मैं उत्तर भारत के एक छोटे से गांव का रहने वाला हूं. खेतीकिसानी हमारे पुरुखों की पहचान है. किसी के कम, तो किसी के ज्यादा है.

हम सब का मन अपने खेतों में लहलहाती फसलों की बालियों को देख कर बल्लियों उछलने लगता था. किसी को बेटी के ब्याह की, तो किसी को गहने की चाह. अच्छे कपड़ेलत्ते, घूमनाफिरना और न जाने क्याक्या… ढेर सारे सपने संजोए हुए थे, पर सब बालू की भीत जैसा ढह गया.

कालेकाले घनघोर बादलों की ऐसी घटाएं तो बरसात के मौसम में भी देखने को नहीं मिली थीं. किसानों की 6 महीने की पूंजी औंधे मुंह जमीन पर लेट गई. जिस का सारा दारोमदार खेती पर ही हो, उस की हालत तो जीतेजी मरने जैसी हो गई थी.

सुबह का समय था. गांव के पश्चिमी छोर से दिल को चीर देने वाली चीख के साथ कुहराम मच गया. पता चला कि कालीचरण अब इस दुनिया में नहीं रहा.

कालीचरण का कुलमिला कर 5 जनों का परिवार था. पत्नी, एक बड़ी बेटी, 2 छोटे बेटे और खुद वह. लड़की की इसी साल शादी होनी थी.

बहुत खोजबीन की थी, तब कहीं जा कर बात पक्की हो पाई थी. घर में खुशी का आलम था. इंतजार था तो गेहूं की फसल के कटने का. सारी तैयारियां हो चुकी थीं, पर मुट्ठी तो अभी भी खाली थी.

गरीब मजदूरकिसान का कोई बैंक बैलैंस, बीमा पौलिसी तो होती नहीं कि चैक भुनाया और सबकुछ निबटा दिया. किसानी से आस लगी थी. शादी का दिन नजदीक आता जा रहा था, पर कुदरत के कहर को दलित कालीचरण सह न सका.

ऐसा सदमा लगा कि उसे कन्यादान करने का सुख भी नहीं मिला. जमीनजायदाद थी नहीं, मजदूरी का ही सहारा था. वह खेतिहर मजदूर था.

2 एकड़ जमीन पर गेहूं की फसल लगी थी. फसल कटते ही जमीन मालिक की. अपनी होती तो जमीन रेहन ही रख देता, पर बंटाई की किसानी थी, तो फिर मुआवजे की क्या आस की जाए.

चैक तो जमीन वाले के ही नाम बनेगा. मुआवजे की तो छीछालेदर ही होनी थी. ऊपर वालों का, लेखपालपटवारी का, जमीन के मालिक का कमीशन. क्या बचता कालीचरण को… मरे नहीं तो और क्या करे.

किसी सिरफिरे ने एक टैलीविजन चैनल को फोन कर दिया. दोपहर तक सरकारी लीपापोती की शुरुआत हो गई. बड़ेबड़े सरकारी मुलाजिम पधारे.

डीएम, एसडीएम, तहसीलदार हमारे गांव में आए थे. वे सभी नए परिंदे थे. देखनेसुनने को पहली बार मिले थे.

एक अफसर ने गरज कर पूछा, ‘‘क्या बीमारी थी?’’

किसी के बताने से पहले ही दूसरा पूछ बैठा, ‘‘कितने दिन से थी?’’

‘‘नशा करता था?’’ तीसरा बोल पड़ा.

‘‘नहीं साहब,’’ कोई गांव वाला बोला.

‘‘क्या टीबी का मरीज था?’’ एक और अफसर ने पूछा.

‘‘नहीं साहब.’’

‘‘चुप बे… क्या नहींनहीं लगा रखा है. पता भी हैं तुझे बीमारी के लक्षण?’’

बोलने की रहीसही हिम्मत भी जवाब दे गई. पर हमें अच्छी तरह से मालूम था कि इस में हमारे छुटभए नेता पंडित जमनाप्रसाद का पूरा हाथ था, जिन के खेत में कालीचरण पिछले 2 साल से बंटाई पर खेती करता था.

इस आपदा में उन्हें अपना फायदा दिखा और उन्होंने कालीचरण को भयंकर बीमारियों के हवाले करने की पूरी कोशिश की. वे कामयाब भी रहे.

अगले ही पल धूल उड़ाती गाडि़यां शहर की ओर लौट गईं. हमारी जानकारी में कभी कालीचरण को सर्दीजुकाम के अलावा किसी दूसरी बीमारी की शिकायत नहीं हुई थी, पर सरकारी मुलाजिमों ने तो मुआवजे के बदले उसे बीमारियों का तोहफा ही दे डाला था. अब कालीचरण के परिवार को मुआवजा भी नहीं मिलेगा.

दरअसल, पंडित जमनादास अपने इलाके के नेताओं में अच्छी पहचान बनाए हुए थे और उन्हें जिताने में उन का पूरा सहयोग होता था. पिछली पंचवर्षीय योजना में वे प्रधान भी बने थे. उन की और भी बड़े लोगों में मजबूत पैठ थी, जिस से उन की दलाली खूब चलती थी.

पंडित जमनादास के बड़े भाई पंडित मोहनदास, जिन के 2 बेटे भी थे, बाहर रह कर कामधंधा करते थे.

पंडित मोहनदास अपने जमाने के नशेडि़यों में अव्वल नंबर पर थे. गांव की निचली जाति की कई लड़कियों को जवानी का पाठ पढ़ाने का जिम्मा उन्हीं का था. कुछ को तो उन्होंने साड़ी, जेवर, मोबाइल से लुभाया था, पर कुछ को जबरन बताया था कि जिंदगी का मजा क्या होता है.

2 नहर में कूदी थीं, एक ने जहर खाया था, पर बाकी उन्हें अपनी सेवा का सुख देती रही थीं, पर साथ ही बीमारियां भी. इस के चलते उन का शरीर भयंकर बीमारियों का अड्डा बन चुका था.

लिहाजा, हंसतेखेलते परिवार की शांति को बनाए रखने के लिए वे इस दुनिया से रुखसत हो गए.

पंडित जमनादास इस मौके का भी फायदा उठाने से नहीं चूके थे. आननफानन में रिपोर्ट लिखाई गई. लेखपाल को खिलायापिलाया. अपने बाप की काश्तकारी में आधे की हिस्सेदारी दिखाई गई. यह वही खेत था, जिस पर कालीचरण काश्तकारी करता था.

जो आदमी अपने शौच वगैरह के लिए भी नहीं सरक सकता था, उसे खेत तक चलाया गया और फसल की बरबादी को देख कर दम तोड़ते दिखाया गया.

आज महीने बाद मुआवजे का चैक लेने की बारी आई, तो पंडित मोहनदास का बड़ा बेटा लाइन में सब से आगे था, पर कालीचरण का परिवार जमीन में पड़ी बालियों में से सूखे दाने ढूंढ़ने की कोशिश में लगा था.

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