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घर बैठे पाएं इंस्टैंट ग्लो

हर महिला की ख्वाहिश होती है बेदाग और निखरी त्वचा पाना. आज की व्यस्त जिंदगी में कोई कामकाजी हो या गृहिणी, ब्यूटीपार्लर के लिए समय निकालना मुश्किल हो जाता है. शादी, पार्टी या किसी फंक्शन में जाना हो तो महिलाओं को औफिस से सीधा ब्यूटीपार्लर का रुख करना होता है, जहां महिलाएं फेशियल, क्लीनअप की मदद से चेहरे पर जमी हुई गंदगी को क्लीन करवाती हैं. समय निकाल कर महिलाएं ब्यूटीपार्लर चली भी जाती हैं, तो घंटों बैठने के बाद भी उन के चेहरे पर इंस्टैंट ग्लो नहीं आ पाता. ऐसे में बिना ब्यूटी पार्लर जाए चेहरे पर निखार चाहती हैं तो मार्केट में मौजूद फेस शीटमास्क का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस के इस्तेमाल से न सिर्फ आप का चेहरा आसानी से क्लीन हो जाएगा, बल्कि डैड स्किन भी निकल जाएगी. साथ ही, यह शीट ब्लैकहैड्स, व्हाइटहैड्स को भी आसानी से रिमूव कर देगी.

फेस शीटमास्क कौटन की शीट से बना होता है. यह शीट सीरम में भीगी होती है जो चेहरे को निखारने में मदद करती है. इस की शेप बिलकुल चेहरे के आकार की होती है. आंख और नाक को छोड़ कर यह पूरे चेहरे को अच्छी तरह कवर करता है. मार्केट में कई तरह के शीटमास्क उपलब्ध हैं. आप अपनी स्किन के अनुसार शीट मास्क चुन सकती हैं.

आइए, जानते हैं शीटमास्क कितने तरह के होते हैं और किस तरह ये आप की त्वचा को फायदा पहुंचाते हैं.

कुछ शीट मास्क इस प्रकार हैं

 चारकोल शीटमास्क : चारकोल स्किन को क्लीन करने लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है. इस में स्किन को डिटौक्स करने वाली सामग्री होती है जो आप की स्किन को अंदर से साफ करने में मदद करती है. चेहरे पर होने वाले ब्लैकहैड्स और व्हाइटहैड्स जैसी समस्या को भी यह आसानी से दूर करता है. इस के इस्तेमाल के बाद त्वचा सौफ्ट और चमकदार दिखने लगती है.

निट शीटमास्क : निट शीटमास्क कौटन के कपड़े से बना हुआ होता है. यह दिखने में बाकी शीटमास्क से अधिक हैवी होता है, क्योंकि इस में सीरम की मात्रा अधिक होती है. सीरम चेहरे के खोए हुए निखार को वापस लाने में मदद करता है. यदि आप का चेहरा ड्राई रहता है, तो इस मास्क का इस्तेमाल करें. यह त्वचा के रूखेपन को दूर कर उसे सौफ्ट बनाता है.

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फौइल शीटमास्क : फौइल शीटमास्क बाकी शीटमास्क से बेहद अलग है.

इस का असर त्वचा पर देर तक दिखता है, क्योंकि इस में मौजूद सीरम हवा के संपर्क में आने से भी जल्दी खत्म नहीं होता. बाकी शीटमास्क में मौजूद सीरम हवा के संपर्क में आने से भाप बन कर उड़ जाता है, लेकिन यह त्वचा के भीतर तक जा कर स्किन को नरिश और हाईड्रेट करता है.

कौटन शीटमास्क : कौटन शीटमास्क का इस्तेमाल बाकी शीटमास्क से अलग है. इस शीटमास्क में सीरम और मास्क अलग से होता है. इस में पहले सीरम से चेहरे पर मसाज की जाती है, फिर शीट से चेहरे को कवर किया जाता है. इस से त्वचा में सीरम अच्छे से सैट हो जाता है. सीरम की मसाज से त्वचा ग्लोइंग दिखने लगती है और शीटमास्क के इस्तेमाल से चेहरे पर दोगुना निखार दिखने लगता है.

शीटमास्क का इस्तेमाल

शीटमास्क का इस्तेमाल करने से पहले अपने चेहरे को अच्छी तरह से साफ करना जरूरी है. चेहरे को साफ करने के बाद शीटमास्क को चेहरे पर लगा लें और 15 मिनट के लिए छोड़ दें.

15 मिनट बाद शीटमास्क चेहरे से हटा लें. जब आप मास्क चेहरे से हटाएंगी तो देखेंगी चेहरे पर बहुत सारा सीरम लगा होगा. इस सीरम को चेहरे से हटाएं नहीं बल्कि उंगलियों की मदद से चेहरे पर तब तक मसाज करें जब तक यह स्किन में अच्छे से एब्जौर्ब न हो जाए.

अगर आप को शादी, पार्टी या बाहर कहीं जाना हो, तो इस मास्क का आप 2 घंटे पहले इस्तेमाल करें. इस से आप की स्किन औयली नहीं लगेगी और सारा सीरम आराम से स्किन में एब्जौर्ब भी हो जाएगा.

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फेसमास्क के फायदे

शीटमास्क स्किन के लिए फायदेमंद है. यह कम समय में त्वचा को निखारने में मदद करता है. सीरम में विटामिन और मिनरल अधिक मात्रा में होता है जो त्वचा के लिए लाभदायक है. इस के इस्तेमाल से स्किन हाइड्रेट रहती है, चेहरे का रूखापन गायब हो जाता है और त्वचा मुलायम बनती है.

इस से ओपन पोर्स, डैड स्किन जैसी समस्या भी आसानी से दूर हो जाती है. यह त्वचा को डिटौक्सीफाई भी करता है.

इस के इस्तेमाल से आप 15 मिनट में इंस्टैंट ग्लो पा सकती हैं. इस की सब से खास बात यह है कि इसे आप कहीं भी, कभी भी कैरी कर सकती हैं.

इन बातों का रखें ध्यान

शीटमास्क का इस्तेमाल हमेशा साफ चेहरे पर करें.

शीटमास्क को तुरंत हटाने के बाद चेहरा न धोएं.

शीटमास्क का इस्तेमाल महीने में 3 बार से ज्यादा न करें.

शीटमास्क हमेशा अपने स्किन के अनुसार इस्तेमाल करें.

रैना : भाग 1

यह खबर जंगल की आग की तरह पूरी कालोनी में फैल गई थी कि रैना के पैर भारी हैं और इसी के साथ कल तक जो रैना पूरी कालोनी की औरतों में सहानुभूति और स्नेह की पात्र बनी हुई थी, अचानक ही एक कुलटा औरत में तबदील हो कर रह गई थी. और होती भी क्यों न. अभी डेढ़ साल भी तो नहीं हुए थे उस के पति को गुजरे और उस का यह लक्षण उभर कर सामने आ गया था.

अब औरतों में तेरेमेरे पुराण के बीच रैना पुराण ने जगह ले ली थी. एक कहती, ‘‘देखिए तो बहनजी इस रैना को, कैसी घाघ निकली कुलक्षिणी. पति का साथ छूटा नहीं कि पता नहीं किस के साथ टांका भिड़ा लिया.’’

‘‘हां, वही तो. बाप रे, कैसी सतीसावित्री बनी फिरती थी और निकली ऐसी घाघ. मुझे तो बहनजी, अब डर लगने लगा है. कहीं मेरे ‘उन पर’ भी डोरे न डाल दे यह.’’

‘‘अरे छोडि़ए, ऐसे कैसे डोरे डाल देगी. मैं तो जब तक बिट्टू के पापा घर में होते हैं, हमेशा रैना के सिर पर सवार रहती हूं. क्या मजाल कि वह उन के पास से भी गुजर जाए.’’

‘‘पर बहनजी, एक बात समझ में नहीं आती…सुबह से रात तक तो रैना कालोनी के ही घरों में काम करती रहती है, फिर जो पाप वह अपने पेट में लिए फिर रही है वह तो कालोनी के ही किसी मर्द का होगा न?’’

‘‘हां, हो भी सकता है. पर बदजात बताती भी तो नहीं. जी तो चाहता है कि अभी उसे घर से निकाल बाहर करूं पर मजबूरी है कि घर का काम कौन करेगा?’’

‘‘हां, बहनजी. मैं भी पूछपूछ कर हार गई हूं उस से, पर बताती ही नहीं. मैं ने तो सोच लिया है कि जैसे ही मुझे कोई दूसरी काम वाली मिल जाएगी, इस की चुटिया पकड़ कर निकाल बाहर करूंगी.’’

सच बात तो यह थी कि कालोनी की किसी भी औरत ने उस आदमी का नाम उगलवाने के लिए रैना पर कुछ खास दबाव नहीं डाला था. शायद यह सोच कर कि कहीं उस ने उसी के पति का नाम ले लिया तो.

