही कोना है, जहां हर शाम आ कर यह लड़की अपना अड्डा जमा लेती है. इस लड़की के सामने वाली बैंच पर वे भी कब्जा कर लेते हैं. अब हर शाम का यही काम हो गया है, बल्कि जब से पत्नी लड़के के पास चली गई है. वे दफ्तर से आने के बाद एकदम अकेले हो जाते हैं. घर में पड़ेपड़े जी घबराने लगता है. अखबार वे सुबह ही पढ़ डालते हैं. फिर शाम को उसे उठाने का मन नहीं होता.

टैलीविजन के सीरियल उन्हें पसंद नहीं आते. ज्यादातर पारिवारिक तनाव, लड़ाईझगड़े और व्यापारिक प्रतिस्पर्धा वाले, मनमुटाव भरे, शत्रुता और बिखराव वाले सीरियल होते हैं.

 

फिल्में भी उन्हें पसंद नहीं आतीं. आजकल की हीरोइनें, बाप रे! एक गाने में 50 बार तो पोशाकें बदल जाती हैं और सिवा लटकेझटके, कूल्हे मटकाने व उछलकूद करने के उन्हें आता क्या है?

इन सब से अच्छा तो इस पार्क में आ कर बैठना है. ढलते सूरज का मजा लेना, खुली हवा, खिले हुए फूल, हरी, मखमली घास, पार्क के कोने में चहकते, गेंद खेलते बच्चे. उधर बैठी बतियाती महिलाएं. उस तरफ बैठे ताश खेलते लड़के. यहां आ कर उन्हें लगता है, जीवन  अभी खत्म नहीं हुआ है. अभी बहुतकुछ बचा है जिंदगी में जिसे नए सिरे से संजोया जा सकता है, जिसे नए सिरे से जीया जा सकता है.

हालांकि जैसेजैसे रिटायर होने का समय नजदीक आ रहा है, वे परेशान होते जा रहे हैं. उन्हें लगता है, जिंदगी की रेत उन की मुट्ठी से झर कर खत्म होने जा रही है. बस, चंद जर्रे और बचे हैं उन की बंद मुट्ठी में, फिर खाली…रीती…

फिर क्या होगा? यह सवाल अब हर वक्त उन के दिलोदिमाग पर हावी रहता है. वे तय नहीं कर पा रहे. हालांकि लड़का कहता है, ‘पिताजी, बहुत हो गया काम. अब तो आप रिटायर होने के बाद घर पर आराम करिए, सुबहशाम टहलिए. अपनी सेहत का खयाल रखिए.’ लेकिन फिर भी भविष्य को ले कर वे चिंतित हैं.

छोटे बच्चे अचानक गेंद ले कर पार्क के उस हिस्से में आ गए जिस में वह लड़की पढ़ रही थी. लड़की के माथे पर बल पड़ने लगे. वह परेशान हो उठी. उस की परेशानी वे सह न सके. बैंच से उठे और गेंद खेलते बच्चों के कप्तान के पास पहुंचे, ‘‘बेटे, यहां ये दीदी पढ़ती हैं तुम्हारी…इन की परीक्षा नजदीक है. इन्हें पढ़ने दो यहां. तुम्हें अपनी जगह खेलना चाहिए.’’

‘‘कैसे खेलें दादाजी?’’ कप्तान ने परेशान हो कर कहा, ‘‘हमारी जगह पर दूसरे लड़कों ने क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया है. आप उन्हें रोकिए, हमारी जगह न खेलें.’’

बात जायज थी. पर क्रिकेट खेलने वाले लड़के शक्ल से ही उन्हें उद्दंड लगे. उन से उलझना उन्हें ठीक न लगा. इसलिए उन बच्चों को ले कर वे दूसरे कोने में पहुंचे. वहां ताश खेलने वाला दल बैठा था. वे सचमुच चिंतित हुए कि बच्चे कहां खेलें? आखिरकार उन्होंने फैसला किया, ‘‘तुम लोग उस पानी की टंकी के पास वाले मैदान में खेलो, वहां कोई नहीं आता.’’

बच्चे मान गए तो उन्हें सचमुच खुशी हुई. अनजाने ही या जानबूझ कर उस लड़की को परेशान करने की नीयत से ताश खेलने वाले लड़कों का वह दल एक दिन उस लड़की वाले कोने में आ जमा. लड़की आई और परेशान सी पार्क में अपने लिए कोई सुरक्षित कोना देखने लगी पर उसे कोई उपयुक्त जगह न दिखी. चिंतित, खिन्न, उद्विग्न वह उन के नजदीक बैंच के एक सिरे की तरफ आ खड़ी हुई.

‘‘कहो तो इन उद्दंड लड़कों से तुम्हारा कोना खाली करने को कहूं?’’ उन्होंने उस लड़की के परेशान चेहरे की तरफ एक पल को ताका.

‘‘रहने दीजिए. आप जैसे भले आदमी का अपमान कर देंगे तो हमें अच्छा नहीं लगेगा,’’ लड़की के स्वर के अपनेपन ने उन की रगों में एक झनझनाहट पैदा कर दी. ‘कितना मधुर स्वर है इस का,’ उन्होंने सोचा.

कुछ सोच कर वे बैंच से उठे. लड़कों के नजदीक पहुंचे. एक लड़के की बगल में जा कर बैठ गए. कुछ देर चुपचाप उन का खेल देखते रहे. वह लड़का बीचबीच में बैंच के पास खड़ी लड़की को देखे जा रहा था. मन ही मन शायद मुसकरा भी रहा था. उन्हें ऐसा ही लगा.

‘‘आप लोग तो शरीफ और पढ़ेलिखे लड़के हैं,’’ उन्होंने कहना शुरू किया.

‘‘इसीलिए बेकार हैं. घर में रहें तो मांबाप को खटकते हैं. यहां किसी को खटकते नहीं हैं, इसलिए ताश जमाते हैं,’’ वह लड़का बोला.

‘‘जिंदगी के ये खूबसूरत दिन आप लोग यों बेकार बैठ कर जाया  कर रहे हैं. आप लोगों को नहीं लगता कि इन दिनों का कोई इस से बेहतर उपयोग हो सकता था?’’ वे बोले.

