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गौरक्षक

40 साल की उम्र के दिखने वाले राजेंद्र खड़ेखड़े शीशे में अपनी दाढ़ी के बालों में से सफेद बाल उखाड़ कर फेंक रहे थे. पीछे खड़ी उन की बीवी शकुंतला गोद में नन्हे लड़के को लिए काफी देर से राजेंद्र को ऐसा करते देख मुसकरा रही थी. जब शकुंतला से न रहा गया, तो वह बोल पड़ी, ‘‘अरे, रहने भी दो सरदारजी, दाढ़ी में आए सफेद बाल निकालने से जवान नहीं हो जाओगे और न ही कोई अब तुम्हें पसंद करने वाली.’’ शकुंतला की बात सुन कर राजेंद्र झेंप कर मुसकराने लगे. उन्हें पता न था कि शंकुलता इतनी देर से खड़ी उन्हें ही देख रही है. राजेंद्र ने दाढ़ी के सफेद बालों को उखाड़ना बंद कर दिया और घूम कर शकुंतला की तरफ देख कर बोले, ‘‘तुम्हारे कहने से मैं बूढ़ा नहीं हो जाऊंगा. चलो, लाओ जल्दी से मुझे खाना दे दो, वरना निकलने के लिए देर हो जाएगी.’’ शकुंतला मुसकराते हुए रसोई की तरफ बढ़ गई. राजेंद्र हाथ धो कर कमरे के दरवाजे के सामने बैठ खाने का इंतजार करने लगे.

राजेंद्र इस कसबे में कुछ साल पहले आए थे, जबकि उन का अपना गांव तो यहां से काफी दूर पड़ता था. राजेंद्र हिंदू धर्म की एक दलित कही जाने वाली जाति के थे, लेकिन इस कसबे में आने से पहले उन्होंने जातिधर्म की छुआछूत से तंग आ कर सिख धर्म अपना लिया था और सरदार बन गए, जहां उन्हें सामान्य आदमी की तरह इज्जत मिलनी शुरू हो गई. अब राजेंद्र की दाढ़ी, पगड़ी को देख लोग उन्हें सरदारजी के नाम से पुकारते थे. इस वक्त राजेंद्र एक ट्रक के ड्राइवर का काम करते थे, जो उन्हें एक सरदारजी ने ही सिखाया था, लेकिन इस से पहले वे अपने गांव में एक जमींदार का ट्रैक्टर चलाया करते थे. उन्हीं दिनों उन की मुलाकात एक सरदारजी से हुई थी, जिन्होंने इन को सिख धर्म में लाने के साथ साथ ट्रक चलाना भी सिखा दिया था राजेंद्र के गांव के लोगों ने जब इन के धर्म परिवर्तन का विरोध किया, तो ये अपने गांव से निकल इस कसबे में आ कर बस गए.आज राजेंद्र के 2 बच्चे थे. एक 5 साल का और दूसरा 3 साल का. राजेंद्र ट्रक पर जाते, तो कईकई दिन तक घर वापस न आ पाते थे. इसी वजह से उन्हें अपने बीवीबच्चों से मिलने की जल्दी रहती थी. साथ ही, इन लोगों को प्यार भी बहुत करते थे. शकुंतला से राजेंद्र की शादी गांव में ही हो गई थी, तब तक राजेंद्र ने अपना धर्म नहीं बदला था. पर धर्म बदलने के बाद भी शकुंतला ने राजेंद्र से एक भी शब्द न बोला. शकुंतला को यह सब अच्छा लगा, क्योंकि इस धर्म में उसे कोई गिरी नजर से नहीं देखता था.

राजेंद्र रात के वक्त ही ट्रक से आए थे और अब सुबह होते ही उन्हें फिर से ट्रक ले कर निकलना था. शकुंतला ने राजेंद्र को खाना दिया और पास में ही आ कर बैठ गई. राजेंद्र ने चुपचाप खाना खाया और उठ कर खड़े हो गए. जिस दिन राजेंद्र को बाहर जाना होता था, उस दिन वे अपनी पत्नी शकुंतला से ज्यादा बात नहीं करते थे. उन्हें लगता था कि अगर उन्होंने शकुंतला से ज्यादा बात की, तो वे भावुक हो जाएंगे और शायद रोने भी लगें. शकुंतला का भी कुछ ऐसा ही हाल था. लेकिन वह हरदम अपने भावों को मजाकों से दबाए रखती थी. वह राजेंद्र को भी हंसाने की कोशिश करती रहती, लेकिन कामयाबी नहीं मिलती थी. बड़ा लड़का बरामदे में बैठा खेल रहा था और छोटा बेटा शकुंतला की गोद में था. राजेंद्र को चलने के लिए तैयार होते देख बड़ा लड़का भाग कर आया और अपने पिता की टांगों से लिपट गया. राजेंद्र ने उसे अपने हाथों से उठा कर गोद में ले लिया और लाड़ करने लगे. बहुत सी चीजों का उसे लालच भी दिया. लड़का अपने लिए बच्चों के चलाने का छोटा ट्रक मांगता था. राजेंद्र ने तुरंत हां कर दी. लड़का अपनी इच्छा पूरी होते ही फिर से उसी जगह जा कर खेलने लगा. यह सब देख कर शकुंतला हंस पड़ी.

राजेंद्र ने अपना थैला उठाया, गमछा लिया, फिर वे शकुंतला की तरफ भीगी नजरों से देखने लगे. शकुंतला कब उन से पीछे रहती, उस की आंखों से भी आंसू निकल कर गालों पर बह रहे थे. ऐसा हर बार होता था. दोनों पति-पत्नी के बीच का गहरा प्यार उन्हें हर बार बिछड़ते समय रोने पर मजबूर कर देता था. राजेंद्र कमजोर दिल के थे. उन से शकुंतला का रोना देखा नहीं जाता था, लेकिन करते भी क्या. पेट के लिए काम तो करना ही पड़ता है और इस ट्रक ड्राइवरी के अलावा उन से और कोई भी काम नहीं होता था. राजेंद्र ने बाहर खेल रहे लड़के की तरफ देखा, वह मस्त हो कर खेल रहा था. मौका पा कर राजेंद्र ने शकुंतला को अपने गले से लगा लिया. शकुंतला गोद में लग रहे नन्हे बच्चे समेत राजेंद्र से लिपट गई. उस के मौन रुदन ने सिसकियों का रूप ले लिया, लेकिन राजेंद्र रो न सके.उन्होंने शकुंतला के माथे को चूमा और उस के आंसू पोंछते हुए धीरे से बोले, ‘‘बावली हो गई हो शकुंतला. अरे, मैं बौर्डर की जंग में थोड़े ही न जा रहा हूं. 2-4 दिन में फिर से घर आ पहुंचूंगा. बिना बात इतना रोती हो.

‘‘अच्छा, यह बताओ कि क्या ले कर आऊं तुम्हारे लिए? जो मन में हो, वही बता दो. इस बार लंबी दूरी का सामान मिला है, पैसे भी उसी हिसाब के मिलेंगे.’’ शकुंतला भीगी आंखों से ही मुसकरा कर झूठमूठ का गुस्सा दिखाते हुए बोली, ‘‘रहने भी दो सरदारजी, मुझे चुप करने का यही बहाना मिला था. मुझे नहीं मंगाना कुछ भी. बस, जल्दी घर आ जाना.’’ राजेंद्र ने नजरभर सांवलीसलोनी शकुंतला को देखा, भरे सांवले बदन की शकुंतला पुरानी साड़ी में भी खूबसूरत लग रही थी. राजेंद्र को उस के रूप में कोई कमी न दिखी. हां, शकुंतला के बदन पर एक नई साड़ी की दरकार जरूर थी. राजेंद्र धीमी आवाज में शकुंतला से बोले, ‘‘शकुंतला, अगर तुम कहो, तो तुम्हारे लिए एकाध बढि़या सी साड़ी ले आऊं. अब तुम्हारी साडि़यां पुरानी सी लगती हैं.’’ शकुंतला अंदर से तो खिल उठी, लेकिन ऊपरी भाव से चिंता दिखाते हुए बोली, ‘‘नहीं, कोई जरूरत नहीं. पहले बड़े लड़के की पढ़ाई की सोचो, फिर घर के लिए पैसे जोड़ो, उस के बाद मेरे लिए कुछ लाना.’’

राजेंद्र मुसकराते हुए बोले, ‘‘हां, तुम्हारी एकाध साड़ी में तो जैसे हजारों का खर्चा आएगा. अरे, सब काम हो जाएंगे. लड़का भी पढ़ेगा और अपना खुद का मकान भी होगा, लेकिन तुम साड़ी के बारे में बताओ.’’

शकुंतला झेंपती सी बोली, ‘‘हां, देख लेना. पैसा फालतू हो तो ही लाना, नहीं तो मत लाना.’’ इतना सुनते ही राजेंद्र मुसकराते हुए घर से बाहर की तरफ निकलने लगे. शकुंतला गोद में बच्चा लिए पीछे चल पड़ी. राजेंद्र मुड़मुड़ कर देखते हुए घर के बाहर निकल गए. शकुंतला दरवाजे पर खड़ीखड़ी उन्हें जाते हुए देखती रही. राजेंद्र थोड़ी ही देर में शकुंतला की आंखों से ओझल हो गए. अपनी मौत को न देख शकुंतला की आंखें फिर से छलछला पड़ीं. उस का यह सब हर बार का रोना था.

शकुंतला को अपने पति का ट्रक ले कर सड़कों पर निकलना बहुत डराता था. पता नहीं, कौन सा दिन ऐसा हो, जिस दिन राजेंद्र के न लौटने की कोई घटना हो जाए.

राजेंद्र घर से निकल कर सीधे उस जगह आ पहुंचे, जहां उन का ट्रक सामान से भरा खड़ा था.

यह ट्रक राजेंद्र का खुद का नहीं था. इसी कसबे की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी के ट्रक को राजेंद्र चलाते थे.

राजेंद्र के पहुंचते ही उन के साथ रहने वाला हैल्पर आ कर बोला, ‘‘सरदारजी, घर से बड़ी देर में आए. ट्रक तो घंटे भर पहले ही लोड हो चुका है.’’

राजेंद्र अभी कुछ कहते, उस से पहले ही एक आदमी उन के पास आ पहुंचा. ट्रक में लोड हुआ सामान इसी आदमी का था. उस ने भी वही देर से आने वाली बात पूछी.

राजेंद्र ने कुछ काम लग जाने की कह उस आदमी से सवाल किया, ‘‘भाई साहब, ट्रक में क्या-क्या सामान लोड हुआ है?’’

उस आदमी ने बड़े आराम से बोल दिया, ‘‘इस में फूड आइटम है. गाड़ी दनादन ले कर चलना. हमें तय वक्त में पहुंचना है, नहीं तो सामान खराब होने का डर है. मैं अपनी कार से तुम्हारे आगे-आगे चलूंगा.’’

राजेंद्र ने हां में सिर हिला दिया. फिर ट्रक स्टार्ट कर आगे बढ़ा दिया. भाड़े के सामान का मालिक भी कार ले कर राजेंद्र के ट्रक के आगे चलने लगा.

अभी थोड़ी दूर ही चले थे कि तभी ट्रक के बराबर एक खुली जीप चलने लगी, जो ट्रक से आगे निकलने की कोशिश कर चुकी थी. उस में बैठे लोगों ने राजेंद्र को ट्रक रोकने का इशारा किया.

राजेंद्र ने गौर से उन लोगों को देखा, सब के सब लड़के पहलवान से दिखते थे. उन सब के गले में हलके लाल रंग के गमछे पड़े हुए थे. तकरीबन हर लड़के के हाथ में हौकी और डंडे दिखाई दे रहे थे.

एकबारगी तो राजेंद्र का दिल कांप गया, लेकिन चलती सड़क पर हिम्मत साथ थी, उन्होंने इशारे में लड़कों से पूछा, ‘‘क्या है? क्यों रोकूं?’’

उन लड़कों ने आपस में कुछ बोला और जीप के ड्राइवर को कुछ कह दिया. थोड़ी ही देर में जीप ट्रक के ठीक आगेआगे चलने लगी. जीप के आगे आते ही राजेंद्र ने मजबूरन ट्रक की रफ्तार धीमी कर दी.

थोड़ी देर में जीप के रेंगने के साथ ट्रक भी रेंगने लगा. थोड़ी आगे कार ले कर चल रहे भाड़े के मालिक ने ट्रक की रफ्तार धीमी होते देखी, तो कार को भी धीमा कर लिया.

रफ्तार धीमी होते ही 2-3 लड़के जीप से उतर ट्रक की तरफ बढ़ गए, राजेंद्र ने ट्रक को ब्रेक लगा दिए और खुद को उन लड़कों के आने के लिए तैयार कर लिया.

ट्रक के रुकते ही जीप पर सवार सारे लड़के उतर कर ट्रक की तरफ लपक पड़े. 10-12 लड़कों से खुद को घिरा देख. राजेंद्र को अनहोनी का डर होने लगा, लेकिन जब तक राजेंद्र को कुछ समझ आता, तब तक 2 लड़कों ने राजेंद्र को ड्राइवर सीट से नीचे खींच लिया. दूसरी तरफ बैठा हैल्पर भी नीचे उतार लिया गया. उन लड़कों में से एक ने राजेंद्र का गला पकड़ते हुए सवाल किया, ‘‘क्यों रे, इस ट्रक में क्या भरा हुआ है?’’

राजेंद्र ने भाड़े मालिक का बताया हुआ जवाब दिया, ‘‘भाई, इस में फूड आइटम हैं, लेकिन आप लोग कौन हैं? मैं ने आप का क्या बिगाड़ा है?’’

राजेंद्र का गला पकड़े खड़े लड़के ने राजेंद्र की बात का जवाब न दे कर साथ खड़े लड़के से चिल्ला कर कहा, ‘‘यहां खड़ाखड़ा क्या देख रहा है, जा कर ट्रक में देख क्या भरा है.’’

राजेंद्र को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. आज तक पुलिस ने उस के ट्रक को एकाध बार चैक किया था, लेकिन इस तरह इतने लड़के आ कर ट्रक को क्यों चैक कर रहे हैं, यह बात समझ से परे थी.

भाड़े मालिक ने यह सब देख अपनी कार रोकी और उतर कर सारा माजरा देखा.

राजेंद्र भाड़े मालिक की तरफ देख कुछ कहने को था कि वह फिर से अपनी कार में बैठा और कार को तेजी से आगे भगा कर ले गया.

राजेंद्र को उस के भागते ही शक हो गया कि ट्रक में जरूर चोरी का माल होगा, इसलिए वह इन लोगों को देख कर भाग गया, लेकिन इतने लड़के एकजैसा गमछा गले में डाले कौन हो सकते हैं?

राजेंद्र की बगल में खड़ा हैल्पर भी कम बेबस नहीं था. उस की आंखें तो दूर से ठंडी सी पड़ गई थीं.

इतनी देर में ट्रक चैक करने गए लड़के की चीख आई, ‘‘भैया, इस ट्रक में मरी हुई गाय भरी पड़ी हैं.’’

इतना सुनना था कि सारे लड़के हौकीडंडे ले कर राजेंद्र और हैल्पर को पीटने लगे. राजेंद्र के होश उड़ चुके थे. देह पर पड़ रही जोरदार हौकी और डंडों की मार सहना राजेंद्र के वश से बाहर था.

हैल्पर उन लोगों के पैर पकड़पकड़ कर खुद को छोड़ने की गुहार लगा रहा था, कभी राजेंद्र की तरफ देख रोता हुआ चिल्लाता, ‘‘सरदारजी, मुझे बचाओ. मैं मर जाऊंगा.’’

लेकिन राजेंद्र को तो खुद बुरी तरह से पीटा जा रहा था. तभी एक जोरदार हौकी राजेंद्र के सिर के बीचोंबीच लगी. सिर में लगी जोरदार हौकी की चोट लगते ही राजेंद्र की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. खोपड़ी से खून की फुहार निकल उठी. राजेंद्र निढाल हो कर जमीन पर गिर पड़े, लेकिन 2 लड़के अभी भी उन्हें पीटने में लगे हुए थे.

राजेंद्र का हैल्पर भी अधमरा हो चुका था. इतनी देर में एक गाड़ी आ कर इन लोगों के पास रुक गई. मारपीट एकदम बंद हो गई.