मगर नौकर या नौकरानी का उस शहर में मिल पाना इतना आसान नहीं था. इसलिए मजबूर हो कर रैना को ही उन्हें झेलना था, और झेलना भी ऐसे नहीं बल्कि सोतेजागते रैना के खूबसूरत चेहरे में अपनी- अपनी सौत को महसूसते हुए. मसलन, जिन 4 घरों में रैना नियमित काम किया करती थी, उन सारी औरतों के मन में यह संदेह तो घर कर ही गया था कि कहीं रैना ने उन के ही पति को तो नहीं फांस रखा है.

फिर तो रोज ही सुबहशाम वे अपनेअपने पतियों को खरीखोटी सुनाने से बाज नहीं आतीं, ‘आप किसी दूसरी नौकरानी का इंतजाम नहीं करेंगे? मुझे तो लगता है, आप चाहते ही नहीं कि रैना इस घर से जाए.’

‘क्यों? मैं भला ऐसा क्यों चाहूंगा?’

‘कहा न, मेरा मुंह मत खुलवाइए.’

‘देखो, रोजरोज की यह खिचखिच मुझे पसंद नहीं. साफसाफ कहो कि तुम कहना क्या चाहती हो?’

‘क्या? मैं ही खिचखिच करती हूं? और यह रैना? कैसे हमें मुंह चिढ़ाती सीना ताने कालोनी में घूम रही है, उस का कुछ नहीं? आप मर्दों में से ही तो किसी के साथ उस का…’

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इस प्रकार रोज का ही यह किस्सा हो कर रह गया था उन घरों का, जिन में रैना काम किया करती थी.

आखिर उस दिन यह सारी खिच- खिच समाप्त हो गई जब औरतों ने खुद ही एक दूसरी नौकरानी तलाश ली.

फिर तो न कोई पूर्व सूचना, न मुआवजा, सीधे उसी क्षण से निकाल बाहर किया था सभी ने रैना को. बेचारी रैना रोतीगिड़गिड़ाती ही रह गई थी. पर किसी को भी उस पर दया नहीं आई थी.

कुछ दिनों तक तो रैना का गुजारा कमा कर बचाए गए पैसों से होता रहा था पर जब पास की उस की सारी जमापूंजी समाप्त हो गई तब कालोनी के दरवाजे- दरवाजे घूम कर पेट पालने लगी थी. इसी तरह दिन कटते रहे थे उस के. और जब समय पूरा हुआ तो खैराती अस्पताल में जा कर रैना भरती हो गई थी.

उस कालोनी में कुछ ऐसे घर भी थे जिन्होंने अपने यहां नियमित नौकर रखे हुए थे. उन्हीं में एक घर रमण बाबू का भी था, जहां रामा नाम का एक 12 वर्ष का बच्चा काम करता था, लेकिन एक दिन अचानक ही रामा को उस का बाप आ कर हमेशाहमेशा के लिए अपने साथ ले गया.

घर का झाड़ ूपोंछा, बरतन व कपडे़ धोने आदि का काम अकेले कमलाजी से कैसे हो पाता? सो, अब उन के घर में भी नौकर या नौकरानी की तलाश शुरू हो गई थी. कमलाजी की बेटी को तो अपनी पढ़ाई से ही फुरसत नहीं मिलती थी कि वह घर के किसी भी काम में मां का हाथ बंटा सकती. सो 2 ही दिनों में घर गंदा दिखने लग गया था. जब सुबहसुबह ड्राइंगरूम की गंदगी रमण बाबू से देखी नहीं गई तो उन्होंने खुद ही झाड़ ू उठा ली. यह देख कर कमलाजी बुरी तरह अपनी बेटी पर तिलमिला उठी थीं, ‘‘छी, शर्म नहीं आती तुम्हें? पापा झाड़ ू दे रहे हैं और तुम…’’

‘‘बोल तो ऐसे रही हैं मम्मी कि मैं इस घर की नौकरानी हूं. अगर यही सब कराना था तो मुझे पढ़ाने की क्या जरूरत थी. बचपन में ही झाड़ ू थमा देतीं हाथ में.’’

अभी बात और भी आगे बढ़ती कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई थी.

‘‘अरे, देखो तो कौन है,’’ रमण बाबू ने कहा.

दरवाजा खोला तो सामने गोद में नवजात बच्चे को लिए रैना नजर आई थी. उसे देख कर मन और भी खट्टा हो गया था कमलाजी का. बोली थीं, ‘‘तू…तू… क्यों आई है यहां?’’

रैना गिड़गिड़ा उठी थी, ‘‘कल से एक दाना भी पेट में नहीं गया है मालकिन. छाती से दूध भी नहीं उतर रहा. मैं तो भूखी रह भी लूंगी पर इस के लिए थोड़ा दूध दे देतीं तो…’’

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कमलाजी अभी उसे दुत्कारने की सोच ही रही थीं कि तभी घर के ढेर सारे काम आंखों में नाच उठे थे. फिर तो उन के मन की सारी खटास पल भर में ही धुल गई थी. बोल पड़ीं, ‘‘जो किया है तू ने उसे तो भुगतना ही पड़ेगा. खैर, देती हूं दूध, बच्चे को पिला दे. रात की रोटी पड़ी है, तू भी खा ले और हां, घर की थोड़ी साफसफाई कर देगी तो दिन का खाना भी खा लेना. बोल, कर देगी?’’

चेहरा खिल उठा था रैना का. थोड़ी ही देर में घर को झाड़पोंछ कर चमका दिया था उस ने. बरतन मांजधो कर किचन में सजा दिए थे. यानी चंद ही घंटों में कमलाजी का मन जीत लिया था उस ने.

शाम को रैना जब वहां से जाने लगी तो कमलाजी उसे टोक कर बोली थीं, ‘‘वैसे तो तुझ जैसी औरत को कोई भी अपने घर में घुसने नहीं देगा पर मैं तुझे एक मौका देना चाहती हूं. मन हो तो मेरे यहां काम शुरू कर दे. 150 रुपए माहवार दूंगी. खाना और तेरे बच्चे को दूध भी.’’

अगले भाग में पढ़ें-  वैसे भी कौन सा उसे जिंदगी बिताने जाना है गांव…

रैना : भाग 3

रात को घर का सारा काम निबटाने के बाद रैना रमण बाबू के पास जा कर बोली, ‘‘अब मैं जाती हूं, मालिक. मालकिन तो बुधवार की रात को आएंगी, मैं बृहस्पतिवार की सुबह आ जाऊंगी. आप की तबीयत भी अब ठीक ही है.’’

जवाब में रमण बाबू बोल पड़े थे, ‘‘अरे कहां, आज तो तबीयत पहले से भी ज्यादा खराब है.’’

‘‘जी?’’ चौंक कर रैना ने अपनी हथेली उन के माथे पर टिका दी थी. फिर बोली थी, ‘‘न, कहां है बुखार.’’

अभी वह उन के माथे से अपनी हथेली हटाती कि एक झपट्टे के साथ उस की कलाई पकड़ कर रमण बाबू बोल पड़े थे, ‘‘तू भी कमाल की है. अंदर का बुखार कहीं ऊपर से पता चलता है?’’

रैना समझ गई थी कि अब उस के मालिक पर कौन सा बुखार सवार है. चेहरे पर उन के प्रति घिन सी उभर आई थी. एक झटके से अपना हाथ उन की पकड़ से मुक्त कराती हुई  रैना बोल पड़ी थी, ‘‘छि मालिक, आप भी? आप मर्दों के लिए तो औरत भले अपनी जान ही क्यों न दे दे, पर आप के लिए वह मांस के टुकडे़ से अधिक कुछ भी नहीं,’’ इस के साथ ही अपने बच्चे को उठा कर वह तेजी से बाहर निकल गई थी.

बृहस्पतिवार की सुबह रैना जल्दी- जल्दी तैयार हो कर रमण बाबू के यहां पहुंच गई. कमलाजी की नजर उस पर पड़ी तो दांत पीसती हुई बोल पड़ी थीं, ‘‘आ गई महारानी? अरे, तुझ जैसी औरत पर भरोसा कर के मैं ने बहुत बड़ी भूल की.’’

रैना समझ तो गई थी कि मालकिन क्यों उस पर गुस्सा हो रही हैं, फिर भी पूछ बैठी थी, ‘‘मुझ से कोई भूल हो गई, मालकिन?’’

‘‘अरे, बेशरम, भूल पूछती है? अब बरबाद करने के लिए तुझे मेरा ही घर मिला था? हुं, मां बीमार है, छुट्टी चाहिए…’’

‘‘मां सचमुच बीमार थीं मालकिन पर जब मैं वहां पहुंची तो वह ठीक हो चुकी थीं. वहां रुकने से कोई फायदा तो था नहीं. मन में यह भी था कि यहां आप को दिक्कत हो रही होगी, इसीलिए चली आई. यहां आ कर देखा तो मालिक बहुत बीमार थे. आप लोग भी नहीं थे यहां…’’

‘‘बस, मौका मिल गया तुझे मर्द पटाने का.’’