‘‘जिंदगी खूबसूरत होती है खूबसूरत लड़की से, जनाब,’’ एक मुंहफट लड़का बोला, ‘‘और खूबसूरत लड़की मिलती है अच्छी नौकरी वालों को या आरक्षण वालों को. हम लोग न सिफारिश वाले हैं और न आरक्षण वाले, इसलिए यहां बैठ कर ताश खेलते हुए जिंदगी को जाया कर रहे हैं. अब बताइए आप?’’

‘‘इस उम्र में आप लोगों को इस तरह जिंदगी की लड़ाई से हार मान कर अपने हथियार नहीं डाल देने चाहिए. मेरा खयाल है, आप लोग वक्त जाया न कर के अपने रुके हुए कैरियर को कोई और मोड़ देने का प्रयास करिए. न कुछ करने से, कुछ करना हमेशा बेहतर होता है. अगर आप चाहें तो मैं आप लोगों की इस मामले में मदद करने को तैयार हूं.’’

उन की बात सुनते ही ताश खेलती उंगलियां एकदम थम गईं, सब के चेहरे उन की तरफ उन्मुख हो गए. वे सब उसी तरह शांत बने रहे, ‘‘मैं उस सामने वाले मकान में ऊपर वाले हिस्से में रहता हूं. अपनी डिगरियां और प्रमाणपत्र ले कर आएं किसी दिन, शायद मैं आप लोगों को कुछ सुझा सकूं.’’

‘‘जी, धन्यवाद, दादाजी,’’ कह कर वे सब लड़के वहां से उठ कर चले गए.

‘‘आप तो सचमुच जादूगर हैं,’’ वह लड़की पार्क के अपने उस कोने में आ कर उन के निकट ही घास पर किताबें लिए बैठ गई. उस ने उस दिन जामुनी रंग का सूट पहन रखा था और उस पर सफेद रंग की चुन्नी.

वह अपलक उस के चेहरे को ताकते रहे. उन का मन हुआ, उस से कह दें, ‘इस तरह हंसती हुई तुम कितनी अच्छी लगती हो. क्या नाम है तुम्हारा? कहां रहती हो? किस की बेटी हो? और कौनकौन हैं तुम्हारे घर में?’ पर वे कुछ न बोले, सिर्फ मुसकराते रहे.

‘‘गेंद खेलने वाले बच्चों को दूसरी जगह पहुंचा दिया और अब इन लड़कों को पता नहीं आप ने कान में क्या कह दिया कि सब गऊ बने हुए यहां से चले गए,’’ लड़की चकित थी.

‘‘मैं ने लड़कों को अपने उस सामने वाले घर को दिखा दिया. कह दिया, वे जिंदगी के ये खूबसूरत दिन यों जाया न करें. जरूरी समझें तो मेरे घर में आएं, मैं ऊपर वाले हिस्से में रहता हूं. शायद उन की मदद कर सकूं.’’

‘‘आप सिर्फ लड़कों की ही मदद करेंगे, मेरी नहीं?’’ पता नहीं क्या सोच कर लड़की मुसकराई, ‘‘अगर मैं किसी दिन आप से सहायता मांगने आऊं तो…?’’

‘‘आइए न किसी दिन. मुझे तो उस दिन का इंतजार रहेगा,’’ हालांकि वे कहना तो यह चाहते थे कि उन्हें तो उस दिन का बेताबी से इंतजार रहेगा. पर लड़की से वे पहली बार बोल रहे थे. सिर्फ इतना ही पूछा, ‘‘नाम नहीं बताना चाहोगी मुझे?’’

‘‘जी, ताना, लोग घर में तन्नू कहते हैं,’’ वह हंसी.

वे उस के हंसते गुलाबी अधरों और संगमरमरी दांतों को अपलक ताकते रहे, ‘कितनी प्यारी लड़की है, न जाने किस का जीवन संवारेगी.’

‘‘ताना, कुछ अजीब सा नाम नहीं लगता तुम्हें?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘हां, है तो अजीब ही. मेरे पिता बहुत अच्छे संगीतकार हैं. घर में हर वक्त रियाज करते रहते हैं. उन से कुछ कह नहीं सकती. पढ़ने में बाधा पड़ती है, इसलिए यहां चली आती हूं. ताना नाम उन्होंने ही दिया है, तान से या लय से मतलब बताते हैं वे इस का. पर मुझे पता चला है, विख्यात संगीतसम्राट तानसेन की महबूबा थी कोई ताना नाम की लड़की. और वह तानसेन से भी ज्यादा अच्छी गायिका थी. पिताजी ने जरूर उसी के नाम पर मेरा नाम रखा होगा, यह सोच कर कि मैं भी उन की तरह संगीत में रुचि लूंगी और अच्छी गायिका बनूंगी. पर मुझे संगीत में कोई रुचि नहीं है.’’

‘‘तुम शायद एमबीए की तैयारी कर रही हो?’’ वे बोले. हालांकि वे कहना तो यह चाहते थे कि आजकल के बच्चे कितने खोजी किस्म के हो गए हैं. बाप ने ताना का जो अर्थ बताया, उस से संतुष्ट नहीं होते. नाम का अर्थ खोजा और पता चला ही लिया कि ताना तानसेन की प्रेमिका थी. कोई बाप अपनी लड़की से यह कैसे कह देता कि उस का नाम उस संगीतसम्राट की महबूबा के नाम पर रखा है.

‘‘जी, आप ने कैसे जाना?’’ वह हंस दी.

 

एकदम निश्छल, भोली, बच्चों जैसे हंसी को वे अपलक ताकते रहे,

‘‘तुम्हारी किताबों से…और मैं यह भी जान गया हूं कि तुम्हें अंगरेजी में खास दिक्कत आ रही है.’’

‘‘जी, बिलकुल ठीक कहा आप ने,’’ वह बोली, ‘‘असल में हमारे घर का माहौल बिलकुल पुराना और परंपरावादी है. मां ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं हैं. शहर में रहते जिंदगी निकल गई, पर बोलती अभी भी अपने गांव की ही भाषा हैं. पिताजी संगीत अध्यापक हैं. वे रागरागिनियों में हर वक्त खोए रहने वाले परंपरा से जुड़े व्यक्ति हैं. उन के लिए गीत, संगीत, लय, तान, तरन्नुम, स्वर, आरोह, अवरोह,  बाप रे बाप, क्याक्या शब्दावली प्रयोग करते हैं. सुनसुन कर ही सिर में दर्द होने लगता है.’’

