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Family Story Hindi : अंखियों से गोली मारे – सोसायटी में नई पड़ोसन आने के बाद से क्या हुआ था?

Family Story Hindi : हाथों में अखबार लिए गैलरी में बैठे मिस्टर वासु की निगाहें लगभग आधे घंटे से अपने सामने वाली गैलरी में ही टिकी हुई थीं, लेकिन अभी तक उन्हें उस अप्सरा का दीदार नहीं हो पाया था जिस की प्रतीक्षा में वासुजी अखबार पढ़ने की आड़ में अपनी पलकें बिछाए बैठे थे. यह सिलसिला लगभग उसी दिन से प्रारंभ हो गया था जिस दिन से मिस्टर ऐंड मिसेज रंभा वासु के गैलरी के सामने वाले फ्लैट में किराए पर रहने आए थे.

वासु की निगाहों में आज भी रंभाजी की वह तसवीर बसी हुई है, जब उन्होंने रंभाजी को पहली बार अपने गीले बालों को झटकते हुए देखा था. बालों से गिर कर पानी की कुछ बूंदें यों लग रहा था मानो खिले हुए गुलाब पर ओस की बूंदें चमक रही हों और रंभा के सुर्ख गुलाबी होंठ गुलाब की पंखुड़ियों की तरह. जिन्हें देख कर वासुजी का नन्हा दिल मचल उठा और फिर जब रंभाजी ने उन्हें देख कर मुसकराते हुए अपनी नजरों से एक ऐसा तीर चलाया कि उस दिन से ले कर आज तक वासुजी घायल ही हैं और रंभाजी से अपने दिल का इलाज और दवाई की उम्मीद लगाए बैठे हैं.

आज रंभाजी तो न जाने क्यों गैलरी में अपने मधुर स्वर के संग वासुजी को सुप्रभात कहने नहीं आईं लेकिन किचन से वासुजी की धर्मपत्नी मोहिनी की कर्कश आवाज जरूर आई,”सुनते हो, आज गैलरी में ही बैठे रहने का इरादा है क्या? अगर स्वच्छ हवा का सेवन हो गया हो तो आ कर नाश्ता भी कर लो.” श्रीमती की आवाज सुनते ही वासुजी हड़बड़ा ग‌ए और बोले,”बस आ ही रहा हूं, तुम नाश्ता लगाओ.” मनमसोस कर वासुजी अंदर आ ग‌ए और बोले,”आज हवा में ताजगी नहीं थी, मजा नहीं आया.”

यह सुन कर मोहिनी बोली,”अरे शहर में प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि हवा में ताजगी कहां से रहेगी.” बेचारी मोहिनीजी को कहां पता था कि उन के श्रीमान किस हवा के ठंडे झोंके संग मिलने वाली ताजगी की बात कर रहे हैं. वासुजी नाश्ता तो कर रहे थे लेकिन उन का दिल गैलरी में ही अटका हुआ था और आज रंभाजी को देख न पाने की कसक दिल में चुभ रही थी. तभी मोहिनी बोली,”आज बंटी के स्कूल में पेरैंट्सटीचर्स मीटिंग है, आप समय निकाल कर मेरे साथ चलिएगा,” इतना सुनते ही वासुजी को अपने औफिस के सारे काम और बौस याद आ गए और बोले,”नहींनहीं… आज तो स्कूल जा‌ पाना मुश्किल है क्योंकि आज औफिस में बहुत काम है और बौस भी छुट्टी नहीं देंगे. मेरा औफिस जाना जरूरी है,” इतना कह कर वे नाश्ता कर औफिस जाने की तैयारी में लग गए और मोहिनी घर के कामों में.

आज रोज की तरह वासुजी गोविंदा का वह गाना भी नहीं गुनगुना रहे थे, “अंखियों से गोली मारे….” क्योंकि आज रंभाजी से आंखें चार ही नहीं हो पाई थीं.

घर से औफिस के लिए निकलते वक्त भी उन का ध्यान गैलरी में खड़ी हाथ हिला रही अपनी पत्नी मोहिनी की ओर नहीं बल्कि रंभाजी की गैलरी पर इस आशा से था कि शायद उन की एक झलक दिख जाएं लेकिन निराशा ही हाथ लगी.

अपार्टमेंट से निकलते ही मोड़ पर खड़ी रंभाजी को देखते ही वासुजी के चहरे में चमक आ गई. जिस तरह शमां को देख परवाना फड़फड़ाने लगता है ठीक उसी तरह उन का भी यही हाल हो गया और उन्होंने अपनी कार की रफ्तार धीमी कर ली फिर रंभाजी के करीब पहुंच कर उन्होंने कार रोक दी.

गहरे गले का ब्लाउज उस पर स्लीवलैस, गुलाबी रंग की खूबसूरत साड़ी और खुले बालों में रंभाजी पूरी मनमोहिनी लग रही थीं. अपने सामने वासुजी को यों आ कर कार रोकते देख वे बड़ी अदा से कार के विंडो के पास आ कर झुकीं, उन के झुकते ही साड़ी का पल्लू नीचे गिर गया और उन के दोनों वक्षों के बीच की गहराई दिखाई देने लगी जिसे देख वासुजी की नजरें वहां जा कर थम गईं और वे उस में डूबने को आतुर दिखे, जिसे रंभाजी भी भांप गईं और अपना पल्लू ठीक करती हुई बोलीं,”वासुजी, क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं? मुझे मेन मार्केट तक ड्रौप कर दीजिए, मुझे कुछ सामान खरीदना है.”

ललचाई आंखों से रंभाजी को देखते हुए वासुजी बोले,”अरे क्यों नहीं आइए बैठिए, मैं उसी तरफ जा रहा हूं,” कहते हुई उन्होंने कार की अगली सीट का दरवाजा खोल दिया. रंभाजी अपने बालों पर हाथ फेरती हुईं वासुजी के बगल वाले सीट पर सामने आ बैठीं. रंभाजी के बगल में बैठते ही वासुजी का पूरा बदन सिहर उठा और क‌ई रंगीन कल्पनाओं में गोते लगाते हुए उन के मन में लड्डू फूटने लगे. वासुजी ने रोमांटिक गाने लगा दिए.

“वासुजी कार रोकिए…” रंभाजी के ऐसा कहने पर उन्हें एहसास हुआ कि मार्केट तो आ गया. उन्हें लगा पलक झपकते ही मार्केट तक की दूरी तय हो गई. कार से उतरते हुए रंभाजी बोलीं,”थैंक्यू वासुजी, यहां से मैं शौप तक पैदल ही चली जाऊंगी,” उन के इतना कहते ही वासुजी का चेहरा बासी फूल की तरह मुरझा गया, यह देख रंभा थोड़ी मुसकराती हुई बोलीं,”यदि आप फ्री हों तो आप भी साथ चलिए, मेरी शौपिंग में हैल्प हो जाएगी, मुझे कुछ इवनिंग और नाइट गाउन खरिदने हैं. आज आप की पसंद से खरीद लूंगी,” रंभाजी के बस इतना कहने मात्र से ही वासुजी ऐसे खिल उठे जैसे पानी के छीटें पड़ते ही मुरझाए हुए फूलों में ताजगी आ जाती है.

कार पार्क कर रंभाजी को आगे चलने को कह, फटाफट अपने बौस को जरूरी काम की वजह से औफिस नहीं आ पाने के लिए मैसेज कर दिया और फिर रंभाजी के साथ हो लिए.

दुकान पहुंच कर रंभाजी के लिए एक से बढ़ कर एक इवनिंग और नाइट गाउन वासुजी कुछ इस तरह से पसंद कर रहे थे मानो ये सारे गाउन रंभाजी उन के लिए ही पहनने वाली हों और उसी तरह रंभाजी भी वासुजी से गाउन ऐसे पसंद करवा रही थीं जैसे वे गाउन उन्हीं के लिए पहनने वाली हैं.

दोनों को इस प्रकार गाउन सिलैक्ट करता देख काउंटर पर गाउन दिखा रहा लड़का आंखों में थोड़ी शरारत भरते हुए बोला,”भैयाजी, यह गाउन देखिए, फ्रंट ओपन इस गाउन में भाभीजी कमाल की लगेंगी.” इतना सुनते ही उन का चेहरा ऐसे लाल हो गया जैसे उस सैल्स बौय ने बैडरूम के कुछ सीक्रेट्स कह दिए हों.

गाउन पसंद करने के बाद जब दोनों कैश कांउटर पर पहुंचे तो 6 गाउन का बिल ₹12 हजार बना. बिल पेमैंट के लिए अपना पर्स खोलते ही रंभाजी अपसेट होती हुई कांउटर पर बैठे दुकानदार से बोलीं,”ओह… मैं तो अपना क्रैडिट कार्ड लाना ही भूल ग‌ई हूं. भैया, ये सारे गाउन रहने दीजिए, मैं फिर कभी आ कर ले जाऊंगी.”

रंभाजी को अपसेट और गाउन न खरीदते देख वासुजी बोले,”अरे यह क्या कह रही हैं, कोई बात नहीं यदि आप अपना क्रैडिट कार्ड लाना भूल ग‌ई हैं तो मैं अपने क्रैडिट कार्ड से पेमैंट कर देता हूं.”

पहले तो रंभाजी मानीं नहीं लेकिन जब वासुजी ने कहा,”मेरी तरफ से छोटा सा गिफ्ट समझ कर रख लीजिए, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा,” ऐसा सुनते ही रंभाजी फौरन मान गईं और मुसकराते हुए बोलीं,”मैं आप का दिल कैसे तोड़ सकती हूं.” और इस तरह से ₹12 हजार के बिल की कैंची रंभाजी ने बड़ी ही चालाकी से वासुजी के जेब पर चला दी.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। इस से पहले भी कई बार रंभाजी किसी न किसी बहाने से वासुजी के जेब की सफाई कर चुकी थीं और वासुजी ने बड़ी खुशी से उन्हें ऐसा करने दिया था.

खरीददारी के बाद रंभाजी अदाएं दिखाती हुई बोलीं,”थैंक यू… वासुजी मैं ने आप के रूप में एक बहुत अच्छा दोस्त पा लिया है.”

रंभा से अपने लिए ‘अच्छा’ दोस्त सुन कर वासुजी फूल कर कुप्पा हो ग‌ए और यह सोच कर मंदमंद मुसकराने लगे कि प्यार की पहली सीढ़ी दोस्ती ही तो होती है. तभी रंभाजी दोबारा बोलीं,”वासुजी, क्या आप मेरी एक और मदद कर सकते हैं? क्या आप मुझे मेरे बेटे चिंटू के स्कूल तक ड्रौप कर देंगे? आज उस के स्कूल में पेरैंट्सटीचर्स मीटिंग है.” रंभाजी के संग और कुछ समय गुजारने का यह मौका भला वासुजी अपने हाथों से कैसे जाने देते. बिना सोचेसमझे फौरन उन्होंने हामी भर दी और दोनों चिंटू के स्कूल की तरफ चल पड़े.

स्कूल के पार्किंग में पहुंचते ही वासुजी का माथा ठनका, यह तो उन के बेटे बंटी का स्कूल है और आज तो उन की पत्नी मोहिनी भी स्कूल आने वाली है, तभी उन्हें स्कूल के अंदर से मोहिनी आती हुई दिखाई दी. पत्नी को देखते ही वासुजी के पसीने छूट गए. रंभाजी के कार से उतरते ही वासुजी, रंभाजी को बाय कहे बगैर ही गाड़ी रिवर्स गियर में डाल वहां से नौ दो ग्यारह हो ग‌ए.

इस प्रकार एकाएक इतनी तेजी से किसी कार को जाता देख एक पल के लिए मोहिनी को लगा कि शायद यह कार उस के पति की थी पर अगले ही क्षण यह सोच कर कि अभी तो उस के पति औफिस में होंगे, वह टैक्सी स्टैंड की तरफ मुड़ गई. मोहिनी घर पहुंची तो उस ने देखा वासुजी घर पर हैं। यह देख वह आश्चर्य से बोली,”इस वक्त आप यहां घर पर…”

वासुजी पहले ही इस बात से डरे हुए थे कि कहीं मोहिनी ने उन्हें देख न लिया हो इसलिए लोमड़ी की तरह चालाकी से स्वांग करते हुए अपने चेहरे पर भोलेपन का भाव लाते हुए बोले,”वह सुबह तुम कह रही थीं न कि आज बंटी के स्कूल जाना‌ है पेरैंट्सटीचर्स मीटिंग में, इसलिए मैं घर आ गया.”

भोलीभाली मोहिनी वासुजी की बातों को सच मान गई और बोली,”अरे, आप आने वाले थे तो फोन कर देते मैं तो अभी स्कूल से ही आ रही हूं.” कहती हुई मोहिनी किचन की ओर चली गई.

उसी वक्त डोरबैल बजा, दरवाजा खोलते ही सामने सोसायटी का वौचमैन हाथों में एक परची लिए खड़ा था, वासुजी को देखते ही परची उन की हाथों में पकड़ा वहां से चला गया.

उस परची में आने वाले रविवार को सोसायटी में होने वाले गेटटुगेदर और सांस्कृतिक कार्यक्रम की सूचना थी, जिसे पढ़ते ही वासुजी के पूरे शरीर में गुदगुदी होने लगी। वह सोचने लगे कि इस रविवार तो खुले आसमान के नीचे पूरी सोसायटी खूबसूरत फूलों से गुलजार रहेगी और उन्हें अपनी आंखें सेंकने का भरपूर मौका मिलेगा. वे रविवार को होने वाले गेटटुगेदर के हसीन सपने और उस की तैयारियों में खो गए.

वह रविवार भी आ गया जिस दिन का वासुजी के साथ ही साथ कालोनी के और भी कई तथाकथित सभ्य एवं शरीफ पुरुषों को इस सुनहरे दिन की प्रतीक्षा थी, जो समाज के समक्ष यह मुखौटा पहने हुए थे कि वे ऐसे सज्जन पुरुष हैं, जो सभी स्त्रियों को सम्मान की नजरों से देखते हैं और कभी भी उन पर बुरी नजर नहीं डालते हैं. कुछ ऐसी स्त्रियां भी थीं जो पुरुषों के ताड़ते नजरों को बड़े आसानी से पकड़ लेती थीं और फिर अपने लटकेझटके दिखा कर उन का भरपूर इस्तेमाल करती थीं और अपने छोटेबड़े काम भी निकलवा लेती थीं.

सुबह से ही सोसायटी ग्राउंड में चहलपहल थी. सोसायटी की ज्यादातर महिलाएं शाम को होने वाले फंक्शन पर क्या पहनना है और कैसे मेकअप करना है इसी की तैयारियों में लगी हुई थीं ताकि वे सब से खूबसूरत लग सकें और अपनी खूबसूरती का जलवा कार्यक्रम में बिखेर सकें.

वासुजी निर्धारित समय पर बिलकुल अपटूडेट हो कर ग्रांउड पहुंच गए, जहां पहले से ही और भी कई लोग उपस्थित थे. धीरेधीरे कर सोसायटी के सभी लोग आ गए थे, लेकिन वासुजी को जिस का बेसब्री से इंतजार था वही रंभाजी अब तक नहीं आई थीं. तभी रंभाजी सजधज कर वहां आ पहुंचीं। उन्हें देखते ही वासुजी के साथ और भी कई लोगों के दिल जोरों से धड़कने लगे। आंखें बड़ी हो गईं और मुंह खुले के खुले रह गए. यों लग रहा था जैसे आज रंभाजी यह प्रण कर के आई हैं, ‘सजधज के मैं जरा बनठन के… बाण चलाऊंगी नैन के…’

वासुजी बारबार अपनी पत्नी मोहिनी और बाकी लोगों से नजरें बचा कर रंभाजी के करीब कोई न कोई बहाना बना कर आ जाते और रंभाजी की तसवीरें लेने लगते। रंभाजी भी अलगअलग पोज में तसवीर खिंचवातीं. कुछ देर बाद रंभाजी से वासुजी कुछ इस तरह व्यवहार एवं निकट होने का प्रयत्न करने लगे जैसे रंभाजी उन की संपत्ति हों, जिसे उन्होंने खरीद लिया हो.

तभी स्टेज पर रंभाजी का नाम पुकारा गया. रंभाजी आज अपना एक सोलो डांस परफौर्मैंस देने वाली थीं. जैसे ही उन्होंने अपना परफौर्मैंस देना शुरू किया तो वहां उपस्थित महिलाएं मुंह बनाने लगीं और पुरूषों में खलबली मच गई। सभी पुरुष भारी उत्साह से रंभाजी की डांस का मजा लेने लगे.

रंभाजी के नृत्य के दौरान उन के एक एक नृत्य मुद्रा पर देर तक तालियां बजती रहीं. डांस के बाद जब वे अपने सीट पर आईं तो काफी देर से उन की अदाओं को देख मचल रहे वासुजी का दिल बागी हो गया और वे रंभाजी के पास चले गए और फिर अपनी मर्यादा से बाहर होने लगे, यह देख उन के पति वहां आ गए क्योंकि इस के पहले भी उन्होंने क‌ई बार मिस्टर वासु को अपनी पत्नी के साथ इस प्रकार बेतकल्लुफ होते हुए देखा था. बात इतनी बढ़ गई कि पूरी सोसायटी के बीच मिस्टर सिंघ‌ई हाथापाई पर उतर आए और उन्होंने मिस्टर वासु की पिटाई कर दी.

पूरी सोसायटी के समक्ष वासुजी के इज्जत की किरकिरी हो गई. मोहिनी अलग नाराज हो गई और रंभाजी जिस पर वासुजी अपने रूपए बिना सोचेसमझे लुटा रहे थे अपने पति के संग उन्हें ठेंगा दिखा कर चलती बनीं।

1 हफ्ते तक रोज वासुजी सुबह रंभाजी के इंतजार में अखबार पढ़ते, गैलरी में बैठे रहते लेकिन रंभाजी फिर कभी गैलरी में दिखाई नहीं दी. एक रविवार वासुजी ने देखा की रंभाजी के घर का सामान शिफ्ट हो रहा है. मालूम करने पर पता चला कि उन का पूरा परिवार दूसरे कालोनी में शिफ्ट हो रहा है. वासुजी बेहद दुखी हुए, इस बात पर नहीं कि रंभाजी सोसायटी छोड़ कर जा रही हैं बल्कि यह सोच कर कि खायापिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना.