उस गाड़ी में से एक रोबदार नेताजी सा लगने वाला आदमी उतरा, जिस के गले में इन्हीं लड़कों की तरह गमछा पड़ा हुआ था. ये लोग गौरक्षक थे और अभी गाड़ी से आया आदमी इन का प्रमुख.

उस ने आते ही अधमरे पड़े राजेंद्र और उन के हैल्पर को देखा. उस ने एक लड़के से कह कर राजेंद्र को सीधा करवाया. शायद वह राजेंद्र को पहचानने की कोशिश कर रहा था.

राजेंद्र का मुंह देखते ही गौरक्षक प्रमुख आश्चर्यचकित हो उठा. उस ने हड़बड़ा कर पास खड़े लड़के से कहा, ‘‘अरे बेवकूफो, यह तुम ने क्या किया, यह तो मेरे कसबे का सरदार है, भला ये गौहत्या क्यों करेगा? पिछले हफ्ते गायों के चारेपानी के लिए इस ने 5 सौ रुपए का चंदा दिया था. जरा नाक के पास हाथ लगा कर देखो कि यह मर गया या जिंदा है.’’

एक लड़के ने जल्दी से राजेंद्र की नाक के पास अपनी उंगलियां लगा कर उस की सांसों को महसूस करना चाहा, लेकिन राजेंद्र की सांसें तो देर की थम चुकी थीं.

लड़का उजड़े हुए चेहरे से बोला, ‘‘नहीं भैया, इस की सांसें तो चल ही नहीं रहीं.’’

गौरक्षा प्रमुख ने खुद चैक किया, राजेंद्र सच में मर चुके थे. सब लोगों में सन्नाटा छा गया, लेकिन राजेंद्र के हैल्पर की सांसें अभी तक चल रही थीं.

गौरक्षा प्रमुख ने थोड़ी देर सोचा, फिर लड़कों से बोला, ‘‘अब खड़ेखड़े क्या देख रहे हो, इस लड़के को भी मार दो और फटाफट से यहां से निकल चलो.’’

इतना कह कर गौरक्षक प्रमुख गाड़ी की तरफ बढ़ गया. पीछे से एक लड़के ने झिझकते हुए कहा, ‘‘भैया, मरी हुई गायों के फोटो खींच लें.’’

गौरक्षक प्रमुख ने थोड़ा सोचा, फिर बोला, ‘‘चलो खींच लो, लेकिन बहुत फुरती से, और जितनी जल्दी हो सके, यहां से निकल चलो. पुलिस अभी आती ही होगी.’’

इतना कह कर गौरक्षक प्रमुख गाड़ी में बैठ कर चला गया. गौरक्षकों में से 1-2 ने राजेंद्र के हैल्पर की सांसें थाम दीं. एक ने ट्रक के पीछे जा कर फटी हुई तिरपाल में से मरी हुई गायों के फोटो खींच लिए.

इतना करने के बाद सब लोग जीप में बैठ उसी तरफ भाग गए, जिधर से आए थे.

आज पहली बार ऐसा हुआ था, जब गौरक्षकों ने खुद पुलिस को नहीं बुलाया था, वरना हर बार ये लोग गायों से भरी गाड़ी पकड़ते, उस के बाद उस गाड़ी में मौजूद लोगों की जम कर धुनाई करते, फिर खुद पुलिस और पत्रकारों को फोन कर के बुला लेते थे. दूसरे दिन के अखबारों में इन के फोटो भी छपते थे.

राजेंद्र की लाश खून से लथपथ हुई पड़ी थी. इस वक्त न तो उसे शकुंतला की याद आती थी और न अपने बच्चों की चिंता ही थी. यह शकुंतला तो राजेंद्रजी की याद करती ही होगी. शायद 2-3 दिन के बाद राजेंद्र के घर पहुंचने का बेसब्री से इंतजार भी करती होगी. उसे पता होगा कि राजेंद्र उस के लिए बढि़या सी साड़ी भी ले कर आएंगे. कितना अच्छा लगेगा, जब राजेंद्र हाथ में साड़ी लिए घर पहुंचेंगे और बडे़ लड़के के लिए प्लास्टिक के खिलौने का ट्रक. सारा घर खुशियों से भर जाएगा, सब लोग साथ बैठ कर खाना खाएंगे. लेकिन दूसरे दिन के अखबार में कुचले पड़े राजेंद्र और हैल्पर की फोटो छपेगी, जिस में लिखा होगा, ‘गौ तस्करों ने की पीटपीट कर हत्या’. साथ में मरी हुई गायों के फोटो भी थे. गौरक्षक दल बेशक न कहे, लेकिन सब लोगों को पता होगा कि ये उन का ही काम है. पुलिस बिना सुबूत उन का कुछ भी नहीं कर पाएगी, कोई नहीं जान पाएगा कि राजेंद्र और हैल्पर को तो यह तक पता नहीं था कि गाड़ी में मरी हुई गाय हैं, पर गौरक्षकों को इस बात से क्या मतलब. उन्हें तो सिर्फ गौरक्षा करनी है, चाहे उस के लिए कितने ही आदमियों का खून क्यों न बहाना पड़े.

Technology ने आसान कर दी महिलाओं की जिंदगी

”क्या यार, दोस्तों को डिनर पर बुलाने से पहले मुझ से पूछ तो लेते. आज शाम को मीटिंग है. कितनी देर चलेगी पता नहीं. मैं कब घर पहुंचूंगी और कब खाना बनाऊंगी?” फोन पर पति पर झुंझलाते हुए लता ने उस से कहा कि वह अपने दोस्तों को इतवार को बुलाए. मगर संदीप का जवाब सुन कर तो लता आश्चर्य से उछल पड़ी.

संदीप ने कहा, “तुम आराम से मीटिंग अटेंड कर के आओ. खाना तुम को रेडी मिलेगा.”

लता, “तो तुम खाना बाहर से और्डर करने वाले हो? फिर लंबा चौड़ा बिल आएगा?”

संदीप, “नहीं, सिर्फ 299\- खर्च होंगे और पूरा खाना घर पर ही बनेगा, वह भी बिलकुल होटल वाले स्वाद का.”

लता चकराई, बोली, “कोई जादू की छड़ी मिल गई है क्या? तुम को तो चाय तक बनानी नहीं आती?”

संदीप हंसते हुए बोला, “हां, जादू की छड़ी ही समझ लो. एक कंपनी का ऐप देखा था. वो सिर्फ 299\- रुपये में हमारे घर पर अपना शेफ भेजेगी जो दो से तीन घंटे में चार पांच तरह की डिशेज तैयार कर देगा और वो भी बिलकुल होटल वाले खाने के स्वाद का. रोटियां और पूरियां भी बना देगा. और सारा काम कर के तुम्हारा पूरा किचन अच्छी तरह साफ़ चमका कर जाएगा.”

लता, “क्या बात कर रहे हो? सिर्फ 299\- में? मुझे तो यकीन नहीं होता?”

संदीप, “यकीन तो मुझे भी नहीं हो रहा था. फिर मैं ने उन की वेबसाइट देखी. वहां सारी डिटेल्स हैं. बस एक फोन कौल पर शेफ आप की सेवा में हाजिर है. अब तुम को किसी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है. खाना बनाने की चिंता से मुक्त हो कर मीटिंग अटेंड करो.”

लता को संदीप की बातों पर यकीन तो नहीं हुआ, मगर शाम को औफिस की मीटिंग खत्म कर के साढ़े 7 बजे जब वह घर पहुंची तो डाइनिंग टेबल पर कढ़ाई पनीर, कोफ्ते, आलू-गोभी की सब्जी, रायता, पुलाव, सलाद और पूरियां सजी देख कर वह आश्चर्य में पड़ गई. मेहमान भी आ चुके थे. किचन में दो शेफ थे जो खाना बनाने और डाइनिंग टेबल पर सजाने के बाद किचन की सफाई कर रहे थे. 15 मिनट में दोनों ने पूरा किचन चमका दिया और अपना बैग पैक कर के चल दिए. जातेजाते कह गए, “सर, खाना अच्छा लगे तो हमारी वेबसाइट पर जा कर फीडबैक जरूर दीजिएगा.”

 

खाना लाजवाब बना था. मेहमान भी तारीफ़ कर रहे थे. 10 लोगों के लिए इतना खाना अगर बाहर से मंगवाते तो निश्चित ही पांच-छह हजार रुपए खर्च हो जाते. पर यहां तो पूरी पार्टी मात्र 299\- में ही निपट गई. शेफ ने हाइजीन का पूरा ख्याल रखा. तेल भी कम इस्तेमाल किया था. आटा-चावल, सब्जी और सारे इन्ग्रेडियंट घर के थे. और डिनर तैयार करने वाले वो ट्रेंड शेफ जिन के हाथ का बना खाना होटलों में खा कर आप उंगलियां चाटते रह जाते हैं, कितने शालीन और सभ्य थे.

देश में जिस तेजी से टैक्नोलौजी का विकास हो रहा है, इंसान की जिंदगी उसी तेजी से बदल रही है. नौकरियों का स्वरूप भी बदल रहा है. टैक्नोलौजी और कंप्यूटर के विकास ने अगर कुछ हाथों से काम छीना है तो अनेक हाथों को काम दिया भी है. जिन कामों का बोझ घर की महिलाओं पर इस कदर होता था कि वह उस से मुक्त हो कर अपने बारे में कुछ सोच ही नहीं पाती थीं, टैक्नोलौजी ने उन की जिंदगी काफी आसान कर दी है. टैक्नोलौजी ने उन का समय बचाया तो अब वे अपने बारे में सोच भी रही हैं और एक्स्प्लोर भी कर रही हैं.

आप पूछेंगे कैसे?

याद करिए आप की मां का कितना समय और ऊर्जा सिलबट्टे पर मसाला पीसने में खत्म होती थी. दिन में अगर दो बार खाना बनाना है तो दो बार उस को सिलबट्टे पर मसाला पीसने के लिए बैठना पड़ता था. घर भर के कपड़े धोने और सुखाने में तो आधा दिन बीत जाता था. लेकिन टैक्नोलौजी के विकास ने जहां मसाला-चटनी पीसने के लिए मिक्सी दी, वहीं कपड़े धोने के लिए औटोमैटिक वाशिंग मशीन. सब्जी चोप करना हो, मलाई से घी निकालना हो, खाना गर्म करना हो, घर की सफाई करनी हो, आज हर चीज के लिए ऐसे ऐसे उपकरण बाजार में उपलब्ध हैं जिन से घंटों के काम मिनटों में होने लगे हैं.

आप रात में गंदे कपड़े वाशिंग मशीन में डाल कर स्विच ऑन कर दीजिए और सुबह धुले और ड्राई कपड़े निकाल लीजिए. राइस कुकर में चावल डाल कर औफिस चली जाइए और दोपहर में आप के परिवार को गरमा गरम चावल खाने के लिए मिल जाएंगे. ये उपकरण काम खत्म कर के अपने आप ही स्विच औफ हो जाते हैं. इन को किसी निगरानी की आवश्यकता भी नहीं है.

मानव जीवन की व्यस्तताओं को देखते हुए टैक्नोलौजी उसी के अनुरूप चीजों को आसान करती जा रही है. आज अधिकांश महिलाएं नौकरीपेशा हैं. वे अपने पतियों की तरह 8 से 10 घंटे औफिस में काम करती हैं और घर से निकलने से पहले और घर लौटने के बाद भी काम करती रहती हैं. क्योंकि आज भी पुरुषों को घर के काम में पत्नी का हाथ बंटाने में उन का पुरुषत्व आड़े आता है. पत्नी घर के काम के साथ बाहर भी काम करे और पैसा कमा कर लाए, इस में भारतीय समाज को कोई दिक्कत नहीं है, मगर पुरुष किचन में दाल सब्जी बनाए और बच्चों की देखभाल करे तो कानाफूसी शुरू हो जाती है. मगर टैक्नोलौजी ने महिलाओं की दोहरी मेहनत को समझा और उस के कामों को आसान बनाया है.

माउस के एक क्लिक पर कंप्यूटर पर ऐसे तमाम वेबसाइट्स खुल जाती हैं जो महिलाओं के लिए बहुत काम की हैं. अर्बन क्लैप में कौल कर के आप बहुत कम पैसे में अपने घर का कोना कोना चमका सकते हैं. उन का आदमी अपने एक सहायक के साथ आएगा और आप के घर का किचन, बाथरूम और अन्य कमरे चमका जाएगा. उन के पास कुछ कैमिकल्स होते हैं, सफाई के लिए अलगअलग प्रकार के ब्रश और डिटर्जेंट होते हैं, जिन से चुटकियों में दीवारों, पंखों, चिमनियों आदि पर जमी चिकनाहट और गन्दगी साफ हो जाती है.

हाल ही में नोएडा गुड़गांव और दिल्ली में कुछ ऐसे स्टार्टअप्स शुरू हुए हैं, जिन्होंने कामकाजी महिलाओं की जिंदगी और आसान कर दी है. आमतौर पर नौकरी पेशा महिलाएं औफिस से जब घर के लिए निकलती हैं तो उन के दिमाग में बस यही सोच चल रही होती है कि घर पहुंच कर खाने में क्या बनाना है. कई बार बहुएं अपने मायके जाने को तरस जाती हैं, सालों मायके नहीं जातीं, क्योंकि उन को इस बात की चिंता होती है कि पीछे से उन के बूढ़े सास ससुर और पति व बच्चों को खाना कैसे मिलेगा? कई बार घर में कोई छोटामोटा फंक्शन होने पर गृहणी का पूरा समय रसोई में ही निकल जाता है और मेहमानों से मिलने, बात करने का उसे मौका ही नहीं मिलता.

मगर अब कुछ ऐसे स्टार्टअप शुरू हुए हैं कि खाने बनाने के झंझट से उसको निजात मिल रही है. उस के पास भी अब सजने संवारने, घूमने, लोगों से मिलने और बात करने का वक्त है. ऐसा ही एक स्टार्टअप है ‘द शेफ कार्ट’. ये कंपनी बहुत कम दाम में आप के घर शेफ भेज कर आप का मनपसंद खाना बनवा देती है. आप को पूरे महीने खाना बनवाना है तो उस के लिए भी शेफ उपलब्ध हैं. और इस काम के लिए जितना पैसा आप किसी मेड को देंगे उस से आधे दाम पर आप का काम हो जाएगा और खाना भी होटल के खाने सा स्वादिष्ट मिलेगा.

इसी तरह अब कुछ कंपनियां बुजुर्गों की देखभाल के लिए मेलफीमेल नर्स उपलब्ध कराती हैं जिन के लिए आप उन की वेबसाइट पर जाकर संपर्क कर सकते हैं. दिल्ली में ‘होम नर्सिंग सर्विस’ सेवा उपलब्ध कराने के लिए ‘वेस्टा एल्डर केयर’ नामक कंपनी कई सुविधाएं प्रदान करती है. कई प्राइवेट अस्पताल भी बुजुर्गों की देखभाल के लिए फुल टाइम नर्स उपलब्ध कराते हैं.

बच्चों की पढ़ाई की दिशा में भी टैक्नोलौजी के विकास का ही कमाल देखने को मिलता है. आज हर तरह की जानकारी गूगल पर उपलब्ध है. बच्चों को औनलाइन फ्री ट्यूशन की सुविधा मिलने लगी है. चैट जीपीटी ने जानकारी का पूरा खजाना खोल कर उन के सामने रख दिया है.

टैक्नोलौजी ने नौकरियों के स्वरूप में बहुत बदलाव किया है. जिस तेजी से देश की जनसंख्या बढ़ रही है, सरकार के पास तो उतनी नौकरियां नहीं हैं कि हर युवा को रोजगार मिल जाए. कुर्सी मेज पर बैठ कर कलम घिसने और फाइलें बनाने वाले काम भी बहुत कम रह गए हैं. उन की जगह कम्प्यूटरों ने ले ली है. प्राइवेट सैक्टर के पास भी अब इतनी नौकरियां नहीं हैं. ऐसे में जो नए स्टार्टअप आ रहे हैं उन्होंने छोटे माने जाने वाले कार्यों को टैक्नोलौजी से जोड़ कर उन का मान बढ़ाया है और पढ़ेलिखे बेरोजगार युवाओं को बड़ी संख्या में इन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया है.