‘‘मेरा लड़का एमबीए कर चुका है. उस की ढेरों किताबें हमारे घर में पड़ी हैं. आप उन्हें देख लें, अगर मतलब की लगें तो उन्हें ले जाएं,’’ वे संभल कर बोले, ‘‘लड़का अहमदाबाद के प्रसिद्ध मैनेजमैंट संस्थान में चुन लिया गया था. वहां से निकलते ही उसे बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई. आजकल बंबई में है.’’

लड़की एकदम उत्सुक हो गई, ‘‘अहमदाबाद के संस्थान में लड़के का चुना जाना वाकई एक उपलब्धि है. उस के बाद बहुराष्ट्रीय कंपनी…यह सब जरूर आप के दिशानिर्देश की वजह से संभव हुआ होगा. हमारे घर में हमें कोई गाइड करने वाला ही नहीं है. अपने मन से पढ़ रही हूं, प्रतियोगिता की तैयारी कर रही हूं. किसी से पूछने का मन नहीं होता. लोग हर लड़की से कोई न कोई लाभ उठाने की सोचने लगते हैं. इसलिए मेरे मातापिता भी पसंद नहीं करते. पर आप तो इसी महल्ले में रहते हैं. आप का घर देख लिया है. किसी दिन आऊंगी, किताबें देखूंगी,’’ उस ने कहा.

वे सोचने लगे, ‘किसी दिन क्यों? आज ही क्यों नहीं चलती?’ पर कुछ बोले नहीं. अच्छा भी है, उन लड़कों के सामने वे उसे अपने घर नहीं लिवा ले जा रहे. पता नहीं वे सब क्या समझें, क्या सोचें?

दूसरे दिन इतवार था. नौकरानी के साथ वे खुद जुटे. सारा घर ठीक से साफ किया. सब चीजें करीने से लगाईं. लड़के की किताबें भी झाड़फूंक कर करीने से अलमारी में लगाईं.

नौकरानी चकित थी, ‘‘कोई आ रहा है क्या, बाबूजी?’’

वे हंस पड़े. कहना तो चाहते थे कि कोई न आ रहा होता तो इस उम्र में इतनी मशक्कत क्यों करते, किसी पागल कुत्ते ने काटा है क्या? पर वे हंस दिए, ‘‘नहीं, कोई नहीं आ रहा. बस, लगा कि घर ठीक होना चाहिए, इसलिए ठीक कर लिया.’’

नौकरानी को विश्वास न हुआ. वह उन के चेहरे को गौर से ताकती रही. फिर मुसकरा दी, ‘‘जरूर आप हम से कुछ छिपा रहे हैं. काई आएगा नहीं तो यह सब क्यों?’’

वे सोचने लगे, ‘अजीब औरत है. बेकार बातों में सिर खपा रही है. इसे इस बात से क्या मतलब? पर दूसरों के मामले में दखल देने की इस की आदत है?’

खाना बना कर जाने में नौकरानी को 2 बज गए. वह बड़बड़ाती रही, ‘‘दसियों घरों का काम निबटाती इतनी देर में. आप ने हमारा सारा वक्त खराब करा दिया.’’

पर वे उस से कुछ बोले नहीं. कौन बेकार इन लोगों के मुंह लगे और अपना मूड खराब करे. खाना खा कर वे कुरतापाजामा पहन, आराम से कुछ पढ़ने का बहाना कर उस का इंतजार करने लगे. लड़़की का इंतजार, जैसे खुशबू के झोंके का इंतजार, जैसे ठंडी फुहार का इंतजार, जैसे संगीत की मधुर स्वर लहरियों की कानों को प्रतीक्षा, जैसे किसी अप्सरा का हवा में उड़ता एहसास, जैसे रंगबिरंगी तितली का फूलों पर बेआवाज उड़ना, जैसे मदमत्त भौंरे का गुनगुनाना, जैसे नदी का किलकारियां भरते हुए बहना, जैसे झरने का…

इसी इंतजार के दौरान घंटी बजने लगी. वे लपक कर पलंग से उठे और दरवाजे की तरफ बढ़े.

ताना ही थी. देख कर वे फूल की तरह खिल गए. लगा, जैसे उन की रगों में फिर वही पुराना वाला, जवानी के दिनों वाला रक्त धमकने लगा है. उन्होंने उस का स्वागत किया. हलके हरे रंग का सूट और उस पर नारंगी रंग की चुन्नी. उन का मन हुआ, उस से कहें, ‘तुम ने हरी या नारंगी बिंदी क्यों नहीं लगाई?’ पर वे प्रकट में बोले, ‘‘आइए.’’

उन्होंने उसे बैठक में बिठाया. ताना ने उड़ती सी नजर सब पर डाली. टीवी पर रखी लड़के की हंसती फोटो पर उस की नजर टिकी रह गई. वह सोफे से उठ कर टीवी के नजदीक पहुंची. फोटो को कुछ पल ताकती रही, फिर मुसकरा दी, ‘‘काफी स्मार्ट है आप का लड़का. क्या नाम है इस का?’’

‘‘सुब्रत,’’ वे भी ताना के समीप आ खड़े हुए, ‘‘सब से पहले बताओ, क्या लोगी, ठंडा या गरम? और गरम, तो चाय या कौफी? वैसे मैं कौफी अच्छी बना लेता हूं.’’

‘‘आप भी कमाल करते हैं,’’ वह बेसाख्ता हंसी, ‘‘आप मेरे लिए कौफी बनाएंगे और मैं बनाने दूंगी आप को? इतना पराया समझा है आप ने मुझे?’’

‘‘पराया क्यों नहीं?’’ वे बोले, ‘‘पहली बार हमारे घर आई हो. हमारी मेहमान हो. और भारतीय कितने भी दुनिया में बदनाम हों, पर मेहमाननवाजी में तो अभी भी वे मशहूर हैं.’’

