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मोटी मन को भा गई: मामाजी ने क्या इशारा किया?

लड़की को देख कर आते ही हम ने मामाजी के कानों में डाल दिया, ‘‘मामाजी, हमें लड़की जंची नहीं. लड़की बहुत मोटी है. वह ढोल तो हम तीले. कहां तो आज लोग स्लिमट्रिम लड़की पसंद करते हैं और कहां आप हमारे पल्ले इस मोटी को बांध रहे हैं.’’ मामाजी के जरीए हमारी बात मम्मीपापा तक पहुंची तो उन्होंने कह दिया, ‘‘यह तो हर लड़की में मीनमेख निकालता है. थोड़ी मोटी है तो क्या हुआ?’’

सुन कर हम ने तो माथा ही पीट लिया. कहां तो हम ऐश्वर्या जैसी स्लिमट्रिम सुंदरी के सपने मन में संजोए थे और कहां यह टुनटुन गले पड़ रही थी.

तभी हमारा लंगोटिया यार रमेश आ धमका. उसे पता था कि आज हम लड़की देखने जाने वाले थे. अत: आते ही मामाजी से पूछने लगा, ‘‘देख आए लड़की हमारे दोस्त के लिए? कैसी हैं हमारी होने वाली भाभी?’’

‘अरे भई खुशी मनाओ, क्योंकि तुम्हारे दोस्त को बीएमडब्ल्यू मिलने वाली है,’’ कह मामाजी ने चुपके से आंख दबा दी.

हम कान लगाए सब सुन रहे थे. मामाजी द्वारा आंख दबाने से अनभिज्ञ हम मन ही मन गुदगुदाए कि अच्छा, हमें बीएमडब्ल्यू मिलने वाली है. अभी तक हम लड़की के मोटी होने के कारण नाकभौं सिकोड़ रहे थे, लेकिन फिर यह सोच कर कि अभी तक मारुति पर चलने वाले हम अब बीएमडब्ल्यू वाले हो जाएंगे, थोड़ा गर्वान्वित हुए और फिर हम ने दिखावे की नानुकर के बाद हां कह दी. वैसे भी यहां हमारी सुनने वाला कौन था?

जनाब, शहनाई बजी, डोली घर आ गई. लेकिन जब बीएमडब्ल्यू के बिना डोली आई तो असमंजस में पड़ हम ने अपने दोस्त रमेश से अपनी परेशानी जाहिर की. रमेश हंसा, फिर मामाजी से नजरें मिला हमारी श्रीमतीजी की ओर इशारा कर बोला, ‘‘यही तो हैं तुम्हारी बीएमडब्ल्यू. नहीं समझे क्या? अरे पगले बीएमडब्ल्यू का मतलब बहुत मोटी वाइफ. अब समझे क्या?’’

अब्रीविऐशन कितना कन्फ्यूज करती है, हमें अब समझ आया. मजाक का पात्र बने सो अलग. हम इस मुगालते में थे कि बीएमडब्ल्यू कार मिलेगी. खैर हम ने बीएमडब्ल्यू, ओह सौरी, श्रीमतीजी के साथ गृहप्रवेश किया.

हमें फोटो खिंचवाने का शौक था और फोटोजेनिक फेस भी था, मगर शादी में हमारे सारे फोटो दबे रहे. बस, दिखतीं तो सिर्फ हमारी श्रीमतीजी. गु्रप का कोई फोटो उठा कर देख लें, आसपास खड़े सूकड़ों के बीच घूंघट में लिपटी हमारी मोटी श्रीमतीजी अलग ही दिखतीं. उस पर वीडियो वाले ने भी कमाल दिखाया. उस ने डोली में हमारे पल्लू से बंधी पीछे चलती श्रीमतीजी के सीन के वक्त फिल्म ‘सौ दिन सास के’ का गाना, ‘दिल की दिल में रह गई क्याक्या जवानी सह गई… देखो मेरा हाल यारो मोटी पल्ले पै गई…’ चला दिया.

हनीमून पर मनाली पहुंचे तो होटल के स्वागतकर्ता ने हमारी खिल्ली उड़ाते हुए कहा, ‘‘आप चिंता न करें हमारे डबलबैड वाले रूम में व्यवस्था है कि एक सिंगल बैड अलग से जोड़ा जा सके.’’ हम तो खिसिया कर रह गए, लेकिन श्रीमतीजी ने रौद्र रूप दिखा दिया, बोलीं, ‘‘मजाक करते हो? खातेपीते घर की हूं…फिर डबलबैड पर इतनी जगह तो बच ही जाएगी कि बगल में ये सो सकें. इन्हें जगह ही कितनी चाहिए?’’

पता नहीं श्रीमतीजी ने हमारे पतलेपन का मजाक उड़ाया था या फिर अपनी इज्जत बढ़ाई थी, पर इस पर भी हम शरमा कर ही रह गए.हमारी हनीमून से वापसी का दोस्तों को पता चला तो पहुंच गए हाल पूछने. न…न..हाल पूछने नहीं बल्कि छेड़ने और फिर छेड़ते हुए बोले, ‘‘भई, कैसी है तुम्हारी बीएमडब्ल्यू?’’ अब्रीविऐशन के धोखे और लालच में लिए गए फैसले ने हमें एक बार फिर कोसा. हम अपनी बेचारगी जताते खीजते हुए बोले, ‘‘दोस्तों, हनीमून पर घूमनेफिरने, किराएभाड़े से ज्यादा तो श्रीमतीजी के खाने का बिल है. अब तुम्हीं बताओ…’’ कहते हुए जेहन में फिर वही गाना गूंज उठा कि मोटी पल्ले पै गई…

अभी हमारी बात पूरी भी न हुई थी कि हमारे दोस्त रमेश ने हमें धैर्य बंधाते हुए कहा, ‘‘बी पौजिटिव यार. क्यों आफत समझते हो? वह सुना नहीं अभिताभ का गाना, ‘जिस की बीवी मोटी उस का भी बड़ा नाम है बिस्तर पर लिटा दो गद्दे का क्या काम है…’ और फिर मोटे होने के भी अपने फायदे हैं.’’

हम इस गद्दे के आनंद का एहसास हनीमून पर कर चुके थे. सो पौजिटिव सोच बनी. पर तुरंत रमेश से पूछ बैठे, ‘‘क्या फायदे हैं मोटी बीवी होने के जरा बताना? हम तो अभी तक यही समझ पाए हैं कि मोटी बीवी होने पर खाने का खर्च बढ़ जाता है, कपड़े बनवाने के लिए 5-6 मीटर की जगह पूरा थान खरीदना पड़ता है.’’

उस दिन हम टीवी देख रहे थे कि तभी घंटी बजी. हम ने दरवाजा खोला, सामने रमेश खड़ा था, अपनी  शादी का कार्ड थामे, अंदर घुसते ही हैरानी से पूछने लगा, ‘‘क्या हुआ भई छत पर तंबू क्यों लगा रखा है? खैरियत तो है न?’’ हम यह देखने बाहर जाते, उस से पहले ही श्रीमतीजी बोलीं, ‘‘अरे, वह तो मैं अभीअभी अपना पेटीकोट सूखने डाल कर आई हूं.’’

सुनते ही रमेश की हंसी छूट गई. फिर हंसते हुए बोला, ‘‘हां भई, हम तो भूल ही गए थे कि अब तुम बीएमडब्ल्यू वाले हो गए हो…उस का कवर भी तो धोनासुखाना पड़ेगा, न?’’ बीएमडब्ल्यू के लालच में पड़ना हमें फिर सालने लगा. हमारी त्योरियां चढ़ गईं कि एक तो इतना बड़ा पेटीकोट, उस पर उसे तारों पर फैलाया भी ऐसे था कि सचमुच तंबू लग रहा था. फिर वही गाना मन में गूंज उठा, ‘मोटी पल्ले पै गई…’

खैर, रमेश शादी का न्योता देते हुए बोला, ‘‘समय पर पहुंच जाना दोनों शादी में.’’ जनाब, हम अपनी बीएमडब्ल्यू को मारुति में लादे पार्टी में पहुंच गए और एक ओर बैठ गए. तभी फोटोग्राफर कपल्स के फोटो लेते हुए वहां पहुंचा और हमें भी पोज देने को कहा.

आगेपीछे देख कोई पोज पसंद न आने पर वह बोला, ‘‘भाई साहब, आप भाभीजी के साथ सोफे पर दिखते नहीं…भाभीजी के वजन से सोफा दबता है और आप पीछे छिप जाते हैं. ऐसा करो आप सोफे के बाजू पर बैठ जाएं.’’

हम ने वैसा ही किया. पोज ओके हो गया, लेकिन तब तक पास पहुंच चुके दोस्त हंसते हुए बोले, ‘‘क्या यार सोफे के बाजू पर बैठे तुम ऐसे लग रहे थे जैसे भाभीजी की गोद में बैठे हो.’’

मोटे होने का एक और फायदा मिल गया था. इतने स्नैक्स निगलने के बाद भी हमारी श्रीमतीजी ने डट कर खाना खाया. सचमुच 500 के शगुन का 1000 तो वसूल ही लिया था. साथ ही एक और बात देखी. जहां अमूमन पत्नियां प्लेट भर लेती हैं और थोड़ाबहुत खा कर पति के हवाले कर देती हैं, फिनिश करने को, वहीं यहां उलटा था. श्रीमतीजी के कारण हम ने हर व्यंजन चखा. उस दिन हम ससुराल से लौटे तो अपनी गाड़ी की जगह किसी और की गाड़ी खड़ी देख झल्लाए. तभी श्रीमतीजी बोलीं, ‘‘अरे, यह तो विभा की गाड़ी है,’’ और फिर तुरंत अपने मोबाइल से विभा का नंबर मिला दिया.

पड़ोस में तीसरी मंजिल पर रहने वाली विभा महल्ले की दबंग औरत थी. सभी उस से डरते थे. विभा तीसरी मंजिल से तमतमाती नीचे आई और दबंग अंदाज में बोली, ‘‘ऐ मोटी, इतनी रात को क्यों तंग किया? कहीं और लगा लेती अपनी गाड़ी? मैं नहीं हटाने वाली अपनी गाड़ी. कौन तीसरे माले पर जाए और चाबी ले कर आए?’’

‘‘क्या कहा, मोटी…’’ कहते हुए हमारी श्रीमतीजी ने विभा को हलका सा धक्का दिया तो वह 5 कदम पीछे जा गिरी.

विभा की सारी दबंगई धरी की धरी रह गई. आज तक जहां महल्ले वाले उस से नजरें भी न मिला पाते थे वहीं हमारी श्रीमतीजी ने उसे रात में सूर्य दिखा दिया था.

‘‘अच्छा लाती हूं चाबी,’’ कहती हुई वह फौरन गई और चाबी ला कर अपनी गाड़ी हटा कर हमारी गाड़ी के लिए जगह खाली कर दी.

इसी के साथ ही हमें श्रीमतीजी के मोटे होने का एक और फायदा दिख गया था. हम भी कितने मूर्ख थे कि अब तक यह भी न समझ पाए कि अगर श्रीमतीजी का वजन ज्यादा है तो इन की बात का वजन भी तो ज्यादा होगा अब महल्ले में हमारी श्रीमतीजी की दबंगई के चर्चे होने लगे. साथ ही हम भी मशहूर हो गए. हमारे मन में श्रीमतीजी के मोटापे को ले कर जो नफरत थी अब धीरेधीरे प्यार में बदलने लगी थी.