घर की सफाई, खाना बनाना, बूढ़ों और बच्चों की देखभाल, घरों को दीमक और कीड़ा मुक्त करने का काम, बगीचे और किचन गार्डन की देखभाल, पानी की टंकी की सफाई जैसे अनेक काम जो पहले नौकरों, मालियों, काम वाली बाई आदि से करवाया जाता था, उन के लिए अब बाकायदा कंपनियां बन गई हैं जो अपनी वेबसाइट के जरिये अपनी सेवाओं को उपभोक्ताओं तक पहुंचाती हैं. पढ़े-लिखे युवा इन कंपनियों से बड़ी तादात में जुड़ रहे हैं. उन के लिए अब कोई काम ओछा या छोटा भी नहीं रहा है और कंपनियां उन को अच्छा मानदेय भी दे रही हैं.

नाजुक गुंडे

मुंबई से कुशीनगर ऐक्सप्रैस ट्रेन चली, तो गयादीन खुश हुआ. उस ने पत्नी को नए मोबाइल फोन से सूचना दी कि गाड़ी चल दी है और वह अच्छी तरह बैठ गया है. गयादीन को इस घड़ी का तब से बेसब्री से इंतजार था, जब उस ने 2 महीने पहले टिकट रिजर्व कराया था. वह रेल टिकट को कई बार उलटपलट कर देखता था और हिसाब लगाता था कि सफर के कितने दिन बचे हैं. सफर में सामान ज्यादा, खुद बुलाई मुसीबत होती है. गयादीन इस मुसीबत से बच नहीं पाता है. कितना भी कम करे, पर जब भी गांव जाता है, तो सामान बढ़ ही जाता है. इस स्लीपर बोगी में उस के जैसे सालछह महीने में कभीकभार घर जाने वाले कई मुसाफिर हैं. उन के साथ भी बहुत सामान है.

इस गाड़ी के बारे में कहा जाता है, आदमी कम सामान ज्यादा. पर आदमी कौन से कम होते हैं. हर डब्बे में ठसाठस भरे होते हैं, क्या जनरल बोगी, क्या स्लीपर बोगी. गयादीन इस बार अपने गांव में तो मुश्किल से एकाध दिन ही ठहरेगा. पत्नी को ले कर ससुराल जाना होगा. एकलौते साले की शादी है. इस वजह से भी सामान ज्यादा हो गया है. एक बड़ी अटैची, 2 बड़े बैग, एक प्लास्टिक की बड़ी बोरी और खानेपीने के सामान का एक थैला, जिसे उस ने खिड़की के पास लगी खूंटी पर टांग दिया था. वैसे तो इस ट्रेन में पैंट्री कार होती है और चलती ट्रेन में ही खानेपीने का सामान बिकता है, लेकिन रेलवे की खानपान सेवा पर खर्च कर के खाली पैसे गंवाना है. पछतावे के अलावा कुछ नहीं मिलता. खानेपीने का सामान साथ हो, तो परेशानी नहीं उठानी पड़ती.

इस बार गयादीन मां के लिए 20 लिटर वाली स्टील की टंकी ले जा रहा था, जिस के चलते एक अदद बोरी का बोझ बढ़ गया था. हालांकि बोरी में बहुत सा छोटामोटा सामान भी रख लिया है. एक बैग तो वहां के मौसम को ध्यान में रखते हुए बढ़ा है.

मुंबई जैसा मौसम तो हर कहीं नहीं होता. सफर लंबा है. पहली रात तो सादा कपड़ों में कट जाएगी, पर अगले दिन और रात के लिए तो गरम कपड़ों की जरूरत होगी. कंबल भी बाहर निकालना होगा. सुबह-सुबह जब गाड़ी गोरखपुर पहुंचेगी, तो कुहरे भरी ठंड से हाड़ ही कांप जाएंगे. फिर गांव तक का खुले में बस का सफर. वहां कान भी बांधने पड़ते हैं, फिर भी सर्दी पीछा नहीं छोड़ती. लेकिन उसी पल पत्नी से मिलन और ससुराल में एकलौते साले की शादी में मिलने वाले मानसम्मान का खयाल आते ही गयादीन जोश से भर गया. सामान ज्यादा होने की वजह से गयादीन को 2 दोस्त ट्रेन में बिठाने आए थे और वे ही बर्थ के नीचे सामान रखवा कर चले गए थे. उस की नीचे की ही बर्थ थी. कोच में सिर्फ रिजर्व टिकट वाले मुसाफिर थे. रेलवे स्टाफ ने कंफर्म टिकट वाले मुसाफिरों को ही कोच में सफर करने की इजाजत दी थी.

गयादीन ने चादर बिछाई. तकिए में हवा भरी और खिड़की की तरफ बैठ कर एक पतली सी पत्रिका निकाली. समय काटने के लिए उस ने रेलवे बुक स्टौल से कम कीमत की पत्रिका खरीद ली थी, जिस के कवर पर छपी लड़की की तसवीर ने उस का ध्यान खींचा था. गयादीन अधलेटा हो कर पत्रिका के पन्ने पलटने लगा. सामने की बर्थ पर लेटे एक मुसाफिर ने उसे टोकते हुए सलाह दे दी, ‘‘भाई, रात बहुत हो गई है. लाइट बुझा कर सोने दो. आप भी सोओ. लंबा सफर है, दिन में पढ़ लेना.’’

साथी मुसाफिर की बात उसे ठीक लगी. पत्रिका बंद कर के पानी पी कर लाइट बुझाते हुए वह लेट गया.

दिनभर की आपाधापी के बावजूद उस की आंखों में नींद नहीं थी. एक तो घर जाने की खुशी, दूसरे सामान की चिंता. नासिक रेलवे स्टेशन पर गाड़ी रुकी, तो भीड़ का एक रेला डब्बे में घुस आया. लोग कहते रहे कि रिजर्वेशन वाला डब्बा है, पर किसी ने नहीं सुनी. वे तीर्थ यात्री मालूम पड़ते थे और समूह में थे. उन में औरतें भी थीं.

गयादीन चादर ओढ़ कर बर्थ पर पूरा फैल कर लेट गया, ताकि उस की बर्थ पर कोई बैठ न सके, फिर भी ढीठ किस्म के 1-2 लोग यह कहते हुए थोड़ी देर का सफर है, उस के पैरों की तरफ बैठ ही गए.

गयादीन सफर में झगड़ेझंझट से बचना चाहता था, इसलिए ज्यादा विरोध नहीं किया, पर मन ही मन वह कुढ़ता रहा कि रिजर्वेशन का कोई मतलब नहीं. किसी की परेशानी को लोग समझते नहीं हैं. वह कच्ची नींद में अपने सामान पर नजर रखे रहा. हालांकि सामान को उस ने लोहे की चेन से अच्छी तरह बांध रखा था, लेकिन चोरों का क्या, चेन भी काट लेते हैं.

खैर, मनमाड़ और भुसावल स्टेशन आतेआते वे सब उतर गए. उस ने राहत की सांस ली और पूरी तरह सोने की कोशिश करने लगा. उसे नींद भी आ गई. बुरहानपुर स्टेशन पर चाय और केले बेचने वालों की आवाज से उस की नींद टूटी.

सुबह हो चुकी थी. बुरहानपुर स्टेशन का उसे इंतजार भी था. वहां मिलने वाले सस्ते और बड़े केले वह घर के लिए खरीदना चाहता था.

पर यह क्या, फिर भीड़ बढ़ने लगी. अब कंधे पर बैग टांगे या खाली हाथ दैनिक मुसाफिर ट्रेन में चढ़ आए थे. उस का अच्छाखासा तजरबा है, दैनिक मुसाफिर किसी तरह का लिहाज नहीं करते, सोते हुए को जगा देते हैं कि सवेरा हो गया और बैठ जाते हैं. एतराज करने पर भी नहीं मानते.

ट्रेन चली तो सामने वाले मुसाफिर को जगा कर गयादीन शौचालय गया. लौटा तो बीच की बर्थ खोल दी गई थी और नीचे उस की बर्थ पर कई लोग डटे थे. यही हाल सामने वाली बर्थ का था. वह कुछ देर खड़ा रहा तो एक दैनिक मुसाफिर ने उस पर तरस दिखाते हुए थोड़ा खिसक कर खिड़की की तरफ बैठने की जरा सी जगह बना दी, जहां उस का तकिया व चादर सिमटे रखे थे.

गयादीन झिझकते हुए सिकुड़ कर बैठ गया और अपने सामान पर नजर डाली. सामान महफूज था. चादर और तकिया जांघों पर रख कर खिड़की के बाहर देखने लगा. गाड़ी तेज रफ्तार से चल रही थी.

गयादीन गाल पर हाथ धरे उगते हुए सूरज को देख रहा था कि एकाएक किसी के धीमे से छूने का आभास हुआ. पलट कर देखा तो चमकती नीली सलवार और पीली कुरती वाली बहुत करीब थी. उस की कलाइयों में रंगबिरंगी चूडि़यां थीं व एक हाथ में 10-20 रुपए के कुछ नोट थे.

यह देख गयादीन अचकचा गया. उस ने मुंह ऊपर उठा कर देखा. लिपस्टिक से पुते हुए होंठों की फूहड़ मुसकराहट का वह सामना न कर सका और निगाहें नीचे कर लीं. उस ने खाली हाथ बढ़ाते हुए मर्दानी आवाज में रुपए की मांग की, ‘‘निकालो.’’

‘‘खुले पैसे नहीं हैं,’’ गयादीन ने झुंझलाहट से कहा और लापरवाही से खिड़की के बाहर देखने लगा.

‘‘कितना बड़ा नोट है राजा? सौ का, 5 सौ का, हजार का? निकालो तो सब तोड़ दूंगी,’’ भारी सी आवाज में उस ने तंज कसा.

‘‘जाओ, पैसे नहीं हैं.’’

‘‘अभी तो बड़े नोट वाले बन रहे थे और अब कहते हो कि पैसे नहीं हैं. रेल में सफर ऐसे ही कर रहे हो…’’ उस ने बेहयाई से हाथ भी मटकाया. इस बीच उस का एक साथी पास आ कर खड़ा हो गया, जो मर्दाने बदन पर साड़ी लपेटे था.

गयादीन को लगा कि अब इन से पार पाना मुश्किल है. बेमन से कमीज की जेब से 10 रुपए का एक नोट निकाला और बढ़ाया.

‘‘हायहाय, 10 का नोट… क्या आता है 10 रुपए में.’’

गयादीन ने 10 का एक और नोट निकाल कर चुपचाप बढ़ा दिया. वह उन से छुटकारा पाना चाहता था.

सलवार-कुरती वाले ने दोनों नोट झट से लपक लिए और आगे बढ़ गए. वह अपने को ठगा सा महसूस करते हुए शर्मिंदा सा उन्हें देखता रह गया.

वे दूसरे मुसाफिरों से तगादा करने में लग गए थे. कोई उन का विरोध नहीं कर रहा था. सब अपने को बचा सा रहे थे.

कुछ दैनिक मुसाफिर उतरे, तो दूसरे आ गए. कुछ बिना रिजर्वेशन वाले और गुटका, तंबाकू, पेपर सोप बेचने वाले चढ़ आए. भीड़ इतनी बढ़ गई थी कि रिजर्व डब्बा जनरल डब्बे की तरह हो गया. इस बीच टिकट चैकर भी आया, पर उसे इन सब से कोई मतलब नहीं.

जब दिन चढ़ आया, तो दैनिक मुसाफिरों की आवाजाही तो जरूर कम हुई, पर बिना रिजर्व मुसाफिर बढ़ते रहे. हां, चैकिंग स्टाफ का दस्ता डब्बे में चढ़ा, तो उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. वे उन से जुर्माना वसूल कर रसीद पकड़ा गए.

रात में ठीक से नींद न आ पाने से गयादीन की सोने की इच्छा हो आई, पर वह लेट नहीं सकता था. वह बैठे-बैठे ही ऊंघने लगा. सामने वाले मुसाफिर ने उसे जगा दिया, ‘‘अपने डब्बे में फिर गुंडे चढ़ आए हैं.’’

‘‘गुंडे, फिर से,’’ वह चौंका.

‘‘हां, हां, यह अपने-अपने इलाके के गुंडे ही तो हैं… नाजुक गुंडे.’’

अब की बार वे 4 थे. पहले वालों के मुकाबले ज्यादा हट्टेकट्टे और ढीठ. ताली बजाबजा कर बड़ी बेशर्मी से मुसाफिरों से रुपयों की मांग कर रहे थे. किसीकिसी से तो 50 के नोट तक झटक लिए थे. गयादीन के पास भी आए और ताली बजाते हुए मांग की.

गयादीन बोला, ‘‘पीछे वालों को दे चुके हैं.’’

‘‘दे चुके होंगे. लेकिन यह हमारा इलाका है.’’

‘‘इलाका तो गुंडों का होता है,’’ सामने वाले मुसाफिर ने कहा.

गयादीन को लगा कि गुंडा कहने से बुरा मान जाएंगे, पर बुरा नहीं माना. एक भौंहें मटकाते हुए बोला, ‘‘वे एमपी वाले थे. हम यूपी वाले हैं. हमारा रेट भी उन से ज्यादा है.’’

और वह दोनों से 50 का नोट ले कर ही माना. जब वे दूसरे डब्बे में चले गए, तो सामने वाला मुसाफिर बोला, ‘‘इन से पार पाना मुश्किल है. ये नंगई पर उतर आते हैं और छीनाझपटी भी कर सकते हैं. मुसाफिर बेचारा क्या करे.झगड़ाझंझट तो कर नहीं सकता.’’

‘‘इन का कोई इलाज नहीं? रेलवे पुलिस इन्हें नहीं रोकती?’’

‘‘पुलिस चाहे तो क्या नहीं कर सकती, पर आप तो जानते ही हैं. खैर,  रात के सफर में कोई परेशान नहीं करेगा. इन की शराफत है कि ये रात के सफर में मुसाफिरों को परेशान नहीं करते.’’

दोनों ने राहत की सांस ली.

प्यार का चस्का

शहर के कालेज में पढ़ने वाला अमित छुट्टियों में अपने गांव आया, तो उस की मां बोली, ‘‘मेरी सहेली चंदा आई थी. वह और उस की बेटी रंभा तुझे बहुत याद कर रही थीं. वह कह गई है कि तू जब गांव आए तो उन से मिलने उन के गांव आ जाए, क्योंकि रंभा अब तेरे साथ रह कर अपनी पढ़ाई करेगी.’’

यह सुन कर दूसरे दिन ही अमित अपनी मां की सहेली चंदा से मिलने उन के गांव चला गया था.

जब अमित वहां पहुंचा, तो चंदा और उन के घर के सभी लोग खेतों पर गए हुए थे. घर पर रंभा अकेली थी. अमित को देख कर वह बहुत खुश हुई थी.

रंभा बेहद खूबसूरत थी. उस ने जब शहर में रह कर अपनी पढ़ाई करने की बात कही, तो अमित उस से बोला, ‘‘तुम मेरे साथ रह कर शहर में पढ़ाई करोगी, तो वहां पर तुम्हें शहरी लड़कियों जैसे कपड़े पहनने होंगे. वहां पर यह चुन्नीवुन्नी का फैशन नहीं है,’’ कह कर अमित ने उस की चुन्नी हटाई, तो उस के हाथ रंभा के सुडौल उभारों से टकरा गए. उस की छुअन से अमित के बदन में बिजली के करंट जैसा झटका लगा था.

ऐसा ही झटका रंभा ने भी महसूस किया था. वह हैरान हो कर उस की ओर देखने लगी, तो अमित उस से बोला, ‘‘यह लंबीचौड़ी सलवार भी नहीं चलेगी. वहां पर तुम्हें शहर की लड़की की तरह रहना होगा. उन की तरह लड़कों से दोस्ती करनी होगी. उन के साथ वह सबकुछ करना होगा, जो तुम गांव की लड़कियां शादी के बाद अपने पतियों के साथ करती हो,’’ कह कर वह उस की ओर देखने लगा, तो वह शरमाते हुए बोली, ‘‘यह सब पाप होता है.’’