‘‘यह क्या बोल रही हैं मालकिन. मैं तो लौट ही जाती, पर मालिक को उस हालत में छोड़ना ठीक नहीं लगा. मालिक को कुछ हो जाता तो?’’

‘‘चुप…चुप बेशरम. बोल तो ऐसे रही है जैसे वह मालिक न हुए कुछ और हो गए तेरे. अरे, बदजात, यह भी नहीं सोचा तू ने कि किस घर में सेंध मार रही है? पर तू भला क्यों सोचेगी? अगर यही सोचा होता तो शहर क्यों भटकना पड़ता तुझे? अरे, पति मेरे हैं, जो होता मैं देखती आ कर, पर…’’

‘‘बस, बस मालकिन, बस,’’ आखिर रैना के धैर्य का बांध टूट ही गया, ‘‘अगर मालिक को कुछ हो गया होता तो क्या कर लेतीं आप आ कर? अरे, पति का दर्द क्या होता है, यह आप क्या समझेंगी. आप के माथे पर तो सिंदूर चमक रहा है न. मुझ से पूछिए कि मर्द के बिना औरत की जिंदगी क्या होती है. आप ने मुझे कैसीकैसी गालियां नहीं दीं. इसीलिए न कि आज मेरे पति का हाथ मेरे सिर पर नहीं है. आज वह जिंदा होता, तब अगर छिप कर मैं किसी गैर से भी यह बच्चा पैदा कर लेती तो कोई मुझे कुछ नहीं कहता. यह जिसे पूरी कालोनी वाले मेरा पाप समझते हैं, इस में भी मेरी कोई गलती नहीं है. अरे, हम औरतें तो होती ही कमजोर हैं. बताइए, आप ही बताइए मालकिन, कोई गैर मर्द यदि किसी औरत की इज्जत जबरन लूट ले तो कुलटा वह मर्द हुआ या औरत हुई? पर नहीं, हमारे समाज में गलत सिर्फ औरत होती है.

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‘‘खैर, मर्द लोग औरत को जो समझते हैं, सो तो समझते ही हैं, पर दुख तो इस बात का है कि औरतें भी औरत का मर्म नहीं समझतीं. अच्छा मालकिन, गलती माफ कीजिएगा मेरी. मैं समझ गई कि मेरा दानापानी यहां से भी उठ गया. पर मालकिन, मैं ने तो अपना धर्म निभाया है, अब ऊपर वाला जो सजा दे,’’ बोलते- बोलते रैना फफक पड़ी थी.

कमलाजी मौन, रैना की एकएक बात सुनती रही थीं. उन्हें भी लगने लगा था कि रैना कुछ गलत नहीं बोल रही. तभी रैना फिर बोली, ‘‘अच्छा तो मालकिन, मैं जाती हूं. कहासुना माफ कीजिएगा.’’

अभी जाने के लिए रैना पलटने को ही थी कि कमलाजी बोल पड़ीं, ‘‘हेठी तो देखो जरा. थोड़ा रहनसहन और चाल- चलन के लिए टोक क्या दिया, लगी बोरियाबिस्तर समेटने. मैं ने तुझ से जाने के लिए तो नहीं कहा है.’’

रैना की आंखें कमलाजी पर टिक गई थीं. कमलाजी फिर से बोल पड़ीं, ‘‘देख, मैं भी औरत हूं. औरत के मर्म को समझती हूं. मैं ने तो सिर्फ  यही कहा है न कि अकेले मर्द के घर में तुझे नहीं जाना चाहिए था. खैर छोड़, अच्छा यह बता, क्या सचमुच किसी ने तेरे साथ जबरदस्ती की थी? अगर की थी तो तू उस का नाम क्यों नहीं बता देती?’’

रैना का चेहरा अजीब कातर सा हो आया. वह बोली, ‘‘उस का नाम बता दूं तो मेरे माथे पर लगा दाग मिट जाएगा? अरे, मैं तो थानापुलिस भी कर देती मालकिन, पर अपनी गांव की तारा को याद कर के चुप हो गई. मुखिया के बेटे ने तारा का वही हाल किया था जो मेरे साथ हुआ. उस ने तो थानापुलिस में भी रपट लिखवाई थी, पर हुआ क्या? रात भर तारा को ही थाने में बंद रहना पड़ा और सारी रात…

‘‘मुखिया का बेटा तो आज भी छाती तान कर घूमता फिर रहा है और बेचारी तारा को कुएं में डूब कर अपनी जान गंवानी पड़ी…मालकिन लोग तो मुझ पर ही लांछन लगाते कि सीधेसादे मर्द को मैं ने ही फांस लिया. अच्छा मालकिन, बुरा तो लगेगा आप को, एक बात पूछूं?’’

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‘‘पूछ.’’

‘‘अगर आप के पीछे मालिक ने ही मेरे साथ बदसलूकी की होती और मैं आप से बोल देती तो आप मुझे निकाल बाहर करतीं या मालिक को? मुझे ही न. हां, दोचार रोज मालिक से मुंह फुलाए जरूर रहतीं फिर आप दोनों एक हो जाते, और…’’ बोलतेबोलते फिर रैना फफक पड़ी थी.

कमलाजी ने गौर से रैना के चेहरे को देखा था. कुछ देर वैसे ही देखती रही थीं, फिर जैसे ध्यान टूटा था उन का. बोल पड़ी थीं, ‘‘अच्छा, अब रोनाधोना छोड़. देख तो कितना समय हो गया है. सारे काम ज्यों के त्यों पड़े हैं. चल, चल कर पहले नाश्ता कर ले, फिर…’’

मालकिन का इतना बोलना था कि एकबारगी फुर्ती सी जाग उठी थी रैना में. आंसू पोंछती वह तेजी से अंदर की ओर बढ़ गई थी.

रैना : भाग 2

इतना सुनना था कि रैना सीधे कमलाजी के पैरों पर ही झुक गई थी.

इस प्रकार पूरी कालोनी में कुलक्षिणी के नाम से मशहूर रैना को कमलाजी के घर में काम मिल ही गया था. इस के लिए कमलाजी को कालोनी की औरतों के कटाक्ष भी झेलने पड़े थे, पर जरूरत के वक्त ‘गदहे को भी बाप’ कही जाने वाली कहावत का ज्ञान कमलाजी को था.

रैना के घर में काम पर आने से रमण बाबू की गृहस्थी की गाड़ी फिर से पहले की तरह चलने लग गई थी, लेकिन रैना का आना उन के हक में शुभ नहीं हुआ था. जब तक रमण बाबू घर में होते, अपनी पत्नी, यहां तक कि बेटी की नजरों में भी संदिग्ध बने रहते.

धीरेधीरे हालात ऐसे होते गए थे रमण बाबू के कि दिनभर में पता नहीं कितनी बार रैना को ले कर कभी पत्नी की तो कभी बेटी की झिड़की उन्हें खानी पड़ जाती थी.

आखिर एक दिन अपने बेडरूम के एकांत में कमलाजी से पूछ ही दिया उन्होंने, ‘‘मैं चरित्रहीन हूं क्या कि जब से यह रैना आई है, तुम और तुम्हारी बेटी मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ी रहती हो?’’

‘‘रैना के बारे में तो आप जानते ही हैं. आप ही बताइए जिन घरों में रैना काम किया करती थी उन घरों के मर्द कहीं से बदचलन दिखते हैं? नहीं न. पर रैना का संबंध उन में से ही किसी न किसी से तो रहा ही होगा. मैं उस मर्द को भी दोष नहीं देती. असल में रैना है ही इतनी सुंदर कि उसे देख कर किसी भी मर्द का मन डोल जाए. इसीलिए आप को थोड़ा सचेत करती रहती हूं. खैर, आप को बुरा लगता है तो अब से ऐसा नहीं करूंगी. पर आप खुद ही उस से थोड़े दूर रहा कीजिए…’’

रैना को रमण बाबू के घर में काम करते हुए लगभग 1 वर्ष हो आया था. इस बीच रैना ने एक दिन की भी छुट्टी नहीं की थी. तभी एक दिन उसे मोहन से पता चला कि उस की मां गांव में बीमार है.

मां का हाल सुन रैना की आंखों में आंसू आ गए थे. मां के पास जाने के लिए उस का मन मचल उठा था लेकिन तभी उसे अपने बच्चे का खयाल आ गया था. बच्चे के बारे में क्या कहेगी वह. समाज के लोग तो पूछपूछ कर परेशान कर देंगे. फिर मन में आया कि जब तक मां के पास रहेगी, घर से निकलेगी ही नहीं. रही बात मां की, तो उसे तो वह समझा ही लेगी. वैसे भी कौन सा उसे जिंदगी बिताने जाना है गांव…

सारा कुछ ऊंचनीच सोचने के बाद कमलाजी से सप्ताह भर की छुट्टी की बात की थी उस ने.