इतने पैसे उन्होंने रंभाजी पर खर्च किए लेकिन रंभाजी उन्हें छूने को भी नहीं मिलीं.

अगली सुबह जब वे गैलरी में बेमन से ग‌ए तो उन्होंने फिर एक नई खूबसूरत हसीन चेहरे को गैलरी में खड़े पाया और फिर वासुजी अखबार ले कर यह गुनगुनाते हुए बैठ ग‌ए,”अंखियों से गोली मारे…  Family Story Hindi

Hindi Stories Love : नास्तिक – कैसे परिवार में हुई श्वेता की शादी

Hindi Stories Love : श्वेता के ससुराल जाने के बाद उस के मातापिता को अपना खाली घर काटने को दौड़ रहा था.

श्वेता चुलबुली, बड़बोली और खुले दिल की लड़की थी. मम्मी के दिल में एक ही बात खटकती रहती थी कि श्वेता देवधर्म, कर्मकांड वगैरह नहीं मानती थी.

तरहतरह के पकवान हम कभी भी खा, बना सकते हैं, इस के लिए किसी त्योहार की जरूरत क्यों? दीवाली के व्यंजन तो पूरे साल मिलते हैं. हम कभी भी खरीद सकते हैं, इस में कोई समस्या नहीं है? श्वेता की सोच कुछ ऐसी ही थी.

मातापिता को तो कभी कोई समस्या नहीं हुई, लेकिन उस की ससुराल वालों को होने लगी.

श्वेता का पति आकाश किसी सुपरस्टार की तरह दिखता था. औरतें मुड़मुड़ कर उसे देखती थीं और कहती थीं कि एकदम रितिक रोशन की तरह दिखता है.

श्वेता की सहेलियां उस से जलती थीं. जिम जाने और खूबसूरत दिखने वाले पति के साथ श्वेता की शादीशुदा जिंदगी बहुत अच्छी बीत रही थी.

दोनों पर मिलन की एक अलग ही धुन सवार थी.

लेकिन एक दिन आकाश ने उस से बोल ही दिया, ‘‘केवल मेरे मातापिता के लिए तुम रोज पूजा कर लिया करो… प्लीज. प्रसाद के रूप में नारियल बांटने में तुम्हें क्या दिक्कत है. नाम के लिए एक दिन व्रत रखा करो ताकि मां को तसल्ली हो कि उन की बहू सुधर गई है.’’

श्वेता गुस्से में बोली, ‘‘सुधर गई, मतलब…? नास्तिक औरतें बिगड़ी हुई होती हैं क्या? दबाव में आ कर भक्ति करना क्या सही है?

‘‘जब मुझे यह सब करना नहीं अच्छा लगता तो जबरदस्ती कैसी? मैं ने कभी अपने मायके में उपवास नहीं किया है. मुझे एसिडिटी हो जाती है इसलिए मैं कम खाती हूं, 2 रोटी और थोड़े चावल तो व्रत क्यों रखना?’’

श्वेता सच बोल रही थी. लेकिन इस बात से आकाश नाराज हो गया और धीरेधीरे उस ने श्वेता से बात करना कम कर दिया.

जब भी श्वेता की जिस्मानी संबंध बनाने की इच्छा होती तो ‘आज नहीं, मैं थक गया हूं’ कहते हुए आकाश मना कर देता. ये सब बातें अब रोज की कहानी बन गई थीं.

‘‘तुम्हारा मुझ में इंटरैस्ट क्यों खत्म हो गया? तुम्हारी दिक्कत क्या है?’’ श्वेता ने आकाश से पूछा.

बैडरूम में उस का खुला और गठीला बदन देख कर श्वेता का मन अपनेआप ही मचल जाता था, लेकिन आकाश ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘‘तुम पहले भगवान को मानने लगो, मां को खुश करो, उस के बाद हम अपने बारे में सोचेंगे…’’

‘‘मेरा भगवान, पूजापाठ में विश्वास नहीं है, यह सब मैं ने शादी से

पहले तुम्हें बताया था. जब हम दोनों गोरेगांव के बगीचे में घूमने गए थे… तुम्हें याद है?’’

‘‘मुझे लगा था कि तुम बदल जाओगी…’’

‘‘ऐसे कैसे बदल जाऊंगी. मैं

कोई मन में गुस्से की भावना रख कर नास्तिक नहीं बनी हूं, यह मेरा सालों का अभ्यास है.’’

धीरेधीरे श्वेता और उस की सास के बीच झगड़े होने लगे. श्वेता उन के साथ मंदिर तो जाती थी लेकिन बाहर ही खड़ी रहती थी, जिस पर झगड़े और ज्यादा बढ़ जाते थे.

एक बार सास ने कहा, ‘‘मंदिर के बाहर चप्पल संभालने के लिए रुकती है क्या? अंदर आएगी तो क्या हो जाएगा?’’

श्वेता ने भी तुरंत जवाब देते हुए कहा, ‘‘आप अपना काम पूरा करें, मुझे सिखाने की जरूरत नहीं है. मैं इन ढकोसलों को नहीं मानती.’’

सास घर लौट कर रोने लगीं, ‘‘मुझ से इस जन्म में आज तक किसी ने ऐसी बात नहीं की थी. ऊपर वाला देख लेगा तुम्हें,’’ ऐसा बोलते हुए सास ने पलभर में एक पढ़ीलिखी बहू को दुश्मन ठहरा दिया.

शाम को आकाश के आने के बाद श्वेता बोली, ‘‘मैं मायके जा रही हूं, मुझे लेने मत आना. जब मेरा मन करेगा तब आऊंगी. लेकिन अभी से कुछ तय नहीं है. मायके ही जा रही हूं, कहीं भाग नहीं रही हूं. नहीं तो कुछ भी झूठी अफवाहें उड़ेंगी.’’

आकाश उस की तरफ देखता रह गया. उस की तीखी और करारी बातों से उसे थोड़ा डर लगा.

श्वेता अपने अमीर मातापिता के साथ जा कर रहने लगी. मां को यह बात अच्छी नहीं लगी, लेकिन श्वेता ने कहा, ‘‘आप थोड़ा धीरज रखो. आकाश को मेरे बिना अच्छा नहीं लगेगा.’’

आखिर वही हुआ. 15-20 दिन बीतने के बाद उस का फोन आना शुरू हो गया. पत्नी का मायके में रहने का क्या मतलब है? यह सोच कर वह बेचैन हो रहा था. उस का किया उस पर ही भारी पड़ गया. मां के दबाव में आ कर वह भगवान को मानता था.

श्वेता ने फोन काट दिया इसलिए आकाश ने मैसेज किया, ‘मुझे तुम से बात करनी है, विरार आऊं क्या?’

श्वेता के मन में भी प्यार था और उस ने झट से हां कह दिया.

श्वेता ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें भगवान को मानने के लिए कभी मना नहीं किया. पूजाअर्चना, जो तुम्हें करनी है जरूर करो, लेकिन मुझे मेरी आजादी देने में क्या दिक्कत है. तुम्हारी मां को समझाना तुम्हारा काम है. अब तुम बोल रहे हो इसलिए आ रही हूं. अगर फिर कभी मेरी बेइज्जती हुई तो मैं हमेशा के लिए ससुराल छोड़ दूंगी…

इस तरह से श्वेता ने अपनी नास्तिकता की आजादी को हासिल कर लिया. Hindi Stories Love

Story In Hindi : संबंधों का कातिल – जब आंखों पर चढ़ा स्वार्थ का चश्मा  

Story In Hindi : ‘‘माफ करना भाई, तुम्हें तो बात भी करना नहीं आता,’’ इतना बोल कर सुबोध ने अपने हाथ जोड़ लिए तो मानव खीज कर रह गया.

अचानक बात करतेकरते दोनों को ऐसा करता देख मैं भी घबरा गया. कमरे में झगड़ा हो और नकारात्मक माहौल बन जाए तो बड़ी घुटन होती है. मैं तनाव में नहीं जी सकता. पता नहीं कैसाकैसा लगने लगता है. ऐसा लगता है जैसे किसी ने नाक तक मुझे पानी में डुबो दिया हो.

‘‘शांत रहो भाई, तुम दोनों को क्या हो गया है?’’

‘‘कुछ नहीं, मैं भूल गया था कि कुपात्र को सीख नहीं देनी चाहिए. जिसे कुछ लेने की चाह ही न हो उसे कुछ कैसे दिया जा सकता है. बरतन सीधे मुंह रखा हो तभी उस में कोई चीज डाली जा सकती है, उलटे बरतन में कुछ नहीं डाला जा सकता. चाहे पूरी की पूरी सावन की बदली बरस कर चली जाए पर उलटे पात्र में एक बूंद तक नहीं डाली जा सकती. जिस चरित्र का यह मालिक है उस चरित्र पर तो किसी की अच्छी सलाह काम ही नहीं कर सकती. ऐसे लोग कभी किसी के हो कर नहीं रहते.’’

मानव चेहरे पर विचित्र भाव लिए कभी मेरा मुंह देख रहा था और कभी सुबोध का…जैसे कोई चोरी पकड़ी गई हो, जैसे उस का कोई परदा उठा दिया हो किसी ने. अभी कुछ दिन पहले ही तो सुबोध हमारे साथ रहने आया है. हम तीनों एक ही कमरा शेयर करते हैं. हमारे पेशे अलगअलग हैं लेकिन रहने को छत एक ही है जिस के नीचे हमारी रात और सुबह बीतती है.

‘‘चरित्र से…क्या मतलब है तुम्हारा?’’

‘‘क्या इस का मतलब तुम्हें नहीं पता? इतने तो नासमझ नहीं हो तुम, जो तुम्हें चरित्र का मतलब पता ही न हो. पढ़ेलिखे हो, अच्छी कंपनी में काम करते हो, हर महीने अच्छाखासा वेतन पाते हो, जूता तक तो तुम्हारा ब्रांडेड होता है. कंपनी में ऊपर तक जाने की जितनी तीव्र इच्छा  तुम्हें है उस के लिए अनैतिकता के कितने गहरे गड्ढे में धंस चुके हो, तुम्हें खुद ही नहीं पता…तुम कहां से हो और कहां जा रहे हो तुम्हें जरा सी भी समझ है? क्या जानते भी हो, कहां जा रहे हो…और कहां तक जाना चाहते हो उस की कोई तो सीमा होगी?’’

‘‘सीमा…सीमा कौन? किस की बात कर रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हारी पत्नी सीमा की बात नहीं कर रहा हूं. मैं तो उस सीमा की बात कर रहा हूं जिसे हद भी कहा जाता है. हद यानी एक वह सूक्ष्म सी रेखा जिस के पार जाने से पहले मनुष्य को लाख बार सोचना चाहिए.’’

मैं आश्चर्यचकित रह गया. सीमा नाम की लड़की मानव की पत्नी है लेकिन मानव ने तो कहा था कि वह अविवाहित है और अपनी ही कंपनी में साथ काम कर रही एक सहयोगी के साथ उस के संबंध बहुत गहराई तक जुड़े हैं, सब जानते हैं. तो क्या मानव सब के साथ झूठ बोल रहा है? हाथ का काम छोड़ मैं सुबोध के समीप चला आया. मानव की शक्ल से तो लग रहा था जैसे काटो तो खून का कतरा भी न निकले. एक निश्छल सी मुसकान थी सुबोध के होंठों पर. बेदाग चरित्र है उस का. पहले ही दिन जब मिला था बहुत प्यारा सा लगा था. बड़े मस्त भाव से दाढ़ी बनाता जा रहा था.

‘‘हर इच्छा की सीमा होती है, कितनी भूख है तुम्हें पैसे की? सोचा जाए तो मात्र पैसे की ही नहीं, तुम्हें तो हर शह की भूख है. इतनी भूख से पेट फट जाएगा मानव, बदहजमी हो जाती है. प्रकृति ने इंसानों का हाजमा इतना मजबूत नहीं बनाया कि पत्थर या शीशा खा सके. हम अनाज या ज्यादा से ज्यादा जानवर खा सकते हैं.’’

यह कह कर मुंह धोने चला गया सुबोध और मानव मेरे सामने बुत बना यों खड़ा था मानो उसे बीच चौराहे पर किसी ने नंगा कर दिया हो.

‘‘तुम ये कैसी बातें कर रहे हो, सुबोध?’’ मैं ने पूछा.

‘‘क्या हुआ? जी मिचलाने लगा क्या? मानव का जी तो नहीं मिचलाता. पूछो, इसे इंसान का गोश्त कितना स्वाद लगता है. पिछले 4 साल से यह इंसान का गोश्त ही तो खा रहा है…अपने मांबाप का गोश्त, उस के बाद अपनी पत्नी और उस के पिता का गोश्त, यह तो एक बच्चे का पिता भी होता यदि पत्नी का गर्भपात न हो जाता. एक तरह से अपने बच्चे का गोश्त भी खा चुका है यह इंसान.’’

‘‘बकवास बंद करो सुबोध,’’ मानव ने चिढ़ कर कहा.

‘‘मेरी क्या मजाल है जो मैं बकवास करूं. उस का ठेका तो तुम ने ले रखा है. साल भर पहले घर गए थे तुम, सोचो, तब वहां क्या बकवास कर के आए थे? पत्नी को छोड़ना चाहते थे इसलिए उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगा दिया.

‘‘एमबीए करने के लिए अपनी पत्नी के पिता से 8 लाख रुपए ले लिए. उन की बेटी का घरसंसार समृद्धि से भर जाएगा, उन को तुम ने ऐसा आश्वासन दिया था. पत्नी बेचारी घर पर इस के मातापिता की सेवा करती रही, इसी उम्मीद पर कि उस का पति बड़ा आदमी बन कर लौटेगा.

‘‘अजन्मा बच्चा अपने पिता का दोषारोपण सुनते ही चलता बना. मुड़ कर कभी नहीं देखता पीछे क्याक्या छूट गया. किसकिस के सिर पर पैर रख कर यहां तक पहुंचे हो, मानव. क्या जरा सा भी एहसास है?

‘‘अब क्या उस नेहा नाम की लड़की के कंधे पर पैर नहीं हैं तुम्हारे, जिस का भाई तुम्हें अमेरिका ले जाने वाला है? अमेरिका पहुंच कर नेहा को भी छोड़ देना. मानव नहीं हो तुम तो दानव बन गए हो. क्या तुम्हारे अंदर सारी की सारी संवेदनाएं मर गई हैं? पता है न तुम्हें कि कौनकौन कोस रहा है तुम्हें. तुम्हारे मातापिता, तुम्हारे ससुर…जिन की भविष्यनिधि भी तुम खा गए और उन की बेटी का घर भी नहीं बस पाया.’’

मानव की अवस्था विचित्र सी हो गई. बारबार कुछ कहने को वह मुंह खोलता तो सुबोध उस पर नया वार कर देता. प्याज के छिलकों की तरह परतदरपरत उस के भूतकाल की परतें उतारता जा रहा था. सफाई दे भी तो कैसे दे और शुरू कहां से करे, उस का तो आदि से अंत सब ही विश्वास और अपनत्व से शून्य था. जो इंसान अपने मांबाप का सगा न हुआ, अपनी पत्नी के प्रति वफादार न हुआ वह किसी और का भी क्या होगा? सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. अपनी संतान के प्रति भी जिस ने कोई जिम्मेदारी न समझी, वह कहांकहां से पलायन कर रहा है समझा जा सकता है.

‘‘सुबोध, तुम यह सब कैसे जानते हो. जरा बताओ तो?’’ मैं ने सुबोध का हाथ पकड़ कर पूछा था. शांत रहने वाला सुबोध इस पल जरा आवेश में था.

‘‘तुम मुझ से क्यों पूछ रहे हो कि मैं यह सब कैसे जानता हूं. तुम इस नाशुक्रे इंसान से सिर्फ यह पूछो कि जो कुछ भी मैं ने इस के लिए कहा है वह सच है या नहीं. मैं कैसे जानता हूं कैसे नहीं, इस से क्या फर्क पड़ता है. पूछो इस से कि इस के मातापिता आजकल कहां हैं? जिंदा भी हैं या मर गए? तलाक के बाद इस की पत्नी और उस के पिता का क्या हुआ? क्या यह जानता है? अपने ससुर के 8 लाख रुपए यह कब लौटाने वाला है जो अब सूद मिला कर 10-12 लाख रुपए तो होने ही चाहिए.’’

‘‘सीमा ने अभी मुझे तलाक दिया कहां है…’’ पहली बार मानव ने अपने होंठ खोले, ‘‘और क्या सुबूत है उस के पास कि वे रुपए उस के पिता ने ही दिए थे.’’

‘‘जिस दिन अदालत का नोटिस तुम्हारे औफिस पहुंच जाएगा, उस दिन अपनेआप पता चल जाएगा किस के पास कितने और कैसे सुबूत हैं…इतना लाचार और बेवकूफ किसे समझ रहे हो तुम?’’

सुबोध इतना सब कह कर अपने कपड़े बदलने लगा.

‘‘आजकल मुंह छिपा कर भागना आसान कहां है. इंसान मोबाइल नंबर से पकड़ा जाता है, जिस कंपनी में काम करो वहां से छोड़ कर कहीं और भी चले जाओ तो भी सिरा हाथ में आ जाता है. यह दुनिया इतनी बड़ी कहां रह गई है कि इंसान पकड़ में ही न आए. जल्दी ही नेहा को भी पता चल जाएगा तुम्हारा कच्चा चिट्ठा. यह मत सोचो कि तुम सारी दुनिया को बेवकूफ बना लोगे.’’

बदहवास सा होने लगा मानव. 15 दिन पहले ही तो सुबोध हमारे साथ रहने आया है. उस ने कहा था जम्मू से है, मानव भी जम्मू से है, तब मुझे क्षण भर को लगा भी था कि मानव जम्मू का नाम सुन कर जरा सा परेशान हो गया था, बड़ी गहराई से परख रहा था कि वह किस हिस्से से है, किस कोने से है.

‘‘अगर इंसान जिंदा है और अच्छी नौकरी में है तो छिप नहीं सकता और मुझे पूरा विश्वास है तुम अभी जिंदा हो.’’