‘‘अगर तुम इस पापपुण्य के चक्कर में फंस कर यह सब नहीं कर सकोगी, तो अपने इस गांव में ही चौकाचूल्हे के कामों को करते हुए अपनी जिंदगी बिता दोगी,’’ कह कर वह उस की ओर देखते हुए बोला, ‘‘तुम खूबसूरत हो. शहर में पढ़ाई कर के जिंदगी के मजे लेना.’’

इस के बाद अमित उस के नाजुक अंगों को बारबार छूने लगा. उस के हाथों की छुअन से रंभा के तनबदन में बिजली का करंट सा लग रहा था. वह जोश में आने लगी थी.

रंभा के मां-बाप खेतों से शाम को ही घर आते थे, इसलिए उन्हें किसी के आने का डर भी नहीं था. यह सोच कर रंभा धीरे से उस से बोली, ‘‘चलो, अंदर पीछे वाले कमरे में चलते हैं.’’

यह सुन कर अमित उसे अपनी बांहों में उठा कर पीछे वाले कमरे में ले गया. कुछ ही देर में उन दोनों ने वह सब कर लिया, जो नहीं करना चाहिए था.

जब उन दोनों का मन भर गया, तो रंभा ने उसे देशी घी का गरमागरम हलवा बना कर खिलाया.

हलवा खाने के बाद अमित आराम करने के लिए सोने लगा. उसे सोते हुए देख कर फिर रंभा का दिल उस के साथ सोने के लिए मचल उठा.

वह उस के ऊपर लेट कर उसे चूमने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘तुम्हारा दिल दोबारा मचल उठा है क्या?’’

‘‘तुम ने मुझे प्यार का चसका जो लगा दिया है,’’ रंभा ने अमित के कपड़ों को उतारते हुए कहा.

इस बार वे कुछ ही देर में प्यार का खेल खेल कर पस्त हो चुके थे, क्योंकि कई बार के प्यार से वे दोनों इतना थक चुके थे कि उन्हें गहरी नींद आने लगी थी.

शाम को जब रंभा के मांबाप अपने खेतों से घर लौटे, तो अमित को देख कर खुश हुए.

रंभा भी उस की तारीफ करते नहीं थक रही थी. वह अपने मांबाप से बोली, ‘‘अब मैं अमित के साथ रह कर ही शहर में अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी.’’

यह सुन कर उस के पिताजी बोले, ‘‘तुम कल ही इस के साथ शहर चली जाओ. वहां पर खूब दिल लगा कर पढ़ाई करो. जब तुम कुछ पढ़लिख जाओगी, तो तुम्हें कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाएगी. तुम्हारी जिंदगी बन जाएगी.’’

‘‘फिर किसी अच्छे घर में इस की शादी कर देंगे. आजकल अच्छे घरों के लड़के पढ़ीलिखी बहू चाहते हैं,’’ रंभा की मां ने कहा, तो अमित बोला, ‘‘मैं दिनरात इसे पढ़ा कर इतना ज्यादा होशियार बना दूंगा कि फिर यह अच्छेअच्छे पढ़ेलिखों पर भारी पड़ जाएगी.’’

रंभा की मां ने अमित के लिए खाने को अच्छे-अच्छे पकवान बनाए. खाना खाने के बाद बातें करते हुए उन्हें जब रात के 10 बज गए, तब उस के सोने का इंतजाम उन्होंने ऊपर के कमरे में कर दिया.

जब अमित सोने के लिए कमरे में जाने लगा, तो चंदा रंभा से बोली, ‘‘कमरे में 2 पलंग हैं. तुम भी वहीं सो जाना. वहां पर अमित से बातें कर के शहर के रहनसहन और अपनी पढ़ाईलिखाई के बारे में अच्छी तरह पूछ लेना.’’

यह सुन कर रंभा मुसकराते हुए बोली, ‘‘जब से अमित घर पर आया है, तब से मैं उस से खूब जानकारी ले चुकी हूं. पहले मैं एकदम अनाड़ी थी, लेकिन अब मुझे इतना होशियार कर दिया है कि मैं अब सबकुछ जान चुकी हूं कि असली जिंदगी क्या होती है?’’

यह सुन कर चंदा खुशी से मुसकरा उठी.

वे दोनों ऊपर वाले कमरे में सोने चले गए थे. कमरे में जाते ही वे दोनों एकदूसरे पर टूट पड़े.

शहर में आ कर अमित ने रंभा के लिए नएनए फैशन के कपड़े खरीद दिए, जिन्हें पहन कर वह एकदम फिल्म हीरोइन जैसी फैशनेबल हो गई थी. अमित ने एक कालेज में उस का एडमिशन भी करा दिया था.

जब उन के कालेज खुले, तो अमित ने अपने कई अमीर दोस्तों से उस की दोस्ती करा दी, तो रंभा ने भी अपनी कई सहेलियों से अमित की दोस्ती करा दी.

गांव की सीधीसादी रंभा शहर की जिंदगी में ऐसी रम गई थी कि दिन में अपनी पढ़ाई और रात में अमित और उस के दोस्तों के साथ खूब मौजमस्ती करती थी.

जब रंभा शहर से दूसरी लड़कियों की तरह बनसंवर कर अपने गांव जाती, तब सभी लोग उसे देख कर हैरान रह जाते थे. उसे देख कर उस की दूसरी सहेलियां भी अपने मांबाप से उस की तरह शहर में पढ़ने की जिद कर के शहर में ही पढ़ने लगी थीं.

अब अमित उस की गांव की सहेलियों के साथ भी मौजमस्ती करने लगा था. उस ने रंभा की तरह उन को भी प्यार का चसका जो लगा दिया था.

साहब की चतुराई

तबादले पर जाने वाला नौजवान अफसर विजय आने वाले नौजवान अफसर नितिन को अपने बंगले पर ला कर उसे चपरासी रामलाल के बारे में बता रहा था. नितिन ने जब चपरासी रामलाल की फिल्म हीरोइन जैसी खूबसूरत बीवी को देखा, तो वह उसे देखता ही रह गया. नितिन बोला, “यार, तुम्हारी यह चपरासी की बीवी तो कमाल की है. तुम ने तो इस के साथ खूब मजे किए होंगे?’’ ‘‘नहीं यार, ये छोटे लोग बहुत ही धर्मकर्म पर चलते हैं और इस के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं. ये लोग पद और पैसे के लिए अपनी इज्जत को नहीं बेचते हैं. मैं ने भी इसे लालच दे कर पटाने की खूब कोशिश की थी, मगर इस ने साफ मना कर दिया था.’’

यह सुन कर नितिन विजय की ओर हैरानी से देखने लगा.

नितिन को इस तरह देख विजय अपनी सफाई में बोला, ‘‘ये छोटे लोग हम लोगों की तरह नहीं होते हैं, जो अपने किसी काम को बड़े अफसर से कराने के लिए अपनी बहनबेटियों और बीवियों को भी उन के साथ सुला देते हैं. हमारी बहनबेटियों और बीवियों को भी सोने में कोई दिक्कत नहीं होती है, क्योंकि वे तो अपने स्कूल और कालेज की पढ़ाई करते समय अपने कितने ही बौयफ्रैंड्स के साथ सो चुकी होती हैं.’’ इतना सुन कर नितिन मन ही मन  उस चपरासी की बीवी को पटाने की तरकीब सोचने लगा.

विजय से चार्ज लेने के बाद नितिन अपने सरकारी बंगले में रहने लग गया था. शाम को जब वह अपने बंगले पर आया, तो चपरासी रामलाल उस से बोला, ‘‘साहब, आप को शराब पीने का शौक हो तो लाऊं? पुराने साहब तो रोजाना पीने के लिए बोतल मंगवाते थे.’’

‘‘और क्याक्या मंगवाते थे तुम्हारे पुराने साहब?’’

चपरासी रामलाल बोला, ‘‘कालेज में पढ़ने वाली लड़की भी मंगवाते थे. वे पूरी रात के उसे 2 हजार रुपए देते थे.’’ ‘‘ले आना,’’ सुन कर नितिन ने उस से कहा, तो वह उन के लिए शराब की बोतल और उस लड़की को ले आया था.

उस लड़की और उस अफसर ने शराब पी कर रातभर खूब मजे किए. जाते समय नितिन ने उसे 3 हजार रुपए दिए और उस से कहा कि वह चपरासी रामलाल से कहे कि तुम्हारे ये कैसे साहब हैं, जिन्होंने रातभर मेरे साथ कुछ किया ही नहीं था, बल्कि मुझे छुआ भी नहीं था, फिर भी मुझे 3 हजार रुपए मुफ्त में दे दिए हैं.’’ उस लड़की ने चपरासी रामलाल से यह सब कहने की हामी भर ली. जब वह लड़की वहां से जाने लगी, तो चपरासी रामलाल से बोली, ‘‘तुम्हारे ये साहब तो बेकार ही रातभर लड़की को अपने बंगले पर रखते हैं, उस के साथ कुछ करते भी नहीं हैं, मगर फिर भी उस को पैसे देते हैं. तुम्हारे साहब का तो दिमाग ही खराब है.’’

यह सुन कर चपरासी रामलाल हैरान हो कर उस की ओर देखने लगा, तो वह उस से बोली, ‘‘तुम्हारे साहब ने तो रातभर मुझे छुआ भी नहीं, फिर भी मुझे 3 हजार रुपए दे दिए हैं,’’ कह कर वह वहां से चली गई. उस लड़की की बातें सुन कर चपरासी रामलाल सोचने लगा था कि उस के अफसर का दिमाग खराब है या वे औरत के काबिल नहीं हैं, फिर भी उन्हें औरतों को अपने साथ सुला कर उन पर अपने पैसे लुटाने का शौक है. चपरासी रामलाल अपने कमरे पर आ कर बीवी सरला से बोला, ‘‘हमारे ये नए साहब तो बेकार ही अपने पैसे लड़की पर लुटाते हैं.’’ ‘‘वह कैसे?’’ सुन कर सरला ने रामलाल से पूछा, तो वह बोला, ‘‘कल रात को मैं साहब के लिए एक लड़की लाया था, लेकिन उन्होंने उस के साथ कुछ भी नहीं किया. यहां तक कि उन्होंने उसे छुआ भी नहीं, मगर फिर भी उन्होंने उसे 3 हजार रुपए दे दिए.’’

यह सुन कर उस की बीवी सरला हैरानी से उस की ओर देखने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘क्यों न अपने इस साहब से हम पैसे कमाएं?’’ ‘‘वह कैसे?’’ सरला ने उस से पूछा, तो वह बोला, ‘‘तुम इस साहब के साथ सो जाया करो. यह साहब तुम्हारे साथ कुछ करेगा भी नहीं और उस से मुफ्त में ही हम को पैसे मिल जाएंगे. उन पैसों से हम अपने लिए नएनए गहने भी बनवा लेंगे और जरूरत का सामान भी खरीद लेंगे.

‘‘मेरा कितने दिनों से नई मोटरसाइकिल खरीदने का मन कर रहा है, मगर पैसे न होने से खरीद ही नहीं पाता हूं. जब तुम्हें नएनए गहनों में नए कपड़े पहना कर मोटरसाइकिल पर बिठा कर अपने गांव और ससुराल ले जाऊंगा, तो वे लोग हम से कितने खुश होंगे. हमारी तो वहां पर धाक ही जम जाएगी.’’ ‘‘कहीं यह तुम्हारा साहब मुझ से मजे लेने लग गया तो…’’ खूबसूरत बीवी सरला ने अपना शक जाहिर किया, तो वह उसे तसल्ली देते हुए बोला, ‘‘तुम इस बात की चिंता मत करो. वह तुम से मजे नहीं लेगा.’’

पति रामलाल की इस बात को सुन कर बीवी सरला अपने साहब के साथ सोने के लिए तैयार हो गई. शाम को अपने साहब के लिए शराब लाने के बाद रात को चपरासी रामलाल ने अपनी बीवी सरला को उन के कमरे में भेज दिया. साहब जब उस पर हावी होने लगे, तो उसे बड़ी हैरानी हो रही थी, क्योंकि उस के पति ने तो उस से कहा था कि साहब उसे छुएगा भी नहीं, मगर उस का साहब तो उस पर ऐसा हावी हुआ था कि… रातभर में साहब ने उसे इतना ज्यादा थका दिया था कि वह सो न सकी. सरला को अपने पति पर बहुत गुस्सा आ रहा था, लेकिन गुस्से को दबा कर मुसकराते हुए दूसरे दिन अपने पति से वह बोली, ‘‘तुम्हारे साहब ने तो मुझे छुआ भी नहीं. हम ने मुफ्त में ही उन से पैसे कमा लिए.’’ यह सुन कर उस का पति रामलाल अपनी अक्लमंदी पर खुशी से मुसकराने लगा, तो वह उस से बोली, ‘‘मुझे रातभर तुम्हारी याद सताती रही थी. क्यों न हम तुम्हारी बहन नीता को गांव से बुला कर तुम्हारे साहब के साथ सुला दिया करें. ‘‘तुम्हारा साहब उस के साथ कुछ करेगा भी नहीं और उस से मिले पैसों से हम उस की शादी भी धूमधाम से कर देंगे.’’

यह सुन कर रामलाल बीवी सरला की इस बात पर सहमत हो गया. वह उस से बोला, ‘‘तुम इस बारे में नीता को समझा देना. मैं आज ही उसे फोन कर के बुलवा लूंगा.’’ शाम को जब चपरासी रामलाल की बहन नीता वहां पर आई, तो सरला उस से बोली, ‘‘ननदजी, तुम गांव के लड़कों को मुफ्त में ही मजे देती फिरती हो. किसी दिन किसी ने देख लिया, तो गांव में बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम यहीं रह कर हमारे साहब के साथ रातभर सो कर मजे भी लो और पैसे भी कमाओ.’’ यह सुन कर उस की ननद नीता खुशी से झूम उठी थी. रातभर वह साहब के साथ मौजमस्ती कर के सुबह जब उन के कमरे से निकली, तो बहुत खुश थी. साहब ने उसे 5 हजार रुपए दिए थे. कुछ ही दिनों में चपरासी रामलाल अपने लिए नई मोटरसाइकिल ले आया था और अपनी बीवी सरला और बहन नीता के लिए नएनए जेवर और कपड़े भी खरीद चुका था, क्योंकि उस के साहब अपने से बड़े अफसरों को खुश रखने के लिए उन दोनों को उन के पास भेजने लगे थे. एक दिन सरला और नीता आपस में बातें करते हुए कह रही थीं कि उन के साहब तो रातभर उन्हें इतने मजे देते हैं कि उन्हें मजा आ जाता है.

उन की इन बातों को जब चपरासी रामलाल ने सुना, तो वह अपने साहब की इस चतुराई पर हैरान हो उठा था. लेकिन अब हो भी क्या सकता था. रामलाल ने सोचा कि जो हो रहा है, होने दो. उन से पैसे तो मिल ही रहे हैं. उन पैसों के चलते ही उस की अपने गांव और ससुराल में धाक जम चुकी थी, क्योंकि आजकल लोग पैसा देखते हैं, चरित्र नहीं.

अंबानियों के पास पैसा कहां से आता है, भाग्य या धर्मकर्म से

धीरुभाई अंबानी बहुत ज्यादा कंजूस नहीं थे. लेकिन वे इतने फिजूलखर्च भी नहीं थे कि अपने बेटों मुकेश और अनिल की शादियों पर उतना पैसा फूंकना गवारा करते जितना कि उन के बड़े बेटे मुकेश ने अपने छोटे बेटे अनंत अंबानी की शादी पर फूंका. अगर पैसा खर्च करने और पैसा उड़ाने या फूंकने के बीच कोई लाइन नहीं खींची जा सकती तो यह तय कर पाना मुश्किल है कि मुकेश अंबानी ने अनंत अंबानी की शादी में पैसा खर्च किया है या फूंका है. अंदाजा है कि इस शाही शादी पर कोई 5 हजार करोड़ रूपए खर्च किए गए जो मुकेश अंबानी की अकूत दौलत का एक फीसदी हिस्सा भी नहीं है.