‘‘क्या, 1 सप्ताह…’’ अभी आगे कुछ कमलाजी बोलतीं कि बेटी ने अपनी मां को टोक दिया था, ‘‘मम्मी, जरा इधर तो आइए,’’ फिर पता नहीं उन के कान में क्या समझाया था उस ने कि उस के पास से लौट कर सहर्ष रैना को गांव जाने की इजाजत दे दी थी उन्होंने.

रैना के जाने के बाद कमलाजी अपने पति से बोली थीं, ‘‘रैना 1 सप्ताह के लिए अपने गांव जा रही है. अगर आप कहें तो हम लोग भी इस बीच पटना घूम आएं. काफी दिन हो गए मांबाबूजी को देखे.’’

‘‘देखो, मैं तो नहीं जा सकूंगा. यहां मुझे कुछ जरूरी काम है. चाहो तो तुम बच्चों के साथ हो आओ,’’ रमण बाबू बोले थे.

फिर तो रात की ट्रेन से ही कमलाजी, दोनों बच्चों के साथ पटना के लिए प्रस्थान कर गई थीं.

कमलाजी को गए अभी दूसरा ही दिन था कि अचानक ही रात में रमण बाबू को बुखार, खांसी और सिरदर्द ने आ दबोचा. सारी रात बुखार में वह तपते रहे थे. सुबह भी बुखार ज्यों का त्यों बना रहा था. चाय की तलब जोरों की लग रही थी पर उठ कर चाय बना पाने का साहस उन में नहीं था. वह हिम्मत जुटा कर बिस्तर से उठने को हुए ही थे कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई.

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उन्होंने उठ कर दरवाजा खोला तो सामने रैना खड़ी थी. उसे देख कर वह चौंक पड़े थे. अभी वह कुछ पूछते कि रैना ही बोल पड़ी, ‘‘बाबूजी, जब मैं गांव पहुंची तो मां एकदम ठीक हो गई थीं. फिर वहां रुक कर क्या करती. यहां मालकिन को दिक्कत होती या नहीं?’’

‘‘पर यहां तो कोई है नहीं. सभी पटना…’’ एकबारगी जोरों की खांसी उठी और वह खांसतेखांसते सोफे पर बैठ गए.

उन्हें उस हाल में देख कर रैना पूछ बैठी, ‘‘तबीयत तो ठीक है, मालिक?’’

खांसी पर काबू पाने की कोशिश करते हुए वह बोले थे, ‘‘देख न, कल रात से ही बुखार है. खांसी और सिरदर्द भी है.’’

इतना सुनना था कि रैना ने आगे बढ़ कर उन के माथे पर अपनी हथेली टिका दी. फिर चौंकती हुई बोल पड़ी, ‘‘बुखार तो काफी है, मालिक. कुछ दवा वगैरह ली आप ने?’’

जवाब में सिर्फ इतना बोल पाए रमण बाबू, ‘‘एक कप चाय बना देगी?’’

फिर तो चाय क्या, पूरी उन की सेवा में जुट गई थी रैना.

रमण बाबू ने फोन कर के डाक्टर को बुलवा लिया था. डाक्टर ने जोजो दवाइयां लिखीं, रैना खुद भाग कर ले आई. डाक्टर की हिदायत के अनुसार रमण बाबू के माथे पर वह अपने हाथों से ठंडे पानी की पट्टी भी रखती रही. खुद का खानापीना तो भूल ही गई, अपने बच्चे को भी दूध तभी पिलाती जब वह भूख से रोने लगता.

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इस प्रकार 2 ही दिनों में उस की देखभाल से रमण बाबू काफी हद तक स्वस्थ हो चले थे. इस बीच रैना ने उन्हें कुछ अलग ढंग से भी प्रभावित करना शुरू कर दिया था. एक तो घर का एकांत, फिर रैना जैसी खूबसूरत और ‘चरित्रहीन’ स्त्री की निकटता, उस को प्राप्त करने के लिए रमण बाबू का भी मन डोल उठा था.

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सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल से करें बुआई

अमूमन बीज की बुआई छिटकवां तरीके से या कृषि यंत्रों द्वारा की जाती है. छिटकवां तरीके में बीज खेत में एकसमान नहीं गिरता और न ही सही गहराई पर पहुंच पाता है. इस से फसल में अंकुरण भी सही नहीं होता. इस का सीधा असर फसल की पैदावार पर पड़ता है.

खास बात यह है कि कुछ फसलों में निराईगुड़ाई की जरूरत पड़ती है, पर वह भी ठीक तरीके से नहीं हो पाती. जबकि कृषि यंत्रों द्वारा बीज की बुआई की जाए तो खेत में बीज तय दूरी पर और सही गहराई पर गिरता है.  साथ ही, बुआई भी लाइनों में ही होती है. इस  का फायदा खेत में निराईगुड़ाई के समय भी होता है.

लाइन में बोई गई फसल में निराईगुड़ाई भी आसानी से होती है. इतना ही नहीं, निराईगुड़ाई यंत्रों का भी इस्तेमाल बेहतर तरीके से किया जाता है और अच्छी पैदावार मिलती है.

खेत में बुआई के लिए अनेक तरह के कृषि यंत्र मौजूद हैं. इन में से किसान अपनी सुविधानुसार चुन कर खरीद सकता है. जिन किसानों के पास ट्रैक्टर मौजूद हैं, उन के लिए आटोमैटिक सीड ड्रिल यंत्र बेहतर है. आजकल इन यंत्रों द्वारा खेत में बीज के साथसाथ खाद भी डाली जाती है, जिन्हें हम सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल मशीन कहते हैं.

सीड ड्रिल द्वारा एकसाथ कई लाइनों में बुआई की जा सकती है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि यंत्र कितनी लाइनों में बुआई करने वाला है.

आमतौर पर 5, 7, 9, 11 लाइनों में बोआई करने वाले यंत्र मौजूद हैं. इन यंत्रों में लाइन से लाइन की दूरी और बीज गिरने की गहराई फसल के हिसाब से घटाईबढ़ाई जा सकती है. इन बोआई यंत्र को इस्तेमाल करने के लिए 35 हौर्सपावर से ज्यादा हौर्सपावर के ट्रैक्टर की जरूरत पड़ती है.

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अनेक फसलोें के लिए उपयोगी

इस यंत्र से गेहूं, चना, मक्का, सोयाबीन, जीरा, सूरजमुखी, धान की सीधी बुआई तकनीक, कपास वगैरह अनाज की बुआई आसानी से की जा सकती है.

इन कृषि यंत्रों पर सरकार द्वारा सब्सिडी भी दी जाती है. प्रदेश सरकारें भी इस के तहत किसानों को छूट देती हैं, इसलिए सब से पहले किसान यह तय कर ले कि उसे कौन सी मशीन, किस कंपनी की खरीदनी है. इस के लिए अन्य जानकार किसानों से सलाहमशवरा लें. इस के बाद वह कृषि यंत्र पर सरकारी छूट पाने के लिए अपने जिले या ब्लौक स्तर पर कृषि कार्यालय में अधिकारियों से मिले. सरकार द्वारा कितनी छूट दी जा रही है, इस की जानकारी वहां से मिल जाएगी और मशीन की जानकारी में बड़ी कंपनियों के कृषि यंत्रों की जानकारी इंटरनैट पर भी मिल जाती है.

भारत एग्रो की सीड ड्रिल मशीनें

भारत एग्रो सीड ड्रिल में 9 तरह के मौडल उपलब्ध हैं, जिस में 5 मौडल ट्रैक्टर से चलते हैं.

रैगुलर मौडल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल

इस मौडल से 9 लाइनों के खादबीज डाला जाता है. इस में 18 पाइप लगे हैं. इन पाइपों के जरीए ही ऊपर लगे  बौक्स (हौपर) से खाद व बीज खेत में गिरता है.

खादबीज के लिए 63 इंच लंबाई में  2 बौक्स (हौपर) लगे होते हैं. इन में लगभग  50 किलोग्राम बीज और 55 किलोग्राम फर्टिलाइजर अलगअलग डाला जा सकता है.

वैसे, इस यंत्र का औसतन वजन 310 किलोग्राम है और इसे 35 हौर्सपावर के अधिक हौर्सपावर में टै्रक्टर द्वारा चलाया जा सकता है.

इस के अलावा 9 लाइनों में बोआई करने वाला ‘हुबली मौडल’ और 7 व 11 लाइनों में बोआई करने वाला आटोमैटिक सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल भी मौजूद है.

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स्प्रिंगटाइप कल्टीवेटर

यह आटोमैटिक सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल 9 लाइनों में बुआई करता है. इस में कल्टीवेटर तकनीक का इस्तेमाल है, इसीलिए इस मौडल को स्प्रिंगटाइप कल्टीवेटर कहा गया है.

सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल

छोटे साइज के ट्रैक्टर के साथ इस्तेमाल होने वाला यह सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल  5 लाइनों में बुआई करता है, जिस में 34 इंच लंबाई के खादबीज के लिए बौक्स (हौपर) लगे हैं.