अब कोई मिलता और हमारी श्रीमतीजी के लिए मोटी संबोधन का प्रयोग करता तो हम भी उसे मोटापे के फायदे गिनाने से नहीं चूकते. उस दिन हमारी  कुलीग ज्योति किसी काम से हमारे घर आई तो हम ने श्रीमतीजी से मिलवाया, ‘‘ये हमारी श्रीमतीजी…’’

अभी इंट्रोडक्शन पूरा भी न हुआ था कि ज्योति बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘बहुत मोटी वाइफ हैं आप की,’’ और हंस दी.

हमें लगा यह भी हमें बीएमडब्ल्यू के मुगालते वाला ताना मार रही है सो थोड़ा किलसे लेकिन श्रीमतीजी ने बड़े धांसू तरीके से ज्योति की हंसी पर लगाम कसी, ‘‘मेरे मोटापे को छोड़ अपनी काया की चिंता कर. मैं तो खातेपीते घर की हूं. तुझे देख तो लगता है घर में सूखा पड़ा है. कुछ खायापीया कर वरना ज्योति कभी भी बुझ जाएगी.’’ लीजिए, हमें मोटे होने का एक और फायदा मिल गया. अब कोई हमें यह ताना भी नहीं मार सकता था कि हम अपनी श्रीमतीजी को खिलातेपिलाते नहीं, बल्कि इन का मोटा होना ससुराल को खातापीता घर घोषित करता था.

आज लड़कियां स्लिमट्रिम रहने के लिए कितना खर्च करती हैं. हमारा वह खर्च भी बचता था. साथ ही उन के खातेपीते रहने से हमारी सेहत में भी सुधार होने लगा था. उस दिन टीवी देखते हुए एक चैनल पर हमारी नजर टिक गई जहां विदेश में हो रही सौंदर्य प्रतियोगिता दिखाई जा रही थी. खास बात यह थी कि यह सौंदर्य प्रतियोगिता मोटी औरतों की थी.

कितनी सुंदर दिख रही थीं वे मांसल शरीर के बावजूद. हमारी श्रीमतीजी देखते ही इतराते हुए बोलीं, ‘‘देखो, बड़े ताने कसते हैं तुम्हारे यारदोस्त मुझ पर, मेरे मोटापे को ले कर छींटाकशी करते हैं, बताओ उन्हें कि मोटे भी किसी से कम नहीं.’’ हमें श्रीमतीजी की बात में फिर वजन दिखा. साथ ही उन के मोटापे में सौंदर्य भी. अब हमें मोटी श्रीमतीजी भाने लगी थीं, बीएमडब्ल्यू हमारी मारुति में समाने लगी थी.

अब हमारे विचारों में परिवर्तन हुआ. श्रीमतीजी पर प्यार आने लगा. हमारे मन में बसी ऐश्वर्या की जगह मोटी सुंदरी लेने लगी. ‘ऐश अगर सुंदरता के कारण फेमस है, तो हमारी श्रीमतीजी मोटापे के कारण. ऐश सब को लटकेझटके दिखा दीवाना बनाती है तो हमारी श्रीमतीजी अपनी दबंगई से सब को उंगलियों पर नचाती हैं. ऐश गुलाब का फूल हैं तो हमारी श्रीमतीजी गोभी का. फिर फूल तो फूल है. गुलाब का हो या फिर गोभी का. अब जेहन का गीत, ‘मोटी पल्ले पै गई…’ से बदल कर ‘मोटी मन को भा गई…’ बनने लगा. इसी सोच के चलते उस दिन भागमभाग वाली दिनचर्या से निबट आराम से पलंग पर लेटे ही थे कि कब आंख लग गई, पता ही न चला. फिर आंख तब अचानक खुली जब श्रीमतीजी ने बत्ती बुझाने के बाद औंधे लेटते हुए अपनी टांग हमारी पतली टांगों पर रख दी.

बड़ा सुकून मिला. आज के समय में कहां श्रीमतीजी थकेहारे पति के पांव दबाती हैं, लेकिन हमारी श्रीमतीजी ने अपनी टांग हमारी टांगों पर रखते ही यह काम भी कर दिया था. तभी हम ने सोचा कि आखिर यह भी तो एक फायदा ही है श्रीमतीजी के मोटे होने का बशर्ते पत्नी गद्दे की जगह रजाई न बने वरना तो कचूमर ही निकलेगा.

दुर्घटना का कारण बनती हैं पुरुषों के दिखावे में काम आने वाली महंगी कारें

महाराष्ट्र में पुणे के कल्याणी नगर में एक रईसजादे वेदांत अग्रवाल ने रात के करीब 2.30 बजे अपनी महंगी पोर्शे कार से बाइक सवार अनीस अवधिया और अश्विनी कोष्टा को टक्कर मार दी. इस घटना में दोनों की मौत हो गई है. इस घटना के बाद वहां लोगों ने रईसजादे की जम कर पिटाई की. वेदांत के पिता विशाल अग्रवाल मशहूर ब्रह्मा रियलिटी कंपनी के मालिक हैं जो बिल्डिंग बनाने का काम करती है.

पुलिस ने वेदांत अग्रवाल के खिलाफ यरवड़ा पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कर ली. इस घटना के बाद मृतकों के दोस्त एकिब रमजान मुल्ला ने पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई. अश्विनी और अनीस दोस्तों के साथ अपनी मोटरसाइकिल पर कल्याणीनगर से यरवड़ा की ओर यात्रा कर रहे थे. वेदांत अपनी पोर्शे कार को तेज गति से चला रहा था. इस बीच वह कार से नियंत्रण खो बैठा. इस के बाद कार एक बाइक और अन्य वाहनों से टकरा गई.

रईसजादे का शिकार बने 2 इंजीनियर

पुणे पोर्श कार हादसे का आरोपी वेदांत अग्रवाल के बालिग और नाबालिग होने पर सवाल उठ रहे हैं. वेदांत ने अपनी कार से जिन बाइक सवार को रौंद दिया वेह दोनों इंजीनियर थे. पुलिस ने वेदांत के पिता विशाल अग्रवाल को गिरफ्तार कर लिया. विशाल के पिता सुरेंद्र कुमार अग्रवाल ने अपने भाई से संपत्ति विवाद में अंडरवर्ल्ड डौन छोटा राजन की मदद ली थी. राजन के गुर्गे ने गोलीबारी भी की थी. पहले पुलिस ने जांच की. बाद में सीबीआई को मामला सौंपा गया. यह केस कोर्ट में विचाराधीन है. इस से यह साफ जाहिर होता है कि आरोपी वेंदात का परिवार दबंग किस्म का था. उस के लिए इस तरह के हादसे कोई बड़ी बात नहीं.

हमारी अदालतों में मुकदमे सालोंसाल चलते हैं. जिस वजह से सही समय पर न्याय नहीं मिल पाते. 5 करोड़ से अधिक के मामले आदलतों में लंबित हैं. अमीर आदमी के मामलों में विवेचना से ले कर जिरह तक में इतना घालमेल हो जाता है कि आरोपी बरी हो जाता है. पीड़ित को न्याय नहीं मिल पाता. उन परिवारों के बारे में कोई नहीं सोच रहा जिन के बाइक सवार 2 बच्चे दुर्घटना का शिकार हुए हैं.

17 साल के लड़के ने पहले शराब के नशे में अपनी पोर्शे कार से बाइक सवार 2 इंजीनियरों को रौंद दिया. हादसे में दोनों लड़कालड़की की मौत हो गई. मरने वालों की पहचान 24 साल के अनीश अवधिया और 24 साल की अश्विनी कोष्टा के रूप में हुई है. दोनों मध्य प्रदेश के रहने वाले थे. पुणे में काम करते थे.

इस मामले में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने कुछ शर्तों के साथ आरोपी नाबालिग को रिहा कर दिया. बाद में पुलिस ने आरोपी नाबालिग के पिता विशाल अग्रवाल को छत्रपति संभाजीनगर से गिरफ्तार किया. विशाल अग्रवाल की कार बिना रजिस्ट्रेशन सड़कों पर दौड़ रही थी. इस से साफ पता चलता है कि विशाल अग्रवाल कितना पहुंच वाला आदमी है.

पोर्शे कार की कीमत

भारत में इस समय पोर्शे कार के 8 मौडल्स बिक्री के लिए उपलब्ध है. इन में 3 एसयूवी, 4 कूपे और 1 वैगन शामिल हैं. पोर्शे ने पोर्शे टायकन भी 2024 लौंच की है. इंडिया में पोर्शे कारों की कीमत 88.06 लाख से शुरू होती है. भारत में पोर्शे की सब से महंगी कार 911 है जो 4.26 करोड़ रुपए में उपलब्ध है. पोर्शे के लाइनअप में सब से लेटेस्ट मौडल क्यान है जिस की कीमत 1.36 से 2 करोड़ रुपए है. पोर्शे की मौजूदा कारों में मैकन, क्यान, केएन कूप, 718, टायकन, मैकन ईवी, पैनामेरा और 911 जैसी कारें शामिल हैं.

पोर्शे जरमनी की औटोमोबाइल कंपनी है जो हाई परफौर्मेंस स्पोर्ट्स कार, एसयूवी और सेडान बनाने के लिए मशहूर है. इस कंपनी का स्वामित्व आस्ट्रियन पोर्श और पाइक फैमिली (आस्ट्रियन बिजनैस फैमिली पोर्श) के पास है. मई 2006 के एक सर्वे में पोर्श को लग्जरी इंस्टिट्यूट, न्यूयौर्क द्वारा सब से प्रतिष्ठित औटोमोबाइल ब्रैंड का खिताब दिया गया. इस सर्वे में 7,20,000 अमेरिकी डौलर की कुल संपत्ति वाले 500 से अधिक परिवारों ने हिस्सा लिया था जिन की वार्षिक आय न्यूनतम 200,000 अमेरिकी डौलर थी.

भारत में बढ़ रहा है महंगी कारों का शौक

सस्ती और टिकाऊ गाड़ियों के बजाय अब भारतीयों को महंगी गाड़ियां पंसद आ रही हैं. देश में लग्जरी कारों की बिक्री में 41 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. इन कारों में लुक और सेफ्टी फीचर्स के साथ ही साथ दिखावा भी होता है. साल 2022 में कुल गाड़ियों के मुकाबले 41 फीसदी गाड़ियां 10 लाख रुपए से अधिक कीमत की थीं.

क्रिकेट खिलाडी ऋषभ पंत के साथ कार का हादसा हुआ था. उस में उस को गंभीर चोटें आईं थीं. दिल्लीदेहरादून एक्सप्रेसवे पर हुए हादसे के समय में ऋषभ मर्सिडीज कार से सफर कर रहे थे. इस हादसे में ऋषभ की जान बच गई. जिस का श्रेय उन की महंगी गाड़ी को दे रहे हैं. अगर मर्सिडीज जैसी लग्जरी कार की जगह किसी साधारण कार में वे होते तो इतने भयानक हादसे में बच पाना मुश्किल था. महंगी कारों के सेफ्टी फीचर्स लोगों को लुभा रहे हैं.

पहले लोग सस्ती और टिकाऊ गाड़ियां पसंद करते थे. वहीं अब भारत में महंगी गाड़ियों का क्रेज बढ़ रहा है. टोयोटा, फोर्ड, इनोवा, सकोडा, सिकैड, औडी और मर्सिडीज जैसी गाड़ियों की डिमांड तेजी से बढ़ रही है. साल 2018 के मुकाबले साल 2022 में इन लग्जरी और महंगी गाड़ियों की डिमांड में 41 फीसदी की तेजी आई है. ग्रामीण इलाकों में भी स्कौर्पियो और फारच्युनर जैसी गाडियां लोगों की पंसद बनती रही हैं.