धीरुभाई अंबानी के बारे में हर कोई जानता है कि वे एक पेट्रोल पम्प पर 300 रूपए महीने की नौकरी करते थे और अपने कैरियर के शुरूआती दौर में बहुत छोटे लेबल पर मुंबई में मसालों का कारोबार करते थे. कभी उन्होंने मेलों ठेलों में पकोड़े भी बेचे थे. यानी वे एक गरीब और जमीन से जुड़े कारोबारी थे जिस के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह शख्स मिट्टी से भी पैसा बना लेता है. एक बार उन्होंने यमन के एक शेख को गुलाब उगाने के लिए उपजाऊ भारतीय मिट्टी बेची भी थी और इस से खासा मुनाफा कमाया था. आदमी जब धीरूभाई जितना बड़ा और कामयाब हो जाता है तो उस से जुड़े कई झूठे सच्चे किस्से कहानियां भी मार्किट में चलन में आ जाते हैं. जुझारू और मेहनती धीरुभाई इस के अपवाद नहीं रहे जिन का खड़ा किया आर्थिक साम्राज्य दिनों दिन बढ़ता गया और मुकेश अंबानी ने तो उसे शिखर पर पहुंचा दिया.

मुकेश अंबानी ने अपने बेटे की शादी पर जो भी खर्च किया उस के चर्चे विदेश में भी है. इस शाही शादी पर भारतीय मीडिया का रुख बेहद तटस्थ रहा क्योंकि कोई भी अपने सब से बड़े विज्ञापनदाता की नाराजी मोल नहीं लेना चाहता था. उलटे अपने इस क्लाइंट को खुश करने या यूं ही चटपटी खबरें परोसने का रिवाज निभाते लगभग सभी न्यूज़ चैनल्स ने राधिका मर्चेंट के लहंगे, नीता अम्बानी की ज्वैलरी और अनंत अम्बानी की ड्रैसेज कैसी थीं जैसे विषयों को हाई लाइट किया जो पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांतों ( अगर कहीं बचे हों तो ) से मेल न खाती एक तरह से फिजूल की बातें थी.

लेकिन विदेशी मीडिया ने भारत में पसरती आर्थिक असमानता को मुद्दा बनाते बेबाक हो कर अपनी राय रखी. सब से सख्त कमेंट कतर के मीडिया हाउस अल जजीरा ने यह लिखते किया कि इस शादी पर बेतहाशा पैसा खर्च किया गया. रिलायंस के एक अधिकारी के हवाले से अल जजीरा कहना यह रहा कि यह ग्लोबल स्टेज पर भारत के बढ़ते कद को दिखाने वाली शादी है. गौरतलब है कि अल जजीरा के चैनल्स को इजरायली संसद ने आतंकवादी करार देते कानून बना कर हर तरह के प्रसारण को प्रतिबंधित कर रखा है.

अपनी तरफ से राय देने से बचते इस अख़बार ने केरल के एक घोर मार्क्सवादी नेता डाक्टर थामस इसाक के हवाले से यह भी कहा कि भले ही यह उन का पैसा है लेकिन शादी पर किया गया खर्च गरीबों और धरती पर किया गया पाप है. फक्कड़ और पढ़ाकू कहे जाने वाले 71 वर्षीय थामस इसाक 2 बार केरल के वित्त मंत्री रह चुके हैं. जमीन जायदाद के नाम पर उन के पास केवल लगभग 10 लाख रूपए मूल्य की 20 हजार किताबें भर हैं.

मुमकिन है उन का यह बयान मार्क्सवादी संस्कारों की भड़ास हो जो पूंजी के असमान वितरण का रोना झींकना अपनी ड्यूटी समझता है. उलट इस के खुद मुकेश अंबानी और शादी में मौजूद धर्माचार्यों ने जम कर सनातनी संस्कारों का राग अलापा. देश के तमाम ब्रांडेड धर्माचार्य इस शादी में फ़िल्मी सितारों, खिलाड़ियों, राजनेताओं और दीगर क्षेत्र की हस्तियों की तरह हाजिरी लगाने आए थे. इन में प्रमुख थे जूना अखाड़ा के मुखिया अवधेशानंद गिरी, ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्रानंद, द्वारका शारदा पीठ के मुखिया सदानंद के अलावा मशहूर कथावाचक देवकी नंदन ठाकुर और रामभद्राचार्य सहित बागेश्वर बाबा यानी धीरेंद्र शास्त्री जो शादी के दिन आस्ट्रेलिया में कथा बांच रहे थे को तो खासतौर से हवाईजहाज भेज कर बुलाया गया था.

रामदेव और उन के बिजनेस पार्टनर आचार्य बालकृष्ण भी इस भज भज मंडली में थे. शादी के बाद वायरल हुए एक वीडियो में बड़े दिलचस्प तरीके से धर्म के ये अभिनेता फिल्मी अभिनेता अमिताभ बच्चन के सामने अर्दलियों जैसे सर झुकाते दिख रहे हैं. इस वीडियो में इन की बौड़ी लैंग्वेज देख तो लगता है कि दुनिया भर के भक्तों से पैर छुआने बाले ये संत महंत बाबा और मठाधीश कहीं अमिताभ बच्चन के पैर ही न छू लें. इस से इन संतों की तो नहीं बल्कि अमिताभ बच्चन की अहमियत और लोकप्रियता ही साबित हुई. साथ ही साबित हुई संतों की हीनता जो भक्तों की दक्षिणा पर शाही विलासी जिंदगी जीते हैं और एवज में अपना आशीर्वाद, मोक्ष और पाप मुक्ति बगैरह बांटा करते हैं. अमिताभ तो फिर भी एक्टिंग के जरिए लोगों का मनोरंजन करते हैं.

उपर बताई लिस्ट से स्पष्ट होता है कि वैष्णव और शैव दोनों सम्प्रदायों के संत फौरीतौर पर अपने मतभेद भुलाते हुए जियो वर्ल्ड में थे जिन में से शंकराचार्यों की मौजूदगी को ले कर जो खासा विवाद सनातनियों में मचा. उस से पहले मुकेश अंबानी की सनातनी स्पीच पर गौर करना जरुरी है जिन्होंने विवाह की व्याख्या करते हुए यह धार्मिक सा प्रवचन दिया –
हिंदू धर्म में वेद विवाह को मानवता के प्रति कर्तव्य मानते हैं. विवाह परिवार का आधार है, परिवार समुदाय का और समुदाय समाज का आधार है. विवाह मानव की एकजुटता कल्याण और प्रगति का गारंटर होता है. इसलिए अनंत और राधिका का विवाह समग्र रूप से मानवता के लिए प्रतिबद्ध है. मैं पूरी श्रद्धा से हमारे कुलदेवता, ग्राम देवता, इष्टदेवता और अंबानी और मर्चेंट परिवार के सभी बड़ों का आव्हान करता हूं. इस ख़ास दिन पर हम इकट्ठा होकर पंचतंत्र का आव्हान करते हैं जो पृकृति के पांच मूलभुत घटक हैं और धरती पर हर जीव का पालनपोषण करते हैं.

पूरा वातावरण आध्यत्मिक हो गया है. सभी देवीदेवता स्वर्ग से यहां उतर आए हैं सभी देवीदेवताओं, दोस्तों, रिश्तेदारों और सभी मेहमानों के आशीर्वाद के साथ शुभ विवाह समारोह की शुरुआत करते हैं जय श्री कृष्णा. इतना ही नहीं उन्होंने अनंत को विष्णु और राधिका को लक्ष्मी तक करार दे डाला.
उपर वाले देवीदेवता तो जियो वर्ल्ड सेंटर में किसी को नजर नहीं आए लेकिन नीचे वाले देवीदेवताओं को देश भर ने देखा. इस जमावड़े में हर क्षेत्र की हस्तियां थीं जिन्हें आज के दौर का देवीदेवता कहा जा सकता है. इन में कुछ गोरे विदेशी देवीदेवता भी आकर्षण का केंद्र बने हुए थे. देसी धर्म गुरुओं की मौजूदगी तो एहसास करा ही रही थी कि पौराणिक शादियां कैसी और कितनी भव्य होती थीं. यही इस युग के ऋषि मुनि हैं लेकिन उन के पास इतनी शक्ति नहीं थी कि उपर से फूल बरसा पाते, लिहाजा नीचे से ही पुष्प वर्षा और यजमानों और उन के खास मेहमानों के गले में भगवा गमछा ओढ़ातेआशीर्वाद उन्होंने दे दिए. सियासी देवीदेवताओं की लिस्ट भी बहुत लम्बी है इन में से कुछ ऐसे भी थे जिन्हें मुकेश अंबानी का धुर विरोधी कहा जाता है मसलन लालू यादव, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव वगैरह. नहीं थे तो बस गांधी परिवार के सदस्य खासतौर से राहुल गांधी जो इंडिया गठबंधन के दूसरे नेताओं की तरह नरेंद्र मोदी पर यह आरोप मढ़ते रहते हैं कि उन्होंने देश का सारा पैसा और संपत्तियां अम्बानी अडानी को बेच दी हैं या दे दी हैं.

इन तमाशे में 4 जून के नतीजों का भी असर साफसाफ देखा गया क्योंकि मुकेश अंबानी खुद सोनिया, राहुल गांधी को अनंत राधिका की शादी का इनविटेशन देने गए थे. लेकिन राहुल गांधी उन से नहीं मिले थे. तय है यह उन का स्वाभिमान और नरेंद्र मोदी का वह तंज था जिस में उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान बीती 8 मई को तेलंगाना के वेमुलवाडा की एक रैली में उन पर निशाना साधते कसा था कि वह यानी ‘राहुल गांधी अंबानी, अडानी का नाम इसलिए नहीं ले रहे क्योंकि कांग्रेस ने इन उद्योपतियों से तगड़ा पैसा लिया है. शहजादे बताएं कि कितना माल उठाया है. क्या टेम्पो भर कर नोट कांग्रेस के पास पहुंचे हैं?’
इस राजनीति से परे मुकेश अंबानी ने जरुर यह अंदाजा 4 जून के नतीजे देख लगा लिया लगता है कि भाजपा अब कमजोर हो रही है और आने वाला वक्त राहुल गांधी का भी हो सकता है. लिहाजा मैं क्यों किसी का लिहाज करूं. मुझे तो व्यापार करना है फिर सरकार चाहे एनडीए की हो या इंडिया गठबंधन की हो और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या राहुल गांधी हों या कोई और हो.
जाहिर है अपने पिता की तरह मुकेश अम्बानी भी व्यावसायिक बुद्धि के धनी हैं. मुकेश अंबानी भले ही बेटे की शादी में व्यस्त रहे हों लेकिन दुनिया के बड़े उद्योपतियों में से एक होने के नाते उन की नजर ब्रिटेन, फ़्रांस और ईरान जैसे देशों के चुनावी नतीजों पर भी थी जो दक्षिणपंथियों की विदाई की स्क्रिप्ट लिख गए. देश में बाकी रही सही कसर विधानसभा उपचुनावों ने पूरी कर जिन में 13 में से 10 सीटें इंडिया गठबंधन ले गया और भाजपा के खाते में गिरते पड़ते 2 ही सीटें आईं.

बिलाशक यह यानी टेम्पो वाली भाषा प्रधानमंत्री स्तर की भाषा नहीं थी. इस पर राहुल खामोश नहीं रहे थे क्योंकि आरोप गंभीर था. इसलिए उन्होंने तुरंत पलट कर जबाब देते नरेंद्र मोदी की बोलती यह कह कर बंद कर दी थी कि ‘एक काम कीजिए सीबीआई, ईडी को इन के पास भेजिए, पूरी जांच कराइए, घबराइए मत. नौर्मली आप बंद कमरों में अडानीजी, अम्बानीजी से बात करते हो. पहली बार पब्लिक में दोनों का नाम बोला, क्या अडानी अम्बानी आप को टेम्पो में भर कर पैसा देते हैं. ये आप का पर्सनल एक्सपीरियंस है?’
इस बयानबाजी के चलते राहुल गांधी ने तो अंबानी के यहां जाना मुनासिब नहीं समझा. लेकिन नरेंद्र मोदी गए तो तरहतरह की चर्चाएं चौराहों से ले कर घरों के लिविंग रूम तक में हुईं. लेकिन सब से ज्यादा चर्चा जो मुद्दे की बात है इस बात पर हुई कि अंबानी परिवार संस्कारवान और सनातन प्रेमी है. सोशल मीडिया पर तो ऐसी पोस्टों की बाढ़ आ गई जिन में पैसे के फूहड़ और गैरजरूरी प्रदर्शन का तो जिक्र नहीं था. लेकिन यह बढ़ाचढ़ा कर बताया जा रहा था कि अंबानीज के पास क्यों इतना पैसा है.
अंबानी परिवार संस्कारित है, पूजापाठी है, आस्थावान है जैसी पोस्टों और वीडियोज से सोशल मीडिया भरा पड़ा है. शादी वाली जगह यानी वेन्यू पर भी धर्म साफसाफ दिख रहा था. जाहिर है मुकेश व नीता अंबानी खुद को सनातनी जताने का कोई मौका नहीं छोड़ते, उलटे नए नए मौके पैदा करते रहते हैं.

ऐसा ही एक चर्चित मौका नीता अंबानी ने आज से 5 साल पहले पैदा किया था. अगर आप इसे पढ़ना चाहते हैं तो इसी वेब साईट पर पढ़ सकते हैं. 15 मई 2019 को प्रकाशित इस लेख का शीर्षक है, ‘नीता अम्बानी ने तोड़े अंधविश्वासों और पाखंडों के वैदिक रिकार्ड.’   https://www.sarita.in/society/neeta-ambani       गूगल पर यह शीर्षक टाइप करते ही यह दिलचस्प लेख आप की स्क्रीन पर दिखने लगेगा.
जियो वर्ल्ड सेंटर को बनारस थीम पर बनाया और सजाया गया था. चारों तरफ देवीदेवताओं के फोटो और मूर्तियां देख हर किसी को मंदिर जैसी फीलिंग आ रही थी. मंत्रोच्चार लगातार होता रहा. रहीसही कसर अरबों के आसामी इस यजमान से करोड़ों की दक्षिणा की आस लिए आए धर्म गुरुओं ने कर दी. इनका अम्बानी परिवार ने वैदिक विधि विधान से पूजापाठ और सत्कार किया नरेंद्र मोदी भी बारीबारी सभी धर्म गुरुओं के चरणों में शीश नवाते दिखे. माहौल कुछ क्या पूरा ही वैसा था मानो किसी विष्णु अवतार के विवाह में चारों तरफ ऋषि मुनि विराजे हों. इन सभी के खासतौर से वर वधु अनंत और राधिका से पैर छुलाए गए.
शादी और आशीर्वाद समारोह के दूसरे दिन से ही सनातन धर्मियों ने यह प्रचार शुरू कर दिया था कि यूं ही कोई अम्बानी नहीं हो जाता. इस के लिए खूब धर्मकर्म दान पुण्य करना पड़ते हैं और पूर्वजों के पुण्यों और धर्मकर्म से भी पैसा मिलता है. दरअसल में मुकेश अम्बानी का भाजपा, भगवा और मोदी प्रेम किसी सबूत का कभी मोहताज नहीं रहा लिहाजा धर्म के ठेकेदारों और दुकानदारों में किसी किस्म के विरोध या एतराज जताने की न तो हिम्मत थी और न ही जरूरत थी. इसलिए इन्होने इस तमाशे को भी धर्म प्रचार का जरिया बना डाला.

मकसद हमेशा की तरह यह था कि ग्राहकी बढ़े, अमीर बनने के लालच में लोग और दिन दोगुनी रात चौगुनी दक्षिणा दें और अंधविश्वासी बनें. मैसेज सीधा सा यह भी था कि अम्बानी जैसी दौलत चाहते हो तो उन की तरह ही सनातन धर्म का पालन करो, ब्राह्मणों साधु संतों का आदर सत्कार करो और दान देने में कंजूसी मत करो.
धर्म के धंधे से जुड़े लोगों ने कैसेकैसे प्रचार कर लोगों का ब्रेनवाश करने की कोशिश की उस की एक बानगी एक वीडियो के जरिए समझाई गई. इस वीडियो में एक स्मार्ट सा युवक एक युवा संत से पूछ रहा है कि मेहनत और धर्मकर्म तो हर कोई करता है लेकिन इतना पैसा अंबानीके पास ही क्यों. इस युवक का नाम कुलदीप सिंघानिया है जो असफल टीवी आर्टिस्ट है. अब पैसे कमाने वह सोशल मीडिया पर टोनेटोटकों का प्रचार करने लगा है.

