लेखिका- सुनीता कालरा 

शहीद शेखर की पत्नी पारुल अपनी आकर्षक सास पर पति के ही दोस्त संदीप को उपहार लुटाते देख अंदर तक जलभुन गई थी. सास और संदीप आखिर क्या गुल खिलाने की तैयारी कर रहे थे? पारुल ने मां से कहा, ‘‘मां, आप से मैं ने कह दिया कि मैं शादी करूंगी तो सिर्फ शेखर से. आप लोग मेरी बात क्यों नहीं मानते,’’ और रोंआसी हो कर सोफे पर बैठ गई. ‘‘पारुल बेटी, अभी तू छोटी है, अपना बुराभला नहीं सोच सकती,’’ मां बोलीं, ‘‘अजय में क्या बुराई है? अच्छा, पढ़ालिखा और स्मार्ट लड़का है, खातापीता घर है और उस का अपना करोड़ों का बिजनैस है.

तू वहां रानी बन कर रहेगी.’’ ‘‘मां, शेखर में क्या बुराई है?’’ पारुल ने कहा, ‘‘वह सेना में है. मैं मानती हूं कि उस की मां अध्यापिका हैं, पिता की मौत हुए बरसों बीत गए हैं, उस के पास करोड़ों रुपया नहीं है, फिर भी वह मुझे जीजान से प्यार करता है और उस की मां को तो मैं बचपन से ही जानती हूं. मुझे कितना प्यार करती हैं. आप भी तो यह जानती हैं कि वे लोग मुझे खुश रखेंगे.’’ मां बोलीं, ‘‘बेटी, तू मेरी बात समझ क्यों नहीं रही है? हम तेरे भविष्य के बारे में अच्छा ही सोचेंगे. तू क्यों इतनी जिद कर रही है?’’ पारुल ने कहा, ‘‘मां, आप ने भैया की पसंद की शादी की है और वह लड़की गरीब घर की ही है.

ये भी पढ़ें- कसौटी: जब झुक गए रीता और नमिता के सिर

जब मैं अपनी पसंद की शादी करना चाह रही हूं तो यह लड़की और लड़के का भेद कैसा? जब आप लोग गरीब घर की लड़की ला सकते हैं तो अपनी लड़की की शादी गरीब घर में क्यों नहीं कर सकते? मुझे धनदौलत का बिलकुल लालच नहीं है. मैं तो इतना चाहती हूं कि मेरा होने वाला पति मुझे प्यार करे और दो वक्त की रोटी खिला सके.’’ पारुल की जिद के आगे घरवालों की एक न चली. उस के पिता रमेश ने कहा, ‘‘ठीक है, हम अपनी बेटी की शादी उस की मरजी से ही करेंगे,’’ पारुल और शेखर की शादी धूमधाम से हो गई. शेखर की मां ने पारुल की मां से कहा, ‘‘बहनजी, हमें आप की बेटी मिल गई, बस, हमें और कुछ दानदहेज नहीं चाहिए. हमारे लिए तो पारुल ही सब से बड़ा दहेज है.’’ पारुल की मां कांता ने कहा, ‘‘बहनजी, हम अपनी बेटी को दानदहेज तो देंगे ही.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...