धड़ाम से वहीं बैठ गया मानव. सुबोध जल्दीजल्दी तैयार होने लगा. उस ने अपना नाश्ता किया और जातेजाते मानव का कंधा थपथपा दिया.

‘‘अभी भी देर नहीं हुई. मर जाओ या जिंदा रहो, अपने ही काम आते हैं. रोते भी अपने ही हैं, ऐसा दुनिया कहती है. अपना घरपरिवार संभालो, अपनों के साथ छल मत करो वरना वह दिन दूर नहीं जब यही छल घूमफिर कर तुम्हारे ही सामने परोसा जाएगा…अपने घर जाओ मानव, तुम्हारी मां बहुत बीमार हैं.’’

‘‘क्या?’’ मानव के होंठों से पहली बार यह शब्द अपनेआप ही निकला था.

‘‘अपनी मां तो याद हैं न. जाओ उन के पास. नेहा जैसी कल बहुत मिल जाएंगी. आज मां हाथ से निकल गईं तो पूरी उम्र जमीन से जुड़ने को ही तरस जाओगे. पत्नी को छोड़ा है, जाहिर है वह भी मर तो नहीं जाएगी. वह तो कल अपना रास्ता स्वयं ढूंढ़ लेगी, लेकिन आज जो छूट जाएगा वह कभी हाथ नहीं आएगा. अच्छे इंसान बनो मानव…मांबाप ने इतना अच्छा नाम रखा था…कुछ तो उसे सार्थक करो.’’

सुबोध चला गया. कहां से बात शुरू हुई थी और कहां आ पहुंची थी. हैरान हूं मानव के बारे में इतना सब जानते हुए वह 15 दिन से चुप क्यों था. और मानव का चरित्र भी कैसा था, जिस ने साल भर में कभी मांबाप का जिक्र तक नहीं किया. घर में पालतू जानवर पाल लो तो उस का भी नाम कभीकभार इंसान ले ही लेता है.

सुबोध ने बताया था कि उस के कई मित्र मानव के गांव से हैं. हो सकता है उन्हीं से उसे सारी कहानी पता चली हो. मैं तो कितना अच्छा दोस्त समझ रहा था मानव को. अब लग रहा है अपनी समझ को अभी मुझे और परिपक्व करना पड़ेगा. इंसान को परखना अभी मुझे नहीं आया.

मैं सोचने लगा हूं…मानव, जो अच्छा इंसान ही नहीं है वह अच्छा मित्र कैसे होगा. प्यार पाने के लिए तो प्यार बोना पड़ता है और विश्वास पाने के लिए विश्वास. मानव के तो दोनों हाथ खाली हैं, यह क्या लेगा जब कभी दिया ही नहीं. इस के हिस्से तो मात्र खालीपन और अकेलापन ही है.

मानव बुत बना चुपचाप बैठा रहा. Story In Hindi

Kahani In Hindi : हाय मेरी बैटरी – मोबाइल की बैटरी के बिना ऐसी होती है हालत

Kahani In Hindi : कभी होस्टल जा रहे बेटे को मां पूछती थी, ‘बेटा, सभी कपड़े रख लिए हैं न, घी का कनस्तर, अचार का डब्बा ठीक से रख लेना और जो सूखे मेवे रखे हैं, उन्हें बराबर खाते रहना. चड्डीबनियान, तौलिया वगैरा मत भूल जाना.’

फिर सासबहू के सीरियल का दौर आया. मां की चिंता में शेविंग किट, ब्लैड, डिओ वगैरा आ गए. ‘एक से क्या होगा बेटा, 2 रख ले.’

‘मां, इस की एक बूंद ही काफी है एक बार की शेविंग में,’ बेटा कौन्फिडैंटली जवाब देता. बेटे की होशियारी पर मां मन ही मन बलैयां उतार लेतीं.

अब लेटैस्ट मां पूछ रही है, ‘बेटा, बैटरी फुल चार्ज है न. पावरबैंक जरूर रख लेना. ट्रेन में बैठते ही चार्जर पावर प्लग में लगा देना, नहीं तो कोई और ठूंस कर बैठ जाएगा. किसी से ज्यादा घुलनामिलना मत, कानों में हैडफोन लगा कर पूरा चौकन्ना रह कर आराम से गाने सुनते हुए जाना. बेटा संस्कार भले ही घर भूल कर चला जाए, लेकिन हैडफोन बिलकुल नहीं भूल सकता.

अकसर मांबाप कालेज जाते बेटे से यह पूछना भूल जाते हैं कि हैलमैट क्यों नहीं लगाया? लाइसैंस, नो पौल्यूशन कार्ड, इंश्योरैंस पेपर, आरसी वगैरा हैं साथ में?

लेकिन जब से हाथ में स्मार्टफोन आया है, बेटा काफी समझदार हो गया है. बस, बेटे का एक ही दुख है, बैटरी, बैटरी ज्यादा नहीं चलती. बीच मझदार में दम तोड़ देती है. वैसे बेटे के इस विराट दुख में सब का दुख समाहित है, हाय, बैटरी ज्यादा नहीं चलती.देखा जाए, तो एक स्मार्टफोनधारी की मनोस्थिति उस मोर की तरह होती है जो अपने सुनहरे, सजीले पंखों को देख कर नाचता तो है, लेकिन पैरों की तरफ देख कर मन ही मन रोता है. उसी तरह स्मार्टफोन से जो खुशी मिलती है, थ्रिल जगता है, टच करते हुए गुदगुदी होती है, लेकिन बैटरी को देख कर वह काफूर हो जाती है. हाय, कितनी क्षणभंगुर है बैटरी लंबी है स्मार्टफोन में देखी जाने वाली चीजों की फेहरिस्त.

बैटरी पीडि़त के मन से अपनेआप ही काव्यनुमा आह फूट पड़ती है. परीक्षा के पर्सेंट से भी मूल्यवान बैटरी के पर्सेंट हो गए हैं. उस पर आदमी लगातार टकटकी लगाए रहता है. वह छीज रही है, दिल बैठ रहा है. एक अदद बैटरी के आगे इंसान खुद को कितना असहाय, निरुपाय, पराजित सा फील करता है.

आज हर हाथ को बतौर फोन स्मार्ट होने का भ्रम है. एक आंख इसे देख कर खुश होती है तो दूसरी बैटरी को घूर कर कुढ़ती है. हर्ष और विषाद मिश्रित ऐसे चेहरे देख कर लगता है, देश की सब से बड़ी समस्याएं आतंक, घुसपैठ, सीमा विवाद, लोकतंत्र, कट्टरता, बेरोजगारी, सरकार, भ्रष्टाचार, नोटबंदी, जीएसटी वगैरा नहीं, बल्कि एक अदद बैटरी है. बाकी समस्याएं तो क्षणिक आवेशभर की हैं, परमानैंट प्रौब्लम तो बैटरी की ही है.

बैटरी हमारी चिंता के केंद्रीय भाव में आ बैठी है. बैटरी चले, तो लाइफ चलती सी लगे. 2 लोग आपस में बातचीत भी करते हैं, तो बैटरी दन से बीच में  कूद पड़ती है. यार, इस बैटरी का कोई समाधान बताओ न. दोपहर भी नहीं पकड़ती?

‘सेम प्रौब्लम हीयर,’ सामने से जवाब आता है, अभी थोड़ी देर पहले 70 प्रतिशत थी, अभी देखा तो 24 प्रतिशत.

कुल वार्त्तालाप में आधे से भी ज्यादा को बैटरी हजम कर जाती है. बैटरी से शुरू हो कर वार्त्ता पावरबैंक पर खत्म हो जाती है.

इंसान आकुल है. कितने व्हाट्सऐप, कितने यूट्यूब, कितने फेसबुक, ट्विटर, वायरल सच, वीडियो जिंदगी में गहरे तक धंसे पड़े हैं, बैटरी बीतने से पहले सब से गुजर जाना है.

वैसे यह भी ताज्जुब की बात है कि आज फोन तो अच्छेखासे स्मार्ट हो रहे हैं और लगातार होते ही जा रहे हैं. सुबह जो फीचर थे, शाम तक कई फटीचर से हो जाते हैं. बावजूद बैटरी कतई बाबा आदमहव्वा के जमाने सी चल रही है. लगता है इस पर कोई काम ही नहीं हो रहा है. गोया कि सारा जोर तन साफ करने पर है, मन का मैल छांटने की फिक्र किसी को नहीं.

ऐसी बैटरी आदमी को दार्शनिक भी बना देती है. बेटा, जो है उसी से संतोष कर. यह  मान ले, बैटरी का कैरेक्टर नेताओं और उन के बयानों की तरह हो गया है. सुबह दिए, दोपहर को मुकरे, शाम तक कह देंगे, कौन सा बयान?

बैटरी सुबह चार्ज, दोपहर आतेआते पावरबैंक शरणागत. पावरबैंक भी कोई खास मदद नहीं कर पा रहे हैं. समय किस के पास है इत्ता. सबकुछ फास्ट चाहने वाली युवापीढ़ी के लिए यह भी धीमीगति के समाचारों की तरह है. यही हाल रहा, तो फ्यूचर में बैंकों से ज्यादा पावरबैंक खोलने पड़ेंगे. हर एकाध किलोमीटर पर होंगे, जहां से स्मार्टफोन वाले पावर लेंगे और अपनी आभासी दुनिया में मशगूल हो जाएंगे.

कभीकभी लगता है कि पूरा देश ही पावरबैंक है, जिस से हर कोई अपनेअपने हिसाब से चार्जिंग खींचने में लगा है. ऐसे बैंकों की खास टैगलाइन हो सकती है, ‘चलेगा फोन, बढ़ेगा देश.’ नारों के जरिए देश बहुत बढ़ जाया करते हैं.

देश भले ही गड्ढे में चला जाए, मगर हमारा फोन चलते रहना चाहिए. इसी फिक्र में हर व्यक्ति बैटरी सहेजने के मूड में और पावर सेविंग मोड में है. उन सब फीचर्स को फौलो कर रहा है जहां बैटरी की बचत हो सकती है. इतनी सेविंग तो लाइफ की भी नहीं होती. जिंदगी रहे न रहे, बस अंतिम समय तक बैटरी बची रहे दोस्तों.

चाह ऐसी है कि चाहे हाईटैक किस्म के प्लेन, डब्बे, रक्षा उपकरण, सिलेबस, स्कूल, कालेज, यूनिवर्सिटी, गवर्नमैंट इत्यादि भले मत बनाओ, चाहो तो डैवलपमैंट को भी एक बार पोस्टपौंड कर दो, भले छीन लो सारे रोजगार, लेकिन प्लीज बैटरी का कोई स्थायी इंतजाम कर दो.

‘बाबा, बैटरी को ले कर बहुत परेशान हूं, यह ज्यादा देर नहीं चलती, कोई समाधान बताइए?’

दुनिया में हर समस्या का समाधान बताने वाले बाबा लोग भी बैटरी के नाम पर बगलें झांकने लगेंगे, ‘बेटा, बैटरी तो हमारी भी नहीं चल पा रही, जो मिली है, उसी से काम चला. यों समझ ले जीवन की तरह यह भी क्षणभंगुर है.’

पब्लिक के हाल देख कर सरकारें आगे इस दिशा में बढ़ जाएं, तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. सरकारों को चाहिए ऐसी ही पब्लिक, जो भेड़ों की तरह सिर दिनरात स्मार्टफोन की स्क्रीन में धंसाए रहे. ऊपर उठाए, तब तक 5 साल मजे से बीत जाएं.

हो सकता है, भविष्य में चुनाव बैटरी आधारित ही हो जाएं. घोषणापत्रों में शुमार हो जाए, हम देंगे मुफ्त बैटरी. एक दल लोक लुभावन घोषणा करेगा. दूसरा कूद पड़ेगा ‘जी, हम देंगे बैटरी का बाप बैटरा. भले हर हाथ को काम न दे पाएं सरकारें, मगर हर हाथ बैटरी जरूर देने लगेंगी.’

घरघर चार्जिंग की सप्लाई भी दे सकती हैं. फिर प्रैशर कुकर, साडि़यां, बरतन, चावल, टीवी मुफ्त देने का वादा करने वाले दल सूची में स्मार्टफोन भी जोड़ लेंगे.

‘अजी, उन को छोडि़ए, हम ऐसी बैटरी बनाएंगे, जिसे चार्ज करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. हमारी बैटरी पर मुहर लगाइए और चौबीस घंटे स्मार्ट रहिए, इस स्मार्टफोन ने लोगों को स्मार्टली बिना काम ही बिजी कर दिया.

घर, दफ्तर, सार्वजनिक स्थलों से बस, ट्रेन, प्लेन में देखिए. सफर शुरू होते ही सब हरकत में आते हैं और स्मार्ट फोन में बिजी हो जाते हैं. बगल में कोई बम भी फिट कर जाए, तो पता तभी चलेगा, जब वह फट जाएगा. तब भी शायद होश में न आएं सब से पहले स्मार्ट फोन संभालेंगे, फिर बैटरी चैक करेंगे. सैल्फी विद बौंब या लाइव हो जाएंगे आफ्टर बौंब.

Love Story In Hindi : कैसा यह प्यार है – दादी मां ने अपने पोते को क्या समझाया

Love Story In Hindi : बात उन दिनों की है, जब हमारी शादी के 2 साल हो गए थे और हम पतिपत्नी दोनों आपस में लड़ते बहुत थे। वह हमें उकसाती बहुत थी और मैं बात को खींचता बहुत था। हालांकि हम दोनों एकदूसरे को बहुत प्यार करते थे और एकदूसरे का बहुत खयाल भी रखते थे। इसी वजह से हमारी आपस में बनती बहुत थी। लेकिन सारा दिन हमलोग लड़ते ही रहते थे और एकदूसरे की टांग खींचते ही रहते थे।

लोगों को हमारे प्यार का पता नहीं, बस हमारे बीच जो झगङे होते थे उसी का पता है। लेकिन कहते हैं न कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते, वही हाल हुआ हमारे प्यार का और हम पकड़े गए।

एक दिन की बात है। मैं सुबह बहुत लेट से उठा था और मुझे औफिस जाना था। मैं जल्दीजल्दी तैयार हुआ। इधर मेरी पत्नी डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगाई हुई थी और मुझे खाने पर बुला रही थी। मैं ने कहा कि आज बहुत लेट हो गया है, आज नाश्ता नहीं कर पाऊंगा और दोपहर का लंच भी मत देना। आज समय नहीं मिलेगा खाने का। इतना सुनते ही मेरी पत्नी झल्लाने लगी और बोलने लगी कि आप की तो रोज की आदत है ऐसा करने की। कब सवेरे उठते ही ठीक से नाश्ता करते हो और आराम से औफिस जाते हो। हमेशा हड़बड़ी रहती है तुम्हें। मैं रोज सबेरे उठ कर आप के लिए नाश्ता बनाती हूं, लंच तैयार करती हूं। फिर नहाधो कर आप के लिए नाश्ता परोसती हूं।

मेरी पत्नी हमेशा यही करती थी। मुझे खिला कर ही वह खाती थी और तभी उस के दिल को सुकून मिलता था। लेकिन आज मेरे पास वक्त बहुत कम था, इसलिए मैं ने साफ मना कर दिया। इस पर वह बोली,”मैं कुछ नहीं सुनती। रोजरोज बस एक ही बहाना। अब से मैं सवेरे उठूंगी नहीं और न ही आप के लिए कुछ काम करूंगी,” इतना सुनते ही मेरे भी कान खड़े हो गए और मैं भी झल्ला उठा,”कौन बोलता है तुम्हें मेरे लिए सवेरे उठने… जाओ आराम करो और अब से मेरे लिए कोई काम मत करना। मेरी चिंता करने की जरूरत नहीं है। मैं औफिस जा रहा हूं, मेरे बदले तुम सारा खाना खा लेना।”

वह और गुस्सा गई,”मुझे तो आप से कोई बात ही नहीं करनी।” मैं औफिस को निकल गया और उधर वह रोरो कर अपना हाल बुरा किए हुए थी। कुछ खा पी नहीं सकी, जिस के कारण बीपी लो हो गया और चक्कर आने की वजह से वह गिर गई। परिवार वाले ने उसे उठा कर बिस्तर पर सुला दिया और आराम करने को कहा।

शाम का समय था और औफिस में छुट्टी होने का भी समय था कि तभी मेरे छोटे भाई का फोन आया,”भैया, भाभी की बहुत तबीयत खराब है,” इतना सुनते ही मैं दौड़तेभागते घर पहुंचा। पत्नी बैड पर लेटी थी। मैं ने कहा,”एक तो लड़ती भी हो मुझ से, दूसरा परेशान भी करती हो। खाने ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था, जो अभी तक कुछ नहीं खाई…” मैं उस के करीब गया और उसे उठाया,”चलो कुछ खा लो तभी तुम्हारी तबीयत ठीक होगी फिर दवा दे दूंगा।”

वह बोली,”मैं कुछ नहीं खाऊंगी जब तक आप कुछ नहीं खाते।”

मैं बोला,” मैं खा चुका हूं…”

वह बोली,” चेहरे का रंग बता रहा है कि आप ने सुबह से ही कुछ नहीं खाया।”

मैं बोला,”हां, बस 1 गिलास जूस पीया है।”

वह बोली,”जब तक आप मेरी बात नहीं मानेंगे तब तक मैं कुछ नहीं खाऊंगी।”

“कौन सी तुम्हारी बात है, जो मैं नहीं मानता?”