‘‘इस तरह बोर करेंगे तो चली जाऊंगी, सचमुच,’’ ताना लाड़भरे स्वर में बोली, ‘‘आप हमारे पास बैठिए. आप से आज गपशप करने का मन है. खूब बातें करूंगी. कुछ आप की सुनूंगी, कुछ अपने गम हलके करूंगी. रसोई किधर है? कौफी मैं बनाती हूं.’’

वे उसे अपने साथ रसोई में ले गए. कौफी के साथ ही लौटे. ताना का रसोई में इस तरह काम करना और खुला, बेतकल्लुफ व्यवहार उन्हें बहुत पसंद आया. कौफी पीते हुए वे देर तक तमाम तरह की बातें करते रहे. लड़की उन्हें हर तरह से समझदार लगी. फिर वह उन के लड़के के नोट्स व किताबें देखती रही. अपने मतलब की तमाम किताबें और नोट्स उस ने छांट कर अलग कर लिए और बोली, ‘‘धीरेधीरे इन्हें ले जाऊंगी, उन्हें एतराज तो न होगा?’’

‘‘किन्हें, लड़के को?’’ वे हंसे, ‘‘उसे अब इन से क्या काम पड़ेगा?’’

‘‘कभी बुलाइए न उन्हें यहां. चाचीजी भी शायद अरसे से वहां हैं. आप को भी अकेले तमाम तरह की तकलीफें हो रही होंगी. हमारे पिताजी तो अपने हाथ से पानी का एक गिलास भी उठा कर नहीं पी सकते. पता नहीं आप कैसे इतने दिनों से अकेले इस घर में रह रहे हैं.

‘‘चाचीजी को ले कर वे आएं तो हमें बताइएगा. हम भी उन से मिलना चाहेंगे. शायद उन से कुछ दिशानिर्देश मिल जाए. मैं जल्दी से जल्दी अपने पांवों पर खड़ी होना चाहती हूं. पिताजी की पुरानी, शास्त्रीय संगीत वाली दुनिया से ऊब गई हूं. मैं एक नई दुनिया में रमना चाहती हूं. जिंदगी की ताजा और तेज हवा में उड़ना चाहती हूं. मेरी कुछ मदद करिए न,’’ घर से जाते समय उस ने अनुरोधभरे स्वर में कहा.

‘‘आज इतवार है न. और इस वक्त 5 बजे हैं. चलो, पार्क के पास जो पीसीओ है, वहां चलते हैं. तुम्हें नंबर दूंगा. लड़का इस वक्त घर पर ही होगा. लड़के की मां भी वहीं होगी. फोन कर के दोनों को चौंकाओ. बोलो, चलोगी? मजा आएगा?’’ वे उस की चमकती आंखों में ताकने लगे.

बहुत मजा आया फोन पर. लड़की ने ऐसे चौंकाने वाले अंदाज में लड़के और उस की मां से बातें कीं कि वे खुद चकित रह गए. बाद में उन्होंने दोनों से आग्रह किया कि वे जल्दी यहां आएं.

लड़के की मां ने पूछा, ‘‘कोई खास बात?’’

वे ताना की तरफ देख कर शरारत से हंस दिए, ‘‘खास बात न होती तो दोनों को क्यों बुलाता? हमेशा की तरह वह तुम्हें ट्रेन में बैठा देता और मैं तुम्हें स्टेशन पर उतार लेता… एक बहुत अच्छी लड़की?’’

‘‘यह फोन वाली लड़की?’’

‘‘नहीं, पार्क वाली लड़की,’’ वे बेसाख्ता हंसे. ताना का मुख एकदम सूरजमुखी की तरह खिल कर झुक गया.

‘‘पार्क वाली लड़की? क्या मतलब? कोई लड़की आप को पार्क में पड़ी मिल गई क्या?’’ पत्नी ने चमक कर पूछा.

‘‘पार्क में पड़ी नहीं मिल गई बल्कि फूलों में खिली हुई मिल गई है.’’ ताना उन्हें आंखों ही आंखों में डांट रही थी.

रिसीवर रख जब वे उस के साथ बाहर आए तो वह लजाई हुई बोली, ‘‘सचमुच आप जैसे इंसान भी इस दुनिया में हैं, सहज विश्वास नहीं होता.’’ वे मुसकराए, ‘‘ताना, कल से तुम माथे पर बिंदी जरूर लगाना, हाथों में लाल चूडि़यां और पांवों में सुनहरी बैल्ट वाली सैंडल पहनना.’’ और उस की तरफ ताकते हुए हंसने लगे.

हसबैंड के टूअर पर जाने का इंतजार

अपना बैग पैक करते हुए अजय ने कविता से बहुत ही प्यार से कहा, ‘‘उदास मत हो डार्लिंग, आज सोमवार है, शनिवार को आ ही जाऊंगा. फिर वैसे ही बच्चे तुम्हें कहां चैन लेने देते हैं. तुम्हें पता भी नहीं चलेगा कि मैं कब गया और कब आया.’’ कविता ने शांत, गंभीर आवाज में कहा, ‘‘बच्चे तो स्कूल, कोचिंग में बिजी रहते हैं… तुम्हारे बिना कहां मन लगता है.’’

‘‘सच मैं कितना खुशहाल हूं, जो मुझे तुम्हारे जैसी पत्नी मिली. कौन यकीन करेगा इस बात पर कि शादी के 20 साल बाद भी तुम मुझे इतना प्यार करती हो… आज भी मेरे टूअर पर जाने पर उदास हो जाती हो… आई लव यू,’’ कहतेकहते अजय ने कविता को गले लगा लिया और फिर बैग उठा कर दरवाजे की तरफ बढ़ गया. कविता का उदास चेहरा देख कर फिर प्यार से बोला, ‘‘डौंट बी सैड, हम फोन पर तो टच में रहते ही हैं, बाय, टेक केयर,’’ कह कर अजय चला गया.

