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तापसी पन्नू ने कंगना रानौत की बहन रंगोली चंदेल से ये कहा, पढ़े पूरी खबर

इन दिनों कंगना रानौत की बहन ने हर किसी से पंगा लेना शुरू कर दिया है. फिर चाहे मीडिया हो या कलाकार. हाल ही में जब विश्व प्रसिद्ध शौर्प शूटर चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘‘सांड की आंख’ का ट्रेलर लांच हुआ, तो रंगोली चंदेल ने तापसी पन्नू के खिलाफ मोर्चा खेलते हुए उनके अभिनय पर कई तरह की टिप्पणी कर डाली. इस पर तापसी ने सोशल मीडिया पर कुछ जवाब दिया, पर फिर भी रंगोली चंदेल ने आपना काम जारी रखा.

हाल ही में जब तापसी पन्नू से हमारी ‘एक्सक्लूसिव मुलाकात’  हुई, तो ‘सांड़ की आंख’ का ट्रेलर आने के बाद उठे विवाद पर बड़ी साफगोई से तापसी ने कहा- ‘‘मुझे यह सवाल बहुत ही स्टूपिड/ मुर्खतापूर्ण लगता है, जब एक कलाकार/अभिनेत्री से यह पूछा जाए कि इस उम्र या इस लुक का किरदार क्यों निभा रही हैं ?

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मैं तो कलाकार हूं. मेरा काम ही है दूसरे किरदार में ढलना. मैं हर फिल्म में तापसी बनकर तो नहीं आउंगी. यह आधारहीन व मूर्खतापूर्ण बात लगी, पर जब कुछ लोगों ने यह बात उठायी,  तो मुझे लगा कि कम से कम एक बार में सोशल मीडिया के द्वारा इसका जवाब दे दूं. जिससे बार बार मुझसे यह सवाल न पूछा जाए. मगर कुछ लोगों ने मुझे मुफ्त में प्रचार देने का ठेका ले रखा है. यह आश्चर्यजनक बात है कि मेरे पास मेरा प्रचार करने के लिए वक्त नहीं है, पर बाकी लोग मेरा प्रचार कर रहे हैं.’’

जब हमने उनसे पूछा कि ‘क्या इसकी मूल वजह यह है कि वर्तमान समय में कलाकारों के बीच असुरक्षा की भावना कुछ ज्यादा हो गयी है? ’तो तापसी ने इसके लिए सोशल मीडिया को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा-‘‘सोशल मीडिया ज्यादा हो गया है. पहले हर बात लोगों तक पहुंचाने का जरिया सिर्फ पत्रकार हुआ करते थे. पहले पत्रकार के माध्यम से ही यह बातें कही जाती थीं, जिसमें समय लगता था. जब पत्रकार इंटरव्यू के लिए मिलता था, तभी इस तरह की बाते की जा सकती थी. पर इस बीच जो समय बीतता था,  उसमें सब कुछ ठंडा पड़ जाता था. मगर अब सोशल मीडिया ऐसा हथियार है कि दिमाग में कोई बात आयी, तुरंत सोशल मीडिया पर उसी मूड़ में लिख मारा. तीर कमान से निकलकर कभी सही तो कभी गलत जगह लगता है, पर लगता है. सोशल मीडिया में सब कुछ इंस्टेंट/त्वरित हो गया है, तो इंस्टेंट मूड़ में स्टेंट प्रतिक्रिया आ जाती है. यह भावनाएं तो इंसान की हैं, पहले भी होती थी, आज भी हैं.’’ पर तापसी सोशल मीडिया को महज नुकसानदायक भी नही मानती. वह कहती हैं- ‘‘जब हर चीज लिमिट से बाहर हो तो नुकसान करती है. मैं सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर हूं, क्योंकि सोशल मीडिया पर कुछ सकारात्मक चीजें भी हैं. मैं सभी खबरें औन लाइन पढ़ती हूं. दूसरे देशों में बैठे लोग, जिन्हें मैं पसंद करती हूं, उन तक पहुंच सकती हूं. उनके बारे में मुझे सोशल मीडिया से जानकारी मिलती है. कुछ लोगों से मैं सोशल मीडिया के कारण जुड़ी रहती हूं.

पर सोशल मीडिया में कुछ नकारात्मक बातें भी हैं. कुछ लोग कुछ भी बोलते रहते हैं.’’

आखिर कंगना रानौत की बहन रंगोली चंदेल सोशल मीडिया पर तापसी के खिलाफ कुछ न कुछ क्यों लिखती रहती हैं? इस पर तापसी ने कहा- ‘‘पता नहीं, उनको मुझसे प्यार क्यों है? पर उनसे कहना चाहती हूं कि आप मेरी जिंदगी में महत्व नही रखती. मैं आपसे दरख्वास्त करती हूं कि प्लीज आप अपना समय, अपनी ताकत/इफर्ट मुझ पर व्यर्थ में मत गंवाओ. क्योंकि आप दीवार पर सिर मारोगी, तो आपका सिर फटेगा. मैं दीवार हूं. मुझे अभिनय नही आता. मैं फिल्मों में यूं ही दीवार की तरह खड़ी रहती हॅूं. फिर भी आप अपना समय मेरे लिए बर्बाद न करें. मैं आपकी बहन की शुभचिंतक तो नहीं, मगर प्रशंसक जरुर हूं. कृपया समय व अपनी एनर्जी बर्बाद न करे, आपको कोई प्रतिक्रिया नही मिलेगी. आप जो कर रहे हो, करते रहो, मेरी फिल्मों या मेरे पीछे पड़ने से न आपको कुछ मिलेगा और न ही मुझे.’’

रंगोली चंदेल ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि तापसी को अभिनय नही आता. वह तो सस्ती कौपी हैं. इस पर तापसी कहती हैं-‘‘देखिए, अंतिम निर्णायक तो दर्शक ही है कि मुझे अभिनय आता है या नही, मेरी फिल्में अच्छी हैं या नहीं. इसका निर्णय आप या मैं खुद नहीं कर सकती. इसका निर्णय हमारे दर्शक ही करेंगे. मैंने इतने साल तक इतनी फिल्में कर ली. मैं हर वर्ष चार चार फिल्में कर ली. साढ़े नौ वर्ष का करियर सफलता पूर्वक चलता आया है, तो मेरे अंदर कुछ तो ऐसा होगा, जिसे दर्शक देखना चाहता है. यहां पर न आपाका गौड फादर था और न मेरा कोई गौड फादर है.’’

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असफलता के बाद मिलती है कामयाबी

सफलता और असफलता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. किसी के सर पर जल्दी ही सफलता का सहरा बंध जाता है तो किसी को असफलता ही हाथ लगती है. अंग्रेजी की एक कहावत है ट्राय एंड ट्राय अगैन यू विल गेट सक्सेस यानि प्रयास करते रहो एक दिन सफलता अवश्य मिलेगी. आज जितनी भी सुख सुविधा हमारे पास हैं ऐसा नहीं है कि इनका अविष्कार एक ही बार में हो गया था. बल्कि कितनी बार उन लोगों को असफलता का मुंह देखना पड़ा होगा इस बात का हमें अंदाजा भी नहीं होता. तो जरूरी है की हमें असफलता के सामने घुटने नहीं टेकने चाहिये बल्कि उन असफलताओं से सिख लेकर हमें आगे बढ़ना चाहिये तो आइए जनते हैं कैसे अपनी असफलताओं से हम सफलता हासिल कर सकते हैं.

अपनी कमजोरियों को पहचाने

हमारे अंदर की सोच यदि नकारात्मक हो जाये तो हम कभी भी कामयाब नहीं हो सकते और वही नकारात्मक सोच हमें कमजोर बना देगी. ऐसे में हम खुद की कमजोरियों को पहचाने. इससे आप भविष्य में वो गलतियां नहीं दोहराएंगे व आपका आत्म विश्वास बढ़ेगा.

जटिलताओं से न घबराये

आपके सामने आने वाली चुनौतियों से बिलकुल न घबराये. हमेशा उनका डट कर सामना करें. ऐसा नहीं है कि अगर कोई मुश्किल है तो हमें कभी भी हार मान कर अपना रास्ता बदल देना चाहिये बल्कि उस मुसीबत का सामना करने से ही हमें सफलता की सीधी का रास्ता हासिल हो सकता है. जिस तरह लगातार रस्सी को पत्थर पर घिसने से पत्थर पर निशान पड़ जाते है उसी तरह परिश्र्म, करने से आपको कामयाबी अवश्य हासिल होगी.

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असफलता पर विचार करें

आपने जितने भी सफल लोगों की कहानी सुनी हैं. उसमें एक बात गौर करने वाली है और वो ये कि उन सभी लोगों ने कई बार असफलता का सामना किया है. थौमस अल्वा एडिसन जिन्होंने बल्ब का अविष्कार किया इससे पहले उनको 999  बार असफलता ही हाथ लगी थी, अल्बर्ट आईंस्टीन को सभी ने मंदबुद्धि कहा था लेकिन उनके सिद्धांतों और थिअरी ने उन्हें दुनिया का सबसे बड़ा साइंटिस्ट  बना दिया.  तो अपनी असफलताओं से सिख ले की आप से कहा चूक हो रही है और फिर आगे बढे ,एक दिन कामयाबी आपके कदम अवश्य चूमेगी.

शार्ट कट न अपनाए

सफलता पाने का कोई शार्ट कट नहीं होता इसलिये कोई भी शार्ट कट न अपनाए. कई बार यह सुनने को मिलता है कि फलां आदमी ने सफलता बहुत कम समय में पा ली. क्योंकि उसने शौर्ट-कट अपनाया था.  सफलता पाने के लिए शौर्ट कट अपनाना सुनने में तो अच्छा लगता है, लेकिन ऐसी कामयाबी ज्यादा दिनों तक नहीं चलती. और न ही आपको ऐसी कामयाबी वो खुशी दे पाती है जिसमे आपकी मेहनत और लगन नहीं होती.

 रखें इन बातों का ध्यान

सफलता के बहुत से तरीके हो सकते हैं, लेकिन हर सफल इंसान की कुछ बातें होती है. वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के साथ ही एक लक्ष्य को लेकर केंद्रित भी होते हैं. वे अनुशासित होने के साथ ही जुनूनी  होते हैं. वे अपने हर काम को अहमियत देते हैं. काम के प्रति उनकी रूचि सकारात्मक होती है.

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राफेल पर राजनाथ की “शस्त्र पूजन नौटंकी”

राजनाथ सिंह की शस्त्र- पूजा, आज देशभर में चर्चा का बयास बनी हुई है. ऐसा आजादी के बाद पहली दफे हो रहा है,जब भारत सरकार के एक कबीना मंत्री को शस्त्र पूजा करने का नाटक अपने देश में करने की जगह, विदेशी धरती फ्रांस के सर जमी पर करने की मजबूरी आन पड़ी है. ताकि प्रचार प्रसार का स्पेस कुछ ज्यादा मिले और देश में इसका बेहतरीन संदेश प्रसारित हो जाए.