“यही कि आप सवेरे उठेंगे और ठीक से नाश्ता करेंगे। दोपहर का लंच भी ले कर जाएंगे।”

मैं बोला,”ठीक है, वादा रहा। मैं भी तुम से एक बात आज बोलता हूं कि आज के बाद तुम कभी भी रोरो कर अपनी तबीयत नहीं खराब करोगी और खाना समय पर बनाओगी,” मैं ने उस के आंसू पोछे और किचन से ला कर उसे खाना खिलाया। कभी वह मुझे खिलाती तो कभी मैं। अभी हम दोनों करीब ही आ रहे थे कि तभी हमारी चोरी पकड़ी गई और मेरे छोटे भाई ने गा कर हमारी पोल खोल दी,”कैसा यह प्यार है… कैसा खुमार है…”

परदे के पीछे से वह हमारी सारी बातें सुन रहा था। वह बोला,”वाह भैया, परिवार और समाज को दिखाते कुछ और करते कुछ और हो।”

तब तक घर के सभी लोग आ गए और हमें देख कर हंसने लगे। मैं शरमाते हुए बोला,”मैं तो इसे बस समझा रहा था…”

दादीमां मेरे कान पकड़ते हुए बोलीं,”मुझे समझाएगा.. मुझे सब पता है। अरे बेटा, 50 साल हो गए हमारी शादी को, इसलिए पता है कि पतिपत्नी का प्यार क्या होता है…पति और पत्नी एकदूसरे के पूरक और जरूरत होते हैं, क्योंकि वे सच्चे जीवनसाथी होते हैं।”

भाई ने गाना चला दिया,”कैसा यह प्यार है, कैसा खुमार है…”

लेखिका : रीना सोनालिका

Kahani In Hindi : सावधान – बैंक मैनेजर ने बताई एटीएम कार्ड ब्लौक होने की बात

Kahani In Hindi : दोपहर का समय था. मैं बरामदे में बैठ कर अखबार पढ़ रहा था. अचानक मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी.

मेरा ध्यान अखबार से हट कर मोबाइल फोन पर गया. मोबाइल फोन उठा कर देखा तो कोई अनजाना नंबर था.

स्विच औन करते ही उधर से आवाज आई, ‘हैलो… सर, क्या आप राकेशजी बोल रहे हैं?’

‘‘जी हां, मैं राकेश बोल रहा हूं?’’ अनजानी आवाज से मेरे नाम के संबोधन से मैं हैरान रह गया.

‘देखिए, मैं आरबीआई, भोपाल से बोल रहा हूं.’

‘‘आरबीआई, भोपाल से?’’ मैं ने हैरानी से पूछा.

‘जी हां, ठीक सुना है आप ने. मैं मैनेजर बोल रहा हूं.’

‘‘ओह सर… कहिए क्या बात है? आप को मेरा नाम और नंबर कहां से मिला?’’ मैं ने उत्सुकतावश पूछा.

‘आप का सवाल ठीक है. देखिए, बैंक मैनेजमैंट हर ग्राहक की पूरी जानकारी रखता है. आप चिंता न करें. आप के फायदे में जरूरी जानकारी देना हमारा फर्ज है.’

‘‘जी फरमाइए, क्या बात है?’’ मैं ने उन से पूछा.

‘जरूरी बात यह है कि क्या आप के पास एटीएम कार्ड है?’

‘‘जी, बिलकुल है,’’ मेरी उत्सुकता बढ़ने लगी.

‘आप का एटीएम कार्ड तकनीकी गड़बड़ी के चलते ब्लौक हो गया है.’

‘‘कौन से बैंक का एटीएम कार्ड ब्लौक हुआ है आप का?’’

‘आप के पास कितने एटीएम कार्ड हैं?’ बैंक मैनेजर के इस सवाल पर मेरे कान खड़े हो गए. मैं समझ गया कि कोई जालसाज अपना जाल फैला रहा है, फिर भी मैं अनजान बना रहा और बात आगे बढ़ाई, ‘‘सर, मेरे पास 4 बैंकों के एटीएम कार्ड हैं.’’

‘आप का एसबीआई का एटीएम कार्ड ब्लौक हो चुका है.’

‘‘मुझे इस के लिए क्या करना होगा?’’ मैं ने अपनी चिंता जाहिर करते हुए पूछा.

अब मुझे पूरा यकीन हो गया था कि यह कोई जालसाज है. मेरा दिमाग तेजी से काम करने लगा. एसबीआई के इस एटीएम से मैं एक घंटे पहले रुपए निकाल कर लाया था. मैं जानता था कि इस जालसाज का मकसद क्या है.

उस आदमी ने फोन पर कहा, ‘आप चिंता मत कीजिए, बस आप को इतना करना है कि एटीएम कार्ड के 16 डिजिट का नंबर और पासवर्ड बताना होगा.

फिर आप खाताधारी बैंक से अपना नया एटीएम कार्ड ले सकते हैं. बैंक को कार्ड भिजवाने का इंतजाम हम करेंगे…’

‘‘ठीक है, आप 15 मिनट बाद फिर बात करें. मेरा कार्ड अलमारी में रखा है. निकाल कर नंबर बताता हूं…’’

‘‘क्या बात है दादाजी?’’ मेरा पोता आदित्य, जो लैपटौप पर कोई काम कर था, उस ने हमारी हो रही बातचीत शायद सुन ली थी. वह अपना काम छोड़ मेरे पास आया.

‘‘बेटा, बैंक खाते में सेंध लगाने वाले गिरोह के किसी आदमी से बात हो रही है. तुम अभी शांत रहो. 15 मिनट बाद वह फिर फोन करेगा,’’ मैं ने कहा.

इसी बीच हम दोनों ने उसे सबक सिखाने की योजना बनाई कि उस ठग से क्या कहना है, किस तरीके से कहना है.

ठीक 15 मिनट बाद उसी नंबर से मोबाइल फोन की घंटी बजी. हम सावधान हो गए. एटीएम कार्ड निकाल कर मैं ने अपने पास रख लिया था.

मैं ने मोबाइल उठा कर स्विच औन कर दिया, उधर से आवाज आई, ‘सर, आप ने अपना कार्ड निकाल लिया है?’

‘‘जी हां… मेरे हाथ में है.’’

इसी बीच आदित्य ने औडियो रेकौर्डर औन कर दिया. उधर से आवाज आई, ‘अब आप ऐसा कीजिए, कार्ड का 16 डिजिट का नंबर व पासवर्ड बताइए. मैं नोट करता जाऊंगा…

‘और यह भी बताइए कि आप के इस खाते में जमा रकम कितनी है?’

आदित्य ने 5 उंगलियों का इशारा किया.

‘‘ज्यादा नहीं, बस 5 लाख रुपए हैं,’’ मैं ने बताया.

‘तब तो ठीक है… प्लीज, अब आप अपना कार्ड नंबर व पासवर्ड बता दीजिए. एक हफ्ते में आप का नया एटीएम कार्ड आप के बैंक में आ जाएगा,’ उस आदमी ने संतुष्ट हो कर कहा.

आदित्य ने अब मोबाइल फोन मेरे हाथ से ले लिया और नंबर मनगंढ़त बता दिए. इसी तरह पासवर्ड भी गलत बता दिया.

उस आदमी ने बताए गए नंबर नोट कर लिए.

उधर से आवाज आई, ‘सहयोग के लिए धन्यवाद…’ और फोन स्विच औफ हो गया.

आधा घंटे बाद फिर उसी नंबर से घंटी बजी. हम सावधान हो गए.

स्विच औन करते ही उधर से आवाज आई, ‘हैलो सर, आप ने शायद किसी दूसरे एटीएम कार्ड का नंबर बता दिया है. यह आप के एसबीआई कार्ड का पासवर्ड नहीं है.’

‘‘अरे… साहब, मान गए आप को… आप ने आधा घंटे में ही यह पता लगा लिया कि हम ने जो एटीएम का नंबर और पासवर्ड बताया है, वह गलत है.

‘‘देखो मिस्टर, आप जो भी हों, हम आप की बिरादरी के ही हैं,’’ आदित्य ने तंज कसते हुए कहा.

‘क्या मतलब है आप का…? क्या कहना चाहते हैं आप?’ वह आदमी बौखला कर बोला.

‘‘मतलब यह है कि हम भी वही काम करते हैं, जो आप कर रहे हैं… हैं न हम एक ही बिरादरी के…’’ आदित्य ने शांत लहजे में कहा.

‘यानी कि आप भी… कहां रहते हैं आप?’ उस आदमी की आवाज में अब भी झल्लाहट थी.

‘‘जी… मैं शाजापुर में रहता हूं… कभी मिलिए दोदो बातें हो जाएंगी…

‘‘मैं कार्ड नंबर और पासवर्ड ले कर क्लोन कार्ड बना लेता हूं… आप जो

कर रहे हैं, वह मुझे भी याद है… अगर मिलो तो अपना धंधा पार्टनरशिप में कर लेते हैं.

‘‘अब आप ऐसा कीजिए… मेरे लिए आप अपना समय बरबाद न करें… कोई और बकरा हलाल करने के लिए ढूंढ़ लीजिए…’’

आखिर में आदित्य ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘आप के नंबर की औडियो रेकौर्डिंग कर ली गई है. अब आप बताइए कि आगे करना क्या है?’’

इतना सुनते ही उस आदमी ने अपना मोबाइल स्विच औफ कर दिया.

आदित्य और मेरे चेहरे पर जीत की मुसकान तैर गई.

Story In Hindi : संतुलित सहृदया – क्या समीरा की वजह से टूटी थी वो शादी

Story In Hindi : समीरा की पहली ऐनिमेशन फिल्म के पुरस्कृत होने पर उसे बधाई देने उस के सहपाठी अनंत के साथ उस का दोस्त मयंक भी आया था. ‘‘मयंक सुबह ही मुंबई से आया है… मेरे पास ठहरा है,’’ अनंत ने कहा, ‘‘तुम्हें मुबारक देने आना जरूरी था, लेकिन मयंक को अकेला कैसे छोड़ता, इसलिए साथ ले आया.’’

‘‘बहुत अच्छा किया. मुझे भी इन से मिल कर अच्छा लगा,’’ समीरा मयंक की ओर मुड़ी, ‘‘वैसे दिल्ली किस सिलसिले में आना हुआ?’’ ‘‘नौकरी की तलाश में…’’

‘‘बेहतर नौकरी की तलाश कह यार,’’ अनंत ने बात काटी, ‘‘यह उस लोकप्रिय टीवी चैनल में प्रोग्राम प्लैनर है, जिस के सीरियल वर्षों तक चलते हैं और भाई को कुछ नया करने को नहीं मिलता. इसीलिए चैनल बदल रहा है.’’ ‘‘अच्छा तो आप भी हमारी ही बिरादरी के हैं.’’ ‘‘जी हां, तभी तो अनंत से दोस्ती है.’’

‘‘तुम्हारे से भी हो सकती है अगर तुम इसे भी इनाम मिलने की खुशी की दावत में शामिल कर लो,’’ अनंत ने कहा, ‘‘और मुझे तो दावत आज ही चाहिए समीरा.’’ ‘‘जरूर. पहले घर पर ही सीता काकी के बनाए गाजर के हलवे से मुंह मीठा करो, फिर खाना खाने बाहर चलेंगे,’’ समीरा चहकी.

फिर कुछ ही देर में एक प्रौढ़ महिला चाय और नाश्ता ले आई. ‘‘मजा आ गया,’’ मयंक ने नाश्ता करते हुए कहा, ‘‘बाहर कहीं खाने जाने के बजाय घर पर ही क्यों न खाना खाएं अनंत? भई मैं तो रोजरोज बाहर खाना खा कर आजिज आ चुका हूं.’’

‘‘अगर समीरा को खिलाने में परेशानी न हो तो मैं भी बाहर के बजाय घर पर ही अरहर की दाल और चावल खाना पसंद करूंगा.’’ ‘‘बिटिया को काहे की परेशानी? मैं हूं न सब बनाने को,’’ सीता काकी बोली, ‘‘दालचावल के साथ और क्या बनाऊं?’’

‘‘भुनवा आलूप्याज का रायता और रोटी,’’ कह कर मयंक समीरा की ओर मुड़ा, ‘‘सीता काकी तुम्हारे साथ ही रहती हैं समीरा?’’ ‘‘हां, काकी के रहने से घर वाले भी निश्चिंत हो गए हैं.’’

‘‘यानी अब शादी का तकाजा नहीं करते?’’ मयंक ने चुटकी ली. ‘‘उस का अभी सवाल ही नहीं उठता… मेरे बड़े भाई की शादी के बाद मेरी तरफ ध्यान देंगे… भैया सिर्फ मेरी पसंद की लड़की से शादी करेंगे और फिलहाल तो मैं अपने कैरियर में पैर जमाने में इतनी व्यस्त हूं कि भैया के लिए लड़की पसंद करने की फुरसत ही नहीं है.’’

‘‘भैया तुम्हारी पसंद की लड़की ही क्यों चाहते हैं?’’ अनंत ने पूछा. ‘‘क्योंकि मम्मीपापा के बाद हम दोनों भाईबहन ही एकदूसरे का सहारा होंगे, इसलिए हमारे जीवनसाथी हमारी पसंद के होने चाहिए. भैया ने किताबीकीड़ा होने की वजह से कभी लड़कियों में दिलचस्पी नहीं ली, मगर अब पत्नी ऐसी चाहते हैं, जो घरपरिवार के साथसाथ उन के बिजनैस का भी दायित्व संभाले और सोसायटी में उभरते उद्योगपति की सुंदर, स्मार्ट पत्नी भी लगे.’’

‘‘लगता है आप की फैमिली भी मेरे परिवार की ही तरह सोचती है,’’ मयंक ने कहा, ‘‘बड़े भैया के लिए लड़की दीदी और मैं पसंद करेंगे और मेरी बीवी सिर्फ भाभी, क्योंकि परिवार की संयुक्तता तो देवरानीजेठानी के तालमेल पर ही निर्भर करती है.’’ ‘‘तेरा तो यार दिनरात लड़कियों से पाला पड़ता है… कोई पसंद आ गई तो क्या करेगा?’’ अनंत ने चुटकी ली.

‘‘तभी तो लड़कियों से हायबाय तक बहुत संभल कर करता हूं… खड़ूस, नकचढ़ा, अकड़ू न जाने कितने उपनाम हैं मेरे… भाभी आ जाएं फिर आंखों से मांबहन का चश्मा उतार कर आसपास देखूंगा कि कोई भाभी की कसौटी पर उतरने लायक है या नहीं,’’ मयंक हंसा. दोनों दोस्तों ने चटखारे लेले कर खाना

खाया और फिर मयंक ने कहा, ‘‘पेट तो भर गया काकी, लेकिन आंखें नहीं भरीं… कल वापस मुंबई जा रहा हूं, लेकिन जब भी आऊंगा खाना यहीं खाऊंगा.’’ कुछ सप्ताह के बाद अनंत ने बताया कि मयंक रविवार सुबह दिल्ली आ रहा है.

‘‘उफ, शुक्रवार शाम को मैं आगरा जा रही हूं,’’ समीरा के मुंह से बेखास्ता निकला, ‘‘भैया के लिए एक रिश्ता आया है… लड़की भैया के लिए उपयुक्त है, लेकिन रिश्ता पक्का मेरे पसंद करने के बाद होगा. इसलिए मेरा जाना जरूरी है.’’ ‘‘वापस कब आओगी?’’

‘‘रविवार की रात को. अगर किसी रस्मवस्म के लिए रुकना पड़ा तो सोमवार को.’’ ‘‘रस्म दिन में करवा कर रविवार की शाम को ही वापस आ जाओ,’’ अनंत ने आग्रह किया, ‘‘मयंक तुम्हारे न होने पर सोचेगा कि मैं ने तुम्हें उस का संदेशा नहीं दिया.’’

‘‘कौन सा संदेशा?’’ समीरा के दिल की धड़कनें तेज हो गई. ‘‘होमली फील करने के लिए शाम तुम्हारे घर गुजारेगा.’’

थोड़ी सी मायूसी तो हुई, मगर फिर सोचा कि अनंत से और क्या कहलवाता? इतना इशारा तो कर ही दिया कि मेरा घर अपना सा लगता है. ‘‘मैं रविवार की शाम तक जरूर आ जाऊंगी,’’ समीरा ने कह तो दिया, मगर वह जानती थी कि अगर शादी तय हो गई तो जल्दी लौटना नहीं हो सकेगा. वह रास्ते भर इसी बारे में सोचती रही.

‘‘सुनील को मधुलिका का विवरण और फोटो इतना अच्छा लगा कि उस ने और जगह मना करवा दिया. कहने लगा कि मेरी पसंद समीरा को भी जरूर पसंद आएगी,’’ मैं ने बताया तभी मधुलिका के मामा जो रिश्ता करवा रहे थे का फोन आया, ‘‘देखिए, कृपाशंकरजी आप के इस आश्वासन पर कि आज आप की बेटी आ जाएगी मैं ने देवराज जीजाजी को सपरिवार बुला लिया है…’’ ‘‘मेरी बेटी आ गई है, राघवजी,’’ कृपाशंकर ने बात काटी, ‘‘शाम को मिल लें.’’

‘‘दोपहर को लंच पर आ जाएं ताकि शाम तक तय हो जाए,’’ राघव ने कहा, ‘‘असल में एक अजीब सी शर्त है मधु की शादी के लिए… उसे भरीपूरी क्लोजनिट फैमिली चाहिए. ऐसे ही एक और परिवार का प्रस्ताव भी है जीजाजी के पास… अगर आप के यहां बात नहीं बनती तो जीजाजी उन लोगों से तुरंत मिलना चाहते हैं. इसीलिए जल्दी में हैं.’’ ‘‘देखिए, हम ने तो तसवीर पसंद कर के ही मिलने का फैसला किया है,’’ स्पष्टवादी पापा ने कहा, ‘‘समीरा की व्यवस्तता के कारण मिलने में देर हो गई. खैर, लंच पर मिलते हैं.’’

समीरा ने राहत की सांस ली. दूसरी पार्टी भी जल्दी में है, इसलिए रोके की रस्म तो आज ही हो जानी चाहिए ताकि काम का बहाना बना कर वह कल ही दिल्ली लौट आए. मधुलिका तसवीर से भी अधिक आकर्षक थी. तटस्थ लगने की कोशिश करने के बावजूद सुनील की मुखमुद्रा से तो लग रहा था कि वह उस पर मर मिटा है.

मधुलिका का छोटा भाई मोहित समीरा से बड़ी दिलचस्पी से ऐनिमेशन फोटोग्राफी के बारे में पूछ रहा था. ‘‘लगता है फोटोग्राफी का बहुत शौक है तुम्हें?’’ समीरा ने पूछा.

‘‘हमारे यहां सभी को फोटोग्राफी का शौक है. मधु दीदी से तो पापा ने एमबीए करने के बजाय फोटोग्राफी का प्रोफैशनल कोर्स करने को कहा भी था.’’ ‘‘फिर आप ने किया क्यों नहीं? समीरा ने मधुलिका से पूछा.’’