आंकड़ों को देखें तो 10 लाख रुपए से ऊपर के महंगी कारों को खरीदने वालों की संख्या बढ़ रही है. शौकीन लोग 25 लाख से 60 लाख रुपए तक की रेंज में गाडियां खरीद रहे हैं. इन में 3 श्रेणी के लोग हैं. पहले बिजनैसमैन हैं. दूसरे नेता और तीसरे अफसर हैं. इन की गाड़ियां इन के अपने नाम से कम होती हैं. माफिया टाइप लोगों के पास एक गाड़ी का मतलब नहीं होता, उन को अपने काफिले में एकजैसी 6-7 गाड़ियां चलने के लिए चाहिए. ये गाडियां बड़ी आसानी से बैंक लोन से मिल जाती हैं.

साल 2018 में 10 लाख से अधिक महंगी कारों की सेल 5.4 लाख थी तो वहीं साल 2022 में यह आंकड़ा 15.5 लाख के ऊपर पहुंच गया. अगर तुलना करें तो साल 2008 में करीब 34 लाख कारों की बिक्री हुई, जिन में से 16 फीसदी गाड़ियां ऐसी थीं जो 10 लाख रुपए से अधिक कीमत की थीं. वहीं साल 2022 में 38 लाख गाड़ियों की बिक्री हुई, लेकिन इस दौरान 10 लाख से महंगी कारों की संख्या 15 लाख रुपए को पार कर गई. यानी, महंगी कारें खरीदने वालों में 41 फीसदी का इजाफा हुआ.

शान और साख बढ़ाती हैं महंगी गाड़ियां

महंगी गाड़ियों की बढ़ती खरीदारी की 3 वजहें हैं. पहली, दिखावा यानी शान. जिस तरह से अमीर औरतों को अपने गहने और साड़ी दिखाने में खुशी होती है उसी तरह से पुरुष अपनी महंगी कार दिखा कर दूसरों पर रोब डालता है. जब वह अपनी महंगी कार से उतरता है तो मन में अलग किस्म की खुशी होती है. घर कितना भी अच्छा हो, उसे दिखाने के लिए लोगों को बुलाना पड़ता है. महंगी कार दिखाने के लिए किसी को बुलाना नहीं पड़ता.

महंगी गाड़ियों के फीचर्स लोगों को लुभा रहे हैं. सनरूफ, ड्राइविंग असिस्ट फीचर्स, 360 डिग्री कैमरा, इंफोर्मेशन स्क्रीन, 6 एयरबैग्स फीचर्स, महंगे साउंड फीचर्स भारतीयों को लुभा रहे हैं. इस के अलावा महंगी गाड़ियों के सेफ्टी फीचर्स लोगों को खूब लुभा रहे हैं. महंगी गाड़ियां समाज में साख को बढ़ाती हैं. लोग आप पर भरोसा करने लगते हैं. जिस बिजनैस में आप हैं उस में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी इस से संभव होती है.

अच्छी सड़कें होने से एक शहर से दूसरे शहर की दूरी कम हो गई है. अच्छी कारों से यह सफर कम समय में तय हो जाता है. यह बात और है कि महंगी कारें दुर्घटना का कारण बनती हैं. सुरक्षा कारणों से कार चलाने वाला भले ही बच जाएं पर सड़क पर चलने वाले इस की चपेट में आ ही जाता है. पुणे में 2 परिवार तबाह हो गए, जिन के बच्चे अपने परिवार की मदद के लिए इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद जौब कर रहे थे.

कानून और अदालतें गुनाहगार को दंड देने से अधिक उस के बचाने का काम करती है. वेदांत अग्रवाल को नाबालिग मान कर उसे छोड़ दिया है. उस के पिता को पुलिस ने पकड़ा है. पिता के खिलाफ केवल यह आरोप है कि उस ने नाबालिग बेटे को गाड़ी चलाने को दी और गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नहीं था. इस मामले में मामूली सजा के बाद आरोपी छूट जाएगा. जिन परिवार के बच्चे हादसे का शिकार हुए, 2-4 दिन रोपीट कर उन के परिवार वाले चुप हो जाएंगे.

क्या कहता है कानून

लापरवाही और तेज गति से व्हीकल ड्राइविंग दूसरों के जीवन खतरे में डालने वालों को जेल जाना होगा. केंद्र सरकार के नए प्रस्ताव के मुताबिक जानलेवा दुर्घटना गैरजमानती अपराध होगा. ऐसे प्रकरणों में दोष सिद्ध होने पर अधिकतम 2 साल की सजा की जगह नए कानून में न्यूनतम 2 साल से ले कर अधिकतम 7 साल तक की सजा भुगतनी पड़ सकती है. सजा को सख्त बनाने के पीछे सड़क दुर्घटनाओं में कमी ला कर यात्रा को सुरक्षित बनाना है.

गृह मंत्रालय ने कहा की आईपीसी (भारतीय दंड संहिता 1860) की सड़क दुर्घटनाओं से संबंधित धाराओं में सुधार किया जा रहा है. आईपीसीसी की धारा 304 में दुर्घटना से मौत या असावधानी से किसी की मृत्यु होने पर अधिकतम 2 वर्ष तक की सजा का प्रावधान था, साथ ही पुलिस को थाने में जमानत पर छोड़ने का अधिकार था. अब आईपीसी की धारा 304 में उपधारा जोड़ कर इसे 304 ए किया किया जा रहा है. कानून तक मसले पहुंचते कम हैं, जो पहुंचते हैं उन को चक्कर लगाने पड़ते हैं. पीड़ित को न्याय नहीं मिलता.

शादी के बाद रिश्ते में आने न दें दूरी, अपनाएं ये तरीके

यूनीसेफ की एक रिसर्च में पाया गया कि अगर मातापिता बच्चे के लिए समय नहीं निकालते और उन की परेशानियों को सुनते नहीं तो ऐसे बच्चे अपने मातापिता या अन्य लोगों के साथ बदतमीजी करने लगते हैं और जिद्दी बन जाते हैं.

बढ़ते बच्चों के पेरैंट्स अकसर यह शिकायत करते हैं कि उन का बच्चा आजकल बदतमीजी करता है, बात नहीं मानता, जिद करता है या फिर बिलकुल उदासीन हो गया है. इस तरह की समस्याएं पेरैंट्स को परेशान करती हैं. बच्चों के जिद्दी और बदतमीज होने के पीछे का मुख्य कारण बच्चों में तनाव यानी स्ट्रैस होता है. जब बच्चों के आसपास तनावग्रस्त माहौल होता है या वे किसी से अपने मन की बात नहीं कह पाते या कोई बैठ कर समझाने वाला नहीं होता तो बच्चे जिद्दी और बदतमीज या मायूस हो सकते हैं.

ऐसे में जरूरी हो जाता है कि पेरैंट्स अपने व्यस्त शेड्यूल से समय निकालें और उन को गाइड करें. उन के साथ बातें करें और उन की समस्याओं पर डिस्कशन करें ताकि उन्हें इस बात का एहसास हो कि पेरैंट्स उन का कितना खयाल रखते हैं और कोई भी मुश्किल आ जाए तो पेरैंट्स उन्हें उस प्रौब्लम से बाहर निकाल लेंगे.

बच्चे आप का समय चाहते हैं और कुछ ऐसा ही आप के जीवनसाथी के साथ भी है. आप का जीवनसाथी भी आप से हर बात शेयर करना चाहता है, कुछ समस्या हो तो डिसकस करना चाहता है और साथ समय बिताना चाहता है. पर अकसर हमारे पास उन के लिए समय नहीं होता और इस का नतीजा अकसर रिश्ते में बढ़ती दूरी के रूप में सामने आता है.

शादी के बाद अकसर कम हो जाता है प्यार

वैसे तो कहा जाता है कि सच्चा प्यार कभी नहीं बदलता लेकिन अकसर देखा गया है कि शादी के बाद पतिपत्नी के बीच प्यार बढ़ने के बजाय कम होने लगता है. एकदूसरे पर जान छिड़कने वाले लोग किसी न किसी वजह से लड़ाई करने लगते हैं.

दरअसल, शादी के कुछ सालों बाद ही सब बदलने लगता है. जैसेजैसे दिन बीतते जाते हैं, पतिपत्नी दोनों को एकदूसरे से शिकायत होने लगती है. पत्नियों को यह लगता है कि पति पहले जैसे रोमांटिक नहीं रहे, प्यार नहीं जताते, साथ समय नहीं बिताते, सरप्राइज नहीं देते, बोरिंग हो गए हैं. वहीं पतियों को लगता है कि पत्नियां अब उन के लिए सजतीसंवरती नहीं हैं, बच्चों के साथ ज्यादा समय बिताती हैं, घर के कामों में लगी रहती हैं, हमेशा थकान का बहाना करती हैं.

रूममेट सिंड्रोम का फंडा

कई दफा हालात ऐसे हो जाते हैं कि पतिपत्नी के रिश्ते में प्यार और भावनात्मक लगाव की कमी हो जाती है. उन के बीच करीबी रिश्ता बनना भी कम हो जाता है लेकिन परिवार या जमाने के दबाव के चलते वे अलग नहीं हो पाते. ऐसे में वे एक छत के नीचे रहते तो हैं, साथ में खातेपीते भी हैं, घर बाहर के काम, खर्च और घर की जिम्मेदारियां भी आधीआधी बांट लेते हैं पर दिल से दूरी बनी रहती है. बाहर से दिखने पर पार्टनर्स की तरह नजर आते हैं लेकिन उन के रिश्ते में प्यार नदारद होता है. दोनों रिश्ते को बोझ की तरह ढोने लगते हैं.

मनोविज्ञान की भाषा में इसे ‘रूममेट सिंड्रोम’ कहते हैं. यह विभिन्न कारणों से किसी भी रिश्ते में पनप सकता है. लेकिन अगर कपल्स के बीच यह सिंड्रोम पैदा हो जाए तो यह रिश्ते को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने लगता है.

कभी आप ने सोचा है कि पतिपत्नी के बीच दूरियां क्यों बढ़ जाती हैं? पतिपत्नी के बीच बातचीत करने के लिए कोई कौमन टौपिक क्यों नहीं रहता या फिर वे छोटीछोटी बात पर झगड़ क्यों पड़ते हैं?

बौद्धिक जुड़ाव का अभाव

पतिपत्नी के बीच अकसर बातचीत के लिए कोई बौद्धिक टौपिक नहीं रह जाता. वे घर, परिवार या बच्चों की समस्याएं तो डिस्कस करते हैं मगर देश, समाज या राजनीति में क्या हो रहा है, इस पर बात नहीं करते.

वे किताबें या पत्रिकाएं नहीं पढ़ते, इसलिए नई चीजों से अपडेट नहीं रहते. उन के पास किसी नौवेल, आर्टिकल या कहानी डिस्कस करने की सोच नहीं होती. यानी, वे कुछ रोचक बातें नहीं करते जैसा कि हम दोस्तों के बीच करते हैं. वे कुछ मजेदार गेम्स भी नहीं खेलते और कोई गंभीर या कौमेडी मूवी भी साथ नहीं देखते. कुल मिला कर पतिपत्नी दोस्त नहीं बन पाते, इसलिए रिश्ता बोरिंग होने लगता है. एकदूसरे के लिए चार्म खत्म हो जाता है.