यही वजह है कि भारत का रक्षा मंत्री एक गुप्त एजेंडे के तहत विजयदशमी को अपना टारगेट निर्धारित करता है. और शास्त्र- पूजा विधि विधान से करता है, इसका सीधा संदेश यह है कि पाकिस्तान के हुक्मरान! और वहां की आवाम भयभीत हो जाए…! और देश की जनता का खून उबाल मारने लगे, इसी गहरी सोच के साथ “प्रतीकों “का इस्तेमाल सरकार के वरिष्ठ मंत्री राजनाथ सिंह कर रहे हैं. और सीधी सरल बात यह की इस संपूर्ण परियोजना के पीछे राष्ट्रीय स्वयं संघ और उसके विचारकों का दिमाग काम कर रहा है.

झूठ बोल रहे हैं रक्षा मंत्री!

आज रक्षा मंत्री का शस्त्र पूजन और राफेल की खबर सुर्खियां बटोर रही है. देश की हर एक प्रिंट, इलेक्ट्रौनिक मीडिया में यह खबर प्रमुखता से रिलीज़  हुई है. और क्यों ना हो, जब देश की सरकार की एक-एक सोच, कदम को मीडिया स्थान देता है तो भला राफेल डील और शस्त्र पूजा को स्पेस क्यों नहीं मिलेगा. यह खबर है कि “विजयदशमी पर भारत को मिलेगा पहला राफेल जेट, होंगे यह बड़े बदलाव.”

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मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक “8 अक्टूबर यानी विजयादशमी के दिन भारत को अपना पहला राफेल जेट मिलने वाला है” फिर अगली पंक्ति में ही झूठ का पर्दाफाश करते कहा गया है कि” इसकी डिलीवरी अगले साल की जाएगी.”

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह फ्रांस पहुंच चुके हैं और राफेल में फ्रांसीसी एयरपोर्ट के बेस से उड़ान भरेंगे आज एयर फोर्स डे के मौके पर भारत को पहला राफेल मिलेगा, यह दो इंजन वाला लड़ाकू विमान है यह भारत को हवा से हवा में मार करने की अद्भुत क्षमता देगा. राजनाथ सिंह खुश हैं कह रहे हैं, आज इसे हैंड ओवर किया जाएगा आपको भी यह सेरेमनी  देखनी चाहिए.

दरअसल रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आज एक खबर का निर्माण करने पहुंचे हैं वह है शस्त्र पूजा. आज सिर्फ हमारे रक्षा मंत्री राफेल में उड़ान  भरेंगे, फोटो सेशन होगा और राफेल जेट हमें आज हैंड ओवर या कहें,  मिलेगा नहीं, यह भारत की धरती पर आज नहीं आएगा. सरकारी सूत्रों की खबर कहती है यह अगले साल ही भारत की सर जमी पर कदम रखेगा फिर रक्षा मंत्री का शस्त्र पूजन का क्या अर्थ है?

सरकार प्रतीक गढ़ रही है

सरकार, नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार प्रतीक गढने में माहिर है. कब, कहां और कैसे बारंबार संपूर्ण ऊर्जा के साथ जनता जनार्दन को, आज की यह यह मोदी सरकार, ग्राहय हो यह प्रयास बड़ी शिद्दत के साथ किए जाते हैं. और मोदी सरकार की “थिंकटैंक” यह प्रयास निरंतर कर रहा है या मानता भी है की कोई भी मौका, राष्ट्रवाद और मोदी वाद उभारने से, चुकना नहीं है. यही कारण है कि ‘हाउडी मोदी’ शो हो या उनका देश वापसी का समय उसे “महोत्सव” बना दिया जाता है. इसी की अगली कड़ी है राफेल जेट की खरीदी, जिसे यह मोदी सरकार कुछ ऐसे प्रचारित कर रही है मानो राफेल जेट के आते ही पाकिस्तान आत्मसमर्पण कर देगा. और रक्षा मंत्री शस्त्र  पूजा तो, एक ऐसा ढकोसला है जो मोदी सरकार के भक्तों को कारु के खजाने की मानिंद जान पड़ रहा है. यह देश में हिंदुत्व कि लहर पैदा  करने की एक सोची समझी रणनीति के अलावा कुछ नहीं है. और मोदी सरकार कहीं चूकती भी नहीं है.

विपक्ष की बोलती बंद है

इधर विपक्ष अर्थात कांग्रेस की लीडरान सोनिया गांधी हों,  या राहुल गांधी अथवा अन्य सब की बोलती बंद है. राफेल जेट की खरीदी के घोटाले, घपले की बात करने वाले राहुल गांधी इन दिनों देश से बाहर हैं. और आज कांग्रेस राफेल पर कुछ भी बोलने से कतरा रही है तो क्या  राफेल  पर जो आरोप राहुल गांधी ने लगाए थे,  वह सब चुनावी स्टंट थे?

पहले यह राफेल जेट की खेप, पितृपक्ष में आने वाली थी. कहते हैं इसे सरकार द्वारा रोका गया और प्रतीक जोड़ने के लिए 8 अक्टूबर अर्थात विजयादशमी का समय -काल चुना गया है. क्या यह अच्छा नहीं होता कि राफेल जेट, जब भी भारत आता, तब प्रधानमंत्री मोदी संपूर्ण मंत्रियों सहित  हमारी सरकार उसका पूजन करती,  तब शायद देश की आवाम का खून और तेजी से उबाल मारता और और भाजपा के वोट भी पक्के होते.

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‘कार्तिक और नायरा’ की शादी की खबर सुनकर, ‘वेदिका’ का क्या होगा रिएक्शन

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ दर्शकों का फेवरेट शो बना हुआ है. हाल ही में इस सीरियल में कार्तिक नायरा के बीच की दूरीयां दिखाई जा रही थी. सीरियल की कहानी से ऐसा प्रतित हो रहा था कि कार्तिक नायरा अब एक हो भी पाएंगे या नहीं.  इस शो के दर्शकों के लिए खुशखबरी है कि अब कार्तिक नायारा एक हो गए. ये खुशखबरी दर्शकों के लिए  ट्रीट की तरह साबित होगा.

जी हां सही सुना आपने कार्तिक-नायरा एक हो गए. चलिए बताते हैं आपको कार्तिक नायरा कैसे एक हो गए और इन दोनों के बारे में जानकर वेदिका का रिएक्शन क्या  रहा?

दरअसल कार्तिक और नायरा ने एक बार फिर से शादी कर ली है. और उन्होंने ये शादी नशे की हालत में की है. भले ही कार्तिक और नायरा एकदूसरे से गुस्सा क्यों न हो जाए पर वो आज भी एकदूसरे से प्यार करते हैं. इधर कार्तिक और नायरा की डिवोर्स की तैयारी चल रही है. तो वही उन दोनों ने अपने प्यार के आगे मजबुर होकर शादी कर ली है.

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आपको बता दें. कार्तिक-नायरा किडनैप हो गई थे और उन दोनों को गुंडों ने एक स्टोर रूम में बंद कर दिया था. उसी हालत में कार्तिक-नायरा अपना इमोशन बांटते दिखे. नशे की हालत में दोनों अपने दिल की बात कहें और फिर से सात फेरे लिए.

तो वही उधर उनके किडनैपिंग से वेदिका खुद को दोषी मानती है और कहती है, मैं इतना नीचे कैसे गिर सकती हूं. लेकिन कोर्ट में नायरा कार्तिक की शादी की खबर सुनकर उसके होश उड़ जाएंगे. वेदिका गुस्से में  आग बबूला होती नजर आएगी. अपकमिंग एपिसोड में देखना ये दिलचस्प होगा कि कार्तिक नायरा के एक होने से वेदिका का अगला कदम क्या होगा.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: कायरव की कस्टडी छीन जाने के बाद नायरा हो जाएगी गायब

वापसी की राह : भाग 2

लेखक : विनय कुमार सिंह

उस ने फोन उठाया और अपने लोगों से पता लगाना शुरू किया कि जरीना की बेटी को किस ने उठाया होगा. रात तक उसे खबर मिल गईर् कि जरीना की बेटी को जिस्फरोशी के धंधे में डालने के लिए अगवा किया गया है. लेकिन जिस्मफरोशों ने उसे इस जगह से कई सौ किलोमीटर दूर पहुंचा दिया था. अब उसे वहां से छुड़ा कर लाना बहुत टेढ़ी खीर थी. वहां पर किसी ऐसे को वह जानता भी नहीं था जिस से मदद के लिए कह सके. बल्लू इन्हीं विचारों में खोया हुआ था कि उसे एक उम्मीद दिखी. उस ने फोन उठाया और इलाके के इंस्पैक्टर को लगाया. सारी बात बताने के बाद उस ने उस से मदद मांगी, लेकिन इंस्पैक्टर यह मानने को तैयार ही नहीं था कि बल्लू बिना पैसे लिए यह काम करने जा रहा है. बल्लू ने उसे समझाया कि वह वहां की पुलिस से बात करे, उन सब को उन का हिस्सा मिल जाएगा.

‘‘ठीक है, एक पेटी मुझे चाहिए, बाकी वहां वाला जो मांगेगा, वह देना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है साहब, आप बात करो, पैसा मिल जाएगा,’’ बल्लू ने कहा तो एक बार खुद उसे अपनी बात पर भरोसा नहीं हुआ. बिना पैसे के आज तक कोई काम नहीं किया था उस ने और आज सिर्फ एकसाथ पढ़ने वाली लड़की के लिए इतना बड़ा काम अपने पैसे से करने जा रहा है. लेकिन कुछ तो था जरीना की आंखों में, जिस ने उसे यह सब करने पर मजबूर कर दिया था.

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उस इलाके के इंस्पैक्टर से बात हुई, सौदा 3 लाख रुपए में पक्का हुआ. पैसों का इंतजाम कर बल्लू ने इंसपैक्टर को पैसे भिजवाए और अब बेसब्री से जरीना की बेटी की रिहाई के बारे में सोचने लगा.

जरीना हर समय फोन को देखती, उसे भी जैसे पूरा भरोसा था कि बल्लू जरूर उस की बेटी को छुड़ा लाएगा. जब भी फोन बजता, वह भाग कर उठाती. लेकिन, फोन बल्लू के अलावा किसी और का ही होता. एक दिन बीत गया था और उसे अफसोस हो रहा था कि उस ने क्यों बल्लू का नंबर नहीं लिया. अगले दिन फिर चलूंगी बल्लू के पास और एक बार और हाथ जोड़ूंगी उस के, यही सब सोच रही थी वह कि बल्लू का फोन आया.

उस ने जरीना को बता दिया कि उस की बेटी का पता चल गया है और उम्मीद है अगले 2 दिनों में वह उसे घर ले आएगा. बस, वह इस का जिक्र किसी से न करे और परेशान न हो. जरीना की आंखों से गंगाजमुना बह निकली, उस का मन खुशियों से सराबोर हो गया था. वह जब तक बल्लू को धन्यवाद देने के बारे में सोचती, फोन कट गया था. उस ने लपक कर बेटी का फोटो उठाया और उसे बेतहाशा चूमने लगी. उस के आंसू फोटो के साथसाथ उस के दामन को भी भिगोते रहे.