कविता दूसरी फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट की बालकनी में जा कर जाते हुए अजय को देखने लगी. नीचे से अजय ने भी टैक्सी में बैठने से पहले सालों से चले आ रहे नियम का पालन करते हुए ऊपर देख कर कविता को हाथ हिलाया और फिर टैक्सी में बैठ गया. कविता ने अंदर आ कर घड़ी देखी. सुबह के 10 बज रहे थे. वह ड्रैसिंगटेबल के शीशे में खुद को देख कर मुसकरा उठी. फिर उस ने रुचि को फोन मिलाया, ‘‘रुचि, क्या कर रही हो?’’

रुचि हंसी, ‘‘गए क्या पति?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘फटाफट अपना काम निबटा, अंजलि से भी बात करती हूं, मूवी देखने चलेंगे, फिर लंच करेंगे.’’

‘‘तेरी मेड काम कर के गई क्या?’’

‘‘हां, मैं ने उसे आज 8 बजे ही बुला लिया था.’’

‘‘वाह, क्या प्लानिंग होती है तेरी.’’

‘‘और क्या भई, करनी पड़ती है.’’

रुचि ने ठहाका लगाते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आधे घंटे में मिलते हैं.’’

कविता ने बाकी सहेलियों अंजलि, नीलम और मनीषा से भी बात कर ली. इन सब की आपस में खूब जमती थी. पांचों हमउम्र थीं, सब के बच्चे भी हमउम्र ही थे. सब के बच्चे इतने बड़े तो थे ही कि अब उन्हें हर समय मां की मौजूदगी की जरूरत नहीं थी. कविता और रुचि के पति टूअर पर जाते रहते थे. पहले तो दोनों बहुत उदास और बोर होती थीं पर अब पतियों के टूअर पर जाने का जो समय पहले इन्हें खलता था अब दोनों को उन्हीं दिनों का इंतजार रहता था. कविता ने अपने दोनों बच्चों सौरभ और सौम्या को घर की 1-1 चाबी सुबह ही स्कूल जाते समय दे दी थी. आज का प्रोग्राम तो उस ने कल ही बना लिया था. नियत समय पर पांचों सहेलियां मिलीं. रुचि की कार से सब निकल गईं. फिर मूवी देखी. उस के बाद होटल में लंच करते हुए खूब हंसीमजाक हुआ. मनीषा ने आहें भरते हुए कहा, ‘‘काश, अनिल की भी टूरिंग जौब होती तो सुबहशाम की पतिसेवा से कुछ फुरसत मुझे भी मिलती और मैं भी तुम दोनों की तरह मौज करती.’’

रुचि ने छेड़ा, ‘‘कर तो रही है तू मौज अब भी… अनिल औफिस में ही हैं न इस समय?’’

‘‘हां यार, पर शाम को तो आ जाएंगे न… तुम दोनों की तो पूरी शाम, रात तुम्हारी होगी न.’’

कविता ने कहा, ‘‘हां भई, यह तो है. अब तो शनिवार तक आराम ही आराम.’’ मनीषा ने चिढ़ने की ऐक्टिंग करते हुए कहा, ‘‘बस कर, हमें जलाने की जरूरत नहीं है.’’ नीलम ने भी अपने दिल की बात कही, ‘‘यहां तो बिजनैस है, न घर आने का टाइम है न जाने का, पता ही नहीं होता कब अचानक आ जाएंगे. फोन कर के बताने की आदत नहीं है. न घर की चाबी ले जाते हैं. कहते हैं, तुम तो हो ही घर पर… इतना गुस्सा आता है न कभीकभी कि क्या बताऊं.’’

रुचि ने पूछा, ‘‘तो आज कैसे निकली?’’

‘‘सासूमां को कहानी सुनाई… एक फ्रैंड हौस्पिटल में ऐडमिट है. उस के पास रहना है. हर बार झूठ बोलना पड़ता है. मेरे घर में मेरा सहेलियों के साथ मूवी देखने और लंच पर जाना किसी को हजम नहीं होगा.’’

कविता हंसी, ‘‘जी तो बस हम रहे हैं न.’’

यह सुन तीनों ने पहले तो मुंह बनाया, फिर हंस दीं. बिल हमेशा की तरह सब ने शेयर किया और फिर अपनेअपने घर चली गईं. सौरभ और सौम्या स्कूल से आ कर कोचिंग जा चुके थे. जब आए तो पूछा, ‘‘मम्मी, कहां गई थीं?’’

‘‘बस, थोड़ा काम था घर का,’’ फिर जानबूझ कर पूछा, ‘‘आज डिनर में क्या बनाऊं?’’

बाहर के खाने के शौकीन सौरभ ने पूछा, ‘‘पापा तो शनिवार को आएंगे न?’’

‘‘हां.’’

‘‘आज पिज्जा मंगवा लें?’’ सौरभ की आंखें चमक उठीं.

सौम्या बोली, ‘‘नहीं, मुझे चाइनीज खाना है.’’

कविता ने गंभीर होने की ऐक्टिंग की, ‘‘नहीं बेटा, बाहर का खाना बारबार और्डर करना अच्छी आदत नहीं है.’’

‘‘मम्मी प्लीज… मम्मी प्लीज,’’ दोनों बच्चे कहने लगे, ‘‘पापा को घर का ही खाना पसंद है. आप हमेशा घर पर ही तो बनाती हैं… आज तो कुछ चेंज होने दो.’’

कविता ने बच्चों पर एहसान जताते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आज मंगवा लो पर रोजरोज जिद मत करना.’’ सौम्या बोली, ‘‘हां मम्मी, बस आज और कल, आज इस की पसंद से, कल मेरी पसंद से.’’

‘ठीक है, दे दो और्डर,’’ दोनों बच्चे चहकते हुए और्डर देने उठ गए.

कविता मन ही मन हंस रही थी कि उस का कौन सा मूड था खाना बनाने का, अजय को घर का ही खाना पसंद है, बच्चे कई बार कहते हैं पापा का तो टूअर पर चेंज हो जाता है, हमारा क्या… वह खुद बोर हो जाती है रोज खाना बनाबना कर. आज बच्चे अपनी पसंद का खा लेंगे. उस ने हैवी लंच किया था. वह कुछ हलका ही खाएगी. फिर वह सैर पर चली गई. सोचती रही अजय टूअर पर जाते हैं तो सैर काफी समय तक हो जाती है नहीं तो बहुत मुश्किल से 15 मिनट सैर कर के भागती हूं. अजय के औफिस से आने तक काफी काम निबटा कर रखना पड़ता है. शाम की सैर से संतुष्ट हो कर सहेलियों से गप्पें मार कर कविता आराम से लौटी. बच्चों का पिज्जा आ चुका था. उस ने कहा, ‘‘तुम लोग खाओ, मैं आज कौफी और सैंडविच लूंगी.’’