सामाजिक प्रथाओं के हिसाब से चलने पर जोर

शादी 2 परिवारों का मिलन होता है जबकि दोनों परिवारों की प्रथाएं अलग होती हैं. 2 अलग घरों के लोग विवाह के बंधन में बंधते हैं और दोनों के घर का रहनसहन, खानेपीने और त्योहारों को मनाने का तरीका सबकुछ अलग होता है. ऐसे में पति अपने घर की प्रथाओं को अहमियत देता है जबकि पत्नी परिवार को अपने तरीके से चलाना चाहती हैं. यही वजह है कि दोनों के बीच नोंकझोंक शुरू हो जाती है और प्यार कम होता नजर आने लगता है.

जिम्मेदारियों का बढ़ना

शादी के पहले लड़के और लड़कियों की कोई खास पारिवारिक जिम्मेदारी नहीं होती और वे अपनी दुनिया में खोए रहते हैं. लेकिन शादी के बाद रोजमर्रा की जिम्मेदारियां बढ़ने लगती हैं. जिम्मेदारियों का बोझ पतिपत्नी के बीच लड़ाई का बड़ा कारण बन जाता है. लड़के खुद को जिम्मेदार महसूस करने लगते हैं तो नौकरी को सीरियसली लेते हैं और लड़कियां परिवार के सदस्यों का दिल जीतने के लिए घर के कामों में लग जाती हैं. अगर नौकरी करती हैं तो जिम्मेदारी और बढ़ जाती है. ऐसे में कपल को एकदूसरे के लिए वक्त नहीं मिल पाता.

परिवार का हस्तक्षेप

शादी के बाद अकसर कपल्स की जिंदगी में परिवार का ज्यादा इंटरफेरेंस पतिपत्नी के बीच दरार डाल देता है. ज्यादातर लड़कियां मोबाइल पर अपनी मां, भाभी या बहन को अपनी जिंदगी की हर घटना विस्तार से बताती हैं. हर घटना का प्रौपर पोस्टमार्टम होता है और ससुराल वालों की कमियां गिनाई जाती हैं. इधर लड़के की मां भी रिश्तेदारों के जरिए अपनी बहू की कमियों और दोषों का आकलन करती हैं. इस के बाद दोनों के ही घरवाले पतिपत्नी की निजी जिंदगी में हस्तक्षेप करने लगते हैं. इस से घर में तनाव बढ़ता है और पतिपत्नी के रिश्ते में अनायास ही दूरी आने लगती है.

पार्टनर को समय न देना

शादी के बाद पतिपत्नी दोनों अपनी दिनचर्या में इतने उलझ जाते हैं कि उन के पास एकदूसरे के लिए समय ही नहीं होता है. समय की कमी भी एकदूसरे के बीच कम होते प्यार की वजह हो सकती है. पत्नी यदि जौब करने वाली होती है तो वैसे ही उस के पास समय नहीं बचता. वह घरेलू हो तो भी आज के समय में मोबाइल से ही छुट्टी नहीं मिलती. इधर यदि बच्चे हो जाते हैं तब तो वैसे ही पतिपत्नी उस में व्यस्त हो जाते हैं.

हक जमाना

शादी की शुरुआत में तो हर कपल के बीच सबकुछ ठीक देखने को मिलता है, लेकिन वक्त के साथ कई बार अगर वे एकदूसरे पर अधिकार जमाने लगते हैं या पार्टनर का अपमान करने को नौर्मल समझते हैं तो रिश्तों में दूरियां बढ़नी शुरू हो जाती हैं.

एक दूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं

अपने जीवनसाथी के साथ कुछ खूबसूरत समय जरूर बिताएं. इस समय हर काम से छुट्टी लें और केवल एकदूसरे में खो जाएं. किसी पार्क में जाएं या लाइब्रेरी में रोचक किताबें मिल कर पढ़ें. साथ शौपिंग करें या मूवी देखने जाएं. कभीकभी एडवैंचर ट्रिप पर भी निकलें. मतलब जिंदगी के अनमोल लमहे साथ गुजारें.

तारीफ करने से हिचकें नहीं

जब आप गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड की तरह रिलेशनशिप में होते हैं तो अकसर ही एकदूसरे की तारीफ करते हुए नजर आते हैं. लेकिन शादी के बाद कपल्स अकसर इन चीजों को कम करना शुरू कर देते हैं. जबकि किसी बात के लिए धन्यवाद कहना या तारीफ करना बेहद जरूरी होता है. इस से आप न सिर्फ अपने पार्टनर को अच्छा महसूस कराते हैं बल्कि उस के महत्त्व को भी बताते हैं. जब आप का पार्टनर आप के लिए कुछ खास करता है तो आप का उन्हें थैंक्यू करना भी बनता है. लेकिन अकसर लोग इन बातों को ही इग्नोर करते हैं और उन के रिश्ते में एहसास मरने लगते हैं.

ईगो छोड़ सौरी बोलना सीखें

रिश्ते में लोग अकसर जब अपना ईगो ले आते हैं तो पार्टनर के साथ उन का रिश्ता टूटने लगता है. अगर किसी बात पर आप की गलती है, तो आप को उन्हें सौरी बोलने में बिलकुल भी हिचकिचाहट महसूस नहीं करनी चाहिए. आप को यह समझना होगा कि लड़ाईझगड़े हर कपल के बीच होते हैं लेकिन अपने रिश्ते में प्यार को बनाए रखने के लिए बहस को जितनी जल्दी हो, खत्म कर लेना चाहिए. ऐसे में सौरी बोलना सीख लें.

एकदूसरे से प्रौब्लम शेयर करें और एडवाइस लें

पतिपत्नी का एकदूसरे से सलाह लेना बेहद जरूरी है. ऐसे में दोनों के बीच दोस्ती का रिश्ता भी मजबूत होता है. जिन कपल्स के बीच खुल कर बातचीत करने की आदत होती है वे सालों बाद भी अपने रिश्ते को खूबसूरती से निभा पाते हैं. याद रखें, आप का पार्टनर शादी के बाद आप की जिंदगी का हिस्सा होता है. ऐसे में आप को उस से कुछ भी कहने में हिचकिचाहट नहीं महसूस होनी चाहिए.

पार्टनर पर अपना हक जताना बंद करें

शादी के कुछ सालों बाद जब आप अपने पार्टनर के साथ बुरी तरह से बरताव करते हुए उन पर रोकटोक लगाने लगते हैं या अपनी बातों को मनवाने का प्रयास करते हैं तो रिश्ते की गाड़ी डगमगाने लगती है. अपने साथी की भावनाओं का सम्मान करें और उन के विचारों/सोच का सम्मान करें. जब आप अपने पार्टनर को इज्जत देंगे तो वे भी आप के विचारों की कद्र करेंगे.

उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास करें

पतिपत्नी एकदूसरे से पूछें कि उन की आप से क्या अपेक्षाएं हैं, उन्हें क्या पसंद है और क्या नागवार गुजरता है. दोनों अपनीअपनी उम्मीदें, मजबूरियां, परेशानियां आदि सबकुछ खुल कर शेयर करें बिना झगड़ा, बहस, आवाज ऊंची किए, शांत मन से. इस के बाद बीच का रास्ता निकालें. पतियों को समझना होगा कि पत्नी अपना मायका छोड़ कर उस के लिए आई है. किसी भी मुद्दे को ले कर घरवालों की तरफ हो जाना और उसे अकेला छोड़ देना भी ठीक नहीं है. अगर पत्नी की गलती है तो भी उसे अलग से प्यार से समझाया जा सकता है.

पत्नी को समझना होगा कि वह पति की जिंदगी में अभीअभी आई है जबकि यह परिवार उस के साथ उस के जन्म से है. पति का दिल जीतना है तो परिवार के साथ एडजस्ट करने की कोशिश करनी चाहिए.

जिम्मेदारियां मिल कर निभाएं

शादी के बाद जिम्मेदारियां बढ़ती ही हैं. ऐसे में दोनों को एकदूसरे की जिम्मेदारी समझनी होगी. एकदूसरे के कामों में मदद करनी होगी. इस तरह काम जल्दी होंगे तो दोनों साथ समय गुजार सकेंगे, घूमफिर सकेंगे और बातें भी होंगी. शादी के बाद बोरिंग हो चुके रिश्ते में दोबारा रोमांच भरने के लिए वे सारे काम दोबारा करें जो शादी के पहले करते थे. घूमने जाएं, सरप्राइज गिफ्ट्स दें आदि.

गृहशोभा ‘इम्पावर मौम्स’ इवेंट

मदर्स डे के खास मौके पर महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाते हुए दिल्ली प्रैस गृहशोभा मैगजीन ने ‘इम्पावर मौम्स’  इवेंट का आयोजन किया. जिस के सह संचालक एपिस थे. एसोसिएट स्पौंसर जौनसंस एंड जौनसंस, स्किन केयर पार्टनर ग्रीनलीफ, ग्राफ्टिंग पार्टनर डेलब्रिट्रो, होम्योपैथिक पार्टनर एसबीएल और स्पैशल पार्टनर श्री एंड शाम थे. इस कार्यक्रम का पूरा फोकस विमन इम्पावर पर था. यह कार्यक्रम दिल्ली में 18 मई, 2024 को आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में महिलाओं, जिन में अधिकतर मांएं थी, ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया.

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महिलाओं ने बढ़चढ़ कर लिया हिस्सा

पीडियाट्रिशियन सैशन

सब से पहले पीडियाट्रिशियन डाक्टर श्रेया दुबे ने शिशु देखभाल से संबंधित बातें वहां मौजूद मदर्स से साझा कीं. उन्होंने बताया कि जन्म के पहले 6 महीने तक शिशु को कोई सौलिड फूड नहीं देना चाहिए. अगर यह पहले 6 महीने में दिया जाता है तो बच्चे को इफैंक्शन होने का खतरा रहता है. 6 महीने के बाद बच्चे को मैश किए हुए फ्रूट्र्स जैसे पपीता औैर सेब दिया जा सकता है. इस के अलावा सब्जियों को उबाल कर मैश करके जैसे मैश कददू, चुकंदर, गाढ़ी दाल और दलिया दिया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इस बात का खास ख्याल रखें कि 9 महीने तक नमक और 12 महीने तक शुगर या शहद बच्चे को न दिया जाए. उन्होंने आगे कहा कि बच्चे को जबरदस्ती खाना नहीं खिलाना चाहिए. बस उन की प्लेट में खाना परोस देना चाहिए, लगभग 20 मिनट के लिए और उन पर छोड़ दें कि वे कब खाते हैं.

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पीडियाट्रिशियन डाक्टर श्रेया दुबे

इस के अलावा उन्होंने कहा कि लोगों को दूसरे के बच्चों को लेकर कोई नेगेटिव कमेंट नहीं करना चाहिए. इस से बच्चे और उन के पैरेंट्स के मन में नेगेटिविटी आ जाती है. अंत में उन्होंने महिलाओं को मदर्स डे विश करते हुए कहा कि डियर मौम्स आप अमेङ्क्षजग हैं, आप औसम हैं. आप अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं और अपने बच्चों का अच्छी तरह ख्याल रख रही हैं.