‘‘उस में एक तरह से यायावर बनना पड़ता है और मुझे भरेपूरे परिवार में रहना पसंद है.’’ ‘‘लेकिन परिवार में रहते हुए तो आप की अपनी प्रतिभा का पूर्ण विकास नहीं हो सकता?’’

‘‘अकेले रहते हुए या कहिए आज की न्यूक्लीयर फैमिली में केवल व्यावसायिक पहलू को ही प्राथमिकता मिलती है. दूसरी सभी योग्यताएं या शौक तो समय की कमी या समझौतों की बलि चढ़ जाते हैं. दहेज या रूढि़वादी वाले मामलों को छोड़ दें तो संयुक्त परिवारों में रहने वालों के न्यूक्लीयर फैमिलीज में अधिक तलाक होते हैं,’’ मधुलिका मुसकराई, ‘‘वैसे अगर आप में प्रतिभा है और आप को संतुलित वातावरण मिलता है तो फिर आप की प्रतिभा को कहीं भी निखरने में देर नहीं लगेगी.’’ ‘‘फैमिली और प्रोफैशनल लाइफ क्लैश

नहीं करेंगी?’’ ‘‘अगर आप दोनों में तालमेल बना कर रखें तो कभी नहीं. मगर यह तभी हो सकता है जब आप को दोनों से प्यार हो.’’

‘‘लगता है खुश रखोगी मेरे भैया को,’’ समीरा मुसकरा कर बोली. ‘‘मैं किसी व्यक्ति विशेष की खुशी में नहीं पूरे परिवार की खुशी में यकीन रखती हूं,’’ मधुलिका ने बड़ी बेबाकी से कहा.

समीरा कहां हार मानने वाली थी. बोली, ‘‘वह व्यक्ति विशेष भी परिवार के खुश होने पर ही खुश होगा…’’ ‘‘और परिवार व्यक्ति विशेष के खुश होने पर,’’ मधुलिका ने बात काटी, ‘‘दोनों एकदूसरे के पूरक जो हैं.’’

तभी खाने का बुलावा आ गया. खाना बढि़या था. सभी ने बहुत तारीफ करी. ‘‘खाने की नहीं, हमारी बिटिया की बात करिए वह पसंद आई या नहीं?’’ राघव ने पूछा.

‘‘उसे तो नपसंद करने का सवाल ही नहीं उठता अंकल,’’ समीरा चहकी. ‘‘जी हां, आप की बिटिया अब हमारी है देवराजजी,’’ कृपाशंकर ने जोड़ा.

‘‘तो फिर रोके की रस्म कर दें?’’ ‘‘कल शाम को करेंगे खूब धूमधाम से… मैं ने इवेंट मैनेजमैंट वालों से बात की हुई है. अभी फोन पर कह देता हूं कि शानदार समारोह का आयोजन शुरू कर दें हमारे बगीचे में… आप लोग भी अपने परिचितों को आमंत्रित कर लीजिए राघवजी… एक ही बेटा है हमारा. अत: इस की शादी की छोटी से छोटी रस्म भी बड़े धूमधड़ाके से होगी.’’

समीरा चौंक पड़ी कि तो फिर वह कल सुबह दिल्ली कैसे जाएगी? कल शाम को तो उसे जैसे भी हो दिल्ली में रहना ही है. ‘‘यह रोके की रस्म इतनी हड़बड़ाहट में करने की क्या जरूरत है पापा? पहले लड़के और लड़की को 1-2 बार आपस में मिलने, बात करने दीजिए,’’ समीरा बोली, ‘‘फिर अगले सप्ताहांत इतमीनान से तैयारी कर के दावत और रोका करिएगा.’’

‘‘अगले सप्ताहांत तक हम यहां नहीं रुक सकते,’’ मधुलिका की मां बोलीं, ‘‘ये तो आज शाम को ही निकलना चाह रहे हैं, क्योंकि सोमवार को इन की जरूरी मीटिंग है और मोहित का प्रोजैक्ट प्रेजैंटेशन.’’ ‘‘तो शाम को निकल जाओ आंटी, मैं भी कल जा रही हूं. अगले सप्ताहांत हम सब फिर आ जाएंगे दावत और रस्म के लिए,’’ समीरा चहकी.

‘‘तो फिर तुम्हारे लड़केलड़की को अकेले मिलवाने के प्रस्ताव का क्या होगा?’’ राघव बोले. ‘‘लड़की को रोक लो अंकल और अगर यह नहीं हो सकता तो भैया को जयपुर घूमने भेज दो,’’ समीरा ने सुझाव दिया.

‘‘यह बढि़या रहेगा,’’ देवराज ने कहा, ‘‘हम तो आप को जयपुर बुलाना चाहते ही हैं अपने गरीबखाने पर.’’ ‘‘हम फिर कभी आएंगे देवराजजी… फिलहाल तो सुनील अकेला ही आएगा,’’ कृपाशंकर ने कहा.

‘‘मैं भी नहीं जा सकता पापा… अगले सप्ताह प्रदूषण नियंत्रण विभाग वाले फैक्टरी का निरीक्षण करने आ रहे हैं,’’ सुनील बोला. ‘‘ज्यादा भाव मत खाओ भैया… पापा हैं न संभाल लेंगे सब,’’ समीरा बोली.

‘‘नहीं समीरा, मुझे प्रदूषण नियंत्रण के बारे में कुछ भी मालूम नहीं है,’’ कृपाशंकर बोले. ‘‘भैया से समझ लेना पापा… अभी तो चलिए… इन लोगों को भी आज ही जयपुर के लिए निकलना है,’’ समीरा उठ खड़ी हुई, ‘‘अगले सप्ताह रोके की दावत पर मिलेंगे.’’

समीरा को लगा कि सुनील और मम्मी रोके की रस्म टलने से खुश नहीं हैं, लेकिन इस समय तो उसे केवल अपनी खुशी से मतलब था जो दिल्ली जा कर मयंक से मिलने पर ही मिलेगी.

रास्ते में ही मम्मीपापा दावत की रूपरेखा बनाने लगे जो घर पहुंचने तक बहस में बदल गई. दावत में गानेबजाने के आयोजन पर दोनों में मतभेद था. इस से पहले कि बहस झगड़े में बदलती फोन की घंटी बजी. सुनील बराबर के कमरे में फोन सुनने चला गया.

‘‘बांसुरी बनने से पहले ही बांस नहीं रहा, इसलिए आप लोग भी शांत हो जाएं. देवराजजी का फोन था, खेद प्रकट करने को कि मधुलिका का रिश्ता मुझ से नहीं करेंगे, सुनील ने सपाट स्वर में कहा.’’ ‘‘ऐसे कैसे नहीं करेंगे?’’ समीरा आवेश में चिल्लाई, ‘‘मैं पूछती हूं उन से वजह.’’

‘‘उन्होंने वजह बता दी है जो तुम सुन नहीं सकोगी.’’

‘‘क्यों नहीं सुन सकूंगी, बताओ तो?’’ ‘‘उन का कहना है कि हमारे घर में मम्मीपापा या मेरी नहीं सिर्फ तुम्हारी मरजी चलती है समीरा. बहन के इशारों पर चलने वाले वर को वह अपनी बेटी नहीं देंगे और आज जो हुआ है उसे देखते हुए उन का सोचना सही है,’’ सुनील का स्वर तल्ख हो गया.

‘‘तू ठीक कहता है, समीरा ही तो फैसले ले रही थी सब की बात काट कर,’’ मम्मी ने कहा. ‘‘अगर मेरे फैसले गलत थे तो आप सही फैसले ले लेतीं न उसी समय… एक तो सब कामधाम छोड़ कर यहां आओ और फिर बेकार के उलाहने सुनो,’’ समीरा मुंह बना कर अपने कमरे में चली गई.

कुछ देर के बाद मम्मी ने यह कह कर वातावरण हलका करना चाहा कि शादीब्याह संयोग से होते हैं, किसी के कहने या चाहने से नहीं. सुनील भी यथासंभव सामान्य व्यवहार करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन लग रहा था कि उसे गहरा आघात लगा है, जिस से उबरने में समय लगेगा. लेकिन समीरा खुश थी कि उसे अब दिल्ली जाने से कोई रोकेगा नहीं. दिल्ली लौटने पर उम्मीद से ज्यादा खुशी मिल गई. मयंक ने बताया कि उसे नौकरी मिल गई है. ‘‘जौइन कब करोगे?’’

‘‘कल गाड़ी और फ्लैट की चाबियां भी मिल जाएंगी, मगर अभी अनंत के पास ही रहूंगा… मुंबई से सामान लाने के बाद अपने फ्लैट में शिफ्ट करूंगा.’’ ‘‘फ्लैट है कहां?’’ समीरा ने उत्सुकता

से पूछा. ‘‘तुम्हारे पड़ोस यानी डिफैंस कालोनी में, लेकिन अगर दूर भी होता तो भी चलता, क्योंकि जब मिलना हो तो फासलों से कुछ फर्क नहीं पड़ता.’’

‘‘मिलने पर फर्क फासलों से नहीं फुरसत से पड़ता है यार,’’ अनंत बोला. ‘‘यह भी तू ठीक कहता है,’’ मयंक ने उसांस ले कर कहा, ‘‘क्योंकि जौइन करने से पहले ही चेतावनी मिल गई है कि किसी प्रोग्राम की ऐडवांस प्लैनिंग मत करना.’’

समीरा को अनंत का टोकना अच्छा नहीं लगा. ‘‘मगर बगैर ऐडवांस प्लैनिंग के फुरसत का मजा तो उठा सकते हैं?’’

‘‘दैट्स द स्पिरिट समीरा, वी आलवेज कैन,’’ मयंक फड़क कर बोला, ‘‘अनंत कह रहा था तुम अपने भैया के लिए लड़की देखने गई थीं.’’ समीरा सकपका गई. बोली, ‘‘मगर भैया फिलहाल शादी करने के मूड में ही नहीं हैं.’’

जाने से पहले मयंक ने कहा कि वह कल शाम को फोन करेगा, लेकिन उस का फोन 10 दिन बाद आया, ‘‘माफ करना, मैं जाने से पहले तुम्हें फोन नहीं कर सका. बौस ने राजस्थान में लोकेशन हंटिग का प्रोग्राम बना लिया और हम लोग अगली सुबह ही निकल गए,’’ मयंक ने बताया, ‘‘वहीं से घर चला गया, प्रियंक भैया की सगाई थी. फिर मुंबई से अपना सामान भी ले आया. अब अपने फ्लैट में हूं. शाम को आऊंगा तुम्हारे घर.’’

‘‘यह किस खुशी में?’’ समीरा ने पूछा. ‘‘प्रियंक भैया की सगाई और अपनी लाइन क्लीयर होने की खुशी में.’’

उस के बाद अकसर दोनों की मुलाकातें होने लगीं. फोन पर भी लंबीलंबी बातें होतीं, लेकिन शालीनता की परिधि में. कुछ महीने बाद मयंक भाई के विवाह के लिए गया तो समीरा को 1 सप्ताह काटना असहाय हो गया. वह भी आगरा चली गई. मयंक की याद या सुनील भैया का ठंडा व्यवहार और मां की अनमयंस्कता के कारण उसे घर में अच्छा नहीं लग रहा था. ‘‘भैया के लिए कोई लड़की नहीं देख

रहीं मां?’’ ‘‘देखूं तो तब जब सुनील शादी के लिए तैयार हो.’’

‘‘मैं करवाती हूं भैया को तैयार,’’ और फिर समीरा ने सुनील से बात करी. ‘‘मेरी बजाय तू अपनी शादी रचवा समीरा, फिर मैं अपनी शादी की सोचूंगा,’’ सुनील ने सपाट स्वर में कहा.

समीरा ने कहना तो चाहा कि सच भैया पर कह न पाई. ‘अब जब मयंक की लाइन भी क्लीयर हो गई है तो मैं ही अपना ब्याह रचा लेती हूं,’ समीरा सोचने लगी. मयंक के लौटने के बाद उस ने उसे बताया कि भैया उस की शादी के बाद ही शादी करेंगे. अत: अब घर वाले उस की शादी जल्दी करना चाहते हैं.

‘‘किस से?’’ ‘‘तुम चाहो तो तुम से भी हो सकती है.’’

‘‘तो करवाओ जल्दी से. मैं ने भाभी को तुम्हारे बारे में बता दिया है. उन का कहना है कि लड़की के यहां से प्रस्ताव भिजवाओ. सगाई, शादी मैं आननफानन में करवा दूंगी. भाभी बहुत ही समझदार, स्नेहमयी और सुलझी हुई हैं और मेरे खयाल में तुम भी वैसी ही हो. खूब पटेगी तुम दोनों में. लेकिन यह बात मैं स्वयं घर वालों को नहीं बता सकता. तुम्हारे घर से प्रस्ताव आने के बाद तो कह सकता हूं कि काम के सिलसिले में तुम से मिलता रहता हूं. तुम हमारे परिवार के लिए उपयुक्त हो,’’ मयंक बोला.

‘‘मैं भी स्वयं घर वालों से तुम्हारे घर प्रस्ताव भेजने को नहीं कह सकती, मगर फोन पर तुम्हारी बात सुनील भैया से करवा सकती हूं.’’

‘‘हां, करवा देना,’’ मयंक बोला. उस के बाद सब बहुत तेजी से हुआ. मोबाइल पर संपर्क, ईमेल से फोटो और विवरण और फिर मयंक के पिता जनक का फोन आया, ‘‘लड़कीलड़के की मुलाकात की जरूरत न सही, लेकिन मयंक की मां और भाभी का लड़की से मिलना तो जरूरी है. खासकर मयंक की भाभी का. देवरानीजेठानी में तालमेल होना आवश्यक है कृपाशंकरजी ताकि हमारे बाद हमारे बच्चे हिलमिल कर रहें.’’

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं. आगरा या दिल्ली में आप का स्वागत है और अगर आप को आने में कोई परेशानी है, तो मैं सपरिवार पुणे आ जाता हूं.’’ ‘‘इतनी परेशानी उठाने की जरूरत नहीं है. मयंक की मां और भाभी दिल्ली जा रही हैं मयंक के पास. आप भी अपनी पत्नी को वहां भेज दीजिए. समीरा से मिलने के बाद अगर मेरी बड़ी बहू उसे पसंद कर लेगी तो मैं भी आ जाऊंगा और आप भी आ जाना.’’

कृपाशंकर ने यह बात समीरा को बताई. ‘‘मयंक की बेसब्री देख कर तो लग रहा था कि यह मिलनामिलाना महज एक औपचारिकता है. रिश्ता तो पक्का है, लेकिन उस के पिताश्री के अनुसार उन की बड़ी बहू की सहमति ही सर्वोच्च होगी. असलियत क्या है?’’

‘‘मयंक अपनी भाभी को मेरे बारे में बता चुका है और उन्होंने चट मंगनी पट शादी करवाने का आश्वासन दिया है,’’ समीरा ने शरमाते हुए कहा. ‘‘लेकिन किसी कारण अगर भाभी ने तुझे पसंद न किया तो मयंक क्या करेगा?’’

‘‘यह तो मयंक से पूछना पड़ेगा पापा.’’ ‘‘पूछने की क्या जरूरत है समीरा?’’ सुनील पहली बार बोला, ‘‘तू भी मधुलिका वाली हिम्मत दिखाना. भाभी के असहमत होने पर अपना प्यार ठुकराने वाले युवक से तू स्वयं ही रिश्ता तोड़ लेना,’’ सुनील तुरंत बोला.

समीरा चौंक पड़ी कि भैया अभी तक मधुलिका को भूले नहीं हैं. ‘‘सुनील ठीक कह रहा है. भाभी के आज्ञाकारी देवर से तो तेरी निभने से रही तो बेहतर रहेगा रिश्ता जुड़ने से पहले ही तोड़ ले,’’ मां ने कहा.

समीरा को उन का नकारात्मक रवैया अच्छा तो नहीं लगा लेकिन चुप ही रही. मां उस के साथ दिल्ली आ गई. शाम को मयंक मां और भाभी के साथ आने वाला था, इसलिए समीरा औफिस से जल्दी आ गई. मां मेहमानों के लिए नाश्ता लाने ड्राइवर के साथ बाजार चली गईं. तभी दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजे पर मधुलिका को देख कर समीरा चौंक पड़ी. वेशभूषा से लग रहा था कि उस की शादी हो चुकी है. ‘‘अचानक आने के लिए माफी चाहती हूं समीरा, लेकिन तुम से अकेले में मिलना जरूरी था. मैं मयंक की भाभी हूं.’’

‘‘अच्छा… आइए बैठिए,’’ समीरा समझ नहीं पा रही थी कि क्या कहे. ‘‘तुम ने रोके की रस्म रविवार को इसलिए नहीं होने दी थी कि उस रोज तुम्हें दिल्ली में मयंक से मिलना था?’’ मधुलिका ने बगैर किसी भूमिका के पूछा.

‘‘जी… हां मगर आप को कैसे मालूम?’’ समीरा हकलाई. ‘‘अटकल से,’’ मधुलिका हंसी, ‘‘मयंक ने विस्तार से तुम से पहली और अगली मुलाकात का समय व तारीख बताई थी. फिर जब तुम्हारी तसवीर देखी तो 2 और 2 जोड़ कर 44 बनाना मुश्किल नहीं था. ऐनी वे, ऐवरी थिंक इज फेयर इन लव ऐंड वार वैसे भी मुझे तो इस से फायदा ही हुआ है. पुणे तो खैर आगरा से बेहतर जगह है ही और प्रियंक की कंपनी भी बड़ी है, जिस में मेरी प्रतिभा और क्षमता का पूर्णतया विकास हो सकेगा. सुनील को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानती, इसलिए प्रियंक से उस की तुलना नहीं करूंगी, लेकिन प्रियंक और उस के परिवार के साथ मैं बेहद खुश हूं और इस का श्रेय तुम्हारे और मयंक के प्यार को देती हूं. मेरे दिल में तुम्हारे लिए कोई कड़वाहट नहीं है.’’