पावर टिलर चालित सीड ड्रिल

5 लाइनों में बोआई करने वाले इस सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल को पावर टिलर द्वारा इस्तेमाल किया जाता है. छोटी जोत व पहाड़ी इलाकों के किसानों के लिए यह अच्छा यंत्र है.

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हाथ से चलने वाला सीड ड्रिल

कुछ खास फसलों के लिए भारत एग्रो का हाथ से चलने वाला आटोमैटिक बुआई यंत्र भी है. यह एक लाइन में केवल बुआई करता है. इसे सब्जी की खेती में बुआई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

इन मौडलों के अलावा पशु चालित सीड ड्रिल भी आते हैं. इसलिए किसान अपनी जरूरत के अनुसार यंत्र का चुनाव कर सकते हैं. इन में कुछ दूसरे मौडल भी हैं, जैसे मिनी पावर वीडर आटोमैटिक सीड ड्रिल 9 दांतों वाला, 17 दांतों वालों एमपी मौडल, 8 दांतों वाला एपी मौडल और 17 दांत वाला कोटा मौडल भी मौजूद है.

इन कृषि यंत्रों के बारे अधिक जानकारी हासिल करने के लिए आप फोन नंबर 02827-253858 या फिर मोबाइल नंबर 09428035616, 09427733881 पर बात कर सकते हैं.

‘नागिन 4’ में एंट्री करने वाली है ये टीवी एक्ट्रेस, कहानी में आएगा ट्विस्ट

कलर्स टीवी पर प्रसारित होने वाला मशहूर शो ‘नागिन 4’ में  निया शर्मा जैस्मीन भसीन नागिन के लुक में नजर आ रही हैं.  लेकिन सोशल मीडिया वायरल हुई कुछ तस्वीरों से साफ पता चलता है कि जल्द ही शो में अनीता हसनंदानी की एंट्री होने वाली है.

इस तस्वीर में  अनीता हसनंदानी तस्वीर में एक छोटी सी नथ पहने नजर आ रही हैं.  इस नथ ने अनीता हसनंदानी की खूबसूरती में चार चांद लगा दिए है.

शेयर की गई तस्वीर में अनीता हसनंदानी रेड गोल्डन कलर के आउटफिट में नजर आ रही हैं. जिसके साथ उन्होंने मैचिंग ज्वैलरी कैरी की है.

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नागिन के लुक में अनीता हसनंदानी बेहद खूबसूरत लग रही हैं और फैंस से खूब तारिफे भी बटोर रही हैं.

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#Naagin4 it is!

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आपको बता दें, अनीता हसनंदानी शो में निगेटिव किरदार में दिखने वाली हैं.  वैसे वो ज्यादा समय के लिए शो में नहीं दिखेंगी. अनीता हसनंदानी का केमियो रोल होगा.  ऐसे में उनकी एंट्री से कहानी में  ट्विस्ट  आना तो तय ही है.

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‘नागिन 3’ में अपने दमदार अभिनय  अनीता हसनंदानी खूब सुर्खियां बटोर चुकी हैं और अब ‘नागिन 4’ की बारी है.

इलाहाबाद के रोशनबाग से भी महिलाओं की हुंकार

प्रयागराज का रोशनबाग अब देश का दूसरा शाहीनबाग बन गया है.यहां कोई अगुवा नही है फिर भी लगातार आवाज बुलंद हो रही है. ये आवाज और कोई नही पर्दानशीं औरतें बुलंद कर रही है जिनके बारे में कहा जाता था  कि उनको  मुस्लिम समाज घरों में सीमित कर रखता है.अक्सर अपने बेतुके फतवों से मुस्लिम समाज को कठघरे मे खड़ा करने वाले मुल्ला-मौलवी यहां कहीं नजर नहीं आते हैं.जाहिर है कि मुस्लिम समाज की महिलाएं अब  खुद कट्टरपंथ को चुनौती दे रही हैं.अपने हक के लिए उन्होंने रोशनबाग के मंसूर पार्क को एक तरह से अपनाबना आशियाना बना लिया है.

लगातार 24 घंटे चलने वाला ये विरोध दूसरे धरना प्रदर्शन से एक दम अलग है. इसीलिए यहां इंसानियत और हिंदुस्तानियत दोनों दिख रही है.मुस्लिम समाज के अलावा भी यहां दूसरे धर्मों की महिलाएं भी नागरिकता कानून और एनआरसी के खिलाफ तख्ती उठाये दिखती हैं.नेतृत्व करने वाला कोई नही है फिर भी हर दिन प्रदर्शनकारियों की भीड़ बढ़ रही है.मजेदार बात ये हे कि उन्हीं मे से कुछ महिलाएं वक्ता बन जाती हैं और धरने को संबोधित भी कर रही हैं.

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12 जनवरी को शाम करीब 4 बजे अचानक ये विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ था.प्रयागराज की छात्रा सारा अहमद  केवल दस महिलाओं को लेकर एनआरसी और सीएए के खिलाफ रोशनबाग के एतिहासिक मंसूर पार्क में दरी बिछाकर शांति पूर्ण  तरीके से धरने पर बैठ गयी. उस वक्त किसी को अंदाजा नही था ,यहां तक कि सारा को भी कि गिनती की महिलाओं का ये धरना हजारें महिलाओं की जोशीली भीड़ में तब्दील हो जायेगा.कड़ाके की ठंड के बाद भी उसी दिन रात होते होते सीएए से इत्तेफाक न रखने वाली  सकैड़ों महिलाएं उकत्र हो गयी.ठंड मे महिलाओं के लिए बिस्तर आदि के इंतजाम किये गये और धरना पूरी रात चला.तब से लगातार मंसूर पार्क में आंदोलनकारी महिलाएं बढ़ती संख्या के साथ जमी है.जगह कम है और सुविधएं उतनी नही हैं फिर भी किसी को कोई परेशानी नही है.

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लगातार 24 घंटे बेठने से जो थक जाती हैं तो दूसरे दिन नये तेवर के साथ दूसरे प्रदर्शनकारी मोर्चा सम्भाल लेते हैं.इंकलाब का नारा बुलंद होता है तो संविधान बचाने की आवाज भी बुलंद होती है.बैनर और होर्डिंग पर लिखे रोचक नारे ये बताते हैं कि महिलाओं मे कितना जोश है.पोस्टर पर उूपर लिखा है –देश बचाओं ,संविधान बचाओ तो  नीचे नो सीएए,नोएनआरसी.मुस्लिम विरोधी ताकतों से आजादी वाली तख्तियों के साथ हिंदुस्तानियत भी दिखती है.यानी हिंदू,सिख,मुस्लिम और ईसाई एकता जिंदाबाद की गूंज भी सुनाई पड़ती है.छोटे बच्चों के चेहरे पर तिरंगा पेंट है तो लड़कियां तिरंगें वाली पट्टियां  बांध कर ये जता रही हैं कि ये देश हमारा भी है.पार्क में जगह-जगह लहरा रहे तिरंगा ,महात्मा गांधी और अंबेडकर के पोस्टरों के जरिए ये महिलाएं आवाज दे रही हैं कि हम एक हैं और राजनीति के लिए हमें अलग मत किया जाये.

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बीच-बीच में हिंदुस्तान जिंदाबाद और तिरंगा अमर रहे की सदा भी गूंजती है.इलाहाबाद विश्वविद्दलय की छात्राएं ,हाईकोर्ट के वकीलों , विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों के जत्थें भी अपना  कामकाज छोड़ कर सर्मथन देने के लिए पहुंच रहे हैं. आंदोलनकारियों की सेइत का ख्याल रखने के लिए धरना सथल पर ही चकित्सा शिविर भी लगाया गया है.खाने का पैकेट,पानी और चाय की व्यवस्था आसपास के लोग कर रहें हैैं. कई संगठन भी इस काम मे सहयोग कर रहें हैं.   इास बेमियादी आन्दोलन ने प्रयागराज  प्रशासन को हिला कर रख दिया है.पुलिस और एलआईयू का अमला लगातार ये जानने की कोशिश कर रहा है कि आखिर इनका अगुवा कौन है.लोगों का कहना है की हम नोट बन्दी और दूसरे  के फैसले पर खामोश रहे इसका मतलब नहीं है की हम सरकार के  हर असंवैधानिक फैसले पर खमोश रहेंगे.हम अपने हिन्दुस्तान से और बाबा साहब के क़ानून से मुहब्बत करने वाले लोग हैं.

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हम हिन्दुस्तानी हैं हम गीदड़ भभकी से डिगने वाले नहीं. हम यहीं दफन होंगे जहां हमारे पुरखे बाबाओं अशदाद दफ्न हैं. उम्रदराज़ व बूढ़ी औरतें तथा मांएं अपने गोद में दुधमुहे बच्चों समेत धरना स्थल पर डटी हुई हैं. प्रशासन की ओर से मंसूर अली पार्क के इर्द गिर्द भारी पुलिस लगाने और 270 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज  खौफ पैदा करने की कवायद भी प्रदर्शनकारीयों के जज्बे के आगे नहीं टिक पाई. धरना एक दम शांतिपूर्ण और पार्क के भीतर चल रहा है.वहीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्रा नेहा यादव लगातार धरना स्थल पर डटी रह कर आन्दोलनकारीयों के हौसले को बढ़ा रही हैं.