यह एक ऐसा सवाल है जो स्वभाविक तौर पर हर किसी के जेहन में है इस के जवाब में कुलदीप के सामने बैठा बाबा में जो गिनाता है वह बेहद डराने वाला भी है और दान धरम के लिए आतंक की हद तक उकसाने वाला भी कि आज लोग सनातन धर्म से यानी व्रत, तीज त्योहारों, संस्कृति और परंपराओं से विमुख होते जा रहे हैं. इसलिए हैरान परेशान और दरिद्र से हैं.
अम्बानी परिवार तबियत से धर्मकर्म करता है. गरीबों की मदद और सेवा करता है, मंदिरों में मंगला आरती करता और करवाता है जिस से उन्हें तमाम देवीदेवताओं का आशीर्वाद रोजरोज मिलता है और इन के पूर्वज भी यही करते थे. यह अथाह दौलत इन्ही पुण्यों की देन है. इस में पूर्व जन्मों के पुण्य भी शामिल हैं. मुकेश अंबानीऔर धीरू भाई अंबानी पूर्व जन्म के तपस्वी हैं जिस का फल अब उन्हें मिल रहा है, जैसी बकबास और चालाकी भरी बातें भला किसे न ललचाएंगी कि आज धर्म कर्म कर लो और फिर अगले जन्म में पैसे वाले बन कर मौज करो.

कुलदीप और उस का इंटरव्यू दाता बाबा शायद ही बता पाएं कि इस देश में धर्मकर्म के सिवाय और होता ही क्या है. लोग इतने भाग्यवादी होते जा रहे हैं कि उन का आत्मविश्वास डगमगाने लगा है इसलिए वे धर्म स्थलों और तीर्थ स्थलों की तरफ चमत्कार का दम भरने वाले बाबाओं की तरफ भाग रहे हैं. और धर्मकर्म पर 10 नहीं बल्कि 25 फीसदी से भी ज्यादा कमाई खर्च कर रहे हैं. इस के बाद भी वे हैरान परेशान और दुखी क्यों हैं.
जहां तक बात अंबानी परिवार और दूसरे रईसों की है तो ये दोनों और दूसरा कोई बता सकता है कि पूर्व जन्म में इन्होने कहां कितना धर्म और दान पुण्य किया था और क्या उस का कोई सबूत ये पेश कर सकते हैं. अगर नहीं तो कोरी सनातनी गपें और लफ्फाजी क्यों, कुछ पैसों के लिए ये भी समाज को गुमराह करने वालों के गिरोह में उस टैक्नोलौजी के जरिए क्यों शामिल हो रहे हैं जिसे बेच कर रिलायंस नाम का एम्पायर धीरूभाई अंबानी ने खड़ा किया और मुकेश ने उसे आसमान तक पहुंचाया.
इन दोनों ने कोई गौ मूत्र या गोबर नहीं बेचा और न ही मंदिरों का धंधा किया हां इन्हें प्रोत्साहन देने का गुनहगार जरुर इन्हें कहा जा सकता है. धीरू भाई ने अपने दौर में पेट्रोकैमिकल, संचार और बिजली के साथसाथ बेहतरीन क्वालिटी के पोलिएस्टर कपड़ों का व्यापार किया जो साइंस और टैक्नोलौजी के देन हैं. इन की खोज या अविष्कार धर्म स्थलों में नहीं हुआ था बल्कि प्रयोगशालाओं में हुआ था जहां वैज्ञानिक दिन रात मेहनत कर दुनिया को कुछ नया देते हैं और एवज में दक्षिणा नहीं बल्कि जीवन यापन के लिए मेहनताना लेते हैं जिसे सैलरी कहा जाता है.

इन की खोजों से जिंदगी आसान होती है उलट इस के धर्मस्थलों में विराजे धर्म गुरु सिर्फ सड़े गले उपदेश देते रहते हैं जिन से समाज का कोई भला नहीं होता लेकिन नुकसान इतने होते हैं कि आदमी की जिंदगी जटिल और जी का जंजाल बन कर रह जाती है. वह इन की लच्छेदार बातों में फंस कर द्वंद का शिकार हो जाता है और फिर चाह कर भी इन के बिछाए मकड़ी जैसे जाले से आजाद नहीं हो पाता. तरस तो इस बात पर भी आता है कि हर कोई दिन रात टैक्नोलाजी का इस्तेमाल करता है लेकिन श्रेय धर्म को देता है. इस के बाद भी जो चमकदमक दिख रही है वह संविधान और लोकतंत्र की वजह से है जो टैक्नोलौजी को प्रोत्साहित करते रहे हैं.

मुकेश अंबानी ने अनंत की शादी में पैसों की नुमाइश कर कोई बहुत बड़ी गलती नहीं की बल्कि उन की बड़ी गलती इस नुमाइश की आलोचना से बचने के लिए उस पर सनातन का मुल्लमा चढ़ाने की जरुर कर दी है.
उन्होंने कोई आदर्श या मिसाल स्थापित नहीं किए हैं. हां अगर चाहते तो बेटे की शादी सादगी से कर जरुर कर सकते थे. इस बाबत जरुर हर कोई उन की तारीफ कर रहा होता कि देखो देश के सब से बड़े रईस ने कितनी किफायत और सादगी से बेटे की शादी की तो क्यों न हम भी प्रेरणा ले कर ऐसा ही करें. लेकिन वे भी उस कुंठा और भ्रम के शिकार हैं सब कुछ ऊपर कहीं बैठा भगवान और नीचे बैठे उस के एजेंट करते हैं जो धर्म ग्रंथों के जरिए या साबित करते रहते हैं कि तुम्हारे पास जो कुछ भी है वह ईश्वर की कृपा है और अगर कुछ नहीं है तो वह ऊपर वाले की नाराजी है जिसे दूर करने हमे पैसे देते रहो.
अगर पूर्वजों के पुण्यों से पैसा मिलता है तो अनिल अंबानी, मुकेश अंबानी के मुकाबले कम पैसे वाले क्यों हैं. यह ठीक है कि धीरुभाई ने जीतेजी अपनी दौलत की वसीयत न करने की चूक की थी जिस के चलते दोनों भाइयों में विवाद और मतभेद हुए थे. लेकिन क्या धीरुभाई अपने पुण्यों की वसीयत कर गए थे और उस में भी ज्यादा हिस्सा मुकेश के नाम कर गए थे.
देश में करोड़ों लोग गरीब हैं. 80 करोड़ तो घोषित तौर पर वे हैं जो हर महीने मुफ्त का सरकारी अनाज लेते हैं और लगभग 40 करोड़ वे हैं जो गरीबी रेखा से थोड़े ही ऊपर हैं. तो क्या इन सौ करोड़ लोगों के पूर्वज पापी थे. आप यकीन माने धर्म के इन शातिर दुकानदारों और कारोबारियों से जबाब यही मिलेगा कि हां जो गरीब हैं, शूद्र हैं, दलित हैं ओबीसी वाले हैं, आदिवासी हैं वे हिंदू शास्त्रों और उन में भी मनु स्मृति के मुताबिक पूर्व जन्म के पापी ही हैं जो इस जन्म में उन की सजा भुगत रहे हैं. मुसलमान तो घोषित तौर पर विधर्मी हैं ही. इस से बचने के लिए उपाय वही हैं जो कुलदीप के सामने बैठा धूर्त बाबा बता रहा है और तमाम बाबा भी यही भाषा बोलते लोगों को डराते और बरगलाते रहते हैं.
धर्म का यह धंधा सभी कर रहे हैं मस्जिदों से निकलती पांचों वक्त की अजान और नमाज, मंदिरों में घंटों बजते घंटे घड़ियाल, चर्चों में भी पसरा नरक स्वर्ग का कारोबार और वहां भी रखी दान पेटियां, बौद्धों का मूर्ति पूजन और पाखंडों में डूबना, सिखों का धर्म के नाम पर अलग होने का उन्माद, जैन मंदिरों का लगातार देश भर में भव्य निर्माण और दान दक्षिणा की प्रवृति इस के कुछ बेहतर उदाहरण हैं.
रह गए दलित पिछड़े और आदिवासी तो उन के लिए भी मोक्ष और मुक्ति का इंतजाम करने का दावा करने बाले सूरज पाल उर्फ़ भोले बाबा जैसे सैकड़ों हजारों छोटे बड़े बाबा गलीगली में अपनी चमत्कारों की दुकान खोले बैठे हैं और मुफ्त का माल उड़ा रहे हैं.
हालिया लोकसभा चुनाव में मूल मुद्दा संविधान बनाम मनु स्मृति ही था इस के नतीजे कैसे और क्यों निकले यह आप सरिता के पिछले 10 अंकों में पढ़ चुके हैं और न पढ़े हों तो अब पढ़िए. बाजार में प्रिंट कापी न मिले तो इसी डिजिटल पर पढ़िए, जिस से आप को यह समझ आए कि बिकाऊ मीडिया का यह दौर कैसे कैसे आप का नुकसान कर रहा है और कोढ़ में खाज ये पंडे, पुजारी, पेशवा और नए दौर के मौडर्न ड्रैस वाले कुलदीप सरीखे नौजवान कैसे पैदा कर रहे हैं. सियासी तौर पर अफसोस तो तब होता है जब विपक्ष भी इस षड्यंत्रकारी मुहिम का हिस्सा जानेअनजाने में कभीकभी बन जाता है. लोकतंत्र और संविधान राजनेताओं से कम इन धर्म गुरुओं से ज्यादा खतरे में है जो आप से आप की आजादी सहजता और आनंद छीन रहा है.
इस के बाद भी सुख शांति बांटने वाले खुद इन धर्म गुरुओं के दिलोदिमाग में सुकून नहीं है. अनंत अंबानी की शादी के बहाने एक बार फिर शैवो और वैष्णवों का अहम और बैर उजागर हुआ. सोशल मीडिया पर वैष्णवों ने दोनों शंकराचार्यों को जम कर कोसा. एक वायरल हुई पोस्ट में कहा गया कि धन्यवाद अम्बानी जी जो आपने दोहरे चरित्र वाले बहुरूपियों को पूरे देश के सामने नंगा कर दिया.
इस में फिल्मी गानों पर कूल्हे और नितंब मटकाती कामुक अंदाज में नाचती प्रियंका चोपड़ा भी थी और इस अत्यंत पवित्र वातावरण में शादी की शोभा बढ़ाने के लिए द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती और ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद भी पहुंच गए थे. इन शंकराचार्यों ने 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में भगवान राम के मंदिर में प्रभु राम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम का सार्वजनिक बहिष्कार तिरस्कार बाकायदा मीडिया में बारबार यह बयान दे कर किया था कि यह आयोजन धर्म विरुद्ध तरीके से विधि विधान के अनुसार नहीं किया गया है.
इस लम्बीचौड़ी पोस्ट के आखिर में एक बार फिर अंबानी को धन्यवाद दिया गया है कि उन्होंने शैवों का दोहरा चरित्र बेटे की शादी में कर दिया. इस लड़ाई से अम्बानी का कोई लेनादेना नहीं है जिन्होंने पैसा फेंक कर तमाशा देखा और दुनिया को भी दिखाया. दरअसल में यह लड़ाई ग्राहकी और दानदक्षिणा की छीनाछपटी के साथसाथ धर्म गुरुओं के अहंकार और ठसक की है जिस का कोई आदि है न अंत होगा. क्योंकि धर्म के धंधे में मुफ्त के पैसे की लूट पर शैव और वैष्णव और बाकी संप्रदाय भी अपना हक जताते कब्जा जमाना चाहते हैं.
सरिता इन का यह चाल चरित्र और ठगी को 70 सालों से उजागर कर रही है और आगे भी करती रहेगी क्योंकि देश की एकता अखंडता और तरक्की की राह में रोड़े यही अटकाते हैं. नेताओं और पार्टियों के पर तो जनता वोट के जरिए जब चाहे कुतर सकती है लेकिन इन भस्मासुरों से छुटकारा मुश्किल है लेकिन इस का यह मतलब नहीं कि इन के सामने घुटने टेक दिए जाएं. हकीकत समझते सभी लोग सामूहिक प्रयास करें तो जरुर देश विश्व गुरु बन सकता है क्योंकि तब टैक्नोलौजी में हम सब से आगे होंगे और हम इंडियंस की मेहनत सही दिशा में लगेगी.

 

सीक्रेट शेयर करें, लेकिन दूसरों के सीक्रेट को संभालना भी सीखें

होंठों में ऐसे बात मैं दबा के चली आई, खुल जाए वही बात तो दुहाई है दुहाई. जी हां, यहां एक्ट्रैस रीना रौय एक मशहूर गीत में यही बात कहती नजर आ रही हैं कि दिल है तो राज़ भी है, राज़ है तो उसे सीक्रेट रखना भी जरुरी है. राज़ कह दो तो दिल हल्का होता है पर राज़ को फैलते भी देर नहीं लगती. राज़ को दिल में ही रखो तो दिल पर बोझ हो जाता है. यानी कि ये कैसे मुश्किल हाय, कोई तो बता दे इस का हल हो मेरे भाई. मतलब कश्मकश ये है की दिल का राज़ दिल में ही रखा जाए या फिर उसे किसी के साथ शेयर कर देना चाहिए.

वैसे इस बारे में आशा का कहना है कि मेरा अपनी ही क्लास के एक लड़के से अफेयर चल रहा था यह बात मैं ने सब से छिपाई लेकिन एक दिन अपनी एक फ्रैंड से इस का जिक्र कर गई. मैं ने यह बात उस से शेयर तो कर दी पर फिर मेरी रातों की नींद उड़ गई कि कहीं वह यह बात किसी को बता न दें. मतलब मैं उसे यह बात बता के पछता रही थी.

लेकिन फिर एक दिन उस ने मुझे बताया कि वह लड़का तो कई लड़कियों के साथ फ़्लर्ट कर चुका है तब लगा की बता के सही ही किया. आज वह मेरी सब से अच्छी दोस्त है. वो और मैं अपने हर सीक्रेट एकदूसरे के साथ शेयर करते हैं. यह जरुरी भी है ताकि कोई तो हो जो आप को सलाह दे सके. जिस से आप आपने सीक्रेट के बारे में बात कर के उस का अच्छा बुरा डिस्कस कर सकें. इसलिए जरुरी है कि अपने सीक्रेट शेयर करें लेकिन सहेली के राज़ को भी राज़ रहने दें.

बातें जो अकसर शेयर की जाती हैं

अकसर अपने एक्स की अगर याद भी आ जाए, तो वे अपने तक ही रखते हैं या किसी खास फ्रैंड को बता देते हैं. एक लड़की ने बताया कि वे अकसर अपने बौयफ्रैंड से इस बात को छिपाना चाहती हैं कि उन की किस मेल फ्रैंड से बात होती है. अधिकतर लड़कियां रिलेशन में इस बात को छिपा कर रखना ही पसंद करती हैं कि उन्हें किस पर क्रश है. लड़कियां कभी भी अपनी गर्ल गैंग के साथ हुई बातों को शेयर नहीं करेंगी.

लड़कियां सैक्स लाइफ के बारे में अपने पार्टनर से खुल कर बात नहीं करतीं. वे अपने प्लेजर, सैक्स की इच्छा, पोजिशन आदि के बारे में कभी भी पार्टनर को नहीं बताती लेकिन अपनी फीलिंग्स अपनी खास सहेली के साथ शेयर कर लेती है.

अपनी किसी कमी को कई बार लड़का और लड़की दोनों ही एकदूसरे से छिपा जाते हैं.

अपने फैमिली से जुड़ी बातें

अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में वह कई बार रिलेटिव को शो औफ कर जाते हैं कि हम तो वेल सैटेल्ड हैं लेकिन सचाई कुछ और ही होती है.
– लोगों को अपनी इनकम भी बताने से बचते हैं लोग.

क्यों जरूरी है सीक्रेट को शेयर करना

एक ही बात के दो नजरिए जानने को मिलते हैं. हो सकता है सहेली का पौइंट औफ व्यू आप से ज्यादा बेहतर हो. अगर किसी गलत चीज में फंस रहे हो तब कोई तो हो जो आप की मदद कर सके. मन को हल्का करना भी तो जरूरी है. दोस्त से बौन्डिंग अच्छी बन जाती है.