इंस्पैक्टर ने बल्लू को फोन कर के उस जगह का नाम बताया जहां उसे जरीना की बेटी मिलने वाली थी. अब बल्लू को बिलकुल भी चैन नहीं था और वह अपनी जीप में कुछ साथियों के साथ निकल गया. शाम होतेहोते वह उस इलाके के इंस्पैक्टर के पास पहुंच गया. उस ने अड्डे का पता बताया और बल्लू से कहा कि वह लड़की को ले कर निकल जाए, किसी को कानोंकान खबर न हो.

बल्लू अड्डे पर पहुंचा. जरीना की बेटी बुरी हालत में थी. पिछले कुछ दिन उस ने जिस हालत में बिताए थे, उस के चलते और कुछ की उम्मीद भी नहीं थी. पुलिस को देख कर जरीना की बेटी एकदम से चौंकी और उसे समझ में आ गया कि अब शायद उस की रिहाई हो जाए.

इंस्पैक्टर ने उस की मां से उस की बात कराई और बताया कि उस ने बल्लू को भेजा है उसे लाने के लिए. जरीना की बेटी निखत ने बल्लू को कस के पकड़ लिया और उस के कंधे पर सिर रख कर फूटफूट कर रोने लगी. कुछ देर तक तो बल्लू को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन फिर उस की आंखों से भी आंसू बह निकले.

‘‘अब चिंता मत कर बेटी, मैं आ गया हूं,’’ बोलते हुए उस ने बेटी को दिलासा दी और फिर वह इंस्पैक्टर को धन्यवाद दे कर जीप से वापस चल पड़ा. पूरे रास्ते निखत भयभीत रही, रहरह कर वह रो पड़ती थी. बल्लू उस के पास ही बैठा था और उसे दिलासा देता रहा. शाम होतेहोते बल्लू निखत को ले कर अपने शहर पहुंच गया और सीधे जरीना के घर पहुंचा. जरीना को लगातार खबर मिल रही थी उस के पहुंचने की और वह बेसब्री से दरवाजे पर ही खड़ी थी कई घंटों से.

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जैसे ही जीप रुकी, निखत उतर कर भागी जरीना की तरफ. जरीना ने भी बेटी को देखा और वे दोनों एकदूसरे से लिपट कर बुरी तरह रोने लगीं. बल्लू कुछ देर ऐसे ही खड़ा जरीना और उस की बेटी को देखता रहा और फिर वह वापस अपने अड्डे पर चलने के लिए मुड़ा.

जरीना ने उस की बांह पकड़ी और फिर निखत को ले कर तीनों घर के अंदर चले गए. सब की आंखों के किनारे भी भीगे हुए थे. जरीना की बेटी तो उस से चिपक कर ही बैठी थी. अभी भी वह उस सदमे से उबर नहीं पाई थी. बल्लू भी मांबेटी को देख कर मन ही मन भीग गया. शायद पिछले कई सालों में पहली बार उस ने कोई अच्छा काम किया था जिस से उस के दिल को संतुष्टि हुई थी.

वापस आ कर बल्लू सोच में डूबा हुआ था, अब इस नेक काम को करने के बाद उसे अपना काम खटकने लगा. उसे जरीना के रूप में अब एक बहन मिल गई थी क्योंकि उस की बेटी को उस ने अपना मान लिया था.

अब उस के सामने एक बेहतर जिंदगी बिताने के लिए एक मकसद भी दिख रहा था. लेकिन जिस पेशे में वह था, उस से निकलना इतना आसान कहां था. न जाने कितने दुश्मन बन चुके थे और पुलिस में भी उस के नाम से एक बड़ी और बदनाम फाइल थी. इतना तो उसे पता ही था कि वह तभी तक बचा हुआ है जब तक वह इस पेशे में है. जिस दिन उस ने हथियार डाले, या तो दुश्मन और या फिर पुलिस उस का काम तमाम कर देगी. एक झटके में उस ने इन सब सोचों को विराम दिया और फिर वर्तमान में आ गया. हां, इतना परिवर्तन जरूर हो गया था उस में कि अब से किसी महिला या लड़की को प्रताडि़त करने वाला कोई काम नहीं करेगा.

उधर, जरीना ने फैसला कर लिया था कि अब उसे इस घटिया समाज की कोई परवा नहीं करनी है. उस समाज का क्या फायदा जो वक्त आने पर पीछे हट जाए और किसी का भला न कर सके. उस ने सोच लिया कि बल्लू को अपने घर में बुलाएगी और सारे रिश्तेदारों के सामने उसे अपना भाई बना लेगी. इसी बहाने उस की बेटी को भी एक पिता जैसे शख्स का साया मिल जाएगा. उस ने बल्लू को फोन लगाया, लेकिन उधर से आने वाली आवाज ने उसे हैरान कर दिया, ‘यह नंबर मौजूद नहीं है.’

धन्नो : भाग 1

धन की कमी ने भानुमती को व्यंग्य से धन्नो कहलवाया तो अनु की सहायता के सहारे भानुमती ने अपने बच्चों को संवारा था. काफी अरसे बाद भानुमती से जब अनु की भेंट हुई तब वे सच में धन्नो बन चुकी थीं लेकिन लक्ष्मी का गृहप्रवेश बड़ा ही विद्रूप था.

भानुमती नाम था उन का. निम्नमध्य- वर्गीय परिवार, परिवार माने पूरे डेढ़ दर्जन लोग, कमाने वाला इकलौता उन का पति और वे स्वयं राजस्थान के एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका.

‘‘जब देखो तब घर में कोहराम छिड़ा रहता है,’’ वे अकसर अनु से कहती थीं. अनु उन से आधी उम्र की थी. उस की नियुक्ति प्रिंसिपल के पद पर हुई थी. भानुमती अकसर देर से स्कूल आतीं और जब आतीं तो सिर पर पट्टी बंधी रहती. सिर में उन के सदैव दर्द रहता था. चिड़चिड़ा स्वभाव, स्कूल आती थीं तो लगता था किसी जंग के मैदान से भाग कर आई हों.

उन्हें अनुशासन में बांधना असंभव था. अनु उन से एक सुहृदया बौस की तरह पेश आती थी. यही कारण था कि सब की अप्रिय, भानुमतीजी अपने जीवन की पोथी उस के सामने खोल कर बैठ जाती थीं.

एक दिन प्रार्थना सभा में वे चक्कर खा कर गिर पड़ीं. तुरंत चिकित्सा आदि की गई तो पता चला कि पिछले 24 घंटे से उन्होंने एक बूंद पानी भी नहीं पिया था. वे 7 दिन से व्रत कर रही थीं. स्कूल आना बेहद जरूरी था क्योेंकि परीक्षा चल रही थी. समय ही नहीं जुटा पाईं कि अपना ध्यान रख सकें. जब उन्हें चाय आदि पिला कर स्वस्थ किया गया तो एकदम से फफक पड़ीं.

‘‘आज घर में 10 रुपए भी नहीं हैं. 7 अपने बच्चे, 2 हम, सासससुर, 1 विधवा ननद व 4 उस के बच्चे. सब के तन पर चादर तानतेतानते चादर ही फट गई है, किसकिस का तन ढकूं? किसकिस के पेट में भोजन डालूं? किसकिस के पैरों को पत्थरकंकड़ चुभने से बचाऊं? किस को पढ़ाऊं, किस को नहीं? सब जरूरी हैं. एक का कुरता सिलता है तो दूसरे की सलवार फट जाती है. एक की रोटी सिंकती है तो दूसरे की थाली खाली हो जाती है. और ये लक्ष्मीमाता मेरे घर के दरवाजे की चौखट से कोसों दूर…वहां विष्णु के पैर दबा रही हैं. खुद तो स्वर्णजडि़त ताज पहने, कमल के फूल पर विराजमान हैं और यहां उन के भक्तों को कांटों के गद्दे भी नसीब नहीं होते…’’

न मालूम क्याक्या बड़बड़ा रही थीं. उस दिन तो जैसे किसी वेगवती नदी का बांध टूट गया हो. उन्होंने किसी को नहीं छोड़ा. न ऊपर वाले को न नीचे वाले को….

थोड़ा स्वस्थ होने पर बोलीं, ‘‘चाय का यह घूंट मेरे गले में दिन भर बाद उतरा है पर किसी को फिक्र है मेरी पति तो इस भीड़ में ऐसे खो गए हैं कि मेरी शक्ल देख कर भी मुझे पहचान नहीं पाएंगे. बस, बच्चे पैदा कर डाले, वह भी 7. आज के जमाने में जहां लोगों के घर 1 या 2 बच्चे होते हैं, मेरे घर में दूसरों को देने लायक ऐक्स्ट्रा बच्चे हैं. 6 बेटियां हैं, परंतु उन्हें तो बेटा चाहिए, चाहिए तो बस चाहिए, आखिर 7वां बेटा हुआ.

‘‘सच पूछो तो मैडम, मुझे अपनी कोखजनों से कोई लगाव नहीं है, कोई ममता नहीं है. आप कहेंगी कि कैसी मां हूं मैं? बस, मैं तो ऐसी ही हूं…रूखी. पैसे का अभाव ब्लौटिंग पेपर की तरह समस्त कोमल भावनाओं को सोख गया है. पानी सोख लेने वाला एक पौधा होता है, ठीक उसी तरह मेरे इस टब्बर ने पैसों को सोख लिया है,’’ वे रोती जा रही थीं और बोलती जा रही थीं.

‘‘जीवन में कुछ हो न हो, बस पैसे का अभाव नहीं होना चाहिए. मुझे तो आजकल कुछ हो गया है, पेड़ों पर लगे पत्ते रुपए नजर आते हैं. मन करता है, उन्हें तोड़ लाऊं. सड़क पर पड़े ईंट के टुकड़े रुपयों की गड्डी नजर आते हैं और नल से पानी जब खाली लोहे की बालटी में गिरता है तो उस में भी पैसों की खनक जैसी आवाज मुझे सुनाई देती है.’’

उस दिन उन की यह दशा देख कर अनु को लगा कि भानुमतीजी की मानसिक दशा बिगड़ रही है. उस ने उन की सहायता करने का दृढ़ निश्चय किया. मैनेजमैंट के साथ मीटिंग बुलाई, भानुमतीजी की सब से बड़ी लड़की जो कालेज में पढ़ रही थी, उसे टैंपोररी नौकरी दिलवाई, दूसरी 2 लड़कियों को भी स्कूल के छोटे बच्चों के ट्यूशन दिलवाए.

अनु लगभग 8 साल तक उस स्कूल में प्रिंसिपल रही और उस दौरान भानुमतीजी की समस्याएं लगभग 50 फीसदी कम हो गईं. लड़कियां सुंदर थीं. 12वीं कक्षा तक पढ़ कर स्वयं ट्यूशन करकर के उन्होंने कुछ न कुछ नौकरियां पकड़ लीं. सुशील व कर्मठ थीं. 4 लड़कियों की सहज ही बिना दहेज के शादियां भी हो गईं. 1 बेटी डाक्टरी में निकल गई और 1 इंजीनियरिंग में.

