अंजलि अपने कुलीग सौमित्र से कोर्ट मैरिज करके उसके घर तो आ गयी, मगर उसे वहां कोई अपनापन महसूस नहीं होता है. उस घर की चीजों को हाथ लगाने में उसे संकोच होता है. पता नहीं कौन किस बात पर उसे टोक दे. खासतौर पर किचेन और घर के मंदिर में रखी चीजों को छूने पर उसकी सास बहुत रोक-टोक करती है. अंजलि और सौमित्र ने लव मैरिज की है. उनकी शादी पर दोनों परिवारों की ओर से किसी ने एतराज तो नहीं किया, लेकिन शादी कोई ज्यादा धूमधाम से नहीं हुई. कोर्ट में शादी रजिस्टर करने के बाद कुछ करीबी दोस्तों और कुछ नजदीकी रिश्तेदारों को छोटा सा रिसेप्शन ही दिया गया था. सौमित्र का कहना था कि वह बेवजह का दिखावा और खर्चा नहीं करना चाहता है, इसलिए सिम्पल तरीके से शादी होगी. यहां तक कि उसने अंजलि से कोई दान-दहेज भी नहीं लिया. तब अंजलि को उसकी सोच पर काफी गर्व और खुशी महसूस हुई थी. उसे लगा कि सौमित्र उच्च विचारों वाला, दकियानूसी सोच और दिखावे से दूर रहने वाला व्यक्ति है, मगर उसके घर आने के बाद असलियत कुछ और ही निकली. अंजलि सुन्दर-सुशील है, काम करने में माहिर है, अच्छी तनख्वाह पाती है, सौमित्र उससे प्यार तो करता है, मगर यह प्यार नि:स्वार्थ भाव से किया गया प्यार हरगिज नहीं है. यह बातें अंजलि के सामने धीरे-धीरे खुली हैं. सौमित्र के पिता ने अपने डूबते बिजनेस को संभालने के लिए काफी लोन लिया था, जिसके कारण सौमित्र के ऊपर काफी आर्थिक बोझ था. अंजलि से शादी के बाद जब उसकी भी तनख्वाह परिवार में आने लगी तो इससे सौमित्र को काफी राहत मिली. शादी के बाद सौमित्र, उसके पिता और अंजली के ज्वाइंट एकाउंट में तीनों की कमाई जाती है, जिससे घर का खर्चा, लोन की किश्त, सौमित्र के छोटे भाईयों के हॉस्टल और पढ़ाई का खर्च, रिश्तेदारी में लेनदेन आदि होता है.

सौमित्र और अंजलि एक सॉफ्टवेयर कम्पनी में इंजीनियर हैं. वहीं साथ काम करते हुए दोनों को एकदूसरे से प्यार हो गया और उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया. अंजलि सुन्दर, सुशील और हार्डवर्किंग लड़की है. वह नीच जाति में जरूर पैदा हुई है मगर उसके परिवार का आर्थिक स्टेटस ठीक-ठाक है. उसके पिता भी अच्छी सरकारी नौकरी में हैं. वहीं सौमित्र ऊंची जाति से ताल्लुक रखता है. उसके माता-पिता में ऊंची जाति का दम्भ है. सौमित्र के पिता का तालों का बिजनेस लगभग बर्बाद होने की कगार पर था, जब लोन लेकर उसे थोड़ा दुरुस्त किया गया. पर अभी भी वह पूरी तरह पटरी पर नहीं आया है. ऐसे में सौमित्र की तनख्वाह से ही परिवार का खर्च मुश्किल से चल रहा था. सौमित्र के दो छोटे भाई जो हॉस्टल में रह कर पढ़ रहे हैं, उनका खर्चा भी सौमित्र को वहन करना होता है. अंजलि से शादी के बाद जब उसकी तनख्वाह भी हासिल होने लगी तो सौमित्र को काफी राहत महसूस हुई. सौमित्र ने अंजलि से शादी तो कर ली मगर अपने परिवार में उसको वह मान-सम्मान नहीं दिला पाया, जो अपनी ऊंची जाति की बहू को यहां मिलता. यहां तक कि सौमित्र अंजलि के साथ अपनी मां के गलत व्यवहार के प्रति विरोध भी दर्ज नहीं कर पाता है. वह अपनी पत्नी को समझा-बुझा कर मां से थोड़ी दूरी बनाये रखने का ही सुझाव देता रहता है. वह अंजलि से कहता है कि मां बूढ़ी हैं, उनकी बातों पर गौर मत किया करो, घर की शांति के लिए उनकी हरकतें नजरअंदाज कर दो, उन्हें कितने दिन जीवित रहना है – ज्यादा से ज्यादा पांच साल या दस साल, तुम उनकी तरफ ध्यान मत दिया करो. दरअसल ऐसी बातें वह इसलिए करता है क्योंकि उसे डर बना रहता है कि कहीं मां की किसी बात से आहत होकर अंजलि अपने मायके न चली जाये, अथवा उससे सम्बन्ध विच्छेद करने जैसा कदम न उठा ले. अब इतने सालों में अंजलि ने भी सास की उल्टी-सीधी बातों को इग्नोर करना सीख लिया है, मगर भेदभाव का दंश उसके कोमल मन को यदा-कदा भेदता ही रहता है. नीच होने का दंश जो उसे पहले ही दिन से दिया जा रहा है. पहले ही दिन से उसे यह बात अच्छी तरह बता दी गयी कि तुम्हारा स्थान घर में जरूर है, मगर दिल में नहीं.