बच्चे पिज्जा का आनंद उठाने लगे. अजय से फोन पर बीचबीच में बातचीत होती रही थी. बच्चों के साथ कुछ समय बिता कर वह घर के काम निबटाने लगी. बच्चे पढ़ने बैठ गए. काम निबटा कर उस ने कपड़े बदले, गाउन पहना, अपने लिए कौफी और सैंडविच बनाए और बैडरूम में आ गई. अजय टूअर पर जाते हैं तो कविता को लगता है उसे कोई काम नहीं है. जो मन हो बनाओ, खाओ, न घर की देखरेख, न आज क्या स्पैशल बना है जैसा रोज का सवाल. गजब की आजादी, अंधेरा कमरा, हाथ में कौफी का मग और जगजीतचित्रा की मखमली आवाज के जादू से गूंजता बैडरूम.अजय को साफसुथरा, चमकता घर पसंद है. उन की नजरों में घर को साफसुथरा देख कर अपने लिए प्रशंसा देखने की चाह में ही वह दिनरात कमरतोड़ मेहनत करती रहती है. कभीकभी मन खिन्न भी हो जाता है  कि बस यही है क्या जीवन?

ऐसा नहीं है कि अजय से उसे कम प्यार है या वह अजय को याद नहीं करती, वह अजय को बहुत प्यार करती है. यह तो वह दिनरात घर के कामों में पिसते हुए अपने लिए कुछ पल निकाल लेती है, तो अपनी दोस्तों के साथ मस्ती भरा, चिंता से दूर, खिलखिलाहटों से भरा यह समय जीवनदायिनी दवा से कम नहीं लगता उसे. अजय के वापस आने पर तनमन से और ज्यादा उस के करीब महसूस करती है वह खुद को. उस ने बहुत सोचसमझ कर खुद को रिलैक्स करने की आदत डाली है. ये पल उसे अपनी कर्मस्थली में लौट कर फिर घरगृहस्थी में जुटने के लिए शक्ति देते हैं. अजय महीने में 7-8 दिन टूअर पर रहते हैं. कई बार जब टूअर रद्द हो जाता है तो ये कुछ पल सिर्फ अपने लिए जीने का मौका ढूंढ़ते हुए उस का दिमाग जब पूछता है, कब जाओगे प्रिय, तो उस का दिल इस शरारत भरे सवाल पर खुद ही मुसकरा उठता है.

कथावाचक अनिरुद्धाचार्य : धर्म की ब्रेनवाशिंग का मौडर्न आर्किटैक्ट

कथावाचक अनिरुद्धाचार्य महाराज ने सोशल मीडिया का उपयोग अपने धार्मिक विचारों को फैलाने के लिए किया है. उन के विवादित व ऊटपटांग बयानों ने उन्हें लोकप्रियता दिला दी है, सोशल मीडिया पर मीम बनाए जा रहे हैं पर चिंता वाली बात उन के धार्मिक प्रवचन हैं जो युवाओं को प्रभावित और भ्रमित कर रहे हैं.

डिजिटल एरा में कोई भी अपने विचार दुनियाभर में फैला सकता है. सोशल मीडिया ने सभी को आसान मंच दे दिया है. अब इस का इस्तेमाल कैसे करना है यह निर्भर उसी पर करता है जो इस का इस्तेमाल कर रहा है. कुछ लोग इस का बेहतर इस्तेमाल करते हैं मगर अधिकतर के लिए यह दस्तबिन बन गया है, जहां अपना सारा कचरा त्यागा जा रहा है.
बात यहां अनिरुद्धाचार्य महाराज की, जिन के ‘मेरे चरणों में आप का कोटिकोटि प्रणाम’ और ‘बिस्किट का मतलब विष की किट’ जैसे मीम सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहे हैं. अनिरुद्धाचार्य महाराज भी उसी श्रेणी में आते हैं जो विज्ञान जनित टैक्नोलौजी का इस्तेमाल कर धर्म का प्रचारप्रसार करने में जुटे हैं. कथावाचकों की कैटगरी में अनिरुद्धाचार्य महाराज का बड़ा नाम है और हालफिलहाल वे अपनी ऊटपटांग बातों से चर्चाओं में भी हैं.

सोशल मीडिया पर एक्टिव
यूट्यूब को इन का दूसरा गढ़ माना जाए तो गलत नहीं होगा क्योंकि ये भारत में इकलौते कथावाचक हैं जिन के 1 करोड़ 40 लाख से ऊपर सब्सक्राइबर्स हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो इन्हें कथावाचकों का ध्रुव राठी कहा जा सकता है. इन का प्राइम चैनल ‘अनिरुद्धाचार्य जी’ के नाम से है. इस के अलावा ‘गौरी गोपाल आश्रम’, ग्रौरी गोपाल टीवी’, ‘अनिरुद्धाचार्य शोर्ट्स’ भी इन्हीं के चैनल हैं. खुद ही अपने नाम के पीछे ‘जी’ और आगे ‘श्री’ लगाना संतों, कथावाचकों, बाबाओं के बीच आम प्रचलन है तो इन्होने भी लगाया हुआ है. इन के प्राइम चैनल ‘अनिरुद्धाचार्य जी’ में 7 हजार से ज्यादा वीडियोज डाले गए हैं और प्रोफाइल भक्तिमयी दिखाई देती है.
अनिरुद्धाचार्य का जन्म 27 सितंबर 1989 को मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के रेवझ गांव में हुआ था. उन का शुरूआती जीवन एक साधारण परिवेश में बीता, जहां उन्होंने धार्मिक ग्रंथों और वेद-पुराणों का अध्ययन किया. उन्होंने वृंदावन में रामानुजाचार्य संप्रदाय से आने वाले संत गिरिराज शास्त्री से दीक्षा प्राप्त की. आज वे कथावाचकों की टोली के सरदार हैं.
अपने यूट्यूब प्रोफाइल में ये लिखते हैं, “सनातन धर्म की ध्वजा को ले कर पूरे विश्व में लाखोंकरोड़ों लोगों को गौरी गोपाल भगवान की भक्ति और अपनी अमृतमयी वाणी से सेवा, संस्कृति और संस्कारों से जोड़ कर लोगों का जीवन बदलने वाले श्री अनिरुद्धाचार्य जी महाराज के आधिकारिक यूट्यूब चैनल में आप का स्वागत है.”
अब ये कैसे लोगों का जीवन बदलने की बात करते हैं इसे आगे समझेंगे. ये उसी प्रोफाइल में लिखते हैं, “आइए हम भी इस परिवार का हिस्सा बन कर सनातन धर्म को और उच्च शिखर तक पहुंचाने में पूज्य महाराज जी की मदद करें.”
अपने इस चैनल में अनिरुद्धाचार्य सनातन धर्म की शिक्षाएं देते हैं, लेकिन इन की वीडियोज के कंटेंट देखें तो यह पारिवारिक, दांपत्य, युवाओं, खासकर युवतियों के जीवन पर सेंट्रिक रहती हैं. प्रवचन के दौरान इन के कई कमेंट्स विवादों में घिरे हैं और सोशल मीडिया पर मीम मैटिरियल भी बने हैं.