ब्यूटी ऐक्सपर्ट सैशन

सैलिब्रिटी ब्यूटी ऐक्सपर्ट डाक्टर भारती तनेजा, जो राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं और माधुरी दीक्षित और सुस्मिता सेन जैसी अभिनेत्रियों का लुक डिजाइन कर चुकी हैं, के आते ही महिलाओं में एक अलग ही उत्साह देखा गया. ऐसा लग रहा था मानो वे उन के ब्यूटी टिप्स सुनने के लिए बेताब बैठी हैं. महिलाओं को और ज्यादा इंतजार न करवाते हुए उन्होंने उन्हें कई स्किन केयर टिप्स दिए. उन्होंने कहा कि खूबसूरती बाहरी और भीतरी दोनों ही होती है और आप में ये दोनों ही होनी चाहिए. उन्होंने कहा आप की पौजिटिव सोच आप को खूबसूरत बनाती है.

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सैलिब्रिटी ब्यूटी ऐक्सपर्ट डाक्टर भारती तनेजा

उन्होंने आगे कहा कि घर और मां की जिम्मेदारी निभातेनिभाते आप अपना ख्याल नहीं रख पाती हैं. लेकिन आप अपने रुटीन में से थोड़ा सा वक्त निकालकर अपना स्किन केयर कर सकती हैं. इस के बाद उन्होंने एक स्किन केयर रुटीन बताया. जिस में उन्होंने घर में मौजूद दाल और चावल को पीसकर उस का स्क्रब बनाना सिखाया. उन्होंने महिलाओं को कई नई ब्यूटी ट्रीटमैंट्स के बारे में भी बताया. उन के द्वारा बताए गए ब्यूटी टिप्स और जानकारी को सभी ने खूब पसंद किया.

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ब्यूटी ऐक्सपर्ट डाक्टर भारती तनेजा को गिफ्ट देते हुए दिल्ली प्रेस के डायरेक्टर मिस्टर अनंत नाथ

फाइनैंस ऐक्सपर्ट सैशन

कहते हैं एक मां सबसे बड़ी योद्धा होती है. वह चाहे तो क्या कुछ नहीं कर सकती. वह अपने बच्चे का ख्याल भी रख सकती है और एक अच्छी निवेशकर्ता भी साबित हो सकती है. इसी बात एहसास उन्हें फाइनैंस ऐक्सपर्ट श्रुति देवड़ा ने कराया. श्रुति देवड़ा मुंबई की रहने वाली एक चार्टड अकाउंटेंट है. जो अपने ऐक्सपर्ट औपिनियन के लिए देशविदेश में जानी जाती हैं.

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श्रुति देवड़ा, चार्टड अकाउंटेंट

उन्होंने इवेंट में मौजूद महिलाओं और मांओ को निवेश संबंधी जानकारी दी. उन्होंने बताया कि छोटेछोटे निवेश से शुरुआत करके आप एक बड़ी बचत कर सकती हैं और इस के जरिए अपने सपनों को पूरा कर सकती हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि निवेश में कितने समय के लिए निवेश किया जा रहा है यह सब से ज्यादा महत्वपूर्ण है. जितने ज्यादा समय के लिए निवेश किया जाएगा उतना ज्यादा ब्याज मिलेगा. इसलिए निवेश लंबे समय के लिए करें. अंत में फाइनैंस ऐक्सपर्ट श्रुति ने महिलाओं के निवेश संबंधी प्रश्नों के उत्तर दिए. जिन्हें सुनकर महिलाएं बेहद संतुष्ट नजर आईं.

 

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होस्ट गेम से जुड़े सवाल पूछते हुए

गेमिंग सैशन

ऐक्सपर्ट सैशन के बाद होस्ट अंकिता ने कुछ मजेदार गेम्स खिलवाए. जिस में सब से लंबे ईयररिंग गेम, वह मां जिस का बच्चा सब से छोटा है, ऐसी मां जिस के पास बेबी प्रौड्क्ट मौजूद है जैसे मजेदार गेम शामिल थे. वहां मौजूद महिलाओं से यह भी पूछा गया कि उन्होंने अपनी मां से क्या सीखा, जिस में उन्होंने अपने अपने ऐक्सपीरियंस सभी से साझा किए. इन प्रतियोगिताओं में विजयी महिलाओं को वनलीफ ब्रिहांस की तरफ से गिफ्ट्स हैम्पर दिए गए.

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गेम में हिस्सा लेती हुई महिलाएं
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गेमिंग सैशन

कार्यक्रम के अंत में सभी को गुडी बैग्स दिए गए. मदर्स डे के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया यह कार्यक्रम महिलाओं के बीच खासा हिट रहा.

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प्रतिभागी को मिले गिफ्ट

सिरफिरे शासक के चलते देशवासियों का जीवन दुश्वार

अपनी जनता के सामने खुद को महाबली साबित करना मुश्किल काम नहीं अगर जनता के पास शासक के बारे में सच जानने का न तो जरिया हो और न सच बोलने वालों को कैद में न रख रखा हो. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जनता को जता रखा है कि वे न केवल महाशक्तिशाली हैं बल्कि बेहद लोकप्रिय भी हैं और दुनिया उन से थरथर कांपती है. यूक्रेन पर हमला उन्होंने उसी झोंक में किया जिस में वे नकली चुनावों के तहत 87.7 फीसदी वोटों से जीते थे. यूक्रेन पर उन का हमला नाकामयाब रहा है और ठीक उन की नाक के नीचे इसलामी कट्टरपंथी संगठन के 4 लड़ाकू मास्को के एक कंसर्ट हौल में घुस गए व गोलियों की बौछारों से और 133 लोगों को मार डाला.
महाबली पुतिन की शक्तिशाली गुप्तचर संस्था केजीबी, मास्को पुलिस, सेना सब देखते रह गए. पहले ऐसा ही कुछ यूक्रेन में भाड़े की फौज या कह लें रूस की प्राइवेट आर्मी वैगनर के मुखिया येवगेनी प्रिगोझिन ने किया था पर बाद में पुतीन ने उसे मरवा डाला. इसलामिक स्टेट का सीरिया स्थित गुट अपने को इस हमले का जिम्मेदार मान रहा है जबकि पुतिन किसी तरह यूक्रेन के वोलोदिमिर जेलेंस्की पर आरोप मढ़ना चाह रहे हैं.

आतंकवादी कहीं भी हमला कर सकते हैं क्योंकि वे जिंदा लौटने की तैयारी नहीं करते लेकिन मुसीबत उस शासक के लिए होती है जो शान ज्यादा बघारता है और उस चक्कर में अपनी जनता को बेमतलब के मामलों में उलझाए रखता है. एक विशाल सोवियत यूनियन फिर से बनने के सपने साकार होते देखने के लिए रूसियों का एक वर्ग पुतिन का अंधभक्त बना हुआ है और हाल यह है कि रूस को अब चीन, उत्तरी कोरिया, बेलारूस और दक्षिणी अमेरिका के कई छोटे देशों से सहायता मांगनी पड़ रही है.
रूसी जनता अब भी व्लादिमीर पुतिन की भक्त है और भक्ति की कोर्ई भी कीमत देने को वह तैयार भी है पर इस से देश न सुखी बनेगा, न जनता धनवान. आज रूस के पास लड़ाकों तक की कमी हो रही है और उस के एजेंट भारत जैसे देश से दुबलेपतले, मरियल से मजदूरों को बहका व बुला कर उन्हें मिलिट्री ड्रैस पहना यूक्रेन से जारी जंग में झोंक रहे हैं. वहीं, रूसी युवा, जो जानते हैं कि यूक्रेन से लडऩे की क्षमता रूस में नहीं बची, जबरन सेना में भरती किए जा रहे हैं.

मास्को के एक कंसर्ट हौल पर हमला निहत्थे, निर्दोषों पर हमला है पर यह हमेशा तब होता है जब शासक ज्यादा गरूर में छोर हो और न अपने लोगों की सुने और न दूसरे देशों की. अपनी जिद और अहंकार के मारे व्लादिमीर पुतिन जैसे सिरफिरे शासक दुनिया के कितने ही देशों में हैं. लोकतंत्रों में भी पैदा होते रहते हैं. अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप भी उन्हीं में से एक हैं. इन का खमियाजा आम जनता को या तो गोलियां खा कर भुगतना होता है या फिर ऐसी नीतियों को सह कर जिन से उन की कमाई को बुरी तरह चूसा जाए. रूसी लोग आज अपने युवाओं को खो रहे है और बेमतलब की लड़ाई में पैसा भी झोंक रहे हैं. रूस इतना अमीर नहीं है कि वह फैक्ट्रियों में काम कर सकने वाले युवाओं को गोलियां से मरवा सके और लोगों की जरूरत का सामान न बनवा कर फैक्ट्रियों से सैनिक सामान बनवा सके. एक शासक के सिरफिरेपन से 25 करोड़ रूसी ‘सजा’ काटने जैसी जिंदगी गुजार रहे हैं.

व्यंग्य: दोस्ती के दांत

मैंने उन्हें उस का सामना करने के लिए अपने साथ आने को बहुत पुकारा पर वे नहीं आए तो नहीं आए. मुझे लगा जैसे वे उस के भी दोस्त हों. कलियुग में सच यह है कि आज के दोस्त हाथी के दांतों की तरह होते हैं.

विश्व स्तर पर दोस्ताना संघ की स्थापना जब हुई हो तब हुई हो, पर इस की नींव की बहुतकुछ आउटलाइन मेरे जवान होते दिनों में उस समय तैयार होने लगी थी जब हम सब महल्ले के सारे जवान होते बातबात पर एकदूसरे के हाथों में एकदूसरे का हाथ ले उसे पूरे जोर से दबा कसम खाते नहीं थकते थे कि हम सब अपनीअपनी दोस्ती की कसम खाते हैं कि जो हम में से किसी को दूसरे महल्ले के गधे ने भी हाथ लगाया तो हम सब मिल कर साले के हाथपांव तोड़ कर रख देंगे. उस के हाथपांव हों या न. उस की पूंछ, कान मरोड़ कर रख देंगे. उस के पूंछ, कान हों या न. हम में से किसी की ओर दूसरे महल्ले का सही होने पर भी जो कोई आंख उठा कर भी देखेगा तो उस की आंखों में देगीमिर्च डाल देंगे. बाद में घर में दाल में मिर्च न डले तो न सही.

मुझे तब अपने दोस्तों पर यह कसम खाते हुए बहुत गर्व होता था. तब मैं अपने को कई बार महल्ले की ही नहीं, शहर की महाशक्ति समझने लग जाता था. तब मुझे लगता था कि मेरा अमेरिका भी कुछ नहीं कर सकता. तब मैं सोचता था कि मेरा चीन भी कुछ नहीं कर सकता.

पर एक दिन मेरा दोस्ती का सारा घमंड चूरचूर हो गया.

हुआ यों कि एक दिन बिन बात के दूसरे महल्ले के लड़के ने मेरी आती जवानी को बेकार में ललकार दिया जबकि मेरी आती जवानी ने उस के महल्ले का कुछ भी बुरा नहीं किया था. उस की बेकार की ललकार को सुन मैं भी तब गुस्से में आ गया था. हद है यार, बिन कुछ किए ही बंदा ललकार रहा है.

मैं गुस्से में इसलिए नहीं आया था कि मुझ में उस का विरोध करने का दम था. मैं ने सोचा था कि जिस के पीछे उस के दोस्त हों, उसे तो खुदा से भी डर नहीं लगता है. लगना भी नहीं चाहिए. दोस्तों के सिवा मेरे पास उस वक्त, बस, आतीआती जवानी थी, जबकि वह औलरैडी एडवांस लैवल का जवान था. मैं तो गुस्से में इसलिए आया था कि मेरे पास मेरे पीछे 20 दोस्त थे. मुझे अंधविश्वास था कि मेरे पीछे मेरे दोस्त हिमालय की तरह खड़े हैं. वे मेरी खाल तो क्या, किसी भी कीमत पर मेरा बाल भी बांका नहीं होने देंगे. मुझे यह पता था कि मैं उस के सामने पिद्दी हूं, पर मैं ने दोस्तों के दम पर सहर्ष उस का चैलेंज स्वीकार कर लिया. क्योंकि किताबों में किस्सेकहानियों में पढ़ा था कि जिस के पीछे दोस्त होते हैं उस का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता.