ननद के बच्चे भी धीरेधीरे सैटल हो गए. सासससुर चल बसे थे, पर उन का बुढ़ापा, भानुमतीजी को समय से पहले ही बूढ़ा कर गया था. 47-48 साल की उम्र में 70 साल की प्रतीत होती थीं भानुमतीजी. जब कभी कोई बाहर से सरकारी अफसर आता था और शिक्षकों का परिचय उन से करवाया जाता था, तो प्राय: कोई न कोई अनु से प्रश्न कर बैठता था :

‘‘आप के यहां एक टीचर काफी उम्र की हैं, उन्हें तो अब तक रिटायर हो जाना चाहिए.’’

उन की उम्र पता चलने पर, उन के चेहरे पर अविश्वास के भाव फैल जाते थे. जहां महिलाएं अपनी उम्र छिपाने के लिए नईनई क्रीम, लोशन व डाई का प्रयोग करती हैं वहीं भानुमतीजी ठीक इस के विपरीत, न बदन पर ढंग का कपड़ा न बालों में कंघी करना. लगता है, वे कभी शीशे में अपना चेहरा भी नहीं देखती थीं. जिस दिन वे मैचिंग कपड़े पहन लेती थीं पहचानी नहीं जाती थीं.

‘‘महंगाई कितनी बढ़ गई है,’’ वे अकसर कहती रहती थीं. स्टाफरूम में उन का मजाक भी उड़ाया जाता था. उन के न मालूम क्याक्या नाम रखे हुए थे… उन्हें भानुमतीजी के नाम से कोई नहीं जानता था.

एक दिन इंटरस्कूल वादविवाद प्रतियोगिता के सिलसिले में अनु ने अपने नए चपरासी से कहा, ‘‘भानुमतीजी को बुला लाओ.’’

वह पूरे स्कूल में ढूंढ़ कर वापस आ गया. तब अनु ने उन का पूरा नाम व क्लास लिख कर दिया, तब कहीं जा कर वे आईं तो अनु ने देखा कि चपरासी भी हंसी को दबा रहा था.

अनु ने वादविवाद का विषय उन्हें दे दिया और तैयारी करवाने को कहा. विषय था : ‘टेलीविजन धारावाहिक और फिल्में आज साहित्य का स्थान लेती जा रही हैं और जिस प्रकार साहित्य समाज का दर्पण होता जा रहा है वैसे ही टेलीविजन के धारावाहिक या फिल्में भी.’

वादविवाद प्रतियोगिता में बहुधा टीचर्स की लेखनी व वक्ता का भावपूर्ण भाषण होता है. 9वीं कक्षा की नीति प्रधान, भानुमतीजी की क्लास की थी. उस ने ओजपूर्ण तर्क रखा और समस्त श्रोताओं को प्रभावित कर डाला. उस ने अपना तर्क कुछ इस प्रकार रखा था :

‘टेलीविजन धारावाहिक व फिल्में समाज का झूठा दर्पण हैं. निर्धन किसान का घर, पांचसितारा होटल में दिखाया जाता है. कमरे में परदे, सोफासैट, खूबसूरत पलंग, फर्श पर कालीन, रंगीन दीवारों पर पेंटिंग और बढि़या स्टील के खाली डब्बे. भारी मेकअप व गहनों से लदी महिलाएं जेवरात की चलतीफिरती दुकानें लगती हैं.’

व्यंग्यात्मक तेवर अपनाते हुए नीति प्रधान पुरजोर पौइंट ढूंढ़ लाई थी, टेलीविजन पर गरीबी का चित्रण और वास्तव में गरीबी क्या होती है?

‘गरीब के नए कपड़ों पर नए कपड़ों का पैबंद लगाया दिखाते हैं. वे तो अकसर ऐसे लगते हैं जैसे कोई बुटीक का डिजाइन. गरीबी क्या होती है? किसी गरीब के घर जा कर देखें. आजकल के युवकयुवतियां घुटनों पर से फटी जीन्स पहनना फैशन मानते हैं, तब तो गरीब ही सब से फैशनेबल हैं. बड़ेबड़े स्टेटस वाले लोग कहते हैं :

‘आई टेक ब्लैक टी. नो शुगर प्लीज.’

‘अरे, गरीब के बच्चे सारी जिंदगी ब्लैक टी ही पीते रहे हैं, दूध और शक्कर के अभाव में पलतेपलते वे कितने आधुनिक हो गए हैं, उन्हें तो पता ही नहीं चला. आजकल अकसर लोग महंगी होलव्हीट ब्रैड खाने का ढोल पीटते हैं. अरे, गरीब तो आजीवन ही होलव्हीट की रोटियां खाता आया है. गेहूं के आटे से चोकर छान कर रोटियां बनाईं तो रोटियां ही कम पड़ जाएंगी. और हां, आजकल हर वस्तु में रिसाइक्ंलिंग शब्दों का खूब इस्तेमाल होता है, गरीब का तो जीवन ही रिसाइकल है. सर्दी की ठिठुरती रातों में फटेपुराने कपड़ों को जोड़ कर जो गुदड़ी सिली जाती है उसे कोई फैशनेबल मेमसाहब अपना बटुआ खाली कर खरीद कर ले जाएंगी.’

धन के अभाव का ऐसा आंखोंदेखा हाल प्रस्तुत करने वाला और कौन हो सकता था? प्रतियोगिता में नीति प्रथम घोषित हुई थी.

अजब गजब: ये है रौक कपल

दूरदूर तक फैले जल में खड़ी ये 2 पहाड़ी चट्टानें जापान के फुटामी की चट्टानें हैं, जिन्हें मीओटो ईवा यानी मैरीड कपल रौक के रूप में भी जाना जाता है. धान के भूसे से बनी कई टन वजनी रस्सियों, जिन्हें शिमेनावा कहा जाता है, से बांधी गई इन चट्टानों को इस तरह बंधे होने की वजह से ही इन्हें मैरीड कपल्स का नाम मिला है.

इन्हें बांधने वाली धान की रस्सियों को हर साल बदल दिया जाता है. निस्संदेह यह दर्शनीय स्थल है, लेकिन जापानियों के लिए यह सिर्फ दर्शनीय स्थल नहीं हैं, इन चट्टानों से उन की धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हैं.

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जापान में मान्यता है कि ये दो चट्टानें देवताओं के वंशज इजानागी और जन्म, जीवन और मृत्यु निर्धारित करने वाली देवी इजानामी के एक हो जाने का प्रतीक हैं. इन में से बड़ी चट्टान को पति और छोटी को पत्नी माना जाता है. इसी वजह से बड़ी संख्या में जापानी कपल यहां अपनी शादी की कामनाएं ले कर आते हैं. जिस समय इन चट्टानों की रस्सियों को बदला जाता है, तब यहां बड़े त्यौहार जैसा मेला लगता है.

इस तसवीर को आस्ट्रेलिया की अनास्तासिया वूलमिंगटन ने क्लिक किया है. यह तसवीर 4900 प्रतिभागियों के बीच एप्सन इंटरनेशनल पानो अवार्ड्स के फाइनलिस्ट तक पहुंची थी.

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सुलझ न सकी परिवार की मर्डर मिस्ट्री: भाग 1

लेखक: निखिल अग्रवाल

डा. प्रकाश सिंह वैज्ञानिक थे. उन का हंसताखेलता परिवार था, घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी. फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक दिन उन के फ्लैट में परिवार के सभी सदस्यों की लाशें मिलीं?

एक जुलाई की बात है. सुबह के करीब 7 बजे का समय था. रोजाना की तरह घरेलू नौकरानी जूली डा. प्रकाश सिंह के घर पहुंची. उस ने मकान की डोरबैल  बजाई. बैल बजती रही, लेकिन न तो किसी ने गेट खोला और न ही अंदर से कोई आवाज आई.

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. डा. प्रकाश सिंह का परिवार सुबह जल्दी उठ जाता था. रोजाना आमतौर पर डा. सिंह की पत्नी सोनू सिंह उर्फ कोमल या बेटी अदिति डोरबैल बजने पर गेट खोल देती थीं. उस दिन बारबार घंटी बजाने पर भी गेट नहीं खुला तो जूली परेशान हो गई. वह सोचने लगी कि आज ऐसी क्या बात है, जो साहब की पूरी फैमिली अभी तक नहीं जागी है.

बारबार घंटी बजने पर घर के अंदर से पालतू कुत्तों के भौंकने की आवाजें आ रही थीं. कुत्तों की आवाज पर भी गेट नहीं खुलने पर जूली को चिंता हुई. उस ने पड़ोसियों को बताया. पड़ोसियों ने भी डोरबैल बजाई. दरवाजा खटखटाया और आवाजें दीं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. थकहार कर पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दे दी.

यह बात हरियाणा के जिला गुरुग्राम के सेक्टर-49 स्थित पौश सोसायटी ‘उप्पल साउथ एंड’ की है. डा. प्रकाश इसी सोसायटी के एफ ब्लौक में 3 मंजिला बिल्डिंग के भूतल पर स्थित आलीशान फ्लैट में रहते थे.

वह वैज्ञानिक थे और नामी दवा कंपनी सन फार्मा में निदेशक रह चुके थे. करीब एक महीने पहले ही डा. सिंह ने इस सन फार्मा कंपनी की नौकरी छोड़ी थी. कुछ दिनों बाद उन्हें हैदराबाद की एक बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनी में नई नौकरी जौइन करनी थी.

55 वर्षीय डा. सिंह के परिवार में उन की पत्नी डा. सोनू सिंह, 20 साल की बेटी अदिति और 14 साल का बेटा आदित्य था. चारों इसी फ्लैट में रहते थे. डा. प्रकाश सिंह दवा कंपनी में वैज्ञानिक की नौकरी के साथसाथ पत्नी के साथ स्कूल भी चलाते थे. गुरुग्राम और पलवल में उन के 4 स्कूल थे. बेटी अदिति भी बी.फार्मा की पढ़ाई कर रही थी जबकि बेटा नवीं कक्षा में पढ़ता था.

सोसायटी के लोगों की सूचना पर कुछ ही देर में पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने भी पहले तो डा. सिंह के मकान की डोरबैल बजाई और कुंडी खटखटाई, लेकिन जब गेट नहीं खुला तो खिड़की तोड़ने का फैसला किया गया. खिड़की तोड़ कर पुलिस मकान के अंदर पहुंची तो वहां का भयावह नजारा देख कर हैरान रह गई.

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बैडरूम में 3 लाशें पड़ी थीं. खून फैला हुआ था. घर की लौबी में लगे पंखे में बंधी नायलौन की रस्सी से एक अधेड़ आदमी लटका हुआ था. रूम में बैड पर एक लड़की का और बैड से नीचे एक किशोर के शव पड़े थे. इन से करीब 6 फुट दूर जमीन पर अधेड़ महिला की लाश पड़ी थी. तीनों पर हथौड़े जैसी भारी चीज से वार करने के बाद गला काटने के निशान थे.