महिलाओं पर टीकाटिप्पणी
ये सत्संग लगाते हैं. हजारों की भीड़ इन के सत्संग में आती है. महाराज के सत्संग के लिए बड़ा सा रंगबिरंगी स्टेज सजा रहता है. वे अपने माथे पर हमेशा चंदन लगा कर रखते हैं. गले में ढेर सारी मालाएं होती हैं और उन के कपड़ों की तरह ही उन का सिंहासन भी चमचमाता है.
इन के सत्संग हाथरस के ‘भोले बाबा’ जैसे मिसमैनेज नहीं होते. स्टेज और लोगों में दूरी होती है तो भगदड़ जैसी नोबत की गुंजाइश कम होती है. एक तरह से माने तो ये खातेपीते और पढ़ेलिखे अंधभक्तों के कथावाचक हैं. यह जाहिर भी करता है कि अंधविश्वासी होने के लिए किसी का अनपढ़ होना जरुरी नहीं. अनिरुद्धाचार्य महाराज के पास अकूत पैसा है तो लोगों के बैठनेबिठाने की जगह ठीकठाक हो जाती है. लोगों में अधिकतर महिलाएं ही होती हैं. अनिरुद्धाचार्य उन्हीं महिलाएं पर उलजलूल टीकाटिप्पणी करते हैं, फिर भी बड़ी संख्या में वे भक्त बनी हुई हैं.
वे अपने सत्संगों के माध्यम से महिलाओं को पतिव्रता होने का धार्मिक पाठ पढ़ाते हैं. 2 महीने अफ्ले अपलोड की अपनी एक वीडियो ‘पति के साथ एक थाली में खाना खाने वाली स्त्रियां’ में वे कहते हैं, “जो पत्नी अपने पति के खाना खाने के बाद ही खाना ग्रहण करती हैं वही पतिव्रता स्त्रियां हैं.” इस वीडियो में वह हिदायत देते हैं कि अगर पति कभी बाहर हो तो उन की एब्सेंस में पत्नियां पहले गाय को खाना खिलाएं फिर खाना खाएं. इस से दोष ख़त्म हो जाता है.”
हैरानी तो यह कि वह इस का साइंटिफिक कहते हैं और तर्क देते हैं कि, “जैसे गर्भवती स्त्री खाए तो उस के बच्चे में पेट में अपनेआप चले जाता है ऐसे ही गाय को खिलाने से पति के पेट में अपनेआप चले जाता है.”
वे अपने एक और वीडियो, “गृहस्थ में पति के साथ संभोग करने से भक्ति पर असर’ पर कहते हैं, “एक महिला मेरे पास आई और कहने लगी कि हमारा मन भगवान् में लग गया है पर मगर मेरे पति का मन नहीं लगा है. वे हमारे पास आते हैं और प्रेम का इजहार करते हैं. हमें तो सारी वासना से मन हट गया है. हमारे पति अभी ब्रह्मचारी नहीं बन पाए. हमारे पति जब हमारे पास काम भाव ले कर आते हैं तो असंतुष्टि होने लगती है.”
अनिरुद्धाचार्य महाराज उस महिला को एक पत्नी का फर्ज समझाते हैं और पति से सहयोग करने को कहते हैं. अब ये अजीब विडंबना है कि एक तो उसे धर्मकर्म में फंसा कर ब्रह्मचर्य का पाठ पढ़ा दिया और अब उसे बेमन पति से सम्भोग करने को कहा जा रहा है. एक अन्य वीडियो ‘दिन में संभोग करने वाले स्त्रीपुरुषों की कैसी होती है संतान’ में अनिरुद्धाचार्य महाराज बताते हैं कि, “शास्त्ररोक्त बात कह रहा हूं यदि कोई स्त्री दिन में गर्भवती (गर्भ स्थापित) हो गई तो लिख लो जो स्त्री दिन में गर्भवती हुई है उस का बच्चा मांबाप और समाज को बहुत बड़ी हानि पहुंचाएगा.” वे आगे कहते हैं, “शाम के समय अगर स्त्री गर्भवती हो गई तो वह नालायक ही होगी.” अनिरुद्धाचार्य महाराज के कहे अनुसार संभोग रात में ही करना चाहिए और दिन और शाम को करने से बच्चे नालायक पैदा होते हैं.
इन कथावाचक का महिलाओं पर कुतर्की कमेन्ट करने का एक लंबा इतिहास है. वे महिला को पतिव्रता नारी की पहचान के बारे में बताते हैं. वे अपने प्रवचन में यह भी बताते हैं कि, “सुंदर होना स्त्री का दोष है,” और “बेटियां फिल्में देखने जाती हैं इसलिए उन के 35 टुकड़े होते हैं.”
वे अपने एक और वीडियो, ‘लड़की का विवाह कहां कराना चाहिए’ में कहते हैं, “पति की सेवा करना नारी का परमधरम है. चाहे पति कैसा भी हो, अंधा हो, लंगड़ा हो, काना हो. अच्छा हो चाहे बुरा हो. किसी के पति बुरे भी हैं. कोई बात नहीं, शादी के पहले छानबीन कर लेनी थी. अब जैसा है सो तुम्हारा है. जुवारी, भंगेड़ी, गंजेड़ी, चरित्र का खोटा यह सब शादी से पहले देख लो. शादी के बाद तो भगवान मान कर सेवा करो.” हैरानी यह कि यह सुनने वालों में अधिकतर भीड़ महिलाओं की है, साथ में उन की किशोर लड़कियां होती हैं. यही नहीं वे हर दूसरे प्रवचन में पत्नी का पति के लिए कर्तव्य की बातें करते हैं.

