प्रयागराज का रोशनबाग अब देश का दूसरा शाहीनबाग बन गया है.यहां कोई अगुवा नही है फिर भी लगातार आवाज बुलंद हो रही है. ये आवाज और कोई नही पर्दानशीं औरतें बुलंद कर रही है जिनके बारे में कहा जाता था  कि उनको  मुस्लिम समाज घरों में सीमित कर रखता है.अक्सर अपने बेतुके फतवों से मुस्लिम समाज को कठघरे मे खड़ा करने वाले मुल्ला-मौलवी यहां कहीं नजर नहीं आते हैं.जाहिर है कि मुस्लिम समाज की महिलाएं अब  खुद कट्टरपंथ को चुनौती दे रही हैं.अपने हक के लिए उन्होंने रोशनबाग के मंसूर पार्क को एक तरह से अपनाबना आशियाना बना लिया है.

लगातार 24 घंटे चलने वाला ये विरोध दूसरे धरना प्रदर्शन से एक दम अलग है. इसीलिए यहां इंसानियत और हिंदुस्तानियत दोनों दिख रही है.मुस्लिम समाज के अलावा भी यहां दूसरे धर्मों की महिलाएं भी नागरिकता कानून और एनआरसी के खिलाफ तख्ती उठाये दिखती हैं.नेतृत्व करने वाला कोई नही है फिर भी हर दिन प्रदर्शनकारियों की भीड़ बढ़ रही है.मजेदार बात ये हे कि उन्हीं मे से कुछ महिलाएं वक्ता बन जाती हैं और धरने को संबोधित भी कर रही हैं.

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mahila

12 जनवरी को शाम करीब 4 बजे अचानक ये विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ था.प्रयागराज की छात्रा सारा अहमद  केवल दस महिलाओं को लेकर एनआरसी और सीएए के खिलाफ रोशनबाग के एतिहासिक मंसूर पार्क में दरी बिछाकर शांति पूर्ण  तरीके से धरने पर बैठ गयी. उस वक्त किसी को अंदाजा नही था ,यहां तक कि सारा को भी कि गिनती की महिलाओं का ये धरना हजारें महिलाओं की जोशीली भीड़ में तब्दील हो जायेगा.कड़ाके की ठंड के बाद भी उसी दिन रात होते होते सीएए से इत्तेफाक न रखने वाली  सकैड़ों महिलाएं उकत्र हो गयी.ठंड मे महिलाओं के लिए बिस्तर आदि के इंतजाम किये गये और धरना पूरी रात चला.तब से लगातार मंसूर पार्क में आंदोलनकारी महिलाएं बढ़ती संख्या के साथ जमी है.जगह कम है और सुविधएं उतनी नही हैं फिर भी किसी को कोई परेशानी नही है.

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