‘‘लेकिन मेरे भैया के दिल में तो मेरे लिए है,’’ समीरा ने रोंआसे स्वर में कहा और फिर सब बता दिया. ‘‘जैसी पत्नी तुम्हारे भैया चाहते हैं, वैसी ही एक सहेली है मेरी. तुम्हारी शादी में दोनों की मुलाकात करवा दूंगी…’’

‘‘लेकिन मेरी शादी होने देंगी आप मयंक से?’’ समीरा ने हैरानी से पूछा, ‘‘सब पर अपनी मरजी थोपने वाली लड़की को आप अपनी देवरानी बनाएंगी?’’

‘‘जरूर बनाऊंगी समीरा, क्योंकि मुझे मालूम है कि उस ने मनमरजी क्यों की थी और फिर मयंक भी यह विश्वास होने पर ही कि लड़की स्वर्था उस के परिवार के उपयुक्त है उस से शादी कर रहा है,’’ मधुलिका ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘जीवन में खुश रहना है समीरा तो बगैर किसी पूर्वाग्रह या कड़वी यादों के जीना सीखो. भूल जाओ तुम कभी मुझ से मिली थीं. तुम्हारी मम्मी कहां हैं उन से भी एक विनती करनी है.’’

‘‘मैं भला तुम्हारे लिए क्या कर सकती हूं?’’ मां का स्वर सुन कर दोनों चौंक पड़ीं. ‘‘तुम्हें आता देख मैं बाजार गई ही नहीं. दरवाजे के बाहर खड़ी तुम्हारी बातें सुन रही थी.’’

‘‘तो फिर तो आप समझ ही गई होंगी कि आप भी मुझ से अजनबी बन कर मिलेंगी और आप के परिवार के अन्य सदस्य भी… अपने मायके वालों को भी मैं आगरा वाली बात भूलने को कह दूंगी.’’ ‘‘ठीक है बिटिया. दुख तो रहेगा कि तुम मेरी बहू न बन सकीं, मगर यह तसल्ली भी रहेगी कि मेरी बेटी को ससुराल में तुम्हारे जैसी सहृदया जेठानी मिल रही है,’’ मां ने विह्वल स्वर में कहा.

‘‘सहृदया ही नहीं, सुलझी हुई और संतुलित भी हैं मम्मी,’’ समीरा धीरे से बोली. Story In Hindi

Hindi Stories Love : औप्शंस – क्या शैली को विराज का प्यार मिल पाया

Hindi Stories Love : कभी-कभी जिंदगी में वही शख्स आप को सब से ज्यादा दुख पहुंचाता है, जिसे आप सब से ज्यादा प्यार करते हैं. विसंगति यह कि आप उस से कुछ कह भी नहीं पाते, क्योंकि आप को हक ही नहीं उस से कुछ कहने का. जब तक रिश्ते को नाम न दिया जाए कोई किसी का क्या लगता है? कच्चे धागों सा प्यार का महल एक झटके में टूट कर बिखर जाता है.

‘इन बिखरे एहसासों की किरचों से जख्मी हुए दिल की उदास दहलीज के आसपास आप का मन भटकता रह जाता है. लमहे गुजरते जाते हैं पर दिल की कसक नहीं जाती.’ एक जगह पढ़ी ये पंक्तियां शैली के दिल को गहराई से छू गई थीं. आखिर ऐसे ही हालात का सामना उस ने भी तो किया था. किसी को चाहा पर उसी से कोई सवाल नहीं कर सकी. चुपचाप उसे किसी और के करीब जाता देखती रही.

‘‘हैलो आंटी, कहां गुम हैं आप? तैयार नहीं हुईं? हमें चलना है न मंडी हाउस, पेंटिंग प्रदर्शनी में मम्मी को चीयर अप करने?’’ सोनी बोली.

‘‘हां, बिलकुल. मैं आ रही हूं मेरी बच्ची’’, शैली हड़बड़ा कर उठती हुई बोली.

आज उस की प्रिय सहेली नेहा के जीवन का बेहद खास दिन था. आज वह पहली दफा वर्ल्ड क्लास पेंटिंग प्रदर्शन में हिस्सा ले रही थी.

हलके नीले रंग का सलवार सूट पहन कर वह तैयार हो गई.

अब तक सोनी स्कूटी निकाल चुकी थी. बोली, ‘‘आओ आंटी, बैठो.’’

वह सोनी के पीछे बैठ गई. स्कूटी हवा से बातें करती मिनटों में अपने नियत स्थान पर

पहुंच गई.

शैली बड़े प्रेम से सोनी को देखने लगी. स्कूटी किनारे लगाती सोनी उसे बहुत स्मार्ट और प्यारी लग रही थी.

सोनी उस की सहेली नेहा की बेटी थी. दिल में कसक लिए घर बसाने की इच्छा नहीं हुई थी शैली की. तभी तो आज तक वह तनहा जिंदगी जी रही थी. नेहा ने सदा उसे सपोर्ट किया था. नेहा तलाकशुदा थी, दोनों सहेलियां एकसाथ रहती थीं. नेहा का रिश्ता शादी के बाद टूटा था और शैली का रिश्ता तो जुड़ ही नहीं सका था.

पेंटिंग्स देखतेदेखते शैली नेहा के साथ काफी आगे निकल गई. नेहा की एक पेटिंग क्व1 लाख 70 हजार में बिकी तो शैली ने हंस कर कहा, ‘‘यार, मुझे तो इस पेटिंग में ऐसा कुछ भी खास नजर नहीं आ रहा.’’

‘‘वही तो बात है शैली,’’ नेहा मुसकराई, ‘‘किसी शख्स को कोई पेंटिंग अमूल्य नजर आती है तो किसी के लिए वही आड़ीतिरछी रेखाओं से ज्यादा कुछ नहीं होती. जरूरी है कला को समझने की नजरों का होना.’’

‘‘सच कहा नेहा. कुछ ऐसा ही आलम जज्बातों का भी होता है न. किसी के लिए जज्बातों के माने बहुत खास होते हैं तो कुछ के लिए इन का कोई मतलब ही नहीं होता. शायद जज्बातों को महसूस करने वाला दिल उन के पास होता ही नहीं है.’’

शैली की बात सुन कर नेहा गंभीर हो गई. वह समझ रही थी कि शैली के मन में कौन सा तूफान उमड़ रहा है. यह नेहा ही तो थी जिस ने सालों विराज के खयालों में खोई शैली को देखा था और दिल टूटने का गम सहती शैली को फिर से संभलने का हौसला भी दिया था. शैली ने आज तक अपने जज्बात केवल नेहा से ही तो शेयर किए थे.

नेहा ने शैली का कंधा थपथपाते हुए कहा, ‘‘नो शैली. उन यादों को फिर से खुद पर हावी न होने दो. बीता कल तकलीफ देता है. उसे कभी याद नहीं करना चाहिए.’’

‘‘कैसे याद न करूं नेहा जब उसी कल ने मेरे आज को बेस्वाद बना दिया. उसे

कैसे भूल सकती हूं मैं? जानती हूं कि जिस विराज की खातिर आज तक मैं सीने में इतना दर्द लिए जी रही हूं, वह दुनिया के किसी कोने में चैन की नींद सो रहा होगा, जिंदगी के सारे मजे ले रहा होगा.’’

‘‘तो फिर तू भी ले न मजे. किस ने मना किया है?’’

‘‘वही तो बात है नेहा. उस ने हमारे इस प्यार को महसूस कर के भी कोई अहमियत नहीं दी. शायद जज्बातों की कोई कद्र ही नहीं थी. मगर मैं ने उन जज्बातों की बिखरी किरचों को अब तक संभाले रखा है.’’

‘‘तेरा कुछ नहीं हो सकता शैली. ठंडी सांस लेती हुई नेहा बोली तो शैली मुसकरा पड़ी.

‘‘चल, अब तेरी शाम खराब नहीं होने दूंगी. अपनी प्रदर्शनी की सफलता का जश्न मना ले. आखिर रिश्तों और जज्बातों के परे भी कोई जिंदगी होती है न,’’ नेहा ने कहा.

शैली और नेहा बाहर आ गईं. सोनी किसी लड़के से बातें करने में मशगूल थी. मां को देख उस ने लड़के को अलविदा कहा और इन दोनों के पास लौट आई.

‘‘सोनी, यह कौन था?’’ नेहा ने पूछा.

‘‘ममा, यह मेरा फ्रैंड अंकित था.’’

‘‘खास फ्रैंड?’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं है ममा. बट हां, थोड़ा खास है,’’ कह कर वह हंस पड़ी.

तीनों ने रात का खाना बाहर ही खाया.

रात में सोते वक्त शैली फिर से पुरानी यादों में खो गई. एक समय था जब उस के सपनों में विराज ही विराज था. शालीन, समझदार और आकर्षक विराज पहली नजर में ही उसे भा गया था. मगर बाद में पता चला कि वह शादीशुदा है. शैली क्या करती? उस का मन था कि मानता ही नहीं था.

नेहा ने तब भी उसे टोका था, ‘‘यह गलत है शैली. शादीशुदा शख्स के बारे में तुम्हें कुछ सोचना ही नहीं चाहिए.’’

तब, शैली ने अपने तर्क रखे थे, ‘‘मैं क्या करूं नेहा? जो एहसास मैं ने उसे के लिए

महसूस किया है वह कभी किसी के लिए नहीं किया. मुझे उस के विवाहित होने से क्या वास्ता? मेरा रिश्ता तो भावनात्मक स्तर पर है दैहिक परिधि से परे.’’

‘‘पर यह गलत है शैली. एक दिन तू भी समझ जाएगी. आज के समय में कोई इस तरह के रिश्तों को नहीं मानता.’’

नेहा की यह बात आज शैली के जीवन की हकीकत थी. वह वाकई समझ गई थी. कितने अरसे तक दिलोदिमाग में विराज को सजाने के बाद शैली को महसूस हुआ था कि भले ही विराज को उस की भावनाओं का एहसास था, प्यार के सागर में उस ने भी शैली के साथ गोते लगाए थे, मगर वह इस रिश्ते में बंधने को कतई तैयार नहीं था. तभी तो बड़ी सहजता से वह किसी और के करीब होने लगा और ठगी सी शैली सब चुपचाप देखती रही, न वह कुछ बोल सकी और न ही सवाल कर सकी. बस उदासी के साए में गुम होती गई. अंत में उस ने वह औफिस भी छोड़ दिया.

आज इस बात को कई साल बीत चुके थे, मगर शैली के मन की कसक नहीं गई थी. ऐसा नहीं था कि शैली के पास विकल्पों की कमी थी. नए औफिस में पहली मुलाकात में ही उस का इमीडिएट बौस राजन उस से प्रभावित हो गया था. हमेशा उस की आंखें शैली का पीछा करतीं. आंखों में प्रशंसा और आमंत्रण के भाव होते पर शैली सब इगनोर कर अपने काम से काम रखने का प्रयास करती. कई बार शैली को लगा जैसे वह कुछ कहना चाहता है. मगर शैली की खामोशी देख ठिठक जाता. उधर शैली का कुलीग सुधाकर भी शैली को प्रभावित करने की कोशिश में लगा रहता था. मगर दिलफेंक और बड़बोला सुधाकर उसे कभी रास नहीं आया.

शैली के पड़ोस में रहने वाला आजाद जो विधुर था, मगर देखने में स्मार्ट लगता

था, अकसर शैली से मिलने के बहाने ढूंढ़ता. कभी भाई की बच्ची को साथ ले कर घर आ धमकता तो कभी औफिस तक लिफ्ट देने का आग्रह करता. एक दिन जब शैली उस के घर गईं तो संयोगवश वह अकेला था. उसे मौका मिल गया और उस ने शैली से अपनी भावनाओं का इजहार कर दिया.

शैली कुछ कह नहीं सकी. आजाद की कई बातें वैसे भी शैली को पसंद नहीं थीं. उस पर विराज को भूल कर आजाद को अपनाने का हौसला उस में बिलकुल भी नहीं था. मन का वह कोना अब भी किसी गैर को स्वीकारने को तैयार नहीं था. शैली कुछ बोली नहीं, मगर उस दिन के बाद वह आजाद के सामने पड़ने से बचने का प्रयास जरूर करने लगी.

वक्त ऐसे ही गुजरता जा रहा था. शैली कभी आकर्षण की

नजरों से तो कभी ललचाई नजरों से पीछा छुड़ाने का प्रयास करती रहती.

कुछ दिन बाद जब राजन ने उस से 2 दिनों के बिजनैस ट्रिप पर साथ चलने को कहा तो शैली असमंजस में पड़ गई. वैसे इनकार करने का मन वह पहले ही बना चुकी थी, पर सीनियर से साफ इनकार करते बनता नहीं. सो सोमवार तक का समय मांग लिया. वह जानती थी कि इस ट्रिप में भले ही कुछ लोग और होंगे, मगर राजन को उस के करीब आने का मौका मिल जाएगा. उसे डर था कि कहीं राजन ने भी आजाद की तरह उस का साथ मांग लिया तो वह क्या जवाब देगी?

देर रात तक शैली पुरानी बातें सोचती रही. फिर पानी पीने उठी तो देखा बाहर बालकनी में सोनी खड़ी किसी से मोबाइल पर बातें कर रही है. थोड़ी देर तक वह उसे बातें करता देखती रही, फिर आ कर सो गई.

अगली रात फिर शैली ने गौर किया कि

11 बजे के बाद सोनी कमरे से बाहर निकल कर बालकनी में खड़ी हो कर बातें करने लगी. शैली समझ रही थी कि ये बातें उसी खास फ्रैंड के साथ हो रही हैं.

सोनी के हावभाव और पहनावे में भी बदलाव आने लगा था. कपड़ों के मामले में वह काफी चूजी हो गई थी. अकसर मोबाइल पर लगी रहती. अकेली बैठी मुसकराती या गुनगुनाती रहती. शैली इस दौर से गुजर चुकी थी, इसलिए सब समझ रही थी.

एक दिन शाम को शैली ने देखा कि सोनी बहुत उदास सी घर लौटी और फिर कमरा बंद कर लिया. वह फोन पर किसी से जोरजोर से बातें कर रही थी. नेहा उस दिन रात में देर से घर लौटने वाली थी. शैली को बेचैनी होने लगी तो वह सोनी के कमरे में घुस गई, देखा सोनी उदास सी औंधे मुंह बैड पर पड़ी हुई है. प्यार से माथा सहलाते हुए शैली ने पूछा, ‘‘क्या हुआ डियर, परेशान हो क्या?’’

सोनी ने उठते हुए न में सिर हिलाया.

शैली ने देखा कि उस की आंखें आंसुओं से

भरी है. अत: शैली ने उसे सीने से लगाते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ, किसी फ्रैंड से झगड़ा हो गया है क्या?’’

सोनी ने हां में सिर हिलाया.

‘‘उसी खास फ्रैंड से?’’

‘‘हां. सिर्फ झगड़ा नहीं आंटी, हमारा ब्रेकअप भी हो गया है, फौरएवर. उस ने मुझे

डंप किया… कोई और उस की जिंदगी में आ गई और मैं…’’

‘‘आई नो बेटा, प्यार का अकसर ऐसा ही सिला मिलता है. अब तुझ से कैसे

कहूं कि उसे भूल जा? यह भी मुमकिन कहां

हो पाता है? यह कसक तो हमेशा के लिए रह जाती है.’’

‘‘नो वे आंटी, ऐसा नहीं हो सकता. उसे मेरे बजाय कोई और अच्छी लगने लगी है, तो क्या मेरे पास औप्शंस की कमी है? बस आंटी, आज के बाद मैं दोबारा उसे याद भी नहीं करूंगी. हिज चैप्टर हैज बीन क्लोज्ड इन माई लाइफ. आप ही बताओ आंटी, यदि वह मेरे बगैर रह सकता है तो क्या मैं किसी और के साथ खुश नहीं रह सकती?’’

शैली एकटक सोनी को देखती रही. अचानक लगा जैसे उसे अपने सवाल का

जवाब मिल गया है, मन की कशमकश समाप्त हो गई है.

अगले दिन उस का मन काफी हलका था. वह जिंदगी का एक बड़ा फैसला ले चुकी थी. उसे अब अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना था. औफिस पहुंचते ही राजन ने उसे बुलाया. शैली को जैसे इसी पल का इंतजार था.

राजन की आंखों में सवाल था. उस ने पूछा, ‘‘फिर क्या फैसला है तुम्हारा?’’

शैली ने सहजता से मुसकरा कर जवाब दिया, ‘‘हां, मैं चलूंगी.’’ Hindi Stories Love

Love Story In Hindi : कहां हो तुम – दोस्ती और प्यार के बीच में फंसे लड़के लड़की की कहानी

Love Story In Hindi : ऋतु अपने कालेज के गेट के बाहर निकली तो उस ने देखा बहुत तेज बारिश हो रही है. ‘ओ नो, अब मैं घर कैसे जाऊंगी?’ उस ने परेशान होते हुए अपनेआप से कहा. इतनी तेज बारिश में तो छाता भी नाकामयाब हो जाता है और ऊपर से यह तेज हवा व पानी की बौछारें जो उसे लगातार गीला कर रही थीं. सड़क पर इतने बड़ेबड़े गड्ढे थे कि संभलसंभल कर चलना पड़ रहा था. जरा सा चूके नहीं कि सड़क पर नीचे गिर जाओ. लाख संभालने की कोशिश करने पर भी हवा का आवेग छाते को बारबार उस के हाथों से छुड़ा ले जा रहा था. ऐसे में अगर औटोरिक्शा मिल जाता तो कितना अच्छा होता पर जितने भी औटोरिक्शा दिखे, सब सवारियों से लदे हुए थे.

उस ने एक ठंडी सी आह भरी और पैदल ही रवाना हो गई, उसे लगा जैसे मौसम ने उस के खिलाफ कोई साजिश रची हो. झुंझलाहट से भरी धीरेधीरे वह अपने घर की तरफ बढ़ने लगी कि अचानक किसी ने उस के आगे स्कूटर रोका. उस ने छाता हटा कर देखा तो यह पिनाकी था. ‘‘हैलो ऋतु, इतनी बारिश में कहां जा रही हो?’’

‘‘यार, कालेज से घर जा रही हूं और कहां जाऊंगी.’’ ‘‘इस तरह भीगते हुए क्यों जा रही है?’’