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शादी के बाद अंजलि ने जब अपना सूटकेस खोला था, तो कपड़ों पर सबसे ऊपर भगवान की तस्वीर एक लाल कपड़े में लिपटी रखी थी. अंजलि ने श्रद्धापूर्वक उस तस्वीर को निकाल कर घर के मंदिर में अन्य मूर्तियों और तस्वीरों के साथ सजा दी थी. अगले दिन सुबह जब वह नहा-धो कर मंदिर में सिर झुकाने गयी तो देखा कि उसकी लगायी तस्वीर मंदिर से निकाल कर वहीं अलग कुछ दूरी पर रख दी गयी है. उसने जब इस बारे में अपनी सास से पूछा तो उन्होंने कहा कि इसे अपने कमरे में ही लगा लो और वहीं पूजा कर लिया करो. अंजलि को बड़ा धक्का लगा. भगवान को लेकर भेदभाव! उसने अपने पति सौमित्र से इस बात की शिकायत की तो सौमित्र ने उसे प्यार से समझाते हुए अपने बेडरूम के एक कोने में ही उसके भगवान की तस्वीर को स्थापित कर दिया और वहीं उसके लिए पूजा का इंतजाम कर दिया. अंजलि साफ समझ गयी कि इस घर में उसके साथ भेदभाव होगा क्योंकि वह नीच जाति से है. फिर चाहे सौमित्र ने क्यों न उससे प्रेम-विवाह किया हो, मगर ऊंची जाति के अहंकार में ग्रस्त उसकी सास कभी भी उसे अपने मंदिर में पूजा करने की अनुमति नहीं देगी. उसने अपनी इस हरकत से ही अंजलि को बता दिया है कि उसके दिल में अंजलि के लिए कोई जगह नहीं है क्योंकि वह नीच जाति की है.

आज अंजलि की शादी को छह साल हो चुके हैं मगर आज भी अंजलि को लगता है जैसे वह सौमित्र के घर में कोई पेइंग गेस्ट है. जिसकी हर हरकत पर मकान मालकिन की नजर रहती है. वह उसे इसलिए उस घर में रहने दे रही हैं क्योंकि अंजलि अच्छी नौकरी में अच्छा पैसा कमा रही है. घर का खर्चा उसकी कमाई से चल रहा है. सुख-सुविधा की चीजें उसके पैसे से मोल ली जा रही हैं. परिवार का बैंक-बैलेंस बढ़ रहा है. अब अंजलि सोचती है कि शायद सौमित्र ने उससे शादी भी इसलिए की क्योंकि वह नौकरीपेशा है और अच्छी कमाई करती है. हालांकि सौमित्र उससे प्यार करने का पूरा दावा करता है. वह अपनी मां के क्रोध से भी उसे बचा-बचा कर रखता है. उसको साथ लेकर घूमने-फिरने जाता है, उसको शॉपिंग करवाता है, फिल्में दिखाता है, मगर रिश्तेदारों के वहां नहीं ले जाता है. अंजलि के सास-ससुर भी उसकी आमदनी पर तो पूरा हक जमाते हैं, मगर रिश्तेदारों में उसे उठने-बैठने नहीं देते और गाहे-बगाहे अपने व्यवहार से यह बात भी जाहिर कर ही देते हैं कि वह छोटी जाति से है. तीज-त्योहारों पर यह भेदभाव कुछ ज्यादा मुखर हो जाता है. त्योहारों पर भगवान का घर हमेशा उसकी सास ही साफ करती है. वही भगवान को नहलाती-धुलाती है, नये कपड़े पहनाती है, उनका श्रृंगार करती है. वही पूरे मंदिर स्थल को गंगाजल और दूध से धोती-पोंछती है. वही दिया-बत्ती करती है. पूजा-आरती करती है. अंजलि तो बस दूर से ही हाथ बढ़ा कर प्रसाद ले लेती है. त्योहारों पर बनने वाले पकवानों में अंजलि की सास उससे पूरी मदद लेती है, मगर भगवान को चढ़ाए जाने वाले भोग-प्रसाद में उसे हाथ नहीं लगाने देती.