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नेहा ने कहा हम न तो मोदी से डरेंगे न योगी से.  हमारे देश में संविधान ने सब को बराबरी का दर्जा दिया है हम अपने हिन्दुस्तानी मुस्लिम भाई व बहनों के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़े हैं और खड़े रहेंगे.केन्द्र सरकार को एन आर सी ,एन पी आर को वापिस लेना होगा. बातचीत में मुस्लिम युवतियां  तिरंगा लेकर बड़े जोश से कहती हैं कि सरुरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल मे है ,देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है.

कहां और क्यों जुटे इतने उद्योगपति

मौसम में असामान्य बदलाव यानी क्लाइमेट चेंज का असर कृषि, वन और भूमि इस्तेमाल, पानी और ऊर्जा जैसे सभी क्षेत्रों पर दिखता है. जहां एक ओर मौसम में असामान्य बदलाव को लेकर भारत की पहल सकारात्मक रही है, फिर भी इस क्षेत्र में अभी काफी कुछ करने के मौके हैं.

इसके लिए इंडिया क्लाइमेट कोलेबरेटिव निम्न कदम उठाएगा:

  • भारतीय मौसम से जुड़े समुदाय को आपस में जोड़ेगा और उन्हें मजबूती देगा
  • भारत केंद्रित मौसमी बदलाव की सोच को बढ़ावा देगा
  • व्यक्तियों और प्रकृति की मदद के लिए क्लाइमेट सौल्यूशंस मुहैया कराएगा

भारत के मौसम में बदलाव से जुड़ी चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए मुंबई में देश के 10 से ज्यादा दिग्गज उद्योगपति इंडिया क्लाइमेट कोलेबरेटिव (आईसीसी) की स्थापना के लिए साथ आए. आईसीसी के रूप में रतन एन टाटा, आनंद महिंद्रा, रोहिणी निलेकणि, नादिर गोदरेज, अदिति और रिशाद प्रेमजी, विद्या शाह और हेमेंद्र कोठारी जैसे भारतीय उद्योग जगत के दिग्गज, क्लाइमेंट चेंज के साझा लक्ष्य को हासिल करने के लिए गंभीर कोशिश किए.

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आईसीसी के लौन्च पर टिप्पणी करते हुए टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन रतन एन टाटा ने कहा, आईसीसी के रूप में हमारा साझा नेतृत्व दुनिया को संदेश देगा कि भारतीय  क्लाइमेट चेंज से निपटने के दिशा में जरूरी कदमों के लिए तैयार है.

आईसीसी विविध सोच, अनूठे समाधान और सामूहिक निवेश के लिए सहकारी मंच देने का इरादा रखता है. आईसीसी स्थानीय समाधानों को बढ़ावा देते हुए, सरकार, कारोबारियों, प्रभावी निवेशकों, शोध संस्थानों, वैज्ञानिकों और सिविल सोसाइटी के लोगों को आपस में जुड़ने के लिए प्रेरित करेगा. ताकि सभी मिलकर अंतरराष्ट्रीय क्लाइमेट समुदाय के सहयोग से भारत के मौसमी संकट का हल निकाल सकें. महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन  आनंद महिंद्रा ने कहा, वैज्ञानिक शोधकर्ताओं ने बताया कि वैश्विक मौसमी संकट से निबटने के लिहाज से अगला दशक बेहद नाजुक होगा. ये बेहद साफ है कि चलता है, चलने दो की सोच से इस संकट का समाधान नहीं निकाला जा सकता और कोई अकेले इसका समाधान नहीं निकाल सकता. कारोबारी जगत, सरकार और दानवीरों को साथ मिलकर काम करना होगा, ताकि व्यापक पैमाने पर जल्दी नतीजे मिल सकें इंडिया क्लाइमेट कोलेबरेटिव ये लक्ष्य हासिल कर सकता है और मैं इस पहल का स्वागत करता हूं. हम साथ मिलकर हल निकालेंगे और क्लाइमेट चेंज से निबटने के लिए प्रभावी कदम उठाएंगे.

गोदरेज इंडस्ट्रीज के मैनेजिंग डायरेक्टर  नादिर बी गोदरेज ने कहा, क्लाइमेंट चेंज से निपटने के लिए कारोबारी जगत काफी कुछ कर सकता है और कर भी रहा है. इसकी लागत भी बहुत ज्यादा ऊंची नहीं है. कम कार्बन उत्सर्जन को सुनिश्चित करने के लिए सरकार कई तरह की छूट देने या लगाम लगाकर अपना योगदान दे सकती है. हमें ऐसे स्थानीय समाधानों की ओर रुख करना होगा, जो वैश्विक समस्याओं का समाधान कर सकें. इसके लिए कारोबारी जगत, सरकारों, शिक्षाविदों और व्यक्तियों को साथ आकर समस्या का समाधान निकालना होगा. मौसमी बदलाव की चुनौतियों से निबटने के सफल मौडल के तौर पर आईसीसी भारत के लिए एक मंच मुहैया करा सकता है.

 आईसीसी के फिलहाल 40 से ज्यादा सदस्य संगठन हैं और इसका लगातार विस्तार हो रहा है.

अग्रणी सरकारी एजेंसियां, कारोबारी, वैज्ञामिक संस्थान और विश्वविद्यालय, इसके सदस्य हैं. इनमें भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकर, द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टिट्यूट (टीईआरआई), द अशोका ट्रस्ट फौर रिसर्च औन इकोलौजी एंड इनवायर्नमेंट (एटीआरईई), द सेंटर फौर पौलिसी रिसर्च (सीपीआर), द काउंसिल औन एनवार्नमेंट, एनर्जी एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू), सेंटर फौर साइंस एंड इनवायर्नमेंट (सीएसई), द नेचर कंजरवेंसी (टीएनसी इंडिया) वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टिट्यूट (डब्ल्यूआरआई), आईआईटी-दिल्ली, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी), आईडीएच सस्टेनेबल ट्रेड इस्टिट्यूट, शक्ति फाउंडेशन, डेलबर्ग एडवाइजर्स, इंटेलेकैप, महिंद्रा ग्रुप, विप्रो, गोदरेज इंडस्ट्री और एचयूएल फाउंडेशन जैसे कई अहम संगठन और संस्थान शामिल हैं.

 इसके साथ ही स्वदेश फाउंडेशन, सैंक्चुरी एशिया फाउंडेशन, मोंगाबे-इंडिया, इंडियन डेवलपमेंट रिव्यू (आईडीआर), पीपुल्स आर्काइव फॉर रूरल इंडिया (परी), क्लाइमेट कलेक्टिव फाउंडेशन, सेल्को और फाउंडेशन फौर इकोलौजिकल सिक्योरिटी (एफईएस) जैसे दूसरे गैर-लाभकारी संगठन भी आईसीसी में शामिल हैं.

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 वैश्विक और राष्ट्रीय कोलेबरेटिव प्लेटफौर्म और नेटवर्क मसलन, एको नेटवर्क, एशियन वेंचर्स फिलेंथ्रॉपी नेटवर्क (एवीपीएन), दासरा, संकल्प फोरम, फोरम फौर द फ्यूचर, द क्लाइमेट एंड लैंड यूज एलायंस (सीएलयूए) और ग्लोबल एडवाइजरी फॉर द फ्यूचर ऑफ फूड (जीएएफएफ) भी आईसीसी के साथ जुड़े हैं.

इडेलगिव फाउंडेशन की सीईओ,  विद्या शाह ने कहा, भारत की विविधतापूर्ण भौगोलिक स्थिति, कृषि पर निर्भरता और तीव्र औद्योगकीकरण की वजह से आर्थिक विकास पर क्लाइमेट चेंज के नाटकीय असर को समझने का मौका मिलता है. क्लाइमेंट चेंज पर चर्चा का बिंदु अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मुद्दों के बजाए ग्रामीण भारत को बनाए की जरूरत है. मौसमी बदलावों की वजह से इन इलाकों में रोजगार का नुकसान हुआ है. इडेलगिव फाउंडेशन ने ऐसे सौल्यूशंस में लगातार निवेश किया है, जो इस तरह के नुकसान को कम कर सकें और समुदायों को मजबूत बना सकें. हम इस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में आईसीसी को एक शानदार मंच के तौर पर देख रहे हैं.