‘‘तू खुद भी तो भीग रहा है, देख.’’ ‘‘ओके, अब तुम छाते को बंद करो और जल्दी से मेरे स्कूटर पर बैठो, यह बारिश रुकने वाली नहीं, समझी.’’

ऋतु ने छाता बंद किया और किसी यंत्रचालित गुडि़या की तरह चुपचाप उस के स्कूटर पर बैठ गई. आज उसे पिनाकी बहुत भला लग रहा था, जैसे डूबते को कोई तिनका मिल गया हो. हालांकि दोनों भीगते हुए घर पहुंचे पर ऋतु खुश थी. घर पहुंची तो देखा मां ने चाय के साथ गरमागरम पकौड़े बनाए हैं. उन की खुशबू से ही वह खिंचती हुई सीधी रसोई में पहुंच गई और प्लेट में रखे पकौड़ों पर हाथ साफ करने लगी तो मां ने उस का हाथ बीच में ही रोक लिया और बोली, ‘‘न न ऋ तु, ऐसे नहीं, पहले हाथमुंह धो कर आ और अपने कपड़े देख, पूरे गीले हैं, जुकाम हो जाएगा, जा पहले कपड़े बदल ले. पापा और भैया बालकनी में बैठे हैं, तुम भी वहीं आ जाना.’’ ‘भूख के मारे तो मेरी जान निकली जा रही है और मां हैं कि…’ यह बुदबुदाती सी वह अपने कमरे में गई और जल्दी से फ्रैश हो कर अपने दोनों भाइयों के बीच आ कर बैठ गई. छोटे वाले मुकेश भैया ने उस के सिर पर चपत लगाते हुए कहा, ‘‘पगली, इतनी बारिश में भीगती हुई आई है, एक फोन कर दिया होता तो मैं तुझे लेने आ जाता.’’

‘‘हां भैया, मैं इतनी परेशान हुई और कोई औटोरिक्शा भी नहीं मिला, वह तो भला हो पिनाकी का जो मुझे आधे रास्ते में मिल गया वरना पता नहीं आज क्या होता.’’ इतना कह कर वह किसी भूखी शेरनी की तरह पकौड़ों पर टूट पड़ी. अब बारिश कुछ कम हो गई थी और ढलते हुए सूरज के साथ आकाश में रेनबो धीरेधीरे आकार ले रहा था. कितना मनोरम दृश्य था, बालकनी की दीवार पर हाथ रख कर मैं कुदरत के इस अद्भुत नजारे को निहार रही थी कि मां ने पकौड़े की प्लेट देते हुए कहा, ‘‘ले ऋ तु, ये मिसेज मुखर्जी को दे आ.’’ उस ने प्लेट पकड़ी और पड़ोस में पहुंच गई. घर के अंदर घुसते ही उसे हीक सी आने लगी, उस ने अपनी नाक सिकोड़ ली. उस की ऐसी मुखमुद्रा देख कर पिनाकी की हंसी छूट गई.

वह ठहाका लगाते हुए बोला, ‘‘भीगी बिल्ली की नाक तो देखो कैसी सिकुड़ गई है,’’ यह सुन कर ऋ तु गुस्से में उस के पीछे भागी और उस की पीठ पर एक धौल जमाई. पिनाकी उहआह करता हुआ बोला, ‘‘तुम लड़कियां कितनी कठोर होती हो, किसी के दर्द का तुम्हें एहसास तक नहीं होता.’’

‘‘हा…हा…हा… बड़ा आया दर्द का एहसास नहीं होता, मुझे चिढ़ाएगा तो ऐसे ही मार खाएगा.’’ मिसेज मुखर्जी रसोई में मछली तल रही थीं, जिस की बदबू से ऋ तु की हालत खराब हो रही थी. उस ने पकौड़ों की प्लेट उन्हें पकड़ाई और बाहर की ओर लपकते हुए बोली, ‘‘मैं तो जा रही हूं बाबा, वरना इस बदबू से मैं बेहोश हो जाऊंगी.’’

मिसेज मुखर्जी ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम को मछली की बदबू आती है लेकिन ऋ तु अगर तुम्हारी शादी किसी बंगाली घर में हो गई, तब क्या करेगी.’’

बंगाली लोग प्यारी लड़की को लाली कह कर बुलाते हैं. पिनाकी की मां को ऋ तु के लाललाल गालों पर मुसकान बहुत पसंद थी. वह अकसर उसे कालेज जाते हुए देख कर छेड़ा करती थी. ‘‘ऋ तु तुमी खूब शुंदर लागछी, देखो कोई तुमा के उठा कर न ले जाए.’’

पिनाकी ने सच ही तो कहा था ऋ तु को उस के दर्द का एहसास कहां था. वह जब भी उसे देखता उस के दिल में दर्द होता था. ऋ तु अपनी लंबीलंबी 2 चोटियों को पीठ के पीछे फेंकते हुए अपनी बड़ीबड़ी और गहरी आंखें कुछ यों घूमाती है कि उन्हें देख कर पिनाकी के होश उड़ जाते हैं और जब बात करतेकरते वह अपना निचला होंठ दांतों के नीचे दबाती है तो उस की हर अदा पर फिदा पिनाकी उस की अदाओं पर मरमिटना चाहता है. पर ऋतु से वह इस बात को कहे तो कैसे कहे. कहीं ऐसा न हो कि ऋतु यह बात जानने के बाद उस से दोस्ती ही तोड़ दे. फिर उसे देखे बिना, उस से बात किए बिना वह जी ही नहीं पाएगा न, बस यही सोच कर मन की बात मन में लिए अपने प्यार को किसी कीमती हीरे की तरह मन में छिपाए उसे छिपछिप कर देखता है. आमनेसामने घर होने की वजह से उस की यह ख्वाहिश तो पूरी हो ही जाती है. कभी बाहर जाते हुए तो कभी बालकनी में खड़ी ऋतु उसे दिख ही जाती है पर वह उसे छिप कर देखता है अपने कमरे की खिड़की से.

‘‘पिनाकी, क्या सोच रहा है?’’ ऋतु उस के पास खड़ी चिल्ला रही थी इस बात से बेखबर कि वह उसी के खयालों में खोया हुआ है. कितना फासला होता है ख्वाब और उस की ताबीर में. ख्वाब में वह उस के जितनी नजदीक थी असल में उतनी ही दूर. जितना खूबसूरत उस का खयाल था, क्या उस की ताबीर भी उतनी ही खूबसूरत थी. हां, मगर ख्वाब और उस की ताबीर के बीच का फासला मिटाना उस के वश की बात नहीं थी. ‘‘तू चल मेरे साथ,’’ ऋतु उसे खींचती हुई स्टडी टेबल तक ले गई. ‘‘कल सर ने मैथ्स का यह नया चैप्टर सौल्व करवाया, लेकिन मेरे तो भेजे में कुछ नहीं बैठा, अब तू ही कुछ समझा दे न.’’

ऋतु को पता था कि पिनाकी मैथ्स का मास्टर है, इसलिए जब भी उसे कोई सवाल समझ नहीं आता तो वह पिनाकी की मदद लेती है, ‘‘कितनी बार कहा था मां से यह मैथ्स मेरे बस का रोग नहीं, लेकिन वे सुनती ही नहीं, अब निशा को ही देख आर्ट्स लिया है उस ने, कितनी फ्री रहती है. कोई पढ़ाई का बोझ नहीं और यहां तो बस, कलम घिसते रहो, फिर भी कुछ हासिल नहीं होता.’’ ‘‘इतनी बकबक में दिमाग लगाने के बजाय थोड़ा पढ़ाई में लगाया होता तो सब समझ आ जाता.’’

‘‘मेरा और मैथ्स का तो शुरू से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है, पिनाकी.’’ पिनाकी एक घंटे तक उसे समझाने की कोशिश करता रहा पर ऋ तु के पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था.

‘‘तुम सही कहती हो ऋतु, यह मैथ्स तुम्हारे बस की नहीं है, तुम्हारा तो इस में पास होना भी मुश्किल है यार.’’

पिनाकी ने अपना सिर धुनते हुए कहा तो ऋ तु को हंसी आ गई. वह जोरजोर से हंसे जा रही थी और पिनाकी उसे अपलक निहारे जा रहा था. उस के जाने के बाद पिनाकी तकिए को सीने से चिपटाए ऋ तु के ख्वाब देखने में मगन हो गया. जब वह उस के पास बैठी थी तो उस के लंबे खुले बाल पंखे की हवा से उड़ कर बारबार उस के कंधे को छू रहे थे और इत्र में घुली मदहोश करती उस की सांसों की खुशबू ने पिनाकी के होश उड़ा दिए थे. पर अपने मन की इन कोमल संवेदनशील भावनाओं को दिल में छिपा कर रखने में, इस दबीछिपी सी चाहत में, शायद उस के दिल को ज्यादा सुकून मिलता था. कहते हैं अगर प्यार हो जाए तो उस का इजहार कर देना चाहिए. मगर क्या यह इतना आसान होता है और फिर दोस्ती में यह और भी ज्यादा मुश्किल हो जाता है, क्योंकि यह जो दिल है, शीशे सा नाजुक होता है. जरा सी ठेस लगी नहीं, कि छन्न से टूट कर बिखर जाता है. इसीलिए अपने नाजुक दिल को मनामना कर दिल में प्रीत का ख्वाब संजोए पिनाकी ऋ तु की दोस्ती में ही खुश था, क्योंकि इस तरह वे दोनों जिंदादिली से मिलतेजुलते और हंसतेखेलते थे.

ऋतु भले ही पिनाकी के दिल की बात न समझ पाई हो पर उस की सहेली उमा ने यह बात भांप ली थी कि पिनाकी के लिए ऋ तु दोस्त से कहीं बढ़ कर है. उस ने ऋतु से कहा भी था, ‘‘तुझे पता है ऋतु, पिनाकी दीवाना है तेरा.’’ और यह सुन कर खूब हंसी थी वह और कहा था, ‘‘धत्त पगली, वह मेरा अच्छा दोस्त है. एक ऐसा दोस्त जो हर मुश्किल घड़ी में न जाने कैसे किसी सुपरमैन की तरह मेरी मदद के लिए पहुंच जाता है और फिर यह कहां लिखा है कि एक लड़का और एक लड़की दोस्त नहीं हो सकते, इस बात को दिल से निकाल दे, ऐसा कुछ नहीं है.’’

‘‘पर मैं ने कई बार उस की आंखों में तेरे लिए उमड़ते प्यार को देखा है, पगली चाहता है वह तुझे.’’ ‘‘तेरा तो दिमाग खराब हो गया लगता है. उस की आंखें ही पढ़ती रहती है, कहीं तुझे ही तो उस से प्यार नहीं हो गया. कहे तो तेरी बात चलाएं.’’

‘‘तुझे तो समझाना ही बेकार है.’’ ‘‘उमा, सच कहूं तो मुझे ये बातें बकवास लगती हैं. मुझे लगता है हमारे मातापिता हमारे लिए जो जीवनसाथी चुनते हैं, वही सही होता है. मैं तो अरेंज मैरिज में ज्यादा विश्वास रखती हूं, सात फेरों के बाद जीवनसाथी से जो प्यार होता है वही सच्चा प्यार है और वह प्यार कभी उम्र के साथ कम नहीं होता बल्कि और बढ़ता ही है.’’

उमा आंखें फाड़े ऋ तु को देख रही थी, ‘‘मैं ने सोचा नहीं था कि तू इतनी ज्ञानी है. धन्य हो, आप के चरण कहां हैं देवी.’’ और फिर दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.

इस के बाद फिर कभी उमा ने यह बात नहीं छेड़ी, पर उसे इस बात का एहसास जरूर था कि एक न एक दिन यह एकतरफा प्यार पिनाकी को तोड़ कर रख देगा. पर कुछ हालात होते ही ऐसे हैं जिन पर इंसान का बस नहीं चलता. और अब घर में भी ऋ तु की शादी के चर्चे चलने लगे थे, जिन्हें सुन कर वह मन ही मन बड़ी खुश होती थी कि चलो, अब कम से कम पढ़ाई से तो छुटकारा मिलेगा. सुंदर तो थी ही वह, इसीलिए रिश्तों की लाइन सी लग गई थी. उस के दोनों भाई हंसते हुए चुटकी लेते थे, ‘‘तेरी तो लौटरी लग गई ऋ तु, लड़कों की लाइन लगी है तेरे रिश्ते के लिए. यह तो वही बात हुई, ‘एक अनार और सौ बीमार’?’’

‘‘मम्मी, देखो न भैया को,’’ यह कह कर वह शरमा जाती थी. ऋतु और उमा बड़े गौर से कुछ तसवीरें देखने में मग्न थीं. ऋ तु तसवीरों को देखदेख कर टेबल पर रखती जा रही थी, फिर अचानक एक तसवीर पर उन दोनों सहेलियों को निगाहें थम गईं. दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा. ऋतु की आंखों की चमक साफसाफ बता रही थी कि उसे यह लड़का पसंद आ गया था. गोरा रंग, अच्छी कदकाठी और पहनावा ये सारी चीजें उस के शानदार व्यक्तित्व की झलकियां लग रही थीं. उमा ने भौंहें उचका कर इशारा किया तो ऋतु ने पलक झपका दी. उमा बोली, ‘‘तो ये हैं हमारे होने वाले जीजाजी,’’ उस ने तसवीर ऋ तु के हाथ से खींच ली और भागने लगी.

‘‘उमा की बच्ची, दे मुझे,’’ कहती ऋ तु उस के पीछे भागी. पर उमा ने एक न सुनी, तसवीर ले जा कर ऋतु की मम्मी को दे दी और बोली, ‘‘यह लो आंटी, आप का होने वाला दामाद.’’

मां ने पहले तसवीर को, फिर ऋतु को देखा तो वह शरमा कर वहां से भाग गई. लड़का डाक्टर था और उस का परिवार भी काफी संपन्न व उच्च विचारों वाला था. एक लड़की जो भी गुण अपने पति में चाहती है वे सारे गुण उस के होने वाले पति कार्तिक में थे. और क्या चाहिए था उसे. उस की जिंदगी तो संवरने जा रही थी और वह यह सोच कर भी खुश थी कि अब शादी हो जाएगी तो पढ़ाई से पीछा छूटेगा. उस ने जितना पढ़ लिया, काफी था. पर लड़के वालों ने कहा कि उस का ग्रेजुएशन पूरा होने के बाद ही वे शादी करेंगे. ऋ तु की सहमति से रिश्ता तय हुआ और आननफानन सगाई की तारीख भी पक्की हो गई.

सगाई के दिन पिनाकी और उस का परिवार वहां मौजूद नहीं था. उस की दादी की बीमारी की खबर सुन कर वे लोग गांव चले गए थे. गांव से लौटने में उन्हें 15 दिन लग गए. वापस लौटा तो सब से पहले ऋ तु को ही देखना चाहता था पिनाकी. और ऋ तु भी उतावली थी अपने सब से प्यारे दोस्त को सगाई की अंगूठी दिखाने के लिए. जैसे ही उसे पता चला कि पिनाकी लौट आया है वह दौड़ीदौड़ी चली आई पिनाकी के घर. पिनाकी की नजर खिड़की के बाहर उस के घर की ओर ही लगी थी. जब उस ने ऋ तु को अपने घर की ओर आते देखा तो वह सोच रहा था आज कुछ भी हो जाए वह उसे अपने दिल की बात बता कर ही रहेगा. उसे क्या पता था कि उस की पीठ पीछे उस की दुनिया उजाड़ने की तैयारी हो चुकी है. ‘‘पिनाकी बाबू, किधर हो,’’ ऋतु शोर मचाती हुई अंदर दाखिल हुई.

‘‘हैलो ऋतु, आज खूब खुश लागछी तुमी?’’ पिनाकी की मां ने उस के चेहरे पर इतनी खुशी और चमक देख कर पूछा. ‘‘बात ही कुछ ऐसी है आंटी, ये देखो,’’ ऐसा कह कर उस ने अपनी अंगूठी वाला हाथ आगे कर दिया और चहकते हुए अपनी सगाई का किस्सा सुनाने लगी.

पिनाकी पास खड़ा सब सुन रहा था. उसे देख कर ऋ तु उस के पास जा कर अपनी अंगूठी दिखाते हुए कहने लगी, ‘‘देख ना, कैसी है, है न सुंदर. अब ऐसा मुंह बना कर क्यों खड़ा है, अरे यार, तुम लोग गांव गए थे और मुहूर्त तो किसी का इंतजार नहीं करता न, बस इसीलिए, पर तू चिंता मत कर, तुझे पार्टी जरूर दूंगी.’’

पिनाकी मुंह फेर कर खड़ा था, शायद वह अपने आंसू छिपाना चाहता था. फिर वह वहां से चला गया. ऋ तु उसे आवाज लगाती रह गई. ‘‘अरे पिनाकी, सुन तो क्या हुआ,’’ ऋ तु उस की तरफ बढ़ते हुए बोली.

पर वह वापस नहीं आया और दोबारा उसे कभी नहीं मिला क्योंकि अगले दिन ही वह शहर छोड़ कर गांव चला गया. ऋ तु सोचती रह गई. ‘‘आखिर क्या गलती हुई उस से जो उस का प्यारा दोस्त उस से रूठ गया. उस की शादी हो गई और वह अपनी गृहस्थी में रम गई पर पिनाकी जैसे दोस्त को खो कर कई बार उस का दुखी मन पुकारा करता, ‘‘कहां हो तुम?’’ Love Story In Hindi

Social Story : छुटकारा – सुगना किसके यहां जाकर बैठती थी ?

Social Story : खुला सा आंगन. आंगन में ही है टूटाफूटा सा बड़ा दरवाजा और उस दरवाजे से लग कर 2 कमरे. कमरों से सटे हुए बरामदे में रसोई. यह है गंजोई का घर. 4 बेटियां और पत्नी है गंजोई के परिवार में. गंजोई की पत्नी सुगना पुरानी साड़ी की फटी पट्टियों से गुंथी रहती. मैली सी चारपाई पर गंजोई पैर फैला कर लेटा रहता और सुगना अपनी बातों से उस का मन बहलाया करती.  सुगना को पति की सेवा से फुरसत मिलती, तो घर की खोजखबर लेती. गंजोई तो अजगर था. दास मलूका का शुक्रिया अदा करता और अपने दाने के इंतजार में पड़ा रहता. गंजोई की बड़ी बेटी अंजू 15 साल से कुछ ऊपर. काली, ठिगनी, सुस्त, थोड़ी मोटी और चुपचुप सी रहती थी. वह लोगों के घरों में झाड़ूबरतन किया करती और धीरेधीरे उस ने अपनी दोनों छोटी बहनों को भी जानपहचान के घरों में काम पर लगवा दिया था.