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दूसरों के घर से शादी-ब्याह के न्यौते आते हैं तो अंजलि के सास-ससुर ही शगुन डालने जाते हैं. कभी सौमित्र और अंजलि नहीं जाते. सौमित्र तो हमेशा अपने काम और अपने थके होने का बहाना बना देता है. अब उसके बिना अंजलि अकेले तो कहीं जाने से रही. अंजलि को याद है कि जब उसके मायके में कोई निमंत्रण पत्र आता था तो अंजलि सजधज कर अपने माता-पिता के साथ जाती थी, शगुन चढ़ाती थी, फोटो खिंचवाती थी, फ्लोर पर डांस करती थी, दावत इन्जॉय करती थी, मगर यहां तो कोई उसे साथ ले जाने के लिए पूछता भी नहीं है. अंजलि चाहती है कि वह भी बनाव-श्रृंगार करके सौमित्र के रिश्तेदारों की शादी या बर्थडे पार्टियों में जाए, उनसे जान-पहचान बढ़ाए, लेकिन आजतक उसे कहीं नहीं ले जाया गया. हैरानी तो उसे तब सबसे ज्यादा हुई जब उसकी चचिया सास की बेटी की शादी तय हुई और किसी भी रस्म में उसे आमंत्रित नहीं किया गया. सारे रिश्तेदार वहां इकट्ठा हुए. तरह-तरह की रस्में हुईं. सबने खूब इन्जॉय किया. वाट्सऐप और फेसबुक पर खूब फोटोज शेयर हुईं. फोटोज में सौमित्र के दूर-दराज के रिश्तेदार भी नजर आये, मगर उनमें अंजलि कहीं नहीं थी. वह बस घर से ऑफिस और ऑफिस से घर तक की अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रही थी.

दरअसल अंजलि की सास नहीं चाहती कि उनका कोई रिश्तेदार अंजलि के परिवार, उसके पिता के नाम आदि की पड़ताल करने लग जाए. अब अंजलि किसी से मिलेगी तो उसके माता-पिता के बारे में भी सवाल-जवाब होंगे. लोग उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहेंगे. अभी तो कई रिश्तेदारों को उसकी जात का पता भी नहीं है. मगर उसके पिता के नाम से उसकी जात का पता चल जाएगा. लोग तरह-तरह की बातें करेंगे. भले वह कितनी खूबसूरत हो, कितनी पढ़ी-लिखी हो, साफ्टवेयर इंजीनियर हो, पति के बराबर तनख्वाह पाती हो, मगर जैसे ही पता चलेगा कि वह नीच जाति की है, लोग नाक-भौं सिकोड़ेंगे, पीठ पीछे बातें करेंगे. इसी सोच के तहत अंजलि की सास उसे रिश्तेदारों से दूर ही रखती है. कोई कभी पूछता भी है कि बहू को साथ नहीं लायी तो वह बहाना बना देती है कि उसे तो ऑफिस से छुट्टी ही नहीं मिलती, या उसकी तबियत ठीक नहीं थी या कुछ और बहाना.

आधुनिकता और रूढ़िवादिता के पाटों के बीच फंसी अंजलि की सास न खुद चैन से जी पा रही है और न अंजलि को जीने दे रही है. इन दोनों के बीच सौमित्र भी पिस रहा है. वह आग और फूस को अलग-अलग रख कर दोनों को खुश रखने की कवायदों में लगा रहता है. इसमें उसका बहुत सारा समय और ऊर्जा बर्बाद होती है. बेटे की कमाई पर आधारित सौमित्र के मां-बाप उसे नीच जाति की लड़की से शादी करने से नहीं रोक पाये क्योंकि तब उनको बहू की कमाई नजर आ रही थी. उनको लगा कि यह लड़की आ गयी तो घर की आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी, इसलिए उन्होंने अंजलि को घर में तो जगह दे दी, मगर रूढ़िता से ग्रस्त अपने दिल में नहीं दे पाये. यही वजह है कि अंजलि आज तक सौमित्र के घर को अपना घर नहीं मान पायी. वह न तो अपने सास-ससुर को माता-पिता का दर्जा दे पायी और न अपने पति सौमित्र के प्रेम पर पूरा विश्वास कर पायी. उसे हमेशा यही लगता है कि जब तक वह कमा कर इस घर को दे रही है, तब तक ही वह यहां रह सकती है, जिस दिन उसने कमाना बंद कर दिया, उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल कर बाहर फेंक दिया जाएगा क्योंकि वह नीच जाति की है.

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अंजलि का जीवन बहुत सुखद हो जाता अगर उसके सास-ससुर जाति-धर्म की दकियानूसी सोच से आगे बढ़ कर उसे सच्चे दिल से अपना लेते. तब पढ़ी-लिखी और संवेदनशील अंजलि भी उन्हें अपने माता-पिता से कहीं ज्यादा प्यार और सम्मान देती, और उसके पति सौमित्र को भी इस डर से मुक्ति मिल जाती कि कहीं अंजलि उसे छोड़ कर न चली जाए. यह कहानी सिर्फ एक अंजलि और सौमित्र की नहीं है, बल्कि शहरों और महानगरों में ऐसे बहुतेरे परिवार हैं जहां बुजुर्ग आधुनिकता की चादर के भीतर रूढ़िवादिता को ही पोस रहे हैं. आज की पढ़ीलिखी पीढ़ी पुरातन सोच से मुक्त होना चाहती है. वह शिक्षा और करियर पर विशेष ध्यान दे रही है. इसलिए जाति-धर्म की दीवारें भी ढह रही हैं. कई ऐसे कपल हैं जो माता-पिता की इसी दकियानूसी सोच के चलते ही परिवार से अलग होकर अपना अलग आशियाना बना लेते हैं.

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