पुलिस ने बैड और जमीन पर पड़े तीनों लोगों की नब्ज टटोल कर देखी, लेकिन उन की सांसें थम चुकी थीं. उन के शरीर में जीवन के कोई लक्षण नहीं थे. पंखे से लटके अधेड़ की जान भी जा चुकी थी.

पड़ोसियों से पुलिस ने उन लाशों की शिनाख्त करवाई तो पता चला कि पंखे से लटका शव डा. प्रकाश सिंह का था और बैड पर उन की बेटी अदिति व बेटे आदित्य की लाशें पड़ी थीं. जमीन पर पड़ा शव डा. सिंह की पत्नी डा. सोनू सिंह का था.

पुलिस ने खोजबीन की तो डा. प्रकाश सिंह के पायजामे की जेब से 4 लाइनों का अंगरेजी में लिखा सुसाइड नोट मिला. सुसाइड नोट में उन्होंने परिवार संभालने में असमर्थता जताते हुए घटना के लिए खुद को जिम्मेदार बताया था. सुसाइड नोट पर एक जुलाई की तारीख लिखी थी.

डा. प्रकाश सिंह के घर में पुलिस को 4 पालतू कुत्ते भी मिले. जमीन पर खून फैला होने के कारण कुत्ते भी खून से लथपथ थे. इन में 2 कुत्ते जरमन शेफर्ड और 2 कुत्ते पग प्रजाति के थे. परिवार के चारों सदस्यों ने ये अलगअलग कुत्ते पाल रखे थे.

जरमन शेफर्ड कुत्ते डा. प्रकाश और उन के बेटे आदित्य को तथा पग प्रजाति के कुत्ते डा. सोनू व उन की बेटी अदिति को प्रिय थे. ये चारों कुत्ते कमरे में शवों के पास बैठे थे. पुलिस के घर आने पर ये कुत्ते भौंकने लगे थे. नौकरानी जूली ने उन्हें पुचकार कर शांत किया.

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प्रारंभिक तौर पर यही नजर आ रहा था कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी और बेटे की हत्या करने के बाद फांसी लगा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. डा. प्रकाश के पूरे परिवार की मौत की जानकारी मिलने पर पूरी सोसायटी में सनसनी फैल गई.

लोगों से पूछताछ में ऐसी कोई बात पुलिस के सामने नहीं आई, जिस से यह पता चलता कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी और बेटे की हत्या के बाद खुद फांसी क्यों लगा ली. पड़ोसियों ने बताया कि डा. प्रकाश और उन का परिवार खुशमिजाज था. उन्हें पैसों की भी कोई परेशानी नहीं थी.

पड़ोसियों से पूछताछ कर पुलिस ने डा. प्रकाश के परिजनों और रिश्तेदारों का पता लगाया. फिर उन्हें सूचना दी गई. सूचना मिलने पर सब से पहले डा. सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा वहां पहुंचीं.

दिल्ली में रहने वाली सीमा अरोड़ा हाईकोर्ट में वकील हैं. उन्होंने पुलिस को बताया कि पिछली रात 11 बजे तक डा. प्रकाश के घर में सब कुछ ठीकठाक था. वह खुद रात 11 बजे तक अदिति से वाट्सऐप पर चैटिंग कर रही थीं.

सीमा अरोड़ा की बातों से यह तय हो गया कि यह घटना रात 11 बजे के बाद हुई. दूसरा यह भी था कि सुसाइड नोट पर एक जुलाई की तारीख लिखी थी. एक जुलाई रात 12 बजे शुरू हुई थी. सीमा अरोड़ा से बातचीत में पुलिस को ऐसा कोई कारण पता नहीं चला, जिस से इस बात का खुलासा होता कि डा. प्रकाश ने ऐसा कदम क्यों उठाया.

वैज्ञानिक के परिवार के 4 सदस्यों की मौत की जानकारी मिलने पर गुरुगाम पुलिस के तमाम आला अफसर मौके पर पहुंच गए. एफएसएल टीम भी बुला ली गई. फोरैंसिक वैज्ञानिकों ने घर में विभिन्न स्थानों से घटना के संबंध में साक्ष्य एकत्र किए. पुलिस ने डा. प्रकाश का शव फंदे से उतारा. दोपहर में चारों शवों को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया.

इस दौरान पुलिस ने घर के बाथरूम से 3 मोबाइल फोन बरामद किए. ये फोन पानी से भरी बाल्टी में पड़े थे. तीनों मोबाइलों के अंदर पानी चले जाने से ये चालू नहीं हो रहे थे. इसलिए तीनों मोबाइल फोरैंसिक लैब भेज दिए गए. पुलिस ने इस के अलावा मौके से रक्तरंजित एक तेज धारदार चाकू अैर एक हथौड़ा बरामद किया. माना गया कि इसी चाकू व हथौड़े से पत्नी, बेटी व बेटे की हत्या की गई.

पुलिस ने इसी दिन सीमा अरोड़ा के बयानों के आधार पर सेक्टर-50 थाने में मामला दर्ज कर लिया. डा. सिंह के परिवार के चारों कुत्ते देखभाल के लिए फिलहाल पड़ोसियों को सौंप दिए गए.

अस्पताल में चारों शवों के मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने की काररवाई में रात हो गई. अगले दिन 2 जुलाई को डा. प्रकाश और डा. सोनू सिंह के परिवारों के लोग सुबह ही गुरुग्राम पहुंच गए. पुलिस ने दोनों पक्षों के बयान लिए और जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद सुबह करीब पौने 12 बजे चारों शव परिजनों को सौंप दिए.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया कि सोनू के सिर व गले पर तेज धारदार हथियार से 20 से ज्यादा वार किए गए थे. बेटे व बेटी के सिर पर भी धारदार हथियार के 12 से 15 निशान मिले.

शव सौंपे जाने पर अंत्येष्टि को ले कर डा. प्रकाश सिंह और उन की पत्नी के पक्ष के बीच विवाद हो गया. सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा ने कहा कि वह सोनू और दोनों बच्चों के शवों की अंत्येष्टि दिल्ली ले जा कर करेंगी. इस पर डा. प्रकाश के परिजन बिफर गए. उन की बहन शकुंतला ने कहा कि अंत्येष्टि कहीं भी करो, लेकिन चारों की एक साथ ही होनी चाहिए.

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बाद में अन्य लोगों के दखल पर यह तय हुआ कि चारों की अंत्येष्टि गुरुग्राम में सेक्टर-32 के श्मशान घाट में की जाए. बाद में जब मुखाग्नि देने की बात आई तो इस बात को ले कर भी विवाद होतेहोते बचा. आपसी सहमति से सोनू, अदिति व आदित्य के शव को मुखाग्नि सीमा अरोड़ा के परिवार वालों ने दी. जबकि डा. प्रकाश के शव को उन की बहन के परिवार वालों ने मुखाग्नि दी.

उत्तर प्रदेश में वाराणसी के रघुनाथपुर गांव के रहने वाले डा. प्रकाश सिंह के पिता रामप्रसाद सिंह उर्फ रामू पटेल एक किसान थे. प्रकाश ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की थी. सोनू सिंह भी उन के साथ ही पढ़ती थीं, इसलिए दोनों में जानपहचान हो गई. फिर वे एकदूसरे से प्यार करने लगे.

बाद में दोनों ने ही रसायन विज्ञान में एम.एससी. की. एम.एससी. में दोनों ने गोल्ड मैडल हासिल किए थे. इस के बाद दोनों ने डाक्टरेट की डिग्री हासिल की. डाक्टरेट की पढ़ाई के दौरान दोनों ने अपनेअपने घर वालों की इच्छा के खिलाफ 1996 में शादी कर ली.

दोनों ने भले ही शादी कर ली, लेकिन इस के बाद दोनों के ही परिवारों के बीच गांठ बन गई, जो नाराजगी के रूप में शवों की अंत्येष्टि के दौरान नजर आई.

विवाह के बाद डा. प्रकाश की पत्नी डा. सोनू ने पहले बेटी अदिति को जन्म दिया. इस के करीब 6 साल बाद बेटा हुआ. उस का नाम आदित्य रखा. डा. प्रकाश सिंह ने सब से पहले बेंगलुरु में नौकरी की थी. इस के बाद से ही उन का पैतृक गांव रघुनाथपुर में आनाजाना कम हो गया था.

करीब 12 साल पहले डा. प्रकाश और डा. सोनू सिंह नौकरी के सिलसिले में दिल्ली आ गए. दिल्ली में डा. प्रकाश ने रैनबैक्सी फार्मा कंपनी में नौकरी शुरू की. कुछ समय बाद वे गुरुग्राम आ कर बस गए और डा. प्रकाश सिंह सन फार्मा में नौकरी करने लगे. गुरुग्राम में उन्होंने ‘उप्पल साउथ एंड’ नाम की सोसायटी में फ्लैट ले लिया.

डा. प्रकाश की अच्छीखासी नौकरी थी. घर में सुखसुविधाओं और पैसे की कोई कमी नहीं थी. पतिपत्नी दोनों ही उच्चशिक्षित थे, इसलिए कोई परेशानी भी नहीं थी. डा. सोनू सिंह ऐशोआराम की जिंदगी जीने के बजाए सामाजिक कार्यों में रुचि लेती थीं. इसलिए एक एनजीओ बना कर उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाने और उन का जीवनस्तर ऊंचा उठाने का बीड़ा उठाया.

सोनू सिंह ने करीब 8 साल पहले गुरुग्राम के फाजिलपुर में किराए का भवन ले कर गरीब बच्चों के लिए क्रिएटिव माइंड स्कूल खोला था. बाद में उन्होंने सेक्टर-49 में ‘दीप प्ले हाउस’ नाम से दूसरा स्कूल खोल लिया. सोनू सिंह के एनजीओ के माध्यम से इन दोनों स्कूलों का संचालन केवल गरीब बच्चों के उत्थान के लिए किया जाता था.

रसायन वैज्ञानिक होने के बावजूद डा. प्रकाश सिंह भी बच्चों को पढ़ाने का शौक रखते थे, इसलिए उन्होंने सोहना में ‘क्रिएटिव माइंड स्कूल’ खोला. यह स्कूल बिना लाभहानि के चलाया जाता था. डा. प्रकाश ने अप्रैल 2018 में पलवल में व्यावसायिक नजरिए से एन.एस. पब्लिक स्कूल खोल लिया. पहले यह स्कूल एग्रीमेंट पर लिया गया और बाद में दिसंबर, 2018 में इसे रजिस्ट्री करवा कर खरीद लिया गया.

डा. प्रकाश सिंह की बेटी अदिति जामिया हमदर्द से बी.फार्मा की पढ़ाई कर रही थी. इस साल वह अंतिम वर्ष की छात्रा थी. उस ने पढ़ाई के साथ सन फार्मा कंपनी में इंटर्नशिप भी शुरू कर दी थी. अदिति ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर पिछले साल सोप डायनामिक्स नाम से स्टार्टअप शुरू किया था. डा. दंपति का सब से छोटा बेटा गुरुग्राम के ही डीएवी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में कक्षा 9 में पढ़ रहा था.