अंजू के बाद वाली संजू 13 साल की दुबलीपतली, गठी हुई, उम्र के मुताबिक सही कदकाठी. खूबसूरत तो नहीं, पर बदसूरत भी नहीं थी वह. धीमी और मीठी आवाज. जल्दीजल्दी काम निबटाती. जिन घरों में काम करती, वहीं के बच्चों से वह अपना मन बहलाती. 8 साल की रंजू बेहद दुबली. गेहुआं रंग. उलझेउलझे तेल चुपड़े बाल और मैली सी फ्रौक. उस के काम में सब से ज्यादा फुरती थी. उस का मन मचलता था अपने साथ के बच्चों के साथ खेलने और भागनेदौड़ने के लिए, इसलिए वह जल्दीजल्दी काम करने की कोशिश में कुछ न कुछ गड़बड़ करती रहती और डांट सुनती रहती, पर थी धुन की पक्की. सब से छोटी रीना 6 साल की थी. अंजू के साथ काम पर जाती और उस की मदद करती. बरतन मांजना अभी वह सीख रही थी और झाड़ू ठीकठाक लगा लेती थी. कुलमिला कर सारी बहनें मिल कर दालरोटी का जुगाड़ कर लेती थीं.

एक चीज थी, जो चारों बहनों में एकजैसी थी. उन की खाली आंखों में जिंदगी की चमक. खूब जीना चाहती थीं. वे सब जो भी थीं, जैसे भी थीं, खूब हंसना और कुछ न कुछ गुनगुनाते रहना उन की आदत थी. महल्ले की औरतें ज्यादातर मजदूर थीं या फिर लोगों के यहां आया, महरी का काम करती थीं. गंजोई जब घर पर नहीं होता था, तो सुगना रेशमी साड़ी पहन कर किसी पड़ोसन के यहां जा बैठती. औरतें भी बातोंबातों मे ंउसे छेड़तीं, ‘ये चटकमटक के दिन तेरे नहीं तेरी बेटियों के हैं. जवानी में भी उन से अपने ही घर का पानी भरवाएगी क्या? ‘लड़कियां बड़ी हो रही हैं. भेज अपने निठल्ले मरद को बाहर. घरबार देखे. रिश्ताकुनबा देखे. ऐसे घर बैठे तो कोई तुम्हारे दरवाजे चढ़ेगा नहीं.’

सुगना खिसियानी सी हंसी हंसती और बोलती, ‘‘तू ही बता सरोज, हमारे पास न जेवर है, न जमीन. जो थोड़ाबहुत मेरी सास के गांठपल्ले था, वह पहले ही अंजू के बापू ने दारू में घोल कर चढ़ा लिया. अब तो ऐसा है कि चूल्हा भी अनाज देख कर ही गरम होता है.’’

‘‘अरे तो उसे काम पर क्यों नहीं भेजती? इतनी बड़ी अनाज की मंडी है, बड़ेबड़े आढ़ती बैठते हैं. जाए किसी के पास. कोई न कोई काम मिल ही जाएगा, बेटियों की कमाई से घर चलता है कोई,’’ सरोज की सास ने दोटूक सुनाया. अब सुगना ने वहां से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी. ऐसा नहीं है कि सुगना और गंजोई को अपनी जवान होती बेटियों की फिक्र नहीं थी, पर वे दोनों ठहरे मिजाज के मस्तमौला. उन्हें लगता था कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा. सुगना और गंजोई का परिवार समय की ताल में ताल मिलाता एकएक कदम उस के साथ चलता चला जा रहा था. समय भी चिकनी सड़क पर सरपट चाल चल रहा था बिना किसी रुकावट के, बिना किसी मुश्किल के. अंजू की ज्यादातर सखियों का ब्याह हो चुका था, पर उसे अपने ब्याह न होने का मलाल न था. न ही उसे जरूरत महसूस होती थी. सुगना और गंजोई को उस के ब्याह की काई आस न थी. इसलिए कोशिश करने का खयाल भी किसी के धकियाने से ही आता था और धक्का हटते ही वे फिर आराम की मुद्रा में टेक लगा लेते और फिर घर चलाने में अंजू का अहम योगदान था.

संजू भी 14 साल की उम्र में ज्यादा तीखी और मुखर हो गई थी. अब वह घर से निकलती, तो उस की उभरती देह पर चुस्त फिटिंग वाला सूट होता. अपनी मालकिनों की उतरन को सजाचमका कर जब वह अपने तन पर डालती, तो उन पुराने कपड़ों से भी ताजगी फूट पड़ती. महल्ले के जवान होते मजदूर बच्चे छिपछिप कर उसे देखते और वह उन्हें देख कर बड़ी अदा से अनदेखा कर देती, मानो सावन को पता ही न हो कि उस की बारिश में सब भीग जाता है. अब संजू का ध्यान काम में कम लगता, सोचती और मुसकराती रहती. उस के साथ की लड़कियां उस से चिढ़तीं, ‘बड़ी फैशन वाली बन गई है. बरतन मांजने जाती है या थाली में मुंह देखने? ’

अंजू भी पीछे न रहती. वह कहती, ‘‘अरे, बरतन तो मुझे देखते ही चमक जाते हैं. तुम्हारी तरह नहीं कि शक्ल देख कर घूरा भी छींक दे.’’ गंजोई के घर से बाईं तरफ 3 मकान छोड़ कर कमलकिशोर का घर था. वह एक 17 साल का ठीकठाक सी शक्ल वाला लड़का था, जो बाजार में साइकिल की दुकान पर पंचर लगाने का काम करता था. वह जवानी के उस पायदान पर था, जहां सबकुछ खूबसूरत और आसान लगता है. खाली समय में रंगीन चश्मा लगा कर वह फिल्मी गाने गुनगुनाता.

उस ने मालिक से बड़ी मिन्नत कर के दुकान से एक पुरानी साइकिल ले ली थी और साइकिल की दुकान पर मंजे हुए अपने हुनर को आजमा कर उस साइकिल को नई जिंदगी दे डाली थी. एक दिन कमलकिशोर घर के बाहर खड़ा हो कर अपनी साइकिल को साफ कर रहा था और साथ ही कुछ गाना गुनगुना रहा था, ‘‘चोरीचोरी आ जा गोरी पीपल की छांव में, कहीं कोई…’’ तभी उस की नजर संजू पर पड़ी, ‘‘यह कौन है. बड़ी मस्त दिख रही है.’’ इतने में संजू की नजर कमलकिशोर पर पड़ी. आंखें सिकोड़, कमर पर हाथ रख संजू थोड़ा गुस्से और बड़ी अदा से गुर्रा कर बोली, ‘‘आंखें फाड़ कर क्या देख रहा है? बोलूं तेरे बापू को?’’

‘‘भड़क क्यों रही है? देख ही तो रहा हूं. तू सुगना काकी की बेटी है न? चल, नाम बता अपना?’’ कमलकिशोर ने उस की तरफ बढ़ते हुए फिल्मी अंदाज में पूछा. संजू को हंसी आ गई, ‘‘चल जा अपना काम कर,’’ कह कर वह घर में घुस गई.

कमलकिशोर का मन गुदगुदाहट से भर गया. संजू को गए बहुत वक्त बीत चुका था, पर वह वहीं खड़ा अब भी उन पलों को आगेपीछे कर के अपने सपनों में जी रहा था. ‘‘संजू, जरा चूल्हा जला दे और आटे में थोड़ा नमक डाल कर मुझे दे दे. खाने का समय हो गया है. बस, अभी सब खाना मांगने वाले हैं,’’ अंजू ने कहा. इतने में ही सुगना की आवाज आई, ‘‘ऐ अंजू, खाना कब देगी? मुझे जोरों की भूख लगी है.’’ सुगना और गंजोई आंगन में पड़ी खाट पर जमे हुए थे. गंजोई आसमान की ओर मुंह कर के लेटा था और सुगना उस के पैर दबा रही थी. रसोई में जान खपाने से ज्यादा आसान था यह काम. गंजोई के खाते ही सुगना खुद खाने बैठ जाती, फिर बाद में बच्चे आपस में मिलबैठ कर खा लेते. ‘हांहां, खाना बन रहा है,’’ संजू ने चिढ़ कर जवाब दिया. अंजू ने संजू की तरफ देखा, पर बोली कुछ भी नहीं. अब उसे संजू के लिए फिक्र होने लगी थी. जब तक उस का खुद का ब्याह न हो जाता, तब तक संजू का ब्याह होना मुश्किल था. अपनी आस उसे थी नहीं, पर संजू…

आज रात संजू को भी नींद नहीं आ रही थी. ‘चल, नाम बता अपना’ उस के कानों में गूंज रहा था. उसे फिर हंसी आने लगी. वह कमलकिशोर ही तो था. कितनी ही बार तो देखा है उसे, फिर आज क्या बात हो गई? संजू समझने की कोशिश कर रही थी. आज संजू की लाली में कुछ ज्यादा ही चमक थी. शायद सुबह की धूप का असर था या फिर रात को दबे पैर उस की चारपाई में घुस आए खयालों का, पता नहीं. घर से पहला कदम ही निकला था कि नजर बाईं ओर मुड़ गई. हड़बड़ाहट में दूसरा कदम तो बाहर निकला नहीं, पहला भी अंदर चला गया. दरवाजे की ओट ले कर संजू अपनी घबराहट पर काबू पाने की कोशिश करने लगी. अपने घर के बाहर कमलकिशोर पूरी तरह मुस्तैद खड़ा था. आखिर संजू की चारपाई से निकल कर वह खयाल उस के भी तो बिस्तर में घुसा था. कमलकिशोर की नजर संजू पर पड़ चुकी थी. वह समझ गया था कि संजू काम पर जाने वाली है. वह पहले ही साइकिल ले कर उस के काम की दिशा की ओर चल पड़ा था. इधर संजू भी संभल चुकी थी. वह तन कर बाहर निकली, बाएं देखा, फिर दाएं देखा, फिर एक निराशा की ढीली सांस, जिस में राहत पाने की भरसक कोशिश की गई थी, छोड़ते हुए अनमनी सी काम पर चल दी. ‘‘संजू, तेरे मांबापू तेरा ब्याह मुझ से तो क्या किसी से भी नहीं होने देंगे,’’ कमलकिशोर संजू से कह रहा था.

कमलकिशोर और संजू को एकदूसरे के नजदीक आने में ज्यादा समय नहीं लगा था. दोनों को एकदूसरे का साथ अच्छा लगता. अपना काम खत्म कर दोनों रोज मिलते, एकदूसरे के साथ जीने के सपने देखते. सुगना और गंजोई की बेजारी संजू की चाह को और हवा देती, पर वह अंजू के बारे में सोच कर बेचैन हो जाती. उसे कोई रास्ता नजर नहीं आता था, जो उस घर की बेटियों को ससुराल के दरवाजे तक पहुंचाता हो. मांबाप को अपनी कमाऊ बेटियों को विदा करने की कोई जल्दी न थी.

अंजू को संजू और कमलकिशोर के इश्क की खबर थी, संजू ने ही उसे बताया था एक दिन.

‘‘संजू, भाग कर जाएगी मेरे साथ?’’

‘‘चल हट. बड़ा आया भगा कर ले जाने वाला. कहां रखेगा? क्या खिलाएगा मुझे? और मेरे घर वाले? महल्ले वाले जीने नहीं देंगे. मेरी बहनों की जिंदगी खराब हो जाएगी,’’ संजू ने उसे घुड़का और आखिरी बात कहतेकहते उसे खुद की आवाज सुनाई नहीं दी, आंखें सिकुड़ गईं और चेहरे पर उदासी उभर आई. कमलकिशोर ने हलके से झिड़क कर कहा, ‘‘तो यहां रह कर तू कौन सा उन का घर भर देगी. भाग चल. तेरे बाप का बोझ कुछ कम हो जाएगा. यहां रह कर जिंदा भूत की तरह बरतन ही तो घिसेगी. मेरे साथ चल, तेरी जिंदगी संवार दूंगा.’’ संजू ने उसे घूर कर देखा, पर बोली कुछ नहीं. गरमी की रात में सभी आंगन और बरामदे में ही सोते थे. आज संजू ने अपना बिस्तर अंजू के साथ जमीन पर ही बिछा लिया था. चारपाइयां कम थीं, सो अंजू जमीन पर ही सोती थी. रीना और रंजू भी एक चारपाई पर वहां बेसुध सो रही थीं. सुगना बरामदे में थी. संजू और अंजू दोनों चुपचाप सी आसमान को घूर रही थीं. दोनों को नींद नहीं आ रही थी. वे चुप थीं, पर शायद उन के मन के बीच संवाद चल रहा था. संजू जरा बेचैन दिखी, तो अंजू ने अपना हाथ उस के सिर पर रखते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ संजू, नींद नहीं आ रही है?’’

बेहद अपनेपन में भीगे शब्दों की नमी में संजू भी नहा गई, ‘‘हां दीदी, आज तो नींद सचमुच नहीं आ रही.’’

‘‘अच्छा, यह बता कि कमलकिशोर कैसा है? क्या लाया वह आज तेरे लिए? आजकल तो तू कुछ बताती ही नहीं मुझे,’’ अंजू ने बनावटी गुस्से से मुंह फुला कर कहा. संजू ने अंजू की तरफ देखा और खिलखिला कर हंस दी, ‘‘दीदी, तुम बड़ी चालाक हो. मेरा मुंह खुलवाने के लिए कमलकिशोर का नाम ले दिया.’’ कमलकिशोर का नाम लेते ही संजू जरा संजीदा हो गई. ठंडी सांस छोड़ते हुए उस ने कहा, ‘‘दीदी, आज वह मुझे अपने साथ भाग चलने के लिए कह रहा था.’’

‘‘तो भाग जा. किस के लिए रुकी हुई है?’’ अंजू ने सहज भाव से कहा. और एक दिन महल्ले में आग लग गई. गंजोई पहली बार हरकत में आया, ‘‘अरी सुगना, संजू आई क्या?’’

‘‘नहीं. अंजू के बापू,’’ कहते हुए सुगना बीच आंगन में बैठ छाती पीटपीट कर रो रही थी. दिन ढल रहा था. सुबह से निकली संजू का अब तक कुछ पता न था. गंजोई ने हर जगह खबर ले ली थी और यह बात अब पूरे महल्ले को पता थी. पता चला था कि कमलकिशोर भी सुबह से गायब था. दो और दो चार भांपने में किसी ने समय न गंवाया. गंजोई ने अपना सिर पीट लिया. सुगना रोरो कर बच्चियों को कोस रही थी, ‘‘जाओ, तुम लोग भी भाग जाओ, कोई न कोई मिल ही जाएगा चौक पर. अरे, भागना ही था तो तू ही भाग जाती,’’ उस ने अंजू की तरफ इशारा कर के कहा, ‘‘भगोड़ों का घर नाम धरा जाएगा हमारा. अंजू के बापू कुछ करो. हाय, यह क्या कर दिया? अब तो जिंदगी पत्थर जैसी भारी हो जाएगी. लोग हमें जीने नहीं देंगे, कौन ब्याहेगा इन बेटियों को?’’

गंजोई महल्ले के बड़ेबूढ़ों के आगे रो रहा था. एक बुजुर्ग ने अपनी घरघराती आवाज में लताड़ा, ‘‘देख गंजोई, तू ने तो कभी खबर ली नहीं अपने बच्चों की, अब पछताने से क्या होगा. लड़की भाग गई और धर गई कलंक तेरी सात पुश्तों पर. अब जरा सुध ले और बाकियों को संभाल.’’

‘‘देख, अब तू हमारी बिरादरी से बाहर हो गया है. हमारे भी लड़केलड़कियां हैं. कुछ तो कायदाकानून रखना पड़ेगा,’’ एक ने कहा था. यह सुन कर गंजोई फफक कर रो पड़ा. वह हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘देखिए, आप लोग ऐसा मत कहिए. आप ही साथ छोड़ने की बात करेंगे, तो हम किस से मदद मांगेंगे. मुश्किल में तो अपने ही काम आते हैं.’’ हुमेशा यहां के एक मंदिर के बुजुर्ग थे. वे बहुत ही कांइयां मिजाज के थे. कुछ सोच कर उन्होंने कहा, ‘‘देख गंजोई, जब हम गांव में रहते थे, वहां के नियमकानून अलग थे. या यों कह लो कि बड़ेबुजुर्गों ने बड़ी सूझबूझ के साथ परिवार पर विपत्ति का तोड़ निकाला था. जो तब भी सही थे और अब भी सही ही माने जाएंगे.

‘‘गांव में जब कोई लड़की भाग जाती थी, तो उस परिवार को जाति से बाहर कर दिया जाता था और बच्चे की एक नादानी की वजह से पूरा कुनबा बरबाद हो जाता था. ‘‘तू अपनी लड़की को न खोज, न ही उसे दोबारा घर में घुसने देना. तू उस का श्राद्ध कर दे, ऐसा करने से माना जाता है कि लड़की भागी नहीं मर गई. फिर कोई उंगली नहीं उठाता. यह हमारी जाति का एक रिवाज है, जो गांव में आज भी माना जाता है. गांव वालों को खूब खिलापिला कर खुश कर दिया जाता है. फिर सब उसे मरा मान कर भूल जाते हैं.’’ गंजोई ने संजू का श्राद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उस ने तय भोजन से 2 अतिरिक्त पकवान बनवाए. सुगना ने चाव से सब को परोसा. अंजू ने भी जलेबी खाई. हुमेशा को 2 जोड़ी कपड़े भी दिए गए. कमलकिशोर के परिवार को उस का श्राद्ध करने की जरूरत नहीं थी. वह तो लड़का था न. Social Story

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