गुमराह करने वाली बातें
वे अपने एक वीडियोज में बताते हैं कि अमीर होना अच्छा नहीं और दूसरी वीडियो में बताते हैं कि दीवाली में ऐसे उपाय करने से बरसेगी धनवर्षा, किसी और वीडियो में वे बिल गेट्स की तरह बनने के टिप्स दे देते हैं. वे ब्राह्मणों को श्रेष्ट बताते हैं. वे अपने एक सत्संग में बताते हैं, “तुलसीदास जी ने पहला प्रणाम ब्राह्मणों को किया. ब्राह्मणों को प्रणाम करना चाहिए. क्योंकि ब्राह्मण अन्य लोगों की अपेक्षा तपस्वी और त्यागी होते हैं. नित्य नियम से रहता है. ब्राहमण होना सरल नहीं है.” वे इस वीडियो में सुदामा, चाणक्य जैसे ब्राह्मणों का उदाहरण देते हैं. लेकिन वे ये नहीं बताते कि अतीत में ब्राह्मणों ने कैसे अपने लालच और प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए जातिप्रथा को पोषित किया.
वे अपने एक अन्य वीडियो ‘ब्राह्मणों के योगदान’ की बात करते हैं. अब कोई उन्हें बताए कि जब नियमकानून बनाने की सारी व्यवथा उन्हीं के हाथ में थी तो योगदान भी तो उन्हीं के दिखाई देंगे. अनिरुद्धाचार्य महाराज के बयान और उन के विचारों का प्रसार केवल हास्यास्पद या विवादित नहीं है, बल्कि यह युवाओं के दिमागों को गुमराह करने का एक गंभीर प्रयास भी है. उन के बयानों का युवाओं पर प्रभाव पड़ता है.
वे आधुनिकता पर हमला करते हैं. कहते हैं, “आज की शिक्षा ने युवाओं को जानवर बना दिया है. आजकल के पढ़े लिखे लोग, आधुनिक कल्चर के नाम पर लिव-इन में रह रहे हैं, किसी के भी साथ रह रहे हैं, यह जानवरों का कल्चर है. हमारे देश में कुत्तेबिल्ली लिवइन में रह रहे हैं. हमारा हिंदू संस्कृति ऐसी नहीं है. जो लड़की आज इस के साथ, कल उस के साथ, वो लड़की लड़की रही नहीं बल्कि वैश्या हो गई.” अनिरुद्धाचार्य महाराज विधवा होने से बचने का उपाय भी बताते हैं, जिस में पति की सेवा, व्रत उपवास की बातें ही मुख्य हैं. वे असली पति भगवान को बताते हैं.

कई लोगों को इस तरह की बातें मजाकिया लग सकती हैं पर अनिरुद्धाचार्य महाराज के बयानों का प्रभाव युवाओं की मानसिकता पर गहरा हो रहा है. उन के भक्त अकसर उन के बयानों को बिना सोचेसमझे मानते हैं, जिस से उन की सोच प्रभावित होती है. पंडाल में बहुत से युवा भी दिखते हैं जिस में ज्यादातर लड़कियां होती हैं. उन्हीं लड़कियों पर अनिरुद्धाचार्य महाराज कमेन्ट करते हैं, और उन के मातापिता खड़ेखड़े मुसकरा रहे होते हैं.
छोटे शहरों के युवा भी अपनी परेशानियों का हल इन्हीं जैसे कथावाचकों के पास ले कर जा रहे हैं, और ये कथावाचक कथा में आने की मोटी फीस तो वसूलते ही हैं साथ में दान चंदा भी खूब बटोरते हैं. ‘दीपावली’ नाम की वेबसाइट के अनुसार अनिरुद्धाचार्य एक कथा के लिए करीब 7,00,000 से 10,00,000 तक फीस लेते हैं. यानी अनिरुद्धचार्य की भागवत कथा सुनाने की प्रतिदिन फीस्ट लगभग 1-3 लाख रुपए है और कथा कुल 8-10 दिनों तक चलती है. बताया जाता है कि यह पैसा सामाजिक सेवा में लगता है, लेकिन इस का क्या हिसाबकिताब है ये तो वही जानें.

अगर अनिरुद्धाचार्य महाराज की नेट वर्थ की बात करें तो उन की कुल संपत्ति करीब 25 करोड़ रुपए के आसपास बताई जाती है. अब यह संपत्ति कैसे अर्जित की गई, कितना दानपिंड लपेटा गया, समाज सेवा के नाम पर कितनों का फर्जीवाड़ा चल रहा है यह बातें तो तभी निकलती हैं जब ऐसे बाबा लोग विवादों में घिरते हैं.
आज लोग घरों में बैठेबैठे इन जैसे कथावाचकों के प्रवचन यूट्यूब से सुनते हैं. इस में पैसा नहीं लगता लेकिन समय और दिमाग दोनों ख़राब होते हैं. सोशल मीडिया के दौर में अनिरुद्धाचार्य अपनी कुतर्की बातों का प्रचारप्रसार कर रहे हैं. 21वीं सदी में यदि अनिरुद्धाचार्य महाराज के करोड़ से अधिक फौलोवर्स हैं तो समझ जाइए देश किस तरफ बढ़ रहा है.

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