डा. प्रकाश और उन की पत्नी सहित परिवार के चारों सदस्यों की मौत हो जाने से चारों स्कूलों के संचालन पर सवालिया निशान लग गए हैं. चारों स्कूलों में डेढ़ सौ से अधिक शैक्षणिक और गैरशैक्षणिक स्टाफ है. इन कर्मचारियों को वेतन और भविष्य की चिंता है. इस क ा मुख्य कारण यह है कि इन में 2 स्कूलों में खर्चे जितनी भी आमदनी नहीं होती.

पुलिस को जांचपड़ताल में पता चला कि डा. प्रकाश के घर उन के रिश्तेदारों का बहुत कम आनाजाना था. ज्यादातर सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा ही आती थीं. घटना से 10 दिन पहले भी वह परिवार के साथ यहां आई थीं. सीमा अरोड़ा के मुताबिक उस समय ऐसी कोई बात नजर नहीं आई थी, जिस का इतना भयावह परिणाम सामने आता.

डा. प्रकाश के परिवार से बहुत कम लोग कभीकभार ही यहां आते थे. डा. प्रकाश की मां अपने अंतिम समय में कुछ दिन उन के पास रही थीं. डा. प्रकाश 5 भाईबहनों में तीसरे नंबर के थे. 2 बहनें उन से बड़ी थीं और 2 छोटी. इन में एक बड़ी बहन का निधन हो चुका है. एक बहन परिवार के साथ नोएडा में और 2 बहनें बनारस में रहती हैं. डा. प्रकाश के मातापिता का निधन हो चुका है.

कहानी सौजन्य: मनोहर कहानियां

फलदार पौधों की नर्सरी आमदनी का मजबूत जरीया

हमारे देश की बदलती आबोहवा और प्रदूषण की समस्या ने खेती की मुश्किलों को काफी ज्यादा बढ़ा दिया है. ऐसे में जरूरत है ज्यादा से ज्यादा पौधे रोपे जाएं. इस में किसानों से ले कर आम आदमी को आगे आने की जरूरत है.

पेड़पौधों की अंधाधुंध कटाई ने फसलों की खेती की मुश्किलें बढ़ा दी हैं क्योंकि पेड़ों की घटती तादाद से बारिश में तेजी से कमी आई है. इस वजह से फसल की सिंचाई के लिए पानी की किल्लत बढ़ी है, वहीं किसानों के साथ आम लोगों को सांस लेने के लिए साफसुथरी औक्सिजन के लिए भी तरसना पड़ रहा है.

अगर इन सब समस्याओं से समय रहते छुटकारा पाना है तो ज्यादा से ज्यादा पौधे रोपने की तरफ हमें ध्यान देना होगा. इस से न केवल आबोहवा साफ होगी, बल्कि रोपे गए पौधे अतिरिक्त आमदनी का जरीया भी बन सकते हैं.

वैसे, हाल के सालों में उन्नतशील फलदार पौधों की मांग में तेजी से इजाफा हुआ है, लेकिन मांग की अपेक्षा अच्छी प्रजाति के पौधों की पूर्ति में पौधे तैयार करने वाली नर्सरियां सक्षम नहीं हो पा रही हैं. अगर उन्नतशील फलदार पौधों की नर्सरी तैयार करने का व्यवसाय किया जाए तो अच्छीखासी आमदनी हो सकती है.

फलदार पेड़ों में सब से ज्यादा बागबानी में आम, लीची, बेल, अनार, आंवला, अमरूद वगैरह शामिल हैं. इस में कुछ की नर्सरी कलम विधि से तो कुछ की नर्सरी गूटी विधि से तैयार करना अच्छा होता?है.

फलदार पौधों की बागबानी शुरू करने के लिए जरूरत होती है, ज्यादा पैदावार देने वाली अच्छी प्रजाति के पौधों की. ये पौधे उद्यान विभाग की नर्सरी या प्राइवेट नर्सरियों से खरीदे जा सकते हैं. इस के लिए पौध की किस्मों के मुताबिक 30 रुपए से ले कर 200 रुपए प्रति पौधों की दर से पैसा दे कर खरीदना पड़ता है.

अगर हमारे किसान स्वयं फलदार पौधों की उन्नत प्रजातियों की नर्सरी तैयार कर बागबानी के लिए उपयोग में लाएं तो उन्हें विश्वसनीय प्रजाति के साथ अच्छे उत्पादन देने वाले पौधे कम लागत में मिल सकते हैं. इसी के साथ आम की नर्सरी को कारोबारी लैवल पर तैयार कर दूसरे किसानों और बागबानी के शौकीनों को बेच कर अच्छीखासी आमदनी हासिल की जा सकती है.

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 कलम विधि से नर्सरी

फलदार पौधों में अगर आम की नर्सरी तैयार करनी है तो उस के लिए सब से सही कलम विधि होती है क्योंकि इस विधि से हम जिस प्रजाति के पौधों को तैयार करना चाहते?हैं, वह कम समय और कम लागत में तैयार हो जाती है. साथ ही, पौधे में फल भी जल्दी आना शुरू हो जाते हैं.

इस के लिए जरूरत होती है कि जिस प्रजाति के पौधे तैयार करने हों, उसी प्रजाति के 5-6 साल पुराने पौधे, जिसे उद्यान की भाषा में मदर प्लांट कहा जाता है, आप के पास लगे हों. इन्हीं पुराने पौधों के कल्ले को कलम कर बीज से तैयार पौधों में संवर्धित किया जाता है.

बीज व गुठलियों से पौध

आम या दूसरे फलदार पौधे, जिस की कलम विधि से नर्सरी तैयार की जा सकती है, उस के लिए बीज पौधों की जरूरत पड़ती है. इस में गुठलियों या बीज को जमीन में रोप कर तैयार किया जाता है. बीज से पौध तैयार करने के लिए जमीन के चयन पर ध्यान देना जरूरी होता?है. इस के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सही होती है. इस में सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट मिला कर मिट्टी को भुरभुरी बना लेते?हैं.

इस में यह भी ध्यान देना होता है कि जिस जगह पर हम बीज या गुठलियों को नर्सरी में डाल रहे हैं, वहां की जमीन समतल व ऊंची हो, जहां बरसात का पानी न ठहरे.

नर्सरी में बीज या गुठलियों से पौध तैयार करने के लिए हमें देशी प्रजाति के बीजों की जरूरत होती है, जो हमें जिला उद्यान विभाग या लखनऊ के मलीहाबाद में बीज मुहैया कराने वाली फर्मों से मिल सकते हैं.

देशी आम की गुठलियां अमरूद, आंवला, बेल वगैरह के बीज को जुलाई माह के पहले हफ्ते से ले कर अगस्त के पहले हफ्ते तक 8-8 फुट की क्यारियां बना कर डालनी चाहिए.

ध्यान रखें कि?क्यारियों में डाली जाने वाली बीज या गुठलियां मिट्टी में दबने न पाएं, क्योंकि इस से पौध की जगह बदलने पर जड़ के टूटने का डर रहता है.

बीज से तैयार होने वाले पौधे हम पौली बैग में भी उगा सकते हैं. अगर क्यारी में पौधा तैयार किया जा रहा है, तो बाद में सड़ी गोबर की खाद व आम की पत्तियों से उन की ढकाई कर देनी चाहिए. नर्सरी में डाली गई गुठलियों व बीज का जमाव 15-20 दिनों में हो जाता है.

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पौधों की ट्रांस प्लांटिंग

जब क्यारी के फलदार पौधे 25-35 दिन के हो जाएं तो इस की ट्रांस प्लांटिंग यानी पौधे की जगह बदलने का काम किया जाता है.

पौधों की ट्रांस प्लांटिंग पहले जमीन से जमीन में की जाती थी, पर अब नई तकनीक में पौधों की?ट्रांस प्लांटिंग पौली बैग में की जाने लगी है. इस से पौधों के सूखने का डर नहीं होता है.

ये पौली बैग पहले से तैयार कर के रखने चाहिए, जिस में सड़ी हुई गोबर की खाद, मिट्टी, बालू व भूसी को बराबर मात्रा में मिला कर भरा जाता है. इस तैयार पौली बैग में क्यारी से पौधों को निकाल कर लगाने के बाद स्प्रिंकलर या प्लास्टिक के पाइप द्वारा जरूरत के मुताबिक 2-3 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए.

यों करें कलम तैयार

कलम बांधने से पहले कुछ सावधानी बरतनी होती है, खासकर आम की कलम तैयार करने में, क्योंकि हमें जिस भी प्रजाति के आम का पौधा तैयार करना है, उस के 4-6 साल पुराने पौधे हमारे पास मुहैया होने चाहिए. उस के लिए ज्यादा उत्पादन और अच्छी क्वालिटी वाली किस्मों को रोपना चाहिए. ये किस्में बंबई ग्रीन, दशहरी, लंगड़ा, चौसा, गौरजीत, पंत सिंदूरी, लखनऊ सफेदा, मल्लिका, खजली, आम्रपाली, रामकेला, अरुणिमा, नीलम वगैरह हैं.

कलम तैयार करने के लिए अगर आप के पास आम की अच्छी प्रजाति के पेड़ नहीं हैं तो बागबानी करने वालों से भी आप मिल सकते हैं. इसी तरह से दूसरे फलदार पौधों की जरूरत भी पड़ती है.

जिस प्रजाति के पौधों की नर्सरी कलम विधि से तैयार करनी हो, उन पौधों की पुरानी टहनियों की काटछांट कर लें, वहीं आम की गुठलियों को नर्सरी में डालने के पहले ही तैयार कर लें. जब इन में नए कल्ले निकल आएं और 60-70 दिन पुराने हो जाएं तो इन कल्लों के पत्तों की जड़ को डेढ़ इंच ऊपर से काट दिया जाता है. कल्लों से 1-2 हफ्ते के अंदर पत्तों की जड़ें झड़ जाने के बाद ये बीज पौधों में कलम लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं.

ऐसे बांधें कलम

आम की गुठलियों या बीजों से तैयार दूसरे फलदार पौधे 8-9 महीने में कलम बांधने लायक हो जाते हैं. अकसर मध्य जून से मध्य सितंबर तक का समय फलदार पौधों की नर्सरी के कलम बांधने के लिए मुफीद होता है. वैसे तो आम की कलम की बंधाई गरमी के महीनों को छोड़ कर हर महीने की जाने लगी है.

कलम बांधने के लिए हमें पहले से तैयार किए गए पौधे के कल्ले, जो डेढ़ इंच से 2 इंच ऊपर से काटे गए हों, उन्हें 6 इंच लंबाई में पेड़ से काट कर अलग कर लिया जाता है, फिर बीज से तैयार पौधे के ऊपरी हिस्से को काट दिया जाता है और काटी गई जगह में चाकू से चीरा लगा दिया जाता है. इस के बाद इन कल्लों के निचले सिरे को दोनों तरफ से छील लेते?हैं, फिर बीज वाले पौधे के सिरे में इस को फिट कर दिया जाता है.