बस, फिर क्या था. मैं ने उस की ललकार को अपनी नईनई दहाड़ से दबाने की कोशिश की तो दूसरे महल्ले का लड़का और भी आक्रामक हो गया. मैं ने उस के आगे बेखौफ हो अपने नएनए लड़ने के तरीकों से अनजान छाती तान दी कलाशनिकोव राइफल की तरह, यह सोच कर कि मेरे पीछे मेरे दोस्तों की मिसाइलें हैं.

10 मिनट… 20 मिनट… तब मैं अकेला ही जैसेतैसे उस का विरोध उस के लातघूंसे सहन करता रहा, पर मेरे दोस्त मेरी सहायता को नहीं आए तो नहीं आए. वे, बस, दूर से हवा में हौकियां, डंडे लहराते, मेरे जोश को तालियां बजाते बढ़ाते, मेरी पीठ के बहाने अपनी पीठ थपथपाते तो दोतीन दूर से मेरे जख्मों पर मरहम लगाते. मैं ने तब उन्हें उस का सामना करने को अपने साथ आने को बहुत पुकारा, पर वे नहीं आए तो नहीं आए. मुझे  लगा, जैसे वे उस के भी दोस्त हों.

अंत में मैं ने खुद ही जैसेतैसे हौसला बना कर उस का आधापौना सामना किया और जैसेतैसे अपने को बचा पाया.

उस के बाद टांगों के नीचे से कान पकड़े थे कि बेटे, जिंदगी में जो हिम्मत हो तो किसी की गलतसही ललकार का सामना हो सके तो अकेले ही करना. हर वह, जो मुसीबत में काम आने की कसम खाता है, दोस्त नहीं होता. कलियुग में दोस्त हाथी के दांतों की तरह होते हैं, मुसीबत आने से पहले कसमें खाने वाले और तो मुसीबत के वक्त काम आने वाले और.

उपहार: डिंपल ने पुष्पाजी को क्या दिया?

कैलेंडर देख कर विशाल चौंक उठा. बोला, ‘‘अरे, मुझे तो याद ही नहीं था कि कल 20 फरवरी है. कल मां का जन्मदिन है. कल हम लोग अपनी मां का बर्थडे मनाएंगे,’’ पल भर में ही उस ने शोर मचा दिया.

पुष्पाजी झेंप गईं कि क्या वे बच्ची हैं, जो उन का जन्मदिन मनाया जाए. फिर इस से पहले कभी जन्मदिन मनाया भी तो नहीं था, जो वे खुश होतीं.

अगली सुबह भी और दिनों की तरह ही थी. कुमार साहब सुबह की सैर के लिए निकल गए. पुष्पाजी आंगन में आ कर महरी और दूध वाले के इंतजार में टहलने लगीं. तभी विशाल की पत्नी डिंपल ने पुकारा, ‘‘मां, चाय.’’

आज के भौतिकवादी युग में सुबहसवेरे कमरे में बहू चाय दे जाए, इस से बड़ा सुख और कौन सा होगा? पुष्पाजी, बहू का मुसकराता चेहरा निहारती रह गईं. सुबह इतमीनान से आंगन में बैठ कर चाय पीना उन का एकमात्र शौक था. पहले स्वयं बनानी पड़ती थी, लेकिन जब से डिंपल आई है, बनीबनाई चाय मिल जाती है. अपने पति विशाल के माध्यम से उस ने पुष्पाजी की पसंदनापसंद की पूरी जानकारी प्राप्त कर ली थी.

बड़ी बहू अंजू सौफ्टवेयर इंजीनियर है. सुबह कपिल और अंजू दोनों एकसाथ दफ्तर के लिए निकलते हैं, इसलिए दोनों के लिए सुविधाएं जुटाना पुष्पाजी अपना कर्तव्य समझती थीं.

छोटे बेटे विशाल ने एम.बी.ए. कर लिया तो पुष्पाजी को पूरी उम्मीद थी कि उस ने भी कपिल की तरह अपने साथ पढ़ने वाली कोई लड़की पसंद कर ली होगी. इस जमाने का यही तो प्रचलन है. एकसाथ पढ़ने या काम करने वाले युवकयुवतियां प्रेमविवाह कर के अपने मातापिता को ‘मैच’ ढूंढ़ने की जिम्मेदारी से खुद ही मुक्त कर देते हैं.

लेकिन जब विशाल ने उन्हें वधू ढूंढ़ लाने के लिए कहा तो वे दंग रह गई थीं. कैसे कर पाएंगी यह सब? एक जमाना था जब मित्रगण या सगेसंबंधी मध्यस्थ की भूमिका निभा कर रिश्ता तय करवा देते थे. योग्य लड़का और प्रतिष्ठित घराना देख कर रिश्तों की लाइन लग जाती थी. अब तो कोई बीच में पड़ना ही नहीं चाहता. समाचारपत्र या इंटरनैट पर फोटो के साथ बायोडाटा डाल दिया जाता है. आजकल के बच्चों की विचारधारा भी तो पुरानी पीढ़ी की सोच से सर्वथा भिन्न है. कपिल, अंजू को देख कर पुष्पाजी मन ही मन खुश रहतीं कि दोनों की सोच तो आपस में मिलती ही है, उन्हें भी पूरापूरा मानसम्मान मिलता है.

अखबार में विज्ञापन के साथसाथ इंटरनैट पर भी विशाल का बायोडाटा डाल दिया था. कई प्रस्ताव आए. पुष्पाजी की नजर एक बायोडाटा को पढ़ते हुए उस पर ठहर गई. लड़की का जन्मस्थान उन्हें जानापहचाना सा लगा. शैक्षणिक योग्यता बी.ए. थी. कालेज का नाम बालिका विद्यालय, बिलासपुर देख कर वे चौंक उठी थीं. कई यादें जुड़ी हुई थीं उन की इस कालेज से. वे स्वयं भी तो इसी कालेज की छात्रा रह चुकी थीं.

उसी कालेज में जब वे सितारवादन का पुरस्कार पा रही थीं तब समारोह के बाद कुमारजी ने उन का हाथ मांगा, तो उन के मातापिता ने तुरंत हामी भर दी थी. स्वयं पुष्पाजी भी बेहद खुश थीं. ऐसे संगीतप्रेमी और कला पारखी कुमार साहब के साथ उन की संगीत कला परवान चढ़ेगी, इसी विश्वास के साथ उन्होंने अपनी ससुराल की चौखट पर कदम रखा था.

हर क्षेत्र में अव्वल रहने वाली पुष्पाजी के लिए घरगृहस्थी की बागडोर संभालना सहज नहीं था. जब शादी के 4-5 माह बाद उन्होंने अपना सितार और तबला घर से मंगवाया था तो कुमारजी के पापा देखते ही फट पड़े थे, ‘‘यह तुम्हारे नाचनेगाने की उम्र है क्या?’’

उन की निगाहें चुभ सी रही थीं. भय से पुष्पाजी का शरीर कांपने लगा था. लेकिन मामला ऐसा था कि वे अपनी बात रखने से खुद को रोक न सकी थीं, ‘‘पापा, आप की बातें सही हैं, लेकिन यह भी सच है कि संगीत मेरी पहली और आखिरी ख्वाहिश है.’’

‘‘देखो बहू, इस खानदान की परंपरा और प्रतिष्ठा के समक्ष व्यक्तिगत रुचियों और इच्छाओं का कोई महत्त्व नहीं है. तुम्हें स्वयं को बदलना ही होगा,’’ कह कर पापा चले गए थे.

पुष्पाजी घंटों बैठी रही थीं. सूझ नहीं रहा था कि क्या करें, क्या नहीं. शायद कुमारजी कुछ मदद करें, मन में जब यह खयाल आया तो कुछ तसल्ली हुई थी. उस दिन वे काफी देर से घर लौटे थे.

तनिक रूठी हुई भावमुद्रा में पुष्पाजी ने कहा, ‘‘जानते हैं, आज क्या हुआ?’’

‘‘हूं, पापा बता रहे थे.’’

‘‘तो उन्हें समझाइए न.’’

‘‘पुष्पा, यहां कहां सितार बजाओगी. बाबूजी न जाने क्या कहेंगे. जब कभी मेरा तबादला इस शहर से होगा, तब मैं तुम्हें सितार खरीद दूंगा. तब खूब बजाना,’’ कह कुमारजी तेजी से कमरे से बाहर निकल गए.

आखिर उन का तबादला भोपाल हो ही गया. कुमारजी को मनचाहा कार्य मिल गया. जब घर पूरी तरह से व्यवस्थित हो गया और एक पटरी पर चलने लगा तो एक दिन पुष्पाजी ने दबी आवाज में सितार की बात छेड़ी.

कुमारजी हंस दिए, ‘‘अब तो तुम्हारे घर दूसरा ही सितार आने वाला है. पहले उसेपालोपोसो. उस का संगीत सुनो.’’

कपिल गोद में आया तो पुष्पाजी उस के संगीत में लीन हो गईं. जब वह स्कूल जाने लगा तब फिर सितार की याद आई उन्हें. पति से कहने की सोच ही रही थीं कि फिर उलटियां होने लगीं. विशाल के गोद में आ जाने के बाद तो वे और व्यस्त हो गईं. 2-2 बच्चों का काम. अवकाश के क्षण तो कभी मिलते ही नहीं थे. विशाल भी जब स्कूल जाने लगा, तो थोड़ी राहत मिली.

एक दिन रेडियो पर सितारवादन चल रहा था. पुष्पाजी तन्मय हो कर सुन रही थीं. पति चाय पी रहे थे. बोले, ‘‘अच्छा लगता है न सितारवादन?’’

‘‘हां.’’

‘‘ऐसा बजा सकती हो?’’

‘‘ऐसा कैसे बजा सकूंगी? अभ्यास ही नहीं है. अब तो थोड़ी फुरसत मिलने लगी है. सितार ला दोगे तो अभ्यास शुरू कर दूंगी. पिछला सीखा हुआ फिर से याद आ जाएगा.’’

‘‘अभी फालतू पैसे बरबाद नहीं करेंगे. मकान बनवाना है न.’’

मकान बनवाने में वर्षों लग गए. तब तक बच्चे भी सयाने हो गए. उन्हें पढ़ानेलिखाने में अच्छा समय बीत जाता था.

डिंपल का बायोडाटा और फोटो सामने आ गया तो उस ने फिर से उन्हें अपने अतीत की याद दिला दी थी.

लड़की की मां का नाम मीरा जानापहचाना सा था. डिंपल से मिलते ही उन्होंने तुरंत स्वीकृति दे दी थी. सभी आश्चर्य में पड़ गए. विशाल जैसे होनहार एम.बी.ए. के लिए डिंपल जैसी मात्र बी.ए. पास लड़की?

पुष्पाजी ने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ. डिंपल अच्छी बहू सिद्ध हुई. घर का कामकाज निबटा कर वह उन के साथ बैठ कर कविता पाठ करती, साहित्य और संगीत से जुड़ी बारीकियों पर विचारविमर्श करती तो पुष्पाजी को अपने कालेज के दिन याद आ जाते.