 कृषि, फौसिल फ्यूल पर अधिक निर्भरता और लंबी तटीय रेखा के कारण भारत पर जयवायु परिवर्तन का गंभीर खतरा है. जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान, घटती बारिश और बेमौसम सर्दी-गर्मी जैसे शुरुआती असर का सामना हम कर रहे हैं. अगर हम अभी नहीं चेते तो भारत गंभीर संकट में होगा. 2018 में मौसम की वजह से दुनिया में होने वाली मौतों में सबसे ज्यादा भारत में हुईं. वहीं जलवायु परिवर्तन के सबसे ज्यादा खतरों की 181 देशों की लिस्ट में भारत का स्थान पांचवा है. अप्रैल 2019 के दौरान भारत का करीब 42% हिस्सा सूखे से प्रभावित रहा, इससे कृषि संकट और गहराया. 1980 के बाद से भारत में मौसम में बढ़ रही गर्मी की वजह से करीब 60,000 लोगों को आत्महत्या करनी पड़ी. पिछले 20 सालों में वायु प्रदूषण से जुड़ी मौतों में 150% की बढ़ोतरी हुई है. अकेले 2017 में वायु प्रदूषण की वजह से 12 लाख लोगों की मौत हुई. 2018 में जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत को 37 अरब डौलर का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा. अकेले बाढ़ की वजह से 2.8 अरब डौलर का नुकसान हुआ.

रोहिणी नीलेकणि ने इस मौके पर कहा, “ऐसा लगता है कि जलवायु परिवर्तन हम पर पहले ही हावी हो चुका है भारत में हमें हालात से निबटने के लिए गंभीर रूप से तैयार रखना होगा. साथ ही विकास की रफ्तार को कायम रखने के लिए अनूठी और बहुआयामी रणनीति तैयार रखनी होगी. हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि अर्थव्यवस्था इस तरह विकास करे जिससे भविष्य में रोजगार पैदा हो और हमारे प्राकृतिक पारिस्थिक तंत्र की रक्षा की जा सके.”

हवा, पानी और जमीन से जुड़े थीम पर आईसीसी भियान चलाएगा ताकि भारतीय जलवायु संकट और आईसीसी के सदस्यों से जुड़े मुद्दों को कवर किया जा सके. भारत में वायु प्रदूषण से निबटने के लिए आने वाले महीने में आईसीसी खास अभियान चलाएगा.  राजस्थान सरकार के अधिकारियों के लिए जलवायु परिवर्तन पर तकनीकी प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया जाएगा. इसके अलावा दानशीलता के जरिए समाज कैसे जलवायु परिवर्तन से निपट सकता है, इस पर एक शोध भी लौन्च होगा.

2019 में, आईसीसी ने सस्टेनेबल लैंड यूज फोरम की मेजबानी की थी. फोरम में इस सेक्टर के 100 से अधिक भागीदारों का जुड़ना आईसीसी की ताकत और सोच को दर्शाता है. इसमें लैंड यूज की रणनीति और उसका दूसरे क्षेत्रों को होने वाले फायदे पर चर्चा हुई. इससे आईसीसी और उसके सहयोगियों के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने के नए रास्ते और विचार उभरकर सामने आए .

टाटा ट्रस्ट में  सस्टेनेबिलिटी पोर्टफोलियो की स्थापना और नेतृत्व करने वाले  श्लोका नाथ को  इंडिया क्लाइमेट कोलेबरेटिव का कार्यकारी निदेशक नियुक्त किया गया है.  श्लोाका नाथ के मुताबिक, “हमारे पास हवा को साफ करने और पानी सप्लाई व्यवस्थित करने का मौका है. उनका ये भी कहना है कि हम एक साथ काम करें तो भविष्य में भारत में स्वच्छता से जुड़ी नौकरियां लाई जा सकेंगी. इसके लिए वैसी पौलिसी, मानव संसाधन और संस्थाओं में निवेश की जरूरत है, जो पर्यावरण के अनुकूल बदलावों के लिए काम करते हैं. जलवायु परिवर्तन से जिस तरह से हम निपटेंगे वो अनूठा और दूसरों से बेहद अलग कहानी होगी.”

‘पंगा’ देखने के बाद लोग कहना शुरू करें कि हर सफल औरत के पीछे एक पुरूष रहता है : अश्विनी अय्यर तिवारी

डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्देशक के तौर पर ख्याति बटोरने के बाद अश्विनी अय्यर तिवारी ने 2016 में फिल्म ‘‘निल बटे सन्नाटा’’ से जब लेखक व निर्देशक की हैसियत से बौलीवुड में कदम रखा था, उसी वक्त उन्होंने साबित कर दिखाया था कि वह सामाजिक व पारिवारिक मूल्यों व इमोशंस को लेकर काफी संजीदा है. उसके बाद अपनी दूसरी कमर्शियल फिल्म ‘‘बरेली की बर्फी’’ से उन्होंने इस बात पर दोहरी मोहर लगा दी थी. अब 24 जनवरी को वह फिल्म ‘‘पंगा’’ लेकर आ रही है, जिसका निर्माण ‘‘फौक्स स्टर स्टूडियो, इंडिया’’ ने किया है, जबकि फिल्म में कंगना रानौट, जस्सी गिल, नीना गुप्ता,मास्टर यज्ञ भसीन और रिचा चड्डा की भी अहम भूमिकाएं हैं.

पंगा’ सहित आप तीन फिल्में निर्देशित कर चुकी हैं.इन तीनों में आप क्या समानता व क्या असमानता देखती हैं ?

समानता यही है कि मैं वह कहानियां सुनाना चाहती हूं जिससे हर इंसान जुड़ सकें. ऐसी कहानियां जो कि हर घर तक पहुंच सके. हर घर के लोग मेरी फिल्म देखकर यह कहें कि हां ऐसा मेरे घर पर भी होता है या होना चाहिए. और मेरी तीनों फिल्मों में यही समानता है. जहां तक असमानता की बात है,तो मेरे ख्याल से कुछ नही है. क्योंकि जब हम अपने देश और देश के हर घर की कहानी कह रहे हैं, तो उनमें असमानता कैसे हो सकती है ?

आपके अनुसार आपकी यह तीनों फिल्में अलग कैसे हैं ?

देखिए,मेरी तीनों फिल्मों की आंतरिक संरचना बहुत अलग है. हर फिल्म की ग्रामर अलग होती है,  पर उनकी सोल@आत्मा नही बदलती. मसलन -मेरी पहली फिल्म ‘‘निल बटे सन्नाटा’  का ग्रामर अलग था. इसमें ‘लो मिडल क्लास’की कहानी थी. शिक्षा का मुद्दा था. उसकी सेटिंग अलग थी. किरदार अलग थे. फिर ‘बरेली की बर्फी’ अलग ग्रामर की फिल्म थी. यह दो दोस्तों और प्यार की कहानी है, मगर छोटे शहरों में प्यार की कहानी अलग हो जाती है. इसमें नोकझोक व कौमेडी थी. मगर फिल्म ‘‘पंगा’’ का मुद्दा बहुत ही अलग है. हम औरतों से जुड़े अहम मुद्दे को लेकर आ रहे हैं. इस फिल्म का मुद्दा हर घर में मौजूद जया जैसी महिला की कथा है, यह महिला हर घर में मां, बहन या पत्नी के रूप में मौजूद है. इनके अपने सपने हैं, पर इनके सपनों को लेकर पुरूष वर्ग सोचता ही नही है. भारतीय सभ्यता व संस्कृति में एक पत्नी हमेशा अपने आपको पीछे रखती है, क्योंकि उसकी सोच यह है कि पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसकी प्राथमिकता है. इस बीच उसके अपने सपने पूरे करने का वक्त निकल जाता है. वह बच्चे की मां बन चुकी होती है.

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मैने सुना है कि ‘‘पंगा’’की कहानी फौक्स स्टार स्टूडियो की तरफ से आयी थी. ऐसे में इसे निर्देशित करने के लिए तो आपको इस कहानी में किस बात ने इंस्पायर किया ?

इस तरह से नही है.वास्तव में फौक्स स्टार स्टूडियो ‘प्रो कबड्डी लीग’ से जुड़ा हुआ है और इसके मैचेस लाइव टेलीकास्ट करता है, तो प्रो कबड्डी में जब उन्होने औरतों की टीम पर काम करना शुरू किया तो फौक्स स्टार की क्रिएटिब हेड चारू ने मुझसे संपर्क किया और बताया कि वह लोग प्रो कबड्डी टीम में औरतों को जोड़ रहे हैं. कबड्डी एक रोचक खेल है और हमारे देश का पुराना खेल है. हम सभी बचपन में कबड्डी खेलते थे, पर अब भूल चुके हैं. कबड्डी ऐसा खेल है,जिसे हम चप्पल पहनकर भी खेल सकते हैं, केवल आपका अपना शरीर साथ देना चाहिए. इस खेल के लिए आपको अपनी बौडी में भी बदलाव करने की जरुरत नही होती है. तो रूचा चाहती थीं कि कबड्डी पर एक फिल्म बनायी जाए. मैंने रूचा से कहा कि सिर्फ कबड्डी पर फिल्म बनाएंगे, तो वह पारिवारिक नहीं, एक स्पोटर्स फिल्म ही बन सकती है, जिसमे मेरी रूचि नहीं है. मैं हर घर के जुड़ाव वाली कहानी सुनाने में यकीन करती हूं,  तो मुझे इस फिल्म की कहानी के साथ कोई मुद्दा लेकर आना ही पड़ेगा. उन्होंने मुझे इस पर आगे बढ़ने की छूट दी.