दूसरे के सीक्रेट को संभालना भी सीखें

परफैक्ट दोस्ती का सब से पहला फंडा यही है कि एकदूसरे के प्रति ईमानदार बने रहें. किसी ने खूब कहा है कि अगर गम को बांट लो तो वह आधा रह जाता है, लेकिन अगर खुशी को बांट लो तो वह दोगुना हो जाती है. यह सहेली ही होती है, जिस से गम हो या खुशी हम सब कुछ बांट सकते हैं लेकिन एकदूसरे के सीक्रेट का सम्मान करना भी सींखें.

ये तो भरोसे की बात है साहब

रिश्ता चाहे कोई भी हो, लेकिन उस में सब से जरूरी चीज है, विश्वास. विश्वास के भरोसे ही आप अपनों या दोस्तों को अपने राज़ या दिल की कोई बात बताते हैं. दोस्त होना भी जरूरी है और ऐसा भी नहीं है कि आप अपने दिल की बात किसी को न बताएं. लेकिन अपने राज़ या कोई बात किसी दूसरे व्यक्ति को तब ही बताएं, जब आप उस पर विश्वास करती हों. किसी को अपने राज़ या कुछ अहम बातें बताने के लिए विश्वास सब से अहम चीज है, जो धीरेधीरे विकसित होता है.

किसी का सीक्रेट मिर्च मसाला लगा कर न फैलाएं

सब से बड़ी बात ये है की लड़कियों को बोलने की आदत होती है. वो किसी की सुनना नहीं चाहती. वो जब बोलती हैं तो एक्सप्रेस ट्रेन की तरह बोलती ही जाती हैं. वो नौन स्टौप बोलती हैं और सामने वाले को मिर्च मसाला मार कर सुनाती हैं. ये बात गलत है.

उपहास के पात्र न बनाएं

यदि आप को किसी की कोई पर्सनल बात पता चल गई है जैसे कि किसी की कोई बुरी आदत है और आप को उस के बारे में पता चल गया है तो भरी महफिल में दूसरे को हंसी का पात्र न बनाएं. लोगों को ऐसा करने से बचना चाहिए.

किसी की कमजोरी का गलत फायदा न उठाएं

अगर किसी ने आप को अपनी कमजोरी के बारे में बताया है तो आप उस का गलत इस्तेमाल न करें. अगर कोई आप की कमजोरी जान गया और कल को आप के उस से अच्छे संबंध नहीं रहे तो भी आप उस की कमजोरी का गलत इस्तेमाल न करें.

प्लान शेयर करने पर मदद मिलती है

अगर आपने अपने मन की बात शेयर की है जैसे आप किसी बिज़नेस प्लान पर काम करना चाहते हैं तो फिर आप को इस का फायदा ही होगा. हो सकता है सामने वाले को इस बारे में कुछ ऐसी जानकारी हो जिस का फायदा आप उठा सकते हो.

शेयर करें मन की बात

आप की सहेली कोई जादूगर नहीं है, जो बिना बताए आप के मन की बातों को समझ ले. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि कोई भी आप के मन की बात तब तक नहीं समझ सकता, जब तक कि आप उसे शेयर नहीं करेंगी. इसलिए संकट के समय या जरूरत पड़ने पर अपनी सहेली से निसंकोच हो कर अपनी परेशानी बताएं.

फिटनेस फ्रीक युवाओं और बुजुर्गों की पहली पसंद बन रहे हैं “Open Air Gym”

उस दिन पायल अपनी मम्मी को ले कर पार्क में आई थी. पायल उस पार्क में काफी समय से आ रही थी. उस की वहां कई सहेलियां बन गई थीं. सब साथ मिल कर वहां जौगिंग और एक्सरसाइज करती थीं. उस दिन पायल जिद कर के मम्मी को भी पार्क में ले आयी, जो कई दिन से घुटनों में दर्द की शिकायत कर रही थीं. इस पार्क के एक हिस्से में ओपन एयर जिम बनाया हुआ है, जहां एक्सरसाइज के लिए कई उपकरण और झूले लगे हैं. इन्हें कोई भी फ्री में इस्तेमाल कर सकता है.

पायल की मम्मी कुछ समय तक पार्क की हरी घास पर टहलती रहीं. सांसों में सुबह की साफ ठंडी हवा और तलुओं के नीचे नरमनरम घास ने उन को बड़ा सुकून दिया. थोड़ी देर बाद वे एक कसरती झूले पर बैठ गईं. यह पैरों की एक्सरसाइज वाला झूला था. इस झूले पर उन्होंने थोड़ी देर घुटनों की एक्सरसाइज की तो लगा जैसे पैरों की जकड़न खत्म हो गई. दो तीन अन्य झूलों पर भी उन्होंने हाथ आजमाए. दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवे दिन तक तो उन के घुटने पूरी तरह दर्दमुक्त हो गए. इस काम में एक अन्य महिला ने उन की काफी मदद की.

पायल की कालोनी के काफी लोग इस पार्क में आते हैं और कइयों ने अपनेअपने ग्रुप बना लिए हैं. वे साथ मिल कर जौगिंग और एक्सरसाइज वगैरह करते हैं. कुछ लोग पार्क की हरी घास पर बैठ कर गप्पे मारते हैं. पायल की मम्मी भी एक ग्रुप में शामिल हो गई हैं. इस ग्रुप में कालोनी के चार मेल सदस्य और छह फीमेल हैं. सब की उम्र साठ-सत्तर साल के बीच है. ये सभी ओपन एयर जिम में ज्यादा समय बिताते हैं. पार्क में इतने अच्छे कसरत के झूले उन के क्षेत्र के विधायक ने लगवाए हैं. इस का भरपूर फायदा पूरी कालोनी के युवा और बुजुर्ग एक साथ उठा रहे हैं.

29 वर्षीय पायल अपनी फिजिकल फिटनेस को लेकर काफी कान्शियस रहती थी. पहले वह एक प्राइवेट जिम में जाती थी. वह जिम 3 महीने की फीस एक साथ लेता था. 3 महीने की फीस थी 10 हजार रुपये. मगर वहां का ट्रेनर ठीक नहीं था. वह सुंदर और कम उम्र की लड़कियों को ही गाइड करने में लगा रहता था. पायल ने काफी पैसा वहां बरबाद किया. जब कालोनी के पार्क में ओपन एयर जिम बना तो पायल और उस की कई सहेलियों ने यहां आना शुरू कर दिया. एयर कंडीशनर बंद जिम की जगह यहां खुली हवा में कसरत करना कहीं ज्यादा अच्छा है.

अब तो काफी लड़कियां अपने साथ अपने मातापिता को भी लाने लगीं हैं. यहां कई ग्रुप बन गए हैं. पहले पायल की मां अनिच्छा होने पर भी सुबह का समय घर में मंदिर के सामने बैठ कर व्यतीत करती थीं, अनमने मन से पूजा करती थीं, रामायण के पन्ने पलटती रहती थी या पूजा की घंटी बजाती रहती थी. क्योंकि बहू के आने के बाद किचन के काम से उन को फुरसत मिल गई थी. बहू ने घर के सारे काम संभाल लिए थे. कोई काम न होने की वजह से पायल की मां के भीतर एक चिड़चिड़ाहट सी भर गई थी. शरीर भी अकड़ाअकड़ा रहने लगा था.

मोटापा बढ़ने से घुटनों में दर्द पैदा हो गया था. पायल ने उन को अपने साथ पार्क में चलने को कहा. थोड़ी नानुकुर के बाद वो तैयार हो गईं. वहां जब उन्होंने अपनी उम्र के लोगों को झूलों पर कसरत करते देखा तो उन का भी मन खुला. पहले वे झिझक रही थीं कि कोई देखेगा तो क्या कहेगा मगर पायल की एक सहेली की मां ने उन का उत्साहवर्धन किया और अब तो वे लगभग सभी झूलों पर एक्सरसाइज कर लेती हैं.

कोरोना महामारी के बाद से शारीरिक और मानसिक फिटनेस अब लोगों की सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई है और लोग खुद को फिट और स्वस्थ रखने के तरीके खोज रहे हैं. ओपन एयर जिम कान्सेप्ट स्वस्थ जीवन की दिशा में सरकार की एक नई पहल है और यह भारत के साथसाथ दुनिया भर में व्यापक रूप से लोकप्रिय हो गई है. अधिकांश पार्कों और खेल के मैदानों में अब ओपन जिम उपकरण लगाए जा रहे हैं. इन ओपन-एयर जिम के बारे में सब से अच्छी बात यह है कि इन में युवाओं, वयस्कों और बच्चों सब के लिए उपकरण उपलब्ध हैं. लेकिन इतना ही नहीं, ऐसे कई अन्य कारण भी हैं जिन की वजह से इनडोर जिम की तुलना में ओपन-एयर जिम को ज्यादा पसंद किया जा रहा है.

उपकरणों की विविधता – इनडोर जिम की तुलना में ओपन-एयर जिम में विभिन्न प्रकार के फिटनेस उपकरण लगाए गए हैं. इस में आप को अपने शरीर के हर अंग पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उपकरण मिलेंगे, जिस में आप के पैर, बाइसेप्स, एब्स और समग्र फिटनेस भी शामिल है. इन फिटनेस उपकरणों को चलाना आसान है. ये उपकरण मजबूत होने के साथ अत्यधिक टिकाऊ हैं, इसलिए इन का उपयोग करते समय किसी को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. अगर इन में कुछ टूटफूट हुई भी तो आप को यह सोच कर परेशान होने की जरूरत नहीं कि आप को हर्जाना भुगतना होगा.

ताजी हवा में व्यायाम – हम ने कई बार सुना है कि खुली हवा में व्यायाम या योग करना हमारे फेफड़ों के लिए बहुत फायदेमंद होता है. इस से हमें सूरज की रोशनी भी मिलती है जिस से हमें विटामिन डी मिलता है. सुबह की ठंडी और साफ हवा, हरियाली के साथ खुली जगह में व्यायाम करने से हमारा मूड भी अच्छा होता है और हम ज्यादा ऊर्जावान महसूस करते हैं. इतने सारे फायदों के साथ, कोई भी ओपन एयर जिम को भला क्यों नकारेगा ?

ओपन-एयर जिम निःशुल्क हैं – जी हां, ओपन एयर जिम निःशुल्क हैं, जब तक कि वे किसी होटल या रिसौर्ट प्रौपर्टी के अंदर न हों. जब बिना किसी भुगतान के व्यायाम करने के लिए सभी फिटनेस उपकरण उपलब्ध हों, तो फिर महंगी जिम की सदस्यता लेने की क्या जरूरत है?

इको-फ्रेंडली जिम – इनडोर जिम के विपरीत, ओपन एयर जिम उपकरण बिजली से नहीं चलते हैं. वे अत्यधिक टिकाऊ, बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले और कम रखरखाव वाले फिटनेस उपकरण हैं. इन उपकरणों में प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं होता है क्योंकि इन्हें लकड़ी, स्टील और एल्युमीनियम का उपयोग कर के बनाया जाता है. यह ओपन जिम को इको-फ्रैंडली जिम बनाता है. ओपन जिम उपकरणों में एयर वाकर, आर्म रिलैक्सर, आर्म व्हील, स्टेशनरी बाइक, बैक शेपर, कमर रिलैक्सर, क्रौस ट्रेनर, चेस्ट शेपर, लेग शेपर, हौर्स राइडर, मंकी बार और बहुत कुछ शामिल हैं.

ओपन एयर जिम में अब घरेलू महिलाओं की बड़ी संख्या देखी जा रही है. 50 की उम्र के बाद अधिकांश औरतें मेनोपौज की अवस्था से गुजरने के बाद हार्मोन्स में बदलाव आने से अवसादग्रस्त और चिड़चिड़ी हो जाती हैं. इस के अलावा एक और भावना उन में बलवती होने लगती है कि अब वे जवान नहीं रहीं. इसी उम्र में उन के घर में बहुएं भी आ जाती हैं जो उन से रसोई का काम भी ले लेती हैं. अब खाली बैठे बैठे दिमाग में नकारात्मक बातें ही ज्यादा घर करने लगती हैं और इसी के साथ औरतें अनेक बीमारियों जैसे – शुगर, ब्लड प्रेशर, अवसाद, थायराइड, अर्थराइटिस आदि का शिकार हो जाती हैं.

कुछ काम न होने से शरीर में आलस्य भर जाता है. बैठेबैठे खाते रहने से मोटापा चढ़ जाता है. इन कठिनाइयों से औरतों और मर्दों को भी बाहर निकालने का काम ये ओपन एयर जिम कर रहे हैं. शरीर की फिटनेस मन को भी फिट रखती है.

Holiday Homework: सिर्फ बच्चों का या पैरेंट्स का भी?

पिछले दिनों अपने बच्चे के छुट्टियों के होमवर्क और असाइनमैंट के बारे में शिकायत करने वाली एक महिला का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ जिस में महिला स्कूल से नाराज थी कि वे ऐसा होमवर्क क्यों देते हैं जिसे बच्चे खुद क्यों नहीं कर सकते?

पेरैंट्स के लिए सजा

याद कीजिए एक समय वह भी था जब स्‍कूल में पढ़ने वाले बच्‍चों को मईजून की गर्मी की छुट्टियों का बेसब्री से इंतजार रहता था क्योंकि वे उन छुट्टियों में अपने दादादादी, नानानानी के घर या किसी पर्यटन स्थल पर जा कर मस्ती करते थे और दो महीने गर्मी की छुट्टियों का पूरा मजा लेते थे. लेकिन अब गर्मी की छुट्टियां बच्चों के साथसाथ पेरैंट्स के लिए मजे की जगह सजा बन गई हैं.

क्योंकि अब गर्मी की छुट्टियों में बच्‍चों को करने के लिए इतना भारी भरकम होमवर्क दे दिया जाता है कि बच्‍चा और पेरैंट्स पूरी छुट्टियां उस होमवर्क को ही करने में लगा देता है.

किस के लिए होमवर्क

हाल ही में हरियाणा के कई स्‍कूलों में छोटेछोटे बच्‍चों को स्‍कूल की ओर से जो हौलिडे होमवर्क दिया गया उस को देख कर पेरैंट्स के तो दिमाग की बत्ती ही हिल गई . दरअसल, स्कूल की ओर से नर्सरी, एलकेजी, यूकेजी और प्राइमरी क्लासेस के बच्‍चों को जो होमवर्क दिया कि उसे देख कर पेरैंट्स एकदूसरे से पूछने लगे कि ये स्‍कूल का होमवर्क है या नासा का प्रोजेक्‍ट? कहीं स्‍कूल वाले नर्सरी के बच्‍चों को वैज्ञानिक तो नहीं बनाने जा रहे हैं?

हरियाणा अभिभावक एकता मंच ने हौलिडे होमवर्क को ले कर सीबीएसई के अलावा मुख्‍यमंत्री, शिक्षा मंत्री और बाल अधिकार एवं संरक्षण आयोग में शिकायत भी की. पेरैंट्स ने प्राइवेट स्कूल मैनेजमैंट पर आरोप लगाते हुए बताया कि कई सारे स्‍कूलों में गर्मी की छुट्टियों में नर्सरी, एलकेजी यूकेजी से ले कर प्राथमिक क्लास के बच्चों को भारीभरकम होमवर्क के रूप में इलैक्ट्रिक ‌सर्किट, एम्यूजमैंट पार्क का थ्रीडी मौडल, दिल्ली मैट्रो और फ्लाईओवर का प्रोजेक्ट बनाने, थर्माकोल का आइफिल टावर बनाने, कंप्यूटर का वर्किंग मौडल, संस्कृति से गणित के फार्मूलों की डिक्शनरी बनाने का प्रोजेक्‍ट दिया गया है.