कलम लगाने के बाद इसे प्लास्टिक की पन्नी से कस कर बांध देते हैं. बांधी गई कलम में पौलीथिन कैप, जिसे क्लैप्ट विधि कहा जाता है, ऊपर से लगा दिया जाता है.

यह पौलिथीन कैप बांधी गई कलम को सूखने से बचाती है और कलम पर मौसम का असर भी कम पड़ता है. साथ ही, यह प्लास्टिक कैप कलम की नमी को बनाए रखने का भी काम करती है.

कलम लगाने के बाद यह ध्यान रखना जरूरी है कि पौधे में सही नमी बनी रहे. कलम बांधे गए हिस्से में जड़ की तरफ निकलने वाले हिस्से को तोड़ दिया जाता है,?क्योंकि उस से पौधा बीज हो जाता है.

इस के अलावा साइड विधि से भी कलम लगाई जाती है. इस में कल्ले व बीज पौधे को छील कर आपस में बांध दिया जाता है. लेकिन इस तरह की कलम में 20 फीसदी पौधों के मरने की आशंका बनी रहती है.

कलम बांधने के 5-6 माह में पौधे बिकने के लिए तैयार हो जाते हैं, पर पौलीथिन बैग में लगाए गए कलम के पौधे 30-40 दिन के अंदर ही बिकने के लिए तैयार हो पाते हैं.

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गूटी विधि से नर्सरी

कुछ फलदार पौधे ऐसे भी होते हैं, जिस की नर्सरी कलम विधि से न कर के गूटी विधि से किया जाना अच्छा माना जाता है. वैसे तो अलगअलग फलदार पेड़ों को तैयार करने के लिए अलगअलग विधियों से नर्सरी लगाई जाती है. इस में बीज द्वारा, कलम विधि द्वारा, कटिंग विधि द्वारा, ऊतक संवर्धन विधि द्वारा व गूटी विधियां खासतौर पर इस्तेमाल होती हैं.

अगर आप के पास नीबू, लीची, अनार, माल्टा की उन्नत किस्मों का बाग है, तो आप भी कारोबारी लैवल पर गूटी विधि से नर्सरी का काम शुरू कर सकते?हैं. इस विधि में उन्नत किस्म के पौधों को ज्यादा मात्रा में तैयार किया जा सकता?है.

बस जरूरत होती है कि गूटी लगाए जाने वाले पेड़ 5 साल पुराने हों. अगर आप के पास गूटी लगाने के लिए फलदार पौधे नहीं हैं, तो आप अपने यहां की आबोहवा के मुताबिक उन्नत किस्मों को रोपित कर नर्सरी का काम शुरू कर सकते हैं.

गूटी लगाने के लिए पेड़ की उन्नत किस्म

गूटी लगाने के लिए उन्नत किस्में ही चुनें जो ज्यादा पैदावार देने वाली हो, ताकि पौधे का अच्छा बाजार भाव आप को मिल सके.

जिन प्रजातियों के पौधों की मांग किसानों में ज्यादा हो, वह पौधे तैयार करना कारोबारी लैवल के लिए ज्यादा सही होता है. जिन पौधों की नर्सरी गूटी विधि से तैयार की जा सकती है, उन की कुछ उन्नत किस्मों के पुराने पौधे पहले से तैयार होने चाहिए.

लीची की उन्नत किस्में : शाही, त्रिकोलिया, अझौली ग्रीन, देशी, सबौर बेदाना, रोज सैंटेड, बेहरारोज, अर्ली बेदाना, स्वर्ण रूपा खास हैं.

नीबू की उन्नत किस्में: पहाड़ी नीबू, इटैलियन लैमन, विक्रम, पंत लैमन एक, कागजी नीबू खास हैं.

अनार की किस्में: गणेश, धोलका, अलाड़ी, पेपर सैल स्पैनिश, रूबी मृदुला, रूबी प्रमुख हैं.

माल्टा : हैमलिन वैलीसियालेट, कौमन माल्टा प्रमुख हैं.

गूटी बांधने का तरीका

गूटी बांधने का सही समय जुलाई के पहले हफ्ते से अगस्त माह का होता है. उस के लिए जिस फलदार पेड़ की नर्सरी के लिए पौध तैयार करनी हो, उस के  सेहतमंद व सीधी टहनियों को 1-2 फुट नीचे से चाकू द्वारा चारों तरफ 3 इंच की दूरी से छिलके उतार दिए जाते हैं.

उस के बाद उतारे गए छिलके के स्थान पर मास घास, जो हमें नर्सरी के लिए सामान बेचने वाली दुकानों से मुहैया हो जाता?है, ऊपर लगा कर पन्नी लपेटते हुए सूतली से कस कर बांध दिया जाता है.

5 दिनों के अंदर बांधी गई गूटी में जड़ें फूटनी शुरू हो जाती?हैं. इस के अलावा रूटैक्स पाउडर द्वारा भी गूटी की बंधाई की जाती है.

गूटी लगाने के एक माह बाद उन टहनियों को पौधे से काट कर अलग कर लेना चाहिए. काटी गई टहनियों को पहले से तैयार किए गए पौली बैग, जिस में सड़ी गोबर की खाद, मिट्टी, भूसी व बालू मिला कर भरा गया हो, मास घास के ऊपर की पन्नी हटा कर रोपित कर देना चािहए. रोपे गए पौली पैक के इन पौधों को क्यारी में रख कर स्प्रिंकलर के पाइप से सिंचाई करते रहें. यह पौधे एक माह में ही बिकने के लिए तैयार हो जाते हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती में उद्यान वैज्ञानिक डाक्टर दिनेश यादव का कहना है कि नर्सरी में उन्नत पौधे 30 रुपए से ले कर 200 रुपए तक में बिकते हैं. किसान खुद की नर्सरी में तैयार कर अतिरिक्त आमदनी ले सकते हैं.

आम्रपाली प्रजाति की मांग बस्ती जिला समेत उत्तर प्रदेश, बिहार के अलावा दूसरे राज्यों में भी है. आम्रपाली प्रजाति कम समय में फल देना शुरू करती है. साथ ही, दूसरी प्रजातियों की अपेक्षा यह जगह भी कम घेरती है.

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प्रकृति के नियमों पर कैसे चढ़ा धार्मिक रंग

क्या आप ने कभी देखा की चींटियों ने अपने ईष्ट देव के मंदिर बनाए, मूर्तियां गढ़ीं और पूजा की या मसजिद बनाईर् और नमाज पढ़ी? चींटियों, दीमक की बांबियों में, मधुमक्खियों के छत्तों में क्या कोई कमरा ईश्वर के लिए भी होता है? क्या आप ने कभी देखा कि बंदरों ने व्रत रखा या त्योहार मनाया. पक्षी अपने अंडे देने के लिए कितनी कुशलता और तत्परता से सुंदरसुंदर घोंसले बनाते हैं, मगर इन घोंसलों में वे ईश्वर जैसी किसी चीज के लिए कोई पूजास्थल नहीं बनाते? ईश्वर जैसी चीज का डर मानव के सिवा धरती के अन्य किसी भी जीव में नहीं है. ईश्वर का डर मानवजाति के दिल में हजारों सालों से निरंतर बैठाया जा रहा है.

इस धरती पर करीब 87 लाख जीवों की विभिन्न प्रजातियां रहती हैं. इन लाखों जीवों में से एक मनुष्य भी है. ये लाखों जीव एकदूसरे से भिन्न आकारव्यवहार के हैं, मगर इन में एक चीज समान है कि इन में से प्रत्येक में 2 जातियां हैं, एक नर और एक मादा. प्रकृति ने इन 2 जातियों को एक ही काम सौंपा है कि वे एकदूसरे से प्रेम और सहवास के जरिए अपनी प्रजाति को आगे बढ़ाए और धरती पर जीवन को चलाते रहें.

जीवविज्ञानियों ने धरती पर पाए जाने वाले लाखों जीवों के जीवनचक्र को जानने के लिए तमाम खोजें, अनुसंधान और प्रयोग किए हैं. मगर आज तक किसी वैज्ञानिक ने अपनी रिसर्च में यह नहीं पाया कि मनुष्य को छोड़ कर इस धरती का कोई भी अन्य जीव ईश्वर जैसी किसी सत्ता पर विश्वास करता हो.

ईश्वर की सत्ता को साकार करने के लिए उस के नाम पर धर्म गढ़े गए. धर्म के नाम पर मंदिर, मसजिद, शिवाले, गुरुद्वारे, चर्च ईजाद हुए. इन में शुरु हुए पूजा, भक्ति, नमाज, प्रार्थना जैसे कृत्य. इन कृत्यों को करवाने के लिए यहां महंत, पुजारी, मौलवी, पादरी, पोप बैठाए गए और उस के बाद यही लोग पूरी मानवजाति को धर्म और ईश्वर का डर दिखा कर अपने इशारों पर नचाने लगे. अल्लाह कहता है 5 वक्त नमाज पढ़ो वरना दोजख में जाओगे. ईश्वर कहता है रोज सुबह स्नान कर के पूजा करो वरना नरक प्राप्त होगा जैसी हजारों अतार्किक बातें मानवजगत में फैलाई गईं. हिंसा के जरीए उन का डर बैठाया गया. स्वयंभू धर्म के ठेकेदार इतने शक्तिशाली हो गए कि कोई उन से यह प्रश्न पूछने की हिम्मत ही नहीं कर पाया कि ईश्वर कब आया? कैसे आया? कहां से आया दिखता कैसा है? सिर्फ तुम से ही क्यों कह गया सारी बातें, सब के सामने आ कर क्यों नहीं कहीं?

मानवजगत ने बस स्वयंभू धर्माचार्यों की बातों पर आंख मूंद कर विश्वास किया, उन्होंने जैसा कहा वैसा किया. धर्माचार्यों ने तमाम नियम गढ़ दिए. ऐसे जियो, ऐसे मत जीयो. यह खाओ, वह न खाओ. यह पहनो, वह मत पहनो. यहां जाओ, वहां मत जाओ. इस से प्यार करो, उस से मत करो. यह अपना है, वह पराया है. अपने से प्यार करो, दूसरे से घृणा करो. इस में कोई संदेह नहीं है कि धर्माचार्यों ने इस धरती पर मानवजाति को भयंकर लड़ाइयों में झोंका है. किसी भी धर्म की जड़ों को तलाश लें, उस धर्म का उदय लड़ाई से ही हुआ है. हजारों सालों से धर्म के नाम पर भयंकर जंग जारी है. आज भी धरती के विभिन्न हिस्सों पर ऐसी लड़ाइयां चल रही हैं. यहूदी, मुसलमानों, ईसाइयों, हिंदुओं को हजारों सालों से धर्म और ईश्वर के नाम पर लड़ाया जा रहा है.