आज भी पुष्पाजी रोज की तरह अपने काम में लग गईं. सभी तैयार हो कर अपनेअपने काम पर चले गए. किसी ने भी उन के जन्मदिन के विषय में कोई प्रसंग नहीं छेड़ा. पुष्पाजी के मन में आशंका जागी कि कहीं ये लोग उन का जन्मदिन मनाने की बात भूल तो नहीं गए? हो सकता है, सब ने यह बात हंसीमजाक में की हो और अब भूल गए हों. तभी तो किसी ने चर्चा तक नहीं की.

शाम ढलने को थी. डिंपल पास ही खड़ी थी, हाथ बंटाने के लिए. दहीबड़े, मटरपनीर, गाजर का हलवा और पूरीकचौड़ी बनाए गए. दाल छौंकने भर का काम उस ने पुष्पाजी पर छोड़ दिया था. पूरी तैयारी हो गई. हाथ धो कर थोड़ा निश्चिंत हुईं कि तभी कपिल और अंजू कमरे में मुसकराते हुए दाखिल हुए. पुष्पाजी ने अपने हाथ से पकाए स्वादिष्ठ व्यंजन डोंगे में पलटे, तो डिंपल ने मेज पोंछ दी. तभी शोर मचाता हुआ विशाल कमरे में घुसा. हाथ में बड़ा सा केक का डब्बा था. आते ही उस ने म्यूजिक सिस्टम चला दिया और मां के गले में बांहें डाल कर बोला, ‘‘मां, जन्मदिन मुबारक.’’

पुष्पाजी का मन हर्ष से भर उठा कि इस का मतलब विशाल को याद था.

मेज पर केक सजा था. साथ में मोमबत्तियां भी जल रही थीं, कपिल और अंजू के हाथों में खूबसूरत गिफ्ट पैक थे. यही नहीं, एक फूलों का बुके भी था. पुष्पाजी अनमनी सी आ कर सब के बीच बैठ गईं. उन की पोती कृति ने कूदतेफांदते सारे पैकेट खोल डाले थे.

‘‘यह देखिए मां, मैं आप के लिए क्या ले कर आई हूं. यह नौनस्टिक कुकवेयर सैट है. इस में कम घीतेल में कुछ भी पका सकती हैं आप.’’

अंजू ने दूसरा पैकेट खोला, फिर बेहद विनम्र स्वर में बोली, ‘‘और यह है जूसर अटैचमैंट. मिक्सी तो हमारे पास है ही. इस अटैचमैंट से आप को बेहद सुविधा हो जाएगी.’’

कुमारजी बोले, ‘‘क्या बात है पुष्पा, बेटेबहू ने इतने महंगे उपहार दिए, तुम्हें तो खुश होना चाहिए.’’

पति की बात सुन कर पुष्पाजी की आंखें नम हो गईं. ये उपहार एक गृहिणी के लिए हो सकते हैं, मां के लिए हो सकते हैं, पर पुष्पाजी के लिए नहीं हो सकते. आंसुओं को मुश्किल से रोक कर वे वहीं बैठी रहीं. मन की गहराइयों में स्तब्धता छाती जा रही थी. सामने रखे उपहार उन्हें अपने नहीं लग रहे थे. मन में आया कि चीख कर कहें कि अपने उपहार वापस ले जाओ. नहीं चाहिए मुझे ये सब.

रात होतेहोते पुष्पाजी को अपना सिर भारी लगने लगा. हलकाहलका सिरदर्द भी महसूस होने लगा था. कुमारजी रात का खाना खाने के बाद बाहर टहलने चले गए. बच्चे अपनेअपने कमरे में टीवी देख रहे थे. आसमान में धुंधला सा चांद निकल आया था. उस की रोशनी पुष्पाजी को हौले से स्पर्श कर गई. वे उठ कर अपने कमरे में आ कर आरामकुरसी पर बैठ गईं. आंखें बंद कर के अपनेआप को एकाग्र करने का प्रयत्न कर रही थीं, तभी किसी ने माथे पर हलके से स्पर्श किया और मीठे स्वर में पुकारा, ‘‘मां.’’

चौंक कर पुष्पाजी ने आंखें खोलीं तो सामने डिंपल को खड़ा पाया.

‘‘यहां अकेली क्यों बैठी हैं?’’

‘‘बस यों ही,’’ धीमे से पुष्पाजी ने उत्तर दिया.

डिंपल थोड़ा संकोच से बोली, ‘‘मैं आप के लिए कुछ लाई हूं मां. सभी ने आप को इतने सुंदरसुंदर उपहार दिए. आप मां हैं सब की, परंतु यह उपहार मैं मां के लिए नहीं, पुष्पाजी के लिए लाई हूं, जो कभी प्रसिद्ध सितारवादक रह चुकी हैं.’’

वे कुछ बोलीं नहीं. हैरान सी डिंपल का चेहरा निहारती रह गईं.

डिंपल ने साहस बटोर कर पूछा, ‘‘मां, पसंद आया मेरा यह छोटा सा उपहार?’’

चिहुंक उठी थीं पुष्पाजी. उन के इस धीरगंभीर, अंतर्मुखी रूप को देख कर कोई यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि कभी वे सितार भी बजाया करती थीं, सुंदर कविताएं और कहानियां लिखा करती थीं. उन की योग्यता का मानदंड तो रसोई में खाना पकाने, घरगृहस्थी को सुचारु रूप से चलाने तक ही सीमित रह गया था. फिर डिंपल को इस विषय की जानकारी कहां से मिली? इस ने उन के मन में क्या उमड़घुमड़ रहा है, कैसे जान लिया?

‘‘हां, मुझे मालूम है कि आप एक अच्छी सितारवादक हैं. लिखना, चित्रकारी करना आप का शौक है.’’

पुष्पाजी सोच में पड़ गई थीं कि जिस पुष्पाजी की बात डिंपल कर रही है, उस पुष्पा को तो वे खुद भी भूल चुकी हैं. अब तो खाना पकाना, घर को सुव्यवस्थित रखना, बच्चों के टिफिन तैयार करना, बस यही काम उन की दिनचर्या के अभिन्न अंग बन गए हैं. डिग्री धूल चाटने लगी है. फिर बोलीं, ‘‘तुम्हें कैसे मालूम ये सब?’’

‘‘मालूम कैसे नहीं होगा, बचपन से ही तो सुनती आई हूं. मेरी मां, जो आप के साथ पढ़ती थीं कभी, बहुत प्रशंसा करती थीं आप की.’’

‘‘कौन मीरा?’’ पुष्पाजी ने अपनी याद्दाश्त पर जोर दिया. यही नाम तो लिखा था बायोडाटा में. बचपन में दोनों एकसाथ पढ़ीं. एकसाथ ही ग्रेजुएशन भी किया. पुष्पाजी की शादी पहले हो गई थी, इसलिए मीरा के विवाह में नहीं जा पाई थीं. फिर घरगृहस्थी के दायित्वों के निर्वहन में ऐसी उलझीं कि उलझती ही चली गईं. धीरेधीरे बचपन की यादें धूमिल पड़ती चली गईं. डिंपल के बायोडाटा पर मीरा का नाम देख कर उन्होंने तो यही सोचा था कि होगी कोई दूसरी मीरा. कहां जानती थी कि डिंपल उन की घनिष्ठ मित्र मीरा की बेटी है. बरात में भी गई नहीं थीं. जातीं तो थोड़ीबहुत जानकारी जरूर मिल जाती उन्हें. बस, इतना जान पाई थीं कि पिछले माह, कैंसर रोग से मीरा की मृत्यु हो गई थी.

डिंपल अब भी कह रही थी, ‘‘ठीक ही तो कहती थीं मां कि हमारे साथ पुष्पा नाम की एक लड़की पढ़ती थी. वह जितनी सुंदर उतनी ही होनहार और प्रतिभाशाली भी थी. मैं चाहती हूं, तुम भी बिलकुल वैसी ही बनो. मेरी सहेली पुष्पा जैसी.’’

पुष्पाजी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था. ऐसा लग रहा था, उन की नहीं, किसी दूसरी ही पुष्पा की प्रशंसा की जा रही है, लेकिन सच को झुठलाया भी तो नहीं जा सकता. कानों में डिंपल के शब्द अब भी गूंज रहे थे. तो वह पुष्पा, अभी भी खोई नहीं है. कहीं न कहीं उस का वजूद अब भी है.

पुष्पाजी का मन भर आया. शायद उन का अचेतन मन यही उपहार चाहता था. फिर भी तसल्ली के लिए पूछ लिया था उन्होंने, ‘‘और क्या कहती थीं तुम्हारी मां?’’

‘‘यही कि तुझे गर्व होना चाहिए जो तुझे पुष्पा जैसी सास मिली. तुझे बहुत अच्छी ससुराल मिली है. तू बहुत खुश रहेगी. मां, सच कहूं तो मुझे विशाल से पहले आप से मिलने की उत्सुकता थी.’’

‘‘पहले क्यों नहीं बताया?’’ डिंपल की आंखों में झांक कर पुष्पाजी ने हंस कर पूछा.

‘‘कैसे बताती? मैं तो आप के इस धीरगंभीर रूप में उस चंचल, हंसमुख पुष्पा को ही ढूंढ़ती रही इतने दिन.’’

‘‘वह पुष्पा कहां रही अब डिंपल. कब की पीछे छूट गई. सारा जीवन यों ही बीत गया, निरर्थक. न कोई चित्र बनाया, न ही कोई धुन बजाई. धुन बजाना तो दूर, सितार के तारों को छेड़ा तक नहीं मैं ने.’’

‘‘कौन कहता है आप का जीवन यों ही बीत गया मां?’’ डिंपल ने प्यार से पुष्पाजी का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘आप का यह सजीव घरसंसार, किसी भी धुन से ज्यादा सुंदर है, मुखर है, जीवंत है.’’

‘‘घरर तो सभी का होता है,’’ पुष्पाजी धीरे से बोलीं, ‘‘इस में मेरा क्या योगदान है?’’

‘‘आप का ही तो योगदान है, मां. इस परिवार की बुलंद इमारत आप ही के त्याग और बलिदान की नींव पर टिकी है.’’

अभिभूत हो गईं पुष्पाजी. मंत्रमुग्ध हो गईं कि कौन कहता है भावुकता में निर्णय नहीं लेना चाहिए? उन्हें तो उन की भावुकता ने ही डिंपल जैसा दुर्लभ रत्न थमा दिया. यदि डिंपल न होती, तो क्या बरसों पहले छूट गई पुष्पा को फिर से पा सकती थीं? उस के दिए सितार को उन्होंने ममता से सहलाया जैसे बचपन के किसी संगीसाथी को सहला रही हों. उन्हें लगा कि आज सही अर्थों में उन का जन्मदिन है.

बड़े प्रेम से उन्होंने दोनों हाथों में सितार उठाया और सितार के तार एक बार फिर बरसों बाद झंकार से भर उठे. लग रहा था जैसे पुष्पाजी की उंगलियां तो कभी सितार को भूली ही नहीं थीं.

बोसीदा छत: क्या अजरा अपनी मां को बचा पाई?

जब जीनत इस घर में दुलहन बन कर आई थी, तब यह घर इतना बोसीदा और जर्जर नहीं था. पुराना तो था, लेकिन ठीकठाक था. उस के ससुर का गांव में बड़ा रुतबा था. वे गांव के जमींदार के लठैत हुआ करते थे, जिन से गांव के लोग खौफ खाते थे. सास नहीं थीं. शौहर तल्हा का रंग सांवला था, लेकिन वह मजबूत कदकाठी का नौजवान था, जो जीनत से बेइंतिहा मुहब्बत करता था.