मां-बाप की मुसीबत और जेब कटाई

पेरैंट्स ने सीबीएसई से शिकायत करते हुए कहा कि इतने छोटे बच्‍चों को ऐसे प्रोफैशनल प्रोजेक्‍ट बनाने के लिए दिए गए हैं जिन की कोई भी जानकारी छात्रों को नहीं है. वे प्रोजेक्ट पेरैंट्स को करने पड़ रहे हैं लेकिन जो पेरैंट्स वर्किंग हैं या जो पेरैंट्स ज्यादा एजुकेटेड नहीं हैं उन्‍हें पैसा दे कर मजबूरी में मार्केट से प्रोफैशनल व्यक्तियों से होमवर्क पूरा कराना पड़ता है. इस से न केवल पेरैंट्स की जेब खाली हो रही है बल्कि प्रोफैशनल लोगों व दुकानदारों की कमाई हो रही है. स्कूल मैनजमैंट और प्रोफैशनल लोगों व दुकानदारों की मिलीभगत से जहां उन का धंधा फलफूल रहा है वहीं पेरैंट्स की जेबें कट रही हैं.

सब से बड़ी बात पैसे दे कर बनवाए गए इन प्रोजेक्ट्स और हौलिडे होमवर्क से तो बच्चों को तो कुछ सीखने को मिलता ही नहीं और पेरैंट्स की जेबें काट कर बनवाए गए ये प्रोजेक्ट्स बाद में स्टोर रूम में फेंक दिए जाते हैं या कबाड़ी को बेच दिए जाते हैं.

सिस्टम में बदलाव की जरूरत

हौलिडे होमवर्क के इस खेल में शामिल दोषी स्कूलों के खिलाफ उचित कार्यवाही की जानी चाहिए और ऐसे एजुकेशन सिस्टम में बदलाव किया जाना चाहिए जिस में पेरैंट्स और बच्चों दोनों को भुगतान करना पड़ रहा है.

फिनलैंड का एजुकेशन सिस्टम

बच्चों को जो हौलिडे होमवर्क दिया जाता है उस में कहीं न कहीं स्कूल अगर दुनिया के बेहतरीन स्कूलों के बारे में गूगल पर सर्च किया जाए तो फिनलैंड सब से ऊपर होगा. यहां का एजुकेशन सिस्टम अमेरिका, ब्रिटेन या अन्य देशों से एकदम अलग है. फिनलैंड का एजुकेशन सिस्टम स्टूडैंट्स को एक अलग तरह की स्वतंत्रता देने के साथ-साथ उन की क्रिएटिविटी को भी निखारने की दिशा में काम करता है. फिनलैंड की पढ़ाई का पूरा पैटर्न स्टूडैंट्स फ्रैंडली है. वहां न तो बच्चों को होमवर्क मिलता है और न ही कौपियां चेक कर के उन्हें नंबर दिए जाते हैं.

सासूजी का परहेज

धर्मपत्नी का खुश होना जायज था. कहावत भी है- ‘मायके से कुत्ता भी अगर आता है तो प्रिय लगता है.’ लेकिन यहां तो हमारी सासूजी आ रही  कभी-कभी सोचता हूं राजधानी में रहना भी सिरदर्द से कम नहीं होता है. अधिकतर रिश्तेदार नेताओं से काम निकलवाने यहां आते रहते हैं. अब सब से रिश्तेदारी या दोस्ती तो है नहीं, लेकिन मना कर के संबंध थोड़े ही खराब करेंगे. मेहमान आए तो उन की देखरेख, नाश्ता, भोजन का इंतजाम करने में हालत पतली हो जाती है. पत्नी मेरे मायके से आए मेहमानों पर मुंह फुला लेती हैं.

उन के मायके वालों पर मेरा बजट बैठ जाता है. किंतु किस से शिकायत करें? और कब तक रोना रोएं? मेरी बहुत ही मोटी सासूजी के आने की खुशी पत्नी के चेहरे पर ऐसी खिल रही थी मानो बरसात के बाद इंद्रधनुष खिला हो. मुसीबत कभी कह कर तो आती नहीं है और हुआ भी ऐसा ही. हमारी सासूजी गांवकसबे की हैं. सो, बाथरूम में जो पांव फिसला तो स्वयं को संभालने के लिए नल को पकड़ा. नल पाइप सहित हाथों में आ गया. कमरे में मेरा मतलब कमर में हलकी सी मोच आ गई. एकदो प्लास्टिक की बाल्टियां उलट गईं. पत्नीजी ने घबरा कर पूछा, ‘‘अम्मा, क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं बिटिया, बाल्टी गिर गई थी.’’

‘‘इतनी जोर से आवाज आई थी?’’

‘‘बाल्टी के साथसाथ मैं भी थी,’’ दर्दभरी आवाज सासूजी की थी.

‘‘दरवाजा तोड़ते तो 5-7 हजार का नकद नुकसान होता, इसलिए पत्नीजी ने निवेदन किया तो सासूजी कराहते हुए बाहर आईं.

हमें भी धर्मपत्नी ने चीख कर बुला लिया था. हमारी सासूजी लंगड़ाती हुई बाहर आईं. वे परेशान कम, पत्नी अधिक परेशान ?थीं. सासूजी पलंग पर लेट गईं. पत्नी ने हम से कहा, ‘‘डाक्टर को यहीं बुला लें या अस्पताल ले चलें?’’

‘‘अस्पताल ले चलते हैं,’’ हम ने सरल विकल्प चुना. डाक्टर घर आ कर 500-1000 रुपए पीट लेता. हमारी राय से सासूजी सहमत नहीं थीं, फिर भी दिल रखने को तैयार हो गईं. हमारी धर्मपत्नी ने मेकअप किया और नई डिजाइन की साड़ी पहन कर आटो-रिक्शे में अपनी अम्मा को ले कर चढ़ गईं. पहला अस्पताल सरकारी था. हम आगे बढ़ने लगे तो सासूजी ने कराहते हुए कहा, ‘‘यहीं ले चलो, दर्द बहुत है.’’ हम वहीं उतर गए. अस्पताल बड़ा था. थोड़ी देर म ही काफी मरीज भी आने शुरू हो गए थे. केवल डाक्टर नहीं आए थे. सासूजी लोटपोट हो रही थीं. तब ही एक कमसिन सी लड़की गले में आला लटकाए अपने चैंबर में गई. हमारा क्रमांक 1 पर ही था. सो, हम सासूजी को ले कर अंदर गए. सासूजी को उस ने देखा और बीपी देख कर नाम पूछा.

‘‘सविता.’’

‘‘गुड,’’ डाक्टरनी ने कहा, ‘‘क्या तकलीफ है?’’

‘‘कमर में चोट लगी है और चक्कर आ रहे हैं.’’

‘‘ओह,’’ कह कर उस ने उन की कमर पर हाथ से टटोला फिर गंभीर स्वर में उन की बेटी से कहा, ‘‘देखिए, दुर्घटना से सुरक्षा बड़ी चीज है.’’

‘‘मतलब?’’ पत्नी ने प्रश्न किया.

‘‘मुझे शक है सिर में चोट है, कहीं कोई हैमरेज न हो, इसलिए सीटी स्कैन करवा लें तथा सोनोग्राफी व एक्सरे भी करवा लें. ब्लड, यूरिन स्टूल टैस्ट भी लिख रही हूं. सब फ्री में हो जाएगा. रिपोर्ट ले आएं फिर दवा देंगे.’’

‘‘थैंक्यू डाक्टर,’’ पत्नी ने कहा.

‘‘अरे, जैसी आप की मां वैसी हमारी मम्मी,’’ उस डाक्टरनी ने हंस कर कहा. हमारे दिल में एक मीठा व शरारती सा खयाल आया कि काश, हम बीमार होते तो वह पत्नी को क्या कहती? जैसे आप के पति वैसे हमारे पति. इस कल्पना से ही मन गदगद हो गया.

हम सासूजी को ढो कर इधर-उधर ले जाने के पहले एटीएम से रुपए निकलवा कर लाए. सीटी स्कैन, सोनोग्राफी और एक्सरे, खून सब की जांच करवाई. सीटी स्कैन, सोनोग्राफी, एक्सरे, खून की जांच फ्री थी. सब होते-होते दोपहर हो गई थी. सासूजी को भूख लग आई थी. खानेपीने में कभी कोई समझौता नहीं करने के परिणामस्वरूप ही वे थोड़ी ओवरवेट भी थीं.

उन्होंने नीबू, मसालेदार भेलपूरी, खाने की इच्छा जाहिर की और यदि नहीं मिले तो गरम पकौड़े, टमाटर की चटनी के साथ खाने की फरमाइश की. हम नौकरों की तरह बाजार में मारे-मारे घूमते हुए उन के लिए गोभी और आलू के गरमागरम पकौड़े ले आए जो वे हरीमिर्च और टमाटर की चटनी के साथ चटकारे लेले कर खाने लगीं. दर्द कहीं भी चेहरे पर प्रकट नहीं हो रहा था. खाखा कर उन्होंने एक जोरदार डकार ली और हमें आदेश दे कर कहा, ‘‘जाओ, हमारी रिपोर्ट ले आओ.’’

हम जा कर भीड़ में सासूजी की रिपोर्ट ले आए. तब तक वह कमसिन डाक्टर भी आ गई थी. उस ने रिपोर्ट देखी, फिर सासूजी को देखा और कहा, ‘‘सब ठीक है, थोड़ा परहेज करना होगा.’’

‘‘आप को स्टोन की शिकायत है, हाई बीपी भी है, शुगर भी है.’’

‘‘तो क्या खाना है?’’

‘‘आप को पत्तागोभी, पालक, दूध की बनी कोई भी वस्तु, मीठा, मिठाई, नमकीन, भजिए, पकौड़े, तीखी मिर्च वाली वस्तुएं नहीं खानी हैं,’’ डाक्टर ने पूरी लिस्ट थमा दी.

‘‘अरे, फिर मैं खाऊंगी क्या?’’

‘‘देखिए अम्माजी, आप दूध, पालक, पत्तागोभी, टमाटर खाएंगी तो पथरी की तकलीफ होगी. अधिक चटपटे मसालेदार खाने पर हाई ब्लडप्रैशर हो कर ब्रेन हैमरेज का अधिक खतरा है. खट्टी वस्तुएं खाएंगी तो अल्सर की परेशानी होगी. आप को डायबिटीज निकली है, मिठाई और मीठी वस्तुएं खाएंगी तो  कभी भी कुछ भी हो सकता है,’’ डाक्टरनी ने कहा.

‘‘मेरी कमर का दर्द?’’

‘‘देखिए, दर्द तो सैकंडरी चीज है, अभी तो महत्त्वपूर्ण है कि आप का बीपी कंट्रोल हो, शुगर कंट्रोल हो, स्टोन की तकलीफ न हो वरना ब्रेन हैमरेज होने का खतरा है.’’

ब्रेन हैमरेज की बात सुनते ही हमारी पत्नी वहीं साड़ी का पल्लू मुंह में दे कर रोने लगी. मन में आया कि उन्हें क्या समझाऊं? अरी बेगम, अम्मा जिंदा हैं, परहेज करेंगी तो ठीक हो जाएंगी. अभी दुनिया से थोड़ी ही गई हैं. लेकिन कौन दीवार से सिर फोड़े. हम ने ऊपरी मन से पत्नी को सांत्वना दी और कहा, ‘‘दर्द के इलाज से पहले अम्मा से परहेज करवा लेते हैं फिर आ कर बताते हैं.’’

‘‘वैरी गुड, मैं भी यही चाहती हूं,’’ डाक्टरनी ने कहा, ‘‘सौ बीमारियों का एक इलाज परहेज है. आप इन का परहेज करवाएं और 5 दिनों बाद लाएं. फिर मैं दवाएं लिख दूंगी. अम्माजी, आप चिंता मत करें, जल्दी ठीक हो जाएंगी.’’

हम ने मन ही मन विचार किया, ‘जल्दी ठीक हो जाएंगी या इतना परहेज कर के जल्दी ही मरखप जाएंगी.’ सासूजी को बीमारी और चोट का दुख उतना नहीं था जितना परहेज का था. हम ने फाइल को वहीं जमा किया और लौट आए. धर्मपत्नी भारी दुखी थीं. फ्रिज में चीज, पनीर, चिकन, अंडे, मक्खन जो रखा था उस का क्या होगा? हम अपनी खुशी बिलकुल जाहिर नहीं कर पाए थे. सासूजी का परहेज रात से ही प्रारंभ हो गया था. सादा भोजन, सादा जीवन, उबली सब्जी, थोड़ा सा करेले का सूप, नीम के पत्तों का सलाद, थोड़ी सी छाछ. फ्रिज में रखा सामान खराब न हो जाए, इसलिए मजबूरी में पत्नीजी ने हमें खिलाया. हम मन ही मन बहुत खुश थे कि ‘हे सासूजी, आप की चोट लगने पर मुझे ये सब खाने को मिला. काश, आप हमेशा ही चोटिल होती रहें.’

एक रात लगा कि घर में चोर घुस आए. हम ने हिम्मत की और जैसे ही ड्राइंगरूम की बत्ती जलाई तो देखा सासूजी फकाफक खा रही थीं. हमें देख कर शरमा गईं. तभी पत्नी भी आ गईं. पूरा सामान फ्रिज में से निकाल कर बैडरूम में रख दिया और फ्रिज में ताला लगा दिया. सासूजी की सूरत देखने लायक थी. 8-10 दिनों में सासूजी के कमरे यानी कमर में भी आराम हो गया था. पहले से वे स्वस्थ भी दिखाई देने लगी थीं. हमारी पत्नी ने कहा, ‘‘परहेज करवाते हुए 15 दिन हो गए हैं, अब दवाएं लिखवा लाते हैं.’’ हम क्या विरोध करते? हम फिर उसी सरकारी अस्पताल में गए. अस्पताल के कर्मचारी ने सासूजी से नाम पूछा, उन्होंने बताया, सविता. अपनी फाइल ले कर हम डाक्टरनी के पास गए. वह बिलकुल खाली बैठी थी. हमें आया देख खुश हो कर कह उठी, ‘‘और अम्माजी कैसी हैं?’’

‘‘ठीक हूं.’’ कह कर उन्होंने फाइल उन की टेबल पर रखी. डाक्टरनी ने फाइल देखी, रिपोर्ट देखी, ब्लड रिपोर्ट देखी, फिर अम्माजी को ध्यान से देखा.

सासूजी ने कहा, ‘‘मैं पूरे परहेज से रह रही हूं. लेकिन ऐसी जिंदगी से तो मौत भली, जहां सब खानापीना बंद करना पड़े.’’ डाक्टरनी ने फिर उन के चेहरे को देखा और फाइल देख कर कहा, ‘‘मेरी पर्ची कहां है?’’ हम ने अपने पर्स में से निकाल कर दी. डाक्टरनी ने पर्ची देखी, फिर फाइल देखी और पूछा, ‘‘आप का नाम क्या है?’’

‘‘सविता.’’

‘‘अरे, यह क्या हो गया?’’

‘‘क्या हो गया?’’ मैं ने आश्चर्य से प्रश्न किया.

‘‘बाई मिस्टेक, आप की सास की फाइल की जगह पिछली बार आप किसी सुनीता की फाइल ले आए थे. उन की फाइल में जो रिपोर्ट देखी थी उसी का परहेज मैं ने बताया था. ओह, सो सौरी, मिस्टर? ‘‘कोई बात नहीं. इस बहाने इन का वजन कम हो गया. ये शेप में आ गईं. थैंक्यू,’’ मैं ने कहा. ‘‘लेकिन डाक्टरजी, मैं तो अब सब खा सकती हूं न?’’

‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं, आप एकदम भलीचंगी हैं, कोई बीमारी नहीं है,’’ डाक्टरनी ने चहक कर कहा.

उस के यह कहने पर सासूजी खुशी से होहो कर के हंस पड़ीं. दर्द तो रिपोर्ट सुन कर ही गायब हो गया था. हम माथा पकड़े हुए थे कि अब जितने दिनों तक ये रहेंगी रिकौर्डतोड़ बदपरहेजी करेंगी और गैस की बीमारी से हमें परेशान करेंगी. सब खुश थे लेकिन हमें एक चिंता खाए जा रही थी-यह रिपोर्ट जिस सुनीता की थी, जो बीमार थी, अस्पताल की एक गलती से बिना परहेज किए कहीं दुनिया से कूच न कर गई हों. हम किस से अपना दर्द कहते? सासूजी तो पूरे 10 दिनों के खाने का मैन्यू बनाए, पुरानी फिल्म का गीत गुनगुनाते आटोरिकशे में चढ़ गई थीं.

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