क्या इस धरती पर रह रहे किसी अन्य जीव को देखा है धर्म और ईश्वर के नाम पर लड़ते? वे नहीं लड़ते, क्योंकि उन के लिए इन 2 शब्दों (ईश्वर और धर्म) का कोई वजूद ही नहीं है. वे जी रहे हैं खुशी से, प्रेम से, जीवन को आगे बढ़ाते हुए, प्रकृति और सृष्टि के नियमों पर.

धर्म ने सब से ज्यादा प्रताडि़त और दमित किया है औरत को, जो शारीरिक रूप से पुरुष से कमजोर है. अगर उस ने अपने ऊपर लादे जा रहे नियमों को मानने से इनकार किया तो उस के पुरुष को उस पर जुल्म करने के लिए उत्तेजित किया गया. उस से कहा गया अपनी औरत से यह करवाओ वरना ईश्वर तुम्हें दंड देगा. तुम नर्क में जाओगे, तुम जहन्नुम में जाओगे. और पुरुष लग गया अपने प्यार को प्रताडि़त करने में. उस स्त्री को प्रताडि़त करने में जो उस की मदद से इस धरती पर मानवजीवन को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी निभाती है.

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धर्म की देन है वेश्यावृत्ति

प्रकृति ने पुरुष और स्त्री को यह स्वतंत्रता दी थी कि युवा होने पर वे अपनी पसंद के अनुरूप साथी का चयन कर के उस के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करें और सृष्टि को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दें. धर्म ने मानवजाति को अलगअलग दायरों में बांध दिया. हिंदू दायरा, मुसलिम दायरा, क्रिश्चियन दायरा, पारसी, जैनी वगैरहवगैरह. इन दायरों के अंदर भी अनेक दायरे बन गए हैं. इंसान विभाजित होता चला गया.

हर दायरे को नियंत्रित करने वाले धर्माचार्यों ने नायकों या राजाओं का चयन किया और उन्हें तमाम अधिकारों से सुसज्जित किया. इन्हीं अधिकारों में से एक था स्त्री का भोग. धर्माचार्यों ने स्त्रीपुरुष समानता के प्राकृतिक नियम को खारिज कर के पुरुष को स्त्री के ऊपर बैठा दिया.

धर्माचार्यों ने राजाओंनायकों को समझाया कि स्त्री मात्र भोग की वस्तु है. रंगमहलों में, हरम में भोग की इस वस्तु को जबरन इकट्ठा किया जाने लगा. 1-1 राजा के पास सैकड़ों रानियां होने लगीं. नवाबों के हरम में दासियां इकट्ठा हो गई. इसी बहाने से धर्माचार्यों ने अपनी ऐय्याशियों के सामान भी जुटाए.

देवदासी प्रथा की शुरुआत हुई. स्त्री नगरवधू बन गई. मरजी के बगैर सब के सामने नचाई जाने लगी. सब ने उस के साथ जबरन संभोग किया. देवदासियों का उत्पीड़न एक रिवाज बन गया. कालांतर में औरत तवायफ, रंडी, वेश्या के रूप में कोठों पर कैद हो गई और आज प्रौस्टीट्यूट या बार डांसर्स के रूप में होटलों में दिखती है. स्त्री की इस दशा का जिम्मेदार कौन है? सिर्फ धर्म.

धर्म की देन है वैधव्य

पुरुष साथी की मृत्यु के बाद स्त्री द्वारा दूसरे साथी का चुनाव करने पर धर्म और ईश्वर का डर दिखा कर धर्माचार्यों ने प्रतिबंध लगा दिया. पुरुष की मृत्यु किसी भी कारण से क्यों न हुई हो, इस का दोषी स्त्री को ठहराया गया. सजा उसे दी गई. उस से वस्त्र छीन लिए गए. बाल उतरवा लिए गए. शृंगार पर प्रतिबंध लगा दिया.

उसे उसी के घर में जेल जैसा जीवन जीने के लिए बाध्य किया गया. उसे नंगी जमीन पर सोने के लिए मजबूर किया गया. जिस ने चाहा उस के साथ बलात्कार किया. उसे रूखासूखा भोजन दिया गया. स्त्री की इच्छा के विरुद्ध ये सारे हिंसात्मक कृत्य धर्माचार्यों ने ईश्वर का डर दिखा कर पुरुष समाज से करवाए. विधवा को वेश्या बनाने में भी वे पीछे नहीं रहे.

इस धरती पर किसी अन्य जीव के जीवनचक्र में क्या ऐसा होते देखा गया है? किसी कारणवश नर की मृत्यु के बाद मादा दूसरे नर के साथ रतिक्रिया करती हुई सृष्टि के नियम को गतिमान बनाए रखती हैं. मादा की मृत्यु के बाद ऐसा ही नर भी करता है. वहां प्रताड़ना का सवाल ही पैदा नहीं होता, वहां सिर्फ प्रेम होता है.

धर्म की देन है सती और जौहर प्रथा

धर्माचार्यों ने अपने धर्म के प्रसार के लिए पहले लड़ाइयां करवाईं. उन में लाखों पुरुषों को मरवाया. लूटपाट मचाई, जीते हुए राजाओं और उन के सैनिकों ने हारने वाले राजाओं और उन के कबीले की औरतों पर जुल्म ढाए. सैनिकों ने उन से सामूहिक बलात्कार किए, उन की हत्याएं कीं, उन्हें दासियां बना कर ले गए. धर्माचार्यों ने इस कृत्य की सराहना की. इसे योग्य कृत्य बताया. कभी किसी धर्माचार्य ने इस कृत्य पर उंगली नहीं उठाई.

औरतों ने इस प्रताड़ना, शोषण, उत्पीड़न और बंदी बनाए जाने के डर से अपने राजा की सेना के हारने के बाद सती और जौहर का रास्ता इख्तियार कर लिया. धर्माचार्यों ने इस कृत्य को भी उचित ठहरा दिया. औरतें अपने पुरुष सैनिकों की लाशों के साथ खुद को जला कर खत्म करने लगीं. सामूहिक रूप से इकट्ठा हो कर आग में जिंदा कूद कर जौहर करने लगीं.

जरा सोचिए, कितना दर्द सहती होंगी वे. आप की उंगली जल जाए, फफोला पड़ जाए तो कितना दर्द होता है. और वे समूची आग में जलती रहीं, किसी धर्माचार्य ने उन के दर्द को महसूस नहीं किया, यह उस वक्त का सब से पुनीत धार्मिक कृत्य बताया जाता था.

बाल विवाह भी धर्म की देन

धर्म के ठेकेदारों ने अपनेअपने धर्म के दायरे खींचे और स्त्रीपुरुष की इच्छाअनिच्छा को अपने कंट्रोल में कर लिया. पुरुष और स्त्री अपने धर्म के दायरे से निकल कर कहीं दूसरे के धर्म में प्रवेश न कर जाएं, किसी अन्य के धर्म के व्यक्ति को अपना जीवनसाथी न बना लें, इस पर नियंत्रण करने के लिए बाल विवाह की प्रथा शुरू की गई. नवजात बच्चों तक की शादियां करवाई जाने लगीं ताकि जवान होने के बाद वे अपनी पसंद या रुचि के अनुसार अपना प्रेम न चुन सकें.

परदा प्रथा की जड़ में धर्म

क्या आप ने कभी शेरनी को मुंह छिपा कर भ्रमण करते देखा है या कबूतरी को परदा करते पाया है? अगर प्रकृति की मंशा यह होती कि मादा जाति पुरुष से अपना मुंह छिपा कर रखे तो वह इस के लिए सभी जीवों में कुछ न कुछ इंतजाम जरूर करती. चाहे पत्तों का आंचल क्यों न होता, पंखों का मुखौटा क्यों न होता, मादा पक्षी उसी से अपना मुंह छिपा कर रखतीं. मगर ऐसा तो कहीं नजर नहीं आता. ऐसा सिर्फ इंसानी दुनिया में ही दिखता है कि औरत परदा करने को बाध्य है. मुंह और शरीर को छिपाए रखने के लिए मजबूर की जाती है. क्यों? क्योंकि धर्माचार्यों ने कहा कि अगर औरत पुरुष से परदा नहीं करती तो यह पाप है, वह जहन्नुम में जाएगी.

हाल ही में एक घटना भारत के केंद्र शासित राज्य अंडमान में घटी. अंडमान के सैंटिनल द्वीप में 60 हजार साल पुरानी एक आदिम जाति निवास करती है. प्रकृति के नियमों को मानते हुए वहां स्त्रीपुरुष आज भी वैसा ही जीवन जीते हैं जैसा कि इस धरती के अन्य जीव जीते हैं. वहां धर्म, ईश्वर, धर्मांधता, वस्त्र, आभूषण जैसी चीजों का कोई स्थान नहीं है. वहां स्त्रीपुरुष समान रूप से बिना वस्त्रों के जंगलों में विचरण करते हैं. शिकार कर के अपना भोजन पाते हैं और स्वच्छंद रूप से समागम कर के अपने जीवन को आगे बढ़ाते हैं.

वहां स्त्री और पुरुष समान हैं. कोई बड़ा या कोईर् छोटा नहीं है. इस द्वीप पर टूरिस्टों के प्रवेश पर प्रतिबंध है. मगर ईसाई धर्म के एक अनुयायी ने उन के जीवन में घुसपैठ करने की कोशिश की. उस का मकसद था कि वह ईसाई धर्म का प्रचारप्रसार उन के बीच कर सके. उन्हें अपनी तर्कहीन बातों में उलझा कर उन के भीतर ईश्वर और धर्म का डर बैठा सके.

उन्हें ललचाने के लिए वह अपने साथ फुटबौल, मैडिकल किट वगैरह भी ले गया, जैसा कि आमतौर पर ईसाई मिशनरियां अपने धर्म को फैलाने के लिए किया करती हैं. जौन ऐलन चाऊ नामक इस अमेरिकी नागरिक ने इस द्वीप पर पहुंच कर आदिवासी लोगों से संपर्क साधा, उन्हें अपनी बातों को समझाने की कोशिश की, मगर वह आदिम प्रजाति उस की घिनौनी मंशा को भांप गई. जौन ऐलन चाऊ को घेर कर तीरों से छलनी कर दिया गया.

इस एक घटना से स्पष्ट है कि प्रकृति के नियमों को समझने वाले आज भी उन नियमों में फेरबदल नहीं चाहते हैं, मगर धर्म और ईश्वर जैसी अतार्किक चीजों को गढ़ने वाले प्रकृति के नियमों की धज्जियां उड़ा चुके हैं, उन का मूल स्वरूप इस कदर बिगाड़ चुका है कि फिर से दुरुस्त होने के लिए किसी प्रलय का इंतजार ही करना होगा.

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मनुष्य में बुद्धि का विकास धरती के अन्य जीवों की तुलना में काफी अधिक है, परंतु इस का इस्तेमाल उस ने विध्वंसकारी गतिविधियों में अधिक किया गया है. इस के विपरीत अगर स्त्रीपुरुष संबंध के विषय में प्रकृति के नियमों को और गहराई से समझने की कोशिश की जाती तो परिणाम ज्यादा बेहतर होते.

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