एक दिन खेतों में पानी को ले कर मारपीट हुई, जिस में जीनत के ससुर मार दिए गए. तब से समय ने जो पलटा खाया, तो फिर आज तक मनमुताबिक होने का नाम नही लिया.

फिर समय के साथसाथ घर की छत भी टपकने लगी. अपने जीतेजी तल्हा से 10,000 रुपयए का इंतजाम न हो सका कि वह अपने जर्जर मकान के खस्ताहाल और बोसीदा छत की मरम्मत करा सके.

चौदह साल की अजरा ने तुनकते हुए अपनी अम्मी जीनत से कहा, “अम्मी, आलू की सब्जी और बैगन का भरता खातेखाते अब जी भर गया है. कभी गोश्तअंडे भी पकाया करें.”

इस पर जीनत बोली, “अरे नाशुक्री, अभी पिछले ही हफ्ते लगातार 3 दिनों तक कुरबानी का गोश्त खाती रही और इतनी जल्दी फिर तुम्हारी जबान चटपटाने लगी.”

अजरा ने फिर तुनकते हुए कहा, “मालूम है अम्मी… बकरीद को छोड़ कर साल में एक बार भी खस्सी का गोश्त खाने को नहीं मिलता है. काश, हर महीने बकरीद होती, तो कितना अच्छा होता.”

उस की अम्मी ने कहा, “जो भी चोखाभात मिल रहा है, उस का शुक्र अदा करो. बहुत सारे लोग भूखे पेट सोते हैं. और जो यह छत तुम्हारे सिर के ऊपर मौजूद है, इस का भी शुक्र अदा करो. इस बोसीदा छत की कीमत उन लोगों से पूछो जिन के सिरों पर छप्पर भी नहीं है. इस सेहत और तंदुरुस्ती का भी शुक्र अदा करो… जो लोग बीमारी की जद में हैं, उन से सेहत और तंदुरुस्ती की कीमत पूछो…”

अगले दिन जोरों से बारिश हो रही थी. अजरा ने अम्मी को भीगते हुए आते देखा तो दौड़ कर एक फटी हुई चादर ले आई और उन के गीले जिस्म को पोंछने लगी. जीनत पूरी तरह पानी से भीग चुकी थी. उस के कपड़े जिस्म से चिपक कर उस की बूढ़ी हड्डियों को दिखा रहे थे.

जीनत ने उस फटी चादर को सूंघा फिर अलगनी पर फेंक दिया. फिर भीगे हुए दुपट्टे से पानी निचोड़ा, उसे झटका और फिर अलगनी पर सूखने के लिए फैला दिया.

अजरा कनखियों से देख रही थी कि उस की अम्मी छत के एक कोने को बड़े गौर से देख रही हैं.

जीनत ने खुश होते हुए कहा, “देखो अजरा… इस बार उस कोने से पानी नहीं टपक रहा है. कई दिनों की बारिश के बाद भी वह हिस्सा पहले की तरह ही सूखा हुआ है.”

अजरा ने दूसरे कोने की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “लेकिन अम्मी, उस कोने से तो पानी चू रहा है.”

जीनत उस की बात का जवाब दिए बिना ही कमरे से निकल गई और थोड़ी देर बाद मिट्टी का एक बड़ा सा घड़ा ले कर लौटी और उसे टपक रहे पानी के नीचे रख दिया. फिर पानी बूंदबूंद कर के उस में गिरने लगा और अगलबगल की जमीन गीली होने से बच गई.

सैकड़ों साल पुराना यह मकान आहिस्ताआहिस्ता जर्जर होता जा रहा था. ईंट के चूरे, चूना वगैरह से बनी उस की छत अब अपनी उम्र पूरी कर चुकी थी.

जीनत ने 3 साल पहले छत को बड़े नुकसान से बचाने के लिए उस पर सीमेंटबालू से पलास्तर करा दिया था. मगर फिर भी बारिश का पानी किसी न किसी तरह रिसता हुआ फर्श पर टपकता ही रहता था. अलबत्ता इस बार कमरे का सिर्फ एक कोना टपक रहा था, बाकी हिस्से सहीसलामत थे.

रात में सोते समय जीनत का सारा ध्यान बस 2 बातों पर जाता था कि अजरा की शादी कैसे होगी और इस बोसीदा छत की मरम्मत कैसे होगी. अजरा की शादी से पहले छत की मरम्मत तो हर हाल में हो जानी चाहिए. शादी में लोगबाग आएंगे तो उन का ध्यान छत की तरफ जा सकता है.

रात में अजरा तो घोड़े बेच कर सो जाती, लेकिन जीनत का सारा ध्यान इसी उधेड़बुन में उलझा रहता. पानी चूने वाले जगहों पर पड़े बड़ेबड़े बोसीदा निशान जीनत को चिढ़ाते रहते. आंधीतूफान और बरसात के दिनों में तो उस का हाथ कलेजे पर ही रहता. हालांकि दीवारें तो काफी मोटी थीं, लेकिन छत खस्ताहाल हो चुकी थी.

कभीकभी शौहर तल्हा भी जीनत के खयालों में टहलता हुए आ जाता. मजदूरी कर के लौटते वक्त उस के बदन से उठ रही पसीने की खुशबू की याद से जीनत सिहर उठती. वह यादों में खो कर अजरा के माथे पर हाथ फेरने लगती.

‘अब्बू, जलेबी लाए हैं?’ सवाल करते हुए अजरा अपने अब्बू से लिपट जाती. फिर तल्हा अपने थैले से जलेबी का दोना निकाल कर अजरा को थमा देता और वह खुश हो जाती.

5 साल पहले अजरा के अब्बा तल्हा खेत में कुदाल चलाते हुए गश खा कर ऐसे गिरे कि फिर उठ नहीं सके. तब से जीनत मेहनतमजदूरी कर के अपनी एकलौती बेटी की परवरिश कर रही है और उसे पढ़ालिखा रही है. जीनत की ख्वाहिश है कि अजरा पढ़लिख कर अपने परिवार का नाम रोशन करे.

जीनत हर साल बरसात से पहले छत की मरम्मत कराने की सोचती है, लेकिन कोई न कोई ऐसा खर्च निकल आता है कि छत की मरम्मत का सपना अधूरा रह जाता है. जैसे इसी साल अजरा के फार्म भरने और इम्तिहान देने में 2,000 रुपए खर्च हो गए और छत की मरम्मत का काम आगे सरकाना पड़ा.

बरसात के बाद रमजान का महीना आ गया. अगलबगल के घरों से इफ्तार का सामान मांबेटी की जरूरतों से ज्यादा आने लगा. सेहरी व इफ्तार में लजीज पकवान खा कर अजरा बहुत खुश रहा करती.

अजरा ने कहा, “अम्मी, अगर सालभर रमजान का महीना रहता तो कितना मजा आता…”

अजरा की बात सुन कर जीनत मुसकरा कर रह गई.

इसी बीच अजरा की सहेलियों ने बताया कि हालफिलहाल ‘मस्तानी सूट’ का खूब चलन है. इस ईद पर हम सब वही सिलवाएंगे. फिर क्या था… अजरा ने भी अपनी अम्मी से ‘मस्तानी सूट’ की फरमाइश शुरू कर दी.

जीनत अपनी बेटी अजरा का दिल कभी नहीं तोड़ना चाहती है. अलबत्ता उस की ख्वाहिशों पर लगाम लगाने की भरपूर कोशिश करती है.

जीनत ने अजरा को समझाते हुए कहा, “बेटी, यह ‘मस्तानी सूट’ हम गरीबों के लिए नहीं है. उस की कीमत 1,000 रुपए है. अगर उस में 1,000 रुपए और जोड़ लें तो इस बोसीदा छत की मरम्मत हो जाएगी.”

बहरहाल, रमजान का आधा महीना गुजर गया. इस बीच मजदूरी करकर के जीनत के पास कुछ पैसे जमा हो गए थे. उस ने ईद के बाद इस बोसीदा छत से नजात पाने का इरादा कर लिया था.

जीनत ने अजरा से कहा, “मैं तो सोच रही थी कि ईद के बाद छत की मरम्मत करा ली जाए. अब तुम्हारा ‘मस्तानी सूट’ बीच में आ गया. ईद का खर्च अलग है. अगर कहीं से जकात की मोटी रकम मिल जाए तो सब काम आसानी से हो जाएं…”

गरीबों के अरमान रेत के महलों की तरह सजते हैं और फिर भरभरा कर गिर जाते हैं. जब मेहनतमजदूरी से भी अरमान पूरे नहीं होते तो इमदाद और सहारे की उम्मीद होने लगती है. अमीरों की दौलत से निकाली हुई मामूली रकम जकात के रूप में उन के बहुत काम आती है.

ईद से ठीक 4 दिन पहले स्कूल में अजरा को खबर मिली कि उस की अम्मी खेत में बेहोश हो कर गिर पड़ी हैं. वह बदहवास हो कर मां को देखने दौड़ पड़ी.

लोगों ने जीनत को चारों तरफ से घेर रखा था. लोगों की भीड़ देख कर अजरा और बदहवास हो गई. तबतक गांव के नन्हे कंपाउंडर भी वहां पहुंच चुके थे. उन्होंने नब्ज देखते हुए नाउम्मीदी में सिर हिला दिया.

लोग कहने लगे, ‘बेचारी रोजे की हालत में मरी है, सीधे जन्नत में जाएगी…’

किसी ने अजरा के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, “बेचारी के सिर से मां का साया भी उठ गया. आखिर बाप वाला हाल मां का भी हो गया.”

लेकिन अजरा को यकीन नहीं हो रहा था कि उस की अम्मी मर चुकी हैं. वह पागलों की तरह दौड़ते हुए गांव में गई और केदार काका का ठेला खींचते हुए खेत तक ले आई.

अजरा ने रोते हुए लोगों से कहा, “मेहरबानी कर के मेरी अम्मी को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाने में मेरी मदद करें.”

लोगों ने उस की दीवानगी देखी तो जीनत को ठेले पर लादा और अस्पताल के लिए दौड़ पड़े.

अस्पताल पहुंचने में एक घंटा लगा. आधे घंटे तक मुआयना करने के बाद आखिरकार डाक्टरों ने जीनत को मुरदा करार कर दे दिया.

यह सुनते ही अजरा वहीं गिर पड़ी. लोगों ने सोचा कि लड़की रोजे से है. मां की मौत का सदमा और भागदौड़ बरदाश्त नहीं कर सकी है.

डाक्टरों ने उस की नब्ज देखी और हैरत से एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

धीरेधीरे गांव के लोग सरकने लगे. अब मांबेटी दोनों की लावारिस लाश का पंचनामा बन रहा था.

मेरा बौयफ्रेंड दूसरी लड़की से शादी कर रहा है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं एक लड़की से बहुत प्यार करता हूं. उस की मां भी हमारी शादी के लिए राजी हैं, पर उस के पिताजी तैयार नहीं हैं. वे उस की शादी कहीं और कर रहे हैं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप लड़की के पिता से मिलें और बेहद तमीज से पूछें कि उन्हें आप में क्या कमी नजर आती है. उन से वादा करें कि आप खुद को उन के मुताबिक ढाल लेंगे. लिहाजा, वे अपनी लड़की की शादी आप ही से करें. अगर फिर भी वे न मानें, तो आप दोनों कोर्ट मैरिज कर सकते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

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