मैं पढ़ने की बहुत शौकीन हूं. मैंने कई तरह के विषयों वाली किताबें पढ़ी है. इसके साथ ही मै सोशियली इमोशनल इंसान हूं. तो मैं हर फिल्म में जीवन व पारिवारिक मूल्यों को भी पिरोना पसंद करती हूं. मैंने देखा है कि मेरी कई सहेलियां, जिन्होंने एमबीए की पढ़ाई करने के बाद नौकरी शुरू की, पर शादी के बाद बच्चे होने पर नौकरी छोड़ देती हैं. कुछ समय बाद वापस नौकरी ज्वाइन करना उन्हे बोरियत वाला काम लगने लगता है.तो कुछ इसलिए वापस काम नहीं कर पाती,क्योंकि तब उन पर कई तरह के दबाव आने लगते हैं. परिवार के लोग सवाल उठाते हैं कि बच्चा कौन संभालेगा. वैसे कई कारपोरेट आफिस में सायकोलौजिस्ट इस तरह की औरतों की मदद करने का काम करते हैं. यह मनोवैज्ञानिक डाक्टर उन औरतों का छह माह का प्रशिक्षण नुमा इलाज करते हैं. मेरी मौसी के साथ भी ऐसा हुआ. तो मेरे मन में भी काफी समय से बात उभर रही थी कि इस मसले पर पश्चिमी देशों में काफी बातचीत होती है, पर हमारे देश में इस मुद्दे पर कोई बात ही नहीं होती. हमारे देश में कामकाजी औरतों को पश्चिमी देशों की तरह सुविधाएं भी नहीं दी गयी हैं. हमारे देश की सामाजिक संरचना ही इस प्रकार की है, जहां हर औरत को पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने के साथ बच्चे की परवरिश करनी ही है. हमारे यहां कहा जाता है कि ‘‘हर सफल पुरूष के पीछे एक औरत होती है.’’ तो मैने सोचा कि ‘पंगा’ की कहानी कुछ ऐसी हो कि ‘पंगा’ देखने के बाद लोग कहना शुरू करें कि ‘हर सफल औरत के पीछे एक पुरूष रहता है.’

आप अपनी सहेलियों या कामकाजी औरतों की बात कर रही हैं,उनसे इस मुद्दे पर शोध के तहत कोई बातचीत की ?

देखिए,मैं अपनी हर फिल्म की पटकथा पूरी लिखने से पहले शोध बहुत करती हूं. मैंने ‘बरेली की बर्फी’  जैसी फिल्म के लिए भी शोध किया था. वहां के किरदारों के रहन सहन व भाषा आदि पर शोध किया था. फिल्म में राज कुमार राव का किरदार साड़ी बेचने वाला है, पर दर्शक उसके साथ जुड़ गए. फिल्म ‘‘निल बटे सन्नाटा’’ तो ‘लो मिडल क्लास’ की कहानी थी, पर मैंने इसके लिए भी शो किया और फिर कहानी में ऐसे सब कुछ गूंठा कि उच्च वर्गीय और उच्च मध्यमवर्गीय परिवार के हर सदस्य ने थिएटर में फिल्म देखते हुए रिलेट कर रहे थे क्योंकि इमोशन तो युनिवर्सल है. रोना या खुश होने का कोई वर्ग नही होता. यह कहीं नहीं होता कि उच्च वर्ग का इंसान तकलीफ होने पर नहीं रोएगा, सिर्फ निम्न वर्ग का इंसान ही रोएगा.कोई यह नही कहता कि अब उच्च वर्ग का इंसान रोएगा और अब निम्न वर्ग का इंसान रोएगा.

क्या आपने किसी मनोवैज्ञानिक डाक्टर से भी बात की,जो कि कामकाजी महिलाओं को गाइड करते हैं ?

जी नहीं..क्योंकि वह सब तो मैं अपने घर व अपनी सहेलियों में देखती व समझती आयी हूं.इसके अलावा मेरा अपना निजी अनुभव भी काम आया. मैं खुद कामकाजी हूं, पत्नी और दो बच्चों की मां हूं. इसके अलावा विज्ञापन जगत में काम करने का मेरा जो कई वर्षों का अनुभव है, वह भी काम आया. विज्ञापन फिल्में बनाते समय भी हम छोटे व बडे़ शहरों में जाकर शोधकार्य करते रहे हैं. मैंने इसमें कुछ अतिशयोक्ति के साथ नहीं पेश किया है.

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क्या फिल्म में आपकी जिंदगी के कुछ हिस्से हैं ?

ढेर सारे हैं. इसीलिए कंगना रानौट कहती हैं कि यह फिल्म मेरी जिंदगी की कहानी है. मगर मैं कहती हूं कि मेरी जिंदगी के कुछ हिस्से होते हुए भी यह मेरी जिंदगी की कहानी नहीं है. यह मेरी बायोपिक फिल्म नहीं है. जब हम कहानी लिखने बैठते हैं,तो मेरा कुछ तो होगा, फिर मंां के हिसाब से मेरे अनुभव भी कहानी का हिस्सा होगा. मसलन-मुझे और कंगना दोनों को बागवानी का बड़ा शौक है,  तो यह मेरी फिल्म का हिस्सा है.

फिल्म में किसके क्या किरदार हैं ?

कंगना रानौट ने रेलवे में नौकरी कर रही जया का किरदार निभया है, जो कभी कबड्डी खिलाड़ी थी.जस्सी गिल रेलवे में इंजीनियर और जया के पति हैं. रिचा चड्डा ने जया की अच्छी दोस्त व कबड्डी खिलाड़ी का किरदार निभाया है.रिचा का किरदार काफी अलग है. पोनी टेल, नो मेकअप, पूरा शरीर कपड़ों से ढंका हुआ है. इस तरह का किरदार उसने इससे पहले नहीं निभाया. वैसे भी अब वह विचारों के स्तर पर काफी परिपक्व हुई हैं. हमें अपनी इस फिल्म के लिए मैच्योर कलाकार ही चाहिए थे.नीना गुप्ता की बातें फिल्म के लिए बहुत मायने रखती हैं.

फिल्म में संवाद लेखक के तौर पर नितीश तिवारी की मदद लेने की कोई वजह ?

यदि किसी में कुछ खास प्रतिभा है, तो उसकी मदद ली जानी चाहिए. नितीश ने ‘निल बटे सन्नाटा’ और ‘बरेली की बर्फी’ के भी संवाद लिखे थे. इसकी पटकथा व संवाद निखिल व मैंने लिखा है. पर नितीश पति हैं तो घर पर चर्चा होती ही है. ऐसे में वह अपनी राय देते रहते हैं. वह अमेजिंग संवाद लेखक हैं, तो मैंने उसका फायदा उठाया.

कलाकारों के चयन में आपकी कितनी भूमिका रही  ?

मेरे काम में प्रोडक्शन हाउस ने कोई दखलंदाजी नही की.मैंने हर किरदार के लिए कलाकारों के नाम तय करके कलाकारों से मैंने खुद ही बात की.

आपको किस तरह की किताबें पढ़ना पसंद ?

यूं तो मैं हर तरह की किताबें पढ़ती हूं, पर बायोपिक और सायकोलॉजिकल किताबें ज्यादा पढ़ती हूं. फिक्शन पढ़ती हूं. मैंने हाल ही में मिशेल ओबामा की किताब  ‘बिकमिंग’ पढ़ी और बहुत अच्छी लगी.

किताबें पढ़ते हुए कई बार आपको लगता होगा कि यह सब हमारे समाज में भी होना चाहिए,जो कि नहीं हो रहा है?

जी हां! ऐसा बहुत कुछ लगता है. ओनिगी चंदाना की किताग पढ़ी है. सुकेन मेहता की माइग्रेशन पर किताब पढ़ी. अमिताभ घोष की किताब पढ़ी. तो समझ में आया कि यह सब नहीं होना चाहिए. अमिताव घोष ने क्लामेट चेंज के संबंध में अपनी किताब में विस्तार से लिखा. वह बहुत सही है. तो क्लायमेट चेंज पर जागरूकता लाकर काम करने की जरुरत है, जो कि नहीं हो रहा है.

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फिल्म ‘‘पंगा’’ के बाद की योजना ?

नारायण मूर्ति और सुधा मूर्ति की बायोपिक फिल्म पर काम कर रही हूं. इसका लेखन व निर्देशन मैं ही करने वाली हूं. एकता कपूर के साथ एक फिल्म का सहनिर्माण व निर्देशन कर रही हूं.

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